Home Blog Page 484

कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन के चलते व्यवस्था चौपट

कांग्रेस के चल रहे विरोध -प्रदर्शन से दिल्ली की परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो रही है। दिल्ली के लुटियन जोन में तो आने -जाने वाले लोगों के भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नई दिल्ली के कई पंच सितारा होटल में आने जाने वाले देशी -विदेशी सैलानियों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।कांग्रेसियों का कहना है कि कई नेताओं के घरों के बाहर पुलिस नजर रखे है कि वे प्रदर्शन में भाग न लें सकें।

कांग्रेस के नेता अमरीश गौतम का कहना है कि विरोध – प्रदर्शन तो लोकतांत्रिक देश में होते रहते है। जो लोगों के मौलिक अधिकार है। लेकिन देश में तानाशाही सरकार के चलते लोगों की आवाज दबाई जा रही है। उनका कहना है कि जानबूझकर लोगों के बीच ये मैसेज दिया जा रहा है कि कांग्रेस भ्रष्ट है। लेकिन देश वासी अब सब जान गये है कि देश में अराजकता का माहौल बनाया जा रहा है।ुनका कहना है कि देश जल रहा है। युवा छात्र अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे है। उस पर सरकार कोई सुनवाई नहीं कर रही है। उनका कहना है महगांई रिकार्ड तोड़ रही है।

गरीबों को अपने परिवार का जीवन यापन करना मुश्किल हो रहा है। उस पर सरकार राजनीति कर रही है।कांग्रेस के नेता पीयूष कुमार का कहना है कि अग्निपथ और अग्निवीर को लेकर देशभर आंदोलन चल रहे है। गाड़ियां और ट्रेने जलाई जा रही है। करोड़ों का नुकसान हो रहा है। जहां देखो वहां पर दंगे हो रहे है। लेकिन सरकार वहां पर स्थिति को नियंत्रित करने में असफल है।लेकिन कांग्रेस के विरोध के चलते सरकार कांग्रेसियों को परेशान कर रही है।

राजस्थान के सीएम गहलोत के भाई के ठिकानों पर सीबीआई के छापे

केंद्र सरकार पर सरकारी एजेंसियों को विरोधी दलों के खिलाफ इस्तेमाल करने के कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के आरोपों के बीच सीबीआई ने शुक्रवार सुबह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाई अग्रसेन गहलोत के कई ठिकानों पर छापे मारे हैं। यह भी अभी भी जारी हैं।

जानकारी के मुताबिक केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने मुख्यमंत्री के भाई अग्रसेन गहलोत के ठिकानों पर यह छापेमारी की है और अभी भी जारी है। सीबीआई के यह छापेमारी फर्टिलाइजर घोटाले के मामले में हुई है।

अग्रसेन इस मामले में जांच का सामना कर रहे हैं। अब उनके खिलाफ एक नया मामला दर्ज किये जाने की सूचना है। कई जगहों पर सीबीआई छापेमारी कर रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक सीबीआई ने इस मामले में कुछ संदिग्धों पर नया मामला दर्ज किया है और इसी सिलसिले में यह छापेमारी हुई है।

देश के कई हिस्सों में फैला ‘अग्निपथ’ विरोध, ट्रेनों में आग और तोड़फोड़

मोदी सरकार की इस हफ्ते के शुरू में सेना में ‘अस्थाई भर्ती’ की लाई गयी अग्निपथ योजना का विरोध देश भर में फैलने लगा है। इसके बाद सरकार पर इस योजना के पुनर्विचार का दबाव बढ़ रहा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस योजना को सेना की गरिमा के खिलाफ बताया है वहीं देश के कई हिस्सों में युवा इसके विरोध करते हुए हिंसा पर उतर आए हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश में कई जगह ट्रेनों में आगजनी की गयी है, वहीं गुरूवार को हिमाचल गए पीएम मोदी के यात्रा के दौरान धर्मशाला इलाके में इस योजना के खिलाफ प्रदर्शन देखने को मिले।

रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के बलिया में भीड़ ने ट्रेन कोच में आग लगा दी और स्टेशन पर अन्य ट्रेनों में तोड़फोड़ की। योजना में बदलाव की मांग और पुरानी भर्ती प्रणाली के समर्थन में युवा लगातार तीसरे दिन यूपी और बिहार में सुबह से सड़कों पर डटे हुए हैं। सब जगह प्रदर्शनकारी केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगा रहे हैं।

बिहार के बक्सर, समस्तीपुर, सुपौल, लखीसराय और मुंगेर और उत्तर प्रदेश के बलिया में प्रदर्शन की खबर है। कई जगह युवा रेल ट्रैक पर बैठकर प्रदर्शन कर रहे हैं समस्तीपुर में जम्मूतवी-गुवाहाटी एक्सप्रेस ट्रेन के डिब्बों में उपद्रवियों ने आग लगा दी है। ये हाजीपुर-बरौनी रेलखंड के मोहिउद्दीन नगर स्टेशन की घटना है। यूपी के बलिया में भीड़ ने दुकानों और रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया। पुलिस का दावा है कि स्थिति नियंत्रण में है।

दरभंगा से नई दिल्ली जा रही संपर्क एक्सप्रेस में भी आग लगाने की रिपोर्ट्स हैं। प्रदर्शनकारियों ने पहले ट्रेन में तोड़फोड़ की, फिर आग लगा दी। आरोप हैं कि कुछ तत्वों ने ट्रेन में लूटपाट भी की है। बलिया में पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर लाठिया भांजी।

विरोध के बीच केंद्र सरकार ने पिछले कल अग्निवीर योजना में भर्ती की उम्र 21 साल से बढ़ाकर 23 साल करने का ऐलान किया था, लेकिन इसका प्रदर्शनकारी युवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा है। उनकी मांग पुरानी भर्ती प्रणाली जारी रखने की है। वैसे यह आयुसीमा केवल एक बार के लिए ही बढ़ाई गई है और उसके बाद आयुसीमा 21 साल की ही रहेगी।

यूपी के बलिया में तोड़फोड़ के दौरान एक प्रदर्शनकारी घायल हुआ है। शहर के भृगु आश्रम इलाके में युवकों ने जमकर पथराव किया। फिरोजाबाद में अग्निपथ योजना के विरोध में शुक्रवार सुबह बसों में तोड़फोड़ की गई। बिहार में सड़क जाम करने के अलावा कई ट्रेनों में आग लगा दी गई है।

असम में बाढ़ से तबाही; 4 लोगों की मौत, सवा 11 लाख लोग प्रभावित

असम में मानसून शुरू हुई ही है और वहां बाढ़ ने तबाही मचानी शुरू कर दी है। राज्य में बाढ़ और बारिश से पिछले 24 घंटे के दौरान चार लोगों की जान चली गयी जबकि इससे सूबे के 25 जिलों में सवा 11 लाख लोग प्रभावित हुए हैं जिनमें से कई को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है।

नलबाड़ी जिले में रेलवे ट्रैक के बाढ़ के पानी से भर जाने के कारण देश को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाला रेल यातायात प्रभावित हुआ है। बाढ़ के खतरे को देखते हुए शुक्रवार को कामरूप महानगर जिले में सभी शैक्षणिक संस्थान बंद के दिए गए हैं।

इस बार गुवाहाटी में औसत से 121 फीसदी ज्यादा बारिश अब तक हो चुकी है। गुवाहाटी में इस महीने अब तक 385.4 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि वहां औसतन 174 मिमी बारिश होती है। राज्य के कई जिलों में ब्रह्मपुत्र, मानस, पगलाड़िया, पुथिमारी, कोपिली और गौरांग नदियों का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है।

नलबाड़ी में रेलवे ट्रैक में पानी भरने से जहां भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाला रेल यातायात प्रभावित हुआ है वहीं नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर रेलवे के मुताबिक, 6 ट्रेनों को फिलहाल पूर्ण रद्द जबकि 4 को आंशिक रूप से रद्द करने के अलावा 7 रेलगाड़ियों के मार्ग में परिवर्तन बदले गए हैं।

राज्य में बाढ़ ने खेती का भी जबरदस्त नुक्सान किया है और करीब 19782.80 हेक्टेयर फसली जमीन जलमग्न हो गई है। सरकार के मुताबिक 72 राजस्व मंडलों के तहत आने वाले 1,510 गांवों में बाढ़ की जद में हैं।

राष्ट्रीय शर्मिंदगी के क्षण

कश्मीर में अल्पसंख्यकों, प्रवासी श्रमिकों और कर्मचारियों की लक्षित हत्याओं के बाद उनका सुरक्षित स्थानों को पलायन हुआ है। स्थिति ठीक 1990 के दशक जैसी है। उस समय भी घाटी से बड़े पैमाने पर कश्मीर पंडितों का पलायन हुआ था। यह एक तरह से राष्ट्रीय अपमान है। यह सब कुछ तब हुआ है, जब कुछ दिन पहले ही वर्तमान सरकार ने अपने आठ साल के कार्यकाल को एक ऐसी सरकार के कार्यकाल के रूप में मनाया, जिसने भारतीयों का शर्म से सिर झुकने नहीं दिया। हालाँकि बहुत-से लोग इससे सहमत नहीं हैं और इस पर सवाल उठते रहे हैं।

ध्यान रहे, यह केवल कश्मीर तक सीमित नहीं है, जिसने हाशिये के तत्त्वों द्वारा जातीय संहार हम सभी के लिए शर्मिंदगी का कारण बना दिया है। केंद्र में सत्तारूढ़ दल के दो प्रवक्ताओं की इस्लाम के पैगंबर के बारे में बेहूदा टिप्पणियों ने भी एक तू$फान खड़ा कर दिया है।
इस अंक में कश्मीर पर हमारी कवर स्टोरी ‘दोराहे पर घाटी’ तहलका के श्रीनगर स्थित विशेष संवाददाता रियाज़ वानी की ग्राउंड ज़ीरो रिपोर्ट है। हमारी दूसरी महत्त्वपूर्ण स्टोरी उत्तर प्रदेश के कानपुर ज़िले में साम्प्रदायिक दंगों पर है। दंगे उस समय हुए जब राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानपुर (ग्रामीण) में एक समारोह में मौज़ूद थे, जो हिंसा स्थल से महज़ 100 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है। यह संयोग ही है कि प्रदेश सरकार राज्य की राजधानी में अनुकूल माहौल बताकर जब शीर्ष उद्योगपतियों से व्यावसायिक क्षेत्र में निवेश करने के लिए एक मेगा समारोह की मेज़बानी कर रही थी, तब यह सब हुआ। सरकार का दावा था कि उसने अपराध और अपराधियों का ख़ात्मा कर यह अनुकूल माहौल बनाया है। लेकिन वास्तव में देश को ऐसी स्थिति में रखने का जोखिम हम नहीं उठा सकते।

गल्फ को-ऑपरेशन काउंसिल (जीसीसी) के देशों या देश में ही ग़ुस्सा अब निलंबित भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली भाजपा के मीडिया सेल के निष्कासित प्रमुख के ख़िलाफ़ स्पष्ट था, जिन्होंने इस्लाम और उसके पैगंबर को लेकर प्रतिकूल टिप्पणियाँ कीं। यह तब हुआ, जब उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू क़तर में थे और इसके उपरान्त क़तर राज्य के उप अमीर (डिप्टी अमीर) ने अचानक भारतीय गणमान्य व्यक्ति के लिए आधिकारिक दोपहर के भोजन को रद्द कर दिया और भारतीय दूत को सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगने के लिए बुलाया। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जीसीसी देश न केवल 87 अरब डॉलर के व्यापार के चलते महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि उन नौकरियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं, जो वे भारतीय प्रवासियों को प्रदान करते हैं।

जबकि अरब आक्रोश हमारे बीच व्याप्त नफ़रत को ख़त्म करने के लिए एक सन्देश है, कश्मीर की स्थिति सभी हितधारकों को कट्टरपंथी समूहों को कमज़ोर और शान्ति से हासिल हुए लाभों को और आगे बढ़ाने का आह्वान करती है, न कि फिर से आतंकवाद के काले दौर की तरफ़ लौटने के लिए। काम कठिन है, क्योंकि कट्टरपंथियों ने अब और भयानक तरीक़े अपना लिए हैं, जिनमें गोली मारो और भागो की नीति शामिल है। उनका उद्देश्य एक को मारकर हज़ारों को आतंकित करना है। फ़िलहाल प्राथमिकता 30 जून से 11 अगस्त तक होने वाली अमरनाथ यात्रा में सुरक्षा पुख़्ता करने की है, ताकि भय और चिन्ता की भावना को दूर किया जा सके।

राष्ट्रपति चुनाव के बहाने एकजुट होता विपक्ष

राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के सामने पेशी वाले दिन इसे ‘राजनीतिक बदला’ बताते हुए जिस तरह विरोध के लिए कांग्रेस के तमाम बड़े नेता ईडी दफ़्तर के बाहर जुटे, उससे यह ज़ाहिर हो गया है कि कांग्रेस अब मोदी सरकार के ख़िलाफ़ आर-पार की लड़ाई की तैयारी कर चुकी है। इधर कांग्रेस यह सब कर रही थी, उधर तृणमूल नेता ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव के बहाने विपक्ष के 22 नेताओं को 15 जून को दिल्ली में बैठक बुलाकर भाजपा के ख़िलाफ़ एकजुटता दिखाने की कोशिश की।

राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया इसी महीने के तीसरे पखवाड़े शुरू हो जाएगी, जब एनडीए और विपक्ष के उम्मीदवारों के नाम साफ़ हो जाएँगे। मोदी सरकार पर दबाव बनाने के लिए विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव को ज़रिया बनाना चाहता है। विपक्ष की कोशिश है कि किसी भी सूरत में भाजपा (एनडीए) को और वोटों का इंतज़ाम करने से रोका जाए। एनडीए के पास अभी राष्ट्रपति का चुनाव जीत सकने लायक वोट नहीं हैं। कांग्रेस सहित विपक्ष उस पर दबाव बनाये रखना चाहता है।

