आप में विश्वास का संकट
दिल्ली में विस्तारा के जहाज की इमरजेंसी लैंडिंग, 146 यात्री थे सवार, सभी सुरक्षित
दिल्ली में विस्तारा के एक जहाज की गुरुवार को इमरजेंसी लैंडिंग करानी पड़ी। उस समय जहाज में 146 लोग सवार थे। जहाज में तकनीकी खराबी आने के कारण ऐसा हुआ। सभी यात्री सुरक्षित हैं।
जानकारी के मुताबिक जहाज में उड़ान भरते ही तकनीकी खराबी आई। अभी तक की ख़बरों के मुताबिक सभी यात्री सुरक्षित हैं। इस जहाज में 146 लोग सवार थे।
जानकारी के मुताबिक जहाज की खराबी महसूस करते ही पॉयलट ने इसकी इमजेंसी लैंडिंग कराने का फैसला किया और इसकी सूचना एयरपोर्ट आथॉरटी को दी।
उ. प्र. विधानसभा चुनाव 2022: बुन्देलखण्ड में 19 सीटों पर जीत कायम रखना आसान नहीं
यूपी विवाह समारोह: हल्दी रस्म के दौरान कुएं में जा गिरे लोग, 13 की मौत, कई घायल
एक बड़े हादसे बुधवार देर रात उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में एक विवाह समारोह में कुएं में गिरने से 13 लोगों की जान चली गयी। इनमें महिलाऐं और बच्चे भी शामिल हैं। हादसे में 10 लोग गंभीर रूप से घायल हैं। प्रशासन ने मृतकों के निकट परिजन को चार-चार लाख रुपए की तत्काल सहायता राशि देने का की घोषणा की है।
पुलिस के मुताबिक यह हादसा तब हुआ जब विवाह समारोह के दौरान काफी लोग पर बैठा गए जिसपर स्लैब पड़ा हुआ था। ज्यादा लोगों का वजन न सह पाने के कारण स्लैब समेत यह लोग कुएं में जा गिरे। लोगों के कुएं में गिरने की सूचना फैलते ही उन्हें बाहर निकालकर अस्पताल ले जाया गया।
अभी तक की ख़बरों के मुताबिक 13 लोगों की इस हादसे में मौत हुई है। हादसे में 10 लोग गंभीर रूप से घायल हैं। अस्पताल में जब इन लोगों को लाया गया तो इनमें से ज्यादातर की मौत हो चुकी थी।
हादसे में जो 10 लोग घायल हुए हैं उनमें कुछ की हालत गंभीर है। भर्ती कराया गया है, मृतकों के परिजन को चार-चार लाख रुपए की सहायता दी जाएगी। घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया – ‘उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में हुआ हादसा हृदयविदारक है। इसमें जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मैं अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं। इसके साथ ही घायलों के जल्द से जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं। स्थानीय प्रशासन हर संभव मदद में जुटा है।’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव और बीएसपी नेता मायावती ने भी हादसे पर गहरा शोक जताया है।
राहुल गांधी पर टिप्पणी के लिए असम के सीएम के खिलाफ एफआईआर
हैदराबाद पुलिस ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के खिलाफ मामला दर्ज किया है। सरमा के खिलाफ यह मामला तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रेवंथ रेड्डी की शिकायत के आधार पर किया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक टीपीसीसी प्रमुख ने यह शिकायत हैदराबाद सिटी के जुबली हिल्स पुलिस स्टेशन में कराई है। पुलिस के मुताबिक यह मामला भादंसं की धारा 504 और 505 (2) के तहत दर्ज किया गया है। बता दें रेवंथ ने राहुल गांधी के खिलाफ अपमानजक टिप्पणी के लिए सोमवार को असम के मुख्यमंत्री के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।
कांग्रेस नेताओं ने मुख्यमंत्री सरमा के खिलाफ इस टिप्पणी के लिए आपराधिक मामला दर्ज कराते हुए उनकी तुरंत गिरफ्तारी की मांग की है। अपनी शिकायत में
रेवंथ ने कहा – ”असम के मुख्यमंत्री की टिप्पणी महिलाओं का अपमान है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी आखिर सरमा की गिरफ्तारी का आदेश क्यों नहीं दे रहे?’
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा बेशर्मी से मुख्यमंत्री का बचाव कर रही है जबकि उसे सरमा को मुख्यमंत्री के पद से तुरंत हटा देना चाहिए। बिस्व सरकार को नोटिस जारी किया जाना चाहिए। असम के सीएम की गिरफ्तारी पुलिस की जिम्मेदारी है।’
रेवंथ ने कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि यह गांधी परिवार का अपमान है लेकिन यह देश की महिलाओं का अपमान है। असम के सीएम के खिलाफ हमारी शिकायत पर तुरंत एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए।
चीन की चुनौती
व्हाइट हाउस ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतिक रिपोर्ट में कहा है कि भारत को चीन से महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चुनौतियों और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसके आक्रामक व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में चीनी भूमिका पर चिन्ता जताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व वाले प्रशासन की तरफ़ से जारी पहली क्षेत्र-विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका भारत पर प्रभाव पड़ा है। क्योंकि चीन अपनी आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति को बढ़ा रहा है, ताकि दुनिया की सबसे प्रभावशाली शक्ति बन सके। रिपोर्ट चीन को यह कहते हुए धोखेबाज़ के रूप में पेश करती है कि चीन का जनवादी गणराज्य मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानून को ताक पर रख रहा है, जिसमें नौपरिवहन की स्वतंत्रता के साथ अन्य सिद्धांत शामिल हैं, जो इस क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि लाते हैं। नतीजा यह है कि चीन की आक्रामकता भारत को वाशिंगटन के क़रीब ले जा रही है।
हालाँकि चीन हमेशा अपने नापाक मंसूबों में लिप्त रहा है और उसका अपने ही एक रेजिमेंट कमांडर, जो गलवान संघर्ष में घायल हो गया था; को बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के लिए मशालची बनाने का निर्णय परेशान करने वाला है। यह अधिकारी उस सैन्य कमान का हिस्सा था, जिसने भारत पर हमला किया था और उइगरों के ख़िलाफ़ नरसंहार में भी शामिल था। यह सब चीनी सेना के अरुणाचल प्रदेश के एक 17 वर्षीय लडक़े के कथित अपहरण और प्रताडऩा के बाद आया है। लोकसभा में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने एक लिखित उत्तर में स्वीकार किया कि चीन पिछले छ: दशक में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ में क़रीब 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध क़ब्ज़ा कर चुका है। चीन के अवैध क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में पुल का निर्माण किया जा रहा है। ग़ौरतलब है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनावपूर्ण स्थिति चीन द्वारा सीमा पर सैनिकों को इकट्ठा न करने के लिखित समझौतों की अवहेलना के कारण थी।
सोशल मीडिया शोधकर्ताओं के एक समूह की तरफ़ से एक साल तक की गयी गलवान डिकोडिड जाँच के निष्कर्षों के मद्देनज़र बीजिंग पहले से ही उलझन की स्थिति में है। इन निष्कर्षों के मुताबिक, जून 2020 में भारत के साथ गलवान घाटी सीमा संघर्ष में चीन की तरफ़ हताहत होने वालों की संख्या उसके आधिकारिक आँकड़ों की तुलना में बहुत ज़्यादा थी। यह चीन की बढ़ती ताक़त और विस्तारवादी गतिविधियों को उजागर करता है। वास्तव में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को एक सम्मानजनक आँकड़ा दर्शाना पड़ा; क्योंकि उसके सिर्फ़ चार मौतों के दावे के विपरीत एक ऑस्ट्रेलियाई अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 38 चीनी सैनिक अँधेरे में शून्य से भी नीचे के तापमान वाली तेज़ गति से बहने वाली नदी को पार करते समय डूब गये। इसमें कहा गया है कि वास्तव में जो हुआ, उसके बारे में बहुत सारे तथ्य बीजिंग ने छिपाये थे और ज़्यादातर मनगढ़ंत कहानियाँ दुनिया को बतायी गयीं। इससे पहले एक रूसी समाचार एजेंसी ने चीनी पक्ष के 45 लोगों के मारे जाने का ख़ुलासा किया था। भारत ने बताया था कि उसने 20 सैनिकों को खोया है। इनमें से कुछ को वीरता पदक से सम्मानित किया है। लेकिन पीएलए ने केवल चार मौतों को स्वीकार किया और वह भी बहुत देर बाद। वास्तव में इतिहास को विकृत नहीं किया जा सकता और नायकों को भुलाया नहीं जा सकता।
चरणजीत आहुजा
प्रगतिशील बजट या विश्वासघात?

