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क्या जेवर एयरपोर्ट के पास खुल रहे मेगा लैदर शूज पार्क से आगरा के लाखों जूता कारीगरों का जीवन स्तर बेहतर होगा?

बृज खंडेलवाल द्वारा

ऐतिहासिक इमारतों के अलावा, आगरा क्षेत्र अपने कुशल कारीगरों के हुनर के लिए मशहूर है। आयरन फाउंड्री उद्योग, ग्लास वेयर, लैदर शूज, पेठा दालमोट, मार्बल इनले वर्क, हैंडीक्राफ्ट्स, से आगरा की पहचान पूरे विश्व में है।

आगरा ने  चमड़ा जूता उद्योग की वजह से मुग़ल काल से ही बेहतरीन क्वालिटी के जूते और चमड़े का सामान बनाने में नाम कमाया। लेकिन आज यही उद्योग, जो कभी शहर की शान और आर्थिक रीढ़ था,  संकट से गुज़र रहा है। छोटी-छोटी दुकानों और कारखानों में चल रहा यह कारोबार अब बदहाली, सुरक्षा के अभाव और पर्यावरणीय चुनौतियों से जूझ रहा है। 

आगरा का चमड़ा उद्योग सदियों पुराना है। मुग़ल बादशाहों के ज़माने में यहाँ बने जूते और चमड़े के सामान की देश-विदेश में डिमांड थी। हींग की मंडी से शुरू हुआ ये कारोबार, आज शहर भर में फैला है और आगरा की इकॉनमी का आधार है। अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने भी ‘आइन-ए-अकबरी’ में आगरा के मोचियों और चर्मकारों का ज़िक्र किया है। ब्रिटिश काल में भी यह उद्योग फलता-फूलता रहा और आगरा के जूते यूरोप तक निर्यात किए जाते थे। आज़ादी के बाद, छोटे कारीगरों और कुटीर उद्योगों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया, लेकिन बदलते वक्त और सरकारी उपेक्षा ने इस उद्योग को पीछे धकेल दिया।   

आज आगरा के जूता उद्योग की हालत बेहद दयनीय है। जीवनी मंडी, मंटोला, बिजलीघर, चक्की पाट, जगदीश पूरा,  लोहा मंडी, नई मंडी जैसे इलाकों में सैकड़ों छोटी-छोटी फैक्ट्रियाँ और वर्कशॉप्स चल रही हैं, जहाँ मजदूरों को अंधेरी, तंग और गंदी गलियों में काम करना पड़ता है। इन जगहों पर न तो हवा का ठीक से बंदोबस्त है, न ही सुरक्षा के कोई इंतज़ामात। नतीजा यह कि आए दिन आग लगने और केमिकल विस्फोट की घटनाएं होती रहती हैं। 

जीवनी मंडी एरिया की श्रीजी इंडस्ट्रीज में लगी भीषण आग ने कई मजदूरों की जान ले ली थी और अनेकों परिवारों को तबाह कर दिया था। इस तरह की घटनाएं इस उद्योग की लापरवाही और सरकारी निगरानी के अभाव की ओर इशारा करती हैं।  

एक रिपोर्ट के मुताबिक, आगरा के जूता उद्योग में काम करने वाले 60% से ज़्यादा मजदूर टीबी, सांस की बीमारियों और त्वचा रोगों से पीड़ित हैं। चमड़े को प्रोसेस करने में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स, जैसे क्रोमियम और गोंद (एडहेसिव), मजदूरों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। महिलाएं, जो घरों में जूते सिलने का काम करती हैं, उन्हें भी कम मज़दूरी और अस्वस्थ हालात का सामना करना पड़ता है। 

इसके अलावा, नशे की लत, मजदूरों की सेहत को और बर्बाद कर रही है। मजबूरी में काम करने वाले ये लोग अक्सर थकान और तनाव से बचने के लिए नशे का सहारा लेते हैं, जो उनकी मुसीबतों को और बढ़ा देता है। 

आगरा की टैनरियों से निकलने वाला कचरा और ज़हरीले पदार्थ नालियों और यमुना नदी को प्रदूषित करते हैं। चमड़ा प्रोसेसिंग में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स पानी में मिलकर लोगों की सेहत के लिए खतरा बन रहे हैं। सरकारी नियमों की अनदेखी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लापरवाही ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है।  

हालांकि, अब इस उद्योग को बचाने के लिए कुछ पहल हो रही हैं। जेवर हवाई अड्डे के पास 100 एकड़ में बनने वाला मेगा फुटवियर पार्क एक बड़ा कदम है। यह प्रोजेक्ट 3000 करोड़ रुपये के निवेश से बनाया जा रहा है और इसमें मॉडर्न फैक्ट्रियाँ, वर्कशॉप्स और सुरक्षित वातावरण होगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या छोटे कारीगरों और मजदूरों तक इसका फायदा पहुँच पाएगा? 

