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श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर चढ़ा सियासी पारा

‘भारत के सियासतदानों ने इस पवित्र ग्रन्थ को भी सियासत में घसीटने से नहीं छोड़ा है। श्रीमद्भागवत गीता से हमें नीति, न्याय, सम्बन्धों, सत्य और धर्म-कर्म के बारे में ज्ञान मिलता है।’

श्रीमद्भागवत गीता केवल भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का सार भी है। लेकिन इसमें सियासत दिखने लगे, तो विवाद खड़े होते हैं। जैसा कि मौज़ूदा समय में श्रीमद्भागवत गीता शिक्षा में शामिल किया जा रहा है। गुजरात, कर्नाटक के बाद अब हरियाणा में नयी शिक्षा नीति के तहत कक्षा 6 से 12 तक श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने पर शिक्षाविदों, धार्मिक लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि भगवत गीता के पढऩे और पढ़ाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि भारत देश लोकतांत्रिक देश है। यहाँ स्कूल से लेकर कॉलेजों तक पढऩे और पढ़ाने वाले अलग-अलग धर्मों से आते हैं। ऐसे में वैचारिक टकराव होना स्वाभाविक है। इसलिए गीता को पढ़ाई में वैकल्पिक तौर पर शामिल होना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता तो पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता को जो शामिल करा रहे हैं, वे उसका कितना अनुसरण करते हैं? उनका कहना है कि कुछ लोग तो अपने सियासी लाभ के लिए धार्मिक ग्रन्थों तक को नहीं छोड़ते हैं।

इस्कॉन मन्दिर से जुड़े श्रीकृष्ण भक्त हरिओम शर्मा का कहना है कि ‘दुनिया में श्रीमद्भागवत गीता एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसकी व्याख्या दुनिया भर की भाषाओं में हुई है और उस पर शोध हो रहे हैं। लेकिन भारत के सियासतदानों ने इस पवित्र ग्रन्थ को भी सियासत में घसीटने से नहीं छोड़ा है। श्रीमद्भागवत गीता से हमें नीति, न्याय, सम्बन्धों, सत्य और धर्म-कर्म के बारे में ज्ञान मिलता है। हम स्कूलों में इसके पढ़ाये जाने का स्वागत करते हैं। लेकिन जिस सियासी अंदाज़ में पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया है, वह ठीक नहीं है। क्योंकि श्रीमद्भागवत गीता को वे लोग भी मानते हैं, जिनका धर्म दूसरे धर्म के पढऩे की इज़ाजत तक नहीं देता है। लेकिन अब स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता को थोपे जाने से विरोध की रेखाएँ भी खिचेंगी।’

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हरीश खन्ना का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता तो ज्ञान देती है, जो पढ़ायी जानी चाहिए। लेकिन स्कूलों में जबरदस्ती इसे पढ़ाने के लिए थोपा जाएगा, तो विवाद ज़रूर बढ़ेगा। क्योंकि स्कूल में तो सभी धर्मों के छात्र पढ़ते हैं। कोई गीता को नहीं मानता है, तो कोई मानता है। ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को वैकल्पिक तौर पर रखते, तो ठीक रहता। क्योंकि आज श्रीमद्भागवत गीता पढ़ायी जा रही है, कल अगर किसी ने अन्य धर्म की किताबों को पढ़ाये जाने की माँग की जाएगी। ऐसे में निश्चित तौर पर विरोध होगा।

राजनीति के जानकार प्रो. केदारनाथ शुक्ला का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता को उन राज्यों में पढ़ाये जाने का माहौल बनाया जा रहा है, जहाँ पर भाजपा की सरकारें हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में गीता पढ़ाये जाने को लेकर सियासत तेज़ होगी, ताकि एक ध्रुवीकरण की राजनीति को बल मिल सके। मौज़ूदा समय में धर्म और धार्मिक विचार धाराओं को लेकर टकराव चल रहा है। ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को लेकर नया विवाद बन रहा है।

बताते चलें कि भाजपा का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता तो सदियों से लोग पढ़ रहे हैं। लोगों की उसमें आस्था है। ऐसे में अगर स्कूलों में शिक्षा के तौर पर शामिल की जा रही है, तो इसमें बुरा क्या हो रहा है? उनका कहना है उन लोगों को ज़रूर बुरा लगा रहा है, जिसका श्रीमद्भागवत गीता पर विश्वास नहीं है। वे इसका खुलकर विरोध तो नहीं कर रहे हैं; मगर अन्य समुदाय के लोगों को भड़का रहे हैं। लेकिन विरोधियों को कुछ हासिल नहीं होगा। उनका कहना है कि नयी शिक्षा नीति के तहत उन लोगों के बारे में पढ़ाया जाएगा, जिनके के बारे में अभी तक किसी को कोई जानकारी नहीं दी गयी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जो श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ते ही नहीं, बल्कि उसका अनुसरण भी करते हैं। ऐसे में जब भारत के शिक्षक और छात्र वहाँ जाकर श्रीमद्भागवत गीता के बारे में सुनते हैं, तो उन्हें बहुत ख़ुशी होती है। लेकिन अपने ही देश में श्रीमद्भागवत गीता की उपेक्षा को देखते हुए हताश और उदास होते रहे हैं; लेकिन अब उपेक्षा नहीं होगी।

