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क्या आपका बैंक खाता सुरक्षित है?

जब से भारत सरकार ने ऑनलाइन ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दिया है, अधिकतर लोग ऑनलाइन लेन-देन करने लगे हैं। दरअसल, सरकार ने ऑनलाइन ट्रांजक्शन को बढ़ावा यह सोचकर दिया था, ताकि बाज़ारों में नकद लेन-देन कम हो सके, जिससे काला धन इकट्ठा करने वालों पर रोक के साथ-साथ कर प्रक्रिया स्पष्ट हो सके और कर चोरी करने वालों पर लगाम कसी जा सके। लेकिन कहते हैं कि जब कोई कानून बनता है, तो भारत में उस कानून को तोडऩे की योजनाएँ पहले बन जाती हैं। यही हाल ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बढऩे के बाद भी हुआ है। जबसे ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का चलन बढ़ा है, बैंक खातों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ी है। इस बात को लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) से लेकर अन्य सभी बैंक चिन्तित रहे हैं और बैंक खाता धारकों की सुरक्षा के लिए अनेक सुरक्षित नियम बनाने के साथ-साथ समय-समय पर सूचनाएँ और चेतावनियाँ जारी करते रहे हैं।

हाल ही में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) ने अपने ग्राहकों को चेतावनी दी है कि वे अनावश्यक एप से अपने बैंक खाते को लिंक न करें, अन्यथा उनके खाते में सेंध लग सकती है। यह पहली बार नहीं है, जब किसी बैंक ने अपने ग्राहकों को चेताया है। इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और अन्य कई बैंक भी अपने-अपने ग्राहकों को चेता चुके हैं। यहाँ तक कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी समय-समय पर ऐसे मामलों में अलर्ट जारी करता रहता है। यह अलग बात है कि बैंकों के आम खाता धारकों को बहुत कुछ पता नहीं होता। आरबीआई की गाइडलाइन में तो यहाँ तक कहा जाता है कि किसी भी व्यक्ति या कम्पनी को अपने खाते अथवा अपने डेबिड/क्रेडिट कार्ड से सम्बन्धित गोपनीय जानकारी, जैसे कि खाता नम्बर, खाते की आन्तरिक जानकारी, ब्लैंक और अनक्रास्ड चेक, डेबिट/क्रेडिट कार्ड नम्बर, सीवीवी नम्बर, एटीएम पिन आदि की जानकारी न दें। पीएनबी ने कुछ दिन पहले ही अपने ग्राहकों को एक ट्वीट करके सलाह दी है कि बैंक कभी भी फोन पर आपसे पर्सनल या बैंकिंग डिटेल्स, जैसे- बैंक खाता नम्बर, आधार नम्बर, जन्मतिथि, डेबिट/क्रेडिट कार्ड की जानकारी, यूपीआई भुगतान की जानकारी, किसी तरह के भुगतान की जानकारी, ईमेल पता, बैंक से लिंक मोबाइल नम्बर इत्यादि नहीं माँगता है। बता दें कि आप किसी भी बैंक के खाता धारक हों, हर बैंक इसी तरह तब-तब सचेत करता रहता है, जब-जब आप उसके ग्राहक सेवा केंद्र यानी कस्टमर केयर नम्बर पर सम्पर्क करते हैं। फिर भी हम देखते हैं कि अनेक लोग आये दिन हैकर्स का बड़ी आसानी से शिकार हो जाते हैं और उनके खाते से पैसा उड़ा लिया जाता है।

पीएनबी की चेतावनी

पीएनबी ने हाल ही में जारी की अपनी चेतावनी में ग्राहकों से कहा है कि वे (ग्राहक) सोशल मीडिया पर अपनी बैंक की जानकारी किसी के साथ साझा न करें। ग्राहकों की समस्याएँ जल्द से जल्द हल हो सकें और उन्हें बैंक तक अपनी बात पहुँचाने में परेशानी न हो, इसके लिए बैंक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर रहा है। बैंक ने चैतावनी दी है कि कुछ ग्राहक, जो इस सुविधा के ज़रिये जालसाजों को बुलावा दे रहे हैं, नासमझी न करें, अन्यथा उनके खाते में सेंध लग सकती है।

कौन से एप्स न करें डाउनलोड?

इस चेतावनी में पीएनबी ने कुछ एप्स के नाम भी बताये हैं, जिन्हें डाउनलोड करना या उनका इस्तेमाल करना खतरे से खाली नहीं है। इन एप्स में एनीडेस्क, क्विकसपोर्ट, वीएनसी, अल्ट्रावीएनसी, टीम वीवर, एम्मी, सीस्क्रीन, बीएनीव्हेयर, लॉगमीनशामिल हैं। बैंक ने चेतावनी दी है कि भूल से भी बैंक खाता धारक इन एप्स को मोबाइल में न तो डाउनलोड करें और न ही इन एप्स का इस्तेमाल करें। बैंक ने कहा है ऑनलाइन पेमेंट के दौर में मोबाइल वॉलेट एप्स काफी ज्यादा यूज हो रहे हैं; लेकिन इनके उपयोग के दौरान खतरा भी उतना ही रहता है। इसी खतरे को देखते हुए ग्राहक हित में रिजर्व बैंक समय-समय पर चेतावनी जारी करता रहता है। ऐसे ही एक एप को लेकर रिजर्व बैंक ने चेतावनी जारी की है, जिसमें बैंक ने कहा है कि एनीडेस्क का उपयोग करना ग्राहकों को भारी पड़ सकता है।

आरबीआई सभी बैंकों को कर चुका है सचेत

हाल ही में आरबीआई ने सभी बैंकों को एक चेतावनी जारी की थी। इस चेतावनी में कहा गया है कि यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस में फर्ज़ी लेन-देन बढ़ रहा है, इससे बचने के लिए वे अपने ग्राहकों को बताएँ कि वे फर्ज़ी एप्स न तो डाउनलोड करें और न ही उनके ज़रिये कोई लेन-देन करें। आरबीआई ने कहा है कि एक मोबाइल एप एनीडेस्क का इस्तेमाल ग्राहकों के खातों में सेंध लगाने के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा आरबीआई ने यह भी कहा है कि बैंक ग्राहकों को बताएँ कि वे किसी भी सुझाये गये एप को इंस्टॉल नहीं करें, ताकि उनका खाता सुरक्षित रह सके।

किसी को न बताएँ ओटीपी

अक्सर हम देखते हैं कि जब हम अपने बैंक खाते अथवा किसी कार्ड के ज़रिये कोई ऑनलाइन भुगतान करते हैं, तो हमें बैंक की ओर से एक वन टाइम पासवर्ड यानी ओटीपी नम्बर आता है, जो कि बेहद गोपनीय होता है। कई बार देखा गया है कि जब हमें किसी दूर बैठे व्यक्ति को अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड से कोई भुगतान करना होता है, तो हम उसे अपना कार्ड नम्बर, कार्ड की एक्सपायरी डेट, कार्ड पर पड़ा अपना नाम और यहाँ तक कि सीवीवी नम्बर भी बता देते हैं। वैसे तो यह जानकारी भी किसी को भी नहीं देनी चाहिए, चाहे वह कितना भी करीबी दोस्त या जानने वाला क्यों न हो। …और ओटीपी नम्बर तो किसी भी कीमत पर किसी से शेयर नहीं करना चाहिए।

क्यों किसी को न दें ओटीपी नम्बर?

जब इस बारे में पड़ताल की तो नाम न बताने की शर्त पर रेलवे टिकट कराने वाले एक एजेंट (दलाल) ने बताया कि उसके पास अनेक ऐसे लोग टिकट कराने आते हैं, जो अपने डेबिट/क्रेडिट कार्ड से टिकट कराने की विनती करते हैं। ऐसे में जब हम उनका टिकट करते हैं, तो हमें उनके डेबिट/क्रेडिट कार्ड का नम्बर, एक्सपायरी डेट, सीवीवी नम्बर आदि की जानकारी लेनी पड़ती है। जब हम ग्राहक के डेबिट/क्रेडिट कार्ड से भुगतान की सारी प्रक्रियाएँ पूरी कर लेते हैं, तब उसके मोबाइल पर एक ओटीपी आता है, जिसे ग्राहक को न चाहते हुए भी हमें बताना ही होता है। एजेंट ने बताया कि इस नम्बर के बाद यदि वह चाहे, तो किसी के बैंक अकाउंट अथवा क्रेडिट कार्ड से पैसा निकाल सकता है; लेकिन वह बहुत ईमानदारी से अपना काम करता है, इसलिए वह किसी के साथ चीटिंग नहीं करता। अन्यथा वह चाहे तो अगली बार बिना ग्राहक को सूचना मिले उसके बैंक अकाउंट या क्रेडिट कार्ड से पैसा निकाल सकता है। जब उससे यह पूछा गया कि एक बार ओटीपी नम्बर देने से अगली बार आप पैसा कैसे निकाल सकते हैं। तब एजेंट ने बताया कि एक बार ओटीपी मिलने पर वह ऐसा कुछ कर सकता है, जिससे जब अगली बार वह उस ग्राहक के डेबिट/क्रेडिट कार्ड से भुगतान लेगा, तो ओटीपी उसके मोबाइल पर न जाकर हम जिस मोबाइल नम्बर पर चाहेंगे, उस पर ही पहुँचेगा और जैसे ही हमें ओटीपी नम्बर मिलेगा, हम पैसा निकाल सकते हैं। क्योंकि बाकी जानकारी हमारे पास ग्राहक द्वारा आ ही चुकी होती है। जब उस एजेंट से पूछा कि पैसा निकालने का अलर्ट तो ग्राहक को मिलता ही है, तब पता चल जाएगा कि उसके डेबिट/क्रेडिट कार्ड से कहाँ, किस समय किसने भुगतान लिया है। तब उसने बताया कि भुगतान कटने का मैसेज (संदेश) भी ग्राहक तक नहीं जाएगा। ग्राहक को तभी पता चलेगा, जब वह बैंक से अपना बैलेंस (शेष राशि) पूछेगा अथवा बैंक उससे अपना भुगतान वापस माँगेगा।

यह चौंकाने वाली बात है कि ज़रा सी असावधानी आपको बर्बाद कर सकती है।

आपका बड़ा दुश्मन है एंड्रायड फोन

आजकल अधिकतर लोग एंड्रायड फोन का इस्तेमाल करते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर पवन बताते हैं कि लगभग 90 प्रतिशत लोग एंड्रायड फोन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। ऐसे में वे कई बार ऐसी गलतियाँ कर बैठते हैं, जो उन्हें भारी पड़ जाती हैं। क्योंकि एंड्रायड फोन में कई एप्स खुद-ब-खुद होते हैं और कुछ एप्स स्वत: डाउनलोड हो जाते हैं या वे ऐसी स्थिति में ग्राहक के सामने आते हैं कि वह चाहे-अनचाहे या जाने-अनजाने उन्हें क्लिक कर लेता है। बस इन एप्स को क्लिक करना लोगों को भारी भी पड़ सकता है। दूसरी बात यह है कि आजकल तकरीबन हर आदमी कोई-न-कोई सोशल साइट्स का इस्तेमाल करता ही करता है। ऐसे में उसकी बहुत-सी जानकारियाँ स्वत: ही सार्वजनिक हो जाती हैं, जिससे उसकी गोपनीय जानकारियों में सेंध लग ही जाती है। ऐसे में सचेत रहना ही बचाव का सबसे बड़ा उपाय है। पवन कहते हैं कि अगर आप एंड्रायड फोन का सही इस्तेमाल जानते हैं, तो आपको कोई खतरा नहीं है।

ऑनलाइन भुगतान से कई लोगों को लग चुका है चूना

आजकल बहुत से लोग पेटीएम, भीम एप, गूगल पे, यूपीआई, एनईएफटी जैसे कई विश्वसनीय माध्यम से लेन-देन करते हैं। ये तरीके काफी सुरक्षित हैं, लेकिन फिर भी कई बार अनेक लोगों को चूना लग चुका है। बैंक खातों में सेंध लगने की खबरें हम आये दिन सूचना के माध्यमों से पढ़ते-सुनते रहते हैं। हाल ही में एक महिला ग्राहक के साथ ऐसा ही हुआ, उसने एक दुकान से 150 रुपये का सामान खरीदा और जैसे ही पेटीएम किया, उसके खाते से 15 हज़ार रुपये उड़ गये। हालाँकि, बाद में उसे उसके बाकी पैसे वापस मिल गये; लेकिन अनेक बार ऐसा भी हुआ है, जब ग्राहक को उसका पैसा वापस ही नहीं मिला है।

सेंध लगने पर लें पुलिस की मदद

वैसे तो जब आपके बैंक अकाउंट अथवा डेबिट/क्रेडिट कार्ड के ज़रिये आपको सेंध लगा देता है, तो आप बैंक में सम्पर्क करके सहायता माँगते हैं। लेकिन ऐसा होने पर आपको पुलिस की भी मदद लेनी चाहिए, ताकि सेंध लगाने वाले अपराधियों को पुलिस गिरफ्तार कर सके। इसके लिए आप पुलिस को 100 नम्बर पर तत्काल कॉल कर सकते हैं। नज़दीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत दे सकते हैं। लेकिन एक एप भी है, जो आपको पुलिस की मदद मुहैया कराता है। इस एप का नाम है- इंडियन पुलिस ऑन कॉल एप। यह एप नज़दीकी पुलिस थाने को ढूँढने में आपकी मदद करता है। इस एप में पुलिस थाने की आपसे दूरी, उसका रूट आदि की जानकारी बड़ी आसानी से मिलती है। इसके अलावा ज़िले के कंट्रोल रूम की संख्या और एसपी कार्यालयों से सम्पर्क के माध्यम भी इस एप पर मिलते हैं।

गृहस्थों की हत्याओं का काला इतिहास

कोटा की लडक़ी रिद्धि ने पति की अय्याश ज़िन्दगी, विवाहेतर रिश्तों के काले पन्ने बाँचने और तलाक के लिए मजबूर किये जाने के बावजूद अपनी शादी बचाने की भरपूर कोशिश की…। पति द्वारा लगातार हिंसा,मारपीट, गाली-गलौच और दुत्कार सहने के बाद भी वह पति के प्यार में सिर से पाँव तक डूबी रही; लेकिन पति ने उसकी कद्र नहीं की…। हैवानियत की तमाम हदें पार करते हुए उस वहशी शख्स ने ‘दूसरी औरत’ के फेर में पत्नी रिद्धि से पीछा छुड़ाने के लिए बेरहमी से उसका गला रेत दिया…। राजस्थान के उच्च मध्यम वर्ग में इन दिनों इसी तरह की अपराधवृत्ति की दुनिया बड़े भयानक तरीके से व्यापक होती जा रही है। इन हत्याओं में ऐसे कलयुगी पति हैं, जो दूसरी औरत के प्रेमजाल में बुरी तरह फँसकर ऐसे पगला जा रहे हैं कि जिसे रीति-रिवाज़ से पत्नी बनाते हैं, उसकी ही हत्या कर देते हैं। दूसरी तरफ ऐसी पत्नियाँ भी हैं, जो अपने पति की प्रेमिकाओं से प्रतिशोध लेने के लिए हिंसक हो रही हैं, यहाँ तक कि वे हत्याएँ कर या करा रही हैं।

