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जमकर पियें पानी और योग करें

कोरोना वायरस को लेकर लोगों में फैली भ्रांतियों और डर को दूर करने के लिये दिल्ली के डॉक्टरों ने कहा कि कोरोना वायरस को घर बैठे ही हराया जा सकता है। बशर्ते लोग अपने खान-पान और साफ-सफाई का ध्यान दें। क्योंकि इस समय लोगों में कोरोना से बचाव के तौर पर लोग मजाकिया अंदाज में उन बातों को नजरअंदाज कर रहे हैं, जो उनके लिए घातक हो सकती हैं। एम्स अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ आलोक कुमार ने बताया कि अब तक के इतिहास में ये पहली बीमारी ऐसी आयी है, जिसने पूरी दुनिया के डॉक्टरों को हिलाकर रख दिया है। इस बीमारी का पुख्ता इलाज अभी तक सामने नहीं आया है। इसके कारण ये महामारी लोगों की जिन्दगी को समाप्त करती जा रही है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस के साथ साथ लोग अपने घरों में खान -पान के साथ नियमित योग  करें, तो कोरोना जैसी महामारी को हराया और जड़ से समाप्त किया जा सकता है। मैक्स अस्पताल के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि कोई भी बीमारी तब तक हावी नहीं होती है, जब तक उस बीमारी के प्रति सावधानी बरती जाए। अगर जरा सी लापरवाही और आसावधानी बरती गई, तो बीमारी भयंकर रूप धारण कर लेती है। इसलिए कोरोना वायरस को लेकर सावधानी बरतें और खान-पान में शाकाहारी भोजन को अपनाएं और दिन में 4 से 5 लीटर पानी पियें, ताकि स्वस्थ्य रहें।
डॉ. विवेका कुमार ने बताया कि समय अभाव के कारण और जानकारी के अभाव के कारण लोगों ने हरी सब्जियों, ताजे फलों का और सेहतमंद भोजन कम कर दिया था, जिसके कारण लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगाी थी। उन्होंने बताया कि जिस अंदाज में स्कूली बच्चों और युवाओं में बाजारू खाना में पिज्जा और वर्गर के साथ मोमोज का चलन आया था, वो पूरी तरह से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रहा है। इसलिए इन दिनों डॉक्टरों के पास न जाने के लिए एक ही उपाय है कि घर में रहें और घर का भोजन करें। जमकर पानी पियें, ताकि स्वस्थ्य रहा जा सके। संक्रमण से बचने का एक ही उपाय है घर में रहें और योग कर अपने शरीर का स्वस्थ्य रखें।

ऑटो वालों की भी सुने सरकार, बैठे हैं बेकार

कोरोना वायरस को लेकर भले ही केन्द्र और दिल्ली सरकार लोगों को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस की बात कर रही है और बात मनवाने के लिये पुलिस का डंडा भी दिखा रही है। पर वास्तविकता क्या है? ये सरकार भी जानकर नजरअंदाज कर रही है। तहलका संवाददाता ने आज दिल्ली के ऑटो चालकों से बात की तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनके ऑटों के पहिया ही नहीं बल्कि उनके परिवार की रोजी- रोटी की व्यवस्था भी थम गई है। ऑटो चालक उमेश ने बताया कि दिल्ली में वे करीब 21 साल से ऑटो चला रहे हैं। उन्होंने ऐसा समय कभी नहीं देखा है, जो वो आज देख रहे हैं। उनका कहना है कि ऑटो तो खुद उनका है किराये का नहीं है। पर काम पूरी तरह से बंद है। ऐसे में जो जमा पूंजी थी, वो अब खत्म हो गई है। दिल्ली सरकार जरूर कह रही है कि पांच हजार रुपये देगे पर अभी तक नहीं मिले हैं। उमेश का कहना है कि इस कोरोना वायरस नामक महामारी के पहले प्राइवेट कैब वालों के चलते ऑटो वालों का धंधा काफी कम हुआ था। अब तो धंधा कम ही नहीं हुआ है, बल्कि पूरी तरह से बंद हो गया है। ऐसे में उनका परिवार सरकारी भोजन लाइनों में लगकर कब तक खाएगा। वहीं ऑटो चालक सुधीर, निशीकांत और गोपाल ने बताया कि सरकार की कथनी और करनी तो जग जाहिर रही है। पर सरकार को इस विपदा के समय में कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, ताकि ऑटो वालों को रोजगार मिल सकें। ऑटो चालकों का कहना है कि ये महामारी अगर ऐसी ही चलती रही, तो वो दिन दूर नहीं जब वो ऑटो चलाने के लायक ही नहीं रहेगे। ऑटो चालक यूनियन के नेता जीतेन्द्र कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के नाम पर सख्ती का पालन करवाया जा रहा है। जीतेन्द्र कुमार का कहना है कि जब भी कोई ऑटो चालकों के आह्वान पर कोई हड़ताल भी हुई है। तो उन्होंने इमरजेंसी सेवा के नाम पर कुछ ऑटो वालों को सड़को पर चलने दिया है, ताकि यात्रियों और जरूरतमंद लोगों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। पर ये दिल्ली और केन्द्र सरकार न जाने कोई सी बात पर अड़ी है। उन्होंने दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री गोपाल राय से मांग की है कि ऑटो चालको को चलने की इजाजत दी जाये ताकि वे आपातकालीन सेवाओं के साथ-साथ सरकारी काम-काज में अपनी सेवा दे सकें। जैसे कर्मचारियों के आने जाने के लिये और सब्जी और अन्य राशन का जो सामान दुकानदार ठेली या साइकिलों में लाते हैं उसको लाने की अनुमति प्रदान करे, ताकि ऑटो वालों को रोजगार और लोगों को राहत मिल सकें अन्यथा बहुत दिक्कत ऑटो वालों के जीवन में आ सकती है। क्योंकि ऑटो चालक भी गरीब लोग ही है।

नई गाइडलाइन्स में कृषि कार्यों के लिए सीमित छूट, स्कूल, कोचिंग संस्थान बंद रहेंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंगलवार को देश के नाम संबोधन में घोषित लॉक डाउन की नई अवधि के बाद गृह मंत्रालय ने बुधवार को गाइडलाइन जारी कर दी। लॉकडाउन – दो के लिए जारी इन गाइडलाइन्स के मुताबिक कृषि कार्यों के लिए सीमित छूट दी गई है। फसल कटाई के लिए किसानों को छूट और निर्माण (कन्स्ट्रक्शन) की परियोजनाओं को भी सीमित छूट रहेगी। स्कूल, कोचिंग संस्थान फिलहाल बंद रहेंगे।

गाइडलाइन्स के मुताबिक बस, रेल, हवाई सभी तरह के यातायात पूरी तरह ३ मई तक बंद रहेंगे। खेती से जुड़े काम के लिए छूट दी गई है। लॉकडाउन तोड़ने पर सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है। चौपहिया वाहन में ड्राइवर के अलावा केवल एक ही व्यक्ति बैठ सकेगा और दो पहिया वाहन में केवल एक व्यक्ति को इजाजत। इसका उल्लंघन करने वाले पर जुर्माना भी लगेगा। बिजली, प्लंबर की सुविधा बहाल कर दी गयी है।

यह गाइडलाइन्स बुधवार को जारी की गयी हैं। कृषि उपकरणों की दुकानें, उनके मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स की दुकानें खुली रहेंगी।

इनके मुताबिक बीज, खाद, कीटनाशकों के निर्माण और वितरण का काम चालू रहेगा, इनकी दुकानें भी खुली रहेंगी। फसल कटाई से जुड़ी मशीने भी एक राज्य से दूसरे राज्य में जा सकेंगी। मनरेगा का काम भी आपसी दूरी के नियम से ही चलेगा।

पहले की तरह सिनेमा हॉल, शॉपिंग मॉल और रेस्तरां भी तीन मई तक बंद रहेंगे। शादी ब्याह के समारोह समेत जिम और धार्मिक स्थान बंद रखने के निर्देश दिए गए हैं। राजनीतिक और खेल आयोजन पर भी रोक रहेगी। लॉकडाउन के दौरान बस-मेट्रो सर्विस बंद रहेगी। घरेलू उड़नों पर पाबंदी जारी रहेंगी। स्कूल, कोचिंग संस्थान भी फिलहाल बंद रहेंगे। मनरेगा के मजदूरों को काम करने की इजाजत दी गई है लेकिन काम के दौरान सोशल डिस्टैंसिंग का सख्ती से पालन करने को कहा गया है।

सावधान, थूका तो जुर्माना भरना होगा

पीएम मोदी के मंगलवार को देश के नाम संबोधन में घोषित लॉक डाउन की नई अवधि के बाद गृह मंत्रालय ने बुधवार को गाइडलाइन जारी कर दी। इनके मुताबिक यदि आप घर से बाहर किसी भी सार्वजानिक स्थल पर थूकते हैं तो आपको जुर्माना भरना पड़ेगा।

आप घर से बाहर सार्वजनिक और कार्यस्थलों पर बिना मुंह कवर किये नहीं जा सकेंगे। सार्वजनिक स्थानों पर थूकने पर जुर्माना लगाया जाएगा।

थूकने से उस व्यक्ति के मुहं से कोरोना का वायरस जमीन पर आ सकता है। लिहाजा थूकना एक तरह से इन गाइडलाइन्स का बड़ा उल्लंघन माना जायेगा। जमीन पर संक्रमित व्यक्ति का थूक दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में वायरस पहुँचाने में मदद कर सकता है। उसके जूते से यह वायरस उसके घर पहुँच सकता है और जरा सी लापरवाही उन्हें भी संक्रमित कर सकती है।

घर से बाहर निकलने पर मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया गया है। मुंह ढकने के लिए कोइ भी व्यक्ति घर में बना मास्क, दुपट्टा या गमछे तक का इस्तेमाल कर सकता है। इससे किसी संक्रमित के खांसने पर उसके थूक के कण हवा, जमीन या किसी के चेहरे पर गिरने से रोकने में मदद मिलती है।

कोरोना वायरस: रहस्यमय है चीन की भूमिका

चीन, जिसने कोरोना वायरस (कोविड-19) के ज़रिये लगभग पूरी दुनिया को आईसीयू (इंटेंसिव केयर यूनिट) में भेज दिया; अब वही इसको अवसर के रूप में भुनाने लगा है। चीन अब पूरी दुनिया में वेंटिलेटर, फेस मास्क और अन्य उपकरण बनाकर सप्लाई कर रहा है। इस तरह कोरोना वायरस को लेकर चीन पर सवाल उठने लाजिमी हैं?