उधर राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों के बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी राष्ट्रीय राजनीति में कूदने की तैयारी में जुट गये हैं। वह अपनी पार्टी टीआरसी का विस्तार करके उसे राष्ट्रीय स्वरूप देने की तैयारी कर रहे हैं। उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार को सूचित किया है कि उनकी पार्टी राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष के साझे उम्मीदवार का समर्थन करेगी।

इस तरह विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए अलग-अलग ही सही भाजपा के ख़िलाफ़ मज़बूत तैयारी करता दिख रहा है। महीने बाद ही राष्ट्रपति का चुनाव है, लिहाज़ा वार्ताओं का दौर शुरू हो गया है। जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस शरद पवार को राष्ट्रपति पद के लिए आगे करने के हक़ में है। ऐसा करके पार्टी एक तीर से दो निशाने साधना चाह रही है। एक, पवार के क़द को देखते हुए विपक्ष उनके नाम पर एकजुट हो सकता है। भाजपा के पास अभी भी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए पूरे वोट नहीं हैं। ऐसे में पवार उस पर भारी पड़ सकते हैं।

पवार जीत जाते हैं, तो वे विपक्ष के साझे उम्मीदवार होते हुए भी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के नेता के रूप में जीते हुए ही कहलाएँगे। निश्चित ही चुनाव हारना भाजपा के लिए बहुत बड़ा झटका होगा, भले वह किसी भी सूरत में यह चुनाव जीतना और वोटों का इंतज़ाम करना चाहेगी। यदि पवार जीत जाते हैं, तो यूपीए में प्रधानमंत्री पद का एक बड़ा दावेदार कम हो जाएगा।

सोनिया गाँधी ने जिस तरह पहले ही शरद पवार को आधिकारिक सन्देश भिजवाकर राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन की बात कही है, उससे विपक्ष के किसी और नेता का ममता शायद ही समर्थन कर पाएँ। कांग्रेस यूपीए के ही किसी वरिष्ठ नेता को राष्ट्रपति पद के लिए आगे करने की मंशा रखती रही है। यह देखना होगा कि शरद पवार का क्या रुख़ रहता है, क्योंकि वह उसी सूरत में मैदान में उतरेंगे यदि उनके जीतने की पक्की सम्भावना होगी।

इस बीच टीआरएस नेता और तेलंगना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी राष्ट्रीय राजनीति की चाह रखने लगे हैं। कई बार वे कांग्रेस के समर्थन में दिखते हैं, और कहते रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की कल्पना नहीं की जा सकती। भले तेलंगना की राजनीति में कांग्रेस उनकी विरोधी है, एक समय वह कांग्रेस के ही नेता रहे हैं। हाल में अपने दौरे के दौरान राहुल गाँधी ने उनकी सरकार की कुछ मुद्दों को लेकर आलोचना भी की थी।

राव जून के आख़िर तक अपनी पार्टी की घोषणा कर सकते हैं। जानकारी के मुताबिक, इस पार्टी का नाम भी तय कर लिया गया है और यह भारतीय राष्ट्र समिति हो सकता है। पिछले पाँच-छ: महीने से राव अचानक सक्रिय हुए हैं और वे शरद पावर, ममता बनर्जी सहित कई बड़े नेताओं से मिल चुके हैं। राव को विश्वास है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा और ऐसे में प्रधानमंत्री पद के लिए चंद्रशेखर, देवेगौड़ा या आई.के. गुजराल की तरह किसी को मौ$का मिल सकता है।

मतों का गणित
यह रिपोर्ट लिखे जाने समय तक राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए बहुमत के आँकड़े से क़रीब 13,000 मत (वोट) दूर है। पार्टी वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल पर निर्भर है। दोनों का समर्थन मिल जाता है, तो एनडीए उम्मीदवार की जीत का रास्ता साफ़ हो जाएगा। इन दोनों दलों ने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राम नाथ कोविंद का समर्थन किया था।

राज्यों में कुल 4,790 विधायक हैं। उनके वोटों का मूल्य 5.4 लाख (5,42,306) होता है। सांसदों की संख्या 767 है, जिनके मतों का कुल मूल्य भी क़रीब 5.4 लाख (5,36,900) बैठता है। इस तरह राष्ट्रपति चुनाव के लिए कुल मत लगभग 10.8 लाख (10,79,206) हैं। एक विधायक के मत (वोट) का मूल्य राज्य की आबादी और विधायकों की संख्या के आधार पर तय होता है। सांसदों के मत का मूल्य विधायकों के मतों का कुल मूल्य को लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की संख्या से भाग देकर तय होता है।

एनडीए के पास 5,26,420 मत हैं। यूपीए के हिस्से में 2,59,892 मत हैं। अन्‍य (तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल, सपा और वामपंथी) के पास 2,92,894 मत हैं। अगर वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल (43,500+31,700 मत) एनडीए के पाले में जाते हैं, तो उसका उम्मीदवार आसानी से जीत जाएगा, अन्यथा एनडीए को दिक़्क़त आएगी। कारण यह है कि हाल के महीनों में क्षेत्रीय दलों के साथ भाजपा के सम्बन्ध ख़राब हुए हैं। शिवसेना और अकाली दल उसके पाले से बाहर हैं।

अभी तक भाजपा विपक्ष के एकजुट नहीं होने से ताक़तवर दिखती। यदि विपक्ष एकजुट होता है, तो उसके लिए दिक़्क़त हो सकती है। विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश में दिख रहे हैं। ग़ैर-कांग्रेस उम्मीदवार बनाकर विपक्ष का काम नहीं चलेगा। ऐसे में सब साथ आते हैं, तो कुछ कमाल हो सकता है।

चर्चा में नाम
राष्ट्रपति पद के लिए अभी किसी भी पक्ष से कोई नाम सामने नहीं है। भाजपा से कुछ नाराज़ दिख रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का क्या रोल रहेगा, यह बहुत अहम होगा। विपक्ष में कुछ नेता उन्हें राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाने के हक़ में हैं। कोई हैरानी नहीं यदि कांग्रेस ग़ुलाम नबी आज़ाद का नाम आगे करे। केरल के राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद $खान का नाम भी हाल में तेज़ी से चर्चा में आया है। ऐसे में जबकि भाजपा पर मुस्लिम-विरोधी होने के आरोप तेज़ी पकड़ रहे हैं, पार्टी आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को राष्ट्रपति बनाकर विरोधियों को चुप करा सकती है। यदि किसी महादलित या दलित को राष्ट्रपति बनाया जाता है, तो राज्यसभा से बेदखल किये गये मुख़्तार अब्बास नक़वी उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बन सकते हैं। पार्टी किसी सिख को भी आगे कर सकती है। विपक्ष के पास शरद पवार, फ़ारूक़ अब्दुल्ला, मीरा कुमार, मनमोहन सिंह, मुलायम सिंह यादव, यहाँ तक कि मायावती भी हैं।

