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Home Blog Page 124

पिछले अंक का शेष…, चमक गँवाता हीरा

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

हीरे के काम से जुड़े मज़दूरों की दशा बहुत अच्छी नहीं है, जबकि हीरा व्यापारी मालामाल रहते हैं

ज्वेलरी कॉर्पोरेट व्यवसाय के काम-काज को अन्दर तक खँगाले तो, लेब डायमंड ने भी हीरे की गरिमा को प्रभावित किया है। नतीजतन असमंजस का माहौल गर्व करने को प्रेरित नहीं करता। लेकिन अगर रत्नों के समूचे आख्यान और वैभव की तरफ़ लौटें तो हमें हीरे (डायमण्ड)पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा। आज भारत के कई हीरा व्यापारी विदेशों में जाकर हीरे का व्यापार कर रहे हैं, जिनमें कुछ यहाँ के हीरा बाज़ारों की हाल और दुश्वारियों को देखते हुए विदेशों का रूख़ कर चुके हैं, तो कुछ बैंकों से क़र्ज़ लेकर रफ़ूचक्कर हो चुके हैं।

इस चमकते व्यापार की बदसूरती यह है कि कोयले से हीरा निकालने और उसे तराशकर उसमें चमक भरने वाले मज़दूरों की दशा बहुत अच्छी नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में हीरा-तराशी के काम से जुड़े कई मज़दूरों ने आत्महत्या तक की है। कह सकते हैं कि कोयले से हीरा निकालने वाले मज़दूर दिन-रात काले ही रहते हैं और हीरा-तराशी करने वाले मज़दूरों के हाथ कटे रहते हैं; लेकिन मालामाल इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारी ही रहते हैं। यह इस व्यवसाय का सियाह पहलू ही कहा जाएगा। केवल सावजी ढोलकिया अकेले ऐसे हीरा व्यापारी हैं, जो अपने कर्मचारियों को हर साल महँगे तोहफ़े देते हैं और हर साल अनेक ग़रीब युवतियों की शादी कराते हैं।

राहत की बात

फ़ख़्र की बात यह है कि मौज़ूदा समय में अमेरिका और चीन के बाद भारत विश्व का सबसे बड़ा हीरा बाज़ार है। भारत के मध्यम वर्ग में हीरे के सालाना 12 फ़ीसदी रुझान बढ़ रहा है। भारत और पड़ोसी देश चीन में 70 फ़ीसदी लोगों का मानना है कि शादियों के लिए हीरा सबसे बेहतरीन तोहफ़ा हो सकता है।

वैश्विक हीरा उद्योग के समूचे आख्यान पर नज़र डालें तो कहना ग़लत नहीं होगा कि हीरों के उत्पादन में क़रीब 20 फ़ीसदी की ढलाई तो बीते बरस ही शुरू हो गयी थी। नतीजतन खुरदरा हीरा (रफ डायमंड) की बिक्री में क़रीब 33 फ़ीसदी की कमी आ गयी। उत्पादन और माँग में अन्तर का फ़ासला बढ़ा, तो खनन कम्पनियों का मुनाफ़ा भी 20 से 22 फ़ीसदी तक कम हो गया। बावजूद इसके हीरे के प्रति लोगों का रुझान दिनोंदिन बढ़ रहा है। अलबत्ता बेन की रिपोर्ट खँगालें तो लॉकडाउन नीति, सरकारी समर्थन और फुटकर विक्रेताओं के रुझान के मद्देनज़र हीरे की माँग में बढ़त अहम हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना भी है कि हीरा उद्योग को पटरी पर लाने में मध्यम वर्ग का योगदान अहम भूमिका निभा सकता है। इस लिहाज़ से यह एक अच्छी ख़बर हो सकती है कि कच्चे हीरे के प्रबन्धन में जिस तरह सुधार किया जा रहा है। कलई (पॉलिश) किये गये हीरे की तुलना में उसकी बाज़ार में माँग बढ़ सकती है। उधर क्रिसिल रेटिंग्स के निदेशक राहुल गुट्टा कहते हैं कि जिस तरह हीरे का निर्यात बढ़ रहा है, अक्टूबर तक इसमें प्रतिमाह औसतन दो बिलियन डॉलर (तक़रीबन 14,822 करोड़ रुपये) तक बढ़ोतरी होने की उम्मीद की जा सकती है। निर्यात से पिछले वित्त वर्ष राजस्व में आयी बढ़ोतरी ने आँकड़ा 16.4 बिलियन डॉलर (1,21,540.40 करोड़ रुपये) तक पहुँच गया। क्रिसिल की रिपोर्ट कहती है कि हीरा व्यापारियों की आय में 20 फ़ीसदी में बढ़ोतरी हुई है। भारत में हीरे के निर्यात के लिए सबसे अच्छा संकेत मानें तो यात्रा पर प्रतिबन्ध और आतिथ्य समारोह पर ख़र्च को सीमित करने से यह हालात बने है।

लॉकडाउन से हुआ नुक़सान

लॉकडाउन में निर्यात प्रभावित होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। भारत में वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाये गये लॉकडाउन से बढ़ी मंदी और शादियों पर लगी रोक के कारण हीरों की खुदरा बिक्री में 26 फ़ीसदी की गिरावट आ गयी। हालाँकि चीन में हीरा जड़े आभूषणों की माँग की भरपायी इस साल हो जाएगी; लेकिन भारत को पिछले स्तर पर आने में भी ज़्यादा समय लग सकता है। कोरोना-काल में सिर्फ़ जयपुर ही नहीं, बल्कि पूरे देश के रत्न कारोबारियों को झटके पहले तो पिछले साल हॉन्गकॉन्ग, अमेरिका, इंडोनेशिया और ताइवान के जेम्स ज्वेलरी शो (रत्नाभूषण प्रदर्शन) के निरस्त होने से भारी नुक़सान हुआ। इसके बाद पिछले साल अप्रैल में शुरू हुए दुनिया के दूसरे सबसे बड़े जेम्स शो (रत्न प्रदर्शन) तुसान में भी उन्हें शामिल नहीं होने दिया गया, जबकि तमाम कारोबारी भारी उम्मीदें लिये इस प्रदर्शन में पहुँचे थे। लेकिन यूएएन अथॉरिटी ने क़रीब 70 जौहरियों को लौटा दिया। इनमें 35 से ज़्यादा जौहरी जयपुर के थे। जौहरियों का कहना है कि उन्होंने एक माह पहले ही पार्सल भेज दिये थे, इससे उन्हें 7,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है। सूत्रों का कहना है कि जौहरियों को यह कहकर वापस लौटा दिया गया कि उनका वीजा रत्नाभूषणों की बिक्री के लिए नहीं है।

