सरदार पटेल प्रधानमंत्री बनते तो भारत हिंदू राष्ट्र बन जाता

sardar_patelयह कथा बनारस के अस्सी घाट पर बातचीत में तल्लीन दो पुलिसकर्मियों के बीच से निकल कर आई. इस कहानी में दो खलनायक और एक बेचारा रूपी नायक है जो प्रधानमंत्री बनने से रह गया. दोनों पुलिस बंधुओं के बीच कथा कुछ ऐसे आगे बढ़ी की आजादी के समय पूरा देश और पूरी कांग्रेस पार्टी मिलकर सरदार बल्लभ भाई पटेल को प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी. सरदार पटेल बहुत ही निडर, जीवटवाले और इरादों के पक्के नेता थे. वे न होते तो जितना भारत आज बचा हुआ है वो भी नहीं बच पाता. जवाहरलाल नेहरू तो प्रधानमंत्री बनने के लालच में थे. उनका बस चलता तो इस देश के कई और टुकड़े हो जाते. वो तो सरदार पटेल अड़ गए अपनी बात पर कि पाकिस्तान के अलावा दूसरा हिस्सा नहीं मिलेगा मुसलमानों को. पाकिस्तान मुसलमानों का देश बनेता तो भारत हिंदूराष्ट्र बनेगा. पटेलजी की इस बात पर पूरी कांग्रेस पार्टी उनके साथ हो गई और उन्हें ही प्रधानमंत्री बनाने पर एकराय हो गई थी. तब जवाहरलाल नेहरू ने गहरी चाल चली. वे गांधीजी को अपने वश में रखते थे. गांधीजी के साथ मिलकर उन्होंने खुद को प्रधानमंत्री घोषित करवा लिया. महात्मा गांधी का कद बहुत बड़ा था, उनकी बात कोई नहीं टालता था. इसी का फायदा नेहरू ने उठाया. भारत हिंदूराष्ट्र भी नहीं बन पाया और आज देखिए पाकिस्तान जब मन करता है आंख दिखाने लगता है. भारत का सारा गुड़गोबर नेहरूजी के प्रधानमंत्री पद की लालच की वजह से हुआ.


गौर फरमाएं

यह सच है कि आजादी के समय गांधीजी के बाद नेहरू और पटेल सबसे कद्दावर नेता थे. दोनों के बीच में कई विषयों को लेकर टकराव भी रहते थे. लेकिन कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने पटेलजी को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित किया हो. न ही कभी पटेल भारत को हिंदूराष्ट्र बनाने का सपना देखते थे. एक बार को यह मानकर चीजों को परखें कि पटेल अगर प्रधानमंत्री बनते तो भारत का चेहरा अलग होता तब भी यही बात साबित होती है कि कमोबेश जैसा भारत आज है वैसा ही रहता. इसकी वजह ये है कि 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल की स्वाभाविक मृत्यु हो गई. यानी स्वतंत्र भारत का पहला लोकतांत्रिक चुनाव होने से पहले ही पटेल का देहांत हो चुका था. उनकी अनुपस्थिति में दूसरे सबसे बड़े कद के नेता एक बार फिर से जवाहरलाल नेहरू ही सामने आते. और जितने लंबे समय तक नेहरू देश के प्रधानमंत्री रहे उसे देखते हुए एक दो साल कम या ज्यादा होने पर भी भारत का मौजूदा चेहरा कुछ खास अलग होता यह मानने की ठोस वजह नहीं मिलती.