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देश में बढ़ती महंगाई का विरोध कर रही है कांग्रेस किंतु बसपा-सपा है खामोश

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, बसपा और सपा को मिली करारी हार के बाद भी कांग्रेस के अलावा कोई भी राजनीतिक दल देश में बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी को लेकर कोई विरोध प्रदर्शन तक नहीं कर रहा है। वजह साफ है। सपा और बसपा उत्तर प्रदेश के अलावा किसी अन्य राज्य में जनाधार वाली पार्टी नहीं है। सो बसपा और सपा मानती है। क्यों अपने कार्यकर्ताओं को परेशान किया जाये और उग्र विरोध प्रदर्शन को लेकर सत्ताधारी पार्टी उन पर मुकदमें दर्ज कर सकती है।
उत्तर प्रदेश के सपा नेता ने नाम न छापने पर बताया कि ज्यादातर जो सपा के कद्दावर नेता है। वे अब भाजपा को ज्वाइन करना चाहते है। तो कुछ आने वाले लोकसभा चुनाव में लड़ना चाहते है। इसी तरह बसपा का मानना है कि यदि सत्ताधारी पार्टी की हर बात का विरोध करेंगे तो राजनीतिक विरोध ज्यादा होगा। इसलिये बड़े मुद्दे पर बोलेगें।
तो वहीं दूसरी तरफ बसपा के ज्यादातर नेता उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से संपर्क बनाये हुए है। बृजेश पाठक का नाम एक समय पर बसपा के बड़े नेताओं में शुमार था। सो उनसे बसपा के नेताओं का पुराना नाता है। इसलिये बसपा के ज्यादातर नेता भाजपा की किसी भी तरह की राजनीति की आलोचना करने से बच रहे है। 
मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में विरोध की राजनीति कम होे रही है। साथ ही भाजपा को ज्वाइन करने की नेताओं में होड़ सी मची हुई है। सियासतदानों का कहना है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से वापस हो सकती है। सो कुछ नेताओं को छोड़कर अधिकतर नेता मौके की राजनीति कर रहे है।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिये दो मुख्यमंत्रियों ने कसी कमर

दो राज्य हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर आप पार्टी ने जिस अंदाज में राजनीतिक माहौल बनाया है। इससे तो ये लगता है कि आने वाले दिनों में राजनीतिक दलों में आरोप- प्रत्यारोप की राजनीति तेज हो जायेगी।
दो राज्यों के मुख्यमंत्री पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल  हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनाव जीतने के लिये जनता से साफ कह रहे है। कि वे राजनीति करने नहीं आ रहे है बल्कि भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए आ रहे है। इन दोनों मुख्यमंत्रियों का एक सुर में कहना है कि दिल्ली में जिस तरह से भ्रष्टाचार को हटाया है और अब पंजाब से हटाया जा रहा है उसी तरह अब गुजरात और हिमाचल से हटाया जायेगा। 
राजनीति के जानकार प्रमोद शर्मा का कहना है कि आप पार्टी तो उस राज्य में बढ़ेगी जहां पर कांग्रेस भाजपा के मुकाबले में है। इस लिहाज से कांग्रेस गुजरात और हिमाचल में मजबूत है। सो आप पार्टी ने कांग्रेस के वोटों में सेंध लगाने के लिये अभी से कमर कस ली है।
प्रमोद शर्मा का कहना है कि जिस तरीके से आप पार्टी ने फ्री की तमाम सुविधायें देकर जनता का वोट पाया है। उससे तो लगता है कि आने वाले अन्य राज्यों के चुनाव में आप फ्री की राजनीति करके कुछ चमत्कार कर सकती है। उन्होंने आगे बताया कि आप पार्टी का राजनीतिक अंदाज कुछ बदला सा है। जैसे गुजरात में धार्मिक स्थलों में जाना और साधु संतों से मिलना आदि जरूर गहरी राजनीति है। क्योंकि आप पार्टी को ये भली-भाँति मालूम है कि ध्रुवीकरण की राजनीति से बचना है तो सभी वर्ग और जाति के लोगों को साथ लेकर चलना होगा अन्यथा उनकी राजनीति ज्यादा देर तक नहीं चल सकती है। मंदिरों में और साधु संतों के पास जाकर वे हिमाचल की राजनीति को साध रहे है। क्योंकि हिमाचल साधु-संतों की धरती भी है। तभी हिमाचल को देव भूमि कहा जाता है।

पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट पहुंचा अविश्वास प्रस्ताव का मामला, सुनवाई कल के लिए टली

अविश्वास प्रस्ताव रद्द करने के डिप्टी स्पीकर कासिम कसूरी के फैसले के बाद राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के प्रधानमंत्री इमरान खान के संसद (नैशनल असेंब्ली) को भंग करने की सिफारिश स्वीकार करने के बीच यह मामला पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है, जहाँ इस मामले की सुनवाई के लिए विशेष बेंच गठित कर दी गयी है। अब इस मसले पर सोमवार को (कल) सुनवाई होगी। विपक्ष, जिसने अपना स्पीकर चुनकर संसद में 192 सदस्यों के अपने साथ होने का दावा किया है, ने डिप्टी स्पीकर के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है ।
इस बीच सेना ने इसे राजनीतिक घटनाक्रम बताते हुए कहा है कि इसका पाक सेना से कुछ लेना देना नहीं है। विपक्ष की एक नेता मरियम शरीफ ने आज के घटनाक्रम को संविधान के खिलाफ बताया है। बता दें आज डिप्टी स्पीकर के फैसले, राष्ट्रपति के इमरान खान की संसद भंग करने की सिफारिश को स्वीकार करने और इमरान के देश को संबोधन के बीच 30 मिनट से भी कम वक्त लगा।

लगता है कि इमरान खान ने अपना ‘मास्टर स्ट्रोक’ चलने की फुल प्रूफ तैयारी की हुई थी और विपक्ष के बड़े-बड़े महारथी भी इसका अनुमान नहीं लगा पाए। इमरान ने अमेरिका को भी आड़े हाथ लिया है, जिससे उन्होंने जनता का समर्थन जीतने की कोशिश की है। इमरान के आज के मूव को राजनीतिक जानकार ‘चतुर चाल’ बता रहे हैं।

उधर विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ ने कहा – ‘आज मोशन पर वोटिंग होनी थी। यह कहीं साबित नहीं हुआ कि इस मोशन के पीछे विदेशी ताकतें हैं। वोटिंग क्यों नहीं करवाई गयी। देश के साथ गद्दारी हुई है और यह खतरे की घंटी है। हमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है।’

पीपीपी नेता बिलावल भुट्टो ने भी इसे संविधान के खिलाफ बताया है।’ उधर पाकिस्तान के डिप्टी अटार्नी जनरल ने भी इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने आज की कार्यवाही को गैर-आईनी बताया है।

इससे पहले आज दोपहर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। पाक पीएम के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग न करते हुए डिप्टी स्पीकर ने विदेशी साजिश का आरोप लगाकर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया। इसके बाद संसद की कार्यवाही को 25 अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया।

प्रस्ताव खारिज होने के बाद खान ने राष्ट्र को संबोधित किया और इसके लिए डिप्टी स्पीकर को मुबारकबाद दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी अवाम से कहा कि कौम चुनावों के लिए तैयार रहे। इसके बाद उनकी सरकार के एक मंत्री ने 90 दिन के भीतर चुनाव कराने का ऐलान किया। याद रहे पीटीआई की सहयोगी पार्टी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) ने इमरान सरकार से समर्थन वापस ले लिया था जिसके बाद नेशनल असेंबली में इमरान सरकार का बहुमत ख़त्म हो गया था।

बता दें पाकिस्तान की 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए होती हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ भी काफी सक्रिय दिखीं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष के पास 174 सांसदों का समर्थन है।

इमरान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज: संसद भंग करने की राष्ट्रपति से की सिफारिश

पाकिस्तान में इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया है। साथ ही डिप्टी स्पीकर ने सदन की कार्यवाही को 25 अप्रैल तक स्थगित कर दिया गया है। संविधान का हवाला देते हुए इमरान खान पहले ही उनके खिलाफ विदेशी साजिश का हवाला दे चुके हैं। इमरान खान ने इसके बाद देश को सम्बोधित करते हुए कहा कि संसद सहित देश की सभी असेम्ब्लीज़ भंग कर दी जाएंगी। इमरान ने इसकी सलाह राष्ट्रपति को की है, जिससे नए चुनाव का रास्ता साफ़ हो जाएगा। सेना की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। विपक्ष ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।

