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बाघ और शेर के बाद देश में तेंदुए भी बढ़े

भारत सरकार की ओर से 29 जुलाई, 2021 को जारी एक नये अध्ययन में पाया गया है कि देश में तेंदुओं की आधिकारिक तादाद 2014-2018 के दरमियान 63 फ़ीसदी बढ़ गयी है और इसमें बढ़ोतरी जारी है। इसी पर आधारित श्वेता मिश्रा की रिपोर्ट :-

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने 29 जुलाई को तेंदुओं और उनका शिकार व गिनती को लेकर रिपोर्ट पेश की। इसमें दावा किया गया है कि देश में 12,852 तेंदुए हैं। 2014 में गिने गये 7,910 (कम ज़्यादा के आधार पर 6,566-9,181) थे और इनकी तादाद में बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया था- ‘अच्छी ख़बर! शेरों और बाघों के बाद तेंदुओं की तादाद बढ़ रही है। पशु संरक्षण की दिशा में काम करने वाले सभी लोगों को बधाई। हमें इन प्रयासों को आगे भी जारी रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे पशु सुरक्षित आवास और माहौल में रहें।’
पर्यावरण मंत्री ने दावा किया कि रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि बाघों के संरक्षण से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है। अखिल भारतीय बाघ आकलन 2018 के दौरान देश के बाघों के क़ब्ज़े वाले राज्यों में जंगल वाले आवासों के भीतर तेंदुए की आबादी का भी अनुमान लगाया गया था। सन् 2018 में भारत के बाघ वाले क्षेत्रों के परिदृश्य में तेंदुए की कुल आबादी 12,852 दर्ज की गयी।
इसे सन् 2014 के आँकड़ों से तुलना करें, तो इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है; जो देश के 18 बाघों वाले राज्यों के वनों के आवासों में 7,910 थी। इसमें भारत के 14 टाइगर रिजर्व शामिल किये गये, जिन्हें ग्लोबल कंजर्वेशन एश्योर्ड एंड टाइगर स्टेंडर्ड (सीए-टीएस) की मान्यता प्राप्त है। जिन 14 बाघ अभयारण्यों को मान्यता दी गयी है, उनमें असम में मानस, काजीरंगा और ओरंग, मध्य प्रदेश में सतपुड़ा, कान्हा और पन्ना, महाराष्ट्र में पेंच, बिहार में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व, उत्तर प्रदेश में दुधवा, पश्चिम बंगाल में सुंदरवन, केरल में परम्बिकुलम हैं। कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व और तमिलनाडु में मुदुमलाई और अनामलाई टाइगर रिजर्व भी इस सूची में शामिल हैं।
ख़ास बात जो रिपोर्ट में कही गयी है, वह यह कि सभी उप-प्रजातियों में भारतीय तेंदुआ अफ्रीका के बाहर सबसे ज़्यादा अपने देश में ही हैं। भारतीय उप महाद्वीप में अवैध शिकार, निवास स्थान का नुक़सान, प्राकृतिक शिकार की कमी और तेंदुओं के आपसी संघर्ष से ख़तरे के तौर पर मानकर इनके कम होने का अनुमान लगाया जाता रहा है। तेंदुआ भी अक्सर आबादी वाले इलाक़ों में नज़र आ जाते हैं, जिससे मनुष्यों के साथ संघर्ष के प्रति उनकी संवेदनशीलता बढ़ जाती है। किसी अन्य बिना बड़े मांसाहारी वाले क्षेत्रों में तेंदुए जैव विविधता संरक्षण के लिए एक छत्र प्रजाति के रूप में हो सकते हैं।
अध्ययन के लिए अखिल भारतीय बाघ आकलन 2018 में बाघों के क़ब्ज़े वाले राज्यों में वन्यजीव क्षेत्र के अन्दर तेंदुए होने का भी अनुमान लगाया गया था। तेंदुओं के क़ब्ज़े वाले अन्य क्षेत्र, जैसे- ग़ैर-वनाच्छादित आवास (कॉफी और चाय के बाग़ान और अन्य भूमि उपयोग, जहाँ से तेंदुओं को जाना जाता है); हिमालय में उच्च ऊँचाई, शुष्क परिदृश्य और अधिकांश पूर्वोत्तर का इलाक़ा इसमें शामिल नहीं किया गया था। इसलिए इनकी तादाद का अनुमान हर लिहाज़ से न्यूनतम के तौर पर माना
जाना चाहिए।
चार प्रमुख बाघ संरक्षण के केंद्र यानी शिवालिक पहाडिय़ों और गंगा के मैदान, मध्य भारत और पूर्वी घाटों, पश्चिमी घाटों और उत्तर पूर्वी पहाडिय़ों और ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों में तेंदुए की बहुतायत का अनुमान लगाया गया था।
संख्या की गणना में वृद्धि बेहद मायने रखती है; क्योंकि पिछली शताब्दी में निवास स्थान के नुक़सान, शिकार की कमी, संघर्ष और अवैध शिकार के कारण अफ्रीका और एशिया में उनके वर्तमान वितरण और संख्या में काफ़ी कमी आयी है। तेंदुओं की स्थिति पर हालिया विश्लेषणों से पता चलता है कि अफ्रीका में प्रजातियों की 48-67 फ़ीसदी और एशिया में 83-87 फ़ीसदी का इलाक़ा सिकुड़ गया है। यह भारत में हाल ही में किये गये एक आनुवंशिक अध्ययन के अनुरूप है, जहाँ पिछले 120-200 वर्षों में तेंदुओं की तादाद मानवों के बढ़ते दायरे से 75-90 फ़ीसदी सीमित होने का आकलन है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्रजातियों की स्थिति ख़तरे के क़रीब से कमज़ोर स्तर पर आ गयी है।
तेंदुए कैसे ख़तरे में हैं? इसे इस तरह समझ सकते हैं कि पिछले कुछ दिनों में ओडिशा के तीन ज़िलों में पाँच व्यक्तियों से कम-से-कम 10 तेंदुओं की खाल ओडिशा वन विभाग और राज्य पुलिस के विशेष कार्य बल (एसटीएफ) ने एजेंसियों की मदद से ज़ब्त की। इनमें से दो खाल 21 जुलाई, 2021 को बौध और देवगढ़ ज़िलों से ज़ब्त की गयी। मामले में पुलिस ने एक संदिग्ध शिकारी समेत पाँचों आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया है और उनके ख़िलाफ़ अधिनियम की धारा-51 के तहत मामला दर्ज किया। पहले मामले में एसटीएफ कर्मियों ने बौध ज़िले के मनमुंडा थाना अंतर्गत कापासीरा से एक आरोपी के पास से एक तेंदुआ बरामद किया था। एसटीएफ अधिकारियों के अनुसार, उसके पास से एक बंदूक और वस्फिोटक के साथ अन्य आपत्तिजनक सामग्री भी ज़ब्त की गयी। ज़ब्त की गयी तेंदुए की खाल वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत जुर्म में शामिल है। ज़ब्त खाल को रासायनिक जाँच के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून भेजा गया है। दूसरे मामले में वन विभाग के अधिकारियों ने चार व्यक्तियों से रियामाला वन क्षेत्र के सिदुरकाली वन मार्ग से तेंदुए की खाल के साथ पकड़ा है। अधिकारियों को बताया गया कि संबलपुर ज़िले के रेडाखोल वन प्रभाग के जंगल में तेंदुए की मौत हो गयी।
वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और ओडिशा व छत्तीसगढ़ के वन अधिकारियों की एक संयुक्त टीम ने 10 जुलाई, 2021 को कालाहांडी के रामपुर और जूनागढ़ में कम-से-कम आठ तेंदुए की खाल ज़ब्त की गयी और सात वन्यजीव तस्करों को गिरफ़्तार किया गया। पिछले एक साल में राज्य से 26 तेंदुओं की खाल ज़ब्त की गयी है; जबकि अकेले एसटीएफ ने 15 तेंदुए की खाल बरामद की है। इन बरामदगियों से साबित होता है कि तेंदुओं का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है। इन संरक्षित जानवरों की खाल की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बेहद माँग है। अधिकांश तेंदुओं को शिकारियों द्वारा मार दिया जाता है, जब वे शिकार के लिए जंगलों के क़रीब आबादी वाले इलाक़े में घुस जाते हैं। तेंदुए की खाल का मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पारम्परिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है और इसकी हड्डियों की भी विकट माँग है।
अब प्रकृति के संरक्षण और हिम तेंदुओं की संख्या की गणना के साथ ही उनका संरक्षण करना है। हिम तेंदुओं की तादाद दोगुनी करने का लक्ष्य है। देश में पहली बार हिम तेंदुओं की गणना के लिए वैज्ञानिक विशेषज्ञों की टीम के ज़रिये राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों, लद्दाख़, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के सहयोग से विकसित किया गया है। ग़ौरतलब है कि हिम तेंदुए 12 देशों में पाये जाते हैं। वे भारत, नेपाल, भूटान, चीन, मंगोलिया, रूस, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, किर्गिस्तान, क़ज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं।