अब तक मिले बड़े हीरे

दुनिया का सबसे क़ीमती हीरा तो आज भी कोहेनूर ही है। बड़ी बात यह है कि यह भारत की अमानत है। भले ही उसे अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से उड़ा लिया। कोहेनूर के अलावा अगर बात करें, तो वज़न में दुनिया का बड़ा ‘क्यूलिनन’ नाम का हीरा दक्षिण अफ्रीका में सन् 1905 में मिला, जिसका वज़न 3,106 कैरेट है। दूसरा बड़ा हीरा हीरा बोत्सवाना में मिला, जिसका वज़न 1,174.76 कैरेट है। इसके बाद सन् 2015 में पूर्वोत्तर बोत्सवाना में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा ‘लसेडी ला रोना’ पाया गया। टेनिस-बॉल के आकार का यह हीरा 1109 कैरेट का है। इस हीरे को कनाडा की हीरा कम्पनी लूकारा ने करोवे हीरा खदान से खोजा था। दक्षिण अफ्रीकी देश वोत्सवाना में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा हीरा मिला है। 1098 कैरेट के 73 मिलीमीटर चौड़े इस हीरे को खोजने वली कम्पनी देवस्वाना है। देवस्वाना की प्रबन्ध निदेशक लयनेटे आर्मस्ट्रॉन्ग ने कहा कि माना जा रहा है कि गुणवत्ता के आधार पर यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा है। यह दुर्लभ और असाधारण पत्थर अंतरराष्ट्रीय हीरा उद्योग और बोत्सवाना के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। फ़िलहाल हीरे को नाम नहीं दिया गया है।

बता दें कि बोत्सवाना अफ्रीका का शीर्ष हीरा उत्पादक देश है। इसकी राजधानी गोबोरानी कच्चे हीरों की खुदाई के अलावा इनकी कटाई, कलई और बिक्री के लिए भी मशहूर है। कोरोना-काल में संकट से जूझ रही बोत्सवाना सरकार को इस हीरे की खोज से बड़ी राहत मिली है। इसके ज़रिये सरकार को बड़ी रक़म मिलने की सम्भावना है। देवस्वाना कम्पनी जितने हीरे बेचती है, उसका 80 फ़ीसदी राजस्व सरकार को मिलता है।

कुछ समय पहले श्रीलंका के रत्नपुरा इलाक़े में एक घर के आँगन में कुएँ की खुदाई के दौरान बहुमूल्य रत्न नीलम का दुनिया का सबसे बड़ा क्लस्टर (समूह) मिला। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में 510 किलोग्राम वज़नी इस हीरे की क़ीमत 100 मिलियन डॉलर (तक़रीबन 7.5 अरब रुपये) है। इसे सेरेंडिपिटी सफायर यानी क़िस्मत से मिला नीलम नाम दिया गया है। इस नीलम को कोलम्बो में एक बैंक की तिजोरी में रखा गया है। रतनपुर को श्रीलंका की रत्न राजधानी के तौर पर जाना जाता है। पूर्व में भी इस शहर से कई क़ीमती रत्न मिले हैं। श्रीलंका दुनिया भर में पन्ना, नीलम और अन्य बेशक़ीमती रत्नों का प्रमुख निर्यातक है। इसकी खोज आठ माल पहले हुई थी। तब सुरक्षा कारणों से घोषणा नहीं की गयी थी। इसकी सफ़ार्इ व अन्य अशुद्धियाँ निकालने में काफ़ी समय लगा।

Harish Chaudhary appointed as new Congress in-charge in Punjab

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

Congress has appointed Rajasthan’s revenue minister Harish Chaudhary as a head of the All India Congress Committee in Punjab and Chandigarh with immediate effect for the upcoming election.

Harish Chaudhary replaces former Uttarakhand chief minister Harish Singh Rawat. He was the observer in charge of Punjab during the recent change of leadership.  He was also Punjab in-charge of the party during the 2017 assembly elections.

He has served as the national secretary of the All India Congress Committee and is currently a member of the Rajasthan Legislative Assembly from the Baytu constituency in the Barmer district of the state.

AICC General Secretary K C Venugopal said that Mr Rawat is “being relieved” of his current responsibilities as AICC General Secretary In-Charge for Punjab and Chandigarh but will continue as a member of the Congress Working Committee.

Harish Rawat wanted to focus on Uttarakhand elections next year so he had been demanding the party leadership to relieve him from the Punjab Congress in-charge duty.

Shah Rukh Khan visited Mumbai jail to meet son Aryan Khan

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

 

 

 

 

Actor Shah Rukh Khan today visited Mumbai’s Arthur Road Jail to meet his son Aryan Khan. He denied bail in the drugs-on-cruise case yesterday and he has been in jail since October 8.

After the arrest of his son Aryan, this was the first meeting of Shah Rukh Khan with his 23-year-old son, who was arrested after the Narcotics Control Bureau (NCB) raided a rave party on a cruise ship off Mumbai on October 2.

Shah Rukh Khan spent around 20 minutes at the jail after Maharashtra government easing restrictions on jail visits amid the pandemic.

Earlier, Aryan Khan has been denied bail twice. The Bombay High Court will hear his bail request on Tuesday.

Shah Rukh Khan and Gauri Khan had spoken with Aryan on a video call on Friday.

A special court on yesterday denied Aryan Khan Bail saying his WhatsApp chats appeared to reveal his involvement in “illicit drug activities”.

Judge VV Patil said in his order, “WhatsApp chats prima facie reveals accused Aryan Khan is dealing in illicit drug activities for narcotic substances on a regular basis. Therefore, it cannot be said that Khan is not likely to commit a similar offence while on bail. “

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

महंगाई और बेरोजगारी से लोगों के बीच निराशा
राजीव दुबे
भले ही सरकार तामाम दावे करें, कि देश में रोजगार
मुहैया कराये जा रहे है। पर धरातल पर सब कुछ उल्टा
है। ना तो लोगों के पास रोजगार है और ना ही काम-
धंधे सही चल रहे है। दिल्ली के युवाओं ने तहलका
संवाददाता को बताया कि एक ओर तो देश में महगांई हर
रोज आसमान को छू रही है। वहीं काम धंधे और रोजगार
ना होने के कारण घर का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा
है। दिल्ली व्यापार मोर्चा के पवन अरोड़ा का कहना है कि
कोरोना काल के पहले ही देश में युवाओं को रोजगार नहीं
थे। सरकार अब भले ही कह रही है कि कोरोना के चलते
रोजगार की दिक्कत हुई है। जबकि सच्चाई ये है कि
कोरोना काल के पहले 2018 से देश में बेरोजगारी बढ़ी
है। तामाम आँकडे इसके गवाह है। कि सरकार रोजगार

मुहैया कराने में असफल रही है। रहा सवाल महंगाई तो
आने वाले दिनों में सरकार की उदासीनता और निजीकरण
के बढ़ते प्रभाव के कारण देश में महंगाई बढ़ेगी।खाना-पीने
के सामान आसमान छू रहे है। डीजल –प्रेट्रोल के दामों में
बृद्दि के चलते आना-जाना और खाना –पीना सब कुछ
महंगा हो गया है। फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री से जुड़े अनिल
अग्रवाल ने बताया कि कोरोना काल में दवा का कारोबार
जमकर बढ़ा है। साथ ही दवाईयों के दामों में इजाफा होने
से गरीब मरीजों को बाजार से दवा खरीदनें में आर्थिक
तंगी का सामना करना पड़ रहा है। अगर देश को स्वस्थ्य
चाहिये तो, महंगाई के साथ दवा को सस्ता करना करना
होगा। अन्य़था दवा के अभाव में लोगों को इलाज करवाने
में दिक्कत होगी। अनिल अग्रवाल का कहना है कि
महंगाई और बेरोजगारी से देश में निराशा का माहौल बन
रहा है।

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

सिंघु बार्डर पर पेड़ से लटका मिला
शव; किसान मोर्चा की मांग, जांच हो

तहलका ब्यूरो
सिंघु बॉर्डर में एक युवक की हत्या करके उसका शव टांगने की घटना ने तूल पकड़ लिया है। यह शव आज सुबह किसान आंदोलन के एक मंच के पीछे मिला था और उसका हाथ भी कटा हुआ था। किसान मोर्चा ने घटना की कड़ी जांच की मांग की है। उधर कांग्रेस ने भी इसे गंभीर मामला बताते हुए इसकी जांच की मांग की है।

