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जुनून ने बनाया ‘चेंजमेकर’

ग्यारह साल की बाली उमर में बाल-विवाह की बेडिय़ों से टकराने और पूरे संवेदन तंत्र को झकझोर देने वाली पायल जांगिड़ ने स्त्री की पारम्परिकता के सिद्धांत पर बड़ा काम किया है। अलवर •िाले में थानागाजी के छोटे से गाँव हीसला में जन्मी पायल जागिड़ ने न सिर्फ अपना बाल-विवाह रुकवाया, बल्कि पूरे देश में बाल-विवाह और बालश्रम रोकने का बीड़ा उठा लिया। इसी जुनून का नतीजा है कि पायल को अमेरिका में बिल गेट्स की संस्था की ओर से ‘चेंजमेकर अवॉर्ड’ से नवाजा गया है। दुनिया के विशाल फलक पर सम्मानित हुई पायल का बयान भाव-विभोर कर देता है, जब उन्होंने कहा- ‘न्यूयार्क’ में जब मुझे अवॉर्ड मिल रहा था, मेरी संघर्ष यात्रा िफल्म की तरह मेरी आँखों में घूमने लगी थी। परम्परा की चीखट काइयों से भरा रास्ता पार करने और समाज को नये ढब में ढालने में कितना कुछ करना पड़ा था? इसका बयान आसान नहीं है। अलबत्ता यह कहते हुए उनके चेहरे पर गहरा सुकून झलकता है कि ‘शुरुआत में मेरी कोशिशों का लोगों ने जमकर मखौल उड़ाया और कह दिया कि पगला गयी है, लडक़ी…. छोटी-सी छोकरी और दुनिया को बदलेगी?’ पायल कहती नहीं अघातीं कि ‘कैलाश सत्यार्थी का संग-साथ नहीं मिलता तो शायद मैं यह काम नहीं कर पाती? कैलाश जी मेरे मार्गदर्शक ही नहीं, गुरु हैं मेरे। सोहबत और उससे मिलनेे वाली शोहरत के बीच नाकाम करने वाली खाइयों को पार करने का दमखम पायल के चेहरे पर साफ झलकता है, जब वे कहती है। सुमेधा कैलाश और उनकी संस्था ने सहयोग किया, तो कई गाँव-ढाणियों में जाकर बाल श्रमिकों को मुक्त कराया। अब तो पायल के माता-पिता भी गर्व से फूले नहीं समा रहे। पायल के पिता पप्पूराम जांगिड़ कहते हैं- ‘वैसे तो हमारी बिटिया का नाम पायल है। लेकिन उपलब्धियों के चलते अब भारत के माथे की बिंदिया बन गयी है।’ उन्होंने पछतावा जताते हुए कहा- ‘वाकई बेटी का बाल-विवाह करके हम बड़ी भूल करने जा रहे थे। इस घटना के बाद अब तो इस रस्मोरिवज़ को भूलने लगे हैं।’ गाँव में अपने सम्मान से पुलकित पायल का कहना था कि मेरा असली सम्मान तो तभी होगा, जब पूरे राजस्थान में बाल-विवाह की प्रथा का खात्मा हो जाएगा। उसने कहा कि इसके लिए मैं हर गाँव-ढाणी और घर तक पहुँचूँगी। उसका कहना है कि मेरी बड़ी बहनों की तरह मेरा भी बाल-विवाह किया जा रहा था। जबकि मैं तो इस बात से ही अंजान थी कि ‘बाल-विवाह’ होता क्या है? लेकिन जब समझी, तो खूब समझी। इसके साथ ही बाल-विवाह के िखलाफ अड़ गयी। कुछ संयोग ही हुआ कि कैलाश सत्यार्थी मिल गये। उन्होंने मेरे परिवार को बाल-विवाह की बुराइयों के बारे में समझाया। लेकिन परिजनों का असमजंस फिर भी बना रहा। अपने अभियान के तहत जब मैं गाँव वालों को समझाने जाती थी, तो लोग तंज कसने लगते थे- ‘तुम तो कलक्टर बन जाओ। लेकिन हमें नहीं बनना।’ लेकिन मैंने तय कर लिया था- ‘हिम्मत नहीं छोड़ूँगी।

बिल गेट्स एंड मंलिगा फाउंडेशन का ‘चेंजमेकर’ अवॉर्ड मिलने के बाद देश दुनिया में छा गयी पायल अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनकी पत्नी मिशेल से मुलाकात के साथ स्वीडन के एक अवॉर्ड की जूरी भी बन गयी। उसकी सहपाठी रही छात्राओं का कहना है कि, ‘जिस स्कूल में पायल ने पढ़ाई की, उसकी एक भी छात्रा की रूढि़वादी परिजन बाल-विवाह नहीं कर पाये। उनका कहना था- ‘मेरा मानना है कि बुराइयों को दूर करने के लिए सामाजिक समरसता ज़रूरी है। उससे छुआछूत की भावना भी खत्म हो सकती है।’ त्यौहारों पर लोगों के यहाँ भोजन करने और मेल-मिलाप से समरसता का बढ़ावा मिलता है। अपने साथियों के साथ लोगों के घरों पर भोजन करने का मेरा यही मकसद रहता है। पायल कहती है- गाँव बेशक छोटे हों, लेकिन उनकी समस्याएँ बड़ी होती है। तभी तो आपको लगता है कि आपने कुछ किया है।