कहाँ कितने तेंदुए?

शिवालिक हिल्स और गंगा का तराई क्षेत्र
 बिहार – 98 (90-106)
 उत्तराखण्ड – 839 (791-887)
 उत्तर प्रदेश – 316 (277-355)
 कुल – 1,253 (1,158-1,348)

मध्य भारत और पूर्वी घाट
 आंध्र प्रदेश – 492 (461-523)
 तेलंगाना – 334 (318-350)
 छत्तीसगढ़ – 852 (813-891)
 झारखण्ड – 46 (36-56)
 मध्य प्रदेश – 3,421 (3,271-3,571)
 महाराष्ट्र – 1,690 (1,591-1,789)
 ओडिशा – 760 (727-793)
 राजस्थान – 476 (437-515)
 कुल – 8,071 (7,654-8,488)

पश्चिमी घाट
 गोवा – 86 (83-89)
 कर्नाटक – 1,783 (1,712-1,854)
 केरल – 650 (622-678)
 तमिलनाडु – 868 (828-908)
 कुल – 3,387 (3,245-3,529)

पूर्वोत्तर पहाड़ी और ब्रह्मपुत्र का बाढग़्रस्त क्षेत्र
 अरुणाचल प्रदेश (पक्के) – 11 (8-14)
 असम (मानस, नमेरी) – 47 (38-56)
 पश्चिम बंगाल (कोरुमारा, जलदपारा और बक्सा) – 83
(66-100)
 कुल – 141 (115-170)
कुल योग 12,852 (12,172-13,535)