जानकारी के मुताबिक सिंघू बॉर्डर पर मृत मिले शख्स की पहचान लखबीर सिंह के रूप में हुई है। पुलिस ने कहा कि लखबीर सिंह को हरनाम सिंह ने 6 साल की उम्र में गोद लिया था। लखबीर सिंह मजदूरी का काम करता था और पंजाब के तरनतारन के गांव चीमा खुर्द का निवासी था। इस 35 साल के व्यक्ति की 3 बेटियां हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उसकी पत्नी लखबीर से अलग रह रही थी। लखबीर को नशे की भी लत बताई जा रही है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने घटना की निंदा करते हुए जांच की मांग की है। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने आरोप लगाया कि व्यक्ति की हत्या के पीछे निहंग सिखों का हाथ हो सकता है। राजेवाल ने कहा – ‘उन्होंने (निहंग) इसे स्वीकार कर लिया है। निहंग शुरू से ही हमारे लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं।’ उधर पुलिस ने कहा कि उन्हें अभी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली है कि घटना के लिए कौन जिम्मेदार है।

सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिसमें कुछ निहंग हत्या की बात स्वीकार करते दिख रहे हैं। इन वीडियो में यह लोग दावा कर रहे कि ‘इस युवक ने कथित तौर पर गुरु ग्रंथ साहिब से बेअदबी की है और उसकी सजा के तौर पर हत्या की गई है’। ‘तहलका’ इन सभी वायरल वीडियो के कंटेंट की पुष्टि नहीं करता है।

पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस ने कहा है कि वह  वायरल वीडियोज की जांच कर रहे हैं। उधर संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने पूरी घटना से खुद को दूर कर लिया है। किसान संगठन ने कहा कि वह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हरियाणा सरकार के साथ सहयोग करने को तैयार है।

जानकारी के मुताबिक शख्स का हाथ काटकर उसके शव को लटका दिया गया। इस घटना का वीडियो दिल दहला देने वाला है। वायरल हो रहे वीडियो में दिख रहा है कि जमीन पर पड़ा युवक तड़प रहा है। पास ही उसका कटा हुआ हाथ पड़ा है। वहां उपस्थित निहंग की भेष वाले लोग गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के आरोप लगा रहे हैं। तड़प रहे शख्स से उसका नाम-पता पूछ रहे हैं और ‘सत श्री अकाल’ नारे लगा रहे हैं।

पुलिस ने बताया कि सुबह पांच बजे उसे सूचना मिली थी कि थाना कुंडली क्षेत्र में किसान आंदोलन इलाके में मंच के पास एक व्यक्ति के हाथ-पैर काटकर लटकाया हुआ है। थाने से एएसआई संदीप टीम के साथ मौके पर पहुंचे। वहां देखा कि शख्स के शरीर पर सिर्फ अंडरवियर था।

सिद्धू बने रहेंगे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष, कल होगी बड़ी घोषणा !

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024
राकेश रॉकी
पंजाब कांग्रेस के बीच चल रहा संकट ख़त्म होने की खबर है। नवजोत सिंह सिद्धू का पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा पार्टी आलाकमान ने फिलहाल नामंजूर कर दिया है। वे अध्यक्ष बने रहेंगे। कल कांग्रेस आलाकमान पंजाब कांग्रेस से जुड़ा कोई बड़ा फैसला कर सकती है। सिद्धू ने आज शाम पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रभारी महासचिव हरीश रावत से मुलाकात की, जिसके बाद यह जानकारी सामने आई है। पार्टी ने हाल में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह को मनाने की कोशिश की थी और कल उनसे जुड़ी कोई बड़ी घोषणा हो सकती है।

सिद्धू ने बैठक के बाद कहा है कि वे आलाकमान की हर बात मानेंगे और उनका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी पर पूरा भरोसा है। सिद्धू ने कांग्रेस आलाकमान पर पूरा भरोसा जताया है। उधर पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने आज पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह से परिवार सहित मुलाकात की।  हाल में चन्नी के बेटे की शादी हुई है। याद रहें रहे सिद्धू ने 28 सितंबर को कांग्रेस की पंजाब इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और आज की बैठक इसी सिलसिले में थी।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक पंजाब से जुड़े मसलों पर विवाद सुलझा लिया  गया है। आलाकमान की तरफ से शुक्रवार को पंजाब को लेकर कोई बड़ा फैसला किया जा सकता है। आज शाम सिद्धू ने संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और प्रदेश प्रभारी हरीश रावत से करीब 45 मिनट गुफ्तगू की। समझा जाता है कि पार्टी अलाकमान अमरिंदर सिंह को मनाने की कोशिश कर रही थी और कल कोई बड़ी घोषणा उनसे जुड़ी हो सकती है। अमरिंदर की पत्नी परनीत कौर कांग्रेस की सांसद हैं और माना जाता है कि वे कांग्रेस छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं।

इस बैठक के बाद सिद्धू के बाद प्रभारी हरीश रावत ने मीडिया को बताया -‘सिद्धू ने आपसे साफ़ बताया है कि वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का जो भी आदेश होगा, उन्हें मान्य होगा और वह उसका पालन करेंगे। आदेश बिल्कुल साफ है कि वह पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष के तौर पर अपना काम पूरी शक्ति से करें और सांगठनिक ढांचे को मजबूत करें। कल आपको इससे बड़ी सूचना विधिवत तरीके से मिल जाएगी।’

हरीश रावत ने कहा – ‘सिद्धू से कांग्रेस संगठन को मजबूत करने के लिए कहा गया है। कल तक आपको स्थिति और साफ हो जाएगी।’ उधर सिद्धू ने कहा – ‘मुझे पक्का भरोसा है कि आलाकमान पंजाब के हित में फैसला लेगा। मैंने पंजाब के प्रति, पंजाब कांग्रेस के प्रति जो भी मेरी चिंताएं थी वो पार्टी आलाकमान को बताई हैं। मुझे कांग्रेस अध्यक्ष पर, प्रियंका जी पर और राहुल जी पर पूरा भरोसा है। वे जो भी निर्णय लेंगे वो कांग्रेस और पंजाब के हित में होगा, उनके हर आदेश का पालन करूंगा।’

By
तहलका ब्यूरो
-
March 18, 2024

बदलते मोहरे

लचर प्रदर्शन के कारण मुख्यमंत्री बदलने को मजबूर भाजपा

 

राकेश रॉकी

 

भाजपा अब तक कांग्रेस की सरकारों को गिराकर अपनी सरकारें बना रही थी। अब अपनी ही सरकारों में मुख्यमंत्रियों को ताश के पत्तों की तरह फेंट रही है। विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा की इस कसरत ने कांग्रेस, टीएमसी और बाक़ी विपक्ष को यह अवसर दे दिया है कि वह भाजपा के मुख्यमंत्रियों को बदले जाने की वजह उनकी नाकामी को बताये।

उधर भाजपा के भीतर नेताओं में अपने भविष्य को लेकर अस्थिरता की भावना पैदा हो चुकी है। वरिष्ठ नेताओं को लगने लगा है कि उन्हें भी आडवाणी, जोशी और अन्य की तरह मार्गदर्शक मण्डल में बैठा दिया जाएगा। भाजपा में अब ऐसे नेताओं का दायरा बढ़ता जा रहा है, जो यह महसूस करने लगे हैं कि उनकी हैसियत सिर्फ़ मोहरों की रह गयी है। भाजपा में इस उठा-पटक का क्या असर है?

