श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर चढ़ा सियासी पारा

‘भारत के सियासतदानों ने इस पवित्र ग्रन्थ को भी सियासत में घसीटने से नहीं छोड़ा है। श्रीमद्भागवत गीता से हमें नीति, न्याय, सम्बन्धों, सत्य और धर्म-कर्म के बारे में ज्ञान मिलता है।’

श्रीमद्भागवत गीता केवल भगवान श्रीकृष्ण का उपदेश नहीं है, बल्कि इसमें जीवन का सार भी है। लेकिन इसमें सियासत दिखने लगे, तो विवाद खड़े होते हैं। जैसा कि मौज़ूदा समय में श्रीमद्भागवत गीता शिक्षा में शामिल किया जा रहा है। गुजरात, कर्नाटक के बाद अब हरियाणा में नयी शिक्षा नीति के तहत कक्षा 6 से 12 तक श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। श्रीमद्भागवत गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने पर शिक्षाविदों, धार्मिक लोगों ने तहलका संवाददाता को बताया कि भगवत गीता के पढऩे और पढ़ाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि भारत देश लोकतांत्रिक देश है। यहाँ स्कूल से लेकर कॉलेजों तक पढऩे और पढ़ाने वाले अलग-अलग धर्मों से आते हैं। ऐसे में वैचारिक टकराव होना स्वाभाविक है। इसलिए गीता को पढ़ाई में वैकल्पिक तौर पर शामिल होना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता तो पाठ्यक्रम में शामिल करने को लेकर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता को जो शामिल करा रहे हैं, वे उसका कितना अनुसरण करते हैं? उनका कहना है कि कुछ लोग तो अपने सियासी लाभ के लिए धार्मिक ग्रन्थों तक को नहीं छोड़ते हैं।

इस्कॉन मन्दिर से जुड़े श्रीकृष्ण भक्त हरिओम शर्मा का कहना है कि ‘दुनिया में श्रीमद्भागवत गीता एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है, जिसकी व्याख्या दुनिया भर की भाषाओं में हुई है और उस पर शोध हो रहे हैं। लेकिन भारत के सियासतदानों ने इस पवित्र ग्रन्थ को भी सियासत में घसीटने से नहीं छोड़ा है। श्रीमद्भागवत गीता से हमें नीति, न्याय, सम्बन्धों, सत्य और धर्म-कर्म के बारे में ज्ञान मिलता है। हम स्कूलों में इसके पढ़ाये जाने का स्वागत करते हैं। लेकिन जिस सियासी अंदाज़ में पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया है, वह ठीक नहीं है। क्योंकि श्रीमद्भागवत गीता को वे लोग भी मानते हैं, जिनका धर्म दूसरे धर्म के पढऩे की इज़ाजत तक नहीं देता है। लेकिन अब स्कूलों में श्रीमद्भागवत गीता को थोपे जाने से विरोध की रेखाएँ भी खिचेंगी।’

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हरीश खन्ना का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता तो ज्ञान देती है, जो पढ़ायी जानी चाहिए। लेकिन स्कूलों में जबरदस्ती इसे पढ़ाने के लिए थोपा जाएगा, तो विवाद ज़रूर बढ़ेगा। क्योंकि स्कूल में तो सभी धर्मों के छात्र पढ़ते हैं। कोई गीता को नहीं मानता है, तो कोई मानता है। ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को वैकल्पिक तौर पर रखते, तो ठीक रहता। क्योंकि आज श्रीमद्भागवत गीता पढ़ायी जा रही है, कल अगर किसी ने अन्य धर्म की किताबों को पढ़ाये जाने की माँग की जाएगी। ऐसे में निश्चित तौर पर विरोध होगा।

राजनीति के जानकार प्रो. केदारनाथ शुक्ला का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता को उन राज्यों में पढ़ाये जाने का माहौल बनाया जा रहा है, जहाँ पर भाजपा की सरकारें हैं। उनका कहना है कि आने वाले दिनों में ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में गीता पढ़ाये जाने को लेकर सियासत तेज़ होगी, ताकि एक ध्रुवीकरण की राजनीति को बल मिल सके। मौज़ूदा समय में धर्म और धार्मिक विचार धाराओं को लेकर टकराव चल रहा है। ऐसे में श्रीमद्भागवत गीता को लेकर नया विवाद बन रहा है।

बताते चलें कि भाजपा का कहना है कि श्रीमद्भागवत गीता तो सदियों से लोग पढ़ रहे हैं। लोगों की उसमें आस्था है। ऐसे में अगर स्कूलों में शिक्षा के तौर पर शामिल की जा रही है, तो इसमें बुरा क्या हो रहा है? उनका कहना है उन लोगों को ज़रूर बुरा लगा रहा है, जिसका श्रीमद्भागवत गीता पर विश्वास नहीं है। वे इसका खुलकर विरोध तो नहीं कर रहे हैं; मगर अन्य समुदाय के लोगों को भड़का रहे हैं। लेकिन विरोधियों को कुछ हासिल नहीं होगा। उनका कहना है कि नयी शिक्षा नीति के तहत उन लोगों के बारे में पढ़ाया जाएगा, जिनके के बारे में अभी तक किसी को कोई जानकारी नहीं दी गयी है। भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बताया कि दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जो श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ते ही नहीं, बल्कि उसका अनुसरण भी करते हैं। ऐसे में जब भारत के शिक्षक और छात्र वहाँ जाकर श्रीमद्भागवत गीता के बारे में सुनते हैं, तो उन्हें बहुत ख़ुशी होती है। लेकिन अपने ही देश में श्रीमद्भागवत गीता की उपेक्षा को देखते हुए हताश और उदास होते रहे हैं; लेकिन अब उपेक्षा नहीं होगी।

श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाये जाने को लेकर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के शशि प्रकाश शर्मा का कहना है कि आने वाले समय में नयी शिक्षा नीति के तहत तमाम अहम बदलाव देखने को मिलेंगे। क्योंकि शिक्षा नीति के माध्यम से राजनीति सदियों से होती आयी है। उनका कहना है कि पूर्व की सरकारों ने उन लोगों को पाठ्यक्रम में शामिल किया है, जिनका हमारे इतिहास से दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा है। लेकिन अब उन लोगों के बारे में पढ़ाया जाएगा, जिनके बारे में लोग सुनते आये हैं और मानते आये हैं कि वे हमारे पूर्वज हैं और उनका हमसे सीधा वास्ता है।

श्रीमद्भागवत गीता को लेकर कोई भी सियासी दल खुलकर के तो सामने नहीं आ रहा है; लेकिन तंज कसकर इतना ही कह रहे हैं कि जो लोग श्रीमद्भागवत गीता को पढ़ाये जाने पर बल दे रहे हैं, वे ख़ुद श्रीमद्भागवत गीता का कितना अनुसरण करते हैं। लेकिन इतना ज़रूर है कि आने वाले दिनों में अन्य धर्म के गुरु इस बात पर ज़रूर बल दे सकते हैं कि गीता की तरह उनके पवित्र ग्रन्थ को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया।