सियासत का सिक्का

मनीषा यादव
मनीषा यादव
मनीषा यादव

पांच साल पहले दद्दा का साक्षत्कार-
‘दद्दा आप के राज में ट्रेन दुर्घटना बहुत हो रही हंै? एक महीने में यह तीसरी घटना है. आप क्या कहेंगे?’ ‘विरोधी पार्टी करवा रही है सब!’ ‘तो क्या सिग्नल भी उसी ने खराब किए?’ ‘बिल्कुल’ ‘पटरी के नट-बोल्ट निकले हुए थे!’ ‘विरोधियों ने निकाले हैं.’ ‘आप इतने यकीन से कैसे कह सकते हंै?’ ‘हम सरकार हैं भई’ ‘मगर ट्रेन की रफ्तार बहुत अधिक थी…’  ‘यह विरोधी जो न करवाए सो कम है.’ ‘अब इसमें विरोधी कहां से आ गए!’ ‘बात को समझो! उन्होंने जरूर कुछ दे-दिवा के ड्राइवर को तेज चलाने के लिए उकसाया होगा.’ ‘दद्दा शायद आपको मालूम नहीं कि ड्राइवर तो शराब पिये हुए था’ ‘अच्छा… संभव है, विरोधियों ने ही पिलाई हो!’ ‘यानी आप श्योर नहीं है!’ ‘100 परसैंट श्योर हूं. पक्का! पक्का! पक्का! विरोधियों ने ही पिलाई है.’ ‘मगर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? वह भी बिना सबूत के! कोई सबूत है आपके पास?’ ‘वे हमारे धुर विरोधी हंै और यह बात सारी दुनिया जानती है. इससे पुख्ता सबूत और क्या होगा!’ ‘मेरी समझ में नहीं आता, वे ऐसा क्यों करेंगे? यह देश तो आखिर उनका भी उतना ही है जितना आप का सब का है!’ ‘कारण तो साफ है न भई! मगर तुम देखना ही नहीं चाहते!’ ‘नहीं ऐसी कोई बात नहीं है! आप बताए!’ ‘सत्ताच्युत होकर विपक्षी मानसिक संतुलन खो बैठे हैं. बौखलाए हुए हैं, इसलिए ऐसा कर रहे हैं और आगे भी करवाते रहेंगे देखना!’ ‘एक बात और सुनो!’ ‘क्या!’ ‘देश उसका जिसकी सत्ता, ऐसा वे सोचते है हम नहीं!’ ‘मगर दद्दा इतनी सारी संभावनाएं एक साथ संभव कैसे हो सकती हंै! यह तो असंभव है!’ ‘हा, हा, हा…’ ‘आप हंस क्यों रहे हैं?’ ‘तुम्हारी अज्ञानता पर!’ ‘अज्ञानता…’ ‘सियासत में कुछ भी अंसभव नहीं है. सब कुछ संभव है भई! संभव है! संभव है! संभव है!’

पांच साल बाद दद्दा का पुन:साक्षात्कार-
‘दद्दा, आप धरना-प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं?’ ‘मौजूदा सरकार निकम्मी है, लापरवाह है. जनविरोधी है. इसे हटाना होगा.’ ‘आप यह कैसे कह सकते हैं?’ ‘देखते नहीं, एक महीने में यह तीसरी रेल दुर्घटना हुई है.’ ‘वह तो सिग्नल में खराबी आ गई थी.’ ‘फालतू बात… इस लापरवाही… घोर लापरवाही के लिए सरकार जिम्मेवार है.’ ‘मगर सरकार कह रही है कि यह सब आप लोगों का किया-धरा है.’ ‘तो क्या भई तेज रफ्तार गाड़ी हम चला रहे थे?’ ‘आप लोग तो नहीं चला रहे थे, मगर ड्राइवर को ऐसा करने के लिए आप लोगों ने ही उकसाया है…’ ‘हैंयऽऽऽ’ ‘दद्दा, ये हम नहीं सरकार कह रही है…’ ‘तो फिर सरकार यह भी कह रही होगी कि पटरी के नट-बोल्ट भी हमीं लोगों ने निकाले हैं!’ ‘जी, बिल्कुल सही, ऐसा ही कह रही है वह.’ ‘भला हम लोग ऐसा राष्ट्रद्रोह वाला काम क्यों करेंगे! ये देश जितना उनका है उतना हमारा भी है भई!’ ‘अब आप लोगों की सत्ता जो नहीं रही!’ ‘मौजूदा सरकार अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है, और कुछ नहीं.’ ‘मगर यही आरोप तो सरकार आप लोगों पर लगा रही है!’ ‘अब तुम ही कहो, जिसे सत्ता का सुख भोगे सालों हो गए हों, और उसे अचानक सत्ता मिल जाए, ऐसे में तो वह पगला ही जाएगा न!’ ‘सरकार के रुख को देखकर लगता है कि वे किसी ठोस आधार पर ही ऐसा कह रही है!’ ‘काहे का ठोस आधार! एक बात तुम और तुम्हारी सरकार भूल रहे हो!’ ‘वह क्या?’ ‘देखा नहीं, घटनास्थल पर ड्राइवर नशे में धुत्त पाया गया है!’ ‘सरकार का कहना है कि आप लोगों ने ही उसे जमकर पिलाई है.’ ‘हा, हा, हा..’ ‘आप हंस क्यों रहे हैं?’ ‘तुम्हारी अज्ञानता पर!’ ‘अज्ञानता…’ ‘तुम्हीं कहो, ऐसा कहीं संभव है भला! सरकार सरासर झूठ बोल रही है.’ ‘अंतिम रूप से इस सब पर आप का क्या कहना है?’ ‘सियासत के चक्कर में सरकार उन सभी बातों को संभव बता रही है जो असंभव हैं. नितांत असंभव! असंभव! असंभव!’