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बसपा को विश्वास था कि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा

उत्तर प्रदेश की सियासत में नया मोड़ फिर से आ गया है। बसपा पर कांग्रेस द्वारा जो आरोप लगाये गये है कि कांग्रेस ने बसपा को प्रदेश में नेतृत्व करने को कहा था और मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया था। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने बात नहीं मानी। ये कहना है कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का।
बसपा सूत्रों की मानें तो बसपा को पूरा विश्वास था कि प्रदेश में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने वाला नहीं है। ऐसे में बसपा के सहयोग के बिना भाजपा की सरकार बन नहीं सकती है। सो बसपा कांग्रेस सहित किसी भी अन्य दल के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती थी।
अब बात कुछ और है बसपा और कांग्रेस का चुनाव में जो हाल हुआ है। उससे दोनों दलों की हालत पतली है। रहा सवाल कांग्रेस और बसपा के आरोप-प्रत्यारोपों का तो इससे कुछ बात नहीं बनती दिख रही है। लेकिन 2 साल से कम का समय बचा है 2024 के लोकसभा चुनाव का। ऐसे में बसपा और कांग्रेस अभी से चुनाव की तैयारी में जुट गये है।
जानकारों का कहना है कि भाजपा की दोबारा सरकार बनने से कांग्रेस, बसपा और सपा की हालत पतली है और मनोबल भी गिरा है। ऐसे में अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा को सही मायने अगर लोकसभा के चुनाव में टक्कर देनी है तो विपक्ष को आपसी सहमति के साथ एक साथ खड़ा होना होगा। अन्यथा भाजपा के मुकाबले चुनाव लड़ना आसान नहीं होगा।
वहीं कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा मायावती पर जो भी आरोप लगाये है वे सियासी तौर पर तो ठीक हो सकते है। लेकिन ऐसे में गठबंधन और विपक्षी एकता के लिये ठीक नहीं हो सकते है। क्योंकि विधानसभा चुनाव हो चुके है। हार-जीत हो चुकी है। अब तो दोनों दलों के सामने अगर चुनावी चुनौती है तो वो है लोकसभा 2024 के चुनाव है।     

जेएनयू मामला तूल पकड़ सकता है

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में रामनवमी के दिन हुई छात्रों के बीच हुई हिंसक झड़प में एबीवीपी और वामपंथी समर्थकों  को काफी चोटें आयी है। जेएनयू सूत्रों की मानें तो रामनवमी के दिन  हवन -पूजा के दौरान कावेरी हॉस्टल में जो झड़प हुई है। वो तो होनी थी। क्योंकि जब 10 मार्च को  पांच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे। तभी पंजाब छोड़ अन्य चार राज्यों में भाजपा को जीत मिल रही थी। उसी दौरान एबीवीपी और वाम दल समर्थकों के बीच चुनाव में बेईमानी को लेकर काफी बहस हो गयी थी। यानि एक ग्रुप दूसरे ग्रुप पर आरोप वाजी कर आने वाले चुनाव में सबक सिखाने की बात कर रहे थे।तभी से मामला गर्म हो रहा था। रामनवमी के दिन एक तरफ एबीवीपी  के छात्र पूजा -हवन कर रहे थे। तो दूसरी तरफ वाम दल समर्थक नॉनवेज का सेवन कर रहे थे।इसी बात को लेकर कहा सुनी हो गई  कि एक ओर पूजा पाठ हो रहा है। वही दूसरी ओर मीट का सेवन नहीं हो सकता है।
बताते चलें जेएनयू में 2019 से भी देश द्रोही जैसे नारे लगने के बाद  यूनिवर्सिटी में अक्सर जरा सी बात पर हंगामा और हिंसक झड़प हो जाती है। जेएनयू के एक टीचर ने बताया कि आने वाले दिनों में अब त्योहार में अक्सर ऐसे ही मामले तूल पकड़ेगे।क्योंकि देश की सियासत में नये समीकरण पनप रहे है। ऐसे में देश भक्ति और देश विरोधी जैसे नारे सियासी लाभ हानि का कारण बन सकते है। क्योंकि  देश की एक ही ऐसी यूनिवर्सिटी जेएनयू है। जहां पर वाम दल के अलावा दूसरे दल का छात्र नेता चुनकर नहीं आये है। ऐसे में वाम दल के किले में सेंध लगाने के लिये छात्र राजनीति होती रहती है।
छात्र रोहित कुमार का कहना है कि जेएनयू में अब पढ़ाई कम सियासत ज्यादा होती है। उनका कहना है कि गत तीन सालों से देश -दुनिया से छात्र कम ही पढ़ने आ रहे है। वजह अब सियासी दांव पेंच का केन्द्र जेएनयू बनता जा रहा है। जिससे जेएनयू की सांख पर सवालिया निशान लग रहे है।फिलहाल आने वाले दिनों में जेएनयू में ये मामला तूल पकड़ता है या शांत होता है। क्योंकि एबीवीपी और वाम दल के राष्ट्रीय नेता अगर इस मामले कुछ भी बयानवाजी करते है। तो मामला निश्चित तौर पर तूल पकड सकता है।