हर घटना में दरकते दाम्पत्य रिश्तों, अवैध सम्बन्धों की त्रासदी है। राजस्थान में गृहस्थों की हत्याओं का काला इतिहास लिखा जा चुका है। ऐसी ही कुछ घटनाएँ खुलने के बाद भौचक्का करने वाली निकली हैं। इनन घटनाओं में कई ऐसी हैं, जिन्हें अभिजात्य परिवारों और सफेदपोशों ने अंजाम दिया है। पहले दाम्पत्य जीवन में आये तनाव की वजह पारिवारिक परम्पराओं के निर्वाह में वैचारिक मतभेद हुआ करता था। लेकिन अब अनेक घरों के आँगन में बात-बात पर खून की लकीरें खींच दी जाती हैं। कालांतर में ‘कमाऊ पत्नी’ की एक नयी नस्ल ने आज़ादी की चाहत में इस आग में घी का काम किया। नतीजतन दाम्पत्य सम्बन्धों की अन्त्येष्टि तलाक पर जाकर होने लगी। पारिवारिक अदालतें दरकते वैवाहिक रिश्तों की नयी गवाह बनने लगी। लेकिन अब खून झरते दाम्पत्य सम्बन्धों की उधड़ती सीवन बुरी तरह दहशतज़दा करती है। पेशेवर अपराधियों की निर्ममता को भी मात करने वाली घटनाएँ यह जानकर स्तब्ध करती  है कि इसका कर्ता उच्च वर्ग का है।  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट कार्ड की मानें तो ‘अब रंजिशन घटनाओं का अपराध तो काफी गिर चुका है। लेकिन अधिकतर हत्याएँ कथित प्रेम सम्बन्धों और नाजायज़ रिश्तों के कारण होने लगी है।’ सबसे भयावह सच है इंसान का इंसान पर कब्ज़ा।’ समाजशास्त्री ऋतु सारस्वत का कहना है कि भारतीय समाज पिछले कुछ दशकों में एक सामाजिक-सांस्कृतिक संक्रमण से गुज़र रहा है। जहाँ सब कुछ त्वरित रूप से पाने की चाह है। चाहे वे रिश्ते हो या भौतिक चाह? इस त्वरित चाह ने व्यक्ति को दुस्साहसी बना दिया है। अभी हाल ही में जयपुर की पॉश कॉलानी प्रतापनगर की घटना को क्या कहा जाए, जिसमें रोहित तिवारी ने अपनी पत्नी श्वेता और मासूम बच्चे को सुपारी किलर से मरवा दिया। रोहित का किसी औरत से अफेयर था। दूसरी शादी कर नये सिरे से ज़िन्दगी शुरू करने के लिए रोहित ने मासूम बच्चे की भी हत्या कर दी, ताकि श्वेता की निशानी उसकी राह में बाधक न बने? रोहित आईओसीएल में मैनेजर था। कहा जाता है कि शादी के बाद के पिछले 11 साल से ही श्वेता और रोहित के दाम्पत्य सम्बन्धों में कड़ुवाहट चली आ रही थी। श्वेता के साथ आये दिन की मारपीट कोई नयी बात नहीं थी। श्वेता अपनी आशंका को माँ से साझा कर चुकी थी कि मुझे लगता है कि कोई दिन रोहित मेरी हत्या कर देगा? लेकिन सवाल है कि क्यों उसने निर्मम पति के साथ बने रहना कुबूल किया? टिप्पणीकार मेघा चावला की मानें तो महिलाओं की ज़िन्दगी,संघर्ष, अंदेशों और सपनों की तह तक पहुँच पाना भी तो इतना सहज नहीं? यहाँ कृष्ण कुमार की ‘चूड़ी बाज़ार में लडक़ी’ पुस्तक का अंश उद्धृत करना प्रासंगिक होगा कि ‘हमारा पूरा सामाजिक तंत्र पुरुष के भीतर मौज़ूद स्त्रीत्व को निर्मूल करने में सक्रिय रहता है। इसलिए पुरुष के भीतर स्त्री को लेकर एक अपराध बोध होता है। इसकी परिणतियाँ कई तरह की हिंसा और अन्याय में होती है।’ ऋतु सारस्वत कहती है- ‘कड़वाहट भरे दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने वाली श्वेता कोई अकेली महिला नहीं है; देश में ऐसे हज़ारों दम्पति हैं, जो कड़ुवाहट भरा दाम्पत्य जीवन इस आस में जीते हैं कि शायद भविष्य में रिश्ते बेहतर बन जाएँ? यहाँ रिद्धि का उदाहरण दिया जा सकता है। पति कपिल की बेवफाई के बावजूद उसे रिश्ते सुधरने की उम्मीद थी कि शायद कोई कोशिश उसकी टूटती गृहस्थी को बचा ले? लेकिन कपिल के कृपालु चेहरे के पीछे एक दानवी चेहरा छिपा था। उसे वो कहाँ देख पा रही थी? तलाक के कागज़ों पर दस्तखत कराने के लिए कपिल ने बड़े अनुरागपूर्ण ढंग से रिद्धि को बाहों में लेते हुए कहा- ‘रिद्धि माई डाॄलग, मैं तुम्हें उतना ही चाहता हूँ, जितना हर्षा को? वो मेरा पहला प्यार है और तुम मेरी हसीन बीवी। मैं चाहता हूँ, तुम दोनों मेरी ज़िन्दगी में बनी रहो। रिद्धि ने सच्चा, लेकिन कड़ुवा जवाब दे दिया- ‘आज हर्षा की खातिर मुझे छोड़ रहे हो? कल किसी ओर की खातिर हर्षा को छोड़ देना… फिर कोई और, फिर कोई और? चलता रहेगा यही सिलसिला क्यों? तू नहीं और सही…और नहीं और सही…! यह रिद्धि के आिखरी शब्द थे। उसके बाद कपिल के हाथों में फलदार चाकू लहराया और रिद्धि की गर्दन को रेतता हुआ चला गया। कपिल को बेशक उम्र कैद की सज़ा हो गयी। लेकिन ऐसे िकस्सों का सिलसिला तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा? यहाँ मद्रास न्यायालय की टिप्पणी बहुत कुछ कह जाती है कि क्यों वैवाहिक सम्बन्ध इतने घातक मोड़ पर पहुँच जाते हैं कि दम्पति एक दूसरे की हत्या करने और करवाने से भी नहीं हिचकते।

वरिष्ठ पत्रकार गायत्री जयरामन द्वारा खील-खील होते दाम्पत्य सम्बन्धों पर किये गये शोध में इस बात की तरफ संकेत किया गया था कि आजकल इंटरनेट किस तरह पति-पत्नी को धोखा देने के औज़ार के रूप में उभर रहे हैं। उनका कहना था- ‘अवैध सम्बन्ध उन लोगों का एक सुकून भरा विकल्प है, जो शादी के बन्धन में खुद को कैद पाते हैं और शादी उन्हें किसी दूसरे के साथ सैक्स का आनंद लेने से रोकती है। कुछ लोग शादी को बचाये रखने का नाटक भी करते हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि आप उसे खत्म कर देंगे, तो बचेगा क्या? बहरहाल इस तरह के लोग बस गिनती के हैं। पिछले दिनों भरतपुर की घटना ने तो पूरे सूबे में कोहराम मचा दिया था। विवाहित डॉक्टर सुदीप गुप्ता, अपने क्लिनिक की रिसेप्शनिस्ट दीपा गुर्जर पर आसक्त क्या हुए कि उनकी पत्नी डॉक्टर सुरेखा गुप्ता ने पति और ‘वो’ को सबक सिखाने के लिए उसे ज़िन्दा जला डाला। जीवित अग्निदाह में दीपा मासूम बेटे शौर्य की भी बलि दे दी गयी। कहा जाता है कि इस साज़िश में डॉक्टर सुदीप गुप्ता बराबर का साझीदार था। वजह, विवाहेतर सम्बन्ध डॉक्चर गुप्ता पर भारी पडऩे लग गये थे। दीपा उसे ब्लेकमेल पर उतारू हो गयी थी कि ‘मुझसे शादी करो और बेटे को पिता का नाम दो!’ वर्चस्व का बोध और लालसा ने कितना कोहराम मचाया? कहने की ज़रूरत नहीं। मद्रास हाई कोर्ट की टिप्पणी ऐसे मामलों में बहुत कुछ कह जाती हैं कि ऐसे रिश्ते गम्भीर अपराधों का आधार बनते हैं।

एक सर्वेक्षण कहता है कि जो लोग शादीशुदा ज़िन्दगी में रहने के बावजूद विवाहेतर सम्बन्ध बनाये रखते हैं।, उनकी संख्या करीब 55 प्रतिशत है। सोशल मीडिया में इस बात के भी संकेत मिलते हैं कि कुछ विवाहित लोग अविवाहित होने का स्वाँग रचकर मेट्रोमोनियल या डेेटिंग साइटों पर अपना प्रोफाइल दर्ज कराने में जुटे रहते हैं। लेकिन मुश्किलों का दौर तो तब शुरू होता है, जब यह रिश्ते ज़िन्दगी पर भारी पडऩे लगते हैं।

समाजशास्त्रियों का कहना है कि नये ज़माने की उन्मुक्त स्त्री के िकरदार के दो छोर है- ‘मर्द भी चाहिए, और मर्द से आज़ादी भी।’ असली चुभन की शुरुआत यहीं से होती है। नतीजतन पत्नी और प्रेमिका दोनों एक-दूसरे के सामने बरक्स खड़े हैं। मनेाचिकित्सक डॉक्टर प्रमिला अग्रवाल कहती हैं कि पति-पत्नी के बीच बेहतर तालमेल नहीं बैठ पाने की स्थिति में ही उनके दाम्पत्य जीवन में ‘वो’ का प्रवेश होता है। समाजशास्त्री विनीत मिश्रा कहते हैं कि तलाक आजकल महिलाओं के लिए सबसे सशक्त हथियार है। स्त्री बड़ी रकम हथियाकर ही पुरुष को मुक्त करती है। मर्दों के लिए यह आसान विकल्प नहीं है। नतीजतन वो हिंसा का दामन थामता है कि ‘न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी।’ लेकिन यह विकल्प तो आिखर जीवन का अन्त ही है। रोहित तिवारी और डॉक्टर सुदीप ने शायद यही विकल्प चुना! मनोचिकित्सक डॉक्टर प्रमिला अग्रवाल कहती है कि कहीं आधुनिक जीवन शैली ही तो इसकी बड़ी वजह नहीं? आज तो डेटिंग, लिव-इन रिलेशन आदि ने एक-दूसरे को जानने के बेहतर मौके दे दिये हैं। फिर भी न सिर्फ शादियाँ टूट रही है, बल्कि इसके गर्भ से दो भयावह चेहरे उभर रहे हैं। तलाक के लिए वसूली पर उतारू स्त्री और छुटकारे के लिए हत्यारा बनता पति!

अपने-अपने दावे, अपने-अपने वादे

दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सभी पाॢटयों के नेता जनता को लुभाने के लिए दावों और वादों की राजनीति करने में जुट गये हैं। लेकिन सभी पाॢटयों के नेताओं को एक डर भी सता रहा है। एक तरफ सभी सर्वे रिपोट्र्स यह बता रही हैं कि आम आदमी पार्टी जीत रही है और दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही दोबारा मुख्यमंत्री बनेंगे। वहीं भाजपा और कांग्रेस के जीत के अपने-अपने दावे हैं। पेश है पार्टी नेताओं के इन्हीं दावों और वादों पर राजीव दुबे की रिपोर्ट

दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जा रहे हैं, पूरी दिल्ली चुनावी रंग में रंगती जा रही है। एक तरफ जहाँ आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस ने अपनेे-अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है, वहीं सभी पाॢटयों के नेता एक-दूसरे पर आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगाने में जुट गये हैं। सभी पाॢटयों के नेता रैलियों के अलावा सोशल मीडिया पर प्रतिद्वद्वियों पर निशाना साध रहे हैं। इतना ही नहीं अपने-अपने दावे और वादे भी जनता के सामने कर रहे हैं।

तहलका संवाददाता ने जब दिल्ली के लोगों से प्रत्याशियों से बात की, तो उन्होंने बताया कि इस बार दिल्ली के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होंगे। मतलब इस बार पिछली बार की तरह एकतरफा चुनाव परिणाम नहीं आएँगे। माना जा रहा है पिछले विधानसभा चुनावों में ज़ीरो पर रही कांग्रेस का इस बार न केवल खाता खुलेगा, बल्कि कई सीटें उसके पाले में जाएँगी। वहीं भाजपा को इस चुनाव में बड़ी जीत की उम्मीद है। इस चुनाव में सभी पाॢटयों के दिग्गज भी अपने-अपने प्रत्याशियों का समर्थन कर रहे हैं। इन दिग्गजों में एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा भाजपानीत एनडीए सरकार के कई केंद्रीय मंत्री हैं, तो दूसरी ओर कांग्रेस के कई दिग्गज नेता और सांसद हैं, वहीं तीसरी ओर अपने कामों के लिए दुनिया भर में वाहवाही लूट रहे आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के अलावा राज्यसभा सांसद संजय सिंह हैं। इसलिए यह चुनाव जीतने की ज़िद के साथ दिग्गजों की प्रतिष्ठा का सवाल बन चुका है। इसी के चलते सभी पाॢटयों के नेता और प्रत्याशी अपने-अपने दावे और अपने-अपने वादे करके मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। इस चुनाव में जनता को गिनाने के लिए जहाँ आम आदमी पार्टी के नेताओं के पास दिल्ली सरकार के कामों की लम्बी लिस्ट है, वहीं भाजपा और कांग्रेस नेताओं के पास सिवाय दावों और आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार की कमियाँ गिनाने के अलावा कुछ नहीं है। इस बार शाहीन बाग धरने का असर भी विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। बता दें कि शाहीन बाग में सीएए के विरोध में शाहीन बाग की महिलाएँ भारी पुलिस बल की तैनाती के बीचकेंद्र सरकार के िखलाफ धरने पर बैठी हैं।

दिल्ली में अगले पाँच साल कौन शासन करेगा, यह तो बाद की बात है, िफलहाल तो आम आदमी पार्टी के नेताओं का दावा है कि दिल्ली में दोबारा आम आदमी की ही सरकार बनेगी। इधर, भाजपा नेताओं का कहना है कि आम आदमी पार्टी की डुगडुगी बज चुकी है; इस बार दिल्ली में भाजपा की सरकार बन रही है। तो कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जनता भी यह बात अच्छी तरह समझ चुकी है और इस बार कांग्रेस का जनाधार उसे वापस मिलेगा। क्योंकि कांग्रेस के कमज़ोर होने से आप पार्टी बनी थी; लेकिन कांग्रेस अब मज़बूती के साथ चुनाव मैदान में है और निर्णायक भूमिका में दिखेगी।

