चुनावों में झूठ का खेल

*पैसे लेकर चुनाव में गलत जानकारियां फैलाते हैं बिचौलिये !

इंट्रो- चुनाव नजदीक आते ही पार्टियां और उनके उम्मीदवार जीतने की कोशिश में साम, दाम, दंड, भेद के हथकंडे अपनाते हैं। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों और आचार संहिता लागू होने के बावजूद यह खेल चोरी-छिपे खूब चलता है। इसी खेल का हिस्सा है- पैसे लेकर ग़लत सूचनाएँ और अफवाहें फैलाना। ‘तहलका’ एसआईटी ने अपनी इस रिपोर्ट में चुनावों के दौरान जानबूझकर गलत सूचनाएँ प्रसारित करने से उत्पन्न चुनौतियों का खुलासा किया है, जो कि डिजिटल मार्केटिंग कम्पनियाँ और सक्रिय बिचौलिये पैसे के लिए करते हैं। तहलका एसआईटी की रिपोर्ट :-

‘चुनाव के दौरान गलत सूचना फैलाने का काम करने के लिए हमें किसी तथ्य या सुबूत की आवश्यकता नहीं है। हम गलत सूचना फैलाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट बनाते हैं और उन्हें तुरंत बंद कर देते हैं। भारत चुनाव आयोग (ईसीआई) इन फर्जी (बॉट) खातों का पता नहीं लगा सकता है। यह हमारी गारंटी है, जो सोशल मीडिया व्यवसाय में हमारे 14 वर्षों के अनुभव की देन है। 2019 के आम चुनाव में भी मैंने लोकसभा चुनाव लड़ने वाले एक बड़े राजनेता के पक्ष में एक बड़े हिंदी समाचार चैनल को पांच लाख रुपये का भुगतान करके उससे एक ट्वीट पोस्ट कराने में कामयाबी हासिल की।’
ये बातें नकली ग्राहक बने ‘तहलका’ के रिपोर्टर से सीओज डिजिटल मार्केटिंग कम्पनी, जिसका मुख्यालय द्वारका (नई दिल्ली) में है; के निदेशक गौरव मग्गो ने कहीं। अपने सहयोगी प्रबंधक अक्षय कुमार के साथ गौरव ने उत्तर प्रदेश से 2024 के लोकसभा चुनाव में कथित तौर पर स्वतंत्र रूप से लड़ने वाले हमारे (तहलका रिपोर्टर के) काल्पनिक उम्मीदवारों के लिए डिजिटल मार्केटिंग रणनीति पर चर्चा करने के लिए दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में गौरव से मुलाकात की।
जैसे ही भारतीय चुनाव आयोग ने 2024 के आम चुनाव के लिए चुनावी कार्यक्रम की घोषणा की, उसने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए ‘4एम’- बाहुबल, धन, गलत सूचना और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर लगाम कसने की चुनौती पर जोर दिया। पिछले अंक में ‘तहलका’ ने बाहुबल के दुरुपयोग और एमसीसी उल्लंघन को लेकर पड़ताल की थी। इस बार हम अपना ध्यान गलत सूचनाओं के खतरे पर केंद्रित कर रहे हैं। विशेष रूप से हमारी रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे डिजिटल मार्केटिंग कम्पनियां सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएँ फैलाकर या दुष्प्रचार करके चुनाव मैदान में उम्मीदवारों की सहायता कर रही हैं और भारत के चुनाव आयोग की आंखों पर पट्टी बांधकर प्रभावी ढंग से पैसे लेकर उम्मीदवारों की मदद करने के लिए तैयार हैं।