क्या कोरोना वायरस दुनिया भर में खौफ पैदा करने के लिए तैयार किया गया है? क्योंकि चीन के हुबेई प्रान्त के अलावा अधिकांश हिस्सों में जीवन लगभग सामान्य है। दुकानें, रेस्तरां, होटल, बार, बाज़ार, कार्यालय और व्यापार केंद्र खुल चुके हैं। विनिर्माण की सभी गतिविधियाँ चल रही हैं। फैक्ट्रियों पर उत्पादन जारी है। इससे स्वाभाविक रूप से एक सवाल उठता है कि चीन के वुहान से वायरस कैसे फैलता है? और उसके बाद इस पर वह तेज़ी से नियंत्रण भी पा लेता है।

सोशल मीडिया पर ऐसी टिप्पणियों से सहमत हुआ जा सकता है, जिनसे पता चलता है कि चीन ने दुनिया को पहले आईसीयू में डाल दिया और अब वह उनको वेंटिलेटर और मास्क की आपूर्ति कर रहा है। चीन के प्रमुख शहरों के हाईवे पर यातायात सुचारू रूप से गति पकड़ चुका है। अर्थ-व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए चीन के ज़्यादातर कर्मचारी अपने काम पर लौट आये हैं। बाकी दुनिया अब भी कोरोना वायरस से जूझ रही है और भारत जैसे देशों में प्रवासी मज़दूर अपने गाँवों में लौट चुके हैं या लौटने को मजबूर हैं। इससे एक बार को तो भारी भीड़ की स्थिति पैदा हो गयी थी और मज़दूरों तथा अन्य लोगों का जीवन भी खतरे में है। चीन ने वही किया, जैसा कि माना जा रहा था। उसने अपने यहाँ पर सभी तरह के प्रतिबन्ध हटा दिये हैं और वहाँ का जन-जीवन पहले की तरह सामान्य हो चुका है। यही नहीं, उसने कुछ ही हफ्तों में अपने यहाँ की अधिकांश व्यावसायिक गतिविधियाँ भी फिर से शुरू कर दी हैं। ऐसे समय में जब पूरा यूरोप समेत अनेक प्रमुख देश कोरोना वायरस की जाँच के लिए संघर्ष कर रहे हैं, चीन इससे भी लाभ कमाने की एक शुरुआत कर चुका है।

बीएमडब्ल्यू ने चीन में फिर शुरू किया काम

चीन में विदेशी कम्पनियाँ भी वापस आने लगी हैं। यहाँ पर बीएमडब्ल्यू ने एक बार फिर से उत्पादन शुरू कर दिया है। पूर्वोत्तर चीनी शहर शेनयांग में बीएमडब्ल्यू ब्रिलिएंस फैक्ट्रीज के करीब 20,000 कर्मचारी काम पर लौट आये हैं। संयुक्त उद्यम का कहना है कि कम्पनी जल्द ही सामान्य उत्पादन क्षमता को फिर से शुरू करने लगेगी। शेनयांग के पास बीएमडब्ल्यू ग्रुप का सबसे बड़ा विदेशी उत्पादन का केंद्र है। बीएमडब्ल्यू ब्रिलिएंस के सीईओ डॉ. जोहान वीलैंड ने शेनयांग नगर पालिका का धन्यवाद व्यक्त करने के लिए एक पत्र लिखा है। उनका मानना था कि कम्पनी बाज़ार में बदलावों के लिए जल्दी से प्रतिक्रिया दे सकती है और उत्पादन पर कोरोना वायरस के प्रकोप के पडऩे वाले असर को कम कर सकती है। भविष्य में कम्पनी वास्तविक स्थिति के आधार पर योजनाओं को आगे बढ़ायेगी, जो उत्पादन प्रणाली की ज़रूरत के अनुकूल होगा। कम्पनी को सभी तरह के समर्थन के लिए डॉ. वीलैंड ने शेनयांग नगर पालिका का आभार भी जताया। डॉ. वीलैंड ने भरोसा जताया कि वाॢजक उत्पादन, बिक्री लक्ष्य और प्रमुख परियोजनाओं के निर्माण को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया जाएगा।

शेयर 417 फीसदी चढ़े

कोरोना वायरस के प्रकोप से डॉन पॉलीमर के शेयर की कीमत में 417 फीसदी का इज़ाफा हुआ है। जनवरी में कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद से कोरोना किट के तौर पर ज़रूरी ड्रेस के अलावा सॢजकल मास्क में इस्तेमाल की जाने वाली अनोखी सामग्री तो यू जियाओनिंग के लिए रुपये छापने जैसा है। वैश्विक महामारी, जो चीन से यूरोप और अमेरिका तक फैल चुकी है; के चलते मास्क की पूरी दुनिया में कमी हो चुकी है, जिसके चलते सॢजकल मास्क माँग बेहद ज़्यादा है और चीन इसकी बड़ी मात्रा में सप्लाई कर रहा है। जहाँ-जहाँ भी कोरोना वायरस का संक्रमण फैला हुआ है, वहाँ की सरकारें स्वास्थ्य कर्मचारियों की रक्षा करना चाहती हैं और इस बीमारी के छूने मात्र से फैलने के चलते इससे बचाव के उपाय करना भी अनिवार्य है। इसलिए पूरी दुनिया में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) की माँग में बेहद तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। चीन में मास्क में इस्तेमाल किये जाने वाले विशेष वस्त्रों के लिए अनुमानित बाज़ार हिस्सेदारी में 40 फीसदी शेयर के साथ शेन्झेन में सूचीबद्ध डॉन पॉलीमर के शेयरों में 20 जनवरी से 417 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गयी। अपुष्ट खबरें ये भी हैं कि चीन कई विदेशी कम्पनियों को खरीदने की प्रक्रिया में है, जो वित्तीय आपदा का सामना कर रही हैं।

ट्रंप का ट्वीट : चीनी वायरस

नेचुरल कोरोलरी है- क्या चीन इसे इस तरह रख सकता है? चारों ओर अलग-अलग तरह की साज़िशों की भी चर्चा चल रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि चीन ने इस वायरस को जैविक युद्ध के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रयोगशाला में विकसित किया है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोरोना वायरस का ज़िक्र कर ट्वीट करके कोविड-19 बीमारी को चीनी वायरस करार दिया था। अमेरिकी प्रशासन के कई अधिकारियों ने भी इसे चीनी वायरस बताया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कोरोना वायरस के खतरे को भाँपते हुए पहले ही लोगों को किसी संक्रमित विशेष क्षेत्र या समूह में न जुटने के लिए कह चुका है। हालाँकि, पोम्पियो ने बार-बार वुहान वायरस कहकर इसका उल्लेख किया है। चीन के विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि यह ट्वीट चीन के कलंक हैं। चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने कहा कि ट्रंप की भाषा नस्लवादी और जेनोफोबिक थी और कोरोना वायरस पर बढ़ते खतरों को लेकर राजनेताओं ने गैर-ज़िम्मेदारी और अक्षमता का परिचय दिया है।

सवाल यह है कि चीन ने अचानक किसी चमत्कार की तरह इस महामारी पर एक साथ किस तरह से काबू पा लिया? 18 मार्च को चीन ने पहली बार कोरोना वायरस का कोई भी नया मामला नहीं आने की जानकारी दुनिया को दी। इसके बाद से चुनिंदा केस ही सामने आये, वह भी वुहान के इलाके से ही। हालाँकि वुहान, जहाँ कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत हुई; वह इलाका बाकी हिस्सों से पिछड़ रहा है। क्योंकि लॉकडाउन के बाद वहाँ पर लम्बे समय बन्द रहा। लेकिन अब उसको भी धीरे-धीरे खोल दिया गया है।

मान लेते हैं कि इस महामारी का वायरस फैलने के पीछे कोई साज़िश नहीं हो और केवल तथ्यों पर बातचीत की जाए, तो पहला तथ्य यह है कि जब दुनिया के अधिकांश लोग पीडि़त थे और कोरोना वायरस दुनिया भर के दूरदराज़ इलाकों में पहुँच चुका था, तब चीन के अधिकांश शहर इससे अछूते थे। क्यों? यह कैसे सम्भव हुआ और हो सकता है? क्या चीन के पास पहले से इस वायरस से निपटने की दवा थी? अगर ऐसा था, तो क्या चीन जानता था कि यह वायरस फैलने वाला है? दूसरा, चीन ने अभी तक दुनिया को इस खतरनाक वायरस के निपटने का असली नुस्खा नहीं बताया है। आिखर क्यों? क्या चीन चाहता है कि दुनिया में यह तबाही फैली रहे और वह इसकी आड़ में अपना व्यापार करता रहे?

शंघाई, बीजिंग कैसे रहे अछूते?

शंघाई की आबादी करीब 2.5 करोड़ है और यहाँ पर सिर्फ 468 मामले सामने आये। इतनी ही नहीं यहाँ इस वायरस से सिर्फ 5 मौतें ही हुईं। बीजिंग की आबादी 2.15 करोड़ है, लेकिन कोरोना वायरस के यहाँ केवल 500 मामले आये और सिर्फ 8 मौतें हुईं। ये दो शहर दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से हैं। ऐसे में इन दोनों शहरों में चुनिंदा मामले सामने आने से कुछ संदेह तो पैदा होना स्वाभाविक है कि आिखर चीन के वित्तीय केंद्र इस खतरनाक वायरस से कैसे अछूते रह गये?

दुनिया भर के स्वास्थ्य से जुड़े विषेशज्ञ मामले को बारीकी से देख रहे हैं। हॉन्ग कॉन्ग यूनिवॢसटी (एचकेयू) के महामारी विज्ञान के कीजी फुकुदा के हवाले से साइंस जर्नल के लिए डेनिस नॉॢमले ने लिखा- ‘चीन ने पूरी दुनिया को एक मुद्दे पर घेरकर रख दिया है कि आिखरकार एक ही समय में सामाजिक गतिविधियों को कैसे सामान्य और बहाल किया जाए?  इसके साथ ही सभी यही सोच रहे हैं कि इस महामारी के प्रकोप से होने वाले खतरे को कैसे कम किया जाए?’

चीन की बात करें, तो अब वहाँ पर जो भी इसके संक्रमण के नये मामले आ रहे हैं, वे बाहर से आने वाले चीन के लोग हैं। 18 मार्च के बाद से वहाँ जाने वाले हवाई यात्रियों में 500 से अधिक मामलों की पुष्टि की गयी है। अब चीन की सरकार ने चीन में लगभग सभी विदेशियों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इसके साथ ही ऐसे सभी चीन ने अपने लोगों को दो हफ्ते के लिए अलग रहने (क्वारंटाइन में) रखने की पहल की है, जो बाहर से वहाँ पहुँच रहे हैं। चाहे वे हवाई मार्ग से आ रहे हों या अन्य किसी मार्ग से।

चीन ने अब अपने पर्यटन स्थलों को भी खोल दिया है। लेकिन कोरोना वायरस के वापस आने के भय से वहाँ फिलहाल विदेशियों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। कहा जा सकता है कि जिस तरह से चीन में बदलाव आ रहा है, उससे लगता है कि कुछ ही हफ्तों में चीन में जन-जीवन फिर से सामान्य हो जाएगा। लेकिन वहाँ फेस मास्क सर्वव्यापी है। सार्वजनिक स्थलों पर लोग इसे पहनते हैं, साथ ही सोशल डिस्टेंस को भी अपना रहे हैं। इसके अलावा लाखों लोग अब भी घर से ही काम करना जारी रखे हुए हैं। हालाँकि, रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन की विनिर्माण क्षेत्र की लगभग 10,000 इकाइयों ने फिर से उत्पादन शुरू कर दिया है।

कोरोना वायरस से बचने के लिए जाँचकर्ता किसी भी नये संक्रमित मामले की पुष्टि के साथ ही उसे और उसके सम्पर्क में आने वालों को क्वारंटाइन में रख रहे हैं। इसके अलावा एहतियातन बीजिंग और अन्य प्रमुख शहरों में क्लीनिकों में पहुँचने वाले सभी मरीज़ों का अब वायरस के लिए परीक्षण किया जा रहा है। कई प्रान्त अपनी सीमा पार करने वाले प्रवासी श्रमिकों और अन्य लोगों के स्वास्थ्य की जाँच भी कर रहे हैं। सरकार की ओर से लगाये गये नये यात्रा प्रतिबन्धों पर भले ही आपत्ति जतायी गयी थी, जब अमेरिका ने जनवरी में चीन के आगंतुकों पर प्रतिबन्ध लगाया था। लेकिन अब समझ में आ रहा है कि यह बाकी दुनिया के लिए कितना जोखिम भरा था और इसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले भी लिया। चीन में उड़ानों पर भी भारी अंकुश लगाया गया है। इसके अलावा चीन अपने नागरिकों की सख्त स्क्रीनिंग करता है और वे इससे गुज़रते भी हैं। यही नहीं, चीन बाहर से वापस आने वाले अपने नागरिकों को दो हफ्ते के लिए क्वारंटाइन में रखता है।