एकता में समझदारी

भारतीय इतिहास के गर्भ में न जाने कितने ही ऐसे उदाहरण दफ़्न हैं, जिन्हें कुरेदने पर पता चलता है कि एकता और प्यार के सरपरस्त भारत से बड़ा और महान् देश दुनिया के किसी कोने में नहीं। जिस तरह से यहाँ हर तरह की मिट्टी है; हर तरह के मौसम हैं; हर तरह की प्रकृति है; हर तरह की वनस्पतियाँ हैं; हर तरह के जीव और हर महज़ब के लोग हैं। ख़ुशी इस बात की होती है कि अधिकतर लोग अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस करते हैं और देश के लिए प्राण न्योछावर करने तक को तैयार रहते हैं। मगर अफ़सोस इस बात का है कि एक ही बग़ीचे में खिले हर रंग के फूलों की तरह यहाँ के लोगों के दिलों में मज़हबी, जातीय, वैचारिक, सांस्कृतिक, पारम्परिक और भाषायी भिन्नता इतने गहरे तक बैठी हुई है कि एक-दूसरे से भेदभाव और ईष्र्या भी बहुत करते हैं। यह भेदभाव, ईष्र्या इस क़दर नस्ली भेदभाव में तब्दील हो चुके हैं कि अब इसे ख़त्म करने के लिए कड़े क़ानून की ज़रूरत है।
हमारे इतिहास में एकता और प्यार की सैकड़ों मिसालें हैं। लेकिन अब हम सिसायत के इशारों पर नफ़रतों की विष बेलें बोने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे सिवाय हमारे नाश के और कुछ हासिल नहीं होने वाला। आज के नफ़रत भरे माहौल में मुझे इतिहास के कुछ ऐसे एकता और भाईचारे वाले उदाहरण याद आते हैं, जिन्हें स्कूलों की किताबों में और बुज़ुर्गों की कहानियों में होना चाहिए, ताकि आज की नयी पीढ़ी और आने वाली पीढिय़ों में इस देश की एकता, अखण्डता और आपसी प्यार को ज़िन्दा रखने की सोच पैदा की जा सके।
रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ की दोस्ती को कौन भूल सकता है। इस जोड़ी ने जो क़ुरबानी वतन के लिए दी, उसे प्रलय तक तो नहीं भुलाया जाएगा। इसी तरह नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अति विश्वसनीय कर्नल निजामुद्दीन उर्फ़ सैफ़ुद्दीन थे; जो नेता जी के बहुत क़रीबी और वाहन चालक भी थे। इससे पहले के इतिहास में अगर जाएँ, तो भारत में कई ऐसे राजा हुए, जो मुस्लिम थे; लेकिन बड़ी संख्या में उनके राजदरबारी, प्रधानमंत्री, मंत्री सनातनी (हिन्दू) थे। वहीं कई ऐसे सनातनी शासक थे, जिनके क़रीबी और विश्वसनीय मुस्लिम थे। उदाहरण के तौर पर शेरशाह सूरी के प्रधानमंत्री टोडरमल थे। बताते हैं कि शेरशाह सूरी ने टोडरमल के कार्यों और चतुराई को देखकर उन्हें झूँसी स्थित प्रतिष्ठानपुरी का राजा बना दिया था। बाद में टोडरमल अकबर के अधीन काम करने लगे थे। अकबर के नवरत्नों में तानसेन, बीरबल, राजा टोडरमल और राजा मानसिंह जैसे सनातन धर्मी थे। इसी प्रकार महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम ख़ाँ सूर थे।
महात्मा गाँधी ने 13 जनवरी, 1948 को विभाजन की त्रासदी से उपजे साम्प्रदायिक उन्माद के ख़िलाफ़ उपवास किया था। वह चाहते थे कि बँटवारा हुआ भी है, तो झगड़ा न हो। क्योंकि झगड़े से सिर्फ़ विनाश ही होगा। दुर्भाग्य से यही हुआ। लाखों लोग दोनों ओर मारे गये। क्या मिला? नफ़रत की एक गहरी खाई। एक ऐसी खाई, जो आज तक नहीं पाटी जा सकी।
विडम्बना यह है कि जबसे मनुष्य ने जन्म लिया है, तबसे अपनों से और शत्रुओं से कितनी ही लड़ाइयाँ हुईं हैं; कितने ही भीषण युद्ध हुए हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि इसके चलते हम अपनी ज़िन्दगी भी भेदभाव, ईष्र्या, बैर में गुज़ार दें और झगड़े की इसी भट्ठी में अपने बच्चों को झोंक जाएँ। इससे तो हमारे साथ-साथ उनकी ज़िन्दगी भी बर्बाद ही होगी। कितने ही सन्तों ने, महान् लोगों ने भारत को एकता के सूत्र में बाँधे रखने के लिए अपने आप को आहूत कर दिया। अपनी इच्छाओं, अपने परिवारों की बलि चढ़ा दी और हम आज भी भेदभाव, ईष्र्या और बैर की भट्ठी में जल रहे हैं, जहाँ हम भी राख होकर निकलेंगे।
अभी दुनिया भर में फैली कोरोना वायरस नाम की महामारी से मौतों के बाद यह देखा गया कि ज़्यादातर शवों को स्वजन भी हाथ नहीं लगा रहे थे। ऐसे में हमारे देश के कितने ही मुस्लिम भाइयों ने सनातनियों के शवों का अन्तिम संस्कार उनके परम्परानुसार से किया। वहीं कई सनातन-धर्मियों ने भी मृतक मुस्लिमों की विदाई इस्लाम रीति-रिवाज़ से करायी।
यह एक बड़ा सत्य है कि इस धरती पर किसी का अधिकार नहीं है और न ही संसार से बहुत लम्बा नाता। हम यह भी नहीं जानते कि हमें मरने के बाद जाना कहाँ है? लेकिन एक सत्य अटल है कि सभी में आत्मा का स्वरूप एक जैसा ही है और इससे बड़ा सत्य यह है कि ईश्वर एक ही है। लेकिन फिर भी लोग सियासी और कट्टरपंथी लोगों चक्कर में फँसकर ख़ून-ख़राबा करते हैं।
सच यह है कि राजनीति और धर्म का चोला ओढ़े लोग आम लोगों को बाँटे रखना चाहते हैं। क्योंकि इसके पीछे उनके अपने स्वार्थ निहित हैं। लेकिन यह बात आम लोगों को समझनी होगी कि इस दुनिया में रहकर हम आपस में कितना भी लड़-झगड़ लें, किन्तु मरने के बाद किसी को कोई छुए; कोई भी कपड़े बदले; कोई भी कहीं फेंक दे; जला दे या दफ़्न कर दे; कोई फ़र्क़ नहीं पडऩे वाला। क्योंकि मरने के बाद का एक सत्य यह है कि इस शरीर को इसी मिट्टी में मिल जाना है। यहाँ मुझे मशहूर शायर मुनव्वर राणा की ग़ज़ल के ये अश्आर याद आ रहे हैं :-
‘थकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गये।
हम अपनी क़ब्र-ए-मुक़र्रर में जा के लेट गये।।
तमाम उम्र हम इक दूसरे से लड़ते रहे,
मगर मरे तो बराबर में जा के लेट गये।’’

