Home Blog Page 956

आपराधिक लापरवाही की आग

दिल्ली के अनाज मंडी में 8 दिसम्बर को तडक़े लगभग 5 बजे लगी आग से दिल्लीवासी एक दम सन्न रह गये। अनाज मंडी स्थित 4 मं•िाला इमारत में आग से 43 लोगों की मौत हो गयी और 60 के करीब गम्भीर रूप से घायल हो गये, जिनमें 12-15 लोग •िान्दगियाँ मौत से जूझ रही हैं। उनका उपचार दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल में चल रहा है। अनाज मंडी से लेकर घायलों और मृतकों के परिजनों से तहलका संवाददाता ने बात की तो यह बात निकलकर सामने आयी कि जब भयंकर हादसा होता है, तभी कमियाँ सामने आती हैं और सुधार करने की बातें होती हैं। अगर समय रहते शासन और प्रशासन समय-समय पर अवैध रूप से चल रही फैक्ट्री पर नकेल कसता तो शायद यह दिन न देखना पड़ता। क्योंकि अवैध फैक्ट्री में हुआ हादसा आपराधिक साजिश के साथ-साथ लापरवाही का ज्वलंत मामला है। दिल्ली में उपहार सिनेमा कांड के बाद ये दूसरा सबसे बड़ा अग्निकांड है।

मौज़ूदा हाल मेंं ही अगर सरकार सही तरीके से कार्रवाई करें, तो भविष्य में होने वाली घटनाओं को रोक सकती है। बताते चलें कि अनाज मंडी में इसी तरीके से 600 से अधिक फैक्टरियाँ चल रही हैं, जिसमें मज़दूर दिन में फैक्ट्री में काम करते हैं और रात में खाना बनाकर वहीं सोते हैं। कुल मिलाकर दिन-रात का सारा काम इन्हीं फैक्ट्रीज में करते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आयी है कि एक कमरे में चलने वाली इन फैक्ट्रीज में 10 से 20 मज़दूर काम करते हैं। स्थानीय निवासी रमेश कुमार ने बताया कि एक कमरे में •यादातर फैक्ट्री मालिक मज़दूरों को किराया न लगने का लालच देते हैं और दिन में काम करवाते हैं। कुछ फैक्ट्रीज की हालत तो यह है कि एक ही गेट है, उसमें मजदूर देर रात तक काम करते हैं और फैक्ट्री मालिक बाहर से दरवा•ो बंद कर चले जाते हैं। दर्शन सिंह नाम के एक व्यक्ति ने बताया कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम की फैक्ट्री मालिक की साठ-गाँठ पर यहाँ फैक्ट्रीज चल रही हैं और पुलिस भी कार्रवाई के तौर पर कुछ नहीं करती है।

अब बात करते हैं िफल्मिस्तान में स्थित अनाज मंडी में लापरवाही की आग के 43 लोगों की दर्दनाक मौत की। जब यहाँ पर आग लगी थी, तब लोग सुबह गहरी नींद में सो रहे थे। सुबह के करीब पाँच बजे आग लगने के कारण लोगों की आवा•ों गहरी नींद को जगा रही थीं; लेकिन अनहोनी भी अपनी गति में थी। आग इस कदर भयानक थी कि शोरशराबा हुआ, तो पड़ोसी मदद को आगे आये और जिससे जितना बना उन्होंने आग को बुझाने का काम किया और पुलिस और दमकल विभाग को सूचना दी। दमकल विभाग के कर्मचारियों ने तुरन्त आग को काबू पाने के लिए भरसक प्रयास किये जहाँ तंग गली थी, वहाँ पर फायर बिग्रेड के कर्मचारियों ने अपनी जान पर खेलकर आग से जूझकर लोगों को बाहर निकाला और अस्तालों में पहुँचाया। सुबह आठ बजे के बाद एनडीआरएफ  का एक दल बचाव और राहत कार्य में जुट गया, जिससे काफी राहत लोगों को मिली। आग का मंज़र ऐसा था कि अधिकतर लोगों ने कहा कि उन्होंने अपनी •िान्दगी में ऐसी आग की लपटें न देखीं और न ही ऐसा भयंकर धुआँ, जो •िान्दगियों को लील रहा था। 44 वर्षीय राम रतन ने बताया कि चीत्कार ने उनको दहला दिया, जब आग का धुआँ फैल रहा था, तब लग रहा था कि ये क्या हो रहा है? उन्होंने बताया कि 200 गज की फैक्ट्री में 100 मज़दूर काम करते हैं। यह भी तब पता चला, जब यह हादसा सामने आया। राम रतन का कहना है कि फैक्ट्री मालिकों की यहाँ पर पुलिस और सम्बन्धित विभाग में ऐसी साठगाँठ है कि सभी नियमों को ताक पर रखकर उनकी धज्जियाँ उड़ाकर फैक्ट्री को चलाया जा रहा है। जिस फैक्ट्री में आग लगी वहाँ पर हर मंजिल में छोटे-छोटे कमरे हैं, वहीं पर मजदूर रहते थे। चौंकाने वाली बात ये सामने आयी कि एक ओर तो केन्द्र सरकार प्लास्टिक पर रोक लगाने का प्रयास कर रही है और ज़ुर्माना भी ठोंक रही है। वहीं इस इमारत में प्लास्टिक का दाना बनाने का काम चलता था। ऐसा नहीं कि पुलिस और अधिकारी अनजान थे, वे सिर्फ बेसुध होकर बैठे थे।

इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस भयावह घठना पर दु:ख जताते हुये कहा कि मेरी संवेदनाएँ उनके साथ हैं, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से हर सम्भव मदद की जा रही है।

आग लगने की बात दिल्ली ही नहीं देश-दुनिया में आग की तरह फैल गयी फिर सियासतदानों का आना-जाना शुरू हुआ और आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया। सुबह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने मौके पर पहुँचकर एक ओर मुआव•ो का ऐलान किया और कहा कि इस मामले की न्यायिक जाँच होगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि मृतकों के परिजनों को 10 लाख का मुआवज़ा और गम्भीर रूप से घायलों को एक लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने मृतकों के परिजनों को पाँच लाख रुपये देने का घोषणा की है और कहा कि दिल्ली सरकार की लापरवाही के कारण ये हादसा हुआ है। उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल से इस अग्निकांड के लिए नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की माँग की है। वहीं दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने मृतकों के परिजनों को दिल्ली सरकार से नौकरी देने की माँग की है। उन्होंने दु:ख की इस घड़ी में मृतकों के परिजनों में गहरी संवेदना व्यक्त की और कहा कि इस आग के लिए दिल्ली सरकार और भाजपा शासित नगर निगम •िाम्मेदार है।

दिल्ली के दमकल विभाग के प्रमुख अतुल गर्ग का कहना है कि जिस इमारत में आग लगी उसने एनओसी नहीं ली थी और न ही फायर क्लीयरेंस था। इमारत में प्लास्टिक के दाने बनाने का काम चल रहा था और कागज़ के गत्ते रखे थे, जिसके कारण आग के कारण धुआँ फैलता गया। जबकि बिजली कम्पनी का कहना है कि आंतरिक प्रणाली में खराबी के कारण आग लगी, क्योंकि मीटर पूरी तरह से सुरक्षित है; ऐसे में लापरवाही के कारणों की जाँच की जा रही है।

िफलहाल पुलिस ने फैक्ट्री मालिक रेहान और मैनेजर फुरहान को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ की जा रही है। रेहान की फैक्ट्री के पास न कोई दस्तावेज़ है और न ही आग से बचाव के लिए कोई उपकरण थे। यहाँ के स्थानीय निवासियों को कहना है कि सरकार की उदासीनता और फैक्ट्री मालिक की लापरवाही का ही नतीजा है कि इतने मज़दूरों की मौत हो गयी। सच्चाई यह है कि सरकार से जुड़े लोगों की ही फैक्ट्रीज चल रही हैं। इसके कारण यहाँ पर जाँच पड़ताल के लिए अधिकारी आसानी से नहीं आते हैं।

डॉक्टरों ने कहा कि जब धुआँ की लपटें फैलती हैं, तो ऐसे में हार्ट रोग से पीडि़त मरीज़ और अस्थमा से पीडि़त लोगों को •यादा शारीरिक नुकसान होता है। क्योंकि मज़दूर भी कई बीमारियों से जूझते हुए काम करते हैं। ऐसे में समय-समय पर फैक्ट्री मालिकों को उनके स्वास्थ्य की जाँच करवानी चाहिये। मैक्स अस्पताल के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेक कुमार ने बताया किसी को •यादा देर तक एक कमरे में रहकर काम करना पड़ता है, तो उनको साँस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे में बंद कमरे में धुआँ होने से साँस न ले पाने के कारण मज़दूरों की मौत हो गयी। लोकनायक अस्पताल के बर्न विभाग के डॉ. पीएस भंडारी और चिकित्सा अधिकारी डॉ. किशोर ने बताया कि जो मरीज़ भर्ती हैं। उनका उपचार चल रहा है, जिसमें कुछ की हालत गम्भीर है, तो कुछ की हालत में मामूली सुधार हो रहा है। िफलहाल अभी अस्पताल से छुट्टी कब मिलेगी? यह नहीं कहा जा सकता है।

आग पर सियासत

दिल्ली अग्निकंाड का मामला राज्य सभा में उठा और भाजपा के विजय गोयल और आप पार्टी के राज्य संजय सिंह एक-दूसरे पर आरोपबाज़ी करते दिखे। विजय गोयल ने कहा कि दिल्ली में उपहार सिनेमा अग्निकांड हुआ और इसके बाद ओखला, नरेला के साथ कई भीषण अग्निकांड हुए हैं। संजय सिंह ने कहा कि सुरक्षा को लेकर दिल्ली सरकार, एमसीडी और डीडीए सहित सम्बन्धित विभागों को सुरक्षा को लेकर विचार करना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी अनहोनी न हो।

साहसीय काम

धधकती आग से जूझते हुए जान पर खेल कर फायर विभाग के एडीओ राजेश शुक्ला ने 11 लोगों की •िान्दगी बचा ली। सुबह तकरीबन साढ़े पाँच बजे के बाद कनॉट प्लेस से फायरब्रिगेड की एक टीम घटना स्थल पर पहुँची थी। यह कहना है फायर स्टेशन के ऑपरेटर आशीष मलिक का। इस टीम की अगुआई राजेश शुक्ला कर रहे थे। राजेश ने धुएँ और आग की लपेटों में घुसकर लोगों की जान बचायी। वह जब फैक्ट्री से फँसे हुए लोगों को निकाल रहे थे, तब उनके पैर में गम्भीर चोटें आयीं; उनको लोकनायक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनका उपचार चल रहा है। जाँबाज़ राजेश शुक्ला को देखने पहुँचे दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने तारीफ की और कहा कि असली हीरो तो राजेश हैं, जिन्होंने अपनी जान की चिन्ता किये बिना दूसरों की जान बचायी है; यह बहुत बड़ा काम है।

िफलहाल अगर पीडि़तों से बात करो, तो अपनों के गम में वे फूट-फूटकर रोने लगते हैं और कहते हैं कि यह तो रोज़ी-रोटी की फैक्ट्री थी, जान लेने वाली फैक्ट्री कैसे बन गयी? आग का मंज़र और लपटों ने यहाँ के निवासियों को हिलाकर रख दिया। लोगों का कहना है कि सालों-साल लग जाएँगे इस दर्द से उभरने में।