यह केंद्रीय मंत्री और आरएसएस के नज़दीकी नितिन गडकरी के जयपुर वाले बयान से सहज ही समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा- ‘आज के हालात में हर कोई दु:खी है। कोई मंत्री न बनने से दु:खी है, तो मुख्यमंत्री। वे इसलिए दु:खी हैं कि पता नहीं कब हटा दिये जाएँगे।’ बात मज़ाक़ में कही गयी थी। लेकिन राजनीतिक तंज़ ऐसे ही मुहावरे बनाकर कसे जाते हैं।

इसी साल में अब तक भाजपा अपने चार मुख्यमंत्रियों को ठिकाने लगा चुकी है। जनता में सन्देश जा रहा है कि यह मुख्यमंत्री नाकाम हो चुके थे और पार्टी को चुनाव जिताने की स्थिति में नहीं थे, लिहाज़ा उन्हें बदल दिया गया। मुख्यमंत्रियों में अपनी कुर्सी बचाने की चिन्ता है। भाजपा अपने मुख्यमंत्रियों को किस तत्परता से फेंट रही है? इसका बड़ा उदहारण उत्तराखण्ड है, जहाँ पार्टी ने तीन महीने में ही दो मुख्यमंत्री बदल दिये। इससे भाजपा शासित राज्यों में विकास के कामों पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है और पार्टी के बीच ही अस्थिरता जैसी स्थिति बन चुकी है। कर्नाटक में जुलाई में ताक़तवर लिंगायत नेता बी.एस. येदियुरप्पा को कुर्सी छोडऩी पड़ी।

अपना नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने ‘तहलका’ से बातचीत में कहा कि इन फ़ैसलों से पार्टी को नुक़सान उठाना पड़ सकता है। उनके मुताबिक, ऐसा करने से पार्टी नेतृत्व अपनी असुरक्षा की भावना को उजागर कर रहा है, जो उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है। उधर इस विषय पर ‘तहलका’ से बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल ने कहा- ‘यह साफ़ हो गया है कि राज्यों में भाजपा की सरकारें फ्लॉप (नाकाम) हैं। लोगों में उनकी नाकामी से निराशा है। लेकिन इसमें एक और बात भी है। केंद्र की भाजपा सरकार अपनी नाकामियाँ छिपाने का ठीकरा भी अपने मुख्यमंत्रियों पर ही फोड़ रही है, ताकि लोगों का उनसे ध्यान हटाया जा सके। केंद्रीय मंत्रिमण्डल के हाल के फेरबदल में भी यही किया गया था। यह सन्देश देने की कोशिश की गयी कि ख़राब प्रदर्शन वाले मंत्री हटा दिये गये। जबकि कोविड, महँगाई और अन्य मोर्चों पर सरकार की नाकामी की सीधी ज़िम्मेदारी तो प्रधानमंत्री (पीएमओ) की है, जहाँ से सब कुछ संचालित होता है।’

गुजरात में भाजपा ने जिस तरह भूपेंद्र यादव की नयी सरकार के गठन में विजय रूपाणी के मंत्रिमण्डल के सभी मंत्रियों की छुट्टी करने जैसा प्रयोग किया, उससे ज़ाहिर होता है कि मोदी-शाह के गृह राज्य में लोगों की पिछली सरकार और मंत्रियों से कितनी नाराज़गी रही होगी। अन्यथा ऐसा कभी नहीं होता कि नये मुख्यमंत्री को नया मंत्रिमण्डल देते हुए पुराने सभी मंत्रियों को बाहर कर दिया जाए। इससे तो यही संकेत जाता है कि इन सभी मंत्रियों का प्रदर्शन ख़राब रहा। लेकिन प्रदेशों में मुख्यमंत्री बदलने के पीछे भाजपा आलाकमान का एक और सन्देश भी अपने संगठन के लोगों को है। वह यह कि ‘पार्टी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही सर्वशक्तिमान हैं।’

मुख्यमंत्री बदलने का संकेत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी है। बंगाल के विधानसभा चुनाव में मिली हार के तुरन्त बाद हुए उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में भाजपा की हार के बाद सर्वशक्तिमान नेतृत्व ने जिस मुख्यमंत्री को सबसे पहले बदलने की क़वायद की थी, वह योगी ही थे। यह क़वायद सफल होती, उससे पहले ही आरएसएस (संघ) का बयान आ गया कि उत्तर प्रदेश के अगले चुनाव भाजपा योगी के ही नेतृत्व में लड़ेगी। इस दौरान योगी भी दिल्ली में तलब किये गये या कहें कि ख़ुद चले गये थे और शीर्ष नेतृत्व से मिले। बहुत-से लोग कहते हैं कि यह कोई बहुत सम्मानजनक मुलाक़ातें नहीं थीं। लगभग उन्हीं दिनों में अपने प्रदेश के कुछ विकास विज्ञापनों और होर्डिंग्स में योगी सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो लगाने से परहेज़ किया था। बहुतों को योगी सरकार का यह फ़ैसला दिलचस्प और कुछ को हैरानी भरा लगा था। कहते हैं भाजपा शीर्ष नेतृत्व में इसे लेकर भी योगी के प्रति बहुत नाराज़गी थी। योगी को बहुत सारे राजनीतिक जानकार नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री की कुर्सी को चुनौती मानते हैं; भले योगी एक प्रधानमंत्री और पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में मोदी के प्रति पूरा सम्मान दिखाते हैं। राजनीतिक गलियारों में यह कहा जाने लगा है कि योगी की पार्टी के भीतर ही बहुत-सी दुश्वारियाँ हैं।

बहुत दिलचस्प बात तो यह है कि भाजपा के कट्टर हिन्दुत्व समर्थकों वाली टोलियों के बीच योगी भी मोदी की तरह ही लोकप्रिय हैं। कई लोग तो उन्हें मोदी से भी ज़्यादा पसन्द करते हैं। पार्टी के बीच योगी का एक अलग समर्थक वर्ग बन चुका है, जो उनके भाषणों के तरीक़े और धर्म आधारित कटाक्षों का दीवाना है।

यह वही वर्ग है, जो सोशल मीडिया पर अपने सन्देशों में जमकर धर्म आधारित ज़हर उगलता है और योगी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित करता है। इसमें एक सन्देश यह भी है- ‘देश का अगला प्रधानमंत्री मर्यादा पुरषोतम श्रीराम की जन्मभूमि से।’

ज़ाहिर है योगी के यह समर्थक प्रधानमंत्री के उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनाव जीतकर सांसद बनने के बावजूद उन्हें राज्य का नहीं मानते। दिलचस्प बात यह भी है कि सोशल मीडिया का ही एक वर्ग योगी को भी बाहरी बताता है। इस वर्ग के सन्देश कहते हैं कि योगी तो उत्तराखण्ड के हैं। अब सोशल मीडिया के इस वर्ग के प्रचार के पीछे कौन है? यह तो राम ही जानें। लेकिन यह तय है कि दोनों की ही तरफ़दारी करने वाले भाजपा के ही लोग हैं। बीच में इसी सोशल मीडिया पर यह चर्चा भी ख़ूब चली कि केंद्र उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में विभाजित करना चाहता है। कहा जाता है कि यह प्रचार योगी को दबाव में लाने के लिए था। लब्बोलुआब यह है कि भाजपा के भीतर ही सौ लड़ाइयाँ और दाँव-पेच हैं। बाहर से भले कुछ भी दिखे, मगर भाजपा के भीतर भी एक छद्म युद्ध लड़ा जा रहा है, जिसका औज़ार में सोशल मीडिया है।

