जबर्दस्त मुशर्रफ विरोधी भावनाओं की ज़मीन पर बना गठबंधन छह महीने भी नहीं चल सका। आपने बड़े-बड़े वादों के साथ शुरुआत की थी, आपको नहीं लगता कि लोकतंत्र को मजबूत करने का सुनहरा मौका हाथ से जाता रहा?
निश्चित रूप से, आपने बिल्कुल सही बात कही। दरअसल मैं भी पिछले कुछ दिनों से यही सोच रहा था। गठबंधन में दरार पड़ गई। ऐसा लग रहा है कि पीपीपी सरकार अभी भी तानाशाह मुशर्रफ के एजेंडे को ही आगे बढ़ा रही है। ये देखना दुखद है कि जरदारी की पार्टी मुशर्रफ का ही विस्तार प्रतीत हो रही है। मैं इसे सरकार नहीं बल्कि एक तंत्र भर समझता हूं जो कि पुराने रास्ते पर ही चल रहा है। हमें 1973 के संविधान को उसके मूल रूप में लागू करना चाहिए था। सत्ता में आने के बाद एक दिन भी बर्बाद किए बिना ये काम हो जाना चाहिए था। हमें तुरंत ही न्यायपालिका को बहाल करके ‘चार्टर ऑफ डेमोक्रेसी’ पर अमल करना चाहिए था। गठबंधन बनाने का मकसद ही यही था। लेकिन हमारी दिशा ही बदल गई और हम लक्ष्य तक पहुंचने से चूक गए।
जरदारी को किस बात का डर था? वो जजों की बहाली से मुंह क्यों मोड़ रहे थे?
इस सवाल का बेहतर जवाब खुद ज़रदारी ही दे सकते हैं। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि इससे गलतफहमी और बढ़ेगी।
अब आपने विपक्ष में बैठने का फैसला कर लिया है, गठबंधन टूट चुका है, आपकी ज़रदारी से कई दौर की बातचीत हुई है। कुछ तो लगा होगा कि ज़रदारी जजों को क्यों बहाल नहीं करना चाहते?
हम कुछ समय तक साथ रहे, साथ-साथ खाया-पीया। चार दिन तो इकट्ठे गुजारे हमने। इन चार दिनों की लाज तो हम कम से कम रखें। मैं ऐसी कोई बात नहीं कहना चाहता जो उनके लिए ठीक नहीं हो।
ज़रदारी तो ऐसा नहीं सोचते। उन्होंने तो आपकी लाज का ध्यान ही नहीं रखा।
अच्छा होता कि वो रखते। इसमें आप क्या कर सकते हैं, कुछ बातें आपकी इच्छा और कोशिशों के हिसाब से नहीं होती।
एक राजनीतिक पार्टी के सह अध्यक्ष के राष्ट्रपति बनने को आप कैसे उचित ठहराएंगे? ये मुशर्रफ से किस तरह अलग है जो कि राष्ट्राध्यक्ष के बजाय किंग्स पार्टी के अध्यक्ष ज़्यादा लगा करते थे.
मुझे याद नहीं कि किसी राजनीतिक पार्टी का पदाधिकारी कभी पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना हो। अगर कोई बना है तो ऐसा उसने पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद ही किया है। हालांकि संविधान में ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। हमारा संविधान किसी पार्टी के पदाधिकारी को राष्ट्रपति बनने से नहीं रोकता, शायद इसीलिए उन्होंने ये फैसला किया हो।
आपके राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार खड़ा करने से ये साफ है कि आपको ये ठीक नहीं लगा…
मैं कहता रहा हूं कि उम्मीदवार सबकी सहमति से चुना जाना चाहिए। जब गठबंधन टूट गया तो हमने भी अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया।
आप ये तो नहीं कहना चाहते हैं कि गठबंधन इसलिए टूटा क्योंकि वो राष्ट्रपति बनना चाहते थे? या फिर इसलिए क्योंकि जजों की बहाली पर आपके बीच सहमति नहीं थी?