इसके अलावा, अछनेरा में प्रस्तावित लेदर पार्क भी एक बड़ी उम्मीद थी, हालांकि यह प्रोजेक्ट सालों से अटका हुआ है। अगर इसे जल्दी पूरा किया जाए, तो आगरा के जूता उद्योग को नया जीवन मिल सकता है। 

औद्योगिक क्षेत्रों का विकास: छोटी वर्कशॉप्स को संगठित औद्योगिक क्षेत्रों में शिफ्ट किया जाए।  सुरक्षा मानकों का पालन हो: फैक्ट्रियों में आग सुरक्षा और वेंटिलेशन का ठीक बंदोबस्त हो।  मजदूरों के स्वास्थ्य की देखभाल की जाए: नियमित मेडिकल कैंप और बीमा योजनाएं लागू की जाएँ।  प्रदूषण नियंत्रण: टैनरियों के कचरे का सही तरीके से निपटान किया जाए।  सरकारी और प्राइवेट सहयोग से इस उद्योग को मॉडर्नाइज किया जाए। साथ ही आगरा विश्व विद्यालय इस इंडस्ट्री पर रिसर्च कराकर नवाचार प्रोत्साहित करे।

आगरा का जूता उद्योग सिर्फ एक कारोबार नहीं, बल्कि शहर की पहचान और हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी है। अगर समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह उद्योग खत्म हो जाएगा। सरकार, उद्योगपतियों और समाज को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा, ताकि आगरा के जूते फिर से दुनिया भर में अपनी धाक जमा सकें।

राजमार्गों पर उन्नत प्रबंधन प्रणाली से यातायात नियमों का पालन सख्त, दुर्घटनाओं में आएगी कमी

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली- सड़क सुरक्षा को सुदृढ़ करने और वाहन चालकों पर जुर्मानों का बोझ कम करने के उद्देश्य से केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राजमार्गों पर उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणाली (Advanced Traffic Management System – ATMS) लागू करने का निर्णय लिया है। यह प्रणाली अत्याधुनिक डिजिटल तकनीकों से लैस है और यातायात नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन में मददगार साबित हो रही है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी 2014 से ही सड़क दुर्घटनाओं और मौतों को कम करने की दिशा में प्रयासरत हैं। इसी कड़ी में अब देश के प्रमुख राजमार्गों पर इस नई तकनीक से निगरानी और चालान प्रणाली को सुदृढ़ किया जा रहा है।
भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड (IHMCL) के मुख्य उत्पाद अधिकारी अमृत सिन्हा ने बताया कि फिलहाल यह प्रणाली 5,000 किलोमीटर राजमार्गों पर लागू की जा चुकी है। इसमें द्वारका एक्सप्रेसवे और दिल्ली-गुरुग्राम एक्सप्रेसवे जैसे महत्वपूर्ण मार्ग शामिल हैं।
अमृत सिन्हा ने बातया की उदाहरण के तौर पर द्वारका एक्सप्रेसवे के 56 किलोमीटर के क्षेत्र में 110 एआई-सक्षम कैमरे लगाए गए हैं, जो घटना पहचान एवं प्रवर्तन प्रणाली (VIDES) से जुड़े हैं। ये कैमरे ट्रिपल राइडिंग, बिना हेलमेट या सीटबेल्ट के वाहन चलाना, उल्टी दिशा में गाड़ी चलाना, तेज रफ्तार, ओवरटेकिंग, पैदल यात्री की आवाजाही और राजमार्ग पर पशुओं की मौजूदगी जैसे कुल 14 प्रकार के उल्लंघनों की स्वतः पहचान कर चालान जारी करते हैं।
प्रणाली के अंतर्गत चालान स्वचालित रूप से संबंधित व्यक्ति को डिजिटल माध्यम से भेजा जाता है। अधिकारियों का मानना है कि इस तकनीक से न केवल नियमों के उल्लंघन में कमी आएगी, बल्कि सड़क सुरक्षा को भी बल मिलेगा।
यह प्रणाली अगले दो से तीन वर्षों में महाराष्ट्र सहित देश भर के 50,000 किलोमीटर चार-लेन और उससे अधिक चौड़ाई वाले राजमार्गों पर लागू की जाएगी। फिलहाल यह दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के कोटा खंड में भी प्रभावी रूप से कार्य कर रही है।
सरकार का उद्देश्य है कि तकनीक के माध्यम से यातायात नियमों का पालन सुनिश्चित हो और दुर्घटनाओं की दर में ठोस गिरावट आए।

