Home Blog Page 123

काबुल बम धमाकों में 13 अमेरिकी समेत 72 लोगों की मौत 150 घायल

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुवार को एयरपोर्ट पर कर्इ आत्मघाती धमाके हुए थे। जिसकी जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएसआई-के ने ली है

एयरपोर्ट पर एकत्रित लोग तालिबान शासन से देश छोड़कर भागने के लिए बेताब थे। इसी बीच यहां हमले हुए। काबुल में हुए इन धमाकों में 13 अमेरिकी सैनिकों व 72 लोगों की मौत और 150 लोग घायल हुए है।

तालिबान अधिकारी का कहना है कि, अफगानों की संख्या 60 से बढ़कर 72 हो गर्इ है, इसमें 28 तालिबान सदस्य भी शामिल है। मारे गए लोगों में 13 अमेरिकी सेना सदस्य भी शामिल है।

काबुल एयरपोर्ट पर हुए हमलों की जिम्मेदारी आईएसआई-के ने ली है जिसकी सूचना आतंकी संगठन ने टेलीग्राम अकाउंट पर साझा की।

आपको बता दें, जो बाइडेन द्वारा निर्धारित 31 अगस्त समय सीमा तक अमेरिकी सेनाओं को अफगानिस्तान को वापसी करा रही है।

 

Tripura Congress leader Pijush Kanti Biswas quits Congress, may join Trinmool Congress

Tripura Congress leader Pijush Kanti Biswas has resigned as chief of the party’s state unit and “retired from politics”, he said on his tweeter handle on Saturday afternoon.

Pijush Biswas’ resignation is yet another blow to the Congress and its attempts to reclaim power in the northeastern states.

As unfortunate as his stepping down is, it could become worse for the party – sources indicate Pijush Biswas, who is close to former Congress leader Sushmita Dev, is likely to join the Trinamool.

“With sincere gratitude I thank all Congress leaders, supporters for your cooperation during my tenure as TPCC President (acting). Today I have resigned from the post of President and retired from politics as well. My sincere gratitude towards Sonia Gandhiji,” Mr Biswas tweeted.

Earlier this week, Sushmita Dev, chief of the Congress’ women’s wing has left the party and joined the Trinamool Congress.

 

ओलंपिक 2020 में ऐतिहासिक जीत दर्ज कराने वाले नीरज चोपड़ा के नाम पर हो सकता है पुणे में स्टेडियम

टोक्यो ओलंपिक 2020 में भाला फेंक स्पर्धा में शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल जीत कर नीरज चोपड़ा ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। नीरज भारत के ऐसे एथलीट है जिन्होंने भाला फेंक प्रतिस्पर्धा में इतिहास रचा है।

नीरज चोपड़ा की इस जीत को यादगार बनाने के लिए उनके नाम पर स्टेडियम बनने की खबर सामने आ रही है। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह 23 अगस्त को पुणे का दौरा करेंगे। डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड टेक्नोलॉजी व आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट (एएसआई) जायेंगे।

रक्षा जनसंपर्क अधिकारी द्वारा जारी की गई विज्ञप्ति में बताया गया है कि ऐसी संभावना जताई जा रही है कि आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट की यात्रा के दौरान रक्षा मंत्री सिंह परिसर में स्टेडियम का नाम बदलकर नीरज चोपड़ा आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट रखा जा सकता है।

इस प्रतियोगिता में नीरज ने पहले थ्रो राउंड में 87.03 मीटर तक भाला फेंका था। साथ ही दूसरे थ्रो में उन्होंने 87.58 मीटर भाला फेंका जो की फाइनल स्कोर बना। 23 साल की आयु में इतिहास रचने वाले नीरज चोपड़ा भारतीय सेना में नायक सूबेदार भी है।

 

झारखण्ड सरकार गिराने की साज़िश या कुछ और मामला!

झारखण्ड की हेमंत सरकार को गिराने के लिए विधायकों की ख़रीद-फरोख़्त से राज्य की राजनीति में भूचाल आता, उसके पहले ही तीन लोग पुलिस की गिरफ़्त में आ गये। यूँ तो इस मामले में आरोपियों के बयान और तीन विधायकों का नाम सामने आने के अलावा अभी तक कुछ भी ख़ुलासा नहीं हुआ है। लेकिन राजनीतिक गलियारे में इस कांड को लेकर चर्चा ज़ोरों पर है। इसकी तपिश 3 सितंबर से शुरू होने वाले झारखण्ड विधानसभा के सत्र में दिखेगी। झामुमो के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस और राजद गठबंधन वाली हेमंत सरकार को गिराने की साज़िश का आरोप भाजपा पर लग रहा है। लेकिन एक निर्दलीय और कांग्रेस के दो विधायकों के नाम सार्वजनिक होने के बाद मामला दिलचस्प हो गया है। जानकार तो यह भी कर रहे हैं कि इस खेल में इन तीन विधायकों के अलावा परदे के पीछे सत्ताधारी दल के भी कई विधायक हैं। बहरहाल इस कथित साज़िश को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं।
झारखण्ड की राजधानी रांची के एक होटल से 22 जुलाई को राज्य पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये अभिषेक दुबे, अमित सिंह और निवारण प्रसाद महतो ने मौज़ूदा गठबंधन की हेमंत सरकार को गिराने की साज़िश का बयान दिया। उन्होंने विधायकों के नाम लिये बग़ैर ख़ुलासा किया कि वे कांग्रेस विधायकों के सम्पर्क में थे। साथ ही बताया कि यह साज़िश महाराष्ट्र भाजपा के नेता चंद्रशेखर राव बावनकुले और चरण सिंह ने व्यवसायी जयकुमार बेलखेड़े के साथ मिलकर रची है। वह तीन विधायकों को लेकर दिल्ली गये। दिल्ली में द्वारिका स्थित होटल विवांक में भाजपा के कुछ नेताओं से मुलाक़ात करवायी। विधायकों को अग्रिम राशि के तौर पर एक करोड़ रुपये देने थे। जब उन्हें राशि नहीं मिली, तो तीनों विधायक नाराज़ होकर वापस लौट गये। इसके बाद फिर से विधायकों से सम्पर्क शुरू हुआ। इसी सिलिसले में आरोपी रांची स्थित होटल में रुके थे। इन सभी बातों के तीनों आरोपियों ने सुबूत भी दिये हैं। पुलिस ने तीनों आरोपियों के ख़िलाफ़ राजद्रोह, धोखाधड़ी, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट जैसे कई मामलों के तहत मामला दर्ज किया है। लेकिन दिल्ली जाने के हवाई टिकट मिलने, सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें वायरल होने और होटल में जाने के सुबूतों की बिना पर कांग्रेस विधायक इरफ़ान अंसारी व उमशंकर अकेला और निर्दलीय विधायक अमित कुमार यादव का नाम निकलकर सामने आया। चर्चा है कि इस कांड का ख़ुलासा कांग्रेस के ही विधायक जयमंगल सिंह द्वारा रांची के एक थाने में सरकार गिराने की साश की एफआईआर दर्ज कराने के कारण हुआ। हालाँकि एफआईआर में भी किसी का नाम नहीं है। इसी एफआईआर के बाद रांची के होटल से तीन लोग पकड़े गये। विधायक दल के नेता आलमगीर ने कह रहे हैं कि पुलिस मामले की जाँच कर रही, सच्चाई सामने आ जायेगी।

कांग्रेस का आरोप और सफ़ाई
हमेशा की तरह कांग्रेस ने भाजपा पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने तो यहाँ तक कह दिया कि भाजपा बंगाल जीत जाती, तो झारखण्ड सरकार को खा जाती।
सरकार गिराने के मामले में भाजपा पर बहुत-से आरोप हैं। लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस में अंदरूनी कलह कम नहीं है। सरकार के गिरने की चर्चा जब भी आती है, तो सबसे कमज़ोर कड़ी कांग्रेस विधायकों को ही माना जाता है। इसकी मुख्य वजह पार्टी के राष्ट्रीय व प्रदेश नेतृत्व से उनकी नाराज़गी मानी जा रही है। सरकार से नाराज़गी तो है ही। विधायकों में असन्तुष्टि इस बात से ज़ाहिर है कि वे अपने ही प्रदेश अध्यक्ष, मंत्री और सरकार के ख़िलाफ़ बोलने से भी नहीं चूकते। हालाँकि कांग्रेस विधायक दल नेता आलमगीर आलम ने तो यह तक कह दिया कि कोई भी कहीं जा सकता है। साथ जाने का मतलब यह तो नहीं कि सरकार गिराने की साज़िश चल रही थी। हमारे विधायक एकजुट हैं। गठबंधन की सरकार मज़बूत है और अपना कार्यकाल पूरा करेगी। वहीं कांग्रेस के दोनों विधायक इरफ़ान अंसारी और उमाशंकर अकेला ख़ुद को साज़िश के तहत फँसाने की बात कहकर ख़ुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बता रहे हैं। वे दिल्ली जाने की वजह व्यक्तिगत कार्य बता रहे हैं।