फैला तारों का जाल, कभी भी हो सकता है हादसा 

राजधानी दिल्ली में कई मार्केट ऐसे हैं, जहाँ पर आग लगने की स्थिति में िफल्मिस्तान से •यादा भयानक हादसा होने का भय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि दिल्ली सरकार, एमसीडी और फायर विभाग अपरिचित हों। दिल्ली की तंग गलियों में बिजली के तारों का फैला जाल मार्केट वालों के लिए, इन इलाकों में रहने वालों और खरीददारों के लिए खतरे से खाली नहीं है।

दिल्ली के सदर बाज़ार, चाँदनी चौक, रूई मंडी, यमुनापार का जाफराबाद मार्केट, लक्ष्मी नगर का मंगल बाज़ार, सरोजनी नगर मार्केट, सहित तमाम मार्केट ऐसे हैं, जहाँ पर आग लगनी की स्थिति में भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं। तहलका संवाददाता ने बाज़ार में आये खरीददारों और दुकानदारों से बात की, तो उन्होंने बताया कि क्या करें रोज़ी-रोटी की खातिर रिस्क लेकर काम कर रहे हैं, जो होगा देखा जाएगा। सदर बाज़ार के दुकानदार मोती लाल ने बताया कि ये मार्केट दिल्ली वालों का ही नहीं, बल्कि पूरे देश का है। यहाँ पर देश के छोटे-बड़े व्यापारी खरीदारी करने आते हैं अगर सरकार ही न ध्यान दें, तो क्या करें? क्योंकि सदर बाज़ार, चाँदनी चौक का मार्केट पूरे देश में प्रसिद्ध है। यहाँ पर लाखों की संख्या में देशवासी खरीदारी करने और घूमने आते हैं; ऐसे में कोई आग जैसी स्थिति हो जाए, तो अफरा-तफरी मच जाएगी। रूई मंडी के जुगलकिशोर का कहना है कि दिल्ली सरकार और फायर विभाग के आला अधिकारियों से कई बार बात की है कि यहाँ पर आग लगने की स्थिति में बचाव के लिए कुछ ऐसा प्रबन्ध करो, ताकि कोई जान-माल का खतरा न हो; लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होती है। बस दीपावली के आस-पास के दिनों में ज़रूर मार्केट में फायर विभाग और पुलिस वाले आते हैं। आग से बचाव के लिए जो भी संसाधन हैं, उनका इस्तेमाल करते हैं। फिर स्थिति जस की तस हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक तो दुकानदारों की मनमर्ज़ी का आलम यह है कि वे अपनी दुकान के भीतर तो सामान ठूूँसकर रखते ही हैं, साथ ही दुकान के बाहर भी सामान को रखते हैं। ऐसे में आने-जाने वालों को दिक्कत तो होती है और अगर कभी कोई अप्रिय घटना, घटने की स्थिति में बचाव के तौर पर मुसीबत होगी। सडक़ पर चलने में भी दिक्कत होती है। यातायात पुलिस की लापरवाही के कारण बेरोक-टोक वाहन आते-जाते रहते हैं। इन पर भी रोक लगनी चाहिए। सरोजनी नगर मिनी मार्केट टे्रडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक रंधावा का कहना है कि सरोजनी नगर में अगर आग लगने जैसा हादसा होता है, तो निश्चित तौर पर िफल्मिस्तान से •यादा बड़ा हादसा हो सकता है। उन्होंने बताया कि यह मार्केट दिल्ली के एनडीएमसी के अन्तर्गत आता है, जो सन् 1952 में शरणार्थियों के लिए बनाया गया था। यहाँ पर मार्केट में नीचे दुकान है और ऊपर मकान। अगर यहाँ आग लगती है, तो मार्केट की तंग गलियों में फायर ब्रिगेड की गाड़ी नहीं आ सकती। अशोक रंधावा का कहना है कि अवैध रूप से मार्केट में सडक़ों के बीचोंबीच में दुकान लगाकर लोग बैठे हैं। इसकी शिकायत उन्होंने कई बार फायर विभाग में और एनडीएमसी में की है, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। यहाँ हमेशा ही बड़ी दुर्घटना होने की सम्भावना बनी रहती है। उन्होंने बताया कि सरोजनी नगर में पहले भी आग लगी है। यमुनापार का गाँधी बाज़ार का भी यही हाल है, जो एशिया की कपड़े की सबसे बड़ी मार्केट है, जहाँ पर लोग नीचे दुकानदारी करते हैं और ऊपर मकानों में रहते हैं। दुकानदार पवन कुमार का कहना है कि एशिया के इस सबसे बड़ी कपड़ा मार्केट में देश-भर के व्यापारी आते हैं और यहाँ से सरकार को अच्छा-खासा राजस्व भी मिलता है। लेकिन पुलिस औैर फायर सुरक्षा के नाम पर यहाँ कुछ भी नहीं है। यमुनापार के जाफराबाद में तो हाल-बेहाल है सर्दी के दिनों में कपड़े का काम होता है और गर्मी के दिनों में कूलर-पंखे का काम होता है। सबसे गम्भीर बात यह है कि एमसीडी और दिल्ली पुलिस की अनदेखी के कारण दुकानदार अपनी दुकान का सामान सडक़ तक फैलाकर रखते हैं, जिसके कारण अक्सर सडक़ों में जाम लगा रहता है। यहाँ पर तंग गलियों में बिजली के तारों का फैला जाल ज़रा-सी लापरवाही तबाही मचा सकता है। जाफराबाद मार्केट के अलोक गुसाईं का कहना है कि अगर सही मायने में दिल्ली पुलिस वाले चौकसी बरतें, तो निश्चित तौर काफी कुछ रोका जा सकता है। क्योंकि जब भी कोई आग लगने जैसा भयानक हादसा होता है, तब काफी कुछ नियम कायदे-कानून बनते हैं। लेकिन धीरे- धीरे सामान्य हो जाता है। इसलिए पुलिस की चौकसी की सख्त ज़रूरत है। ताकि आग की लपटों से सबको बचाया जा सके।

जिस्म, जलवा और महाठगी

वक्त गुज़रा जब अमरीकी लेखिका नाओमी वुल्फ ने अपनी पुस्तक ‘द ब्यूटी मिथ’ में लिखा था कि अश्लील साहित्य और सौन्दर्य बाज़ार महिलाओं के जीवन में दर्द, अपराध बोध और शर्म का अहसास फिर से लाएगा। लेकिन क्या ऐसा हो सका? इसके विपरीत लेखिका शेफाली वासुदेव की मानें तो, ‘भारत की मॉल संस्कृति में फल-फूल रहा सौंदर्य बाज़ार दो नितांत भिन्न मूल्यों खूबसूरती और सेक्सुअलिटी ज़बरदस्ती भर रहा है। गीली और चमकदार लिपिस्टिक के ज़रिये जो महिलाओं के होंठों के आकार की है, अधखुले आमंत्रण देते होंठ, वह इसी रूप में बेची जा रही है। लेकिन इसकी शैतानी तड़प ने कामुकता के टके खड़े करने की एक ऐसी टकसाल खड़ी कर दी है, जिसने यौन सम्बन्धों को जबरन थोपकर भद्रलोक में ज़बरदस्त खौफ पैदा कर दिया है। दुष्कर्म का यह मकडज़ाल राजस्थान में राकेट की रफ्तार से बढ़ रही है। हर घटना के कथा सूत्र हर बार नये सिरे से खुलते हैं और ‘रसूखदारों’ की आबरू, दौलत और प्रतिष्ठा केा निगलते चले जाते हैं।

देह को टकसाल बनाकर नामचीन लोगों की लम्पटता भुनाने का कारोबार जयपुर में पूरे जलाल पर है। आधुनिकता के नाम पर चौंधियाते चेहरों की ओट में लालच और जालसाज़ी की काली दुनिया उसाँसे भर रही है। हॉट रिश्तों का यह हैरतअंगेज़ खेल जीते जी लोगों को सूली पर चढ़ा रहा है। खूबसूरती की डोर में खिंचे चले आने वाले लोगों को इसका डरावना चेहरा नज़र आता है, तो उनके होश फाख्ता हो जाते हैं। इस चक्रव्यूह में भुनगे की तरह फँसने वालों की मुक्ति ढेरों दौलत और सम्पत्ति गँवाने के बाद ही होती है। रमणियों का आमंत्रण जितना लुभावना होता है, पैकेज उतना ही •यादा। अपराध की नयी पटकथा लिखने वाली रमणियों की यह नई सा•िाश है, जो इसी में जन्नत देखती है। कोए की तरह ‘कनिंग’ बाज़ार में ‘सोने के हिरण’ फाँसने का यह खेल तीन लफ्ज़ों द्वारा खेला जा रहा है- आई लव यू! आशिकी के आमंत्रण की इस कॉकटेल में लोग फँसते ही फँसते हैं। प्रिया सेठ का िकरदार दो कदम आगे निकला। प्रिया ने पहले दुष्यंत नामक धनी-मानी युवक को अपने हुस्न की दौलत से लुभाया और ऐसा मंतर फेरा कि उसकी धडक़न और ख्वाबों से जुड़ गयी। शिकार आखेट के लिए तैयार हो गया, तो जिस्मानी रिश्ते बनाकर क्लीपिंग बनाने में कहाँ देर थी? करीब सात लाख रुपये झटकने के बाद भी उसके तका•ो नहीं थमे। दुष्यंत ने हाथ झाड़े तो प्रिया ने उसका अपहरण कर उसके परिवार से 10 लाख की िफरोती माँग ली। इससे पहले कि परिवार रकम का बंदोबस्त करता, बेसब्र हुई प्रिया ने दुष्यंत का कत्ल कर लाश आमेर रोड पर फेंक दी। प्रिया ने इस पूरी वारदात को डेटिंग एप ट्विटर के ज़रिये अंजाम दिया। प्रिया का यह कोई पहला अपराध नहीं था। लेकिन हर बार बच जाने से बढ़ता हुआ हौसला था। राजस्थान के पाली शहर के सेठ परिवार ने बेटी प्रिया को पढऩे के लिए जयपुर भेजा था। लेकिन उसने मौज़-मस्ती के लिए अपराधों के परनाले में जुस्त लगा ली। अपने को सँवारने के लिए हर महीने डेढ़ लाख खर्च करने वाली प्रिया महँगे परफ्यूम सिगरेट और विदेशी शराब की दीवानी है। पुलिस गिरफ्त में भी वो बेधडक़ कहती है- ‘मैं लेडी डॉन बनना चाहती हूँ।’ अपने किये का उसे कोई पछतावा नहीं है। वो कहती है- ‘मेरे पास आते ही बदनीयत लोग हैं, ऐसे लोगों को ठगने में क्या बुराई है।’

जयपुर में देह-व्यापार की परम्परागत मंडियाँ बेशक खत्म हो गयीं। लेकिन उनकी जगह जो नया बाज़ार उग आया है। बेशक वो मंडी की तरह नहीं है। बल्कि मोबाइल, फोन, सोशल मीडिया और ट्विटर एप उसका ज़रिया बन गये हैं। दौलत उलीचने की इस जल्वागिरी का ताज़ा शिकार कोई एक पखवाड़े पहले जयपुर का सोलर प्लांट व्यवसायी हुआ। दुष्कर्म की डाल पर बिठाकर अनुराधा नामक लडक़ी उससे साढ़े 6 करोड़ निचोड़ चुकी, तब भी सिलसिला खत्म नहीं हुआ। वो 15 लाख और वसूलने पर अड़ी हुई थी। आिखर व्यवसायी पुलिस की शरण में पहुँचा। नतीजतन पुलिस ने जाल बिछाया और व्यवसायी से साढ़े आठ लाख की नकदी लेते गिरफ्तार कर लिया।

