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देश की दो पोस्टर गल्र्स

केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के िखलाफ 8 जनवरी को पूरे देश में बन्द रहा। इसके अलावा देश के कई हिस्सों में युवा लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जामिया के बाद जेएनयू में जिस तरह की बर्बर कार्रवाई की गई, उसके विरोध में देश भर में युवाओं में उबाल आ गया है। इन्हीं विरोध प्रदर्शनों के बीच में पिछले दिनों दो युवतियों के पोस्टरों ने देश में हलचल पैदा कर खूब सुॢखयाँ बटोरी। पहला पोस्टर- सबसे •यादा चर्चित और विवादित रहा; यह पोस्टर देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया में 6 जनवरी को एक युवती का था, जिसमें लिखा था-‘फ्री कश्मीर’। जबकि दूसरा विरोध-प्रदर्शन का बैनर देश की राजधानी नई दिल्ली के लाजपत नगर इलाके का है, जहाँ पर 5 जनवरी को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह विधानसभा चुनाव के लिए कैंपेन करने निकले, तो उनको एक युवती ने घर की बालकनी पर ही इसे लटकाया था। यह अलग बात है कि मुम्बई में प्रदर्शन करने वाली युवती के िखलाफ देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है, जबकि लाजपत नगर के मामले में भाजपा कार्यकर्ताओं के उग्र रवैये के चलते मकान मालिक ने उसी रात को ही युवा वकील से घर करवा लिया जो अपने दोस्त के साथ रह रही थीं।

शाह को बैनर दिखाने वाली पेशे से वकील

देश के गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लाजपत नगर कॉलोनी में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जागरूकता अभियान चलाने को निकले थे। इसी बीच महिला ने विरोध जताने को अपनी बालकनी में सीएए और एनआरसी के िखलाफ बैनर लटका रखा था। यह लडक़ी पेशे से वकील सूर्या राजप्पन है। राजप्पन पर हिंसक भीड़ ने घर में घुसकर हमला करने की कोशिश की थी। सूर्या का मानना है कि उसका विरोध आइडिया ऑफ इंडिया के लिए, जिसमें हम सब पले बढ़े हैं। वह कहती हैं कि अपने स्कूल के दिनों में 2020 के लिए जिस भारत की कल्पना की थी, वो ये नहीं है।

दिल्ली हाई कोर्ट में वकील 27 वर्षीय सूर्या कहती हैं, अगर मुझे लगता है कि सरकार कुछ गलत कर रही, तो यह मेरा संवैधानिक अधिकार है कि मैं उसका विरोध करूँ। सूर्या और उनकी दोस्त ने एक बेडशीट पर गुलाबी स्प्रे से पेंट करके बैनर तैयार किया था। हालाँकि इसके लिए उन्होंने बहुत मशक्कत नहीं की थी। यह विरोध अमित शाह के िखलाफ नहीं था, फिर भी उग्र भीड़ ने जिस तरह से बैनर फाड़ा, उसे कतई उचित नहीं ठहरा सकते। सूर्या का मानना है कि देश के हालात से वो नाउम्मीद होती जा रही थीं, पर अब विरोध प्रदर्शनों से एक उम्मीद जगी है।

महक कश्मीरी नहीं, मराठी लडक़ी

दूसरी युवती जो चर्चा में रही वह है- मुम्बई के गेटवे ऑफ इंडिया पर ‘फ्री कश्मीर’ का पोस्टर लहराने वाली महक मिर्जा प्रभु है। इंस्टाग्राम पर महक ने वीडियो के ज़रिये बताया- ‘गेटवे ऑफ इंडिया पर प्रदर्शन के दौरान एक पोस्टर उठाया था। यह पोस्टर वहीं पर पड़ा था। उसने इसे सिर्फ इसलिए उठाया था; क्योंकि मैं कश्मीर में इंटरनेट और मोबाइल सेवा बहाल किये जाने की बात का समर्थन करना चाह रही थी। महक ने स्पष्ट किया कि वह कश्मीरी नहीं, बल्कि मुम्बई की रहने वाली है। वह किसी गैंग का हिस्सा नहीं है।’

‘फ्री कश्मीर’ का पोस्टर गर्ल खुद बताती हैं कि वह मुम्बई में रहती हैं और लेखिका हैं। पोस्टर को गलत नज़रिये से देखा जा रहा है। मुम्बई में जेएनयू के छात्रों के समर्थन के साथ ही सीएए और एनआरसी के विरोध में लोग प्रदर्शन कर रहे थे। इसी बीच बहुत से पोस्टर वहाँ पड़े थे, उन्हीं में से एक यह प्ले कार्ड था जिस पर फ्री कश्मीर लिखा था। महक प्रभु बताती हैं कि उनके प्लेकार्ड को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है।

1982 में जन्मी महक मूलत: मुम्बई की रहने वाली हैं। वे टेड टॉक जैसे प्लेटफॉर्म पर अपने विचार रख चुकी हैं। उनका वीडियो ‘अम्मी का मोबाइल फोन’ भी सोशल मीडिया पर काफी चर्चित रहा था। महक ब्लॉग के ज़रिये सामाजिक मुद्दे उठाती रही हैं। स्टोरी टेलिंग का एक ऑनलाइन स्कूल भी चलाती हैं। यू-ट्यूब पर भी चर्चित हैं, जहाँ पर उनके वीडियो को लाखों लोग देख चुके हैं।

Delhi Assembly polls: BJP releases first list of 57 candidates

 

The Bharatiya Janata Party (BJP) on Friday released its first list of 57 candidates for the upcoming Delhi Assembly Elections.

Delhi BJP president Manoj Tiwari made the announcement at a press briefing in New Delhi.

Out of the 57 names, 11 are from Scheduled Caste (SC) community, while four are women. The remaining 13 candidates will be announced later, Tiwari said.

Among the prominent names in the list of candidates are Vijender Gupta from Rohini, Kapil Mishra from Model Town

The Congress is also likely to release its list of candidates later in the day.

The Aam Aadmi Party (AAP) on Tuesday released the list of 70 candidates for Delhi Assembly polls.

Chief Minister Arvind Kejriwal will contest again from New Delhi and his Deputy Manish Sisodia to contest from Patparganj.

Voting for the 70 Assembly seats in Delhi will take place on February 8 and the counting of votes is scheduled on February 11.

