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संकट में सोने की लंका

श्रीलंका गम्भीर आर्थिक संकट में, राजपक्षे बंधुओं का विरोध कर रही जनता

आम भारतीय में रामायण की कथा के कारण श्रीलंका की छवि ‘सोने के लंका’ के रूप में अंकित रही है। ऐसा नहीं कि श्रीलंका ग़रीब या आर्थिक रूप से कमज़ोर राष्ट्र रहा है; लेकिन वर्तमान में वो गम्भीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। इसी 10 अप्रैल को श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने बेहद कड़े शब्दों में राजपक्षे सरकार को कह दिया कि वह उसके काम में हस्तक्षेप न करे। यह रिपोर्ट लिखे जाने के समय श्रीलंका के ख़ज़ाने में महज़ 5,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बची थी और ज़रूरत की चीज़ों के बहुत ज़्यादा महँगा होने के कारण जनता सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर है। श्रीलंका में आर्थिक संकट के कई कारण हैं; लेकिन प्रमुख हैं- चीन के क़र्ज़ के जाल में फँसना, केमिकल फर्टिलाइजर्स को एक झटके में पूरी तरह बैन करना और अपनी चादर से ज़्यादा पाँव पसारना।

श्रीलंका का यह संकट कितना गहरा है? यह इस बात से साबित हो जाता है कि राजपक्षे सरकार को हफ़्ते भर के लिए आर्थिक आपातकाल घोषित करना पड़ा। मार्केट में खाने-पीने की चीज़ों की लूट होने के भय से सेना तैनात करनी पड़ी। विदेशी मुद्रा भण्डार ख़त्म होने के ख़तरे से श्रीलंका सरकार को वैश्विक स्तर पर हाथ पसारने पड़े हैं और उनकी मुद्रा (करेंसी) की क़ीमत रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच चुकी है। श्रीलंका की यह हालत अचानक नहीं हुई है; क्योंकि पिछले कुछ साल से इस संकट के संकेत मिलने लगे थे। लेकिन इसके बावजूद क़दम उठाने की जगह मनमर्ज़ी के ख़र्चे किये गये और क़र्ज़ उठाया गया।

दो साल पहले कोरोना महामारी ने जब दुनिया में तबाही मचानी शुरू की, तो श्रीलंका की अर्थ-व्यवस्था जबरदस्त धक्का लगा। इसका कारण यह है कि श्रीलंका की आर्थिकी कृषि के बाद सबसे ज़्यादा पर्यटन पर निर्भर है। श्रीलंका सरकार की वेबसाइट के मुताबिक, पर्यटन श्रीलंका की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10 फ़ीसदी का योगदान देता है। कोरोना महामारी के इन दो वर्षों ने इस क्षेत्र को पूरी तरह तबाह कर दिया है। श्रीलंका में सबसे ज़्यादा पर्यटक ब्रिटेन, रूस से भारत से आते हैं।

महामारी की पाबंदियों से श्रीलंका में पर्यटकों का आना कमोवेश पूरी तरह बन्द हो गया था। अब जब कुछ समय से महामारी का असर कम हुआ है, श्रीलंका के आर्थिक संकट के कारण वहाँ की सरकार के ख़िलाफ़ जनता के प्रदर्शनों को देखते हुए बहुत से देशों ने अपने नागरिकों को श्रीलंका जाने से बचने की सलाह दे दी। इससे श्रीलंका आने वाले पर्यटकों की संख्या वहीं-की-वहीं है। कनाडा ने तो करेंसी एक्सचेंज की समस्या का हवाला देकर बाक़ायदा एक एडवाइजरी जारी कर दी, जिससे श्रीलंका की आय पर ख़राब असर पड़ा है।

 

चीन का क़र्ज़-जाल

चीन का विस्तारवाद आर्थिक दरवाज़े से होकर गुज़रता है। वह दूसरे देशों को पैसे (क़र्ज़) के ज़रिये अपने जाल में फँसाने के लिए बदनाम रहा है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के बाद श्रीलंका और नेपाल उसके शिकार हुए हैं। पाकिस्तान अमेरिकी ख़ैरात के सहारे अपना गुज़ारा चलाता रहा है; लेकिन श्रीलंका की हालत ख़राब हो गयी हैं। नेपाल भी आर्थिक संकट के मुहाने पर है। श्रीलंका आज क़र्ज़ के बोझ में दबा पड़ा है और अकेले चीन का ही उस पर पाँच बिलियन डॉलर से ज़्यादा का क़र्ज़ है। भारत और जापान जैसे देशों के अलावा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का भी उस पर क़र्ज़ है।

श्रीलंका से सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मार्च, 2022 तक श्रीलंका पर क़रीब 46 बिलियन डॉलर का विदेशी क़र्ज़ था। आर्थिक संकटों से घिरे इस छोटे देश का भारी-भरकम विदेशी क़र्ज़ तो ज्यों-का त्यों ही रहता है; ऊपर से वह जो पैसे जुटाता है, वो क़र्ज़ के ब्याज चुकाने में ही ख़प जाते हैं। इससे उसके हालात और बिगड़े हैं। इसके अलावा हाल के समय में श्रीलंका सरकार ने अचानक केमिकल फर्टिलाइजर्स को एक झटके में पूरी तरह बैन कर 100 फ़ीसदी ऑर्गेनिक खेती की नीति लागू कर दी थी। इस अचानक बदलाव ने श्रीलंका के कृषि क्षेत्र को तबाह करके रख दिया। जानकारों के मुताबिक, सरकार के इस फ़ैसले से श्रीलंका का कृषि उत्पादन घटकर क़रीब आधा रह गया। इसी का नतीजा है कि श्रीलंका में चावल और चीनी की जबरदस्त क़िल्लत पैदा हो गयी है। अनाज की जमाख़ोरी के देश की समस्या को विकराल कर दिया है।