पाकिस्तान की 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 172 सीटें चाहिए होती हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले नवाज़ शरीफ की बेटी मरियम नवाज़ भी काफी सक्रिय दिखीं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष के पास 174 सांसदों का समर्थन है। अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले आज सुबह पाकिस्तान की नेशनल असेंबली में हुई विपक्ष की मीटिंग में 177 सांसदों ने हिस्सा लिया था। बता दें सरकार में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की प्रमुख सहयोगी मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट-पाकिस्तान (एमक्यूएम-पी) ने उनसे किनारा कर लिया था। दो दर्जन के करीब सांसद पहले ही इमरान के खिलाफ वोट का संकेत दे चुके थे।

उधर अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले असेंबली स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव विपक्ष की तरफ से पेश किया गया। इस बीच इमरान खान ने पंजाब के राज्यपाल चौधरी मोहम्मद सरवर को उनके पद से हटा दिया। राज्यपाल को हटाने की घोषणा इमरान खान की सरकार में सूचना मंत्री फवाद खान ने ट्विटर के जरिए की। हालाँकि, राज्यपाल को हटाने के उन्होंने कोई कारण नहीं बताया, लेकिन माना जा रहा है कि पंजाब विधानसभा में भी बहुमत साबित करने की प्रक्रिया चल रही है और इसी प्रभावित करने की उन्होंने कोशिश की है।

इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव से पहले संसद के आसपास के रेड जोन वाले इलाकों को सील कर हजारों सैनिकों की तैनाती कर दी गयी। आज सुबह इस्लामाबाद में एहतियातन धारा 144 भी लागू कर दी गयी।

याद रहे पाकिस्तान के 73 साल से ज्यादा के इतिहास में आधे से ज्यादा समय तक ताकतवर सेना हुकमूत पर काबिज रही है। यहाँ तक कि सेना के सत्ता में न होते हुए भी उसका देश की सुरक्षा और विदेश नीतियों में दखल रहता है।

इमरान खान ने शनिवार को देश के युवाओं से अपील की थी कि वे उनकी सरकार के खिलाफ कथित ‘विदेशी षड्यंत्र’ के खिलाफ ‘शांतिपूर्ण प्रदर्शन’ करें, लेकिन सेना के खिलाफ न बोलें। हालांकि, सड़कों पर उनकी अपील का कोई असर नहीं दिखा था। खान ने वर्तमान घटनाओं को देश के ‘भविष्य के लिए युद्ध’ करार देते हुए कहा था कि पाकिस्तान ‘निर्णायक मोड़’ पर खड़ा है और दश की सेना को फैसला करना होगा।