भाजपा पर सन्देह की वजह
जिन राज्यों में भाजपा विपक्ष में अच्छी स्थिति में है, वहाँ सरकार गिराने का आरोप उस लगता रहा है। मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल इसके गवाह हैं। हालाँकि भाजपा सभी आरोपों का हमेशा खण्डन करती रही है। झारखण्ड में सरकार गठन के लिए 41 विधायक चाहिए। मौज़ूदा सरकार के पास झामुमो के 30, कांग्रेस के 18 (झाविमो से गये प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को मिलाकर), राजद का एक और राकांपा के एक विधायक को मिलाकर 50 विधायकों का समर्थन है। सीपीआई और दोनों निर्दलीय विधायक स्पष्ट रूप से सरकार के साथ नहीं हैं। हालाँकि दोनों निर्दलीय विधायकों ने राज्यसभा में भाजपा उम्मीदवार का साथ दिया था। भाजपा के 26 विधायकों (झाविमो से गये बाबूलाल मरांडी को मिलाकर) के साथ मुख्य विपक्षी दल है। भाजपा का गठबंधन आजसू के साथ है, जिसके दो विधायक हैं। यानी भाजपा को सरकार बनाने के लिए कम-से-कम 13 विधायकों के समर्थन की ज़रूरत होगी। वहीं सरकार को अल्पमत में लाने के लिए कम-से-कम 10 विधायकों को तोडऩा होगा।

भाजपा कांग्रेस पर ही आक्रामक
इस प्रकरण को लेकर कांग्रेस दो हिस्सों में बँटी है। एक हिस्सा सरकार के साथ मिलकर 20 सूत्रीय कार्यक्रम और निगरानी समिति के बँटवारे के ज़रिये इस मामले को शान्त करने और टिप्पणी से बचने के प्रयास में लगा है। वहीं दूसरे हिस्से के लोग कांग्रेस की फ़ज़ीहत और बदनामी से नाराज़ हैं। वे सरकार को बाहरी समर्थन देकर मामले का पटाक्षेप चाहते हैं। कांग्रेस विधायक दीपिका पांडेय कह रही हैं कि कांग्रेस का चीरहरण हो रहा है।
वहीं भाजपा कांग्रेस पर ही आक्रामक रवैया अपनाये हुए है। भाजपा नेताओं का कहना है कि सरकार के गठबंधन दलों में मतभेद है। सभी एक-दूसरे के ख़िलाफ़ हैं। यह सरकार ख़ुद गिर जाएगी। भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कह रहे हैं कि अगर पकड़े गये तीनों आरोपी हैं, तो तीनों विधायक कैसे आरोपी नहीं हैं? पुलिस उनके ख़िलाफ़ मामला दर्ज क्यों नहीं कर रही?
प्रकरण पर सवाल
झारखण्ड सरकार गिराने की साज़िश और विधायकों के ख़रीद-फरोख़्त मामले में सवालों की झड़ी लग रही है। मसलन, तीनों विधायकों का एक साथ जाने का कार्यक्रम कैसे बन गया? तीनों का एक ही पीएनआर पर हवाई टिकट कैसे बुक हुआ? तीनों विधायक दिल्ली में द्वारिका स्थित होटल विवांता में क्या कर रहे थे? दिल्ली में किन भाजपा नेताओं से मुलाक़ात हुई? इरफ़ान, अकेला और अमित साज़िश की बात कर रहे हैं। आख़िर ये साज़िशकर्ता कौन हैं? तीन विधायकों से सरकार गिर नहीं सकती है, तो क्या इस कांड में और भी विधायक हैं? और अगर हैं, तो कौन-कौन हैं? एफआईआर दर्ज कराने वाले विधायक जयमंगल सिंह को किस-किस पर शक था? इस पूरे प्रकरण का मुख्य किरदार कौन है? मुम्बई के दो नेताओं का झारखण्ड से क्या लेना-देना? उनका भाजपा में क्या किरदार है और कितनी पहुँच है? इन सवालों का जवाब देने से सभी दल कतरा रहे हैं, तो पुलिस जवाब तलाशने में धीमी गति से काम कर रही है।
ठंडे बस्ते में मामला!
निर्दलीय विधायक सरयू राय ने इस प्रकरण को लेकर एक ट्वीट में लिखा- ‘विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त से झारखण्ड में सरकार गिराने का बहु-प्रचारित मामला अंतत: राजनीतिक नादानी का नायाब उदाहरण साबित होगा। जाँच अधिकारी अपना काम पूरा कर लेंगे। सम्भव है कि निश्चित निष्कर्ष पर भी पहुँच जाएँगे। मगर इसके पीछे की असली बात सामने लाने में रुचि न सरकार की होगी, न प्रतिपक्ष की।’
सरयू राय की यह बात धीरे-धीरे सही भी लगने लगी है। यह सोचने वाली बात है कि अगर कोई व्यक्ति सरकार गिराने के लिए विधायकों को लेकर दिल्ली जाएगा, तो वह हवाई अड्डे से तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल करेगा? पुलिस की कहानी कितनी हास्यास्पद है?
इस बात का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता है कि रांची के एक होटल में अपनी असली पहचान के साथ विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए कोई रुकेगा और तोलमोल करेगा? अभी तक जो भी बातें सामने आयीं हैं, वो सीधे-सीधे गले नहीं उतर रहीं।
दिल्ली और मुम्बई से पुलिस घूमकर वापस लौटी, पर कोई अधिकारिक बयान नहीं दे रही है। अभी तक जिन तीन विधायकों के नाम सामने आये हैं, उनसे कोई पूछताछ नहीं हुई है।
सूत्रों की मानें, तो पुलिस भी मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कोशिश कर रही है। हालाँकि इस मामले में न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दाख़िल की गयी है। अगर न्यायालय का हस्तेक्षप नहीं हुआ, तो हो सकता है कि इस कांड पर से परदा न भी उठे।

यह गठबन्धन के अंतर्विरोध का सबसे निकृष्ट उदाहरण है। झामुमो कांग्रेस को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। सत्ता के लिए कांग्रेस कितना समझौता करेगी? कांग्रेस पार्टी कितने दिन अपमान सहती है? यह झारखण्ड की जनता देखना चाहती है। सरकार गिराने की साज़िश और विधायकों की ख़रीद-फ़रोख़्त एक स्क्रिप्टेड स्टोरी से ज़्यादा कुछ भी नहीं है। इस स्क्रिप्टेड स्टोरी के लेखक ही सारा माजरा बता सकते हैं।
दीपक प्रकाश,भाजपा प्रदेश अध्यक्ष

अपने विधायकों से बातचीत करके प्रथम दृष्टया विधायक दल के नेता को जो लगा, उन्होंने मीडिया में वह बयान दिया। वह अपनी रिपोर्ट आलाकमान को भी देंगे। पुलिस अपना काम कर रही है। उस पर कोई दबाव नहीं है; वह जाँच करे। विधायकों के टूटने की कोई बात नहीं। कांग्रेस के विधायक एकजुट हैं। भाजपा सरकार को अस्थिर करना चहती है। लेकिन यह सम्भव नहीं है। इसलिए शासन में धौंस जमाने के लिए सरकार गिराने की अ$फवाह फैलाती रहती है।
राजेश ठाकुर, कार्यकारी अध्यक्ष कांग्रेस