सन् 2021 में श्रीलंका सरकार ने जब सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया और श्रीलंका को रातों-रात 100 फ़ीसदी जैविक खेती वाला देश बनाने की घोषणा की तो रातों-रात जैविक खादों की ओर आगे बढ़ जाने के इस प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को गम्भीर रूप से प्रभावित किया। यह इस फ़ैसले का ही असर था कि हाल में श्रीलंका के राष्ट्रपति को बढ़ती खाद्य क़ीमतों, मुद्रा का लगातार मूल्यह्रास और तेज़़ी से घटते विदेशी मुद्रा भण्डार पर नियंत्रण के लिए देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा करनी पड़ी। इसके अलावा श्रीलंका में भारी बारिशों ने भी किसानों की फ़सलों को बर्बाद कर दिया था, जो अनाज की कमी का एक कारण बना है।

इन सब स्थितियों का असर श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भण्डार पर पड़ा है। तीन साल पहले जिस श्रीलंका के पास 7.5 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भण्डार था, वहाँ राजपक्षे सरकार के आने के बाद इसमें इतनी तेज़ गिरावट कि अब यह महज़ 5,000 करोड़ रुपये रह गया है। पिछले साल नवंबर तक यह गिरकर 1.58 बिलियन डॉलर के स्तर पर आ चुका था। श्रीलंका के पास विदेशी क़र्ज़ की क़िस्तें चुकाने लायक भी फॉरेक्स रिजर्व नहीं बचा है। आईएमएफ ने कहा है कि श्रीलंका की अर्थ-व्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर है।

श्रीलंका हाल के वर्षों में आयात पर बहुत निर्भर हुआ है, जिसका उसे बहुत नुक़सान उठाना पड़ा है। श्रीलंका चीनी, दाल, अनाज, दवा जैसी ज़रूरी चीज़ों के लिए भी आयात पर निर्भर है। फर्टिलाइजर पर रोक ने इसे ज़्यादा गम्भीर बनाने में मदद की है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद श्रीलंका की चुनौतियाँ दोगुनी हो गयी हैं। इसका कारण यह है कि पड़ोसी देश चीनी, दलहन और अनाज आदि के मामले में इन दो देशों पर काफ़ी निर्भर हैं। कृषि ज़रूरतों की क़ीमतें भी युद्ध के बाद आसमान छू रही हैं। आयात बिल भरने के लिए श्रीलंका के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भण्डार बचा ही नहीं है।

 

जब श्रीलंका बेहतर था

सन् 2009 में श्रीलंका जब एलटीटीई के 26 साल के गृहयुद्ध से बाहर निकला था, तब भी उसकी जीडीपी वृद्धि दर 7-8 फ़ीसदी की बेहतर स्थिति में थी। यह क्रम सन् 2012 तक चला, जब उसकी जीडीपी वृद्धि दर 9 फ़ीसदी की उच्चतम स्तर पर थी। हालाँकि इसके बाद वैश्विक उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यों में गिरावट, निर्यात की मंदी और आयात में वृद्धि के साथ सन् 2013 के बाद श्रीलंका की औसत जीडीपी वृद्धि दर आश्चर्यजनक तरीक़े से घटकर आधी रह गयी।

ऐसा नहीं कि श्रीलंका में विदेशी मुद्रा भण्डार की कमी आज पहली बार हुई है। सन् 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट का उस पर बहुत ख़राब असर पड़ा था और उसका विदेशी मुद्रा भण्डार लगभग ख़त्म हो गया था। इसका कारण यह भी था कि एलटीटीई के गृहयुद्ध के चलते श्रीलंका का बजट घाटा बहुत ऊँचे स्तर पर पहुँच गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि श्रीलंका को सन् 2009 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 2.6 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ लेना पड़ा।

यह सिलसिला चलता रहा और सन् 2016 में श्रीलंका को फिर 1.5 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ लेने के लिए आईएमएफ के पास जाना पड़ा; लेकिन उसकी कठोर शर्तों ने श्रीलंका की आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी। इसके बाद श्रीलंका ने इससे उबरने की जब कोशिश की तो उसका कोई नतीजा निकलता उससे पहले ही राजधानी कोलंबो के गिरिजाघरों में अप्रैल, 2019 में बम विस्फोटों में 253 लोगों की मौत का देश के पर्यटन पर पड़ा। इसका सबसे बुरा असर उसके विदेशी मुद्रा भण्डार पर पड़ा और फिर इससे उबरना उसके लिए मुश्किल हो गया।

 

राजनीतिक वादों की चोट

सन् 2019 में जब राजपक्षे बंधुओं ने चुनावों में कम दरों पर किसानों के लिए रियायतों का पिटारा खोला उन्हें देश की आर्थिक स्थिति की भलीभाँति जानकारी थी; लेकिन इसके बावजूद सत्ता में आकर जब उन्होंने इसे लागू किया, तो देश पर आर्थिक बोझ पड़ा। इस स्थिति में श्रीलंका को तब और झटका लगा, जब कोरोना महामारी ने उसकी हालत पतली कर दी। पर्यटन के अलावा चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को जबरदस्त नुक़सान पहुँचा, जो श्रीलंका की आर्थिकी का सबसे बड़ा सहारा थे। सैलानियों की जबरदस्त कमी और राजस्व की इस गिरावट और सरकार के ख़र्चों में बढ़ोतरी के चलते 2020-21 में श्रीलंका का राजकोषीय घाटा 10 फ़ीसदी से ज़्यादा हो गया और उसका कर-जीडीपी अनुपात सन् 2019 के 94 फ़ीसदी से बढ़कर सन् 2021 में 119 फ़ीसदी हो गया।

 

भारत और श्रीलंका के रिश्ते

वर्तमान में श्रीलंका में मुद्रास्फीति की दर 20 फ़ीसदी से अधिक हो चुकी है। इससे श्रीलंका में ग़रीबों और आम आदमी की हालत ख़राब है। लोग बड़े पैमाने पर सड़कों पर हैं। विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि आवश्यक वस्तुओं की कमी देश को और संकट में पहुँचाएगी। संकट की इस स्थिति में भारत ने अपने पड़ोसी की तरफ़ मदद का हाथ बढ़ाया है, जो हाल के तीन वर्षों में चीन के प्रभाव में रहा है।