श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाये जाने को लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शशि प्रकाश शर्मा का कहना है कि आने वाले समय में नयी शिक्षा नीति के तहत तमाम अहम बदलाव देखने को मिलेंगे। क्योंकि शिक्षा नीति के माध्यम से राजनीति सदियों से होती आयी है। उनका कहना है कि पूर्व की सरकारों ने उन लोगों को पाठ्यक्रम में शामिल किया है, जिनका हमारे इतिहास से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है। लेकिन अब उन लोगों के बारे में पढ़ाया जाएगा, जिनके बारे में लोग सुनते आये हैं और मानते आये हैं कि वे हमारे पूर्वज हैं और उनका हमसे सीधा वास्ता है।

श्रीमद्भागवत गीता को लेकर कोई भी सियासी दल खुलकर के तो सामने नहीं आ रहा है; लेकिन तंज कसकर इतना ही कह रहे हैं कि जो लोग श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाये जाने पर बल दे रहे हैं, वे ख़ुद श्रीमद्भागवत गीता का कितना अनुसरण करते हैं। लेकिन इतना ज़रूर है कि आने वाले दिनों में अन्य धर्म के गुरु इस बात पर ज़रूर बल दे सकते हैं कि गीता की तरह उनके पवित्र ग्रन्थ को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया।

फिनलैंड से सीखें ख़ुश रहने के गुर

फिनलैंड में लोग जब सड़क पर निकलते हैं, तो पास से गुज़रने वाले को एक प्यारी-सी मुस्कान देते हैं और उसका अभिवादन यानी स्वागत भी करते हैं। यह बात फिनलैंड के लोगों की ख़ुशहाली के प्रमुख कारणों में से एक है। इसके अलावा ख़ूबसूरत लैंडस्केप, प्राकृतिक सुन्दरता, जंगल, स्वच्छ और साफ़-सुथरी झीलें और सन्तुलित वाइल्ड लाइफ है। वहाँ के लोग शान्तिप्रिय हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण स्वतंत्र और चैन से रहते हैं। इसीलिए वहाँ क्राइम रेट काफ़ी कम है। लोगों में सद्भावना है। उनका स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग काफ़ी ऊँचा है। शिक्षा व्यवस्था अच्छी है। यूनिवर्सल हेल्थ केयर सिस्टम के अलावा वहाँ के लोगों में समानता का भाव है। इसलिए फिनलैंड के लोग अपने को सुरक्षित भी महसूस करते हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के लिए वर्ष 2022 में करवाये गये एक सर्वे में फिनलैंड लगातार पाँचवीं बार विश्व का सबसे ख़ुशहाल देश चुना गया है। वहाँ हैप्पीनेस का ग्राफ दूसरे देशों की तुलना में सबसे ऊँचा है। वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में शामिल होने वाले जो 10 देश हैं, उनमें शीर्ष स्थान फिनलैंड का है। उसके बाद क्रमश: डेनमार्क, आइसलैंड, स्वीटजरलैंड, नीदरलैंड्स, लक्जमबर्ग, स्वीडन, नॉर्वे, इजरायल और न्यूजीलैंड शामिल है। भारत का स्थान 136वाँ है।

भारत पीछे क्यों?

परम्परागत जीवन शैली और नैतिक मूल्यों से सम्पन्न भारत जैसे देश की हैप्पीनेस रिपोर्ट या कह लें रैंक इतना पीछे होने के कई कारण हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो हमारे देश में लोगों में कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ है। हम लोग द्वंद्व में जीवन जीते हैं। मन में कुछ और, बाहर कुछ और। ज़िन्दगी जीने का अधिकार तो सबको है। मगर हम ज़िन्दगी को घुट-घुटकर जीते हैं; उसको अभिव्यक्त नहीं कर पाते। इसीलिए हम उसी उलझी हुई ज़िन्दगी जीते रहते हैं।

