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राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस पर विशेष मातृत्व रक्षा में नाकामी हमारा दुर्भाग्य

दुनिया में माँ को ईश्वर के बाद सबसे ऊँचा दर्जा दिया गया है। क्योंकि नया जीवन देने के लिए माँ जिस पीड़ा से गुज़रती है और मौत के मुँह से लौटकर आती है, वह असहनीय होती है। इसीलिए कहा जाता है कि माँ का क़र्ज़ स्वयं भगवान भी नहीं उतार पाये हैं। लेकिन बावजूद इसके दुनिया में लाखों माँओं की दुर्दशा आज हो रही है। हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। आँकड़े बताते हैं कि हमारे देश में हर साल हज़ारों माताओं की मौत असमय हो जाती है। इन मौतों को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएँ चलायी जाती हैं, लेकिन फिर भी मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है। देश में हर साल महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तूरबा गाँधी की जयंती पर 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। यह राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (डब्ल्यूआरएआई) द्वारा गर्भवती महिलाओं की उचित देखभाल और प्रसव सम्बन्धी जागरूकता फैलाने के उद्देश्य शुरू की गयी एक पहल है।

ख़ास बात यह है कि भारत दुनिया का ऐसा पहला देश है, जिसने सामाजिक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस की घोषणा की। लेकिन हैरानी की बात यह है कि गर्भावस्था, प्रसव और प्रसव बाद महिलाओं को अधिकतम स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के लिए डब्ल्यूआरएआई द्वारा हर साल पूरे देश में मातृत्व की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया जाता है, बावजूद इसके गर्भवती महिलाओं की मौत के आँकड़े चौंकाने वाले हैं।

गर्भवती महिलाओं की मौत के कारण

दुनिया में कब और किसकी मौत हो जाए इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। डॉक्टरों को भगवान कहा जाता है, लेकिन वह भी मरीज़ के इलाज के समय भगवान पर ही सब छोड़ देता है। फिर भी अगर किसी की मौत कम उम्र में हो, तो उसे असमय मौत ही कहा जाता है। गर्भवती महिलाओं की मौतों को भी इसी श्रेणी में रखा जाता है। लेकिन सवाल यह है कि आख़िर बड़ी तादाद में गर्भवती महिलाओं की मौत होती क्यों है? इस सवाल का सही जवाब तो कोई नहीं बता सकता, लेकिन इसके कई कारण हैं।

ख़ून की कमी और कुपोषण

हमारे देश में क़रीब 70 फ़ीसदी महिलाएँ कुपोषण की शिकार हैं, जिसके चलते उनमें ख़ून की कमी है यानी एनीमिया की शिकार हैं। इसके चलते जब वे माँ बनती हैं, तो या तो बीच में ही या प्रसव के दौरान कई महिलाओं की मौत हो जाती है। इसकी एक बड़ी वजह गर्भधारण करने के बाद उन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिलना भी है। गर्भवती महिलाओं की प्रसव के दौरान मौत की एक वजह चिन्ता भी है। दूसरी वजह प्रसव के दौरान अत्यधिक ख़ून बह जाना भी है। इसे डॉक्टरी की भाषा में पीपीएच भी कहा जाता है।

कम उम्र में मौत की वजह

हैरानी की बात है कि आज विज्ञान की प्रगति का युग है और इसके बावजूद पाँच साल की बच्चियों तक के माँ बनने के मामले सामने आये हैं। हालाँकि ऐसे मामले बहुत ही कम देखे गये हैं, लेकिन इससे पता चलता है कि दुनिया में महिलाओं को हवसी मर्दों की नज़र किसी भी उम्र में बर्बाद करने से नहीं चूकती। किशोरियों के तो गर्भवती होने के हज़ारों मामले हर साल दुनिया में सामने आते हैं। ऐसे मामले दुनिया के हर देश में देखे गये हैं, जो केवल अनपढ़ और ग़रीब तबक़े के लोगों में ही नहीं, बल्कि पढ़े लिखे सम्भ्रांत लोगों में भी सामने आते हैं। यूरोप के देशों में तो हर साल हज़ारों मामले कम उम्र में माँ बनने के सामने आते हैं।

