हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आज आबकारी एवं कराधान विभाग की दो प्रमुख डिजिटल पहलों की शुरुआत करते हुए शासन-प्रशासन में पारदर्शिता, दक्षता और सुगमता को नई गति प्रदान की। इन डिजिटल पहलों का उद्देश्य विभागीय प्रक्रियाओं को पूरी तरह तकनीक-आधारित बनाना, सेवाओं को समयबद्ध तरीके से आमजन तक पहुंचाना और राजस्व प्रबंधन को अधिक सुदृढ़ करना है।
मुख्यमंत्री ने विभाग द्वारा विकसित “कर हितैषी” मोबाइल एप्लिकेशन का लोकार्पण किया। यह ऐप आम नागरिकों को जीएसटी चोरी की जानकारी सरल और गोपनीय तरीके से देने की सुविधा प्रदान करता है। नागरिक फर्जी बिलिंग, गलत इनपुट टैक्स क्रेडिट, बिना पंजीकरण कारोबार, बिल न देने, या लेन-देन छिपाने जैसी अनियमितताओं की सूचना फोटो, वीडियो या दस्तावेज़ों के साथ अपलोड कर सकते हैं। ऐप यह सुनिश्चित करता है कि सूचना देने वाले की पहचान संबंधित फील्ड अधिकारियों को न दिखाई दे। प्राप्त सूचना पर विभागीय अधिकारी आवश्यक जांच व कार्रवाई करेंगे।
मुख्यमंत्री ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इससे स्वैच्छिक रिपोर्टिंग को बढ़ावा मिलेगा और जीएसटी प्रशासन में पारदर्शिता मजबूत होगी।
इसके अलावा, नायब सिंह सैनी ने छः नई ऑनलाइन आबकारी सेवाओं का शुभारंभ किया। ये सेवाएँ एथेनॉल, अतिरिक्त अल्कोहल (ईएनए) और डिनेचर्ड स्प्रिट से संबंधित अनुमतियों के लिए विकसित की गई हैं। अब व्यापारिक इकाइयाँ एथेनॉल और ईएनए के आयात निर्यात तथा डिनेचर्ड स्प्रिट के निर्यात आयात की अनुमति ऑनलाइन आवेदन के माध्यम से प्राप्त कर सकेंगी। इस प्रणाली में आवेदक आवेदन की स्थिति देख सकते हैं और डिजिटल हस्ताक्षरित अनुमति पत्र डाउनलोड कर सकते हैं।
बैठक में बताया गया कि वास्तविक समय में डैशबोर्ड के माध्यम से माल की आवाजाही, अनुमतियों की समय-सीमा और अनुपालन की निगरानी की जा सकेगी। यह व्यवस्था कागजी कार्यवाही कम करेगी, दुरुपयोग की संभावनाएं रोकेंगी और उद्योगों को तेज व पारदर्शी सेवाएँ प्रदान करेगी।
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि अन्य आबकारी सेवाओं जैसे ब्रांड लेबल पंजीकरण और लाइसेंसिंग मॉड्यूल को भी शीघ्र ऑनलाइन किया जाए, ताकि विभागीय प्रक्रियाओं को पूरी तरह तकनीक-आधारित बनाया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री ने आबकारी एवं कराधान विभाग की कार्यप्रणाली की भी समीक्षा की। बैठक में विभाग के राजस्व प्रदर्शन, प्रवर्तन कार्रवाइयों, लंबित वसूली, तथा जीएसटी, वैट और आबकारी क्षेत्र में चल रहे डिजिटल सुधारों की प्रगति का विस्तृत मूल्यांकन किया गया।
बैठक में जानकारी दी गई कि हरियाणा ने पूरे देश में नेट एसजीएसटी संग्रह में सर्वाधिक 21 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की है, जबकि राष्ट्रीय औसत 6 प्रतिशत है। नवंबर 2025 में राज्य का नेट एसजीएसटी संग्रह 3,835 करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष नवंबर के मुकाबले 17 प्रतिशत अधिक है। चालू वित्त वर्ष में नवंबर तक कुल जीएसटी संग्रह 83,606 करोड़ रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक है और राष्ट्रीय औसत 5.8 प्रतिशत से बेहतर है। बढ़ते राजस्व के आधार पर हरियाणा की रैंकिंग भी सुधारकर चौथे स्थान पर पहुंच गई है। अधिकारियों ने बताया कि राज्य में 6,03,389 जीएसटी पंजीकृत करदाता हैं, जिनमें 2018 से 2025 के बीच 6.11 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज हुई है।
बैठक में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने मूल्य वर्धित कर (वैट) और सीएसटी की भी समीक्षा की। मुख्यमंत्री को अवगत कराया गया कि हरियाणा में वैट छः वस्तुओं पेट्रोल, डीजल, शराब, पीएजी, सीएनजी एवं सीएसटी वस्तुओं पर लागू होता है। वर्ष 2025-26 में नवंबर तक वैट वसूली में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसमें वन टाइम सेटलमेंट (ओटीएस) स्कीम-2025 का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस योजना के कारण सीएसटी संग्रह में 60.99 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। योजना के 27 सितंबर 2025 को समाप्त होने के बाद विभाग ने विशेष वसूली अभियान चलाया, जिसके तहत अक्तूबर-नवंबर 2025 में 48.12 करोड़ रुपये की वसूली की गई।
बैठक के दौरान अधिकारियों ने बताया कि विभाग ने वैट मॉनिटरिंग डैशबोर्ड भी विकसित किया है, जो वास्तविक समय में वैट जमा की निगरानी करता है। साथ ही, देरी होने पर स्वतः संकेत देता है और फील्ड अधिकारियों को समय पर कार्रवाई करने में सहायता करता है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि सभी जिले इस डैशबोर्ड का नियमित उपयोग सुनिश्चित करें, ताकि विभाग की कार्यप्रणाली में और दक्षता सुनिश्चित हो सके।
बैठक में बताया गया कि वर्ष 2025-26 में 30 नवंबर 2025 तक आबकारी राजस्व 9,370.28 करोड़ रुपये रहा, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 8,629.46 करोड़ रुपये संग्रहित हुए थे। विभाग ने जिलावार और मदवार लाइसेंस शुल्क, आबकारी शुल्क, बॉटलिंग शुल्क, परमिट शुल्क, आयात शुल्क एवं देशी शराब पर वैट का विवरण प्रस्तुत किया गया। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कम संग्रह वाले जिलों को निगरानी बढ़ाने, निरीक्षण तेज करने और समयबद्ध सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश दिए।
इसके अलावा, 125 करोड़ रुपये की संपत्तियों की कुर्की, वर्तमान नीति वर्ष में 46.66 करोड़ रुपये की वसूली और देरी से जमा लाइसेंस शुल्क पर ब्याज की स्वचालित गणना प्रणाली के माध्यम से 16.46 करोड़ रुपये की अनिवार्य वसूली की गई है। विभाग ने QR-आधारित ट्रैक एंड ट्रेस प्रणाली, होलोग्राम प्रमाणीकरण, मैन्युफैक्चरिंग यूनिटों पर एएनपीआर कैमरे और बूम बैरियर, डिस्टिलरी में टेलीमेट्री आधारित वास्तविक समय मॉनिटरिंग तथा ऑनलाइन लाइसेंसिंग मॉड्यूल पर भी प्रगति की जानकारी दी।
मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि इन डिजिटल सुधारों को तेज गति से लागू किया जाए और इनके प्रभाव की नियमित समीक्षा की जाए ताकि पारदर्शिता, अनुपालन और सेवा-प्रदर्शन में स्पष्ट सुधार दिखाई दे। मुख्यमंत्री ने विभाग के राजस्व प्रदर्शन और डिजिटल सुधारों की सराहना करते हुए कहा कि राज्य सरकार एक पारदर्शी, तकनीक संचालित और नागरिक-हितैषी कर एवं आबकारी प्रशासन स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो प्रदेश की आर्थिक वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
बैठक में मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर, आबकारी एवं कराधान विभाग की आयुक्त एवं सचिव आशिमा बराड़, आबकारी एवं कराधान आयुक्त विनय प्रताप सिंह सहित अन्य अधिकारी उपस्थित रहे।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रोपड़ ने “100 स्टार्ट-अप्स 100 डेज़” नामक राष्ट्रीय डीप-टेक त्वरण कार्यक्रम की घोषणा की है, जिसे औपचारिक रूप से इंडिया एआई इम्पैक्ट समिट 2026 के प्री-समिट इवेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
यह कार्यक्रम 16 दिसंबर को आईआईटी रोपड़ परिसर में आयोजित होगा, जिसमें देशभर के शुरुआती चरण के स्टार्ट-अप्स को मेंटरिंग, तकनीकी पहुँच और नवाचार-आधारित सहायता प्रदान की जाएगी। इस पहल का औपचारिक शुभारंभ इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के पूर्व सीएमडी एवं मुख्य अतिथि श्रीकांत एम. वैद्य, क्षमता निर्माण आयोग एवं आईआईटी रोपड़ बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष आदिल ज़ैनुलभाई, तथा आईआईटी रोपड़ के निदेशक प्रो. राजीव आहूजा द्वारा किया गया।
इंडिया एआई इम्पैक्ट समिट 2026—जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस एआई एक्शन समिट में की थी—19–20 फरवरी 2026 को नई दिल्ली में आयोजित होगा। यह ग्लोबल साउथ में आयोजित होने वाला पहला वैश्विक एआई सम्मेलन है, जो डिजिटल परिवर्तन, एआई गवर्नेंस और जिम्मेदार तकनीकी विकास में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को रेखांकित करता है।
प्री-समिट पहल के रूप में “100 स्टार्ट-अप्स 100 डेज़” की मेजबानी करते हुए, आईआईटी रोपड़ का उद्देश्य राष्ट्रीय एआई दृष्टि में सक्रिय योगदान देना है—डीप-टेक नवाचार को बढ़ावा देना, उद्यमिता को प्रोत्साहित करना और ऐसे तकनीकी नेताओं को तैयार करना जो वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाल सकें।
यह कार्यक्रम iHub AWaDH—जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा समर्थित एक टेक्नोलॉजी इनोवेशन हब है—Annam.ai, जो शिक्षा मंत्रालय द्वारा समर्थित एग्री-एआई उत्कृष्टता केंद्र है, तथा आईआईटी रोपड़ टेक्नोलॉजी बिज़नेस इनक्यूबेटर फ़ाउंडेशन (TBIF) द्वारा संचालित है। इसके अतिरिक्त, इस पहल को इज़राइल दूतावास (भारत), राइखमन यूनिवर्सिटी रनवे इनक्यूबेटर, यूपीईएस (उत्तराखंड), सेंटर फ़ॉर कम्प्यूटर्स एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (सिक्किम), एसीआईसी जीआईईटी यूनिवर्सिटी फ़ाउंडेशन (ओडिशा), कृष्णा विश्व विद्यापीठ (महाराष्ट्र), आईआईटी तिरुपति नवविष्कार आई-हब फ़ाउंडेशन, एचडीएफसी बैंक और केनरा बैंक सहित कई प्रतिष्ठित साझेदारों का समर्थन प्राप्त है।
आईआईटी रोपड़ के निदेशक प्रो. राजीव आहूजा के अनुसार, यह कार्यक्रम एग्री-टेक, वाटर-टेक, आईओटी और साइबर-फिजिकल सिस्टम्स जैसे उभरते डीप-टेक क्षेत्रों में नवाचार करने वाले स्टार्ट-अप्स की पहचान और उनका विकास करेगा। उन्होंने बताया कि 16 दिसंबर को GENESIS, DST NM-ICPS और स्टार्टअप इंडिया के तहत 30 से अधिक स्टार्ट-अप्स और नवप्रवर्तकों को अनुदान और निवेश प्रदान किया जाएगा।
iHub AWaDH और Annam के परियोजना निदेशक डॉ. पुष्पेंद्र पी. सिंह ने कहा कि आईआईटी रोपड़, iHub AWaDH, Annam और TBIF द्वारा संयुक्त रूप से 100 से अधिक स्टार्ट-अप्स को मेंटरिंग, इनक्यूबेशन, निवेश और एक्सीलरेशन समर्थन दिया गया है। उनका कहना था कि यह पहल आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया और राष्ट्रीय डीप-टेक क्षमता निर्माण की दृष्टि के अनुरूप भारत के नवाचार परिदृश्य को मजबूत करने का लक्ष्य रखती है।
भारत एआई, MeitY स्टार्ट-अप हब, DST और इज़राइल दूतावास द्वारा समर्थित यह प्रयास शुरुआती चरण के घरेलू स्टार्ट-अप्स को बाज़ार-तैयार समाधानों की ओर तेजी से अग्रसर करते हुए देश को प्रौद्योगिकी-संचालित, नवाचार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
भले ही भाजपा का संगठन राज्य में अपेक्षाकृत कमजोर है, लेकिन पार्टी आक्रामक मोड में है। उधर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद को राष्ट्रीय स्तर की रणनीतिकार के रूप में पेश कर रही हैं, जो जटिल राजनीतिक समीकरणों को साधने में सक्षम हैं।
विवाद की शुरुआत टीएमसी विधायक हुमायूँ कबीर द्वारा मुर्शिदाबाद के भरतपुर में “बाबरी मस्जिद” निर्माण का प्रस्ताव रखने से हुई। भाजपा ने इसे हिंदू–मुस्लिम ध्रुवीकरण का बड़ा मुद्दा बना लिया है। कबीर भाजपा से जुड़े नहीं हैं, लेकिन उनके बयान और पहल भाजपा के लिए राजनीतिक हथियार बन चुके हैं। टीएमसी के विधायक होने के बावजूद वे पार्टी लाइन से लगातार दूर जाते नजर आ रहे हैं।
हुमायूँ कबीर: महत्वाकांक्षा और विवाद