अब आहिस्ता-आहिस्ता और व्यवस्थित तरीके से प्रतिबन्धों में ढिलाई बरती जा रही है। पहले कई रेस्तरां कुछ घंटों के लिए और सीमित ग्राहकों के लिए ही खोले गये थे; अब सभी के लिए उन्हें खोला जा रहा है। कई प्रान्तों में प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल फिर से खुल गये हैं, लेकिन केवल इस बीमारी से मुक्त स्थानों पर। फिर भी यहाँ स्कूलों को छात्रों की स्क्रीनिंग भी की जा रही है, तब उन्हें कक्षा (क्लास) में प्रवेश दिया जा रहा है। इसके अलावा विश्वविद्यालयों; जहाँ देश भर के छात्र होते हैं; की पढ़ाई जारी रखने के लिए ऑनलाइन ही कक्षाएँ ली जा रही हैं। भीड़ जुटाने वाले कार्यक्रमों पर फिलहाल प्रतिबन्ध बरकरार रखा गया है। कई शहरों में लाइव म्यूजिक वेन्यू और जिम बन्द हैं। मेट्रो के प्रवेश द्वार और फैक्ट्री में एंट्री करने वालों की थर्मल स्क्रीनिंग यानी तापमान की जाँच की जाती है।

ड्यूक कुन्शान विश्वविद्यालय के महामारी विज्ञानी बेंजामिन एंडरसन कहते हैं- ‘कुल मिलाकर चीन की रणनीति फिर से स्थिति को सामान्य करने में प्रभावी रही है। चीन के लिए बहुत कुछ दाँव पर है। अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद में इस वर्ष की पहली तिमाही में 10 फीसदी की कमी हो सकती है, जो 1976 के बाद से सबसे खराब होगी। यूरोप और अमेरिका के खुद इस महामारी से जूझने के साथ ही चीन में बने सामान की माँग बढ़ गयी है। मास्क और चिकित्सा उपकरणों की चीन अलग से आपूर्ति कर रहा है।’

चीन में रातोंरात बन गये कारखाने

चीन की सीडीसी के निदेशक जॉर्ज गाओ कहते हैं कि उनकी रणनीति यह है कि जब तक कोई वैक्सीन या दवा उपलब्ध नहीं होती, तब तक यह समय बिताना होगा। इसके लिए अब वेंटिलेटर, फेस मास्क और अन्य उपकरणों का निर्माण चीन ने शुरू कर दिया है; जिनका उपयोग कोरोना वायरस को फैलने से रोकने और जाँच व इलाज में मेडिकल स्टाफ द्वारा किया जाता है। बीजिंग की एक एएफपी रिपोर्ट ने यह भी पुष्टि की है कि कोरोना वायरस की महामारी जो चीन के एक शहर से पैदा हुई और अब इसने वैश्विक रूप ले लिया है। चीन में हज़ारों कारखाने ऐसी चीज़ों के निर्माण के लिए खोल दिये हैं, जिनका निर्यात करके उसने इस अवसर को अपने मुनाफे के तौर पर भुनाना भी शुरू कर दिया है। फरवरी की शुरुआत में चीन में प्रकोप चरम पर था। इसी दौरान चीन की सरकार ने गुआन जुन्ज में महज़ 11 दिनों में एक नयी मास्क फैक्ट्री बना दी।

उत्तर-पूर्वी चीन में पाँच उत्पादन क्षेत्रों के साथ फैक्ट्री से एन-95 फेस मास्क बनाये, जो बेहद ज़रूरी थे और संक्रमण के मामले बढऩे के साथ ही इनकी माँग तेज़ी से बढ़ी। जैसा कि चीन में अब मामलों में कमी आयी है। 34 वर्ष से जो पहले फार्मास्यूटिकल्स में था; अब नये बाज़ार में मुनाफा कमा रहा है। मास्क व अन्य चिकित्सा उपकरणों की सप्लाई इटली के साथ ही अन्य देशों को भी जा रही है। बता दें कि कोरोना का कहर चीन के बाद सबसे ज़्यादा इटली में ही हुआ और अब तक पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा मरने वालों का आँकड़ा इटली का ही है।

साल के शुरुआती दो महीनों में 8,950 नये निर्माताओं ने चीन में मास्क का उत्पादन शुरू कर दिया। व्यापार डेटा मंच तियान्यांचा के अनुसार, माँग में भारी अन्तर को भरने के लिए प्रतिस्पद्र्धा शुरू हो गयी। लेकिन हुबेई प्रान्त के वायरस हॉट स्पॉट को लॉकडाउन पर रखे जाने के बाद और चीन में शुरुआत में लोगों की मौत की खबरें भी आयीं। बाद में दुनिया के अन्य देशों में फैलने के साथ ही नये गर्म स्थानों में वायरस का प्रकोप शुरू हो गया। वैश्विक रूप से करीब 15 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। इसके साथ ही पूरी दुनिया में करीब एक लाख लोग मौत के काल में शिकार हो चुके हैं। इससे सुरक्षात्मक उपकरणों की माँग अब तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि दुनिया भर के 200 से अधिक देशों में इसका प्रकोप जारी है।

दक्षिण-पूर्वी ग्वांगडोंग प्रान्त के डोंगगुआन शहर में एक एन-95 मास्क बनाने वाली कम्पनी की सेल्स मैनेजर शी जिंगहुई ने कहा- मास्क बनाना वर्तमान में नोट छापने जैसा है। पूर्व की तुलना में अब एक मास्क का मुनाफा कई सेंट तक पहुँच चुका है। एक दिन में 60,000 या 70,000 मास्क तैयार करने का मतलब, बिल्कुल वैसे ही जैसे नोट छापे जा रहे हों।’

क्यूई गुआंगटू ने अपने औद्योगिक क्षेत्र डोंगगुआन के मास्क बनाने वाली मशीनों के निर्माण में 50 मिलियन से अधिक युआन (10 मिलियन डॉलर) का निवेश किया। वुहान में लॉकडाउन के महज़ दो दिन बाद ही 25 जनवरी से यहाँ पर 24 घंटे निरन्तर उत्पादन जारी है; जबकि यह वायरस पहली बार सामने आया है। लागत वसूली निश्चित रूप से कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि 70 सेट उपकरण 5,00,000 से अधिक युआन में बेचे गये हैं। उनके हाथ में 200 से अधिक सेट अतिरिक्त ऑर्डर हैं, जिनकी कीमत 100 मिलियन युआन से अधिक है। कह सकते हैं कि मशीनें 15 दिनों में अपने कर्मचारियों का भुगतान करती हैं। क्यूई ने कहा कि उनके ग्राहकों के लिए निवेश का यह पैसा वसूल विकल्प है।

निर्माता यू लिक्सिन ने बताया कि उसने पहले कभी मास्क बनाने की कम्पनी में हाथ नहीं आजमाया था। लेकिन जब बाज़ार में तेज़ी आयी और उन्होंने मौका देखा, तो उन्हें पहली बार उद्योग में प्रवेश करने से लेकर मास्क बनाने में सक्षम स्वचालित मशीनों की आपूर्ति करने में महज़ 10 दिन का समय लगा। उन्होंने बताया कि अब मैं रोज़ाना दो या तीन घंटे सोता हूँ और बाकी समय अपने ग्राहकों के लिए दे रहा हूँ।

गुआन के मुताबिक, उनके ग्राहक भी अपने संयन्त्र में सो जाते थे। वे भी अपनी नयी मशीनरी को जुटाने के लिए बेताब थे। उनमें से कुछ वानजाउ, पूर्वी झेजियांग प्रान्त में कपड़ा कारखानों के मालिक हैं, जिन्होंने फेस मास्क का उत्पादन करना शुरू किया था। वे ऐसी माँग का सामना कर रहे थे, जिनमें उनकी सप्लाई करने की क्षमता थी ही नहीं। यानी इतनी ज़्यादा माँग बढ़ी, कि उसकी डिलीवरी कर ही नहीं सकते थे। वायरस संकट के तेज़ी से उभार होने चलते लोगों में घबराहट भी बढ़ गयी। मास्क उत्पादन में तेज़ी से उछाल आने के बाद इसके कच्चे माल की कीमतों में भी भारी उछाल देखा गया।

गुआन के अनुसार, इस दौरान फैब्रिक की कीमतें अचानक आसमान छूने लगीं। उन्होंने बताया कि इनकी कीमत 10,000 युआन से बढक़र 4,80,000 युआन प्रति टन हो गयी। निर्माता लियाओ बियाओ ने जनवरी के अन्त में हुनान प्रान्त के बाहर से मास्क मशीन के कलपुर्जे लाने के लिए जद्दोज़हद की थी। क्योंकि उससे सटी सीमा को बन्द कर दिया गया था। अन्त में मास्क बनाने वाली मशीनों के लिए एक विशेषज्ञ परीक्षक प्राप्त करने के लिए लियाओ ने सामान्य मूल्य से 10 गुना अधिक का भुगतान किया। अब इसमें अंधाधुन्ध निवेश किया जा रहा है।

लेकिन उत्पादन के लिए बढ़ती लागत के बावजूद यह उद्योग मुनाफा कमाने के लिए आकर्षक बना हुआ है। चीन के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, उसकी रोज़ाना मास्क उत्पादन 116 मिलियन से अधिक हो गयी है, जिसमें बहुत से देशों की माँगें भी शामिल हैं।

गुआन पहले ही एक मिलियन मास्क इटली पहुँचा चुके हैं। जबकि शी के पास वर्तमान में दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के देशों के 200 सेंट से अधिक के ऑर्डर्स हैं। शी ने कहा कि डोंगगुआन अब भी दुनिया का कारखाना है। इसकी माँग पहली बार फरवरी के मध्य में बेहद तेज़ी से बढ़ी थी।

अब महामारी के कारण दूसरी लहर है। लियाओ अपने मास्क यूरोप और कनाडा में निर्यात करना भी चाह रहा है। मास्क की माँग हमारे देश में कम हो गयी है। अब हम अन्य देशों को समर्थन देने के लिए कुछ अतिरिक्त मास्कों की आपूर्ति कर सकते है। उन्होंने बताया कि हम दूसरों की मदद करने को तैयार हैं। गुआन प्रकोप से परे उद्योग के भविष्य के बारे में आशावादी हैं। उनका मानना है कि ज़्यादातर लोगों को इस प्रकोप के बाद मास्क पहनने की आदत हो जाएगी।

 किताब से लगा खौफ का अंदाज़ा

चीन पर शक की सुई क्यों घूम रही है? इसके पीछे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के दो कर्नलों- किआओ लियांग और वांग जियांगसुई द्वारा लिखित पुस्तक अनरीस्ट्रिक्टेड वारफेयर है। इसमें मुख्य रूप से यह चिन्ता ज़ाहिर की गयी है कि चीन तकनीकी रूप से विभिन्न तरीके से प्रतिद्वंद्वी को कैसे हरा सकता है? प्रत्यक्ष सैन्य टकराव पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय यह पुस्तक कई अन्य साधनों की तलाश करती है। पुस्तक को तब अंग्रेजी में एक पनामा के प्रकाशक ने अमेरिका को नष्ट करने के लिए चीन का मास्टर प्लान कवर के साथ जलते हुए वल्र्ड ट्रेड सेंटर की जलती तस्वीर के साथ छापा था। पुस्तक पश्चिम के खिलाफ डर्टी वार का खाका नहीं था, बल्कि भविष्य के युद्ध पर नयी सोच का आह्वान किया गया था।