इस खूबसूरत गैंग में अनुराधा की माँ मौली भी शामिल है, तो केयर टेकर चिंकी भी। चिंकी चक्रव्यूह का अहम िकरदार है, जो खुद को मानवाधिकार आयोग का सदस्य बताकर ‘शिकार’ को फोन करती है और समझौते के लिए दबाव बनाती है। इस गिरोह का यह पहला पड़ाव ही नहीं है। दिल्ली में इस गिरोह पर ठगी के पाँच मामले पहले ही दर्ज है। अनुराधा की माँ मोली तो गोवा के एक हत्याकांड की अभियुक्त भी है। प्यार के पङ्क्षरदों में पिरोयी गयी तथाकथित प्रेम-कथाओं का असली चेहरा बेहद चौंकाने वाला है। एसओजी ने पिछले दिनों रसूखदार लोगों से युवतियों की दोस्ती कराने और बाद में दुष्कर्म के मामलों में फँसाकर करोड़ों वसूलने वाला ऐसा गिरोह पकड़ा है। जिसमें वकील और मीडियाकर्मी शामिल थे, जो पुलिस के फंदे में फंसे तब तक नव कुबेरों से 15 करोड़ की रकम ऐंठ चुके थे।

फरेब के इस फलक पर अफसाना बने माणक चौक थाने के एसीपी आशीष प्रभाकर की दास्तान तेा हैरान करती है। विषकन्या पूनम के जाल में फँसकर उसे कोसते हुए आत्महत्या करने वाले प्रभाकर का हर लफ्ज़ पछतावे की आग में झुलसने वाला था- ‘कितना बेवकूफ था मैं कि अपने रुतबे और हैसियत को भुला बैठा और अपनी •िाम्मेदारियों से किनारा कर बैठा, ताकि तुम्हारे चेहरे पर खिलते गुलाबों का नजारा कर सकूँ। लेकिन इस बात से बेखबर हो गया कि तुम तो खुदगर्जी के काँटो में लिपटा हुआ साँप हो। तुमने मुझे ब्लेकमेल करने की कोशिश की। महकमे की बड़ी शिख्सयत था मैं। इंडियन मुजाहिदीन मोडयूल सरीखे खतरनाक तंत्र को तोडऩे वाला पुलिस अफसर आशीष प्रभाकर पूँछ दबाकर खड़े रहने वालों कुत्तों के रहमोकरम पर आ गया! सारा मर्तबा धूल में मिल गया, लानत है मुझ पर जो तुझ जैसी हर्राफा औरतों के फेर में आकर अपनी मर्यादा भूल बैठा। अपने परिवार से दगा कर बैठा ….आत्महत्या से पहले पूनम को गोली मारने वाले प्रभाकर ने अपने सुसाइड नोट में साफ लिखा कि वह अफसरों को अपनी सुंदरता के जाल में फँसाती थी। अपने साथियों के साथ मिलकर वह मुझे भी ब्लेकमेल कर रही थी। पुलिस अफसर हेाने के नाते मैंने उसे सज़ा दे दी…. ऐसे मामलों में समाज शास्त्रियों की प्रतिक्रिया भी चौंकाने वाली है कि सैक्स की अनैतिक कामना का अंत हिंसा से ही होता है। एक बड़े पुलिस अधिकारी का कहना है कि पुलिस तंत्र इनका लाक्षणिक इलाज तो कर सकता है, लेकिन अपने उफनते खुमार पर ढक्कन तो रईसज़ादों को खुद ही लगाना होगा।

अपने पेशे में अव्वल वैशाली नगर में मेडिस्पा हैयर ट्रंासप्लांट चलाने वाले डॉ. सोनी भला कैसे जुल्फों के जाल में फँस गये? सूत्रों का कहना है कि हेयर ट्रांसप्लांट के दौरान चित्रा नामक युवती ने देह के दिलकश नज़ारे क्या दिखाये कि डॉ. सोनी मंत्रमुग्ध से उसके साथ पुष्कर चले गये। चित्रा ने अपने साथियों की मदद से बेडरूम के हाहाकारी क्लीपिंग बनाकर दुष्कर्म की धमकी देकर डॉ. सोनी के होश उड़ा दिये। 75 दिन जेल के सींखचों के पीछे बिता देने के बाद डॉ. सोनी की मुक्ति तभी हुई, जब कोर्ट में बयान बदलने की सौदेबाज़ी में चित्रा को डेढ़ करोड़ अदा किये। दिलचस्प बात है कि शहर की सुर्ख उपलब्धियों को स्याह करने वाली इन बदरंग कथाओं की नायिकाओं पर लाठी घुमाने का काम न तो नारीवादी संगठन कर रहे हैं और न ही नैतिकता की दुहाई देने वाले संगठन?

कोई औरत इस कदर दुस्साहसी बोल बोल सकती है कि यार कोई मंत्री फँसे? ऐसा कोई मंतर बता? •िान्दगी का असली मज़ा तभी आएगा।’ चंचल नाम की युवती के कब्•ो से पुलिस ने कई ऑडियो-वीडियो और क्लीपिंग्स बरामद किये है, जो भोग-विलास के ज़ुबानी और बैडरूम के कच्चे चिट्ठे हैं। चंचल के बेखौफ बोल बुरी तरह झुलसाते हैं- ‘रसूखदार लेागों को फँसाने के लिए मैं तांत्रिकों की मदद लेती थी। उनके द्वारा दिये गये अभिमंत्रित जल को मैं किसी-न-किसी बहाने उन्हें पिला देती….फिर वो मेरे रूपजाल में फँसते ही फँसते हैं।’  चंचल का कारोबार भी यही था कि रसूखदार मर्दों को फँसाओं और उनके साथ रूमानी बातों की रिकाॄडग कर ब्लेकमेल करो। अपने शिकारों को सेक्सुअल बातों से उकसाने और उन्हें बिस्तर तक ले जाने में उसे महारत हासिल थी।

नायब तहसीलदार संदीप उसकी देह को नापने के खेल में नहीं फँसा, इससे उलट उसने ही चंचल के कारोबार में सेंध लगा दी। नतीजतन संदीप ने ब्लेकमेल की रकम लेते हुए चंचल और उसकी मददगार प्राची को ंरगे हाथों पकड़वा दिया। गुनाह के गलियारों में आशिकी का जाल फेंकने की कोशिश में एनआरआई युवती रवनीत कौर पकड़ी गयी, तो उसने यह कहकर पुलिस को चौंका दिया कि पिछले एक साल में मैंने सात रईसज़ादों को फँसाया और उनसे चार करोड़ की रकम ऐंठ ली। अपराधों की गटरगंगा की तैराक युवतियों के लिए निस्संदेह यह कमाई का आसान जरिया है। लेकिन यह भी सच है कि ‘देह के दलदल में दिलेरी का यह खेल खतरनाक सरहदों को पार कर चुका है।

निजी डाटा सुरक्षा बिल संसद में पेश

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मंज़ूर करने के बाद अब निजी डाटा सुरक्षा बिल को लोकसभा में पेश किया गया है। इस बिल को 11 दिसंबर को संसद में जब पेश किया गया, तो विपक्षी दलों कांग्रेस और राकांपा समेत अन्य ने इसका विरोध किया।

लोकसभा में निजी डाटा सुरक्षा बिल पेश होने के बाद सरकार ने कहा कि विधेयक की व्यापक विवेचना के लिए इसे संयुक्त प्रवर समिति को भेजा जाएगा और इस बारे में एक प्रस्ताव लाया जाएगा। इस बिल को पिछले हफ्ते ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हरी झंडी दिखायी थी। उधर विपक्ष का आरोप है कि निजी डाटा सुरक्षा बिल से लोगों की निजता खतरे में पड़ जाएगी।

लोकसभा में बिल विधि और न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पेश किया। बिल पेश करते हुए मंत्री ने कहा कि इस बिल के प्रावधानों को लेकर आरोप निराधार और दुर्भावनापूर्ण हैं। विधेयक में निजता और डाटा सुरक्षा का खास ध्यान रखा गया है और बिना किसी के अनुमति के कोई डाटा जारी करने पर करोड़ों रुपये का ज़ुर्माना लगेगा।

प्रसाद ने कहा कि इस विधेयक की व्यापक विवेचना के लिए दोनों सदनों की संयुक्त प्रवर समिति विचार करेगी। इसमें दोनों सदनों के सदस्य होंगे और यह खासतौर पर इसी विषय पर विचार करेगी। उन्होंने इसे संसदीय स्थायी समिति को भेजने की मांग की। हालांकि इससे पहले वह गलती से विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की बात कहते सुने गये, जिसे उन्होंने बाद में सुधार लिया।

तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने कहा कि निजी डाटा संरक्षण एक संवेदनशील विषय है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का •िाक्र करते हुए कहा कि इसके बाद इस विषय पर अलग से विधेयक की जरूरत नहीं है और मौज़ूदा कानूनों के तहत यह काम हो सकता है। तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने भी विधेयक को सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति को भेजने की माँग की। बहरहाल, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आधार मामले में उच्चतम न्यायालय ने डाटा संरक्षण के लिए निर्देश दिया था और इसलिए यह विधेयक लाया गया है। इससे पहले इस बिल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल को मंज़ूरी दी गयी। बिल लोक सभा के बाद राज्यसभा में पेश किया जाएगा।

क्या है बिल में

बिल में डेटा कलेक्शन, स्टोरेज, व्यक्ति की स्वीकारोक्ति, कोड ऑफ कंडक्ट और उल्लंघन की स्थिति में सज़ा का प्रावधान होगा। इस बिल को सरकार ने तीन भागों में विभाजित कर दिया है। नये बिल में सरकार ने डेटा को तीन भागों में बाट दिया है, जिसमें एक रूपरेखा तैयार करने की उम्मीद है, जिसमें सार्वजनिक और निजी संस्थाओं द्वारा व्यक्तिगत और निजी डेटा का प्रसंस्करण शामिल होगा। सरकार की तरफ से इसे तीन भागों संवेदन शील, क्रिटिकल डेटा, और सामान्य डेटा में बाँटा गया है। कोई भी डेटा सिर्फ कानूनी कार्यवाही में लिया जा सकता है। बाकी डेटा के उपयोग के लिए सहमति ज़रूरी होगी। क्रिटकाल डेटा समय-समय पर बदलता रहेगा।

अगर यह बिल पास होता है, तो इसके तहत आम आदमी की किसी भी तरह की जानकारी उसकी बिना इजाज़त के लेना, उसे प्रयोग करना और शेयर करना कानूनी तौर पर जुर्म होगा। केंद्र सरकार का कहना है कि डेटा प्रोटेक्शन बिल के प्रावधानों को इसमें शामिल करने के लिए कई देशों के डेटा प्रोटेक्शन से संबंधित कानूनों को समझकर उनका अध्ययन किया गया है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मौज़ूदा दौर की ज़रूरतों को देखते हुए इस विधेयक सबसे ज़रूरी बताया।

भारतीय संविधान गोपनीयता के अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) को मूल अधिकारों का अंग मानता है। यही अधिकार इस विधेयक का आधार है। बिल को तैयार करने के लिए सरकार ने लोगों से सलाह भी माँगी थी। बिल में सबसे •यादा ज़ोर डेटा को शेयर करने में लोगों की सहमति को लेकर दिया गया है। सरकार का दावा है कि इसको लेकर सख्त नियम बनाए गये हैं।

