असमः हिंसा और तस्करी की उपजाऊ धरती

गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर कदम रखते ही 15 वर्ष की नताशा की आंखों में आंसू आ गए. उसकी आंखें लगातार अपने माता-पिता की खोज में इधर-उधर घूम रही थी. वे मां-बाप जिन्हें उसने लंबे समय से देखा नहीं था. नताशा उन पीड़ितों में से एक है, जिन्हें महाराष्ट्र में एक मछली पकड़ने वाली कंपनी पर छापामारी के दौरान पुलिस ने बचाया था. नताशा असम के शोनिलपुर जिले के बालिखुढी गांव की रहनेवाली है.

पिछले साल सितंबर महीने में भी एक गैर सरकरी संस्था के अभियान में 40 बच्चों को मुंबई के एक कारखाने से मुक्त करवाया गया था. सभी बच्चे जिनमें 36 लड़कियां और चार लड़के शामिल थे, उन्हें असम से ही तस्करी के जरिए मुंबई पहुंचाया गया था. अमानवीय स्थितियों में बिना खाए-पीए दिन में लगातार 14 घंटे तक इन बच्चों से काम करवाया जाता था. बदले में इन्हें 700 रुपये महीने की तनख्वाह मिलती थी. वापस असम पहुंचने पर उनमें से ज्यदातर बच्चे सदमे में थे और किसी से ठीक से बात तक नहीं कर पा रहे थे.

असम में बाल एवं महिला तस्करी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. इस समस्या के पीछे असम के ग्रामीण इलाकों में लोगों का बेघर होना, भूमिहीन होना, प्राकृतिक आपदाओं का आना और इन सबसे बड़ी समस्या है जातीय संघर्ष और उग्रवाद. जनवरी 2014 के बाद से जातीय और धार्मिक हिंसा का दौर यहां अपने विकृत रूप में देखने को मिला है. कार्वि आलांज में आतंकवादी हमलों की वजह से, जो रेंजामा नगा और कार्बी ग्रामीणों पर किया गया था, 900 से ज्यादा बच्चे विस्थापन शिविरों में पहुंच गए. इसी प्रकार बोडो बहुल इलाकों में मई 2014 में 200 से भी ज्यादा बच्चे हिंसा की चपेट में आकर विस्थापित हुए थे. यह विस्थापन निचले असम के बक्सा जिले में नेशनल डेमोक्रेडिट फ्रंट (संविजित गुट) द्वारा मुसलमानों की हत्या की घटना के कारण हुआ था. हिंसा और विस्थापन की घटनाएं निरंतर जारी हैं. 2014 में ही नागा हमलावरों द्वारा नागालैंड और असम की सीमा पर रहनेवाले लोगों पर हमले के बाद 2000 से अधिक बच्चे गोलाघाट जिले में स्थापित राहत शिविरों में पहुंचाए गए थे. हाल ही में दिल दहला देने वाली एक घटना तब घटी जब एनडीएफवी द्वारा आदिवासियों के ऊपर किए गए हमले में कोकराझार और सोनितपुर जिलों में 50,000 आदिवासी महिला, पुरुष और बोडो बच्चे विस्थापित हुए.

यह आम तथ्य है कि ज्यादातर लोग उसी समय तस्करों के जाल में फंसते हैं जब जातीय संघर्ष या प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप रहता है.

हिंसक झड़पों के बाद देखा जाता है कि विस्थापन शिविरों के आस-पास तस्कर डेरा डाल लेते हंै. हिंसा से प्रभावित गांवों के आस-पास का इलाका इन तस्करों के लिए उपजाऊ जमीन साबित होता है. संघर्ष में अपना सब कुछ लुटा चुके बेघर-बार लोगों को बड़ी आसानी से ये तस्कर अपना निशाना बना लेते हैं. बच्चे और महिलाएं इनके निशाने पर सबसे ऊपर होते हैं. इन मामलों पर नजर रखनेवाली असम सरकार की इकाई सीआईडी के आंकड़े बाल तस्करी की बड़ी भयावह तस्वीर पेश करते हैं. पिछले पांच वर्षों में असम के विभिन्न जिलों से लापता हुए बच्चों की कुल संख्या 4000 से ऊपर है. इनमें 2000 के लगभग लड़कियां है.