फरवरी में तहलका ने क्या कोरोना वायरस चीनी जैविक युद्ध का हिस्सा है? शीर्षक से खबर प्रकाशित करके इस ओर इशारा किया था। इस खबर को तहलका ने जियोपॉलिटिकल और इंटरनेशनल रिलेशंस पर लिखे टायलर डरडेन के लेख के आधार पर प्रकाशित किया था। इसे ग्रेट गेम इंडिया ने प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया है कि चीन ने इसे हथियार बनाने के लिए कनाडा से कोरोना वायरस चुराया था? द ग्रेट गेम इंडिया ने दावा किया कि उसकी जाँच ने एजेंटों को चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम से जोड़ा है, जहाँ से वुहान कोरोना वायरस के फैलने का संदेह है।

इसमें कहा गया है कि पिछले साल कनाडा से एक रहस्यमय शिपमेंट को कोरोना वायरस की तस्करी करते पकड़ा गया था। इससे एक कनाडाई लैब में काम करने वाले चीनी एजेंटों का पता लगाया गया था। इसकी कहानी कुछ इस तरह है- 13 जून, 2012 को सऊदी अरब के जेद्दा में एक 60 वर्षीय व्यक्ति को बुखार, खाँसी, एक्सफोलिएशन और साँस लेने में तकलीफ के साथ एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह शख्स धूम्रपान भी नहीं करता था। लम्बे समय से उसे दवाइयाँ नहीं मिल रही थीं। उसके पास काॢडयोपल्मोनरी या गुर्दे की बीमारी का कोई इतिहास नहीं था।

मिस्र के वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर अली मोहम्मद ज़की ने अपने फेफड़ों से एक अज्ञात कोरोना वायरस को अलग कर दिया। रुटीन डायग्नॉस्टिक्स के कारण एजेंट को पहचानने में नाकाम रहने के बाद ज़की ने सलाह के लिए नीदरलैंड के रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर (ईएमसी) के एक प्रमुख वायरोलॉजिस्ट रॉन फुचियर से सम्पर्क किया। फाउचर ने ज़की द्वारा भेजे गये एक नमूने से वायरस का अनुक्रम किया। फ्यूचर ने एक व्यापक स्पेक्ट्रम (पैन-कोरोना वायरस) का इस्तेमाल किया, जो मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। इसे कई ज्ञात कोरोनविर्यूज की विशिष्ट विशेषताओं के लिए परीक्षण करने के लिए वास्तविक समय पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) विधि का उपयोग कर किया जाता है।

कोरोना वायरस का नमूना कनाडा के नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लैबोरेटरी (एनएमएल) के वैज्ञानिक निदेशक डॉक्टर फ्रैंक प्लमर ने विन्निपेग में फाउचर से प्राप्त किया था, जिनको यह ज़की से मिला था। द ग्रेट गेम इंडिया का आरोप है कि चीनी एजेंटों ने कथित तौर पर कनाडाई लैब से इस वायरस को चुराया था। इसमें बताया गया है कि 4 मई, 2013 को डच लैब से कोरोना वायरस कनाडा की एनएमएल विनीपेग सुविधा में पहुँचा। कनाडाई लैब ने इस वायरस के स्टॉक को बढ़ाया और इसका उपयोग कनाडा में होने वाले डायग्नॉस्टि टेस्ट के आकलन में किया। विन्निपेग के वैज्ञानिकों ने यह देखने के लिए काम किया कि किस पशु की प्रजाति नये वायरस से संक्रमित हो सकती है।

फिर से कोरोना लहर का खौफ

हालाँकि, चीन ने आॢथक गतिविधि शुरू कर दी है, लेकिन वैज्ञानिकों को डर है कि चीन के लॉकडाउन में आसानी के साथ दूसरा कोरोना वायरस वायरस हो सकता है। कुछ महीनों में पहली बार चीन का हुबेई का प्रान्त, जहाँ कोरोना वायरस पहली बार कहर बना; अब वहाँ पर लोग उसे अच्छी वजह के लिए जानना पसन्द करना चाहेंगे। कोविड-19 के मामले भले ही कहने को यहाँ पर शून्य के स्तर पर आ गये हैं, जिसके चलते यहाँ पर बाहरी यात्रियों के लिए लगा प्रतिबन्ध हटा दिया गया है। इस इलाके को अचानक 60 दिनों के लिए पूरी तरह से बन्द कर दिया गया था। अब वैज्ञानिक और बाकी दुनिया यह करीब से देख रहे हैं कि फिर से नये मामले सामने न आयें, इसके लिए लोगों को अलग रखने के लिए उपाय अपनाना आसान हो गया है।

30 मार्च को नेचर रिसर्च जर्नल में डेविड साइरोन्स्की ने अपने शुरुआती विश्लेषण में पाया कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह वायरस फिर से संक्रमित नहीं करेगा, क्योंकि इसकी आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता है। यह लॉकडाउन के द्वारा राहत लेने का समय ज़रूर है, लेकिन हमें संक्रमण की सम्भावित अगले खतरे के लिए सतर्क रहने की ज़रूरत है। बेन काउलिंग कहते हैं- ‘हांगकांग विश्वविद्यालय में महामारी के विषेशज्ञ हैं, जो कि चीन की स्थिति पर नज़र बनाये हुए हैं।’ काउलिंग के मुताबिक, यदि दूसरी लहर आती है, तो ऐसा अप्रैल के अन्त तक हो सकता है।

हुबेई और पूरे चीन में अब आगे कैसे चीज़ें बदलती हैं? यह कई यूरोपीय देशों और कुछ अमेरिकी राज्यों के लिए बेहद प्रासंगिक होगा, जिन्होंने अपनी सीमाओं को बन्द कर दिया है। इतना ही नहीं, इन देशों और राज्यों में अधिकांश व्यवसाय, स्कूल और विश्वविद्यालय व धाॢमक स्थलों में पर ताला लगा दिया गया है और लोगों से कहा गया है कि घर पर ही रहें। घर से बाहर निकलने की कोशिश न करें, क्योंकि बाहर निकलने का मतलब है कि आप भी इसकी गिरफ्त में आ सकते हैं। ब्रिटेन में फैले प्रकोप का आकलन करने से पता चलता है कि स्कूल और विश्वविद्यालय बन्द किये जाने और देश के सामाजिक जमावड़े को अगले दो वर्षों तक रोकना होगा, ताकि बड़े पैमाने पर कोविड-19 संक्रमण पर नियंत्रण पाया जा सके साथ ही अस्पतालों में ज़रूरी प्रबन्ध की व्यवस्था की जा सके।

लेकिन अगर चीन ने यह दिखा दिया कि कोविड-19 के दोबारा होने की आशंका से पहले ही उसने लॉकडाउन को खत्म कर दिया है, तो हो सकता है कि आगे इस तरह की कई देशों में लगायी जा रही पाबन्दियाँ ज़रूरी नहीं लगेंगी। चीन अब नये संक्रमणों का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण करके सम्पर्क की ट्रैसिंग करेगा साथ ही सामाजिक दूरी का पालन भी किया जाएगा। चीन ने अपनी सीमाओं को भी सभी के लिए बन्द कर दिया है, लेकिन लोगों की आवाजाही से इसके आने की आशंका बरकरार है। क्योंकि वहाँ बाहर से वापस लौटने वाले नागरिकों को 14 दिन तक क्वारंटाइन पर रखा जा रहा है। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि चीन में स्थिति भिन्न है। क्योंकि वहाँ की सरकार ने आक्रामक तरीके से काम किया है, ताकि सम्भावित ट्रांसमिशन स्रोतों पर रोक लगायी जा सके। संक्रमित लोगों के प्रसार और व्यापक परीक्षण और सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन किया गया। इस रणनीति ने देश को प्रकोप से बचाने में मदद की। लेकिन अन्य देशों, जैसे कि इटली और स्पेन ने मुख्य रूप से वायरस को धीमा करने पर ध्यान केंद्रित किया। इससे सामाजिक उपाय नहीं अपनाये गये, साथ ही बहुत शुरुआत में बहुत ज़्यादा जाँचें नहीं की गयीं और न ही लोगों को ट्रैस किया गया। काउलिंग कहते हैं कि वे महामारी के बाद अब फिर से पहले जैसे जीवन में लौटना एक बड़ी चुनौती साबित होने वाली है।

फिर भी चीन में नये तरह से प्रकोपों का खतरा अधिक है। क्योंकि वहाँ पर लोगों के बीच वायरस आसानी से आगे भी एक से दूसरे में पहुँच सकता है; हांगकांग यूनिवॢसटी के संक्रामक रोग से जुड़े शोधकर्ता गेब्रियल ल्यूंग कहते हैं कि अब कई इलाके ऐसे हैं जहाँ पर जाँच नहीं हो सकी है कि वहाँ पर संक्रमण है या नहीं। सम्भव है कि लॉकडाउन पर्याप्त न हो और वायरस को खत्म करने के लिए कहीं और ज़्यादा गम्भीर तरीके अपनाये जाने की आवश्यकता हो सकती है। तनाव के चलते सेहत पर असर, अर्थ-व्यवस्था को बचाये रखना और भावनात्मक लगाव हर सरकार के लिए आगे परेशानी का सबब होंगे।

प्रतिबन्ध लगाना आसान नहीं

हुबेई में करीब 6 करोड़ की आबादी है और यहाँ लोगों का सामान्य जीवन वापस आने में लम्बा समय लग सकता है। कहने को भले ही पाबन्दियाँ हटा दी गयी हों, पर अभी बहुत से एहतियात बरतने पड़ रहे हैं। लोग धीरे-धीरे काम पर लौट रहे हैं और अब स्कूल व कारखाने फिर से खुल रहे हैं। सरकारी अधिकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय, स्कूल और बाल देखभाल केंद्र महामारी नियंत्रण की स्थिति का वैज्ञानिक आकलन अभी किया जाना है। हुबेई की राजधानी वुहान में और बाहर सफर करने के लिए 8 अप्रैल तक प्रतिबन्ध लगा रखा है। इससे पहले लोगों को आने और जाने के लिए वायरस का परीक्षण करना भी अनिवार्य किया गया। 18 मार्च से हुबेई में केवल एक नया मामला सामने आया है।

यूके की एक टीम ने मॉडल बनाया है कि छ: चीनी प्रान्तों में सबसे ज़्यादा कोविड-19 के मामलों में यात्रा करने में बरती गयी ढिलाई के बाद नये संक्रमणों के मामले तेज़ी से बढ़े। इन प्रान्तों में हुबेई, बीजिंग, ग्वांगडोंग, हेनान, हुनान और झेजियांग शामिल हैं। लॉकडाउन से नये कोविड-19 मामलों का पूरी तरह से खात्मा करने में मदद मिली।

इंपीरियल कॉलेज लन्दन में संक्रामक रोग शोधकर्ताओं नील फग्र्यूसन और स्टीवन रिले की टीम ने पाया कि फरवरी के अन्त में इन क्षेत्रों में आवाजाही और आॢथक गतिविधि को देखा जाए, तो हुबेई को छोडक़र सभी प्रान्तों में इज़ाफा दर्ज किया गया। नये संक्रमणों की संख्या शून्य के करीब पहुँच गयी। मार्च में हुबेई में गतिविधि फिर से शुरू होने के कारण, नये मामलों की संख्या एकदम कम हो गयी। विश्लेषण का निष्कर्ष यह रहा कि लॉकडाउन की सख्ती के साथ वायरस का सामना करने के बाद भी चीन ने कुछ हद तक अपनी कठोर सामाजिक-दूरी की रणनीति को सफलतापूर्वक अपनाकर इससे निपटने में सफलता पा ली।