पूर्व कांग्रेस नेता कबीर लंबे समय से मुर्शिदाबाद के मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ मजबूत करने की कोशिश करते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बेलडांगा में मस्जिद की मांग पुराने सांप्रदायिक तनावों को फिर से उभारने की रणनीति का हिस्सा है।
टीएमसी ने पहले उन्हें अधीर रंजन चौधरी का मुकाबला करने के लिए इस्तेमाल किया था, लेकिन अब कबीर कांग्रेस के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्रों को पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं। ममता बनर्जी और पार्टी नेतृत्व ने उन्हें कई बार सचेत किया। अभिषेक बनर्जी और बॉबी हाकिम की नाराज़गी के बाद ममता ने 2026 के चुनाव में उन्हें टिकट न देने का फैसला कर लिया। इसके बाद कबीर ने ओवैसी से समर्थन लेने की कोशिश की, लेकिन AIMIM प्रमुख ने अब तक स्पष्ट रुख नहीं दिखाया है।
मुस्लिम राजनीति के भीतर खिंचाव
क्या भाजपा मुर्शिदाबाद मुद्दे को पूरे बंगाल में चुनावी मुद्दा बना सकती है? मुझे नहीं लगता। क्योंकि दीदी की रणनीति लोगों से सीधे संपर्क करना है और अपने ज़िला-वार संगठन के ज़रिए वह एक ऐसा अभियान चला रही हैं जिससे यह साबित हो सके कि भाजपा की रणनीति मुस्लिम वोटों को तोड़ने की साज़िश है। यहां तक कि टीएमसी भी प्रचार कर रही है कि भाजपा जानबूझकर घटनाएं करवा रही है, कानून-व्यवस्था बिगाड़ रही है, ताकि सत्ता हथियाने के बाद भाजपा बंगाल चुनाव लड़ सके। मुसलमान ज़्यादा एकजुट हैं। उत्तरी ब्लॉक के मुसलमान हुमायूं के साथ नहीं बल्कि टीएमसी के साथ जा सकते हैं।
बंगाल की करीब 30% मुस्लिम आबादी में अधिकांश बंगाली-भाषी हैं, जबकि केवल 2% उर्दूभाषी हैं। ओवैसी पहले प्रत्यक्ष प्रवेश की कोशिश कर चुके हैं लेकिन अब आईएसएफ के माध्यम से काम कर रहे हैं, जो खुद आंतरिक मतभेदों से जूझ रही है। कबीर इन्हीं दरारों में नई जमीन तलाशना चाहते हैं, लेकिन कोलकाता के वरिष्ठ मुस्लिम नेतृत्व—बॉबी हाकिम, अल्पसंख्यक आयोग के प्रमुख इमरान और टीएमसी सांसद अहमद हसन—ने उन्हें खुला समर्थन देने से इनकार कर दिया है।
भाजपा की चुनौतियाँ और SIR मॉडल
भाजपा लंबे समय से SIR (सिक्योरिटी–आइडेंटिटी–राइट्स) मॉडल को बंगाल में लागू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन बिहार में सफल यह फार्मूला यहां उतना कारगर नहीं रहा है। सीमा से सटे जिलों—मालदा, बोंगांव और उत्तर 24 परगना—में हिंदू वोटर भी एकजुट नहीं हैं। मतुआ और राजबंशी जैसे समुदाय संगठित ब्लॉक नहीं बन पाते।
भाजपा अब SIR के दो मुद्दों पर जोर दे रही है: 1. मतदाता सूची में ‘बोगस वोट’ का आरोप 2. घुसपैठ का मुद्दा, जिसे आरएसएस वर्षों से उठाता आया है।
मुर्शिदाबाद का मस्जिद विवाद, भाजपा के लिए घुसपैठ और हिंदू सुरक्षा नैरेटिव को जोड़ने का नया अवसर बन गया है।
शासन बनाम कल्याणकारी राजनीति
भाजपा, ममता सरकार पर कुप्रशासन के आरोपों पर आक्रमण तेज कर रही है। लेकिन स्वास्थ साथी और लक्ष्मी भंडार जैसी योजनाएँ टीएमसी की लोकप्रियता की रीढ़ बनी हुई हैं और चुनाव के दौरान और विस्तार की संभावना है। भाजपा का कल्याण कार्यक्रमों को लेकर वैचारिक संकोच उसे नुकसान पहुँचा सकता है, जबकि भाजपा शासित राज्यों में प्रधानमंत्री मोदी खुद कल्याण योजनाओं को प्रमुखता देते हैं।
शहरी मध्यम वर्ग में असंतोष होने के बावजूद भाजपा का कमजोर बूथ ढांचा उसे राजनीतिक लाभ में नहीं बदल पा रहा। इसी कमी को पूरा करने के लिए पार्टी ध्रुवीकरण पर और अधिक निर्भर होती दिख रही है—जहाँ कबीर और मुर्शिदाबाद विवाद केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
मोदी–भागवत का दौरा
मोदी के प्रस्तावित दौरे और फरवरी में भागवत की यात्रा, भाजपा-आरएसएस के नए अभियान की ओर संकेत है। हाल ही में हुए बड़े धार्मिक आयोजनों—जैसे “गीता पाठ”, जिसमें लाखों लोगों के शामिल होने का दावा किया गया—से पार्टी की सांस्कृतिक सक्रियता में वृद्धि दिखती है।
इसके जवाब में टीएमसी बंगाल की सांस्कृतिक बहुलता पर जोर दे रही है, यह कहते हुए कि भाजपा सांप्रदायिक राजनीति “बाहरी” तौर पर थोप रही है। टीएमसी बंगाल के बौद्धिक इतिहास—राजा राममोहन राय से विवेकानंद तक—का हवाला देते हुए भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का मुकाबला कर रही है।
एयरलाइन ने कहा है कि वह 10 दिसंबर तक अपने संचालन को पूरी तरह स्थिर करने की उम्मीद करती है। इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स ने आज कर्मचारियों को भेजे एक आंतरिक वीडियो संदेश में बताया कि एयरलाइन दिन में लगभग 1,650 उड़ानें संचालित करेगी और ऑन-टाइम परफॉर्मेंस (OTP) लगभग 75 प्रतिशत रहने का अनुमान है। डीजीसीए ने सीईओ को कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए 24 घंटे का समय दिया है। भारत के विमानन क्षेत्र में एक सप्ताह से चल रही उथल-पुथल उस समय और बढ़ गई जब नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) ने इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें लगातार छह दिनों से देशभर में हवाई यात्रा को प्रभावित कर रहे परिचालन संकट पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।
यह नोटिस ऐसे समय आया है जब भारत के घरेलू हवाई क्षेत्र में हाल के वर्षों की सबसे गंभीर अव्यवस्थाओं में से एक देखी जा रही है — एक संकट जिसकी जड़ें इंडिगो और उसके पायलटों के बीच नए फ्लाइट-ड्यूटी-टाइम लिमिटेशन (FDTL) और कथित शेड्यूलिंग ओवरलोड को लेकर बढ़ते तनाव में हैं।
संकट की उत्पत्ति
पिछले सप्ताह के अंत में स्थिति तब बिगड़ी जब इंडिगो के एक बड़े हिस्से के पायलटों ने नई FDTL व्यवस्था के तहत “अस्थिर” रोस्टर का विरोध करते हुए सामूहिक रूप से बीमार होने की सूचना दी। अपडेटेड नियमों में पायलटों को थकान से बचाने के लिए अधिक विश्राम समय अनिवार्य किया गया है — यह एक वैश्विक सुरक्षा मानक है जिसे भारत ने इस वर्ष लागू किया।
हालाँकि नियम सुरक्षा बेहतर बनाने के लिए थे, पायलटों ने तर्क दिया कि इंडिगो की संक्रमणकालीन योजना अपर्याप्त थी, जिससे उन्हें अत्यधिक दबाव वाले शेड्यूल और अंतिम समय में ड्यूटी बदलावों का सामना करना पड़ा। जब पायलटों और एयरलाइन के बीच बातचीत विफल रही, तो स्थिति “सिकआउट” में बदल गई, जो तेजी से दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद और बेंगलुरु जैसे बेसों में फैल गई।
जैसे-जैसे अनुपस्थिति बढ़ी, इंडिगो ने कम समय में उड़ानें रद्द करनी शुरू कर दीं। चूँकि चालक दल विशेष विमानों और मार्गों पर तैनात होते हैं, अचानक हुई कमी ने एक डोमिनो प्रभाव पैदा किया — विमान जमीन पर खड़े रहे, रोटेशन रद्द हुए, और कनेक्टिंग उड़ानें तथा देशभर के यात्री प्रभावित हुए।
आगे क्या हुआ
48 घंटों के भीतर इंडिगो ने सैकड़ों उड़ानें रद्द कर दीं और चालक दल के रोस्टर समायोजित करने में जूझता रहा। तीसरे और चौथे दिन तक रद्दीकरण बढ़ता गया, और एयरलाइन को अपना शेड्यूल भारी मात्रा में कम करना पड़ा। जो शुरुआत में कर्मचारी-सम्बंधित एक तकनीकी विवाद था, वह जल्द ही एक राष्ट्रव्यापी यात्रा संकट बन गया।
जैसे-जैसे हवाई अड्डों पर विमानों की संख्या बढ़ने लगी लेकिन उन्हें उड़ाने के लिए पर्याप्त क्रू उपलब्ध नहीं थे, अन्य विभाग — ग्राउंड हैंडलिंग, बैगेज टीमें और कस्टमर सर्विस डेस्क — भी दबाव में आ गए। कई हवाई अड्डों पर यात्री घंटों तक उन उड़ानों के बैग का इंतजार करते रहे जो उड़ान भर ही नहीं सकीं, क्योंकि सामान को मैन्युअली पुन: छांटा और रूट किया जा रहा था।
यात्रियों की परेशानी
मध्य सप्ताह तक एयरपोर्ट टर्मिनलों में भीड़भाड़ आम दृश्य बन गई। यात्रियों ने गायब लगेज, विलंबित रिफंड और एयरलाइन की ओर से वास्तविक समय में अपडेट की कमी की शिकायत की। कई यात्रियों को मजबूरन अन्य एयरलाइनों की टिकटें खरीदनी पड़ीं, जहाँ अचानक बढ़ी मांग के कारण किराए आसमान छू रहे थे।
व्यापार यात्रियों की मीटिंग्स छूट गईं, परिवार छुट्टियों के दौरान फँस गए, और कई यात्रियों ने वैकल्पिक उड़ान न मिलने पर एयरपोर्ट लाउंज में रातें बिताईं।
डीजीसीए की हस्तक्षेप
तेजी से बढ़ रही शिकायतों के बीच, DGCA ने इंडिगो को तलब किया और सीईओ को कड़े शब्दों में कारण बताओ नोटिस जारी किया। नियामक ने एयरलाइन पर यह आरोप लगाया है कि उसे पता था कि FDTL ट्रांज़िशन आने वाला है, फिर भी उसने पर्याप्त आकस्मिक योजना नहीं बनाई। DGCA ने यह भी सवाल उठाया कि रिजर्व क्रू और बैकअप शेड्यूलिंग सिस्टम इतने बड़े पैमाने पर क्यों विफल हुए और यात्रियों को समय पर सहायता क्यों नहीं दी गई।
जनाक्रोश को देखते हुए नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इंडिगो को रिफंड जल्द करने, बैगेज बैकलॉग हटाने और प्रभावित यात्रियों के लिए री-शेड्यूलिंग और कैंसिलेशन शुल्क माफ करने का आदेश दिया। अन्य एयरलाइनों द्वारा किराया बढ़ाने से रोकने के लिए कुछ रूटों पर अस्थायी किराया सीमा भी लागू की गई।
अनिश्चितता जारी
इंडिगो का कहना है कि वह धीरे-धीरे अपना शेड्यूल बहाल कर रहा है और “जल्द” स्थिरता की उम्मीद है, हालांकि सूत्रों का कहना है कि रोटेशन और रोस्टर पूरी तरह सामान्य होने में अभी कुछ और दिन लग सकते हैं, भले ही पायलट उपस्थिति सुधर जाए।
पायलट प्रतिनिधियों के साथ बातचीत फिर से शुरू हो गई है, और सूत्रों का कहना है कि कुछ प्रगति हुई है — जिससे उम्मीद जगी है कि संकट अब कम हो सकता है।
फिलहाल, हालांकि, हजारों यात्री अभी भी सतर्क हैं क्योंकि एयरलाइन सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश कर रही है। DGCA का आने वाला निर्णय यह तय करेगा कि इंडिगो पर आगे कोई दंडात्मक कार्रवाई होगी या नहीं — और यह भी निर्धारित करेगा कि भविष्य में एयरलाइंस नियामकीय बदलावों के लिए कैसे तैयार होंगी।
दोनों पक्षों को रणनीतिक स्वायतत्ता बनाए रखने की जरूरत थी। पुतिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के बाद अकेलेपन की सोच को दूर करने के लिए बेताब हैं। इसके अलावा, वे चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं दिखना चाहते। दूसरी ओर, भारत अभी एक मुश्किल बातचीत में लगा हुआ है, जिसने उसे एक मुश्किल कूटनीतिक स्थिति में डाल दिया है। भारत जल्द से जल्द US के साथ ट्रेड डील को अंतिम रूप देना चाहता है और इस पर अमेरिका के साथ बातचीत चल रही है। यह साफ़ था कि पुतिन और मोदी ने अपनी हालिया बातचीत के दौरान अक्सर यूक्रेन के विषय पर बात की। मोदी ने किसी भी शांति पहल के लिए भारत के समर्थन को फिर से दोहराते हुए कहा, ‘भारत निष्पक्ष नहीं है, बल्कि भारत शांति के पक्ष में है; हम इसका स्वागत करते हैं।’ मानक कूटनीतिक प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए, मोदी ने पुतिन का ऑफर मान लिया, एयरपोर्ट गए, उनके साथ कार में बैठे, सेल्फी लीं, और भी बहुत कुछ किया। सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में, इस बॉडी लैंग्वेज और इशारों का काफी असर पड़ा है।
रूस के चीन के साथ रिश्ते पश्चिमी देशों, भारत और खासकर अमेरिका के लिए अक्सर चिंता का विषय रहे हैं इसलिए, इस संदर्भ में, मास्को और दिल्ली दोनों ने प्रवासन और गतिशीलता समझौते, रणनीतिक आर्थिक सहयोग के विकास के लिए एक कार्यक्रम और रक्षा एवं ऊर्जा से परे आर्थिक विविधता के माध्यम से द्विपक्षीय संबंधों को गति देने की इच्छा व्यक्त की है। ये सभी महत्वपूर्ण और लंबे समय से लंबित हैं, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्रों में, हालांकि इनका सावधानीपूर्वक आकलन किया जा रहा है, और भारत चाहता है कि रूस सैन्य उपकरणों की आपूर्ति में तेजी लाए, जिसमें काफी देरी हो चुकी है। विशेष रूप से ट्रम्प-प्रेमी अमेरिका और संशोधनवादी चीन के संदर्भ में, रूसी सहायता अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत इन दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को अत्यंत सावधानी से बनाए रखता है।
