9 सितंबर को कर्नाटक की भाजपा सरकार ने सत्ता में अपने 100 दिन पूरे कर लिए। दक्षिण भारत में भाजपा की पहली सरकार को देखते हुए नि:संदेह यह महत्वपूर्ण है। लेकिन पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के लिए भाजपा की क्या योजना है? इस सवाल का जवाब छिपा है ऑपरेशन लोटस में।
मई में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के 110 विधायक जीत कर आए थे-यानी कि बहुमत से महज़ तीन कम। गठबंधन सरकार के दबावों को दरकिनार करने की गरज से भाजपा ने छह निर्दलीय विधायकों को समर्थन के लिए राजी कर लिया जिसके बदले में उनमें से पांच को मंत्रिपद से नवाजा गया। निर्दलीयों को दिए जा रहे महत्व से नाराज़ पार्टी विधायकों और कांग्रेस-जनता दल (एस) द्वारा पार्टी में तोड़फोड़ की सुगबुगाहट को देखते हुए भाजपा ने ऑपरेशन कमल का आगाज़ किया है—इसका मकसद ऐसे विधायकों को ढूंढ़ निकालना है जिन्हें मंत्रिपद या दूसरे मलाईदार पदों का लालच देकर भाजपा में शामिल किया जा सके। ऑपरेशन कमल के तहत अब तक जनता दल-एस के चार और कांग्रेस के तीन विधायकों ने अपनी सीट से त्यागपत्र दे दिया है। इनमें से चार को मंत्री बनाया गया है और तीन को अलग-अलग निगमों का अध्यक्ष।
ऑपरेशन कमल के तहत अब तक जनता दल-एस के चार और कांग्रेस के तीन विधायकों ने अपनी सीट से त्यागपत्र दे दिया है। इनमें से चार को मंत्री बनाया गया है और तीन को अलग-अलग निगमों का अध्यक्ष। सभी विधायक एक ही सुर में कहते हैं कि उन्होंने सत्ताधारी पार्टी का दामन सिर्फ इसलिए थामा है ताकि उनका निर्वाचन क्षेत्र विकास से वंचित न रह जाए। कर्नाटक प्रदेश भाजपा प्रमुख सदानंद गौड़ा ऑपरेशन कमल को ये कह कर उचित ठहराते हैं, “विधायकों ने ये क़दम तब उठाया है जब उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि भाजपा उनकी पार्टी से कहीं ज्यादा लोकतांत्रिक है।”
लेकिन ऑपरेशन कमल का सबसे मजबूत बचाव खुद मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने किया। एक पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि चूंकि विधायकों ने पहले विधानसभा से इस्तीफा दे दिया इसलिए कुछ भी गलत किए जाने का सवाल ही नहीं उठता। ये पूछने पर कि क्या मंत्रिपद दिया जाना लोकतंत्र के हित में हैं उन्होंने कहा, “इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। ये भारतीय लोकतंत्र में एक अहम बदलाव है। एक पार्टी के तौर पर अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि वो उपचुनाव में जीत हासिल करें।” येदियुरप्पा ने ये भी कहा कि जनता ने उन्हें राज्य में शासन करने का निर्णय दिया था। ऑपरेशन कमल इसी का परिणाम है क्योंकि हमारे पास पूर्ण बहुमत नहीं था।
येदियुरप्पा मंत्रिमंडल के 34 मंत्रियों में से 9 या तो बाहरी हैं या फिर हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं। 100 दिनों के भीतर ही मंत्रिमंडल के तीन विस्तार हो चुके हैं। पिछले 28 अगस्त को हुए विस्तार में पूर्व जेडी-एस विधायक उमेश कट्टी को शामिल किया गया था। कुछ ही दिन पहले राज्य के बागवानी मंत्री एस के बेल्लुबी को मुख्यमंत्री ने पद छोड़ने के लिए कहा था।
ये बात बेल्लुबी के समर्थकों को रास नहीं आई। बेल्लुबी के समर्थकों ने बीजापुर ज़िले के उनके निर्वाचन क्षेत्र में चार दिनों तक चक्काजाम किए रखा। कट्टी के शपथ ग्रहण समारोह में आधे से भी कम कैबिनेट मौजूद था। अनुपस्थित लोगों में सदानंद गौड़ा भी शामिल थे जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उन्होंने करीब दर्जन भर विधायकों द्वारा उनसे मुलाकात कर ऑपरेशन कमल की खिलाफ़त का झंडा उठाए जाने के बाद ऐसा किया। इनमें होन्नाली के विधायक रेनुकाचार्य भी शामिल थे जो एक समय येदियुरप्पा के ख़ासुसख़ास माने जाते थे।
और भी कई विधायक भाजपा में शामिल होने की चाह रखते हैं। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि जो लोग अपनी इच्छा से आना चाहते हैं उनका स्वागत है मगर उन्हें केवल निगमों में ही जगह दी जा सकती है क्योंकि कैबिनेट में अब कोई स्थान रिक्त रहा नहीं।
भाजपा के इस अभियान का कांग्रेस और जेडी–एस के पास क्या जवाब है? कांग्रेसी खेमे की राय स्पष्ट है—जल्द ही ऑपरेशन कमल की धार कुंद करने के लिए ऑपरेशन हाथ की शुरुआत की जाएगी।
संजना