भविष्य का सपना दिखाकर पेश किये गये वित्त वर्ष 2022-23 के बजट की अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबन्ध निदेशक ने की तारीफ़
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पेश किये गये आम बजट को भारत के लिए एक विचारशील नीति का एजेंडा बताया है, जबकि विपक्षी दल कांग्रेस ने केंद्रीय बजट को ‘भारत के वेतनभोगी और मध्यम वर्ग के साथ विश्वासघात’ कहा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा ने कहा है कि कृषि क्षेत्र के लिए बजटीय आवंटन में कमी निराशाजनक है। भारत हितैषी का बजट विश्लेषण :-
वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट को देखने से साफ़ ज़ाहिर होता है कि विधानसभा चुनावों से पहले सरकार ने लोकलुभावनवाद से ख़ुद को बचाया है। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अतीत से परम्परा रही है कि बजट लुभावना, बड़ी घोषणाओं और कम सार वाला होता था। आत्मनिर्भर अर्थ-व्यवस्था कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट 2022-23 को आधुनिक और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक क़दम बताया। उन्होंने कहा कि बजट में यूपीए शासन की तुलना में सार्वजनिक निवेश में चार गुना वृद्धि करने का प्रस्ताव है और यह उपाय केंद्रीय बजट को ‘जन-हितैषी’ और ‘प्रगतिशील’ बताते हुए वृहद् अवसर प्रदान करेगा। हालाँकि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में भाग लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने कहा कि 2022-23 में कृषि के लिए आवंटन पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 3.8 फ़ीसदी कम हो गया है। यह देखते हुए कि भारत की अर्थ-व्यवस्था कृषि पर आधारित है, यह चिन्ताजनक बात है। इसमें देश के कार्यबल का 50 फ़ीसदी योगदान शामिल है और सकल घरेलू उत्पाद में 70 फ़ीसदी का योगदान देता है।
देवेगौड़ा ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कोई रोड मैप नहीं है। जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखे और गिरते भूजल स्तर जैसी सभी बाधाओं के बावजूद देश के किसानों ने 2020-21 में 2.3 फ़ीसदी की औसत वृद्धि के साथ 305 मिलियन टन खाद्यान्न और 320 मिलियन टन फलों और सब्ज़ियों का उत्पादन किया। उन्होंने मनरेगा के लिए बजटीय आवंटन में कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ग्रामीण विकास के लक्ष्य के विपरीत है।
ग़ौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रबन्ध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने बजट की प्रशंसा करते हुए कहा- ‘हम भारत के लिए काफ़ी मज़बूत विकास का अनुमान लगा रहे हैं। हाँ, हमारे पिछले अनुमान की तुलना में 9.5 फ़ीसदी से नौ फ़ीसदी या 2022 तक एक छोटा उतार सम्भव है। हमारे पास 2023 के लिए एक छोटा चढ़ाव (अपग्रेड) भी है। क्योंकि हमें लगता है कि हम एक स्थिर विकास देखेंगे, जो वित्त मंत्री से बहुत अलग नहीं है।
जॉर्जीवा ने संवाददाताओं के एक समूह के साथ एक आभासी बैठक (वीडियो कॉन्फ्रेंस) के दौरान कहा- ‘हम इस तथ्य पर बहुत सकारात्मक हैं कि भारत अल्पकालिक मुद्दों को सम्बोधित करने के बारे में सोच रहा है। लेकिन दीर्घकालिक संरचनात्मक परिवर्तन भी कर रहा है, और मानव पूँजी निवेश और डिजिटलीकरण पर अनुसंधान और विकास पर बहुत ज़ोर दिया गया है। साथ ही यह भी है कि भारत उसके लिए आर्थिक साधनों का उपयोग करके जलवायु परिवर्तन के एजेंडे को कैसे तेज़ कर सकता है। केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में केंद्रीय बजट पेश करते हुए कहा कि चालू वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि 9.2 फ़ीसदी रहने का अनुमान है, जो सभी बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। महामारी के प्रतिकूल प्रभावों से अर्थ-व्यवस्था की समग्र, तेज़ वापसी और वसूली हमारे देश में मज़बूत लचीलापन ज़ाहिर करती है।
हालाँकि वरिष्ठ पत्रकार के.आर. सुधमन, जिनके पास पत्रकारिता में 40 साल का अनुभव है और वह प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, टिकरन्यूज और फाइनेंशियल क्रॉनिकल राइटिंग में आईपीए के सवालों के सम्पादक रह चुके हैं; यह पूछने पर कि क्या बजट ने अर्थ-व्यवस्था को खींचने का रास्ता खोला है? वह कहते हैं कि उत्तर अभी स्पष्ट नहीं है। इसका कारण यह है कि दुनिया भर में अर्थ-व्यवस्था का प्रबन्धन काफ़ी हद तक संकट से निपटने के विचार और अर्थ-व्यवस्था में दीर्घकालिक स्थिरता लाने के बजाय संकट से निपटने के तरीक़े तक सीमित है।
व्यापार चक्रों और हाल ही में कोरोना महामारी जैसी अप्रत्याशित घटनाओं के कारण किसी भी अर्थ-व्यवस्था पर असर को लेकर कोई सन्देह नहीं है। परिणामस्वरूप दुनिया भर में विशेष रूप से लोकतंत्रों में प्रयास केवल तात्कालिक समस्याओं से निपटने का है और वह भी बहुत तत्काल के लिए। नतीजे के रूप में विस्तारवादी और संकुचनवादी राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों को अपनाकर त्वरित-समाधान चुनने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिसके परिणामस्वरूप अर्थ-व्यवस्था हमेशा प्रवाह की स्थिति में रहती है।
समय आ गया है कि अर्थशास्त्री इस मामले पर विचार करें और उभरती स्थिति के बावजूद एक स्थिर आर्थिक स्थिति की ओर बढऩे का प्रयास करें। भारत के मामले में केवल लम्बे समय तक चलने वाले आर्थिक सुधारों का प्रयास सन् 1991 में किया गया था, जब अर्थ-व्यवस्था को एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा। इससे सरकार को ऐसी नीतियों के साथ आने के लिए मजबूर होना पड़ा, जो अर्थ-व्यवस्था के दीर्घकालिक अच्छे के लिए काम करती थीं। न केवल पी.वी. नरसिम्हा राव ने इसे शुरू किया, बल्कि उनके उत्तराधिकारियों, देवेगौड़ा, आई.के. गुजराल और अटल बिहारी वाजपेयी ने भी इसे जारी रखा। वास्तव में मनमोहन सिंह, जो वित्त मंत्री के रूप में सन् 1991 के सुधार के मुख्य शिल्पी थे; प्रधानमंत्री के समान उत्साह के साथ सुधारों को आगे नहीं बढ़ा सके। कारण था, आंशिक रूप से गठबन्धन की राजनीति की मजबूरियों और नरसिम्हा राव या वाजपेयी जैसी राजनीतिक अर्थ-व्यवस्था का प्रबन्धन करने में उनकी अक्षमता।
यहाँ तक कि देवेगौड़ा और गुजराल भी सुधारों को बेहतर तरीक़े से आगे बढ़ाने में सक्षम थे। वास्तव में पी. चिदंबरम के सपनों का बजट दूरगामी कर सुधारों के साथ उनके छोटे शासन के दौरान प्रस्तुत और पारित किया गया था। गठबन्धन सरकार या अल्पसंख्यक सरकार के बावजूद ये सुधार सम्भव थे; क्योंकि सन् 1991 के बाद से 10 कठिन वर्षों के दौरान सभी राजनीतिक दलों के बीच सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए आम सहमति थी।
इसलिए जो महत्त्वपूर्ण है, वह है कि राजनीतिक अर्थ-व्यवस्था का उचित प्रबन्धन। यह सुदृढ़ और स्थिर आर्थिक नीतियों को सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि व्यापार चक्रों और अप्रत्याशित संकटों के उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए व्यापक आर्थिक ढाँचा मज़बूत है। इसलिए हम जिस प्रश्न की ओर बढ़ रहे हैं, उसका उत्तर निश्चित नहीं है, क्योंकि दुनिया भर के अर्थ-शास्त्री लम्बे समय तक नहीं सोचते हैं। जैसा कि मेनार्ड कीन्स ने सन् 1930 के दशक के महामंदी के दौरान एक बार कहा था कि दीर्घकालिक सोच के मामले में हम सभी मर चुके हैं। यह सच है। लेकिन अगर हमें बाद की पीढिय़ों का ध्यान रखना है, तो दीर्घकालिक स्थिरता होनी चाहिए। इसलिए नीतियों को विकसित करना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दीर्घकालिक मुद्दों को सम्बोधित किया जाए, जबकि अल्पकालिक आर्थिक मुद्दों को तत्काल समाधान के लिए निपटाया जाए।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर और अर्थ-शास्त्री रघुराम राजन सही हैं, जब वह कहते हैं कि उभरते बाज़ारों के संकट की ओर बढऩे का एक कारण यह है कि वह अपनी तात्कालिक राजनीतिक प्राथमिकताओं के बावजूद राजनीतिक दलों के बीच तंत्र स्थापित करने और समर्थन के लिए आम सहमति हासिल करने में विफल रहे। हाल के इतिहास से पता चलता है कि विकसित अर्थ-व्यवस्थाएँ भी ‘दर्द’ के प्रति कम सहिष्णु होती जा रही हैं। क्योंकि उनकी अपनी राजनीतिक सहमति ख़त्म हो गयी है। अतीत में उन्नत अर्थ-व्यवस्थाओं ने ऐसे तंत्र बनाये, जो उन्हें आवश्यक होने पर कठिन विकल्प बनाने की अनुमति देते थे और जिसमें स्वतंत्र केंद्रीय बैंक और बजट घाटे पर अनिवार्य सीमाएँ शामिल थीं। इसे अब उन्नत अर्थ-व्यवस्थाओं में भी जाने दिया जाता है।