जल का बढ़ता निजीकरण

बिजली, इंटरनेट के बाद अब जल जैसे प्राकृतिक संसाधन को दिया जा रहा निजी हाथों में

एक पत्रकार का दायित्व होता है कि वह न केवल हो चुकी घटनाओं का विश्लेषण करे, बल्कि यह भी बताए कि क्या होने जा रहा है? वह यह भी बताए कि सरकार क्या कर रही है? किस उद्देश्य से कर रही है? देश व लोगों के सामने निकट भविष्य में सामने आने वाले ख़तरे कौन-से है?

दरअसल सरकारें तेज़ी से निजीकरण पर काम कर रही हैं, जिसे लेकर ज़्यादातर पत्रकार, बुद्धिजीवी, लेखक, नेता और समाजसेवक चुप हैं। लेकिन इससे भविष्य में कम्पनियाँ अधिक काम के बदले कम भुगतान करेंगी; जबकि जनता को हर चीज़ महँगे दामों में ख़रीदने को मजबूर होना पड़ेगा। जैसे बिजली, इंटरनेट आदि का निजीकरण होने से लोगों को इनके भारी दाम चुकाने पड़ते हैं। देश में इन दिनों खाद्यान्नों के निजीकरण की कोशिश हो रही है, तो वहीं कुछ राज्य सरकारें जल के निजीकरण पर काम कर रही हैं। हम पहले से ही जल के निजीकरण का एक नमूना यह देख रहे हैं कि पानी की एक लीटर की बोतल, जिसके अन्दर पानी साफ़ होने की कोई गारंटी नहीं है; 20-25 रुपये की मिलती है। अगर यही एक बोतल पानी हम किसी बड़ी या विदेशी कम्पनी का ख़रीदें, जो कि है हमारे ही यहाँ का; तो वह 50 रुपये से लेकर 550 रुपये से दा तक का मिलता है।

इस हिसाब से अगर पानी पर पूरी तरह पूँजीपतियों का क़ब्ज़ा हो जाएगा, तो सोचिए कि हमें हर काम के लिए पानी ख़रीदना पड़ेगा। महामारी कोरोना वायरस के दौरान बड़ी संख्या में लोग मोटी रक़म चुकाकर ऑक्सीजन ख़रीद चुके हैं। ज़ाहिर है प्रकृति के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके मानव द्वारा जिस तेज़ी से जंगल काटे जा रहे हैं, अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले क़रीब पाँच-सात दशकों में लोगों को साँस लेने के लिए भी ऑक्सीजन ख़रीदनी पड़ेगी। यानी जिन प्राकृतिक संसाधनों पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और जो चीज़े ईश्वर ने या कहें कि प्रकृति ने हमारे अधिकार के रूप में हमें समान रूप से प्रदान की हैं, उन पर चंद लालची और क्रूर पूँजीपतियों का क़ब्ज़ा हो जाएगा और वे इनकी कालाबाज़ारी करेंगे; इनके मनमाने दाम वसूलेंगे। विडंबना देखिए कि ये पूँजीपति मुफ़्त की चीज़े के बदले हमसे अवैध वसूली करेंगे; जिसे सरकारें वैध घोषित करेंगी!

पेयजल मीटर से शुरुआत

महाराष्ट्र का नागपुर देश का ऐसा पहला बड़ा शहर है, जहाँ की जल व्यवस्था निजी क्षेत्र के हाथों में है। अब राजस्थान में पेयजल मीटर लगाने की शुरुआत हो चुकी है। अब राजस्थान का जलदाय विभाग पायलट प्रोजेक्ट के नाम पर नल में स्मार्ट मीटर लगाकर जयपुर से इसकी शुरुआत कर रहा है। इन मीटर्स की रीडिंग सेंसर के ज़रिये आ सकेगी, जिसे कम्पनी कर्मचारी दफ़्तर में बैठे-बैठे देख सकेंगे, तो उपभोक्ता मोबाइल ऐप पर देख सकेगा कि उसने कब, कितना पानी ख़र्च किया?

हालाँकि यह प्रोजेक्ट 2017 में पिछली सरकार द्वारा लाया गया था। लेकिन इसको पाँच साल के बाद मौज़ूदा सरकार लागू कर रही है। इससे साबित हो जाता है कि किसी भी राजनीतिक दल की सरकार रहे, पूँजीपतियों का काम नहीं रुकता। क्योंकि पार्टी फंड सभी को चाहिए होता है। हालाँकि यह स्थिति केवल राजस्थान में ही नहीं है, इसकी शुरुआत उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश में भी हो चुकी है। शिमला शहर में पेयजल कम्पनी एएमआर चिप वाले 7,000 नये स्मार्ट मीटर लगाने जा रही है। मीटर लगने पर कम्पनी मीटर की रीडिंग कम्प्यूटर पर देख सकेगी और बिल जारी करेगी। इसी तर्ज पर उत्तराखण्ड सरकार भी अब राज्य में पेयजल मीटर अनिवार्य करने जा रही है। इसके पहले मध्य प्रदेश के खंडवा ज़िले में भी यह योजना लागू की गयी थी और इसका ठेका एक निजी कम्पनी को दिया गया था; पर वहाँ यह प्रयोग सफल नहीं हुआ।

