काशी, कृष्ण और प्रश्न

upsankarठेठ बनारसी और वामपंथी काशीनाथ सिंह कृष्ण की द्वारिका में पहुंच गए हैं. 21वीं सदी से महाभारत या कहें कि यथार्थ से मिथक तक की उनकी यह यात्रा लेखक के रूप में उनका और मानव के रूप में ईश्वर का एक अलग पक्ष दिखाती है. कृष्ण सच थे या मिथक, इस पर भले ही राय दो खेमों में बंटी रही हो, लेकिन इस पर सब एकमत रहे हैं कि वे भारत की सांस्कृतिक गाथा के उन सबसे शक्तिशाली चरित्रों में से एक हैं जिन्होंने लोक मानस को बहुत गहराई से प्रभावित किया है. बाल लीला से लेकर महाभारत में अर्जुन का सारथी बनने तक की उनकी कथा हमारी सामाजिक स्मृति में रची-बसी है. लेकिन महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद कृष्ण जब द्वारका लौटे तो उनके जीवन के बाकी 36 साल कैसे बीते, यह एक ऐसा पक्ष है जिस पर उतनी ज्यादा बात नहीं होती. उपसंहार में काशीनाथ सिंह ने कृष्ण के इन्हीं अंतिम दिनों की कथा कही है.

इस उत्तर कथा में वह है जो पूर्व कथा में नहीं है. इसमें सर्वशक्तिमान कृष्ण की विवशता है और खुशहाल द्वारका का पराभव. उपसंहार अच्छाई और बुराई के सनातन सवाल को भी टटोलने की कोशिश करता है और बताता है कि धर्म और अधर्म की परिभाषा उतनी सपाट नहीं होती जितनी वह दिखती है. एक प्रसंग देखें जिसमें फुर्सत के पल में भीम और दुर्योधन के युद्ध पर चर्चा करते बलराम कृष्ण से कह रहे हैं.

‘…कहकर गए थे द्वारका से कि यह अधर्म के विरुद्ध धर्मयुद्ध है, धर्म की स्थापना करनी है. किस धर्म को स्थापित किया? न्याय को? ईमानदारी को? भाईचारे को? प्रेम को? किसको? प्रेमयोग का ज्ञान देते घूम रहे हो और दादा को पोते से, मित्र को मित्र से, गुरु को शिष्य से और भाई को भाई से मार रहे हो! पूरे आर्यावर्त में घूमकर देखा मैंने, ब्राह्मणों, महिलाओं और बच्चों को छोड़कर कोई नहीं बचा है. इसे किस धर्म की स्थापना कहेंगे?’

कुछ इसी तरह के सवाल टटोलता उपसंहार एक दिलचस्प उपन्यास है. इस दौर में, जब भावनाएं आसानी से आहत हो जा रही हैं, धर्म या राम और कृष्ण जैसे महत्वपूर्ण चरित्र पूरी तरह से उन शक्तियों के हवाले हो गए दिखते हैं जिनमें इन्हें समय के हिसाब से पुनर्परिभाषित करने की कोई इच्छा नहीं दिखती. इस मायने में उपसंहार एक स्वागतयोग्य दस्तक है. एक बात थोड़ी-सी अखरती है कि कहीं-कहीं पर इसका यथार्थवादी वर्णन अचानक अति मिथकीय हो जाता है. लेकिन कुल मिलाकर यह एक ऐसी कृति है जिसका होना एक तरह की आश्वस्ति जगाता है.