चमकते चेहरों के काले कारनामे

क्या कालिख सफ़ाई अभियान मस्तक देखकर टीका लगाने के मानिंद होती है? अथवा मछलियाँ ही इतनी बड़ी होती हैं कि सरकार के जाल छोटे पड़ जाते हैं? सियासी गणिताई में इन सवालों के जवाब मुश्किल हैं। लेकिन भ्रष्टाचार के इस गटर को खँगालें, तो चौंकाने वाले ऐसे चमकते चेहरों पर कई अलग-अलग मुखौटे नज़र आएँगे, जो अपने धतकर्मों को छिपाने के लिए उन मुखौटों पर शराफ़त का एक बड़ा मुखौटा लगाये मिलेंगे; या फिर लोगों का दुलार पाने के लिए क़िस्म-क़िस्म की नोटंकियाँ करते नज़र आएँगे।
इस फ़ेहरिश्त में नेताओं तो हैं ही, लेकिन अफ़सर भी उनसे कम नहीं हैं। अगर राजस्थान के अफ़सरान की बात रें, तो इस क़तार में पहला नाम प्रशासनिक टाइगर नीरज पवन का है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से मान-सम्मान और पुरस्कार पा चुके नीरज लोगों की नज़र में कितने पवित्र थे, इसे समझने के लिए पाली के लोगों का उनके प्रति वह प्यार था, जिसे वह उनकी ईमानदारी देखकर करते थे। दरअसल ज़िला कलेक्टर रहते हुए उनके तबादले के विरोध में पूरा शहर उमड़ पड़ा था। उनके प्रति लोगों के दुलार की वजह की तह में ढेरों मिसालें गिनायी जा सकती हैं। उन्होंने शिकायतों के निस्तारण के लिए ‘हेल्पलाइन 1040’ का गठन किया। कृषि आयुक्त रहे हुए पवन ने ‘कोबरा टीम’का गठन किया; ताकि नक़ली खाद, बीज के कारोबार पर नकेल कसी जा सके। ऐसा पहली बार हुआ, नतीजतन पवन किसानों के चहेते बन गये।
गुर्जर समस्या के समाधान के मामले में नीरज पवन न सिर्फ़ अशोक गहलोत, बल्कि वसुंधरा राजे के भी दुलारे बन गये थे। लोगों का यहाँ तक कहना है कि आईएएस लॉबी में सबसे ज़्यादा रुतबा नीरज पवन का था। नीरज पवन पहले ऐसे अधिकारी थे, जो गाँवों में रात्रि में चौपाल लगाकर लोगों की समस्याएँ सुनते थे। ऐसे प्यारे, दुलारे नौकरशाह जब भ्रष्टाचार की काई पर फिसले, तो लोग सन्न रह गये। इसके बाद तो उनके धत्कर्मों की खिड़कियाँ खुलती चली गयीं। लोगों को हैरत थी कि गंगाजल की तरह पवित्र अफ़सर का कोई बदरंग मुखौटा कैसे हो सकता है? बहरहाल पवन जाँच एजेंसी के दरपेश हैं। लेकिन सवाल है कि मुखौटे पर मुखौटा लगाकर चैन की बंसी बजाने वाले प्रशासनिक अफ़सरों की क़तार आख़िर क्यों ख़त्म होने का नाम नहीं लेती?
इसमें कोई शंका नहीं कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भ्रष्टाचार के प्रति कठोर रवैया रखते हैं, तभी तो भ्रष्टाचारी असरों की एक-एक करके पोल खुलती जा रही है। पिछले ढाई साल इस दृष्टि से सचमुच बेमिसाल रहे कि सरकार के सर्वोच्च स्तरों पर हर महीने भ्रष्टाचार के नये मामले उजागर हुए। लेकिन इसके बावजूद एक साल पहले चार लाख की घूस लेते रंगे हाथों पकड़े गये खनन विभाग के संयुक्त सचिव बी.डी. कुमावत रिहा हो गये।


ऐसे एक नहीं, अनेक प्रकरण हैं; जिनमें एसीबी ने भ्रष्टाचार के आरोपी अफ़सरों को दबोचा; लेकिन उनमें कई बच गये। अगस्त, 2018 में एसीबी ने सार्वजनिक निर्माण विभाग के दो बड़े अफ़सरों डी.पी. सैनी और गुलाब चंद गुप्ता को रिश्वत लेते पकड़ा था। लेकिन इनके ख़िलाफ़ भी कोई ख़ास क़ानूनी कार्रवाई नहीं हो सकी। क्या ये दोनों अफ़सर अपने काले मुखौटों पर शराफ़त का कोई ऐसा मुखौटा लगाये थे, जिसके नीचे दबे धत्कर्म दिखायी नहीं दिये?
अफ़सरों के भ्रष्टाचार और जालसाज़ी को संरक्षण देने का करोड़ी मामला तो बुरी तरह अचंभित करता है। जयपुर से महाराष्ट्र तक रची गयी इस जालसाज़ी में तीन आरएएस स्तर के अफ़सर और चार कनिष्ठ अधिकारी लिप्त थे। लेकिन पता नहीं ऐसा कौन-सा दबाव पड़ा कि राज्य सरकार इन अफ़सरों पर मुक़दमा तक नहीं चला पायी।
दरअसल इन अफ़सरों ने पहले तो 671 एकड़ ज़मीन के लिए निजी क्षेत्र की हस्तियों से मिलकर नियमों के पुर्जे़ उड़ाते हुए ज़मीन के टुकड़े कर डाले फिर उनके नाम से खाताधारकों ने मुम्बई से और फिर करोड़ों का क़र्ज़ ले लिया। घोटाले का बवंडर उठा तो उड़ते तिनकों ने कई कहानियाँ बाँच दीं। जब घोटाले का ख़ुलासा हुआ तो नीयत, बदनीयत के कई खेल भी चल पड़े।


दरअसल महाराष्ट्र सरकार तो चाहती थी कि इस ज़मीन की नीलामी की जाए, जबकि एसीबी के अफ़सर चाहते थे कि भ्रष्टाचार की धाराएँ लगाकर आरोपी अफ़सरों पर मुक़दमा चल भ्रष्टाचार की धाराएँ लगाकर। पर इन अफ़सरों पर भी कोई कार्रवाई न हो सकी। जालसाज़ी के इस खेल की कोडिय़ाँ कैसे चली गयी? इसके केंद्र में भी बीकानेर के चक्रगर्वी गाँव की 671 एकड़ भूमि, जो सिर्फ़ एक ही व्यक्ति के नाम पर थी; जबकि उस व्यक्ति के नाम निर्धारित बीघा से अधिक रक़बा नहीं होना चाहिए। नतीजतन ज़मीन सीलिंग एक्ट में आ गयी। इसे सीलिंग से बचाने के लिए तत्कालीन उप पंजीयन से गठजोड़ कर पक्षों के नाम से ज़मीन की रजिस्ट्री करा दी गयी।
सन् 2014 में मुम्बई में एनएसईएल घोटाला हुआ था, जिसमें यह ज़मीन भी शामिल थी। मुम्बई की इकोनॉमी ऑफिस विंग ने इस ज़मीन को अटैच करके नीलामी की तैयारी कर ली। इसमें भी एक नया खेल चला। खेल की कौडिय़ाँ चलते हुए आरोपी पक्ष ने बीकानेर नगर विकास न्यास में गोल्फ रिसोर्ट के नाम पर ज़मीन 90-ए के तहत करने का प्रस्ताव रख दिया।
दिलचस्प बात है कि मामला सीलिंग एक्ट में लम्बित होने के बावजूद न्यास के सचिव अरुण प्रकाश ने आवेदन स्वीकार कर लिया। अरुण के तबादले के बाद तत्कालीन एडीएम दुर्गेश बिस्सा को न्यास सचिव का चार्ज सौंपा गया। लेकिन उन्होंने अनाधिकृत रूप से 90-ए का आदेश जारी कर दिया। जबकि ऐसा आदेश केवल संभागीय आयुक्त ही जारी कर सकते थे।
इस खेल में जो अफ़सर शामिल थे, वे सरकारी महकमों में अहम पदों पर तैनात थे। इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सन् 2015 में एफआईआर दर्ज की थी। जाँच अधिकारी सी.पी. शर्मा ने पड़ताल में दाग़ी अफ़सरों पर सारे मामले सही पाये। नतीजतन उन्होंने जुलाई, 2018 में आरोपियों के ख़िलाफ़ चार्जशीट पेश करने के लिए अभियोजन की इजाज़त माँगी; लेकिन पता नहीं क्या हुआ? लेकिन आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। इस मामले के जानकार बताते हैं कि सरकार से इजाज़त मिलने पर इस मामले में आदेश जारी किये जाएँगे। लेकिन एक बात यह भी सामने आयी कि फाइल तो अफ़सरों के बीच ही घूम रही है। इस बात की पुष्टि तत्कालीन जाँच अधिकारी सी.पी. शर्मा के बयान से होती है, जिन्होंने कहा था कि अभियोजन के लिए फाइल भेज दी थी। अब आगे की जानकारी अजमेर चौकी के अफ़सर ही दे सकते हैं। इंतज़ार तो इंतज़ार ही होता है।