वल्र्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट को लेकर फिनलैंड के सन्दर्भ में जब पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. रोशन लाल दहिया से बातचीत की गयी, तो उन्होंने इसके पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण बताये और कुछ सुझाव भी दिये। ख़ुशी के पैमाने पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें अपने आपको स्वीकार करना आना चाहिए, व्हाट एम आई? (मैं क्या हूँ?)। ‘मैं साइकिल पर जाता हूँ; मैं मारुति 800 में जाता हूँ; मैं पैदल जाता हूँ; इन चीज़ें की परवाह करनी छोडऩी पड़ेगी। अगर ख़ुश रहना है, तो दूसरों के साथ तुलना करना बन्द करना पड़ेगा। डॉ. रोशन लाल कहते हैं कि आज का सबसे बड़ा रोग है कि ‘क्या कहेंगे लोग?’ हमें जीवन की स्वतंत्रता चाहिए। हमारे पास वायुसंचार (वेंटिलेशन) नहीं है। हमें ‘नहीं’ कहना आना चाहिए। हमारे यहाँ सामाजिक समर्थन नहीं है। यह चीज़ अब ख़त्म होती जा रही है। भारत में हम सामाजिक जीवन जीते हैं, व्यक्तिगत जीवन नहीं; जबकि पश्चिमी देशों में लोग व्यक्तिगत जीवन ज़्यादा जीते हैं।

 

परम्परागत जीवन को छोड़कर हम बनावटी ज़िन्दगी जी रहे हैं। वातानुकूलित (एयर-कंडीशन) जीवन हमें ख़ुशी नहीं दे सकता। पहले ज़माने में जब हम पेड़ों के नीचे बैठकर पढ़ते थे, तो अधिक याद रहता था। अब बच्चों को एसी में बैठकर पढऩे से भी उतना नहीं याद हो पाता। लेकिन अब लोगों की जीवनशैली ऐसी हो गयी है कि एसी उनकी ज़रूरत बन गया है। मेडिकल आधार पर देखें, तो शरीर में पसीना आना ज़रूरी है। लेकिन हमारी मानसिकता ऐसी बन गयी है कि हमें एसी लगाना ऊँची जीवनशैली का मानक (स्टैंडर्ड) लगता है। लेकिन आदमी के स्वास्थ्य पर इसका बुरा असर हो रहा है। लोग आराम की ज़िन्दगी जीना चाहते हैं।

उनका शरीर गतिशील नहीं हो पाता, जिससे बीमारियाँ घेर रही हैं। आरामतलब ज़िन्दगी का शिकार हुआ आज का आदमी उपकरणों पर आश्रित हो गया है। जितनी तरक़्क़ी हो रही है, उतने ही रोग हमें घेर रहे हैं। शहरों में एक्सेसिबिलिटी (उत्कृष्टता), अवेलेबिलिटी (उपलब्धता) और अफोर्डेबिलिटी (सामथ्र्य) शब्द चलते हैं; लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं बदल रही।

डॉ. रोशन लाल बताते हैं कि फिनलैंड में लोगों की जीवन का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण है, जो कि भारत से एकदम अलग है। अगर हमें अपने बच्चों को या ख़ुद को ख़ुश रखना है, तो उन्हें सामाजिक भावनात्मक शिक्षा सिखानी पड़ेगी। सरकार और वैज्ञानिकों को कम-से-कम मानव जोखिम पर खोज करनी होगी।

कुछ तौर-तरीक़े सरकारों को जबरदस्ती लागू करने होंगे। डॉ. रोशन लाल ने बताया कि एक बार जब वह किसी सम्मेलन के लिए कनाडा में थे। उन्होंने देखा कि वहाँ एक रेस्टोरेंट (भोजनालय) बन रहा था, जिसे सरकार ने स्वीकृति नहीं दी। इसका एक बड़ा कारण यह देखने को मिला कि उस रेस्टोरेंट में 90 कुर्सियाँ अन्दर लगी थीं; लेकिन बाहर 90 गाडिय़ों को पार्क करने के लिए जगह नहीं थी। इसलिए सरकार ने उसका लाइसेंस (अनुज्ञप्ति पत्र) रद्द कर दिया। ऐसे मापदण्ड (पैरामीटर) हमारे देश में भी सरकार को ध्यान में रखने चाहिए।

ईष्र्या कैसी?

दार्शनिक लाओत्से ने कहा है कि जो हम हो सकते हैं, हो नहीं पाते; और जो हम नहीं हो सकते, वह होने में लगे रहते हैं। इसी में सारा जीवन बीत जाता है। सारा अवसर खो जाता है। कहने का भाव यह हुआ कि हम अपनी क्षमताओं और कौशल को जानने की बजाय दूसरों की तरह बनने में जीवन के सुनहरे अवसरों को खो देते हैं। इस चक्कर में दीन-हीन से बने रहते हैं। इससे हीन भावना पैदा होने लगती है। आत्मग्लानि में ऐसा महसूस होने लगती है कि हम दूसरों की तरह क्यों नहीं बन सके। इसी उधेड़बुन में सारा जीवन निकल जाता है और हम हाथ मलते रह जाते हैं।

ख़ुशी क्या है?