इस योजना की शुरुआत प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) यानी सार्वजनिक-निजी भागीदारी के ज़रिये हो चुकी है। इसमें पब्लिक पार्टनरशिप कहाँ है? समझ नहीं आता। सरकारों को लगता है कि जल स्रोतों के रख-रखाव से लेकर वितरण तक की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र के हाथों में सौंपने से जल प्रबन्धन की समस्या का समाधान किया जा सकता है। लेकिन जानकारों का मानना है कि इससे जल माफिया मनमानी करेंगे और आम आदमी जल पर अपने जन्मसिद्ध अधिकार से वंचित हो जाएगा और उसे उसके इस्तेमाल के लिए उसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक भंवरलाल गोदारा कहते हैं कि देश के हर शहर, क़स्बे में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो दो वक़्त का भोजन भी बड़ी मुश्किल से जुटा पाते हैं। सरकार ऐसे समूहों को अनुवृत्ति (सब्सिडी) दरों पर जलापूर्ति करती है। यदि निजी हाथों में जल व्यवस्था चली जाती है, तो इन लोगों का क्या होगा? 21वीं शताब्दी में साफ़ पानी सबसे बड़ी समस्या है। जल उद्योग का वार्षिक राजस्व आज तेल क्षेत्र के राजस्व से तक़रीबन 40 $फीसदी ऊपर जा पहुँचा है। फॉरच्यून पत्रिका की एक पूर्व रिपोर्ट के मुताबिक, ‘20वीं शताब्दी के लिए तेल की जो क़ीमत थी, 21वीं शताब्दी के लिए पानी की वही क़ीमत होगी।’ जलस्रोत सूख ही रहे हैं। सरकारें पानी से भी मुना$फा कमाना चाहती हैं। इसीलिए वो पानी का निजीकरण कर रही हैं। मरेगा कौन? पहले से ही महँगाई, भारी-भरकम कर (टैक्स) और तमाम तरह की परेशानियों के बोझ तले दबा उपभोक्ता।

निजीकरण के ख़तरे

दक्षिणी अमेरिकी देश बोलिविया में सन् 1999 में विश्व बैंक के सुझाव पर बोलिविया सरकार ने क़ानून पारित कर कोचाबांबा की जल प्रणाली का निजीकरण कर दिया था। उन्होंने पूरी जल प्रणाली को एगुअस देल तुनारी नाम की एक कम्पनी को बेच दिया, जो कि स्थानीय व अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों का एक संघ था।

क़ानूनी तौर पर अब कोचाबांबा की ओर आने वाले पानी और यहाँ तक कि वहाँ होने वाली बारिश के पानी पर भी एगुअस देल तुनारी कम्पनी का अधिकार हो गया। निजीकरण के कुछ समय बाद कम्पनी ने घरेलू पानी की क़ीमतों में क़रीब 300 फ़ीसदी की भारी बढ़ोतरी कर दी। कम्पनी के इस ग़ैर-वाजिब निर्णय से लोग सडक़ों पर आ गये। कोचाबांबा में पानी के निजीकरण विरोधी संघर्ष शुरू हुआ, जो लगातार सात साल से अधिक समय तक चला। इस संघर्ष में तीन जानें गयीं और सैकड़ों लोग जख़्मी हुए।

बोलिविया द्वारा जिस निजी कम्पनी को जल पर नियंत्रण रखने का ठेका दिया गया था, उसका एकमात्र उद्देश्य देश के बुनियादी संसाधनों पर क़ब्ज़ा करके सिर्फ़ मुनाफ़ा कमाना था। जबकि इस कम्पनी से जुड़े पूँजीपतियों ने जल संसाधनों पर क़ब्ज़ा करने में कोई निवेश नहीं किया था।

बहरहाल बोलिविया के अनुभव से भारत को सीख लेनी चाहिए। हमारी सरकारों, ख़ासतौर पर केंद्र सरकार को जलक्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी से बचना चाहिए। इस देश की सभ्यता, संस्कृति और परम्परा दरवाज़े पर आये किसी भी जाने-अनजाने व्यक्ति को जलपान आदि कराने की रही है; जिसे लोग अपना धर्म और पुण्य का काम समझकर करते आये हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि हमारे यहाँ प्राकृतिक संसाधनों को ख़रीदने-बेचने की परम्परा कभी नहीं रही। लिहाज़ा सरकारों को ऐसा करने से पहले आत्ममंथन की आवश्यकता है।

इसके बावजूद अगर सरकारें नहीं मानती हैं, तो इसका विरोध करने में सबसे अग्रणी भूमिका विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों, पत्रकारों, बुद्धिजीवी वर्ग, समाजसेवियों और जागरूक लोगों को निभानी चाहिए। यह उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी भी है। क्योंकि आम जनता को तो यह भी पता नहीं होता कि उसके अपने क्षेत्र में क्या हो रहा है? ऐसे में सरकारों की रणनीति के बारे में वह कैसे जान सकती है? जब तक कि देश के जागरूक लोग उसे नहीं बताएँगे। लेकिन आजकल ऐसा होता दिख नहीं रहा है। क्योंकि हमारे निजी स्वार्थ, लालच, गहरी तंद्रा और हमें क्या मतलब की सोच के चलते बिजली तो पूरी तरह से निजी हाथों में जा ही चुकी है। अब पेयजल व्यवस्था पर भी निजी क्षेत्र का क़ब्ज़ा हो गया, तो क्या होगा? अगर हम आज भी नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं, जब लोगों को विरासत में मिले हर प्राकृतिक संसाधन के उपयोग के लिए मोटी क़ीमत चुकानी पड़ेगी।

(लेखक दैनिक भास्कार के राजनीतिक संपादक हैं।)

काबुल एयरपोर्ट पर लोगों की भारी भीड़, देश छोड़ने के लिये कर रहे है जद्दोजहद

अमेरिकी सेना के जाने के कुछ दिनों बाद ही तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। कब्जे के बाद से ही लोग डर के कारण अफगानिस्तान की राजधानी काबुल को छोड़कर भाग रहे है।