रामनवमी: चार राज्यों में निकाले जा रहे जुलूस के दौरान सांप्रदायिक संघर्ष

रामनवमी के मौके पर देशभर के चार राज्यों में सांप्रदायिक संघर्ष की खबर सामने आर्इ है। इसमे मध्य प्रदेश, गुजरात, झारखंड व पश्चिम बंगाल शामिल है। बताया जा रहा है कि रविवार यानी 10 अप्रैल को रामनवमी के पावन अवसर पर जुलूस निकालने के दौरान पथराव, मारपीट, आगजनी व भारी हिंसा हुर्इ।

भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के मौके पर देशभर में जुलूस निकालने की परंपरा रही है। इसी परंपरा को निभाते हुए जुलूस के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुर्इ। हालांकि भड़की हिंसा पर काबू पाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले भी छोड़े साथ ही पूरे शहर में प्रशासन द्वारा तुरंत ही धारा 144 लगा दी गर्इ।

हिंसा का एक वीडियो भी सामने आया है और इसमें साफ तौर पर देखा जा रहा है कि उपद्रवियों ने जुलूस निकाल रहे लोगों पर पथराव, आगजनी की साथ ही कई वाहनों में आग भी लगाई और पुलिस ने उपद्रवियों पर काबू पाने के लिए आंसू गैस के गोले भी दागे।

आपको बता दे, मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी जुलूस भड़की हिंसा के दौरान चार घरों में आग लगा दी गर्इ साथ ही एक मंदिर में जमकर तोड़फोड़ की गर्इ। वहीं दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के हावड़ा में शिबपुर इलाके में रामनवमी के जुलूस के दौरान हुई हिंसा को लेकर विपक्षी भाजपा ने आरोप लगाया है कि रामनवमी के जुलूस पर कोई और नहीं बल्कि पुलिस ने हमला किया था।

इमरान खान आउट, पाकिस्तान में सत्ता का बल्ला शहबाज के हाथ

राकेश रॉकी
दिन भर के राजनीतिक ड्रामे के बाद आखिर शनिवार-रविवार की आधी रात 1.25 बजे सत्ता पक्ष (पीटीआई के सदस्यों) की अनुपस्थिति में संसद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में पीएमएलएन के नेतृत्व वाले विपक्षी   गठबंधन ने कुल 342 सदस्यों में से 174 वोट हासिक कर इमरान खान को सत्ता से बाहर कर दिया। गठबंधन को जीतने के लिए 172 वोटों की जरूरत थी, लिहाजा अब उनका अगली सरकार बनाने का रास्ता साफ़ हो गया है। इस बीच रविवार को दिन में विपक्षी गठबंधन ने शहबाज़ शरीफ को अपना नेता चुन लिया है। उधर इमरान खान की तरफ से नैशनल असेंबली के स्पीकर को दिया अमेरिकी साजिश के आरोप वाला पत्र सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है, जहाँ इस मामले की सुनवाई आने वाले समय में हो सकती है।