इस बिल लेकर सुप्रीम कोर्ट का अगस्त 2017 में दिया गया एक आदेश भी यहाँ बताना ज़रूरी है । कोर्ट ने कहा था कि बिना किसी की मंज़ूरी या इजाज़त के किसी तरह का डेटा लेना या उसे शेयर करना कानूनन अपराध होगा। किसी भी तरह के व्यक्तिगत डेटा को केवल और केवल भारत में ही संरक्षित किया जा सकता है।

ऐसी कोई भी जानकारी जिससे एक आदमी की पहचान ज़ाहिर होती है, वह पर्सनल डेटा, यानी कि व्यक्तिगत जानकारी है। इसमें किसी का नाम, उसकी फोटो, घर-दफ्तर का पता खासतौर पर शामिल हैं। इसके बाद वह सारे दस्तावेज़, जहाँ इस जानकारी का •िाक्र है, वह सब कुछ भी पर्सनल डेटा है। इसमें सीधे तौर पर सरकारी पहचान पत्र, वोटर कार्ड, आधार, पैन कार्ड आते हैं अब इससे एक कदम और ऊपर बढ़ें तो कुछ जानकारियाँ ऐसी हैं, जो संवेदनशील यानी कि सेंसेटिव होती हैं। इनमें रुपयों का लेन-देन, बैंक ट्रांजेक्शन, जाति, धार्मिक विचार, सेक्सुअलिटी, शामिल हैं।

पर्सनल डेटा को उस समय किसी भी वक्त जमा किया जा सकता है, जब उपभोक्ता इनकी सहायता से कोई काम कर रहा है। जैसे गैस कनेक्शन लेना है, फोन कनेक्शन लेना है या किसी पॉलिसी और सरकारी योजना का लाभ लेना है, तो वहाँ व्यक्तिगत डेटा देने की ज़रूरत पड़ती है। ऐसे में जब आप सम्बन्धित संस्थान में अपना डेटा शेयर करेंगे, तो वह सिर्फ आपके उसी काम के लिए प्रयोग किया जा सकेगा, जिसके लिए आपने अपनी जानकारी दी है। यानी कि संस्थान आपके डेटा को कहीं और शेयर नहीं कर पायेगा। अगर ऐसा करता है तो वह अपराध होगा।

जब आप किसी कम्पनी या आर्गेनाइजेशन से अपना पर्सनल डेटा शेयर करते हैं तो उस डेटा का सिर्फ सम्बन्धित चीज़ों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ज़रूरत पडऩे पर ही इस डेटा को किसी और के साथ शेयर किया जा सकता है। तीसरी पार्टी सिर्फ उतने ही डेटा का इस्तेमाल कर पाएगी जितने की उसे ज़रूरत हो। बिल में प्रावधान है कि पर्सनल डेटा की एक सॄवग कॉपी सम्बन्धित राज्य में स्टोर की जाएगी। कुछ महत्त्वपूर्ण पर्सनल डेटा को देश में स्टोर किया जाएगा।

कुछ परिस्थितियों में पर्सनल डेटा का इस्तेमाल किया जा सकता है। अगर मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ रहा तो सरकार इसका इस्तेमाल कर सकती है। किसी अपराध को रोकने, उसकी जाँच करने या प्रॉसीक्यूशन के लिए, कानूनी कार्यवाही के लिए, व्यक्तिगत या घरेलू उद्देश्यों के लिए। इसके साथ ही रिसर्च और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

डेटा लेने वाले संगठनों के नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी  का गठन किया गया है। यह अथॉरिटी ही इसे नियंत्रित करेगी। अगर डेटा के साथ छेड़छाड़ होती है या गलत इस्तेमाल होता है, तो इस पर यह नज़र रखेगी। इस अथॉरिटी की •िाम्मेदारी होगी कि जो भी पर्सनल डेटा के साथ छेड़छाड़ करें, उनकी जाँच कर नियमों के अनुसार सजा दिलवाना। नियम को तोडऩे पर किसी कम्पनी या आर्गेनाइजेशन को डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी को ज़ुर्माना देना होगा। पीडि़त लोगों के नुकसान की भरपाई करनी होगी। पर्सनल डेटा के गलत इस्तेमाल से लोग जेल भी जा सकते हैं। विधेयक में पाँच साल तक की सज़ा का प्रावधान किया गया है।

विपक्ष का विरोध

विपक्ष का इस बिल के विरोध में कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता को किसी शख्स के मूलभूत अधिकार के तौर पर बरकरार रखा जाना चाहिए। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि हमारी निजता पहले से ही खतरे में है। उन्होंने लोकसभा में कहा- ‘निजता पहले से ही खतरे में है। आपके नेतृत्व में जासूसी उद्योग फल-फूल रहा है। जब हमारी निजता खतरे में थी, जब हमारे लोग सुप्रीम कोर्ट में निजता की लड़ाई लड़ रहे थे, उस समय भी मैंने सोचा था कि इस तरह के विधेयक की अच्छे तरीके से जाँच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को इस तरह के अभिमानपूर्ण तरीके से इस विधेयक को नहीं लाना चाहिए। मैं जानता हूँ आप संख्याबल के मामले में बहुमत में हैं, लेकिन आप इस तरह के विधेयक को इस अभिमानपूर्ण तरीके से हम पर थोप नहीं सकते। इस विधेयक की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से अच्छी तरह से जाँच किए जाने की ज़रूरत है।

बिल की खास बातें

बिल के मुताबिक, कोई भी निजी या सरकारी संस्था किसी व्यक्ति के डेटा का उसकी अनुमति के बिना इस्तेमाल नहीं कर सकती। लेकिन मेडिकल इमर्जेंसी और राज्य या केंद्र की लाभकारी योजनाओं के लिए ऐसा किया जा सकता है। हालाँकि विधेयक में राष्ट्रीय हित से जुड़े मसलों पर डेटा के इस्तेमाल की छूट होगी। इनमें राष्ट्रीय सुरक्षा, कानूनी कार्यवाही और पत्रकारिता के उद्देश्यों से इनका इस्तेमाल किया जा सकेगा। डेटा जुटाने वाली संस्थाओं की निगरानी के लिए डेटा प्रॉटेक्शन अथॉरिटी स्थापित करने का भी प्रावधान हैकिसी भी संस्था को सम्बन्धित व्यक्ति को डेटा के यूज के बारे में बताना होगा। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस श्रीकृष्णा के नेतृत्व वाली कमिटी ने डेटा प्रॉटेक्शन को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसके आधार पर इस बिल को तैयार किया गया है। यूरोपियन यूनियन के जनरल डेटा प्रॉटेक्शन रेग्युलेटर की तर्ज पर इस बिल का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। किसी भी व्यक्ति को उसके डेटा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण अधिकार होंगे।

थोड़े-थोड़े समय बाद, कुछ अलग हो स्वाद

सभी शानदार व्यंजनों की अगर बात करें, तो ये विविध सामग्री से तैयार होते हैं और नाम सुनते ही जीभ को ललचा देने वाले होते हैं। क्योंकि सभी का स्वाद  अगल-अलग होता है, इसलिए सभी भारतीय व्यंजन दुनिया में सबसे लोकप्रिय विकृपों में से एक हैं। यह स्वाद का एक पूरा पैकेज शामिल करता है; मसलन- तीखा, नमकीन, मीठा, खट्टा, मसालेदार, मीठी-तीखा। यूँ तो भारतीय व्यंजनों की लिस्ट बहुत लंबी है, पर सभी मसालों, दालों, चटनी और अनाज का अद्भुत मिश्रण से ही बनते हैं।

भारत के हर क्षेत्र में उस स्थान का अपना एक अनोखा व्यंजन है, जिसका अलग ही आकर्षण है। भारत में उपलब्ध व्यंजनों की असंख्य िकस्में हैं, सभी अपने आप में एक अनोखा स्वाद लिए हुए हैं। यदि देश को उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में विभाजित करें तो क्षेत्रीय व्यंजनों के व्यापक वर्गीकरण को सरल बनाया जा सकता है।

उत्तर भारतीय व्यंजन अरब और फारस (मुगलई व्यंजन) से काफी प्रभावित हैं। इसमें मक्खन, क्रीम और दही के साथ-साथ केसर और नट्स जैसे कई समृद्ध डेयरी सामग्रियाँ आती हैं। तंदूर और क्ले ओवन में ब्रेड, कबाब और अन्य पदार्थों को पकाना भी एक उत्तरी तकनीक है। पश्चिम में परोसे जाने वाले कई लोकप्रिय भारतीय व्यंजन, जैसे साग पनीर, कोरमा, बिरयानी, सीख खबाब और समोसा भी दरअसल उत्तरी व्यंजन ही हैं। चावल दक्षिण का मुख्य भोजन है, जहाँ इसे डोसा (खस्ता पैनकेक) और नूडल्स में बदल दिया जाता है। साथ ही स्टीम से पकाकर भी खाया जाता है। विशेष व्यंजन, जिसमें सूप स्ट्यूज और ड्राई करी शामिल हैं; में अक्सर मीठे नारियल और खट्टी इमली का इस्तेमाल होता है। आलू करी, पापड़ और इडली (दिलकश डोनट्स) से भरे हुए डोसे जैसे फ्राइड स्ट्रीट स्नैक्स पूरे दक्षिण में लोकप्रिय हैं।

पश्चिम भारत के मुख्य क्षेत्र तटीय गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र हैं और प्रत्येक का अपना विशिष्ट भोजन है। गोअन भोजन में पुर्तगाली व्यापारियों का प्रभाव है, जो सबसे पहले दुनिया की नयी सामग्री जैसे मिर्च, आलू और टमाटर भारत लाये थे। पूर्वी भारतीय व्यंजनों में बहुत सारे बीज, खसखस और सरसों का तेल शामिल हैं। हरी सब्जियाँ, जो इस क्षेत्र में बहुतायत से उगती हैं; भी इन व्यंजनों का एक सामान्य घटक हैं। भारत के अन्य क्षेत्रों में भोजन अपेक्षाकृत कम मसाले वाले और खाने में हलके होते हैं। पूर्वी राज्यों में लोग मिठाई के प्रति अपने प्यार के लिए पूरे भारत में जाने जाते हैं।