हवाई अड्डे पर बेहद अफरा तफरी मची हुई है। देश छोड़कर भागने के लिए लोग जद्दोजहद में लगे है। देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी पहले ही देश छोड़कर जा चुके है और उनकी किसी भी प्रकार की सूचना नहीं है कि वे देश छोड़कर कहां गये है। तालिबान के इतिहास में हिंसा इतनी ज्यादा है कि राष्ट्रपति नजीबुल्लाह को जान से मारने की कहानी भी उनके इतिहास में दर्ज है।

एयर इंडिया के विशेष विमान से अफगानिस्तान से दिल्ली पहुंचे लोगों के चेहरे पर तालिबान का खौफ साफ-साफ नजर आ रहा है। इन लोगों में अफगानिस्तान के नेता व मंत्री भी शामिल है। जो भारत मे शरण लेने यहां आए है।

अफगानिस्तान से दिल्ली पहुंचे लोगों की संख्या करीब 200 बताई जा रही है।

काबुल एयरपोर्ट पर गोलीबारी में 5 लोगों की मौत, एयर स्पेस बंद, देश पर तालिबान का कब्जा  

अफगानिस्तान में 20 साल के बाद तालिबान के कब्जे के बीच राजधानी काबुल के एयरपोर्ट पर अमेरिका की सेना की फायरिंग में कम से कम पांच लोगों की मौत होने की रिपोर्ट्स हैं। फायरिंग के बाद एयरपोर्ट पर अफरा-तफरी मचने वाले वीडियो सामने आए हैं। देश पर तालिबान के सम्पूर्ण कब्जे के बाद हजारों लोग काबुल छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे हैं। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के सहयोगियों के साथ रविवार को ही देश छोड़कर कज़ाख़िस्तान चले जाने की रिपोर्ट्स हैं। इस बीच काबुल एयरपोर्ट पर विमान संचालन पर रोक लगा दी गयी है।

काबुल एयरपोर्ट पर सोमवार को हजारों लोगों की भीड़ के चलते हंगामा हुआ जिसके बाद अमेरिकी फौज ने गोलियां चलाई। गोलीबारी में कम से कम 5 लोगों की जान चले जाने की रिपोर्ट्स हैं। एयरपोर्ट पर मची अफरातफरी को देखते हुए यहां से फ्लाइट्स बंद करने की घोषणा की गयी है। फिलहाल एयरपोर्ट पर अमेरिका सेना का कब्ज़ा है और तालिबान वहां कब्ज़ा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। तालिबान ने लोगों से अपने घरों में रहने को कहा है, लेकिन दहशत से भरे लोग घर छोड़कर भाग रहे हैं। अमेरिकी सेना हवा में गोलियां चला रही है जिससे लोगों में खौफ भरा है।

अमेरिका ने राजधानी काबुल स्थिति अपने दूतावास को पूरी तरह से खाली कर दिया है। हालांकि दूतावास के कार्यक्रम सभी जरूरी काम काज काबुल एयरपोर्ट से किए जाएंगे जहाँ अमेरिका और फ्रांस समेत कई देशों ने अपने दूतावास बनाए हैं। उधर अमेरिका ने कहा है कि अपने नागरिकों, अपने मित्रों और सहयोगियों की अफगानिस्तान से सुरक्षित वापसी के लिए वह काबुल हवाईअड्डे पर 6,000 सैनिकों को तैनात करेगा। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने महत्वपूर्ण सहयोगी देशों के अपने समकक्षों से बात की है।

अमेरिका और यूरोपीय संघ के नेतृत्व में 60 से अधिक देशों ने संयुक्त बयान जारी करके अफगानिस्तान में शक्तिशाली पदों पर आसीन लोगों से अनुरोध किया गया है कि वे मानवीय जीवन और संपत्ति की रक्षा की जिम्मेदारी और जवाबदेही लें और सुरक्षा और असैन्य व्यवस्था की बहाली के लिए तुरंत कदम उठाएं। फिलहाल भारत खुद को इन तमाम गतिविधियों से अलग रखे हुए हैं।

इस बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ब्यान भी सामने आया है। इसमें ट्रम्प ने कहा है – ‘तालिबान का विरोध किए बिना काबुल का पतन होना अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में दर्ज होगा। जो बाइडन ने अफगानिस्तान में जो किया वह अपूर्व है। इसे अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी हार के रूप में याद रखा जाएगा।’ उधर संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की पूर्व राजदूत निक्की हेली ने भी इसे बाइडन प्रशासन की विफलता करार दिया है।

याद रहे तालिबान के काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लेने और इसके निर्वाचित नेता अशरफ गनी के अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ देश छोड़कर ताजिकिस्तान चले जाने के बाद ट्रंप का यह ब्यान सामने आया है। अफगान सुरक्षा बलों के तालिबान के सामने इस बुरी तरह और जल्दी बिना प्रतिरोध के हारने को दुनिया भर में हैरानी से देखा जा रहा है। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भी अफगान सेना का जिक्र करते हुए कहा – ‘हमने देखा कि बल देश की रक्षा करने में असमर्थ है और यह हमारे पूर्वानुमान से बहुत ज्यादा जल्दी हुआ है।’

उधर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने अफगानों की जान बचाने और मानवीय सहायता पहुंचाने के मकसद से तालिबान और सभी अन्य पक्षों से संयम बरतने का आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने – ‘संयुक्त राष्ट्र एक शांतिपूर्ण समाधान में योगदान करने, सभी अफगानों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकारों की रक्षा करने और जरूरतमंद नागरिकों को जीवन रक्षक मानवीय और महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करने के लिए दृढ़ संकल्प है।’

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने दिया पार्टी से इस्तीफा

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष व पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया है।