दूसरी ओर दिल्ली का मतदाताओं का कहना है कि गत कुछ महीनों से दिल्ली और देश का जो माहौल अफरातफरी वाला बना है, वह पूरी तरह से राजनेताओं की देन है। इसलिए इस बार वे अच्छी पार्टी के साथ-साथ ऐसे प्रत्याशियों को चुनेंगे, जो बिना सियासत किये विकास करें, काम करें। बातचीत में पता चला है कि दिल्ली के अधिकतर लोगों की पहली पसंद आम आदमी पार्टी है।

नेताओं के बयानों की बात करें, तो आम आदमी पार्टी के नेताओं और उनके मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने दिल्लीवासियों से साफ कहा है कि यदि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में ईमानदारी से काम किया है, जनता के हित में काम किये हैं, तब ही मतदाता पार्टी उम्मीदवारों के पक्ष में वोट दें अन्यथा वोट न दें। केजरीवाल ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल काम के आधार पर वोट नहीं माँगता पर आम आदमी पार्टी काम के आधार पर ही वोट माँग रही है। केजरीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार देश और दिल्ली को गुमराह करने वाली राजनीति कर रही हैै। केजरीवाल का कहना है दिल्ली सरकार ने दिल्लीवासियों को तमाम सुविधाएँ सस्ती दरों पर मुहैया करायी गयी हैं, इसके बावजूद दिल्ली सरकार घाटे में नहीं रही है। इसका मतलब साफ है कि आप पार्टी में कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है। इसलिए आम आदमी पार्टी की दिल्ली में फिर से सरकार बनेगी। यह आम आदमी की सरकार है। आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद व दिल्ली चुनाव के प्रभारी संजय सिंह का कहना है कि केन्द्र्र सरकार ने जामिया, जेएनयू और सीएए को लेकर जो भी किया है, उससे दिल्ली ही नहीं देशभर के लोग भाजपा सरकार से नाराज़ हैं। लोग अब भाजपा सरकार की नीतियों को जान गये हैं और भाजपाइयों के झाँसे में दिल्ली के लोग नहीं आने वाले हैं। उन्होंने कहा कि छात्रों, अभिभावकों के अलावा देश-दुनिया ने भी माना है कि दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था सुधार हुआ है। जबकि केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में राजनीति हो रही है, छात्र-छात्राओं की पिटाई की जा रही है।

इधर, भाजपा के आलाकमान से लेकर पार्टी के सहयोगी संगठन इस बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने के लिए एड़ी-चोटी तक का ज़ोर लगाये हुए हैं। उनका कहना है कि अब की बार दिल्ली में भाजपा की सरकार बनेगी। माना जा रहा है कि भाजपा भले ही खुले तौर पर धु्रवीकरण की राजनीति को स्वीकार नहीं करे, मगर सियासत में सब जायज़ है की नीति पर चुनाव लड़ेगी। भाजपा का कहना कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने जो हाल दिल्ली में सीएए को लेकर जामिया और जेएनयू में किया है, उससे आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के प्रति लोगों विश्वास उठ गया है। भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का कहना है कि वह दिल्ली में बाइक रैली निकालकर सीएए के समर्थन में लोगों से भाजपा को जिताने की अपील कर चुके हैं, जिसका नतीजा 11 फरवरी को आएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली को गुमराह कर लोगों को भडक़ाने का काम आम पार्टी कर रही है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल चुनाव के पहले दिल्ली वालों से अपनी नाकामी छिपाने के लिए केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते थे कि केन्द्र सरकार कोई काम नहीं करने दे रही है। इसके लिए वे सबकुछ फ्री करते जा रहे हैं। वे अब नहीं कहते कि केंद्र सरकार उन्हें काम करने से रोक रही है। पालम विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी विजय पंडित का कहना है कि दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों की पक्की रजिस्ट्री का काम सालोंसाल से लटका हुआ था, जिसे एनडीए की केन्द्र सरकार ने किया है।

इधर, कंाग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का कहना कि अब तक के इतिहास में कांग्रेस के शासनकाल में कभी भी दिल्ली में हिंसा और आगजनी की घटनाएँ नहीं घटी हैं, जिस तरह कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और केंद्र की भाजपा की सरकार के शासनकाल में घटी हैं।  उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू है; क्योंकि ये दोनों दल के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाकर अपनी ज़िम्मेदारी से बच रहे हैं। इसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। सुभाष चोपड़ा का कहना है कि आम आदमी पार्टी और भाजपा जो दावे कर रही हैं, उनमें कोई दम नहीं है। दिल्ली में कांग्रेस का परचम लहराएगा। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार झारखंड और महाराष्ट्र में जनता ने कांग्रेस को बहुमत दिया उसी तरह दिल्ली में कांग्रेस को बहुमत मिलेगा। आम आदमी पार्टी चुनाव पूर्व जिस तरह वादे करने के अलावा यह फ्री और वो फ्री करके जनता के आगे जो दाने डाल रही है, वो केवल चुनाव भर के लिए हैं। पर कांग्रेस विकास और सौहार्द की राजनीति करती है। वहीं दिल्ली के लोगों का कहना है कि दिल्ली में अफरातफरी का जो माहौल बनाया जा रहा है, उसमें बड़े सियासी दलों की भूमिका है। इस बार चुनाव में उन नताओं को सबक सिखाया जाएगा, जो दिल्ली को सियासी आग में जलाने की कोशिश कर रहे हैं। जनता का कहना है कि कुछ नेता दिल्ली को सियासी अड्डा बनाकर दिल्ली का विकास रोकना चाहते हैं। एमबीए के छात्र ओम प्रकाश अग्रवाल का कहना है कि दिल्ली की अब वह छवि नहीं रही, जो हुआ करती थी।

क्या गठबन्धन डालेगा असर?

दिल्ली विधान सभा चुनाव में सपा, बसपा  के साथ-साथ कांग्रेस और भाजपा भी कुछ सीटों पर गठबन्धन के सहारे चुनाव लड़ रही है।  बसपा पार्टी के नेता संजय चौधरी ने बताया कि दिल्ली के नगर निगम के चुनाव हो या विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मत-प्रतिशत में इज़ाफा हो रहा है। पिछले निगम के चुनाव में 17 निगम पार्षद जीतकर अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। इस बार दिल्ली विधानसभा चुनाव में बसपा पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में है। वहीं समाजवादी पार्टी (सपा) के चन्द्रशेखर का कहना है कि सपा की इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी। जेडीयू के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष दयानंद राय का कहना है कि दिल्ली में भाजपा के साथ तीन सीटों पर गठबन्धन कर चुनाव जीतेगी। क्योंकि दिल्ली में पूर्वांचली मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। जेडीयू भी पहले अपनी दर्ज करा चुकी है। कांग्रेस पार्टी भी इस बार राजद के साथ 4 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ रही है। राजद के नेता मनोज झा का कहना है कि दिल्ली के चुनाव में पूर्वांचली मतदाता कांग्रेस का वोट और सपोर्ट करेंगे। आप पार्टी के नेता नवीन जैन का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा दिल्ली में इसलिए गठबन्धन कर रही हैं, ताकि मिलकर सरकार बना सकें। लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई गठबन्धन काम आने वाला नहीं है; यहाँ पर आम आदमी पार्टी की ही सरकार बनेगी।

भील जनजाति के अपमान पर बवाल

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा दिनाँक 12 जनवरी, 2020 को आयोजित प्रारम्भिक परीक्षा-2019 के द्वितीय सत्र अपराह्न 2.15 से 4.15 तक सामान्य अधिरुचि परीक्षण (सी-सेट) के प्रश्न पत्र में मध्य प्रदेश एवं भारत की सबसे बड़ी जनजाति भील समुदाय के बारे में पूछे गये विवादित सवाल से बवाल मच गया। उक्त प्रश्न पत्र के एक अनसीन पैसेज में, भील जनजाति को शराब में डूबी हुई आपराधिक प्रवृत्ति का और धन कमाने के लिए गैर-वैधानिक तथा अनैतिक कामों में संलिप्त बताया गया।

इस पर मध्य प्रदेश के आदिवासी संगठनों समेत भाजपा-कांग्रेस के नेताओं ने भी तीखी प्रतिक्रिया की है। इंदौर में 13 जनवरी, 2019 को जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) संगठन के बैनर तले हज़ारों युवाओं ने लोक सेवा आयोग कार्यालय का घेराव कर सार्वजनिक रूप से लिखित माफी माँगने की माँग की; जबकि भोपाल, धार, बड़वानी, झाबुआ, खरगोन, अलीराजपुर, खंडवा, देवास समेत अनेक ज़िलों में आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन कर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपे। इंदौर जयस प्रेसिडेंट एवं आदिवासी छात्र नेता रविराज बघेल ने कहा कि एमपीपीएससी द्वारा भील जनजाति के सम्बन्ध में दुर्भावना वश अपमानजनक बात कही गयी है, जिससे भील समुदाय के समस्त लोगों के मान-सम्मान को गहरा आघात पहुँचा है, जिसके जलते इस समुदाय के लोगों में आक्रोश व्याप्त है। यदि एमपीपीएससी के ज़िम्मेदार अधिकारियों के िखलाफ एक सप्ताह के भीतर कार्रवाई नहीं की जाती है, तो पूरे प्रदेश में बड़े स्तर पर आन्दोलन किया जाएगा। जयस के संरक्षक एवं मनावर से विधायक डॉ. हिरालाल अलावा ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल को पत्र लिखकर म.प्र. लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष भास्कर चौबे और सचिव रेणु पंत को बर्खास्त किये जाने एवं अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत एफआईआऱ दर्ज किये जाने की माँग की। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के पूर्व विधायक एवं आदिवासी नेता मनमोहन शाह वट्टी ने कहा कि लोक सेवा आयोग के पदाधिकारियों द्वारा भील जनजाति के सम्बन्ध में इस तरह की घृणास्पद टिप्पणी अक्षम्य है। पेपर सेट करने के दौरान सभी प्रश्नों की जाँच की जाती है, ताकि कोई विवादस्पद प्रश्न न पूछा जाए। इसके बावजूद भी लोक सेवा आयोग जैसी प्रतिष्ठित संस्था के परीक्षा में ऐसा सवाल आया है, तो यह जान-बूझकर पूछा गया प्रतीत होता है। साथ ही लोक सेवा आयोग में बैठे अधिकारियों की भील जनजाति के प्रति घृणित मानसिकता का परिचय देता है। मामले को तूल पकड़ता देख मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 13 जनवरी की शाम ट्वीट किया कि मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 12 जनवरी 2020 को आयोजित मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा 2019 के प्रारंभिक परीक्षा में भील जनजाति के सम्बन्ध में पूछे गये प्रश्नों को लेकर मुझे काफी शिकायतें प्राप्त हुई हैं। इसकी जाँच के आदेश दे दिये गये हैं। इसके बाद उन्होंने दो ट्विट और किये और लिखा कि इस निंदनीय कार्य के लिए निश्चित तौर पर दोषियों को दंड मिलना चाहिए, उन पर कड़ी कार्रवाई होना चाहिए, ताकि इस तरह की पुनरावृति भविष्य में दोबारा न हो। मैंने जीवन भर आदिवासी समुदाय, भील जनजाति व इस समुदाय की सभी जनजातियों का बेहद सम्मान किया है, आदर किया है। अगले ट्विट में उन्होंने लिखा कि मैंने इस वर्ग के उत्थान व हित के लिए जीवन पर्यन्त कई कार्य किये हैं। मेरा इस वर्ग से शुरू से जुड़ाव रहा है। मेरी सरकार भी इस वर्ग के उत्थान व भलाई के लिए वचनबद्ध होकर निरंतर कार्य कर रही है।

मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले के पंधाना क्षेत्र के भाजपा विधायक राम दांगोरे (30), जो खुद भील जनजाति से हैं एवं एक उम्मीदवार के रूप में उसी एमपीपीएससी परीक्षा में शामिल हुए थे; ने कहा कि हम कांग्रेस के राज में भील जनजाति का अपमान सहन नहीं करेंगे। टंट्या भील, पुंजा भील, खाज्या नाईक सरीखे हमारे बहादुर पुरखों ने अंग्रेजों के िखलाफ स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति तक दी है। मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता गोपाल भार्गव समेत कांग्रेस-भाजपा के कई विधायकों ने दोषियों पर कार्रवाई की माँग की। जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह ने कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री कमलनाथ को सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए।

पेशे से वकील और भोपाल के आरटीआई कार्यकर्ता सिद्धार्थ गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा सिर्फ जाँच के आदेश दिया जाना खानापूर्ति मात्र है। इसमें जाँच करने जैसा कुछ खास नहीं है, मामला पूरी तरह साफ है। लोक सेवा आयोग जैसी प्रतिष्ठित संस्था द्वारा बहादुर भील जनजातियों के बारे घृणित प्रश्न पूछा गया है, जिसकी पूरी ज़िम्मेदारी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष भाष्कर चौबे, सचिव रेणु पंत और पेपर सेट करने वाले अधिकारियों की है। अत: मुख्यमंत्री कमलनाथ इस मामलें से जुड़े उक्त सभी अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करें और उन सभी के िखलाफ एफआईआर दर्ज की जाए।

विवाद बढ़ता देख मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की सचिव रेणु पंत ने सोमवार 13 जनवरी को कहा कि प्रश्न-पत्र में भील जनजाति से सम्बन्धित यह मामला दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रश्न पत्र में सम्बन्धित गद्यांश रखे जाने के पीछे किसी की भी कोई दुर्भावना नहीं थी। यह चूक कैसे हुई और इसे दुरुस्त कैसे किया जा सकता है, हम इसकी जाँच कर रहे हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि उक्त सम्बन्धित प्रश्न-पत्र में उल्लेखित समुदाय विशेष के सम्बन्ध में किसी प्रकार का दुष्चित्रण करना एवं आपराधिक प्रवृत्ति, गैर वैधानिक तथा अनैतिक कामों में संलिप्त बताना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 का उल्लंघन है। साथ ही सांस्कृतिक विविधता में एकता का प्रतीक संविधान की मूल भावना समाजवादी-पंथनिरपेक्ष के िखलाफ है।  ज्ञात हो कि मध्य प्रदेश में भील जनजाति की जनसंख्या लगभग 60 लाख है एवं देश में लगभग 3 करोड़। भील जनजाति मध्य प्रदेश एवं देश में सबसे बड़ी आबादी वाली जनजाति है। पश्चिमी मध्य प्रदेश के धार, झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन, बड़वानी, देवास और खंडवा ज़िले में सबसे ज्यादा भील जनजाति का बसाहट है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री बाला बच्चन, वनमंत्री उमंग सिंघार, नर्मदा घाटी विकास एवं पर्यटन मंत्री सुरेंद्र सिंह बघेल समेत दो दर्जन से अधिक विधायक-सांसद भील जनजाति से हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 12 जनवरी 2020 को आयोजित मध्य प्रदेश राज्य सेवा परीक्षा 2019 के प्रारम्भिक परीक्षा में भील जनजाति के सम्बन्ध में पूछे गये प्रश्नों को लेकर मुझे काफी शिकायतें प्राप्त हुई हैं। इसकी जाँच के आदेश दे दिये गये हैं।