कश्मीर में पर्यटकों की धूम

ग़ैर-कश्मीरियों और कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्याएँ ख़ूबसूरत घाटी में आने वाले पर्यटकों की भावना को कम करने में विफल रही हैं। एक तरह से कश्मीर में आने वाले पर्यटकों की बड़ी संख्या ने शान्तिभंग करने की कोशिश करने वालों को ठेंगा दिखाया है।
सन् 2021 में क़रीब 7,00,000 पर्यटकों के मुक़ाबले कश्मीर घाटी ने जनवरी और मई, 2022 के बीच 8,00,000 से अधिक पर्यटकों को अपनी मनमोहक उपस्थिति से आश्चर्यचकित और मंत्रमुग्ध कर दिया है। यह क्या दर्शाता है? कश्मीर के पर्यटन विभाग के निदेशक जी.एन. इट्टू कहते हैं कि विभाग ने कश्मीर में सभी मौसमों में पर्यटकों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। इट्टू ने कहा कि यह पहली बार है जब कश्मीर में वसंत के मौसम को बढ़ावा दिया जा रहा है।
पिछले साल कश्मीर पर्यटन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के रूप में असामान्य ब्रांड एंबेसडर मिला। प्रधानमंत्री ने तब एक ट्वीट में कहा था- ‘जब भी आपको अवसर मिले, जम्मू-कश्मीर का दौरा करें और सुन्दर ट्यूलिप उत्सव देखें। ट्यूलिप के अलावा आप जम्मू-कश्मीर के लोगों के गर्मजोशी भरे आतिथ्य का अनुभव करेंगे।’

मोदी ने ट्वीट में इस जगह और इसके लोगों दोनों की विशिष्टता पर प्रकाश डाला। अमित शाह के जम्मू-कश्मीर दौरे के बाद के ट्वीट ने भी इसी तरह की भावनाओं को प्रतिध्वनित किया। आँकड़ों से पता चलता है कि जनवरी और फरवरी में 1,62,664 घरेलू पर्यटकों और 490 विदेशियों ने कश्मीर घाटी का दौरा किया। साल 2022 के पहले तीन महीनों के दौरान गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम में ब$र्फ का आनन्द लेने के लिए 3,00,000 से अधिक पर्यटक कश्मीर पहुँचे। उसके बाद श्रीनगर की डल झील के आसपास वसंत पर्यटन हुआ। अधिकारियों का कहना है कि श्रीनगर में जबरवान रेंज की तलहटी में कश्मीर के ट्यूलिप गार्डन में सीजन के खुलने के 10 दिन के भीतर 2,00,000 पर्यटक आये थे।

श्रीनगर हवाई अड्डे ने 4 अप्रैल को इतिहास में अब तक का सबसे व्यस्त दिन देखा, जब 15,014 लोग कश्मीर में 90 उड़ानों के जरिये आये और यहाँ से वापस गये। श्रीनगर में लगभग सभी होटलों के 60,000 कमरे, जो लगभग एक लाख पर्यटकों को समायोजित कर सकते हैं; जून के पहले सप्ताह तक बुक किये जा चुके थे। दरअसल कश्मीर में इस साल पर्यटकों की रिकॉर्ड संख्या देखी जा रही है। तीन साल की मंदी के बाद अकेले मार्च में क़रीब 2,00,000 पर्यटक घाटी में आये। उद्योग जगत के सूत्रों ने बताया कि इस बार इतनी भीड़ है कि इस साल जून के मध्य तक होटल पूरी तरह से बुक हो चुके हैं।

जम्मू और कश्मीर पर्यटन विभाग और केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के आँकड़ों से संकेत मिलता है कि जनवरी और 15 मई, 2022 के बीच पर्यटकों की संख्या बढ़कर 7,00,000 हो गयी, जो पिछले 10 साल में सबसे अधिक है। यह पिछले साल इसी अवधि में देखे गये 1,25,000 पर्यटकों से चार गुना से अधिक है। पर्यटन मंत्रालय के एक अधिकारी के हवाले से मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 के बीच कम से कम 80,00,000 लोगों ने केंद्र शासित प्रदेश का दौरा किया। कश्मीर होटल्स एंड रेस्टोरेंट ऑनर्स फेडरेशन के अध्यक्ष अब्दुल वाहिद मलिक ने कहा कि वर्तमान में श्रीनगर में 80-90 फ़ीसदी हाई-एंड (लग्जरी) होटल हैं।

श्रीनगर हवाई अड्डे के निदेशक कुलदीप सिंह ने कहा कि 28 मार्च को हमारे पास 7,824 यात्रियों के साथ 45 आगमन उड़ानें और 7,190 यात्रियों के साथ 45 प्रस्थान उड़ानें थीं। इस दौरान 15,014 यात्रियों के साथ कुल 90 उड़ानें इस हवाई अड्डे के इतिहास में सबसे ज़्यादा हैं।
कश्मीर में हाल के दिनों में ग़ैर-कश्मीरियों की लक्षित हत्याओं के बाद सोशल मीडिया पर हताश टिप्पणियों की बाढ़ आ गयी है, जो एक तरफ़ कश्मीर की बिगड़ती स्थिति और दूसरी तरफ़ ‘द कश्मीर फाइल्स’ फ़िल्म और इसी तरह के विषयों के बारे में बात करती हैं।
हालाँकि लक्षित हत्याओं की बाढ़ से बेपरवाह पर्यटकों ने इस गर्मी में रिकॉर्ड संख्या में घाटी का दौरा किया है। पिछले साल 7,00,000 पर्यटकों की थोड़ी शर्म के मुक़ाबले, कश्मीर घाटी ने जनवरी और मई 2022 के बीच 8,00,000 से अधिक पर्यटकों को देखा है। कश्मीर में पर्यटन फल-फूल रहा है। डल झील रंगीन शिकारों के एक व्यस्त शहर जैसा दिखता है। रिपोर्ट बताती हैं कि होटल तो फुल हैं ही, बाज़ार भी पर्यटकों से भरे हुए हैं और रेस्तरां में पैर रखने की जगह नहीं है। पर्यटक कश्मीरी व्यंजनों का आनन्द उठाते हुए सबसे अच्छे पल बिता रहे हैं।
अप्रैल, 2022 में घाटी में रिकॉर्ड 2.8 लाख पर्यटक आये, जो लगभग तीन दशक में सबसे अधिक हैं। पर्यटन विभाग के अधिकारियों को उम्मीद है कि भीड़ जून तक जारी रहेगी और पूरे साल पर्यटकों के आगमन में वृद्धि होगी। अब 30 जून से अमरनाथ यात्रा के बाद इस सीजन में आठ लाख से अधिक तीर्थयात्रियों के आने की उम्मीद है।

गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम, डल झील और वुलर झील सहित पर्यटकों की अधिकतम संख्या को आकर्षित करने वाले मुख्य स्थलों के अलावा, राज्य पर्यटन विभाग ने 75 नये गंतव्य खोले हैं, जिनमें बुंगस, लोलाब, गुरेज और डोडी पथरी शामिल हैं।
साहसिक पर्यटन और साहसिक खेल गतिविधियों अधिक लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि अधिक पर्यटक घाटी में अपने प्रवास के दौरान ट्रैकिंग, कैंपिंग, माउंटेन बाइकिंग, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग और हॉट एयर बैलून राइड का चयन कर रहे हैं। टूर ऑपरेटरों के हवाले से मीडिया रिपोट्र्स बताती हैं कि पर्यटकों का औसत प्रवास एक से दो सप्ताह का होता है।