महीना वसूली


राज्य में पैसों के लालची घूसख़ोरों की ताक़त और हिम्मत के आगे अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोध दिवस भी बौना ही रहा। इस दिन भी नोकरशाह घूसख़ोरी का खेल खेलने से बाज़ नहीं आये। इन पर नज़र गड़ाने में भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के अधिकारी भी पीछे नहीं रहे। यह बात दिलचस्पी से परे नहीं कि भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने अपने ही एक अफ़सर अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक भैरूलाल मीणा को बँधी हुई माहवार वसूली करते रंगे हाथों पकड़ा। भ्रष्टाचार निरोधक दिवस पर मीणा सुबह अपने दफ़्तर में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भाषण दे रहे थे। इसके दो घंटे बाद ही वह ख़ुद रिश्वत लेते पकड़ गये। दोसा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक मनीष अग्रवाल ने पहले ख़ुद रिश्वत माँगी और बाद में दलाल को आगे कर दिया। मनीष अग्रवाल पर हाईवे बनाने वाली एक कम्पनी से 31 लाख और दूसरी कम्पनी सेे 38 लाख वसूलने का आरोप है। मनीष ने पीडि़त को यह कहते हुए धमकाया कि ज़िले का एसपी हूँ। मेरी मर्ज़ी के बग़ैर तेरा काम नहीं चल सकता। दौसा के एसडीएम पुष्कर मित्तल और बांदीकुई एसडीएम पिंकी मीणा भी पाँच लाख रुपये की रिश्वत लेते धरे गये। पेट्रोल पम्प लीज के नवीनीकरण के मामले में एक लाख की रिश्वत लेते पकड़े गये बारां के ज़िला कलेक्टर इंद्रसिंह राव का अब तक का सेवाकाल पूरी तरह दाग़दार रहा है। 31 साल के अपने कार्यकाल में इंद्रसिंह अब तक छ: अलग-अलग कारणों से पदच्युत किये जा चुके हैं। चार साल पहले इन्हें पदोन्नत कर राजस्व मंडल में लगा दिया गया था। लेकिन सन् 2014 में राव बारां कलेक्टर पद पर नियुक्त हो गये। सूत्र इस तैनाती में सियासी मुश्क का हवाला देते हुए कहते हैं कि बारां में राव की तैनाती ऐसे ही तो नहीं हो गयी। इंद्रसिंह अधीक्षक सींखचों के बाहर नहीं आये।

बच्ची से सामूहिक दुष्कर्म मामला न्याय में देरी क्यों?

परिजनों और समाज के लोगों ने सरकार तथा पुलिस से कहा- ‘दोषियों को हो फाँसी’

जब व्यवस्था में ही दोष हो और ज़िम्मेदारी किसी पर तय न हो, तो अराजकता मचनी सुनिश्चित है। मौज़ूदा सियासत कुछ इसी तरह की है कि कोई बड़ी वीभत्स घटना भी केवल सियासत का हिस्सा बन जाती है और पीडि़तों को या तो न्याय मिलता नहीं, या मिलना मुश्किल हो जाता है। शासन-प्रशासन पर ज़िम्मेदारी तय न होने से भी ऐसे कई मामले दबकर रह जाते हैं और दोषी बच जाते हैं। देश की राजधानी दिल्ली के पुराना नागलराया (कैंट एरिया) में कुछ दरिंदों ने नौ साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार करके उसे ज़िन्दा जला दिया। दिल दहला देनी वाली यह घटना दरिंदों की हिम्मत और पुलिस प्रशासन की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण है।
ऐसी घटनाएँ सरकारों और पुलिस को चुनौती देकर ललकारती हैं कि तुम अपराधियों का कुछ नहीं कर सकते। ऐसी वीभत्स घटनाओं की पीड़ा जनता को होती है; लेकिन वह न्याय के लिए कुछ दिन के प्रदर्शन के अलावा कुछ नहीं कर पाती। क़ानून के हाथ बँधे लगते हैं और पुलिस हीला-हवाली का परिचय देते हुए जाँच करती है।
दिल्ली की इस घटना से क्रोधित लोगों ने भी लगातार न्याय की माँग की, तब जाकर दरिंदों को पुलिस हिरासत में न्यायालय ने भेजा। यह तब हुआ, जब न्यायालय में दायर एक याचिका में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने आरोपियों को गवाहों और सुबूतों की पुष्टि करने के लिए पाँच दिन के रिमांड की माँग की। यानी न्याय अभी भी दूर सुबूतों के इंतज़ार में है।
पीडि़त परेशान हैं। न्याय माँग रहे हैं। बच्ची के साथ वहाँ के 55 वर्षीय पुजारी राधेश्याम, सलीम, लक्ष्मीनारायण और कुलदीप ने मासूम के साथ बारी-बारी से बलात्कार किया। जब बच्ची लहूलुहान हो गयी, तो वहीं श्मशान घाट में ज़िन्दा जला दिया। जब परिजनों को इस घटना का पता चला, तो वे और कुछ पड़ोसी दौड़े-दौड़े श्मशान घाट पहुँचे और जलती चिता को पानी से बुझाते हुए बच्ची के बुरी तरह जले शव को बाहर निकाला। लोगों ने पुलिस को इस वीभत्स घटना की तत्काल सूचना दी। ज़िन्दा जली बेटी के पैर और शरीर का कुछ ही हिस्सा जाँच-पड़ताल व पोस्टमार्टम के लिए बचा था। पुलिस ने शव का नज़दीकी अस्पताल में पोस्टामार्टम कराया। पुलिस ने बच्ची की माँ के बयान के आधार पर आरोपियों के ख़िलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा-302 (हत्या), धारा-376 (बलात्कार) और धारा-506 (आपराधिक धमकी) के साथ-साथ बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) व एससी / एसटी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया। मृतक बच्ची के माता-पिता की सहमति के बिना बच्ची के शव का दाह संस्कार कर दिया गया।
घटना से पहले चारों आरोपी घटना स्थल के पास ही बैठकर शराब पी रहे थे। उन्होंने पानी भरने आयी अकेली बच्ची देखी, तो उसे कमरे में ले गये और दरिंदगी दिखा डाली। स्थानीय लोगों ने उन्हें पकडक़र पुलिस के हवाले किया।
ज़िला डीसीपी इंगित प्रताप सिंह का कहना है कि दिल्ली पुलिस इस मामले में 60 दिन के अन्दर ही चार्जशीट दाख़िल कर देगी। जो भी इस घटना से जो भी साक्ष्य जुटाने सम्भव हो सके, उन्हें जुटा लिया गया है। वारदात के वैज्ञानिक सुबूत भी जुटाये गये हैं। आरोपियों के कपड़ों और कमरे को सील कर दिया है। जो जाँच में काम आएँगे। मुख्य आरोपी के घर और शरीर से सभी बायोलॉजिकल सुबूत एकत्रित किये गये हैं, जिसमें कपड़े, अंग वस्त्र (अंडरगार्मेंट), चादर और बच्ची के डीएनए से जुड़े सभी सुबूत शामिल किये गये हैं।
अब अदालत में सुबूत पेश किये जाएँ, तो मृतक बच्ची और उसके परिजनों को न्याय मिले। सबसे बड़े सुबूत के रूप में ज़िन्दा जलती मिली बच्ची कोई मायने नहीं रखती।
घटना वाली जगह के पास के लोगों का कहना है कि पुलिस मामले को दबाने की कोशिश कर रही है, तो नेता आकर दिखावा कर रहे हैं। एक ओर तो केंद्र सरकार कहती है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ; महिलाओं का सम्मान, राष्ट्र का सम्मान है। वहीं दूसरी ओर अपराधियों पर शिकंजा कसने के लिए कोई ठोस क़दम नहीं उठाती। उसके बड़े-बड़े दावों, बड़ी-बड़ी बातों की पोल तब खुलती है, जब किसी के साथ दरिंदगी हो जाती है। पीडि़तों को न्याय के लिए इतना परेशान होना पड़ता है, मानो उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। बहुत-से मामले तो न्याय व्यवस्था में ख़ामी होने और लोकलाज के डर से घर में दबकर रह जाते हैं। देश में बच्चियों से लेकर महिलाओं के साथ आये दिन बलात्कार जैसी घटनाएँ होती रहती हैं। इन घटनाओं की सबसे ज़्यादा शिकार छात्राएँ और कामकाजी महिलाएँ होती हैं।
बाल्मीकि समाज के उदय सिंह गिल ने कहा कि यह घटना 2020 में हुई हाथरस की घटना की याद दिलाती है, जिसमें दरिंदगी के बाद दलित बेटी को तड़पा-तड़पाकर जान से मार दिया गया और पुलिस ने उसके शव को जबरन जला दिया। उनका आरोप है कि तब भी पीडि़त दलित परिवार को पुलिस ने डराया-धमकाया और इस मामले में भी पुलिस डरा-धमका रही है।
दिल्ली की बच्ची के परिजन और उनके पड़ोसी पीडि़त बच्ची को न्याय दिलाने के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं। वे लगातार नागलराया थाने की पुलिस से लेकर केंद्र सरकार तक से दोषियों को फाँसी की सज़ा देने की माँग कर रहे हैं। ‘तहलका’ को पीडि़तों के एक रिश्तेदार और सम्बन्धित समाज के लोगों ने बताया कि कि नौ साल की मासूम बच्ची अपने घर के पास बने श्मसान घाट के बाहर लगे नल से पानी लेने गयी थी। उसी समय वहाँ बैठे शराब पी रहे दरिंदों ने उसके साथ दरिंदगी दिखायी और अधमरा करके उसे ज़िन्दा जला दिया।
बच्ची की माँ सुशीला देवी पिता मोहनलाल का आरोप है कि जब वे पुलिस स्टेशन अपनी बेटी के साथ हुई इस अमानवीय घटना की शिकायत करने पहुँचे, तो पुलिस ने शिकायत सुनने के बजाय, उनसे मारपीट की और मामले को दबाने की कोशिश की। मोहन लाल रोते हुए कहते हैं कि अगर पुलिस चाहती, तो मेरी बेटी बच सकती थी; लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जब तक इस मामले में थाने में मौज़ूद पुलिस वाले दोषियों को बचाने में लगे हैं, तब तक न्याय मिलना मुश्किल है। नागलराया में इस समय थाने के बाहर से लेकर श्मशान घाट और मुख्य सडक़ पर बाल्मीकि समाज, दलित मोर्चा व अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं का उग्र धरना-प्रदर्शन जारी है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार से लेकर दिल्ली पुलिस तक, सब दिखावे के तौर पर काम कर रहे हैं।
बच्ची को न्याय दिलाने के लिए बाल्मीकि समाज के हज़ारों लोग लगातार मोमबत्ती जुलूस (कैंडल मार्च) निकाल रहे हैं। समाजसेवी प्रेमलता सत्यार्थी का कहना है कि दोषियों को फाँसी की सज़ा जल्द-से-जल्द मिलनी चाहिए, ताकि बच्ची और उसके परिजनों को न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि वह समय-समय पर दलित बस्ती से लेकर महिलाओं के बीच जाकर इस बात के लिए जागरूक करती हैं, ताकि किसी भी प्रकार की कोई घटना समाज में न घट सके। उन्होंने कहा कि आज भी समाज में महिलाओं को कुछ लोग गंदी मानसिकता से देखते हैं। इस तरह की घटनाएँ मानव समाज के लिए कलंक हैं।
बाल्मीकि समाज की महिला सुमन का कहना है कि यहाँ का पुजारी और उसके साथी पहले भी महिलाओं के साथ अभद्रता और अनाचार जैसी घटनाओं में शामिल रहे हैं। इस बाबत उनकी शिकायतें भी की गयी हैं; लेकिन कार्रवाई नहीं होने से उनका मनोबल बढ़ा हुआ था और उन्होंने दिल दहला देने वाली इस घटना अंजाम दे दिया। यह घटना हमारे समाज के लिए बेहद दु:खद और पूरे मानव समाज के लिए कलंक है।
बाल्मीकि समाज के युवाओं ने बाइक रैली निकालकर भाजपा, कांग्रेस, आम आपमी पार्टी के साथ-साथ आरएसएस को ललकारा है। उनका कहना है कि राजनीतिक दल दलितों को वोट बैंक तौर पर उपयोग करते हैं, लेकिन उनकी तकलीफ़ों में उनका साथ नहीं देते। बाल्मीकि समाज के युवा दिलीप कुमार का कहना है कि दलित बहन-बेटियों के साथ आये दिन यहाँ पर छेडख़ानी की घटनाएँ होती रहती हैं; लेकिन कार्यवाई के नाम पर कुछ नहीं होता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जैन का कहना है कि देश में ऐसे अपराधों को रोकने और अपराधियों से निपटने के लिए क़ानून पहले से मौज़ूद है। लेकिन सियासी तिकड़बाजी और वोट बैंक के चलते ऐसे मामलों को दबाने की कोशिशें की जाती हैं। इसी सियासी हेराफेरी के चलते दोषियों को सज़ा नहीं मिल पाती और पीडि़त को न्याय नहीं मिल पाता। क़ानून तो है पर क़ानूनी व्यवस्था लचर है; जिससे अपराध को बढ़ावा मिलता है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बच्ची के परिजनों से मिलकर दिलासा दिया और 10 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की बात कही। उन्होंने कहा कि दिल्ली पुलिस और क़ानून व्यवस्था को दुरस्त करने की ज़रूरत है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने पीडि़त परिजनों से मुलाक़ात करके हर सम्भव सहायता देने की बात कही। उन्होंने कहा कि वह बच्ची को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष करते रहेंगे।
वहीं वामपंथी नेता वृंदा करात ने घटना स्थल पर पहुँचकर पीडि़त परिजनों का दर्द सुना और कहा कि देश में क़ानून व्यवस्था को सुधार की ज़रूरत है। उन्होंने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज भी देश की राजधानी दिल्ली में महिलाएँ सुरक्षित नहीं हैं, जो कि बेहद शर्मनाक है।
भीम पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण आज़ाद ने कहा कि केंद्र और दिल्ली, दोनों सरकारों की उदासीनता का नतीजा है, जो आज भी ऐसी आमानवीय घटनाएँ घट रही हैं।
वहीं घटना से ग़ुस्साए लोगों ने दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता का उस समय जमकर विरोध किया, जब वह परिजनों से मिलने पहुँचे। लोगों ने उनके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की। आदेश गुप्ता ने पीडित परिजनों को आश्वासन दिया कि वह दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट तक संघर्ष करेंगे, ताकि वे बच न पाएँ।