हाल के महीनों में योगी सरकार ने अपने चार साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को लेकर जमकर प्रचार किया है। यह किसी भी भाजपा शासित राज्य के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। हालाँकि योगी सरकार की कई मोर्चों पर नाकामियों का ज़िक्र भी मीडिया में ख़ूब हुआ है- क़ानून व्यवस्था से लेकर कोरोना वायरस के कहर के दौरान स्वास्थ्य कुप्रबन्धन, श्मशानों और क़ब्रिस्तानों में लम्बी-लम्बी क़तारों और दुष्कर्म की घटनाओं तक। इसे लेकर भाजपा के ही कुछ बड़े नेता गाहे-बगाहे बोलते रहे हैं। योगी का यह प्रचार सिर्फ़ विधानसभा चुनाव से पहले अपनी विकास पुरुष की छवि गढऩे भर के लिए नहीं है, भाजपा के अंतर्विरोधों से निपटने के लिए भी है। भाजपा में यह पहला मौक़ा नहीं है, जब पहली बार जीते विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया है। हिमाचल में सन् 1997 में पहला चुनाव जीतने के बाद प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। हालाँकि वह इससे पहले तीन बार सांसद और प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके थे और उनके पास संगठन के अलावा प्रशासनिक अनुभव था। कल्पना करें कि यदि भाजपा उनके बेटे अनुराग ठाकुर को अगले साल के विधानसभा चुनाव के बाद हिमाचल में मुख्यमंत्री का ज़िम्मा देना चाहेगी, तो अनुराग भी पहली बार विधायक बनकर ही मुख्यमंत्री हो जाएँगे। हालाँकि पिता की तरह वह भी चार बार सांसद बनने के अलावा दो बार मंत्री बन चुके हैं। लिहाज़ा उनका प्रशासनिक अनुभव तो है ही।

उत्तर प्रदेश में सन् 2017 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ पहली बार विधायक बनकर ही मुख्यमंत्री बन गये थे। उससे पहले वह पाँच बार सांसद रहे थे। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर पहली पारी में जब मुख्यमंत्री बने, तो वह विधायक भी पहली बार बने थे। कुछ पुरानी बात करें, तो गुजरात में सन् 2001 में नरेंद्र मोदी को जब मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब तो वह विधायक भी नहीं थे। उसके बाद वह दो बार और मुख्यमंत्री बने। आज वह दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं। ऐसे प्रयोग कांग्रेस में भी हुए हैं; लेकिन भाजपा ने निश्चित ही यह प्रयोग ज़्यादा किये हैं। इसके पीछे उसका मक़सद भविष्य का नेतृत्व तैयार करने का रहा है।  ख़ात बात यह है कि इसमें आरएसएस की भी बड़ी भूमिका रही है।

 

 

भाजपा में भी अब आलाकमान

कांग्रेस संगठन से जुड़ा एक शब्द मशहूर रहा है- ‘आलाकमान’। भाजपा दशकों तक इस स्थिति से बचती रही। दूसरे भाजपा में उच्चतम स्तर की ताक़त कांग्रेस के गाँधी परिवार की तरह किसी परिवार के पास नहीं थी। वहाँ भाजपा के अध्यक्ष की अपनी हैसियत थी और प्रधानमंत्री की अपनी। लेकिन अब भाजपा में जिस तरह सारी ताक़त प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के आसपास सिमट गयी है, उसने उन्हें भाजपा की आलाकमान की हैसियत दे दी है। उनकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी भाजपा में नहीं हिलता; यह भाजपा के ही लोग अब खुलकर कहने लगे हैं। मोदी-शाह के अलावा तीसरी किसी ताक़त की भाजपा में यदि चलती है, तो वह आरएसएस है। याद करिए, जब प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा का सन् 2019 का चुनाव जीतने के बाद पार्टी के लोगों को सम्बोधित किया था। मोदी ने सांसदों को सलाह दी थी कि वे बयानबाज़ी से बचें। यह एक तरह से उन्हें सुझाव था कि यह काम आलाकमान का है, आपका नहीं। वही तय करेंगे कि क्या और कितना बोलना है? पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालिए, भाजपा का कोई मंत्री आधिकारिक पत्रकार वार्ता (प्रेस कॉन्फ्रेंस) को छोडक़र कभी चलते-फिरते पत्रकारों से बात करने में हिचकता है। पहले ऐसा कभी नहीं होता था। इसे सत्ता का वैसा ही केंद्रीयकरण कह सकते हैं, जैसा इंदिरा गाँधी के ज़माने में था। इसके नुक़सान बाद में कांग्रेस को उठाने पड़े। उसका संगठन लचर और पंगु हो गया; क्योंकि सरकार और संगठन एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द सिमट गये। मुख्यमंत्री बदलने की भाजपा की रफ़्तार मोदी-शाह की जोड़ी के समय में बहुत तेज़ हुई है। देखें तो इन दोनों के समय में अब तक 13 राज्यों में भाजपा के 19 मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्व सरमा, सर्वानंद सोनोवाल, देवेंद्र फडऩवीस, त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत, पुष्कर सिंह धामी, जयराम ठाकुर, बिप्लब देब, मनोहर लाल खट्टर, रघुबर दास, लक्ष्मीकांत पारसेकर, प्रमोद सावंत, बीरेन सिंह, पेमा खांडू, आनंदी बेन पटेल, विजय रूपाणी, भूपेंद्र पटेल, बासवराज बोम्मई शामिल हैं। इन 19 में से छ: को पार्टी नेतृत्व हटा चुका है।

 

 

आज के हालात में हर कोई दु:खी है। कोई मंत्री न बनने से दु:खी है, तो मुख्यमंत्री इसलिए दु:खी हैं कि पता नहीं कब हटा दिये जाएँगे। समस्या सबके सामने है। पार्टी में है। पार्टी के बाहर है। परिवार में है। आज़ूबाज़ू में है।’’

नितिन गडकरी

केंद्रीय मंत्री (जयपुर के एक कार्यक्रम में)

 

 

अब किसकी बारी?