गठबंधन हमारी वजह से नहीं टूटा। वो लोग अपने वादों पर खरा उतरने में नाकाम रहे। ये उनकी करनी है। हमें गठबंधन से अलग होने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि हमारे पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था। हम बहुत दबाव में थे, हमें गठबंधन से बाहर होने की कोई खुशी नहीं है। मेरे और ज़रदारीजी के बीच बहुत स्पष्ट समझ थी। 7 अगस्त को लिखे गए समझौते की लिखावट अभी भी बिल्कुल ताज़ी है जिसमें कहा गया था कि मुशर्रफ के जाने के 24 घंटों के भीतर न्यायपालिका को मुरी समझौते के तहत बहाल कर दिया जाएगा। साथ ही उसमें इस बात का भी साफ-साफ जिक्र था कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी आम सहमति से चुना जाएगा। अगर आप हस्ताक्षरित चीज़ों से ही मुकर जाएंगे तो फिर मुझे नहीं पता कि आप अपनी जुबान की लाज कैसे रख सकेंगे।
क्या आप ये कहना चाहते हैं कि जरदारी ने आपके साथ विश्वासघात किया?
अगर आप ऐसा कहती हैं तो मैं इनकार नहीं करूंगा।
मेरे सवाल का जवाब दीजिए, क्या आप छला हुआ महसूस कर रहे हैं?
मैं बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहा हूं।
क्या समर्थन वापसी की घोषणा के बाद आपकी ज़रदारी से बात हुई है?
नहीं मैंने उनसे बात नहीं की।
क्या उन्होंने भी आपसे बात करके ये नहीं बताया कि वो अपने वादे से क्यों मुकर गए?
उन्होंने टीवी पर कुछ सफाई दी है, पर व्यक्तिगत तौर पर नहीं।
हां उन्होंने टीवी पर माफी मांगी पर क्या ये कोई मायने रखती है?
मेरी व्यक्तिगत तौर पर उनसे कोई नाराज़गी नहीं है। गठबंधन का निर्माण देशहित में और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए हुआ था। इसके पीछे हमारा कोई निजी उद्देश्य नहीं था। गठबंधन की राजनीति में हम केवल देशहित को ध्यान में रखकर घुसे थे।
आपके मुताबिक आप देश की सेवा करना चाहते थे वो नहीं?
मैं देश को फिर से पटरी पर लाना चाहता हूं, उन ग़लत चीजों को ठीक करना चाहता हूं जिन्हें तानाशाहों ने अंजाम दिया। हम तानाशाहों द्वारा लाए गए उन सभी संविधान संशोधनों को खत्म करना चाहते थे। हम राजनीति में सेना का हस्तक्षेप हमेशा के लिए रोकना चाहते थे। यही असल एजेंडा था। लेकिन हमने राष्ट्रीय के बजाय निजी एजेंडे को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया।
क्या मुशर्रफ का इस्तीफा हासिल करने के बाद आपको लगा कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं और आगे न्यायपालिका को भी बहाल कर दिया जाएगा?
इसी भावना के साथ समझौते पर दस्तखत हुए थे। दस्तखत करते वक्त मेरे दिमाग में इसके अमल को लेकर कोई शंका नहीं थी। तब मुझे कुछ निराशा हुई जब मुरी घोषणापत्र का सम्मान नहीं किया गया। पर मैंने सोचा कोई बात नहीं, अब एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं। मैंने सोचा कि इस बार ज़रदारी मुझे निराश नहीं होने देंगे।
आपको लगता है कि ज़रदारी भी राजनेता के रूप में एक तानाशाह ही हैं?
ये तो बड़ा कठिन सवाल है। मैं इतना खुल के जवाब नहीं दे सकता जितना खुल के आप सवाल कर रही हैं। मैं ये कहना चाहता हूं कि पीपीपी का तानाशाही से संघर्ष का एक लंबा इतिहास रहा है और उसे इस भावना पर कायम रखना चाहिए था।
कुछ लोग इस बात पर बहस कर सकते है कि आपने पर्याप्त नरमी नहीं दिखाई, जबकि जरदारी ने जजों को बहाल न करने की बात ही नहीं की थी। अपने आलोचकों को क्या जवाब देंगे?
न्यायपालिका की बहाली के मामले में किसी लोच या नरमी का सवाल ही नहीं पैदा होता। मुशर्रफ के इस्तीफे पर भी किसी समझौते का सवाल ही नहीं उठता था। साथ ही जिन मुद्दों पर हमने हस्ताक्षर किए हैं उन पर भी किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता। आप राजनीति में सिद्धांतों से जुड़े मुद्दों पर समझौता कैसे कर सकते हैं। हां व्यक्ति को थोड़ा लचीला होना चाहिए मगर जब लोकतंत्र की मजबूती और संसद की संप्रभुता का सवाल हो तब आप लचीलापन कैसे दिखा सकते हैं।
क्या गठबंधन में शामिल होने की कोई संभावना है? ज़रदारी ने आपसे वापसी की अपील की है।
अपील तो हुई है पर बिनी किसी वादे के। इस अपील में अपनी जुबान की लाज रखने का कोई वादा नहीं है लिहाजा ऐसी कोई संभावना नहीं है। वो कह रहे हैं कि वो जजों को तो बहाल कर देंगे लेकिन मुख्य न्यायाधीश को नहीं।
क्या आपको ये स्वीकार्य होगा?