इन घटनाओं को लेकर पुलिस और प्रशासन का रवैया बेहद लचर है. असम सरकार के पास अभी भी तस्करी को रोकने की कोई स्पष्ट योजना नहीं है. जातीय संघर्ष के पीड़ितों के पुनर्वास का कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. लिहाजा विस्थापन शिविरों में रह रहे गरीब, बीमार लोग न चाहते हुए भी तस्करों के चंगुल में फंस जाते हंै. ‘फिलहाल सरकार की तरफ से किसी भी तरह कि जागरुकता देखने को नहीं मिल रही है.’  गुवाहाटी के बाल अधिकार कार्यकर्ता मिजुएल दाश कुया ने यह बात बताई.

मानव तस्करी के लिहाज से असम देश का एक अति संवेदनशील राज्य है. पूर्वोततर के देशों का द्वार होने के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी इसका महत्व बढ़ जाता है. निरंतर संघर्ष के कारण सामाजिक, आर्थिक बदलाव, व्यापक जनसांख्यिकीय परिवर्तन और कभी समाप्त नहीं होनेवाली बाढ़ की समस्या मिलकर ऐसा दुष्चक्र रचती है, जिसमें असमवासी पिस रहे हैं. तस्करों का लक्ष्य शरणार्थी शिविर होते हैं जहां विस्थापित लोग जातीय संघर्ष/प्राकृतिक आपदाओं के कारण शरण लेते हैं. असम सीआईडी की एक आंतरिक रिपोर्ट कहती है कि साल 2012 में बच्चों की तस्करी सबसे अधिक संख्या में हुई है. गौरतलब है कि वर्ष 2012 में बोडो जनजाति और बंगाली मुसलमानों के बीच जो खूनी संघर्ष हुआ था उसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और लाखों की संख्या में लोग विस्थापित हुए थे.

मानवाधिकार संगठन के एशियाई केंद्र की रिपोर्ट के अनुसार असम के चार जिलों (सोनितपुर, कोकराझार, उदालजुरी और चिरांग) में आंतरिक रूप से विस्थापितों की आबादी 3,00,000 से अधिक है. ये विस्थापित इन चार जिलों में बने करीब 85 राहत शिविरों में भटक रहे हैं. इन विस्थापन शिविरों की यात्रा के बाद एशियाई केंद्र ने पाया कि असम सरकार विस्थापन को रोकने और पुनर्वास की गति को बढ़ाने के प्रति पूरी तरह से उदासीन हैं. यहां तक कि वह मूलभूत मानवीय सहायता प्रदान करने में भी असफल रही है.

चिंताजनक तथ्य यह भी है कि मानव तस्करी में ज्यादातर महिलाएं और लड़कियां हैं, जिन्हें देश-भर के वैश्यालयों में बेच दिया जाता है.

23 दिसंबर 2014 को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (संबिजित गुट) द्वारा सोनितपुर, कोकराझार और चिरांग जिले में आदिवासियों पर हमले के बाद आंतरिक रूप से विस्थापितों की नई बाढ़ आ गई. आदिवासयों पर हुए इस आकस्मिक हमले में 90 से ज्यादा महिलाएं और बच्चे मारे गए थे. इन अादिवासियों को निशाना बनाने के पीछे वजह यह थी कि उन पर सुरक्षाबलों को जानकारी देने का शक था. इसके बाद सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में 21 दिसंबर 2014 को तीन बोडो उग्रवादी मारे गए. यह जानकारी एशियाई केंद्र, नई दिल्ली के निदेशक सुहास चाकमा ने दी.

असम से बच्चों और महिलाओं की तस्करी के मुख्य गंतव्य हैं सिलीगुड़ी, चेन्नई, गोवा, मुम्बई, हरियाणा, पंजाब, बिहार और दिल्ली. भारत-भूटान सीमा से लगे जिले बाक्सा, चिरांग, कोकराझार मजंलढ़, उदालजुरी और बारा अवैध तस्करी से सबसे ज्यादा ग्रस्त हैं. यहां से बोडो, नेपाली आदिवासी (चाय जनजाति), संभा, राजवंशी और मुसलमानों की तस्करी सबसे ज्यादा होती है. यूनिसेफ द्वारा जारी किए गए एक अध्ययन में असम के छह जिलों को तस्करी से बुरी तरह प्रभावित इलाके के रूप में चिन्हित किया गया है. ये छह जिले हैं, सोनितपुर, धमाजी, लखीमपुर, बाक्सा, कोकराझार, उदालजुरी और कामरूप. रिपोर्ट के अनुसार तस्कर असम के पश्चिम हिस्से को ट्रांजिट कॉरिडोर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार साल

2012 में महिलाओं के अपहरण के लगभग 3360 मामले इन्हीं इलाकों में दर्ज किए गए थे.

