यह निबंध उस छात्र की कापी से लिया गया है, जिसे निबंध प्रतियोगिता मे टाप पोजीशन मिली है। निबंध का विषय़ था समर्पण-
समर्पण का जैसा कि सब जानते हैं कि राष्ट्रीय, सामाजिक और आर्थिक जीवन में घणा महत्व है। नेता लोग कहते हैं कि समर्पण होना चाहिए, बार बार होना चाहिए। साधु संत कहते हैं कि समर्पण से आत्मा परमात्मा का मिलन हो जाता है।
हमने देखा कि जो सड़क कुछ दिनों पहले नेताजी के द्वारा राष्ट्र के नाम समर्पित की गयी थी। वह गायब हो गयी। फुल सीमेंट की सड़क मिट्टी में यूं मिल गयी, मानो आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया हो। पुल का इसी तरह का मिलन नदी से हो गया। इधर समर्पण होता है, उधर कुछेक दिनों में ही इस तरह का मिलन हो जाता है। इससे हमें पता चलता है कि नेताई समर्पण के रिजल्ट बहुत फास्टमफास्ट आते हैं।
समर्पण चूंकि बार बार होना चाहिए, इसलिए सड़क फिर बनी और राष्ट्र के नाम समर्पित हो गयी। इस तरह से बार बार समर्पण होता रहता है और देश की और खास तौर पर नेताजी, इंजीनियरजी और ठेकेदारों की आर्थिक प्रगति तेज होती रहती है।
समझने की बात यह है कि क्या समर्पण होता है और किसे समर्पण होता है।
सड़क बनती है, पुल बनते हैं। समर्पित हो जाते हैं।
पब्लिक उन पर एक दिन चलती है। फिर सड़क गायब हो जाती है।
नेता जो सड़क समर्पित करता है, वह घूम फिर उसके ही पास लौट आती है। इससे पता चलता है कि धरती गोल है, सड़क जहां से चलती है, वहीं पहुंच जाती है। समर्पित करने वाला भी नेता है, और जिसे समर्पित होता है, वह भी नेता ही है। नेता से चलता है, नेता तक पहुंच जाता है। सारी राहें उसी की हैं, सारी बाहें उसी की हैं, सारी चाहें उसी की हैं। इधऱ भी वही है, उधर भी वही है। लेने वाला भी वही है, देने वाला भी वही है। यह अखिल ब्रह्मांड़ीय दिव्य ज्ञान समर्पित सड़क, पुनसमर्पित सड़क को बार-बार देखकर सामने आ जाता है।
डाकू समर्पण करते हैं। उनमें से कुछ आगे नेता बन जाते हैं।
नेता बगैर समर्पण के ही डाकू बन जाता है। इस तरह से हमें पता चलता है कि समर्पण और डाकूगिरी का सघन संबंध है।
खैर हमें समझना चाहिए कि कुछ समर्पण राष्ट्र के हित में हो सकते हैं। जैसे शिवराज पाटिलजी अगर कुछ कपड़ों को छोड़कर बाकी सारे राष्ट्र को समर्पित कर दें और ध्यान एक घंटे में पांच ड्रेस बदलने में ना लगाकर, होम मिनिस्ट्री में लगायें, तो……………..। तो पता नहीं क्या होगा। शिवराजजी अगर सच्ची में ध्यान देने लग गये, तो पता नहीं मामला और ज्यादा चौपट ना हो जाये।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि देश नेताओं से जितना बच पाता है, उतना भगवान को ही समर्पित है। उसके अलावा कोई उम्मीद नहीं है। बस इतनी भर उम्मीद की जा सकती कि शिवराजजी एक दिन में पांच ही ड्रेस बदलें, वरना बदलने को तो वह चौबीस घंटे में चौबीस भी बदल सकते हैं।
आलोक पुराणिक