तत्कालीन पीएम इमरान खान, जो कल एक बार भी संसद नहीं गए थे, ने रात को ही पीएम हाउस छोड़ दिया और निजी निवास बनिगाला चले गए। नेता चुने जाने के बाद अब शहबाज़ राष्ट्रपति से मिलकर सरकार बनाने के दावा पेश करेंगे। इमरान सरकार की हार के बाद पीटीआई नेता फवाद चौधरी ने कहा कि ‘लुटेरे सत्ता में लौट आये हैं’। पीटीआई के सदस्यों ने आधी रात तक नैशनल असेंबली के बाहर प्रदर्शन किया। हारने के बाद िमरांब खान ने अपनी पार्टी के सभी नेताओं को जनता के बीच जाने का निर्देश दिया है और कहा है कि अगले चुनाव में वे फिर सत्ता में लौटेंगे।

इससे पहले रात करीब 12.05 बजे सदन की कार्यवाही शुरू होते ही स्पीकर असर कैसद ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के वक्त उन्होंने कहा कि वे छात्र जीवन से इमरान के साथ रहे हैं। हमारे लिए सबसे पहले मुल्क है और इमरान के साथ रहेंगे। उन्होंने वो चिट्ठी भी दिखाई जिसे इमरान खान ने अपनी सरकार के खिलाफ अमेरिका की ‘साज़िश का प्रमाण बताया है।

आखिरी समय में भारत की तारीफ़ और दोस्ताना व्यवहार और अमेरिका पर अपनी सरकार गिराने की साज़िश का दम भरने वाले इमरान खान उसी ‘मास्टर स्ट्रोक’ का शिकार हो गए, जिसे उन्होंने अपने रक्षा कवच के रूप में इस्तेमाल किया था। हालांकि, सत्ता से जाते-जाते भी उन्होंने अमेरिका को खरी खोटी सुनाई।

देश के सभी एयरपोर्ट पर आधी रात को ही हाई अलर्ट जारी कर दिया गया ताकि कोई राजनीतिक (पीटीआई नेता) देश से बाहर न जा सके। रात 12.05 बजे पाक संसद की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई, उस समय लाहौर की सड़कों पर इमरान खान के समर्थन में जनता का हुजूम जमा था। इससे कुछ घंटे पहले इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने सुप्रीम कोर्ट में उसके परसों के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दायर कर दी।

अब नेता चुने के बाद साझे विपक्ष के नेता और पीएमएल (एन) नेता शहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री होंगे। शहबाज तीन बार पंजाब के गवर्नर रहे हैं। उनके  पीएम बनने के बाद लन्दन में रह रहे उनके भाई और पूर्व पीएम नवाज़ शरीफ पाकिस्तान लौट सकते हैं, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालत में मामला चल रहा है।

पाकिस्तान में जल्दी बनने वाली शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली नई सरकार कितने समय तक चलेगी, अभी कहना मुश्किल है क्योंकि विपक्ष के सभी दल फिलहाल सिर्फ इमरान खान को सत्ता से बाहर करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। उनमें भी नीतिगत मसलों पर गंभीर मतभेद हैं। विपक्ष के पास पीएमएल (एन) 84 और भुट्टो की पीपीपी के 56 सदस्य हैं।

अविश्वास मत हारने के बावजूद इमरान खान ने जिस तरह अमेरिका को आड़े हाथ लेते हुए उसकी निंदा की थी, उसे पाकिस्तान में समर्थन मिलता दिखा है। ऐसे में इमरान खान संसद के वोट में हार गए हों, भविष्य में होने वाले चुनाव में वे पूरी ताकत झोंकेंगे। जानकारों के मुताबिक जनता में इमरान खान के प्रति मोहभंग नहीं हुआ है, भले उनके नेतृत्व में सरकार का कामकाज संतोषजनक न रहा हो। वहां आर्थिक हालात काफी खराब हैं और महंगाई के चलते जनता बेहाल है।