‘तहलका’ की पड़ताल तब शुरू हुई, जब हमने चुनाव के दौरान गलत सूचना फैलाने के कारोबार में शामिल डिजिटल मार्केटिंग कम्पनियों के प्रतिनिधियों से संपर्क किया। सबसे पहले हमारा ध्यान दिल्ली में मुख्यालय वाली सीओज डिजिटल मार्केटिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड पर गया। उनके संपर्क विवरण के साथ हमने संचार शुरू किया। कंपनी की ओर से आये एक फोन कॉल के कारण ‘तहलका’ रिपोर्टर ने शीघ्रतापूर्वक दिल्ली के एक पांच सितारा होटल में गौरव मग्गो से मिलकर मुलाकात की। बैठक के दौरान रिपोर्टर की मुलाकात कम्पनी के दो प्रतिनिधियों से हुई- गौरव मग्गो और अक्षय कुमार, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर राजनीतिक प्रचार में अनुभवी जोड़ी है।
‘तहलका’ रिपोर्टर ने उन्हें एक काल्पनिक परिदृश्य प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया कि हमारे (रिपोर्टर के) कई उम्मीदवार उत्तर प्रदेश से 2024 के लोकसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ रहे हैं और उन्हें डिजिटल प्रचार की आवश्यकता है, जिसमें उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में गलत सूचना फैलाना भी शामिल है। गौरव ने सोच-समझकर ‘तहलका’ रिपोर्टर को अपनी रणनीति से अवगत कराया। काल्पनिक उम्मीदवार के विरोधियों के बारे में गलत सूचना फैलाने के लिए फर्जी खाते बनाने की बात कही। महत्वपूर्ण रूप से उसने रिपोर्टर को आश्वासन दिया कि वह इन खातों को तुरंत बंद कर देगा। इस प्रकार भारत चुनाव आयोग की सतर्क नजर से उम्मीदवार बच जाएंगे। इसके लिए गौरव ने डिजिटल मार्केटिंग व्यवसाय में अपने 14 वर्षों के व्यापक अनुभव पर जोर देकर रिपोर्टर को निश्चिंत रहने के लिए आश्वस्त किया।
गौरव : अकाउंट बनेगा मिस-इंफॉर्मेशन डालोगे…, और बन्द…?
रिपोर्टर : फिर वही बात है ना! …इमिडेटली बंद हो गया, तो ईसी (चुनाव आयोग) की नजर में आ जाएगा?
गौरव : नहीं; दैट विल बी। (यह हो जाएगा।) …सब चीजें होती हैं। …कैसे बनती है, हम जानते हैं। हम तो ऑलरेडी उसमें हैं। ..हम तो 14 साल से कर ही रहे हैं, वो काम।
रिपोर्टर : 14 साल से हैं आप डिजिटल मीडिया में?
गौरव : हां जी!

जब रिपोर्टर ने गौरव को बताया कि उनके पास अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों के बारे में सुबूत या तथ्य नहीं हैं, तो उसने यह कहकर रिपोर्टर को आश्वस्त करने की कोशिश की कि गलत सूचना फैलाने के लिए उन्हें तथ्यों या सुबूतों की आवश्यकता नहीं है। गौरव ने कहा कि इसके लिए ब्लैक कॉलर या फर्जी अकाउंट का इस्तेमाल किया जाता है। उसने रिपोर्टर को मौजूदा जानकारी का लाभ उठाने और अनिश्चितताओं का फायदा उठाने का सुझाव भी दिया।
रिपोर्टर : नहीं, मैं ये जानना चाह रहा हूं, …अपोजिशन कैंडिडेट (विपक्षी उम्मीदवार) की मिस-इंफॉर्मेशन जो हम करेंगे, वो कैसे करेंगे?
गौरव : अच्छा, इंफॉर्मेशन? सर! देखो, इंफॉर्मेशन तो आप ही दोगे कि ये चल रहा है, उसको चलाएंगे।
रिपोर्टर : आइडिया तो आप दे सकते हो?
गौरव : आइडिया तो मैं तब दे सकता हूं, जब आपको कुछ भी न पता हो उस आदमी के बारे में, कि उसका कोई मिसलीड (गलत उपयोग) किया है या नहीं भी किया है। या आपको पता है कि इस चीज में वो फंसा था। वो पुराने मुद्दे उठा के लाओ।
रिपोर्टर : मान लीजिए, कोई डाक्यूमेंट्स नहीं मिलता है, एविडेंस नहीं मिलता है, तो?
गौरव : एविडेंस की जरूरत नहीं होती है इसमें; …तभी तो ब्लैक कॉलर होता है। तभी तो उसे ब्लैक कॉलर कहते हैं।