यूनिवॢसटी ऑफ साउथैम्पटन, ब्रिटेन के एंड्रयू टेटम जो नयी तरह की बीमारियों के बीमारियों के शोधकर्ता हैं, उनका कहना है कि जितनी दूरी, उतना ही अच्छा है। लेकिन इसके निष्कर्षों तक पहुँचने से पहले कुछ सावधानियाँ बरतनी चाहिए। छ: प्रान्तों में आवाजाही और आॢथक गतिविधि का स्तर, जिसे समूह ने परखा था; उनमें से केवल आधे ही प्रकोप से पहले वाली स्थिति में आये; सिवाय झेजियांग प्रान्त को छोडक़र। यहाँ पर ही महामारी से पहले वाली स्थिति प्रतीत हो रही है। गतिविधियों में इज़ाफा और नये मामलों सामने आने की रिपोर्ट में एक अंतराल भी हो सकता है। हम फिलहाल देखने और इंतज़ार करने वाली स्थिति में है। वे कहते हैं कि आगे की गतिविधियों का ग्राफ कैसा होगा, जो सामान्य होने की ओर हो सकता है? उसे देखना दिलचस्प होगा।

दूसरी लहर

लेउंग कहते हैं कि वायरस को समुदाय में दोबारा से फैलने में दिक्कत होगी। क्योंकि अगर 50 से 70 फीसदी लोग अगर इसके संक्रमित हो चुके होंगे, तो वे अब इस रोग से लडऩे में सक्षम होंगे। पर उन्होंने कहा कि वुहान में भी, जो चीन के 81,000 से अधिक मामलों के ज़िम्मेदार है; उन लोगों की संख्या-जो संक्रमित हैं और अब जो रोग से लडऩे में बचे होंगे, जिनकी प्रतिरोधक क्षमता नहीं होगी-वह  शायद 10 फीसदी से कम है। इसका मतलब यह है कि बहुत सारे लोग अब भी संक्रमण की चपेट में हैं। वैक्सीन से इम्यून लोगों की संख्या बढ़ेगी, लेकिन अभी कम-से-कम एक साल तक किसी टीके के ईज़ाद होने की उम्मीद नहीं है। वे कहते हैं कि इतनी बड़ी तादाद राहत लेने वाली नहीं है।

टेटम कहते हैं कि इन उपायों को आसान बनाने के अपने जोखिम हैं; जिसके लिए आपको केवल हॉन्गकॉन्ग में देखना होगा कि वहाँ पर क्या होता है? हॉन्गकॉन्ग के साथ ही सिंगापुर और ताईवान में भी कोरोना वायरस के शुरुआती प्रसार के बारे में देखना होगा कि वहाँ कैसे तीन से जाँच व ट्रैसिंग के ज़रिये काबू पाया गया।

इसके बाद भी तीनों क्षेत्रों में नये संक्रमणों के मामले में पाये गये। इनमें से अधिकांश विदेश से आये लोग थे, लेकिन कुछ में स्थानीय ट्रांसमिशन का भी पता चला है। इन तीन क्षेत्रों ने अब अस्थायी रूप से अंतर्राष्ट्रीय आगंतुकों पर प्रतिबन्ध लगा दिया है और लौटने वाले निवासियों को दो सप्ताह क्वारंटाइन में समय बिता रहे हैं। टेटम का कहना है कि ज़रूरी उपायों को धीरे-धीरे और अति-सावधानी बरतनी होगी। साथ ही बेहद करीब से निगरानी किये जाने के साथ भरपूर आराम करने देना होगा।

अंत में…

कोरोना वायरस के बारे में एक बात यह है कि कोरोना वायरस वास्तव में कितना घातक है? यह बात विभिन्न वैज्ञानिकों के लिए चर्चा का विषय तो है ही, साथ ही यह गहरा रहस्य भी है। इसकी उत्पत्ति कैसे हुई? और चीन के भले ही इस पर नियंत्रण पा लिया हो, पर बाकी दुनिया अब भी क्यों इससे जूझ रही है? इन सवालों के जवाब नहीं मिल पा रहे हैं। विश्व बैंक ने कहा है कि महामारी से होने वाले आॢथक नुकसान से पूर्वी एशिया की बड़ी आबादी को गरीबी में बदल सकता है। विश्व बैंक ने कहा है कि महामारी से वैश्विक अर्थ-व्यवस्था को अभूतपूर्व झटका लगने वाला है, जिससे विकास की गति थम सकती है। साथ ही कई इलाकों में गरीबी बढ़ सकती है। यह सब बातें बिल्कुल युद्ध जैसी स्थिति की ओर इशारा कर रही हैं। यह शायद चीन ही है, जिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं। साथ ही कोरोना वायरस के फैलने को लेकर उसकी भूमिका पर रहस्य भी कायम है!

चरमरायेगी वैश्विक अर्थ-व्यवस्था

कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप से यूरोप, अमेरिका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के दर्जनों केंद्रीय बैंकों द्वारा वैश्विक वित्तीय संकट की घोषणा की जा चुकी है। तमाम बड़े प्रोत्साहन पैकेज के ऐलान किये जाने के बावजूद वित्तीय बाज़ार की हालत खस्ता बनी रहने की आशंका बरकरार है। स्टॉक, बॉन्ड, सोने और कमोडिटी की कीमतों में गिरावट तो स्पष्ट थी, लेकिन प्रकोप ने उम्मीद से कहीं ज़्यादा गम्भीर आॢथक क्षति पहुँचायी है। पूर्वानुमान लगाया गया है कि 2020 की वैश्विक जीडीपी -2 फीसदी से 2.7 फीसदी के बीच रहेगी।

भारत भी वैश्विक मंदी से नहीं अछूता

हालाँकि भारत को एशियाई देशों में असर के बारे में ज़्यादा सुरक्षित माना जाता है। लेकिन वैश्विक मंदी का असर पडऩा तय है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन के चलते कई क्षेत्रों पर विपरीत असर पडऩे वाला है। इन प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण, तेल, वित्तीय व अन्य शामिल हैं। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट की अर्थ-व्यवस्था को लेकर नवीनतम पूर्वानुमान के अनुसार, मंदी की स्थिति में आने वाले दिनों में कई कम्पनियों के दिवालिया होने की आशंका बढ़ गयी है। भारत पर भी वैश्विक मंदी का असर निश्चित तौर पर पडऩे वाला है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने 27 मार्च को कैलेंडर वर्ष 2020 में भारत की जीडीपी वृद्धि के लिए अपने पूर्वानुमान को 5.3 फीसदी से 2.5 फीसदी तक तेज़ कर दिया। यह आकलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देश भर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा के बाद 10 दिनों के अन्दर दूसरी बार जारी किया था।

ग्लोबल मैक्रो आउटलुक 2020-21 में मूडीज ने भारत के बैंकिंग और गैर-बैंकिंग क्षेत्रों में गम्भीर स्थिति आने वाली है, इससे विकास में बाधा हो सकती है। वैश्विक और घरेलू दोनों तरह की रेटिंग एजेंसियाँ इस बात पर एकमत हैं कि कोविड-19 महामारी भारत के लिए एक आॢथक सूनामी साबित होगी। भले ही देश यूरोजोन, अमेरिका या एशिया-प्रशांत के विपरीत मंदी के दौर की स्थिति में न पहुँचे; लेकिन चीन के साथ व्यापार सम्बन्ध मज़बूत होने के चलते भारत की जीडीपी वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। यही विश्लेषकों का मानना भी है। भारत में 21 दिनों के लॉकडाउन के साथ ही इसके आगे बढऩे की भी पूरे आसार हैं। ऐसे में कोरोना वायरस के खतरे के साथ ही आॢथक हालात भी और खराब होने के संकेत मिल रहे हैं। इस गिरावट का इतना ही असर अगले वित्त वर्ष 2021 पर भी पड़ेगा।

विदित हो कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लॉकडाउन के असर को कम करने के मकसद से 26 मार्च को 23 अरब रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इसके बाद ब्याज दरों में कटौती का ऐलान किया, ताकि विपरीत परिस्थितियों से निपटने में मदद मिल सके। इसका मकसद यह है कि कारोबार के लिए कर्ज़ की उपलब्धता हो और गैर-परम्परागत उपायों की भरपाई की जा सके। भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि पहले से ही काफी कम है और आॢथक उत्पादन में किसी भी तरह का सेंध लगने का मतलब है कि उन श्रमिकों के लिए कहीं ज़्यादा पीड़ादायक साबित होने वाला होगा, जिन्होंने हाल के दिनों में अपनी कमाई में कमी देखी है।

जैविक जासूसी

मार्च, 2019 में रहस्यमयी तरीके से कनाडा के एनएलएल के अपवाद वाले वायरस जनित वायरसों का शिपमेंट का अन्त चीन में हो गया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनएमएल के वैज्ञानिकों ने कहा था कि उसमें जानलेवा वायरस थे; जो सम्भवत: जैविक हथियार थे। जाँच के बाद इस घटना का पता एनएमएल में जासूसी के लिए कुछ चीनी एजेंटों को लगा दिया गया। एनएमएल कनाडा की एकमात्र चार स्तर की सुविधा सुविधा वाली है और यह उत्तरी अमेरिका में से महज़ में कुछ एक में ही दुनिया की सबसे घातक बीमारियों से निपटने के तरीकों पर काम किया जाता है, जिनमें इबोला, सार्स, कोरोना वायरस आदि शामिल हैं।

एनएमएल के वैज्ञानिक, जिनको कनाडा की लैब से बाहर किया गया; उनमें से एक का पति भी था। साथ ही एक बायोलॉजिस्ट और शोध टीम के कुछ सदस्यों पर चाइनीज बायो वारफेयर एजेंट होने के आरोप लगे थे। ये एजेंट कनाडा के एनएमएल में शक्तिशाली वायरस का अध्ययन कर रहे थे। वैज्ञानिक दम्पति कथित तौर पर कई चीनी एजेंटों के साथ कनाडा के एनएमएल में घुसपैठ करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। क्योंकि चीन की वैज्ञानिक सुविधाओं की एक सीमा के छात्रों को सीधे चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम में शामिल किया गया है, जिसमें वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी और चीनी विज्ञान अकादमी, हुबेई शामिल हैं।

कनाडाई जाँच अब भी चल रही है और यह सवाल बना हुआ है कि क्या चीन के अन्य वायरसों या अन्य आवश्यक तैयारियों के लिए पिछला शिपमेंट 2006 से 2018 तक इसी तरह का था। कथित एजेंटों यानी वैज्ञानिकों ने चीनी विज्ञान अकादमी के वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला के लिए 2017-18 में कम-से-कम पाँच यात्राएँ कीं। संयोग से वुहान नेशनल बायोसेफ्टी प्रयोगशाला, हुआनन सीफूड मार्केट से केवल 20 मील की दूरी पर स्थित है। कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रमुख केंद्र हुबेई प्रान्त का वुहान ही है।

वुहान राष्ट्रीय जैव सुरक्षा प्रयोगशाला को चीन की सैन्य सुविधा के अंतर्गत है; जहाँ पर वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का सम्बन्ध चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। वुहान संस्थान ने पहले भी कोरोना वायरस के साथ ही तनाव, सेवियर एक्यूट रेसपायरेटरी सिंड्रोम या सार्स, एच5एन1, इन्फ्लूएंजा वायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस और डेंगू का अध्ययन किया गया है। संस्थान के शोधकर्ताओं ने उस रोगाणु का भी अध्ययन किया, जो एंथ्रेक्स का कारण बनता है। यह एक जीवाणु है, जिसे रूस में विकसित किया गया था।

चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम को उन्नत चरण में माना जाता है, जिसमें अनुसंधान और विकास, उत्पादन और हथियार की क्षमताएँ शामिल हैं। माना जाता है कि इसकी वर्तमान सूची में पारम्परिक रासायनिक और जैविक एजेंटों की पूरी शृंखला को शामिल किया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार के डिलीवरी सिस्टम जैसे तोपखाने रॉकेट, हवाई बम, स्प्रेयर और कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं। सैन्य-नागरिक संलयन की चीन की राष्ट्रीय रणनीति ने जीव विज्ञान को प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया है और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने इसका विस्तार करके आगे इसके दुरुपयोग का रास्ता खोला है।

