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अग्निपथ, राहुल से ईडी की पूछताछ पर आज राष्ट्रपति से मिलेगी कांग्रेस

केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना, जिसके खिलाफ देश भर के युवा सड़कों पर हैं, को लेकर विपक्षी दल कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि पार्टी नेता आज जंतर-मंतर पर सत्याग्रह पर बैठेंगे और शाम 5 बजे राष्ट्रपति से मिलकर मांग करेंगे कि अग्निपथ योजना को वापस लिया जाए। इसके अलावा पार्टी ईडी की राहुल गांधी से पूछताछ को लेकर भी राष्ट्रपति से बात करेगी, जिन्हें आज फिर ईडी के सामने पेश होना है।

कांग्रेस नेता अजय माकन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस योजना पर पहले युवाओं के बीच और संसद में चर्चा की जानी चाहिए, लेकिन उससे पहले इसे वापस लिया जाना चाहिए। इसके अलावा राहुल गांधी से ईडी की पूछताछ और कांग्रेस के हल्लाबोल को लेकर अजय माकन ने आरोप लगाया कि कांग्रेस मुख्यालय को छावनी में बदल दिया गया है।

माकन ने कहा – ‘मैं एक राष्ट्रीय पार्टी का महासचिव हूं और मुझे चार जगह अनुरोध कर गाड़ी से उतरकर आना पड़ा। विपक्षी पार्टी के दफ्तर को यूं घेरना अनुचित है। क्या देश में लोकतंत्र जिंदा है ?’

वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि सीबीआई और ईडी की कार्रवाई एक सौंदर्य क्रीम की तरह है। उन्होंने कहा -‘जिन पर चार्ज लगे हों, उनमें से जो भाजपा में चले जाते हैं, उनके ऊपर ये क्रीम लगा कर छोड़ देती है। हम अग्निपथ और राहुल गांधी को तंग करने दोनों मुद्दों पर शाम को राष्ट्रपति से भी मिलेंगे। हम राष्ट्रपति को यह भी बताएंगे कि कैसे हमारे सांसद को परेशान किया गया और ईडी का कैसे दुरुपयोग किया जा रहा है।’

माकन ने आरोप लगाया कि नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी की ईडी जांच के विरोध में दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस सांसद एस जोथिमणि की कथित तौर पर पिटाई कर दी।’ याद रहे राहुल गांधी को आज एक बार फिर ईडी के सामने पूछताछ के लिए पेश होना है। अब तक तीन दिन में राहुल गांधी से 30 घंटे की पूछताछ हुई है।

देश में कोरोना के 12,781 नए मामले, इस दौरान 18 लोगों की जान गयी

देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना के 12,781 नए मामले सामने आए हैं। इस दौरान कोरोना से 18 लोगों की मौत हुई है।

आज सुबह स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में रिकवरी रेट वर्तमान में 98.61 फीसदी है। पिछले 24 घंटों में कोरोना से 8,537 लोग ठीक हुए हैं जिससे ठीक होने वालों की संख्या बढ़कर 4,27,07,900 हो गई है।

दैनिक पॉजिटिविटी रेट 4.32 फीसदी है। देश में अब तक 85.81 करोड़ कोरोना टेस्टिंग हो चुकी है जबकि 196.18 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी जा चुकी है। भारत में एक्टिव केस वर्तमान में 76,700 है।

महाराष्ट्र के ठाणे जिले में कोविड-19 के 837 नए मामले सामने आने के बाद अब तक संक्रमित पाए गए लोगों की कुल संख्या बढ़कर 7,18,884 हो गई है। जिले में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 11,898 है।

काबुल में गुरुद्वारे पर हमला; फायरिंग और धमाके की आवाजें भी सुनी गईं

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में शनिवार को हथियारबंद बंदूकधारियों ने स्थानीय गुरुद्वारे में फायरिंग की है। वहां नजदीक ही ब्लास्ट भी हुए हैं। घटना के समय गुरुद्वारे के भीतर कम से कम 25 लोग थे। सिख नेता मनजिंदर सिंह सिरसा के मुताबिक तीन घायल लोग गुरुद्वारे से बचकर निकले हैं, और कुछ भीतर फंसे हैं। कितने लोगों की जान गयी है इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है।

गुरुद्वारा अध्यक्ष गुरनाम सिंह के हवाले से स्थानीय मीडिया ने बताया है कि बंदूकधारियों ने अचानक गुरुद्वारे पर हमला कर दिया। आशंका है कि यह आतंकवादी गुट के लोग हो सकते हैं। वहां उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग की है। कुछ लोग जान बचाने इमारत की दूसरी तरफ छिपे हैं। कम से कम 25 लोग गुरुद्वारा के भीतर हो सकते हैं।

कुछ अपुष्ट रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि गुरुद्वारा के मुस्लिम गार्ड की जान चली गई है। कुछ लोग अस्पताल में भर्ती किये गए हैं। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया है कि परिसर के भीतर विस्फोट की आवाज भी सुनी गयी है। हमलावर गुरुद्वारा परिसर के भीतर बताये गए हैं और तालिबान लड़ाके उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

इस बीच भारती के विदेश मंत्रालय ने कहा – ‘हम काबुल में एक गुरुद्वारे पर हमले को लेकर बहुत चिंतित हैं। हम स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं और आगे की घटनाओं के बारे में अधिक जानकारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।’

‘अग्निपथ’ योजना के राष्ट्रीय सुरक्षा, सेना पर प्रभाव के आकलन को विशेषज्ञ कमेटी बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

अग्निपथ योजना के राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन एक एक्सपर्ट कमेटी से कराने का आग्रह करते हुए शनिवार को सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गयी है। इस याचिका में केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ हो रही हिंसा की जाँच एसआईटी से करवाने की भी मांग की गयी है। याचिका दिल्ली के एक वकील ने दायर की है।

जानकारी के मुताबिक दिल्ली के एक वकील विशाल तिवारी ने याचिका में जहां अग्निपथ योजना पर हो रही हिंसा की जांच एसआईटी का गठन कर उससे करवाने की मांग की गयी है वहीं इसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की अध्यक्षता में एक्सपर्ट कमेटी के गठन की भी मांग है।

याचिका में तिवारी ने सर्वोच्च अदालत से दरख्वास्त की है कि केंद्र सरकार को आदेश दें कि हिंसा को लेकर एक स्टेटस रिपोर्ट अदालत में दाखिल की जाए। साथ ही राज्यों को आदेश दिया जाए कि सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के जिम्मेदार लोगों से दावा वसूलने के लिए एक कमिश्नर नियुक्ति करें।

इस याचिका में अग्निपथ योजना के राष्ट्रीय सुरक्षा और सेना पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन भी एक्सपर्ट कमेटी से करने की मांग की गयी है। मोदी सरकार ने चार दिन पहले ही थल सेना, नौसेना और वायुसेना में ‘अग्निवीरों’ की भर्ती के लिए ‘अग्निपथ योजना’ का एलान किया था। युवा इसका विरोध करते हुए आंदोलन पर उतर आये हैं।