अब रिपोर्टर ने गौरव से पूछा कि वह स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवारों के बारे में गलत सूचना कैसे फैलाएंगे, जिस पर उन्होंने प्रसार रणनीति और लक्षित सोशल मीडिया अभियानों के लिए बॉट्स का उपयोग करने का उल्लेख किया।
रिपोर्टर : मुझे एक चीज बताइए, क्या मिस-इंफॉर्मेशन का काउंटर मिस-इंफॉर्मेशन नहीं हो सकता?
गौरव : हो सकता है। मगर यहाँ पे मिस-इंफॉर्मेशन अगर एक बार आ गयी, तो आप एक नेगेटिव इमेज बंदे की नहीं बना सकते। मान लीजिए, मैंने आज आपको बताया कि फलाने ने जाके ऐसा काम किया, तो पहले इंप्रेशन क्या चला गया?- अरे इसने तो रेप कर दिया! एक आदमी पर ऑलरेडी ब्लेम गेम चल रहा है। …तो आप काउंटर कैसे मारोगे? आप अपने आपको क्लीयर करोगे या पहले काउंटर मारोगे? …समझ रहे हो आप? पहली बार आप क्लीयर करोगे। चार दिन बाद काउंटर मार दूंगा मैं। …भाई! पहले अपने को क्लीयर भी तो करोगे, फिर चार दिन बाद काउंटर मार दो।
रिपोर्टर : वो काउंटर क्या होगा? मैं जानना चाह रहा हूं। चार तो आपने कर दिया, पॉजिटिव वीडियो बना के?
गौरव : अब जैसे उन्हें पता है, इस आदमी की यहां पे ये चोरी पकड़ी गयी है…।
रिपोर्टर : कोई नहीं, पकड़ी गयी; मान लो क्लीयर आदमी हैं, …दोनों आदमी चार हैं। …मैंने यही सवाल किया आपसे मिस-इंफॉर्मेशन का?
गौरव : मिस-इंफॉर्मेशन पर मिस-इंफॉर्मेशन मारेंगे।
रिपोर्टर : वो कैसे मारोगे? यही सवाल है मेरा।
गौरव : अकाउंट बनेगा, मिस-इंफॉर्मेशन डालोगे, और बंद।