कमलनाथ,

मुख्यमंत्री (मध्य प्रदेश)

भील समाज पर प्रदेश शासन के प्रकाशन पर अशोभनीय टिप्पणी से आहत हूँ। अधिकारी को तो सज़ा मिलना ही चाहिए, परन्तु मुख्यमंत्री को भी सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए; आिखर वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इससे अच्छा संदेश जाएगा।

लक्ष्मण सिंह,

विधायक (चाचोड़ा, ज़िला- गुना, मध्य प्रदेश)

रंजिश की सियासत का शिकार शहर

विधानसभा चुनावों के करीब 11 महीने बाद दिसंबर, 2019 में राजस्थान के कोटा शहर में 100 नवजात शिशुओं की मौत को लेकर देश भर में जिस तरह ज़बरदस्त सियासी कोहराम मचा, क्या उसके पीछे कोई बड़ी राजनीति थी? कोचिंग की लाइफ लाइन कहा जाने वाला यह शहर करीब एक पखवाड़े तक ऐसा अखाड़ा बना रहा, जहाँ हर कोई अपनी राजनीति चमकाने पर तुला था। गहलोत सरकार पर तमाम तरह की लानत-मलामत बरस रही थी। केन्द्रीय नेतृत्व के निर्देश पर कोटा पहुँची लॉकेट चटर्जी, कांता कर्दम तथा जसकौर मीणा समेत तीन सांसदों की टोली मुख्मयंत्री गहलोत को असंवेदनहीन ठहराने पर तुली थी कि राजस्थान में बच्चों की माँओं के आँसू निकल रहे थे और मुख्यमंत्री झारखंड के जश्न में मस्त दिखे। पूरा तमाशा इस बात को साबित करने पर टिका हुआ था कि अस्पताल में किसी तरह के इंतज़ाम ही नहीं हैं। बच्चे अकाल मौत पर रहे हैं और व्यवस्था बुरी तरह छीज रही है।

राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए प्रियंक कानूग की अगुआई में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयेाग भी बदइंतज़ामी की घुसपैठ टटोलने में जुटा रहा। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम भी अपने तरीके से अस्पताल की बदहाली को नाप रही थी। उधर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला दिल्ली में केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कृयाण मंत्री हर्षवद्र्धन तथा केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव प्रीति सूदन समेत उच्चाधिकारियों के साथ ताबड़तोड़ बैठकें कर अपने कोटा संसदीय क्षेत्र के अस्पताल में नवजात शिशुओं की असमय मौत पर चिन्ता जताते हुए सारी व्यवस्थाओं की समीक्षा करने पर दबाव डाले रहे थे। शक-शुबहा में सेंध लगाकर ‘ब्रेकिंग न्यूज’ निकालने की जुगत में तकरीबन सभी खबरिया चैनलों के नुमाइंदे, अस्पताल की सरहद पर मौज़ूद थे। खबरों में हर रोज़ अस्पताल के कथा सूत्र नये सिरे से खुल रहे थे। अस्पताल की खामियों के छोटे-से-छोटे मुद्दों को समेटते कथा सूत्र घर-आँगन, सडक़ों, बाज़ारों और शहरों को पार करते हुए हर ब्रेक के साथ सरकार को कटघरे में खड़ा करते जा रहे थे। प्रदेश में नौनिहालों की अकाल मौतों की घटना कोई नयी नहीं थी। इसका तथ्यगत इतिहास भी उपलब्ध है। सूत्रों का कहना है कि 2.01। में वसुंधरा सरकार के दौरान कोटा और बांसवाड़ा तो बच्चों की असंख्य मौतों का गवाह रहा है। लेकिन केन्द्र सरकार हिली तक नहीं। ऐसी घटनाएँ देश के अन्य हिस्सों में भी उभर रही थी। इसी दिसंबर में गुजरात के राजकोट में 111 और अहमदाबाद में 85 नवजात बच्चों ने दम तोड़ दिया। लेकिन किसका दम खुश्क हुआ? अलबत्ता कहानी कोटा की ही रोमांचक बनी। विश्लेषकों का कहना है कि आिखर क्यों केन्द्र सरकार ने अपने ही मुख्यमंत्री रूपाणी से जवाबतलबी तक नहीं की। अस्पताल की कथित समग्र असफलता का रिपोर्ट कार्ड चाहे जो रहा हो, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस छद्म युद्ध के ज़रिये केन्द्र सरकार की मंशा गहलोत सरकार को घेरने की थी। सूत्रों का कहना है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व रविवार 22 दिसंबर को जयपुर में गहलोत द्वारा सीएए के िखलाफ निकाले गये मार्च से सख्त खफा था  और उन्हें ‘संवेदनहीन मुख्यमंत्री’ साबित करने पर तुला था। कोटा में नौनिहालों की अकाल मौत ने भाजपा नेतृत्व को अनायास ही यह मुद्दा थमा दिया। ‘जाँच की इस सियासत’ में अस्पताल बंदोबस्त में बेशक कोई मज़बूत साक्ष्य नहीं मिले; लेकिन जो मिले वो रुटीन वाले थे और देश के हर अस्पताल में आम तौर पर पाये जाते हैं। इनकी चुभन देश के हर चिकित्सा केन्द्रों में महसूस की जा सकती है। लेकिन खबरिया चैनलों की अंधाधुंध पटाखेबाज़ी ने राज्य सरकार का दामन मैला करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। सनद रहे कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम का रिपोर्ट कार्ड बेशक सरकार को तसल्ली देने वाला था कि बच्चों के इलाज को लेकर हमें किसी तरह की लापरवाही नहीं मिली। अलबत्ता इंटेसिव केयर में स्टॉफ ओर डॉक्टरों की कमी राज्य सरकार का मुद्दा है।

चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि शिशुओं का स्वास्थ्य और उनकी मृत्यु दर हर प्रदेश में चिन्ता का सबब रही है। सुधारों की ज़रूरत की समीक्षा करते हुए उन्होंने कहा कि अस्पतालों में पर्याप्त जीवन रक्षक उपकरण उपलब्ध हों। कॉलेज अस्पतालों में आने वाले सभी गम्भीर शिशुओं को फौरन वेंटीलेटर मिले। बच्चों केा अस्पताल में कतार से मुक्ति मिले। अपाइंटमेंट नम्बर का डिजिटल डिस्पले सिस्टम शुरू किया जाए और उपचार अथवा जाँच में एक से अधिक दिन की वेटिंग होने पर वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों की मौत के ऑडिट से ही खामियों से इत्तिफाक हो सकता है। यह बेहतर पड़ताल पर ही निर्भर है। अगर इस मुद्दे को निगहबानी में रखा गया होता, तो गफलत की ज़िम्मेदारी निजी अस्पतालों पर भी हो सकती थी। करीब 55 बच्चे तो मरणासन्न स्थिति में निजी अस्पतालों ने ही जे.के. लोन अस्पताल को रेफर किये थे। क्या निजी अस्पतालों के पास सरकारी अस्पताल के मुकाबले बेहतर उपकरण नहीं थे? उधर मीडिया विश्लेषकों की मानें तो भारत में बीमार स्वास्थ्य क्षेत्र को सेहतमंद बनाने के लिए राजकाज और कायदे कानून की मरम्मत ज़रूरी है। विश्लेषकों का कहना है कि नागरीय सुविधाओं से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों सेहत, सडक़ और शिक्षा, तीनों ही सबसे बड़ी त्रासदी सुधारों का अधूरापन है। इन स्थितियों में असगंतियों को अगर कम नहीं आँका जा सकता, तो क्या इन पर सियासी कोहराम मचाया जाना चाहिए? जबकि विसंगतियाँ ही तो विवादों का परनाला खोलती हैं। कोटा स्थित जे.के. लॉन अस्पताल के मुद्दे को लेकर अगर सियासत की लपटें उठीं, तो क्या इसकी वजह यहीं नहीं थी? लेकिन ऐसा क्यों कर हुआ कि सुॢखया बटोरने की आरजू में सरकार के ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का ही नक्कारखाना गूँज उठा और उन्होंने यह कहकर लपटों को हवा दे दी कि ऐसे संज़ीदा मामले में ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए? उनका यह कौशल खामियों की दुरुस्ती की तरफ लौटने की बजाय ‘होनी-अनहोनी’ का ठीकरा चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा के सिर पर फोडऩे जैसा था।’ विश्लेषकों का तो यहाँ तक कहना था कि पायलट ने बेशक रघु शर्मा को निशाने पर लिया था। लेकिन कुल मिलाकर उनका स्थायी भाव गहलोत गवर्नेंस को खोखले वादों वाली मशीन बताने का छद्म संकेत था। प्रश्न है कि सरकार को सवालों से वेधने के लिए पायलट मृतक शिशुओं के घरों तक भी पहुँचे। मीडिया विश्लेषक प्रांजल सिसोदिया कहते हैं कि क्या यह सरकार को और वेधने की कोशिश नहीं थी? लेकिन केन्द्रीय दल की रिपोर्ट और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा दोनों के सुर एक ही थे कि नवजात शिशुओं की मौत मुख्य रूप से वार्डों के टूटे खिडक़ी दरवाज़ों से दािखल होते सर्द हवाओं के सनसनाते थपेड़ों से हुई। हालाँकि, सुरक्षा उपकरणों की कमी भी एक बड़ी वजह थी। नतीजन रघु शर्मा को खुलकर बोलने का मौका मिला गया कि  अस्पताल में खिड़कियों टूटी पड़ी थी। सिवरेज का पानी आ रहा था। यह काम डॉक्टर तो करेगा नहीं। यह काम तो सार्वजनिक निर्माण विभाग का है। हम चिट्ठियाँ लिखते रहे, लेकिन निर्माण विभाग ने इमारत के दरकने के दर्द को अनसुना कर दिया। हम तो अपनी ज़िम्मेदारी ले रहे थे। उन्हें भी तो अपनी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। यह महकमा तो सचिन पायलट के पास है। वे अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर क्यों रहे हैं? इस अलाव में हाथ तापने के लिए काठ की हाँडी भी चढ़ी। जब दो भाजपा विधायकों अशोक डोगरा और चंद्रकांता मेघवाल ने अस्पताल की व्यवस्था में सुधार के लिए विधायक कोष से पाँच लाख देने की घोषणा की। क्या इस पर विश्वास किया जाना चाहिए था? आिखर दोनों बूंदी के विधायक हैं। क्योंकर कोटा में अपनी दरियादिली दिखा सकते थे? जनता क्या इस सियासी पैंतरे पर आँखें मूूँदकर भरोसा कर लेगी? लेकिन राजनीति चमकाने के खुन्नसी मिजाज़ के हवाले होकर जिन लोगों ने कोटा पर कालिख पोतने का काम किया, उन्हें कोई क्यों माफ करेगा? ऐसे मामलों में रफू-पैबंद नाकाफी होते हैं। बवाल पैदा करने वाले तो खिसक लिए, लेकिन भुगतना तो कोटा को ही है।

धारीवाल न थे तो मौका चुना

ताकत, मौका और मनमानी का गठजोड़ सबसे बड़ा खतरा कहा जाता है। सियासत इसको पोसती है। यह गठजोड़ भरोसे को तोडक़र भ्रम की सृष्टि करता है। यह रंज़िश की राजनीति को सर्वशक्तिमान बना देता है। इसके साये में पैदा होने वाले कॉकरोच उसी ठोर को डसते हैं, जहाँ वो रहते हैं। राजनीति विश्लेषकों का कहना है कि कोटा में नवजात मौतों को लेकर ‘झूठ-सच’ के जितने बगूले उठे? उसकी जड़ों में ताकत, मौकों और मनमानी के गठजोड़ का मट्ठा डला हुआ था। राज्य सरकार में कद्दावर मंत्री शान्ति धारीवाल की गैर-मौज़ूदगी शोलों को हवा देने में मुफीद साबित हुई। पारिवारिक वैवाहिक उत्सव के चलते धारीवाल आते, तो कैसे आते? लेकिन मनमानी और ताकत की मांसपेशियाँ फुलाने वालों के लिए यह अचूक मौका था। इस बवंडर के सूत्रधारों की बेचैन निगाहें नवजात मौतों पर संताप को लेकर नहीं थी। दरअसल, उन्हें त्रासदी की ओट लेकर सियासत करनी थी। विश्लेषकों का कहना है कि अगर धारीवाल कोटा में होते अथवा होने की स्थिति में होते, तो यहाँ गुमराह राजनीति के खिलौनों की मजाल नहीं होती…! लेकिन कोटा आकर अस्पताल बंदोबस्त का दौरा करते हुए धारीवाल की नसीहत चतुर-सुजान राजनेता सरीखी कही जाएगी कि राजनीति तो चलती रहती है। लेकिन लापरवाही से किसी की मौत नहीं होनी चाहिए। ये शब्द अस्पताल प्रबंधन में गले में ज़बरन ठूँसे गये अपराध बोध को मिटाने में तो काफी से कहीं ज्यादा ही माने जाएँगे।

प्रतिरोध पर उतरे नौजवान और औरतें

उस बड़े नाले के किनारे बनी है, 40 फुटा सीमेंटेड सडक़। इस सडक़ को 13-ए शाहीन बाग के रूप में भी जाना जाता हैं। इसी सडक़ पर तकरीबन सवा महीने से तना हुआ है एक फटा-पुराना शामियाना। इस शामियाने के अन्दर बना है एक स्टेज। स्टेज की दीवार पर लगे पर्दे पर कई चित्र हैं, जो आज़ादी की लड़ाई के सपूतों के हैं। शामियाने में अंदर बिछी है एक दरी। हर रोज़ दोपहर बाद से देर रात तक अधेड़ों और नौजवानों की निगरानी में बड़ी तादाद में बैठी नज़र आती है। स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ, शादीशुदा नवयौवना, प्रौढ़, अधेड़ हो रही महिलाएँ और बच्चे। पूरे समय उस स्टेज पर ये सभी अपनी-अपनी बात रखते हैं; नारे लगाते हैं।

लेकिन अब दिल्ली के इस शाहीन बाग में सवा महीने से चल रहे इस धरने-प्रदर्शन से कानून व्यवस्था देखने-सँभालने वाले हुक्मरान बेइंतहा परेशान हैं। क्योंकि, इस प्रदर्शन की गूँज अब पूरे देश में है। हर छोटे-बड़े शहर में घरों से बाहर आकर महिलाएँ इस धरना-प्रदर्शन में हिस्सा ले रही है। उनका पहनावा किसी खास धर्म की ओर इशारा भले करता हो, पर उनके साथ दूसरी महिलाएँ भी हैं, जो उनके साथ है। इन सबके साथ जुड़े हैं कॉलेजों में पढऩे वाले नौजवान।