2019 में कैमरे की नज़र से

नये साल का आगाज़हो चुका है, ‘तहलका’ फोटो डेस्क ने देश और दुनिया में 2019 में राजनीति, कारोबार, सिनेमा, खेल और अन्य घटनाओं को अपनी नज़र देखा, तो पाया कि राजनीति और चुनाव दोनों ही टॉप पर रहे। उस साल के सबसे चर्चित घटनाओं में शुमार रहीं-पुलवामा आतंकी हमला, विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान, कश्मीर से अनुच्छेद हटाना, मिशन चंद्रयान-2, नागरिकता संशोधन अधिनियम और महिला सुरक्षा। इनमें से कई अहम फैसले रहे, जिनके विरोध में लोग सडक़ों पर उतरे।

2019 लगभग हर क्षेत्र में महिला सशक्तिकरण का वर्ष था। जबकि खेल में भी महिलाओं ने अपना पदक जीतकर रिकॉर्ड बनाये, तो विज्ञान के क्षेत्र में भी दमदार काम किया साथ ही सशस्त्र बलों में भी अपनी उपास्थिति दर्ज कराकर इतिहास में नाम दर्ज किया। इस बीच भारतीय राजनीति ने पिछले साल हुए लोक सभा चुनाव 78 महिला सांसद चुनकर आयीं। कुल मिलाकर अब तक का सबसे बड़ा संकेत है कि वे साँचे को तोड़ रही हैं और किसी भी जोखिम को उठाने से पीछे नहीं हटती हैं।

भारत के ई कॉमर्स उद्योग के लिए वर्ष 2019 की शुरुआत नये सरकारी नियमों के साथ हुई थी, जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र को कारगर बनाना था, उसकी प्रतिक्रिया मिश्रित रही। इसमें मंदी का भी दौर रहा; लेकिन ई कॉमर्स ने देश ग्रामीण इलाके तक में पहुँच बनायी। सरकार द्वारा ऑनलाइन मार्केट प्लेस के लिए पेश किये गये नये एफडीआई नियम पहले की नीति के लगभग उलट थे, जहाँ उन्हें उत्पादों की बिक्री के लिए विशेष सौदों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात, ऑनलाइन मार्केट प्लेस एक वेंडर से उनकी आपूर्ति के 25 प्रतिशत से अधिक का स्रोत नहीं बना सके। काफी छूट पर अंकुश लगाने के लिए भी कदम उठाये गये।

याहू इंडिया के अध्ययन के अनुसार, साइबर स्पेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2019 में लगातार दूसरी बार भारत में ऑनलाइन सर्च की गयी शिख्सयत रहे। क्रिकेटर एमएस धोनी और अभिनेता प्रियंका चोपड़ा जोनस जैसी हस्तियाँ भी इस सूची में शामिल रहीं। अभिनंदन वर्धमान ने शीर्ष 10 में रहे; क्योंकि पाकिस्तान ने अपने कब्ज़े में लेने के बाद महज़कुछ घंटों के बाद ही उसे रिलीज करना पड़ा। वयोवृद्ध भाजपा नेता अरुण जेटली भी इस सूची में शामिल रहे, जिनकी असामयिक मृत्यु पर हर राजनीतिक दल के नेताओं ने शोक जताया।

भारत ने पिछले साल कई दिग्गजों को खो दिया। सुषमा स्वराज, जो पाँच साल विदेश मंत्री रहीं, उनका निधान अगस्त में हुआ। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली भी नहीं रहे। प्रख्यात वकील और राजनीतिज्ञ राम जेठमलानी का भी पिछले साल निधन हो गया। सीसीडी के मालिक वीजी सिद्धार्थ की संदिग्ध हालात में मौत हो गयी। 2019 में इस दुनिया को छोडक़र जाने वालों में वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे महान् गणितज्ञ शामिल थे, जिन्होंने आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी; टीएन सेशन, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त; तीन बार की दिल्ली की सीएम रहीं शीला दीक्षित; गोवा के मुख्यमंत्री व पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर, बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस। नौकरशाहों में देश ने पूर्व विदेश सचिव केपीएस मेनन (जूनियर) और भारत की पहली महिला डीजीपी कंचन चौधरी भट्टाचार्य भी दुनिया को अलविदा कह गयीं। इनके अलावा साहित्यकार नबनीता देव सेन, साहित्य अकादमी विजेता लेखक और हिन्दी की मशहूर लेखिका कृष्णा सोबती भी पंचतत्त्व में विलीन हो गयी। िफल्मी जगत की बात करें तो देश के िफल्म ‘शोले’ के कालिया विजू खोटे, जाने-माने संगीतकार खय्याम; अभिनेता श्रीराम लागू; अनुभवी अभिनेत्री विद्या सिन्हा; अभिनेत्री-निर्देशक विजया निर्मला; दिग्गज फिल्म और थिएटर व्यक्तित्व गिरीश कर्नाड और दिग्गज बॉलीवुड अभिनेता और लेखक कादर खान भी पिछले साल अलविदा कह गये।

भारतीय हॉकी : अभी उम्मीद है बाकी

विश्व के खेल मानचित्र पर यदि भारत को पहचान मिली, तो यह पहचान हॉकी ने दिलवायी। 1928 से लेकर 1956 तक भारत ने ओलंपिक खेलों में लगातार छ: स्वर्ण पदक जीते। यदि दूसरे विश्व युद्ध के कारण 1936 से 1948 के बीच दो ओलंपिक खेल और हो गये होते, तो निश्चित ही भारत के स्वर्ण पदकों की गिनती कहीं अधिक होती। पर आज भी ओलंपिक हॉकी में आठ स्वर्ण पदक जीतने वाला भारत के अलावा दूसरा कोई देश नहीं है।

महिला हॉकी की कहानी कुछ अलग है। भारत ने अब तक केवल दो ओलंपिक खेलों में भाग लिया है। सबसे पहले 1980 में मास्को ओलंपिक में जहाँ पहली बार महिला हॉकी को इन खेलों में शामिल किया गया था और दूसरी बार 36 साल बाद 2016 में रियो ओलंपिक में। मास्को में भारत चौथे स्थान पर रहा था, जबकि रियो में वह छठा स्थान पा सका। देश के लिए खुशी की बात यह है कि भारतीय महिला टीम अगले साल (2020) टोक्यो में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए भी क्वालीफाई कर चुकी है। देखना है कि रानी रामपाल के नेतृत्त्व में वहाँ जा रही यह युवा टीम कैसा प्रदर्शन करती है?

टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला टीम को पूल-ए में रखा गया है। यह पूल काफी कठिन माना जा रहा है। इसमें भारत के साथ पिछले चैंपियन ब्रिटेन और विश्व की नम्बर एक टीम नीदरलैंड की टीमों को रखा गया है। इसके अलावा इस पूल में जर्मनी, आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका की टीमें भी हैं। भारत को विश्व महिला हॉकी में नौवीं रैंकिंग मिली है। पूल-बी में आस्ट्रेलिया, स्पेन, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और अर्जेंटीना की टीमें हैं।

भारतीय पुरुष टीम को पूल-ए में पिछले चैंपियन अर्जेंटीना और विश्व चैंपियन आस्ट्रेलिया के साथ स्थान दिया गया है। इनके अलावा पूल में स्पेन, न्यूजीलैंड और मेजमान जापान की टीमें हैं। भारतीय टीम को विश्व में पाँचवीं वरीयता प्राप्त है। पूल-बी में बेल्जियम, नीदरलैंडस, जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका की टीमें हैं।

भारत को दोनों ही टीमों को ओलंपिक में स्थान बनाने के लिए क्वालीफाइंग मैच खेलने पड़े। पुरुषों ने रूस को दो मैचों की शृंखला में कुल 11-3 से परास्त किया, जबकि महिलाओं को अमेरिका पर 6-5 से संघर्षपूर्ण जीत दर्ज करना पड़ी।

यदि पूल मैचों पर नज़र डालें, तो लगता है कि भारत अन्तिम आठ में स्थान बना लेगा। दोनों पूलों से चार-चार टीमें अगले दौर में जगह बनायेगी। भारत का पूल थोड़ा आसान इसलिए है कि यूरोपीय हॉकी की प्रमुख टीमें जर्मनी, नीदरलैंडस और बैल्जियम दूसरे पूल में हैं। भारत के लिए कठिन मैच आस्ट्रेलिया के साथ ही माना जा रहा है। इसके अलावा स्पेन की टीम भी भारत को टक्कर दे सकती है। हालाँकि अर्जेंटीना पिछला चैंपियन है; पर उसके िखलाफ भारत का रिकॉर्ड अच्छा है। पिछले ओलंपिक में भी भारत ने उसे परास्त किया था। इस स्तर के मुकाबलों में किसी भी टीम को कम नहीं माना जा सकता। न्यूजीलैंड भी विश्व की किसी भी टीम को हराने में सक्षम है। कनाडा और जापान ऐसी टीमें हैं, जिन पर जीत दर्ज करने में भारत को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। हालाँकि मेज़बान जापान एशियाई चैंपियन है, पर भारत ने उसे जकार्ता में 8-0 से और एफआईएच सीरीज में 7-2 से हरा है। यदि भारत ने पूल मैचों में पहला या दूसरा स्थान पा सकता है। इस तरह उसका क्वार्टर फाइनल में पहुँचना लगभग तय माना जा सकता है।

महिला वर्ग

महिलाओं की राह आसान नहीं होगी। उनके पूल में नीदरलैंडस और जर्मनी जैसी बहुत शक्तिशाली टीमें हैं। इनके अलावा ब्रिटेन भी काफी मज़बूत हैं। इन टीमों पर जीत हासिल करना यदि भारत के लिए असम्भव नहीं, तो कठिन अवश्य है। अब रह जाती हैं आयरलैंड और दक्षिण अफ्रीका की टीमें। दक्षिण अफ्रीका यहाँ सबसे कमज़ोर टीम मानी जाती है। इस कारण उस पर जीत दर्ज करने में भारत को कोई बड़ी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। भारत के भाग्य का फैसला भारत और आयरलैंड का मैच करेगा। पहले तीन स्थान तो नीदरलैड्स, जर्मनी और ब्रिटेन की टीमें ले जाएगी, पर चौथे स्थान के लिए असली टक्कर भारत और आयरलैंड के बीच होगी। यदि भारत यह मैच जीत जाता है, तो वह क्वार्टरफाइनल में अपनी जगहत बना लेगा।

ओलंपिक का हॉकी कार्यक्रम

पुरुष वर्ग

25 जुलाई, 2020     सायं   भारत बनाम स्पेन

26 जुलाई, 2020     सायं   भारत बनाम जापान

28 जुलाई, 2020     सुबह  भारत बनाम आस्ट्रेलिया

29 जुलाई, 2020     सायं   भारत बनाम न्यूजीलैंड

31 जुलाई, 2020     सुबह  भारत बनाम अर्जेंटीना

02 अगस्त, 2020     क्वार्टरफाइनल मैच

04 अगस्त, 2020     सेमीफाइनल मैच

06 अगस्त, 2020     सुबह  कांस्य पदक का मैच

06 अगस्त, 2020     सायं फाइनल

महिला वर्ग

26 जुलाई, 2020     सुबह  भारत बनाम जर्मनी

27 जुलाई, 2020     सायं   भारत बनाम नीदरलैंड

29 जुलाई, 2020     सुबह  भारत बनाम आयरलैंड

30 जुलाई, 2020     सायं   भारत बनाम ब्रिटेन

01 अगस्त, 2020     सायं   भारत बनाम दक्षिण अफ्रीका

03 अगस्त, 2020     क्वार्टरफाइनल मैच

05 अगस्त, 2020     सेमीफाइनल मैच

07 अगस्त, 2020     सुबह  कांस्य पदक का मैच

07 अगस्त, 2020     सायं फाइनल

चेता रहा है वायु प्रदूषण

यह सही है कि दिल्ली में प्रदूषण रहता है। सुनने में आया है कि जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार वहाँ पर बनी है, प्रदूषण काफ़ी कम हुआ है, लेकिन दीपावली के बाद अचानक ऐसी ख़बरें भी आयीं कि दिल्ली गैस चैंबर बन गयी है। हालाँकि दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत में पिछले दिनों प्रदूषण बहुत अधिक रहा। ऐसे में केवल किसानों को नहीं, बल्कि सभी लोगों को सोचना होगा कि कहीं वे भी तो प्रदूषण नहीं फैला रहे। सभी को जहाँ तक सम्भव हो सके प्रदूषण फैलाने से परहेज करना चाहिए और अधिक से अधिक पौधे लगाने चाहिए, ताकि प्रदूषण घट सके और हम स्वस्थ रह सकें; आने वाली पीढिय़ाँ स्वस्थ रह सकें। अगर इस समस्या को अब भी हमने गम्भीरता से नहीं लिया, तो बीमारियाँ भी बढ़ेंगी और भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। आपने बढ़ते प्रदूषण पर एक संतुलित लेख प्रकाशित किया, जिसमें यह भी पता चला कि किस स्तर पर प्रदूषण सामान्य होता है और किस स्तर पर घातक। उम्मीद है आप आगे भी इस तरह की दिक़्कतों से हम पाठकों को चेताते रहेंगे।