इसके बाद जटिल अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात आती है। नरेंद्र मोदी की आक्रामक कूटनीति जरूरी थी और रूस के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की एक सकारात्मक रणनीति है। नीचे ऐसे समझ सकते हैं –
1. ट्रम्प का अमेरिका इस समय भारत के सबसे चुनौतीपूर्ण ग्राहकों में से एक है। ट्रम्प अलगाववादी नीतियों पर काम कर रहे हैं, जबकि हम एक व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं। उन्होंने रूस सहित अन्य देशों के साथ संबंधों के बारे में ज्यादा नहीं सोचा, और ट्रम्प ने भारत के साथ व्यापार पर अपने रुख में ढील देने से पहले भारत को रूस से तेल आयात बंद करने का आदेश दिया। हालांकि, भारत ने अक्सर कहा है कि वह रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को तोड़ना नहीं चाहता। यह संबंध भारत की भू-रणनीतिक स्थिति के लिए महत्वपूर्ण है और इसकी इतिहास में एक अलग पहचान है।
2. हालांकि आम जनता चीन और अमेरिका के बीच तनावपूर्ण संबंधों की कल्पना करती है, चीन और रूस के बीच संबंध मज़बूत हैं। इसके अलावा, चीन और भारत के बीच संबंध भी अच्छे नहीं हैं। इसके अलावा, जिस तरह से ‘खास सोच’ भारत के पड़ोसी देशों में फैल रही है, वह बेहद नुकसानदेह है। बांग्लादेश के अलावा, इसके परिणाम म्यांमार और मालदीव तक भी पहुंच गए हैं। पाकिस्तान के आईएसआई प्रमुख के लगातार दौरे, बांग्लादेश पर पाकिस्तानी सेना का दबदबा और चीन के साथ संबंध बनाए रखते हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश द्वारा अपने संबंधों को मज़बूत करने की तीव्र कोशिशों के कारण बांग्लादेश समस्याग्रस्त हो गया है। भारत ऐसे नाज़ुक मोड़ पर रूस के साथ अपने संबंधों को खतरे में क्यों डालेगा? भारत की रणनीति पारंपरिक रूप से अन्य देशों के साथ सकारात्मक संबंध स्थापित करने और उन्हें बनाए रखने पर केंद्रित रही है।
शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ एक-दूसरे के विरोधी थे। हालांकि, वही शीत युद्ध परिदृश्य वर्तमान में एक बार फिर उभर रहा है, जिससे अमेरिका चीन के विरुद्ध खड़ा है।इसके अलावा, अमेरिका न केवल भारत को नियंत्रित करने का प्रयास रहा है, बल्कि यूरोपीय संघ, यूरोप और यहां तक कि अमेरिका के पुराने सहयोगी कनाडा के साथ भी उसके शत्रुतापूर्ण संबंध हैं। ऐसे में भारत-रूस साझेदारी को खतरे में डालना भारत के लिए गैर-ज़िम्मेदाराना होगा। हालांकि, रूस और अमेरिका के बीच भी मतभेद हैं; इसलिए, द्विध्रुवीय विश्व की तुलना में एक बहुकेंद्रित विश्व बनाना बेहतर है। रूस और अन्य यूरोपीय देश ट्रम्प के उस कूटनीतिक प्रयास पर अधिक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं जिसमें उन्होंने G20, यानी चीन के साथ G2, जैसी अवधारणा को लागू करने का प्रयास किया है। हालांकि यूरोप रूस के साथ संघर्ष में यूक्रेन का समर्थन कर रहा है, लेकिन पुतिन को भारत लाना शायद यूरोप के लिए बहुत सुखद बात नहीं थी। हालांकि, यूरोप समझता है कि अमेरिका से निपटने के लिए रूस के साथ संबंध बनाए रखना महत्वपूर्ण है।इसलिए, मोदी ने संतुलन बनाने का काम बखूबी किया।
3. दो दिवसीय भारत यात्रा करने वाले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास एक चमकदार मुस्कान के साथ मास्को लौटने का हर कारण है। पुतिन का भारत के प्रधानमंत्री द्वारा स्वागत किया जाना और स्वयं मेजबान के साथ आधिकारिक आवास तक वापस जाना, अंतरराष्ट्रीय अलगाव और प्रतिबंधों का सामना कर रहे एक नेता के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है और इसे विभिन्न पश्चिमी राजधानियों में व्यापक रूप से प्रचारित भी किया गया है। इसलिए, पुतिन को अपनी यात्रा की स्थितिगत तस्वीरें और उसके ठोस परिणाम, दोनों ही पसंद आए होंगे।
4. यूरोप, भारत द्वारा पुतिन का रेड कार्पेट स्वागत से सबसे ज्यादा नाराज है, ऐसे समय में जब वह यूक्रेन में संघर्ष को और तेज कर रहे हैं। हालांकि, यूरोप अमेरिका की अनिश्चितता और यूक्रेन पर उसके लगातार दबाव को लेकर ज्यादा चिंतित है। भारत के कार्यों के हर पहलू को ध्यान में रखते हुए, देश के पास बदलते प्रभावों वाले चुनौतीपूर्ण भू-राजनीतिक परिवेशों से निपटने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में संरक्षित करने का व्यापक अनुभव है, जैसा कि पुतिन की यात्रा के दौरान प्रदर्शित हुआ। इस प्रकार, भारत-रूस संबंध अपने पिछले संबंधों के कारण अभी भी मजबूत हैं। इसके अतिरिक्त, परमाणु पनडुब्बियों जैसे ऐसे मंच भी हैं जिनमें मिसाइल-रोधी क्षमताएं हैं। इसलिए, भारत के साथ तकनीक साझा करने वाला एकमात्र देश रूस है।
अब, अगर भारत भारत-रूस संबंधों को सफलतापूर्वक बनाए रख पाता है, तो ‘पुतिननमो’ अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक नई भूमिका निभा सकता है।
व्लादिमीर पुतिन का भारत आगमन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए, वैश्विक कूटनीति में एक निर्णायक क्षण का प्रतीक है। आज जब वैश्विक राजनीति गहरे संरचनात्मक बदलावों से गुजर रही है—यूक्रेन संघर्ष ऊर्जा मार्गों को नया आकार दे रहा है, पश्चिमी प्रतिबंध वैश्विक वित्त को हथियार बना रहे हैं, और BRICS जैसे नए गठबंधन अपनी प्रभावशीलता बढ़ा रहे हैं—भारत-रूस साझेदारी उन कुछ स्थिर, हित-प्रेरित संबंधों में से एक है, जो व्यापक भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने की क्षमता रखती है।
भारत की राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू ने भी व्लादिमीर पुतिन, रूस के संघीय राष्ट्रपति, का राष्ट्रपति भवन में स्वागत किया और उनके सम्मान में एक भव्य रात्रिभोज का आयोजन किया। दोनों नेताओं ने इस विश्वास को व्यक्त किया कि हमारे दो देशों के बीच जो मित्रता वर्षों से स्थिर रही है, वह आने वाले समय में और भी प्रगति करेगी।
राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति पुतिन और उनके शिष्टमंडल का स्वागत करते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि उनका यह दौरा एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है: भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ, जिसे अक्टूबर 2000 में उनके पहले भारत दौरे के दौरान स्थापित किया गया था। उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन के भारत-रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के प्रति समर्थन और व्यक्तिगत प्रतिबद्धता की सराहना की। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे साझेदारी का मार्गदर्शन शांति, स्थिरता और आपसी सामाजिक-आर्थिक एवं तकनीकी प्रगति के साझा संकल्प द्वारा किया जाता है।
इस यात्रा के केंद्र में रक्षा सहयोग है, जो भारत-रूस संबंधों का पुराना और मजबूत आधार रहा है। दशकों से, भारत के आधे से अधिक सैन्य प्लेटफ़ॉर्म रूसी निर्मित हैं, और यह संबंध एक साधारण खरीदार-बिक्रेता से विकसित होकर गहरे सह-विकास की ओर बढ़ चुका है। ब्रह्मोस जैसी संयुक्त परियोजनाएं दोनों देशों के बीच उच्च रणनीतिक विश्वास का उदाहरण हैं। नए संस्करण, विस्तारित रेंज, सटीकता में सुधार और हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों में उभरते सहयोग के साथ, रक्षा साझेदारी एक नए तकनीकी युग में प्रवेश कर रही है। भारत की वायु रक्षा प्रणाली का विस्तार और लड़ाकू विमानन व पनडुब्बी तकनीकों में गहरे सहयोग पर चर्चा इस दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
इन उच्चतम स्तरों पर रक्षा संबंधों को स्वीकार कर, भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूत करता है। जहां एक ओर नई दिल्ली अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बना रहा है और क्वाड में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है, वहीं दूसरी ओर उसने कभी भी किसी भी शक्ति को अपनी रूस नीति निर्धारित करने का अधिकार नहीं दिया। यह बहुआयामी दृष्टिकोण एक स्पष्ट वैश्विक संदेश भेजता है: भारत को विचारधारात्मक ब्लॉकों में नहीं बांधा जा सकता। इसके बजाय, वह ऐसी विविध रक्षा साझेदारियों को बनाए रखेगा, जो उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा संरचना को मजबूत करें। रूस के लिए, भारत की लगातार रक्षा रुचि मास्को को एशिया में सामरिक प्रभाव बनाए रखने में मदद करती है और इसे चीन पर अत्यधिक निर्भर होने से बचाती है, जिससे वैश्विक शक्ति संतुलन में धीरे-धीरे परिवर्तन होता है।
हालांकि, भारत-रूस संबंधों का असली परिवर्तन व्यापार, शुल्क, ऊर्जा प्रवाह और उभरती आर्थिक संरचनाओं के क्षेत्र में हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि हुई है, जो मुख्य रूप से भारत द्वारा रूस से सस्ते कच्चे तेल, उर्वरक, कोयला और आवश्यक खनिजों के आयात से प्रेरित है। रूस द्वारा ऊर्जा निर्यात को एशिया की ओर मोड़ने से भारत को दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर सुरक्षित करने का एक अनूठा अवसर मिला है। यह बदलाव आर्थिक ही नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक भी है। पश्चिमी असहमति के बावजूद रूस का तेल खरीदकर, भारत ने अपनी संप्रभुता की पुष्टि की और अपनी अर्थव्यवस्था को मुद्रास्फीति-संवेदनशील संकट से बचाया।
हालांकि, इस व्यापार वृद्धि ने एक स्थायी असंतुलन को उजागर किया है। भारत रूस को तुलनात्मक रूप से कम निर्यात करता है, जिसके परिणामस्वरूप रूसी बैंकों में बड़े रूपए के अधिशेष बैठते हैं। पुतिन की यात्रा इस असंतुलन को हल करने के लिए मुद्रा निपटान, बेहतर लॉजिस्टिक्स, शुल्क रियायतें और लक्षित निर्यात प्रोत्साहन के उपायों पर ध्यान देने की उम्मीद है। रूपए-रूबल या स्थानीय मुद्रा निपटान का उपयोग डॉलर-आधारित प्रणाली पर निर्भरता को कम कर सकता है, जो प्रतिबंधों के प्रति संवेदनशील है। भारतीय दवाइयों, मशीनरी, कृषि उत्पादों और आईटी सेवाओं के लिए बाजार की पहुंच बढ़ाना व्यापार असंतुलन को सुधारने में मदद कर सकता है।
विस्तारित दृष्टिकोण से, ये बदलाव डॉलर-आधारित वित्तीय व्यवस्था से दूर जाने का संकेत देते हैं। भारत और रूस नए आर्थिक रास्तों की खोज कर रहे हैं, जो व्यापक BRICS और वैश्विक दक्षिण को वैकल्पिक भुगतान प्रणालियाँ बनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। ऐसे तंत्र दोनों देशों के आर्थिक संप्रभुता को मजबूत करेंगे, जिससे वे पश्चिमी-प्रेरित व्यापार राजनीति से अधिक प्रभावी तरीके से निपट सकेंगे।
सांस्कृतिक सहयोग भारत-रूस संबंधों का दिल है। रक्षा समझौतों और ऊर्जा सौदों से पहले, सिनेमा, साहित्य और संगीत ने इनके संबंधों की नींव बनाई। राज कपूर की फिल्में कभी सोवियत थिएटरों को भर देती थीं; रूस के क्लासिक्स जैसे टॉल्स्टॉय और दोस्तोएव्स्की ने भारतीय लेखकों को गहरे प्रभावित किया। यह सांस्कृतिक सेतु आज भी त्योहारों, शैक्षिक आदान-प्रदान, नाट्य सहयोग, भाषा कार्यक्रमों और सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडलों के माध्यम से जीवित है। पुतिन का यह दौरा इन सांस्कृतिक सहयोगों को डिजिटल प्लेटफार्मों, सह-निर्मित फिल्मों और संग्रहालय साझेदारियों के माध्यम से आधुनिक बनाने का एक अवसर प्रदान करता है।