राजन एक लेख में विस्तार से कहते हैं कि वित्तीय बाज़ार एक बार फिर अस्थिर हो गये हैं। इस डर के कारण कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व को मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अपनी मौद्रिक नीति को काफ़ी कड़ा करना होगा। लेकिन कई निवेशकों को अभी भी उम्मीद है कि अगर सम्पत्ति की क़ीमतों में भारी गिरावट शुरू हो जाती है, तो फेड आसान हो जाएगा। यदि फेड उन्हें सही साबित करता है, तो भविष्य में वित्तीय स्थितियों को सामान्य करना उतना ही कठिन हो जाएगा। वह कहते हैं कि निवेशक की आशा है कि फेड उत्साह को लम्बा खींचने, निराधार नहीं है। उन्होंने कहा कि सन् 1996 के अन्त में फेड अध्यक्ष एलन ग्रीनस्पैन ने वित्तीय बाज़ारों में तर्कहीन उत्साह की चेतावनी दी थी। लेकिन बाज़ारों ने चेतावनी को ठुकरा दिया और सही साबित हुए। शायद ग्रीनस्पैन के भाषण की कठोर राजनीतिक प्रतिक्रिया के कारण फेड ने कुछ नहीं किया। और जब सन् 2000 में शेयर बाज़ार अंतत: हादसे से दो-चार हुआ, तो फेड ने दरों में कटौती की; यह सुनिश्चित करते हुए कि मंदी हल्की थी।
जैसा कि मनमोहन सिंह और राजन कहते हैं कि अर्थ-व्यवस्था में कोई मुफ़्त भोज नहीं होता। यह सच है कि कोई भी मुफ़्त भोज एक क़ीमत में आता है और यह समय है कि केंद्र और राज्य सरकारें अर्थ-व्यवस्था की स्थायी भलाई के लिए वोट पाने के मुफ़्त और लोकलुभावन उपायों से दूर रहें। इसके परिणामस्वरूप अल्पकालिक लाभ के लिए उन्नत और उभरती अर्थ-व्यवस्थाओं में सतत व्यापक आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हुई है। समय आ गया है कि अर्थ-शास्त्री और राजनेता इस मामले पर विचार करें और दुनिया भर में स्थिर अर्थ-व्यवस्थाओं की दिशा में काम करने के लिए क़दम उठाएँ, ताकि राष्ट्र संकट से संकट की ओर न बढ़ें। कुछ निर्णय कठिन और पीड़ा वाले होंगे, ताकि अर्थ-व्यवस्थाएँ विशेष रूप से भारत उच्च राजकोषीय घाटे, उच्च ऋण और भगोड़ा मुद्रास्फीति की ओर न बढ़ें।
बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि आत्मनिर्भर भारत के विजन को प्राप्त करने के लिए 14 क्षेत्रों में उत्पादकता से जुड़े प्रोत्साहन को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है, जिसमें अगले पाँच वर्षों के दौरान 60 लाख नये रोज़गार और 30 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त उत्पादन की सम्भावना है। नयी सार्वजनिक क्षेत्र की उद्यम नीति के कार्यान्वयन के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि एयर इंडिया के स्वामित्व का रणनीतिक हस्तांतरण पूरा हो गया है। एनआईएनएल (नीलांचल इस्पात निगम लिमिटेड) के लिए रणनीतिक भागीदार का चयन किया गया है। एलआईसी का सार्वजनिक मुद्दा जल्द ही हल होने की उम्मीद है और अन्य मुद्दे भी 2022-23 के लिए प्रक्रिया में हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यह बजट विकास को गति प्रदान करता रहेगा। यह अमृत काल के लिए एक समानांतर ट्रैक रखता है, जो भविष्यवादी और समावेशी है और सीधे हमारे युवाओं, महिलाओं, किसानों, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को लाभान्वित करेगा।
उधर आधुनिक बुनियादी ढाँचे के लिए बड़ा सार्वजनिक निवेश भारत के लिए तैयार है और यह प्रधानमंत्री की गतिशक्ति द्वारा निर्देशित होगा और बहु-मॉडल दृष्टिकोण के तालमेल से लाभान्वित होगा। उनके मुताबिक, गतिशक्ति, सात इंजनों- सडक़, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, जन परिवहन, जलमार्ग और रसद अवसंरचना द्वारा संचालित है। सभी सात इंजन एक साथ अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाएँगे। एक्सप्रेस-वे के लिए प्रधानमंत्री गतिशक्ति मास्टर प्लान 2022-23 में लोगों और सामानों की तेज़ आवाजाही को सुविधाजनक बनाने के लिए तैयार किया जाएगा। वित्त वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का 25,000 किलोमीटर तक विस्तार किया जाएगा और सार्वजनिक संसाधनों के पूरक के लिए वित्तपोषण के नवीन तरीक़ों के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये जुटाये जाएँगे। रेलवे को लेकर वित्त मंत्री ने कहा कि स्थानीय व्यवसायों और आपूर्ति शृंखलाओं की मदद के लिए ‘एक स्टेशन-एक उत्पाद’ की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया जाएगा। इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत के एक हिस्से के रूप में 2022-23 में सुरक्षा और क्षमता वृद्धि के लिए स्वदेशी विश्व स्तरीय तकनीक कवच के तहत 2,000 किमी नेटवर्क लाया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि बेहतर ऊर्जा दक्षता और यात्री सवारी अनुभव वाली नयी पीढ़ी की 400 वंदे भारत ट्रेनों का विकास और निर्माण किया जाएगा और अगले तीन वर्षों के दौरान मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स सुविधाओं के लिए 100 प्रधानमंत्री गतिशक्ति कार्गो टर्मिनल स्थापित किये जाएँगे।
बजट में घोषणा है कि सरकार 2022-23 में 5जी मोबाइल फोन सेवाओं के रोल-आउट की सुविधा के लिए 2022 में आवश्यक स्पेक्ट्रम नीलामी आयोजित करने का प्रस्ताव करती है। समयरेखा की व्यवहार्यता के बारे में अटकलों को ख़ारिज़ करना निश्चित है। रोल-आउट में तेज़ी लाने के लिए सरकार की उत्सुकता को सीतारमण ने नवीनतम पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी की आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन के समर्थक के रूप में सेवा करने की क्षमता की सराहना के रूप में प्रस्तुत किया।
ट्राई के मार्च तक 5जी के लिए अलग रखे जाने वाले स्पेक्ट्रम पर अपनी सिफ़ारिशें देने की उम्मीद है। हालाँकि 5जी सेवाओं की शुरुआत के आसपास के महत्त्वपूर्ण मुद्दों के सम्बन्ध में सरकार की योजना के दृष्टिकोण पर बहुत कम स्पष्टता है। सबसे महत्त्वपूर्ण सवाल उन विशेष आवृत्तियों के बारे में हैं, जो नियामक द्वारा सिफ़ारिश की जा सकती हैं। स्पेक्ट्रम के मूल्य निर्धारण पर सरकार की योजनाएँ और सबसे महत्त्वपूर्ण है दूरसंचार कम्पनियों और पूरी अर्थ-व्यवस्था दोनों के लिए नयी तकनीक की व्यवहार्यता। निजी दूरसंचार सेवा प्रदाता पहले से ही वित्तीय तनाव में हैं।
5जी प्रौद्योगिकी में एक बड़े क़दम का प्रतिनिधित्व करता है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। हालाँकि अधिकांश देश, जिन्होंने अब तक 5जी का व्यावसायीकरण किया है; वह बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी को अभी भी मुख्य रूप से अन्तिम उपयोग के मामले में 4जी के लिए उन्नत प्रतिस्थापन के रूप में रखते हैं, जिसमें औद्योगिक और सार्वजनिक उपयोगिता अनुप्रयोगों की परिकल्पना अभी भी कम-से-कम कुछ साल दूर है। कृषि के मोर्चे पर वित्त मंत्री ने बताया कि पहले चरण में गंगा नदी के किनारे पाँच किमी चौड़े गलियारों में किसानों की भूमि पर ध्यान देने के साथ पूरे देश में रासायनिक मुक्त प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। फ़सल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों के छिडक़ाव और पोषक तत्त्वों के लिए किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि तिलहन के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने की युक्तियुक्त एवं व्यापक योजना लागू की जाएगी।