एक रिपोर्ट की मानें तो किशोरियों में मौत का सबसे बड़ा कारण कम उम्र में माँ बनना है। सेव द चिल्ड्रन संस्था की रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया में हर साल 10 लाख किशोर माँओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। अगर कोई लडक़ी 18 साल से पहले माँ बनती है, तो बच्चे के मरने की भी आशंका ज़्यादा रहती है। रिपोर्ट की मानें तो भारत में 15 से 19 साल के बीच की 47 फ़ीसदी लड़कियों का वज़न सामान्य से कम है, वहीं 56 फ़ीसदी महिलाएँ एनीमिया की शिकार हैं। इसी प्रकार भारत में क़रीब 20 फ़ीसदी से ज़्यादा लड़कियों की शादी आज भी किशोरावस्था में कर दी जाती है। गर्भावस्था के दौरान पूरी जाँचें न कराना भी माँओं की मौत की एक बड़ी वजह है। एक आकलन के अनुसार देश में जितनी महिलाएँ गर्भवती होती हैं, उनमें से आधी महिलाएँ ही जाँचें कराती हैं।

देश में प्रसूताओं की मृत्यु दर

हमारे देश में गर्भवती माताओं के लिए आँगनबाड़ी से लेकर कई सरकारी योजनाएँ लागू हैं, बावजूद इसके 290 गर्भवती महिलाओं में कम-से-कम एक महिला की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो भारत में हर साल 35 हज़ार गर्भवती महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है, जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आँकड़ा है। हालाँकि हमारे देश में गर्भवती महिलाओं की मौत में पहले से काफ़ी सुधार हुआ है। लेकिन कोई हैरानी नहीं होगी, यदि एक बार फिर गर्भवती महिलाओं की मौत का आँकड़ा बढऩे लगे, क्योंकि पिछले दो साल के दौरान देश में भुखमरी के आँकड़े बढ़े हैं। इसी प्रकार बच्चों की मृत्यु दर में भी भारत में पहले से सुधार हुआ है। लेकिन इस दावे को पुष्ट नहीं माना जा सकता, क्योंकि साल 2020 में उत्तर प्रदेश और बिहार में एक बुख़ार से सैकड़ों बच्चे मरे थे। उसके बाद 2021 में उत्तर प्रदेश में फिर एक बुख़ार के चलते दर्ज़नों बच्चे मरे थे। इतना ही नहीं, कोरोना की तीसरी लहर में भी काफ़ी बच्चों की मौत हुई।

भारत सरकार की एक योजना प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान भी गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करती है, लेकिन गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा में यह योजना नाकाम साबित हुई है, क्योंकि इससे गर्भवती माताओं और नवजातों की सुरक्षा बहुत बेहतर नहीं हो सकी है।

क्या करना चाहिए?

महिलाओं की सुरक्षा के लिए, ख़ासकर जब वे गर्भवती हों, तो उनकी सुरक्षा के लिए उनके स्वास्थ्य की जाँचों के साथ-साथ उनके पोषण का पूरा इंतज़ाम सही तरीक़े से होना चाहिए। इसके अलावा उनके प्रसव की समुचित व्यवस्था सरकारी अस्पतालों में होनी चाहिए। देखा गया है कि कई बार गर्भवती महिलाओं की सडक़ पर, बसों और ट्रेनों में प्रसव हुआ है, जबकि कई प्रसव पीड़ा से परेशान महिलाओं की अस्पतालों में समय पर इलाज न मिलने पर मौत हो जाती है। अगर कहीं महिलाओं को डॉक्टर इस अवस्था में देखते भी हैं, तो उनमें अधिकतर सीजर या बड़ा ऑपरेशन कर डालते हैं। इस मामले में अधिकतर डॉक्टर माँ और बच्चे में से या तो एक को बचाने की बात करते हैं, या फिर सुरक्षा की गारंटी ही नहीं लेते। प्राइवेट अस्पतालों में तो प्रसव कराने के बजाय ऑपरेशन करने को कमायी का ज़रिया बना रखा है। इसके लिए कई डॉक्टर तो महिलाओं को गर्भावस्था में आराम (बेड रेस्ट) की सलाह भी दे डालते हैं, ताकि महिलाएँ प्राकृतिक तरीक़े से बच्चे को जन्म न दे सकें और अस्पतालों का ठगी का धंधा चलता रहे।