अब नई सरकार के पास डेढ़ साल का वक्त है। लिहाजा यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शहबाज पूरे समय तक सरकार चलाते हैं या बीच में ही हालात देखकर चुनाव की घोषणा करेंगे। दोनों बड़ी पार्टियों पीएमएलएन और पीपीपी में वैचारिक मतभेद हैं, जो किसी से छिपे नहीं हैं।

चुनाव में मायावती को गठबंधन के लिए कहा था, उन्होंने जवाब ही नहीं दिया : राहुल गांधी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया कि सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और पेगासस के जरिये बनाये जा रहे दबाव के कारण बसपा प्रमुख मायावती दलितों की आवाज उठाने की जगह चुप होकर बैठ गयी हैं। उन्होंने कहा कि मायावती ने हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा को खुला रास्ता दे दिया जबकि कांग्रेस ने उन्हें साथ मिलकर (गठबंधन) चुनाव लड़ने और मुख्यमंत्री पद देने की बात कही थी लेकिन उन्होंने (मायावती ) ने इसका जवाब ही नहीं दिया।

गांधी ने यह बात भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और कांग्रेस नेता के राजू की पुस्तक ‘द दलित ट्रूथ: द बैटल्स फॉर रीयलाईजिंग आंबेडकर्स विजन’ के विमोचन के अवसर पर कही। इस मौके पर कांग्रेस नेता ने कहा कि वे सत्ता के बीच पैदा हुए, लेकिन अजीब बीमारी है कि उनकी उसमें दिलचस्पी ही नहीं जबकि वो (भाजपा) हमेशा यह सोचते हैं की सत्ता कैसे मिले।

कांग्रेस नेता ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा – ‘मैं सत्ता के बीच पैदा हुआ, लेकिन अजीब बीमारी है कि मेरी उसमें दिलचस्पी ही नहीं। बहुत नेता हैं जो सुबह उठते ही कहते हैं सत्ता कैसे मिलेगी, रात तक वे यही कहते सो जाते हैं फिर सुबह उठ के कहते हैं कि सत्ता कैसे मिलेगी।

राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आज सीबीआई, ईडी, और पेगासस के जरिये राजनीतिक व्यवस्था को नियंत्रित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘हमने (यूपी चुनाव के वक्त) मायावती जी को संदेश दिया कि गठबंधन करिये, मुख्यमंत्री बनिए, लेकिन उन्होंने बात तक नहीं की।’

उन्होंने मायावती पर भी निशाना साधा और कहा – ‘कांशीराम जी ने खून-पसीना देकर दलितों की आवाज को जगाया। हमें उससे नुकसान हुआ, वह अलग बात है। आज मायावती जी कहती हैं उस आवाज के लिए नहीं लड़ूंगी। खुला रास्ता दे दिया। इसकी वजह सीबीआई, ईडी और पेगासस है। अगर मैंने एक रुपये भी लिया होता तो यहां भाषण नहीं दे पाता।’

कांग्रेस नेता ने कहा कि ‘संविधान पर आक्रमण का सबसे बड़ा नुकसान जिन्हें हुआ है वो कौन हैं – वो दलित हैं, अल्पसंख्यक हैं, आदिवासी हैं, बेरोजगार लोग हैं, छोटे किसान हैं। ये लोग आज इकॉनमी की हालत देख लीजिए, बेरोजगारी देख लीजिए।   तो लड़ने का समय है और जो अंबेडकर जी ने कहा, जो गांधी जी ने कहा, रास्ता दिखाया उन्होंने, उस पर बस चलने की जरुरत है। मुश्किल काम है, आसान काम नहीं है, रास्ता है, उस पर चलने की जरूरत है।’