देश में 90 के दशक जैसा माहौल, पूरे देश में छात्रों का प्रदर्शन

असमंजस ही विलंब का कारण बनता है। सरकार जितना विलंब करेगी मामला उतना ही गहराता जायेगा। अग्निपथ को लेकर जो अग्निकाल का दौर चल रहा है। इससे देश के युवाओं का भविष्य अधर में लटका जा रहा है। पूरे देश में अग्निपथ को लेकर विरोध-प्रदर्शन का दौर चल रहा है। ट्रेन, बसें और ट्रकों के साथ-साथ सरकारी दफ्तरों में आग लगाई जा रही है। लेकिन सरकार सियासत कर रही है।

सरकार विरोधियों पर आरोप लगा कर अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहती है। लेकिन ये जनता है कि सब जानती है। जानकारों का कहना है कि सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेना चाहती है। और छात्र संगठन विरोध -प्रदर्शन नहीं रोकना चाहती है। ऐसे में पूरे देश में एक अजीब सा माहौल बना हुआ है। लोगों को ट्रेनों में यात्रा करने से डर लग रहा है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों ने तहलका संवाददाता को बताया कि सरकार ने जो भी अग्निपथ -अग्निवीर को लेकर स्कीम लाई है। वो भी चार साल के लिये इससे तो बात बनने वाली नहीं। ऐसे में सरकार बिना विलंब किये जो भी निर्णय लिया उसको तत्काल वापस होना चाहिये। अन्य़था देश में विरोध की लपटें तेज होती जायेगी। उन्होंने बताया कि 90 के दशक में जो माहौल पूरे में आरक्षण को लेकर बना था। वहीं माहौल आज अग्निवीर को लेकर बना हुआ है। अरबों रूपये की सरकारी और निजी सम्पत्ति को नुकसान किया जा रहा है।

अग्निवीरों को सीएपीएफ, एआर भर्ती में 10 फीसद आरक्षण की घोषणा; आज है बिहार बंद

अग्निपथ योजना के खिलाफ देश भर में युवाओं में बढ़ रहे गुस्से और प्रदर्शनों के बीच दबाव में आई केंद्र सरकार ने शनिवार को योजना को लेकर कहा कि सीएपीएफ और असम राइफल्स में होने वाली भर्तियों में अग्निवीरों के लिए 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा। अधिकतम प्रवेश आयु सीमा में 3 वर्ष (पहले बैच के लिए 5 वर्ष) की छूट देने का भी उसने निर्णय किया है। इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज कहा कि देश के युवाओं की बात माननी पड़ेगी और ‘अग्निपथ’ वापस लेना ही पड़ेगा। प्रदर्शनकारी छात्रों ने आज बिहार बंद का ऐलान किया है।

सरकार ने वैसे अग्निपथ योजना की घोषणा करने के बाद ही कहा था कि सीएपीएफ और असम राइफल्स में होने वाली भर्तियों में अग्निवीरों को प्राथमिकता मिलेगी जबकि अब कहा है कि उन्हें 10 फीसदी आरक्षण मिलेगा।

इस बीच कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शनिवार को एक ट्वीट में कहा – ‘देश के युवाओं की बात माननी पड़ेगी, ‘अग्निपथ’ वापस लेना ही पड़ेगा। आठ साल से लगातार भाजपा सरकार ने ‘जय जवान, जय किसान’ के मूल्यों का अपमान किया है।’

उधर अग्निपथ योजना के खिलाफ आज लगातार देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी हैं। बिहार में आइसा, इनौस, कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई, रोजगार संघर्ष संयुक्त मोर्चा और सेना भर्ती जवान मोर्चा ने अग्निपथ योजना के विरोध में आज ‘बिहार बंद’ का आह्वान किया है। प्रदर्शनकारियों ने जहानाबाद जिले के टेहटा ओपी में जब्त वाहनों को आग के हवाले कर दिया कर दिया। वहां पथराव भी किया गया है। जहानाबाद के बड़े अधिकारी मौके पर पहुंचे हैं।

बिहार में मुख्य विपक्षी दल राजद और वाम दलों ने आज के बिहार बंद का समर्थन किया है। यहाँ तक कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के घटक दल हिंदुस्तान आवाम मोर्चा और विकासशील इंसान पार्टी भी बंद का समर्थन कर रहे हैं। बंद कर रहे संगठनों ने केंद्र सरकार को 72 घंटे का अल्टीमेटम देते हुए कहा है कि अग्निपथ स्कीम वापस ले, नहीं तो भारत बंद का आह्वान किया जाएगा।

अग्निपथ का विरोध-प्रदर्शन अब देश के 13 राज्यों में पहुंच गया है और इस दौरान काफी ट्रेन जलाई गयी हैं और दूसरी संपत्ति की तोड़फोड़ हुई है। सबसे ज्यादा असर बिहार और उत्तर प्रदेश में है। बिहार में प्रदर्शनकारियों ने सात ट्रेनें फूक दी हैं। बिहार में सरकार ने 12 जिलों में मोबाइल और इंटरनेट सेवा अगले 48 घंटे के लिए बंद कर दी है। अग्निपथ के खिलाफ बिहार में अब तक कुल 325 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

इस बीच तेलंगना के सिकंदराबाद में पुलिस की गोली से एक व्यक्ति की मौत हो गई। इसके बाद गुस्साए युवाओं के प्रदर्शन के दौरान कई ट्रेन में आग लगा दी गई। निजी, सार्वजनिक वाहनों, रेलवे स्टेशन में तोड़फोड़ की गई और राजमार्गों और रेलवे लाइन को अवरुद्ध कर दिया गया।

राहुल गांधी का ट्वीट –
@RahulGandhi
8 सालों से लगातार भाजपा सरकार ने ‘जय जवान, जय किसान’ के मूल्यों का अपमान किया है। मैंने पहले भी कहा था कि प्रधानमंत्री जी को काले कृषि कानून वापस लेने पड़ेंगे। ठीक उसी तरह उन्हें ‘माफ़ीवीर’ बनकर देश के युवाओं की बात माननी पड़ेगी और ‘अग्निपथ’ को वापस लेना ही पड़ेगा।

गृह मंत्रालय का ट्वीट –
गृहमंत्री कार्यालय, HMO India
@HMOIndia
Jun 18, 2022
गृह मंत्रालय ने CAPFs और असम राइफल्स में होने वाली भर्तियों में अग्निपथ योजना के अंतर्गत 4 साल पूरा करने वाले अग्निवीरों के लिए 10% रिक्तियों को आरक्षित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।

दोराहे पर घाटी

कश्मीरी पंडितों के पलायन से केंद्र की नीति पर सवाल

कश्मीर में हाल की घटनाओं, जिनमें कश्मीरी पंडितों का पलायन भी शामिल है; ने घाटी से लेकर दिल्ली तक चिन्ता पैदा की है। यह सब तब शुरू हुआ है, जब घाटी में जाने वाले पर्यटकों की संख्या हाल के वर्षों में सबसे अधिक है। चिह्नित हत्यायों के दौर से संकेत मिलता है कि आतंकी गुट अपनी रणनीति बदलकर काम कर रहे हैं। हाल में जम्मू-कश्मीर में हुए परिसीमन ने घाटी के लोगों के मन में आशंकाएँ भरी हैं। महसूस किया जा रहा है आतंक रोकने के लिए कि केंद्र सरकार के लिए यह ज़रूरी है कि वह सुरक्षा की नीति से इतर और उपायों पर भी विचार करे। श्रीनगर से रियाज़ वानी की ग्राउंड रिपोर्ट :-