भारत-रूस सहयोग का एक नया और तेजी से बढ़ता स्तंभ शैक्षिक और मानव संसाधन आदान-प्रदान है। रूस ने भारतीय छात्रों और कुशल श्रमिकों के लिए अपनी विश्वविद्यालयों और श्रम बाजारों के दरवाजे खोल दिए हैं, खासकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग, आईटी और निर्माण क्षेत्रों में। यह मानव आदान-प्रदान दीर्घकालिक सहयोग के लिए आधार बनेगा, क्योंकि भारत डिजिटल शासन, फिनटेक और साइबर सुरक्षा में विशेषज्ञता प्रदान करता है।
अंत में, पुतिन का यह दौरा केवल औपचारिक नहीं है; यह दोनों देशों के लिए गहरे रणनीतिक महत्व से भरा हुआ है। भारत के लिए, यह पुष्टि करता है कि राष्ट्रीय हित—न कि बाहरी दबाव—उसकी विदेश नीति का मार्गदर्शन करेगा। रूस के लिए, यह संकेत देता है कि पश्चिम के अलगाव प्रयासों के बावजूद, मास्को के पास दुनिया भर में मजबूत, संप्रभु साझेदार हैं। जैसे ही दोनों देश एक बहु-ध्रुवीय दुनिया में अपनी भूमिका निभाते हैं, उनका सहयोग न केवल उनकी व्यक्तिगत स्थिति को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक शक्ति समीकरणों के भविष्य को भी आकार देगा।
* डॉ. अनिल सिंह, संपादक, STAR Views और संपादकीय सलाहकार, Top Story; “प्रधानमंत्री: भारतीय राजनीति में संवाद” के लेखक।
हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) के सहायक प्रोफेसर (अंग्रेजी) भर्ती में एक नया तूफान खड़ा हो गया है, क्योंकि 613 रिक्तियों के लिए केवल 151 उम्मीदवार ही योग्य पाए गए, जिससे पुनः मूल्यांकन की व्यापक मांग उठने लगी और पंचकूला में विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए।
बुधवार को, कई उम्मीदवार HPSC कार्यालय के बाहर एकत्र हुए और शांति से प्रदर्शन किया, जिसमें वे जमीन पर लेटकर हाथ जोड़कर एक प्रतीकात्मक अपील कर रहे थे, ताकि निष्पक्षता और पारदर्शिता की ओर ध्यान आकर्षित किया जा सके।
अपेक्षित अनुपात से बहुत कम शॉर्टलिस्टिंग
भर्ती अधिसूचना के अनुसार, HPSC को 2:1 अनुपात में उम्मीदवारों का चयन करना था, यानी 1,226 उम्मीदवारों को अगले चरण में प्रवेश करना चाहिए था। इसके बजाय आयोग की सूची में मात्र एक-आठवां हिस्सा है, जिससे मूल्यांकन प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठते हैं।
2,400 से अधिक उम्मीदवारों ने वर्णनात्मक स्टेज-2 परीक्षा दी थी। कई का कहना है कि उन्होंने अच्छी तरह से संरचित, अकादमिक रूप से कठिन उत्तर लिखे थे, फिर भी केवल एक अंश ही न्यूनतम योग्यता स्कोर 35% प्राप्त करने में सफल रहे।
वर्गवार परिणामों ने चिंता जताई
भर्ती कार्यकर्ता श्वेता धुल ने परिणाम को “गहरी चिंता” का विषय बताते हुए इसे गंभीर प्रक्रियागत दोषों का प्रतीक करार दिया। उन्होंने HPSC से विशेषज्ञों द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालय से उत्तर पुस्तिकाओं का पुनः मूल्यांकन कराने की अपील की, ताकि विश्वसनीयता बहाल हो सके।
वर्गवार टूट-फूट ने चौंकाने वाले अंतर दिखाए:
सामान्य श्रेणी: 312 पदों के लिए 136 चयनित
अत्यधिक पीड़ित एससी: 60 पदों के लिए 1 चयनित
अन्य एससी: 60 पदों के लिए 2 चयनित
बीसी-बी: 36 पदों के लिए 3 चयनित
बीसी-ए: 85 पदों के लिए 3 चयनित
ईडब्ल्यूएस: 60 पदों के लिए 6 चयनित
“ये आंकड़े प्रणालीगत समस्याओं की ओर इशारा करते हैं, न कि उम्मीदवारों की क्षमता की कमी को,” धुल ने कहा, यह बताते हुए कि कई अस्वीकार्य उम्मीदवार NET योग्य हैं, PhD होल्डर हैं, या मजबूत अकादमिक रिकॉर्ड रखते हैं।
उम्मीदवारों ने ‘मनमानी’ का आरोप लगाया, मूल्यांकन पर सवाल उठाए
निराश उम्मीदवारों ने HPSC से निम्नलिखित मांगें की हैं:
मूल्यांकन पद्धति की पुनः जांच की जाए
अंकगणना और संकलन की पुनः जांच की जाए
शॉर्टलिस्टिंग के निर्धारित मानदंडों का पालन सुनिश्चित किया जाए
कई का कहना है कि NET योग्य और PhD धारक उम्मीदवारों को कड़े लिखित परीक्षा कटऑफ के माध्यम से बाहर करना संविधान द्वारा दी गई अनुच्छेद 14 और 16 के तहत दी गई निष्पक्षता और गैर-मनमानी की सुरक्षा का उल्लंघन है।
उच्च स्कोर होने के बावजूद अंतिम परीक्षा में असफलता
निराशा और बढ़ी जब स्क्रीनिंग टेस्ट में अच्छे अंक पाने वाले कई उम्मीदवार अंतिम लिखित परीक्षा में असफल हो गए।
एक PhD धारक ने कहा, “मैंने स्क्रीनिंग टेस्ट में 100 में से 77 अंक प्राप्त किए, जबकि सामान्य कटऑफ 66 था। मेरी मास्टर की प्रतिशतता 62 थी, फिर भी मुझे असफल घोषित कर दिया गया।”
एक अन्य उम्मीदवार ने कहा, “जिन उम्मीदवारों ने स्क्रीनिंग परीक्षा में 90 अंक प्राप्त किए, वे सूची में नहीं आए। HPSC को उत्तर पुस्तिकाएँ जारी करनी चाहिए और मूल्यांकन पद्धति का खुलासा करना चाहिए।”
कई उम्मीदवारों का कहना है कि वे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख करने की योजना बना रहे हैं, क्योंकि उन्हें पारदर्शिता की कमी और असफल उम्मीदवारों के अंक न घोषित करने की शिकायत है।
HPSC ने प्रक्रिया का बचाव किया
हालांकि, HPSC अधिकारियों ने परिणामों का बचाव किया। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सभी 15 वर्णनात्मक प्रश्नों का मूल्यांकन एक ही विशेषज्ञ द्वारा किया गया था ताकि एकरूपता सुनिश्चित हो सके। इस बीच में, हरियाणा के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री कृष्ण बेदी ने आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के एक प्रतिनिधिमंडल से मिलने का वादा किया है ताकि मामले को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और HPSC के समक्ष उठाया जा सके।
जब न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में पदभार संभाला, तो वह भारतीय न्यायपालिका की सबसे महत्वपूर्ण भूमिकाओं में से एक में कदम रख रहे हैं, जब न्यायिक प्रणाली कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है। सीजेआई सूर्यकांत के लिए आगे का रास्ता विशाल मुकदमों के बैकलॉग से लेकर न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा, न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार से लेकर हाशिए पर रहे समुदायों के लिए न्याय सुनिश्चित करने तक कई मुद्दों से भरा हुआ है।
एक सबसे तत्काल और कठिन चुनौती है न्यायिक बैकलॉग। पूरे देश में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, और न्याय प्रणाली में देरी एक महामारी बन चुकी है। इसने यह धारणा बनाई है कि सामान्य आदमी के लिए न्याय प्राप्त करना असंभव सा हो गया है। सीजेआई के रूप में, सूर्यकांत को उन सुधारों का समर्थन करना होगा जो न्यायालय प्रणाली की कार्यकुशलता को बढ़ाएं। इसमें बेंच की ताकत बढ़ाना, अधिक प्रभावी केस प्रबंधन रणनीतियाँ लागू करना, और अदालतों की प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करके सुनवाईयों को तेज़ करना शामिल है।
इसके साथ ही, सीजेआई सूर्यकांत को न्यायपालिका की स्वतंत्रता की सख्त रक्षा करनी होगी। ऐसे माहौल में, जहाँ कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच की रेखाएँ अक्सर धुंधली होती हैं, न्यायिक स्वायत्तता को बनाए रखना एक निरंतर चुनौती है। सूर्यकांत के संविधानिक मूल्यों के प्रति समर्पण को देखते हुए, उनकी नेतृत्व क्षमता न्यायिक स्वतंत्रता का समर्थन करती रहेगी और न्यायपालिका के अधिकारों पर किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप के खिलाफ खड़ा रहेगा, खासकर उन विवादास्पद मामलों में जो सार्वजनिक हित से जुड़े हैं।
न्यायिक नियुक्तियों की पारदर्शिता और कार्यकुशलता, जो लंबे समय से विवाद का कारण रही है, को ध्यान में रखना होगा। भले ही कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना हुई हो, किसी भी सुधार को पारदर्शिता और न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए संतुलित करना आवश्यक होगा। सीजेआई सूर्यकांत का नेतृत्व उन सुधारों को प्रेरित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है जो न्यायिक प्रणाली को पारदर्शी और योग्यतापूर्ण बनाए रखें।
हाशिए पर और आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों के लिए न्याय तक पहुँच का मुद्दा एक महत्वपूर्ण चिंता बनी हुई है। न्यायपालिका की सामाजिक परिवर्तन में बढ़ती भूमिका के बावजूद, लाखों भारतीयों के लिए कानूनी उपचारों तक पहुँचने में बड़ी बाधाएँ हैं। न्याय को अधिक किफायती और सुलभ बनाना उनकी सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता का महत्वपूर्ण संकेतक होगा।
संकट के दौरान न्यायिक कार्यों को बनाए रखने में आभासी सुनवाई और ऑनलाइन फ़ाइलिंग प्रणालियाँ प्रभावी साबित हुई हैं। हालांकि, तकनीकी विकास को सभी के लिए सुलभ बनाना आवश्यक है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ डिजिटल विभाजन एक बड़ी बाधा बना हुआ है। सीजेआई सूर्यकांत का कानूनी प्रणाली में तकनीक को एकीकृत करने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करना, साथ ही समावेशिता सुनिश्चित करना, उनके कार्यकाल के प्रमुख पहलुओं में से एक हो सकता है।
सीजेआई सूर्यकांत का नेतृत्व इस बात पर परखा जाएगा कि वह तात्कालिक सुधारों को न्यायपालिका के मूल सिद्धांतों की दीर्घकालिक सुरक्षा के साथ किस प्रकार संतुलित करते हैं। चुनौतियाँ कई हैं, लेकिन न्यायिक प्रणाली पर स्थायी प्रभाव छोड़ने का अवसर विशाल है। यदि वह इन जटिलताओं को संभालने में सक्षम हो पाए, तो उनका कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।
जहां तक तहलका के कवर स्टोरी “ए.आई.: एक द्वैध-धार वाली तलवार!” का सवाल है, यह बताती है कि कैसे ए.आई. समृद्धि के युग की शुरुआत कर सकता है, लेकिन यदि इसे नियंत्रण में न रखा गया तो इसका हानि का दायरा इसके फायदों से कहीं अधिक हो सकता है, जो न केवल गोपनीयता उल्लंघन या गलत सूचना तक सीमित नहीं है। हमारी विशेष जांच टीम यह पता लगाती है कि दिल्ली लाल किले में विस्फोट ने एक पांडोरा बॉक्स खोल दिया है, खासकर उन डॉक्टरों के लिए जो पाकिस्तान से प्रशिक्षित थे। तहलका के कैमरे पर पकड़े गए एजेंट्स पुष्टि करते हैं कि उन्होंने हुर्रियत की सिफारिशों पर पाकिस्तान में एमबीबीएस डिग्री के लिए उम्मीदवार भेजे थे।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) निस्संदेह 21वीं सदी की सबसे क्रांतिकारी तकनीकों में से एक है। आज दुनिया एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ यदि AI को सावधानी, नैतिकता और मजबूत विनियमों के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो यह मानवता के लिए नए युग की समृद्धि और कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। लेकिन यदि इसे बिना नियंत्रण और बिना जिम्मेदारी के बढ़ने दिया गया, तो इसके दुष्परिणाम उसके फायदों से कहीं अधिक भारी पड़ सकते हैं।
AI और तकनीकी मंचों से जुड़ा खतरा सिर्फ प्राइवेसी उल्लंघन या गलत सूचना तक सीमित नहीं है। हाल ही में Meta (पूर्व में Facebook) से जुड़ी एक गंभीर नैतिक चूक का खुलासा हुआ। एक मुकदमे के दस्तावेज़ों में पता चला कि कंपनी ने अपने प्लेटफॉर्म्स के युवा उपयोगकर्ताओं विशेषकर किशोरों पर पड़ने वाले मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों से जुड़े आंतरिक शोध को इसलिए बंद कर दिया क्योंकि वह उनके व्यवसाय को नुकसान पहुँचा सकता था।
