1994 में जैसे ही मैंने ग्रैजुएशन पूरा किया, मेरे माता-पिता मेरे लिए एक योग्य वर की तलाश में लग गए। शादी या धर्म जैसी संस्थाओं के प्रति मेरे मन में कोई स्थायी विचार या पूर्वाग्रह नहीं था। मैंने केवल उसका नाम सुनकर ही हां कर दी। प्रभु मोहम्मद सिकंदर- हिंदू, मुस्लिम, ईसाई- ये नाम ही इतना अनूठा था कि मैं तुरंत सम्मोहित हो गई।
प्रभु के पास कुछ बेहद दिलचस्प विचार थे। उसका विश्वास था कि सभी धर्म मूल रूप से समान हैं। उसके हिसाब से शादी व्यक्ति की निजी पहचान की हत्या के जैसा है। ये उसी का विचार था कि शादी के बाद भी हम एक दोस्त की तरह रहेंगे।
मदुरै स्थित हमारे घर में हम दोनों के अलग कमरे थे, अलग दिनचर्या थी और अलग आदतें थी। आम दांपत्य जीवन में होने वाली शिकायतों से हमारा कभी पाला ही नहीं पड़ा। वो टीवी देखते तो भी मैं सो सकती थी। या फिर अगर मैं सुबह के चार बजे तक कोई किताब पढ़ना चाहती तो वो सो सकते थे। हमारे रहन-सहन के इस तरीके के बारे में जिन दोस्तों को पता था वो इसे निरा पागलपन समझते थे। लेकिन हमारे लिए एक परिवार की शुरुआत करने का ये नायाब तरीका था। एक ऐसा तरीका जिसमें हर व्यक्ति को उसकी सोच और विचारों के लिए सम्मान दिया और प्यार किया जाता था।
प्रभु बहुत ही लोकप्रिय इंसान था, उसके दोस्तों की एक पूरी फौज थी। लेकिन वो अपने दोस्तों को घर पर आमंत्रित करने के पहले हमेशा मेरी इजाजत मांगता। वो मुझे पत्नी की परंपरागत भूमिका में न बंधने देने के प्रति बहुत सजग रहता था। यहां तक कि एक कप कॉफी की मांग करने पर भी वो मुझसे खेद व्यक्त करता था। उसने एक खाना बनाने वाला भी रख लिया था लिहाजा मैं अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए स्वतंत्र थी। इसके अलावा घर की देखभाल हमेशा से ही दोनों की संयुक्त जिम्मेदारी थी। यहां तक कि हमारे बेटे सलमान के पैदा होने के बाद भी इस व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं हुआ। सलमान के पास अपना समय बिताने के लिए दो विकल्प थे, वो अपने पापा के कमरे में भी रह सकता था और मम्मी के कमरे में भी। अक्सर उसके पापा उसे स्कूल के लिए तैयार कर देते थे जबकि मैं सोती रहती थी। सलमान के पास अपना समय बिताने के लिए दो विकल्प थे, वो अपने पापा के कमरे में भी रह सकता था और मम्मी के कमरे में भी। अक्सर उसके पापा उसे स्कूल के लिए तैयार कर देते थे जबकि मैं सोती रहती थी।
हमारे बीच लड़ाइयां भी होती थी। हम धर्म जैसे जटिल मुद्दों से लेकर छोटी छोटी चीज़ों पर बहस करते थे। एक बार हमारे बीच सीलिंग फैन की औसत साइज़ को लेकर तीखी बहस हो गई। लेकिन ज्यादातर समय हमारी ज़िंदगी मस्ती से सराबोर थी।
हमने शायद ही कभी सलमान को पढ़ने या फिर उसे अपना कमरा खुद ही साफ करने के लिए दबाव डाला हो। एक बार उसने अपने पापा को ये कहने के लिए फोन किया कि उसे गणित के टैस्ट से डर लग रहा है। प्रभु उसे स्कूल से घर लेकर आ गए। उनका मानना था कि बच्चे तभी पढ़ सकते हैं जब उनके मन में कोई डर न हो, और उन्हें अपनी बात कहने में कोई झिझक नहीं होती थी। हमारे घर के बगल में ही एक स्कूल था। हमारे घर से स्कूल की एक कक्षा दिखाई देती थी। एक बार उन्होंने देखा कि एक टीचर किसी बच्चे को पीट रही है। ये देखते ही प्रभु अपने कमरे की खिड़की से उस टीचर पर चिल्ला पड़े। इससे मुझे और टीचर दोनों को ही शर्मिंदगी महसूस हुई।