घाटी में कश्मीरी पंडितों सहित आम नागरिकों की हत्याओं ने देश भर में कोहराम मचा दिया है। कई कश्मीरी पंडित जो प्रधानमंत्री पैकेज के तहत नौकरी करने के लिए कश्मीर लौटे थे, उन्होंने हाल की घटनाओं के बाद घाटी छोड़ दी है; जिससे केंद्र सरकार की उन्हें उनकी मातृभूमि में फिर से बसाने की योजना खटाई में पड़ गयी है।

हालाँकि केवल कश्मीरी पंडितों पर ही हमला नहीं किया गया है। आतंकवादियों ने कश्मीरी मुस्लिम नागरिकों, जम्मू और कश्मीर पुलिसकर्मियों, प्रवासी मज़दूरों और जम्मू और भारत के अन्य हिस्सों के हिन्दुओं को भी अपनी हिंसा का शिकार बनाया है।
ताज़ा घटनाओं में आतंकवादियों ने जम्मू सम्भाग के सांबा की एक स्कूल शिक्षक रजनी बाला और राजस्थान के विजय कुमार बेनीवाल, इलाकाई देहाती बैंक के प्रबंधक की हत्या की है। पिछले महीने एक कश्मीरी पंडित सहित लक्षित हमलों में आतंकवादियों ने नौ नागरिकों को मार डाला। वहीं सुरक्षा बल अब तक हत्यायों को रोकने में नाकाम रहे हैं। समझा भी जा सकता है कि उनके लिए घाटी में अल्पसंख्यक समुदाय के एक-एक सदस्य को सुरक्षित रखना आसान नहीं होगा।

जम्मू-कश्मीर सरकार के लिए चीज़ों को और कठिन बनाने वाली बात यह है कि एक विशेष पैकेज के तहत 4,000 पंडित कर्मचारियों की भर्ती की गयी है; लेकिन हाल की घटनाओं के बाद ये सभी नये सिरे से पलायन के कगार पर हैं। इसी तरह जम्मू सम्भाग के विभिन्न ज़िलों के क़रीब 8,000 कर्मचारी एक अन्तर-ज़िला स्थानांतरण नीति के तहत कश्मीर में काम कर रहे हैं और उनमें से अधिकांश ग़ैर-मुस्लिम हैं। भले सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है; लेकिन उन्हें इस पर भरोसा करने का कोई कारण नहीं मिल रहा है। पंडित कर्मचारी अब चाहते हैं कि सरकार उस बांड को रद्द कर दे, जो उन्हें अपने रोज़गार के दौरान घाटी में स्थायी रूप से रहने के लिए बाध्य करता है। वे चाहते हैं कि पद (पोस्ट) को हस्तांतरणीय बनाया जाए।

उत्तरी कश्मीर के बारामूला में एक हिन्दू कश्मीरी पंडित कॉलोनी के अध्यक्ष अवतार कृष्ण भट्ट ने मीडिया को बताया कि सुरक्षा की भावना के अभाव में पंडितों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा- ‘कॉलोनी में रहने वाले 300 परिवारों में से लगभग आधे ने हाल ही में हुई हत्या की होड़ के बाद घाटी छोड़ दी थी।’ कश्मीरी पंडितों ने भी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा और कश्मीर के बाहर पोस्टिंग की माँग को लेकर दिल्ली तक विरोध प्रदर्शन किये हैं।

प्रधानमंत्री का पैकेज
साल 2008 के आसपास तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने कश्मीरी पंडितों को घाटी में लौटने के एवज़ में नौकरी और वित्तीय सहायता की पेशकश की थी। पंडितों को प्रति परिवार 7.5 लाख रुपये की प्रारम्भिक वित्तीय सहायता दी गयी थी, जिसे बाद में घाटी में बसने वालों के लिए तीन किस्तों में बढ़ाकर 20 से 25 लाख रुपये कर दिया गया था।

सरकार ने घाटी के विभिन्न हिस्सों में लौटने वाले कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए सुरक्षित, अलग-अलग एन्क्लेव बनाये। योजना सफल साबित हुई। जो पंडित कार्यरत थे और उनके परिवारों ने इन परिक्षेत्रों में निवास किया, वे मुसलमानों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में अपने-अपने धार्मिक / सामाजिक आयोजनों में भी शामिल हुए। लेकिन किसी ने उन्हें छुआ तक नहीं।

बाहरी लोगों और अल्पसंख्यकों की हत्याएँ नई दिल्ली के अनुच्छेद-370 को रद्द करने के बाद शुरू हुईं, जिसने जम्मू और कश्मीर को भारतीय संघ के भीतर एक अर्ध-स्वायत्त दर्जा दिया। पांच अगस्त, 2019 को विशेष संवैधानिक पद वापस लेने के दो महीने के भीतर आतंकवादियों ने सेब व्यापार से जुड़े तीन ग़ैर-स्थानीय लोगों को मार डाला। इसने अस्थायी रूप से घाटी के फल उद्योग को संकट में डाल दिया, जिसका सालाना कारोबार 10,000 करोड़ रुपये है; जिसे घाटी की अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। हत्याओं ने बाहर से यहाँ आकर काम कर रहे ट्रक ड्राइवरों और सेब व्यापारियों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया और स्थिति को फिर सामान्य होने में समय लगा। तब ऐसी ख़बरें आयी थीं कि उग्रवादियों ने स्थानीय फल उत्पादकों को बाहरी लोगों को काम पर नहीं रखने के लिए कहा था।

हालाँकि बाद में हत्याएँ कम हो गयीं; लेकिन आतंकी जल्द ही बिहार और भारत के अन्य हिस्सों के मज़दूरों की हत्याओं के साथ फिर सक्रिय हो गये। स्थिति तब चिन्ताजनक हो गयी, जब 31 दिसंबर, 2020 को आतंकवादियों ने एक हिन्दू सुनार की हत्या कर दी। पिछले साल भी उन्होंने प्रसिद्ध कश्मीरी पंडित केमिस्ट माखन लाल बिंदू की गोली मारकर हत्या कर दी। कुल मिलाकर कश्मीरी मुसलमान पिछले तीन साल में मारे गये लोगों में सबसे ज़्यादा हैं। हालाँकि इस तरह की हत्याओं को आमतौर पर मीडिया में अलग ही जगह मिलती है।