शोध में स्पष्ट पाया गया कि Facebook और Instagram जैसे प्लेटफॉर्म्स चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक समस्याओं को बढ़ा रहे थे। लेकिन इन नतीजों को स्वीकारने के बजाय Meta ने कथित रूप से इसे दबाने का रास्ता चुना। यह न सिर्फ कॉर्पोरेट गैर-जिम्मेदारी का उदाहरण है, बल्कि यह बताता है कि AI-आधारित तकनीकें समाज के मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर रही हैं।
ऐसे मामले इस बात की ओर संकेत करते हैं कि कंपनियाँ अक्सर लाभ को उपयोगकर्ताओं की भलाई से ऊपर रखती हैं। यही कारण है कि AI और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित करने के लिए कठोर नैतिक ढाँचे और नियामक निगरानी अनिवार्य हो गई है।
प्रधानमंत्री मोदी की चिंताएं: लाभ और खतरे—दोनों वास्तविक
G20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने AI की अपार संभावनाओं के साथ-साथ उसके दुरुपयोग की आशंका पर भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि AI दुनिया में अभूतपूर्व बदलाव ला सकता है।स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और शासन के स्तर पर। लेकिन साथ ही यह शक्तिशाली तकनीक गलत हाथों में जाकर विनाशकारी भी साबित हो सकती है।
G20 सत्र “A Fair and Just Future for All” को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि तकनीकी विकास मानव-केंद्रित, वैश्विक, और ओपन-सोर्स होना चाहिए ,न कि सिर्फ लाभ कमाने के उद्देश्य से।
उन्होंने बताया कि भारत ने इंडिया-AI मिशन के तहत हाई-परफॉर्मेंस कंप्यूटिंग को सबके लिए सुलभ बनाने की दिशा में काम शुरू किया है ताकि AI के लाभ ग्रामीण भारत से लेकर शहरों तक समान रूप से पहुँच सकें।
प्रधानमंत्री ने पारदर्शिता, मानव निगरानी, सुरक्षा और दुरुपयोग रोकथाम पर आधारित एक वैश्विक AI नियम-कानून का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि AI मानव क्षमताओं का विस्तार तो कर सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय हमेशा मनुष्यों के हाथ में होना चाहिए।
भारत 2026 में AI Impact Summit आयोजित करेगा, जिसका विषय होगा—“सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय”।
AI: अपार संभावनाएँ
1. स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति
AI अब एक्स-रे और MRI जैसी चिकित्सा छवियों का विश्लेषण करके कई बीमारियों की पहचान डॉक्टरों से भी अधिक सटीकता से कर रहा है।
यह दवा और वैक्सीन विकास को भी तेज बनाता है—COVID-19 वैक्सीन इसका उदाहरण है।
2. शिक्षा के क्षेत्र में नए आयाम
AI आधारित शिक्षा प्लेटफॉर्म विद्यार्थियों के स्तर और आवश्यकता के अनुसार सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं।
शिक्षक प्रशासनिक कार्यों से मुक्त होकर शिक्षण पर अधिक ध्यान दे पा रहे हैं।
3. अर्थव्यवस्था और उद्योग में परिवर्तन
AI ने विनिर्माण, वित्त, परिवहन, कृषि और आपूर्ति श्रृंखला में दक्षता बढ़ाई है।
यह उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए leapfrog करने का अवसर भी प्रदान करता है—जहाँ वे पारंपरिक चरणों को पार करते हुए सीधे उन्नत तकनीकों तक पहुँच सकती हैं।
AI के खतरे , जिनसे सावधान रहना जरूरी
1. प्राइवेसी और निगरानी का खतरा
AI आधारित निगरानी सिस्टम सरकारों और कंपनियों को नागरिकों की गतिविधियों पर चौबीसों घंटे नजर रखने की क्षमता देते हैं।
चेहरा पहचान तकनीक का दुरुपयोग नागरिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।
2. रोजगार संकट
AI कई पारंपरिक नौकरियों को खत्म कर सकता है, खासकर वे जो दोहराव वाली हैं।
नई नौकरियों के लिए उन्नत कौशल की आवश्यकता होगी, जिसे हर व्यक्ति आसानी से नहीं सीख पाएगा—यह असमानता को गहरा कर सकता है।
3. गलत सूचना और डीपफेक
AI-जनित डीपफेक वीडियो राजनीति, समाज और संस्थाओं में अविश्वास पैदा कर सकते हैं।
AI-संचालित बॉट्स चुनावों और जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
4. स्वचालित हथियार
AI स्वचालित हथियारों का निर्माण युद्ध को अधिक विनाशकारी और अनियंत्रित बना सकता है।
यदि कोई ड्रोन या रोबोट बिना मानव नियंत्रण के हमला करता है, तो जिम्मेदार कौन होगा?
जिम्मेदार AI के लिए वैश्विक नियम अनिवार्य
प्रधानमंत्री मोदी की बात बिल्कुल सही है—AI के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए वैश्विक सहमति आवश्यक है।
1. वैश्विक नैतिक ढाँचा
AI पारदर्शी हो, जवाबदेह हो, और निष्पक्ष हो—इसके लिए अंतरराष्ट्रीय नियम बनाए जाने चाहिए।
2. न्यायसंगत और समावेशी AI
AI मॉडल में लैंगिक या सामाजिक पक्षपात न हो।
क्रेडिट स्कोरिंग, भर्ती, स्वास्थ्य सेवाओं आदि में AI का उपयोग निष्पक्ष होना चाहिए।
3. पुनः कौशल विकास (Reskilling)
सरकारों और उद्योगों को मिलकर प्रशिक्षण और कौशल-विकास कार्यक्रम शुरू करने चाहिए ताकि लोग AI-युग की नौकरियों के लिए तैयार हो सकें।
4. स्वचालित हथियारों पर नियंत्रण
संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक संधियाँ बनानी चाहिए जिससे हथियारों में AI का दुरुपयोग रोका जा सके।
2022 में तहलका की विशेष जांच टीम ने एक चौंकाने वाली स्टोरी का खुलासा किया था कि कैसे हुर्रियत एजेंट पैसे के बदले कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस कोर्स के लिए पाकिस्तान भेजते हैं। तहलका की इस स्टोरी के लगभग तीन साल बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), दिल्ली पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पतालों और क्लीनिकों को पत्र लिखकर उन डॉक्टरों का ब्यौरा मांगा है, जिन्होंने पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात और चीन से अपनी मेडिकल डिग्री हासिल की है, यह जानकारी एक राष्ट्रीय दैनिक में छपी खबर में दी गई है। यह संपर्क अभियान दिल्ली के लाल किले के पास 10 नवंबर को हुए आत्मघाती बम विस्फोट के लिए जिम्मेदार पुलवामा-फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल की चल रही जांच के बीच सामने आया है, जिसमें कई निर्दोष लोग मारे गए थे। मॉड्यूल के अधिकांश सदस्य डॉक्टर हैं और जांचकर्ताओं को संदेह है कि जांच के दायरे में आए कुछ लोगों ने पाकिस्तान, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात या चीन से एमबीबीएस, एमडी या एमएस की डिग्री हासिल की होगी। अधिकारियों ने बताया कि इस अभ्यास का उद्देश्य मॉड्यूल के सदस्यों के संभावित सहयोगियों या समर्थकों का पता लगाना है। रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारियों ने कहा कि एजेंसियां इन चार देशों से डिग्री हासिल करने वाले सभी डॉक्टरों से पूछताछ करेंगी। मॉड्यूल के साथ किसी भी तरह के संबंध को खारिज करने के लिए उनके आपराधिक इतिहास और वित्तीय लेन-देन की जांच की जाएगी। हालांकि अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई निवारक प्रकृति की थी और इससे किसी भी तरह से विदेशी प्रशिक्षित डॉक्टरों पर संदेह नहीं किया गया। केवल तहलका ही नहीं है, जिसने हुर्रियत एजेंटों द्वारा कश्मीरी युवकों को पैसे के बदले एमबीबीएस सीटों के लिए पाकिस्तान भेजने का मुद्दा उठाया था। 2018 में आतंकी फंडिंग मामले में दायर आरोप पत्र में एनआईए ने कहा था कि पाकिस्तान कश्मीरी छात्रों को पाकिस्तान की ओर झुकाव वाली पीढ़ी तैयार करने के लिए छात्रवृत्ति दे रहा है। पड़ोसी देश में छात्र वीजा पर आए अधिकांश युवा आतंकवादियों के रिश्तेदार थे। जांच के दौरान यह पता चला कि छात्र वीजा पर पाकिस्तान जाने वाले छात्र या तो पूर्व आतंकवादियों के रिश्तेदार थे, जो विभिन्न राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल थे और पाकिस्तान चले गए थे, या वे हुर्रियत नेताओं के परिचित थे। एजेंसी ने यह भी दावा किया कि उनके वीजा आवेदनों की सिफारिश विभिन्न हुर्रियत नेताओं द्वारा नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग को की गई थी। ‘यह एक त्रिकोणीय गठजोड़ को दर्शाता है, जिसमें आतंकवादी, हुर्रियत और पाकिस्तानी प्रतिष्ठान तीन मुख्य कड़ी हैं और वे कश्मीरी छात्रों को संरक्षण दे रहे हैं, ताकि कश्मीर में डॉक्टरों और टेक्नोक्रेट्स की एक ऐसी पीढ़ी तैयार की जा सके, जिनका झुकाव पाकिस्तान की ओर हो।’ -एनआईए ने विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा प्रकाशित आरोप पत्र में कहा। एनआईए ने हुर्रियत नेता नईम खान के घर से एक दस्तावेज जब्त किया है, जिसमें एक छात्रा को पाकिस्तान के एक मानक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश देने की सिफारिश की गई है, क्योंकि उसका परिवार हर परिस्थिति में स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रतिबद्ध रहा है। जम्मू और कश्मीर पुलिस ने अगस्त, 2021 में एक बड़े गठजोड़ का खुलासा किया, जिसमें घाटी के छात्रों को एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए पाकिस्तान भेजा जाता था और उनके माता-पिता से लिए गए पैसे का इस्तेमाल केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादी गतिविधियों के वित्तपोषण के लिए किया जाता था। इन एमबीबीएस सीटों को बेचकर जुटाई गई धनराशि का इस्तेमाल घाटी में आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए किया गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा कि साक्ष्यों से यह भी पता चला है कि इस धन का इस्तेमाल पत्थरबाजी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए किया गया था। सूत्रों ने खुलासा किया कि 2020 में काउंटर इंटेलिजेंस विंग, कश्मीर ने विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त करने के बाद एक मामला दर्ज किया था कि कुछ हुर्रियत नेताओं सहित कई बेईमान व्यक्ति कुछ शैक्षिक परामर्शदाताओं के साथ मिले हुए थे और पाकिस्तान स्थित एमबीबीएस सीटें और अन्य पेशेवर पाठ्यक्रम सीटें बेच रहे थे। दो दशकों से अधिक समय से पाकिस्तान सरकार अपने सभी व्यावसायिक पाठ्यक्रमों, विशेषकर मेडिकल और इंजीनियरिंग में जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए विशेष कोटा आरक्षित करती रही है। जम्मू और कश्मीर के छात्रों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है:- (अ) वे जो पाकिस्तान के शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से विदेशी-छात्र सीटों के तहत प्रवेश के लिए आवेदन करते हैं, और (ब) वे जो छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत आवेदन करते हैं। विदेशी-छात्र सीटों के माध्यम से आवेदन करने वाले छात्रों को किसी भी विदेशी छात्र द्वारा दी जाने वाली सामान्य फीस का भुगतान करना होगा। हालांकि छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत छात्रों को 100 प्रतिशत छात्रवृत्ति, निःशुल्क आवास और प्रतिदिन भत्ता दिया जाता है। जिन छात्रों के माता-पिता या करीबी रिश्तेदार कश्मीर में सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए हैं या भारतीय बलों के हाथों पीड़ित हुए हैं, उन्हें छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत सीटों के लिए प्राथमिकता दी जाती है। हर साल लगभग 50 छात्र केवल एमबीबीएस के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत पाकिस्तान जाते हैं, जबकि इतनी ही संख्या में छात्र अन्य पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्राप्त करते हैं। हालांकि प्रवेश के लिए एक कट-ऑफ प्रतिशत निर्धारित