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उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल तेज, 15 अगस्त के बाद चुनावी रंग में दिखेगा

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

भले ही उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में 7-8 महीने से कम समय बचा हो पर, सियासी हलचल दिन व दिन तेज होती जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्ड़ा से मिलने के बाद उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायकों में उथल- फुथल मची हुई है। विधायकों ने तहलका संवाददाता को बताया कि जब से पश्चिम बंगाल में भाजपा की करारी हार हुई है । तब से आलाकमान से लेकर प्रदेश भाजपा के नेता बड़ी ही सूझबूझ से सियासी चाल चल रहे है।एक विधायक ने बताया कि राजनीति में कब क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है।क्योंकि कुछ विधायकों के टिकट कटने की संभावना अधिक है। प्रदेश की राजनीति के जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में भाजपा, सपा,बसपा और कांग्रेस के नेताओं का एक दूसरे दलों में आने-जाने का सियासी खेल खेला जायेगा। जिसके लिये अभी से जोड़ तोड़ का सियासी ताना बाना बनना और बनाना शुरू हो गया है। भले ही अभी ये राजनीतिक चालें चर्चा में ना हो । लेकिन जैसे ही चुनावी विसात बिछनी शुरू होगी त्यों ही नये –नये चहरे एक दल से दूसरे दल में जाने में देर नहीं करेंगे। माना जा रहा है कि इस बार का चुनाव किसी भी दल के लिये एक तरफा का चुनाव नहीं है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अभी से जोड़-तोड़ की राजनीति में लगें हुये है। दिल्ली से लखनऊ तक नेतओं का आना –जाना अब हर रोज तेज हो रहा है।

बताते चलें कोरोना के कहर की गति कम होते ही और 15 अगस्त के बाद उत्तर प्रदेश पूरी तरह से चुनावी रंग में दिखने लगेगा।

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों को व्यक्ति ने मार दिया थप्पड़, पकड़ा गया

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

एक बड़ी घटना में मंगलवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को एक व्यक्ति ने एक थप्पड़ मार दिया। राष्ट्रपति उस समय लोगों से मुलाकात कर रहे थे जब यह घटना हुई। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मारने की यह घटना दक्षिणपूर्वी फ्रांस के ड्रोम क्षेत्र की है। उस समय राष्ट्रपति लोगों के साथ वॉकआउट सेशन में थे जब यह घटना हुई। अचानक एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। हरे रंग की टीशर्ट, धूप का चश्मा और मास्क पहने यह व्यक्ति चिल्लाकर ‘डाउन विद मैक्रोनिया’ कहता सुना जा रहा है और अचानक वह राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मार देता है।
ऐसा होते ही राष्ट्रपति के सुरक्षा कर्मियों ने दो लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। उनके साथ जुड़ी घटना के वीडियो में दिख रहा है कि घटना तब हुई जब राष्ट्रपति हाथ जोड़े एक किनारे पर कतार में खड़ी लोगों की भीड़ के पास पहुंचे। कुछ लोगों ने उनके साथ हाथ मिलाया लेकिन अचानक मास्क पहने एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। उनके सुरक्षा कर्मी तुरंत राष्ट्रपति को एक किनारे ले गए और उस व्यक्ति को पकड़ लिया।
कुछ ख़बरों के मुताबिक पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के बीएफएम टीवी और आरएमसी रेडियो ने इस घटना की पुष्टि की है। घटना की एक वीडियो क्लिप ट्विटर पर वायरल हुई है।

फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों को व्यक्ति ने मार दिया थप्पड़, पकड़ा गया

