जवाहरलाल नेहरू: 125 सवालों के घेरे में
यह तथ्य सर्वविदित है कि वर्तमान में भारत का जो स्वरूप है उसकी प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी. आधुनिक, सभ्य, उदार और अपनी परंपराओं में गुंथा हुआ भारत, जो आधुनिक विश्व से तालमेल भी बिठा सकता है और गांधी के सपनों में भी विश्वास रखता है. इस महामना की 125वीं जयंती के बहाने उनका स्मरण
गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ : सीधे-सादे और जटिल
चिर विद्रोही मुक्तिबोध किसी भी चीज से समझौता नहीं करते थे, अर्थशास्त्र के सिद्धांतों और स्वास्थ्य के नियमों से भी नहीं. वह संबंधों में लचीले थे, मगर विचारों में इस्पात की तरह. पैसे-पैसे के लिए तंग रहते थे, पर पैसे को लात भी मारते थे. एक संस्मरण
सीपीआई (एम) : आधी सदी, अधूरा सफर
पचास साल बाद जब हम सीपीआई (एम) का आकलन करने बैठते हैं, तो पाते है कि इसने कभी भी खुद को हिंदुस्तान की मौलिक सोच, जमीन, आदमी, जल, जंगल से जोड़ने का यत्न ही नहीं किया. आयातित सपनों को थोपने की जिद उसे ऊंचाई की बजाय हाशिए की तरफ ले आई है
मौत की बांहों में भोपाल
भोपाल गैस कांड के रूप में घटी देश की सबसे भयावह औद्योगिक त्रासदी का यह तीसवां बरस है. दो और तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात में मध्यप्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड के कारखाने में हुए गैस रिसाव से तकरीबन 25,000 लोगों की जान गई. हादसे के मुख्य आरोपित वॉरेन एंडरसन की बीते सितंबर महीने में अमेरिका में मृत्यु हो गई. इस पूरे वाकये में भोपाल के लोगों को कुछ हासिल रहा तो वह थे बस झूठे दिलासे और नाममात्र का मुआवजा. उस दौर की समसामयिक पत्रिका धर्मयुग के 13 जनवरी 1985 के अंक में प्रकाशित यह मर्मस्पर्शी लेख
प्रथम विश्वयुद्ध : हिंदुस्तान की लड़ाई
2014 पहले विश्वयुद्ध की सौवीं वर्षगांठ है. जब भारत अंग्रेजों से अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब भारत के सैनिक अंग्रेजों के लिए यह महासंग्राम लड़ रहे थे. इस युद्ध में अंग्रेजों को विजय तो मिली, लेकिन भारत और भारतीयों के लिहाज से इस विजय में कुछ भी सम्मानजनक नहीं था
प्रिय सम्पादक महोदय , मैं वर्षगाँठ विशेषांक नहीं ले सका , हमारे शहर , आरा (बिहार) में तहलका किसी भी न्यूज़ स्टैंड पर नहीं आता .. सिर्फ राजधानी पटना में मिलता है .. इतनी बढ़िया सामग्री है इसमें . मैं ये विशेषांक हार्ड प्रिंट में लेना चाहता हूँ , मगर पटना में भी नहीं मिल पा रहा .. कृपया कुछ उपाय बताएं , आपका आभारी रहूँगा