महिला विशेषज्ञ डॉक्टर परेश कहते हैं कि गर्भवती महिलाओं की मौत के कई कारण होते हैं। इनमें समय पर सही देखरेख की कमी, सही इलाज की कमी, खानपान की कमी और अनुभवी डॉक्टरों की कमी है। वहीं जनरल फिजिशियन डॉक्टर मनीष कहते हैं कि अधिकतर गर्भवती महिलाओं की मौत किसी-न-किसी ग़लती की वजह से होती है। इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। साथ ही लोगों को भी जागरूक होने की ज़रूरत है। बार-बार गर्भपात और बच्चे पैदा करने से भी मौत के आँकड़े बढ़ते हैं।

सद्भाव से ही होगा उद्धार

यह सच है कि हर इंसान दुनिया में अकेला आया है और अकेला ही जाएगा। लेकिन यह अधूरा सच है। दुनिया में जब कोई बच्चा जन्म लेता है, तो उसी क्षण और भी कई बच्चे भी जन्मते हैं। इसी प्रकार जब कोई इंसान मरता है, तो उसी क्षण और भी कई लोगों की मौत होती है। यह अलग बात हो सकती है कि जन्मने और मरने की घटनाएँ एक स्थान पर नहीं होती हों। फ़र्क़ यह है कि सबके शरीर अलग-अलग होने के चलते सबके अहसास, अनुभव, अनुमान, तौर-तरीक़े भी अलग-अलग ही होते हैं। इसीलिए हम एक-दूसरे की संवेदनाओं को तो समझ सकते हैं; लेकिन एक पर जो बीत रही हो, वह दूसरा अपने ऊपर नहीं ले सकता; चाहे कितना भी क़रीबी क्यों न हो।

कहने का अर्थ यह है कि कोई इंसान उसी क्रिया से पूर्णतया वाक़िफ़ हो सकता है, जो उसके शरीर में हो रही हो। दूसरे पर बीतने वाली क्रियाओं का दूसरा इंसान केवल अहसास ही कर सकता है। मसलन अगर कोई भूखा है, तो दूसरे इंसान को उसकी भूख का अहसास तो हो सकता है; लेकिन उसकी भूख उस दूसरे इंसान को नहीं लग सकती, जब तक कि वह स्वयं भूखा न हो। लेकिन यह सच है कि आख़िरकार भूख तो उसे भी लगती ही है। इसी तरह सुख-दु:ख, ख़ुशी-ग़म और अन्य कई चीज़ें भी हर इंसान पर नाज़िल होती हैं। इसके अलावा सांसारिक जीवन में कोई भी अकेले अपने दम पर जी नहीं सकता। उसे अपने आसपास के लोगों से कई तरह के सम्बन्ध रखने ही पड़ेंगे। किसी के साथ मिलकर रहने का, किसी के साथ मिलकर काम करने का, किसी के साथ दोस्ती रखने का, किसी के साथ चीज़ों के लेन-देन का। कुल मिलाकर इंसान स्वार्थ के सहारे ही सही, पर एक-दूसरे से जुड़े हैं। यही वजह है कि इंसान बस्तियों में रहते हैं। एक सभ्य और सुरक्षित समाज की इस स्थापना को बनाये रखने के लिए इन रिश्तों को जोड़े रखने की अति आवश्यकता है। इसीलिए गुणीजन इंसानियत और सद्भाव की वकालत करते हैं, जो रहनी भी चाहिए। सद्भाव के बग़ैर अपना तथा अपनों का न तो कोई भला सोच सकता है और न सोच सकता है। अगर कोई इंसान किसी इंसान से या परिवार से या समुदाय से या समाज से नफ़रत करता है, तो उसे अपने विचारों के लोगों से या समाज से या समुदाय से सद्भाव रखना ही पड़ेगा। इसी वजह से लोगों में कई तरह के मतभेद दिखायी देते हैं। इनमें दो भाग स्पष्ट नज़र आते हैं- अच्छे लोग और बुरे लोग।