आख़िर ख़ुशी क्या है? आदमी ख़ुश क्यों होना चाहता है? इसका सीधा-सा जवाब है कि जब वह ख़ुश होता है, तो स्पष्ट सोचता है, तनाव से दूर होता है। ऐसी अवस्था में वह मुश्किलों में भी सहजता का अनुभव करता है। ख़ुशी एक आंतरिक अवस्था है, जहाँ कोई विचार शेष नहीं रहता। इस अवस्था में एक गहरा मौन होता है, जब सब तनाव ख़त्म हो जाते हैं। लेकिन ख़ुशी की यह अवस्था देश-काल और वातावरण पर निर्भर करती है।

आदमी ख़ुश होने के लिए बड़े और ख़ास मौक़े ढूँढता रहता है और इसी तलाश में उसका जीवन बीत जाता है। आम ज़िन्दगी में रोज़ाना कई पल ऐसे आते हैं, जब ख़ुशी को बटोरा जा सकता है। और उस बटोरी हुई ख़ुशी से ज़िन्दगी के तमाम संघर्षों और दु:खों से पार पाया जा सकता है। ओशो कहते हैं कि एक कलाकार, कवि और संगीतकार अपनी कलाकृति से जितना सुख, आनंद और तृप्ति प्राप्त करता है, उतना एक धनी व्यक्ति नहीं। वास्तविक ख़ुशी अन्तर में है।

कैसे मिले ख़ुशी?

गहन मौन की अवस्था में ही असल ख़ुशी का स्थान है, जहाँ कोई बाहरी परिस्थितियों का प्रभाव नहीं रहता। इस अनुभव को जितना दोहराया जाएगा, उतनी अधिक यह अवस्था प्राप्त होगी। इससे पूरा व्यक्तित्व रूपांतरित हो जाता है।

शिवपाल और अखिलेश के बीच सियासी जंग में मुलायम सिंह ने कहा कि अखिलेश के साथ रहे कार्यकर्ता

उत्तर प्रदेश की सियासत में भाजपा का दबदबा दिन व दिन बढ़ता ही जा रहा है। क्योंकि भाजपा के विरोधियों में जो दमदार नेता हुआ करते थे। वो अब खुद भाजपा का दामन थामने को मजबूर है। इसी कड़ी में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल सिंह यादव ने भाजपा के कद्दावर नेताओं से मिलकर ये साफ मैसेज दे दिया है। कि अब वे शीघ्र ही भाजपा में जा सकते है।
शिवपाल यादव ने समान नागरिक कानून संहिता की बात कह कर भाजपा का समर्थन किया है। बताते चलें समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से शिवपाल सिंह यादव की आपस में बन भी रही थी। दोनों के नेताओं के बीच मनमुटाव की खबरें अक्सर मीडिया में सामने आती रही है।लेकिन इन खबरों को तो तब विराम लगा जब शिवपाल सिंह यादव की तरफ से खुलकर न सही पर इशारों में इशारों में ये मैसेज दिया है कि अब वो भाजपा के साथ जा सकते है।
चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच सियासी जंग के बीच सपा के संस्थापक व मुखिया मुलायम सिंह यादव ने सपा के कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वे अखिलेश के साथ रहे। अखिलेश का साथ न छो़ेडे। सपा की राजनीति के जानकार अमलेन्द्र सिंह का कहना है कि अगर शिवपाल यादव भाजपा के साथ जाते है तो आने वाले दिनों में कई सपा के नेता भी भाजपा में शामिल हो सकते है।क्योंकि उत्तर प्रदेश की सियासत में बदलते जातीय समीकरण को देखते हुए आने वाले दिनों में अन्य दलों से भी नेता भाजपा में जाने की फिराक में है।क्योंकि दलबदलु टाइप के नेता तो सत्ता के करीब रहकर ही अपनी राजनीति और अस्तित्व को बनाकर चलते है।

