महात्मा गांधी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलाए

कमोबेस भारत का हर नागरिक क्रिकेट और राजनीति का महारथी होता है. उसी तरह हमारे यहां लगभग हर व्यक्ति महात्मा गांधी के बारे में कोई न कोई राय जरूर रखता है, फिर चाहे वह अच्छी हो या बुरी. गांधी अक्सर लोगों के बीच बहस का विषय भी बनते हैं और बहस में जब गांधी विरोधी परास्त होने लगते हैं तब अक्सर ही वह कहानी सामने आती है जिसके सहारे उनके विरोधी गांधी वध को जायज ठहराने की हद तक चले जाते हैं. कहानी यूं है- ‘गांधी ने भारत सरकार को ब्लैकमेल करके पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलवाए थे.’ महात्मा गांधी द्वारा पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलवाने की बात सुर्खियों में तब आई जब गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे ने अदालत में अपने बयान में गांधी की हत्या की वजहें गिनवाते हुए इन रुपयों का भी जिक्र किया. गांधी विरोधियों का कहना है कि कश्मीर में पाकिस्तान की तमाम आक्रामक गतिविधियों और घुसपैठ के बावजूद गांधी ने अनशन करके भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद दे. मिर्चमसाले के तौर पर कहानी में यह भी जोड़ा जाता है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और गृहमंत्री वल्लभ भाई पटेल कतई नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान को यह मदद दी जाए लेकिन महात्मा गांधी ने उपवास करके ये 55 करोड़ रुपये पाकिस्तान को देने को मजबूर कर दिया.


गौर फरमाएं

यह सच है कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये की राशि दी गई थी लेकिन मदद का प्रचार एक सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है जो कि मिथ्या है. पाकिस्तान को दी गई मदद खैरात नहीं थी बल्कि भारत-पाक के विभाजन की शर्तों के मुताबिक परिसंपत्तियों और देनदारियों का जो बंटवारा हुआ था उसके तहत यह राशि भारत द्वारा पाकिस्तान को सौंपी जानी थी. वास्तव में पाकिस्तान को 75 करोड़ रुपये दिए जाने थे. 20 करोड़ रुपये की पहली किस्त पाकिस्तान को जारी की जा चुकी थी जबकि 55 करोड़ रुपये देने बाकी थे. इसी बीच कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले की वजह से भारत ने 55 करोड़ की शेष राशि का भुगतान रोक दिया था. इस पर तत्कालीन गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और कहा कि यह पाकिस्तान के साथ हुई संधि का उल्लंघन होगा. उसूलों के पक्के गांधीजी को उनकी बात जंची सो उन्होंने सार्वजनिक वक्तव्य देकर कहा कि पाकिस्तान को उसका बकाया पैसा दे दिया जाना चाहिए. यह बात निराधार है कि गांधीजी ने यह पैसा दिलवाने के लिए उपवास किया. गांधीजी विभाजन के बाद शांति बहाली की अपील करने पाकिस्तान भी जाना चाहते थे लेकिन उसके पहले वे पाकिस्तान को उसका पूरा हक दिलवाना चाहते थे.