देश के संविधान को बचाने और उसे अमल में लाने की अपील कर रहे इन प्रदर्शनकारियों से अब शाहीन बाग को खाली कराने के लिए विरोधी और पुलिस कानूनी तौर पर कमर कस चुके हैं। दिल्ली पुलिस को अगले तीन महीने तक राष्ट्रीय सुरक्षा कानून से लैस कर दिया गया है। इसके तहत वह किसी को भी  गिरफ्तार कर साल भर तक जेल में रख सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी पुलिस को सलाह दी है कि वह इस शान्तिपूर्ण धरना-प्रदर्शन से सडक़ खाली कराने के लिए समुचित कार्रवाई करें। युवक-युवतियाँ, महिलाएँ और बच्चे जब प्रतिवाद की राह लेते हैं, तब पूरे समाज में चिन्ता होती है। बिना विश्वविद्यालय की अनुमति के जामिया मिल्लिया इस्लामिया में दिल्ली पुलिस के जवानों का घुसना छात्रावासों में घुसकर तोडफ़ोड़, आगजनी और पुस्तकालय में बैठे छात्र-छात्राओं को पीटना आदि बर्रे के छत्ते को छेडऩा ही माना जाएगा। इसके िखलाफ जामिया बस्ती की महिलाओं और अधेड़ों ने अपनी एकजुटता दिखायी।

इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पुलिसकॢमयों को कहा गया था कि वह छात्रावासों की ओर न जाएँ। लेकिन वे गये और वहाँ उन्होंने तोडफ़ोड़ की। अपनी बढ़ी हुई फीस के मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू के छात्र कई दिन से विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन वहाँ दिल्ली पुलिस बस तमाशा देखती रही। जब उसे विश्वविद्यालय के अन्दर आने की अनुमति हासिल मिली, तब तक बाहर से नकाब लगाकर घुसे आसामाजिक तत्त्व छात्र-छात्राओं की पिटाई और तोडफ़ोड करके बाहर जा चुके थे। ये असामाजिक तत्त्व अब तक गिरफ्तार नहीं हुए हैं। मामलों की जाँच जारी है।

5 जनवरी की शाम के धुँधलके से रात 9:30 बजे तक बाहर से आये नकाबपोश जेएनयू परिसर में हावी रहे। जेएनयू छात्रसंघ की चुनी हुई प्रेसिडेंट आईशी घोष के सिर, पीठ और बाँह में खासी चोटें लोहे की रॉड्स और हॉकी स्टिक्स की मार से आयी हैं। छोटे कद की दुबली-पतली, आईशी ने संवाददाताओं से कहा-‘मैं डरती नहीं। हिंदू राष्ट्रवाद की राह पर देश को धकेलने वालों से मैं नहीं डरती। आप हमें पीटिए, फिर भी हम आपका मुकाबला करेंगे। पीछे नहीं हटेंगे।’

आज आईशी घोष, देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों और 120 शहरों में चल रहे महिलाओं-बच्चों के प्रदर्शनों में अहम चेहरा हैं। शाहीन बाग में लोग सवा महीने से जमा हैं। यहाँ महिलाएँ अपना नाम बताती हैं भारतीय। इनका पता है भारत। ये और इसके माता-पिता भी भारत मे ही जन्में। इनकी पढ़ाई-लिखाई और परिवरिश भी भारत में ही हुई।

‘देखते हो उस बुजुर्ग को। मंच पर सजे फेम मेें। इस चेहरे को ध्यान से देखो। वे गाँधी बाबा हैं।’ उनके सत्याग्रह आंदोलन में मेरे बाबा ने हिस्सा लिया था। मंच पर ही दूसरी तस्वीर है। देखो, वे हैं डॉ. भीमराव आंबेडकर। इन्होंने भारत में रहने वाले तमाम धर्म-समाजों को सामान अधिकार भारत के संविधान में दिया।’ उनका कहना है कि हम भारत के लोग हमारी निष्ठा संविधान के प्रति हैं। आज हमसे ही पूछा जा रहा है। देश की आज़ादी के सात दशक के बाद आज हमारी देश भक्ति, नागरिकता पर सवाल उठाये जा रहे हैं। अपने सात पुश्तों का इतिहास तो हमारी ज़ुबान पर है; लेकिन कुर्सी पर बैठे लोग अपनी तीन पुश्त भी नहीं गिना सकते।

वे हमसे कागज़ सबूत माँगते हैं। वे डिटेंशन सेंटर्स में डालने की बात करते हैं। लेकिन यह भी नहीं बता सकते कि आज़ादी की लड़ाई में इनके कौन-कौन अंग्रेजों से लड़े थे?’ अपने सिर पर रखी टोपी और सिर कान ढके मफलर से अपने गले को लपेटते हुए 90 की उम्र पार करती एक बुजुर्ग महिला ने लम्बी साँस ली। उन्होंने कहा कि सवा महीने से हम बैठे हैं; कोई नहीं आया। अलबत्ता कारिंदे धमकाने ज़रूर आते रहे…, लौटते गये। वे बताएँ कि भारत क्या उनका ही है?

21वीं सदी के दूसरे दशक की जनवरी में भारत के हर छोटे-बड़े शहर, राजधानी या जनपद में आज महिलाएँ, बच्चे और युवा सीएए, एनआरसी, एनपीआर के िखलाफ एक माह से ज्यादा समय से अपना व्यापक प्रतिवाद जता रहे हैं। वे घरों से बाहर, पार्क में, सडक़ों पर खेल के मैदानों में है। आज़ादी की लम्बी लड़ाई के दौर में भी शायद ऐसा न तो हुआ, और न कभी सुना गया। दिल्ली के शाहीन बाग में, मुम्बई में आज़ाद पार्क, गेटवे ऑफ इंडिया, वानखेड़ा स्टेडियम में, चेन्नई में कई जगह विशाल प्रदर्शन, बंगलूरु के टाउनहाल में, हैदराबाद की सेंट्रल यूनिवॢसटी में, उस्मानिया वगैरह में, कोलकाता के धर्मतला में, जादवपुर विश्वविद्यालय में, बोलपुर के शान्तिनिकेतन में, अमदाबाद में, वाराणसी में, इलाहाबाद में, पटना में, भोपाल में, जयपुर में, रांची में, और कहाँ-कहाँ नहीं- स्कूलों, कॉलेजों, घरों-बस्तियों से युवक-युवतियाँ, महिलाएँ-पुरुष, बुजुर्ग और बच्चे बाहर आये। उन्होंने अपना विरोध जताया। यह विरोध सिर्फ धरना-प्रदर्शन ही नहीं था। लोगों ने शान्तिपूर्ण तरीके से जुलूस निकाले। कविताएँ पढ़ीं, कविताओं को स्तर दिया, नाचे, गाना-बजाना किया, सडक़ों पर ग्रैफिटी में अपनी नाराज़गी जताते हुए कैरीकेचर उकेरे। रंगों में बताया कि हम हिन्दुस्तानी हैं। भारतीय हैं। हम एक हैं। समुदाय,  जाति, भाषा, धर्म निहायत हमारे अपने हैं। राजनीति करके हमें बाँटों नहीं। यह  प्रक्रिया जबरदस्त दिखी।

हालाँकि इस एकता को तोडऩे के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जादवपुर विश्वविद्यालय और शान्ति निकेतन में लाठियाँ बरसा कर, तोडफ़ोड़ करके, मार-पीटकर शासन प्रशासन व्यवस्था सँभालने वाले लोगों के संगठनों, दलों, एजंसियों से जुड़े लोगों ने खूब चोट पहुँचायी। फिर उसके बाद तो पूरे देश के युवा एकजुट हुए। अपने-अपने इलाकों से वे अपने घरों से बाहर आये। घरों से पहली बार महिलाएँ अपने बच्चों के साथ निकलीं। हर शहर के टाउनहाल, पार्क, सब्ज़ीमंडी, सडक़ पर इकट्ठे होकर उन्होंने अपना विरोध जताया।

यह सही है कि देश में बहुसंख्यक हिन्दू हैं। लेकिन इसमें खासी विविधता है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग रीति-रिवाज़ और खान-पान हैं। इस देश में अल्पसंख्यकों मे मुसलमानों की लगभग 20 फीसदी आबादी है। इन सारी विविधताओं, रंगों के साथ बना और विकसित हुआ है अपना भारत। यहाँ पर मुस्लिम आबादी अल्पसंख्यक भले हो; लेकिन दुनिया के कई मुस्लिम देशों की आबादी की तुलना में सबसे ज्यादा है।

देश में भारतीय जनता पार्टी और इसके घटकों की नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस मई, 2019 मे दोबारा सत्ता में आयी। आते ही इसने तीन तलाक पर अमल किया। मुस्लिम बहुल राज्य कश्मीर का राज्य का दर्जा घटाया। उसे केंद्र शासित राज्य का दर्जा प्रदान किया। 4 अगस्त, 2019 से राज्य में इंटरनेट, मोबाइल आदि पर भी रोक लग गयी। अब तकरीबन 168 दिनों के बाद वहाँ बैंङ्क्षकग, व्यापार, अस्पताल आदि को टेलिफोन, इंटरनेट सेवा मिली है। गृहमंत्री ने वह भी प्रायोगिक तौर पर कुछ क्षेत्रों को ही। सारी दुनिया कश्मीर पर चिन्ता जता रही थी।

भारत में पूरे देश में नागरिकता रजिस्टार बनाने के अपने इरादे के तहत सीएए, एनपीआर और एनसीआर की पेशकश हो गयी। देश की केंद्र सरकार ने यह बताया कि पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जिन अल्पसंख्यकों को प्रताडऩा झेलनी पड़ी है, वे आवेदन करें तो उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। हालाँकि, नागरिकता जिन्हें देने की बात की गयी उनमें मुसलमान शामिल नहीं किये गये। इस कानून से पूरे देश में नागरिकता मुद्दे पर धरने-प्रदर्शन शुरू हुए।

एक महिला ने कहा कि आज जो ज़रूरी चीज़ें हैं, उन पर तो बात ही नहीं की जाती। इतनी बेरोज़गारी है, महँगाई है; लेकिन कभी उस पर बात नहीं होती। बात धर्म की होती है। लोगों को बाँटने की होती है। देश भूमि की होती है। हर मुद्दे की जड़ पड़ोसी देश को बता देते हैं। आज तो ज़रूरी है कि भारत को मज़बूत बनाया जाए। धर्म के आधार पर किसी को डिटेंशन कैम्प में न डाला जाए। आज हम सब इसीलिए सबके साथ एक हैं, जिससे हमें तोड़ा न जा सकें। हमारी ज़रूरत भूख से लडऩे की है। हम भारतीय हैं। संविधान हमारा मार्ग दर्शक हैं। पटना के सब्ज़ीबाग इलाके में सैकड़ों महिलाएँ धरने पर हैं। वे एनआरसी, सीएए को तबाही का पैगाम बताती हैं। उनका कहना है कि यह मोहब्बत का पैगाम तो कतई नहीं है। हमें आपस में लड़ाने। हमें इकट्ठा करके क्या अरब सागर या हिन्द महासागर में हमें डुबोने का इरादा है। हम सब मिलकर रह रहे हैं, तो रहने तो दो। यह अलगाव क्यों फैलाया जा रहा है? एक कॉलेज में पढ़ रही किशोरी ने कहा कि सबके अपने-अपने अधिकार हैं। हमारे साथ भेदभाव क्यों? क्यों हम साबित करे कि हम यहाँ के नागरिक हैं?

राजनीतिक टिप्पणीकार और प्राध्यापक अजय कुमार सिंह ने कहा कि संविधान में दिये अधिकारों के चलते आज देश के युवाओं और महिलाओं में एक ताकत का भाव है। जिनकी आवाज़ मेें गूँज नहीं थी, आज वह है। शहर-शहर में यह जागरूकता आन्दोलन के तौर पर उभर रही है। वे आज हिन्दू और मुसलमान के घेरों में नहीं है। यह वह लोकतंत्र है, जिसमें महात्मा गाँधी, क्रान्तिकारी आज़ादी की बात करने वाले भगत सिंह और आज़ादी और न्याय की वकालत करने वाले डॉ. आंबेडकर एक साथ हैं। वे संवैधानिक आदर्श की बात करते हैं।

लैंगिक न्याय अभी भी दूर की कौड़ी

दुनिया के कमोवेश सभी देशों के संविधान और कानूनों में महिला-पुरुष को भले बराबर का दर्जा दिया गया हो; लेकिन इसके बावजूद लैंगिक न्याय ज़मीनी हकीकत में नहीं दिखता। महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में नज़रअंदाज़ किया जाना जारी है। ग्रामीण स्तर पर पंचायत के विकास से लेकर विधानसभा और संसद तक, लोगों की बेहतरी के लिए निर्णय लेने की सभी प्रक्रियाओं में, उन्हें 50 फीसदी आरक्षण के बावजूद उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है और यह आरक्षण दिखावा ही लगता है।

ग्रामीण स्तर पर यह आरक्षण इसलिए भी मज़ाक ही लगता है; क्योंकि वहाँ साक्षरता की कमी है। दूसरे पंचायत स्तर पर महिला पदाधिकारी बन भी जाएँ तो भी उसके नाम पर सत्ता की शक्तियों का इस्तेमाल परदे के पीछे से पुरुष ही करते हैं। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आदम और हव्वा को अलग-अलग मान्यताओं और धर्म-सिद्धांतों में अलग-अलग नाम दिये गये हैं। वे मनुष्यों के पहले माता-पिता थे, जिनसे मानव सृष्टि का विकास शुरू हुआ। बाद में अलग-अलग जातियों, धर्मों और समुदायों में समाज विररित हुआ। लेकिन सभी के माध्यम से, महिलाओं ने अपने पूरे इतिहास में मनुष्यों की वृद्धि, समृद्धि और प्रगति को तराशा है। माँ, बेटी, बहन, पत्नी और सभी से ऊपर घर निर्माता के रूप में महिलाओं की भूमिका व्यापक रही है; क्योंकि महिलाएँ पुरुषों पर प्रधानता का आनन्द लेती हैं। हालाँकि पुरुष-महिला एक साथ दुनिया भर में सर्वांगीण विकास के अद्भुत संयोजक हैं।

प्रतिनिधित्व में कमी

महिलाओं के इस तरह के अद्भुत गुणों के बावजूद, कमोवेश सभी स्तरों पर उनका प्रतिनिधित्व अपर्याप्त रहा है। आज भी कामकाजी महिलाओं से भी भेदभाव किया जाता है। कई जगह तो यह तक देखा गया है कि वरिष्ठ महिला कर्मचारी का भी सम्मान नहीं किया जाता। पीछे से उन पर फब्तियाँ कसी जाती हैं।

जन्म से ही शुरू हो जाता भेदभाव

महिलाएँ जन्म से ही लिंग-भेदभाव की शिकार हो जाती हैं। बच्चियों को जन्म लेते ही मार दिया इस बात का उदाहरण है कि उनके जीवन के नींव ही पूर्वाग्रहों और विसंगतियों के आधार पर समाज में डाली जाती है।

बचपन से ही लोगों के दिमाग में जड़ की तरह बैठी सोच को बदले बिना इस स्थिति को नहीं बदला जा सकता, भले कागज़ पर वॢणत कानून में और संविधान में भी आप लैंगिग समानता की जितनी मर्जी बातें कर लें, जो धरातल पर कहने भर को ही हैं।