प्राइवेट स्कूल वालों की मनमानी

एक ओर तो दिल्ली सरकार सरकारी और प्राइवेट स्कूल में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिये तमाम दावे करती है। वहीं प्राइवेट स्कूल वालों की मनमर्जी के सामने कुछ भी बोलने से बचती है। प्राइवेट स्कूल वालों ने जो अपने नियम-कायदे बना रखें है। वो उसी तर्ज पर चल रहे है। फीस बढ़ोत्तरी न करें तो तमाम तरह से बच्चों से फीस वसूल ही लेते है। प्राइवेट स्कूल वालों की मनमर्जी तो कोरोना काल में भी खूब चली है।
स्कूल बंद होने के बावजूद बच्चों की फीस में ऐकाना पैसा तक की कमी नहीं की गई है। अभिभावकों को हर हाल में पूरी की फीस देनी पड़ी है। अभिभावक सुनीता गर्ग का कहना है कि उनके बच्चे ईस्ट दिल्ली के एक प्रमुख स्कूल में पड़ते है। जब कोरोना काल था तब, बच्चे स्कूल तक नहीं जा रहे थे। तब उन्होंने स्कूल  प्रबंधन से अपील की थी कि जब स्कूल नहीं खुल रहे है। तो फीस में कटौती की जाए ,यानी कम ली जाए क्योंकि उनके पति एक चार्टड एकाउन्टेड के जहां काम करते है। तो ऑफिस न जाने पर उनके वेतन में कटौती की गई है। इस लिहाज से स्कूल में ही होना चाहिये।
तो स्कूल वालों का दो -टूक जवाब था कि फीस कम नहीं होगी अगर आप फीस देने में असमर्थ है तो बच्चों का नाम स्कूल से कटवा सकते है और सरकारी स्कूल में लिखवा सकते है।इसी तरह अन्य अभिभावकों की यही कहानी है। दिल्ली अभिभावक एसोसिएशन से जुड़े पंकज कुमार का कहना है कि सरकारी सिस्टम ही नहीं अब तो प्राइवेट सिस्टम में धांधली और मनमर्जी चल रही है। 
सुनवाई के नाम पर कुछ भी नहीं है। क्योंकि दिल्ली  सरकार को भली -भाँति मालूम है। कि प्राइवेट वाले जमकर फीस की आड़ में तमाम तरह से फीस वसूली कर रहे है।  सालाना फीस, कम्प्यूटर फीस, खेल -खूद के समान के नाम पर फीस इसी तरह आने -जाने के लिये ट्रांसपोर्ट फीस अब तो एक और नया फीस की तरीका बढ़ा दिया है। जैसे ए- सी बस का होना और बस शत -प्रतिशत सेनेटाइज होगी। स्कूल में सबसे बड़ा एक खेला और ये चल रहा है कि हर साल हर क्लास का सिलेबस  बदला जा रहा है।
आखिर इसके पीछे की मंशा जो भी हो लेकिन अभिभावकों को काफी परेशानी होती है। पूर्व टीचर संतोष शर्मा का कहना है कि प्राइवेट वालों पर जब तक शिक्षा निदेशालय का विभाग का हाथ है तब तक स्कूल वालों की मनमर्जी चलती रहेगी। और अभिभावकों को फीस देना होगा।   

श्रीलंका में आपातकाल के बाद भी हिंसा और तोड़फोड़  जारी

श्रीलंका में आपातकाल की घोषणा कर दी गयी है, लेकिन इसके बावजूद वहां हिंसा जारी है। खाद्य पदार्थों के गंभीर संकट के बाद वहां लोगों में जबरदस्त नाराजगी है और वे हिंसा पर उत्तर आये हैं। देश में कई जगह प्रदर्शन, सरकारी संपत्तियों में तोड़ फोड़ की गई है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक लगातार बिजली कट और ईंधन  की कमी ने लोगों में जावबर्दस्त गुस्सा भर  दिया है क्योंकि वे गंभीर दिक्कतें झेल रहे हैं। देश में बिगड़ रहे हालात देखते राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने शनिवार को आपातकाल लागू करने की घोषणा की।

देश के आर्थिक संकट से उपजी लोगों की दिक्क्तों के बाद वहां आगजनी, हिंसा, प्रदर्शन, सरकारी संपत्तियों में तोड़ फोड़ शुरू हो गयी है। पावर कट, खाने-पीने की चीजों समेत श्रीलंका कई दिक्कतों से जूझ रहा है। आपातकाल को पहली अप्रैल से लागू किया गया है।

श्रीलंका के राष्ट्रपति कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया है कि देश में कानून व्यवस्था कायम रखने, आवश्यक चीजों की सप्लाई को जारी रखने के लिए ये फैसला लिया गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक पुलिस ने 50 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है।  कोलंबो और उसके आसपास के इलाकों में शुक्रवार को कर्फ्यू लगा दिया गया था, ताकि छिटपुट विरोध प्रदर्शनों को रोका जा सके।