गांधी ने इस मौके पर आरएसएस और भाजपा पर देश की संस्थाओं को नियंत्रित करने का आरोप लगाया। कांग्रेस  नेता ने कहा – ‘संविधान हिंदुस्तान का हथियार है। लेकिन संस्थाओं के बिना संविधान का कोई मतलब नहीं। हम यहां संविधान लिए घूम रहे हैं। आप और हम कह रहे हैं कि संविधान की रक्षा करनी है। लेकिन संविधान की रक्षा संस्थाओं के जरिये की जाती है। आज सभी संस्थाएं आरएसएस के हाथ में हैं।’

हिमाचल आप अध्यक्ष भाजपा में शामिल, सिसोदिया बोले उसे पार्टी से निकाला जा रहा था

हिमाचल प्रदेश में  बाद अपनी सरकार बनाने का सपना देख रही आम आदमी पार्टी (आप) को शनिवार तब झटका लगा जब उसके प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी सहित तीन बड़े पदाधिकारी भाजपा में शामिल हो गए। इन नेताओं को भाजपा में शामिल करने के समय केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, जिन्हें भाजपा में हिमाचल के भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है, के अलावा पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी उपस्थित थे। उधर आप ने दवा किया है कि वह अनूप केसरी सहित भाजपा में जाने वाले अन्य नेताओं को उनकी गतिविधियों के चलते पार्टी से बाहर करने की पहले से ही तैयारी कर रही थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक आम आदमी पार्टी के हिमाचल के अध्यक्ष अनूप केसरी और संगठन महामंत्री सतीश ठाकुर के अलावा ऊना जिले के अध्यक्ष इक़बाल सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं। केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर इन तीनों नेताओं को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर पहुंचे और पार्टी में शामिल कराया।

अनुराग ठाकुर को लेकर चर्चा है कि पार्टी उन्हें अगले विधानसभा चुनाव से पहले हिमाचल में मुख्यमंत्री पद का जिम्मा दे सकती है, क्योंकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पार्टी को चुनाव जीता सकने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।

याद रहे इसी हफ्ते आप संयोजक अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान ने हिमाचल के मंडी में रोड शो कर ताकत दिखाने की कोशिश की थी। उप मुख्यमंत्री आप नेता मनीष सिसोदिया ने दावा किया था कि जनता आप से जुड़ रही है।

उधर आप नेतृत्व ने कहा है कि पार्टी पहले ही अनूप केसरी को पार्टी से निकालने की तैयारी कर रही थी। पार्टी नेता मनीष सिसोदिया ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली पार्टी की डर का हालत यह है कि रात को 12 बजे उनके प्रेसिडेंट और केंद्रीय मंत्री आप के एक ऐसे व्यक्ति को भाजपा में शामिल कराते हैं, जिसके खिलाफ शिकायत है कि वो महिलाओं के खिलाफ गन्दी बातें करता है। आज हम उसे पार्टी से निकालने वाले थे और हमने उसे बुलाकर बता दिया था कि उन्हें निकाले रहे हैं।’

विल स्मिथ पर ऑस्कर ने लगाया 10 साल का प्रतिबंध, क्रिस रॉक को स्टेज पर मारा था थप्पड़

एक्टर विल स्मिथ पर ऑस्कर ने अगले 10 साल के लिए ऑस्कर में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है। स्मिथ ने हाल में ऑस्कर समारोह के दौरान कॉमेडियन क्रिस रॉक को स्टेज पर तब थप्पड़ मार दिया था जब उन्होंने उनकी अभिनेत्री पत्नी जैडा पिंकेट स्मिथ को लेकर जोक बनाया था। ऑस्कर के इस फैसले के बाद स्मिथ अब अगले दस साल तक एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज के किसी भी कार्यक्रम/समारोह में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।