दिल्ली में नागरिकता संशोधन विधेयक जश्न और सियासत

लोकसभा और राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक -कैब –  2019 के पारित होने के बाद मंगलबार को राज्य सभा बिल पेश होने की खुशी में दिल्ली में एक ओर हिन्दू संगठनों द्वारा जश्न मनाया जा रहा था वहीं विधेयक के विरोध में जमकर नारे वाजी की गई। दिल्ली के तमाम इलाकों में तहलका संवाददाता ने लोगों से बात की तो मिली- जुली प्रतिक्रिया सामने आयी लोगों ने कहा कि ये सियायत का खेल है जो दिल्ली में विधान सभा चुनाव के पूर्व किया जा रहा है। ताकि वोट बैेक का ध्रुवीकरण किया जा सकें। इसी मामले में मंजनू का टीला में रह रहे शरणार्थियों ने कहा कि देश  आज उनकी जिन्दगी में सबसे बड़ा खुशी का दिन आया है।इन शरणार्थियों ने कहा कि पाकिस्तान में जीवन गुलामी से भी दिन व दिन बत्तर होता जा रहा था। यहां लगभग 135-36 परिवार 2013 से कैम्प में रहे है। कुछ लोग अब भी पाकिस्तान से भाग कर शरण भी ले रहें है।उनका कहना है कि वे पूरी तरह से यहां पर शांतिपूर्वक व सम्मान के साथ रह रहे है।भगनाव दास ने बताया कि सरकार की वे तारीफ करते है कि अब उनको भारतीय नागरिकेता मिलने की उम्मीद जागी है। उनका कहना है कि मानवीय हित को देखते हुये सभी को इस बिल का स्वागत करना चाहिये।कैम्प रह रहे सोहन का कहना है कि भारत में अभी तक वे रह रहे थे तो भय सता रहा था कि कभी भी उनको लेकर कहीं ऐसा माहौल भारत में ना बन जाये जिससे उनको यहां से भगा दिया जायेगा। पर अब ऐसा नहीं होगा । क्योंकि सरकार ने आखिरकार इंसानियत को बचाने का प्रयास किया है।मंजनू के टीला पर लोग जश्न मनाकर झूम रहे थे और  कह रहे थे कि अब भारत देश अपना है अब वे अपनी नागरिकता और पहचान की बात करेगें।सबसे गंभीर बात इनको यहां पर ये सता रही थी कि एक तो वे पाकिस्तान से भाग कर अपनी जान बचा कर भारत आये है कहीं ऐसा ना हो जाये कि उनको यहां से भगना पड़े तो इस हालत में वे क्या करेंगे अब वो चिन्ता दूर हों गयी। दिल्ली में भाजपा नेता राजकुमार सिंह ने मंजनू के टीले और पूर्वी दिल्ली में  लोगों के बीच जाकर मिठाईयां बांटी और कहा कि भाजपा सरकार ने जो कहा वो कर दिखाया जैसे अनुच्छेद 370 , राममंदिर और अब नागरिकता बिल लाकर ये साबित कर दिया कि जो कहा सो कर दिखाया। कांग्रेस के नेता रमेश पंडित ने कहा कि दिल्ली में विधान सभा चुनाव को लेकर धुव्रीकरण की राजनीति की जा रही है और एक विशेष वर्ग के वोट हथियाने का काम किया जा रहा है । पर भाजपा को इससे कुछ मिलने वाला नहीं है। मौजूदा हालात में देश में आर्थिक मंदी और बेरोजगारी से लोग परेशान है और सरकार नागरिकता बिल लाकर अपनी पीठ थपथपा रही है। सामाजिक कार्यकर्ता तपस राय ने कहा कि सरकार का ये फैसला स्वागत योग्य है । क्योंकि इस बिल में किसी के साथ कोई साजिश वाली बात नहीं है। नागरिकता विधेयक बिल हमें भारत वासियों के लियें पारदर्शिता और विकास को बल देगा जो अभी तक नहीं था।सी ए सुनील गुप्ता ने कहा कि जब तक किसी देश में खुशहाली नहीं आ सकती जब तक देश में भाई -चारा का माहौल ना हो ये बिल हमें आगे चल कर एकता के सूत्र में पिरोएगा क्योंकि अभी तक नागरिकता के विधेयक को लेकर तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे थे कि कहीं ये बिल घातक और देश में विभाजन वाली रेखा ना खींच दें पर ऐसा नहीं है इस बिल को वे देश हित में मानते है।

राजीव दुबे

छींटाकशी में उलझे दिल्ली के सियासतदाँ

चुनाव विधानसभा से पहले ही दिल्ली के सियासतदाँ जनता को लुभाने के लिए एक-दूसरे की कमियाँ और अपनी-अपनी उपलब्धियाँ गिनाने में मशगूल हो गये हैं। नागरिकता संशोधन बिल पास होने के बाद अब दिल्ली की सियासत और गरमा गयी है।

इतना ही नहीं, आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव को लेकर अपने-अपने पोस्टर-बैनर भी लगाने शुरू कर दिये हैं। इससे दिल्ली में चुनाव की आहट होने के साथ-साथ मोहल्लों-गलियों का नज़ारा बदला-बदला सा नज़र आ रहा है। हालाँकि इस बार चुनाव के ऐन पहले कोई भी एक ऐसा मुद्दा नहीं दिख रहा है, जिसको लेकर सियासत की जा सके। वहीं भले ही दिल्ली में भाजपा के पास दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के िखलाफ कोई चुनावी मुद्दा न मिल रहा हो, पर चुनाव की आहट और जनता के मिजाज़ को भाँपते हुए अब भाजपा पूरे चुनावी रंग में दिख रही है। वह नागरिकता संशोधन बिल को चुनाव में चुनावी मुद्दा बना सकती है। क्योंकि इससे पहले भाजपा के पानी को लेकर किये गयये खुलासे की पोल खुल चुकी है। भाजपा नेताओं का कहना है कि केजरीवाल ने जनता को गुमराह कर मार्च तक फ्री में बिजली-पानी और बसों में महिलाओं को यात्रा करवा रहे हैं। लेकिन जनता सब जानती है कि अब केजरीवाल की छवि वह नहीं रही जो चुनाव 2015 विधानसभा में थी। भाजपा ने केजरीवाल की अस्थायी फ्री की राजनीति का काट स्थायी अनधिकृत कॉलोनियों को पक्का करने की रजिस्ट्री करके शुरू कर दी है। अनुच्छेद-370 को लाकर भी भाजपा ने जनता में अपनी धाक जमायी है। भाजपा नेताओं ने  अनुच्छेद-370 पर कहा कि भाजपा सरकार की करनी और कथनी में अन्तर नहीं है।

बता दें कि दिल्ली में लोकसभा की सातों सीटों पर भाजपा का कब्ज़ा है। लेकिन विधानसभा चुनाव 2015 में भाजपा को कुल तीन सीटों पर ही जीत मिली थी। ऐसे में वह हर हाल में खोये हुये जनाधार को पाने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। सबसे दिलचस्प और चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा को डर अब भी बना हुआ है। भाजपा को यह बात परेशान कर रही है कि पिछले  विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तीन चुनावी सभाएँ की थीं। उस समय देश-भर में मोदी लहर चल रही थी; लेकिन  उसके बाद भी दिल्ली में भाजपा को केवल तीन ही सीटें ही मिली थीं। ऐसे में अब पार्टी उन पहलुओं पर गम्भीरता से सोच भी रही है और आने वाले चुनाव में जीतने के लिए रणनीति भी बना रही है; ताकि इस बार कोई चूक न हो और जनता के बीच पुरानी गलतियों को दोहराव न हो जाए। जैसे टिकटों के वितरण में ज़मीनी कार्यकताओं की उपेक्षा का होना है।

वहीं, पिछली बार दिल्ली से पूरी तरह साफ हो चुकी कांग्रेस भी इस बार के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए इस बार मज़बूती से रणनीति बना रही है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने कहा है कि भाजपा और आप पार्टी की राजनीति से दिल्ली वाले तंग आ चुके हैं। दिल्ली की जनता अब कांग्रेस के शासनकाल में हुए विकास कार्यों और भाईचारा की राजनीति को याद कर रहे हैं। दिल्ली में विकास-कार्य ठप पड़े हैं और भाजपा की तोडफ़ोड़ वाली राजनीति को नकार रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के नेता रमेश पंडित ने विश्वास नगर विधानसभा में कहा है कि आप पार्टी और भाजपा ने जनता को लुभाने के लिए तात्कालिक छोटी-छोटी फ्री की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अब जनता के सामनेे स्थायी व जनता को लाभ देनी वाली योजनाओं की घोषणा करेगी, ताकि दिल्ली के सभी वर्गों को बिना भेद-भाव के लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि आज देश में प्याज की बढ़ती कीमतों को लेकर जनता हाहाकार कर रही है और केन्द्र की भाजपा सरकार और दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार एक-दूसरे पर आरोपबाज़ी कर अपनी •िाम्मेदारी से बच रही हैं। ऐसे में गरीब जनता पिट रही है। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी अपनी पीठ थपथपा रही है कि वो काम कर रही है, जबकि दिल्ली में पीने का पानी तक गंदा  और बदबूदार आ रहा है। वहीं ऑड-ईवन के नाम पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करके अपना प्रचार-प्रसार करने में लगी है। जबकि वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली वाले बीमार पड़ रहे उस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

इधर, आम आदमी पार्टी के दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय का कहना है कि दिल्ली वालों से आम आदमी पार्टी ने चुनाव में जो वादे किये थे, उनको पूरा किया है। अब दिल्ली में गली-गली कैमरे लगने से लोगों को काफी राहत मिली है। उनका कहना है कि बिजली और पानी के नाम पर जनता से पैसे लूटे जा रहे थे, वह लूट अब पूरी से बन्द है। किरायेदारों तक को भी बिजली और पानी की वो सुविधा रही है, जो मकान मालिक को मिला करती थी। आम आदमी पार्टी में कोई घोटाला और भ्रष्टाचार जैसे मामले सामने नहीं आये हैं, जिससे भाजपा और कांग्रेस को दिक्कत हो रही है, उनको कोई चुनावी मुद्दा नहीं मिल रहा है। ऐसे में सीधा लाभ आप पार्टी को मिलेगा और वह फिर से दिल्ली में सरकार बनाएगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में गन्दे पानी को लेकर जो सियासत केन्द्र सरकार ने की थी, उसमें उसकी गन्दी राजनीति का पर्दाफास हुआ है; क्योंकि दिल्ली में पीने का पानी पूरी तरह से साफ है और लोग पी रहे हैं। रहा सवाल वायु प्रदूषण का वो पराली के जलने से हो रहा है; उसका भी समाधान करने के प्रयास किये जा रहे हैं, ताकि राजधानी वाले साफ हवा में साँस ले सकें। इसके साथ ही उन्होंने नागरिकता संशोधन बिल पर भी केंद्र सरकार को घेरा है। उन्होंने कहा है कि जो लोग काम के सिलसिले में बाहर बस गये हैं, उनमें बहुतों के गाँव में उनका कुछ भी नहीं है, ऐसे में क्या वे विदेशी कहलाएँगे?

2020 तक भारत के कई शहर हो जाएँगे भूजल-विहीन!