जैसा कि 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार वर्ष के रूप में घोषित किया गया है; सरकार ने फ़सल के बाद मूल्यवर्धन, घरेलू खपत बढ़ाने और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाज़ार उत्पादों की ब्रांडिंग के लिए पूर्ण समर्थन की घोषणा की। वित्त मंत्री ने रेखांकित किया कि आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ने 130 लाख से अधिक एमएसएमई को महामारी के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में मदद करने के लिए बहुत आवश्यक अतिरिक्त ऋण प्रदान किया है। हालाँकि उन्होंने कहा कि आतिथ्य और सम्बन्धित सेवाएँ, विशेष रूप से सूक्ष्म और लघु उद्यमों द्वारा अभी तक अपने व्यवसाय के पूर्व-महामारी स्तर को फिर से हासिल करना बाक़ी है और इन पहलुओं पर विचार करने के बाद ईसीएलजीएस को मार्च, 2023 तक बढ़ाया जाएगा। उसने बताया कि इसकी गारंटी कवर को 50,000 करोड़ रुपये बढ़ाकर कुल पाँच लाख करोड़ रुपये किया जाएगा, अतिरिक्त राशि विशेष रूप से आतिथ्य और सम्बन्धित उद्यमों के लिए निर्धारित की जाएगी।
इसी तरह सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) योजना को आवश्यक धन के साथ नया रूप दिया जाएगा। इससे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए दो लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त ऋण की सुविधा होगी और रोज़गार के अवसरों का विस्तार होगा। उन्होंने बताया कि एमएसएमई क्षेत्र को अधिक लचीला, प्रतिस्पर्धी और कुशल बनाने के लिए पाँच वर्षों में 6,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ एमएसएमई प्रदर्शन (आरएएमपी) कार्यक्रम को बढ़ाना और तेज़ करना शुरू किया जाएगा। उद्यम, ई-श्रम, एनसीएस और असीम पोर्टल को आपस में जोड़ा जाएगा और उनका दायरा बढ़ाया जाएगा।
छात्रों को उनके दरवाज़े पर व्यक्तिगत सीखने के अनुभव के साथ विश्व स्तरीय गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए एक डिजिटल विश्वविद्यालय की स्थापना देश भर के लिए की जाएगी। इसे विभिन्न भारतीय भाषाओं और आईसीटी प्रारूपों में उपलब्ध कराया जाएगा। विश्वविद्यालय एक नेटवर्क हब-स्पोक मॉडल पर बनाया जाएगा, जिसमें हब बिल्डिंग, अत्याधुनिक आईसीटी विशेषज्ञता होगी। देश के सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक विश्वविद्यालय और संस्थान हब-स्पोक के नेटवर्क के रूप में सहयोग करेंगे। आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के तहत, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक खुला मंच शुरू किया जाएगा और इसमें स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य सुविधाओं की डिजिटल रजिस्ट्रियाँ, अद्वितीय स्वास्थ्य पहचान, सहमति ढाँचा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच शामिल होगी।
बजट में नल से जल के लिए 2022-23 में 3.8 करोड़ घरों को कवर करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। वर्तमान कवरेज 8.7 करोड़ है और इसमें से 5.5 करोड़ घरों को पिछले दो वर्षों में ही नल का पानी उपलब्ध कराया गया था। इसी तरह 2022-23 में प्रधानमंत्री आवास योजना के चिह्नित पात्र लाभार्थियों, ग्रामीण और शहरी दोनों के लिए 80 लाख घरों का निर्माण किया जाएगा और इस उद्देश्य के लिए 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। साल 2022 में 1.5 लाख डाकघरों में से 100 फ़ीसदी कोर बैंकिंग प्रणाली पर आ जाएँगे, जिससे 11 नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, एटीएम के माध्यम से वित्तीय समावेशन और खातों तक पहुँच सम्भव हो सकेगी, और डाकघर खातों और बैंक खातों के बीच धन का ऑनलाइन हस्तांतरण भी होगा। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों और वरिष्ठ नागरिकों के लिए सहायक होगा, जिससे अंतर-संचालन और वित्तीय समावेशन सक्षम होगा। स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर सरकार ने अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा देश के 75 ज़िलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयाँ (डीबीयू) स्थापित करने का प्रस्ताव किया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिजिटल बैंकिंग का लाभ देश के कोने-कोने में उपभोक्ता तक पहुँचे। नागरिकों को उनकी विदेश यात्रा में सुविधा बढ़ाने के लिए 2022-23 में एम्बेडेड चिप और फ्यूचरिस्टिक तकनीक का उपयोग करते हुए ई-पासपोर्ट जारी किये जाएँगे।
रक्षा के मोर्चे पर सरकार ने सशस्त्र बलों के लिए उपकरणों में आयात को कम करने और आत्मनिर्भर को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहरायी है। वित्त वर्ष 2022-23 में पूँजीगत ख़रीद बजट का 68 फ़ीसदी घरेलू उद्योग के लिए निर्धारित किया जाएगा, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 58 फ़ीसदी था। रक्षा अनुसंधान और विकास बजट का 25 फ़ीसदी रक्षा अनुसंधान एवं विकास बजट के साथ उद्योग, स्टार्टअप और शिक्षा के लिए खोला जाएगा। वित्त मंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि सार्वजनिक निवेश को आगे बढऩा चाहिए और 2022-23 में निजी निवेश और माँग को बढ़ावा देना चाहिए और इसलिए केंद्रीय बजट में पूँजीगत व्यय के परिव्यय में एक बार फिर चालू वित्त वर्ष में 5.54 लाख करोड़ रुपये से अगले माली साल (2022-23) में 7.50 लाख करोड़ रुपये से 35.4 फ़ीसदी की वृद्धि की जा रही है। चालू वित्त वर्ष में यह 5.54 लाख करोड़ रुपये है, जो 2022-23 में 7.50 लाख करोड़ रुपये है। यह 2019-20 के ख़र्च के 2.2 गुना से अधिक हो गया है और 2022-23 में यह परिव्यय सकल घरेलू उत्पाद का 2.9 फ़ीसदी होगा। राज्यों को सहायता अनुदान के माध्यम से पूँजीगत सम्पत्ति के निर्माण के लिए किये गये प्रावधान के साथ किये गये इस निवेश के साथ केंद्र सरकार का प्रभावी पूँजीगत व्यय 2022-23 में 10.68 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो जीडीपी का लगभग 4.1 फ़ीसदी होगा।
वित्त वर्ष 2022-23 में सरकार के समग्र बाज़ार उधार के हिस्से के रूप में हरित बुनियादी ढाँचे के लिए संसाधन जुटाने के लिए सॉवरेन ग्रीन बांड जारी किये जाएँगे। आय को सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में लगाया जाएगा, जो अर्थ-व्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने में मदद करती हैं। सरकार ने अधिक कुशल और सस्ती मुद्रा प्रबन्धन प्रणाली के लिए 2022-23 से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये जाने वाले ब्लॉकचेन और अन्य तकनीकों का उपयोग करते हुए डिजिटल रुपया पेश करने का प्रस्ताव रखा।
बजट में करदाताओं को अतिरिक्त कर के भुगतान पर अद्यतन विवरणी दाख़िल करने की अनुमति देने वाले एक नये प्रावधान का प्रस्ताव है। यह अद्यतन विवरणी प्रासंगिक निर्धारण वर्ष की समाप्ति से दो वर्षों के भीतर दाख़िल की जा सकती है। सीतारमण ने कहा कि इस प्रस्ताव के साथ करदाताओं में एक विश्वास क़ायम होगा, जो निर्धारिती को स्वयं उस आय की घोषणा करने में सक्षम करेगा, जो वह रिटर्न दाख़िल करते समय पहले छूट गयी थी। यह स्वैच्छिक कर अनुपालन की दिशा में एक सकारात्मक क़दम है। केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों के वेतन का 14 फ़ीसदी राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) टियर-ढ्ढ में योगदान करती है। यह कर्मचारी की आय की गणना में कटौती के रूप में अनुमत है। हालाँकि राज्य सरकार के कर्मचारियों के मामले में इस तरह की कटौती केवल वेतन के 10 फ़ीसदी की सीमा तक की अनुमति है। समान व्यवहार प्रदान करने के लिए बजट में राज्य सरकार के कर्मचारियों के एनपीएस खाते में नियोक्ता के योगदान पर कर कटौती की सीमा को 10 फ़ीसदी से बढ़ाकर 14 फ़ीसदी करने का प्रस्ताव है। कुछ घरेलू कम्पनियों के लिए विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी कारोबारी माहौल स्थापित करने के प्रयास में सरकार द्वारा नयी निगमित घरेलू विनिर्माण कम्पनियों के लिए 15 फ़ीसदी कर की रियायती कर व्यवस्था शुरू की गयी थी। केंद्रीय बजट में धारा-115 बीएबी के तहत निर्माण या उत्पादन शुरू करने की अन्तिम तिथि 31 मार्च, 2024 तक बढ़ाने का प्रस्ताव है।