सुष्मिता देव असम के सिलचर से लोकसभा सदस्य भी रही है। व उन्हें असम की बंगाली भाषा बराक घाटी में कांग्रेस का एक बड़ा चेहरा माना जाता था। उनके पिता संतोष मोहन देव करीब सात बार सांसद रहे है।

उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट बायो में कुछ बदलाव किए है। बदलाव की गई जानकारी में ‘पूर्व कांग्रेस सदस्य’ और ‘अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष’ लिखा है।

सोनिया गांधी को लिखे पत्र में उन्होंने पार्टी से त्यागपत्र की कोई ठोस वजह नहीं बताई है। लेकिन कहा है कि वे “जन सेवा का एक नया अध्याय शुरू करने जा रही है। व पार्टी में रहकर खुद को मिले मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया है।“

हालांकि, सुष्मिता ने अपने अगले राजनीतिक कदम की जानकारी फिलहाल साझा नहीं की है। परंतु सूत्रों के हवाले से खबर है कि वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकती है।

सीने के आर-पार हुई चार इंच चौड़ी रॉड, फिर भी बच गए

पंजाब के बठिंडा-भुच्चो मंडी रोड पर एक निजी अस्पताल के पास मिनी ट्रक का टायर फट जाने से वह डिवाइडर से टकरा गया। यहां काम करने वाले हरदीप सिंह की छाती में चार इंच चौड़ी और छह फुट लंबी लोहे की रॉड सीने के आर-पार हो गई। गनीमत रही कि उसे समय से तत्काल अस्पताल पहुंचाकर इलाज शुरू कर दिया गया। वीरवार दोपहर हुए इस भयानक हादसे में उसकी जान बच गई। डॉक्टरों ने करीब साढ़े चार घंटे के आपरेशन के बाद उसकी छाती से रॉड निकाल दी। हादसे के बाद से अस्पताल में ऑपरेशन होने तक हरदीप सिर्फ वाहेगुरु-वाहेगुरु जपते रहे। इलाज के बाद बाद हरदीप बेहतर महसूस कर रहे हैं।

अबोहर के रहने वाले हरदीप सिंह अस्पताल के पास से टाटा एस से जा रहे थे। इसी बीच, टाटा एस का टायर फट गया और लोहे की करीब चार इंच मोटी रॉड उसके सीने से आर-पार हो गई। सीने पार हुई रॉड समेत हरदीप को अस्पताल में भर्ती कराया गया। उसके सीने में घुसी रॉड को देखकर सभी हैरान थे। अस्पताल के सर्जरी के माहिर डॉक्टर सौरभ ढांडा द्वारा उसे तुरंत इमरजेंसी में दाखिल किया गया।जब हरदीप सिंह को अस्पताल लाया गया। हादसे के बारे में हरदीप सिंह ज्यादा कुछ नहीं बता पाया। उसे सिर्फ इतना ही याद था कि हादसा टाटा एस से हुआ।

42 साल के हरदीप सिंह के सीने के आर-पार लोहे के रॉड हादसे का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है। उनकी हालत देखकर मौके पर मौजूद लोगों का दिल दहल गया, लेकिन हिम्मत जुटाकर लोगों ने दर्द से कराह रहे हरदीप को तुरंत पास के अस्पताल पहुंचाया। विशेषज्ञों ने पहले कटर से हरदीप के सीने के आर-पार हुई रॉड को काटा गया। इसके बाद ऑपरेशन शुरू किया। रॉड दिल से महज आधा सेंटीमीटर दूर थी। डॉक्टरों का कहना है कि अगर दिल को कुछ नुकसाना हो जाता तो बचाना मुश्किल हो जाता।

करीब साढ़े 4 घंटे के ऑपरेशन के बाद डॉक्टर्स ने उसके सीने के आर-पार हुई रॉड को निकाला। रॉड की वजह से हरदीप की छाती में 4 इंच का छेद हो गया था। अब वह खतरे से बाहर है, लेकिन एहतियातन उसे वेंटिलेटर पर रखा गया है।

कांग्रेस पार्टी के ट्विटर अकाउंट को बैन हटा

A 3D-printed Twitter logo is pictured in front of a displayed Russian flag in this illustration taken March 10, 2021. REUTERS/Dado Ruvic/Illustration

करीब एक हफ्ते तक सस्पेंड होने के बाद ट्विटर ने कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी व अन्य कांग्रेसी नेता के सी वेणुगोपाल व अजय माकन सहित सभी के ट्विटर अकाउंट से बैन हटा दिया है।

बैन हटने के बाद कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम के चेयरमैन रोहन गुप्ता ने ‘सत्यमेव जयते’ लिखकर ट्वीट भी किया है।

दिल्ली में नौ वर्षीय बच्ची के साथ बलात्कार करने के बाद हत्या का मामला सामने आया था। कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी पीड़िता के परिवार से मुलाकात करने उनके निवास स्थान पर गए थे, जिसकी कुछ तस्वीरें उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा की थी।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राहुल गांधी के खिलाफ ट्वीट को शिकायत दर्ज कराई थी। जिसमें उन्होंने पीड़िता के माता-पिता की पहचान उजागर करने का आरोप लगाया था।

कांग्रेस पार्टी ने अपने नेताओं का अकाउंट बंद किये जाने का स्क्रीन शॉट फेसबुक पोस्ट मे साझा कर जानकारी दी थी। और कहा था कि, जब हमारे नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था हम तब नही डरे थे तो अब ट्विटर अकाउंट बंद करने से क्या डरेंगे। हम कांग्रेस पार्टी है, जनता का संदेश है, हम लड़ेंगे और लड़ते रहेंगे।

 