शहरों में घर खरीदना अब गरीबों के बस की बात नहीं: राहुल गांधी

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली- कांग्रेस के नेता और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने शहरी भारत में बढ़ती महंगाई और आम आदमी की कठिनाइयों को लेकर केंद्र सरकार पर सीधा हमला बोला। उन्होंने कहा कि आज शहरों में घर खरीदना गरीबों और मध्यवर्गीय परिवारों के लिए सिर्फ एक सपना बनकर रह गया है।राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा,
हां, आपने सही पढ़ा — घर खरीदना अब गरीबों के बजट से कोसों दूर है। भारत के सबसे अमीर 1% लोगों के पास देश की 40% संपत्ति है, जबकि 50% गरीबों के हिस्से में सिर्फ 3% संपत्ति आती है।
उन्होंने आगे लिखा कि ये वही चमकते हुए बड़े शहर हैं, जिन्हें अवसरों और तरक्की का केंद्र बताया जाता है। लेकिन सच्चाई ये है कि यहां आम आदमी सिर्फ संघर्ष करता है — महंगी शिक्षा, इलाज, पेट्रोल-डीजल और अब घर खरीदने का सपना भी उसकी पहुंच से बाहर हो गया है।
राहुल ने कहा कि बीते 10 वर्षों में गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के सपनों को कुचला गया है। जहां एक तरफ अरबपति पूंजीपति और रियल एस्टेट लॉबी मुनाफा कमा रही है, वहीं दूसरी तरफ एक आम भारतीय सिर छुपाने की छत के लिए भी जूझ रहा है।
कांग्रेस नेता ने सरकार पर आर्थिक नीतियों को केवल अमीरों के हित में बनाने का आरोप लगाया और कहा कि यदि बदलाव नहीं हुआ तो आने वाला समय और भी मुश्किल भरा हो सकता है।
राहुल ने कहा कि कांग्रेस का विज़न एक ऐसा भारत है, जहां हर वर्ग के लोगों को बराबरी का मौका और गरिमापूर्ण जीवन जीने का हक मिले।

पश्चिमोत्तर राज्यों में डायरेक्ट सैलिंग कारोबार 2172 करोड़ रुपये के पार, डायरेक्ट सैलर पांच लाख हुये