याद रहे ऑस्कर समारोह के दौरान स्मिथ अचानक मंच पर चढ़ गए थे और अपनी पत्नी को लेकर किये मजाक (जोक) को लेकर रॉक को थप्पड़ जड़ दिया था। उनकी पत्नी अभिनेत्री जैडा पिंकेट स्मिथ को एलोपेसिया है, जिसमें बाल बुरी तरह झड़ते हैं और मरीज गंजा भी हो जाता है। स्मिथ को इस घटना के तुरंत बाद ऑस्कर बॉलरूम छोड़ने को कहा गया था।

रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले महीने अकादमी प्रमुखों के एक पत्र में निर्धारित बोर्ड के फैसले ने किंग रिचर्ड के लिए स्मिथ के जीते सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार को रद्द नहीं किया और न ही भविष्य के ऑस्कर नामांकन पर किसी प्रतिबंध का उल्लेख किया था।

स्टेज पर थप्पड़ मारने की घटना के बाद ऑस्कर अकादमी ने यह बड़ा एक्शन लिया है। स्मिथ को अकादमी के किसी भी कार्यक्रम, अकादमी पुरस्कारों आदि में व्यक्तिगत रूप से या वर्चुअल भाग लेने की अनुमति 8 अप्रैल, 2022 से 10 साल की अवधि के लिए नहीं होगी। अकादमी गवर्नरों ने स्मिथ के खिलाफ कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए शुक्रवार को बैठक बुलाई थी, जिसमें बोर्ड के सदस्य स्टीवन स्पीलबर्ग और व्हूपी गोल्डबर्ग शामिल रहे।

महंगाई के नाम पर नींबू के रस की तरह जनता को निचोड़ा जा रहा है

महंगाई की मार को लेकर कोई कितनी भी सियासत क्यों न कर लें लेकिन जमा खोरो के खिलाफ कोई बोलने वाला नहीं है। जिसके कारण आज महंगाई चरम पर है। नींबू के रस की तरह जो महंगाई के नाम पर जो जनता को निचोड़ा जा रहा है।

शासन-प्रशासन को भली-भाँति मालूम है कि तमाम सब्जियों की जमा खोरी हो रही है।नीबू को लेकर एक सप्ताह पहले ही नवरात्रि शुरू होने के पहले कुछ व्यापारियों ने फलों के साथ नींबू की जमाखोरी शुरू कर दी थी। क्योंकि व्यापारियों को ये अनुमान हो गया था। कि मार्च के महीने में  गर्मी के बढ़ने के साथ तापमान बढ़ने लगा था। तभी नींबू की मांग बढ़ने लगी थी।

इस बार नींबू की पैदावार कम होने की वजह से नींबू की मांग तो बढ़ेगी सो उन्होंने कोल्ड स्टोरेज में जमाखोरी शुरू कर दी थी। लेकिन किसी को ये अंदाज नहीं था कि नींबू का रेट 400 रुपये तक जायेगा। बताते चलें नींबू के साथ-साथ हरी मिर्च के दाम भी 200 रुपये तक पहुच गये है। गाजीपुर सब्जी मंडी के व्यापारी रतन लाल का कहना है कि जब नवरात्रि के दिनो में नीबू के दाम बढ़ रहे है।

तो आने वाले दिनों में और भी महंगाई बढेगी। क्योंकि नींबू का प्रयोग नवरात्रि में  व्रत रखने वाले नहीं करते है। ऐसे में नीबू की दाम नहीं बढ़ने चाहिये थे। अगर आने वाले दिनों में गर्मी और बढ़ेगी तो निश्चित तौर पर नीबूं के दाम जरूर बढ़ेगे। बताते चलें नीबू दिल्ली -एनसीआर में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड  मेरठ और सहारनपुर से आता है। इन दिनों यहां से नीबू की सप्लाई काफी कम हो रही है