सरकारी उपाय
अल्पसंख्यकों की हत्याओं में वृद्धि ने केंद्र सरकार को घाटी में कश्मीरी पंडितों और हिन्दू कर्मचारियों में भरोसा भरने के लिए क़दम उठाने को मजबूर किया है। केंद्रीय गृह मंत्री, अमित शाह ने 17 मई को एक उच्च स्तरीय बैठक की, जिसमें उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला और ख़ुफ़िया और सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों ने मौज़ूदा स्थिति के लिए तैयारियों का जायज़ा लिया। घाटी और आगामी अमरनाथ यात्रा – जो दो साल बाद 30 जून से शुरू होने वाली है, पर भी चर्चा हुई। साल 2020 और 2021 में कोरोना वायरस में हुई तालाबंदी के कारण तीर्थयात्रा रद्द कर दी गयी थी। यात्रा में लगभग तीन लाख तीर्थ यात्रियों के भाग लेने की सम्भावना है, जो 11 अगस्त तक चलेगी। केंद्र सरकार अब यात्रा को सुरक्षित करने के लिए कम-से-कम 12,000 अर्धसैनिक बल के जवानों के साथ-साथ हज़ारों जम्मू-कश्मीर पुलिस जवानों को तैनात करने जा रही है।
कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा की भावना भरने के व्यर्थ प्रयास में जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने यह भी कहा कि कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या के बाद पंडित कर्मचारियों को सुरक्षित ज़िलों में तैनात किया जाएगा, जो घाटी के बडगाम ज़िले में राजस्व विभाग में काम करते थे। शिक्षा विभाग द्वारा 177 कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के तबादले को सार्वजनिक किये जाने पर भी सरकार ने गम्भीरता से विचार किया। भाजपा की यह माँग थी। भगवा पार्टी ने कहा कि सरकार कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए गम्भीर क़दम उठा रही है; लेकिन कुछ अधिकारी उनकी पहचान करके खेल बिगाड़ रहे हैं। साथ ही जम्मू-कश्मीर सरकार ने कुछ सरकारी और निजी स्कूलों को स्थिति सामान्य होने तक अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाने का निर्देश दिया है। सरकारी और निजी स्कूलों के लिए शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा हाल में आधिकारिक निर्देश में कहा गया कि प्रत्येक विषय में छात्रों के सीखने के स्तर का आकलन वस्तुत: गूगल फॉर्म प्रश्नावली या किसी अन्य व्यवहार्य आभासी प्रारूप के माध्यम से किया जाना चाहिए और इसका रिकॉर्ड सीखने के स्तर के रजिस्टर में शामिल किया जाना चाहिए। जिला शिक्षा अधिकारियों ने स्कूल शिक्षकों को अपने पाठ्यक्रम के अनुसार ऑनलाइन शिक्षण और ई-सामग्री के लिए कार्य योजना तैयार करने का भी निर्देश दिया। इस देश में कहा गया है कि छात्रों की ऑनलाइन हाजिरी रजिस्टर में दर्ज की जाएगी।

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
पीपुल्स अलायंस फॉर गुप्कर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) ने कश्मीरी पंडित कर्मचारियों से घाटी न छोडऩे की अपील जारी की। गठबंधन ने यह भी कहा कि यह कश्मीरी पंडितों का घर है और यहाँ से उनका जाना सभी के लिए दर्दनाक होगा। उन्होंने कहा कि अगर राहुल मारा गया, तो रियाज़ भी मारा गया। रियाज़ का परिवार और रिश्तेदार कहाँ जाएँगे? आपको अपना घर नहीं छोडऩा है। यह आपका घर है। यह मेरा घर है। हम इस त्रासदी को एक साथ सहन करेंगे और एक दूसरे की रक्षा करने की कोशिश करेंगे। पीएजीडी के प्रवक्ता मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी ने कहा कि एलजी सिन्हा ने प्रवास के बारे में समान विचार साझा किया।

उधर, नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता अली मोहम्मद सागर ने घटनाक्रम पर दु:ख जताते हुए कहा कि यह चिन्ता का विषय है और इस पर गौर करने की ज़रूरत है। यह समुदाय यहाँ वर्षों से रह रहा है और उन्हें वापस लाने के लिए बहुत काम किया गया है। यह बेकार नहीं जाना चाहिए। हमारी पार्टी ने भी इस पर काफ़ी काम किया है और अब जो हो रहा है, उसे देखकर दु:ख होता है।

कश्मीरी पंडित और प्रवासी मज़दूर
नब्बे के दशक की शुरुआत में कश्मीरी पंडितों के पलायन से पहले उनकी संख्या घाटी की आबादी का लगभग दो फ़ीसदी थी। नब्बे के दशक के अन्त में शोधकर्ता अलेक्जेंडर इवांस, जो बाद में भारत में ब्रिटिश उप उच्चायुक्त बन गये; के कश्मीर पर प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार, ‘एक लाख 60-70 हज़ार समुदाय में से लगभग 95 फ़ीसदी ने घाटी को छोड़ दिया, जिसे अक्सर जातीय मामले के रूप में वर्णित किया जाता है। लेकिन कश्मीर घाटी में रहने वाले छोटे अल्पसंख्यक यह निर्धारित करने में अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं कि कश्मीर किस तरह का समाज बनता है।’
आज 3,000 से भी कम कश्मीरी पंडित घाटी में हैं। वे कभी पलायन नहीं करते थे। वे यहीं रुके थे और मुसलमानों के साथ रहते थे। हालाँकि हाल के वर्षों में सरकार ने कई हज़ार कश्मीरी पंडितों को वापस लाया और उन्हें सरकार द्वारा निर्मित भवनों में रखा। इनमें से ज़्यादातर विभिन्न विभागों में कार्यरत सरकारी कर्मचारी हैं। अगर हम केंद्र सरकार के आँकड़ों पर जाएँ, तो पिछले तीन वर्षों में अधिक पंडितों ने घाटी में लौटना शुरू कर दिया था।

फरवरी में गृह मंत्रालय ने संसद में जानकारी दी कि 5 अगस्त, 2019 जब तत्कालीन पूर्ण राज्य से अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया गया था और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था; से जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों में 1,697 कश्मीरी पंडितों की नियुक्ति की गयी थी। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद को बताया कि कश्मीरी प्रवासी परिवारों के पुनर्वास के लिए जम्मू और कश्मीर सरकार ने 5 अगस्त, 2019 से 1,697 ऐसे लोगों को नियुक्त किया है और इस सम्बन्ध में अतिरिक्त 1,140 व्यक्तियों का चयन किया है। कश्मीर छोडऩे वाले पंडितों की कुल संख्या के बारे में जानकारी देते हुए राय ने कहा कि जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा उपलब्ध कराये गये आँकड़ों के अनुसार 44,684 कश्मीरी प्रवासी परिवारों (कुल 1,54,712 लोगों) को राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासी), जम्मू के कार्यालय में पंजीकृत किया गया था। बाद में अप्रैल में राय ने संसद को बताया कि लगभग 2,105 प्रवासी (कश्मीरी पंडित) प्रधानमंत्री विकास पैकेज के तहत प्रदान की गयी नौकरियों को लेने के लिए कश्मीर लौट आये थे। एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मंत्री ने कहा कि 2020-2021 में कुल 841 नियुक्तियाँ की गयीं, जबकि इसके बाद 2021-2022 में 1,264 नियुक्तियाँ की गयीं।