भाजपा में आजकल बहुत दिलचस्प शर्तें लग रही हैं। वैसे भाजपा से बाहर भी लग रही हैं। शर्त यह कि ‘बताओ अब भाजपा के किस मुख्यमंत्री का नंबर लगने वाला है?’ यानी अब मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने की बारी किसकी है? भाजपा ने जिस तरीक़े और रफ़्तार से मुख्यमंत्री बदले हैं, वह आम जनता में भी दिलचस्पी जगा रहा है। चर्चाओं के मुताबिक, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को किनारे कर दिया गया है और भाजपा शायद ही उन्हें अगली बार मुख्यमंत्री बनाए। जहाँ तक मुख्यमंत्रियों की बात है, रूपाणी के बाद अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बिस्तर गोल हो सकता है। पार्टी मानती है कि इस बार उनका कार्यकाल बहुत ख़राब रहा है और उनके नेतृत्व में चुनाव में जाने पर पार्टी की लुटिया डूबने की पूरी सम्भावना है। पार्टी वहाँ भी कोई नया चेहरा ला सकती है। हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के प्रदर्शन पर भी ढेरों सवाल हैं। कहा जा रहा है कि बहुत विवादित न होने के बावजूद एक मुख्यमंत्री के रूप में जयराम सरकार की छाप छोडऩे में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। यहाँ तक कि उनके अपने गृह ज़िले मंडी में ही लोग ज़्यादा ख़ुश नहीं हैं। इस पहाड़ी सूबे में अगले साल के आख़िर में चुनाव होने हैं। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर पिछले चुनाव में ही भाजपा को बहुमत नहीं दिला पाये थे और भाजपा को सरकार बनाने के लिए दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जजपा) से गठबन्धन करना पड़ा था। खट्टर को दूसरी पारी मिल गयी; लेकिन किसान आन्दोलन से जिस ख़राब तरीक़े से खट्टर ने निपटा है, उससे हरियाणा भाजपा में बहुत बेचैनी है। बहुत सम्भावना कि खट्टर का पत्ता भी पार्टी नेतृत्व काट दे। हरियाणा में वैसे विधानसभा चुनाव अक्टूबर, 2024 होने हैं, लिहाज़ा हो सकता है कि खट्टर को अभी कुछ वक़्त और मिल जाए।

चमक गँवाता हीरा

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तहलका ब्यूरो
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March 18, 2024

हीरा कारोबार को मुश्किलों से निजात दिलाने का असली दारोमदार सरकार पर है

जब भी जयपुर के जेम्स एंड ज्वेलरी उद्योग का ज़िक्र होता है, तो ज़ेहन में अभिभूत कर देने वाले अप्रतिम सौन्दर्य की स्वामिनी दिवंगत राजमहिषी महारानी गायत्री देवी का जेम्स एंड ज्वेलरी प्रेम सिनेमाई तस्वीरों की तरह आँखों में तैरने लगता है। उनके पास डायमंड और रत्नाभूषणों का दुर्लभ संग्रह था। यह अनुपम संग्रह आज लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम में देखा जा सकता है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि महारानी के पसंदीदा डिजाइन के रत्नाभूषण उनके निजी हुनरमंदों द्वारा उन्हीं की निगहबानी में ही तैयार होते थे। अमूमन ये हुनरमंद विदेशी ही होते थे।

ग़ौरतलब है कि नगीनों और रत्नाभूषणों का यह महँगा शौक़ बेशक शाही परिवारों ने अपना वैभव दर्शाने का अचूक तरीक़ा माना जाता रहा है। लेकिन दक्षिण भारत में हीरे और अन्य रत्नों के आभूषण ‘मन्दिर ज्वेलरी’ के रूप में देवताओं को ही समर्पित रहे।

आज जेम्स एंड ज्वेलरी का आकर्षण मध्यमवर्ग को लुभा रहा है, तो यह कहने में भी गुरेज़ नहीं करना चाहिए कि इसके और भी रंग हैं। मसलन- प्यार, प्रतिकार, सौन्दर्य और रोमांस की मुश्क में रचे-बसे हीरे कब किसे रास आएँ या न आएँ, कुछ नहीं कहा जा सकता।

क़ीमती हीरों का संग्रह

हीरे की पहचान कट, कलर और क्लियरिटी (छँटाई, रंग और शुद्धता) से भले ही होती है। लेकिन अनगढ़ से कोहिनूर तक पहुँचने की कथा बेहद लम्बी और थकाऊ है। डायमंड की बादशाहत की बात करें, तो यह दर्जा आज भी ‘कोहिनूर’ को हासिल है? ब्रिटेन की महारानी के ताज में जड़ा कोहिनूर आज की तारीख़ में लंदन के संग्रहालय में अमूल्य निधि के रूप में दर्शकों को लुभा रहा है। ईरान, इंग्लैंड और फ्रांस के शाही परिवारों के मुकुटों में जड़े डायमंड भी भारत की देन है। मुगल शासकों का डायमंड अनुराग तो विश्वप्रसिद्ध रहा है। उनके दुर्लभ रत्न संग्रह विदेशों में कैसे पहुँचे? यह एक लम्बी कहानी है। हॉलीवुड की प्रख्यात अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर की तो पहचान ही दुर्लभ रत्नाभूषणों का संग्रह रखने की वजह से थी। हीरों का ऐसा दुर्लभ संग्रह तो शायद ही किसी के पास होगा।

कोई पाँच साल पहले जयपुर की जेम्स एंड ज्वेलरी इंडस्ट्री की थाह नापने के लिए जीआईए संगठन ने हालात को पूरी तरह खँगाला था। उन्होंने इस उद्योग के उत्पादन तथा कारोबारी हलक़ों की व्यापक पड़ताल की थी। उनका मानना था कि जयपुर का ज्वेलरी उद्योग परम्परागत तरीक़ों, अनुभव और नवीनतम तकनीक के समन्वय के साथ बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। जीआईए के अध्ययन दल का मानना था कि जयपुर ने जेम्स ज्वेलरी डिजाइन, कलर स्टोन कटिंग तथा कारोबार पर अपनी जबरदस्त पकड़ बना ली है। अध्ययन दल का तो यहाँ तक मानना है कि जयपुर अत्याधुनिक रत्नाभूषण तैयार करने तथा कलर स्टोन कटिंग केंद्र की दृष्टि से पॉवर हाउस का दर्जा ले चुका है। जेम्स एंड ज्वेलरी के क्षेत्र में शिखर पर पहुँचे जयपुर का नज़ारा आज भी वैसा है। जबकि कारोबार को अफ़सरी, नोटबंदी और मंदी ने बदहाली की तरफ़ धकेल दिया है। हालाँकि बावजूद इसके हीरे में जितनी चमक है, उसके अपने बूते है।

संकट की दस्तक

जयपुर के डायमंड उद्योग पर संकट की कितनी दस्तक पड़ चुकी है। इसकी हर कहानी झकझोर देने वाली है। कभी डायमंड के कारोबार में वैश्विक हैसियत रखने वाला गुलाबी नगर अपने शिखर से दरक चुका है।

संकटों की फ़ेहरिस्त तैयार करें, तो एक अन्तहीन शृंखला तैयार हो जाएगी। मुश्किलों से निजात दिलाने का असली दारोमदार सरकार पर है; लेकिन सरकार तो पहले ही शुतुरमुर्ग़ की तरह रेत में मुँह घुसाये बैठी है। ऐसी मुर्झायी फ़िज़ाँ में उम्मीदों की अगुवाई कैसे होगी? उम्मीदों की सीढिय़ाँ चढऩे के लिए इस उद्योग को चाहिए पर्याप्त आधारभूत संरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर)। डायमंड तराशने, पॉलिश करने आदि से लेकर कोई 25 हज़ार औद्योगिक इकाइयाँ यहाँ सक्रिय है। सालाना 12,000 करोड़ के टर्न ओवर वाले इस उद्योग में दो लाख से ज़्यादा लोग रोज़गारयाफ़्ता है। भारतीय बाज़ार के अलावा इस उद्योग की वैश्विक पकड़ भी चौंकाने वाली है।

