चीन की चुनौती

व्हाइट हाउस ने अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतिक रिपोर्ट में कहा है कि भारत को चीन से महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक चुनौतियों और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर उसके आक्रामक व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र में चीनी भूमिका पर चिन्ता जताते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व वाले प्रशासन की तरफ़ से जारी पहली क्षेत्र-विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका भारत पर प्रभाव पड़ा है। क्योंकि चीन अपनी आर्थिक, राजनयिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति को बढ़ा रहा है, ताकि दुनिया की सबसे प्रभावशाली शक्ति बन सके। रिपोर्ट चीन को यह कहते हुए धोखेबाज़ के रूप में पेश करती है कि चीन का जनवादी गणराज्य मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय क़ानून को ताक पर रख रहा है, जिसमें नौपरिवहन की स्वतंत्रता के साथ अन्य सिद्धांत शामिल हैं, जो इस क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि लाते हैं। नतीजा यह है कि चीन की आक्रामकता भारत को वाशिंगटन के क़रीब ले जा रही है।

हालाँकि चीन हमेशा अपने नापाक मंसूबों में लिप्त रहा है और उसका अपने ही एक रेजिमेंट कमांडर, जो गलवान संघर्ष में घायल हो गया था; को बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक के लिए मशालची बनाने का निर्णय परेशान करने वाला है। यह अधिकारी उस सैन्य कमान का हिस्सा था, जिसने भारत पर हमला किया था और उइगरों के ख़िलाफ़ नरसंहार में भी शामिल था। यह सब चीनी सेना के अरुणाचल प्रदेश के एक 17 वर्षीय लडक़े के कथित अपहरण और प्रताडऩा के बाद आया है। लोकसभा में विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरन ने एक लिखित उत्तर में स्वीकार किया कि चीन पिछले छ: दशक में केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ में क़रीब 38,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अवैध क़ब्ज़ा कर चुका है। चीन के अवैध क़ब्ज़े वाले इलाक़ों में पुल का निर्माण किया जा रहा है। ग़ौरतलब है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनावपूर्ण स्थिति चीन द्वारा सीमा पर सैनिकों को इकट्ठा न करने के लिखित समझौतों की अवहेलना के कारण थी।

सोशल मीडिया शोधकर्ताओं के एक समूह की तरफ़ से एक साल तक की गयी गलवान डिकोडिड  जाँच के निष्कर्षों के मद्देनज़र बीजिंग पहले से ही उलझन की स्थिति में है। इन निष्कर्षों के मुताबिक, जून 2020 में भारत के साथ गलवान घाटी सीमा संघर्ष में चीन की तरफ़ हताहत होने वालों की संख्या उसके आधिकारिक आँकड़ों की तुलना में बहुत ज़्यादा थी। यह चीन की बढ़ती ताक़त और विस्तारवादी गतिविधियों को उजागर करता है। वास्तव में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को एक सम्मानजनक आँकड़ा दर्शाना पड़ा; क्योंकि उसके सिर्फ़ चार मौतों के दावे के विपरीत एक ऑस्ट्रेलियाई अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया है कि कम-से-कम 38 चीनी सैनिक अँधेरे में शून्य से भी नीचे के तापमान वाली तेज़ गति से बहने वाली नदी को पार करते समय डूब गये। इसमें कहा गया है कि वास्तव में जो हुआ, उसके बारे में बहुत सारे तथ्य बीजिंग ने छिपाये थे और ज़्यादातर मनगढ़ंत कहानियाँ दुनिया को बतायी गयीं। इससे पहले एक रूसी समाचार एजेंसी ने चीनी पक्ष के 45 लोगों के मारे जाने का ख़ुलासा किया था। भारत ने बताया था कि उसने 20 सैनिकों को खोया है। इनमें से कुछ को वीरता पदक से सम्मानित किया है। लेकिन पीएलए ने केवल चार मौतों को स्वीकार किया और वह भी बहुत देर बाद। वास्तव में इतिहास को विकृत नहीं किया जा सकता और नायकों को भुलाया नहीं जा सकता।

चरणजीत आहुजा