पर्यटकों की भीड़ के बीच होटल के कमरे ढूँढना आसान नहीं है, क्योंकि वे दोगुनी दरों पर मिलते हैं। कश्मीर में पर्यटन की वापसी कोरोना वायरस के विकट प्रकोप के बाद की अवधि में शुरू हुई, जब प्रमुख भारतीय पर्यटन स्थल, केरल तक में पर्यटन को कोरोना वायरस ने बुरी तरह प्रभावित किया है। पर्यटन विभाग के अधिकारी इस सफलता का श्रेय आक्रामक मार्केटिंग, अखिल भारतीय प्रचार और प्रभावी कोरोना-प्रबंधन को देते हैं, जिसमें कैब ड्राइवरों से लेकर होटल मालिकों तक सभी हितधारकों का टीकाकरण हुआ है। सीधी शाम की उड़ानों की शुरुआत ने जम्मू-कश्मीर में पर्यटन के लिए एक मौक़ा दिया है और श्रीनगर के शेख़-उल-अलाम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर रात की उड़ानों का संचालन शुरू हो चुका है। इस प्रकार यात्रियों को हर समय घाटी में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है।

विभिन्न रिपोर्टों से पता चलता है कि कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति की भावना मज़बूत हुई है और ग़ैर-कश्मीरियों और कश्मीरी पंडितों की लक्षित हत्या आतंकवादियों द्वारा उभरती शान्ति और विश्वास को भंग करने के लिए हताशा का क़दम हो सकता है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2021 से मार्च 2022 के बीच कम-से-कम 80 लाख लोगों ने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। पर्यटन और संस्कृति सचिव सरमद हफ़ीज़ ने कहा कि चूँकि जम्मू-कश्मीर सरकार ने पर्यटन को प्राथमिकता के रूप में लिया है, इसलिए पर्यटकों को कश्मीर आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए पूरे भारत में विज्ञापन अभियान शुरू किये गये हैं। सरकार ने जम्मू-कश्मीर में 75 कम ज्ञात स्थलों की पहचान की है, जिनमें शीर्ष पर्यटन स्थल बनने की क्षमता है।

हालाँकि ज़्यादातर लोगों का कहना है कि विकास प्रक्रिया की शृंखला में बुनियादी ढाँचा एक कमज़ोर कड़ी बना हुआ है। जबकि मुख्य सड़कें उपेक्षा की स्थिति में हैं। यह ज्ञात है कि हर इन सड़कों को भारी हिमपात झेलना होता है, लिहाज़ा समस्या का कुछ समाधान खोजने की ज़रूरत है। अनियमित बिजली आपूर्ति और अन्य आधुनिक सुविधाओं की कमी भी बड़ा मुद्दा है। बुनियादी ढाँचे की कमी हमेशा पर्यटकों के लिए एक बाधा है और यह स्थिति जितनी जल्दी ठीक हो जाए, उतना अच्छा है। तनावपूर्ण सुरक्षा स्थिति अब इस दिशा में आवाजाही को रोकने का बहाना नहीं है। यदि पर्यटक और व्यावसायिक क्षमता का पूरी तरह से दोहन करना है, तो कश्मीर के लिए एक महत्त्वपूर्ण बदलाव देखना अनिवार्य है। यह समय है जब सभी वास्तविक हितधारक, जिनके मन में कश्मीर की भलाई है; जो उन लोगों को अलग-थलग करने में हाथ मिलाते हैं, जिनकी मंशा शत्रुतापूर्ण है।
यह परिपक्व होने और कड़ी मेहनत और महान् बलिदान के परिणामस्वरूप अर्जित लाभ को मज़बूत करने की दिशा में काम करने का समय है। जम्मू-कश्मीर को रचनात्मक योगदान की ज़रूरत है न कि अवसरवाद की। एक दर्दनाक अतीत को इस तरह से जीने या विलाप करने से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है, जो एक उज्ज्वल भविष्य पर छाया हो। इसके बजाय यह आगे देखने और उज्ज्वल भविष्य के लिए काम करने का समय है। लक्षित हत्याओं के दौरान भी पर्यटकों की आमद से पता चलता है कि कश्मीर बाधाओं के बावजूद पर्यटकों को लुभा सकता है।

अचानक नहीं हुआ कानपुर में दंगा!

झगड़े से देश तो क्या परिवार भी नहीं चल सकता। मगर झगड़ा कभी न हो सके, इसकी कल्पना तब तक कल्पना ही रहेगी, जब तक क़ानून व्यवस्था गड़बड़ रहेगी। अध्यापक नरेश गंगवार कहते हैं कि उग्र लोग हर धर्म ओर हर समाज में हैं, मगर राजनीति उन्हें और अधिक उग्र बना देती है। दंगे भी ऐसे ही लोगों को इस्तेमाल करके करवाये जाते हैं, ये कभी अपने आप नहीं होते। इसमें राजनेता सदैव अपना लाभ देखते हैं, मगर सामान्य वर्ग बुरी तरह से पिस जाता है। हो न हो कानपुर दंगों के पीछे भी यही सब साज़िश निकलेगी, मगर उसके लिए सही रूप से जाँच होनी चाहिए। विदित हो कि कानपुर में हुए दंगों के पीछे भी पुलिस प्रशासन इसी साज़िश के सूत्र जुटाकर दंगे वाली घटना के प्रमाण जुटा तथा खंगाल रही है।

सूत्रों का कहना है कि कानपुर दंगों की योजना दंगा होने से नौ दिन पहले ही बन गयी थी। यहाँ प्रश्न किया जा सकता है कि अगर पुलिस प्रशासन को यह बात पहले से पता थी, तो वह सोता क्यों रहा? और अगर उसे इतनी बड़ी साज़िश की हवा ही नहीं लगी, तो क्यों नहीं लगी? कानपुर के बेकनगंज क्षेत्र की जिस नयी सड़क पर दंगे हुए वहाँ एक समुदाय के लोगों के पास पहले से ही पत्थर, हथियार कहाँ से आये? अब तक प्रकाशित समाचारों से पता चला है कि दंगा करने वालों में दर्ज़नों नाम पुलिस प्रशासन की हिट लिस्ट में हैं, जिनमें से 40 के नाम तथा फोटो दो-तीन दिन में ही पुलिस ने सार्वजनिक भी कर दिये। कानपुर निवासी आकाश कहते हैं कि दोपहर तक किसी को नहीं पता था कि कुछ अनर्थ होने वाला है। दोपहर बाद अचानक पूरे शहर में हालात बिगडऩे लगे और देखते-ही-देखते दुकानों तथा घरों के दरवाज़े बन्द होने लगे, पुलिस गश्त करने लगी। दंगों का पता बाद में फोन के माध्यम से लोगों को लगा। एक भाजपा कार्यकर्ता ने क्रोध भरे लहज़े में कहा कि उस दिन मुसलमानों की दुकानें बन्द थीं। वे लोग पहले से ही तैयारी करके बैठे थे कि कांड करना है। अगर यह बात सही है, तो इसका मतलब है कि दंगा अचानक नहीं हुआ।
विदित हो कि कानपुर दंगों का सबसे पहला निशाना चंद्रेश्वर हाता में रहने वाले लगभग 100 हिन्दू परिवार बने। समाचार पत्रों के माध्यम से ऐसी कथित सूचनाएँ भी आयी हैं कि हाता में कई दशकों से दंगों की साज़िशें रची जाती रही हैं। अंतत: 3 जून को जुमे की नमाज़ के बाद मुस्लिम समुदाय की भीड़ ने हिन्दू बहुल इलाक़ों में दुकानों को जबरदस्ती बन्द करवाने की कोशिश की, पथराव किया, हवाई फायरिंग की, जिससे दंगा भड़क उठा।