चंडीगढ़: देश के पश्चिमोत्तर क्षेत्र के राज्यों जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ ने प्रत्यक्ष बिक्री में 15.71 प्रतिशत से अधिक की शानदार विकास दर दर्ज कर वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 2172 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया है।देश में डायरेक्ट सैलिंग उद्योग की शीर्ष संस्था इंडियन डायरेक्ट सैलिंग एसोसिएशन (आईडीएसए) ने शुक्रवार को यहां आयोजित ‘नॉर्दर्न डायरेक्ट सेलिंग समिट’ में पेश किये  गए एक सर्वेक्षण के माध्यम से यह जानकारी दी। आईडीएसए की नॉलेज पार्टनर इपसोस  द्वारा संकलित इस सर्वेक्षण में देश में डायरेक्ट सैलिंग क्षेत्र के विकास और इसके निरंतर हो रहे विस्तार पर भी प्रकाश डाला गया है। इस अवसर पर हरियाणा के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले के मंत्री राजेश नागर और राज्य के इसी विभाग के प्रधान सचिव डी. सुरेश  उपस्थित थे।आईडीएसए के अनुसार, इन राज्यों का इस अवधि में वर्ष दर वर्ष आधार पर 15.71 प्रतिशत की विकास दर के साथ कुल डायरेक्ट सैलिंग कारोबार 2172 करोड़ रुपये रहा जो उत्तरी क्षेत्र के कुल 6,600 करोड़ रुपये के कारोबार का 33 प्रतिशत तथा 22,142 करोड़ रुपये के कुल राष्ट्रीय कारोबार का 9.8 प्रतिशत है।साथ ही डायरेक्ट सैलिंग क्षेत्र ने इन राज्यों के पांच लाख से ज्यादा लोगों को स्वरोजगार और वैकल्पिक आय के अवसर भी प्रदान किये हैं और इस संख्या में वर्ष दर वर्ष आधार पर 31.23 प्रतिशत की शानदार वृद्धि दर्ज की गई है।   सर्वेक्षण में यह बात भी सामने आई है कि हरियाणा 1041 करोड़ रुपये के कारोबार के साथ पश्चिमोत्तर में लगातार प्रथम, उत्तरी क्षेत्र में  दूसरा तथा राष्ट्रीय स्तर पर सातवां सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है। राज्य की 1.6 लाख से अधिक डायरेक्ट सैलर की कड़ी मेहनत की बदौलत उत्तर क्षेत्र में इसकी 15.7% और राष्ट्रीय स्तर पर 4.7 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी है। अन्य चार राज्यों ने इस अवधि में 1,131 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार किया जिसमें पंजाब का 686 करोड़ रुपये, जम्मू-कश्मीर 244 करोड़ रुपये, चंडीगढ़ 112 करोड़ रुपये और हिमाचल प्रदेश का 89 करोड़ रुपये का योगदान है।इस कड़ी मे जम्मू-कश्मीर में बिक्री में 234 प्रतिशत तथा विक्रेताओं की संख्या में 173 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में बिक्री और प्रत्यक्ष विक्रेताओं में वृद्धि क्रमश: 117 प्रतिशत और 150 प्रतिशत तथा चंडीगढ़ में 111 प्रतिशत और 25 प्रतिशत तथा पंजाब आठ प्रतिशत और 14 प्रतिशत रही। डायरेक्ट सैलिंग उद्योग ने इन राज्यों के खजाने में सालाना 350 करोड़ रुपये से अधिक का भी योगदान रहा जो सामाजिक-आर्थिक विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होने की पुष्टि करता है।इस अवसर पर सम्बोधन में श्री नागर ने स्वरोजगार सृजन, उद्यमिता और कौशल विकास, आर्थिक समावेश, महिला एवं युवा सशक्तिकरण और उपभोक्ता संरक्षण को लेकर राज्य सरकार के प्रयासों में डायरेक्ट सैलिंग उद्योग के योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण (डायरेक्ट सैलिंग) नियम-2021 के तहत राज्य सरकार ने राज्य में डायरेक्ट सैलिंग कंपनियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने तथा उपभोक्ताओं की शिकायतों की सुनवाई हेतु ‘हरियाणा डायरेक्ट सैलिंग मॉनिटरिंग अथॉरिटी‘ का गठन कर दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस उद्योग को विधि सम्मत कारोबार करने का माहौल प्रदान करने के साथ उपभोक्ताओं के हितों एवं अधिकारों का संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है।आईडीएसए के अध्यक्ष विवेक कटोच ने देश में डायरेक्ट सैलिंग के परिदृश्य और इसके सतत विकास एवं विस्तार पर प्रकाश डाला और कहा कि आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं के पश्चिमोत्तर क्षेत्र डायरेक्ट सैलिंग उद्योग के लिये एक महत्वपूर्ण बाजार है। उन्होंने पंजाब सरकार से भी उपभोक्ता संरक्षण (डायरेक्ट सैलिंग) नियम-2021 के तहत राज्य में ‘निगरानी समिति‘ अविलम्ब गठित करने का अनुरोध किया। उन्होंने विश्वास दिलाया कि आईडीएसए की सदस्य कंपनियां उपभोक्ताओं के साथ प्रत्यक्ष विक्रेताओं के हितों के संरक्षण हेतु भी प्रतिबद्ध हैं।श्री नागर सहित अन्य गणमान्यों  ने इस अवसर पर इन राज्यों की 50 से अधिक महिला उद्यमियों को डायरेक्ट सैलिंग क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिये सम्मानित भी किया तथा उन्हें बधाई दी। उन्होंने डायरेक्ट सैलिंग कंपनियों की प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया जिसमें उत्पादों में नवाचारों और इस उद्योग की विविधताओं को प्रदर्शित किया गया।   इस अवसर पर आईडीएसए की कोषाध्यक्ष अप्राजिता सरकार, सदस्य कंपनियों के शीर्ष अधिकारी और प्रतिनिधि तथा बड़ी संख्या में उक्त राज्यों के डायरेक्टर सैलर भी उपस्थित थे। 