प्रभु की रुचि राजनीति में थी और वो हमेशा समाज की बेहतरी के बारे में सोचते थे। वो लंबे समय से म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन और स्थानीय राजनीतिक नेताओं को पत्र लिखकर वेस्ट मासी की एक गली की सफाई की मांग करते रहे- इस जगह का उपयोग डंपयार्ड के तौर पर किया जाता था। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो एक दिन वो खुद ही वहां एक लॉरी लेकर पहुंचे और जगह की सफाई करने लगे। लोग उन्हें अविश्वास के साथ देखते रहे, लेकिन जल्द ही वो भी उनके साथ जुड़ गए और दोपहर होते होते म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन का दस्ता वहां पहुंचा और पूरे इलाके की सफाई हो गई। उन्होंने प्रेस वालों को इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि उन्होंने सुर्खियां बटोरने के लिए ये काम नहीं किया था।
प्रभु के पारिवारिक व्यापार की देखभाल करने के लिए 1998 में हम मदुरै से मलेशिया आ गए। नई ज़िंदगी के साथ हालांकि हमारे ऊपर नई जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ गया मगर अब हमारे पास बेकार की चीज़ों पर खर्च करने के लिए खूब सारा पैसा था, हमारा घर बहुत बड़ा और शांतिपूर्ण था। ज़िंदगी मज़े से बीत रही थी और हम तीनों एक साथ किसी दोस्त की तरह से रहते थे। लेकिन तभी एक दिन प्रभू ने एक बड़ा ही मूर्खतापूर्ण काम किया। वह हमेशा के लिए हमें छोड़कर चले गए। एक दोस्त के रेस्टोरेंट में रात का खाना खाते समय उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की। मैं सलमान के साथ उसी रेस्टोरेंट में इंतज़ार करती रही और उनका दोस्त उन्हें अस्पताल ले गया। दस मिनट के भीतर हमें पता चला कि उन्हें जबर्दस्त कार्डियक अरेस्ट हुआ है। वो 33 साल के थे।
पांच साल बाद, मैं और सलमान अपने मां-बाप के साथ चेन्नई में रहते हैं। अब हमारी ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ गई है- मैं काम करती हूं और मेरी मां सलमान की देख रेख करती हैं। कोई अगर मुझसे पूछे कि क्या मुझे प्रभु की याद आती है? मेरा जवाब होगा हां, दिनभर में कम से कम 5000 बार। हर पल मुझे प्रभु की कमी महसूस होती है। उनके कपड़े, जूते सबकुछ जस के तस आलमारियों में रखे हैं, उनका कॉन्टैक्ट लेंस आज भी बाथरूम में है। इस तरह के व्यक्ति को जानने के बाद उसे भूलकर दूसरी ज़िंदगी शुरू करना मेरे लिए कोई विकल्प ही नहीं है। ईमानदारी से कहूं तो मुझे कभी इसका अहसास नहीं होता कि कभी मेरी शादी हुई थी, और मैंने अपने पति को खो दिया है बल्कि मुझे ऐसा लगता है कि मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त को खो दिया है।
हाल ही में मेरी मां (जो मेरी दूसरी शादी के लिए हरसंभव कोशिश करती रहती हैं) ने मुझे एक धार्मिक सलाहकार से मिलवाया। उन्होंने मुझे एक विधवा की कहानी सुनायी जो अपने दुखों को दूर करने के लिए अल्लाह से प्रार्थना करती रहती थी। बाद में एक आदमी आया जिसने उससे शादी कर ली। ये आदमी कोई और नहीं बल्कि पैगंबर मोहम्मद खुद थे। वो ये देखकर बहुत रोमांचित हुए कि उन्होंने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है। लेकिन मेरे पास कहने के लिए सिर्फ यही था, "सर, आपकी इस सुंदर कहानी के लिए धन्यवाद लेकिन मेरे मामले में जो व्यक्ति मर गया वही तो पैगंबर था।"
परवीन सिकंदर
(चैन्नई की रहने वालीं तैंतीस वर्षीय परवीन, एक लेखिका, ज्वैलरी डिज़ाइनर और टीवी प्रस्तोता हैं।)
आप भी इस वर्ग के लिए अपनी रचनाएं (संक्षिप्त परिचय और हो सके तो फोटो के साथ) hindi@tehelka.com पर ईमेल कर सकते हैं या फिर नीचे लिखे पते पर भेज सकते हैं.
तहलका हिंदी, एम-76, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश-2, नई दिल्ली-48