प्रणव त्रिपाठी, आलम बाग़, लखनऊ

गुरुनानक देवजी के रास्ते पर चलने का प्रण करें

तहलका के पूरे स्टाफ को भी पूरे सिख समाज की ओर से प्रकाश पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। आपने प्रकाश पर्व पर लेख प्रकाशित किया, सभी देशवासियों को प्रकाश पर्व की शुभकामनाएँ दीं, अच्छा लगा। प्रकाश पर्व एक बड़ा त्योहार है। सभी देशवासी गुरु नानक देव जी के आदर्शों का आदर करते हैं और इस पर्व को बड़े हर्ष के साथ मनाते हैं। अगर सभी लोग गुरु जी की शिक्षाओं को भी मानें, तो पूरे देश में शांति और ख़ुशहाली स्थापित हो जाएगी; भेदभाव मिट जाएगा। तो हम सभी मिलकर गुरु नानक देव जी के बताये रास्ते पर चलने का प्रण करें, ताकि हमारा समाज सुधरे, हमारे समाज में विकृतियाँ दूर हों और भारत फिर से विश्व गुरु बने।

जोगिंदर सिंह, चंडीगढ़, पंजाब

सिस्टम पर भरोसा न उठने दें

इस बार दिल्ली में जिस तरह से वकील और पुलिस आपस में लड़े, उससे आम लोगों पर बहुत ही ग़लत प्रभाव पड़ा है। लोगों का इन दोनों विभागों पर पहले ही भरोसा कम है, ऐसे में वकीलों और पुलिसकर्मियों में हुए विवाद में यह भरोसा निश्चित ही और कम हुआ होगा। सभी वकीलों और पुलिसकर्मियों को सोचना चाहिए कि भी दोनों ही कानून के रखवाले हैं। ऐसे में अगर ये लोग ही और लड़ेंगे-झगड़ेंगे, तो जनता इनसे विवादों के उचित फ़ैसले मिलने का भरोसा कैसे करेगी। ऐसे में तो सिस्टम से लोगों का भरोसा उठने लगेगा। जनता की न•ारों में पुलिस और वकील दोनों की इज़्•ात ख़त्म हो जाएगी। आपने इस पर एक अच्छी स्टोरी लिखी, आपका भी धन्यवाद; मगर आपको यह भी लिखना चाहिए कि ये लोग आपस में न लड़ें।

राकेश कुमार मिश्रा, दिल्ली

मतभेद मं•ाूर, पर मनभेद नहीं

राम मंदिर पर सुप्रीम फैसला सभी के लिए स्वागत योग्य है। मुझे खुशी है कि लम्बे समय से चलने वाला विवाद आखऱि हमेशा के लिए ख़त्म हो गया। मुझे अपने देश के हिंदू और मुस्लिम भाइयों दोनों से यही कहना है कि जिस तरह से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को माना और उसका स्वागत किया, उसी तरह से देश में आपसी सौहार्द से रहें, तो कितना अच्छा हो। क्योंकि अगर हम आपस में लड़ते रहेंगे, तो कोई फ़ायदा नहीं होगा। क्योंकि झगड़ा किसी चीज का हल नहीं होता, इसलिए सभी को अच्छे से काम करना चाहिए; मिल-जुलकर रहना चाहिए; भारत की अखंडता को बरकरार रखना चाहिए। मंदिर बने या मस्जिद इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता; फ़र्क तब पड़ता है, जब लोग आपस में लड़ते मरते हैं। ईश्वर एक है, इस बात को हम सबको समझ लेना चाहिए। हालाँकि इबादत के तरीके अलग-अलग हैं। इसलिए इबादत-पूजा के सभी के तरीकों में भले ही भेद हो, मुद्दों को लेकर मतभेद भी हो सकते हैं, पर मनभेद नहीं होना चाहिए।

वीरेंद्र कुमार, शालीमार गाँव, दिल्ली

राजनीतिक बिगाड़ पर भी दें सामग्री

पत्रिकाओं में तरह-तरह के लेख मिलते हैं, लेकिन आपकी पत्रिका में मुझे करियर का लेख भी पढऩे को मिला, जो कि सबसे अच्छा लगा। वैसे तो तहलका में प्रकाशित सभी लेख अच्छे हैं, लेकिन हम छात्रों के लिए करियर बनाने के लिए मार्गदर्शन बहुत •ारूरी है। आपके द्वारा प्रकाशित लेख पढक़र मैंने भी ठाना है कि मैं जीवन में इंटीरियर डिजाइनर बनूँगा। मैं 12वीं का स्टूडेंट हूँ। आपने मेरा मार्गदर्शन किया इसके लिए धन्यवाद। 12वीं की पढ़ाई पूरी होते ही आपके बताये संस्थानों में संपर्क करके एडमिशन लूँगा। मेरी गुजारिश है कि आप लोग ऐसे ज्ञानवर्धक सामग्री तहलका में प्रकाशित करते रहें, जिनसे छात्रों का ज्ञान बढ़े। मेरा आपसे एक और अनुरोध यह भी है कि आज राजनीतिक बिगाड़ जो हो रहा है उसके ऊपर भी लिखिए, ताकि राजनीति में अच्छे लोगों को जनता चुने, ताकि देश का अच्छी तरह विकास हो सके।

राजकुमार सिंह, वाराणसी

अंक पठनीय और सराहनीय

बहुत अच्छी पत्रिका है तहलका। 14 नवंर को इसका नया अंक हमारे यहाँ एक अख़बार और पत्रिका विक्रेता के पास दिखा, तो खऱीद लिया। अच्छा अंक लगा। पहले की तरह ही इस अंक में भी काफ़ी कुछ नया पढऩे को मिला। मैं 8-10 साल से तहलका का पाठक रहा हूँ। हालाँकि अभी बीच में मुझे एक-दो अंक देखने को नहीं मिले, तो सोचा कि शायद यह पत्रिका हमारे यहाँ अब नहीं आती होगी, पर फिर नवंबर का यह नया विशेषांक देखा, तो अच्छा लगा। आपसे एक अनुरोध करूँगा मुझे साहित्य से बहुत लगाव है। इसलिए साहित्य-सम्बन्धी सामग्री भी प्रकाशित करने की कृपा करें।

मोहम्मद नासिर, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश

राष्ट्रपति शासन से बीमार हुये लाचार !

महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है इसका असर राजनीतिज्ञों के कैरियर से ज्यादा उन गरीब रोगियों पर पड़ा है जो अपनी महंगी इलाज के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए जाने वाले आर्थिक मदद पर आश्रित हैंं।

चीफ मिनिस्टर कार्यालय की तरफ से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को इलाज के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। लेकिन जब से चीफ मिनिस्टर देवेंद्र फडणवीस ने अपने पद से रिजाइन दिया है तब से यह सेवाकक्ष बंद है।

मुंबई ही नहीं महाराष्ट्र के दूरदराज क्षेत्रों से इलाज के लिए आर्थिक मदद चाहने वालों की लंबी कतार मंत्रालय के इस कक्ष के बाहर लगी रहती है। लेकिन इस कार्यालय के बंद होने से तकरीबन साढे पांच हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं जिन्हें इलाज के लिए आर्थिक मदद की जरूरत है।

मिली जानकारी के अनुसार चीफ मिनिस्टर के इस विभाग द्वारा पिछले 5 सालों में 21 लाख रोगियों को सहायता दी गई।और जरूरतमंद रोगियों को 1600 करोड़ से अधिक राशि का आवंटन किया गया। लेकिन अब जबकि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन है, चीफ मिनिस्टर नहीं है ऐसी सूरत में विभाग को इस कक्ष पर ताला लगा हुआ है।उन जरूरतमंद रोगियों की जिंदगी दांव पर लगी है जिन्हें अपने इलाज के लिए चीफ मिनिस्टर ऑफ फंड पर विश्वास था।

हालांकि इस फंड से आर्थिक सहायता मिलना बहुत आसान नहीं है। बहुत सारे कागजात, लंबी documents की फेहरिस्त और लंबा वक्त कभी-कभी रिश्तेदारों की आस तोड़ देता है।ऐसे भी वाकायात सामने आए हैं जिसमें फंड मिलने से पहले ही बीमार व्यक्ति दम तोड़ देता है। इस पूरे प्रोसेस को आसान बनाने की मांग होती रही है।और वाकई इस मामले में ध्यान देने की बेहद गंभीर जरूरत है ताकि गंभीर बीमारी से जूझते शख्स को मर्यादित समय के भीतर आर्थिक मदद मिल सके और वह अपना इलाज कराने में सफल हो।

हालांकि इलाज के लिए आर्थिक सहायता की आस लगाए बैठे रिश्तेदारों को विश्वास है कि नई सरकार के गठन के बाद उन्हें आर्थिक मदद मिल जाएगी। लेकिन उन बीमार लोगों का क्या होगा जिन्हें तुरंत सूरत में आर्थिक मदद की जरूरत है। कहीं ऐसा ना हो इस सरकार गठन की नौटंकी के चलते वह अपनी जिंदगी से हाथ खो बैठें। ऐसा नहीं है की इलाज के लिए लोग सिर्फ चीफ मिनिस्टर फंड पर ही आधारित हैंं। यहां पर कई गैर सरकारी संस्थान, ट्रस्ट और चैरिटेबल ट्रस्ट भी है जहां से इलाज के लिए आर्थिक निधि दी सहायता स्वरूप दी जाती है। फिलहाल महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन को देखते हुए जरूरतमंदों की कातर निगाहें इन निजी संस्थानों और चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर लगी हुई हैंं।

चुनावी खर्च पर घूंघट डालने के तरीके खोज लिए प्रत्याशियों ने

देश की राजनीति में आया राम-गया राम जैसी परंपरा शुरू करने के लिए बदनाम हरियाणा के नेताओं ने एक और कारनामा कर दिखाया है। चुनाव खर्च को किस तरह छुपाना और कम करके दिखाना है इसके लिए उन्होंने कई जुगाड़ कर लिए हैं। यहां के प्रत्याशी जानते हैं कि चुनावी खर्च के आंकड़ों से किस तरह खेला जा सकता है।

चुनाव आयोग ने हरियाणा में विधानसभा प्रत्याशी के लिए खर्च की अधिकतम सीमा 28 लाख रखी है। इसमें उसकी जनसभाएं, रैलियां, बैनर-पोस्टर, गाडिय़ां और कार्यकर्ताओं के सभी खर्च शामिल है। इसमें उसके प्रिंंट और इलेक्ट्रांनिक मीडिया पर दी जाने वाली प्रचार सामग्री भी आती है।

इसके साथ यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि 20,000 (बीस हज़ार) से ऊपर की किसी भी रकम की आदायगी नकद न की जाए, उसके लिए चैक का इस्तेमाल हो। हर प्रत्याशी को अपने खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को चुनाव परिणाम घोषित होने के 30 दिन के अंदर देना होता है। इसमें  उस रकम का भी हिसाब होता है जो उसने विभिन्न स्त्रोतों से हासिल की है। यदि कोई प्रत्याशी ऐसा नहीं करता है तो उसके चुनाव को निरस्त दिया जा सकता है और उसका विधायक बनने का अधिकार छीना जा सकता है।

करनाल (हरियाणा) के एक वरिष्ठ वकील वाई के कालिया ने ‘तहलका’ को बताया, ‘हालांकि यहां इन खर्च पर नज़र रखने के लिए कुछ एजेंसियां हैं वहीं कुछ माफिया गिरोह हैं जो प्रत्याशियों को खर्च को छुपाने के तरीके बताती हैं और उन पर अमल करवाती है। इसमें चुनाव की रणनीति और वित्त प्रबंधन, विशेषज्ञ और सोशल मीडिया को चलाने वाले लोग होते हैं जो प्रत्याशियों के लिए पैसा खर्च करते हैं और दर्शाते ऐसा है जैसे यह पैसा उनके समर्थकों ने खर्च किया है।’

पंचकूला के एक व्यापारी धीरज देव ने चुनाव आयोग द्वारा की बंदिश की सारी ही प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग सहित सभी को पता है कि इस खर्च में चुनाव नहीं लड़ा जा सकता, फिर भी सभी प्रत्याशी चुनाव आयोग से क्लीन चिट ले लेते हैं। उन्होंने कहा कि सभी को पता है कि किस तरह गैर कानूनी हथकंडे चुनाव में अपनाए जाते हैं और किन तरीकों से नकदी बांटी जाती है पर फिर भी हर प्रत्याशी साफ छवि बरकरार रखता है।

कुरूक्षेत्र के एक किसान ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि विभिन्न राजनैतिक दलों के लोग हमारे गांवों में आते हैं और नकदी बांटने के साथ कई लुभावने वादे करते हैं? इस कारण गांव के $गरीब उनके पैसों और वादों के कारण उन्हें वोट देते हैं।

अब प्रश्न यह है कि क्या ये प्रत्याशी केवल निर्धारित धन राशि के अंदर ही खर्च करके चुनाव लड़ते हैं या खर्च इससे कहीं अधिक होता है जितना हमे दिखाई देता है।

हम सभी को मालूम है कि हर प्रत्याशी लोगों को साथ जोडऩे के लिए ज्य़ादा खर्च करता है। एक अनुमान के अनुसार एक प्रत्याशी अपने चुनाव क्षेत्र में जीतने के लिए एक से तीन करोड़ रु पए खर्च करता है। यह खर्च चुनाव क्षेत्र के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है। कई शहरी क्षेत्रों में यह खर्च पांच करोड़ का आंकड़ा भी पार करता है। यदि प्रत्याशी भी हैसियत हो तो यह खर्च इससे भी ज्य़ादा हो जाता है।