इतिहास गवाह है कि बुरे लोग ज़्यादातर समय दुनिया पर हावी रहते हैं। लेकिन यह एक बड़ा सच है कि दुनिया में अगर सब सुरक्षित हैं, तो यह उन लोगों की वजह से ही सम्भव है, जो अच्छे हैं और इंसानियत के पैरोकार हैं। क्योंकि बुरे लोग तो उत्पाती होते हैं और कभी भी मरने-मारने पर आमादा रहते हैं। अगर इंसानियत के पैरोकार मध्यस्ता न करें, तो ये लोग कभी भी लडक़र मर जाएँगे। इस बार होली पर दो तस्वीरें देखने को मिलीं। एक तस्वीर में ‘दि कश्मीर फाइल्स’ जैसी फ़िल्म के सहारे देश को नफ़रती आग में झोंकने पर आमादा लोग दिखे और दूसरी तस्वीर में उत्तर प्रदेश के देवाशरीफ़ में मुसलमान होली मनाते दिखे। वहाँ बिना किसी ऐतराज़ के जितनी सिद्दत से मुस्लिम होली मनाते हैं, वह तस्वीर देखते ही बनती है। यह तस्वीर उन लोगों को शर्मिंदा करने के लिए काफ़ी है, जो मज़हबों की आड़ लेकर नफ़रतें फैलाने की घिनौनी हरकत करने में लगे हैं। वैसे देवाशरीफ़ में सदियों से होली मनायी जाती है। वहाँ एक दरगाह है, जहाँ सभी मज़हबों के लोग एक अपनी फ़रियाद लेकर माथा टेंकने जाते हैं। देश में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ इस तरह की एकता देखने को मिलती है। कश्मीर में पंडितों पर हुए ज़ुल्म का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि वह काम भी नफ़रत के पैरोकारों और इंसानियत के दुश्मनों ने ही किया। लेकिन सच तो यह है कि ऐसी कलुषित घटनाओं से इतिहास भरा पड़ा है और कहीं-न-कहीं हर समुदाय के लोगों पर इस तरह के ज़ुल्म हुए हैं।

तो क्या हम उन काले अध्यायों को फिर से उजागर करके एक बार फिर से लडक़र मरें? इससे क्या हासिल होगा? बेहतर यह हो कि सरकार पीडि़तों के साथ आगे से अन्याय न होने दे। अगर किसी ने किसी की कभी हत्या कर दी हो, तो क्या मारे गये व्यक्ति की तरफ़ से रुदाली रोना रोकर उसका समाधान किया जा सकता है? इसका समाधान शान्ति स्थापित करके ही हो सकता है। इससे भी सन्तुष्टि न मिले, तो दोषी को सज़ा देनी चाहिए या फिर पीडि़तों के ज़ख्मों पर मरहम लगाना चाहिए। अगर मृतक की किसी पीढ़ी को भडक़ाया जाएगा, तो उसका परिणाम तो ख़ून-ख़राबा ही होगा। क्योंकि नफ़रत से तो बर्बादी और मातम ही पसरेंगे। उद्धार तो सद्भाव से ही होगा। मशहूर शायर मरहूम राहत इंदौरी का एक शेर है :-

लगेगी आग तो आएँगे कई घर ज़द में,

यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है।’ 