ख़तरनाक दिमाग़ी ज़हर

इन दिनों हर तरफ़ नफ़रत भरी बातें करते हुए लोगों की भीड़ आसानी से दिखायी दे जाती है। नफ़रत का यह ज़हर लोगों के दिमाग़ में ठीक उसी तरह बढ़ता जा रहा है, जिस तरह रक्त में कैंसर। यह दिमाग़ी ज़हर दो तरफ़ा घातक सिद्ध होगा- एक तरफ़ उनके लिए, जिनके प्रति लोगों के दिमाग़ में यह ज़हर भरा है। और दूसरी तरफ़ उनके लिए, जिनके दिमाग़ में यह ज़हर भरा है। लेकिन जिनके दिमाग़ में यह नफ़रत का ज़हर भरा है, उन्हें इसका अहसास नहीं है कि यह ज़हर उनके शरीर में कई तरह के विकार पैदा कर रहा है। वे मज़हब (धर्म) को समझकर उस पर सच्चाई से अमल करने के बजाय उसे उसी तरह अपने कट्टरता रूपी दाँतों से झिंझोड़ रहे हैं, जिस तरह एक कुत्ता किसी हड्डी को झिंझोड़ता है और अपने ही रक्त के स्वाद के आनन्द में डूबा रहता है। उसे न तो हड्डी का कोई फ़ायदा मिलता है और न ही वह हड्डी को कभी चबा पाता है।

मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है, जो अपने मज़हब से ऐसे लिपटे रहते हैं, जैसे चंदन से कोई साँप। इससे वे और ज़हरीले होते जाते हैं। ऐसे लोग अपने मज़हब का किसी भी तरह से कोई फ़ायदा स्वयं भी नहीं ले पाते और दूसरों को भी नहीं लेने देते। उनकी नज़र में मज़हब उनके पाखण्ड और शारीरिक सजधज की वस्तु हैं। वे उसे सीने से लगाये रहने; उनके अनुसार उपासना का दिखावटी प्रयास करने; उनके अनुसार निर्धारित वेशभूषा में रहने और उन्हीं के अनुसार शारीरिक बनावट में ख़ुद को ढालकर रखने को ही सर्वोपरि समझते हैं। ये वे लोग हैं, जिन्होंने अपने-अपने मज़हबों के चारों तरफ़ इतनी ऊँची-ऊँची दीवारें उठा रखी हैं कि न तो वे दूसरे मज़हबों की अच्छाइयों को देखना चाहते हैं और न अपने मज़हब की अच्छाइयों तक दूसरे किसी मज़हब के लोगों को पहुँचने देना चाहते हैं। कुछ लोग तो इससे भी आगे बढ़कर अपने ही मज़हब के लोगों तक को अपने बनाये हुए उस दायरे तक नहीं पहुँचने देना चाहते, जो उन्होंने अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिए बना रखा है। ऐसे लोग अपने को दुनिया के सभी लोगों से श्रेष्ठ समझते हैं।

मज़े की बात तो यह है कि दुनिया में ऐसे लोगों की हर मज़हब में बहुतायत है, जो ख़ुद को ही सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। हँसी इस बात पर आती है कि ये लोग उसी तरह खाते-पीते और गन्दगी करते हैं, जैसे बाक़ी सब करते हैं। उसी तरह पैदा हुए हैं, जैसे बाक़ी लोग और दूसरे प्राणी। ये लोग शारीरिक बनावट में भी किसी भी प्रकार से दूसरे लोगों से भिन्न नहीं हैं। सबकी तरह ही सम्भोग से ही पैदा हुए हैं और सम्भोग के बग़ैर अपना वंश बढ़ाने में असमर्थ हैं। फिर कोई श्रेष्ठ और कोई निकृष्ट कैसे हो सकता है? कोई ऊँच और कोई नीच कैसे हो सकता है? हाँ, ऊँच-नीच का एक पैमाना हो सकता है, और वो है- कर्मों का पैमाना। अगर कोई अपराधी है। निकृष्ट और घिनौने कर्म करता है। दूसरों पर अत्याचार करता है; तो वह नीच है। अगर कोई अच्छा है, तो वह श्रेष्ठ है।

आख़िर कोई नफ़रत फैलाकर ईश्वर का प्रिय कैसे हो सकता है? इसीलिए हर मज़हब में कहा गया है कि सबसे प्यार करो। सब पर दया करो। भूखों को भोजन कराओ। प्यासों को पानी पिलाओ। किसी का भी तन, मन और धन से बुरा मत करो। किसी को दु:ख मत पहुँचाओ। किसी का अनिष्ट मत करो और किसी पर अत्याचार मत करो। किसी की हत्या मत करो। घमण्ड मत करो। किसी से घृणा अथवा ईश्र्या मत करो। पाप से बचो। पुण्य के अवसर तलाशो। जब भी किसी का भला करो, तो यह समझकर करो कि यह ईश्वर का आदेश है। ईश्वर को सिवाय किसी से मत डरो।