अब गौरव ने प्रचार के लिए व्हाइट और ब्लैक कॉलर के रूप में वर्गीकृत फर्जी खातों का उपयोग करने का सुझाव दिया। उसने दावा किया कि सभी पार्टियां अभियान के लिए फर्जी अकाउंट बनवाती हैं, यह आश्वासन देते हुए कि वे चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन नहीं करेंगी। गौरव ने राजनीतिक रणनीतियों में बॉट्स के व्यापक उपयोग पर प्रकाश डालते हुए व्हाइट और ब्लैक कॉलर खातों और अभियानों में उनके उपयोग के बीच अंतर पर चर्चा की। गौरव ने बॉट्स की अस्थायी प्रकृति के बारे में भी बताया और आश्वासन दिया कि वे चुनाव से पहले बन्द हो जाएंगे, साथ ही पता लगाने से बचते हुए प्रभाव को अधिकतम करने के लिए रणनीतिक समय के महत्व पर जोर दिया।
गौरव : अच्छा, इसमें भाई सब दो चीजें होती हैं। एक ब्लैक कॉलर, एक व्हाइट कॉलर। …आपको ब्लैक कॉलर चाहिए या व्हाइट?
रिपोर्टर : दोनों करवा दो। …वैसे डिफरेंस क्या है?
गौरव : डिफरेंस ये होता है कि अकाउंट्स होते हैं। …खुलते हैं, बंद होते हैं। व्हाइट कॉलर ये होता है कि आपके अकाउंट से ही हो रहा है।
रिपोर्टर : जेनुइन (असली) होंगे?
गौरव : जेनुइन होंगे।
रिपोर्टर : ब्लैक वाले फेक होंगे?
गौरव : जी!
रिपोर्टर : तो फेक अकाउंट से करवाना ठीक होगा?
गौरव : वो आप देख लो। लोग तो कराते हैं। एक्चुअली क्या होता, कुछ टाइम के लिए अकाउंट खुलता है, फिर बंद हो जाता है। बॉट्स हो गया, बॉट्स क्या होता है कि प्रमोशन आपके उस अकाउंट से हो रही है, रीच (पहुंच) बढ़ाने के लिए।
रिपोर्टर : हूं, ओके।
गौरव : कि जैसे अब मेरे पास सब्सक्राइबर्स हैं। …बहुत सारे तो मैंने बॉट्स कर दिये। …यूपी के अंदर में जो लोगों को रीच मिल रही है, वो आपको एक अच्छा इंपैक्ट मिल रहा है उसका। …मल्टीपल जो हैं ना, सोसायटीज बनी हुई हैं। फेसबुक के ऊपर ग्रुप बने हैं, उस पर हम लोग रीच बनाते हैं।
रिपोर्टर : ये हो कि फेक अकाउंट पकड़ में न आये?
गौरव : नहीं होगा, वो एक बार होकर बन्द हो जाता है।
रिपोर्टर : देखिए, आपको पता होगा इलेक्शन कमीशन की गाइडलाइन हैं, …मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (आदर्श आचार संहिता)। इंफॉर्मेशन लीक नहीं होना चाहिए।
गौरव : वो चीज सर आपने देखनी है। इसमें ये सब चीज होती है। ये xxxxx जी भी करते हैं, ये xxxxx पार्टी भी करती है। ये सब कर रहे हैं।
रिपोर्टर : अच्छा; आप जितने कंडीडेट्स की (बात) कर रहे हो, वो फेक तरीके से कर रहे हैं?
गौरव : कर रहे हैं। …क्यूंकि उनका तो अभी स्टार्ट नहीं हुआ है। उनका तो मई, 24 के बाद है। …आचार संहिता से पहले कर लोगे, तो अच्छा होगा।
रिपोर्टर : आचार संहिता के बाद बोला था। इलेक्शन अनाउंस होने से पहले।
गौरव : हां, तो आचार संहिता से पहले-पहले कर लो।
रिपोर्टर : अब तो आचार संहिता लगी हुई है?


गौरव : लगी हुई है; लेकिन अकाउंट मिलते हैं ना! …तो उसमें दिक्कत क्या है? उसे प्रमोट करो, उसमें कोई फेक अकाउंट नहीं है। …मेरे हैं पांच लाख सब्सक्राइबर्स। …वो मैं उन्हें अगर कोई इंफॉर्मेशन दे रहा हूं, तो कोई बुराई थोड़ी है उसमें!
रिपोर्टर : आप कह रहे हो ना कुछ टाइम के लिए प्रमोशन बंद हो जाते हैं?
गौरव : वो तो इसलिए कह रहा, कभी ईसी ने पूछा कि आपने क्या-क्या प्रमोशन किये? इस वजह से लोग क्या करते हैं, उसको बंद कर देते हैं। जब इलेक्शन है, उस टाइम पर किया, फिर बंद कर दिया।
रिपोर्टर : अच्छा; बॉट अकाउंट के लिए ये है कि इलेक्शन तक वो ऑपरेट, फिर?
गौरव : बंद हो जाएंगे, हाँ जी! इलेक्शन से दो दिन पहले सब बंद हो जाता है; …48 ऑवर (घंटे) पहले। बट, 48 घंटे पहले सब प्रिंट और ऑनलाइन बंद होता है। कमेंट्रीज बंद होती है; …बट व्हाट्सएप चलता है।

