वन्यजीवों की कब्रगाह बनता छत्तीसगढ़

देश के तीसरे नम्बर का वनाच्छादित प्रदेश छत्तीसगढ़ वन्य जीवों की कब्रगाह बनता जा रहा है। एक तरफ नकली जंगल सफारी बनाये जा रहे हैं, तो दूसरी ओर अभ्यारण्यों को खत्म किया जा रहा है। वहाँ न जानवर सुरक्षित हैं और न पेड़। सरकार की स्वीकारोक्ति है कि राज्य में कभी 46 बाघ थे; लेकिन अब मात्र 19 बचे हैं। 10 साल में करीब 51 तेंदुए भी गायब हो गये। आश्चर्य कि 800 करोड़ रुपये धरे के धरे रह गये।

इंसान और जानवर के बीच का सबसे बड़ा फर्क तर्कशक्ति और विवेक का है, ऐसी किंवदंती है। इसे बेहतरीन ढंग से समझाता हुआ एक वीडियो पिछले दिनों वायरल हुआ। काजीरंगा के इलाके से गुज़र रहे कुछ ट्रकों के सामने एक हाथी आ खड़ा हुआ। डरे-सहमे ट्रक वाले हाथी के सामने से गुज़रते और हाथी अपनी सूँड़ उठाकर यह जानने की कोशिश करता कि गन्ना किसमें है? आगे के तीन ट्रकों को निकालने के बाद उसे अंतिम ट्रक में मन-मुताबिक, गन्ना मिल गया। हाथी ने सिर्फ उतना ही लिया जितनी उसे जरूरत थी और जान-माल को नुकसान भी नहीं पहुँचाया।

अगर इसकी जगह इंसान होता, तो क्या यह विवेक दिखा पाता? लालच, लूट और जान लेने के मामले में वह जानवरों से कहीं ज्यादा निर्मम प्रतीत होता है। अब छत्तीसगढ़ को लीजिए। छत्तीसगढ़ अपने पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश एवं अरुणाचल प्रदेश के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा वन आच्छादित राज्य है, जहाँ 44 फीसदी वन हैं। लेकिन अब यह वन्यजीवों की कब्रगाह बनता जा रहा है। राज्य में कुछ ही महीनों में अवैध शिकार के दर्जनों मामले हुए हैं। इतना ही नहीं अभ्यारण्यों के जानवर प्यासे भी मर रहे हैं।

चन्द दिनों पूर्व ही कोरबा वनमंडल के केंदई वन परिक्षेत्र में दलदल में फँसे एक हाथी की मौत न केवल विचलित करती है, बल्कि वन विभाग के रवैये पर सवाल खड़ा करती है। ग्रामीणों का कहना है कि 40 घंटे से लगातार दलदल में फँसे रहने और ठंड से हाथी की मौत हो गयी। दूसरी ओर वन विभाग के अधिकारी सफाई दे रहे हैं कि हमने दो जेसीबी लगाकर हाथी को बचाने की कोशिश की थी, परन्तु हाथियों का दल पहुँचने की वजह से रेस्क्यू बीच में ही बन्द करना पड़ा। अब अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी एसके सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जाँच टीम बनायी है, जो 15 दिन के भीतर जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। पिछले पाँच महीने में 15 से अधिक वन्य जीवों की मौत हो चुकी है। अधिकारियों की लापरवाही के चलते दुनिया की सबसे लम्बी उम्र की बाघिन शंकरी की मौत पहले ही हो चुकी है। अभी चन्द महीने पहले बालि नामक बाघ भी चल बसा। भिलाई स्ट्रील प्लांट वाले शहर में स्थित मैत्री बाग में महीनों पहले छ: तेंदुओं की ठंड के कारण मौत हो गयी थी। इस मामले में मैत्री बाग प्रबंधन की लापरवाही उजागर हुई थी कि ठंड के बावजूद वन्य जावों के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। गुज़रे फरवरी में लमेर में तेंदुए का शव मिला था। सूरजपुर ज़िले में दो जंगली भालुओं की मौत, बिलासपुर स्थित चिडिय़ाघर में एक हिपोपोटेमस की मौत, दुर्ग में एशिया की सबसे उम्रदराज़ बाघिन की मौत, प्रतापपुर में एक हाथी की करेंट लगने से मौत, कोरबा में दलदल में फँसने से हाथी की मौत के अलावा हाल ही में सात तेंदुओं की खाल के साथ पाँच तस्कर गिरफ्तार किये गये हैं। नयी राजधानी में सरकार ने 280 करोड़ की लागत से 326 हेक्टेयर में फैले एशिया के सबसे बड़े जंगल सफारी बनाने का दावा किया है। दूसरी ओर प्राकृतिक अभ्यारण्य सरकारी लापरवाही, भ्रष्टाचार और शिकारियों के शिकार होते जा रहे हैं। अगर आप बतौर पर्यटक छत्तीसगढ़ आ रहे हैं, तो चेता दें कि आप यहाँ बाघ देखने को तरस सकते हैं; क्योंकि जंगलों से बाघ लगभग विलुप्त हो गये हैं। बाघों की हिफाज़त को लेकर छत्तीसगढ़ का वन महकमा कितना संजीदा है, उसकी पोल विभाग के ही आँकड़े खोल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के वाइल्ड एनिमल एंडटी पोचिंग डेटाबेस के आँकड़े बताते हैं कि प्रदेश में पिछले 4 साल में 1। बाघों की खाल बरामद हुई है। ज़ाहिर है यह खाल या तो छत्तीसगढ़ के बाघों की होगी या फिर छत्तीसगढ़ की छूती सीमाओं में बने टाइगर रिजर्व के बाघों की। चौंकाने वाली बात यह है कि शिकारियों के सबसे बड़े पनाहगाह और मुफीद वन मंडल में काँकेर का नाम है, जो मुख्य प्रधान वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी का गृह इलाका माना जाता है। 1। में से 5 बाघों की खाल सिर्फ काँकेर वन मंडल से मिली। आरटीआई एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के सदस्य सचिव को आँकड़ों से अवगत करवाते हुए विस्तृत जाँच करवाने हेतु पत्र लिखा था। इतनी बड़ी संख्या में बाघों व तेंदुओं की खाल बरामद किये जाने पर सवाल उठाते हुए सिंघवी ने कहा कि अगर बाघों और तेंदुओं का शिकार नहीं हुआ, तो उनकी इतने बाघों की खाल कहाँ से आयी? सिंघवी दावा करते हैं कि प्राकृतिक रूप से बाघों और तेंदुओं की मौत होने पर उनकी लाश सडऩे से अच्छी स्थिति में खाल नहीं निकाली जा सकती है। अत: बाघों और तेंदुओं का शिकार ही हुआ है।