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

एक बड़ी घटना में मंगलवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों को एक व्यक्ति ने एक थप्पड़ मार दिया। राष्ट्रपति उस समय लोगों से मुलाकात कर रहे थे जब यह घटना हुई। इस मामले में पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मारने की यह घटना दक्षिणपूर्वी फ्रांस के ड्रोम क्षेत्र की है। उस समय राष्ट्रपति लोगों के साथ वॉकआउट सेशन में थे जब यह घटना हुई। अचानक एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। हरे रंग की टीशर्ट, धूप का चश्मा और मास्क पहने यह व्यक्ति चिल्लाकर ‘डाउन विद मैक्रोनिया’ कहता सुना जा रहा है और अचानक वह राष्ट्रपति मैक्रों को थप्पड़ मार देता है।
ऐसा होते ही राष्ट्रपति के सुरक्षा कर्मियों ने दो लोगों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। उनके साथ जुड़ी घटना के वीडियो में दिख रहा है कि घटना तब हुई जब राष्ट्रपति हाथ जोड़े एक किनारे पर कतार में खड़ी लोगों की भीड़ के पास पहुंचे। कुछ लोगों ने उनके साथ हाथ मिलाया लेकिन अचानक मास्क पहने एक व्यक्ति ने उन्हें थप्पड़ मार दिया। उनके सुरक्षा कर्मी तुरंत राष्ट्रपति को एक किनारे ले गए और उस व्यक्ति को पकड़ लिया।
कुछ ख़बरों के मुताबिक पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक फ्रांस के बीएफएम टीवी और आरएमसी रेडियो ने इस घटना की पुष्टि की है। घटना की एक वीडियो क्लिप ट्विटर पर वायरल हुई है।

कोरोना के डेथ सर्टिफिकेट पर पीएम मोदी की फोटो क्यों नहीं : मांझी

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तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

कोरोना टीके की कमी को लेकर जहां कई राज्य परेशान है और बहुत जगह तो सभी वयस्कों के टीकाकरण पर रोक लगा दी गई है। इस बीच, सियासत और बयानबाजी भी जारी है। कोरोना टीकाकरण के बाद मिलने वाले प्रमाण पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर को लेकर फिर चर्चा शुरू हो गई है। इससे पहले विधानसभा चुनाव के दौरान मामले ने तूल पकड था। ताजा मामला बिहार में एनडीए सरकार में साझीदार हम पार्टी ने निशाना साधा है।

हम पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने ट्वीट कर निशाना साधा ‘को-वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के बाद मुझे प्रमाण-पत्र दिया गया, जिसमें प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है। देश में संवैधानिक संस्थाओं के सर्वेसर्वा राष्ट्रपति हैं। इस नाते उसमें राष्ट्रपति की तस्वीर होनी चाहिए। वैसे तस्वीर ही लगानी है तो राष्ट्रपति के अलावा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की भी तस्वीर हो। इससे पहले केंद्र सरकार कह चुकी है कि राज्यों को खुद टीकाकरण का खर्च उठाना होगा।

नीतीश सरकार में सहयोगी जीतन राम मांझी ने सोमवार को एक और ट्वीट किया जिसमें लिखा कि वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर यदि तस्वीर लगाने का इतना ही शौक है तो कोरोना से हो रही मृत्यु के डेथ सर्टिफिकेट पर भी तस्वीर लगाई जाए। यही न्याय संगत होगा।

 दिल्ली सरकार से व्यापारी संघ की अपील, अब ना बढ़ाये मिनी लाँकडाउन

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

कोरोना के नाम पर राजनीति के चलते हेल्थ सिस्टम नहीं सुधारा, जिसके चलते हाहाकार मचा है 

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

 