अगस्त, 2019 से जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ हिन्दुओं की हत्या पर राय ने कहा कि 5 अगस्त, 2019 से 24 मार्च, 2022 तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने चार कश्मीरी पंडितों और 10 अन्य हिन्दुओं सहित कुल 14 लोगों की हत्या की।
मंत्री द्वारा साझा किये गये आँकड़ों के अनुसार, 5 अगस्त, 2009 और 31 दिसंबर, 2019 के बीच तीन हिन्दुओं की हत्या की गयी। वहीं सन् 2020 में एक कश्मीरी पंडित समेत दो लोगों की, सन् 2021 में तीन कश्मीरी पंडितों (उनमें प्रसिद्ध केमिस्ट माखन लाल बिंदू) और छ: अन्य हिन्दुओं सहित नौ लोगों की हत्या की गयी। दूसरी ओर, इस साल फरवरी तक 439 आतंकवादी मारे गये। वहीं 109 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और कुल 98 नागरिक, जिनमें 84 मुस्लिम हैं; जम्मू-कश्मीर में धारा-370 के निरस्त होने के बाद से मारे गये।

पिछले साल राय ने संसद को बताया था कि सरकार ने लौटने वाले कश्मीरी प्रवासियों को आवासीय आवास प्रदान करने के लिए एक व्यापक नीति तैयार की थी, जिसमें ख़ुलासा किया गया था कि कश्मीरी पंडितों के लिए 6,000 आवासीय इकाइयों का निर्माण त्वरित गति से किया जा रहा था और 1,000 आवासीय इकाइयाँ पहले से ही बनायी जा रही थीं, जिसका इन कर्मचारियों द्वारा उपयोग किया जाता है। उन्होंने घाटी में लौटने वाले कश्मीरी पंडितों की कुल संख्या 900 परिवार के रूप में दी। लेकिन हाल ही में हुई हत्याओं ने केंद्र की परियोजना को ख़तरे में डाल दिया है। पंडित जो अभी-अभी लौटे थे, वे न केवल पलायन का विचार कर रहे हैं, बल्कि उनमें से कई तो पहले ही जा चुके हैं। इतना ही नहीं, जो कभी नहीं गये, वे अब भी घाटी छोडऩा चाहते हैं। इसने केंद्र सरकार के लिए एक मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है, जो 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 को वापस लेने के बाद से कश्मीर में सब कुछ सही होने का दावा कर रही है। हाल की घटनाओं ने इस दावे की पोल खोल दी है। एक स्थानीय समाचार पत्र में हाल के संपादकीय का हिस्सा देखें- ‘सरकार को अपने दोनों सिरों को सक्रिय करने के लिए सख़्त क़दम उठाने की ज़रूरत है’; अर्थात् हत्याएँ पूरी तरह से बन्द हो जाएँ और पंडित घाटी नहीं छोड़ें। लेकिन इस दोहरे लक्ष्य की उपलब्धि, विशेष रूप से सुरक्षा केंद्रित दृष्टिकोण से सम्भव नहीं हो पाएगी। कश्मीर पर पकड़ को मज़बूत करने की नीति की जगह इसे ढीला करना ही इसका रास्ता है।

हम कहाँ जाएँगे?
कश्मीर में जो घट रहा है, वह नब्बे के दशक की शुरुआत जैसा दिखता है। बिगड़ती स्थिति से निपटने के लिए केंद्र सरकार का एकमात्र तरीक़ा स्थिति के सुरक्षा प्रबंधन को दोगुना करना है, जिसने घाटी में घेरेबंदी जैसा माहौल बना दिया है। आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अभियानों में अभूतपूर्व सफलता के बावजूद कश्मीर में उग्रवाद अभी भी है और फल-फूल रहा है। हाल के महीनों में आतंकवादियों ने भी सुरक्षाबलों से अधिक नागरिकों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर अपनी रणनीति बदली है।

सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक और चुनौती हाइब्रिड आतंकवाद का उदय है। माना जाता है कि उग्रवादी बिना बन्दूक के रिकॉर्ड वाले युवाओं को कभी-कभार हमले के लिए भर्ती करते हैं और फिर उन्हें अपने नियमित जीवन में वापस आने देते हैं। इसने कुछ मामलों में पुलिस के लिए हत्याओं के पीछे के लोगों की पहचान करना चुनौती पूर्ण बना दिया है। इससे सुरक्षा बलों के लिए नागरिकों के मारे जाने की सम्भावना को पूरी तरह ख़त्म करना मुश्किल हो गया है।

कश्मीर में आतंकवाद अब मुख्य रूप से स्थानीय युवाओं से बना है, जो सशस्त्र युद्ध में अप्रशिक्षित हैं और उनके पास उपयोग करने के लिए कम हथियार हैं। इसलिए उन्होंने पुलिस कर्मियों पर कभी-कभार होने वाले हमलों के अलावा सुरक्षा बलों के लिए बहुत कम चुनौती पेश की है। लेकिन नागरिकों और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्यों की हत्याएँ युद्ध के मैदान को बदलकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का हथियार बन गयी हैं। संयोग से, लगभग दो दशक के बाद यह पहली बार है जब इस तरह की हत्याएँ फिर से देखने को मिली हैं। वे ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर प्रत्यक्ष केंद्रीय शासन के अधीन है और सुरक्षा का घेरा अभूतपूर्व है। कुछ विश्लेषक हत्याओं को पिछले तीन साल के घटनाक्रम के आलोक में देखते हैं, जिसमें घाटी के जनसांख्यिकीय चरित्र को बदलने की कोशिश भी शामिल है। एक कथित ‘शत्रुतापूर्ण रवैये वाले केंद्र’ के बारे में कथित रूप से घाटी के मुस्लिम बहुसंख्यक चरित्र को कमज़ोर करने की साज़िश रचने की बातें घाटी की फ़िज़ाँ में अब आम हैं।

यह भूमि और पहचान के मुद्दों को पूरी तरह से सामने ला रहा है, जो अब तक चल रहे संघर्ष के कमोबेश निष्क्रिय तत्त्वों को बड़े पैमाने पर राजनीतिक आयामों के साथ संचालित करते हैं। यह न केवल नई दिल्ली के ख़िलाफ़, बल्कि उन पंडितों के ख़िलाफ़ भी उग्रवादियों को खड़ा कर रहा है, जिनके पास अपने मज़बूत तर्क हैं और अलगाववादी उग्रवाद में पुनरुत्थान की स्थिति में भविष्य की उड़ान के ख़िलाफ़ अपनी मातृभूमि के लिए एक सम्मानजनक वापसी चाहते हैं। लेकिन सुरक्षाकर्मियों द्वारा संरक्षित पंडित टाउनशिप की माँग मुसलमानों में गहरी आशंका पैदा कर रही है। सरकार द्वारा घोषित कुछ उपायों में अधिवास क़ानून शामिल है, जिसे अप्रैल, 2020 में पेश किये जाने के बाद कश्मीर को बाहरी लोगों द्वारा बंदोबस्त के लिए खोल दिया गया था। नया क़ानून किसी भी व्यक्ति को अधिवास का दर्जा देने का अधिकार देता है, जो इस क्षेत्र में 15 साल तक रहा है। केंद्र सरकार के अधिकारियों और उनके बच्चों के लिए यह अवधि सिर्फ 10 साल और क्षेत्र में हाई स्कूल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए सात साल है। कश्मीर प्रवासियों की अचल सम्पत्तियों से सम्बन्धित शिकायतों के समयबद्ध निवारण के लिए पिछले साल सरकार के क़दम ने कश्मीर में चिन्ता बढ़ा दी है। क़ानून का उद्देश्य मुख्य रूप से सन् 1990 के बाद से कश्मीरी पंडितों द्वारा सम्पत्तियों की संकट में बिक्री ($खौफ़ के कारण जल्दबाज़ी में बिक्री) को रद्द करना है। नब्बे के दशक में पंडित सम्पत्तियों के ख़रीदारों को उन्हें उसी $कीमत पर वापस करना होगा, जो उन्होंने उस समय भुगतान किया था, अगर उनके विक्रेता दावा करते हैं कि उन्होंने ऐसा दबाव में किया है। हालाँकि इसने आबादी के एक वर्ग के बीच गहरी नाराज़गी पैदा कर दी है, जो पहले ही जनसांख्यिकीय परिवर्तन की आशंकाओं से भरे हैं।

इस भयावह माहौल में हत्याएँ हुई हैं, जिससे पंडित एक बार फिर अपनी मातृभूमि में वापस बसने के अपने लंबे समय से चले आ रहे सपने को टूटता हुआ देख रहे हैं। पिछले एक साल में सरकार ने घाटी में पंडितों को उनकी सुरक्षा के लिए आश्वस्त करने और रुक-रुककर होने वाली हत्याओं के मद्देनज़र उन्हें भागने से रोकने के लिए संघर्ष किया है। ताज़ा हत्याओं ने उसके काम को और भी कठिन बना दिया है।

प्रधानमंत्री समझ ही नहीं रहे जनता उनसे क्या चाहती है : राहुल गांधी

अग्निपथ योजना, कृषि कानून, नोटबंदी और जीएसटी के विरोध का उदाहरण देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शुक्रवार को केंद्र सरकार पर हमला करते हुए कि देश की जनता क्या चाहती है, ये बात प्रधानमंत्री नहीं समझते क्योंकि उन्हें अपने मित्रों की आवाज़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता।

एक ट्वीट में केंद्र की अग्निपथ योजना, जिसका देश भर में विरोध देखने को मिल रहा है, पर टिप्पणी करते हुए राहुल गांधी ने सीधे पीएम मोदी पर निशाना साधा है। इस ट्वीट में कांग्रेस नेता ने मोदी सरकार की चार योजनाओं का उल्लेख करते हुए कहा – ‘अग्निपथ योजना को युवाओं ने नकारा, कृषि कानून को किसानों ने नकारा, नोटबंदी को अर्थशास्त्रियों ने नकारा, जीएसटी को व्यापारियों ने नकारा’। ‘

गांधी ने लिखा – ”देश की जनता क्या चाहती है इसके बाद भी पीएम मोदी नहीं समझ रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपने ‘मित्रों’ की आवाज़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता है। राहुल इससे पहले भी अग्निपथ योजना को लेकर सरकार बोल चुके हैं।

उन्होंने एक दिन पहले ट्वीट में लिखा था – ‘ न कोई रैंक, न कोई पेंशन, न 2 साल से कोई सीधी भर्ती, न 4 साल के बाद स्थिर भविष्य, न सरकार का सेना के प्रति सम्मान। देश के बेरोजगार युवाओं की आवाज़ सुनिए, इन्हें ‘अग्निपथ’ पर चला कर इनके संयम की ‘अग्नि परीक्षा’ मत लीजिए, प्रधानमंत्री जी।’

राहुल ही नहीं पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी भी अग्निपथ योजना के विरोध में बोल चुकी हैं। उन्होंने भाजपा सरकार पर सेना की भर्ती को प्रयोगशाला बनाने का आरोप भाजपा सरकार पर लगाया था।

प्रियंका गांधी ने एक ट्वीट में कहा – ’24 घंटे भी नहीं बीते कि भाजपा सरकार को नई आर्मी भर्ती का नियम बदलना पड़ा। मतलब, योजना जल्दबाजी में युवाओं पर थोपी जा रही है। @narendramodi जी इस स्कीम को तुरंत वापस लीजिए। एयरफोर्स की रुकी भर्तियों में नियुक्ति और रिजल्ट दीजिए। सेना भर्ती को (आयु में छूट देकर) पहले की तरह कीजिए।’

राहुल गांधी का ट्वीट –
@RahulGandhi
अग्निपथ – नौजवानों ने नकारा
कृषि कानून – किसानों ने नकारा
नोटबंदी – अर्थशास्त्रियों ने नकारा
GST – व्यापारियों ने नकारा
देश की जनता क्या चाहती है, ये बात प्रधानमंत्री नहीं समझते क्योंकि उन्हें अपने ‘मित्रों’ की आवाज़ के अलावा कुछ सुनाई नहीं देता।

गहलोत का जादू बरक़रार

प्रदेश में राजयसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनाव में तीन पर जीत हासिल कर राजनीति के चाणक्य तथा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और ज़्यादा मज़बूत होकर उभरे हैं। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गाँधी और अन्य दूसरे नेताओं की नज़र में गहलोत का क़द और बढ़ गया है। चुनावों को लेकर भले ही सियासत पैंतरे बदलती रही। लेकिन गहलोत को जीत को सहेजना था और साधना था, इसलिए उन्होंने हर चुनौती का सामना करते हुए सियासी शतरंज पर फ़तेह का परचम लहरा दिया। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गाँधी को पूरा भरोसा था कि चुनौतियों की कसौटी पर गहलोत ही खरे साबित हो सकते हैं। विश्लेषक कहते हैं कि यह अशोक गहलोत के शानदार उदय की अदभुत शुरुआत है। उन्होंने अपने आपको नयी भूमिका में स्थापित कर लिया है और राजस्थान में एक सुनहरे युग का सूत्रपात करने की डगर पर दमदार सफ़र शुरू कर दिया है। गहलोत के मिज़ाज और सियासी सूझबूझ का फ़लसफ़ा समझने की कोशिश करें, तो वे स्वभाव से विनम्र और अच्छे जन-सम्पर्क वाले राजनेता माने जाते हैं। उनकी सियासी सूझबूझ और गणित को समझना आसान नहीं है। फ़िलहाल तो बेचैनियाँ पायलट ख़ेमे में ही दिखायी देती हैं। क्योंकि सियासत के बाज़ीगर गहलोत की सियासी दानिशमंदी पर पकड़ बेमिसाल है।