गुज़रे विधानसभा सत्र में ही राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कुबूल किया कि बाघों के संरक्षण पर चार साल में (2015—2019 के अंदर) 34 करोड़ से अधिक राशि खर्च की जा चुकी है। आश्चर्यजनक यह कि राशि तो बढ़ती गयी; लेकिन बाघों की संख्या घटती गयी। बकौल वन मंत्री गुज़रे 2006 में 26 बाघों के मुकाबले गुज़रे 2019 तक मात्र 19 बाघ ही बचे थे, जबकि 2014 में राज्य में 46 बाघों के होने पुष्टि की गयी थी। यानी मात्र पाँच साल में ही 2। बाघ गायब हो गये। यह खबर लिखे जाने की एक रात पहले ही धमतरी और राजनांद गाँव से लगे गुरूर के जंगल में एक बाघ देखने की पुष्टि ग्रामीणों ने की है। बाघों की बनिस्बत तेंदुओं के लिए भी राज्य के अभयारण्य सुरक्षित नहीं रहे, खासकर उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में तेंदुओं का शिकार धड़ल्ले से जारी है। पिछले 10 वर्षों में करीब 51 तेंदुओं की खाल बरामद की गयी है, यानी औसतन हर साल 5 तेंदुए मारे गये। गुज़रे महीने ही बस्तर के गीदम परिक्षेत्र में तेंदुए की खाल के साथ पकड़े गये सात तस्करों के िखलाफ वन प्राणी अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा रही है। प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्य प्राणी) अतुल कुमार शुक्ल अवैध शिकार की पुष्टि करते हुए कहते हैं, बीजापुर रोड स्थित बड़े केरला गाँव में चार तेंदुओं खाल ज़ब्त करने सहित सात आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की रिपोर्ट के बाद वन विभाग ने जाँच शुरू की, तो पाया कि उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में तैनात सीआरपीएफ के जवान, जंगली जानवरों का शिकार कर रहे हैं। 201। में एक जंगली भालू की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगा था। महीनों पहले बस्तर के दोरनापाल में भी एक अजगर को मारने का आरोप था; लेकिन सीआरपीएफ के प्रवक्ता मूसा दिनाकरन ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने इसे आत्मरक्षार्थ कार्रवाई करार दिया। प्रधान मुख्य वन संरक्षक, आईएफएस राकेश चतुर्वेदी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि सीआरपीएफ कर्मियों पर शिकार के आरोप लगते रहे हैं; लेकिन जवानों ने इसे आत्मरक्षा में गोलियाँ चलाना बताया था। चतुर्वेदी ने कहा कि तत्काल कार्रवाई करने के कोई सबूत नहीं हैं, इसलिए जाँच के आदेश दे दिये हैं। हालाँकि वन्य जीवों का शिकार रोकने के लिए वन मंत्री मोहम्मद अकबर गम्भीर नज़र आते हैं, तभी तो सहायक संचालक स्तर के तीन अफसरों को उन्होंने निलंबित कर दिया है। अकबर कहते हैं, वन्य जीवों का शिकार करने या होने देने का जो भी अपराधी होगा, उसे बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। सरकार इस मामले में और भी सख्ती बरतेगी, ताकि शिकारियों और अवैध तस्करी पर रोक लगायी जा सके। वन्य प्राणी संरक्षण के लिए वन विभाग के पास फंड की कमी तो हरगिज़ नहीं दिखती। कैंपा के तहत मिलने वाली राशि 400 करोड़ यूँ ही पड़ी हुई है और पिछले साल का 400 करोड़ भी पड़ा हुआ है, यानी विभाग को 800 करोड़ खर्च करने होंगे आने वाले अप्रैल माह तक। इसके विपरीत एलीफेंट कॉरिडोर और अन्य निर्माण कार्य काम अटके हुए हैं। उम्मीद है कि अब न्याय होगा का नारा देकर 15 साल बाद राज्य की सत्ता में आयी कांग्रेस सरकार वन्य जीवों के साथ भी न्याय करेगी।