कार्यालयों में पुरुष पितृसत्ता

बढ़ती साक्षरता, सूचना प्रसार और ज्ञान भण्डार के साथ वैश्विक भारत में सार्वजनिक प्रशासन के सभी क्षेत्रों; जैसे- शिक्षा, सरकारी सेवाओं, कानून लागू करने वाली एजेंसियों जैसे पुलिस, सुरक्षा बलों, सशस्त्र बलों, न्यायपालिका, कॉर्पोरेट सेक्टर, व्यापार, वाणिज्य, उद्योग आदि में महिलाओं के िखलाफ सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों को दूर करने और लैंगिक समानता स्थापित करने की प्रक्रियाएँ जारी हैं। लेकिन पितृसत्ता का वर्चस्व की राह का रोड़ा बना हुआ है। पुरुष नहीं चाहते कि उनकी सत्ता के मैदान में महिलाएँ हिस्सेदार बनें। यही कारण है कि सार्वजनिक सेवाओं, पुलिस, सशस्त्र बलों, न्यायपालिका और कॉर्पोरेट क्षेत्र के निदेशक मंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अपर्याप्त रहा है। संक्षेप में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नगण्य रहा है, जिससे लैंगिक न्याय अभी दूर की कौड़ी दिखता है।

फलीभूत नहीं हो पा रही पहल

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की विधानसभाओं, संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की प्रशंसनीय पहल इसलिए भी फलीभूत नहीं हो पा रही, क्योंकि पुरुष कानून बनाने और सम्बन्धित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अपनी प्रधानता को खत्म नहीं होने देना चाहते; अन्यथा लिंग न्याय के प्रति यह सोच मील का पत्थर साबित होती। संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के अनिवार्य 33 फीसदी प्रतिनिधित्व के लिए संविधान संशोधन के लिए कई बार विधेयक संसद में पेश किया गया; लेकिन इसे पारित नहीं किया जा सका।

एक बार विधेयक उच्च सदन (राज्य सभा) में पारित हो गया था, लेकिन यह लोक सभा  में पारित न हो सकने के कारण यह अधर में रह गया। केंद्र की वर्तमान एनडीए  सरकार, जो मनुस्मृति की एक प्रबल समर्थक और इसमें विश्वास रखने वाली सरकार है; व्यापक रूप से महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रही मानी जाती है और शायद ही उसकी  लैंगिक न्याय में कोई रुचि हो। महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ती हिंसा और रेप की घटनाओं और संघ परिवार के लोगों की इसमें सहभागिता और आरोपियों को राज्य मशीनरी की तरफ से बचाने की कोशिशें और उन्हें समर्थन इसका बड़ा उदहारण है।

एकता से मिलेगा हक

सरकार ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है; लेकिन सवाल यह है कि क्या हम वास्तव में कमज़ोर हैं? आम महिलाओं ने बिना किसी राजनीतिक समर्थन के, बिना किसी सामाजिक कार्यकर्ता के, बिना किसी हाथापाई के शहीनबाग में शान्तिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करते हुए ज़बरदस्त एकता दिखायी है। यह केवल एक उदाहरण नहीं है, बल्कि अपनी तरह का अविश्वसनीय कार्य है और यह साबित होता है कि जब मातृत्व की बात आती है, तो महिलाएँ 10 एक्स (तमाम अवरोधों के बावजूद श्रेष्ठता) के रूप में कार्य करती हैं। महिलाओं को समझना होगा कि उनकी एकता से ही लैंगिक समानता का हक उन्हें ्मिल सकता है।

मुझे एक बहुत लोकप्रिय और सच्चे मुहावरे कि ‘उसका स्पर्श एक घर को सुखद एहसास से भर देता है’ की याद आती है। इसलिए हम उनके सत्ता में प्रभावशाली भूमिका में होने की स्थिति में भारत की तस्वीर की कृपना कर सकते हैं। फिर भी, अभी सब कुछ खत्म नहीं है। जिस तरह से महिला शक्ति बढ़ रही है, एक उम्मीद है कि जल्द ही समय आएगा, जब लैंगिग न्याय यथार्थ रूप लेगा और महिलाओं के लिए वह सुखद क्षण होगा। लिंग न्याय मनुष्यों के न्यायसंगत विकास के लिए एक ज़रूरी कारक है। वर्तमान सामाजिक मंथन उम्मीद जगाता है कि लैंगिक समानता को हासिल किया जा सकता है।

झीलों के आईनों में चेहरा देखता शहर

उदयपुर कला और संस्कृति की जीती-जागती मिसाल है। इसे झीलों का शहर कहा जाता है। अतीत के अभिशाप को ढोता हुआ यह शहर वर्तमान में झीलों के आईनों में अपना चेहरा देखता रहता है। यह भी कह सकते हैं उदयपुर अपने आँचल में मंदिर, दुर्ग और दर्शनीय स्थलों को समेटे हुए समृद्धि, संस्कृति और प्राकृतिक कला की मिसाल है। बड़ी बात यह है कि यहाँ सांस्कृतिक विरासतों को सहेजने के लिए शासन-प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। राजस्थान का यह एक ऐसा अनूठा शहर है, जिसने पुरातन सभ्यता, संस्कृति को छोड़े बिना आधुनिकता से ऐसा अनूठा तालमेल बिठाये रखा है कि इस शहर की लोक संस्कृति के मोह में सैलानी खुद-ब-खुद बँध जाते हैं।

विगत वैभव की साक्षी अनेक इमारतें इस शहर में आज भी मौज़ूद है। शायद इतनी एतिहासिक इमारतें किसी और शहर में नहीं होगी। आकर्षक भवाई, घूमर, कच्ची घोड़ी, कालबेलिया और तेरह ताली जैसे नृत्य उदयपुर की समृद्ध सांस्कृतिक निधि के रूप मेें पूरे विश्व में विख्यात हैं। इसका वर्तमान अद्भुत है, तो अतीत के अवशेष भी गहरी उत्कंठा जगाते हैं। 20वीं सदी के अवशेषों के अध्ययन को समझें तो कभी यह शहर आहार नदी के तटीय क्षेत्र में बसा था। यहाँ दो तरह की प्रजातियों के अवशेष पाये जाते हैं -एक भील और दूसरे राजपूत। देसी आदिवासियों की मूल जन्म स्थली इस क्षेत्र में फैली-पसरी अरावली पर्वत मालाओं को ही माना जाता है। बाद में इस क्षेत्र में भील विलुप्त तो नहीं हुए, किन्तु राजपूतों का आधिपत्य होता चला गया।

इतिहास

उदयपुर को महाराणा उदय सिंह ने 1559 ईसवीं में बनास नदी के किनारे दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र में स्थित गिरवा उपत्यकाओं के उपज़ाऊ क्षेत्र में बसाया था। उदयपुर मेवाड़ राजवंश की नयी राजधानी के रूप में स्थापित हुआ। गिरवा को चित्तौड़ राजवंश की वजह से खास पहचान मिली। चित्तौडग़ढ़ तो वैसे भी आक्रांताओं के हमले के कारण चर्चित रहा है। नवंबर 156। में मुगल शासक अकबर ने चित्तौड़ दुर्ग पर कब्ज़ा कर लिया था। कालांतर में चित्तौड़ महरानी पद्मिनी को लेकर भी चर्चित रहा। 16वीं शताब्दी में मेवाड़ के शासक उदयसिंह द्वितीय ने सुरक्षित स्थान को राजधानी बनाने के उद्देश्य से कुंभलगढ़ को चुना। किन्तु उदयपुर के प्रति उनका लगाव यथावत् बना रहा। उन्होंने उदयपुर को शत्रुओं के हमलों से बचाये रखने के लिए छ: किलोमीटर लम्बी दीवार बनवायी, जो शहर पनाह की तरह थी। इस दीवार में क्रमश: सूरजपो, चाँदपोल, हाथीपोल, अम्बापोल और उदयपुर के नाम से सात दरवाज़े बनवाये गये। इसे आज पुराने शहर के नाम से जाना जाता है। उदयपुर हमेशा मुगल शासकों की निगाहों में खटकता रहा। महाराणा प्रताप और दिल्ली के मुगल शासक अकबर के बीच हल्दीघाटी का युद्ध यहीं हुआ था। अलबत्ता पहाडिय़ों से घिरा हुआ क्षेत्र होने के कारण सशस्त्र मुगल सेनाओं के लिए इस पर सीधे हमलावर होना सम्भव नहीं हुआ। उदयपुर राजस्थान में अरावली पहाडिय़ों के दक्षिणी ढलान पर स्थित है। इसका पठारी दक्षिणी क्षेत्र पहाड़ों और सघन जंगलों से भी घिरा हुआ है।

कहा जाता है ‘झीलों का शहर’ 

झीलों के शहर के नाम से मशहूर यह शहर एक विशिष्ट जलीय पद्धति से परस्पर जुड़ा हुआ है, जो भूगर्भ जल का संतुलन बनाये रखता है। झीलों की बहुलता से यहाँ कृषि और उद्योग समुन्नत स्थिति में हैं। पेयजल की भी यहाँ कोई समस्या नहीं। शहर की तीन झीलें तो ऊपरी केचमेंट क्षेत्र में हैं; जबकि छ: झीलें निगम क्षेत्र में आती है। झीलों के खूबसूरत नज़ारों ने इसे पर्यटन के क्षेत्र में बढ़ावा देने में मदद दी है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहाँ पर्यटकों के लिए कोई समस्या नहीं है। इसके अलावा रोज़गार की भी भरपूर सम्भावनाएँ हैं।

कहाँ क्या है मशहूर?

उदयपुर की पिछोला झील का पूर्वी तटीय क्षेत्र तो ऐतिहासिक इमारतों से घिरा हुआ है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार त्रिपोलिया के नाम से जाना जाता है। त्रिपोलिया में प्रवेश के साथ ही शुरू हो जाते हैं- बगीचे और उत्कृष्ट मेहराबों वाले महल मालिए। यहाँ एक म्यूजियम बना दिया गया है। इसमें सज़ावटी फर्नीचर के अलावा पुराग्रंथ तथा दुर्लभ पेंटिंग उपलब्ध है। पिछोला झील में ही टापू की तरह बना हुआ है- लेक पैलेस। राजवंश के लोग अपनी गर्मियाँ यहीं बिताते थे। सफेद संगमरमर का बना हुआ लोक पैलेस अब फाइव स्टार होटल में बदल गया है और ताज होटल रिसोर्ट के बैनर तले चल रहा है। जग मंदिर भी पिछोला झील में टापू की तरह दिखाई देता है। यहाँ लेक गार्डन पैलेस के नाम से प्रख्यात इमारत का निर्माण मेवाड़ राजवंश के तीन महाराणाओं ने किया था। राज परिवार के लिए यह भी ग्रीष्मकालीन मौसम की तरह आरामगाह था।

सज्जनगढ़ के नाम से प्रख्यात इमारत राजपरिवार के लिए बरसाती मौसम बिताने की बेहतरीन ठिकाना थी। इसे मानसून पैलेस भी कहा जाता है। सज्जनगढ़ एक ज्योतिषीय भवन के रूप में विख्यात रहा है। प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव को समर्पित केसरिया जी मंदिर वास्तुकला का अद्भुत वैभव दर्शाता है। काले पत्थर से निर्मित भगवान ऋषभ देव की प्रतिमा अनूठी और ओजपूर्ण है। हिन्दुओं का अराधना स्थल जगदीश मंदिर शहर के बीचों बीच बसा हुआ है। इसका निर्माण महाराणा जगत सिंह ने किया था। मरू-गुर्जर वास्तुकला के अद्भुत समन्वय की दृष्टि से यह एक अनूठी मिसाल है और सैलानियों को रिझाने का सबसे आकर्षक स्थल। फतह सागर एक कृत्रिम झील है। मूल रूप से इसका निर्माण महाराणा जय सिंह ने करवाया था। किन्तु कालांतर में महाराणा फतह सिंह ने इसमें काफी तब्दीलियाँ करवायी। इसे एक एक्वेरियम यानी ‘सूर्य की आभा से दमकती इमारत’ की संज्ञा दी जा सकती है। सहेलियों की बाड़ी यहाँ का सबसे रमणीक बगीचा है और सैलानियों को सबसे अधिक लुभाने वाला क्षेत्र है। निर्माण का अद्भुत आकर्षण समोये सहेलियों की बाड़ी फुहार छोड़ते फव्वारे, पानी के कुण्ड में खिले हुए कमलदल और संगमरमर से बनी हाथियों की प्रतिमाओ को लेकर पर्यटकों में गहरा रुझान पैदा करता है। मोतीमगरी राजपूत नायक महाराणा प्रताप की स्मृति में बनाया गया है। बुनियादी तौर पर यह एक छोटी-सी पहाड़ी है। यहाँ महाराणा प्रताप की कांस्य प्रतिमा है, तो निकट ही उनके प्रिय चेतक अश्व की समाधि है। नीमच माता का मंदिर श्रद्धालुओं का अटूट सैलाब खींचता रहता है। यह मंदिर फतह सागर पहाड़ी के निकट स्थित है।

कलाकृति का अद्भुत संगम

कभी सिसोदिया राजपूतों की आन, बान और शान रहा उदयपुर विभिन्न कलाकृतियों, नक्काशी की शैलियों और सांस्कृतिक संगठनों के आयोजनों का अद्भुत संगम है। राजस्थान में जिन तीन शहरों में पर्यटकों की सबसे ज्यादा गहमा-गहमी रहती है, उनमें उदयपुर अव्वल नम्बर पर है। इसके तीन बड़े कारण है; पहला- शान्त, सुरम्य और सुरक्षित माहौल; दूसरा-प्रकृति प्रेमियों और इतिहास से लगाव रखने वालों के लिए यह अध्ययन का क्षेत्र और तीसरा- यहाँ अतुल्य सांस्कृतिक वैभव हैं। राजस्थान के सम्पूर्ण सांस्कृतिक वैभव की झाँकी देखनी हो, तो भारतीय लोक कला मंडल उत्कृष्ट संस्थान है। उदयपुर में सैलानियों को सबसे ज्यादा रिझाता है, तो वो है शिल्पग्राम। यहाँ राजस्थान समेत गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र के परम्परागत काष्ठ कला से निर्मित घर बने हुए है। शिल्पग्राम में हर साल आयोजित होने वाला 10 दिवसीय उत्सव अगर किसी ने नहीं देखा, तो उदयपुर में क्या देखा।

हर साल आते हैं हज़ारों सैलानी

उदयपुर को देखने के लिए हर साल हज़ारों सैलानी आते हैं। यह राजस्थान का सबसे पसंदीदा पर्यटन क्षेत्रों में से एक है। यहाँ साल के हर महीने सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है। लेकिन गॢमयों में यहाँ पर्यटकों की खासी भीड़ रहती है। यही वजह है कि यह शहर स्थानीय युवाओं को रोज़गार देने में काफी सक्षम है। साथ ही सरकार को राजस्व भी भरपूर मिलता है। यहाँ पर्यटक सडक़ और रेल मार्ग के ज़रिये पहुँच सकते हैं।