मास्क भी नहीं, चालान भी नहीं, लोगों ने ली राहत की सांस

दिल्ली में अब लोग बिना मुंह में मास्क के अपने घर से बाहर आ जा सकते है। मेट्रो, बस और बाजारों में लोग आज बिना मास्क के घूमते देखे गये है। मास्क को लेकर लगी पाबंदी हटने से लोगों ने राहत की सांस ली है।
लोगों का कहना है कि ज्यादातर लोग मास्क कोरोना के संक्रमण से बचाव के कारण नहीं लगाते थे। बल्कि चालान न कट जाये, इस लिये मुंह में मास्क लगा कर चलते थे। दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने 31 मार्च को अधिकारियों के साथ बैठक कर ये निर्णय लिया है कि 1 अप्रैल से मास्क जरूरी है। क्योंकि दिल्ली सहित पूरे देश में कोरोना के मामले हर रोज कम आ रहे है।
इसी के मद्देनजर मास्क लगाने जैसी पाबंदियों को हटाया गया है। वहीं मास्क को हटाये जाने का दिल्ली के लोगों ने स्वागत किया है वहीं दिल्ली के डॉक्टरों ने कहा कि अभी कोरोना जब पूरी तरह से गया नहीं है। तो कोरोना गाइडलाइन का पालन होना चाहिए और मास्क को लगाना चाहिये। हाँ इतना जरूर होना चाहिये कि मास्क के नाम पर चालान नहीं काटना चाहिये।
एम्स के डॉ आलोक कुमार का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण से लोग बेहाल है ऐसे में उनको मास्क तमाम तरह की बीमारियों से बचाता है और साथ धूल के कणों से बाजार वालों का कहना है कि मास्क के नाम पर पुलिस वालों ने जमकर लोगों को परेशान किया है और चालान भी काटे है। चांदनी चौक के व्यापारी रघुनंदन का कहना है कि कोरोना के नाम पर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिये। न की लोगों को परेशान करना चाहिये।
उन्होंने बताया कि मास्क के नाम पर सरकार ने जनता को गुमराह किया है क्योंकि जब कोरोना पीक पर था तब शराब की दुकान पर बिना मास्क के लोग शराब खरीदते देखे जाते थे। तब न उन्हें पुलिस परेशान करती थी लेकिन सीधे-सादे लोगों को पुलिस ने परेशान किया है। फिलहाल दिल्ली में लोगों ने मास्क हटाया जाने का स्वागत किया है। क्योंकि मास्क न होने पर चालान का डर नहीं है।  

असम, मणिपुर और नागालैंड में अफस्पा का दायरा घटाया: शाह

उत्तर पूर्व के राज्यों में विरोध का विषय रहे सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) को ख़त्म करने की मांग के बीच केंद्र सरकार ने तीन राज्यों असम, मणिपुर और नागालैंड में इस अधिनियम के तहत आने वाले क्षेत्र का दायरा घटा दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को इसकी जानकारी दी।

एक ट्वीट में अमित शाह ने कहा कि उत्तर पूर्व के राज्यों, जिन्हें विकास में दशकों तक अनदेखा किया गया है, के प्रति हमारी कमिटमेंट के तहत वहां शांति, समृद्धि और तक विकास लाने की पूरी कोशिश की जा रही है। ‘

शाह ने कहा – ‘अफस्पा के तहत आने वाले क्षेत्रों का दायरा घटाया गया है। इसका कारण वहां स्थिति में सुधार है। यह सब कई समझौतों और आतंकवाद को ख़त्म करने की पीएम मोदी की दृढ़ इच्छा से संभव हुआ है।

अफस्पा का यह दायरा नागालैंड, मणिपुर और असम राज्यों में घटाया गया है। याद रहे कि नागालैंड में दो महीने पहले मोन जिले में पैरा कमांडों के एक ऑपरेशन में गलत पहचान के कारण कई ग्रामीणों की मौत हो गई थी। उसके बाद से असम, मणिपुर और नागालैंड में अफस्पा के खिलाफ जबरदस्त माहौल था और इसे वापस लेने की मांग जोर पकड़ रही थी।

अमेरिकी प्रतिनिधि सभा में प्रस्ताव, 14 अप्रैल ‘राष्ट्रीय सिख दिवस’ घोषित हो  

अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में 14 अप्रैल को राष्ट्रीय सिख दिवस घोषित करने को लेकर एक प्रस्ताव पेश किया है। अमेरिका में सिख समुदाय के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करते यह प्रस्ताव भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति सहित 12 से अधिक सांसदों ने पेश किया है। अमेरिका में प्रतिनिधि सभा अमेरिकी कांग्रेस सीनेट की ऊपरी सभा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक सांसद मैरी गेल सानलोन 28 मार्च को सदन में पेश किए गए इस प्रस्ताव की प्रस्तावक हैं। इसमें 14 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय सिख दिवस’ घोषित करने की मांग की गयी है। प्रस्ताव में कहा गया है कि अमेरिका के विकास में सिख समुदाय के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए इस प्रस्ताव को मंजूर करने का आग्रह किया गया है।

सिख कॉक्स कमेटी, सिख को-ऑर्डिनेशन कमेटी और अमेरिकन सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एजीपीसी) ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि अमेरिका को सशक्त बनाने और यहां के नागरिकों को प्रेरित करने में सिख समुदाय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लिहाजा उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के तौर पर ‘राष्ट्रीय सिख दिवस’ घोषित किया जाना चाहिए।