नवरात्र के अवसर पर आज मंदिरों मेंं धूम  

चैत्र पक्षे वासंतिक नवरात्र के अवसर पर आज मंदिरों में भक्तों ने देवी माँ की पूजा अर्चना की और आर्शीवाद प्राप्त किया। वर्ष 2020-21 में कोरोना के कहर के चलते मंदिरों में भक्तगण पूजा-अर्चना तक नही कर पाये थे। लेकिन इस बार कोरोना के मामलों में गिरावट के चलते पाबंदियां को हटा दिया गया है। जिससे मंदिरों में सुबह से ही काफी भीड़-भाड़ देखी गयी है।
वहीं मंदिरों के बाहर पूजा-अर्चना का समान बेचनें वालों के चेहरेों पर रौनक भी देखी गई है। हमारे देश में कोई भी त्यौहार हो तो बाजारों में रौनक होती है। लोगों में बड़ा उल्लास देखा जाता है। देवी माता मंदिर के पुजारी पंडित रामकिशुन पांडेय ने बताया कि हिन्दू धर्म में हर चैत्र पक्ष के नवरात्रि के अवसर पर मदिरों और बाजारों में भीड़ देखी जाती रही है। लेकिन दो साल बाद कोरोना को लेकर जो पाबंदी हटाई गयी है। इससे ज्यादा भीड़ बढ़ी है।
दिल्ली के छोटे-बड़े मंदिरों के पुजारियों ने मंदिरों को बड़े ही शान से सजाया है। पुजारियों का कहना है कि देवी माँ की कृपा से अब देश में कोई आपदा-विपदा नहीं आयेगी। उन्होंने कहा कि भारत देवी ऋषि-मुनियों का देश है। जिसकी कृपा से विश्व में जो अशांति फैली है वो भी दूर होगी। छतरपुर मंदिर और झण्डेवालान मंदिर में सुबह से हवन-यज्ञ का आयोजन किया है। जिसमें बच्चों और बुजुगों ने आहुति देखर देवी मां का आर्शीवाद प्राप्त किया ।    

रूसी विदेश मंत्री लावरोव से मिले जयशंकर, बोले भारत कूटनीति का पक्षधर

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के भारत दौरे और अमेरिका के भारत के रूस के ‘नजदीक’ जाने को लेकर ‘धमकाने’ वाली भाषा इस्तेमाल करने के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि कि यूरोप रूस से युद्ध के पहले की तुलना में ज्यादा तेल खरीद रहा है। उन्होंने कहा – ‘हम आज भी रूस से तेल खरीद के मामले में  पहले दस में हैं।’ इस बीच जयशंकर ने नई दिल्ली आये लावरोव से आज मुलाकात की है।

जयशंकर का यह ब्यान उन चर्चाओं के बीच आया है जिनमें कहा जा रहा है कि रूस के खिलाफ भारत का रुख ‘कड़ा नहीं है’। अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी भारत पर आरोप लगा रहे हैं कि भारत रूस के निकट चला गया है। आलोचनाओं को लेकर जयशंकर ने कहा – ‘यूरोप रूस से युद्ध के पहले की तुलना में ज्यादा तेल खरीद रहा है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो ये स्वाभाविक है कि कोई भी देश बाजार में जाकर देखेगा कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छा सौदा हैं।’

याद रहे अमेरिका ने कल ही धमकी दी है कि रूस पर प्रतिबंधों से बचने के लिए भारत को परिणाम भुगतना होगा। हालांकि, इन सबसे बेपरवाह विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा – ‘मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम दो या तीन महीने तक प्रतीक्षा करें और वास्तव में देखें कि रूसी तेल और गैस के बड़े खरीदार कौन हैं, तो मुझे संदेह है कि सूची पहले की तुलना में बहुत अलग नहीं होगी। हम उस सूची में शीर्ष 10 में भी नहीं होंगे।”

इस बीच जयशंकर ने दो दिन के भारत दौरे पर आये रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ शुक्रवार को मुलाकात की। उन्होंने इस दौरान कहा कि ‘भारत ने अपने एजेंडे का विस्तार करते हुए सहयोग में विविधता लाने की कोशिश की है।  हमारी आज की बैठक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तनावपूर्ण हो रही स्थिति पर हुई। भारत हमेशा से मतभेदों या विवादों को बातचीत और कूटनीति के जरिये सुलझाने का पक्षधर रहा है।’

युवाओं के आदर्श भगत सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को जब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में विप्लवी भारत गैलरी का उद्घाटन किया, तो यह स्वतंत्रता सेनानियों की याद में आयोजित एक कार्यक्रम भर नहीं था, बल्कि इसका महत्त्व कहीं अधिक था। एक कृतज्ञ राष्ट्र के रूप में सरकार ने आज़ादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव के रूप में अपने स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों के साहस और सर्वोच्च बलिदान को सम्मानित किया। इसके लिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, महाराष्ट्र, गुजरात, मणिपुर और पुडुचेरी में एक साथ कार्यक्रम आयोजित किये गये। शहीदी दिवस पर प्रधानमंत्री ने कहा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान की कहानियाँ हम सभी को देश के लिए अथक परिश्रम करने को प्रेरित करती हैं, जबकि हमारे अतीत की विरासत हमारे वर्तमान का मार्गदर्शन करती है और हमें एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है।