भारत ने इस साल जनवरी से श्रीलंका को काफ़ी आर्थिक मदद जारी की है। यह मदद उदार शर्तों पर आधारित है। अभी तक भारत पड़ोसी देश को 1.4 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद दे चुका है। इसमें 400 डॉलर का करेंसी स्वैप, 500 डॉलर का ऋण स्थगन और ईंधन आयात के लिए 500 डॉलर का लाइन ऑफ क्रेडिट शामिल है। इसके अलावा श्रीलंका की मदद के लिए भारत ने उसे एक बिलियन डॉलर की राशि शॉर्ट टर्म रियायती क़र्ज़ के रूप में दी है। भारत की मदद से श्रीलंका की जनता में अच्छा सन्देश गया है, जो राजपक्षे सरकार के चीन से मदद को लेकर अब नाराज़ है; क्योंकि उन्हें लगता है कि चीन ने उन्हें मदद के नाम पर जाल में फँसाया है। भारत की मदद से श्रीलंका में कैसा सकारात्मक सन्देश गया है, वह क्रिकेटर से राजनीतिक बने सनथ जयसूर्या के बयान से ज़ाहिर होता है, जिन्होंने अप्रैल के पहले हफ़्ते भारत की जमकर तारीफ़ करते हुए कहा कि गम्भीर आर्थिक संकट से गुज़र रहे उनके देश की मदद कर भारत ने ‘बड़े भाई’ की भूमिका अदा की है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की भी सराहना की।

जयसूर्या का यह बयान काफ़ी अहम कहा जा सकता है; क्योंकि श्रीलंका में चीन और वर्तमान शासकों राजपक्षे बंधुओं के प्रति नाराज़गी चरम पर है। श्रीलंका में लोग महसूस कर रहे हैं कि उनके देश की यह हालत चीन के कारण हुई है। भारत ने अकेले एक दिन में श्रीलंका को 76,000 टन ईंधन भेजा, जबकि अंतरराष्ट्रीय कारणों से भारत में भी पेट्रोलियम रेट लगातार बढ़ रहे थे। श्रीलंका में ईंधन, रसोई गैस के लिए लम्बी क़तारें हैं, जबकि यही हाल पेट्रोल पम्पों पर है। ज़रूरी वस्तुओं का अकाल-सा पड़ गया है और हर रोज़ बिजली की घंटों कटौती से जनता गम्भीर परेशानी झेल रही है।

राजपक्षे बंधुओं के सत्ता में आने के बाद उनके देश का चीन के प्रति लगातार झुकाव बढ़ा और उसने कुछ परियोजनाओं में श्रीलंका को बड़े स्तर पर क़र्ज़ दिया। लेकिन श्रीलंका में महसूस किया जा रहा है कि देश के गम्भीर आर्थिक संकट में फँसने का असल कारण यही है। जयसूर्या का कहना है कि श्रीलंका में जीवन काफ़ी कठिन हो गया है और भारत और अन्य देशों की मदद से हम इस संकट से बाहर आने की उम्मीद कर रहे हैं।

हाल के दशकों की बात करें, तो भारत श्रीलंका का बड़ा सहयोगी रहा है। भंडारनायके और इंदिरा गाँधी के ज़माने से लेकर हाल के वर्षों तक भारत ने श्रीलंका की तरफ़ हमेशा सहयोगी रुख़ रखा है। लेकिन क़रीब एक दशक से और दो साल पहले जब राजपक्षे बंधु सत्ता में आये, तो उनका भारत की बजाय चीन की तरफ़ झुकाव बढ़ गया। भारत के साथ रहते हुए कभी भी श्रीलंका के सामने आज जैसा गम्भीर संकट नहीं आया। श्रीलंका के सामने विदेशी मुद्रा का भयंकर संकट आने से खाद्य और ईंधन आयात करने की उसकी क्षमता पर असर पड़ा है। बिजली कटौती भी लम्बी खिंच रही है। श्रीलंका के जानकार मानते हैं कि चीनी निवेश के आगे घुटने टेकना देश को बहुत भारी पड़ा है। आँकड़ों के मुताबिक, श्रीलंका पर मार्च, 2022 के आख़िर तक क़रीब सात बिलियन डॉलर का विदेशी क़र्ज़ है। बड़ा चीनी निवेश श्रीलंका को बेहतर करने की जगह इतिहास के सबसे गम्भीर आर्थिक संकट में खींच लाया है।

इस साल जनवरी में जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी जब श्रीलंका आये थे, तब श्रीलंका के राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे ने उनसे क़र्ज़ चुकाने के लिए सॉफ्ट नीति का आग्रह किया था। मार्च में श्रीलंका में चीनी राजदूत क्यूई जेनहोंग ने कहा था कि चीन एक अरब डॉलर के क़र्ज़ और 1.5 अरब डॉलर की क्रेडिट लाइन के लिए श्रीलंका के आग्रह पर विचार कर रहा है। चीन पहले ही श्रीलंका को कोरोना महामारी के दौरान 2.8 अरब डॉलर की मदद दे चुका है।

हालाँकि वर्तमान माहौल में श्रीलंका की जनता में चीन के प्रति विश्वसनीयता में कमी आयी है। वहाँ महसूस किया जा रहा है कि चीन ने सहयोगी से ज़्यादा विस्तारवादी नीति वाले देश की भूमिका निभायी है और श्रीलंका को गहरे संकट में डाल दिया है।

 

भारत के लिए सबक़

श्रीलंका का संकट भारत के लिए भी सबक़ है। हाल के वर्षों में राजनीतिक दलों की तरफ़ से जनता को मु$फ्त बिजली, पानी, स्कूटी, लैपटॉप आदि देने का प्रचलन बहुत तेज़ी से बढ़ा है। यह तरीक़ा भले तात्कालिक राजनीतिक फ़ायदा दे देता हो; लेकिन अर्थ-व्यवस्था की सेहत के लिहाज़ से यह ख़तरनाक है। प्रदेशों का क़र्ज़ा ख़तरनाक स्तर पर पहुँच चुका है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में वरिष्ठ अधिकारियों ने भारत के श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट में फँसे के ख़तरे से उन्हें आगाह किया था।