यह दंगा तब हुआ, जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कानपुर के दौरे पर थे। पुलिस प्रशासन ने तुरन्त ही दंगों पर क़ाबू पाने हुए वीडियो फुटेज खंगाले तथा दंगाइयों को हिरासत में लिया। बताते हैं कि सैकड़ों लोग पुलिस प्रशासन की निशानदेही पर हैं। कुछ को पुलिस हिरासत में अदालत ने भेजा है, तो कुछ के ऊपर मुक़दमे दर्ज कर लिये गये हैं। कमिश्नर विजय सिंह मीणा तथा दूसरे अधिकारी इस मामले में बहुत गम्भीर हैं। हों भी क्यों नहीं, आख़िर मामला मात्र दंगों का ही नहीं है, बल्कि देश के सर्वोच्च नागरिकों राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री की सुरक्षा का पहले है।

पुलिस प्रशासन के सूत्रों का कहना है कि सभी दोषियों पर एफआईआर दर्ज कर ली गयी है तथा उनके ख़िलाफ़ गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा रही है। दंगाइयों की सम्पत्ति भी ज़ब्त की जाएगी तथा उनके मकानों पर बुलडोज़र भी चलेगा। दंगों के बाद उत्तर प्रदेश के एडीजी लॉ एंड आर्डर प्रशांत कुमार का एक बयान आया था, जो यह स्पष्ट करता है कि बेकनगंज के हाता में नमाज़ के बाद मुसलमानों ने स्थानीय दुकानों को बन्द कराने का प्रयास किया, जिसके बाद टकराव व पत्थरबाज़ी हुई। घटना की सूचना मिलते ही पुलिस फोर्स घटनास्थल पर पहुँची और पथराव करने वाली भीड़ को क़ाबू करने का प्रयास किया। जब भीड़ बेक़ाबू दिखी, तब पुलिस को मजबूर होकर लाठीचार्ज करने के साथ-साथ आँसू गैस के गोले छोडऩे पड़े।

इधर, कानपुर में हुए दंगों की साज़िश करने में एम.एम. जौहर फैंस एसोसिएशन के अध्यक्ष हयात जफ़र हाशमी, ऑल इंडिया जमीअतुल क़ुरैशी एक्शन कमेटी तथा उसके ज़िला अध्यक्ष व सपा से महानगर सचिव निजाम क़ुरैशी के नाम सामने आये हैं। हालाँकि दंगों में नाम आने के बाद अब सपा ने क़ुरैशी को बर्ख़ास्त करने की बात कही है। हालाँकि दंगों में सामान्य वर्ग के लोग कभी शामिल नहीं होते, क्योंकि उनके आगे घर की समस्याओं का कोई पार नहीं होता। कानपुर दंगों में भी यही हुआ, वहाँ के कई मुस्लिम परिवार और अधिकतर हिन्दू परिवार दंगों में शामिल नहीं थे। कानपुर दंगों के कुछ ही दिन बाद उत्तर प्रदेश में कई जगह दंगे हुए, जिन पर क़ाबू पा तो लिया गया, लेकिन बुलडोज़र कार्रवाई और धार्मिक विवाद से लोगों में आक्रोश तो है। दिल्ली में भी मुस्लिम समाज के लोगों ने भी नूपुर शर्मा के बयान को लेकर प्रदर्शन किये। रिपोर्ट लिखे जाने तक पुलिस ने कानपुर से लेकर प्रयागराज तक के 300 से भी ज़्यादा दंगा आरोपियों को हिरासत में लिया। कई लोगों के घरों पर बुलडोज़र भी चला।

पुलिस के जवान भी हुए घायल
पुलिस प्रशासन का कहना है कि कानपुर हिंसा में 13 पुलिस के जवान घायल हुए। वहीं दंगा करने वाले दोनों पक्षों के 30 लोग घायल हुए। इसके अतिरिक्त सम्पत्ति का भी भारी नुक़सान हुआ है। दुकानों, गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ के अतिरिक्त दुकानों में लूटपाट की बात सामने आयी है। पुलिस प्रशासन ने दंगाइयों पर लूटपाट, मारपीट, दंगा करने समेत कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की है। दंगाइयों की पहचान सीसीटीवी और वीडियो फुटेज की मदद से की गयी है। घटना की गम्भीरता को समझते हुए कानपुर में भारी पुलिस बल तथा दंगे वाले स्थान पर अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है। मगर पुलिस ने पहले जिन 40 लोगों की दंगाई बताकर तस्वीरें जारी कीं, उनमें से कई चेहरे दो व तीन बार भी लगा दिये। इससे ऐसा लगा कि पुलिस प्रशासन ने दंगा मामले में ठीक से छानबीन नहीं की। हालाँकि बाद में पुलिस ने अपना दोष माना तथा इसे सुधारने की बात कही। पुलिस की दूसरी लापरवाही यह है कि दंगा करने वालों में सभी आरोपी एक ही समाज से दिखाने का प्रयास उसने किया, जबकि दंगों में यह बात सामने आयी है कि दूसरे पक्ष के कुछ लोग भी दंगों में थे, पुलिस ने भी अपने बयानों में यही कहा है कि दंगों में दोनों तरफ़ से हमले हुए। कुछ सूत्रों ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच जमकर पथराव, फायरिंग के अतिरिक्त पेट्रोल बम चले थे।

कफ्र्यू की अफ़वाह
कानपुर में हिंसा के बाद बरेली में हालात बिगडऩे होने की झूठी सूचना फैलाने के आरोप में बरेली के दो स्थानीय यूट्यूब चैनलों पर कोतवाली पुलिस ने धार्मिक उन्माद फैलाने और साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे की कोशिश के साथ ही आईटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की है। पुलिस का कहना है कि चैनल आरए नॉलेज वल्र्ड और बरेली प्रोडक्शन नाम के दो यूट्यूब चैनलों ने बरेली में कफ्र्यू लगने के समाचार दिखाकर लोगों को भ्रमित करके साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे का काम किया था। ज़िला प्रशासन ने दोनों चैनलों को तत्काल प्रभाव से बन्द करा दिया। इन चैनलों ने वीडियो डालकर समाचार चलाये कि बरेली में भड़का दंगा, लगा कफ्र्यू, 3 जुलाई तक लगी धारा-144; जबकि यह सब झूठ था।