सना मरीन बनीं दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री

उत्तरी यूरोप के देश फिनलैंड ने 8 दिसंबर को 34 वर्षीय सना मरीन को अपना प्रधानमंत्री चुना। इसके साथ ही वे दुनिया की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री बन गयी हैं। फिनलैंड की सोशल डेमोक्रेट पार्टी की ओर से चुनावी मैदान में थीं। इससे पहले वह परिवहन व संचार मंत्री थीं। उन्होंने 37 वर्षीय अपने प्रतिद्वंद्वी एंटी लिंडमेन पर 32-29 के मतों के अंतर से जीत दर्ज की। सना महिलाओं की अध्यक्षता वाली मध्य-वाम गठबन्धन की पाँच पार्टियों की अगुआई करेंगी। सना फिनलैंड की तीसरा महिला प्रधानमंत्री हैं। इन दिनों फिनलैंड राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुज़र रहा था। इसकी शुरुआत डाक कर्मचारियों की हड़ताल से हुई। 700 डाक कर्मचारियों की मज़दूरी में कटौती की योजना पर कई हफ्तों के राजनीतिक संकट के बाद एंटी रि‍ने ने प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया था। हड़ताल से निपटने में नाकाम रहने पर अपना विश्‍वास खो दिया था।

मरीन ने चुनाव जीतने के बाद उम्र से जुड़े सवालों पर कहा- ‘मैंने कभी अपनी उम्र या महिला होने के बारे में नहीं सोचा। मैं कुछ कारणों से सियासत में आयी और इन चीजों के लिए हमने मतदाताओं का विश्वास जीता।’ इनके अलावा सबसे कम उम्र के राष्ट्र प्रमुखों में न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैकिंडा आर्डेन 39 साल, यूक्रेन के प्रधानमंत्री ओलेक्सी होन्चारुक 35 साल और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन भी 35 साल के हैं। 55 लाख की आबादी वाले फिनलैंड में पिछले हफ्ते सोशल डेमोक्रेट पार्टी के नेता एंटी रिने ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

समान लिंग वाले पार्टनर की बेटी

सना मरीन का जन्‍म 16 नवंबर, 1985 को हुआ था। 27 साल की उम्र में ही मरीन ने राजनीति में कदम रखा था और उसके बाद उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा। 2015 में सांसद चुनी गयीं। पहली बार वह 2019 में सरकार में शामिल हुईं। सरकार में वह परिवहन व संचार मंत्री बनीं।

2012 में प्रशासनिक विज्ञान में टैफ्पियर विश्‍वविद्यालय से स्‍नातक की डिग्री हासिल की।

पढ़ाई के दौरान सना की मुलाकात ली एंडरसन, मारिया ओहिसालो और कात्री कुलमुनी से हुई। ये तीनों सना की हम उम्र थीं।

इन चारों ने पढ़ाई के बाद अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुडक़र कई आंदोलनों में बढ़-चढक़र हिस्सा लिया। सभी ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली। सना ने सोशल डेमोक्रेट, ली एंडरसन ने लेफ्ट अलायंस, मारिया ने ग्रीन लीग और कात्री ने सेंटर पार्टी का दामन थामा। 2017 में उन्‍हें सिटी काउंसिल में चुना गया, मरीन समान लिंग वाले पार्टनर की संतान हैं।

रूस पर प्रतिबंध के मायने

विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) ने रूस पर सभी बड़े खेल मुकाबलों में चार साल के लिए भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस वजह वह अगले साल होने वाले टोक्यो ओलंपिक और 2000 के कतर फीफा विश्व कप फुटबाल में हिस्सा नहीं ले सकेगा। इसका अर्थ होगा कि रूस का झंडा और उसका राष्ट्रगान किसी बड़े खेल महाकुंभ का हिस्सा नहीं बनेंगे। पर वे खिलाड़ी जो यह साबित कर देंगे कि वे डोपिंग में शामिल नहीं हैं, वे तटस्थ झंडे तले खेलों में हिस्सा ले सकेंगे।

‘वाडा’ ने यह फैसला रूस की ‘डोपिंग रोधी एजेंसी’ (रूसाडा) की प्रयोगशालाओं के उस डाटा को अयोग्य करार दिए जाने के बाद लिया जो ‘डाटा’ उन्होंने इस साल जनवरी में दिया था। इस मुद्दे पर ‘वाडा’ के प्रवक्ता जेम्स फिट्जगेराल्ड ने कहा कि ‘वाडा’ की सिफारिशें आम सहमति से मान ली गई हैं। ‘वाडा’ की कार्यकारी समिति ने आम सहमति से यह भी मान लिया है कि ‘रूसाडा’ ने चार साल तक नियमों का पालन नहीं किया है।