ऐसे समय जब जनसंख्या वृद्धि के कारण देश में प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता कम हो रही है और 2001 में 1816 क्यूबिक मीटर के मुकाबले 2021 तक घटकर 1486 रह जाएगी। आशंका है कि 2020 तक भारत के 21 बड़े शहर भूजल-विहीन हो जाएँगे।

साल 1951 में, प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 5,177 क्यूबिक मीटर थी। और 2011 की जनगणना के आंकड़ों में यह घटकर 1,545 घन मीटर रह गयी है। अर्थात   60 सालों में करीब 70 फीसदी की गिरावट।

देखा जाए तो 1,700 क्यूबिक मीटर से कम प्रति व्यक्ति वार्षिक पानी उपलब्धता को पानी की गम्भीर स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है। सरकार का अपना आकलन भी यह मानता है कि भारत पानी की कमी जैसी स्थिति की तरफ बढ़ रहा है। कमी का अर्थ है पानी की उपलब्धता 1,000 क्यूबिक मीटर से नीचे होना। साल 2001 में प्रति व्यक्ति औसत जल उपलब्धता 1,820 क्यूबिक मीटर थी और सरकार का अनुमान है कि यह 2025 तक 1,341 क्यूबिक मीटर और 2050 तक 1,140 क्यूबिक मीटर के आंकड़े तक पहुँच सकती है।

9 दिसंबर, 2019 को केंद्रीय जल और सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री, रतन लाल कटारिया ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में, नीति आयोग के हवाले से, समग्र जल प्रबंधन सूचकांक शीर्षक वाली रिपोर्ट में उल्लेख किया कि 21 प्रमुख शहर 2020 तक भूजल-विहीन हो सकते हैं। यह वार्षिक रिपोर्ट भूजल की पुन: आपूर्ति और इसके निष्कर्षण के अनुमानों पर आधारित है। हालाँकि, इसमें गहरे जलभृत में भूजल उपलब्धता को समायोजित नहीं किया गया है।

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत की वार्षिक पानी आवश्यकता 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जबकि देश में औसतन हर साल 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर बारिश पानी उपलब्ध होता है। समस्या यह है कि 1.3 बिलियन लोगों का देश बारिश जल के तीन-चौथाई पानी का उपयोग करने में विफल रहता है। एकीकृत जल संसाधन विकास पर राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईडब्यूआरडी) की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक वर्ष में उपयोग योग्य पानी की उपलब्धता 1,123 बिलियन क्यूबिक मीटर है, जिसमें 690 बिलियन क्यूबिक मीटर सतही जल और 433 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिपूर्ति शुद्ध भूजल शामिल है। बाकी बर्बाद हो जाता है। अंकगणितीय रूप से, भारत अभी भी जल के मामले में सरप्लस है और साल भर में एक अरब से अधिक लोगों की आवश्यकता को पूरा करने लायक वर्षा यहाँ होती है।

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, भारत को एक वर्ष में अधिकतम 3,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होती है, जबकि उसे 4,000 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी बारिश से ही हासिल हो जाता है। लेकिन समस्या यह है कि भारत अपनी वार्षिक वर्षा का केवल आठ फीसदी ही इस्तेमाल कर पाता है, जो दुनिया में सबसे कम है। भूजल देश के लिए पीने लायक सबसे बेहतर उपलब्ध जल है। लेकिन भूजल सिंचाई में अधिक उपयोग होता है और इसका 80 फीसदी जलभृत से निकाला जाता है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार सिंचाई में वर्षा, नदियों, तालाबों और अन्य जलाशयों से  उपलब्ध पानी भी इस्तेमाल होता है लेकिन भूजल, देश में 60 फीसदी सिंचाई की पूर्ति करता है।

अधिकांश किसान और उद्योग, जो लगभग 12 फीसदी भूजल का उपयोग करते हैं; भूजल निष्कर्षण को उनकी पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने का सबसे आसान विकृप पाते हैं। अनुमान के मुताबिक, भारत में घरों तक पहुँचने वाले पानी का लगभग 80 फीसदी सीवरेज के ज़रिये अपशिष्ट प्रवाह के रूप में बाहर निकल जाता है। ज़्यादातर मामलों में, इस पानी को पुन: या कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।

नीति आयोग की रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि जल संसाधनों के कुशल और स्थायी प्रबंधन के लिए सतही जल खासकर भूजल जैसे पारम्पारिक संसाधनों के साझे उपयोग और जल उपयोग में दक्षता बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को बड़े पैमाने पर साथ जोडऩे की ज़रूरत है।

यहाँ यह •िाक्र भी ज़रूरी है कि भारत सरकार ने भविष्य की पानी की माँग की चुनौतियों से निपटने के लिए एक समयबद्ध जल शक्ति अभियान प्रारम्भ किया है, जिसका मकसद भारत में 256 •िालों के पानी के ब्लॉक में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार करना है। इस संबंध में, जल शक्ति मंत्रालय से तकनीकी अधिकारियों के साथ केंद्र सरकार के अधिकारियों की टीमों को पानी की कमी वाले •िालों का दौरा करने और उपयुक्त हस्तक्षेप करने के लिए •िाला स्तर के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए नियुक्त किया गया था।

चूँकि जल एक राज्य विषय है, भूजल के संरक्षण और प्रबंधन के प्रयास मुख्य रूप से राज्यों की •िाम्मेदारी है। कई राज्यों ने इस सम्बन्ध में बेहतर काम किया है। इनमें से राजस्थान में मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान, महाराष्ट्र में जलयुक्त सीबर, गुजरात में सुजलाम सुफलाम अभियान, तेलंगाना में मिशन काकातीय और आंध्र प्रदेश में नीरू चेट्टू जैसे अभियानों का उल्लेख किया जा सकता है। केंद्र सरकार मुख्य रूप से महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनेरगा) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- वाटरशेड डेवलपमेंट कम्पोनेंट के माध्यम से जल संचयन और संरक्षण कार्यों में मदद करती है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार मनरेगा के तहत 2014-15 से 2019-20 की अवधि के दौरान 19,64,995 जल संरक्षण और जल संचयन कार्य विभिन्न राज्यों में किये गये, जिनमें करीब 31907.32 करोड़ रुपये का व्यय हुआ।

इसके अलावा ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग के अनुसार पीएमकेएसवाई-डीडीसी घटक के तहत विभिन्न राज्यों में 2014-15 से 2019-20 (सितंबर 2019 तक) की अवधि के दौरान 6,08,384 जल संचयन संरचनाएँ बनायी गयी हैं। 31 अक्टूबर, 2019 तक राज्यों को वाटरशेड विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए केंद्रीय शेयर के रूप में 17751.75 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं। चूँकि जल एक राज्य का विषय है, उपयुक्त माँग पक्ष और जल संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन सहित आपूर्ति पक्ष के हस्तक्षेप की कोशिश मुख्य रूप से राज्यों की •िाम्मेदारी है।

शहरों में वर्ष 2001 और 2011 में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता का आंकलन क्रमश: 1816 क्यूबिक मीटर और 1545 क्यूबिक मीटर के रूप में किया गया था, जो वर्ष 2021 में घटकर 1486 क्यूबिक मीटर हो सकता है। जल शक्ति मंत्रालय ने जल शक्ति अभियान ( जेएसए) को जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिए शुरू किया है। अभियान के तहत भारत सरकार के अधिकारियों, भूजल विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने जल संरक्षण और जल संसाधन प्रबंधन के लिए भारत के सबसे ज़्यादा पानी कमी वाले •िालों में राज्य और •िाला अधिकारियों के साथ मिलकर काम किया।

केंद्र सरकार ने जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की है, जो जल की उपलब्धता को बेहतर बनाने के लिए जल अधिशेष बेसिन से जल की कमी के आधार पर जल के हस्तांतरण की परिकल्पना पर आधारित है। सरकार ने शहरों में बुनियादी नागरिक सुविधाओं के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के साथ कायाकल्प और शहरी परिवर्तन (अमरुत) 2019-20 के लिए अटल मिशन शुरू किया है। मिशन के जल आपूर्ति घटक के तहत, वर्षा जल संचयन, विशेष रूप से पेयजल आपूर्ति के लिए जल निकायों का कायाकल्प, भूजल के पुनर्भरण आदि से सम्बन्धित परियोजनाओं को जलापूर्ति बढ़ाने के लिए लिया जा सकता है।

सरकार ने जल जीवन मिशन भी शुरू किया है, जिसका उद्देश्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 55 लीटर प्रति व्यक्ति के सेवा स्तर पर घरेलू नल कनेक्शन प्रदान करना है। यह मिशन स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत माँग और आपूर्ति प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और कृषि में पुन: उपयोग के लिए घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है।

पवार के सबसे बेहतर सम्बन्ध

शरद पवार को एक राजनीतिज्ञ के तौर पर आप किस तरह देखते हैं?

एक राजनीतिज्ञ के तौर पर शरद पवार 24 घंटे डेवलपमेंट के बारे में सोचते रहते हैं। एग्रीकल्चर सेक्टर के प्रति वह समर्पित हैं। जब वह देश के कृषि मंत्री थे, उस वक्त उन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाये थे। जिसकी वजह से देश की तस्वीर एक कृषि प्रधान देश के तौर पर मुकम्मल हुई। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि किसानों को उनकी लागत से अधिक मूल्य मिलना चाहिए। उनका मानना है कि किसानों को पारम्परिक कृषि के अलावा अन्य पर्याय, जैसे- हार्टिकल्चर, फ्लोरिकल्चर, हसबेंडरी, डेयरी आदि विकल्पों पर काम करना चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हो।

जैविक तंत्र ज्ञान, जेनेटिकली मॉडिफाइड बीज, कृषि का आधुनिकीकरण उनकी सोच का नतीजा है। आपको याद होगा जब वह डिफेंस मिनिस्टर थे, उस वक्त पहली दफा डिफेंस में महिलाओं को प्रवेश मिला था। हालाँकि महिलाओं के डिफेंस में एंट्री को लेकर काफी विरोध हुआ था। लेकिन वह महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर बिलकुल दृढ़ निश्चय है।

पारिवारिक-व्यक्ति के तौर पर किस तरह के इंसान शरद?

राजनीति उन्हें विरासत में मिली है। राजनीति को एक मिशन के तौर पर एक समाज सेवा के तौर पर समाज की भलाई देश की भलाई के तौर पर ही देखते हैं।

रही परिवार की बात, तो उनकी अपनी एक बेटी है। अपनी पुत्री को ही पुत्र मानते हैं। उनकी सोच समाज के रूढि़वादी और दकियानूसी विचारधाराओं के िखलाफ खुली और प्रगतिशील है।

अपने भाइयों के परिवार को भी पवार अपना ही परिवार मानते हैं। पिछले दो-तीन दशक से, जो मैं देख रहा हूँ, उनके लिए उनके परिवार का मतलब सिर्फ मैं और मेरी बेटी नहीं है। उनके लिए उनके भाई का परिवार भी उनका ही परिवार है। उनके बच्चे, नाती, पोते भी उनके अपने ही हैं। पवार पवार के लिए उनके परिवार के साथ-साथ समाज, उनके कार्यकर्ता, पार्टी सब उनके परिवार का ही हिस्सा है। वसुधैव कुटुंबकम की पर उनका पूर्ण विश्वास है।

शरद पवार की भूमिका को लेकर हमेशा से लोगों में अविश्वास की भावना बनी रहती है ऐसा क्यों?

उन पर विश्वास न करने की बात उनके राजनीतिक विरोधियों  द्वारा फैलायी गयी सोची-समझी सा•िाश का हिस्सा है। अगर बात अविश्वास की होती, तो महाराष्ट्र में नयी सरकार बनती। उनके सभी राजनीतिक दलों से अच्छे सम्बन्ध है। वह प्रधानमंत्री मोदी से जिस शाइस्तगी से बात करते हैं, उसी शाइस्तगी से सोनिया जी और ममता बनर्जी से भी। मतभेद, वैचारिक मतभेद कभी भी उनके निजी सम्बन्धों पर हावी नहीं रहे।

सभी दलों से, सभी दलों के नेताओं से उनके जो अच्छे सम्बन्ध हैं। उनसे उनका जो मिलना जुलना होता रहता है। उसी को लेकर इस तरह से एक परसेप्शन तैयार किया जा रहा है कि उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। एक उदाहरण देखिए, जब वह दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलने गये थे, तब यहाँ तो यह बात फैलने लगी थी कि वह भाजपा के  साथ महाराष्ट्र में सरकार बनानेे डील कर रहे हैं; जबकि ऐसा कुछ नहीं था।

जब चुनाव के नतीजे आये तस्वीर कुछ इस तरह थी कि विपक्ष की भूमिका में होंगे एनसीपी व कांग्रेस। लेकिन पुराने समीकरण बनते बिगड़ते चले गये। यह कैसे हुआ

महाराष्ट्र में एक अजीब-सा गड़बड़झाला वाला माहौल था। लेकिन शरद पवार माहौल को एक सधे और सुलझे हुए परिवार के वरिष्ठ सदस्य की भाँति सुलझाने में लगे हुए थे। उन्होंने महसूस किया कि शिवसेना, भाजपा से अलग रहना चाहती है। उन्होंने शिवसेना की इस भावना का सम्मान किया। उन्होंने इस अद्भुत समीकरण को लेकर सोनिया जी से बातचीत की, उन्हें कन्वेंस किया। पहले वह शिवसेना के मुद्दे पर साथ आने के लिए हिचकिचा रही थीं। या कहिए शुरुआती तौर पर उन्होंने स्पष्ट तौर पर शिवसेना के साथ आने से इन्कार कर दिया था; लेकिन बाद में वह राजी हो गयीं। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के साथ शरद पवार के निजी सम्बन्ध रहे हैं। उद्धव ठाकरे को भी उन्होंने कांग्रेस की विचारधारा किस तरह तालमेल रखा जाए, उसे लेकर उन्होंने उनको कनवेंस किया। उन्हें मुख्यमंत्री के पद के लिए तैयार किया। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम की रूपरेखा तय करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इसमें दो राय नहीं कि महाराष्ट्र में जो आज सरकार है उसे मूर्त रूप देने में शरद पवार की भूमिका उस तरह की रही जो परिवार को साथ लाने में एक वरिष्ठ समझदार बुजुर्ग की होती है। आपस में विश्वास, सहमति, सद्भावना और सहनशीलता बनाये रखने की। अब इसमें अविश्वास कहाँ आता है?