नकली ग्राहक बने ‘तहलका’ के रिपोर्टर की चिंताओं का समाधान करने की कोशिश करते हुए गौरव ने आश्वासन दिया कि हमारे काल्पनिक उम्मीदवारों के लिए बने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट चुनाव आयोग का ध्यान आकर्षित नहीं करेंगे। हालांकि गौरव ने उल्लेख किया कि उम्मीदवार मतदान के दिन भी एसएमएस संदेश भेजते हैं। गौरव ने चुनावी उम्मीदवारों को डिजिटल रूप से प्रचारित करने, 2024 के आम चुनाव के लिए आठ दावेदारों को संभालने में अपनी कम्पनी के अनुभव को साझा किया, जिसमें xxxx पार्टी के दिल्ली के xxxx और xxxx भी शामिल हैं।
गौरव : कई बार तो ऐसा भी होता है कि ऑन द डे ऑफ इलेक्शन (चुनाव के दिन) भी लोग एसएमएस भेजते हैं।
रिपोर्टर : ये देख लीजिए कि फेक अकाउंट जो है, वो इलेक्शन कमीशन की पकड़ में न आये?
गौरव : वो सब, दैट इज नॉट अ प्रॉब्लम। (यह समस्या नहीं है।)
जब गौरव से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चुनाव उम्मीदवारों को बढ़ावा देने के उनके पिछले अनुभव के बारे में पूछा गया, तो उसने बताया कि उनकी कम्पनी ने अतीत में कई उम्मीदवारों के डिजिटल प्रचार का काम संभाला है। गौरव ने दावा किया कि वर्तमान में वह 2024 के आम चुनावों में भाग लेने वाले आठ उम्मीदवारों के लिए अभियान का प्रबंधन कर रहा है।
रिपोर्टर : आपको पॉलिटिकल एक्सपीरिएंस है?
गौरव : हम लोगों ने किया है।
रिपोर्टर : हमें ऐसे लोग चाहिए, जो इलेक्शन कैम्पेन कर चुके हों। ..पार्टीज के लिए कंडीडेट्स के लिए मार्केटिंग कर चुके हैं।
गौरव : दिल्ली में ऑलरेडी xxxxx जी हैं। xxxx पार्टी से xxxx जी हैं; …तो इन लोगों का काम कर चुके हैं, और कर भी रहे हैं। xxxxx जी, xxxx हैं xxxx से, उनका ऑलरेडी हम कर रहे हैं।
रिपोर्टर : ये लोग कॉन्टेस्ट कर रहे हैं?
गौरव : दे आर कॉन्टेस्टिंग इलेक्शंस। (वे चुनाव लड़ रहे हैं।)
रिपोर्टर : तो उनका क्या-क्या देख रहे हैं आप?
गौरव : सर! उनका सारा सोशल मीडिया हैंडलिंग; …इवन थाउ (चाहे) हमारे पास टीम है, जो ऑलराउंड (पूरी दौर) इन्हीं के साथ रहती है। वो हमें क्लिप भेजते हैं और हम फटाफट उनको अपलोड करते हैं। …तो जितनी भी रिलीज है, सब चीजें हम लोग हैंडल कर रहे हैं।
रिपोर्टर : फिलहाल 2024 में कितने कैंडिडेट्स हैं आपके पास?
गौरव : अभी सर! हमारे पास आठ कंडीडेट्स हैं।
रिपोर्टर : सब दिल्ली के हैं? …किस-किस पार्टी के हैं?
गौरव : एक xxxxx हो गया, xxxx है। एक xxx पार्टी बनी है, उसके 8-10 लोग हैं; वो भी अदर्स में हैं।

यह पूछे जाने पर कि क्या गौरव हमारे उम्मीदवारों (काल्पनिक) के लिए एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर अनुकूल ट्वीट की व्यवस्था कर सकते हैं? गौरव ने ऐसे कार्यों के लिए प्रमुख हिंदी समाचार चैनलों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। उसने तीन साल पहले के एक पिछले उदाहरण का हवाला दिया, जहां (बकौल गौरव के) उसने पांच लाख रुपये में एक प्रमुख हिंदी समाचार चैनल के माध्यम से एक वरिष्ठ राजनेता के लिए सकारात्मक ट्वीट की सुविधा प्रदान की थी।
रिपोर्टर : अच्छा; कुछ ऐसा हो सकता है कि कोई इनके फेवर में ट्वीट कर दे?
गौरव : सर! वो तो चैनल से करवाना पड़ेगा, …न्यूज चैनल से।
रिपोर्टर : न्यूज चैनल से मतलब?
गौरव : जो बड़े-बड़े न्यूज चैनल हैं, xxxx, xxxx एक्सेट्रा (इत्यादि), अगर हम इनको बोलते हैं, तो आपको अच्छा ब्रांड वैल्यू मिल जाएगी।
रिपोर्टर : लेकिन वो क्यूं ट्वीट करेंगे?
गौरव : वो इसलिए करेंगे, क्यूंकि उनको पे किया जाएगा। (पैसे दिये जाएंगे।)
रिपोर्टर : एक ट्वीट का कितना होगा, अमाउंट?
गौरव : सर! वो मुझे पूछकर पता चलेगा।
रिपोर्टर : आपने पहले भी कराया होगा?
गौरव : सर! मैं जो लास्ट किया था, xxxx से करवाया था; वो मेरे से ऑलरेडी सर्विस लेते हैं एसएमएस की, तो उन्होंने एक पर्सन के लिए किया था। …तो पांच लाख लिया था।
रिपोर्टर : xxxx ने लगाया था?
गौरव : तीन साल पहले xxxx के लिए।
रिपोर्टर : xxxxx के लिए तीन साल पहले?