एक कहावत है- ‘नेकी कर दरिया में डाल।‘  इसका अर्थ है कि नेकी करके भूल जाओ, उसे जताओ मत। लेकिन लोग यह अर्थ निकालते हैं कि किसी के साथ भला करो और उसके बुरे बनो। इसी के चलते लोगों ने इस तरह के मुहावरे भी बना रखे हैं कि ‘भलाई का ज़माना नहीं है।’ ‘अब तो भलाई के बदले बुराई मिलती है।’ ‘किसी का भला करोगे, तो बुरा फल ही मिलेगा।’ हो सकता है कि बहुत-से लोगों का यह अनुभव रहा हो। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि अपेक्षाएँ जहाँ होती हैं, वहाँ दु:ख स्वत: ही पैदा हो जाता है। क्या हम किसी को दान करते समय यह सोचते हैं कि वह भी हमें दान करेगा? कभी नहीं। तो फिर किसी का भला करते समय यह क्यों सोचते हैं कि उसे भी हमारा भला करना चाहिए? अगर सामथ्र्य नहीं है, तो भला मत करो। अथवा उतना ही भला करो, जितनी सामथ्र्य है। लेकिन यह सोचकर भलाई मत करो कि सामने वाला आपको इसके बदले में कुछ देगा। लेकिन कर्म एक ऐसी चीज़ है, जिसका फल आदमी को बिना माँगे भी ज़रूर मिलता है। लेकिन लोग प्यार के बदले प्यार की अपेक्षा तो करते हैं; जबकि नफ़रत, बुराई, गाली और ईष्र्या देकर इनकी वापसी नहीं चाहते। परन्तु इन सबकी वापसी तय है और हर हाल में मिलेगी।

सोनिया गांधी ने सदस्यता के आखिरी दिन किया खुद को डिजिटल रूप में नामांकित  

कांग्रेस के विशेष सदस्यता अभियान के तहत शुक्रवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डिजिटल रूप में नामांकन किया। आज सदस्यता अभियान का आखिरी दिन था। कांग्रेस के आंतरिक चुनाव की प्रक्रिया अगले महीने से शुरू हो जाएगी।

कांग्रेस के मुताबिक अब तक 2.6  करोड़ से अधिक कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने  डिजिटल रूप में सदस्‍य के तौर पर खुद को नामांकित किया है। इसके अलावा तीन करोड़ अन्‍य कार्यकर्ताओं ने पार्टी के 137 साल पुराने इतिहास में पहली बार की जा रही इस कवायद में पेपर नामांकन सिस्‍टम के जरिये खुद को पंजीकृत किया है।

हाल के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस खुद को सक्रिय करने में जुटी हुई है। संगठन और नेतृत्‍व में बदलाव की तैयारी हो रही है। हाल में पार्टी के असंतुष्‍ट नेता सोनिया गांधी से मिले हैं और उन्हें कुछ सुझाव भी दिए हैं। इन नेताओं का कहना है कि वे कांग्रेस से बाहर नहीं जा रहे हैं।

पार्टी में ‘बोगस’ सदस्‍यता को लेकर भी खूब सवाल उठे हैं। लिहाजा पार्टी ने एक मेंबरशिप ऐप तैयार किया है जिसमें पार्टी नेता और कार्यकर्ता चार स्‍तरीय सत्‍यापन प्रक्रिया के जरिये नामांकन कर सकते हैं। यह ऐप केवल पार्टी के अधिकृत नेताओं के लिए है और कार्यकर्ताओं को ही इसका उपयोग करने की इजाजत है। पार्टी मंत्री है इससे बोगस सदस्यता पर रोक लग जाएगी।