राहुल गांधी के बाद अब कांग्रेस का आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ‘लॉक’

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और अन्य नेताओं के बाद अब ट्विटर ने कांग्रेस का  आधिकारिक ट्विटर अकाउंट ‘लॉक’ कर दिया है। कांग्रेस ने गुरुवार को यह आरोप लगाते हुए कहा कि ट्विटर ने पार्टी के आधिकारिक हैंडल @INCIndia को लॉक कर दिया है।

कांग्रेस ने अपने फेसबुक पेज पर गुरुवार को यह जानकारी साझा की है। पार्टी ने कहा है कि वह और उसके नेता इससे डरने वाले नहीं। माना जा रहा है कि ट्विटर ने नियमों के उल्लंघन पर यह कार्रवाई की है। सोशल मीडिया कंपनी इससे पहले इसी तरह की कार्रवाई राहुल गांधी समेत कई कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कर चुकी है।

कांग्रेस ने अपने लॉक किए गए ट्विटर अकाउंट का स्क्रीनशॉट फेसबुक पेज पर साझा  करते हुए आज लिखा – ‘जब हमारे नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया, हम तब नहीं डरे तो अब ट्विटर अकाउंट बंद करने से क्या ख़ाक डरेंगे। हम कांग्रेस हैं, जनता का संदेश है, हम लड़ेंगे, लड़ते रहेंगे। अगर बलात्कार पीड़िता बच्ची को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाना अपराध है, तो ये अपराध हम सौ बार करेंगे। जय हिंद…सत्यमेव जयते।’
बता दें कांग्रेस ने बुधवार देर रात दावा किया था कि रणदीप सुरजेवाला समेत पांच वरिष्ठ पार्टी नेताओं के अकाउंट के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की गई है। पार्टी ने कहा था कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय माकन, लोकसभा में पार्टी के सचेतक मनिकम टैगोर, असम प्रभारी और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और महिला कांग्रेस अध्यक्ष सुष्मिता देव के ट्विटर अकाउंट निलंबित कर दिए गए हैं।

याद रहे राहुल गांधी ने पिछले हफ्ते दिल्ली में कथित बलात्कार और हत्या की शिकार नौ वर्षीय बच्ची के परिवार के साथ की तस्वीरें ट्वीट की थीं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने राहुल गांधी के ट्वीट का संज्ञान लिया और ट्विटर को नाबालिग पीड़िता की निजता का उल्लंघन करने के लिए कांग्रेस नेता के अकाउंट के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था। बुधवार को ट्विटर ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया था कि राहुल गांधी के 4 अगस्त को किए ट्वीट ने कंपनी की नीतियों का उल्लंघन किया था। उन्होंने रेप पीड़िता के माता-पिता के साथ अपनी तस्वीर ट्वीट की थी। इसकी वजह से उनके अकाउंट को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया गया है।