मेरी गेल सानलोन और और राजा कृष्णमूर्ति के अलावा इस प्रस्ताव में केरेन बास, पॉल टोंको, ब्रायन के फिट्ज़पैट्रिक, डेनियल म्यूज़र, एरिक स्वलवेल, राजा कृष्णमूर्ति, डोनाल्ड नॉरक्रॉस, एंडी किम, जॉन गारामेंडी, रिचर्ड ई नील, ब्रेंडन एफ बॉयले और डेविड जी वालादाओ ने सह-प्रस्तावक के रूप में इसमें हस्ताक्षर किये हैं।

लू के थपेड़ों से बचें 

इस बार देश में मई महीने की तरह मार्च के महीने में गर्मी पड़ने से और दिन व दिन तापमान बढ़ने से लोगों का हाल बेहाल है। लू जैसे हालात बनने लगें है। गर्म हवाओं को थपेडों से लोगों का घर से निकलना दूभर हो गया है।
दिल्ली-एनसीआर में गत दो दिनों से तापमान 40-41 के पार हो रहा है। इस तरह की गर्मी पड़ने लोगों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। गर्मी से बचाव के बारे तहलका को जानकारी देते हुये आईएमए के पूर्व संयुक्त सचिव डॉ अनिल बंसल ने बताया कि लगातार 42 डिग्री तापमान रहने से हाइपोथर्मिया होने का खतरा रहता है। जिससे कोमा में जाने की संभावना बनी रहती है।
डॉ बंसल ने बताया कि शरीर का अंदर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक रहता है और बाहरी तापमान 42 से ऊपर तक जाता है। जिससे शारीरिक तापमान और बाहरी तापमान में काफी अंतर आ जाता है। ऐसे में जो असंतुलन बढने से लोगों को लकवा सहित हार्ट अटैक होने पड़ने की ज्यादा संभावना रहती है। उन्होंने कहा कि इन दिनों धूप में जाने से बचें और ज्यादा से ज्यादा पानी  पिये ताकि शरीर में पानी की कमी न होने पाये।
दोपहर 11 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक अधिक धूप होती है। तभी घर से निकलने जब जरूरी काम हो ,क्योंकि इन दिनों गर्मी में संक्रमण बढ़ने के कारण हैजा और दस्त की शिकायते बढ रही है। डाँ बंसल ने  बताया कि कोरोना जैसी बीमारी देश में कम हुयी है। लेकिन पूरी तरह से गयी नहीं है। ऐसे में कोरोना गाईड लाईन का पालन करते हुये लू -गर्मी से बचें।

बढ़ती महंगाई के खिलाफ कांग्रेस का हल्ला बोल, राहुल गांधी हुए शामिल

कांग्रेस के महंगाई के विरोध में देशव्यापी ‘हल्ला बोल’ कार्यक्रम के तहत गुरुवार को कई जगह प्रदर्शन किये जा रहे हैं। राजधानी दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी सहित  पार्टी के कई नेताओं ने विजय चौक पर विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लिया। राहुल ने इस मौके पर कहा कि सरकार की गलत नीतियों से देश की जनता का जीना मुहाल हो गया है।

राहुल गांधी ने कहा – ‘ईंधन की बढ़ती कीमतों से गरीब आदमी बहुत परेशान है और उसका जीना मुश्किल हो गया है। इस बढ़ौतरी को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।  पिछले 10 दिन में 9 बार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाए गए हैं जिससे मध्यम वर्ग और गरीब की जेब पर बोझ और बढ़ गया है।’

गांधी ने कहा कि हमारी मांग है कि सरकार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाना तुरंत बंद करे। उन्होंने कहा कि महंगाई के खिलाफ कांग्रेस का पूरे देश में प्रदर्शन चलेगा और काफी दिनों तक चलेगा।

प्रदर्शन के दौरान लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि  मोदी सरकार जिस तरह आम आदमी की जेब पर डाका डाल रही है, उसके खिलाफ कांग्रेस यह प्रदर्शन कर रही है। चौधरी ने कहा – ‘दस दिन में 9 बार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ाकर मोदीजी ने इतिहास बना दिया है। धड़ल्ले से दाम बढ़ रहे हैं। हमारी मांग है कि यह दाम सरकार वापस ले।’