सवालिया निशान ‘रूसाडा’ पर लगा है, पर खिलाड़ी तटस्थ झंडे के तले खेलों में भाग ले सकते हैं। पर उन्हें यह साबित करना होगा कि वे रूसी डोपिंग कार्यक्रम का हिस्सा नहीं थे, जैसा कि मैकलारेन रिपोर्ट में कहा गया है या उनके नमूनों में हेराफेरी नहीं की गई है। ‘वाडा’ के इस फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए रूस के पास 21 दिन का समय है। यदि यह अपील होती है तो इस अपील को खेल पंचाट न्यायालय (सीएएस) में भेजा जाएगा। ‘वाडा’ की उपाध्यक्ष लिंग हेलेलैंड ने चार साल के प्रतिबंध को कम बताया है। उसने कहा है कि यह प्रतिबंध काफी नहीं है। लेकिन इस फैसले पर रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया है। उन्होंने इसे ओलंपिक चार्टर के भी खिलाफ बताया है। उन्होंने कहा कि रूसी ओलंपिक समिति की अवहेलना करने का कोई कारण नहीं है। रूस अपने झंडे तले खेलों में भाग लेगा। रूस के प्रधानमंत्री दमित्री मेदवेदेव ने इसे रूस विरोधी उन्माद का सिलसिला बताया, जो अब नासूर बन चुका है।

पांच की ओलंपिक चैंपियन स्वेतलाना रोमाशिना का कहना है कि यह प्रतिबंध उन खिलाडय़िों पर भी धब्बा है जो साफ-सुथरी तरह से खेलते हैं। उन्होंने कहा कि जो खिलाड़ी साफ हैं, उन्हें यह फैसला नामंजूर है। पर हम ‘वाडा’ के साथ तर्क नहीं कर सकते। उनके पास यह प्रतिबंध लगाने की कोई वजह होगी।

इस बीच राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि वे इस फैसले के खिलाफ अपील करेंगे। उधर, रूसी अधिकारियों और खिलाडय़िों ने इसे रूस के खिलाफ एक मुहिम बताया है। दूसरी ओर, ‘वाडा’ की जांच समिति के प्रमुख कैनेडा के वकील रिसर्च मैकलैरन का दावा है कि रूसी खेल मंत्रालय एफएसबी सुरक्षा सेवा ने व्यवस्थित तरीके से चल रही ‘डोपिंग’ को छिपाया। उन्होंने कहा कि रूस ने विश्व एथलेटिक्स मॉस्को, विश्व यूनिवर्सिटी खेल कज़ान 2013, और 2014 की ‘सोची’ शीतकालीन खेलों में यह सब किया।

राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि ‘वाडा’ की यह रिपोर्ट एक व्यक्ति की गवाही पर निर्भर है। आज ओलंपिक आंदोलन दो फाड़ होने के कगार पर आ गया है। उन्होंने कहा कि ‘डोपिंग’ की खेलों में कोई जगह नहीं है। यह खिलाडय़िों की सेहत के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने कहा कि रूस के जिन अधिकारियों का नाम इसमें आया है, उन्हें अस्थायी तौर पर निलंबित किया जाएगा। उन्होंने ‘वाडा’ से इस मुद्दे पर और जानकारी मांगी है। उन्होंने खेलों में राजनीतिक हस्तक्षेप का भी विरोध किया। उन्होंने ‘शीत युद्ध’ के दौरान ओलंपिक के बहिष्कार का जिक्र किया और कहा ओलंपिक समुदाय फिर बंट सकता है।

इतना होने के बाद भी रूस यूरो-2020 में खेलेगा। ध्यान रहे कि रूस पर 2015 से ही राष्ट्र के तौर पर खेलने पर प्रतिबंध है। पर वह यूरो-2020 में खेलेगा क्योंकि यूरोप की खेल संस्था यूईएफए को खेल के बड़े आयोजकों में नहीं गिना जाता है। इतना ही नहीं, वह 2022 फीफा विश्व कप क्वालिफायर्स में भाग ले सकता है, क्योंकि इससे विश्व चैंपियन तय नहीं होगा।

देखना यह है कि यदि रूस भाग नहीं लेता तो किन बड़े खिलाडय़िों से विश्व वंचित रहेगा। इनमें शामिल हैं –

  1. मरियन लसिस्टकेन (महिला हाई जम्पर) – वह विश्व की नंबर एक एथलीट हैं, जिसने 2017 और 2019 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते।
  2. अंजेलिका सिदोरोवा (महिला पोलवॉल्ट)

 दोहा विश्व चैंपियनशिप-2019 में स्वर्ण और यूरोपीय चैंपियनशिप 2019 में भी स्वर्ण पदक।