पीएलए जीव विज्ञान के क्षेत्र में सैन्य अनुप्रयोग कर रहा है। इसके अलावा मस्तिष्क विज्ञान, सुपरकम्प्यूटिंग और आॢटफिशियल इंटेलीजेंस पर भी काम कर रहा है। 2016 से केंद्रीय सैन्य आयोग ने सैन्य मस्तिष्क विज्ञान, उन्नत बायोमिमेटिक सिस्टम, जैविक और बायोमिमेटिक सामग्री, व्यक्ति के प्रदर्शन को नया मार्ग दिखाने के आलवा जैव प्रौद्योगिकी के क्षेप में नयी अवधारणा पर काम किया है। रणनीतिक आनुवांशिक हथियारों और बिना खून बहा, जीत की सम्भावना के बारे में बात करने वाले रणनीतिकार युद्ध के उभरते हुए डोमेन के रूप में जीव विज्ञान को लेते हैं और इसमें चीनी सेना रुचि ले रही है। जब तक कनाडाई जाँच चीन में वायरस की चोरी और शिपमेंट के बारे में पूरी नहीं हो जाती, तब तक रहस्य और सवालों से पर्दा नहीं उठेगा कि कोरोना वायरस ने चीन में कैसे प्रवेश किया।

जाँच और निगरानी

चीन अब भी पूरे देश में कोविड-19 की निगरानी कर रहा है। प्रान्त के सभी निवासियों को एक क्यूआर कोड, जो एक तरह का बारकोड जारी किया है; जिसके ज़रिये स्कैन करके उनके स्वास्थ्य के विवरण और भ्रमण का इतिहास (ट्रैवल हिस्ट्री) की जानकारी का पता चल जाता है। यदि कोई व्यक्ति चीन में सुरक्षित माने जाने वाले इलाकों में या फिर इस बीमारी के लिए क्वारंटाइन पीरियड बिता चुका और जाँच में निगेटिव आया हो, तो उसे ग्रीन स्टेटस दिया जाता है। यानी वह व्यक्ति सबसे कम जोखिम की श्रेणी में आता है। इससे उनको प्रान्तीय सीमाओं को पार करने, अस्पतालों और आवासीय क्षेत्रों में प्रवेश करने की अनुमति के साथ ही मेट्रो और ट्रेनों में सफर करने की अनुमति मिल जाती है।

इस तरह के उपाय न केवल संक्रमित लोगों को दूसरों के साथ घुलने-मिलने से रोकने में मददगार हैं, बल्कि यदि नया संक्रमण पाया जाता है, तो सरकार उस व्यक्ति की गतिविधियों को ट्रैक कर सकती है और उन लोगों को सूचित कर सकती है, जिनके वे सम्पर्क में आ चुके हों। काउलिंग ने इसे टेस्ट और ट्रैस (जाँच और निगरानी) का उन्नत रूप कहा है, जो चीन को यथासम्भव संक्रमित लोगों की पहचान करने और फिर उन्हें अलग करने में मददगार होगा। बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह का नया प्रकोप रोकने के लिए ऐसा उपाय पर्याप्त होगा। काउलिंग का मानना है कि दूसरे शहरों में यह दिक्कत हो सकती है, अगर वहाँ पर वुहान जितने टेस्ट करने पड़े; जो कि यहाँ पर चरम पर मामले सामने आने के बाद रोज़ाना करीब 10,000 टेस्ट किये गये। परीक्षण और अलगाव पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने में भी खतरा है। वे कहते हैं कि इस दौरान सामाजिक दूरी जैसे उपाय भी बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।

चीन के शहरी लोगों में लोगों को अलग रखने के उपायों में ढील दिये जाने के भी अपने खतरे हैं। शंघाई में संग्रहालय और पर्यटन स्थल 18 दिन पहले ही खोल दिये थे, जिनको फिर से बन्द कर दिया गया है। सिनेमाघर भी फिर से बन्द कर दिये गये। हालाँकि, शहर ने कुछ नियमों में ढील दी है। लोगों को अब आवासीय परिसर छोडऩे के लिए पास की आवश्यकता नहीं है और लोग इन क्षेत्रों में प्रवेश करके सामान का वितरण कर सकते हैं। शहर ने कुछ सार्वजनिक क्षेत्रों में मास्क पहनने की आवश्यकता को भी खत्म कर दिया है। इसके लिए पुलिस ने पहले ड्रोन या रोबोट पर अपनाकर देखा, फिर इसे अपनाया गया।

इटली, स्पेन और अमेरिका समेत अधिकांश यूरोपीय देशों में अब वायरस का प्रकोप चरम पर पहुँच रहा है, जिससे वे बुरी तरह प्रभावित हैं। वे सामाजिक दूरी जैसे उपायों पर भरोसा कर रहे हैं और लोगों को घर पर रहने के लिए ही कहा जा रहा है। चीन ने उन उपायों को तो अपनाया ही साथ ही नये अस्पतालों का भी निर्माण भी किया और बड़े पैमाने पर टेस्ट किये। इसके बाद स्वास्थ्यकॢमयों ने घर-घर जाकर लोगों के तापमान की जाँच की। उन्होंने, जिनमें टेस्ट के दौरान बुखार पाया; उनका टेस्ट करवाया। साथ ही उन्हें बाकी लोगों से अलग कर दिया। काउलिंग कहते हैं कि इस तरह अतिरिक्त कदम उठाकर चीन को वायरस फैलने से रोकने में मदद मिली। अब पूरी दुनिया इसका अनुसरण कर रही है। लेकिन ठीक उसी तरह नहीं, जैसा कि चीन ने किया है।

जाँच के दावे, बचाव के रास्ते

दुनिया की सबसे खतरनाक और खौफनाक बीमारी बन चुके कोरोना वायरस का इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। इसका तोड़ या इलाज तो फिलहाल नहीं मिला है, लेकिन डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने इस वायरस की आसान जाँच के दावे करने शुरू कर दिये हैं। हालाँकि, दुनिया भर में इस वायरस से निपटने के लिए की गयी खोजों में भी अभी एक ही नतीजा सामने आ रहा है और वह है कोरोना वायरस की चपेट में आने से खुद को बचाना। इसी बीच भारत में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) और अखिल भारतीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् (एआईसीटीई) ने कोराना वायरस पर विभिन्न रिसर्च और प्रयोगात्मक सफलता के बाद कुछ खोजों और जाँच के साधन ईजाद करने का दावा किया है। खोजकर्ताओं ने दावा किया है कि खोज के ज़रिये ईजाद किये गये सभी साधन आसानी से उपलब्ध हैं। एआईसीटीई की मानें, तो मुम्बई के एक स्टार्टअप संस्था अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी ने एक डिवाइस बनायी है, जो महज़ 5 मिनट में कोरोना वायरस के लक्षणों की 90 फीसदी सही जानकारी दे सकती है। यह डिवाइस हृदय की गति (दिल की धडक़न) और फेफड़ों में पाये जाने वाले तरल पदार्थ की जाँच करती है।

अभया इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलॉजी एलएलपी स्टार्टअप ने कहा है कि इस डिवाइस में हार्टबीट नाम का एक छोटा-सा उपकरण है, जो छाती पर लगाया जाता है। यह डिवाइस धडक़नों की गिनती और फेफड़ों में मौज़ूद तरल पदार्थ का आकलन करता है। इसका डाटा मोबाइल एप के ज़रिये प्राप्त किया जाता है। एप मरीज़ तथा डॉक्टर के पास होता है। इसके ज़रिये डॉक्टर दूर बैठकर भी जाँच रिपोर्ट प्राप्त कर सकता है।

ऑक्सीजन सप्लाई के लिए बनी नयी डिवाइस

कहते हैं कि कभी-कभी कुछ ढूँढो और कुछ मिल जाता है। इसी तरह इस बार जब कोरोना की दवा और पीडि़तों के इलाज में ज़रूरी चीज़ों की खोज की जा रही है, एक ऐसी डिवाइस की खोज सामने आयी है, जो ऑक्सीजन सिलेंडर की तरह मरीज़ को ऑक्सीजन देने के काम आयेगी। यह डिवाइस सेना के लिए रोबोट बनाने वाले पुणे के स्टार्टअप कॉम्बेट रोबोटिक्स इंडिया ने बनायी है। वेंटिलेटर की तरह ऑक्सीजन देने वाली अंबू एयर नाम की इस डिवाइस से कोरोना पीडि़तों को ऑक्सीजन सप्लाई की जाने की उम्मीद जगी है। एमएचआरडी के मुताबिक, इस खोज के बारे में सभी जानकारियाँ डीएसटी और टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड से साझा की गयी हैं। पुणे की इस कम्पनी ने कहा है कि इस डिवाइस को ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री में उपयोग होने वाले पाट्र्स की मदद से बनाया गया है। इस डिवाइस की खासियत यह है कि यह बिजली और बैटरी दोनों से चलती है।

बीएचयू का 100 फीसदी सही जाँच का दावा

इधर, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस की 100 फीसदी जाँच का दावा किया है। यह जाँच का दावा बीएचयू में शोध-छात्राओं द्वारा रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पॉलीमर चेन रिएक्शन (आरटी- पीसीआर) नाम की एक तकनीक विकसित किये जाने के बाद किया गया है। शोध छात्राओं की मदद से इसे डिपार्टमेंट ऑफ मॉलीकुलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स की प्रो. गीता राय ने तैयार किया है। उनका दावा है कि इस तकनीक के ज़रिये एक से चार घंटे के अन्दर जाँच रिपोर्ट आ जाती है। इस तकनीक से कोरोना वायरस के प्रोटीन की जाँच की जाती है। दावे में कहा गया है कि आरटी-पीसीआर केवल ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस को पकड़ती है, जो सिर्फ कोविड-19 (कोरोना वायरस) में मौज़ूद है, इसलिए इसका 100 फीसदी सही परिणाम आयेगा। प्रो. गीता राय ने तकनीक का पेटेंट फाइल कर दिया है। भारतीय पेटेंट कार्यालय के मुताबिक, देश में इस सिद्धांत पर आधारित अब तक ऐसी कोई किट नहीं बनी है, जो कि ऐसे प्रोटीन सिक्वेंस की जाँच कर सके। सूत्रों की मानें, तो प्रो. गीता राय ने जल्द-से-जल्द कोरोना पीडि़तों की जाँच में तेज़ी लाने और राहत पहुँचाने के मद्देनज़र सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) और इंडियन काउंसिल मेडिकल रिसर्च ऑफ इंडिया (आईसीएमआर) को इस तकनीक का प्रस्ताव भेज दिया है। बताया जा रहा है कि इस तकनीक से कोरोना वायरस की जाँच आसान और सस्ती होगी। प्रो. गीता राय के मुताबिक, इस तकनीक के माध्यम से आसानी से अस्पतालों में उपलब्ध जाँच मशीनों के ज़रिये कोरोना वायरस की जाँच की जा सकती है।

न जाने कौन है पीडि़त? इसलिए दूर रहना ही एक मात्र रास्ता!