इस मौके पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कहा – पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने पर हर चीज़ के दाम बढ़ते हैं। दुनिया में कच्चे तेल के दाम जब सबसे कम थे तब भी केंद्र सरकार पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ा रही थी।’

राजस्थान के बड़े गुर्जर नेता कर्नल बैंसला का निधन

राजस्थान में गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के बड़े नेता रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला  का गुरुवार को निधन हो गया। वो काफी समय से बीमार थे। उन्हें उनके साथी ‘गुर्जर गांधी’ के नाम से जानते थे।

केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी ने गुर्जर नेता के निधन पर शोक जताते हुए अपने ट्वीट में कहा – ‘कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के निधन का समाचार दुखद है।  समाज सुधार और समाज को संगठित करने में आपका योगदान हमेशा याद रहेगा।’

कई मंत्रियों और पूर्व मंत्रियों ने बैंसला के निधन को गुर्जर समाज के लिए बड़ी क्षति बताया है। इन नेताओं ने कहा कि गुर्जर नेता चले गए, इससे बड़ा दुख गुर्जर समाज के लिए हो नहीं सकता। उन्होंने कहा कि बैंसला ने पिछड़े वर्ग और गुर्जर समाज के लिए चेतना जगाने का काम किया। हमेशा उनके मन में गुर्जर समाज के भले की चिंता रहती थी।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ हो सकते है एमसीडी के चुनाव

इसी साल दिसम्बर माह में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के साथ दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव हो सकते है। एमसीडी चुनाव को लेकर दिल्ली में सियासी पारा गर्म रहा है। लेकिन 30 मार्च को संसद से मुहर लगने के बाद ये स्पष्ट हो गया है। कि एमसीडी की तीनों जोनों को हटाकर एक जोन किया जायेगा। और 272 निगम पार्षद की सीटों की जगह अब 250 सीटों पर ही चुनाव होंगे। 250 सीटों का जब परिसीमन हो जायेगा।
तब चुनाव की प्रक्रिया व चुनाव चुनाव की तारीख के बारे में पता चलेंगा। चुनाव में देरी और तीनों जोनों की जगह एक जोन का किया जाना और 272 की जगह 250 सीटों पर चुनाव कराने जाने के पीछे की बस एक ही  सियासत है कि एमसीडी के चुनाव की आड़ में आप पार्टी को गुजरात और हिमाचल प्रदेश में कैसे रोका जाये। ताकि आप पार्टी दिल्ली की सियासत में फंस कर रह जाये।दिल्ली की राजनीति के जानकार राजन कुमार का कहना है कि कोई भी सत्ता धारी दल हो वो अपनी राजनीति अपने तरीके से करता है। जिसमें उसका और उसकी पार्टी का भला हो। क्योंकि आप पार्टी की सियासत का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है।
ऐसे में सियासी दांव -पेंच में आप पार्टी का उलझाकर रोकना जरूरी है। अन्यथा क्या फर्क पड़ता है 250 सीटों और 272 सीटों में।ये सब सियासी खेल है। क्योंकि आप पार्टी ने फ्री की राजनीति कर सब कुछ फ्री -फ्री की सुविधायें देकर अपनी राजनीति चमका रहे है। ऐसे मे आप पार्टी को रोकने के लिये ये सियासी खेल खेला गया है। भाजपा भली -भाँति जानती है जहां पर कांग्रेस का वोट बैंक है वहां पर आप पार्टी को चुनाव में जीत आसानी से हो रही है। क्योंकि कांग्रेसका जनाधार धीरे -धीरे खिसक रहा है।  

पाकिस्तान: इमरान गए तो शाहबाज शरीफ बन सकते हैं अगले पीएम !