एससीओ बैठक में भारत का आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली- भारत ने आज शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर अपने सख्त और स्पष्ट रुख का प्रदर्शन किया। भारत ने पाकिस्तान और चीन की ओर से की जा रही दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों की ओर संकेत करते हुए आतंकवाद पर संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
दस्तावेज में पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं किया गया जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई .
दस्तावेज में बलूचिस्तान का जिक्र किया गया और भारत पर वहां अशांति फैलाने का मौन आरोप लगाया गया।
एससीओ घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से भारत का इनकार चीन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान और पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को लगातार बचाने के कारण हुआ है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बैठक में कहा कि भारत ऐसे किसी बयान का हिस्सा नहीं बन सकता जिसमें उन देशों के साथ समझौता किया जाए जो जम्मू-कश्मीर पर झूठे दावे करते हैं और वहां आतंकवादी हमलों को प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने कहा कि जब तक सभी सदस्य देश आतंकवाद के खिलाफ एक स्पष्ट और सामूहिक दृष्टिकोण नहीं अपनाते, तब तक इस तरह का संयुक्त वक्तव्य सार्थक नहीं होगा।
राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि आतंकवाद और उससे जुड़े नेटवर्क, विचारधारा, वित्त पोषण और आपूर्ति शृंखला को जड़ से समाप्त करना समय की मांग है। उन्होंने कहा कि भारत ने “ऑपरेशन सिंधु” जैसे अभियानों के माध्यम से आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की है और अब समय आ गया है कि सभी देश मिलकर सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करें।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद और गैर-सरकारी हिंसक तत्व विकास, शांति और स्थिरता के सबसे बड़े बाधक हैं। सभी देशों को मिलकर न केवल आतंकवाद की निंदा करनी चाहिए, बल्कि उसकी किसी भी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद को भी पूरी तरह समाप्त करना चाहिए।
बैठक में भाग ले रहे सदस्य देशों से उन्होंने अपील की कि वे दहशत फैलाने वाली ताकतों और संगठनों को हर स्तर पर अस्वीकार करें और उनके विरुद्ध एकजुट होकर कार्रवाई करें।
एससीओ की इस बैठक में रक्षा मंत्रियों, वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों और अन्य प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस दौरान क्षेत्रीय सुरक्षा, शांति और विश्वास बहाली जैसे अहम मुद्दों पर भी विचार-विमर्श हुआ।

आगरा में आलू उत्पादन: चुनौतियाँ, संभावनाएँ और एक नई उम्मीद

बृज खंडेलवाल द्वारा

आगरा, जिसे दुनिया ताजमहल के लिए जानती है, वह भारत के आलू उत्पादन में भी एक प्रमुख स्थान रखता है। उत्तर प्रदेश का 27% आलू आगरा मंडल में पैदा होता है, जिससे यह क्षेत्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय में महत्वपूर्ण योगदान देता है । हालाँकि, पारंपरिक खेती, बीज की कमी, और प्रसंस्करण सुविधाओं के अभाव ने इस क्षेत्र की संभावनाओं को पूरी तरह से विकसित होने से रोका है। लेकिन अब, अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (CSARC) की स्थापना से आगरा के आलू किसानों के लिए एक नई उम्मीद जगी है । 

आगरा में आलू उत्पादन की वर्तमान स्थिति 

1. उत्पादन क्षमता और चुनौतियाँ 

– आगरा जिले में 71,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर आलू की खेती होती है, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख मीट्रिक टन उत्पादन होता है । 

बीज की कमी एक बड़ी समस्या है। किसानों को महँगे दामों पर बीज खरीदना पड़ता है, जिससे लागत बढ़ जाती है, लेकिन बाजार में उन्हें 10 रुपये प्रति किलो से भी कम दाम मिलता है । 

भंडारण और प्रसंस्करण की कमी के कारण 15-20% आलू खराब हो जाता है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है । 

2. किसानों की मुश्किलें

लागत बनाम आय का असंतुलन: आलू की खेती में बीज, खाद, सिंचाई और श्रम पर होने वाला खर्च किसानों की आय से अधिक हो जाता है। 

बाजार तक पहुँच का अभाव: अधिकांश आलू दक्षिण भारत और गुजरात भेजा जाता है, जहाँ बिचौलिए किसानों को कम दाम देते हैं । 