यदि हम देश के ऊपर चढ़े क़र्ज़ की बात करें, तो भारत के वित्त मंत्रालय की तरफ़ से 7 अप्रैल को दी गयी जानकारी के मुताबिक, देश का विदेशी स्रोतों से लिया गया क़र्ज़ दिसंबर, 2021 को ख़त्म हुई तिमाही में 11.5 अरब डॉलर बढ़कर 614.9 अरब डॉलर पर पहुँच गया था। जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) अनुपात के रूप में विदेशी क़र्ज़ पिछले साल दिसंबर के अन्त में 20 फ़ीसदी रहा, जो सितंबर, 2021 में 20.3 फ़ीसदी था। दिसंबर, 2021 को समाप्त तिमाही के लिए भारत के विदेशी क़र्ज़ पर रिपोर्ट के अनुसार, देश का बाह्य क़र्ज़ यानी विदेशी स्रोतों से लिया गया क़र्ज़ सितंबर, 2021 को समाप्त तिमाही के मुक़ाबले 11.5 अरब डॉलर बढ़कर 614.9 अरब डॉलर पर पहुँच गया।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का विदेशी ऋण सतत और सूझबूझ के साथ प्रबन्धित है। मूल्यांकन लाभ का कारण यूरो, येन और विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) की तुलना में अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर में वृद्धि है। यह लाभ क़रीब 1.7 अरब डॉलर रहा। रिपोर्ट बताती है कि मूल्यांकन प्रभाव को अगर छोड़ दिया जाए, तो विदेशी क़र्ज़ दिसंबर, 2021 को समाप्त तिमाही में इससे पिछली तिमाही के मुक़ाबले 11.5 अरब डॉलर के बजाय 13.2 अरब डॉलर बढ़ता।

विदेशी क़र्ज़ में वाणिज्यिक क़र्ज़ की हिस्सेदारी सबसे अधिक 36.8 फ़ीसदी रही। उसके बाद प्रवासी जमा (23.1 फ़ीसदी) और अल्पकालीन व्यापार क़र्ज़ का स्थान रहा। दिसंबर, 2021 के अन्त में एक साल से अधिक समय में परिपक्व होने वाला दीर्घकालीन क़र्ज़ 500.3 अरब डॉलर रहा। यह सितंबर, 2021 के मुक़ाबले 1.7 अरब डॉलर बढ़कर 500.3 अरब डॉलर रहा। एक साल तक की परिपक्वता अवधि वाले अल्पकालीन क़र्ज़ की बाह्य ऋण में हिस्सेदारी बढ़कर 18.6 फ़ीसदी हो गयी, जो सितंबर, 2021 के अन्त में 17.4 फ़ीसदी थी।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के विदेशी क़र्ज़ में अमेरिकी डॉलर में लिये गये क़र्ज़ का हिस्सा उपरोक्त तिमाही में सबसे ज़्यादा 52 फ़ीसदी रहा। इसके बाद भारतीय रुपये (32 फ़ीसदी), विशेष आहरण अधिकार (6.7 फ़ीसदी), येन (5.3 फ़ीसदी) और यूरो (3.1 फ़ीसदी) का स्थान रहा। सरकार का बक़ाया विदेशी क़र्ज़ दिसंबर, 2021 को ख़त्म हुई तिमाही के दौरान पिछली तिमाही के मुक़ाबले मामूली कम हुआ, जबकि ग़ैर-सरकारी क्षेत्र का ऋण बढ़ा है। साथ ही मूल राशि की अदायगी के साथ ब्याज भुगतान आलोच्य तिमाही में बढ़कर 4.9 फ़ीसदी हो गया, जो सितंबर, 2021 को समाप्त तिमाही में 4.7 फ़ीसदी था।

अब राज्यों के क़र्ज़ों की बात करें, तो पता चलता है कि विभिन्न राज्यों के बजट अनुमानों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में सभी राज्यों का क़र्ज़ का कुल बोझ 15 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुँच चुका है। राज्यों का औसत क़र्ज़ उनके जीडीपी के 31.3 फ़ीसदी पर पहुँच गया है। सभी राज्यों का कुल राजस्व घाटा 17 वर्षों के उच्चतम स्तर 4.2 फ़ीसदी पर पहुँच गया है। वित्त वर्ष 2021-22 में क़र्ज़ और जीएसडीपी (ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट) का अनुपात सबसे ज़्यादा पंजाब का 53.3 फ़ीसदी रहा।

पंजाब का जितना जीडीपी है, उसका क़रीब 53.3 फ़ीसदी हिस्सा क़र्ज़ है। इसी तरह राजस्थान का अनुपात 39.8 फ़ीसदी, पश्चिम बंगाल का 38.8 फ़ीसदी, केरल का 38.3 फ़ीसदी और आंध्र प्रदेश का क़र्ज़-जीएसडीपी अनुपात 37.6 फ़ीसदी है। इन सभी राज्यों को राजस्व घाटा का अनुदान केंद्र सरकार से मिलता है। महाराष्ट्र और गुज़रात जैसे आर्थिक रूप से मज़बूत राज्यों पर भी क़र्ज़ का बोझ कम नहीं है। गुज़रात का क़र्ज़-जीएसडीपी अनुपात 23 फ़ीसदी, तो महाराष्ट्र का 20 फ़ीसदी है।

हिमाचल में जमने से पहले ही उखड़े आप के पाँव

प्रदेश में आम आदमी पार्टी को शुरुआत में ही लगा झटका, प्रदेश अध्यक्ष ने ही छोड़ा साथ

एक बड़े राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर जब चार बार के सांसद और केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक ट्वीट किया- ‘केजरीवाल ने सोचा था, हिमाचल में सरकार बनाएँगे; लेकिन वहाँ तो आम आदमी पार्टी को अपना संगठन बचाना मुश्किल हो गया है।‘ तो साफ़ था कि यह आम आदमी पार्टी के लिए पहाड़ी राज्य में एक बड़ा झटका था। अनुराग का यह ट्वीट आम आदमी पार्टी के हिमाचल में अध्यक्ष अनूप केसरी और दो अन्य पदाधिकारियों के भाजपा में शामिल होने को लेकर था। ज़ाहिर है आम आदमी पार्टी को इससे बड़ा झटका लगा। हालाँकि पार्टी नेता और प्रदेश प्रभारी सत्येंद्र जैन, जो दिल्ली सरकार में मंत्री हैं; ने ट्वीट कर कहा कि हिमाचल प्रदेश की आम आदमी पार्टी की राज्य कार्यसमिति भंग कर दी गयी है, नयी राज्य कार्यसमिति का पुनर्गठन जल्द किया जाएगा। ज़ाहिर है प्रदेश अध्यक्ष के दलबदल करने से आम आदमी पार्टी को झटका लगा है।

पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल ने इस घटनाक्रम पर कहा कि आम आदमी पार्टी का हिमाचल में कोई भविष्य नहीं है और भाजपा राज्य में सत्ता बरक़रार रखेगी। धूमल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि लोग केंद्र और राज्य में सरकार के प्रदर्शन से बहुत ख़ुश हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के निधन के बाद पहाड़ी प्रदेश में कांग्रेस नेताविहीन हो गयी है।

बता दें धूमल एक ज़मीनी नेता हैं और इन दिनों काफ़ी सक्रिय हैं। हालाँकि वह विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि वह भाजपा के एक वफ़ादार सिपाही हैं और पार्टी के आदेश पर सब कुछ करेंगे।

उधर आम आदमी पार्टी ने सात प्रमुख पदाधिकारियों के पार्टी छोडऩे के बाद हिमाचल की इकाई की राज्य कार्यसमिति को भंग कर दिया। विधानसभा चुनाव से पहले राज्य इकाई को तगड़ा झटका देते हुए यह नेता भाजपा में शामिल हो गये। आम आदमी पार्टी राज्य इकाई के सात पदाधिकारियों का भाजपा में दलबदल अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह ज़िले मंडी में बड़े रोड शो के बाद हुआ। भाजपा ने आम आदमी पार्टी से उस अपमान का बदला लिया है, जिसमें शिमला से उसके पूर्व पार्षद गौरव शर्मा, जो अब आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता हैं और उनके सहयोगी पिछले महीने भाजपा छोड़ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गये थे।

8 अप्रैल को आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी, राज्य के संगठन सचिव सतीश ठाकुर और ऊना के ज़िला अध्यक्ष इकबाल सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की उपस्थिति में भाजपा में शामिल हुए थे। ठाकुर ने आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की हिमाचल विरोधी कार्यशैली के विरोध में नेता आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं।

हिमाचल के लिए आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रभारी सत्येंद्र जैन ने राज्य इकाई को भंग करने की घोषणा की। वैसे विधानसभाओं की इकाइयाँ यथावत कार्य करती रहेंगी। उन्होंने कहा कि जल्द ही एक मज़बूत संगठन का गठन किया जाएगा। आम आदमी पार्टी की यह घोषणा उसके प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी और पार्टी के संगठन सचिव के शिमला में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के रोड शो से कुछ घंटे पहले भाजपा में शामिल होने के बाद हुई।

इसके बाद आम आदमी पार्टी की महिला विंग की प्रमुख ममता ठाकुर, पाँच अन्य पदाधिकारियों के साथ नई दिल्ली में केंद्रीय कार्यालय में भाजपा में शामिल हो गयीं। अन्य नेताओं में आम आदमी पार्टी की महिला शाखा की उपाध्यक्ष सोनिया बिंदल और संगीता, आम आदमी पार्टी की औद्योगिक शाखा के उपाध्यक्ष डी.के. शर्मा और सोशल मीडिया के उपाध्यक्ष आशीष कुमार शामिल हैं।

केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, जिन्हें इन नेताओं को भाजपा में शामिल कराने का श्रेय दिया जाता है; ने कहा कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी के और नेता भाजपा में शामिल होंगे। पता चला है कि आम आदमी पार्टी की महिला विंग की प्रदेश अध्यक्ष ममता ठाकुर को भाजपा में शामिल करने में अनुराग ठाकुर की अहम भूमिका थी।

इस मौक़े पर केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी भी मौज़ूद रहीं। अनुराग ठाकुर ने कहा कि आम आदमी पार्टी के लिए हिमाचल में अपनी पार्टी को बचाना मुश्किल हो गया है।

निश्चित ही भाजपा जोखिम लेना चाहती है। कुछ महीने पहले सत्तारूढ़ भाजपा को तब बड़ा झटका लगा था, जब तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर वह उपचुनाव हार गयी थी। इनमें मंडी की लोकसभा सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह ज़िले में पड़ती है। पिछले साल 30 अक्टूबर को यह उपचुनाव हुए थे। इस हार के झटके से उबरने के लिए निश्चित ही भाजपा अब आक्रामक हो रही है।

आम आदमी पार्टी ने 6 अप्रैल को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके पंजाब समकक्ष भगवंत मान के रोड शो के साथ मौज़ूदा मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के गृह क्षेत्र मंडी से राज्य विधानसभा चुनावों के लिए अपना चुनाव अभियान शुरू किया था। इस साल के अन्त तक होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यह पार्टी का पहला बड़ा आयोजन था और यह पहाड़ी राज्य में जनता के मूड को भी प्रदर्शित कर रहा था। आम आदमी पार्टी ने शिमला नगर निगम चुनाव लडऩे की योजना की भी घोषणा की थी, जिसके लिए कार्यक्रम की घोषणा जल्द होने की उम्मीद है। आम आदमी पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बड़े-बड़े होर्डिंग प्रमुख स्थानों पर लगे हैं और आम आदमी पार्टी ने सभी 41 वार्डों में चुनाव लडऩे के लिए राजधानी में अपने क़दम बढ़ाते हुए सदस्यता अभियान शुरू कर दिया है।

एक चतुर रणनीति के रूप में भाजपा ने आम आदमी पार्टी नेताओं के भाजपा में शामिल होने के पूरे शो को लाइव और प्रमुखता से सोशल मीडिया पर प्रचारित किया। ज़ाहिर है उसका मक़सद इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सामूहिक दलबदल करवाकर आम आदमी पार्टी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है।

हालाँकि यह सा$फ संकेत है कि भाजपा को डर है कि पड़ोसी राज्य पंजाब में आम आदमी पार्टी की लहर और आम आदमी पार्टी सरकार के गठन से हिमाचल में चुनाव प्रभावित हो सकते हैं, जहाँ आम आदमी पार्टी ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह आने वाले विधानसभा चुनावों में सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उसने अपना सदस्यता अभियान भी शुरू किया था।