ज्वेलरी उद्योग से जुड़े राजीव अधलक्खा कहते हैं- ‘इतना बड़ा उद्योग होने के बावजूद आर्थिक संसाधन के मामले में पूरी तरह बदहाल है और यही कमज़ोरी इस उद्योग को सकारात्मकता पर रीझने नहीं देती। सरकार की बेरूख़ी के कारण आर्थिक संकेतक भी नरम-नरम ही रहे। रही सही कमी कोरोना ने पूरी कर दी। इससे माँग ही नदारद नहीं हुई, संक्रमण की हवाओं ने निवेश और मंदी से भी कारोबारियों को बेज़ार कर दिया। मंदी की चुभन को हर क़दम पर महसूस किया जा रहा है। जीएसटी ने भी इसी उद्योग को तबाही का इलाक़ा बना दिया। जयपुर के जौहरी बाज़ार में कभी शाम की रोनकें देखने क़ाबिल होती थीं, जब अथाह भीड़ में कागज़ की पुडिय़ाँ में रत्नों की आभा बिखेरते हुए कारोबारी पारखियों से घंटों रू-ब-रू हुआ करते थे। रत्नों की घिसाई की भी अनेक छोटी-मोटी घरेलू नज़र आने वाली इकाइयाँ कभी दिन-दोपहर में मिल जाया करती थी। अब इनकी तादाद भी उँगलियों पर रह गयी है। उद्योग से जुड़े कारोबारियों ने नये हुनरमंद तैयार करने की कभी कोशिश ही नहीं की। अन्यथा सरकारी स्तर पर प्रशिक्षण केंद्र बनाये जाते, तो उद्योग का सफ़र सुहाना हो सकता था।’

ज्वेलर राजेन्द्र सोनी कहते हैं- ‘अगर उद्योग को पर्याप्त आर्थिक रुझान और तकनीक को समुन्नत करने के अवसर मिले होते, तो क्योंकर सिर पर मुसीबत लेने की नौबत आती। ताज़ूब है कि जिस उद्योग का वैश्विक अर्थ-व्यवस्था से जुड़ाव है, उसके ढाँचागत सुधार और आर्थिक सम्बल की तरफ़ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।’

विशेषज्ञों का कहना है कि इस उद्योग की ढाँचागत सुविधाओं को ही बहाल नहीं करना घरेलू खपत तथा निर्यात की रफ़्तार बढ़ाने की शक्ति भी प्रबल करनी होगी। एक विहंगम दृष्टि डाली जाए, तो कहना ग़लत नहीं होगा कि जयपुर में डायमंड तराशने और रत्नाभूषण बनाने के मामले में एक बड़े कुटीर उद्योग की शक्ल अख़्तियार कर चुका है।

जयपुर से निर्यात

रत्नों के लिए विश्व विख्यात शहर जयपुर क्या वाक़र्इ इन दिनों इस उद्योग की चमक लौटाने की चुनौती झेल रहा है? इसके दो पहलू हैं। जेम्स एंड ज्वेलरी यानी रत्नाभूषण के कारोबार की बात करें, तो सख़्त लॉकडाउन के दरमियान भी हमारे रत्नों की चमक बरक़रार रही। आँकड़ों पर नज़र दोड़ाएँ, तो कोरोना के संक्रमण-काल के बावजूद जयपुर से 1,396 करोड़ का निर्यात हुआ। बीते साल 372.95 करोड़ ही निर्यात हुआ, जबकि इस बार निर्यात 1023.75 करोड़ ज़्यादा का हुआ। ऐसा क्यों कर हुआ?

जयपुर ज्वेलरी कारोबारी संगठन के निदेशक सव्यसाची राय का कहना है- ‘दरअसल देशव्यापी लोकडाउन नहीं होने से औद्योगिक इकाइयाँ चलती रही। उधर विदेशों में भी बाज़ार खुले रहने से रत्न आभूषणों की माँग में इज़ाफ़ा होता रहा। हालाँकि कारोबार की अंदरूनी ख़बरों की सुनगुन सुने, तो निर्यात के इन आँकड़ों में सोने-चाँदी और प्लेटिनम के आभूषण तथा स्टोन शामिल है, तो इतराने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।’ (…जारी)

एक ही मंज़िल

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तहलका ब्यूरो
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March 18, 2024

कभी धर्म (मज़हब) के बारे में सही जानकारी लेनी हो, तो दो वक़्त की रूखी रोटी तक को परेशान रहने वाले कई दिन के भूखे किसी ग़रीब इंसान से पूछिए। अगर ऐसे लोग कई धर्मों के हों और उन सबको उनके धर्म के सहारे सब्र करने को कहा जाए, तो और भी बेहतर तरीक़े से वे सब धर्म के बारे में अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकेंगे। मेरे ख़याल से उनका एक ही धर्म होगा- ‘पेट भरने के लिए रोटी का इंतज़ाम करना।’

इसी तरह अगर बेघर लोगों से उनके धर्म के बारे में पूछो, तो उनका धर्म घर बनाने की लालसा तक ही होगा। कहने का मतलब यह है कि ज़रूरत को पूरा करना ही हर किसी का पहला धर्म है; चाहे वह किसी भी प्रकार की हो। क्योंकि इंसान सबसे पहले अपना जीवन और फिर अस्तित्त्व बचाने की कोशिश करता है। इसके बाद ही वह दूसरों के लिए कुछ सोचता या करता है। फिर चाहे वह ईश्वर ही क्यों न हो। इसीलिए अगर भूख या दूसरी ज़रूरत से परेशान किसी व्यक्ति को उसके धर्म की किताब थमा दी जाए और कहा जाए कि इस पर अमल करो, बाक़ी सारी ज़रूरतों को भूल जाओ; या फिर उसके धर्म के लोग उसे ऐसी स्थिति में धर्म का ज्ञान बाँटें; तो क्या उसे उस समय अपना धर्म भी अच्छा लगेगा?

सच तो यह है कि वास्तविक सन्तों / महात्माओं को भी जीने के लिए कम सही, लेकिन मूलभूत वस्तुओं की ज़रूरत होती है। चाहे वे किसी भी धर्म के अनुयायी हों। भूखे पेट तो भजन होता भी नहीं। तो फिर धर्म की दीवार पकडक़र कौन लटका रह सकता है? और कौन किसी से नफ़रत या उससे उसके धर्म के बारे में बहस कर सकता है? दरअसल इंसान में पेट की भूख मिटाने की लालसा और जीने की इच्छा उन अन्य जीव-जन्तुओं की तरह ही है, जिन्हें जीने के लिए अपने भोजन की तलाश करने के अलावा और कुछ भी पता या ज्ञान नहीं होता। इसका निचोड़ यह है कि धर्म लोगों के लिए बहुत बाद की चीज़ है; उससे पहले उसके सामने जीने का महत्त्व है। इस जीने के महत्त्व में उसकी ज़रूरतें और उनकी पूर्ति ही उसका उद्देश्य होता है, जो धर्म से कहीं पहले आ जाता है।

इस तरह तो सबका धर्म एक ही हुआ ज़िन्दा रहने के लिए जतन करना। तो क्या धर्मों की किताबों ने लोगों को दायरों में बाँट रखा है? जी बिल्कुल! दरअसल धर्म की किताबें लोगों को ख़ुद में दर्ज बातों, नियमों, परम्पराओं और शिक्षाओं को जानने के लिए उत्साहित और फिर मानने के लिए प्रोत्साहित तो करती हैं, परन्तु बाध्य नहीं करतीं। लेकिन लोग इन्हें इस तरह पकडक़र बैठे हैं, जिस तरह एक ज़िद्दी और अनपढ़ बच्चा किसी किताब को पकडक़र बैठा हो और वह किताब उससे माँगने पर वह रो पड़े और हमला करने लगे। अब लोग यही कर रहे हैं। वे धर्म की किताबों में आस्था रखे हुए हैं और उन्हीं को पकडक़र बैठे हुए हैं। जबकि इंसान का असली धर्म तो उसकी आत्मा में स्वीकारोक्ति पर निर्भर करता है। वह बाहर से भले ही किसी भी धर्म को मानता हो; लेकिन अन्दर से उसका धर्म कुछ भी हो सकता है। जैसे कोई दिन-रात अपने धर्म के हिसाब से चलता हो; लेकिन जीवन जीने के लिए उसकी करनी कुछ और हो, तो उसका असली धर्म क्या होगा? वह जो जीवन जीने के लिए करता है, वही उसका धर्म है; जो ग़लत भी हो सकता है और सही भी। जैसे कोई चोरी करता है, तो उसने अपना असली धर्म चोरी करना बना लिया है; भले ही उसने दिन-रात ईश्वर को मानने और अपने धर्म के हिसाब से चलने का नाटक किया हो।