लब्बोलुआब यह कि अर्थ-व्यवस्था अभी भी डबल इंजन ग्रोथ की तलाश में है, जो पिछले वित्तीय वर्ष के रिकॉर्ड संकुचन से उबरने में मदद कर सके। यह सवाल लटका हुआ है कि क्या मध्यम वर्ग के लिए टैक्स ब्रेक और ग़रीबों के लिए नक़द हैंडआउट के संयोजन के माध्यम से प्रमुख मुद्दों को हल करने का अवसर चूक गया है। सार्वजनिक पूँजीगत व्यय की भूमिका को मंत्री स्वयं स्वीकार करते हैं। फिर भी पूँजीगत खाते के लिए 7.50 लाख करोड़ रुपये का बजट परिव्यय चालू वित्त वर्ष के 6.03 लाख करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से सिर्फ़ 24.4 फ़ीसदी की वृद्धि है, जबकि कार्यक्रम द्वारा परिकल्पित सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे का व्यापक विस्तार सम्भावित रूप से परिवर्तनकारी हो सकता है, यदि इसे कल्पना के रूप में क्रियान्वित किया जाता है, तो बजट उन विवरणों पर काफ़ी हद तक कम है; जहाँ यह केवल सडक़ों और रेलवे घटकों के लिए कुछ आँकड़ों में विशिष्टताओं से सम्बन्धित है।
स्वास्थ्य देखभाल, ग्रामीण विकास और राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के लिए परिव्यय वित्तीय वर्ष 2023 के बजट अनुमानों में चालू वर्ष के संशोधित अनुमानों से कुल व्यय के फ़ीसद के रूप में सिकुड़ गया है; भले ही कुछ मामलों में केवल मामूली रूप से ही सही। इन क्षेत्रों को मोटे तौर पर राजकोषीय समेकन रोड मैप से चिपके रहने के लिए सरकार की उत्सुकता के प्रभाव को सहन करने के लिए मजबूर किया गया है- बजट में 6.9 के संशोधित अनुमान से 2022-23 में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.4 फ़ीसदी तक सीमित करने का अनुमान है, जो सरकार की प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसके बजाय स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी ख़र्च में काफ़ी वृद्धि की जानी चाहिए थी, जिसमें चल रही महामारी की पहली दो लहरों से सब$क लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे के बड़े पैमाने पर विस्तार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया था।
मंत्री ने दो-ट्रैक दृष्टिकोण अपनाकर आभासी मुद्राओं से निपटने के तरीक़े पर उग्र बहस को ठंडा करने का प्रयास किया है। आरबीआई द्वारा जारी डिजिटल रुपया ब्लॉकचेन और अन्य सम्बन्धित तकनीकों का लाभ उठाएगा। समानांतर में वह किसी भी आभासी डिजिटल सम्पत्ति के हस्तांतरण से होने वाली आय पर 30 फ़ीसदी की दर से कर लगाने का इरादा रखती है, जिसमें केवल अधिग्रहण की लागत के लिए कटौती की अनुमति है।
बजट की मुख्य बातें
भारत की आर्थिक वृद्धि 9.2 फ़ीसदी होने का अनुमान है, जो सभी बड़ी अर्थ-व्यवस्थाओं में सबसे अधिक है। उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन योजना के तहत 14 क्षेत्रों में 60 लाख नये रोज़गार सृजित होंगे।
अमृत काल में प्रवेश करते हुए भारत के लिए 25 साल की लम्बी लीड ञ्च 100, बजट विकास को गति प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के दायरे में आर्थिक परिवर्तन, निर्बाध मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी और रसद दक्षता के लिए सात इंजन शामिल होंगे।
वित्त वर्ष 2022-23 में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क का 25,000 किलोमीटर तक विस्तार किया जाएगा। चार स्थानों पर मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्कों के कार्यान्वयन के लिए 2022-23 में पीपीपी मोड के माध्यम से ठेके दिये जाएँगे।
स्थानीय व्यवसायों और आपूर्ति शृंखलाओं की सहायता के लिए एक स्टेशन एक उत्पाद अवधारणा।
अगले तीन साल के दौरान 400 नयी पीढ़ी की वंदे भारत ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा।
राष्ट्रीय रोपवे विकास कार्यक्रम, पर्वतमाला को पीपीपी मोड पर चलाया जाएगा।
किसानों को गेहूँ और धान की ख़रीद के लिए 2.37 लाख करोड़ का सीधा भुगतान।
फ़सल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों और पोषक तत्त्वों के छिडक़ाव के लिए किसान ड्रोन।
130 लाख एमएसएमई ने आपातकालीन क्रेडिट लिंक्ड गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत अतिरिक्त ऋण प्रदान किया।
ड्रोन शक्ति की सुविधा के लिए और ड्रोन-ए-ए सर्विस के लिए स्टार्टअप्स को बढ़ावा दिया जाएगा।
प्रधानमंत्री ई विद्या में वन क्लास-वन टीवी चैनल कार्यक्रम को 200 टीवी चैनलों तक विस्तारित किया जाएगा।
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक खुला मंच शुरू किया जाएगा।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2022-23 में 80 लाख घरों को पूरा करने के लिए 48,000 करोड़ रुपये आवंटित।
उत्तर-पूर्व में बुनियादी ढाँचे और सामाजिक विकास परियोजनाओं को निधि देने के लिए नयी योजना शुरू की गयी।
उत्तरी सीमा पर विरल आबादी, सीमित सम्पर्क और बुनियादी ढाँचे वाले सीमावर्ती गाँवों के विकास के लिए जीवंत गाँव कार्यक्रम का आयोजन।
1.5 लाख डाकघरों में से 100 फ़ीसदी कोर बैंकिंग सिस्टम पर आएँगे।
एम्बेडेड चिप और फ्यूचरिस्टिक तकनीक के साथ ई-पासपोर्ट शुरू किये जाएँगे।
भूमि अभिलेखों के आईटी आधारित प्रबन्धन के लिए विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या जरी होगी।
प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम के हिस्से के रूप में 5जी के लिए एक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने के लिए डिजाइन-आधारित विनिर्माण योजना शुरू की जाएगी।
राज्यों को उद्यम और सेवा केंद्रों के विकास में भागीदार बनने में सक्षम बनाने के लिए विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम को एक नये क़ानून से बदला जाएगा।
वित्त वर्ष 2022-23 में घरेलू उद्योग के लिए पूँजी ख़रीद बजट का 68 फ़ीसदी, 2021-22 में 58 फ़ीसदी से अधिक है।
सूर्योदय में आरएंडडी के लिए सरकार का योगदान देना होगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जियोस्पेशियल सिस्टम और ड्रोन, सेमीकंडक्टर और इसके ईको-सिस्टम, स्पेस इकोनॉमी, जीनोमिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स, ग्रीन एनर्जी और क्लीन मोबिलिटी सिस्टम जैसे अवसर दिये जाएँगे।
साल 2030 तक 280 जीडब्ल्यू स्थापित सौर ऊर्जा के लक्ष्य को पूरा करने के लिए उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के निर्माण के लिए उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन के लिए 19,500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया जाएगा।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2022-23 से डिजिटल रुपये की शुरुआत।
संगीत की लता

लता मंगेशकर। यह एक नाम भर नहीं है। संगीत साधना है और लता इसकी अनन्य साधक थीं। उन्होंने ताउम्र इसे जीया। साठ साल की उम्र पार करने के बाद भी उनकी आवाज़ में किसी युवती-सी खनक थी। निश्चित ही उनमें यह नैसर्गिक प्रतिभा थी। किशोरावस्था में परिवार के लिए कमाने का बोझ ढोकर भी लता ने कमाल का जीवट दिखाया। गायन में जब वह स्थापित हुईं, तो उनकी आवाज़ संगीत की दुनिया में पहचान बन गयी। लता एक ही थीं। उनके जाने से संगीत का एक ऐसा सितारा टूट गया है, जिसके बिना एक ख़ालीपन हमेशा रहेगा; भले ही उनकी आवाज़ सदियों तक जहाँ में गूँजती रहेगी।
लता के कई गीतों में उनके जीवन की पीड़ा का दर्द महसूस किया जा सकता है। देश-भक्ति से भरपूर कवि प्रदीप के लिखे गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’ को लता ने जिस शिद्दत से गाया था, उसकी तारीख़ के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं। यह कहा गया है कि लता ने यह गीत सन् 1962 के चीन-भारत युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले वीरों की याद में 27 जनवरी, 1963 को जब नेशनल स्टेडियम में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में गाया था, तो नेहरू अपने आँसू नहीं रोक पाये थे।
लता शुरू में अभिनय करना चाहती थीं। उन्होंने किया भी था। सन् 1942 में पिता दीनानाथ शास्त्री की अचानक मृत्यु से उपजी पारिवारिक परिस्थितियों में जिम्मेदारी आ पडऩे के वक़्त लता मंगेशकर ने सन् 1948 तक अभिनय में कोशिश की। उन्होंने आठ फ़िल्मों में अभिनय किया। चूँकि लता पाँच भाई-बहनों- मीना, आशा, उषा और हृदयनाथ में सबसे बड़ी थीं। परिवार के पोषण का ज़िम्मा उनके नन्हें कन्धों पर था। भले ही उनका अभिनय करियर आगे नहीं बढ़ा; लेकिन उन्होंने पाश्र्व गायन से शुरुआत बेहतर की।
उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर एक शास्त्रीय गायक और थिएटर अभिनेता थे। उन्होंने थिएटर कम्पनी भी चलायी, जहाँ संगीत, नाटक तैयार होते थे। लता ने यहीं पाँच साल की छोटी आयु में अभिनय की शुरुआत की थी। अभिनय के बाद गायन को उन्होंने जीवन का रास्ता बना लिया।
एक बार लता ने बताया कि एक दिन उनके पिता के एक शिष्य राग का अभ्यास कर रहे थे। लता को लगा कि उसमें कुछ ख़ामी है, तो उन्होंने उसे दुरुस्त कर दिया। पिता को लौटने पर इसका पता चला, तो उनके मुँह से निकला- ‘मुझे अपनी ही बेटी में एक शागिर्द मिल गया।’ दीनानाथ ने लता की माँ से कहा कि हमारे घर में ही एक गायिका है, हमें इसका पता ही नहीं चला।
गायन के शुरुआती दिनों में उन्हें कहा गया कि उनकी आवाज़ में पतलापन है। एक तरह से एक पाश्र्व गायिका के रूप में फ़िल्म उद्योग ने उन्हें अस्वीकार ही कर दिया। यह वो ज़माना था, जब फ़िल्म उद्योग में गायिकी के मंच पर नूरजहाँ और शमशाद बेग़म जैसी गायिकाएँ विराजमान थीं।
हालाँकि समय के साथ लता की आवाज़ लोगों को भाने लगी; क्योंकि तब तक नूरजहाँ और शमशाद बेग़म की भारी आवाज़ के साथ-साथ पतली आवाज़ भी पसन्द की जाने लगी थी।
सन् 1949 में महल फ़िल्म के उनके गीत ‘आएगा आने वाला’ ने धूम मचा दी। इस गीत में लता की आवाज़ में हताशा, उम्मीद और इंतज़ार का अद्भुत मिश्रण था। संगीतकार खेमचंद प्रकाश की धुनों से पॉलिश हुआ यह गीत नक्शाब जारचवी ने लिखा था। शोहरत की बुलंदियों के सफ़र की यह मज़बूत शुरुआत थी। लता ने इसके बाद पीछे मुडक़र नहीं देखा। एक के बाद एक नायाब गीत उन्हें गायन का भगवान बनाते गये।
इसके बाद उसी साल आया बरसात फ़िल्म का गीत ‘हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का’ काफ़ी मशहूर हुआ। दिल अपना और प्रीत परायी का गीत ‘अजीब दास्ताँ है ये’ लता के गाये श्रेष्ठ गानों में एक माना जाता है। सन् 1960 में मुगल-ए-आज़म का ‘प्यार किया तो डरना क्या’ एक तरह से दमन के ख़िलाफ़ विद्रोह से भरा गीत था, जो हरेक की ज़ुबाँ पर चढ़ गया। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सन् 1999 में लता के सम्मान में एक इत्र ‘Lata Eau de Parfum’ लॉन्च किया गया था। यही नहीं, उन्होंने एक भारतीय हीरा निर्यात कम्पनी, अडोरा के लिए स्वरंजलि नामक एक संग्रह भी डिजाइन किया। आपको हैरानी होगी कि इस संग्रह के पाँच पीस जब क्रिस्टीज में नीलाम किये गये, तो इनसे 105,000 पाउंड (1,06,31,271.00 भारतीय रुपये) हासिल हुए। लेकिन इन्हीं लता मंगेशकर ने पिता की मौत के बाद पैसे के लिए संघर्ष किया था और अपने छोटे भाई बहनों के लिए अपनी ज़रूरतों और ख़ुशियों की क़ुर्बानी दे दी। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि लता ने यह पैसे सन् 2005 में कश्मीर भूकम्प के लिए बने राहत कोष में दान कर दिये थे। दादा साहेब फालके, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न जैसे बड़े पुरस्कारों से उन्हें नवाज़ा गया।
लता मंगेशकर क्रिकेट की दीवानी रहीं। उनका क्रिकेट के प्रति यह प्रेम सचिन तेंदुलकर के आने से बहुत पहले से है, जब वह युवा थीं। एक शख़्स, जो क्रिकेट से जुड़ा था, उनकी ज़िन्दगी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया था। यह थे राजस्थान की डूंगरपुर रियासत के महाराजा राज सिंह डूंगरपुर। डूंगरपुर रणजी भी खेले और बीसीसीआई के अध्यक्ष भी रहे। लता घर में क्रिकेट में हाथ आजमा लेती थीं। वाकेश्वर हाउस में क्रिकेट के इस प्रेम के दौरान ही लता की मुलाक़ात डूंगरपुर से हुई थी। ख़ुद राज सिंह ने सन् 2009 में एक साक्षात्कार में बताया था कि वाकेश्वर हाउस में वह लता मंगेशकर और उनके भाई के साथ क्रिकेट खेलते रहे थे। लता मंगेशकर और राज सिंह की काफ़ी मुलाक़ातों का भी ज़िक्र रहा है। कहते हैं कि दोनों एक-दूसरे को पसन्द करते थे और विवाह करने के लिए भी तैयार थे। हालाँकि दोनों का प्यार रिश्ते में नहीं बदल पाया। क्योंकि डूंगरपुर के पिता चाहते थे कि उनका बेटा राजपूत परिवार में ही विवाह करे। विवाह तो नहीं हो सका; लेकिन लता और डूंगरपुर दोनों ने ही जीवन भर विवाह नहीं किया। दोनों के प्यार की ऊँचाई का इससे पता चलता है। दोनों ताउम्र दोस्त ज़रूर रहे।
गीत, जो हर ज़ुबाँ पर चढ़ गये
महल (1949) का ‘आएगा आने वाला’, बरसात (1949) ‘हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का’, दिल अपना और प्रीत परायी (1960) का ‘अजीब दास्ताँ है ये’, ‘ऐ मेरे वतन के लोगो’, मुगल-ए-आजम (1960) का ‘प्यार किया तो डरना क्या’, जब-जब फूल खिले (1965) का ‘ये समां’, गाइड (1972) का ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’, पाकीज़ा (1972) का ‘चलते चलते यूँ ही कोई’, शोर (1972) का ‘इक प्यार का नग़्मा है’, अनामिका (1973) का ‘बाहों में चले आओ’, मुकद्दर का सिकंदर (1978) का ‘सलाम-ए-इश्क़ मेरी जान’, बाज़ार (1982) का ‘फिर चढ़ी रात’, सिलसिला (1981) का ‘देखा एक ख़्वाब’, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे (1995) का ‘तुझे देखा तो’, रुदाली (1993) का ‘दिल हूम-हूम करे’, दिल से (1998) का ‘जिया जले’, कभी ख़ुशी कभी ग़म (2001) का ‘कभी ख़ुशी कभी ग़म’, वीर-ज़ारा (2004) का ‘तेरे लिए’ और रंग दे बसंती (2006) का ‘लुका छुपी’।
लता मंगेशकर की चार प्रतिज्ञाएँ
लता मंगेशकर के पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर का पहला श्राद्ध था। लता मंगेशकर की बहनों- मीना और आशा ने तरह-तरह के पकवान तैयार किये थे। 21 तरह की सब्ज़ियाँ तैयार की गयीं। लेकिन उनकी माई (माँ) को यह पसन्द नहीं आया। उस समय उन्होंने पंडित दीनानाथ की प्रिय चाँदी की एक थाली बेच दी। इससे लता को $गुस्सा आ गया। उन्होंने माई से पूछा- ‘आपने उनकी पसन्दीदा थाली क्यों बेची?’ तब माई ने कहा- ‘यह मेरे मालिक का श्राद्ध है। किसी ऐरे-ग़ैरे का नहीं है। उनका श्राद्ध उसी ठाटबाट से करना चाहिए, जिसमें वे रहे।’ उनकी माताजी ने उन्हें कहा- ‘एक चाँदी की थाली के लिए तुम क्यों आँसू बहा रही हो? अगर तुम अपने पिता की तरह गाती रहोगी, तो एक वक़्त ऐसा आएगा कि तुम पर सोने की वर्षा होगी।’
श्राद्ध के समय पिंडदान का समय था। किसी कौए का इंतज़ार था। लेकिन कौआ नहीं आया। क़रीब एक घंटे बाद माई ने कहा- ‘आप पाँच भाई-बहनों में से एक ने कुछ $गलत किया है, इसलिए कौआ नहीं आ रहा है। तुम पाँचों कुछ प्रतिज्ञा करो, ताकि कौआ पिंड को छुए।’ इस पर लता ने चार प्रतिज्ञाएँ कीं। पहली- प्रतिदिन संगीत का रियाज़ करना। दूसरी- नियमानुसार बाबा का श्राद्ध करना। तीसरी- हर वर्ष बाबा के श्राद्ध दिवस पर संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत करना। और चौथी- करने के बाद भी कौआ नहीं आया। तब लता दीदी के साथ सभी ने चौथी प्रतिज्ञा की कि हम संगीत के अलावा और कुछ नहीं करेंगे। इस प्रतिज्ञा के बाद कौए ने पिंड ग्रहण किया। (प्रस्तुति : मनमोगन सिंह नौला)
बजट रे बजट, तेरा रंग कैसा!

इस बार के बजट को आम आदमी को अँगूठा दिखाने वाला माना गया
भारत में कहा जाता है कि देश का बजट जनता के लिए कम, राजनीति के लिए ज़्यादा बनाया जाता है। या कभी-कभी चुनाव के लिए भी। लेकिन इस बार का बजट इनमें से किसी भी खाँचे में नहीं बैठता। साल भर के किसान आन्दोलन को रोकने के लिए तीन कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा के दो महीने बाद यह बजट आया। लेकिन किसान इससे क़तर्इ ख़ुश नहीं हैं।