ऐसा कहा जाता है कि अजित पवार के भाजपा के साथ मिलकर सत्ता बनाने के पीछे शरद पवार का हाथ था?

देखिए, अजित पवार के मामले में शरद पवार पर जो आरोप लग रहे हैं, वे एकदम बेबुनियाद हैं। दरअसल, पार्टी के भीतर एक गुट का सवाल था कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी सरकार कैसे बन सकती है? उसकी लाइफ कितनी होगी? उधर दूसरा गुट था, जो इस लाइन पर सकारात्मक सोच लिए काम कर रहा था कि भाजपा के साथ सरकार बनायी जा सकती है।

अब अजित पवार कब फडणवीस से मिले.., उनके पास कितने विधायकों का सपोर्ट था? आपस में उनके बीच क्या डील हुई? इस बात की जानकारी पवार साहब को नहीं थी।

आप इस बात पर गौर करिए कि शरद पवार ने उसी शाम को ऐलान कर दिया था कि महा विकास आघाड़ी के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे। इस ऐलान से आप काफी कुछ समझ सकते हैं। यह बातें सिर्फ उन्हें बदनाम करने के लिए की जा रही हैं।

शरद पवार पर उनके विरोधी आरोप लगाते हैं कि वह राजनीति के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी अपना वर्चस्व चाहते हैं। यह आरोप कितना सही है?

दरअसल, बात वर्चस्व बनाये रखने की नहीं है, बल्कि जानकारी हासिल करने की है; दिलचस्पी लेने की है। श्रद्धा व समझने की है। और मुझे लगता है कि हर राजनीतिक को राजनीति के अलावा अन्य विषयों पर भी शोध करते रहना चाहिए।

आप कह सकते हैं कि वह एक अकेले ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जिन्हें राजनीति के अलावा साहित्य, नाटक, कला, खेल, सामाजिक-गैरसामाजिक आंदोलन, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, नीति शास्त्र  की गहरी समझ है। उनके मित्रों में लेखक, विचारक, प्रोफेसर, डॉक्टर, वकील,  इंजीनियर समाज के हर वर्ग के लोग जुड़े हुए हैं। युवा वर्ग से जुड़ा रहता है। उन्हें नवीन तकनीकों की जानकारी होती है। वह 80 साल के युवा बुजुर्ग हैं।

सवाल आरक्षण का है या रोज़गार का?

लोकसभा में 10 दिसंबर को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 10 साल बढ़ाते हुए संशोधन विधेयक-2019 पारित किया है। इस बिल को लेकर तहलका की स्वतंत्र संवाददाता मंजू मिश्रा ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनेक लोगों से बातचीत की। प्रस्तुत है इसी बातचीत पर आधारित एक रिपोर्ट

केन्द्र सरकार ने लोकसभा ने इसी शीत सत्र में 10 दिसंबर को संविधान के 126वें संशोधन विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी। इस विधेयक के मुताबिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को दिये गये आरक्षण की अवधि 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। विदित हो कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन समुदाय को पिछले 70 साल से मिल रहा आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा है। अब मौज़ूदा सरकार ने इस विधेयक में एससी और एसटी के संदर्भ में इसे 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया है। इस हिसाब से अब यह आरक्षण 25 जनवरी, 2030 को समाप्त होगा। यह विधेयक राज्य सभा और लोकसभा में पारित हो जाने के बाद सरकार को भले ही लगता हो कि उसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों का दिल जीत लिया है, परन्तु इसमें कई सवाल हैं, जो इस आरक्षण विधेयक के पारित होने से खड़े हो रहे हैं। पहला सवाल यह है कि जब सरकारी नौकरियाँ ही नहीं बचेंगी, तब किसी वर्ग को आरक्षण का क्या फायदा मिलेगा? दूसरा सवाल यह है कि अगर देश में दिल्ली सरकार की तरह शिक्षा का स्तर अच्छा करने के साथ-साथ सभी वर्गों को समान शिक्षा की व्यवस्था कर दी जाए, तो इस आरक्षण की क्या आवश्यकता पड़ेगी? तीसरा सवाल यह कि क्या 13 प्वाइंट रोस्टर जैसी भर्ती प्रक्रिया लागू करने से आरक्षित वर्ग आरक्षण का लाभ ले सकेंगे? इन सबका जवाब शायद ही किसी के पास हो।

10 दिसंबर को भले ही आरक्षण संशोधन विधेयक-2019 355 मतों के सरकार के पक्ष में पडऩे से पारित हो गया, परन्तु इस विधेयक का वास्तव में फायदा कितना होगा यह तो समय ही बता पायेगा। इस विधेयक को पारित करने के बाद विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का पूरा ही समाज काफ़ी पिछड़ा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे में इसे न तो दो भागों में बाँटने की आवश्यकता है और न ही अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समाज में क्रीमीलेयर की ही ज़रूरत है। प्रसाद ने एंग्लो इंडियन समुदाय को विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में कांग्रेस सहित कुछ सदस्यों की चिंताओं पर जवाब में कहा कि कांग्रेस के समय से ही सीमा शुल्क, टेलीग्राफ और रेलवे जैसे विभागों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अनेक पदों को समाप्त कर दिया गया था।  इन समुदायों के शैक्षणिक अनुदान को समाप्त कर दिया गया था। मंत्री ने कहा कि मैंने पहले ही बताया है कि एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों की संख्या 296 है और इस बारे में रजिस्ट्रार जनरल तथा जनगणना पर संदेह करना उचित नहीं है। विधि मंत्री ने यह भी कहा कि जब यही संस्था अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 20 करोड़ तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों की संख्या 10.45 करोड़ बताती है, तब यह ठीक लगता है। लेकिन यहाँ तो एंग्लो इंडियन लोगों की संख्या पर शंका की जा रही है।

प्रसाद ने कहा कि 126वें संविधान संशोधन विधेयक-2019 के ज़रिये से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों के सदन में आरक्षण को 10 साल बढ़ाया जा रहा है। यह आरक्षण जनवरी, 2020 में समाप्त होने जा रहा है।

उन्होंने आरक्षण को कभी न हटाने की बात कहते हुए कहा कि भाजपा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के आरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। उन्होंने कांग्रेस पर संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ने बाबा साहब को वर्षों तक भारत रत्न से वंचित रखा। वीपी सिंह सरकार ने 1990 में उन्हें भारत रत्न प्रदान किया, जिसका भाजपा ने समर्थन किया था।

जब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का यह विधेयक पास हुआ, तो तहलका संवाददाता ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनेक लोगों से बातचीत की। इन वर्गों के लोगों ने कुछ इस प्रकार प्रतिक्रियाएँ दीं।

नौकरी नहीं तो आरक्षण कैसा?

उत्तर प्रदेश के प्रकाश गौतम ने कहा कि सरकार सभी सरकारी संस्थानों को अगर बेच देगी तो आरक्षण का क्या फायदा? प्रकाश ने बताया कि वे एक सरकारी स्कूल में चपरासी हैं। उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने दो बच्चों को पढ़ाया-लिखाया है; लेकिन अब लगता नहीं कि उनके बच्चों को सरकारी नौकरी मिल सकेगी, क्योंकि सरकारी संस्थान तो धड़ल्ले से बेंचे जा रहे हैं और बाक़ी को भी बेचने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पास इतना पैसा भी नहीं कि अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बना सकें। वहीं बरेली के मुन्ना लाल ने कहा कि उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने एक बेटे और दो बेटियों को पढ़ाया-लिखाया है। वे जैसे-तैसे बेटे को दो साल पहले एमबीए करवा पाये थे। बेटे ने कई बार सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किये पर कहीं भी नौकरी नहीं मिली। अब उसे प्राइवेट नौकरी के लिए मजबूर होना पड़ा है। अगर उनका बेटा प्राइवेट नौकरी नहीं करेगा, तो मेरे सिर पर बच्चों की पढ़ाई के दौरान चढ़ा कर्ज़ नहीं निपट पायेगा।

आरक्षण का गरीबों को नहीं मिलता फायदा

अहमदाबाद से सटे नारोल के रहने वाले सुधीर कुमार से आरक्षण के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि वे अनुसूचित जाति से आते हैं। लेकिन उनके घर में आज तक किसी को कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली है। सुधीर ने कहा कि उन्हें यह तक नहीं मालूम रहा कि अनुसूचित जाति के लिए कितने प्रतिशत आरक्षण है? उन्होंने कहा कि वे बिहार के बेतिया के रहने वाले हैं और उनके पिता गुजरात में ही काम करते हैं। मेरा बचपन यहीं गुज़रा है और पढ़ाई भी यहीं की है, मगर 12वीं तक पढऩे के बाद भी कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली। आिखरकार मैंने फैक्ट्री में नौकरी कर ली। वहीं अहमदाबाद के पीपलेज गाँव में रहने वाले अनूप उर्फ़ टिंकू ने बताया कि वे उत्तर प्रदेश के बांदा से हैं और पिछले आठ साल पहले अहमदाबाद आए थे। अनूप ने बताया कि वे ग्रेजुएट हैं और आज कपड़े की कम्पनी में नौकरी करने को मजबूर हैं। आठ-दस बार सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई कर चुके अनूप ने बताया कि एक बार पुलिस भर्ती में सब कुछ ठीक होते हुए भी उनसे मोटी रकम रिश्वत के तौर पर माँगी गयी, जो दे पाना उनके लिए सम्भव नहीं थी। उन्होंने कहा कि ऐसे आरक्षण का क्या फायदा, जब उसका गरीबों को फायदा ही नहीं मिलता।

कितनी सरकारी कम्पनियों पर सरकार का दाँत

2014 में सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने सरकारी कम्पनियों का निजीकरण करने की तरकीब निकालकर निजीकरण को बढ़ावा तो दे दिया, परन्तु इससे देश के अधिकतर लोग ख़ुश नहीं हैं। आपको पता ही होगा कि प्राइवेट ट्रेन तो चल ही गयी, साथ ही कई रेलवे स्टेशन भी प्राइवेट कम्पनियों को ठेके पर दिये जा चुके हैं। इसी प्रकार हाल ही में मोदी सरकार की कैबिनेट ने पाँच कंपनियों के विनिवेश को स्वीकृति दे दी है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और कुछ सूचनाओं की मानें तो केंद्र सरकार ने बिक्री के लिए 46 सरकारी कम्पनियों की लिस्ट तैयार कर ली है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार के मंत्रीमंडल ने इन 46 कम्पनियों में 24 के विनिवेश की स्वीकृति दे भी दी है। अब देखना यह है कि अगर इसी तरह सभी सरकारी कम्पनियों का निजीकरण कर दिया जाएगा, तो फिर आरक्षण का क्या फ़ायदा रहेगा?