  1. मिखायल अकिमेंको (पुरुष हाई जंप) : दोहा विश्प चैंपियनशिप में रजत पदक
  2. इल्लिया आईवनयुक (पुरुष ऊंची कूद)
  3. सर्जेई शुबेंकोव (पुरुष बाधा दौड़)
  4. वासिली मिजिनोव (एथलेटिक्स)
  5. निकिता नागोर्नी (पुरुष जिम्नास्ट)
  6. व्लादिमीर मोरोजोव (पुरुष तैराक)
  7. क्लिमेंट कोलेस निकोव (पुरुष तैराक)
  8. एंटोन चुपकोव (पुरुष तैराक)
  9. इवजेनी रिलोव (पुरुष तैराक)
  10. युलिआ इफिनोवा (महिला तैराक)
  11. दानिल मेदवेदेव (पुरुष टेनिस)
  12. रॉमन व्लासोव (पुरुष कुश्ती)

शहर में एक जंगल

शहर भी अक्सर जंगल की मानिंद लगते हैं, जहाँ कुछ लोग जब हमारे पास से गुज़रते हैं तो लगता है अभी-अभी एक पड़ हमारे करीब से गुज़र गया है। ऐसे लोग जब उदास होते हैं, तो हम बिना उनके अजनबी होने की परवाह किये उनकी चिन्ता करने लगते हैं। अविनाश बुखार से आज ही उठा था। सुबह के 7:00 बजे थे, डीटीसी की 764 नम्बर की लो फ्लोर बस जैसे कुहरे के दानव को चीरती हुई प्रकट हुई और चिंचियाकर रुक गयी। वह धीरे से उसके भीतर प्रवेश कर गया। कुछ पल ठिठके रहने के बाद वह लेडीज सीट की ओर बढ़ा। क्या वह उसका सर पीछे से देखकर पहचान सकता है? उसकी नज़रें उसे काफी देर बेचैनी से ढूँढती रहीं और फिर न पाकर उदासी के विस्फोट के साथ स्थिर हो गयीं। अविनाश को लगा कि जैसे बुखार फिर चढ़ रहा है। मन हुआ उतरकर घर लौट जाए। लेकिन फिर बगल की एक सीट से आदमी उठकर आगे बढ़ा, तो अविनाश धम्म से सीट पर बैठ गया। बस कोहरे को चीरती हुई नेहरू प्लेस की ओर बढ़ती जा रही थी। अविनाश ने सोचा यही तो है शहर, जहाँ दिन एक गहरी उदासी के साथ शुरू होता है; जबकि शाम अपने साथ एक भारी-भरकम थकान लाती है।

अविनाश शहर में नया और अकेला था; जैसा कि प्राय: सभी होते हैं। उसके अकेलेपन में जो चीज़ सबसे पहली हस्तक्षेप करती आयी थी वह थी- 764 नम्बर की लो फ्लोर डीटीसी बस। लेकिन महीने-भर पहले इसमें एक और हस्तक्षेप शुरू हुआ था। एक दिन वह घर से सुबह आधा घंटे पहले ही दफ्तर के लिए निकल गया था। बस में चढ़ा, तो भीड़ ज़्यादा नहीं थी। तभी एक लडक़ी लेडीज सीट से उठ खड़ी हुई और उसने बगल में खड़े बुजुर्ग को वहाँ बैठा दिया। यह देखकर अविनाश के चेहरे पर एक स्निग्ध-सी मुस्कान तिर आयी थी, जिसे उस लडक़ी ने सहसा रंगे हाथों पकड़ लिया था। अविनाश झेंप गया था; लडक़ी भी मुस्कुरा उठी थी। शायद ये सोचकर कि कहीं दिल्ली जैसे शहर में भी लडक़े झेंपते हैं। यह घटना साधारण नहीं थी; इसका पता अविनाश को तब चला जब दफ्तर पहुँचकर भी उसकी मुस्कान निगाहों में तैरती रही। अविनाश भी दिन-भर मुस्कुराता रहा। ऐसा दिन साल में दो-चार बार ही तो आता है, जब हम दिन-भर मुस्कुराते रहें। अगले दिन अविनाश फिर पौन घंटे पहले बस स्टॉप पर पहुँच गया था। डीटीसी की वही 764 नम्बर की लो फ्लोर बस हिचकोले खाती हुई सामने आ रुकी। अविनाश जैसे ही चढ़ा, तो लेडीज सीट की तरफ वह सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। अविनाश को उस दिन पहली बार लगा जैसे उसके सिर के पीछे भी एक जोड़ी आँखें हैं। एक खुशी उसकी आँखों में घुलती जा रही थी। अविनाश को इस खुराक की अब जैसे लत-सी लग गयी थी। अचानक आये वायरल ने उसे तीन दिन उठने नहीं दिया। आज दफ्तर को लौटे दूसरा दिन था, आज भी वह नहीं आयी थी। वह दिन-भर उदास रहा।

