'तब आप एक सच्चे प्यार को जन्म देते हैं।'

लंदन के कैमडेन बाज़ार में हर चीज़ के लिए एक दुकान है। यहां छुरीकांटों को तोड़मरोड़ कर बनायी गई आधुनिक कलाकृतियों से लेकर लीवाइस की थर्डहैंड फटी पुरानी जींस और प्राचीन टैटू तक सब कुछ मिलता है। लेकिन 1996 की उस दोपहर को इनमे से कोई भी चीज़ मुझे नहीं लुभा सकी। इसकी बजाय मेरा ध्यान खींचा हाथ से लिखे एक बोर्ड ने, जिस पर लिखा था "चांदी और अनमोल रत्न"। वहां एक व्यक्ति ने मेरे कुछ कहने से पहले ही चांदी की तीन अंगूठियों का एक सेट निकाल कर मुझे उनमें से एक को पहनने के लिए मजबूर कर दिया–एक आपके लिए, एक आपके पति के लिए और एक…" इसके बाद अगली आवाज़ मेरे मुंह से निकली "मेरे बच्चे के लिएहम एक बच्चे की उम्मीद कर रहे हैं।"

मगर ये सब इतना आसान नहीं था।

हमारी शादी को आठ साल गुजर चुके थे और हम इतने ही शहरों में रह भी चुके थे। अब तक हमारे कोई बच्चा न होने की वजह ये कतई नहीं थी कि हम बच्चा चाहते ही नहीं थे। इसके उलट वे हमें और हम उन्हें बहुत प्यार करते थे। जब हमारा भतीजा पैदा हुआ तो हमने उसके छोटे से मुखड़े पर बननेबिगड़ने वाली तमाम भंगिमाओं को अपने कैमरे में क़ैद किया था। इसके बाद हम उन फोटो को बड़ा करवाते और उन्हें लैमिनेट करवा के अपने पास रख लेते। जब हमारा दूसरा भतीजा पैदा हुआ तब भी हमने ऐसा ही किया। इससे हमें अहसास हो गया कि बच्चो से हमें बेहद लगाव है। हम खुद के बच्चे चाहते थे वो भी एक नहीं कई, मगर थोड़े समय बाद, सोच समझकर।

इसे भाग्य का खेल कहें या फिर कुछ और …वो समय सोचने विचारने के बाद भी नहीं आ सका। निराशा, सलाह, विकल्प, निर्णय, सवाल। इसमें इतना वक्त क्यों लग रहा हैं? क्या हमें इंतज़ार करना चाहिए? या फिर हमें किसी विशेषज्ञ से मिलना चाहिए? इस मामले में विशेषज्ञों की राय पूरी तरह से साफ थीये एक आम समस्या थी जिसे अपनी तनावमुक्त जीवनचर्या के जरिए दूर किया जा सकता था। हमने कुछ महीने इसे भी आजमाया पर कोई नतीजा नहीं निकला। अब सलाहें दूसरी तरह के इलाज की मिलने लगीं थीं।

फर्टिलिटी ट्रीटमेंट–ये दो शब्द ऐसे थे जिनमें आशा और निराशा बराबर मात्रा में मौजूद थी। हमने इस बात पर अपना ध्यान लगाने की कोशिश की कि किस तरह से ये ज़िंदगी को बदल देता है, किसी चमत्कार की तरह काम करता है। लेकिन आधे-अधूरे मन से हुए आधे इलाज के बाद ही हमें पता चल गया कि ये हमारे लिए नहीं था। मुझे ठीक-ठीक तो नहीं पता ये कब हुआ लेकिन हम एक आदर्श दंपत्ति से एक संतानहीन दंपत्ति में बदल गए थे। एकाएक हमारे बीच एक ऐसा खालीपन पैदा हो गया था जिसे भरने की कोशिश में हम दोनों जूझ रहे थे। दिमागी ज़ोरआजमाइश लगातार जारी थी, और दूसरी तरफ कागजी कार्यवाही ने हमें थका कर रख दिया। भारत से बाहर होना और भी मुश्किलें खड़ी कर रहा था

गोद लेना– अब तक हमारे मन में दुबक के बैठा ये विचार तन कर खड़ा हो गया था। मगर हजारों किंतु-परंतु हमारे दिमाग को चकरा रहे थे। तब क्या होगा जब हम बच्चे से मिलें और हमारे मन में कोई संवेदना ही पैदा न हो? अगर बच्चे में ही हमारे प्रति कोई लगाव पैदा न हो तब? अगर बच्चा हमारे भतीजों की तरह न दिखे या उनकी तरह व्यवहार न करे? अगर 18 साल के बाद बच्चा अपने असली मां-बाप को खोजना चाहे तब? तब क्या होगा अगर उसे उसके असली मां-बाप मिल जाए और बच्चा हमसे ज्यादा उन्हें पसंद करने लगे?