देश में कोरोना महामारी ने लोगों को वो अनुभव दिये है। जो उसे आसानी से ना मिलते । मौजूदा वक्त में एक ओर कोरोना का कहर तो दूसरी ओर किस्तों में लाँकडाउन या कर्फ्यू का लगना लोगों के आम जीवन को अस्त- व्यस्त कर मुशीबत में डाल दिया है। तहलका संवाददाता को डाक्टरों ,व्यापारियों और आम लोगों ने बताया कि लाँकडाउन के कारण उनको किस कदर तामाम झंझावतों से जूझना पड़ रहा है। डीएमए के पूर्व अध्यक्ष डाँ अनिल बंसल का कहना है कि दिल्ली में कोरोना की चेन को तोड़ने के लिये दिल्ली सरकार ने जो फैसला लिया है, वो सराहनीय है। क्योंकि दिल्ली में कोरोना का कहर रूक ही नहीं रहा है। ऐसे में लाँकडाउन होने से कोरोना की चेन टूटेगी और जिससे कोरोना के मामले भी कम सामने आयेगे। जबकि दिल्ली के स्थानीय इलाकों में छोटी –छोटी दुकान खोलकर अपने परिवार का पालन -पोषण करने वाले दुकानदारों ने बताया कि उनकी दुकान का किराया अब लाँकडाउन के लगने से नहीं निकल रहा है। सरकार ने लाँकडाउन लगाकर छोटे व्यापारियों की हालत पतली कर दी है। दुकानदार सुरेश गुप्ता का कहना है कि अगर ऐसे ही कोरोना के कारण लाँकडाउन का सिलसिला चलता रहा तो, वो दिन दूर नही। जब छोटे दुकानदारों को अपनी दुकाने बंद करनी होगी। क्योंकि पिछले साल के लाँकडाउन से अभी व्यापारी उभर ही नहीं पाया था, कि अब फिर से लाँकडाउन। दिल्ली के लोगों ने बताया कि देश में केन्द्र सरकार और दिल्ली की आप सरकार कोरोना को काबू करने में असफल रहे है। क्योंकि दोनों सरकारों ने सिर्फ राजनीति कर कोरोना के नाम पर जनता को गुमराह किया है। जबकि सरकार को पता था कि कोरोना सालों- साल रहने वाली बीमारी है। तो सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्यों सुधार नहीं किया है।अगर देश का स्वास्थ्य सिस्टम बेहत्तर होता तो कोरोना को लेकर हाहाकार ना होता। आज वैक्सीन और आँक्सीजन के न मिलने से मरीजों को परेशानी हो रही है। दवाओँ का टोटा होने लगा है। जो अपने आप में कोरोना जैसी बींमारी के रूप में लोगों को देश के नेताओं की राजनीति से अवगत करा रहा है। कि देश के नेता जनता के लिये कितना सोचते है।    

सेवा द्वारा प्रशिक्षित 10 हज़ार अफ़ग़ानी महिलाएँ बेरोज़गार

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तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

काबुल में रह रही हफ़ीज़ा जान कहती हैं- ‘16 अगस्त की सुबह जब मैंने सुना कि दश्त-ए-बारची (जहाँ से तालिबान पश्चिम काबुल में दाख़िल हुए) पर तालिबानों का क़ब्ज़ा हो गया है, तो मेरा शरीर काँप गया। आँखों के सामने वह दृश्य तैर गया, जब सन् 2013 में बंदूकधारी तालिबानों ने मेरी इतनी पिटाई की थी और मैं मरते-मरते बमुश्किल बची। उसके बाद काबुल में हम औरतों के लिए काम कर रहे हिन्दुस्तानी सेवा संगठन के साथ मैं जुड़ी। कपड़े सिलने का काम सीखा और पैसा कमाकर अपना व परिवार का पेट पालने लगी। अब फिर मुझे अपनी और माँ की सुरक्षा की चिन्ता सताने लगी है। मेरी अल्लाह से दुआ है कि वह किसी ऐसी जगह पर जाने में मेरी मदद करे, जहाँ मैं आज़ादी से रह सकूँ। ‘सेवा’ नामक इस की मदद से मैंने जो काम सीखा है, उसे करते हुए अपनी ज़िन्दगी चला सकूँ।’

वह आगे कहती हैं-‘अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबानों के शासन का मतलब है कि काम के लिए अब मुझे अपने केंद्र पर नहीं जाने दिया जाएगा। काम नहीं करूँगी, तो परिवार को न तो खिला सकूँगी, न माँ के लिए दवा ला सकूँगी। यह सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं होगा। मेरे जैसी लाखों महिलाओं को अब तालिबानों के नियंत्रण में रहकर उनके दमन का सामना करना होगा।’

काबुल में ही रह रहीं सोसन ने बताया- ‘मैं अपने बच्चों को लेकर अपने माता-पिता के साथ रहती हूँ। मेरी कमायी से ही घर का ख़र्च चलता है। अभी यहाँ जो कुछ हो रहा है, उससे घबराकर मैं अपना सारा पैसा निकलवाने के लिए बैंक गयी। लेकिन वहाँ बैंक वालों ने कह दिया कि उनके पास देने के लिए पैसे नहीं हैं। बैंक ख़ाली हो चुका है। सुनते ही मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। यहाँ भविष्य बेहद असुरक्षित है। मैं अफ़ग़ानिस्तान छोडक़र किसी सुरक्षित जगह पर चली जाना चाहती हूँ। सेवा ने मुझे आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया है। मुझे भरोसा है कि मैं किसी भी दूसरी जगह जाकर इतना कमा लूँगी कि अपने परिवार को दो जून की रोटी खिला सकूँ। यहाँ मुझे और मेरे परिवार को ख़तरा है। हमें मदद चाहिए।’