डिजिटल युग में राजनीतिक अभियानों को बढ़ावा देने के लिए सेलिब्रिटी समर्थन का लाभ उठाने की प्रवृत्ति को प्रदर्शित करते हुए गौरव ने शुल्क के लिए अपने उम्मीदवारों के पक्ष में ट्वीट करने के लिए बॉलीवुड सितारों या प्रभावशाली लोगों को शामिल करने पर भी सहमति व्यक्त की। उसने प्रचार और ट्वीट के लिए बॉलीवुड सितारों और अन्य मशहूर हस्तियों के बीच अंतर पर भी चर्चा की।
रिपोर्टर : सर! मैं ये चाहता हूँ कि कोई सेलिब्रिटी बॉलीवुड का इनके फेवर में ट्वीट कर दे?
गौरव : बोलिए, किससे करवाना है? बोलिए सर! ये तो इंफ्लूएंसर (प्रभावशाली व्यक्ति) का ही काम है।
रिपोर्टर : आप ही बता दो; लेकिन बॉलीवुड स्टार अलग चीज हो गया, सेलिब्रिटी अलग चीज।
गौरव : वैसे दोनों एक ही लेवल का होता है।
रिपोर्टर : बॉलीवुड स्टार की ज़्यादा मास अपील (सामूहिक
निवेदन) है।
गौरव : आपको चाहिए किस लेवल का? वो मैटर करता है।
रिपोर्टर : आप करा दीजिए xxxxx का।

इसके बाद गौरव ने अपनी प्रभावशाली सेवा की पेशकश की, जिसमें उसने सनी आर्य उर्फ तहलका भाई और एल्विश यादव जैसे सेलिब्रिटीज को निर्वाचन क्षेत्र के दौरे के लिए भी पेशकश की, जिनमें से प्रत्येक ने सात लाख रुपये का शुल्क लिया। रिपोर्टर ने राजनीतिक ब्रांडिंग के लिए सोशल मीडिया प्रभावशाली लोगों के उपयोग पर प्रकाश डालते हुए चुनाव अभियानों पर प्रभावशाली बैठकों के प्रभाव के बारे में पूछताछ की।
गौरव : बाकी हमारा इंफ्लूएंसर (प्रभावशाली व्यक्ति) का भी काम है। …आपको अगर इंफ्लूएंसर चाहिए, तो मिल जाएगा।
रिपोर्टर : इंफ्लूएंसर की अगर हम कोई मीटिंग करवा दें इलेक्शन में, उससे फायदा होगा?
गौरव : जी! आपको ब्रांडिंग चाहिए। …अब मैं एल्विश को कहूं, तू जरूर ब्रांडिंग कर यूपी में, तो क्यूं नहीं करेगा?
रिपोर्टर : एल्विश वो तो फंसा हुआ है केस में?
गौरव : फंसा, अब तो क्लीयर हो गया। …अब तहलका भाई का नाम सुना होगा आपने?
रिपोर्टर : तहलका भाई? हां।
गौरव : सन्नी आर्य। …आप कहोगे, तो मैं अरेंज करवा दूंगा।
रिपोर्टर : उसके चार्जेज क्या होंगे सर?
गौरव : सर! डिपेंड करता है, वो क्या चार्ज करेगा।
रिपोर्टर : मान लीजिए एल्विश है, तहलका है…!
गौरव : सर! एल्विश, तहलका भाई तो बड़े हैं। …7-7 लाख लेते हैं।