महंगाई का असर नीबू-मिर्च की माला पर 

महंगाई का असर तो सही मायने में नींबू और हरी मिर्च में देखने को मिल रहा है। एक ओर लोग हरी मिर्च और नींबू के बिना स्वाद के  खाने-पीने का  मजा नहीं ले पा रहे है। वहीं हरी मिर्च और नींबू को दुकानों में  लगाकर अपनी रोजी रोटी कमाने वालों को काफी  परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।आलम ये है कि हरी मिर्च और नींबू को दुकानों पर अब नहीं लगा पा रहे है। उनका कहना है कि अप्रैल माह में अचानक नींबू और हरी मिर्च के दाम बढ़ गये है।
नींबू लगाने वालों का कहना है कि प्रत्येक शनिवार को दुकानों पर नींबू और हरी मिर्च को छोटी सी माला बनाकर टांगते रहे है। क्योंकि नींबू अत्यधिक 50 रुपये किलों के भाव से मिल जाता था और मिर्च भी इसी भाव मिल जाती  रही है। लेकिन अब नींबू के भाव 400 रुपये है और मिर्च भी 200 रुपये अधिक भाव मिल रही है।ऐसे में उनको नींबू और मिर्च की माला टांगना महंगा पड़ रहा है। क्योंकि उनको प्रत्येक माला के तौर पर 10 रुपये के भाव मिल जाता था। लेकिन अब लागत ही 20 रूपये प्रति माला पड़ रही है। ऐसे में उन्होंने पिछले शनिवार दुकानों पर नींबू की माला बहुत ही कम दुकानों पर टांगी है। अगर वे दुकानों पर टांग रहे है।तो दुकानदार से पूछकर टांग रहे है।
दुकानदार अशोक शर्मा का कहना है कि वे प्रत्येक महीने शनिवार के हिसाब से 50 रुपये देते थे। अब नींबू को टांगने वाले प्रत्येक महीने के हिसाब से 200 रुपये मांग रहे है। सो कई दुकानदारों और उन्होंने फिलहाल के लिये नींबू की माला को टांगने को मना कर दिया है।नींबू मिर्च को टांगकर अपना जीवन यापन करने वाले सुभाष माली ने बताया कि उनके काम पर महंगाई का असर पड़ा है। क्योंकि नींबू और हरी मिर्च को महंगा खरीदकर सस्ते दामों में कैसे काम कर सकते है। ऐसे में फिलहाल उन्होंने उन्ही दुकानों में टांग रहे है जो महंगे दाम देने को राजी है।

अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के झटके, रिक्टर स्केल पर 4.9 थी तीव्रता

अरुणाचल प्रदेश में शुक्रवार सुबह भूकंप के झटके महसूस किये गए हैं। यह भूकंप  पैन्गीन के पास केंद्रित रहा। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 4.9 मापी गयी है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी ने बताया कि शुक्रवार सुबह अरुणाचल प्रदेश में पैन्गीन के निकट रिक्टर पैमाने पर 4.9 तीव्रता वाले भूकंप के झटके महसूस किए गए।

जानकारी के मुताबिक भूकंप का केंद्र अरुणाचल का पैन्गीन क्षेत्र था। यह 1176 किलोमीटर उत्तर (एन) में था। भूकंप के झटके भारतीय समयानुसार सुबह 6:56 बजे महसूस किये गए। यह भूकंप सतह से 30 किलोमीटर की गहराई में आया।

प्रतिबंध के बाद भी पोर्न फिल्मों का फल-फूल रहा कारोबार

अजीब विडम्बना कहे, कि सरकार की अनदेखी के चलते भारत जैसे संस्कृति और सभ्यता वाले देश में पोर्न फिल्मों पर रोक होने के बावजूद आज भी धड़ल्ले से पोर्न फिल्मों का कारोबार जमकर फल-फूल रहा है। तमाम साइट पर पोर्न फिल्म देखी जा रही है।
चौंकाने वाली बात तो ये है। कि इन पोर्न फिल्मों की शूटिंग दिल्ली-एनसीआर सहित देश के कई शहरों में होती है। और इन फिल्मों को बनाने वाले फिल्म बनाकर के विदेश में भेज देते है। क्योंकि कई देशों में पोर्न फिल्मों को वैध माना जाता है। लेकिन भारत में अवैध। ऐसे में सैक्स रैकेट करने वाले पोर्न फिल्म को बनाकर भारत में ईमेल और पेन ड्राईव के जरिये भेज देते है। ताकि पुलिस और कानून की नजर से बच सकें। भारत में कानूनी तौर पर पोर्न फिल्म अवैध है। और कई देशों में वैध है। जिसका यहां पर कुछ लोग जमकर फायदा उठा रहे है। 
आरजेडी दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष मनोज कुमार चौधरी ने बताया कि इन पोर्न फिल्म का जो रैकेट चला रहे है। उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिये। इस रैकेट को चलाने वाले देश की भोली-भाली लड़कियों और महिलाओं को लालच देकर फंसा कर उनके साथ बलैक-मेल करते है। और शारीरिक शोषण भी करते है। बाद में फिल्म बनाकर बेचते है।
समाजसेवी व महिला उत्थान से जुड़े विनोद कुमार पटेल का कहना है कि देश में तेजी से पोर्न फिल्म का रैकेट चल रहा है। जिसमें स्कूली छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को लालच-प्रलोभन देकर अपने चुगंल में फंसा लेते है। उनके साथ अत्याचार और शारीरिक शोषण करते है। उसके बाद में फिल्म बनाते है। और बैलेक मेल करते है। कई बार तो महिलाये बलैक-मेल होने से बचने के लिये और समाज के डर से अपनी जान तक दे देती है। लेकिन जो अपराधी है वो बच निकलता है।
विनोद कुमार पटेल का कहना है कि पोर्न फिल्म का जो रेकेट चला रहे है उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिये जो भी इस तरह के काम में दोषी पाये जाये तो उसको फांसी की सजा होनी चाहिये। उन्होंने बताया कि पोर्न फिल्म के कारोबार में बड़े-बड़े आपराधिक लोग जुड़े है जिनका फिल्मी कनेक्शन भी है।
उन्होंने आगे बताया कि जो पोर्न फिल्मों का रैकेट चला रहे है। वो अपनी पकड़ व पहुंच के चलते तो बचने का प्रयास करते है। जिसका नतीजा ये है कि आज भी पोर्न फिल्मों का कारोबार जमकर पनप रहा है। उनका कहना है कि इस मामले में पुलिस और सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि महिलाओं के साथ अत्याचार और ब्लैकमेलिंग को रोका जा सकें।