इसी तरह अगर कोई जीने के लिए ईमानदारी से मेहनत करता है और अपनी कमायी में से दूसरों के लिए भी कुछ करता है, तो उसका धर्म ईमानदारी पर अमल और दयाभाव है; भले ही उसने जीवन भर कभी अपने धर्म को न समझा हो और न ही वह उस पर चला हो। सच तो यही है कि इंसान में सबसे बहुमूल्य और सबसे ख़ूबसूरत तत्त्व आत्मा है और आत्मा से वह जो भी करता है, वही उसका धर्म है।

राहुल सांकृत्यायन कहते हैं- ‘हिन्दू और मुसलमान में फ़र्क़, उनके धर्मों में फ़र्क़ रखने से क्या उनकी अलग-अलग जाति हो सकती है? जिनकी नसों में उन्हीं पूर्वजों का ख़ून बह रहा है, जो इसी देश में पैदा हुए और पले। फिर दाढ़ी और चुटिया, पूजा और पूरब या पश्चिम की नमाज़ क्या उन्हें अलग क़ौम साबित कर सकती है? क्या ख़ून पानी से गाढ़ा नहीं होता? फिर हिन्दू और मुसलमान के फ़र्क़ से बनी इन अलग-अलग जातियों को हिन्दुस्तान से बाहर कौन स्वीकार करता है? जापान जाइए या जर्मनी या ईरान जाइए या तुर्की; सभी जगह हमें हिन्दी या इंडियन कहकर पुकारा जाता है। जो धर्म भाई को बेगाना बनाता है, ऐसे धर्म को धिक्कार! जो मज़हब अपने नाम पर भाई का ख़ून करने के लिए प्रेरित करता है, उस मज़हब पर लानत! जब आदमी चुटिया काट दाढ़ी बढ़ाने भर से मुसलमान और दाढ़ी मुड़ा चुटिया रखने मात्र से हिन्दू मालूम होने लगता है, तो इसका मतलब साफ़ है कि यह भेद सिर्फ़ बाहरी और बनावटी है। एक चीनी चाहे बौद्ध हो, चाहे मुसलमान हो या ईसाई हो या कनफूसी, लेकिन उसकी जाति चीनी ही रहती है। तो हम हिन्दियों के मज़हब को टुकड़े-टुकड़े में बाँटने को क्यों तैयार हैं? और इन नाजायज़ हरकतों को हम क्यों बर्दाश्त करें? धर्मों की जड़ में कुल्हाड़ा लग गया है और इसीलिए अब धर्मों के मेल-मिलाप की भी बातें कभी-कभी सुनने में आती हैं। लेकिन क्या यह सम्भव है?’

राहुल की उपस्थिति में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हुए

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तहलका ब्यूरो
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March 18, 2024

राहुल गांधी की राज्यों में युवा नेताओं, खासकर भाजपा-आरएसएस विचारधारा के कट्टर विरोधी नेताओं की टीम तैयार करने की योजना के तहत दो युवा नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी आज कांग्रेस में शामिल हो गए। दोनों ने राहुल गांधी की उपस्थिति पार्टी की सदस्यता का फ़ार्म भरा। कांग्रेस में शामिल होने के बाद कन्हैया कुमार ने कहा वे देश की सबसे लोकतांत्रिक पार्टी में शामिल हो रहे हैं । उन्होंने कहा कि कांग्रेस है तो ही देश में लोकतंत्र बचेगा। उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व की भी सराहना की और कांग्रेस को बड़ा जहाज बताया।

कन्हैया कुमार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे हैं, जबकि मेवाणी पिछड़े वर्ग के नेता हैं। राहुल गांधी दोनों को कांग्रेस में लेकर आये हैं। दोनों आंदोलन से जुड़े  रहे हैं लिहाजा संभावना यही है कि राहुल गांधी के मोदी सरकार के खिलाफ शीघ्र प्रस्तावित देशव्यापी आंदोलन का दोनों अहम हिस्सा हो सकते हैं। यह माना जाता है कि जाने माने रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी कांग्रेस की भविष्य की योजनाओं को लेकर राहुल गांधी का सहयोग कर रहे हैं।

कांग्रेस में शामिल होने के बाद कन्हैया कुमार ने कहा वे देश की सबसे लोकतांत्रिक पार्टी में शामिल हो रहे हैं । उन्होंने कहा कि कांग्रेस है तो देश में लोकतंत्र बचेगा। कहा कि कांग्रेस वह पार्टी है जो गांधी  परम्परा को जीवित रखे हुए हैं। कहा – ‘जो कह रहे हैं विपक्ष कमजोर हो गया है तो वे सही कह रहे हैं क्योंकि जब विपक्ष कमजोर हो जाता है तो सत्ता तानाशाह हो जाती है।’ कहा यह वैचारिक संघर्ष है और कांग्रेस ही इसे गति  दे सकती है।

दोनों को कांग्रेस में शामिल करने के लिए पार्टी ने खासतौर पर शहीद भगत सिंह की जयंती को चुना। कन्हैया कुमार अभी तक भाकपा में थे और बिहार में पार्टी टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी  दलित नेता हैं और उनके कुछ सहयोगी भी कांग्रेस में आए हैं।

कांग्रेस में शामिल होने से पहले कन्हैया और जिग्नेश ने राहुल गांधी के साथ दिल्ली के आईटीओ पर स्थित शहीदी पार्क में भगत सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण किया। युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में वहां उपस्थित रहे। बाद में  दोनों को कांग्रेस का पट्टा पहनाकर कांग्रेस दफ्तर में पार्टी में शामिल किया गया। इस मौके पर पार्टी संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, प्रमुख प्रवक्ता सुरजेवाला, गुजरात कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल भी उपस्थित थे।

राहुल गांधी बिहार में कन्हैया कुमार जबकि गुजरात में जिग्नेश को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष बना सकते हैं। राहुल गांधी की युवाओं को पार्टी से जोड़ने की योजना के तहत आने वाले समय में कुछ और युवा नेता कांग्रेस में शामिल होंगे। यह देखा जा रहा है कि राहुल भाजपा और संघ (आरएसएस) की विचारधारा से नैतिक दूरी रखने वाले नेताओं को कांग्रेस में तरजीह दे रहे हैं।

हाल के महीनों में ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव जैसे युवा नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं। इन सभी को राहुल गांधी का करीबी माना जाता था। उनके दलबदलकर भाजपा या अन्य दलों में जाने से राहुल को झटका लगा है क्योंकि यह उनके बहुत करीबी नेताओं में शामिल थे और उनकी इनर टीम का हिस्सा थे।

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