वन्यजीवों की कब्रगाह बनता छत्तीसगढ़

इंसान और जानवर के बीच का सबसे बड़ा फर्क तर्कशक्ति और विवेक का है, ऐसी किंवदंती है। इसे बेहतरीन ढंग से समझाता हुआ एक वीडियो पिछले दिनों वायरल हुआ। काजीरंगा के इलाके से गुज़र रहे कुछ ट्रकों के सामने एक हाथी आ खड़ा हुआ। डरे-सहमे ट्रक वाले हाथी के सामने से गुज़रते और हाथी अपनी सूँड़ उठाकर यह जानने की कोशिश करता कि गन्ना किसमें है? आगे के तीन ट्रकों को निकालने के बाद उसे अंतिम ट्रक में मन-मुताबिक, गन्ना मिल गया। हाथी ने सिर्फ उतना ही लिया जितनी उसे जरूरत थी और जान-माल को नुकसान भी नहीं पहुँचाया।

अगर इसकी जगह इंसान होता, तो क्या यह विवेक दिखा पाता? लालच, लूट और जान लेने के मामले में वह जानवरों से कहीं ज्यादा निर्मम प्रतीत होता है। अब छत्तीसगढ़ को लीजिए। छत्तीसगढ़ अपने पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा वन आच्छादित राज्य है, जहाँ 44 फीसदी वन हैं। लेकिन अब यह वन्यजीवों की कब्रगाह बनता जा रहा है। राज्य में कुछ ही महीनों में अवैध शिकार के दर्जनों मामले हुए हैं। इतना ही नहीं अभ्यारण्यों के जानवर प्यासे भी मर रहे हैं।

चन्द दिनों पूर्व ही कोरबा वनमंडल के केंदई वन परिक्षेत्र में दलदल में फँसे एक हाथी की मौत न केवल विचलित करती है, बल्कि वन विभाग के रवैये पर सवाल खड़ा करती है। ग्रामीणों का कहना है कि 40 घंटे से लगातार दलदल में फँसे रहने और ठंड से हाथी की मौत हो गयी। दूसरी ओर वन विभाग के अधिकारी सफाई दे रहे हैं कि हमने दो जेसीबी लगाकर हाथी को बचाने की कोशिश की थी, परन्तु हाथियों का दल पहुँचने की वजह से रेस्क्यू बीच में ही बन्द करना पड़ा। अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी एसके सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जाँच टीम बनायी है, जो 15 दिन के भीतर जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। पिछले पाँच महीने में 15 से अधिक वन्य जीवों की मौत हो चुकी है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते दुनिया की सबसे लम्बी उम्र की बाघिन शंकरी की मौत पहले ही हो चुकी है। अभी चन्द महीने पहले बालि नामक बाघ भी चल बसा। भिलाई स्ट्रील प्लांट वाले शहर में स्थित मैत्री बाग में महीनों पहले छ: तेंदुओं की ठंड के कारण मौत हो गयी थी। इस मामले में मैत्री बाग प्रबंधन की लापरवाही उजागर हुई थी कि ठंड के बावजूद वन्य जावों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। गुज़रे फरवरी में लमेर में तेंदुए का शव मिला था। सूरजपुर ज़िले में दो जंगली भालुओं की मौत, बिलासपुर स्थित चिडिय़ाघर में एक हिपोपोटेमस की मौत, दुर्ग में एशिया की सबसे उम्रदराज़ बाघिन की मौत, प्रतापपुर में एक हाथी की करेंट लगने से मौत, कोरबा में दलदल में फँसने से हाथी की मौत के अलावा हाल ही में सात तेंदुओं की खाल के साथ पाँच तस्कर गिरफ्तार किये गये हैं। नयी राजधानी में सरकार ने 280 करोड़ की लागत से 326 हेक्टेयर में फैले एशिया के सबसे बड़े जंगल सफारी बनाने का दावा किया है। दूसरी ओर प्राकृतिक अभ्यारण्य सरकारी लापरवाही, भ्रष्टाचार और शिकारियों के शिकार होते जा रहे हैं। अगर आप बतौर पर्यटक छत्तीसगढ़ आ रहे हैं, तो चेता दें कि आप यहाँ बाघ देखने को तरस सकते हैं; क्योंकि जंगलों से बाघ लगभग विलुप्त हो गये हैं। बाघों की हिफाज़त को लेकर छत्तीसगढ़ का वन महकमा कितना संजीदा है, उसकी पोल विभाग के ही आँकड़े खोल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के वाइल्ड एनिमल एंडटी पोचिंग डेटाबेस के आँकड़े बताते हैं कि प्रदेश में पिछले 4 साल में 1। बाघों की खाल बरामद हुई है। ज़ाहिर है यह खाल या तो छत्तीसगढ़ के बाघों की होगी या फिर छत्तीसगढ़ की छूती सीमाओं में बने टाइगर रिजर्व के बाघों की। चौंकाने वाली बात यह है कि शिकारियों के सबसे बड़े पनाहगाह और मुफीद वन मंडल में काँकेर का नाम है, जो मुख्य प्रधान वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी का गृह इलाका माना जाता है। 1। में से 5 बाघों की खाल सिर्फ काँकेर वन मंडल से मिली। आरटीआई एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के सदस्य सचिव को आँकड़ों से अवगत करवाते हुए विस्तृत जाँच करवाने हेतु पत्र लिखा था। इतनी बड़ी संख्या में बाघों व तेंदुओं की खाल बरामद किये जाने पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने कहा कि अगर बाघों और तेंदुओं का शिकार नहीं हुआ, तो उनकी इतने बाघों की खाल कहाँ से आयी? सिंघवी दावा करते हैं कि प्राकृतिक रूप से बाघों और तेंदुओं की मौत होने पर उनकी लाश सडऩे से अच्छी स्थिति में खाल नहीं निकाली जा सकती है। अत: बाघों और तेंदुओं का शिकार ही हुआ है।

गुज़रे विधानसभा सत्र में ही राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कुबूल किया कि बाघों के संरक्षण पर चार साल में (2015—2019 के अंदर) 34 करोड़ से अधिक राशि खर्च की जा चुकी है। आश्चर्यजनक यह कि राशि तो बढ़ती गयी; लेकिन बाघों की संख्या घटती गयी। बकौल वन मंत्री गुज़रे 2006 में 26 बाघों के मुकाबले गुज़रे 2019 तक मात्र 19 बाघ ही बचे थे, जबकि 2014 में राज्य में 46 बाघों के होने पुष्टि की गयी थी। यानी मात्र पाँच साल में ही 2। बाघ गायब हो गये। यह खबर लिखे जाने की एक रात पहले ही धमतरी और राजनांद गाँव से लगे गुरूर के जंगल में एक बाघ देखने की पुष्टि ग्रामीणों ने की है। बाघों की बनिस्बत तेंदुओं के लिए भी राज्य के अभयारण्य सुरक्षित नहीं रहे, खासकर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में तेंदुओं का शिकार धड़ल्ले से जारी है। पिछले 10 वर्षों में करीब 51 तेंदुओं की खाल बरामद की गयी है, यानी औसतन हर साल 5 तेंदुए मारे गये। गुज़रे महीने ही बस्तर के गीदम परिक्षेत्र में तेंदुए की खाल के साथ पकड़े गये सात तस्करों के िखलाफ वन प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा रही है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) अतुल कुमार शुक्ल अवैध शिकार की पुष्टि करते हुए कहते हैं, बीजापुर रोड स्थित बड़े केरला गाँव में चार तेंदुओं खाल ज़ब्त करने सहित सात आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट के बाद वन विभाग ने जाँच शुरू की, तो पाया कि उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में तैनात सीआरपीएफ के जवान, जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं। 201। में एक जंगली भालू की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगा था। महीनों पहले बस्तर के दोरनापाल में भी एक अजगर को मारने का आरोप था; लेकिन सीआरपीएफ के प्रवक्ता मूसा दिनाकरन ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने इसे आत्मरक्षार्थ कार्रवाई करार दिया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक, आईएफएस राकेश चतुर्वेदी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि सीआरपीएफ कर्मियों पर शिकार के आरोप लगते रहे हैं; लेकिन जवानों ने इसे आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाना बताया था। चतुर्वेदी ने कहा कि तत्काल कार्रवाई करने के कोई सबूत नहीं हैं, इसलिए जाँच के आदेश दे दिये हैं। हालाँकि वन्य जीवों का शिकार रोकने के लिए वन मंत्री मोहम्मद अकबर गम्भीर नज़र आते हैं, तभी तो सहायक संचालक स्तर के तीन अफसरों को उन्होंने निलंबित कर दिया है। अकबर कहते हैं, वन्य जीवों का शिकार करने या होने देने का जो भी अपराधी होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। सरकार इस मामले में और भी सख्ती बरतेगी, ताकि शिकारियों और अवैध तस्करी पर रोक लगायी जा सके। वन्य प्राणी संरक्षण के लिए वन विभाग के पास फंड की कमी तो हरगिज़ नहीं दिखती। कैंपा के तहत मिलने वाली राशि 400 करोड़ यूँ ही पड़ी हुई है और पिछले साल का 400 करोड़ भी पड़ा हुआ है, यानी विभाग को 800 करोड़ खर्च करने होंगे आने वाले अप्रैल माह तक। इसके विपरीत एलीफेंट कॉरिडोर और अन्य निर्माण कार्य काम अटके हुए हैं। उम्मीद है कि अब न्याय होगा का नारा देकर 15 साल बाद राज्य की सत्ता में आयी कांग्रेस सरकार वन्य जीवों के साथ भी न्याय करेगी।

पहाड़ की नदियों में ‘नीला सोना’

हिमाचल प्रदेश की नदियाँ दशकों से बिजली उत्पादन के लिए जानी जाती रही हैं, लेकिन अब इन्हें ‘नील क्रान्ति’ के लिए भी जाना जाएगा। नील क्रान्ति अर्थात् मछली उत्पादन। सेब के उत्पादक की पहचान वाले राज्य हिमाचल में निजी क्षेत्र बहुत सीमित है। किसी समय पहाड़ी राज्य के लोगों में रोज़गार के लिए बहुत लोकप्रिय सार्वजनिक क्षेत्र में भी बेरोज़गारों की खपत अब बहुत कम हो गयी है। ऐसे में लोगों, खासकर युवाओं ने स्वरोज़गार के लिए जिन उपायों को अपनाया है, उसमें मछली पालन एक है।

मछली पालन को प्रोत्साहन का ही असर है कि हिमाचल जैसे अपेक्षाकृत छोटी नदियों वाले राज्य में स्वर्ण माहशीर जैसी प्रजाति, जिसे देश में लुप्तप्राय मान लिया गया है, को बचाने में कामयाबी हासिल हुई है।

मछली उत्पादन हिमाचल में कितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि मछलियों को मार्केट तक पहुँचाने के लिए मोबाइल वैन का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसे मोबाइल फिश बाज़ार का नाम दिया गया है। वैज्ञानिकों के मछली उत्पादन पर नये शोध पर मंथन कर उसे प्रदेश में मछली उत्पादन में लागू करने का ही नतीजा है कि धीरे-धीरे यह एक बड़े व्यवसाय के रूप में विकसित हो रहा है।

बिलासपुर में इस व्यापार से जुड़े घनश्याम चंदेल ने तहलका संवाददाता से बातचीत में कहा कि शुरू में उन्हें इस व्यवसाय में कदम रखते हुए कुछ हिचक थी। घनश्याम ने कहा- ‘लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ बेहतर होता गया। पिछले 8 साल से इस काम में हूँ। सरकार की कोशिशें भी मछली पालन को एक उद्योग के रूप में स्थापित करने में बहुत कारगर रही हैं।’

शिमला ज़िले के सुन्नी में नयी माहशीर हैचरी और कार्प प्रजनन इकाई स्थापित करने का काम लगभग पूरा होने वाला है। सुन्नी की इस महाशीर इकाई पर करीब 2.9। करोड़ की लागत आयी है। माहशीर को प्रदेश सरकार ने अपने अधीन ही रखा है और इसे निजी क्षेत्र से नहीं जोड़ा गया है।

पिछले कुछ साल में ही हिमाचल में करीब 16,।03 परिवार इस व्यवसाय से जुड़ गये हैं। महाशीर के अलावा सभी अन्य प्रजातियों को निजी क्षेत्र और रोज़गार से जोड़ा गया है। दिलचस्प यह है कि पड़े-लिखे युवा भी मछली पालन से जुड़ रहे हैं। मंडी ज़िले के सुमिन्दर मल्होत्रा ने एमएससी (बॉटनी) की है। वे इस व्यवसाय से जुडऩे को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि पढ़े-लिखे होने से हमारी योजना मछली पालन में आधुनिक तकनीक अपनाने की है। इससे व्यवसाय को तेज़ गति से आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

प्रदेश के ग्रामीण विकास मंत्री, विरेन्द्र कँवर, जो सुन्नी के दौरे पर आये हुए थे; ने तहलका संवाददाता से बातचीत में कहा कि माहशीर पर सरकार बहुत फोकस कर रही है। कँवर के पास ही मछली पालन का विभाग भी है। उन्होंने बताया कि वाशिंगटन के इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचुरल रिसोर्सेज तक ने माहशीर प्रजाति को खतरे में पड़ी प्रजाति घोषित किया है। लेकिन हमारी सरकार ने स्वर्ण माहशीर का कृत्रिम प्रजनन कर इसे लुप्त होने से बचाने की बड़ी उपलब्धि हासिल की है। कँवर ने कहा कि मंडी ज़िले के मछियाल में भी कृत्रिम प्रजनन से माहशीर का सफल उत्पादन हो रहा है।  हम यह कह सकते हैं कि हिमाचल माहशीर के उत्पादन का गढ़ बन गया है।

स्वरोज़गार का एक फायदा यह भी हुआ है कि सरकार के ऊपर इससे रोज़गार उपलब्ध करवाने का दबाव कुछ घटा है। सरकार के रोज़गार दफ्तरों में प्रदेश भर में इस समय करीब 8.35 लाख बेरोज़गारों के नाम दर्ज हैं। प्रदेश की आबादी के हिसाब से यह बड़ी संख्या है। हज़ारों ऐसे हैं, जो कम पड़े-लिखे हैं, लेकिन रोज़गार दफ्तरों में पंजीकृत नहीं हैं। ऐसे में मछली उत्पादन रोज़गार में एक बड़ा रोल अदा कर रहा है।

सहकारी सभाओं को भी इससे जोड़ा गया है और उनके सदस्यों की पकड़ी मछलियाँ ठेकेदारों को दे दी जाती है, ताकि उनका इन केंद्रों में विपणन किया जा सके। प्रदेश के 2019-20 के बजट में प्रदेश में 100 ट्राउट इकाइयों के निर्माण का प्रस्ताव किया गया था, जिसमें से कुछ बन चुकी हैं और बाकी पर काम चल रहा है। 10 हैक्टेयर में नये तालाबों का निर्माण किया गया है, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार मिल पाया है। इसके अलावा पिछले बजट में सरकार और निजी क्षेत्र की सहभागिता से दो ट्राउट हैचरी स्थापित करने के अलावा निजी क्षेत्र की भागीदारी से कुल्लू में स्मोक्ड ट्राउट एंड फिले कैनिंग सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव किया था, जिन पर काम चल रहा है। इसके अलावा मछुआरों को बाज़ार में उत्पाद का सही मूल्य दिलाने के लिए काँगड़ा, चंबा और शिमला ज़िलों में, निजी क्षेत्र की भागीदारी से, मत्स्य खुदरा विक्रय केंद्रों का काम भी शुरू किया गया है।