इसके बारे में जब विभिन्न दलों के कार्यकर्ताओं से बात की गई तो सभी का यह कहना था कि खर्च की सीमा के भीतर रह कर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता। दक्षिण पंथी एक पार्टी के एक कार्यकर्ता ने नाम न बताने का शर्त पर कहा कि प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए कई स्त्रोतों से भारी खर्च करते है। हमें सभी को पता है कि भारत में चुनाव धन, बल और शातिर राजनीति से लड़े जाते है। प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए इनका खुल कर इस्तेमाल करते है। इसके साथ ही वे इस खर्च को छुपाने के साधन भी तलाश लेते हैं।

गाडिय़ों के लिए ईंधन

हमारी जांच से पता चला है कि विभिन्न दल अलग-अलग प्रेट्रोल पंपों से तालमेल बिठा लेते हैं। वहां उस दल का आदमी खड़ा होगा जो रैलियों और जनसभाओं में जाने वाली गाडिय़ों में तेल भराता रहता है। देखा गया है कि रैलियों के तेल भरवाने वाली गाडिय़ां कभी भी मौके पर पैसों की आदयगी नहीं करतीं। यह भुगतान बाद में पार्टी का कोआर्डिनेटर ही करता है।

मुफ्त की शराब

शहरी और ग्रामीण इलाकों में प्रत्याशियों के प्रतिनिधि शराब की दुकानों से सांठगांठ करते हैं और उन्हें समय और तारीख बता देते हैं जिस समय उनके समर्थक मुफ्त की शराब लेने के लिए आएंगे। उस समय पार्टी का आदमी आता है और लोगों को मुफ्त में शराब बांटता रहता है। कुछ मामलों में चिटों का सहारा भी लिया जाता है।

नकदी और खाना

एक प्रत्याशी अपने विधानसभा क्षेत्र में औसतन 100 जनसभाएं और बैठकें करता है। हमें पता है इन जन सभाओं में कुछ सैकड़े या कुछ हज़ार लोग आते है। यह पार्टी और प्रत्याशी के उस क्षेत्र में असर पर निर्भर करता है। उन्हें क्या परोसा जाता है इसका किसी को पता नहीं चलता। हर प्रत्याशी एक भीड़ इकट्ठी करके अपनी लोकप्रियता का दिखावा करता है। कुछ प्रत्याशी अपनी ताकत दर्शाने के लिए बाहर के इलाकों से लोगों को ले आते हैं। उन्हें लाने और ले जाने का काम प्रत्याशी या उसकी पार्टी करती है। ऐसी भीड़ को पैसे और भोजन दिया जाता है। ज्य़ादातर मामलों में लोगों को रैली में आने के लिए कुछ रु पए और मुफ्त का भोजन दिया जाता है। इस पैसे का कहीं कोई हिसाब नहीं रखा जाता।

सोशल मीडिया पर खर्च

आज के समय में हर प्रत्याशी सोशल मीडिया पर ध्यान दे रहा है। इसे वह अपना प्रचार माध्यम बनाना चाहता है। चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर प्रचार बगैरा के लिए एक खास बजट रखा है। इस कारण वह इस पर अपनी पैनी नज़र भी रखता है, पर जिस तरह से प्रत्याशी इसे चलाते हैं उस पर नज़र रखना कठिन हो जाता है। ज्य़ादातर प्रत्याशी अच्छी सोशल मीडिया की टीमों को पैसे दे कर काम करवाते हैं। ये टीमें न केवल अधिकारिक सोशल पेजों को चलाती हैं बल्कि इनके समर्थित पेजों पर भी काम करती है। इस कारण चुनाव आयोग के लिए समॢथत पेजों और उन पर खर्च का हिसाब रखना मुश्किल हो जाता है। ऐसा एक मामला इस बार पंजाब के गुरदासपुर लोकसभा सीट पर सामने आया। इस सीट से भाजपा-अकाली दल के संयुक्त प्रत्याशी सन्नी दियोल ने चुनाव जीता। यहां पर कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष हिमांशु पाठक ने दियोल के  समर्थित पेज फैंस ऑफ सन्नी दियोल पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि इस पेज ने सन्नी दियोल का डिजिटली प्रचार किया। जांच के बाद उस पर खर्च किए गए 1,74,544 रु पए मुख्य चुनाव अधिकारी ने सन्नी दियोल के चुनाव खर्च में डाल दिए।

भारतीय चुनाव आयोग ने स्वैच्छिक आचार संहिता लागू की है। इसके अनुसार कोई पार्टी या प्रत्याशी मतदान से 48 घंटे पहले सोशल मीडिया पर कोई प्रचार नहीं कर सकता। यह अचार संहिता पैसे देकर प्रचार के खिलाफ है। यह चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन है। 19 मार्च 2019 को भारतीय चुनाव आयोग के प्रमुख सोशल मीडिया कंपनियों की बैठक बुला कर चुनाव में सोशल मीडिया पर प्रचार से संबंधित मुद्दों पर बात की थी। फेसबुक, टविट्रर, व्हटस ऐस, गूगल और टिक-टॉक जैसी सभी कंपनियों ने स्वैच्छिक आचार संहिता को लागू करने की बात मान ली थी।

26 सितंबर 2019 को भारतीय चुनाव आयोग की एक विज्ञप्ति के अनुसार हरियाणा व महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों और दूसरे उपचुनावों में मध्य नज़र इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएसन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) अपने सदस्यों की ओर से स्वैच्छिक आचार संहिता लागू करने का विश्वास दिलाया। आईएएमएआई ने विश्वास दिलाया कि वे निष्पक्ष चुनाव करवाने में पूरा समयोग देंगे। इसका नतीजा यह हुआ आईएएमएआई और दूसरे सोशल मीडिया संगठनों नेआपास मेें मिलकर स्वैच्छिक अचार संहिता को लागू कर दिया। इन्होंने उन 909 मामलों में भी कार्रवाई की जो आचार संहिता तोडऩे को लेकर चुनाव आयोग ने उन्हें भेजे थे।

स्वैच्छिक आचार संहिता के मुख्य बिंदू है। (1) सोशल मीडिया लोगों को चुनावी कानून और दूसरे मामलों में शिक्षित करेगा, इन्हें पूरी जानकारी देगा। (2) सोशल मीडिया ने चुनाव आयोग से मिली शिकायतों पर कार्रवाई के लिए एक शिकायत निर्माण कमेटी का गठन किया है। (3) सोशल मीडिया और चुनाव आयोग के आरपीएक्ट 1951 की धारा 126 के तहत शिकायतों के निपटारे के लिए एक नोटिफिकेशन मेकैनिज़म तैयार किया है। (4) यह भी तय किया गया कि कोई भी प्रचार सामग्री मीडिया सर्टिफिकेशन एंड मोनिटरिंग कमेटी के प्रमाणपत्र के बिना प्रसारित नहीं की जा सकती। यह सुप्रीमकोर्ट के आदेशानुसार किया जा रहा है। (5) सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पेड राजनीतिक विज्ञापनों के मामले मेे पूरी पारदर्शिता रखेंगे।