यही नहीं, जादूगर के नाम से विख्यात गहलोत ने विरोधियों को एक बार फिर अपना लोहा मनवा दिया। अब विरोधियों के मुँह स्वत: ही बन्द हो गये। चुनाव से ठीक पहले तक भाजपा समर्थित उम्मीदवार सुभाष चंद्रा ने दावा किया था कि कांग्रेस ख़ेमे से आठ विधायक उसके पक्ष में मतदान करेंगे। लेकिन गहलोत ने अपनी जादुई कला से सभी 13 निर्दलीयों, बीटीपी के दो सीपीआईएम के दो और आरएलडी का एक मत लेने के साथ ही उलटा भाजपा में क्रॉस वोटिंग तक करवा दी। गहलोत ने चुनावों से पहले कई बार दावे किये थे कि उनके पास 126 मत हैं, जो अन्त तक रहेंगे। कांग्रेस के समर्थित सभी विधायक न तो बिके और न ही झुके। राज्यसभा के इस चुनाव की कमान ख़ुद अशोक गहलोत के अपने हाथों में रखी थी। कुछ विधायकों में जो नाराज़गी थी, उनको भी सुना और उसे दूर भी किया। उदयपुर में की गयी बाड़ेबंदी में भी अपने साथियों के बीच रहे और एक-एक विधायक से कई बार सम्पर्क भी किया। यहाँ तक कि मतदान के दौरान भी ख़ुद गहलोत एक एजेंट के रूप में बैठे और एक-एक मत पर नज़र भी रखी। राज्यसभा में प्रदेश की सभी 10 सीटों पर भाजपा का क़ब्ज़ा था; लेकिन अब गहलोत चाणक्य नीति से तीन पर कांग्रेस का क़ब्ज़ा हो गया। इस चुनाव अभियान में गहलोत ने न केवल बीमार विधायकों के घर या अस्पताल में जाकर मुलाक़ात की, बल्कि रोज़ाना उनके स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा। जब गहलोत को पता लगा कि कांग्रेस के तीसरे प्रत्याशी प्रमोद कुमार तिवारी संकट में आ सकते हैं, तो उन्होंने अपने अनुभव और जादुई कला से भाजपा के वोटों में सेंध भी मारी और उसमें सफल भी हुए। भाजपा की विधायक शोभारानी का वोट कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद कुमार को जीता कर पिछले दो साल में ही मुख्यमंत्री अषोक गहलोत तीसरी बार हॉर्स ट्रेडिंग को मात दे दी। राजनीतिक हलक़ों में इसे गहलोत की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।

प्रदेश में राज्यसभा में 10 सांसद थे, जिसमें सात भाजपा एवं तीन कांग्रेस से है। चार सांसद ओम माथुर, हर्षवर्धन सिंह, के.जे. अल्फांस एवं राजकुमार वर्मा का कार्यकाल 4 जुलाई को पूरा हो रहा था। ख़ाली हो रही इन्हीं चार सीटों पर 10 जून को चुनाव हुए थे। कांग्रेस के तीन और भाजपा के एक सीट जीतने से भी राज्यसभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या बढ़ गयी। यानी राज्यसभा में कांग्रेस का पलड़ा फिर से थोड़ा भारी हो गया है।

राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक और प्रमोद तिवारी को और भाजपा ने घनश्याम तिवाड़ी को मैदान में उतारा था। इसके अलावा भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार सुभाश चन्द्रा को समर्थन दिया था। चन्द्रा के चुनाव मैदान में आने से मुक़ाबला का$फी रोचक हो गया था। इसे बाद कांग्रेस-भाजपा ने ख़रीद-फरोख़्त के चलते क्रॉस वोटिंग के डर से अपने विधायकों की बाड़ेबंदी में ले लिया था। इसके बावजूद भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने क्रॉस वोटिंग की। बताया जा रहा है कि कांग्रेस विधायक परसराम मोरदिया का वोट ख़ारिज हो गया। कांग्रेस ने माकपा, बीटीपी और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से तीनों सीटों पर बाज़ी मार ली।

मुख्यमंत्री के कंधे पर इस चुनाव की ज़िम्मेदारी थी। नाराज़गी के चलते चुनाव की घोषणा के साथ ही उन्होंने विधायकों को साधना शुरू कर दिया था। कुछ विधायकों की अपने ख़िलाफ़ बयानबाज़ी के बावजूद एक जादूगर की तरह उन्होंने सभी को साथ ले लिया। कांग्रेस के पास मात्र 108 वोट थे। ऐसे में 15 वोटों की और ज़रूरत थी। गहलोत ने बहुमत से भी अधिक 18 वोट जुटा लिये।

इस जीत के बाद अब वे प्रदेश में सरकार को और मज़बूती के साथ चलाएँगे। भाजपा में चुनाव की कमान किसी एक नेता के हाथ में नहीं थी। नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ मिलकर सँभाल रहे थे। ये तीनों नेता अपने ख़ेमें से वोट क्रॉस होने से भी नहीं रोक सके। वहीं भाजपा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के लिए भी वोट नहीं जुटा सके।

भाजपा कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ख़ास मानी जाती है। पूर्व मुख्यमंत्री राजे ने सन् 2017 में उप चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा प्रत्याशी बनाकर जीत दर्ज की थी। उसे बाद सन् 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ा और विधानसभा पहुँची। वर्ष 2020 में विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री राजे के समर्थक चार विधायक विधानसभा की वोटिंग से ग़ायब रहे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में कई तरह की अटकलें लगायी जाती रही है।
आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस केे लिए ये नतीजे बूस्टर डोज माने जा रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस देश भर में बिखरी-बिखरी सी नज़र आ रही थी; लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान में न केवल एका रखा, बल्कि दूसरी पार्टियों और निर्दलियों को भी जोड़े रखा और नाराज़गी दूर की। इन नतीजों से कांग्रेस नेताओं व कार्यकर्ताओं में जोश देखने को मिलेगा।

चंद्रा के दावे बेकार

राज्यसभा चुनाव हारे निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा ने वोटिंग से तीन दिन पहले यहाँ प्रेसवार्ता कर दावा किया था कि उनके पास भाजपा के तीस कांग्रेस के आठ और आरएलपी, अन्य दलों-निर्दलीयों के नौ विधायकों का समर्थन है; लेकिन चंद्रा के दावे फेल हो गये। भाजपा के पूरे 30 वोट तक उनको नहीं मिल पाये। कांग्रेस और अन्य दलों निर्दलीयों के वोट तो दूर की कौड़ी साबित हुए। सिर्फ़ आरएलपी के तीन वोट चंद्रा को मिल सके। आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने तीनों विधायकों के वोट देने के बाद कहा कि उन्होंने अपना वादा निभा दिया है।
कांग्रेस नेताओं ने दावा किया था कि उनके पास 126 विधायकों का समर्थन है। कांग्रेस प्रत्याशियों को उम्मीद से ज़्यादा वोट मिले। तीनों प्रत्याशियों को कुल 127 वोट मिले। हालाँकि एक वोट ख़ारिज हो गया। इस वजह से वोट का आँकड़ा वापस 126 पहुँच गया। वहीं भाजपा और भाजपा समर्थित प्रत्याशी को 74 वोट मिलने के दावे थे; लेकिन 73 वोट ही मिल सके।

घनश्याम तिवाड़ी इस जीत से लम्बे समय बाद फिर से सियासत की मुख्यधारा में शामिल हो गये। तिवाड़ी 2020 में वापस पार्टी में तो आ गये थे; लेकिन उन्हें कोई बड़ी ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी। अब तिवाड़ी को और भी ज़िम्मेदारियाँ मिल सकती हैं।
भाजपा ने अपने 71 विधायकों के वोट देने के लिए एक दिन पहले ही रणनीति तैयार कर ली थी। इसके तहत 41 वोट घनश्याम तिवाड़ी और तीस वोट निर्दलीय प्रत्याशी सुभाश चंद्रा को दिलवाने का निर्णय हुआ था। लेकिन क्रॉस वोटिंग को देखते हुए पार्टी ने वोट देने के दौरान ही अपनी रणनीति बदल दी। भाजपा प्रत्याशी घनश्याम तिवाड़ी को 41 वोट की जगह 43 भाजपा विधायकों के वोट डलवाये गये। सुभाश चंद्रा को 28 वोट डाले जाने थे; लेकिन शोभा रानी कुशवाहा का वोट कांग्रेस प्रत्याशी को चला गया। इस वजह से सुभाष चंद्रा को 27 वोट ही मिल सके। आरएलपी के तीन विधायकों ने ज़रूर चंद्रा को दिये, जिस वजह से उन्हें कुल 30 वोट मिले।