अब पाँच दिन हो चुके थे। उसी कोहरे भरी सुबह में अविनाश बस के हैंडल में हाथ फँसाए खड़ा हुआ था। तभी सामने की सीट पर बैठे एक अंकल की आवाज़ उसके कानों में पड़ी- ‘हे भगवान, इस शहर को आिखर हो क्या गया है?’ अविनाश की नज़र उनके हाथों में अखबार के टुकड़े पर पड़ी, जिस पर मोटे बोल्ड अक्षरों में शीर्षक चमक रहा था- ‘नजफगढ़ में दफ्तर के लिए घर से निकली युवती का बस स्टॉप से उठाकर रेप’। खबर पढक़र अविनाश की धडक़नें सहसा रुक-सी गयीं। चेहरे पर जैसे चुनचुनाहट-सी होने लगी। थोड़ी देर के लिए वह जड़-सा हो गया। घबराहट में वह अचानक आईआईटी पर उतरकर बस स्टॉप के कोने में खड़ा हो गया। कुछ देर वह वैसे ही जड़वत् खड़ा रहा। सुबह के सवा सात बजे थे। बस स्टॉप पर एक नॉर्थ ईस्टर्न लडक़ी खड़ी थी, जो उसे देखकर असहज हो रही थी। अविनाश ने अपने मन में अचानक सोचा- क्या मैं इस लडक़ी का रेप कर सकता हूँ? इस रेप के लिए मुझे तैयार होने में कितना वक्त लगेगा? रेप करने वाले रेप के लिए किसी लडक़ी को उठाने से ठीक पहले क्या सोचते होंगे? क्या मैं भी वैसा सोच सकता हूँ? अविनाश की आँखों में धुँधलका-सा छा रहा था। अचानक 764 नंबर की एक और डीटीसी बस सामने आ खड़ी हुई। अविनाश भागकर उसमें चढ़ गया। तीन दिन ऐसी ही बदहवासी में और गुज़रे। चौथे दिन भी जब वह बस में चढ़ा तो आगे लेडीज सीट की तरफ न जाकर पीछे की तरफ चला गया। वहाँ एक सीट खाली पाकर वह उस पर बैठा ही था कि वही मुस्कान वाली लडक़ी उसे अपने बगल में बैठी मिली। अविनाश उसे देखकर ऐसे चौंक गया जैसे कि भूत देख लिया हो। लडक़ी की हँसी सी छूट गयी। अविनाश सब भूलकर झल्ला उठा- ‘कहाँ थीं तुम इतने दिन?’ फिर अचानक उसे गलती का एहसास हुआ और वह – ‘नो, आई एम सॉरी’ कहता हुआ सीट से उठ खड़ा हुआ। लडक़ी ने मुस्कुराते हुए उसे बैठने का इशारा किया और बाहर मुनिरका मार्केट की ओर झाँकते हुए कहा- ‘कहीं नहीं, अपने घर चली गयी थी, इलाहाबाद; कल ही लौटी।’ अविनाश ने मुस्कुराते हुए एक लम्बी साँस ली और बाहर देखने लगा। शहर फिर एक हरे-भरे जंगल की तरह दिख रहा था।

आखिर हम सब इंसान ही तो हैं

 जब हम किसी गाँव, कस्बे या शहर की हदों में कैद होते हैं, तब हम मज़हब के साथ-साथ जाति, उपजाति, कुल गोत्र, क्षेत्र, रहन-सहन, खान-पान, भाषा या बोली और सम्पन्नता के स्तर जैसे कई दायरों में बँधे होते हैं। हालाँकि, इन िफजूल के जंजालों में आम सोच के लोग, खासकर मध्यम-वर्गीय लोग ज़्यादा हद तक फँसे होते हैं; लेकिन यह भी सच है कि पूरी तरह किसी भी वर्ग और स्तर के लोग इन दायरों से मुक्त नहीं होते। सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि हमने ईश्वर के कई नाम होने के चलते उसे  अलग-अलग मान लिया है। वहीं अलग-अलग भाषाओं और शिक्षाओं के चलते हर मज़हब की एक चहारदीवारी बना रखी है। ताकि कोई भी इसे तोडऩेे की हिम्मत न कर सके। अगर कोई इस चहारदीवारी को तोडक़र मुक्त होना भी चाहे, तो भी समाज, जाति और मज़हब उसे इससे मुक्त नहीं होने देते। इन सब झंझटों से कोई तभी मुक्त हो पाता है, जब वह समाज या दुनिया को छोड़ देता है। लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है; वह यह कि जब कोई अपने •िाला या प्रदेश या कहें कि अपनी पैदाइश वाली जगह को छोड़ देता है, तब वह कुछ बन्धनों से कुछ हद तक मुक्त हो जाता है। इससे भी आगे यदि कोई देश छोड़ देता है, या बहुत अधिक धनवान हो जाता है, तब वह मज़हब जैसी कठोर दीवार से भी कहीं-न-कहीं बाहर आ चुका होता है। कई बार तो देश-काल की सीमाएँ भी आसानी से टूट जाती हैं।