अब गौरव ने अपनी वित्तीय योजना के बारे में विस्तार से बताया, जिसमें गलत सूचना फैलाने, उम्मीदवार के अनुकूल ट्वीट करने, प्रभावशाली लोगों का उपयोग करने और लोकसभा चुनाव के लिए वायरल वीडियो के खर्च शामिल हैं। उसने स्पष्ट किया कि इस काम के लिए वह हमसे (रिपोर्टर से) 10 लाख रुपये लेगा। उसने प्रभावी सोशल मीडिया आउटरीच के लिए कम-से-कम 10 लाख रुपये के बजट की आवश्यकता पर जोर दिया।
गौरव : दिस इज एन एमपी इलेक्शन, …राइट? (यह संसदीय चुनाव है, …ठीक?) …जिसके लिए हम बात कर रहे हैं। इस वक्त जो एमपी का बजट लेकर सब चल रहे हैं, वो 5-10 लाख रुपीज का है।
रिपोर्टर : सोशल मीडिया का?
गौरव : सब कुछ। …एसएमएस, व्हाट्सऐप, वॉयस; …ये मानकर चलिए, कम-से-कम 10 लाख का बजट। इसके नीचे कोई फायदा ही नहीं। …रीच ही नहीं मिलेगी। आपको हमें न 10 लाख का बजट देना, …उसमें हम आपको कैटेगरीज कर देंगे कि इतना व्हाट्सऐप जाएँगे, इतना एसएमएस, इतनी वॉयस जाएगी। इनता फेसबुक होगा, और इतना इंफ्लूएंसर लेगा।
रिपोर्टर : और इसमें वीडियो वायरल करवाना हो तो, …ट्विटर पे ट्रेंड करवाना हो? री-ट्वीट्स करवाने हों?
गौरव : हो जाएगा, सब हो जाएगा। ब्रॉडकास्ट करवाना हो, तो अलग लगेगा।

इस चुनावी मौसम में गलत सूचनाओं ने एक नया तरीका अपनाया है, जो भारतीय मतदाताओं के साथ इस तरह से जुड़ रहा है, मानो सच हो। यह सूक्ष्म; लेकिन सम्मोहक है, जिससे इसे पहचानना और विनियमित करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। यह कहा जाना चाहिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव में घृणास्पद भाषण और दुष्प्रचार अभियान करने वाले कोई अजनबी लोग नहीं थे। लेकिन इस पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने वाली तकनीक ने तीव्र गति से इतनी क्रान्ति ला दी है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) भारत के सबसे बड़े चुनाव (लोकसभा चुनाव) को बाधित करने की धमकी देता है।
सन् 2019 के लोकसभा चुनाव को सोशल मीडिया चुनाव करार दिया गया था। जबकि 2024 के लोकसभा चुनाव एआई-संचालित चुनावों के खतरनाक उदय के गवाह बन सकते हैं। आधिकारिक एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि 2024 में औसत भारतीय मतदाता को गलत चुनावी सूचनाओं के सबसे अधिक जोखिम का सामना करना पड़ेगा। एआई-जनित सामग्री के चलते वास्तविकता और गलत सूचनाओं में अन्तर करने में ज्ञान का सहारा ही एक सही माध्यम है। इन फर्जी खबरों को रोकने के लिए संघर्ष कर रही सोशल मीडिया कम्पनियों के लिए इस चुनावी मौसम में चुनौती और बढ़ गयी है। फर्जी खबरों और गलत सूचनाओं को रोकने के प्रयासों के बावजूद डिजिटल मार्केटिंग कम्पनियाँ पैसे के लिए गलत सूचनाओं का प्रचार करने को तैयार हैं।
‘तहलका’ एसआईटी का यह खुलासा ‘4एम’ में से एक और ‘एम’- गलत सूचना को उजागर करता है; जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय चुनाव आयोग के आगे एक कठिन चुनौती बनकर खड़ा है। ‘तहलका’ ने अपना कर्तव्य पूरा किया। अब ऐसी डिजिटल मार्केटिंग एजेंसियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बारी भारत चुनाव आयोग की है।