शोभा कुशवाहा के सवाल

कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद तिवाड़ी के समर्थन में मतदान करने पर पार्टी की ओर से कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू करने पर धौलपुर की भाजपा विधायक शोभारानी कुशवाहा ने एक लिखित प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसमें उन्होंने भाजपा नेतृत्व से सवाल किये हैं।
उन्होंने इसमें कहा है कि वर्ष 2012 में धौलपुर उपचुनाव के लिए मैं और मेरा कुशवाहा समाज भाजपा के पास नहीं गये थे, बल्कि ये लोग ख़ुद चलकर के आये थे, और इन लोगों ने हमारे समाज के प्रदेश अध्यक्ष एवं ज़िम्मेदार 20 बुज़ुर्ग और युवाओं सामने कुछ कमिटमेंट किये थे, उनमें से एक कमिटमेंट पूरा नहीं हुआ। इसके अलावा धौलपुर नगर परिषद् चेयरमैन चुनाव में मेरे समर्थक और बीजेपी के जन्मजात कार्यकर्ता एवं अग्रवाल समाज के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश गर्ग की बहू नगर परिषद् चेयरमैन का प्रत्याशी बनाया गया था। हमारे पास में जीतने के लिए संख्या भरपूर थी; लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने हमारे जीते हुए भाजपा पार्षदों को कांग्रेस को देकर कांग्रेस का चेयरमैन बनवा दिया, जिसकी जानकारी जयपुर से लेकर दिल्ली तक दी गयी; लेकिन उन बड़े नेताओं को बर्ख़ास्त करना तो दूर की बात है, उनके सामने किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उनको नोटिस भी दे सके।

उनका कहना है कि इसके अतिरिक्त हाल ही में सम्पन्न हुए पंचायत समिति चुनाव में मैंने धौलपुर पंचायत समिति से पंचायत समिति प्रधान के लिए लोधा समाज के नवल लोधा को भाजपा प्रधान प्रत्याशी बनाया था। लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं ने जानबूझकर अपने ही कार्यकताओं से उसको हरवा दिया। उनका कहना है कि भाजपा की तरफ़ से राज्यसभा चुनाव में केवल एक उम्मीदवार थे घनश्याम तिवाड़ी और हमको विश्वास पात्रों में न रखते हुए यह कहा गया कि आप लोगों को निर्दलीय उम्मीदवार को वोट करना है और वह भी उस व्यक्ति के लिए, जिसने 2014 में हमारे ख़िलाफ़ पूरे देश में अपने चैनल पर झूठी अफ़वाह फैलायी थी और वह व्यक्ति पैसे के दम पर पूरे नंबर न होने के बावजूद भी खुलेआम क्रॉस वोटिंग की चर्चा कर रहा था। ऐसे व्यक्ति को हमारे समर्थकों ने स्वीकार नहीं किया।

रामायण सर्किट पर 21 से चलेगी ‘भारत गौरव’ ट्रेन, 18 दिन में नेपाल की भी यात्रा

रेल मंत्रालय की भारत गौरव पर्यटक ट्रेन चलाने की योजना अब हकीकत बनने जा रही है। इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईआरसीटीसी) भारत की पहली ‘भारत गौरव ट्रेन’ 21 जून से शुरू हो रही है। यह ट्रेन राजधानी दिल्ली से ‘रामायण सर्किट’ पर चलेगी और इसकी अवधि 18 दिन की होगी। यह ट्रेन केंद्र सरकार की ‘देखो अपना देश’ योजना का हिस्सा है और पहले सफर में 500 यात्री होंगे।

भारत गौरव ट्रेन रामायण सर्किट के स्वदेश में स्थित स्थलों के अलावा नेपाल स्थित जनकपुर में राम जानकी मंदिर का भ्रमण भी करवाएगी। आईआरसीटीसी की भारत गौरव ट्रेन में एसी तृतीय श्रेणी के कुल 10 कोच होंगे, जिसमें पहली यात्रा के बाद की यात्राओं में हर बार कुल 600 श्रद्धालु यात्रा कर सकेंगे।

इस ट्रेन का पहला पड़ाव श्रीराम के जन्म स्थान अयोध्या होगा और वहां से चलते हुए यह अपने अंतिम पड़ाव तेलंगना स्थित दक्षिण अयोध्या के नाम से जाने जाने वाले भद्राचलम पहुंचेगी। अपनी पूरी यात्रा के दौरान ट्रेन करीब 8000 किलोमीटर की यात्रा कर 18वें दिन दिल्ली वापस लौटेगी।

भारत गौरव पर्यटक ट्रेन, भारत सरकार की पहल ‘देखो अपना देश’ के तहत घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए चलायी जा रही है। आईआरसीटीसी ने इस 18 दिन की यात्रा के लिए 62,370 रूपये प्रति व्यक्ति शुल्क निर्धारित किया है। भारत गौरव ट्रेन की इस पहली यात्रा के लिए आईआरसीटीसी प्रथम 100 यात्रियों की बुकिंग पर 10 फीसदी की डिस्काउंट देगा। भुगतान के लिए कुल राशि को 3,6,9,12,18 और 24 महीने की किस्तों में पूरा किया जाने का भी प्रावधान है। किस्तों की यह सुविधा डेबिट और क्रेडिट कार्ड के माध्यम से बुकिंग करने पर उपलब्ध रहेगी।

टूर पैकेज अंतर्गत यात्रियों को रेल यात्रा के अतिरिक्त स्वादिष्ट शाकाहारी भोजन, बसों द्वारा पर्यटक स्थलों का भ्रमण, एसी होटलों में ठहरने की व्यवस्था, गाइड और इंश्योरेंस आदि की सुविधाएं भी उपलब्ध कराई गई है। कोविड को ध्यान में रखते हुए इस यात्रा की बुकिंग के लिए कम से कम 18 वर्ष की आयु होना जरूरी है साथ ही यात्री को कोविड टीके की दोनों डोज अनिवार्य होगी।

ट्रेन को भारत का गौरव के बहुरूपदर्शक के रूप में डिजाइन किया गया है। विश्व धरोहर पर आधारित पर्यटन को दर्शाती हुई रेल कोच की बाहरी दीवारों पर विश्व विरासत स्थलों से लेकर आधुनिक स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूनों को शामिल किया गया है। ट्रेन में दो डिब्बे विशेष रूप से प्राचीन आर्ट ऑफ लिविंग- योग को समर्पित है।

साथ ही ट्रेन में देश के विभिन्न शास्त्रीय और लोक नृत्य रूपों जैसे कथकली, भरतनाट्यम, भांगड़ा और गरबा को बढ़ावा देने के लिए बाहरी हिस्सा सुसज्जित किया गया है। कोच के बाहरी हिस्से में विभिन्न प्रांतों के परिधानों स्नेक बोट रेस, होला मोहल्ला, होली और बरसाना को भी प्रदर्शित किया गया है।