कॉलेज और यूनिवर्सिटी भर्ती में रहा झोल

अगर आरक्षण की बात मान भी लें, तो यह तय कैसे माना जाए कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण के ज़रिये सरकारी नौकरी मिल ही जाएगी। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में 13 प्वाइंट रोस्टर लागू करने के बाद आरक्षण होते हुए भी आरक्षित वर्गों को ठीक से आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा था। इसका पूरे देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग ने विरोध भी किया था।

सैलानियों को लुभाता बूंदी

बंूदी में इतिहास को करवट लेते जिन लोगों ने देखा है, वो राजस्थान की बहुचर्चित लोकगाथा ‘सेनाणी’ की नायिका हाड़ी रानी सल्ह कुँवर के बलिदान से अनभिज्ञ नहीं हो सकते, जिन्होंंने युद्ध में जाते पति द्वारा निशानी माँगे जाने पर अपना सिर काटकर दे दिया था। 18वीं सदी के इन सुर्ख वरकों को भले ही अब वक्त की धूल ने धुँधला दिया, लेकिन हाड़ी रानी की याद ताज़ा करने वाली उनकी हवेली बूंदी में आज भी सिर उठाये खड़ी है। हरी-भरी पहाडिय़ों के बीच जलाशयों से घिरा बूंदी चंदोबे की तरह लगता है। अभी हाल ही में ठिठुराती सर्द हवाओं से सिहराता यह शहर ‘बूंदी उत्सव’ मनाकर हटा है। कड़ी सर्दी के बावजूद बूंदी सैलानियों के बोझ से चरमरा रहा था। बूंदी की पुरासंपदा और सांस्कृतिक वैभव को लेकर प्रख्यात उपन्यासकार किम का कथन बहुत कुछ कह जाता है कि ‘सूरज की दमकती रोशनी में चमचमाते बूंदी के दुर्ग तारागढ़ को देखकर यकीन नहीं होता कि इसे ज़मीनी वास्तुकारों ने रचा है। लगता है, इसे मनुष्य की बजाय फरिश्तों ने गढ़ा है। बूंदी का पुरातन कलात्मक वैभव हर कदम पर चौंकाता है। किम कहते हैं कि ‘बूंदी तो नायाब हीरे की तरह दमकती है। बूंदी का कुदरती सौन्दर्य ही सैलानियों को अपनी तरफ खींचता है। बूंदी का दुर्ग एतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से अतुल्य है। खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें इतिहास के प्रति गहरा लगाव है? बूंदी की पुरा-सम्पदा उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। आकर्षक मेहराबों वाला सुखमहल राजपूती जीवन शैली की याद ताज़ा करता हैं। गर्मियाँ शुरू होते ही राजपरिवार शीतल झकोरे वाले सुखमहल में रहने चला जाता था।

हाड़ा राजपूतों की जीवन-शैली

हाड़ा राजपूतों लोगों की जीवन शैली और परम्पराओं में इस रहन-सहन की झलक आज भी मिल जाती है। जलाशयों की पाँत में गिनी जाने वाली बावडिय़ाँ, जलसंवद्र्धन का नायाब नमूना कही जा सकती है। उनके निर्माण में भी समृद्ध कला कौशल की झलक मिलती है। बूंदी का दुर्ग राजस्थान के सबसे पुराने िकलों में गिना जाता है। इसके निर्माण का कलात्मक वैभव सैलानियों को बुरी तरह हैरान करता है कि,‘आिखर प्रतिमाओं और पत्थरों में उकेरी गयी गाथाओं को किस तरह साकार किया गया होगा। सबसे बड़ा आकर्षण तो इस दुर्ग का पहाड़ी पर निर्मित होना है। यही आकर्षण सैलानियों को चकित करता है। बूंदी में क्या दर्शनीय है? इस इकलौते सवाल का एक ही जवाब होता है कि ‘बूंदी का िकला देखना चाहिए। सैलानियों के लिए चित्रशाला एक बड़े आकर्षण के रूप में गिनी जाती है। यहाँ पर चित्रित राग-रागनियाँ, और रासलीला आदि के चित्र ठिठकने को बाध्य कर देते हैं। नवल सागर जैसी झीलें एहसास ही नहीं होने देती कि ये मानव निर्मित है। भगवान वरुण देव को समर्पित इस झील में वासुदेव का मंदिर भी है। जलाशय में गिरते हुए झरने इसकी भव्यता को दुगुना कर देते हैं। चैरासी खम्भो की छतरी तो कलात्मक वैभव का अनूठा नमूना है।

बदहाली बन रही विडम्बना

यूँ तो बूंदी बहुत आकर्षक पर्यटन स्थल है, लेकिन यहाँ की बदहाली बूंदी की विडम्बना बनने लगी है। यहाँ की टूटी सडक़ों और काई-गाज से भरे जलाशयों के चलते पर्यटकों की संतुष्टि के मामले में बूंदी अव्वल नहीं कहा जा सकता। पर्यटकों की दिलचस्पी के बावजूद राज्य सरकार ने बूंदी के चेहरे को बदलने की कोई कोशिश नहीं की। ताज्जुब है कि इस पर्यटन स्थल के लिए विकास का कोई मेगा प्रोजेक्ट नहीं है। आय और रोज़गार की बात करें, तो पर्यटन यहाँ का सबसे बड़ा कमायी का स्रोत है। लेकिन इस गोरखधंधे पर तो होटल व्यवसाय ही पूरी तरह काबिज़ है, जिसने पुरानी हवेलियों को आने-पोने दामों में खरीदकर होटलों में तब्दील कर दिया है। स्थानीय भूगोल और हवेलियों के इतिहास की गहरी समझ रखने वाले इस मामले में ज़्यादा फायदे में है। क्योंकि यहाँ आने वाले उत्सुक पर्यटकों को विरासत के बारे में बताने के लिए उनके पास बहुत कुछ है। ऐसे लोगों में मेजर सिंह परमार का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।

बदहाल हवेलियाँ और होटल

बदहाल हवेलियों की बिक्री को सुविधाजनक बनाने में तत्कालीन •िाला कलेक्टर मुग्धा सिन्हा की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण रही तो पुरा-सम्पदा के रख-रखाव में अग्रणी संस्था इंटेक का भी उल्लेखनीय सहयोग रहा। मेजर सिंह की देखा-देखी मेहता परिवार के दो भाइयों ने भी हवेली खरीदकर अपनी होटल सम्पत्ति में इज़ाफा किया है। मेजर सिंह तो कहते हैं कभी मलबे का भी इतना मोल हो जाएगा? हमने कृपा भी नहीं की थी। बूंदी स्टेट के समय की जो हवेलियाँ आज मौज़ूद हैं उनमें थाणा की हवेली, हणुवंत सिंह जी की हवेली, ताकला की हवेली समेत कई हवेलियाँ शामिल है। समय के साथ हवेलियों की पर्याप्त सार-सँभाल नहीं होने से इनमें अनेक क्षतिग्रस्त हो गयीं। कई हवेलियों को राजाओं के वंशज आज भी विरासतकालीन कला सँजोये हुए हैं। बूंदी राज्य का नियम था कि राजाओं के वंशजों को जागीरी दी जाती थी। सम्बन्धित वंशज वहाँ का जागीरदार कहलाता था। हालाँकि अब न तो जागीरें रहीं और न ही वो जागीरदार रहे। उनके वंशजों में कुछ ने तो हवेलियों के स्वरूप को बरकरार रखा, लेकिन कुछ ने हवेलियों के सार-सँभाल नहीं होने के कारण उनके वैभव को गँवा दिया। खण्डहर बनी हवेलियों को भव्य होटलों में परिवर्तित करने का काम सहज नहीं रहा। खरीदारों ने इसके लिए काफी मशक्कत की। हवेलियों के स्वामित्व की स्थिति तथा निवेश की सँभावनाओं का अध्ययन करने केे बाद ही उन्होंने अपने कदम बढ़ाये। देखा जाए तो इसका श्रेय राजस्थान में पर्यटन उद्योग में आये बूम और पर्यटकों की यहाँ की पुरा-सम्पदा और विरासत के प्रति रुचि को ही दिया जा सकता है, जिसकी वजह से मलबे में तब्दील होती हवेलियाँ अब तीन सितारा होटलों को भी मात करने लगी है।

पर्यटकों को हमेशा लुभाता रहा है बूंदी

अपने एतिहासिक गौरव और पुरा-सम्पदा को लेकर बेशक बूंदी पर्यटकों को लुभाता है। लेकिन बुनियादी संरचना की विपन्नता, स्वच्छता तथा सुरक्षा के बीहड़ अनुभव हर कदम पर नयी खिडक़ी खोलते चलते हैं। यहाँ छोटे-छोटे टुकड़ों में जीवन के इतने रंग है, जो पूरे भारत की धडक़न का प्रामाणिक कोलॉज बना सकते हैं। बूंदी में वर्षों से हर साल हज़ारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। लेकिन न तो लेाग ही इतने जागरूक है और न ही प्रशासन और सरकार िफक्रमंद है। बुनियादी सुविधाओं की प्रचुरता बेशक औद्योगिक क्षेत्रों के इर्द-गिर्द रही होगी। लेकिन बूंदी का पर्यटन इनसे महरूम है।

सुलगते सवाल

पर्यटन स्थल की तरफ जाने वाली सडक़ें, ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों में तब्दील हो चुकी है। सम्पर्क सडक़ें ही क्यों? पर्यटन केन्द्रों की तरफ जाने वाले हाईवे भी पूरी तरह दुरुस्त नहीं है। बूंदी बेशक पर्यटकों केा खींच लाने में समर्थ है। लेकिन रेल सम्पर्क भी आधा-अधूरा है, तो एयर कनेक्टिविटी भी नहीं है। पर्यटन क्षेत्रों में आवश्यकता के अनुरूप वाशरूम होने चाहिए, कहाँ है यहाँ? शहर का शायद ही कोना ऐसा होगा, जो गन्दगी से अटा हुआ नहीं होगा। गन्दगी से बजबजाते गलियारों को देखकर क्या लगता होगा? शहर के कई इलाके तो ऐसे हैं कि नाक बन्द करके गुज़रना पड़ता है। सुरक्षा के नाम पर भी आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता। हर साल बूंदी उत्सव का आयोजन होता है। इनमें लोक संस्कृति का अतुल्य वैभव नज़र आता है। लेकिन सवाल है कि पर्यटकों को रिझाने वाले लोक कलाकारों की दशा-दिशा पर कोई क्यों नहीं सोचता? बूंदी •िाला मुख्यालय है। लेकिन अतीत का बोझ ढोते हुए एक किसी कोने में सिकुड़ता-सा शहर लगता है। पता नहीं क्यों? फिर भी इसकी एकल पहचान है कि यह पर्यटन नगरी है।