ऑटो वालों की भी सुने सरकार, बैठे हैं बेकार

कोरोना वायरस को लेकर भले ही केन्द्र और दिल्ली सरकार लोगों को लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस की बात कर रही है और बात मनवाने के लिये पुलिस का डंडा भी दिखा रही है। पर वास्तविकता क्या है? ये सरकार भी जानकर नजरअंदाज कर रही है। तहलका संवाददाता ने आज दिल्ली के ऑटो चालकों से बात की तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण उनके ऑटों के पहिया ही नहीं बल्कि उनके परिवार की रोजी- रोटी की व्यवस्था भी थम गई है। ऑटो चालक उमेश ने बताया कि दिल्ली में वे करीब 21 साल से ऑटो चला रहे हैं। उन्होंने ऐसा समय कभी नहीं देखा है, जो वो आज देख रहे हैं। उनका कहना है कि ऑटो तो खुद उनका है किराये का नहीं है। पर काम पूरी तरह से बंद है। ऐसे में जो जमा पूंजी थी, वो अब खत्म हो गई है। दिल्ली सरकार जरूर कह रही है कि पांच हजार रुपये देगे पर अभी तक नहीं मिले हैं। उमेश का कहना है कि इस कोरोना वायरस नामक महामारी के पहले प्राइवेट कैब वालों के चलते ऑटो वालों का धंधा काफी कम हुआ था। अब तो धंधा कम ही नहीं हुआ है, बल्कि पूरी तरह से बंद हो गया है। ऐसे में उनका परिवार सरकारी भोजन लाइनों में लगकर कब तक खाएगा। वहीं ऑटो चालक सुधीर, निशीकांत और गोपाल ने बताया कि सरकार की कथनी और करनी तो जग जाहिर रही है। पर सरकार को इस विपदा के समय में कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, ताकि ऑटो वालों को रोजगार मिल सकें। ऑटो चालकों का कहना है कि ये महामारी अगर ऐसी ही चलती रही, तो वो दिन दूर नहीं जब वो ऑटो चलाने के लायक ही नहीं रहेगे। ऑटो चालक यूनियन के नेता जीतेन्द्र कुमार का कहना है कि लॉकडाउन के नाम पर सख्ती का पालन करवाया जा रहा है। जीतेन्द्र कुमार का कहना है कि जब भी कोई ऑटो चालकों के आह्वान पर कोई हड़ताल भी हुई है। तो उन्होंने इमरजेंसी सेवा के नाम पर कुछ ऑटो वालों को सड़को पर चलने दिया है, ताकि यात्रियों और जरूरतमंद लोगों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो। पर ये दिल्ली और केन्द्र सरकार न जाने कोई सी बात पर अड़ी है। उन्होंने दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री गोपाल राय से मांग की है कि ऑटो चालको को चलने की इजाजत दी जाये ताकि वे आपातकालीन सेवाओं के साथ-साथ सरकारी काम-काज में अपनी सेवा दे सकें। जैसे कर्मचारियों के आने जाने के लिये और सब्जी और अन्य राशन का जो सामान दुकानदार ठेली या साइकिलों में लाते हैं उसको लाने की अनुमति प्रदान करे, ताकि ऑटो वालों को रोजगार और लोगों को राहत मिल सकें अन्यथा बहुत दिक्कत ऑटो वालों के जीवन में आ सकती है। क्योंकि ऑटो चालक भी गरीब लोग ही है।