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: बढ़ते तापमान और अनियमित वर्षा से आलू की पैदावार प्रभावित हो रही है । 

भविष्य की संभावनाएँ: CSARC एक नई राह

25 जून, 2025 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आगरा के सिंगना गाँव में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (CSARC) की स्थापना को मंजूरी दी है । यह निर्णय आगरा के आलू किसानों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। 

CSARC के लाभ 

1. उन्नत बीजों का विकास:

   – CSARC जलवायु-अनुकूल और रोगरोधी आलू की किस्में विकसित करेगा, जिससे उत्पादकता बढ़ेगी । 

   – वर्तमान में आगरा के किसान कुफरी बहार पर निर्भर हैं, लेकिन नई किस्मों से उन्हें बेहतर बाजार मिलेगा । 

2. कटाई के बाद प्रबंधन:

   – कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देकर, आलू के नुकसान को कम किया जाएगा । 

3. किसानों की आय बढ़ाने के उपाय:

   – मूल्य संवर्धन (जैसे आलू के चिप्स, स्टार्च) से किसानों को अधिक लाभ मिलेगा । 

   – निर्यात को बढ़ावा: भारत वर्तमान में 1 बिलियन डॉलर मूल्य का आलू निर्यात करता है, जिसे CSARC की मदद से बढ़ाया जा सकता है । 

4. दक्षिण एशिया में नेतृत्व:

   – यह केंद्र न केवल भारत बल्कि नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों के लिए भी आलू अनुसंधान का हब बनेगा । 

आगरा के आलू किसानों के लिए CSARC की स्थापना एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है। यदि सरकार और किसान मिलकर इसका लाभ उठाएँ, तो आगरा न केवल भारत का आलू हब बनेगा, बल्कि दक्षिण एशिया में कृषि नवाचार का केंद्र भी बन सकता है। 

“अब समय है जागने का, नई तकनीक अपनाने का और आलू की खेती को एक लाभकारी उद्यम बनाने का।”

शाह-योगी की ‘दोस्ती’ से भाजपा में हलचल

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच लखनऊ में राज्यस्तरीय समारोह में जिस तरह का दुलर्भ सौहार्द नजर आया, उससे राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है। इससे भाजपा के दो दिग्गजों के बीच रणनीतिक पुनर्संरचना की अटकलों को बल मिला है। लखनऊ में एक हाई-प्रोफाइल कार्यक्रम के लिए मुख्य अतिथि के तौर पर शाह को व्यक्तिगत रूप से आमंत्रित करने के लिए 9 जून को योगी खुद दिल्ली गए। ऐसा उनके 8 साल के कार्यकाल में पहली बार हुआ।

शाह ने उनकी बात मान ली और 15 जून को 60244 नए भर्ती हुए यूपी पुलिस कांस्टेबलों को नियुक्ति पत्र सौंपे। यह महज एक औपचारिक उपस्थिति से कहीं बढ़कर था। दोनों नेताओं के बीच तनाव की लंबे समय से चल रही अटकलों की पृष्ठभूमि में अचानक से यह सौहार्दपूर्ण प्रदर्शन हुआ है। वर्षों से भाजपा में शीत युद्ध की चर्चा जोरों पर है। योगी के बढ़ते कद से दिल्ली की असहजता, केंद्र के साथ महत्वपूर्ण नियुक्तियों को मंजूरी देने में उनकी अनिच्छा और पूर्णकालिक डीजीपी की नियुक्ति में उनकी 5 साल की देरी ने इस धारणा को और मजबूत किया है।

आपसी अविश्वास और असहजता की कहानियां अंतहीन हैं। कई लोग इस टकराव का कारण यह मानते हैं कि मोदी के बाद की भाजपा में शाह और योगी दोनों को मजबूत दावेदार के रूप में देखा जा रहा है। वैचारिक मतभेदों और विपरीत राजनीतिक शैलियों से प्रेरित उनकी कथित प्रतिद्वंद्विता लगातार चर्चा का विषय रही है।

अब तक, उनका एक साथ दिखना मुख्य रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित कार्यक्रमों तक ही सीमित था – जैसे फोरेंसिक संस्थान का शिलान्यास समारोह और अखिल भारतीय डीजीपी की बैठक। लेकिन इस बार पहल दिल्ली से नहीं, लखनऊ की ओर से हुई। यह एक अस्थायी दिखावा है या संबंधों में गहरा बदलाव, यह देखना बाकी है।