सतर्क रहना आवश्यक
उत्तर प्रदेश में कई जगह दंगों का बहुत पुराना इतिहास रहा है। मुज़$फ्फ़रनगर, मेरठ, बरेली, रामपुर, गोरखपुर, कानपुर, इटावा तथा कई अन्य ऐसे क्षेत्र रहे हैं, जो दंगों की आग में झुलस चुके हैं। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को उत्तर प्रदेश के साम्प्रदायिक गणित को समझना होगा, ताकि वहाँ सौहार्द तथा भाईचारे का माहौल बनाकर रखा जा सके। प्रदेश में कहीं भी अपराध, अराजकता न पनप सके, इसके लिए पुलिस प्रशासन तथा राजकीय प्रशासन को सतर्कता बरतने की ज़रूरत है। राम राज्य का सपना दिखाने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वास्तव में प्रदेश में राम राज्य की स्थापना करनी होगी। बुलडोज़र का डर दिखाकर लोगों में भय फैलाने की अपेक्षा लोगों में विश्वास जगाना होगा कि प्रदेश में वे पूरी तरह सुरक्षित हैं। न्याय व्यवस्था को भी इसके लिए आगे आकर अपनी भूमिका निभानी होगी।

तालिबान सरकार से सुर साधने की क़वायद

भारतीय अधिकारियों की काबुल में बैठक के हैं कई मायने

सीमा पर बदलते हालात, ख़ासकर चीन के लगातार लद्दाख़ और अरुणाचल प्रदेश के भारतीय सीमा के पास के क्षेत्रों में निर्माण के बीच भारत के अधिकारियों ने पहली बार अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता पर क़ाबिज़ तालिबान नेतृत्व से बातचीत की है। पाकिस्तान में सत्ता में बदलाव और जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में बढ़ोतरी के बाद एशिया क्षेत्र में भारत की यह पहली बड़ी कूटनीतिक गतिविधि है। भारत के लिए तालिबान से बेहतर सम्बन्ध रखने के कई कारण हैं, जिनमें सबसे बड़ा है- आतंकियों को भारत के ख़िलाफ़ ट्रेनिंग के लिए अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन इस्तेमाल न होने देना। भारत की अफ़ग़ान अधिकारियों से बातचीत तालिबान के साथ रिश्तों में अहम मोड़ है। भारत भविष्य में अफ़ग़ानिस्तान को अपनी परियोजनाओं को मदद के अलावा मानवीय मदद तो जारी रखेगा ही, अफ़ग़ान सेना के भारत में प्रशिक्षण और किसी हद तक ट्रेड का रास्ता भी खुल सकता है। सम्भावना है कि काबुल में हालात के मुताबिक भारत अपना दूतावास फिर खोलने की पहल भी करे।

नहीं भूलना चाहिए कि जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सत्ता में आया, तभी से चीन और पाकिस्तान की कोशिश भारत की उसके (अफ़ग़ानिस्तान के) साथ इंगेजमेंट (व्यापार) को कम करने की रही है। भारत उचित समय का इंतज़ार करता रहा है और अब डोवल की पहल पर भारतीय अधिकारियों की काबुल में अफ़ग़ान नेतृत्व से बातचीत हुई है। देखा जाए, तो इन कुछ महीनों में तालिबान ने भारत के साथ टकराव वाली कोई बात नहीं की है। बैठक के बाद अजित डोवल ने कहा भी कि ‘भारत अफ़ग़ानिस्तान में एक महत्त्वपूर्ण हितधारक था और रहेगा। लम्बे अरसे से भारत के अफ़ग़ानिस्तान की जनता के साथ ख़ास सम्बन्ध रहे हैं और आने वाले समय में भी इसे कुछ भी नहीं बदल सकता है।’ लेकिन डोवल ने एक बात और कही, जो कहीं ज़्यादा अहम है। डोवल ने कहा- ‘कोई भी अफ़ग़ानिस्तान के मामलों से भारत को दूर रखने का ख़्वाब न देखे। भारत अपने पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान के मसलों पर एक महत्त्वपूर्ण पक्षकार है, था, और आगे भी रहेगा; चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों और कितनी भी बदल जाएँ।’ ताजिकिस्तान की राजधानी दुशान्बे, जहाँ अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान की पड़ताल और भविष्य की रणनीति पर चर्चा हुई; में भी डोवल भारत के अफ़ग़ानिस्तान को लेकर स्टैंड पर दृढ़ दिखे। क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद के तहत हुए इस मंथन में भारत के अलावा ताजिकिस्तान, रूस, क़ज़ाक़िस्तान, उज्बेकिस्तान, ईरान, किर्गिज़िस्तान और चीन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक साथ जुटे थे। एक समय ख़ुद को अफ़ग़ानिस्तान की नीतियों में बड़ा ‘हिस्सेदार’ मानने वाला पाकिस्तान इस बैठक में आया ही नहीं।

दुशान्बे में नई दिल्ली घोषणा-पत्र को ही आगे बढ़ाने पर चर्चा हुई और भारत ने मज़बूती से अपना पक्ष रखा। पाकिस्तान तो तभी दबाव में आ गया था, जब भारत ने पिछले साल नवंबर में अफ़ग़ानिस्तान पर तीसरे क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद का आयोजन किया था। दुशाम्बे के बाद क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद के तहत सभी देशों के एनएसए ने आतंकवाद पर जैसा रुख़ अपनाया, वह भारत की लाइन पर ही था। इन एनएसए ने अफ़ग़ानिस्तान से आतंकवाद ख़त्म करने की बात कही। उनका साफ़ कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान में शान्ति और स्थिरता सुनिश्चित करना बैठक की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद उस देश में भारतीय पक्ष की यह पहली आधिकारिक बैठक थी। इस बैठक को लेकर पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आते देर नहीं लगी। पाकिस्तान विदेश कार्यालय के प्रवक्ता आसिम इफ़्तिख़ार ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की भूमिका के सन्दर्भ में पाकिस्तान के विचार जगज़ाहिर हैं। ज़ाहिर है पाकिस्तान ने इस बैठक से बेचैनी महसूस की। उसके लिए यह ख़बर भी चोट की तरह थी, जिसमें काबुल में भारतीय दूतावास दोबारा से खोले जाने की सम्भावना जतायी गयी थी। भारतीय विदेश मंत्रालय की वरिष्ठ अधिकारियों की इस टीम की तालिबानी नेतृत्व से पहली बातचीत को लेकर तालिबान के रक्षा मंत्री ने भी सकारात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि ‘भारत ने हमेशा हमारी दिल खोलकर मदद की है और हमें भारत से बड़ी उम्मीदें हैं।’

दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि लम्बे समय से अफ़ग़ान सैनिक भारत में प्रशिक्षण लेते रहे हैं। इस मसले पर अफ़ग़ानिस्तान के रक्षा मंत्री मुल्ला याक़ूब ने हाल में कहा कि यदि तालिबान सरकार को अपने सैनिक प्रशिक्षण के लिए भारत भेजने में कोई समस्या नहीं होगी। उनका कहना है कि अफ़ग़ान-भारत सम्बन्ध मज़बूत हों और इसके लिए ज़मीन तैयार हो, इसमें कोई समस्या नहीं है।