महामारी से ज़्यादा महँगाई मार देगी

पिछले कुछ साल से महँगाई लगातार बढ़ रही है। मुझे याद है, जब नोटबन्दी हुई थी, तो मेरे पास घर के ख़र्चे से बमुश्किल बचाये हुए सात हज़ार रुपये थे, जो कि बड़ी मुश्किल से मैंने और मेरे बेटे ने आधे-आधे बाँटकर बैंक से बदलवाये। तब रसोई गैस का सिलेंडर यही कोई 424-25 रुपये का था, जिसमें कि सब्सिडी भी मिलती थी। अभी वही सिलेंडर लगभग 850 रुपये का हो चुका है, जिसमें एक रुपये की भी सब्सिडी नहीं है। मेरा सरकार से सवाल है कि आख़िर रसोई गैस पर इतनी महँगाई करके पैसा कौन खा रहा है? कौन हम ग़रीबों की सब्सिडी खा रहा है? पिछले पाँच-छ: साल से लगातार बढ़ती महँगाई ने घर-गृहस्थी चलाना मुश्किल कर दिया है। मेरी कमायी घटी है। बीच में नौकरी भी चली गयी थी। मगर ख़र्चे बढ़े हैं। क्या ये मंत्री लोग या ख़ुद प्रधानमंत्री कड़ी मेहनत करके, 12 घण्टे गर्मी में काम करके किराये के मकान में रहकर 10 हज़ार रुपये में दो बच्चों को पालकर गुज़ारा कर सकते हैं? क्यों नहीं समझते नेता और क्यों नहीं समझतीं सरकारें आम आदमी की मजबूरी और परेशानी को? हमने सरकार का क्या बिगाड़ा है? सरकार क्यों हम ग़रीबों को मारना चाहती है? हम लोग मेहनतकश हैं। कोई चोरी नहीं करते। न किसी को लूटते हैं। न झूठ बोलते हैं। न किसी की बेईमानी करते हैं। न मुफ़्त का खाते हैं। एक-एक पैसा कड़ी मेहनत से पेट काटकर जोड़ते हैं, फिर भी हम पर अत्याचार क्यों? क्या सरकार लोगों को महँगाई के ख़िलाफ़ भी सड़कों पर उतारना चाहती है? आलू, प्याज, टमाटर समेत लगभग सभी सब्ज़ियों के दाम आसमान पर चढ़े रहते हैं। रसोई गैस के दाम आसमान पर हैं। दूध और महँगा हो गया। आटा, दाल, मैदा, बेसन, दलिया, नमक, मिर्च, मसाला सब कुछ महँगा होता जा रहा है। कमरे के किराये में आधी कमायी चली जाती है। ऐसे में ग़रीब आदमी क्या करे? क्या हम ग़रीबों को जीने का हक़ नहीं है? हमने किसी का क्या बिगाड़ा है? क्या सरकार के पास हम ग़रीबों के बारे में सोचने का वक़्त नहीं है? अगर सरकार आम लोगों की तरफ़ ध्यान नहीं देगी, तो उसे कोरोना महामारी से ज़्यादा महँगाई मार देगी। बच्चों का भविष्य बनाना मुश्किल हो जाएगा, जिसके चलते ज़िन्दगी भी नर्क हो जाएगी।
रुख़साना, मयूर विहार फेज-3, दिल्ली

सेवा नहीं रही राजनीति
जब कोई नेता यह कहता है कि वह राजनीति में सेवा के लिए आया है या यह कहता है कि वह जनसेवक है, तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आता है। आज की राजनीति में 98 फ़ीसदी लोग अपना स्वार्थ साधते हैं, जनता का हक़ मारते हैं और मुफ़्तख़ोरी करते हैं। क्या ऐसे लोगों को जेल में नहीं डाला जाना चाहिए? ऐसे लोगों को हर हाल में जेल में ही होना चाहिए। अब नेताओं में ईमानदारी नाम की चीज़ नहीं रह गयी है। अगर कोई ईमानदारी से काम करना चाहे भी, तो उसे जेल भेज दिया जाता है। बिहार में पप्पू यादव की क्या ग़लती थी? यही न कि उन्होंने रुद्र प्रताप सिंह रूढ़ी की एम्बुलेंस छिपाने की पोल खोली थी। मैं बिहार के ऐसे लोगों से तो सवाल पूछ ही सकता हूँ, जिन्होंने पप्पू यूदव से हमेशा मदद ली कि क्या उनकी आत्मा सोयी हुई है, जो सरकार के इस रवैये का विरोध नहीं कर सकते? इसी तरह दिल्ली में सुनने में आता है कि वहाँ एक ईमानदार मुख्यमंत्री को भी तंग किया जाता है। यह कितना ग़लत है कि एक घोटालेबाज़ की इज़्ज़त होती है और ईमानदार नेताओं को परेशान किया जाता है। आज आपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं को चुनाव ही नहीं लडऩे देना चाहिए।
कमलेश कुमार, पटना, बिहार

हमें बख़्श दो सरकार
बहुत दिनों से मन में एक दर्द-सा उठ रहा है, जिसे अब बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन-सा हो गया है। यह दर्द राष्ट्र और राष्ट्रीयों की बर्बादी का है, जो अब बर्दाश्त नहीं हो रहा। पूरी दुनिया अब हम पर हँस रही है। आर्थिक रूप से हम कमज़ोर होते जा रहे हैं। महामारी पर सरकारी असफलता को ‘धन्यवाद मोदी जी’ के पोस्टरों-बैनरों से उत्सव में बदलने की कोशिश की जा रही है। इससे पहले भी कोरोना को हमने ताली-थाली बजाकर उत्सव के रूप में मनाया, बड़े बहुमत से उन्हें सत्ता दी। लेकिन न तो इससे सत्ताधारी पार्टी का पेट भरा, न मंत्रियों का ही भरा है। दोनों ही राष्ट्र और राष्ट्रीयों की बर्बादी और महामारी से लोगों के मरने के दौरान भी हम सबसे ‘वाह, मोदी जी! वाह’ की बुलंद आवाज़ सुनना चाहते हैं। उन्हें यह आवाज़ भी मरी हुई नहीं, बल्कि जोशीली और स्वर्गिक अहसास वाली सुनायी देनी चाहिए। चाहे किसान मरे, चाहे मज़दूर मरे, चाहे कोई और मरे। लेकिन सिर्फ़ वाहवाही होनी चाहिए; उनकी सरकार की और उससे ज़्यादा प्रधानमंत्री की। आलोचना की, तो जेल होगी; फाँसी होगी। मर तो गये लाखों लोग। अरे अब क्या सबकी जान लोगे? हमें बख़्श दो सरकार!
कुम्भाराम भामी, चूरू, राजस्थान

जबरन बीमा क्यों?
अभी कुछ दिन पहले मेरे खाते से 330 रुपये काट लिये गये। मेरे बैंक अकाउंट में कुल 500 रुपये पड़े थे, जो कि पहले ही बैंक अकाउंट खुलवाने की राशि 2000 से कम थे। पिछले कई महीनों से नौकरी छूट जाने के कारण अब बैंक अकाउंट में मैं पैसा नहीं डाल पाता। इसलिए परेशानी के समय में जब बहुत ज़रूरत पड़ी, तो अकाउंट में रखी जाने वाली न्यूनतम राशि में से भी 1500 रुपये निकालने पड़े। लेकिन अभी हाल में जब मैंने बैंक अकाउंट की जाँच की, तो उसमें 250 रुपये के आसपास ही रुपये थे। जब बैंक में पता किया, तो पता चला कि 330 रुपये एक साल की एलआईसी पॉलिसी के काटे गये हैं। मैंने जब बैंक वालों से कहा कि मैंने तो कोई बीमा नहीं कराया। तो जवाब मिला कि यह तो सरकार की तरफ़ से आदेश है, लेना ही पड़ेगा। क्यों लेना पड़ेगा? बीमा जैसी गुज़ारिश की चीज़ भी जबरन क्यों? क्या सरकार जानती है कि परेशानी में ग़रीबों के लिए 330 रुपये कितने होते हैं?
दिनेश, नोएडा, उत्तर प्रदेश

दुविधा में पायलट

राजनीतिक कलह की आग में जब भी शोले भड़कते हैं, तो शिकवा-शिकायतों की चिंगारियाँ उड़े बिना नहीं रहतीं। पिता राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर भारी भीड़ जुटाकर चुपके से अपना दर्द साझा करते हुए सचिन पायलट ने अपना दावा फिर दोहरा दिया कि पार्टी के लिए अपना सब कुछ झोंकने के बावजूद मुझे क्या मिला? जब उन्होंने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तभी अंदेशों के बादल उठने लगे थे कि मुख्यमंत्री न बन पाने की ख़लिश उन्हें बेचैन किये रहेगी। कुछ हफ़्तों बाद ही उनके और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच तनाव की ख़बरें रिसने लगीं।