है, लेकिन छात्रवृत्ति कार्यक्रम के अंतर्गत छात्रों के लिए सिफारिशें हुर्रियत नेताओं द्वारा की जाती हैं। पिछले कुछ वर्षों से यह आरोप लगाया जाता रहा है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के दोनों गुटों ने पाकिस्तान में व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्रों को सिफारिश पत्र जारी किए हैं। यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ हुर्रियत नेताओं ने सिफारिश पत्र जारी करने से पहले छात्रों से पैसे की मांग की और पाकिस्तान सरकार द्वारा निर्धारित बुनियादी मानदंडों का उल्लंघन किया गया। यहां तक कि आरोप यह भी थे कि कुछ पुलिस अधिकारियों के बच्चों ने अलगाववादी नेताओं से सिफारिशी पत्र भी हासिल कर लिए। चूंकि कश्मीर में व्यावसायिक कॉलेज बहुत कम हैं, इसलिए छात्र चिकित्सा की पढ़ाई के लिए विदेश चले जाते हैं- पहले रूस और अब बांग्लादेश और पाकिस्तान। हालांकि पाकिस्तान में पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत सस्ते और बेहतर गुणवत्ता वाले हैं, लेकिन जब हुर्रियत के सिफारिशी पत्रों ने उन्हें छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत 100 प्रतिशत मुफ्त शिक्षा के लिए पात्र बना दिया, तो पाकिस्तान जाने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई। दूसरी ओर हुर्रियत ने हमेशा इस बात से इनकार किया है कि उसके नेता कश्मीर में आतंकवाद को वित्तपोषित करने के लिए पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश बेचने में शामिल थे। हुर्रियत ने कहा कि वह यह रिकॉर्ड में दर्ज करना चाहता है कि यह पूरी तरह से निराधार है और जिन छात्रों या अभिभावकों की हमने सिफारिश की है कि वे इसकी पुष्टि कर सकते हैं, उनमें से कई छात्र आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से हैं। दिल्ली के लाल किले में हुए विस्फोट के बाद जहां आतंकी मॉड्यूल के अधिकांश सदस्य डॉक्टर हैं, जांचकर्ताओं का ध्यान उन डॉक्टरों पर केंद्रित हो गया है, जिन्होंने पाकिस्तान से अपनी मेडिकल डिग्री प्राप्त की है। लेकिन तहलका एक बार फिर 2022 की तरह उन लोगों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जिन्होंने हुर्रियत नेताओं की सिफारिशों पर पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटें हासिल की हैं। अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद की गई तहलका की पड़ताल में पाया गया कि हुर्रियत से जुड़े एजेंट और गैर-लाभकारी संगठन पाकिस्तानी कॉलेजों में कश्मीरी छात्रों के लिए कथित रूप से आरक्षित मेडिकल सीटें बेच रहे हैं। तहलका ने पाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक सुनियोजित प्रणाली चल रही है, जो पाकिस्तानी कॉलेजों के साथ मिलकर परीक्षा में नकल और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा में धोखाधड़ी को अंजाम दे रही है तथा सीमा के इस ओर अलगाववादी और उनके सहयोगी भी इसमें शामिल हैं। राष्ट्र और जनहित में तहलका इस पड़ताल को कुछ नए पात्रों के साथ पुनः प्रस्तुत कर रहा है। ‘मेरे एनजीओ में एक उग्रवादी परिवार की एक अनाथ लड़की पढ़ती थी। हुर्रियत की सिफारिश पर उन्हें एमबीबीएस की डिग्री के लिए पाकिस्तान भेजा गया था।’ -कश्मीर के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता जहूर अहमद टाक ने कहा।
‘मैं पाकिस्तान गया और एक हुर्रियत नेता की सिफारिश पर मेरे वीजा की व्यवस्था हुई। दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने हुर्रियत नेता से सिफारिशी पत्र मिलने के बाद मुझे वीजा देने में कोई देरी नहीं की। इससे पहले उन्होंने मुझे वीजा देने से इनकार कर दिया था।’ -टाक ने कहा ‘हुर्रियत ने कश्मीरी आतंकवादियों के बच्चों के लिए पाकिस्तान से कोटा लिया है, जिन्हें वे अपने सिफारिशी पत्रों पर चिकित्सा और अन्य तकनीकी डिग्री के लिए भेजते हैं। वे इसके लिए पैसे लेते हैं। अब तक उन्होंने कई कश्मीरियों को पढ़ाई के लिए पाकिस्तान भेजा है, जो छात्रवृत्ति योजना के तहत मुफ्त में प्रदान की जाती है।’ -टाक ने आगे कहा। ‘जब मैं पाकिस्तान गया तो मैंने पाकिस्तानी अधिकारियों से भी कुछ कोटा देने को कहा, क्योंकि मैं कश्मीर में अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाता हूं। वार्ता उन्नत स्तर पर पहुंच गई थी, लेकिन अंत में अटक गई।’ -टाक ने कहा। ‘पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद एक यूरोपीय शहर की तरह बनी है। मुझे इस्लामाबाद बहुत पसंद आया। राजधानी के तौर पर दिल्ली, इस्लामाबाद के सामने कुछ भी नहीं है।’ -टाक ने तहलका के रिपोर्टर से कहा। ‘यदि आपका कोई परिचित पाकिस्तान जाने में रुचि रखता है। मैं हुर्रियत नेताओं की सिफारिश पर उसे पाकिस्तानी वीजा दिलाने में मदद कर सकता हूं।’ -टाक ने आगे कहा। वरिष्ठ कश्मीरी सामाजिक कार्यकर्ता जहूर अहमद टाक, जिसके एनजीओ के लिए यूरोप से पर्याप्त विदेशी फंडिंग थी और हुर्रियत के भीतर अच्छे संबंध थे; अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद दिल्ली में तहलका के रिपोर्टर से मिलने आया। जहूर दिल्ली इसलिए आया, क्योंकि उनके एनजीओ का विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस गृह मंत्रालय द्वारा बहुत पहले रद्द कर दिया गया था, क्योंकि उन पर आरोप था कि उनके एक ट्रस्ट निदेशक का आतंकवादियों से संबंध है। आज तक उसका एफसीआरए लाइसेंस बहाल नहीं किया गया है। जहूर ने तहलका के रिपोर्टर के सामने स्वीकार किया कि वह हुर्रियत नेताओं से बात करेगा कि वे हमारे फर्जी कश्मीरी छात्रों को हुर्रियत की सिफारिशों पर छात्रवृत्ति योजना के तहत एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लेने के लिए पाकिस्तान भेजें। टाक के अनुसार, हुर्रियत ने पाकिस्तान के कॉलेजों में कश्मीरी आतंकवादियों के बच्चों के लिए कोटा सुनिश्चित किया है, जिन्हें वह अपने सिफारिश पत्रों पर चिकित्सा और अन्य पेशेवर डिग्री के लिए भेजता है। वह इसके लिए पैसे लेता है। अब तक वह कई कश्मीरी युवाओं को छात्रवृत्ति योजना के तहत मुफ्त मिलने वाली मेडिकल की पढ़ाई के लिए पाकिस्तान भेज चुका है।’ -टाक ने जोड़ा। निम्नलिखित बातचीत में जहूर ने खुलासा किया है कि किस प्रकार पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटों को निजी नेटवर्क और हुर्रियत से जुड़े चैनलों के माध्यम से संचालित किया जाता है। वह एक ऐसी प्रणाली का वर्णन करते हैं, जिसमें मारे गए आतंकवादियों के बच्चों के लिए छात्रवृत्ति को प्रभावी और पक्षपात के माध्यम से चुपचाप बढ़ाया जाता है।
रिपोर्टर : वो एमबीबीएस वाला? जहूर : एमबीबीएस का उन्होंने कहा है, ये सेशन खतम हो गया है, नया सेशन शुरू होगा तो हम आपको बता देंगे। रिपोर्टर : ये किससे बात हुई आपकी? जहूर : ये हुर्रियत का एक ग्रुप है, …वो XXXXX वाला। रिपोर्टर : इनका तरीका क्या है एमबीबीएस का? जहूर : इनके अपने लोग हैं वहां। रिपोर्टर : पाकिस्तान में? जहूर : हां। रिपोर्टर : तो उसमें पैसे तो नहीं लगते, एमबीबीएस में? जहूर : वो तो पैसे नहीं ले रहे हैं, लेकिन ये पैसा लेते हैं। रिपोर्टर : कौन? हुर्रियत वाले? जहूर : उन्होंने इनको वहां कोटा दिया हुआ है, इसलिए इन्होंने वहां अपने रिश्तेदार हैं, उनको वहां भेज दिया है। रिपोर्टर : हुर्रियत वालों ने या कश्मीर के लोगों ने? जहूर : कश्मीर के लोगों ने भी और हुर्रियत वालों ने भी। रिपोर्टर : काफी लोग पाकिस्तान चले गए हैं? जहूर : बहुत चले गए हैं। रिपोर्टर : एमबीबीएस करने या वैसे ही? जहूर : नहीं-नहीं, एमबीबीएस करने। अब उसमें उन्होंने ये रखा था कंडीशन कि ये बच्चा जो है, ये किसी ऐसे मिलिटेंट का बच्चा होना चाहिए, जो शहीद हो गया है। रिपोर्टर : अच्छा, ये कंडीशन है पाकिस्तान की? जहूर : हां, लेकिन उसके साथ अपना भी कोटा वहां पैदा कर दिया हुर्रियत वालों ने, वहां मांगकर उनसे ले लिया। एक, दो, तीन, चार… कुछ न कुछ भेज देते हैं, अब उसको भी बताते हैं अगरचे शहीद का नहीं है, लेकिन हुर्रियत में है, परेशान है, जेल में है, या पकड़-जकड़ में है।
जहूर ने तहलका रिपोर्टर से बातचीत में स्वीकार किया कि उसके एनजीओ में पढ़ने वाली एक आतंकवादी की अनाथ बेटी को हुर्रियत की सिफारिश पर एमबीबीएस की डिग्री के लिए पाकिस्तान भेजा गया था। उसने इस बात पर जोर दिया कि उनके संगठन ने केवल उसे शिक्षित करने में ही भूमिका निभाई, जबकि प्रवेश की व्यवस्था भी स्वतंत्र रूप से की गई। रिपोर्टर : तो आपने XXXX ट्रस्ट की एक लड़की जिसको आपने एमबीबीएस करवाया पाकिस्तान में, वो किस तरीके से करवाया? जहूर : वो तो मिलिटेंट की बच्ची थी, हमारी नहीं थी, वो मिलिटेंट की बच्ची थी। रिपोर्टर : अच्छा, आपके ट्रस्ट की थी? जहूर : अलबत्ता वो पढ़ रही थी, हमारा उसमें कोई रोल नहीं था, रोल था सिर्फ इतना कि हमने उसको पढ़ाया-लिखाया, क्यूंकि वो मिलिटेंट की बच्ची थी, तो उसके घर वालों ने वहां राब्ता किया था। रिपोर्टर : पाकिस्तान में? जहूर : पाकिस्तान में, तो इस तरह से उनका हो गया।
अब जहूर अहमद टाक ने एक और खुलासा किया। उसने कहा कि वह पाकिस्तान गया था और उसका वीजा एक हुर्रियत नेता की सिफारिश पर दिया गया था। उसके अनुसार, दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास ने नेता का सिफारिशी पत्र मिलने के बाद बिना देरी किए वीजा जारी कर दिया; इससे पहले उन्होंने वीजा देने से इनकार कर दिया था। रिपोर्टर : आपका क्या प्रोसीजर हुआ था सर, पाकिस्तान के वीजा का? जहूर : मैं एंबेसी गया था, मैं एक्चुअली दूसरे काम के लिए आया था, अचानक हमें पता चला कि वहां हमारी घर वाली के रिश्तेदार हैं। रिपोर्टर : पाकिस्तान में? जहूर : पाकिस्तान में, …तो उन्होंने फोन किया था घर की हमारी इस तरह से शादी हो रही है, आप प्लीज तशरीफ लाइए। घर वाली ने फोन किया कि वो फोन कर रहे हैं, तो हमें जाना चाहिए। नहीं जाएंगे, तो बुरा लगेगा उनको। फिर मेरे साथ दूसरे साहेब भी थे, हम गए पाकिस्तान एंबेसी में, उन्होंने साफ कहा- हम इस तरह से नहीं देंगे, कोई रिकमेंडेशन होनी चाहिए। तो मैंने फिर फोन किया XXXX साहेब को। मैंने कहा इस तरह से मसला है, फिर उन्होंने XXXX खान से बात की, तो उन्होंने फैक्स की एक लेटर यहां दिल्ली में, तो वो फैक्स लेटर लेकर हम वहां गए, तो हुआ। रिपोर्टर : पाक एंबेसी, दिल्ली में? जहूर : हां। रिपोर्टर : उसमें कितना टाइम लगा? जहूर : एक दिन में हो गया। रिपोर्टर : तो ये हुर्रियत के लेटर हेड पर रिकमंड किया होगा XXXX खान ने? जहूर : हां। जहूर : ये उन्होंने एक स्पेशल प्रोविजन रखा है लोगों की हेल्प करने के लिए, हुर्रियत वालों की वहां पर रिकॉग्नाइजेशन के लिए वर्ना वो क्या करते हैं, वो कुछ नहीं कर सकते।