सदस्यता समारोह के दौरान अनुराग ठाकुर के अलावा मीनाक्षी लेखी, पार्टी महासचिव अरुण सिंह और राष्ट्रीय सह मीडिया प्रभारी संजय मयूख भी मौज़ूद थे। दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए अध्यक्ष अनूप केसरी, संगठन महासचिव सतीश ठाकुर भी आम आदमी पार्टी को सन्देश देने के लिए इस कार्यक्रम में मौज़ूद थे।

आम आदमी पार्टी और भाजपा जहाँ राजनीतिक लड़ाई और दलबदल कराने में लगे हुए हैं, वहीं राज्य कांग्रेस भ्रम और राजनीतिक अलगाव की स्थिति में दिखायी दे रही है। हाल ही में पड़ोसी राज्य पंजाब में जो हुआ, उससे पार्टी नेताओं का विश्वास डगमगाया है। एक कारण और है- हिमाचल में कांग्रेस के नेता वैसे ही एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं; जैसा पंजाब में था।





पवार की खरगे, राहुल गांधी के साथ बैठक में हुई विपक्षी एकता पर चर्चा

अडानी मामले में कांग्रेस सहित विपक्ष के 19 दलों की जेपीसी की मांग को लेकर विपरीत बयान के बाद चर्चा में चल रहे एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने गुरुवार शाम कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठक की। बैठक के बाद शरद पवार ने कहा कि ‘एक प्रक्रिया शुरू करने की जरूरत है। यह सिर्फ शुरुआत है। इसके बाद ममता बनर्जी (टीएमसी) अरविंद केजरीवाल (आप) और अन्य दलों के साथ बातचीत करनी है ताकि इस प्रक्रिया में उन्हें शामिल किया जा सके।’पवार का कहना है कि विपक्षी दलों को साथ लाने का प्रयास किया जाएगा। हाल के उनके बयानों के बाद विपक्ष की एकता को लेकर सवाल उठ रहे थे, हालांकि, अभी भी पवार का जो रुख है उसे देखते हुए कुछ साफ़ नहीं कहा जा सकता है। कल शाम की इस बैठक में नेताओं ने 2024 के आम चुनाव को लेकर चर्चा की जिसके केंद्र में विपक्षी एकता रही।कांग्रेस के नेताओं के मुताबिक जल्द ही नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, के चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, जगन रेड्डी और अरविंद केजरीवाल से भी बैठक की जाएंगी। दिलचस्प यह है कि विपक्ष ने पहली बार नवीन पटनायक के अलावा जगन रेड्डी और किसी राव को बैठकों में शामिल करने की बात की है। इसमें पवार और नीतीश के मुख्य भूमिका निभाने की संभावना है।

कल की बैठक कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर हुई। याद रहे अडानी के मुद्दे पर 19 दलों ने जेपीसी की मांग की थी जिसका पवार ने यह कहकर विरोध किया था कि इससे कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि जेपीसी में ज्यादातर सत्तारुढ़ दल के ही सदस्य रहते हैं।बैठक के बाद खरगे ने कहा – ‘नीतीश जी और तेजस्वी जी इ बातचीत के बाद अब बातचीत हुई है। सभी नेता लोकतंत्र, संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बचाने के लिए और महंगाई और युवाओं के लिए मिलकर काम करेंगे। पवार साहब का कहना है कि सबसे मिलकर बात करेंगे और सब एक होने की कोशिश करेंगे। हम सब मिलकर और देशहित में काम करेंगे।’

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ख़ुद की तलाश में बशीर बद्र

तालियों की गूँज और वाह-वाह के साथ आज भी जी रहे मशहूर शायर

प्रशांत झा

याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम

कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम

अब हमें देख भी न पाओगे

इतने नज़दीक आ रहे हैं हम

सब कुछ भुला चुके बशीर बद्र आज भी तालियों की गूँज और वाह-वाह की आवाज़ के साथ ही जी रहे।

बशीर बद्र ने 70 के दशक में एक ग़ज़ल लिखी, जिसका मतला और एक शे’र कुछ यूँ थे- ‘याद अब ख़ुद को आ रहे हैं हम

कुछ दिनों तक ख़ुदा रहे हैं हम

अब हमें देख भी न पाओगे

इतने नज़दीक आ रहे हैं हम’

यह मतला और शे’र कभी महफ़िलों की शान रहे मशहूर शायर पद्मश्री बशीर बद्र के जीवन की सच्चाई बन चुका है। अब डिमेंशिया (मतिभ्रम) बीमारी के चलते न वह वर्षों से शायरी कर रहे हैं और न मंचों पर दिखते हैं। हालाँकि उनके शे’र लोगों के ज़ेहन में आज भी ताज़ा हैं। बशीर बद्र इन दिनों भले ही ख़ुद को भी न पहचान रहे हों; लेकिन वह ख़ुद को ही याद करने का प्रयास कर रहे हों।

बशीर बद्र का इलाज कर रहे रांची के न्यूरो के डॉक्टर उज्ज्वल कहते हैं कि पद्मश्री बशीर बद्र डिमेंशिया रोग से ग्रसित हैं। वह सब कुछ भूल चुके हैं; लेकिन आज भी उन्हें तालियों की गूँज और वाह-वाह का इंतज़ार है। अगर कभी चेहरे पर मुस्कान आती है और मुँह से कुछ शब्द निकलते हैं, तो वह शायराना अंदाज़ में ‘वाह-वाह’ ही होती हैं।

हज़ारों लोग डिमेंशिया से ग्रसित

चिकित्सा विज्ञान के पास डिमेंशिया या अल्जाइमर के कारणों का अभी तक निश्चित उत्तर नहीं है। इसे आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन माना जाता है, जो ज़्यादातर बुजुर्गों को प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुसार, दुनिया भर में डिमेंशिया रोग के शिकार मरीज़ों की संख्या 5.5 करोड़ से ज़्यादा है। इसमें अल्जाइमर आम है। वर्ष 2030 तक यह संख्या 7.8 करोड़ होने की संभावना है। वहीं, वर्ष 2050 तक दुनिया भर में इस बीमारी के शिकार मरीज़ों की संख्या 13.9 करोड़ से भी ज़्यादा हो सकती है। इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि डिमेंशिया या अल्जाइमर की बीमारी किस हद तक बढ़ रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत की अगर बात की जाए, तो डिमेंशिया या अल्जाइमर के मरीज़ 60 लाख से अधिक हैं। वर्ष 2050 तक यह संख्या 1.40 करोड़ होने की संभावना है।