बिलासपुर में मतस्य विभाग के उप निदेशक मुख्यालय और एक्स-ऑफिसो विजिलेंस, महेश कुमार ने बताया कि प्रदेश की नदियों में मछियाल नामक कई प्राकृतिक महाशीर अभयारण्य हैं, जहाँ लोग आध्यात्मिक रूप से इनका संरक्षण करते हैं। उन्होंने कहा कि विभाग मत्स्य अधिनियम और नियमों को कड़ाई से लागू करके मछली संरक्षण के लिए प्रयासरत है।

राज्य के मुख्य जलाशयों में करीब 6098 मछुआरों को पूर्णकालिक स्वरोज़गार प्रदान किया गया है, जिसमें 2054 लोगों को गोविंद सागर में, 26।4 को पौंग बाँध, 129 को चमेरा, 42 को महाराजा रणजीत सागर और 112 को कोल बाँध में रोज़गार उपलब्ध करवाया गया है। इन मछुआरों की तरफ से 8.52 करोड़ रुपये की लागत से 659.98 मीट्रिक टन मछली उत्पादन किया गया।

महकमे के मंत्री वीरेंद्र कँवर ने बताया कि सरकार की कोशिश खासकर युवाओं को इस व्यवसाय से जोडऩे की है। उन्होंने इस संवाददाता को बताया कि सूबे में मत्स्य इकाइयाँ स्थापित करने के लिए सामान्य वर्ग को 40 फीसदी, जबकि अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं को 60 फीसदी अनुदान का प्रावधान किया गया है। यह पूछने पर कि क्या महिलाएँ भी प्रदेश में इस कार्य से जुड़ रही हैं, उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में महिलाएँ जुड़ी हैं। खासकर ऐसे इलाकों में, जहाँ झीलें हैं।

युवाओं के लिए योजना के तहत हैचरिज, मछली फॉर्म, छोटे और बड़े मत्स्य तालाब और ट्राउट इकाइयाँ स्थापित करने को प्रोत्साहित करके युवाओं को इससे जोड़ा जा रहा है। निजी क्षेत्र की सहभागिता से कुल्लू में ‘स्मोकड ट्राउट’ और ‘फिलेट केनिन’ सेंटर स्थापित किये जा रहे हैं। काँगड़ा, चंबा और शिमला ज़िलों में एक-एक आउटलेट भी स्थापित करने का काम लगभग पूरा हो चुका है। इससे विपणन सुविधा को बेहतर करने में बहुत मदद मिलेगी।

इसके अलावा नोर्वेजन तकनीक की सहायता और रेनबोट्राउट के सफल प्रजनन को देखते हुए राज्य में सात अतिरिक्त ट्राउट इकाइयाँ कुल्लू, शिमला, मंडी, किन्नौर, काँगड़ा, चंबा और सिरमौर में स्थापित की जा रही हैं। राज्य के 12,650 किसान और मछुआरों को प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमवाईबीवाई) के तहत लाया गया है, ताकि उनके मन में इस व्यवसाय के प्रति रिस्क की सोच न बने। ऑफ सीजन के दौरान सरकार ने मछुआरों को करीब एक करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता दी है। मौसम के दौरान तीन हज़ार रुपये की तीन-तीन िकश्तें मछुआरों को दी गयीं, जिससे उनमें व्यवसाय के प्रति भरोसा बढ़ा है।

हिमाचल में आदर्श मछुआ आवास योजना भी लागू की गयी है, जो केंद्र प्रायोजित योजना है। इसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले तमाम मछुआरों को 100 फीसदी आर्थिक सहायता दी जा रही है। इसके अलावा मछुआरों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए सभी मछली फार्मों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है और निजी क्षेत्रों में भी हैचरी तैयार की जा रही है, ताकि मछली के बीज की ज़रूरत को पूरा किया जा सके।

राज्य मछली उत्पाद के क्रय-विक्रय के लिए केंद्रीय मछली तकनीकी संस्थान, कोच्चि केरल के सहयोग से फिश मार्केट इंफॉरमेशन सिस्टम (एफएमआईएस) के तहत ऑनलाइन प्रणाली विकसित की जा रही है। यह ऑनलाइन पोर्टल खरीदारों को अपनी माँग के अनुरूप और विक्रेताओं को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने की सुविधा से युक्त है।

ट्राउट उत्पादन पर भी ज़ोर

हिमाचल सरकार ने ट्राउट मछली उत्पादन के लिए 2020-21 में 800 मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य अभी से तय कर लिया है। इसका मकसद क्षेत्र में लोगों की आय और रोज़गार अवसर बढ़ाना है। इसके लिए जो योजना बनायी गयी है उसमें शिमला, चंबा और काँगड़ा में ट्राउट मछली के आउटलेट खुलेंगे, जहाँ लोगों को रोज़गार भी मिलेगा। प्रदेश में सात ज़िलों कुल्लू, मंडी, शिमला, किन्नौर, चंबा, काँगड़ा और सिरमौर में ट्राउट मछली का उत्पादन होता है। इसकी फाॄमग को बढ़ावा देने के लिए सरकार इन ज़िलों में निजी क्षेत्र में 29 ट्राउट हैचरी स्थापित करेगी। आने वाले वर्षों में यह हैचरी सीएसएस-बीआर और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत खुलेंगी। प्रत्येक हैचरी में हर साल दो लाख की ट्राउट ओवा उत्पादन की क्षमता होगी। ट्राउट मूल्य शृंखला में उत्पादन प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाने के लिए पतलीकूहल फार्म में स्मोक्ड ट्राउट कैनिंग सेंटर भी तैयार किया जा रहा है। उत्पादकों को ट्राउट बीमा भी मिलेगा। ट्राउट की बिक्री के लिए 940 ट्राउट इकाइयाँ विकसित की जाएँगी, जिसके लिए बाकायदा मार्केटिंग पॉलिसी तैयार कर ली गयी है। फिश वैन के माध्यम से ट्राउट मछली के विपणन के लिए ट्राउट क्लस्टर स्थापित होंगे।

गौरतलब है कि दिल्ली, मुम्बई और चेन्नई जैसे महानगरों के पाँच सितारा होटल्स में 50 फीसदी तक ट्राउट मछलियों की सप्लाई हिमाचल से होती है। इनकी माँग को पूरा करने के लिए हिमाचल में ट्राउट मछलियों के उत्पादन को और बढ़ाने की तैयारी है। इसके अलावा हिमाचल गुणवत्ता बढ़ाकर बड़े शहरों में इसकी मार्केटिंग की तैयारी कर रहा है।

प्रदेश सरकार ने इसे नील क्रान्ति नाम दिया है। इस योजना के तहत सूबे में किसानों को आय के अतिरिक्त साधन सृजित करने और स्थानीय युवाओं को स्वरोज़गार के अवसर उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से मत्स्य पालन को व्यापक बढ़ावा देना है। सूबे के जलाश्यों में मत्स्य पालन, विशेषकर प्रदेश की ठंडी नदियों में ट्राउट पालन को बढ़ावा देने की योजना का खाका खींचा गया है। इस योजना के तहत मत्स्य पालन से जुड़े परिवारों को ट्राउट पालन अपनाने के प्रति प्रेरित किया जा रहा है और उन्हें अनेक प्रोत्साहन भी प्रदान किये जा रहे हैं। प्रदेश में ट्राउट मछली के बीज की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए निजी क्षेत्र में दो ट्राउट हैचरी भी स्थापित की जा रही हैं।

साल 2019-20 में रदेश के सभी जल स्रोतों से करीब 1।1.5। करोड़ रुपये की मूल्य की करीब 13,402 टन मछली का उत्पादन हुआ है। विभागीय ट्राउट फार्मों से 8.34 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन अलग से हुआ है। निजी क्षेत्र में लगभग 25.21 करोड़ रुपये मूल्य की 560 मीट्रिक टन ट्राउट का उत्पादन किया गया। प्रदेश में रेनबो ट्राउट के सफलतापूर्वक प्रजनन के परिणामस्वरूप अब कुल्लू ज़िले के अलावा शिमला, मंडी, कांगड़ा, किन्नौर, चंबा और  सिरमौर ज़िलों में भी निजी क्षेत्र में ट्राउट इकाइयों की स्थापना की गयी है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रदेश में मछली पालन गतिविधियों में लोगों की रुचि पिछले कुछ वर्षों में बहुत बढ़ी है। पतलीकूहल में फिश फाॄमग से जुड़े रजत ठाकुर कहते हैं कि फिशिंग का एक बड़ा बाज़ार है। उन्होंने कहा कि  निश्चित ही लोगों का इस व्यवसाय के प्रति आकर्षण बढ़ा है। हैचरिज, मछली फॉर्म, छोटे और बड़े मत्स्य तालाब और ट्राउट इकाइयाँ स्थापित करने को सरकार जिस तरह प्रोत्साहित कर रही है, उसी के कारण हमने इस क्षेत्र में आने का फैसला किया।

विभाग के निदेशक और हिमाचल एक्वाकल्चर, फिशिंग एंड मार्केटिंग सोसायटी के सीईओ सतपाल मेहता बताते हैं कि मछलियों को बाज़ार तक पहुँचाने के लिए मोबाइल फिश बाज़ारों में मोबाइल वैन का उपयोग किया जा रहा है। जलाशय मछुआरों को इंसुलेटेड बॉक्स भी प्रदान किये गये हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के जल निकाय 85 मछली प्रजातियों के घर हैं। इनमें रोहू, कैटला और मृगल और ट्राउट शामिल हैं। पिछले माली साल के दौरान हिमाचल ने करीब 492.33 मीट्रिक टन  मछली राज्य के बाहर विपणन की गयी, जो बहुत उत्साहित करने वाले आँकड़े हैं; क्योंकि इस साल के दौरान यह आँकड़ा और ज्यादा बढ़ा है।

कोल डैम पर नज़र

इस साल प्रदेश में जल पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए में बिलासपुर के कोल डैम जलाशय में खेल और मत्स्य आखेट गतिविधियाँ शुरू होने वाली हैं। प्रदेश का मत्स्य विभाग कोल डैम जलाशय में स्पोट्र्स फिश महाशीर के बीजों का भंडारण और उत्पादन को बढ़ावा देगा, ताकि देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके। वर्तमान में मानव निर्मित जलाशयों में कार्प, सिल्वर कार्प, महाशीर और ग्रास कार्प जैसी प्रजातियाँ पाली जा रही हैं। विभाग की बिलासपुर, सोलन, मंडी और शिमला ज़िलों में लगभग 1302 हेक्टेयर जल संग्रह क्षेत्र में स्पोर्टस फिशरीज शुरू करने की तैयारी है। कोल-डैम जलाशय में मत्स्य आखेट को बढ़ावा देने के लिए एंगलिंग हट्स भी स्थापित की जाएँगी। इसका मकसद एंगलिंग में रुचि रखने वाले पर्यटकों को राज्य में आकर्षित कर नये पर्यटन गंतव्य विकसित करना है। पिछले साल रिकॉर्ड 5.595 मीट्रिक टन मछली उत्पादन के बाद 2019-20 में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक वहाँ।.045 मीट्रिक टन मछली उत्पादन किया जा चुका था। रोज़गार के नज़रिये से पाँच सहकारी सभाओं का गठन किया गया है, जिनमें डैम के विस्थापितों, नदी के पुराने मछुआरों और नदी तट के गरीब परिवारों को प्राथमिक सदस्य के रूप में पंजीकृत किया गया है। सतलुज नदी में साईजोथोरैक्स (गुगली मछली) महाशीर, छोटी कार्प, कैट फिश और इसमें ऊपरी क्षेत्रों ट्राउट मछली पाई जाती है। गोबिंद सागर से भी सिल्वर कार्प मछली प्रजनन के लिए सतलुल नदी के ऊपरी क्षेत्र की ओर जाती है, जहाँ पानी का तापमान इसके अनुरूप होता है।

माहशीर का संरक्षण और इको टूरिस्म

हिमाचल में माहशीर मछली राज्य की कुल 3000 किलोमीटर नदियों में से करीब एक चौथाई अर्थात् 500 किलोमीटर क्षेत्र में मौज़ूद है। राज्य के जलाशयों में विशेष रूप से काँगड़ा के पोंग जलाशय में यह ज्यादा पायी जाती है। माहशीर को आखेट की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। माहशीर के कृत्रिम प्रजनन का एक बड़ा उद्देश्य इस पर्यटक राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देना भी है। देश के नहीं, विदेश के मतस्य आखेट शौकीन भी हिमाचल में बड़ी संख्या में इसके लिए आते हैं। हिमाचल में माहशीर की दो प्रजातियाँ टोर प्यूस्टोरा और टो टोर खास हैं।

महाशीर को बचाने की हिमाचल की उपलब्धि इसलिए भी बड़ी है कि इसे देश से लगभग विलुप्त मान लिया गया है; क्योंकि स्वर्ण माहशीर की संख्या में तेज़ी से गिरावट दर्ज की गयी है। हिमाचल सरकार के माहशीर को बचने के लिए शुरू की गयी संरक्षण योजना जलाशयों और नदियों में इस प्रजाति की संख्या बढ़ाने में सफल रही है। राज्य में मछली फार्म के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने की सरकार की कोशिश है। इस मछली के संरक्षण में एक कोशिश ऑफ सीजन के दौरान पनबिजली शक्ति से 15 फीसदी पानी का बहाव जारी करना भी है। नियमित गश्त से भी मछली संरक्षण किया जाता है, ताकि इनका अवैध शिकार न हो।

तहलका द्वारा जुटायी जानकारी के मुताबिक, प्रदेश ने माहशीर उत्पादन में लम्बी  छलाँग लगायी है। साल 2019 में अब तक करीब 11,000 रिकॉर्ड उच्चतम हैचिंग हुई है। यदि पिछले आँकड़े देखें, तो 2016-1। में 19,800, 201।-18 में 20,900 और 2018-19 में 28,।00 अण्डे की गोल्डन माहशीर का उत्पादन किया। साल 2019-20 के वर्तमान वर्ष में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक रिकॉर्ड 41,450 माहशीर अण्डों का उत्पादन दर्ज किया। इको टूरिज्म के तहत प्रदेश मतस्य आखेट को भी प्रोत्साहित कर रहा है। राज्य में साल 2018-19 में सबसे अधिक 45.311 मीट्रिक टन माहशीर कैच दर्ज किये गये। भारतीय ही नहीं विदेशी खिलाडिय़ों के लिए भी यह एक मनोरंजक आखेट है। यदि माहशीर उत्पादन की बात की जाए, तो 2018 में गोबिंद सागर में 16.182 मीट्रिक टन, कोल डैम में 0.2।5 मीट्रिक टन, पौंग झील (बाँध) में 28.136 मीट्रिक टन, जबकि रणजीत सागर डैम में 0.।18 मीट्रिक टन माहशीर का उत्पादन दर्ज किया गया।