मेघालय में चक्रवाती तूफान का कहर, 1000 से अधिक लोग हो गए बेघर

मेघालय में चक्रवाती तूफ़ान ने जमकर तबाही मचाई है। राज्य के री-भोई जिले में  आए इस तूफान में 47 गाँव प्रभावित हुए हैं जबकि 1000 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं। हालांकि, तूफ़ान में किसी जानी नुकसान की कोई खबर नहीं है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक री-भोई जिले के 47 गांव तूफान से जबरदस्त प्रभावित हुए हैं। वहां सैकड़ों घरों को नुकसान पहुंचा है और उनके क्षतिग्रस्त होने से लोग बेघर हो गए हैं। बताया गया है कि तूफान में निजी के अलावा सरकारी संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा है। अधिकारियों के मुताबिक तूफान में बीडीओ कार्यालय, एक स्कूल, लोक निर्माण विभाग का कार्यालय और पशु चिकित्सालय शामिल हैं।

सभी संबंधित विभागों को प्रभावित गांवों में निकासी और बहाली कार्यों के काम पर लगा दिया गया है। अधिकारियों के मुताबिक डीसी ने हालात का जायजा लेने के लिए सभी संबंधित बीडीओ के साथ इमरजेंसी बैठक की है।

उधर पुलिस, वन और पीडब्ल्यूडी (आर) को तुरंत मंजूरी और बहाली के लिए जरूरी कार्रवाई करने का जिम्मा सौंपा गया है। मेघालय एनर्जी कारपोरेशन लि. ने प्रभावित जिले में बिजली आपूर्ति बहाल करने के लिए टीम भेजी है। उमसिंग प्रखंड पर भी तत्काल यातायात बहाल कर दिया गया और जरूरी कार्रवाई के लिए सभी बीडीओ के साथ ऑनलाइन आपात बैठक की गयी है।

नया विवाद: यूनिवर्सिटी की दीवारों पर लगाए पोस्टर – ‘भगवा जेएनयू’

लगातार विवादों के चलते जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) इन दिनों सुर्ख़ियों में है। अब नया विवाद जेएनयू की बाहरी दीवारों पर भगवा झंडे और विवादित पोस्टर लगाने से पैदा  हो गया है। इन पोस्टरों में  लिखा है – ‘भगवा जेएनयू’ और इन्हें हिन्दू सेना ने लगाया है।

जानकारी के मुताबिक हिंदूवादी संगठन ‘हिन्दू सेना’ की तरफ से ये झंडे और पोस्टर यूनिवर्सिटी के बाहरी सड़क और मुख्य गेट के करीब लगाए गए हैं। कुछ रोज पहले जेएनयू में रामनवमी के दिन वामपंथी छात्र संगठन (एसएफआई) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के बीच खाने के हिंसा हो गयी थी। इस घटना में कई छात्र घायल हो गए थे।

अब हिंसा के बाद यह ये पोस्टर और झंडे लगने से फिर तनाव पैदा हो गया है। यह विवादित झंडे और पोस्टर लगाने के बाद साफ़ हो गया है कि देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में साम्प्रदायिक ज़हर घोलने की घिनौनी कोशिश हो रही है।

याद रहे रामनवमी के दिन कावेरी हॉस्टल में नॉनवेज खाना परोसे जाने के बाद वहां  हिंसा हो गयी थी। लेफ्ट विंग के छात्रों ने आरोप लगाया था कि एबीवीपी से जुड़े छात्रों ने हॉस्टल में आकर मेस स्टाफ को नॉनवेज परोसने से रोक दिया। यही नहीं उन्होंने वहां उपस्थित छात्रों पर हमला भी किया। उधर एबीवीपी का कहना था कि लेफ्ट विंग के छात्रों ने रामनवमी की पूजा रोकने की कोशिश की थी। बता दें पुलिस इस घटना की जांच कर रही है