जहूर ने हमें बताया कि जब वह पाकिस्तान गए थे, तो उन्होंने वहां के अधिकारियों से अनुरोध किया था कि उन्हें कोटा दिया जाए, क्योंकि वह कश्मीर में अनाथ बच्चों के लिए एक एनजीओ चलाते हैं। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी थी, लेकिन अंतिम चरण पर आकर अटक गई। रिपोर्टर : तो इस टाइप का कोटा तो आप भी ले सकते हैं पाकिस्तान से अपने लिए, XXXX साहेब बता रहे थे, कोशिश की थी आपने? जहूर : हमने की थी कोशिश और उन्होंने माना भी था, मगर तभी पाकिस्तान गवर्नमेंट ने, पता नहीं किस वजह से रुकावट आ गई, कि हम एनजीओज को ये नहीं करेंगे। रिपोर्टर : क्या प्रोसीजर था, किस तरीके से आपने शुरू किया था? जहूर : हमने उनको कहा था कि ये जैसे हुर्रियत वाले कोटा ले रहे हैं। रिपोर्टर : एमबीबीएस स्टूडेंट्स का? जहूर : हां, तो उसमें हमें भी कुछ कोटा दीजिए, हमने कहा हम मांग रहे हैं उन यतीम बच्चे और बच्चियों के लिए जिनका कोई नहीं है। वो अगर ले रहे हैं मिलिटेंट्स के बच्चे दूसरे बच्चे, हमारे पास मिलिटेंट्स के बच्चे नहीं हैं। हमारे पास सिर्फ ऑफेंस हैं, जिनका न मां है, न बाप है, न कोई है। अब यहां से उनका कोटा है, लेकिन कहीं-कहीं से उनको चलता ही नहीं, अगर आप ये करते तो। इन्होंने कहा था, पाकिस्तान एंबेसी वालों ने, कि हम उनके साथ बात करेंगे, इन्होंने कहा था मुझसे कि शायद वो कंसीडर करेंगे। रिपोर्टर : आप जब पाकिस्तान गए थे, तब बात हुई थी पाकिस्तान में? जहूर : हमारी वहां हो गई थी बात ये जो सेक्रेटरी किसम के आदमी थे, उनके साथ हमारी डायरेक्टली हुई थी और एक जान-पहचान का आदमी था, तो उसने हमारा राबता उसके साथ किया, तो उन्होंने कहा हम इसको एग्जामिन करेंगे, अगर पॉसिबल हुआ, तो करेंगे। पर वो पर्सनल हमने उनको लिखकर के दिया कि हम क्या चाहते हैं। हमारा मसला क्या है और हम किसलिए चाह रहे हैं।
इसके बाद तहलका रिपोर्टर ने जहूर को एक फर्जी सौदा पेश किया और कहा कि हमारा एक परिचित व्यापारी पाकिस्तान जाना चाहता है और उसे वीजा की जरूरत है। जहूर ने संवाददाता को आश्वासन दिया कि वह हुर्रियत की सिफारिश पर काल्पनिक व्यवसायी के लिए पाकिस्तान का वीजा दिलाने का प्रयास कर सकते हैं। इस बातचीत में जहूर ने कहा कि हुर्रियत नेता लगभग किसी का भी समर्थन कर सकते हैं, और पाकिस्तान द्वारा ऐसे समर्थन को शायद ही कभी अस्वीकार किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि प्रभाव कितनी आसानी से औपचारिक प्रतिबंधों को दरकिनार कर सकता है। रिपोर्टर : इसका सर थोड़ा अर्जेंट बेसिस पर वीजा का? जहूर : ये किन साहिब को जाना है? रिपोर्टर : मेरी एक नाउन हैं, मुस्लिम हैं यही रहती हैं दिल्ली में, जामा मस्जिद में। जहूर : करते क्या हैं? रिपोर्टर : बिजनेसमैन हैं। जहूर : अच्छा, ठीक है बिजनेसमैन को रिकमेंड करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए पॉलिटिशियन हो तो उनको प्रॉब्लम हो जाती है, बिजनेसमैन को नहीं होनी चाहिए। रिपोर्टर : क्यूंकि जो रिलेशन चल रहे हैं आजकल आपको उसमें मुश्किल है। जहूर : बहुत मुश्किल है। रिपोर्टर : ये नॉन कश्मीरी को रिकमेंड कर देंगे हुर्रियत के लोग? जहूर : किसी को भी कर सकते हैं इनको क्या है। रिपोर्टर : शायद उनको कोई कंडीशन हो कि कश्मीर के ही बंदे को करेंगे रिकमेंड ये सब? जहूर : मुझे वो तो पता नहीं है, मगर मेरा ऐसा मानना है कि वो जिसको रिकमेंड करते हैं, उसको वो नकारते नहीं हैं। रिपोर्टर : अच्छा, पाकिस्तान नकारता नहीं है? जहूर : नहीं नकारता।
इसके बाद जहूर ने पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि इसे यूरोपीय शहर की तरह बनाया गया है। टाक ने कहा कि उन्होंने बताया कि उन्हें इस्लामाबाद बहुत पसंद है और राजधानी के रूप में दिल्ली उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है। जहूर : मैं इस्लामाबाद गया था। रावलपिंडी, मैं यूरोप भी गया हूं। यूरोप और इस्लामाबाद में देखने लायक है। मतलब उसका ऐसे बनाया हुआ है कि बहुत हैरान होता है आदमी, इस्लामाबाद में नहीं और यूरोप में भी। रिपोर्टर : इतना अच्छा है उनका कैपिटल? जहूर : बहुत उम्दा। रिपोर्टर : दिल्ली से बेटर है? जहूर : दिल्ली तो कुछ भी नहीं है।
पाकिस्तान में एमबीबीएस दाखिले के बारे में हाल ही में जब जहूर से संपर्क किया गया, तो उसने तहलका रिपोर्टर को बताया कि वर्तमान स्थिति वहां प्रवेश पाने के लिए अनुकूल नहीं है। इसके बाद तहलका के रिपोर्टर ने अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में हुर्रियत के एजेंट सज्जाद मीर से भी मुलाकात की। सज्जाद ने संदिग्ध रैकेट की जांच कर रहे तहलका के अंडरकवर पत्रकार को पाकिस्तानी मेडिकल स्लॉट की पेशकश करने के लिए दिल्ली की यात्रा की। दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में उनसे मिलने के तुरंत बाद सज्जाद मीर ने तहलका रिपोर्टर के सामने अपनी प्रवेश योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस बातचीत में एजेंट यह बताता है कि पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश किस प्रकार आसानी से मिल जाता है, बशर्ते अंक अच्छे हों और पैसा तैयार हो। वह कागजी कार्रवाई समझाता है और यह भी आश्वासन देता है कि चयन की गारंटी है, चाहे परीक्षा हो या न हो। सज्जाद मीर : अभी चार एडमीशन भेजो आप। रिपोर्टर : चार लड़के? सज्जाद मीर : परसेंट एट्टी प्लस होने चाहिए। रिपोर्टर : ट्वेल्थ में, एट्टी प्लस? सज्जाद मीर : हां, नीट क्वालीफाई होना चाहिए। रिपोर्टर : नीट क्वालीफाई होगा पाकिस्तान के लिए? सज्जाद मीर : पाकिस्तान के लिए। रिपोर्टर : खर्चा सर? सज्जाद मीर : 15-16 लाख। रिपोर्टर : मतलब, ये आपको देना पड़ेगा? सज्जाद मीर : जी। रिपोर्टर : मतलब एक कैंडिडेट का 15 लाख रुपए? सज्जाद मीर : एक कैंडिडेट का, ….पिछले साल का यही रेट था। इस साल का तो पता नहीं, अभी तो नीट अभी हुआ है, एक-दो लाख एक्स्ट्रा होंगे या कम होंगे या बराबर होंगे, अभी पता नहीं। रिपोर्टर : प्रोसीजर क्या है एक बार जरा समझा दीजिए? सज्जाद मीर : फॉर्म भरना है। वो जो हमारे बंदे हैं, वो ऑनलाइन भेज देंगे वहां पर। वहां से लिस्ट निकलेगा एग्जाम के लिए, जो सिलेक्ट होगा उसको एग्जाम देना है। वहां पर फेल होंगे पास होंगे, उनका एडमिशन होना ही होना है। वो सर्टिफाइड है अगर एग्जाम में फेल होगा, तो उसको पढ़ने नहीं देते वहां पर, अगर हमारा बंदा फेल भी हो जाएगा, तब भी सिलेक्शन है।
सज्जाद मीर ने बताया कि किस प्रकार कश्मीरियों को पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए लाभ दिया जा रहा है। इस संक्षिप्त बातचीत में एजेंट ने पाकिस्तान में एमबीबीएस सीट चाहने वाले कश्मीरियों को दिए जाने वाले विशेष लाभ के बारे में बताया। उसने कहा कि विफलता उनके लिए कभी चिंता का विषय नहीं होती तथा उनके आवेदनों के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है। सज्जाद मीर : वहां तो वो करते ही नहीं हैं, कश्मीरियों का वो डील है, उनके लिए फेल-वेल का मसला ही नहीं है। रिपोर्टर : पाकिस्तान में? सज्जाद मीर : पाकिस्तान में वो बेनिफिट देखते हैं कश्मीरियों का। रिपोर्टर : ओके। सज्जाद मीर : कश्मीरियों को ये बेनिफिट्स है।
बातचीत आगे बढ़ी, तो सज्जाद मीर ने तहलका के खोजी पत्रकार को पाकिस्तान में प्रवेश पाने के लिए भुगतान के तरीके के बारे में बताया। उसने वित्तीय व्यवस्था का विवरण देते हुए बताया कि फॉर्म भरने से पहले ही आधा भुगतान कर दिया जाना चाहिए। इस चर्चा से सम्पूर्ण प्रक्रिया की लेन-देन संबंधी प्रकृति का पता चलता है। रिपोर्टर : पैसा कब देना है एडवांस? सज्जाद मीर : 50 परसेंट पहले देने हैं, जब फॉर्म भरेंगें। 50 परसेंट तब, जब वहां से (पाकिस्तान से) कॉल लेटर आएंगे उसके बाद। रिपोर्टर : मतलब 16 लाख का 8 लाख अभी दे दूं, रिमाइनिंग जब वहां,,,,,। सज्जाद मीर : जब वहां से कॉल लेटर आएंगे, जिसको जाना हो, उस टाइम, …वो तो कन्फर्म एडमिशन होता है।
सज्जाद मीर ने आगे बताया कि भुगतान पूरी तरह से नकद में लिया जाता है, जिससे कोई सुराग न मिल सके और इस ऑपरेशन को खुले तौर पर अस्वीकार्य ही माना जाता है। रिपोर्टर : आपका क्या सिस्टम है पैसे लेने का? सज्जाद मीर : हम तो कैश ही लेते हैं। रिपोर्टर : कैश लेते हैं, …पूरा 100 परसेंट? सज्जाद मीर : हां।
सज्जाद मीर ने खुलासा किया कि किस तरह हुर्रियत सदस्य पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश पाने के इच्छुक कश्मीरी छात्रों के लिए सिफारिश पत्र लिखते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हुर्रियत नेता पाकिस्तान में एमबीबीएस प्रवेश के लिए सीधे पत्र जारी नहीं करते हैं। इसके बजाय वह एक अनौपचारिक नेटवर्क की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि उनके पास अपने एजेंट हैं, जो इस तरह के काम को संभालते हैं। रिपोर्टर : तो क्या हुर्रियत के लोग चिट्ठी वगैरह लिखते हैं? सज्जाद मीर : कौन? रिपोर्टर : हुर्रियत के लोग एडमिशन वगैरह के लिए पाकिस्तान में एमबीबीएस के लिए? सज्जाद मीर : उन्होंने अपने एजेंट्स रखे हुए हैं।
जब सज्जाद मीर से पूछा गया कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद जब हुर्रियत के अधिकांश शीर्ष नेता जेल में थे, तब वे सिफारिश पत्र कैसे जारी कर रहे थे? तो उसने हुर्रियत प्रणाली के बारे में बताया कि शीर्ष नेतृत्व की अनुपस्थिति में दूसरे और तीसरे स्तर के नेता कैसे काम करते हैं। उसने सुझाव दिया कि पाकिस्तान इस श्रृंखला के अंतर्गत आने वाले किसी भी व्यक्ति को मान्यता देता है, जिससे हस्ताक्षर या औपचारिक प्राधिकार लगभग अप्रासंगिक हो जाते हैं। रिपोर्टर : ये सब तो जेल में हैं, …ये चिट्ठी कैसे लिखेंगे हुर्रियत वाले? सज्जाद मीर : इनका सिस्टम होता है। आप बंद हो आपके बाद मैं हूं, ये ग्रुप होता है। तंजीम एक बंदे पर नहीं होती है। रिपोर्टर : जी। सज्जाद मीर : जो तंजीम होती है ना, वहां ना वहां तो 10-15 तंजीम चलती हैं, 20-20 लोग काम करते हैं। आपके फॉलोअर्स 30-30 होते हैं। आप बंद हो जाओगे, दूसरा होगा। दूसरा बंद हो जाएगा, तो तीसरा होता है। जिसके कॉन्टेक्ट में रहते हैं, काम तो चलता रहता है। रिपोर्टर : उनके सिग्नेचर? सज्जाद मीर : वो प्रॉब्लम नहीं है। उनको पता है ना ये बंदा हमारा है। रिपोर्टर : अच्छा, पाकिस्तान वाले दूसरे बंदे को जानते होते हैं? सज्जाद मीर : हां, सारे बंदे को जानते हैं, जो ग्रुप में होता है। रिपोर्टर : मतलब कोई भी चिट्ठी लिख दे, वो मान लेंगे? सज्जाद मीर : हां।
सज्जाद मीर ने आगे बताया कि उनके सभी छात्रों को पाकिस्तान के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलेगा, निजी कॉलेजों में नहीं। उसने कहा कि छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत उनका पांच वर्षीय एमबीबीएस कोर्स निःशुल्क होगा। सज्जाद मीर : वहां गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा। रिपोर्टर : अच्छा, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में? सज्जाद मीर : गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में। वहां प्राइवेट नहीं है। रिपोर्टर : पाकिस्तान में? सज्जाद मीर : पाकिस्तान में, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन हो जाएगा, फ्री ऑफ कॉस्ट में, वहां कुछ नहीं देना। रिपोर्टर : अरे वाह! सज्जाद मीर : वहां कुछ नहीं देना है, 5 रुपए तक नहीं देना है। वहां फ्री है। अगर वहां से स्कॉलरशिप हो गई, वहां से ही पैसे मिलेंगे। उसको कपड़ों के लिए भी पैसे वहीं से आते हैं। अगर उसको कपड़े खरीदने होंगे ना, तो वहीं से पैसे आएंगे। वो भी पैसे एड हैं उसमें। रिपोर्टर : ओके, ये पांच साल का कोर्स है या चार साल का? सज्जाद मीर : पांच। रिपोर्टर : पांचों साल फ्री है? सज्जाद मीर : पांचों साल। रिपोर्टर : कोई फी नहीं? सज्जाद मीर : कुछ नहीं। रिपोर्टर : ऐसा क्यूं? सज्जाद मीर : कश्मीर के लिए रखा है। हालात-वालात खराब है, वो है।