हफ़ीज़ा और सोसन अफ़ग़ानिस्तान की ग़रीबी रेखा से नीचे के परिवारों की ऐसी महिलाएँ हैं, जो अकेले ही अपने-अपने परिजनों की देखभाल कर रही हैं। पिछले 40 साल से तालिबानों और विदेशी फ़ौजो के शिकंजे में फँसे इस देश का पुरुष वर्ग बड़ी संख्या में या तो गोलीबारी में मारा जा चुका है, या देश से बाहर चला गया है, या फिर उसने भी तालिबानी होकर हाथ में बंदूक थाम ली है। ऐसे में बड़ी संख्या में परिवार चलाने का ज़िम्मा औरतों पर आ चुका है। सन् 1995 में सत्ता में आये तालिबानों के पहले शासन के दौर के बाद सन् 2004 में जब हामिद करजई की सरकार बनी, तो औरतें बेहद बदतर हालत में थीं। वे न तो घर से बाहर निकल सकती थीं; न पढ़ सकती थीं और न रोज़गार के लिए कोई हुनर उनके पास था। लम्बे समय के बाद देश में निर्वाचित सरकार बनी और देश के पुनर्निर्माण का काम शुरू हुआ।

पुनर्निर्माण के इस काम में भारत भी आगे आया। आज हर तरफ़ भारत की ओर से वहाँ बनाये गये पुलों, अस्पतालों और स्कूलों की चर्चा तो हो रही है; लेकिन पर उस केंद्र की बात कोई नहीं कर रहा, जिस पर अब नहीं जा सकने की बात हफ़ीज़ा कर रही हैं। जिसका नाम है- सबाह बाग़-ए-ख़ज़ाना सोशल एसोसिएशन। काबुल स्थित यह केंद्र वहाँ की ऐसी बेबस, विधवा और असहाय महिलाओं का अपना केंद्र है, जहाँ वे एक साथ जमा होकर अलग-अलग तरह के हुनर सीखती और सिखाती हैं। अपने उत्पाद तैयार करती हैं और फिर उन्हें बाज़ार में बेचकर पैसे कमाकर अपने परिवार का पेट पालती हैं। इस केंद्र को बनाने का काम इन बहनों ने ख़ुद ही किया और आज उसे चला भी ख़ुद ही रही थीं। इसे बनाने और चलाने की हिम्मत और सलाहियत उन्हें सेवा से ही मिली। अहमदाबाद की स्वाश्रयिन (अपने भरोसे रहने वाली) महिलाओं के लिए संघ सेवा की स्थापना सन् 1972 में इला भट्ट ने स्वरोज़गार में लगी असंगठित क्षेत्र की कामगार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए की थी। आज देश के 18 से अधिक राज्यों में इसके केंद्र 10 लाख से अधिक महिलाओं के परिवारों को ग़रीबी से बाहर निकालकर आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रहे हैं।

इस संस्था की मौज़ूदा निदेशक रीमा नानावटी के अनुसार, सन् 2006 में प्रधानमंत्री कार्यालय से सेवा के पास एक पत्र आया। इसमें कहा गया था कि अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण कार्य के तहत भारत क़रीब 1,000 ग़रीब ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित करना चाहता है, ताकि वे अपनी आजीविका ख़ुद कमा सकें। क्या ‘सेवा’ इस काम से जुड़ सकता है? प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले सेवा ने काबुल में जाकर हालात का जायज़ा लिया। उसने पता लगाया कि वहाँ के स्थानीय संसाधन क्या हैं? और उनके आधार पर वहाँ की महिलाओं को किस-किस प्रकार के रोज़गार का प्रशिक्षण दिया जा सकता है? जिससे वे अपने ही स्थानीय संसाधनों को आधार बनाकर आर्थिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकें। हमें ऐसे तीन क्षेत्र समझ में आये- पहला, कपड़ों की सिलाई और कढ़ाई; क्योंकि वे कढ़ाई बहुत सुन्दर करती थीं। दूसरा, खाद्य प्रसंस्करण; क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में फलों और मेवों का भण्डार है। और तीसरा, पौधों की नर्सरी; क्योंकि उत्सवों में वहाँ फूलों का जमकर उपयोग होता है। इन तीनों क्षेत्रों की बाज़ारी सम्भावनाओं का भी पता लगाया गया और यह भी कि क्या वहाँ कोई ऐसा संगठन है, जिसके साथ मिलकर यह काम किया जा सके? वहाँ से लौटकर रिपोर्ट सरकार को दे दी। उसके बाद काम शुरू हुआ। इसमें भारत सरकार, अफ़ग़ानिस्तान सरकार के महिला मंत्रालयों और सेवा संगठन, तीनों ने मिलकर काम किया और अभी तक कर रहे हैं।