हाल ही में एक मेडिकल स्टोर पर दवा विक्रेता में कोरोना वायरस संदिग्ध पाया गया। समय पर पता चलते ही उस दवा विक्रेता को चिकित्सकों की निगरानी में भेज दिया गया। मेडिकल को भी सील कर दिया गया। हालाँकि, वह दवा विक्रेता निगेटिव निकला और उसे छोड़ दिया गया, मेडिकल भी अब खुल रहा है। दरअसल, कोरोना वायरस के पीडि़त का पता शुरू के पाँच-छ: दिन तक नहीं चल पाता। ऐसे में खौफ यही रहता है कि अगर कोई किसी कोरोना वायरस पीडि़त के सम्पर्क में गलती से भी आ गया, तो उसे तो वायरस होगा ही, उसके भी सम्पर्क में आने वालों को हो जाएगा।

अत: दूसरे के सम्पर्क से आने से बचाव ही खुद को और अपने सम्बन्धियों को बचाने का सबसे बढिय़ा रास्ता है। भारत में लॉकडाउन इसी के मद्देनज़र किया गया है। लेकिन अफसोस कुछ लोग मजबूरी में, तो कुछ लोग जानबूझकर इसका पालन नहीं कर रहे हैं। जानबूझकर लॉकडाउन तोडऩे के कई बड़े उदाहरण हमारे सामने आये। लॉकडाउन तोडऩे की इन घटनाओं ने न केवल कोरोना पीडि़तों की संख्या बढ़ायी, बल्कि बाकी लोगों में खौफ भी पैदा किया। इसके उदाहरणों में कनिका कपूर की पार्टी, मध्य प्रदेश में सरकार गठन के दौरान इकट्ठे लोग, निजामुद्दीन मरकज में इकट्ठे लोग और अपने घर जाने के लिए सडक़ों पर उतरे भूखे और मजबूर लोगों की भीड़ को लिया जा सकता है।

प्रकृति का बदला!

दुनिया में गहरी निराशा और कयामत जैसे हालात के बीच एक सुखद घटना भी हुई है। लॉकडाउन ने प्रकृति को खुद को फिर से सँवारने का अवसर दिया है। धरती और आसमान के बीच प्रदूषण से बनने वाले धुएँ और धुन्ध की परत कहीं गुम हो चुकी है और नीला आसमान फिर से चमकने लगा है। समुद्री जीवन मानो फिर से जीवंत हो उठा है। पक्षियों का कलरव प्रकृति में नया रंग भरने लगा है और जंगली जीव भी बिना भय के विचरण करने लगे हैं। उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरें बताती हैं कि प्रकृति पुन: जीवंत होने के संकेत दे रही है। कोविड-19 आँखें खोलने वाली घटना है, जो यह संकेत देती है कि यदि हम मानव अपना लालच त्याग दें, तो माँ स्वरूप पृथ्वी कैसे अपना शृंगार कर सकती है, जो कि हमारे लिए ही हितकारी है।

अब यह दुनिया भर में महसूस किया जा रहा है कि पशु व्यापार ने संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ा दिया है। हाल के वर्षों में इबोला, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मेर्स), रिफ्ट वैली बुखार, गम्भीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (सार्स), वेस्ट नाइल वायरस और ज़ीका वायरस सभी जानवरों से मनुष्यों तक पहुँचे। ये पशु जनित रोग हैं। माना जाता है कि यह संक्रमण (कोरोना वायरस) भी चीन के वुहान में उस बाज़ार से निकला, जहाँ जानवरों का व्यापार किया जाता है। यह सच्चाई सामने आने लगी है कि यह वायरस जानवरों में था और उनका मांस, खासतौर से कच्चा मांस खाने से मनुष्यों में पहुँच गया। यूँ तो कई जानवरों और अन्य वन प्रजातियों में खतरनाक वायरस हैं, लेकिन जैव विविधता इन्हें जंगलों तक सीमित और मानव परिवेश से दूर रखने का मार्ग खोलती है।

भेडिय़ों के पिल्लों से लेकर चूहों, लोमडिय़ों से लेकर ऊदबिलाव और बिल्ली, घोड़ों से लेकर सूअर तथा चमगादड़ जैसी वन्य प्रजातियों के व्यापार के चलते मानव में यह वायरस प्रविष्ट हुआ है। वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि निपाह और हेंड्रा जैसे घातक विषाणु चमगादड़ से सूअर, घोड़े और फिर इंसान में पहुँचे हैं। कोविड-19 ने फिर एक बार चेतावनी दी है कि यदि हमने पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया और भोजन के लिए वन्य प्राणियों को मारा, तो हमें ऐसे ही भयंकर नतीजों के लिए तैयार रहना चाहिए। मौज़ूदा महामारी ने बड़ी संख्या में मानव जीवन का नुकसान के साथ-साथ ही आर्थिक तबाही भी की है। संकेत साफ हैं कि हमें वनों और वन्यजीवों से छेड़छाड़ बन्द कर देनी होगी। हालाँकि, कोरोना नामक महामारी किसी को नहीं छोड़ रही, परन्तु यह भी एक तथ्य है कि गरीब इससे सबसे अधिक पीडि़त हुए हैं। किसान, श्रमिक और व्यवसाय सभी गम्भीर त्रासदी की चपेट में हैं, लेकिन हम उन अदृश्य हाथों को भूल गये हैं, जो कपड़े इस्त्री करते हैं; सीमांत दुकानदार हैं; कोने पर पान आदि बेचने वाले हैं; मोची, दर्जी, नाई, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, माली हैं; रिक्शा, कैब और ऑटो रिक्शा चालक हैं; सेविकाएँ (मेड्स) हैं; ऐसे व्यक्ति जो हमें चलती बसों, ट्रेनों और गलियों में गाकर मनोरंजन या दूसरी सेवाएँ प्रदान करते हैंं। करोड़ों हाथ, जो पुरुष और महिलाओं के रूप में अर्थ-व्यवस्था के सबसे निचले स्तर के मज़बूत पहिये हैं; गायब हो गये हैं। ये सब सरकारों और किसी सहायता समूह की मदद के बिना हैं। यह वो वर्ग है, जो रोज़ कमाता है और गुज़ारा करता है। आज यही वर्ग वास्तविक संकट में है। लेकिन हमने इन लोगों द्वारा अपने बच्चों, महिलाओं या बीमार परिजनों के लिए भीख माँगने का कोई उदाहरण नहीं देखा। आइए, इन लोगों को खयाल रखें, जो सच में हमारे शहरी जीवन की गाड़ी के वास्तविक पहिये हैं।

डॉक्टरों-नर्सों का सम्मान करना सीखें

दुनिया में कोरोना महामारी का प्रकोप किस कदर जारी है कि काफी कोशिशों के बावजूद इस वैश्विक महामारी से संक्रमित मरीज़ों व मरने वालों की संख्या में हर पल वृद्धि हो रही है। अमेरिका जो कि विश्व में सुपर पॉवर कहलाता है, वहाँ के हालात डरावनी तस्वीर पेश कर रहे हैं। हालात यह हैं कि वे डॉक्टर और नर्सें तक कोरोना वायरस नामक महामारी की चपेट से नहीं बच पा रहे हैं, जो पूरी सुरक्षा और सावधानी के साथ इससे संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं। हालाँकि ये डॉक्टर और नर्सें दिन-रात कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज करने में जुटे हुए हैं। लेकिन दु:खद कि कई डॉक्टरों, नर्सों की इस दौरान कोरोना वायरस की चपेट में आने से मौत भी हो गयी है। इस खतरनाक वायरस का इलाज ढूँढने की कोशिशें जारी हैं, पर कोई ठोस इलाज अभी तक नहीं मिला है।

ज़िन्दगी बचाने वाले भी सुरक्षित नहीं

चीन में इस वायरस के बारे में बताने वाले डॉक्टर की मौत हो गयी थी। इटली में भी करीब 100 डॉक्टर व नर्सों की कोरोना से मौत हो गयी और करीब 12 हज़ार स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से संक्रमित हो गये हैं। स्पेन में करीब 15 हज़ार स्वास्थ्यकर्मियों पर कोरोना वायरस ने हमला बोल दिया है। अमेरिका में भी स्वास्थ्यकर्मी कोरोना की चपेट में हैं। भारत में भी डॉक्टर और चिकित्साकर्मी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, यहाँ भी मौतें हुई हैं। कई अस्पताल के डॉक्टरों व नर्सों को क्वारंटाइन में भेजना पड़ा है।

सेवा की भावना दे रही हिम्मत

दुनिया भर के डॉक्टर, नर्स कोरोना इलाज के दौरान पीपीई की कमी का सामना करते हुए भी कोरोना संक्रमितों के इलाज में अपनी सेवा जारी रखे हुए हैं। डॉक्टरों और नर्सों को शायद यह हिम्मत उनके पेशे में सिखायी गयी सेवा की भावना से ही मिल रही है। ऐसे में हमें न केवल उनका सम्मान करना चाहिए, बल्कि उनकी मदद भी करनी चाहिए। लेकिन डॉक्टरों-नर्सों के प्रति कोरोना संक्रमितों की बदसलूकी और समाज का अछूत नज़रिये ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यह गलत है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि स्वास्थ्य आपातकाल की इस घड़ी में डॉक्टरों, नर्सों की ज़रूरत सबसे अधिक है और पूरा विश्व पहले से ही डॉक्टरों, नर्सों की कमी से जूझ रहा है।

डॉक्टरों से दुव्र्यवहार ठीक नहीं

भारत आबादी में दुनिया में दूसरे नम्बर पर है और कोरोना महामारी का सामना कर रहा है। यहाँ समाज के द्वारा डॉक्टरों, नर्सों के प्रति दुव्र्यवहार, अछूत रवैया या उनसे दूरी बनाने वाली खबरें चिन्ताजनक हैं। यूँ तो इसकी शुरुआत दिल्ली व अन्य राज्यों की इस खबर से हुई थी कि कई मकान मालिक किराये पर रहने वाले डॉक्टरों को घर खाली करने को मजबूर कर रहे हैं। मकान मालिकों को आशंका थी कि डॉक्टर के ज़रिये कोरोना वायरस उनके घर में न आ जाए।

गुरुद्वारे की पहल सराहनीय

जब मकान मालिकों द्वारा डॉक्टरों को निकालने की बात सामने आयी, तो दिल्ली में दिल्ली गुरुद्वारा प्रबधंक कमेटी और पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रंबधक कमेटी ने सराहनीय पहल की। इन कमेटियों ने गुरुद्वारा प्रांगण में बने आवासों में डॉक्टरों के रहने के लिए व्यवस्था करने का ऐलान कर दिया।

आधी-अधूरी सी सरकारी पहल

डॉक्टरों और चिकित्साकॢमयों को घरों से निकालने की खबर पर सरकार थोड़ी सख्त हुई। राज्य सरकारों ने मकान मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को भी कहा, कहीं-कहीं कार्रवाई हुई भी; लेकिन कोई खास नतीजा नहीं निकला। हाल ही में बिहार के बेगूसराय में एक महिला नर्स जब अस्पताल से घर लौटी, तो मोहल्ले वालों ने उसे घेर लिया और उसके वहाँ रहने का विरोध किया। उन्होंने बताया कि अब वह अपनी नर्स सहकर्मियों के साथ ठहरी हुई हैं और ड्यटी पर आती हैं। बिहार के ही नांलदा मेडिकल कॉलेज में केवल कोविड-19 के मरीज़ों का इलाज हो रहा है। वहाँ काम करने वाली एक महिला नर्स ने बताया कि उसका अपना मकान है, लिहाज़ा उन्हें कोई दिक्कत नहीं हो रही है। लेकिन उसकी कई सहकर्मी, जो किराये पर रहती थीं; उनसे मकान मालिकों ने यह कहकर घर खाली करवा लिये कि जब कोरोना खत्म हो जाए, तब लौट आना। उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद के एमजीएम अस्पताल में क्वारंटाइन में रखे गये 13 कोरोना संदिग्धों पर महिला मेडिकल स्टाफ के साथ अश्लील हरकतें करने के आरोप लगने वाली खबरें भी सामने आयीं। इस अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने पुलिस को दी गयी शिकायत में उन 13 लोगों पर वार्ड के अन्दर अश्लील गाने सुनने, महिला कर्मचारियों से बीड़ी-सिगरेट माँगने, नर्स व अन्य महिला मेडिकल स्टाफ को देखकर फब्तियाँ कसने का भी आरोप लगाया है। इसके बाद राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उस वार्ड में पुरुष स्वास्थ्य कर्मियों को तैनात करने का आदेश जारी किया। पुलिस ने भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। हालाँकि सरकारों की यह पहल आधी-अधूरी महसूस होती है। क्योंकि डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों की सुरक्षा से लेकर उनको सुरक्षित रखने तक की ज़िम्मेदारी सरकारों की है।

विदेशियों का सम्मानजनक नज़रिया

डॉक्टरों-नर्सों से अभद्रता को लेकर एनडीटीवी के प्राइम टाइम कार्यक्रम में रवीश कुमार ने इंग्लैड की डॉक्टर वीणा झा से बातचीत की। डॉक्टर वीणा ने बताया कि वहाँ के लोगों का डॉक्टरों, नर्सों के प्रति व्यवहार अच्छा है। सरकार भी उनका ध्यान रख रही है, जैसे कि सुपर मार्केट में सामान लाने के लिए डॉक्टरों को लाइन में नहीं लगना पड़ता। उन्हें तुरन्त सामान दे दिया जाता है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्यकर्मियों पर हो रहे हमलों की निन्दा की है और दुनिया को स्वस्थ रखने में डॉक्टरों, नर्सों के योगदान के महत्त्व को समझने की लोगों से अपील की है।

आखिर नर्सों का क्यों नहीं होता सम्मान?