असम पुलिस के रिकार्ड के मुताबिक उन्होंने बीते साल 422 मानव तस्करी के पीड़ितों को बचाया है, जिसमें से ज्यादातर नाबालिग हैं और 281 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है. लापता बच्चों की बड़ी संख्या को देखते हुए यह आंकड़ा बहुत निराश करनेवाला है. असम पुलिस ने बाल एवं महिला तस्करी के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए 14 मानव तस्करी विरोधी इकाइयां गठित की हैं. अपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने 20 और इकाइयां गठित करने की मांग की है. इनमें से एक राजकीय रेलवे पुलिस से जुड़ी हुई है. ‘तस्करी के दौरान होनेवाले टकरावों में अक्सर बड़ी संख्या में लोगों की जानमाल को खतरा पैदा हो जाता है. लिहाजा हमने जातीय संघर्ष होने की हालत में स्थानीय एनजीओ को राहत आदि के काम में सहायता करने के लिए अलर्ट किया है. ये संगठन राहत शिविरों पर नजर रखने का काम करते हैं. इससे सुरक्षा बलों को शांति बहाली के कामों में लगाया जा सकता है. इस व्यवस्था से तस्करों का राहत शिविरों में घुसना कठिन हो जाता है.’ यह कहना है असम के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश सहाय का.

यह आम तथ्य है कि ज्यादातर लोग उसी समय तस्करों के जाल में फंसते हैं, जब जातीय संघर्ष या प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप रहता है. सहाय के मुताबिक हाल के दिनों में बड़ी संख्या में लड़कियों और बच्चों की मुंबई, हरियाणा, चेन्नई और सिलीगुड़ी से बचाया गया है. हमने तीन महीने के अंदर 3000 गायब हुए बच्चों को दोबारा से उनके घर वापस पहुंचाया है. ये बच्चे देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न कल-कारखानों में काम कर रहे थे. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि बहुत सी महिलाओं को भी इस दौरान खोज निकालने में सफलता मिली है. महिलाओं की तस्करी का सबसे बड़ा गंतव्य है हरियाणा. गौरतलब है कि हरियाणा में लड़के और लड़कियों के लिंगानुपात की विषमता के कारण तस्करों को यहां से ले जाई गई लड़कियों के लिए खरीददार आसानी से मिल जाते हैं. सहाय मानते हैं कि हमें अभी काफी सुधार करने की जरूरत है.

एक चिंताजनक तथ्य यह भी है कि बीते एक-दो सालों के दौरान मानव तस्करी की घटनाओं में अनपेक्षित बढ़ोत्तरी हुई है. एक सरकारी अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पुलिस के रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों पर मत जाइए. पिछले एक साल के दौरान अगर उन सभी मामलों को जोड़ दिया जाय जिनका पुलिस रिकॉर्ड में कोई जिक्र ही नहीं है, तो यह आंकड़ा 10,000 तक पहुंच जाएगा. इनमें से ज्यादातर महिलाएं और नाबालिग लड़कियां हैं, जिन्हें देश-भर के वैश्यालयों में बेच दिया जाता है. ग्लोबल ऑर्गनाइजेशन फॉर लाइफ डेवलपमेंट की सहायक महासचिव कावेरी शर्मा कहती हंै, ‘अधिकांश मामले ग्रामीण और संघर्ष पीड़ित क्षेत्रों से ही देखने को मिल रहे हैं. लड़कियों की तस्करी का एक बड़ा हिस्सा देह व्यापार के लिए हो रहा है.’

जाहिर है बारंबार संघर्ष और प्राकृतिक आपदाओं का दुष्चक्र असम के लोगों को मानव तस्करी की ऐसी अंधेरी सुरंग में धकेल चुका है, जिसका निकट भविष्य में अंत होता नहीं दिख रहा.