ग़रीब अफ़ग़ानिस्तानी महिलाओं को रोज़गार प्रशिक्षण देने की इस साझा परियोजना के साथ शुरू से ही जुड़ी सेवा की तीन बहनों- मनीषा पंड्या, प्रतिभा पंड्या और मेघा देसाई के अनुसार, शुरू में वे काबुल में प्रशिक्षण देने गयीं। लेकिन जब बार-बार तालिबानों के हमले होने लगे, तो योग्य बहनों का चयन कर उन्हें अहमदाबाद के सेवा दफ़्तर में प्रशिक्षण दिया जाने लगा। तालिबानी हमलों ने उनके आत्मविश्वास को बुरी तरह तोड़ दिया था। वे बोल नहीं पाती थीं; लेकिन कुछ करना चाहती थीं। हमने सबसे पहले तो उनके आत्मविश्वास को लौटाया। फिर वस्त्र निर्माण, खाद्य प्रसंस्करण और पौधों की नर्सरी के क्षेत्र में मास्टर ट्रेनर्स तैयार किये। महिलाओं को सिखाया कि कैसे वे अपने शहर में जाकर प्रशिक्षण की इच्छुक महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनका कौशल्य संवर्धन कर सकती हैं। काम के हुनर के साथ-साथ हमने इन तीनों बहनों को बाज़ार प्रबन्धन और अपने आसपास की स्थितियों को देखकर काम तथा बाज़ार की सम्भावनाओं का पता लगाने की क्षमता बढ़ाने का प्रशिक्षण भी दिया। शुरू के तीन साल तो तीन-तीन महीने के लिए सेवा दल (टीमें) एक के बाद एक लगातार वहाँ जाते रहे। वहाँ काम करना आसान नहीं था; लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी। एक बार तो जहाँ हम ठहरी हुई थीं, वहीं पर बमों से हमला किया गया। प्रशिक्षण ले रही बहनों को भी धमकियाँ मिलती रहती थीं। ख़ुद महिलाओं की अपनी पारिवारिक और सामाजिक दिक़्क़तें थीं। तब हमने उनके पुरुषों को भी बैठकों में बुलाना शुरू किया। महिलाओं को समूहों में संगठित किया। फैक्ट्रियों में उन्हें काम नहीं मिलता था, तो उनके मालिकों से बात की। इन सब प्रयासों से उनकी आर्थिक, सामाजिक और मानसिक ताक़त काफ़ी बढ़ गयी। अब वे अपना रोज़गार भी करने लगीं। उन्होंने सबाह बाग़-ए-ख़ज़ाना सोशल एसोसिएशन को अपना केंद्र बना लिया। उनका सामान बाज़ार में ब्रांड के नाम से बिकने लगा। वे भारत में सेवा की व्यापार प्रदर्शनियों में भाग लेने लगीं। कमाने लगीं, तो घर के लोगों का विरोध बन्द हो गया। वे पढऩा-लिखना सीखने लगीं। बच्चों को स्कूल भेजने लगीं। ये सभी महिलाएँ ऐसी थीं, जिन पर उनके परिवार हर प्रकार से निर्भर थे। इनको आत्मनिर्भर होते देख वहाँ के महिला विकास मंत्रालय ने दूर-दराज़ के प्रान्तों में भी महिलाओं को प्रशिक्षण दिलवाने का फ़ैसला किया। सन् 2008 से लेकर इस साल 2021 तक सेवा काबुल शहर और पाँच प्रान्तों- मज़ार-ए-शरीफ़, हेरात, कंधार, बग़लान और परवान में 10,000 से ज़्यादा महिलाओं को आत्मनिर्भर बना चुकी है। 15 अगस्त तक सबाह केंद्र चल रहा था।