आपने ऐसे कई उदाहरण देखे, सुने और पढ़े होंगे, जब मज़हबों की दीवारों को तोडक़र लोगों ने प्रेम-विवाह किया है और वे सफल भी हुए हैं। कुछ लोग इंसानियत को ही मज़हब मानते हैं और जाति तथा मज़हब के बन्धनों को तोडऩे वालों का साथ देते हैं; लेकिन कुछ लोग इस तरह के रिश्तों के पूरी तरह िखलाफ भी होते हैं और हमेशा जाति और मज़हब के दायरों का रोना रोते रहते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग इंसानियत के पुजारियों को नुकसान पहुँचाने से भी नहीं चूकते। कोई यह नहीं सोचता कि इस दखल से कितनी ही हँसती-खेलती •िान्दगियाँ बर्बाद हो जाती हैं; कितने ही लोग अकाल मौत के मुँह में चले जाते हैं। क्या बुरा है अगर पूरी दुनिया एक हो जाए? क्या गलत है अगर हम यह मान लें कि ईश्वर एक ही है और उसने सृष्टि को एक ही तरह से बनाया है? ये दोनों ही बातें पूरी तरह सत्य और शाश्वत् हैं; तो फिर मानने में हर्ज क्या है? क्या हम ईश्वर, सृष्टि और उसके नियमों से ऊपर हैं? नहीं। मगर मानने को तैयार नहीं कि पूरी दुनिया एक ही ईश्वर ने बनायी है। और यही आपसी मनमुटाव, मतभेद, तकरार, वैमनस्य, घृणा, ईश्र्या, कलह की जड़ भी है। यूँ तो मतभेद और मनभेद इंसानी िफतरत है और यह दुनिया के रहने तक रहेगी भी; क्योंकि सबकी सोच, व्यवहार, भाषा, रहन-सहन, इच्छाओं में एक अन्तर होता है। यही कारण है कि कुछ लोग इतने प्रेमी और शान्त हृदय के होते हैं कि पूरे जीवन में उनकी किसी से तू-तू, मैं-मैं तक नहीं होती; जबकि कुछ लोग इतने दुष्ट और नफरत फैलाने वाले होते हैं कि दूसरों की जान लेने तक से नहीं झिझकते।

मगर कोई कितनी भी नफरत करने वाला क्यों न हो, वह भी अकेला नहीं चल सकता; उसे भी किसी-न-किसी से प्यार करने, उससे समझौता करने या उसके साथ रहने की ज़रूरत तो होती ही है। यह अलग बात है कि वह अपने ही जैसे किसी इंसान को अपने लिए चुनता है। यानी कुल मिलाकर सार तत्त्व यही है कि नफरत करने और फैलाने वालों को भी प्यार और सद्भाव की आवश्यकता रहती ही है, और सदैव रहेगी। यानी दुनिया नफरत से न तो चलती है और न ही कभी चलेगी। अरबों इंसानी •िान्दगियों की रेल प्यार और शान्ति की दो पटरियों पर ही दौड़ रही है और दौड़ती रहेगी। ऐेसी ही प्रेम-कहानी ब्रिटेन में रहने वाले दीप और अलीशा की है। दीप का पूरा नाम दीपक राणा है और वह भारतीय है। वहीं अलीशा का पूरा नाम अलीशा खान है और वह बांग्लादेशी है। िफलहाल यह जोड़ा कहाँ है, नहीं मालूम; लेकिन यह बात 2006 की है। अलीशा और दीप एक आईटी कम्पनी में  नौकरी करते थे। साथ काम करते-करते दोनों में परिचय हो गया और फिर धीरे-धीरे दोस्ती। 2008 में दोनों ने हमेशा के लिए एक-दूसरे का होने का फैसला ले लिया। दोनों ने अपने-अपने परिवार में अपने फैसले के बारे में बताया। थोड़ी-बहुत आनाकानी और रस्साकसी के बाद आिखर घर वालों ने अलीशा और दीप को शादी की इजाज़त दे दी। इसके बाद सभी की उपस्थिति में शादी की रस्में पूरी हो गयीं। कितनी आसानी से यह सब हो गया, आश्चर्य भी होता है और अच्छा भी लगता है। आिखरकार मज़हब तो इंसानों ने ही बनाये हैं। मज़हब की दीवारें इतनी भी मज़बूत नहीं होतीं, जितनी की हम मान लेते हैं। यह अलग बात है कि इन दीवारों को तोडऩे की कोशिश करने वालों को अनेक परेशानियों के साथ-साथ ज़माने की मुखालिफत और िखलाफत का सामना करना पड़ता है; ज़ुल्म सहने पड़ते हैं। लेकिन यह सब एशियाई देशों में ज़्यादा होता है; खासतौर पर भारत में। बाहर जाकर लोग इन मज़हबी दीवारों को बड़ी आसानी से तोड़ देते हैं और किसी को कोई आपत्ति नहीं होती। यहाँ भी तब विरोध नहीं होता, जब कोई विदेशी लडक़ी भारतीय लडक़े से शादी कर लेती है। लेकिन दो मज़हबों से ताल्लुक रखने वाला कोई भारतीय जोड़ा ही अगर शादी कर ले, तो किसी को हज़म नहीं होता; न जाने क्यों लोगों के पेट में दर्द होता है? सबसे अजीब बात यह है कि ऐसे सम्बन्ध जुडऩे पर उन लोगों के पेट ज़्यादा दुखते हैं, जो अपने ही देश में जाति और मज़हब की हज़ारों दीवारें खड़ी करके देश को कमज़ोर किये हुए हैं। बाहर जाकर कितने ही लोग देश-काल तक की सीमाएँ भूलकर एक हो जाते हैं। एक हो जाना भी चाहिए, बाहर ही क्यों? यहाँ भी। क्योंकि आिखरकार हम सब इंसान ही तो हैं।