लेकिन एक बात स्पष्ट है – शाह-योगी के सौहार्द ने कहानी को फिर से शुरू किया है और भाजपा की भविष्य की सत्ता गतिशीलता में नई अटकलों को जन्म दिया है। यह भी चर्चा है कि यह घटनाक्रम योगी को शीर्ष नेतृत्व द्वारा लाइन में आने के लिए प्रेरित करने के बाद हुआ।

बिहार में भाजपा ने दिखाई ताकत

वैश्विक तनावों से अप्रभावित, भारत की राजनीतिक सुर्खियां घरेलू मैदान पर मजबूती से टिकी हैं और भाजपा अक्तूबर-नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए के भीतर प्रभुत्व कायम करने में कोई समय बर्बाद नहीं कर रही है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपने आत्मविश्वास से उत्साहित भाजपा सीट बंटवारे के मोलभाव में अपनी ताकत दिखा रही है, खासकर जद(यू) के साथ। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनावों में जद(यू) के निराशाजनक प्रदर्शन का हवाला देते हुए भाजपा इस बार उसे केवल 90-95 सीटें ही दे सकती है, क्योंकि तब उसने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 43 पर जीत हासिल कर पाई थी। इसके विपरीत, भाजपा ने 2020 में 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 74 सीटें जीत ली थीं।

हालांकि भाजपा की योजना लगभग 102-105 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की है, पार्टी ने नीतीश कुमार को भरोसा दिलाया है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा वे ही बने रहेंगे, लेकिन यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इस गारंटी का मतलब यह नहीं है कि जद(यू) को ज्यादा सीटें मिलेंगी। निर्वाचन क्षेत्रवार जीत की संभावना वाले आंतरिक सर्वेक्षण भाजपा की रणनीति का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

लोक जनश​क्ति पार्टी (रामविलास), जिसने 2020 में 134 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पाई, एनडीए में वापस आ गई है और 30 सीटों पर नजर गड़ाए हुए है। हालांकि भाजपा से उसे केवल 20-25 सीटों की पेशकश की उम्मीद है। एलजेपी का 2020 का मिशन – नीतीश कुमार को कमतर आंकना – पूरा हो गया है, और अब इसे गठबंधन अंकगणित के लिए फिर से तैयार किया जा रहा है।

विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अब एनडीए का हिस्सा नहीं है, इसलिए उसने पहले जिन 18 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उन्हें अन्य सहयोगियों के बीच फिर से बांटा जाएगा, जिसमें जीतन राम मांझी के नेतृत्व वाली हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम), उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएम और संभावित नए प्रवेशकर्ता शामिल हैं। ऐसा लगता है कि रूपरेखा भाजपा ही बना रही है – और शर्तें भी तय कर रही है।

मोदी कैबिनेट में आपातकाल के खिलाफ प्रस्ताव पारित, पुणे मेट्रो विस्तार को भी मिली मंजूरी

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आज बुधवार को कैबिनेट की एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करते हुए आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर उसका कड़ा विरोध जताया गया। इसके अतिरिक्त, कैबिनेट ने पुणे में मेट्रो विस्तार परियोजना सहित तीन महत्वपूर्ण प्रस्तावों को भी अपनी स्वीकृति प्रदान की है।

बैठक के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस वार्ता में इन महत्वपूर्ण निर्णयों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैबिनेट ने पुणे मेट्रो लाइन 2 के विस्तार को मंजूरी दे दी है, जिस पर लगभग 3626 करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह परियोजना पुणे शहर की कनेक्टिविटी को और बेहतर बनाएगी।

इसके अतिरिक्त, कैबिनेट ने झरिया कोलफील्ड पुनर्वास परियोजना के लिए 5940 करोड़ रुपये की विशाल राशि आवंटित करने का निर्णय लिया है। यह कदम झरिया क्षेत्र में आग और भूमि धंसाव की समस्याओं से जूझ रहे परिवारों के पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, उत्तर प्रदेश के आगरा में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र की स्थापना के लिए 111.5 करोड़ रुपये की मंजूरी दी गई है। इस केंद्र की स्थापना से आलू और शकरकंद की उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आय में वृद्धि करने में मदद मिलेगी।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह भी बताया कि कैबिनेट ने हाल ही में शुभांशु शुक्ला के सफल अंतरिक्ष मिशन पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं इस मिशन की सफलता की जानकारी कैबिनेट को दी, जिसे सुनकर सभी मंत्रियों ने करतल ध्वनि से अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। पीएम मोदी ने इस अवसर को देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया।