मध्यम वर्ग, जिसने सन् 2014 और सन् 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा, खासकर नरेंद्र मोदी पर भरोसा करके उन्हें प्रधानमंत्री चुनने के उद्देश्य से भाजपा के पक्ष में बहुमत के साथ मतदान किया; उसे इस बजट से नाउम्मीदी मिली। युवाओं के लिए बजट में 60 लाख नौकरियाँ र्इज़ाद करने की ओर काम करने की बात कही गयी है। लेकिन मोदी सरकार का रोज़गार देने के मामले में रिकॉर्ड बहुत बेहतर नहीं है। ऊपर से हाल के दो वर्षों में कोरोना महामारी के बार-बार फैलते संक्रमण और पिछले समय में दो बार हुई तालाबंदी के कारण जिन करोड़ों लोगों का रोज़गार गया, उनमें से आधे से ज़्यादा आज तक घरों में बेकार बैठे हैं। क्योंकि सरकार ने पाबंदियाँ तो लगा दीं; लेकिन उनके रोज़गार की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की थी। इस बार के बजट को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले 25 साल का आईना बताया है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे आत्मनिर्भरता की तरफ़ एक और बड़ा क़दम बताया है। लेकिन बेहद कमज़ोर अर्थ-व्यवस्था के इस दौर में जब आम आदमी को राहत की ज़रूरत है; क्या उस वर्ग को नज़रअंदाज़ करके इस बजट को आत्मनिर्भरता वाला और 25 साल के लिए आईना वाला बजट माना जा सकता है? भविष्य की ज़रूरतों के नाम पर क्या आम आदमी की वर्तमान ज़रूरतों की बलि दी जा सकती है? भारत के कल्याणकारी राज्य होने की अवधारणा के विपरीत जाकर इस तरह के बजट को कैसे आकांक्षाओं को पूरा करने वाला बजट कहा जा सकता है? यहाँ तक कि आयकर की सीमा (स्लैब) भी नहीं बढ़ायी गयी, जिससे आम आदमी निराश है।
कोरोना-काल के पिछले दो साल आज़ादी के बाद भारत की सबसे बुरी तस्वीर दिखाने वाले रहे हैं। दुनिया ने भारत के गाँवों से शहरों में नौकरियों के लिए आये करोड़ों ग़रीब और निम्न-माध्यम वर्ग के लोगों को छोटे-छोटे बच्चों के साथ कच्ची-पक्की सडक़ों पर 500 से 2,000 किलोमीटर तक या उससे भी अधिक पैदल जाते देखा है। ऐसे देश में बजट किस पर फोकस होना चाहिए? इस पर ही कई सवाल हैं। कई आर्थिक जानकार मानते हैं कि देश का बजट किसी भी रूप में बहुसंख्यक आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करता। इसका एक कारण यह भी है कि इन लोगों की आवाज़ नक्कारखाने में तूती (भीड़ के शोर-शराबे में कही गयी बात) जैसी है।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डेरेक ओब्रायन बजट पर कहते हैं- ‘बजट से साबित होता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों, $गरीबों और मध्य वर्ग की परवाह नहीं करते। हीरे (कॉर्पोरेट लोग) सरकार के सबसे अच्छे मित्र हैं। किसानों, मध्य वर्ग, दिहाड़ी मज़दूरों, बेरोज़गारों की प्रधानमंत्री कोई परवाह नहीं करते।’
इसी तरह भाकपा नेता अतुल कुमार का कहना है- ‘एक तरफ़ ग्रामीण भारत और आम लोगों को बजट में कोई राहत नहीं। दूसरी ओर कारपोरेट कर कम करके देश के सम्पन्न लोगों को सहूलियत दी गयी है। किसानों, युवाओं के लिए कुछ नहीं किया। सरकार देश की आर्थिक प्रगति की गाड़ी को पटरी पर लाने में विफल साबित हुई है।’
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े बजट पर कहते हैं- ‘सरकार के वादे एक के एक बाद झूठ साबित होते जा रहे हैं। राजकोषीय घाटा बहुत ही ज़्यादा है। कॉरपोरेट कर घटाया; लेकिन आम लोगों को राहत नहीं दी। मैं तो यही कहूँगा कि यह द्रोणाचार्य और अर्जुन का बजट है। एकलव्य का बजट नहीं है।’
किसान देश का बड़ा मुद्दा हैं। उनका आन्दोलन हुआ, तो दुनिया भर के मीडिया में इसकी चर्चा हुई और किसानों की दुर्दशा पर चिन्ता जताने वाले सम्पादकीय लिखे गये और ख़बरें छपती रहीं। लेकिन देश के मीडिया का प्रभावशाली वर्ग (गोदी मीडिया) किसानों को ख़ालिस्तानी, आतंकवादी और दलाल ठहराने की कोशिश करता रहा। बजट पर किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने कहा- ‘आम बजट में मोदी सरकार ने एमएसपी का बजट पिछले साल के मुक़ाबले कम कर दिया है। पिछले बजट (2021-22) के बजट में एमएसपी की ख़रीदी पर बजट 2,48,000 करोड़ रुपये था, जिसे वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में घटाकर 2,37,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह भी सिर्फ़ धान और गेहूँ की ख़रीदी के लिए है। इसे लगता है कि सरकार दूसरी फ़सलों की ख़रीदी एमएसपी पर करना ही नहीं चाहती।’
टिकैत का यह भी आरोप है कि किसानों की आय दोगुनी करने, सम्मान निधि देने और दो करोड़ रोज़गार देने की बात नहीं हुई। एमएसपी, खाद-बीज, डीजल और कीटनाशक पर कोई राहत नहीं दी गयी है। इससे ज़ाहिर होता है कि सरकार किसानों के साथ धोखा कर रही है। युवाओं को 60 लाख रोज़गार देने का वादा बजट में है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि हाल के वर्षों में इस मोर्चे पर बहुत कमज़ोर हुआ है। दिल्ली के अतुल चौक में एक युवा अग्रिम कपूर ने कहा- ‘काहे का रोज़गार मिलेगा? पहली बार बजट थोड़ी आया है। पिछले बजटों में रोज़गार के जो वादे किये थे इन्होंने; क्या वो पूरे हुए? आप मीडिया वाले भी यह बातें नहीं उठाते।’ हालाँकि मोदी सरकार वरिष्ठ मंत्री नितिन गडकरी- ‘यह बजट एक विजन पेश करता है कि इस साल और आने वाले वर्षों में देश की अर्थ-व्यवस्था की रफ़्तार कैसी रहेगी।’
बेरोज़गारी बड़ा मुद्दा
यह बजट संसद में पेश में होने के ठीक एक हफ़्ते बाद 9 फरवरी को राज्यसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद रॉय ने एक सवाल का जवाब में बताया कि सन् 2018 से सन् 2020 के बीच 25,231 से ज़्यादा लोगों ने बेरोज़गारी और क़र्ज़ा में डूबने के कारण आत्महत्या की है। केंद्रीय मंत्री ने बताया कि इसमें से 9,140 लोगों ने बेरोज़गारी के कारण, तो वहीं 16,091 लोगों ने क़र्ज़ा से दु:खी होकर आत्महत्या की। ये आँकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने उपलब्ध कराये हैं। नित्यानंद रॉय के बयान से समझा जा सकता है कि देश में बेरोज़गारी की क्या हालत है?
इस बार के बजट सत्र में कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष ने बेरोज़गारी के मुद्दे पर सरकार को ख़ूब घेरा। विपक्ष का आरोप था कि कोरोना-काल में सरकार की नीतियों ने बेरोज़गारी को और बढ़ाया है। दिलचस्प यह रहा कि बेरोज़गारी को लेकर सरकार ने राज्यसभा में कुछ महत्त्वपूर्व जानकारियाँ एक सवाल के जवाब में प्रस्तुत कीं। सरकार ख़ुद कह रही है कि सन् 2018 से सन् 2020 के बीच 25,000 से अधिक भारतीयों ने बेरोज़गारी और क़र्ज़ा से दु:खी होकर आत्महत्या की है।
सरकार के आँकड़ों के मुताबिक, 2018 के मुक़ाबले 2020 में बेरोज़गारी से होने वाली मौतों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। सन् 2018 में बेरोज़गारी के कारण जान देने वाले लोगों की संख्या 2,741 थी; लेकिन सन् 2020 में यह संख्या 3,548 तक पहुँच गयी। सन् 2019 में 2,851 भारतीयों ने रोज़गार नहीं होने की वजह से आत्महत्या की। वहीं क़र्ज़ा से दु:खी होकर आत्महत्या करने वालों की संख्या में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। सन् 2018 में दिवालियापन और क़र्ज़ा के कारण आत्महत्या करने वाले लोगों की संख्या 4,970 थी, जबकि सन् 2019 में यह आँकड़ा बढक़र 5,908 हो गया। सन् 2020 में यह घटकर 5,213 हो गया। लेकिन ग़रीब व्यक्ति की मौत भी सरकारी आँकड़ों और आलमारियों में सजने भर की चीज़ रह गयी है। ऐसे में बजट को अगले 25 साल का आईना बताकर परोसा जाता है और आम आदमी को इसमें अँगूठा दिखा दिया जाता है।
“बजट 2022 से देश को आधुनिकता की तरफ़ ले जाया जाएगा। भारत का आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ, इसकी नींव पर ही आधुनिक भारत का निर्माण करना ज़रूरी है।’’
नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री
“मोदी सरकार के बजट में कुछ नहीं है। मध्यम वर्ग, वेतनभोगी वर्ग, ग़रीब और वंचित वर्ग, युवाओं, किसानों और एमएसएमई के लिए कुछ नहीं है।’’
राहुल गाँधी
कांग्रेस नेता
“बेरोज़गारी और महँगाई से पिस रहे आम लोगों के लिए बजट में कुछ नहीं है। बड़ी-बड़ी बातें हैं और हक़ीक़त में कुछ नहीं है। यह पेगासस स्पिन बजट है।’’
ममता बनर्जी
मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
“बजट किसके लिए है? सबसे अमीर 10 फ़ीसदी भारतीय देश की कुल सम्पत्ति के 75 फ़ीसदी के स्वामी हैं। महामारी के दौरान सबसे अधिक मुनाफ़ा कमाने वालों पर अधिक कर क्यों नहीं लगाया गया?’’
सीताराम येचुरी
महासचिव, माकपा
“केंद्रीय बजट नये वादों के साथ जनता को लुभाने के लिए लाया गया है केंद्र बढ़ती ग़रीबी, बेरोज़गारी, महँगाई और किसानों की आत्महत्या जैसी गम्भीर चिन्ताओं से मुक्त क्यों है?’’