अफ़ग़ानिस्तान के सैनिक दूसरे देशों में प्रशिक्षण लेते रहे हैं। तालिबान सरकार उन्हें देश में वापस लौटने का आग्रह कर चुकी है। मुल्ला के मुताबिक, कई सैनिक वापस लौटे भी हैं। उनका कहना है कि भारत में रह रहे सैनिकों को लेकर अफ़ग़ान सरकार को जानकारी है और उनसे लौटने का अनुरोध किया गया है। भारतीय अधिकारियों की काबुल की बैठक में तालिबान के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाक़ात में कई मसलों पर बातचीत हुई। अफ़ग़ान अधिकारी चाहते थे कि भारत काबुल में अपना दूतावास फिर खोल दे। इस मसले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि पिछले साल 15 अगस्त के बाद अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगडऩे के चलते भारतीय अधिकारियों को वापस लाने का $फैसला हुआ था। हालाँकि वहाँ स्थानीय कर्मचारियों ने दूतावास परिसर का रखरखाव करना जारी रखा है।
भारतीय टीम उन कुछ साइट्स पर भी गयी, जहाँ भारत की सहायता वाली परियोजनाएँ चल रही हैं। यह दौरा इसलिए भी अहम रहा कि भारतीय राजनयिक टीम अगस्त, 2021 में तालिबान राज आने के बाद पहले बार काबुल गयी। वैसे भारत की इससे पहले क़तर और उसके बाद रूस में तालिबान प्रतिनिधियों से मुलाक़ात हुई हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, भारत आने वाले समय में अफ़ग़ानिस्तान में कम कर्मचारियों के साथ भारतीय दूतावास में कामकाज शुरू कर सकता है। जानकारी के मुताबिक, एक सिक्योरिटी ऑडिट हाल में इस सिलसिले में किया गया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल इस सारी कसरत के मुख्य कर्ताधर्ता हैं।

भारत का मुख्य मक़सद विभिन्न आतंकवादी गुटों को प्रशिक्षण के लिए अफ़ग़ान धरती का इस्तेमाल न होने देना है। इसमें भारत अभी तक सफल रहा है। अफ़ग़ान सरकार में शामिल कई गुट हैं, जिनमें कुछ ऐसे हैं, जो अलक़ायदा जैसे आतंकी संगठनों के हिमायती हैं। ऐसे में भारत के लिए यह क़वायद आसान नहीं रही है। लेकिन $िफलहाल ऐसी रिपोर्ट नहीं हैं कि यह खूँख़ार गुट अफ़ग़ानिस्तान में किसी तरह की ट्रेनिंग ले रहे हैं। पाकिस्तान की बदनाम एजेंसी आईएसआई पहले ऐसी ट्रेनिंग का हिस्सा रही है।


“तालिबान भारत के साथ सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध बनाना चाहता है। हम इस बात पर प्रतिबद्ध हैं कि वो अपनी ज़मीन का इस्तेमाल किसी भी देश के ख़िलाफ़ नहीं होने देगा। हम भारत की भेजी मदद की सराहना करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारत अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को अपनी सहायता जारी रखेगा।’’
मुल्ला याक़ूब
रक्षा मंत्री, तालिबान

भारत की मदद
जहाँ तक मदद की बात है, भारत अफ़ग़ानिस्तान को गेहूँ और दवाइयों के अलावा अन्य तरह की मानवीय सहायता भी पहुँचा रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में भले अभी भारतीय दूतावास बन्द है, भारत अभी तक 22,000 मीट्रिक टन गेहूँ और 15 टन दवाएँ अफ़ग़ानिस्तान को भेज चुका है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, मानवीय सहायता के शिपमेंट में भारत पहले ही अफ़ग़ानिस्तान को 20,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 13 टन दवाएँ, कोरोना टीके की 5,00,000 ख़ुराक और गर्म कपड़े भेज चुका है। इन खेपों को भारत ने काबुल में गाँधी चिल्ड्रन अस्पताल, डब्ल्यूएचओ और डब्ल्यूएफपी सहित संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसियों को सौंपा। हाल की बैठक के बाद भारत अफ़ग़ानिस्तान को अधिक चिकित्सा सहायता और खाद्यान्न भेजने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है। अफ़ग़ानिस्तान अस्थिरता के अलावा भुखमरी और बीमारी का संकट भी झेल रहा है।

अग्निपथ योजना के खिलाफ बिहार में प्रदर्शन जारी, ट्रेन में आग लगाई, भाजपा एमएलए पर हमला

केंद्र सरकार की मंगलवार को घोषित अग्निपथ योजना का विरोध बढ़ता जा रहा है। जहाँ कुछ पूर्व जनरलों ने सेना में अस्थाई भर्ती नीति को गलत बताया है वहीं प्रमुख दल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी इस नीति का विरोध किया है। उधर बिहार में दो दिन से इस योजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे युवाओं ने गुरुवार को छपरा कैमूर में ट्रेन को आग लगा दी जबकि नवादा में भाजपा की महिला विधायक की गाड़ी पर हमले की खबर है।

कई शहरों में युवाओं ने सड़कों पर उतरकर इस योजना का विरोध करते हुए प्रदर्शन किये हैं। बिहार के अलावा यूपी, हरियाणा और हिमाचल में भी विरोध प्रदर्शन होने की ख़बरें हैं। बिहार में पटना, बक्सर और मुजफ्फरपुर में सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे छात्रों ने प्रदर्शन किया और नारेबाजी की।

अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे युवाओं ने छपरा कैमूर में ट्रेन में आग लगा दी। आरा बुलंदशहर में पुलिस और प्रदर्शनकारी एक दूसरे के आमने-सामने आ डटे जिससे स्थिति तनावपूर्ण हो गयी।

उधर हरियाणा के रोहतक जिले से खबर है कि वहां दो साल से सेना की भर्ती की तैयारी कर रहे एक युवक ने कथित तौर पर अग्निपथ योजना के खिलाफ आत्महत्या कर ली। उसने रोहतक के पीजी हॉस्टल के कमरे में फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली। यह युवक सचिन जींद जिले के लिजवाना का रहने वाला था।

पीजीआई रोहतक थाना ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेजा है। परिजनों रिपोर्ट्स के मुताबिक सचिन के परिजनों ने बताया कि सेना में भर्ती की चार साल की योजना से वह निराश हो गया और संभवता इसी के चलते उसने आत्महत्या कर ली।

उधर बिहार के नवादा में अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे युवकों ने भाजपा विधायक अरुणा देवी की गाड़ी पर हमला कर दिया और उसमें तोड़फोड़ की।

इस बीच हरियाणा के हिसार में अग्निपथ योजना के खिलाफ कंवारी बस अड्डे पर युवाओं ने प्रदर्शन किया। कुछ देर रास्ता भी जाम किया गया। उन्होंने अधिकारियों को एक ज्ञापन भी सौंपा।