बैठक में आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। इस प्रस्ताव में कहा गया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल उन अनगिनत व्यक्तियों के बलिदान को याद करता है और उनका सम्मान करता है जिन्होंने आपातकाल और भारतीय संविधान की भावना को नष्ट करने के प्रयास का बहादुरी से विरोध किया था। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि 2025 में ‘संविधान हत्या दिवस’ के 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जो भारत के इतिहास का एक काला अध्याय था। कैबिनेट ने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और युवाओं से तानाशाही प्रवृत्तियों का विरोध करने वालों से प्रेरणा लेने का आह्वान किया।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पुणे मेट्रो रेल परियोजना के दूसरे चरण को भी मंजूरी दी, जो वनज से चांदनी चौक (कॉरिडोर 2ए) और रामवाड़ी से वाघोली/विट्ठलवाड़ी (कॉरिडोर 2बी) तक विस्तारित होगी। 12.75 किलोमीटर के इन एलिवेटेड कॉरिडोर में 13 स्टेशन होंगे और इसके चार साल में पूरा होने का लक्ष्य है। इस परियोजना की अनुमानित लागत 3626.24 करोड़ रुपये है, जिसे केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के साथ-साथ बाहरी एजेंसियों द्वारा साझा किया जाएगा।

झरिया मास्टर प्लान में संशोधन को भी कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है, जिसके तहत 5,940.47 करोड़ रुपये की लागत से आग और भूमि धंसाव से प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा।

आगरा में अंतर्राष्ट्रीय आलू केंद्र की स्थापना को मंजूरी मिलने से कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा मिलेगा, जिससे किसानों को काफी लाभ होगा।

आतंकवाद रोधी अभियानों के लिए भारतीय सेना को मिलेगा आधुनिक स्वदेशी हथियारों का बल

अंजलि भाटिया
नई दिल्ली, 24 जून- भारतीय सेना की आतंकवाद विरोधी अभियानों में संचालन क्षमता को मजबूत करने के लिए रक्षा मंत्रालय ने आपातकालीन खरीद (EP) प्रणाली के तहत कुल 13 रक्षा अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनकी कुल लागत 1,981.90 करोड़ रुपये है।
रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि ये खरीदें तेज़ प्रक्रिया के तहत की गई हैं ताकि सैनिकों की जागरूकता, मारक क्षमता, गतिशीलता और सुरक्षा को समय रहते बढ़ाया जा सके।
इन खरीदों में इंटीग्रेटेड ड्रोन डिटेक्शन व इंटरडिक्शन सिस्टम (IDDIS), लो लेवल लाइटवेट रडार (LLLR), और वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस सिस्टम (VSHORADS) – लॉन्चर और मिसाइल शामिल हैं। इसके साथ ही, रिमोटली पायलटेड एरियल व्हीकल्स (RPAVs), लोइटरिंग म्यूनिशन, VTOL सिस्टम और विभिन्न प्रकार के ड्रोन भी खरीदे जाएंगे।
हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुए सशस्त्र संघर्ष और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद, इन आधुनिक हथियारों की आवश्यकता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
सेना द्वारा पहले ही 450 नागसरे-1आर लोइटरिंग म्यूनिशन का ऑर्डर दिया जा चुका है, जो इन नई खरीदों का ही हिस्सा है। इसके अतिरिक्त, बुलेटप्रूफ जैकेट, बैलिस्टिक हेलमेट, क्विक रिएक्शन फाइटिंग व्हीकल (QRFV) – भारी व मध्यम श्रेणी के, और राइफल्स के लिए नाइट साइट्स की भी आपूर्ति की जाएगी।
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस आपात खरीद योजना के लिए कुल 2,000 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था, और सभी सौदों को तय समयसीमा के भीतर पूरा किया गया है।
मंत्रालय का जोर इस बात पर है कि सभी प्रणालियाँ पूरी तरह स्वदेशी हों और भारत की रक्षा जरूरतों के अनुरूप तैयार की गई हों, ताकि सेना को आधुनिक और मिशन-क्रिटिकल उपकरण समय पर मिल सकें। EP प्रणाली रक्षा क्षेत्र में तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने का एक प्रभावी माध्यम बनकर उभरी है।