सेना प्रमुख जनरल बाजवा से मिलने के बाद राष्ट्र को अपना संबोधन टालने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक भले कह रहे हों कि अविश्वास प्रस्ताव पर उनके नेता ‘अंतिम समय तक’ लड़ेंगे, पड़ौसी मुल्क के राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि इमरान खान का जाना लगभग तय है। यदि इमरान खान जाते हैं तो उनकी जगह विपक्ष के सबसे वरिष्ठ नेता और पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के अध्यक्ष शाहबाज शरीफ नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं ! पंजाब के मुख्यमंत्री रहे शाहबाज पूर्व पीएम नवाज़ शरीफ के भाई हैं।

एमक्यूएम के विपक्ष के साथ चले जाने के बाद पहले ही नैशनल असेंबली के निचले सदन में बहुमत खो चुके इमरान खान को लेकर पाकिस्तान में कयास जारी हैं। उनके खिलाफ 3 अप्रैल को अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने की संभावना है। हो सकता है कि अपनी हार की संभावना दिखने पर इमरान उससे पहले सदन में इस्तीफे की घोषणा कर दें या फिर बहुमत लायक सदस्यों को अपने पक्ष में जुटाने की कोशिश करें, जिसकी संभावना कम दिख रही है।

पिछले कल इमरान खान देश को संबोधित करने वाले थे लेकिन देश के सेना प्रमुख जनरल बाजवा से मुलाक़ात के बाद उन्होंने इसका विचार टाल दिया। फिलहाल अभी यह तय नहीं कि वे देश को संबोधित कब करेंगे।

इस बीच पाकिस्तान में विपक्षी दलों ने साझे रूप से एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके इमरान खान की सरकार जाने की ज़रुरत जताते हुए कहा कि ये देश के भविष्य से जुड़ी बात है। नेशनल एसेंबली में इमरान ख़ान सरकार के ख़िलाफ़ 28 मार्च को जो अविश्वास प्रस्ताव रखा गया था उसपर आज से चर्चा शुरू हो रही है और संभावना है कि 3 अप्रैल को उसपर मतदान होगा।

अभी तक की संभावना के मुताबिक यदि इमरान खान की सत्ता से विदाई होती है तो पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ देश के नए प्रधानमंत्री बन सकते हैं। शाहबाज इस समय विपक्ष के नेता हैं। वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के अध्यक्ष भी हैं। उन्हें कमोवेश सभी विपक्षी दलों का समर्थन मिल सकता है क्योंकि वे सभी इमरान खान की सरकार के सख्त खिलाफ हैं। बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पार्टी पीपीपी भी इमरान खान का जबरदस्त विरोध कर रही है।

पाकिस्तान में महंगाई बढ़ने से लेकर दर्जनों समस्यायों ने जनता का जीना मुश्किल कर दिया है। इमरान खान जिस ‘नए पाकिस्तान’ का सपना लेकर सत्ता में आए थे, उसकी दूर-दूर तक कोई झलक नहीं दिखती। उलटे जनता की हालत खराब हो चुकी है।

जहाँ तक शाहबाज शरीफ की बात है यदि वे सत्ता में आते हैं तो भारत के साथ मुद्दों को लेकर बातचीत का दौर शुरू हो सकता है, जो लगभग ठप पड़ चुका है। यहाँ यह बताना भी ज़रूरी है कि नरेंद्र मोदी जब भारत के प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने पाकिस्तान के पीएम नवाज़ शरीफ को भी अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया था।  यही नहीं एक बार अफगानिस्तान से भारत वापस लौटते हुए मोदी अचानक नवाज़ शरीफ से मिलने पाकिस्तान पहुँच गए थे। ऐसे में शाहबाज सत्ता में आते हैं तो भारत-पाक के बीच बातचीत का दौर शुरू हो।

शाहबाज को एक मझा हुआ प्रशासक माना जाता है और पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में वे अफसरशाही पर मजबूत पकड़ दिखा चुके हैं। सेना से भी उनके संबंध आम तौर पर सामान्य रहे हैं, हालांकि, उन्हें अपने फैसलों में हस्तक्षेप पसंद नहीं रहा है।

देश के बड़े उद्योगपति घराने से ताल्लुक रखने वाले शाहबाज धनशोधन के एक मामले में जेल भी जा चुके हैं। वैसे तीन बार पंजाब का मुख्यमंत्री रहने वाले शाहबाज वर्तमान में देश के सबसे अनुभवी नेता हैं और उन्हें पूरे विपक्ष का समर्थन है।