अब सज्जाद मीर ने कबूल किया है कि यह पूरी योजना उसके और अलगाववादियों के लिए पैसा कमाने का धंधा है। इस बातचीत से यह स्पष्ट स्वीकारोक्ति सामने आती है कि ये लोग शहीद कोटा से जुड़े एमबीबीएस प्रवेश को पैसा कमाने का उद्यम मानते हैं। रिपोर्टर : पाकिस्तान में कोटा है, जो यहां शहीद हुए हैं? सज्जाद मीर : इसलिए बिजनेस चल रहा है ना। मैं क्या बोल रहा हूं, ये सारा बिजनेस है। दुकान खोलकर रखा है। रिपोर्टर : ये भी हुर्रियत के जरिए जाते हैं? सज्जाद मीर : हुर्रियत के थ्रू। रिपोर्टर : तभी आप कह रहे हैं ये भी बिजनेस है? सज्जाद मीर : हां, ये बिजनेस है। मैं बोल रहा हूं। ये सारा बिजनेस ही है ये। सारा खेल है लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए। रिपोर्टर : दे (कंडीडेट्स) गो थ्रू हुर्रियत, राइट? (वे हुर्रियत के जरिए जाएंगे, ठीक?) सज्जाद मीर : थ्रू दि हुर्रियत। (हुर्रियत के जरिए।)
सज्जाद मीर अब उपलब्ध नहीं है और उसका नंबर भी बदल गया है। सज्जाद के बाद तहलका रिपोर्टर ने सज्जाद की सहयोगी शाहिदा अली से मुलाकात की। यह बैठक भी अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद हुई थी। सज्जाद मीर अकेले काम नहीं करता। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने पाकिस्तानी कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए कुछ स्थानीय गैर-लाभकारी संगठनों को शामिल किया था। पड़ताल के दौरान तहलका की मुलाकात XXXXX ट्रस्ट की संस्थापक शाहिदा अली (बदला हुआ नाम) से हुई। यह 20 साल पुराना गैर-लाभकारी संगठन है, जो चिकित्सा और शिक्षा से लेकर विधवा देखभाल तक के क्षेत्रों में काम करने का दावा करता है। सज्जाद मीर इसके लिए मुखौटे के रूप में काम करता था। शाहिदा अली के साथ यह मुलाकात नोएडा के एक शॉपिंग मॉल में हुई। उसने कहा कि हुर्रियत की सिफारिशों पर कश्मीरियों को पाकिस्तान में एमबीबीएस कार्यक्रमों में प्रवेश मिलता है, जहां उनकी शिक्षा पूरी तरह मुफ्त है। इस संक्षिप्त बातचीत से यह स्पष्ट हो जाता है कि पाकिस्तान में एमबीबीएस सीटें हुर्रियत से जुड़े विशिष्ट पत्रों के माध्यम से कैसे प्राप्त की जाती हैं। शाहिदा ने पुष्टि की कि एक बार यह अनुमोदन प्राप्त हो जाने पर कश्मीरी छात्रों को न केवल निःशुल्क प्रवेश मिलेगा, बल्कि बुनियादी खर्चों के लिए भी धन मिलेगा। रिपोर्टर : मैं ये बात इसलिए पूछ रहा हूं, मुझे आपसे कुछ काम है। अगर आप कर सकते तो, ये हुर्रियत के लोग लड़कों को एमबीबीएस के लिए भेजते हैं? शाहिदा : हां, पाकिस्तान। रिपोर्टर : आपको मालूम है। तो हमारे 4-5 लड़के हैं, कश्मीर के हैं। शाहिदा : XXXX साहेब का एक लेटर चाहिए होगा उनको। XXXX साहेब जब लेटर देते हैं, तभी होता है। रिपोर्टर : वो एडमीशन शायद पाकिस्तान में फ्री होता है, पढ़ाई उसकी? शाहिदा : जी, बिलकुल फ्री होती है। उनको शॉपिंग के लिए भी पैसे मिलते हैं। रिपोर्टर : जी।
शाहिदा ने कबूल किया कि वह कश्मीरी अलगाववादी आसिया अंद्राबी से जुड़ी हुई थी, जो कथित तौर पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप में मुकदमे का सामना कर रही है। उसने यह भी दावा किया कि वह हुर्रियत में लगभग सभी लोगों को जानती है। शाहिदा : हुर्रियत में सब हमको जानते हैं। रिपोर्टर : आप हुर्रियत में सबको जानती हैं? शाहिदा : बहुत अच्छे से, आसिया अंद्राबी। रिपोर्टर : जी। शाहिदा : कुरान शरीफ पढ़ाया है। रिपोर्टर : आसिया अंद्राबी ने आपको? शाहिदा : हां, उनको कहीं भी ले जाना हो जैसे डॉक्टर के पास ,तो मैं ही साथ जाती थी। रिपोर्टर : आसिया अंद्राबी जी को? ओके।
नोएडा के उसी शॉपिंग मॉल में तहलका के पत्रकार से दोबारा मिलने से पहले शाहिदा अली ने हुर्रियत एजेंट सज्जाद मीर से पाकिस्तान में कश्मीरी छात्रों के प्रस्तावित प्रवेश के बारे में बात की थी। वह पूरी योजना के साथ तैयार होकर आई थी। शाहिदा : वो बोले आप आ जाओ, डाक्यूमेंट्स लेकर आ जाओ बस। रिपोर्टर : एडमिशन हो जाएगा? शाहिदा : हो जाएगा। रिपोर्टर : पाकिस्तान में, एमबीबीएस में? शाहिदा : हां। रिपोर्टर : कश्मीरी लड़कों का? शाहिदा : बोला उसने। रिपोर्टर : पक्का है ये? शाहिदा : पक्का। रिपोर्टर : क्यूंकि मैं तो उनको जानता नहीं हूं, आप ही जानती हैं। शाहिदा : क्यूंकि वो लास्ट टाइम भी मेरे पास आए थे, वहीं से आए थे। भरोसे वाले हैं। वर्ना हर किसी को नहीं बोलते हैं। बोला कि अगर ऐसी कोई बात है, अगर है कोई अपना तो भेज। रिपोर्टर : आपसे कहा था यही सज्जाद मीर ने? शाहिदा : हां। रिपोर्टर : सज्जाद मीर नाम बताया था आपने? शाहिदा : हां। रिपोर्टर : तो पहले भेज चुके? शाहिदा : हां, ही (सज्जाद मीर) वुड लाइक टू मीट यू विद डाक्यूमेंट्स। दैट (एडमिशन) विल बी डन। (वह [सज्जाद मीर] आपसे दस्तावेज़ों के साथ मिलना चाहेंगे। वह [दाखिला] हो जाएगा।) रिपोर्टर : एमबीबीएस इन पाकिस्तान? (पाकिस्तान में एमबीबीएस?) शाहिदा : यस, ही इज अ रिलायबल पर्सन। ही कम टू मीट मी दि लास्ट टाइम एज वेल। ही डजन्ट से एनीथिंग अदरवाइज। ही टोल्ट मी टू टेल यू टू मीट हिम। (हाँ, वह एक विश्वसनीय व्यक्ति है। वह पिछली बार भी मुझसे मिलने आए थे। वह इसके अलावा कुछ नहीं कहते। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं तुम्हें उनसे मिलने के लिए कहूं।
पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए भुगतान की जाने वाली राशि के बारे में पूछे जाने पर शाहिदा अली ने तहलका के रिपोर्टर को बताया कि यह सब उम्मीदवार की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। ‘चाहे उम्मीदवार अनाथ हो या गरीबी रेखा से नीचे हो। इन सब बातों पर विचार करना होगा।’ -सज्जाद ने कहा। शाहिदा अली ने एक संपन्न परिवार के उम्मीदवार के लिए 10 लाख रुपए की बोली लगाई।
शाहिदा : नहीं, फैमिली कैसी है उस पर डिपेंड करता है। मतलब, ऑरफन है तो उस पर डिपेंड करता है। ब्लो प्रोवर्टी लाइन है, तो उस पर डिपेंड करता है, तो वो देखना पड़ता है। रिपोर्टर : फैमिली अच्छी है। शाहिदा : गरीब हैं? रिपोर्टर : गरीब नहीं हैं, पैसे वाले हैं। शाहिदा : फिर 10 लाख भी देंगे, तो दिक्कत क्या है। रिपोर्टर : 10 लाख? शाहिदा : हैं ना! … 10 भी देंगे तो दिक्कत क्या है। 40 लाख, मेरी हैं ना फ्रेंड की बेटी, उसको तो 40 लाख लगे थे। फिर तो 8-10 लाख में उनको प्रॉब्लम नहीं होनी चाहिए। फिर मैं सज्जाद भाई का नुकसान क्यूं करवाऊं, उनको भी चाहिए। रिपोर्टर : लेकिन ये पाकिस्तान की बात हो रही है, एमबीबीएस की? शाहिदा : हां, मैं भी वो ही बात कर रही हूं।
शाहिदा अली भी अब उपलब्ध नहीं है और उनका नंबर भी लगातार बंद पाया गया। इस बीच राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने चिकित्सा की पढ़ाई के इच्छुक छात्रों को सलाह दी है कि वे चिकित्सा की पढ़ाई के लिए पाकिस्तान न जाएं। एनएमसी के अनुसार, जो भारतीय किसी भी पाकिस्तानी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस/बीडीएस या समकक्ष चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेना चाहते हैं, वे एफएमजीई (विदेश में एमबीबीएस पूरा करने वाले भारतीयों के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग परीक्षा) में शामिल होने या पाकिस्तान में प्राप्त योग्यता के आधार पर भारत में रोजगार पाने के पात्र नहीं होंगे; सिवाय उन लोगों के, जो दिसंबर 2018 से पहले पाकिस्तानी संस्थानों में शामिल हुए हों। जिन छात्रों ने दिसंबर, 2018 से पहले अपनी पढ़ाई शुरू की है या गृह मंत्रालय (एमएचए) से सुरक्षा मंजूरी प्राप्त कर ली है, वे एफएमजीई परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। अब नामांकन कराने वाले लोग एफएमजीई के लिए पात्र नहीं होंगे और पाकिस्तान से प्राप्त डिग्री के आधार पर भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे। 2024 में लाहौर (पाकिस्तान) से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाली कश्मीर की डॉक्टर मेहरू शफी ने तहलका रिपोर्टर को बताया कि उन्हें भारत सरकार से सुरक्षा मंजूरी मिल गई है, जिसमें पुष्टि की गई है कि वह किसी भी भारत विरोधी गतिविधि में शामिल नहीं हैं, जिससे उन्हें एफएमजीई परीक्षा में बैठने की अनुमति मिल गई है। शफी के अनुसार, पाकिस्तान से एमबीबीएस करने वाले 300 छात्रों में से 50 को एफएमजीई परीक्षा में बैठने के लिए सुरक्षा मंजूरी मिल गई, जबकि शेष 250 अभी भी मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब एमबीबीएस के लिए पाकिस्तान जाने वाले छात्र केवल भारत के बाहर ही प्रैक्टिस कर सकते हैं, देश के भीतर नहीं।
शफी ने तहलका से बातचीत में स्वीकार किया कि वह एफएमजीई परीक्षा पास किए बिना पिछले एक साल से श्रीनगर स्थित इंडिया आईवीएफ सेंटर में काम कर रही हैं, जिसकी एनएमसी द्वारा अनुमति नहीं है, क्योंकि उसकी डिग्री विदेश से प्राप्त की गई थी। उन्होंने पाकिस्तान की चिकित्सा शिक्षा की उच्च गुणवत्ता की प्रशंसा की और कहा कि पाकिस्तान में चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले कई कश्मीरी छात्र अब भारत में सरकारी नौकरियों में हैं। उनके अनुसार, अतीत में स्थिति आज की तुलना में कम जटिल थी। 2021 में पाकिस्तान के रावलपिंडी कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने वाली एक अन्य कश्मीरी छात्रा स्वालेहा ने तहलका को बताया कि उसे अभी तक एफएमजीई परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई है और वह अभी भी सुरक्षा मंजूरी का इंतजार कर रही है। इस बीच पाकिस्तान में पढ़ाई करने वाले उनके जूनियरों को मंजूरी मिल गई है। उन्होंने बताया कि वह वर्तमान में एफएमजीई की परीक्षा पास किए बिना दिल्ली में एक शोध शाखा में काम कर रही हैं, जो एनएमसी नियमों का उल्लंघन है।
2022 में लाहौर के फातिमा जिन्ना मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाली और सर गंगा राम अस्पताल, लाहौर में इंटर्नशिप करने वाली कश्मीरी छात्रा हुमैरा फारूक को भी एफएमजीई के लिए सुरक्षा मंजूरी प्राप्त करने में देरी का सामना करना पड़ा। अंततः उन्होंने विवाह कर लिया और मालदीव में बस गईं, जहां उन्होंने स्थानीय चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण की और चिकित्सा का अभ्यास कर रही हैं। हुमैरा ने बताया कि भारत में उनके कुछ जूनियरों को एफएमजीई मंजूरी मिल गई, जबकि उन्हें नहीं मिली। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उन्होंने एफएमजीई प्रमाणीकरण के बिना श्रीनगर के अहमद अस्पताल में काम किया, जो कानून के विरुद्ध है। लेकिन उन्होंने पाकिस्तान में चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता की प्रशंसा की। दिल्ली के लाल किले में हुए विस्फोट ने विशेषकर पाकिस्तान में प्रशिक्षित डॉक्टरों के लिए एक समस्या का पिटारा खोल दिया है। तहलका की चिंता वे लोग नहीं हैं, जिन्होंने पाकिस्तान में एमबीबीएस में प्रवेश के लिए सामान्य प्रक्रियाओं का पालन किया और अब भारत में काम कर रहे हैं: बल्कि चिंता का विषय यह है कि पड़ताल में कश्मीर के उन आतंकवादियों के बच्चों पर प्रकाश डाला गया है, जो एमबीबीएस की डिग्री के लिए हुर्रियत की सिफारिशों पर पाकिस्तान जा रहे हैं। एक गंभीर सवाल उठता है कि क्या ये छात्र कट्टरपंथी हो गए हैं? एनआईए की चार्जशीट में भी इस मुद्दे को उठाया गया है। तहलका की पड़ताल से यह सवाल भी उठता है कि जहूर अहमद टाक, सज्जाद मीर और शाहिदा अली जैसे एजेंटों द्वारा हुर्रियत की सिफारिशों पर कितने आतंकवादियों के बच्चों को एमबीबीएस के लिए पाकिस्तान भेजा गया? जो तहलका के कैमरे में कैद हो गया। ये खुलासे शिक्षा, राजनीति और कट्टरपंथी नेटवर्क के बीच जटिल और परेशान करने वाले गठजोड़ को रेखांकित करते हैं।