बीमारी के दुष्प्रभाव

विशेषज्ञों का कहना है कि डिमेंशिया और अल्जाइमर से ब्रेन की महत्त्वपूर्ण कोशिकाएँ मर जाती हैं। जिस कारण इंसान की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है। इस बीमारी के लक्षण 50-60 साल की उम्र में दिखने लगते हैं। 80-85 साल की उम्र में चीज़ों को भूलना आम बात है। दुनिया में बुजुर्गों की आबादी बढऩे के साथ डिमेंशिया भी अपने पाँव पसार रही है। डॉक्टर उज्ज्वल कहते हैं कि डिमेंशिया बीमारी इंसान के सोचने और समझने की शक्ति को $खत्म कर देती है और उसके व्यवहार में परिवर्तन होने लगता है। बशीर बद्र भी लोगों को पहचानने से लेकर अन्य बातों को भूल चुके हैं और लगभग बिस्तर पर हैं।

ग़ज़ल गायक हैं बशीर के डॉक्टर

झारखण्ड की राजधानी रांची में रहने वाले डॉक्टर उज्ज्वल राय ख़ुद ग़ज़ल गायक हैं। उन्होंने बताया कि ग़ज़ल का शौक़ ही उन्हें बशीर बद्र के नज़दीक ले आया। उन्होंने कहा कि ग़ज़ल के कारण मैं दिल्ली और मुंबई के म्यूजिक डायरेक्टर्स, कवियों, शायरों और जगजीत सिंह, शैलेंद्र सिंह जैसे गायकों के सम्पर्क में आया। इसी शौक़ ने मुझे बशीर बद्र तक पहुँचा दिया। दो साल पहले उनसे बात करने की कोशिश की, तो पता चला वह डिमेंशिया से ग्रसित हैं। मैंने उनका ऑनलाइन ही इलाज शुरू किया। फिर देखा की कुछ फ़ायदा हो रहा, तो भोपाल भी जाने लगा।

88 साल के हुए बशीर बद्र

15 फरवरी डॉ. बशीर बद्र का 87वाँ जन्मदिन था। वह 15 फरवरी, 1936 को कानपुर में हुआ था। भोपाल में रहने वाले बशीर बद्र का पैदाइशी नाम सैय्यद मोहम्मद बशीर है। साहित्य और नाटक अकादमी में किये गये योगदान के लिए उन्हें सन् 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह दुनिया के दो दर्ज़न से ज़्यादा देशों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं।

वह आम आदमी के शायर हैं और ज़िन्दगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीक़े से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र की ख़ासियत रही है। उन्होंने ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनायी है। बशीर बद्र के जन्मदिन के मौक़े पर डॉक्टर उज्ज्वल भी भोपाल गये थे। उन्होंने बशीर बद्र की ग़ज़लों को संगीत के साथ अपनी मखमली आवाज़ में पिरोकर एल्बम के रूप में इस मशहूर शायर को जन्मदिन का ख़ूबसूरत तोहफ़ा दिया।

लोगों के साथ की ज़रूरत

डॉक्टर उज्ज्वल ने कहा कि जब मैंने बशीर बद्र का इलाज शुरू किया, तो वह लगभग बिस्तर पर (बेड रीडेन) थे। न कुछ बोलना, न कुछ याद आना। न किसी को पहचानना और न ही कुछ करना। शे’र-ओ-शायरी तो दूर की बात थी। डिमेंशिया में यही सब होता है। धीरे-धीरे लोग खाना-पीना, मल-मूत्र त्याग करना आदि भी भूल जाते हैं। बशीर बद्र उस स्थिति में नहीं पहुँचे थे। इसलिए मुझे कुछ उम्मीद दिखी। बशीर बद्र एक मशहूर शायर हैं। वह हमेशा लोगों से घिरे रहते होंगे। शेरो-शायरी करते रहते होंगे। शायरी उनकी रगों में दौड़ती है। कभी कुछ बोलने का प्रयास करते, तो कहते- ‘हमें और कितनी दूर जाना है, अब हमारा स$फर कितना बाक़ी है।’

दवा के साथ-साथ मैंने इसी शायरी को उनके इलाज का ज़रिया बनाया। अभी इलाज करते हुए बहुत वक़्त नहीं हुआ है। लेकिन उनमें धीमी गति से ही सही, बेहतरी दिख रही है। इस बार बशीर साहेब के जन्मदिन के मौक़े पर जैसे ही मैं भोपाल उनके पास पहुँचा, तो मुझे देखते ही शायराना अंदाज़ में कहा- वाह! वाह!! आइए-आइए, …विराजिये।

उनकी 88 की उम्र है। एक लम्बे समय से डिमेंशिया से ग्रसित हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह पूरी तरह ठीक हो जाएँगे और पहले की तरह शायरी कर लगेंगे। लेकिन उम्मीद है कि काफ़ी हद तक ठीक हो जाएँगे। उन्हें गुमनामी नहीं, लोगों की साथ की ज़रूरत है। वह लोगों से घिरे रहना चाहते हैं, जो उनकी सेहत में सुधार का मुख्य ज़रिया बनेगा।

कैसे होगा डिमेंशिया का निदान?