अफगानिस्तान में अब अमेरिका का फोकस अपने नागरिकों को बाहर निकालना

अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। अगले एक महीने में उसके काबुल पर भी कब्जा करने की उम्मीद है। इस बीच, अमेरिका की जो बाइडन सरकार भी मान रही है कि एक महीने के भीतर काबुल पर भी तालिबान का कब्जा हो जाएगा और अफगान सरकार गिर जाएगी। ऐसे में अमेरिका ने अफगानिस्तान में मौजूद अपने नागरिकों को निकालने की पूरी तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए उसने अपने 3 हजार सैनिकों को वापस अफगानिस्तान भेज रहा है, ताकि वहां से अपने नागरिकों को सुरक्षित निकाल सके। उसे वहां के नागरिकों और सरकार में लगता है अब कोई दिलचस्पी नहीं है। अमेरिका ने स्पष्ट किया है कि सैनिक लंबे वक्त के लिए नहीं भेजे जा रहे हैं, ये सिर्फ अस्थायी मिशन है।

बता दें कि अमेरिका ने 3500 सैनिक कुवैत में अमेरिकी बेस पर भी तैनात कर रखे हैं। ये सैनिक जरूरत पड़ने पर अफगानिस्तान सरकार की मदद को पहुंच सकते हैं। इसके अलावा एक हजार सैनिक कतर में भी तैनात हैं। ये उन अफगानियों की मदद कर रहे हैं, जो स्पेशल वीजा पर अमेरिका में बसना चाहते हैं। अफगानिस्तान में तालिबान अब तक 34 में से 12 प्रांतों पर कब्जा कर चुका है।

पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने राष्ट्रपति जो बाइडेन के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें उन्होंने अफगानिस्तान से सेनाओं की वापसी की बात कही थी। किर्बी ने कहा कि हमारा फोकस केवल अमेरिकी नागरिकों और सहयोगियों को अफगानिस्तान से बाहर निकालना है। उन्होंने कहा कि अभी सैनिकों को भेजना एक टेम्परेरी मिशन है। हम विदेश मंत्रालय से अपील करते हैं कि स्पेशल इमिग्रेंट वीजा एप्लीकेशन की प्रक्रिया को तेज करें ताकि कोई रुकावट न आए। इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ अफगानिस्तान के हालात को लेकर बैठक कर समीक्षा की थी। इसके बाद अमेरिकी दूतावास ने अलर्ट जारी किया था कि अफगानिस्तान में मौजूद अमेरिकी किसी भी फ्लाइट से अफगानिस्तान छोड़ दें। अमेरिकी प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि हम अफगानिस्तान से दूतावासों में काम कर रहे 5400 लोगों को बाहर निकालने में जुटे हुए हैं, इनमें करीब 1400 अमेरिकी नागरिक हैं।

तालिबान से हमला न करने की अपील
अमेरिका के शांति वार्ताकारों ने तालिबान से अपील की है कि अगर वे राजधानी काबुल पर कब्जा कर लेते हैं तो वे उसके दूतावास पर हमला नहीं करेंगे। साथ ही उसके नागरिकों और दूतावास के अफसरों को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। तालिबान के साथ मुख्य अमेरिकी दूत जाल्मय खलीलजाद के नेतृत्व में बातचीत हो रही है। बताया जा रहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान में तालिबान की भावी सरकार को आर्थिक सहयोग लटकाने की धमकी देकर अपने लोगों की सुरक्षित वासी सुनिश्चत करना चाहता है।

इसरो का ईओएस-3 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट कक्ष में स्थापित होने से चूका

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) को ईओएस-3 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को कक्ष में स्थापित करने में चूक गया। तकनीकी खामी के चलते भारत का तीसरा प्रयास नाकाम रहा। इससे निगरानी में मदद मिलने वाली थी।

आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी ने उड़ान भरी। उड़ान भरने के शुरुआती चरणों में, जिसमें चार स्ट्रैप – ऑन बूस्टर और पहला व दूसरा चरण शामिल था, सब कुछ योजना के मुताबिक ही हुआ। उड़ान भरने के 4 मिनट 55 सेकंड बाद, दूसरा चरण अलग हो गया और एक सेकंड के बाद, ऊपरी स्टेज का क्रायोजेनिक इंजन भी चालू हो गया। यानी जैसा प्लानिंग थी, वैसा ही चल रहा था।

इसरो के वेबकास्ट पर लॉन्च व्हीकल टेलीमेट्री के एनिमेशन के आधार पर ये बात सामने आई कि चरण की शुरुआत तो हुई लेकिन कुछ ही पलों में नियंत्रण खो दिया। एक बिंदु पर टेलीमेट्री स्क्रीन में दिखा कि स्टेज ने अपना एल्टिट्यूड और वेलोसिटी खो दी है, वहीं एनिमेशन में साफ तौर पर दिखा कि एटिट्यूड नियंत्रण खो दिया। इसके बाद कुछ पल के लिए खामोशी छा गई और बाद में इसरो ने स्पष्ट किया यह लॉन्च नाकामयाब रहा। कुल मिलाकर क्रायोजेनिक चरण चालू नहीं हो सका जिस वजह से मिशन असफल हो गया।

इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने कहा कि क्रायोजेनिक चरण में कुछ तकनीकी खामी आ गई थी जिससे मिशन सफल नहीं हो सका। दरअसल, क्रायोजेनिक चरण स्पेस लॉन्च व्हीकल का आखिरी चरण होता है, जिसमें भारी सामग्री को उठाकर स्पेस में ले जाने के लिए सामग्री को बहुत कम तापमान पर इस्तेमाल किया जाता है। क्रायोजेनिक इंजन प्रोपेलेंट्स के तौर पर लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है। दोनों अपने-अपने टैंक में मौजूद होते हैं। यहां से उसे अलग अलग बूस्टर पंप के जरिए टर्बो पंप में पंप किया जाता है, जिससे प्रोपेलेंट्स का तेज प्रवाह दहन कक्ष में पहुंचना सुनिश्चित हो सके।