मुझे नहीं लगता कि ये देश में किसी को भी स्वीकार्य होगा। मुख्य न्यायाधीश न्यायपालिका के संघर्ष के प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा है कि मुख्य न्यायधीश सभी जजों के इमाम हैं और उन्हें फिर से बहाल किया जाएगा। जब गठबंधन एक था तब उन्होंने ऐसा नहीं किया मुझे नहीं लगता कि अब इसके टूट जाने के बाद वो ऐसा कुछ करेंगे।
नेशनल रीकंसीलिएशन क़ानून जिसके तहत ज़रदारी पर चल रहे सभी मामले वापस ले लिए गए थे, निश्चित रूप से पीपीपी नेता के मन में इसका भी डर होगा। हो सकता है वो इफ्तिखार चौधरी को वापस बुला भी लें पर आपको नहीं लगता कि कुल मिलाकर मामला सत्ता का है? सत्ता में बने रहना लोकतंत्र और न्यायपालिका की मजबूती से कहीं ज्यादा अहम है?
मुझे ही नहीं बल्कि देश के करोड़ों लोगों को ऐसा ही लगता है। आखिरकार ये सत्ता की दौड़ साबित हुई और इस प्रक्रिया में वो लोकतंत्र को भूल गए। वो स्वतंत्र न्यायपालिका की जरूरत को भूल गए, उन्होंने नागरिकों, वकीलों और राजनीतिक पार्टियों के संघर्ष को दरकिनार कर दिया। जब इफ्तिखार चौधरी को मुशर्रफ ने हटाया उस वक्त खुद मुशर्रफ की पार्टी के कार्यकर्ता कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष में शामिल थे। यहां तक कि बेनज़ीर भुट्टो भी चाहती थी कि चौधरी को बहाल किया जाए। ये उनकी पार्टी और नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे बेनज़ीर भुट्टो की इच्छाओं का सम्मान करें।
मुझे विश्वास है कि आपने बातचीत के दौरान उन्हें उनकी पत्नी के शब्द याद दिलाए होंगे।
बेनज़ीर का ये बयान हर रोज़ टेलीविज़न पर दिखाया जा रहा है।
तो क्या आपको लगता है कि गठबंधन निजी स्वार्थों के लिए बनाया गया था?
मैं बस ये कहना चाहूंगा कि उनके पास एक निजी एजेंडा था जो राष्ट्रीय एजेंडे से ज्यादा महत्वपूर्ण बन गया।
अब चूंकि गठबंधन टूट चुका है इसलिए अधिकतम संभावना इस बात की है कि मुशर्रफ साफ बच निकलने में कामयाब रहेंगे क्योंकि उनके खिलाफ आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल ही नहीं होगा।
मैं निजी तौर पर मुशर्रफ के खिलाफ नहीं हूं। मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जो बदले की नीयत रखता है। अपने दुश्मन से बदला लेने के लिए मैं सारी सीमाओं को पार नहीं करूंगा। जिस अपमान से मैं गुजरा हूं, मेरे और मेरे परिवार के साथ मुशर्रफ ने जो बर्ताव किया मैं उससे बाहर निकलना चाहता हूं। लेकिन जब बात देश और संविधान के साथ उनके कुकर्मों की आती है तो फिर मैं उन्हें माफ करने वाला कौन होता हूं। ये निर्णय लेना मेरा काम नहीं है कि उन्होंने देश के खिलाफ क्या किया।
आपने उन्हें माफ कर दिया पर क्या मुशर्रफ कोर्ट और क़ानून के जरिए देश के प्रति जवाबदेह नहीं हैं?
बिल्कुल हैं।
क्या हम पीएमएल-क्यू को अपनी मूल पार्टी में फिर से देख सकेंगे?
इस दिशा में एक अभियान चल रहा है और पीएमएल-क्यू का एक बड़ा तबका अपनी मूल पार्टी में वापस आने का इच्छुक है।
क्या इसमें एक समय आपके करीबी सहयोगी रहे मुशाहिद हुसैन भी शामिल है?
मैं व्यक्तिगत रूप से किसी का नाम नहीं ले सकता।