मायावती
बसपा प्रमुख
“करोना-काल में लोगों को बजट से बहुत उम्मीद थी। बजट ने लोगों को मायूस किया है। आम जनता के लिए बजट में कुछ नहीं है। महँगाई कम करने के लिए कुछ नहीं है।’’
अरविंद केजरीवाल
मुख्यमंत्री, दिल्ली
“बजट में ग्रामीण भारत और आम लोगों को कोई राहत नहीं है। किसानों, युवाओं के लिए कुछ नहीं किया गया।’’
अतुल कुमार अंजान
भाकपा नेता
आशा-निराशा वाला बजट
वित्त वर्ष 2022-23 के बजट को लेकर लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग सरकार के 25 साल बाद के प्रयास सराहनीय बता रहे हैं और इस बजट को अर्थ-व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करने वाला मान रहे हैं। लेकिन रोज़गारपरक न होने से आम जनता के लिए यह बजट काफ़ी निराशाजनक है। बजट पर व्यापारियों, किसानों, युवाओं और गृहणियों ने ‘तहलका’ संवाददाता को अपने मन की बात बतायी। इनका कहना है कि बजट में लाखों-करोड़ों के आँकड़े पेश किये जाते हैं। कहा जाता है कि फलाँ-फलाँ क्षेत्र के लिए इतना / उतना धन दिया जा रहा है; लेकिन धरातल पर कुछ दिखता नहीं है। सिर्फ़ और सिर्फ़ आँकड़ों में ही बजट दिखता है।
दिल्ली के चाँदनी चौक के व्यापारी अमन सेठ का कहना है कि कोरोना-काल चल रहा है। कोरोना के चलते अर्थ-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गयी है। इस बजट में उसे पटरी पर लाने का प्रयास किया गया है। लेकिन जीएसटी जैसे क़ानून जो थोपे गये हैं, उससे व्यापारियों के धन्धे पर काफ़ी असर पड़ा है। मंदी की मार एक ऐसी हक़ीक़त है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार बजट को लेकर जितनी चाहे तारीफ़ कर ले और विपक्ष चाहे कितना भी विरोध कर ले; लेकिन इससे कुछ भी असर व्यापारियों पर नहीं पड़ता। व्यापारियों पर असर पड़ता है, तो जीएसटी जैसे क़ानून से। अमन सेठ का कहना है कि कोरोना-काल में व्यापारियों की माली हालत काफ़ी ख़राब हुई है। इस दौरान सरकार का दायित्व बनता है कि वह व्यापारियों को कुछ राहत देती। अगर ऐसा होता, तो बाज़ार हरा-भरा होता। लेकिन व्यापारियों के लिए इस बजट में कोई राहत नहीं दी गयी।
किसान नेता चौधरी बीरेन्द्र सिंह का कहना है कि जब 2021-22 का बजट पेश किया गया था, तब किसान कृषि क़ानून के विरोध में आन्दोलन कर रहे थे। इस बार जब 2022-23 का बजट पेश किया, तो किसानों को जो उम्मीद थी, वो नहीं मिला। क्योंकि इस बार सरकार द्वारा किसानों की माँगें माने जाने के बाद आन्दोलन स्थगित करके घरों-खेतों में थे। हालाँकि किसानों की माँगें अभी पूरी नहीं की गयी हैं। बजट में किसानों को जो सुविधाएँ देने की बात की गयी है, उससे ग़रीब किसानों को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। क्योंकि एक ओर तो महँगाई है और उस पर डीजल-पेट्रोल के दामों में इज़ाफ़ा। ऐसे में डीजल ख़रीदने के दौरान छोटे किसान को काफ़ी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। सरकार को छोटे और मँझोले किसानों के लिए अलग से कोई ऐसा बजट पेश करना चाहिए था, जिससे उन्हें विशेष लाभ मिलता। लेकिन बजट में ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ है।
उनका कहना है कि भले यह बताया और पढ़ाया जाता है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है; लेकिन हक़ीक़त में यह देश पूँजीपतियों के हाथ की कठपुतली बनता जा रहा है। इस बार बजट पेश किया गया है, वो पूरी तरह पूँजीपतियों को ध्यान में रखकर पेश किया गया है।
इंजीनियरिंग का कोर्स करने वाले मुकेश पचौरी का कहना है कि इस बार का बजट पूरी तरह से पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखकर पेश किया गया है कि चुनाव में बजट से क्या-क्या सियासी लाभ मिल सकता है। मुकेश का कहना है कि कोई भी बजट हो, उसका तात्कालिक लाभ तो जनमानस को मिलता नहीं है। लेकिन लोग अनुमान ज़रूर लगने लगते हैं कि सरकार की मंशा क्या है? वह क्या चाहती है? इस बजट से यह बात तो साफ़ है कि सरकार बजट में दूरगामी लक्ष्यों पर निशाना साधा है, जिसका जनता को कोई सीधा लाभ फ़िलहाल मिलने वाला नहीं है। इस बजट में बेरोज़गारों के लिए नौकरियों में नयी भर्ती की जो रूप ख़ाका बनाया गया है, उससे कब लाभ मिलता है? यह भी आने वाला समय ही बताएगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के प्रोफेसर डॉक्टर हरीश कुमार का कहना है कि बजट में जिस प्रकार शिक्षा को डिजिटल बनाने के लिए प्रधानमंत्री ई-विद्या योजना से टीवी के माध्यम से बच्चों को पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध होगी। इस लिहाज़ से तो बजट अच्छा है।
कम्प्यूटर की दुकान चलाने वाले राजदीप का कहना है कि जिस प्रकार से पढ़ाई से लेकर लेन-देन में डिजिटलाइजेशन किया जा रहा है, उससे तकनीकी क्षेत्र को काफ़ी लाभ मिलेगा। इस बजट का मूल आधार ही स्वदेशी अर्थ-व्यवस्था को गति देना है। व्यापार, निर्माण, रक्षा उपकरण एवं आयुध, सहकारिता, जल संरक्षण, कृषि, सडक़, रेल आदि के विस्तार के लिए काफ़ी धन दिया गया है। राजदीप ने बताया कि जब बजट पेश किया जा रहा था, उसी दौरान से कम्प्यूटर और तकनीकी क्षेत्र से जुड़े व्यापार में काफ़ी उछाल देखा गया था। यानी सरकार का आने वाले दिनों में हर क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन पर ज़ोर होगा।
बुन्देलखण्ड के निवासी पदम सिंह का कहना है कि जिस प्रकार से बजट को आत्मनिर्भरता की ओर बताया गया है। लेकिन मनरेगा में कटौती करके मज़दूरों और ग़रीबों के बीच निराशा पनपी है। उनका कहना कि जो बजट में बताया जा रहा कि आने वाले दिनों में बजट का लाभ मिलेगा, उससे ज़रूर आशा है। लेकिन यह कम है। इतना ज़रूर है कि प्रधानमंत्री आवास योजना, केन-बेतवा नदी जोड़ो अभियान जैसे प्रवाधान बजट में किये गये हैं। इससे बुन्देलखण्डवासियों को ज़रूर लाभ मिलेगा। शिक्षा और स्वास्थ्य हर किसी के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है।
कोरोना विरोधी अभियान से जुड़े डॉक्टर एम.सी. शर्मा का कहना है कि बजट लोक-लुभावन नहीं है। लेकिन इतना ज़रूर है कि बजट में मानसिक सेहत को प्राथमिकता दी गयी है। उनका कहना है कि किसी भी देश का विकास उसके स्वास्थ्य और शिक्षा पर टिका होता है। ऐसे में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए अतिरिक्त बजट का प्रावधान करना था। जैसे कोरोना जैसी महामारी से निपटा जाए। साथ ही कोरोना के चलते जो अन्य बीमारियों का उपचार नहीं हो सका है, उनके रोगियों को बेहतर इलाज मिल सके; इस ओर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है।
गृहणी सरिता सुमन का कहना है कि बजट संतुलित है या असंतुलित है; ये बातें तो बहस के लिए अच्छी लगती हैं। लेकिन गृहणियों को घर-परिवार चलाना पड़ता है। ऐसे में उन्हें सही मायने में आटे-दाल का भाव मालूम होता है। किस प्रकार एक महीने का ख़र्चा बमुश्किल चलाया जाता है, यह हमसे पूछो। सरिता सुमन का कहना है कि सर्दी का मौसम सब्ज़ियों के लिए जाना जाता है; लेकिन इस बार सब्ज़ियों के दाम आसमान पर हैं। सब्ज़ियों में इज़ाफ़े की मूल वजह डीजल-पेट्रोल के महँगे होने से किराया-भाड़ा बढऩा है। वहीं गैस के दाम भी आये दिन बढ़ रहे हैं। ऐसे में ग़रीब और मध्यम परिवारों को ख़र्चा चलाना मुश्किल हो गया है।
आर्थिक मामलों के जानकार दीपक सिंघल का कहना है कि बजट तो प्रक्रिया यानी एक परम्परा है। सरकार सालाना अपना लेखा-जोखा पेश करती है कि फलाँ-फलाँ क्षेत्र में इतना बजट दिया जा रहा है। इस बजट से पता चलता है कि किस क्षेत्र को कितनी राहत दी गयी है? इस बजट की सच्चाई जो भी हो। लेकिन बजट से हटकर सरकार ने जनता के लिए क्या किया है? असल में तो बजट में क्या होना चाहिए? इस बात पर ज़ोर देने की ज़रूरत है। अन्यथा बजट पर कुछ दिनों तक बहस करते रहो, कुछ हासिल नहीं होने वाला है। मौज़ूदा दौर में सरकार को चाहिए कि गाँवों से पलायन रुके। गाँव वालों को गाँव में ही रोज़गार मिले। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। कहने को तो गाँवों में मनरेगा जैसी योजनाएँ हैं; लेकिन उसमें युवाओं को रोज़गार कम मिल रहा है, दलाली ज़्यादा हो रही है। इस पर सरकार को ठोस क़दम उठाने होंगे।
दीपक सिंघल का कहना है कि कोरोना-काल में जब अफ़रा-तफ़री का माहौल था, उस दौरान शहरों से लोगों ने अपने घरों के लिए गाँवों की ओर जो पलायन किया था, वो लोग अभी तक शहरों में नहीं आये हैं। न ही उनको गाँव में रोज़गार मिला है। वे लोग गाँवों में बेरोज़गार बैठे हैं। ऐसे में सरकार को इस दिशा में काम करना चाहिए कि उन लोगों को कैसे रोज़गार मिले? गाँव में मनरेगा की तरह शहर के युवाओं को भी रोज़गार की गारंटी मिले, तब जाकर कोई बजट देश का असली और अच्छा बजट माना जाएगा। इस बजट में मध्यम वर्ग भी निराश हुआ है। क्योंकि आयकर दरों में कोई छूट नहीं दी गयी है। दीपक सिंघल का कहना है कि यह बजट आत्मनिर्भरता की ओर है। क्योंकि सरकार ने किसानों, सूचना तकनीक एवं रक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये हैं। सरकार का लक्ष्य कृषि साख बढ़ाने वाला है, जिससे कृषि के क्षेत्र में बढ़ावा मिल सकता है।
बजट को लेकर अधिकतर लोगों का कहना है कि कोरोना के चलते बड़े लोगों की नौकरी जा चुकी है, तो ज़्यादातर लोगों की आमदनी कम हुई है। कोरोना की पहली लहर ने शहरों में, तो दूसरी लहर ने शहरों-गाँवों में बड़ी तबाही मचायी है। इससे छोटे-बड़े व्यापारियों के साथ-साथ किसानों-मज़दूरों और निजी क्षेत्रों में नौकरीपेशा लोगों ने बड़ी मार सहन की है। ऐसे में बजट में कोरोना की मार से पीडि़त को कोई ख़ास राहत नहीं दी गयी है। इससे बड़ी संख्या में निराशा पनपी है। ऐसे में इस समय इस निराशा को समाप्त करने की ज़रूरत थी। लोगों को अभी ज़रूरत है कि कम-से-कम उनका घर ठीक से चल सके। ज़रूरतमंद आदमी 25 साल बाद के सपने को पालकर कैसे बैठ सकता है? 25 साल में तो पीढिय़ाँ बदल जाती हैं।




