इन अफ़वाहों को बल तब मिला, जब पायलट ने गहलोत के कामकाज को लेकर बेसिर-पैर की बातें शुरू कर दीं। असली सत्ता अपने पास नहीं होने का सन्ताप पायलट को भीतर-ही-भीतर कचोटता रहा। नतीजतन पायलट अपनी कुर्सी के ही क़ैदी बनकर रहे गये। पायलट लाख चाहें भी, तो इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि बिना कोई संघर्ष किये छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने सांसदी और केंद्रीय मंत्री की पाग पहनने के बाद प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री तक का ताज भी पहन लिया। गहलोत तो इस बात पर तंज कसने से भी नहीं चूके कि बिना संघर्ष के ही जब पायलट को इतना कुछ मिला, तो उन्हें इसकी क़द्र नहीं हुई। लेकिन उनकी सियासी जन्म कुण्डली का इससे ज़्यादा दु:खद वृतांत क्या हो सकता है कि पार्टी के मुखिया पद को ही उन्होंने लांछित कर दिया। विश्लेषकों का कहना है कि जब पार्टी का मुखिया ही लक्ष्मण रेखा लाँघ जाए, तो बाक़ी क्या रह जाता है? ताक़त दिखाने की बाज़ीगरी में पासे उलटे पडऩे के बाद सचिन एक बार फिर अपने समर्थकों को साथ लेकर पिछला रुतबा और ओहदा पाने के लिए घमासान में उलझे हैं। सचिन पायलट समर्थक पंजाब का उदाहरण देते हुए जोश से बोलते हैं कि जब वहाँ (पंजाब में) कार्यवाही हो गयी, तो राजस्थान में टालमटोल क्यों? लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों ने पायलट ख़ेमे पर हमलावर होते हुए दो-टूक कह दिया कि जिन लोगों ने पार्टी के साथ ग़द्दारी की और सरकार गिराने की कोशिश की, वे किस हक़ से हाईकमान पर दबाव बना रहे हैं?
विश्लेषकों का कहना है कि पायलट ने जिस तरह की मनमानी की, उससे पनपा तनाव अब शायद ही कम हो सके। वजह साफ़ है कि हर रोज़ कोई-न-कोई नेता आग में घी डालने वाली बयानबाज़ी करने से बाज़ नहीं आ रहा। तेवर जितेन्द्र सिंह ने भी दिखाये कि पार्टी हाईकमान ने पायलट से जो वादे किये हैं, उन्हें निभाया जाना चाहिए। प्रश्न है कि पायलट अपने पाँच से छ: विधायकों को मंत्री बनवाना चाहते हैं, जो कि सम्भव नहीं। इस घमासान के चलते जितिन प्रसाद की भाजपा में उड़ान से भी शोले भड़के। लेकिन यह शोले जल्द ही राख में तब्दील हो गये।
असल में मोदी सरकार ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो मंत्री पद से नवाज़ दिया; लेकिन जितिन प्रसाद देखते ही रह गये। सूत्रों का संकेत है कि पायलट को मनचाहा पद मिल पाना क़तई सम्भव नहीं है। जबकि समझा जाता है कि उन्हें पार्टी का महासचिव बनाकर किसी प्रदेश का प्रभारी बनाया जा सकता है। हालात जो भी हों, पायलट की इच्छा शान्त नहीं हो रही है और भौहें तनी हुई हैं। राजनीतिक सूत्रों की मानें, तो पायलट के आँगन में बड़े दावों वाला एक खेल खेला जा रहा है। ऐसे में अगर आने वाले वक़्त में पायलट फिसलकर भाजपा के आँगन में जा गिरें, तो ताज़्ज़ुब नहीं होना चाहिए। क्योंकि सियासी खेल में रिश्तों के नियम तय नहीं होते।

क़ानून पर भारी आस्था

आज के आधुनिक युग में भी बहुत-से लोग बेटियों को अभिशाप अथवा बोझ मानते हैं। यही वजह है कि कहीं संकीर्ण मानसिकता के चलते, तो कहीं अन्धविश्वास के चलते भ्रूण हत्या का चलन देश भर में अब भी व्याप्त है। झारखण्ड के लोहरदगा ज़िले के खुखरा गाँव में पत्थरों के एक पहाड़ में आस्था रखने वाले लोग बेटा या बेटी के जन्म की जानकारी लेते हैं। इसे क़ानूनी तौर पर किसी भी रूप में उचित नहीं माना जा सकता। तहलका का मानना है कि लोगों की मानसिकता तब तक नहीं बदल सकती, जब तक उन्हें आडम्बरों से बाहर निकालकर पूर्णतया शिक्षित नहीं किया जाएगा। इसमें सबसे पहले धार्मिकता के नाम पर गोरखधन्धा करने वाले लोगों पर शिकंजा कसने की ज़रूरत है; चाहे वे किसी भी धर्म के हों। एक पहाड़ी के ज़रिये भ्रूण की पहचान के अन्धविश्वास और देश में हो रही कन्या भ्रूण हत्या पर प्रशांत झा की रिपोर्ट :-