जलियांवाला कांड की याद दिला दी जामिया विश्विद्यालय घटना ने, उद्धव ठाकरे ने कहा

एक बहुत बड़े ब्यान में शिव सेना के प्रमुख और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है कि जामिया में जो कुछ हुआ वह जलियांवाला कांड की याद ताजा करता है। याद रहे छात्रों ने पुलिस पर हॉस्टल में बिना इजाजत घुसकर उनपर बर्बरता का आरोप लगाय है।

उधर पुलिस ने जामिया हिंसा पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने जामिया और एएमयू हिंसा मामले में याचिकाकर्ताओं को पहले हाईकोर्ट जाने को कहा है।

जामिया हिंसा में राजनीतिक तौर पर मंगलवार को सबसे बड़ा ब्यान शिव सेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे की तरफ से आया है। उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी हैं। उन्होंने जामिया में छात्रों पर पुलिस की बर्बरता की तुलना ब्रिटिश शासन में जलियांवाला बाग़ काण्ड से की है। उद्धव ने कहा – ”जामिया में जो कुछ हुआ वह जलियांवाला कांड की याद ताजा करता है। युवाओं में बम जैसी ताकत है और उन्हें नहीं भड़काया जाना चाहिए।

उधर सुप्रीम कोर्ट ने जामिया और मुस्लिम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी मामले में याचिकाकर्ताओं से कहा है कि वे पहले हाईकोर्ट में जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट में दोनों पक्षों की बात सुनी जाएगी।

उधर पुलिस ने जामिया हिंसा पर अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी है। इसमें हरेक पहलु के हिसाब से जानकारी दी गयी है।

विरोध के अधिकार की रक्षा हो : अमेरिका

नागरिकता संशोधन कानून भी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। इसके विरोध प्रदर्शन और हिंसक रुख के साथ ही सरकार की सख्ती और पुलिसिया कार्रवाई पर अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियां मिलने के बाद अमेरिका की ओर से आधिकारिक प्रतिक्रिया आई है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों को किसी भी तरह की हिंसा से बचना चाहिए। इसके अलावा इससे निपटने वाले अफसरों और सुरक्षाकर्मियों को भी लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार की रक्षा और सम्मान करना चाहिए। कानून के तहत धार्मिक आजादी और समान व्यवहार का सम्मान अमेरिका और भारत दोनों के ही मौलिक सिद्धांत रहे हैं। उन्होंने अपील की है कि भारत संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करे।

इससे पहले भारत में विरोध प्रदर्शन को देखते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इजराइल समेत कई देशों ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। बांज्लादेश के विदेश मंत्री ने अपनी यात्रा रद़्द कर दी है। इसके अलावा जापान के प्रधानमत्री शिंजो आबे भी गुवाहाटी में शिखर वार्ता करने वाले थे, उसे भी अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया है।

विदेशों में ही नहीं, अपने देश में भी इसके खिलाफ में कई राज्य पश्चिम बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़  के साथ ही केरल जैसे राज्यों ने इस कथित विवादित कानून को लागू करने से इनकार कर दिया है। वहीं, हाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अभी नागरिकता कानून पर तस्वीर साफ नहीं की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने कानून से जुड़ी हमारी चिंताओं को अभी स्पष्ट नहीं किया है। इससे पहले, संजय राउत से इस कानून से जुड़े सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि मामले में सीएम उद्धव ठाकरे ही फैसला करेंगे।

वहीं, यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती ने केंद्र सरकार से नागरिकता संशोधन कानून वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह एक असंवैधानिक कानून है। इसे वापस नहीं लिया गया, तो इसके नकारात्मक नतीजे हो सकते हैं। इससे इमरजेंसी जैसी हालात पैदा नहीं करने चाहिए जैसा कि कांग्रेस कर चुकी है। उनकी पार्टी विधानसभा के साथ ही पूरे यूपी में इसके खिलाफ आवाज बुलंद करेगी।

जामिया हिंसा में ‘विदेशी हाथ’ से गृह मंत्रालय का इंकार नहीं

दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास रविवार को हुई हिंसा में  शामिल १० आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। यह लोग आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बताये गए हैं। दिलचस्प है कि इन १० लोगों में एक भी छात्र नहीं है। पुलिस ने इसे लेकर छापेमारी की है। उधर गृह मंत्रालय इस सम्भावना से इंकार नहीं कर रहा कि इस मामले में ”विदेशी हाथ” भी हो सकता है।