दिमागी ज़ोरआजमाइश लगातार जारी थी, और दूसरी तरफ कागजी कार्यवाही ने हमें थका कर रख दिया। भारत से बाहर होना और भी मुश्किलें खड़ी कर रहा था–हर काम में लंबा वक्त लग रहा था और ये एक निहायत ही कठिन प्रक्रिया थी। ज्यादातर मां-बाप का इंतज़ार नौ महीनों में खत्म हो जाता है, लेकिन अठारह महीनों के बाद भी हमारे दिमाग में घुमड़ रहे हज़ारों सवालों के जवाब ढ़ूंढ़ने के साथ-साथ हम बस उम्मीद, प्रार्थना और इंतज़ार ही कर रहे थे। हमने कई बार, हम इंतज़ार कर रहे हैं, ये भी भूलने की कोशिश की।

जिस वक्त फोन आया हम लंदन में थे। करीब डेढ़ दिन बाद हम गोद देने वाली अनाथालय संस्था के ऑफिस में थे। नियत समय 10 बजे से काफी पहले ही हम वहां पहुंच गए थे। मुझे आज भी स्पष्ट रूप से याद है– मैं बहुत उत्सुकता से बच्ची के आने का इंतज़ार कर रही थी। मुझे ये भी अच्छी तरह से याद है कि मेरे पेट में उस समय कुछ अजीब सा हो रहा था। या फिर मेरे दिल में? मुझे याद है उसको पकड़ना उसे सूंघना और उस लम्हे की हर एक दूसरी बात। वो जॉनसन बेबी पाउडर या फिर किसी अन्य बाल उत्पाद की तरह नहीं महक रही थी। वो बिल्कुल अलग अनुभव था। शहद या दालचीनी या फिर टोस्ट की तरह।

कुछ ही पलों बाद सब कुछ जैसे थम सा गया। एक परिचारिका हमारी तरफ आयीमुझे लगा था कि जैसे वो ऐसा स्लो मोशन में कर रही है। उसके हाथों में केवल डायपर पहने एक छह महीने की बच्ची थी। पहली बात जो मैंने उसकी बारे में महसूस की वो थी उसके भौहें। उल्टे U के आकार की उसकी भौहें उसके चेहरे पर भय मिश्रित मासूमियत के भाव पैदा कर रहीं थीं। उसने जिस चीज़ पर सबसे पहले ध्यान दिया वो मेरे पति थे। उसने अपनी बाहों को उनकी तरफ बढ़ाया। और मेरे पति उसकी बाहों में समा गए, कभी न लौटने के लिए। वो उनके गर्दन और कंधे के बीच की जगह में ऐसे फिट हो गई थी कि जैसे दोनों को ही एक दूसरे के लिए नापतौल कर बनाया गया हो।

मुझे याद है उसको पकड़ना उसे सूंघना और उस लम्हे की हर एक दूसरी बात। वो जॉनसन बेबी पाउडर या फिर किसी अन्य बाल उत्पाद की तरह नहीं महक रही थी। वो बिल्कुल अलग अनुभव था। शहद या दालचीनी या फिर टोस्ट की तरह। मैंने उसे और चिपका लिया और नीचे देखने लगी कि कहीं मैं उस पर ज़्यादा दबाव तो नहीं डाल रही हूं। वो मुस्करायी। उसके गालों पर दो डिंपल पड़ गए। वो कुछ नहीं बोली मगर मेरे सारे सवालों का जवाब दस सेकेंड में ही मुझे मिल चुका था।

आज वो 11 साल की है। उसे घूमना फिरना पसंद है। वो जानवरों से बहुत लगाव रखती है और घोड़ों, भेड़ों, कुत्तों, शेरों और यहां तक कि घोंघो के साथ भी घंटो बिता सकती है। बिल्कुल अनजान लोग भी हमें ये कहने के लिए रुक जाते हैं कि उन्होंने उसके जैसी मुस्कुराहट पहले कभी नहीं देखी। हमने भी नहीं देखी है। अब हमें पता चला कि ऐसा क्यूं कहा जाता है कि जब आप किसी को गोद लेते हैं तब आप एक सच्चे प्यार को जन्म देते हैं।

सोनिया बहल

(47 वर्षीय बहल एक क्रियेटिव एड डिज़ाइनर रही हैं और फिलहाल एक स्क्रिप्ट राइटर के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं)

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