‘आज भी माँ की आवाज़ कानों में गूँजती है। मुझे पेट में बच्चे को नहीं मारना है।’ यह वाक्य एक 21 वर्षीय युवती का है। पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर उसने अपने जीवन के 15 साल पहले की सच्चाई को बताया। उसकी माँ की मौत इसलिए हुई; क्योंकि उसकी कोख में दूसरी भी बेटी ही थी। वह कहती है- ‘नीम-हकीम के ज़रिये भ्रूण हत्या के चक्कर में माँ की मौत हो गयी। अगर पेट में बच्चे को मारने का प्रयास नहीं होता, तो शायद माँ भी बच जाती।’
लड़की की बात भले ही 15 साल पुरानी हो, लेकिन 21वीं सदी में भी भ्रूण हत्या एक चुनौती बनी हुई है। यही वजह है कि देश में प्रसव पूर्व ‘लिंग जाँच’ पर रोक लगा दी गयी है। प्रसव पूर्व लिंग जाँच न जुर्म है; लेकिन झारखण्ड में इस क़ानून पर आस्था भारी है। यह राज्य के लोहरदगा ज़िले में देखने को मिलता है, जहाँ आज भी वैज्ञानिक विधि से न सही, मगर आस्था के ज़रिये हर दिन प्रसव पूर्व लिंग जाँच हो रही है और शायद भ्रूण हत्याएँ भी।
हालाँकि इस तरह की जाँच के बाद भ्रूण हत्या को साबित किया जाना कठिन है; लेकिन जानकारों का कहना है कि प्रसव पूर्व लिंग जाँच ही भ्रूण हत्या की अगली सीढ़ी है। भले ही यह क़ानूनन अपराध क्यों न हो।
पहाड़ी में भ्रूण पहचान का विश्वास
झारखण्ड के लोहरदगा ज़िला स्थित खुखरा गाँव में एक पहाड़ी है, जो गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की यह बताती है। इस क्षेत्र में बड़े-बड़े पत्थरों वाली यह पहाड़ी ‘चाँद पहाड़’ के नाम से काफ़ी प्रचलित है। यहाँ आसपास के लोगों के साथ-साथ अन्य जगहों से भी लोग लिंग जाँच के लिए पहुँच जाते हैं। स्थानीय लोगों का दावा है कि चमत्कारी पहाड़ी सच्चाई बताती है; इसलिए लोगों का इसमें विश्वास है। हालाँकि लिंग जाँच के बाद भ्रूण हत्या के बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ लोग आस्था रखते हुए अपनी केवल उत्सुकता के कारण जाँच करते हैं। गाँव में भ्रूण हत्या का मामला तो सामने नहीं आया है, बाहर से आने वालों का पता नहीं।
पत्थर फेंककर की जाती है जाँच
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परम्परा यहाँ नागवंशी राजाओं के शासन-काल से चली आ रही है। यहाँ पहाड़ी लगभग 400 साल से लोगों को उनके भविष्य के सम्बन्ध में जानकारी दे रही है। इस चमत्कारी पहाड़ी पर स्थानीय निवासियों की अटूट श्रद्धा और विश्वास है। गर्भ में लिंग का पता करने के तरीक़े के बारे में लोगों का कहना है कि इस चमत्कारी पहाड़ी पर एक चाँद की तरह आकृति बनी हुई है, जो गर्भ में ‘लिंग’ के बारे में जानकारी देती है। गर्भवती महिला लिंग की जाँच करने के लिए एक निश्चित दूरी से पत्थर को इस पहाड़ी पर बने चाँद की ओर फेंका जाता है। यदि पत्थर चंद्रमा (आकृति) पर जाकर लगता है, तो गर्भ में लड़का है। अगर फेंका हुआ पत्थर चंद्रमा के बाहर लगे, तो मानते हैं कि गर्भ में लड़की है।
भ्रूण हत्या से कोई राज्य अछूता नहीं
भ्रूण हत्या से देश का कोई भी राज्य अछूता नहीं है। आज से ठीक दो साल पहले जुलाई, 2019 में उत्तरकाशी की एक सूचना ने पूरे देश में हड़कम्प मच गया था। वहाँ के 133 गाँवों में तीन महीने के दौरान 216 बच्चों को जन्म हुआ, जिनमें एक भी बेटी नहीं थी। इसी तरह रायपुर (छत्तीसगढ़) में पिछले महीने सड़क किनारे कन्या भ्रूण मिला था। जोधपुर (राजस्थान) के प्रतापनगर थाना क्षेत्र में कचरे में एक बच्ची का भ्रूण मिला था। यह दिखाता है कि देश के हर हिस्से में चोरी-छिपे कन्या भ्रूण हत्या जारी है। कुछ महीने पहले जर्नल प्लोस का एक शोध सामने आया था, जिसमें कहा गया है कि ‘सन् 2017 से 2030 के बीच भारत में 68 लाख बच्चियाँ जन्म नहीं ले सकेंगी; क्योंकि बेटे की लालसा में उन्हें जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाएगा।’ इसी तरह जनवरी में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की स्टेट ऑफ वल्र्ड पॉपुलेशन-2020 की रिपोर्ट में भारत में घटते लिंगानुपात की चर्चा की गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रति 1,000 लड़कों के पीछे 943 लड़कियाँ हैं; जबकि कई प्रान्तों में यह आँकड़ा औसत से काफ़ी कम है।
जाँच केंद्रों की जाँच
झारखण्ड में भ्रूण हत्या से इन्कार नहीं किया जा सकता। पिछले ही दिनों बोकारो ज़िला के चास में एक निजी अस्पताल में भ्रूण हत्या का मामला सामने आया। पुलिस ने मामला भी दर्ज किया है। इसके अलावा कई अन्य मामले सामने आने के बाद सरकार ने ठोस क़दम उठाते हुए राज्य के सभी अल्ट्रा साउंड क्लीनिकों की जाँच करने का निर्देश दिया है। इसके लिए हर ज़िले में नोडल पदाधिकारी बनाये गये हैं। टीम यह जाँच करेगी कि पीसी एंड पीएनडीटी एक्ट का अनुपालन हो रहा है या नहीं। अल्ट्रासाउंड क्लीनिक एक्ट के प्रावधानों के अनुसार काम कर रहा है या नहीं। टीम सभी बिन्दुओं पर जाँच कर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगी। इसके अलावा सरकार ने कुछ दिन पहले ही ‘गरिमा झारखण्ड’ के नाम से एक पोर्टल भी लॉन्च किया है। जहाँ लिंग परीक्षण से सम्बन्धित जानकारी, अस्पतालों का पंजीकरण और शिकायत की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।
आस्था पर अंकुश लगाना चुनौती
झारखण्ड में जन्म के समय लड़के और लड़कियों का लिंगानुपात लगातार गड़बड़ा रहा। राज्य में 1991 में प्रति हज़ार 979 लड़कियाँ थीं; जो 2001 में घटकर 966 और 2011 में 948 रह गयीं। इसके बाद आधिकारिक गणना रिपोर्ट तो नहीं आयी है, लेकिन 2016 में प्रति हज़ार 919 के आँकड़े का आकलन किया गया है। राज्य में
856 अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी क्लीनिक पंजीकृत हैं, जिनमें से 825 संचालित हैं। लिंग जाँच के वैज्ञानिक परीक्षण पर सरकार की नज़र में है; लेकिन आस्था के ज़रिये परीक्षण पर रोक लगाना एक चुनौती है। जिसका नमूना राज्य के लोहरदगा में प्रसव पूर्व जानकारी लेने के लिए पहाड़ी का सहारा है। यहाँ राज्य के विभिन्न हिस्सों से हर दिन अभी भी लोग गर्भ में पल रहे बच्चे की लिंग जाँच करने पहुँचते हैं।
मानसिकता बदलने की ज़रूरत
जानकारों का कहना है कि भ्रूण हत्या तो बाद की बात है, प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण क़ानूनन अपराध है। भ्रूण हत्या या लिंग जाँच कराने वाले और करने वालों के लिए सज़ा और ज़र्माने का प्रावधान है। समाजशास्त्रियों का कहना है कि क़ानून के ज़रिये प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण को पूरी तरह रोक पाना सम्भव नहीं है। आज भी लोग बेटियों की जगह बेटों को तरजीह देते हैं, जिसके पीछे की मानसिकता यह है कि बेटों से वंश चलता है; जबकि बेटियाँ पराया धन होती हैं। यही कारण है कि लिंग जाँच के लिए पहाड़ी पर पत्थर फेंकने जैसा अन्धविश्वास लोगों की आस्था का विषय बना हुआ है। इसे बदलने के लिए लोगों की मानसिकता बदलनी ज़रूरी है।

राज्य में लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या को रोकने के लिए मैं कटिबद्ध हूँ। पिछले सप्ताह ही बैठककर अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिया। अधिकारियों को अल्ट्रासाउंड और सोनोग्राफी क्लीनिकों की जाँच करने और क़ानून के तहत सख़्त क़दम उठाने के निर्देश दिया गया है। राज्य में लिंगानुपात सुधर रहा है। अभी जो अनुमानित अनुपात सामने आ रहा है, उसके अनुसार 1000 लड़कों पर 991 लड़कियाँ हो गयी हैं। लोहरदगा मे लिंग जाँच सम्बन्धित मान्यता वाली पहाड़ी (चाँद पहाड़) के बारे में मुझे जानकारी नहीं है। इसकी मैं जानकारी ज़रूर लूँगा। हालाँकि इस तरह की बातों के लिए क़ानून से अधिक जागरूकता की ज़रूरत है। राज्य में लिंग जाँच और भ्रूण हत्या को लेकर जागरूकता अभियान भी तेज़ करने की योजना बनायी गयी है। हर तरह से इस पर रोक लगाने के लिए कटिबद्ध हूँ।”
बन्ना गुप्ता
स्वास्थ्य मंत्री, झारखण्ड

लोहरदगा का यह क्षेत्र काफ़ी पुराना है। यहाँ स्थित मंदिर, पहाड़ी आदि पर लोगों का अटूट विश्वास है। इस जगह के राजा को अकबर के समकालीन माना जाता है। एएसआई ने खुदाई भी करायी थी। यहाँ मंदिर, हवन कुण्ड आदि कई चीज़ें हैं। मंदिर खण्डित है। मंदिर में पूजा-अर्चना करने दूर-दराज़ से भी लोग आते हैं। यहाँ कई पहाडिय़ाँ हैं। इनमें से एक में चाँद और एक डुगडुगी पहाड़ी भी है। डुगडुगी पहाड़ी में एक छोटी-सी गुफा है। यहाँ घुसने पर शादियों में बजने वाले ढोल नगाड़े की आवाज़ सुनायी पड़ती है। चाँद पहाड़ी पेट में पल रहे बच्चे के की जानकारी देने के लिए प्रचारित है। कुछ लोग उत्सुकतावश चाँद पहाड़ी पर पत्थर फेंककर पेट में पल रहे बेटे या बेटी की जानकारी लेते हैं। यह आस्था से जुड़ा है। गाँव में कभी भ्रूण हत्या का मामला तो सुना नहीं है।”
कृष्ण बल्लभ मिश्र
मंदिर पुरोहित (स्थानीय निवासी), लोहरदगा

लोहरदगा क्षेत्र पहाडिय़ों और मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है। चाँद पहाड़ी के बारे में जो जानते हैं, वह यहाँ आने पर एक बार ज़रूर इसकी ओर आकर्षित होते हैं। बाहर से आने वाले लोग पहाड़ी पर पत्थर फेंककर लड़के या लड़की होने के बारे में जानते हुए देखे जाते हैं। जाँच करने के बाद क्या करते हैं? यह कहना मुश्किल है। यह सही है कि प्रसव पूर्व लिंग जाँच क़ानूनन अपराध है। इस बात को दावे के साथ इन्कार नहीं किया जा सकता है कि यहाँ आने वाले पत्थर फेंककर जाँच करने के बाद भ्रूण हत्या नहीं करवाते हों। यह उनके आस्था, विश्वास और मानसिकता पर निर्भर करता है। हालाँकि गाँव में ऐसी घटना सामने नहीं आयी है।”
संजय शाहदेव
स्थानीय निवासी, लोहरदगा

यह सही है कि खुखरा गाँव में मंदिर और पहाड़ी है। पर्यटक यहाँ जाते हैं। किसी ऐसे पहाड़ (चाँद पहाड़) की जानकारी मुझे नहीं है। इसलिए लड़की या लड़का जाँच के लिए पहाड़ी पर पत्थर फेंके जाने सम्बन्धित जानकारी नहीं है। मैंने एसडीओ व अन्य अधिकारियों को इस बारे में जानकारी लेने का निर्देश दिया है। उनसे दो-तीन दिन में जानकारी मिलने के बाद ही कुछ बताने की स्थिति में रहूँगा। आप तीन-चार दिन बाद बात करें।”
दिलीप कुमार टोप्पो
उपायुक्त, लोहरदगा