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाता है। इसका मकसद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाना है। इस बार 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कोरोना महामारी के संकट के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नर्सों व मिडवाइफ की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए टेग लाइन दी- ‘स्पोर्ट द नर्सेस एंड मिडवाइफ’। यह कड़ुवी हकीकत है कि नर्सों व मिडवाइफ के काम को कमतर आँका जाता है और उन्हें उतना सम्मान नहीं मिलता, जितना मिलना चाहिए। जबकि स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों और मिडवाइफ की अहम भूमिका होती है। मरीज़ों की देखभाल करने में यह पहले और अकेले अहम् बिन्दु हैं। ज़्यादातर स्थितियों में इन्हें फ्रंटलाइन स्टाफ के तौर पर काम करना होता है। क्योंकि किसी भी स्वास्थ्य व्यवस्था में ज़्यादातर इन्हें ही मरीज़ों के सम्पर्क में रहना होता है और उनकी देखभाल में अधिक समय लगाना पड़ता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की बेहतर पहल

स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों को अहम कड़ी के रूप में स्वीकारते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में विश्व में इनकी स्थिति पर द स्टेट ऑफ द वल्डर्स नॄसग 2020 रिपोर्ट जारी की है। यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है। यह भी बता दें कि 2020 में विश्व प्रसिद्ध फ्लोरेंस नाइटिगेल के जन्म के 200 साल पूरे हो रहे हैं। उन्हें आधुनिक नॄसग आन्दोलन की जन्मदाता के तौर पर जाना जाता है। उनकी याद में विश्व स्वास्थ्य संगठन 2020 को अंतर्राष्ट्रीय नर्स व मिडवाइफ वर्ष के तौर पर मना रहा है।

नर्सों की कमी चिन्ताजनक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘दुनिया भर में 60 लाख नर्सों की कमी है। अगर विश्व को 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को हासिल करना है, तो नर्सों व मिडवाइफ की भर्ती बढ़ाने, उन्हें प्रशिक्षण और ढाँचागत सुविधाएँ देने, उनके वेतन में वृद्धि करने और उन्हें सुरक्षित माहौल देने के लिए राष्ट्रों को निवेश करना होगा। नर्सें व मिडवाइफ स्वास्थ्य तंत्र की मज़बूत कड़ी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2020 में हम हर राष्ट्र से नर्सों व मिडवाइफ पर निवेश करने का आह्वान किया है। गौरतलब हैं कि 2015 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने स्थायी विकास लक्ष्य यानी एसडीजी को 2030 तक हासिल करने के लिए प्रतिबद्धता जतायी थी। 2030 तक सभी की स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच हो, इसके लिए ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार वाली सूची में नर्सों की संख्या में इजाफे वाला बिन्दु भी अहम् है। अगर 2030 तक सभी देशों में नर्सों की कमी को दूर करना है, तो इसके लिए हर साल ग्रेजुएट नर्सों की दर को औसतन 8 फीसदी बढ़ाना होगा। दुनिया भर में 27.9 मिलियन नर्सें हैं, जिसमें 19.3 मिलियन पेशेवर नर्स हैं। 2030 तक विश्व को 5.9 मिलियन और नर्सों की ज़रूरत होगी। 80 फीसदी नर्सें विश्व की 50 फीसदी आबादी की सेवा में रहती हैं। विकसित मुल्कों में नर्सों की तादाद विकासशील मुल्कों की तुलना में बेहतर है। अफ्रीका में नर्सों की बहुत कमी है। भारत में 3.07 पंजीकृत नर्सें हैं। यूँ तो भारत से बड़ी संख्या में नर्सों का पलायन अमेरिका, इंग्लेड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, खाड़ी के मुल्कों में होता है, लेकिन यहाँ नर्सों की भारी कमी है। नर्सों की कमी से स्वास्थ्य सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मरीज़ों की देखभाल सही से नहीं हो पाती, सेवाओं की क्षमता, स्वास्थ्य गुणवत्ता प्रभावित होती है। अंतत: इसका बोझ पूरे स्वास्थ्य तंत्र पर पड़ता है और रोगी को पूर्ण स्वस्थ करने वाला नतीजा भी हासिल नहीं हो पाता। नर्सों पर अधिक कार्यभार रहता है, जिसका असर उनके मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। अब देखना यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा नर्सों व मिडवाइफ के लिए की गयी सिफारिशों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कितनी तव्ज्जोह देता है। अगर दुनिया के राष्ट्र 2020 में इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते हैं, तो यह फ्लोरेंस नाइटिंगेल को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

कोविड-19 : समाचार पत्रों की मुसीबत और संघर्ष

इन दिनों समाचार पत्रों को अपने पाठक सूचकांक को बनाये रखने के लिए एक कठिन दौर का सामना करना पड़ रहा है। क्योंकि कोरोना वायरस के भय से भारत में 21 दिन का लॉकडाउन ने समाचार पत्रों (अखबारों) के पाठकों की संख्या घटायी है। क्योंकि यह अफवाह थी कि अखबार का कागज़ भी  कोरोना वायरस को आप तक पहुँचा सकता है। कई प्रकाशकों को इस स्थिति ने अपने अखबार का प्रसार कम करने को मजबूर कर दिया। हॉकर भी डरे, फुटपाथ या दुकानों में पत्र-पत्रिका बेचने वालों को घर बैठना पड़ा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में अखबार पहुँचने की समस्या आने लगी है। हालाँकि सभी पत्रकारिता संस्थान खुल रहे हैं, पर प्रकाशन का काम काफी कम हुआ है। क्योंकि खपत ही कम हो गयी।

ममता बनर्जी ने दिखायी अक्लमंदी

अखबारों से कोरोना वायरस फैलने की अफवाह को समझते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अक्लमंदी दिखाते हुए इस व्यवसाय को उभारे रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जब उन्हें यह पता चला कि हॉकर्स यूनियन अखबारों को नहीं उठा रही, तब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिये लोगों से कहा- ‘मुझे जानकारी मिली है कि कई हॉकर अखबार नहीं उठा रहे हैं। मैं उन्हें बताना चाहती हूँ कि इस आपातकालीन स्थिति में समाचार पत्रों को छूट दी गयी है।’ अगले दिन मुख्यमंत्री ने फिर कहा कि आप सभी सही खबरों के लिए अखबार पढ़ें। उनका संदेश मीडिया के लिए संजीवनी जैसा था। जब यह संदेश हॉकरों और आम लोगों तक पहुँचा, तो हॉकर भी अपने काम पर वापस आने लगे और पाठक भी अखबार से फिर जुडऩे लगे, जिससे अखबारों का नियमित प्रकाशन जारी रहा। अब अखबार को लेकर वहाँ स्थिति लगभग सामान्य है, अन्यथा एक स्थिति तो यह आयी थी कि कुछ छोटे अखबारों ने प्रकाशन बन्द कर दिया था। एक बड़े अखबार ने भी दो दिन तक प्रकाशन नहीं किया था।

समाचार पत्र सुरक्षित : डब्ल्यूएचओ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दावा किया है कि अखबार अभी भी किसी के स्पर्श करने के लिहाज़ से सुरक्षित हैं। प्रिंट मीडिया आउटलेट में उपयोग किये जाने वाले कागज़ात अत्यधिक स्वचालित मिलों में उत्पादित किये जाते हैं और इस प्रक्रिया को शायद ही मानव हाथों की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, किसी  संक्रमित व्यक्ति के वाणिज्यिक वस्तुओं को दूषित करने की सम्भावना कम है। फिर भी शुरुआत में फैली एक अफवाह के बाद प्रिंट संस्करणों के प्रकाशन के निलंबन की खबरें पूरी दुनिया से आनी शुरू हो गयी थीं। भारत जैसे देश में यह स्थिति बहुत दुरूह थी, क्योंकि दुनिया के इस सबसे बड़ा लोकतंत्र में करीब 82,000 से अधिक अखबार पंजीकृत हैं और लाखों लोगों का रोज़गार इससे चलता है।

सोनिया गाँधी के विज्ञापन प्रतिबन्ध के सुझाव की निंदा

इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी (आईएनएस) ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के सरकार और पीएसयू के मीडिया को दिये जाने वाले विज्ञापनों पर दो साल तक प्रतिबन्ध लगाने के सुझाव की निन्दा की है। आईएनएस के सदस्यों के समस्त समुदाय की ओर से सोसायटी के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने एक बयान में इस पर असहमति जताते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के सुझाव की निंदा की है। आईएनएस प्रमुख ने कहा कि सोनिया गाँधी का प्रस्ताव वित्तीय सेंसरशिप जैसा है। वे जीवंत और स्वतंत्र प्रेस के हित में यह सुझाव वापस लें। आईएनएस के बयान में कहा गया है कि जहाँ तक इस सरकारी खर्च का सम्बन्ध है, यह बहुत छोटी राशि है। लेकिन यह अखबार उद्योग के लिए एक बड़ी राशि है, जो किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। क्योंकि वह अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रिंट एकमात्र उद्योग है, जिसमें एक वेतन बोर्ड है और सरकार यह तय करती है कि कर्मचारियों को कितना भुगतान किया जाना चाहिए। यह एकमात्र उद्योग है, जहाँ बाज़ार की ताकतें वेतन का फैसला नहीं करती हैं। लिहाज़ा सरकार की इस उद्योग के प्रति एक ज़िम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि अभी तो यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मंदी और डिजिटल विस्तार के चलते पहले ही विज्ञापन और प्रसार राजस्व में गिरावट आयी हुई है। सम्पूर्ण लॉकडाउन के कारण उद्योगों और व्यापार केंद्रों के बन्द होने से हमें पहले ही गम्भीर वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है। आईएनएस का यह बयान न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) के उस बयान के एक दिन बाद आया है, जिसमें उसने (एनबीए ने) भी सोनिया गाँधी के सुझाव की कड़ी निंदा की थी और उनसे अपना बयान वापस लेने के लिए कहा था। याद रहे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक पत्र में गाँधी ने कोविड-19 से लडऩे के लिए कई सुझाव दिये थे, जिसमें टेलीविजन, प्रिंट और आन लाइन जैसे मीडिया संस्थानों को सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विज्ञापनों पर दो साल के लिए प्रतिबन्ध लगाने का सुझाव भी शामिल था। सोनिया गाँधी का यह बयान ऐसे समय में आया, जब मीडिया संस्थान संकट से गुज़र रहे हैं। वैसे भी भारत में एक अखबार लागत से काफी कम कीमत पर बेचा जाता है। ऐसे में विज्ञापन से ही कोई अखबार/पत्रिका ज़िन्दा रह सकती है।