यह बुराई केवल हरियाणा तक सीमित नहीं इस ने महाराष्ट्र को अपनी चपेट में ले लिया है। वहां भी इस तरह का अभियान शुरू हो गया है। मुंबई में चार करोड़ नकदी का मिलना इस बात का प्रमाण है कि चुनावी फंड को किस तरह प्रयोग किया जाता है। पहली अक्तूबर को महानिदेश आयकर विभाग (जांच) ने एक पत्रकार सम्मेलन में बताया जब से महाराष्ट्र में चुनावों की घोषणा हुई है तब से कालाधन खूब चल रहा है। उन्होंने बताया कि विभाग ने लगभग चार करोड़ रु पए की नकदी बरामद की है।

आयकर विभाग द्वारा ऐसे मामलों में उठाए कदमों का जिक्र करते उन्हों बताया उनका विभाग कई दूसरी एजेंसियों और विभागों के साथ सहयोग करके निटपक्ष चुनाव करवाने की तैयारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि इसके बारे में गुप्त सुचनाएं भी इकट्ठी की जा रही हैं। इनके लिए मुंबई, पुणे और नागपुर में 24 घंटे काम करने वाले नियंत्रण कक्ष स्थापित किए गए हैं।

इसके साथ ही क्लिक रिस्पांस की 40 टीमें भी तैयार हैं। इनमें से छह मुंबई में हैं। इसके साथ ही एयर इंटेलिजेस यूनिटस (एआईयू) को सभी हवाई अड्डों पर तैनात किया गया है। इनका काम उस धन पर नज़र रखना है जो चोरी से वहां लाया जाता है। इनके लिए पूरे मीडिया का साथ भी लिया जा रहा है।

मज़ेदार बात यह है कि पिछले चुनावों के मुकाबले सभी प्रत्यशियों की संपत्ति में काफी बढ़ोतरी हुई है। मिसाल के लिए हरियाणा के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की संपत्ति पिछले पांच साल में दुगनी से भी ज्य़ादा हो गई है। उन्हें अपनी संपत्ति 170.41 करोड़ घोषित की है जबकि 2014 के चुनावों में यह 77.36 करोड़ थी। चुनाव अधिकारी के सामने दायर हल्फनामा में वित्तमंत्री ने 76.46 करोड़ की चल संपत्ति और 93.95 करोड़ की अचल संपत्ति की घोषणा की। उनके पास 3.90 करोड़ कीमत की गाडिय़ा 1.82 करोड़ के गहने बगैरा हैं। उन्होंने अपनी आय के साधनों में अपना वेतन, किराए की आमदन, ट्रांसपोर्ट के व्यापार की आय, ब्याज और कृषि को बताया है।

आदमपुर से चुनाव लड़ रहे पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई ने 105.22 करोड़ की संपत्ति घोषित की है। उनकी और उनकी पत्नी रेणुका की संपत्ति क्रमश 56.70 करोड़ और 48.82 करोड़ की है।

उच्चाना से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी विरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता ने अपनी संपत्ति 21.60 करोड़ की बताई है। इसमें 895 करोड़ की चल और 12.66 करोड़ की अचल संपत्ति है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुडा ने अपनी संपत्ति 6.67 करोड़ की बताई है। उनकी पत्नी आशा हुडा के पास 8.99 करोड़ मूल्य की संपत्ति है। अपने हल्फिया बयान में हुडा ने अपनी चल संपत्ति 2.04 करोड़ की और अचल संपत्ति 4.63 करोड़ की बताई है। आशा हुडा ने पास 2.40 करोड़ की चल संपत्ति और 6.59 करोड़ की अचल संपत्ति है। 2014 में हुडा और उनकी पत्नी आशा हुडा की कुल संपत्ति 8.8 करोड़ की थी। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री किरन कुमार बेदी की संपत्ति में 256 फीसद का इजाफा हुआ है। यहां दायर हल्फिया बयान में उन्होंने 2.03 करोड़ की संपत्ति बताई है। इसमें 50.84 लाख की चल और 1.52 करोड़ रु पए की अचल संपत्ति है। इनके पास 2014 में कुल 56.96 लाख की संपत्ति है।

जन स्वास्थ्य इंजीनियनिंग मंत्री डाक्टर बनवारी लाल की संपत्ति पिछले पांच साल में 44.23 फीसद बढ़ गई। आज उनकी संपत्ति 2.76 करोड़ रु पए की है जबकि 2014 में यह 1.92 करोड़ की थी। हरियाणा के खाद्य एंव नागरिक आपूर्ति मंत्री करण देव कंबोज की संपत्ति में228 फीसद का इजाफा हुआ। उन्हें यहां 4.27 करोड़ की संपत्ति की घोषणा की, जबकि 2014 में उनके पास 3.34 करोड़ की संपत्ति थी।

महाराष्ट्र में घाटकोपर पूर्व की सीट से भाजपा के प्रत्याशी प्रागशाह ने 500.62 करोड़ की संपत्ति की घोषणा की है। चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों में शाह सबसे अमीर हैं। सूची में दूसरे नंबर पर हैं मुंबई भाजपा के अध्यक्ष और मालाबर हिल्स से चुनाव लड़ रहे मंगल प्रभात लोढा। उनकी संपत्ति है 441 करोड़ रु पए की। यहां तीसरे स्थान पर हैं समाजवादी पार्टी के अबू अज़ामी। उनकी कुल संपत्ति 210 करोड़ की है। शिवसेना के अदित्य ठाकरे के पास 16.05 करोड़ की संपत्ति है। इनके पास 11.38 करोड़ की चल और 4.67 करोड़ की अचल व 10.36 करोड़ रु पए बैंक में है।

अब देखना है कि देश के राजनीतिक दल और प्रत्याशी किस तरह करोड़ों रु पए खर्च करके साफ बच निकलते हैं।

खाद कीमतों की खबर वायरल होने के बाद हरकत में सरकार, कहा पुराने रेट पर ही बिकेगी

किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार के अधीन आने वाली सरकारी कंपनी ने जैसे ही डीएपी के दामों में भारी इजाफे की खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। आनन-फानन में केंद्र सरकार हरकत में आई और उच्च स्तरीय बैठक बुलाकर खाद की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करने का ऐलान किया है। इतना ही नहीं, मामले में इफको ने सफाई देकर कहा है कि सोशल मीडिया पर जो रेट वायरल हो रहे हैं वे किसानों के लिए लागू नहीं हैं। इफको के पास 11.26 लाख टन कॉम्प्लेक्स फर्टिलाइजर (डीएपी,एनपीके) मौजूद है और ये किसानों को पुराने रेट पर ही मिलेंगे। बता दें कि इसमें केंद्र सरकार सब्सिडी भी प्रदान करती है।

केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख मांडविया ने पीटीआई से कहा कि भारत सरकार ने मामले में एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई और खाद कंपनियों को डीएपी, एमओपी और एनपीके की कीमतें नहीं बढ़ाने को कहा है। खाद कंपनियों को पुरानी दरों पर बेचने के निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसानों को पुरानी दरों पर डीएपी, एमओपी और एनपीके मिलते रहेंगे।

इससे पहले वीरवार को खबरों में कहा गया था कि इफको ने डीएपी की कीमतों में 700 रुपये प्रति बोरी (50 किलो) की बढ़ोतरी कर दी है। इसके अलावा एनपीके की कीमतों में भी इजाफा किया गया है। हालांकि इफको का कहना है कि किसानों को डीएपी समेत उपरोक्त सभी खाद नए आदेश तक पुराने रेट पर ही मिलेंगे।

इफको के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. यूएस अवस्थी ने ट्वीट कर सफाई दी, ‘इफको 11.26 लाख टन कॉम्प्लेक्स उर्वरकों की बिक्री पुरानी दरों पर ही करेगी। बाजार में उर्वरकों की नई दरें किसानों को बिक्री के लिए नहीं हैं। उन्होंने पीएमओ इंडिया को टैग कर लिखा, ‘इफको संगठन यह सुनिश्चित करता है कि बाजार में पुराने मूल्य पर पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। इफको विपणन टीम को यह निर्देश दिया गया है कि किसानों को केवल पुराने मूल्ययुक्त पैकशुदा सामान ही बेचे जाएं। हम हमेशा किसानों के सर्वोपरि हित को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लेते हैं। ये नया रेट सिर्फ हमारे संयंत्रों द्वारा उर्वरकों के बैग पर अधिकतम समर्थन मूल्य पर प्रिंट करने के लिए था, जो कि अनिवार्य है। बता दें कि बुवाई में डीएपी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

कोरोना के बढ़ते कहर से, 2020 के लाँकडाउन को याद घर-गांव जा रहे लोग

कोरोना महामारी के वो दिन फिर से याद आने लगे जब 2020 के अप्रैल माह में लगे, सम्पूर्ण लाँकडाउन के दौरान देश के मजदूर पैदल चल कर अपने-अपने, घर गाँव जाने को मजबूर थे। तपती गर्मी के दिनों में सिर पर अपना सामान लेकर जाते हुये लोग जिसमें महिलायें, पुरूष और बच्चे भी शामिल थे। लेकिन इस बार वैसा नजारा तो नहीं है। पैदल आने-जाने वाले कम ही देखें जा रहे है।लेकिन दिल्ली के रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों में बिहार, यूपी और मध्य प्रदेश जाने वालों की संख्या भी अधिक देखी जा रही है। जाने वाले लोगों का कहना है कि भले ही आज देश में सम्पूर्ण लाँकडाउन ना लगा हो लेकिन माहौल लाँकडाउन से ज्यादा डरावना है।मध्य प्रदेश के जिला छतरपुर निवासी जुगल किशोर ने बताया कि मध्य प्रदेश में कोरोना का कहर बढ़ रहा है और दिल्ली में भी। मध्य प्रदेश के कई जिलों में लाँकडाउन लगने से और दिल्ली में रात के कर्फ्यू लगने से , उनके परिवार वालों और दोस्तों का दबाव है कि घर गांव आ जाओंताकि कल लाँकडाउन लगे तो फिर किसी प्रकार कोई परेशानी हो सकें। उन्होंने 2020 के अप्रैल माह की बातों को याद करते हुये जुगल ने बताया कि उनको अपने घर गाँव जाना पड़ा था। जिसमें कुछ पैदल चलना पड़ा, तो कुछ जगह तक ट्रैक्टर से तो किसी दूध वाले की मोटर साईकिल से जाना पड़ा था।जिसके चलते तामाम परेशानियों का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उन्हें फिर डरा सता रहा है इसलिये वो अपने परिजनों के साथ सराय कालें खाँ बस अड्डे से बस के रास्ते घर जा रहे है।

बिहार निवासी रजत रंजन ने बताया कि उनको रेल में रिजर्वेशन नहीं मिला तो, वो आनंद बिहार बस अड्डा में जाकर बस का आँनलाईन टिकट बुक करवा कर आये है। क्योंकि आज देश में कोरोना से ज्यादा सियासत के दांव पेंच से डर लगता है।उनका कहना है कि जिस प्रदेश में चुनाव है वहां कोरोना नहीं है। ऐसे में चुनाव होते ही कोरोना के मामले बढ़ सकते है। 2 मई को जब चुनाव परिणाम घोषित किये जायेगे। फिर उसके बाद कोरोना के मामले बढने की संभावना है। जो लाँकडाउन लगने का कारण बन सकता है। ऐसे में पहले से ही घर गांव जाना ठीक होगा। ताकि पिछले साल की तरह किसी प्रकार की परेशानी ना सकें।

तहलका ब्यूरो
कोरोना काल में मशहूर कव्वाल अफजाल साबरी का सोमवार को लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया। 73 साल के अफजाल साबरी अपने बड़े भाई इकबाल साबरी के साथ मिलकर जोड़ी बनाते थे। दोनों भाइयों की जोड़ी ने बॉलीवुड में कई कव्वालियों और सूफियाना कववलियीं से अलग पहचान बनाई थी। सबरी ब्रदर्स ने दर्जनों हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज का जादू बिखेरा। अफजाल साबरी के निधन से देवबंद से लेकर बॉलीवुड में शोक कायम हो गया है।
1949 में देवबंद में उस्ताद बशीर अहमद के यहां जन्मे अफजाल साबरी ने अपने बड़े भाई इकबाल साबरी के साथ मिलकर गायकी का फन सीखा। इकबाल साबरी का करीब सात साल पूर्व निधन हो गया था। इसके बाद से ही अफजाल साबरी भी बीमार रहने लगे थे। और वह गायकी की दुनिया से पूरी तरह अलग हो गए थे।
ढाई दशक तक कव्वाली के क्षेत्र में अपनी धाक जमाने वाले और प्यार किया तो डरना क्या, राजकुमार और गुलाम-ए-मुस्तफा जैसी मशहूर फिल्मों में आवाज दे चुके अफजाल साबरी का इंतकाल कला व साहित्य क्षेत्र के लिए बड़ी क्षति है। फनकार के निधन से कला और संगीत जगत की भरपाई करना मुश्किल है।