डिमेंशिया के निदान पर ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर आप फोन उठाने, खाना खाने से लेकर छोटी-छोटी चीज़ें तक भूल रहे हैं, तो इसे हल्के में न लें और $फौरन डॉक्टर से सम्पर्क करें। विशेषज्ञ कहते हैं कि डिमेंशिया वाले 90 फ़ीसदी लोगों का उपचार या निदान कभी नहीं किया जाता है। देश में डिमेंशिया स्क्रीनिंग के लिए पर्याप्त क्लीनिक नहीं हैं। इसलिए इस बीमारी का निदान नहीं हो रहा है। एक तो लोग इसके प्रति जागरूक नहीं हैं। दूसरी शुरुआती इलाज में देरी हो रही है। भारत को एक राष्ट्रीय डिमेंशिया रणनीति की आवश्यकता है, जो हमें इस स्वास्थ्य समस्या से बेहतर तरीक़े से लडऩे के लिए तैयार करे।

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भारत के पहले निजी रॉकेट विक्रम-एस का
श्रीहरिकोटा से सफलता पूर्वक प्रक्षेपण

तहलका ब्यूरो
भारत के पहले निजी रॉकेट विक्रम-एस का शुक्रवार को सफलता पूर्वक प्रक्षेपण कर दिया गया। विक्रम-एस ‘मिशन प्रारंभ’ का हिस्सा है। इस रॉकेट का निर्माण स्काई रूट एयरोस्पेस ने किया है।

निजी क्षेत्र की इस कंपनी ने 2020 में केंद्र सरकार की अंतरिक्ष उद्योग को निजी क्षेत्र के लिए खोले जाने के घोषणा के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ गयी है।

इसका प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के केंद्र से किया गया। देश का पहला निजी तौर पर विकसित रॉकेट ‘विक्रम-एस’ का प्रक्षेपण होने के बाद देश का निजी क्षेत्र का यह पहला प्रयोग सफल रहा है।

स्काईरूट एयरोस्पेस चार साल शुरू हुआ स्टार्ट-अप है। सरकारी स्वामित्व वाले इसरो के प्रभुत्व वाले देश के अंतरिक्ष उद्योग में निजी क्षेत्र का प्रवेश बड़ी घटना है।     अंतरिक्ष नियामक ने 18 नवंबर को भारत के इस पहले निजी रॉकेट प्रक्षेपण को मंजूरी दी थी।

विक्रम-एस सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसके प्रक्षेपण के बाद 81 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचेगा। रॉकेट का नामकरण भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक और दिवंगत वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर किया गया है।

यह रॉकेट मिशन में दो घरेलू और एक विदेशी ग्राहक के तीन पेलोड लेकर गया है। छह मीटर लंबा यह रॉकेट दुनिया के पहले कुछ ऐसे रॉकेट में शामिल है जिसमें घुमाव की स्थिरता के लिए 3-डी प्रिंटेड ठोस प्रक्षेपक हैं।

मुसलमान लक्ष्मी की पूजा नहीं करते हैं, तो क्या वह अमीर नहीं हैं?- भाजपा विधायक

बिहार के भागलपुर जिले के पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक ललन पासवान ने बुधवार को हिंदू मान्यताओं पर सवाल उठाए व साथ ही तर्क भी दिए। उनके बयान के बाद से भागलपुर के शेरमारी बाजार में खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया और उनका पुतला भी जलाया गया।

विधायक ने दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा पर सवाल उठाए और कहा कि, “अगर हमें केवल देवी लक्ष्मी की पूजा करने से धन मिलता है तो मुसलमानों में अरबपति और अरबपति नहीं होते? मुसलमान देवी लक्ष्मी की पूजा नहीं करते हैं, क्या वे अमीर नहीं होते हैं ? मुसलमान देवी सरस्वती की पूजा नहीं करते हैं, क्या मुसलमानों में कोई विद्वान नहीं हैं? क्या वे आईएएस नहीं बनते?”

उन्होंने आगे कहा कि, आत्मा और परमात्मा की अवधारणा सिर्फ लोगों की मान्यता है। यदि आप मानते हैं तो देव हैं, वरना पत्थर। यह हम पर निर्भर है कि हम देवी-देवताओं को मानते हैं या नहीं। तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हमें वैज्ञानिक आधार पर सोचना होगा। यदि आप विश्वास करना बंद कर देते हैं, तो आपकी बौद्धिक क्षमता में इजाफा होगा।“

पासवान ने कहा कि, ऐसा माना जाता है कि बजरंगबली शक्ति वाले देवता हैं और शक्ति प्रदान करते हैं। मुस्लिम या र्इसार्इ बजरंगबली की पूजा नहीं करते हैं। क्या वे शक्तिशाली नहीं हैं? अमेरिका में बजरंगबली का मंदिर नहीं हैं, तो क्या वह सुपर पावर नहीं हैं? जिस दिन आप विश्वास करना बंद कर देंगे, ये सभी चीजें खत्म हो जाएंगी।“

लोकसभा चुनाव 2024: लोकसभा चुनाव को भाजपा ने मांगा रिपोर्ट कार्ड तो बसपा ने बुलाई अहम बैठक

लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में तैयारियों की शुरुआत हो गर्इ हैं। पहले भाजपा, फिर समाजवादी पार्टी (सपा) और अब बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अहम बैठक बुलाई हैं। सपा प्रमुख मायावती ने बुधवार को लखनऊ में सभी पदाधिकारियों की बैठक बुलाई हैं।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने ट्वीट कर कहा कि, “उत्तर प्रदेश व देश में तेज़ी से बदल रहे राजनीतिक हालात, उससे सम्बंधित खास घटनाक्रों एवं समीकरणों के साथ ही आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी आदि को लेकर बीएसपी यूपी स्टेट, सभी मण्डल तथा सभी जिला स्तर के वरिष्ठ पदाधिकारियों की महत्वपूर्ण राजनीतिक बैठक कल लखनऊ में आहूत।”

वहीं भाजपा ने अपने सभी सांसदों का रिपोर्ट कार्ड मांगा है और उन्हें एक फॉर्म भी भरने को दिया गया है। भाजपा ने उनसे महासंपर्क अभियान से लेकर अपने इलाके से प्रभावशाली लोगों को डेटा समेत सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की भी लिस्ट मांगी गई है। भाजपा का जोर मोदी सरकार के पिछले 9 साल में किए गए काम को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है। पार्टी ने सांसदों को अगले कुछ दिनों में करने वाले कामो की लिस्ट भी दी है।

समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवारों की तलाश शुरू कर दी है। और जनसंपर्क अभियान को और तेज करने पर भी जोर दिया है। सपा नेता अखिलेश यादव ने कुछ दिनों पहले यह दावा किया था कि सपा लोकसभा में सभी 80 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कराएगी।