पुलिस के मुताबिक इन आरोपियों को सोमवार देर रात गिरफ्तार किया गया है।  पुलिस ने कहा गिरफ्तार लोगों में एक भी छात्र नहीं है। विश्वविद्यालय रविवार को उस वक्त जंग के मैदान में तब्दील हो गया था जब पुलिस परिसर में घुस आई थी और वहां बल प्रयोग किया था। पुलिस पर छात्रों ने बर्बरता का आरोप लगाया था। विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह भी आरोप लगाया था कि पुलिस बिना उसकी इजाजत के परिसर में घुस गयी।

यह सब संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा और आगजनी हो जाने से हुआ था। इस हिंसा में चार डीटीसी बसें, दर्जनों निजी वाहन और कुछ पुलिस वाहनों को नुकसान पहुंचा था। इसके बाद ही पुलिस ने विश्वविद्यालय में घुसकर कार्रवाई की। बादमें छात्रों को हाथ ऊपर उठाकर हॉस्टल से बाहर लाया गया जिसपर काफी बबाल मचा। आरोप है कि पुलिस कार्रवाई में कई छात्र घायल भी हुए।

उधर नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में भी रविवार को ही देर रात हुए प्रदर्शन हुआ था। इसमें तीन छात्र घायल हो गए थे।  पुलिस ने २१ छात्रों को गिरफ्तार किया। फिलहाल एएमयू को ५ जनवरी तक के लिए बंद कर दिया गया है।

पाकिस्तान से आ रहे ३ घुसपैठिये ढेर

जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाएं जारी हैं। इस दौरान पाक गोलीबारी में दो जवान शहीद हो गए हैं। सेना ने पाकिस्तान से घुसपैठ कर रहे तीन आतंकियों और दो पाक सैनिकों को भी ढेर कर दिया है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक यह गोलीबारी नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर की गयी है। जानकारी के मुताबिक वहां घुसपैठ की कोशिश की गयी जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया। हालांकि, इस दौरान पाक गोलीबारी में एक जवान शहीद हो गया  है। सेना ने जबाबावी कार्रवाई में पाकिस्तान से घुसपैठ कर रहे तीन आतंकियों और दो पाक सैनिकों को भी ढेर कर दिया है। इसके आलावा उसकी कई चौकियां भी तबाह हुई हैं।

पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ की यह कोशिश पलांवाला-सुंदरबनी सेक्टर के केरी बट्टल इलाके में सोमवार देर शाम की गयी। संदिग्ध हलचल होने पर चौकन्ने भारतीय सैनिकों ने पाया कि आतंकियों का एक ग्रुप घुसपैठ की कोशिश कर रहा था। सेना ने उन्हें ललकारा।इस बीच इन आतंकियों को सीमा के उस पार से इधर निकालने के लिए पाकिस्तान की ओर से अग्रिम चौकियों पर गोलाबारी शुरू कर दी गयी। इसमें एक जवान शहीद हो गया।

दुसरी घटना उत्तरी कश्मीर में एलओसी की है जहाँ पाकिस्तान ने भारी गोलाबारी की। इसमें गुरेज सेक्टर में ६ मराठा लाई के महाराष्ट्र निवासी हवलदार सीजे गणपति शहीद हो गए। हालांकि भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई में नियंत्रण रेखा के उस पार स्थित दराशेर खान क्षेत्र में दो पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। चार अन्य गंभीर रूप से घायल हैं।

पाकिस्तानी सेना ने सोमवार को मेंढर सब डिवीजन में नियंत्रण रेखा पर कृष्णा घाटी, मनकोट सेक्टर में संघर्ष विराम का उल्लंघन किया। सेना की चौकियों के साथ ही रिहायशी इलाकों को निशाना बना कर मोर्टार बरसाए।

पाक अदालत ने मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई

पाकिस्तान की एक अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई है। मुशर्रफ पिछले लम्बे समय से विदेश में हैं। उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।  पाकिस्तान में किसी सेना अधिकारी को मौत की सजा के संभवता इक्का-दुक्का ही मामले रहे होंगे।

मुशर्रफ २०१६ में इलाज के लिए यूएई गए थे और अभी तक नहीं लौटे हैं। परवेज मुशर्रफ नवाज शरीफ सरकार के समय देश के सेनाध्यक्ष थे। उसके बाद वे शरीफ   सरकार का तख्तापलट कर सत्ता में आ गए थे और बाद में राष्ट्रपति भी बन गए थे।

पाकिस्तान में आपातकाल लगाने के लिए उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। इसमें उन्हें आरोपी बनाया गया। इस मामले में ही उन्हें पेशावर की अदालत ने अब मौत की सजा सुनाई है। अभी देखना होगा कि वे इस फैसले के खिलाफ क्या कानूनी विकल्प चुन सकते हैं।