अब कोरोना के नाम पर ओपीडी बंद न हो और आरटीपीसीआर की जांच निशुल्क हो

कोरोना से भले ही मानव जीवन को तमाम तरह की परेशानियों का सामना  करना पड़ा हो, लेकिन देश की उन स्वास्थ्य संस्थाओं ने मरीजों से जमकर पैसा लूटा है। जो कोरोना काल में अन्य बीमारियों से पीड़ित रहे है।
तहलका संवाददाता को दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों व स्वास्थ्य जागरूकता से जुड़े समाजसेवी राकेश कुमार ने बताया कि  सरकारी अस्पतालों में जो कोरोना बार्ड बनाये गये थे। वे हेल्थ सेक्टर से जुड़े बड़े खिलाडियों के इशारे पर बनाये गये थे। ताकि उनके अस्पतालों का कारोबार खूब फल -फूल से सकें।राकेश ने बताया कि गजब की स्थिति-परिस्थिति पैदा कर ऐसा माहौल बनाया गया था। कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना के अलावा अन्य मरीजों को नहीं देखा जा सकता है। न ही ओपीडी शुरू की गई।
जबकि निजी अस्पतालों में कोरोना के साथ अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों का बड़े ही आराम से इलाज हो रहा था। यानी कि पैसा वालो का इलाज होता रहा है। जबकि गरीब व लाचार मरीजों का इलाज पैसा के अभाव में नहीं हो सका और सरकारी अस्पताल में कोरोना के अलावा दूसरे रोग का इलाज नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का दावा है कि कोरोना एक संक्रमित बीमारी है। कोरोना अभी गया नही है और न ही आसानी से जाना वाला है।
ऐसे में सरकार को अब चाहिये कि कोरोना के नाम पर अलग से वार्ड तो बनाये न कि ओपीडी सहित अन्य बीमारियों का इलाज रोके और न ही ओपीडी सेवा बंद करें। उन्होंने सरकार से अपील की है कि मौजूदा समय में आरटीपीआर की जांच के नाम पर  गरीबों तक से 300 रूपये वसूले जा रहे है। जबकि ये जांच निशुल्क होनी चाहिये। क्योंकि जब कोरोना का वैक्सीनेशन निशुल्क हो सकता है। तो आरटीपीसीआर जांच क्यों निशुल्क नहीं हो सकती है। 

18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोग 10 अप्रैल से लगा सकेंगे कोरोना की बूस्टर डोज

कोविड-19 की दूसरी डोज ले चुके सभी 18 साल से अधिक आयु के लोगों को 10 अप्रैल 2022 से निजी टीकाकरण केंद्रों पर कोरोना महामारी की तीसरी डोज दी जाएगी। तीसरी डोज लेने के लिए दूसरी डोज में 9 महीने का अंतर अनिवार्य है।

केंद्र सरकार का कहना है कि, सरकारी टीकाकरण केंद्रों पर चल रहे मुफ्त टीकाकरण अभियान के साथ-साथ 60 साल से अधिक आयु के व्यक्ति, हेल्थकेयर वर्कर्स, और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए एहतियाती खुराक का कार्यक्रम जारी रहेगा साथ ही तेजी भी लाई जाएगी।

सोशल मीडिया की कू पर मनसुख मांडविया ने लिखा की, “सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत जोड़ना। निजी टीकाकरण केंद्रों पर 10 अप्रैल, 2022 से 18 से अधिक आयु वर्ग के लिए एहतियाती खुराक उपलब्ध होगी। सभी 18 से अधिक उन्होंने पहली व दूसरी खुराक लेने के 9 महीने पूरे कर लिए हैं, वे एहतियाती खुराक के लिए पात्र होंगे।“

आपको बता दे, भारत में अभी करीब 96 प्रतिशत लोग ऐसे है जिन्हें कोविड-19 की एक खुराक मिल चुकी है, जबकि 83 प्रतिशत ऐसे है जिन्हें दोनों खुराक मिल चुकी है। साथ ही सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2.4 करोड़ लोग जिनमें 60 साल से अधिक आयु वर्ग के व्यक्ति, फ्रंटलाइन वर्कर्स, हेल्थकेयर वर्कर्स को एहतियाती खुराक दी जा चुकी है।