सेवा के अनुसार- ‘अभी अफ़ग़ानिस्तान के हालात के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। महिलाएँ एक बार फिर अपने को उसी हालत में पा रही हैं, जिसमें वे सन् 2008 में थीं। उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। फिर भी हम यही कह सकते हैं कि अपने को देश में असुरक्षित महसूस कर रही ये महिलाएँ जहाँ कहीं भी रहेंगी, अपना रोज़गार कर ही लेंगी। वे अन्दर से जागरूक हैं और हुनर का हौसला उनके पास है।’

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तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

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Haryana minister Anil Vij assures the probe into ‘entire Karnal episode’

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तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

Haryana Home minister Anil Vij on Thursday assured that the entire Karnal episode will be investigated, including the police lathi charge of farmers on August 28 and the “break their (farmers’) heads” comment of a civil services officer.

According to Anil Vij,  “we will probe the entire Karnal episode… not just Ayush Sinha. We can’t punish officers without a probe,” he said, adding, “If farmer leaders are found guilty we will also take action against them.

We can’t punish officers without a probe,” he said, adding, “If farmer leaders are found guilty we will also take action against them.”

Anil Vij’s remarks come after a days-long stand-off between the Haryana governments.

काबुल एयरपोर्ट के बाहर ब्लास्ट, 40 लोगों के मरने की आशंका

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तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

तहलका ब्यूरो
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट के बाहर दो ब्लास्ट हुए हैं। इनमें कम से कम 40 लोग मारे गए हैं जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए  की हालत गंभीर है। पेंटागन ने भी इन ब्लास्ट की पुष्टि की है और इसे आत्मघाती हमला बताया है जबकि एक बंदूकधारी ने भी गोलियां चलाई हैं। आशंका जताई जा रही है कि इन ब्लास्ट के पीछे आईएस का हाथ हो सकता है, हालांकि, इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है।
रूस की मीडिया रिपोर्ट्स में कम से कम 40 लोगों के मारे जाने की बात कही गयी है, जिनमें अमेरिका के चार सैनिक (मरीन कमांडो) भी शामिल हैं। किसी भारतीय के ब्लास्ट में घायल होने की जानकारी नहीं है। तालिबान ने इसे ‘आतंकी हमला’ बताते हुए हमले की निंदा की है। इस घटना के बाद फ्रांस ने अपने दूतावास को बंद करते हुए अधिकारियों और कर्मचारियों को वापस बुला लिया है।
अमेरिका में पेंटागन के प्रवक्ता ने इस ब्लास्ट की पुष्टि करते हुए कहा है कि यह ब्लास्ट काबुल एयरपोर्ट के बाहर हुए हैं। पहला विस्फोट काबुल एयरपोर्ट के एबे गेट पर हुआ, जबकि दूसरा ब्लास्ट बरून होटल के पास हुआ है।
कुछ टीवी फुटेज में एयरपोर्ट के बाहर धुंए के गुब्बार उठते देखे गए हैं। पेंटागन के मुताबिक यह ब्लास्ट एयरपोर्ट के एब्बे गेट के नजदीक हुआ है। अमेरिका के नागरिक और सैनिक (मरीन कमांडो) भी शामिल हैं। तालिबान ने इसे ‘आतंकी हमला’ बताते हुए हमले की निंदा की है।
रिपोर्ट्स में इस ब्लास्ट में 40 लोगों के मरने की बात कही गयी है जिनकी संख्या और ज्यादा हो सकती है। इनमें बच्चे भी शामिल हैं। तालिबान के प्रवक्ता ज़ब्बीउल्लाह ने इसे ‘आतंकी हमला’ बताया है। तालिबान ने कहा कि उसने अमेरिकी सेना को इस खतरे को लेकर पहले ही आगाह किया था।
अमेरिका के अधिकारियों ने काबुल एयरपोर्ट पर अपने देश के लोगों को जाने से बचने की लिए कहा है। आशंका जताई जा रही है कि इन  ब्लास्ट के पीछे आईएसआईएस का हाथ हो सकता है, हालांकि, इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं की है।

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