यह थोड़ा अलग हो सकता है कि जबसे आम आदमी पार्टी ने शहीद भगत सिंह के दृष्टिकोण को अपनाया है और पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल के दिनों में विभिन्न कार्यक्रमों में इंकलाब ज़िंदाबाद के नारे लगाने शुरू किये हैं, राजनीतिक दलों में किंवदंती के नाम पर शपथ लेने की होड़-सी है। ऐसा भी लगता है कि आम आदमी पार्टी महान् शहीद से जुड़े देशभक्ति के बसंती रंग को भाजपा के भगवा रंग मुक़ाबले उभारने की कोशिश कर रही है। पंजाब में सत्ता में नयी आयी आम आदमी पार्टी ने सरकारी कार्यालयों में भगत सिंह के चित्र लगाये हैं और उनके शहीदी दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। पंजाब विधानसभा में उनकी प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव भी रखा है। भगत सिंह की तस्वीरों वाली टी-शर्ट पहने युवाओं को शहीद के चित्रों वाले वाहनों के साथ उत्साह में भरा देखा जा सकता है, जो स्पष्ट रूप से युवा आदर्श और पोस्टर बॉय बन गये हैं। भगत सिंह के नाम के स्टीकर ‘लगदा, फेर औना पउ’ (लगता है, फिर आना होगा) के नारे के साथ युवाओं के बीच क्रेज जैसा बन गया है।

‘तहलका’ के इस अंक में विशेष रिपोर्ट ‘भगत सिंह : भारत के शाश्वत् शहीद’ के लेखक 91 वर्षीय वयोवृद्ध पत्रकार राज कँवर हैं, जो बताते हैं कि उनका जन्म उसी दिन हुआ था, जब भगत सिंह शहीद हुए थे और लाहौर में पूरी तरह से हड़ताल हुई थी। गोपाल मिश्रा की लिखी हमारी आवरण कथा ‘तबाही की ज़िद’ पश्चिमी गठबंधन के बारे में है, जो चीन की महत्त्वाकांक्षाओं पर नज़र रखता है; भले ही यह रूस को यूक्रेन युद्ध से बाहर निकलने का भी अवसर देता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले ही चीन को एक स्पष्ट सन्देश भेज चुके हैं कि भारत के साथ सम्बन्ध सामान्य बनाने की ज़िम्मेदारी बीजिंग की है।

यह उल्लेखनीय है कि कैसे भारत ने रूस पर अमेरिकी दबाव का विरोध किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफ़सोस जताया है कि भारत ‘कुछ हद तक अस्थिर’ रहा है; लेकिन वास्तव में उसने अमेरिका और उसके सहयोगियों के लगातार दबाव के बावजूद एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करते हुए गरिमा के साथ अपनी पकड़ बनायी है। इतिहास गवाह है कि सन् 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान रूस भारत के साथ खड़ा था। एक समय आजमाये हुए भरोसेमंद सहयोगी के साथ खड़े होकर और अपनी पकड़ बनाकर भारत ने बेहतर सन्तुलन दिखाया है।

चरणजीत आहुजा

जलवायु परिवर्तन से खेती हो रही ख़राब

देश की कृषि पर जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पड़ रहा है। कृषि (खेती) करने वाले जलवायु परिवर्तन से कैसे निपटें? इसको लेकर कृषि विशेषज्ञों, किसानों और व्यापारियों ने ‘तहलका’ संवाददाता को बताया कि एक तो जलवायु वायु परिवर्तन है, दूसरा हमारी व्यवस्था में तमाम दोष हैं। भारत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद किसानों की समस्याओं का समाधान यहाँ ठीक से नहीं होता। इससे किसानों की समस्याएँ लगातार बनी और बढ़ती रहती हैं।

इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. गजेंद्र चंद्रावरकर का कहना है कि किसानों के पास कृषि उत्पादन बढ़ाने के संसाधनों की कमी है, ऊपर से सुविधाएँ किसानों को सरकार से मिलनी चाहिए, वो मिलती नहीं हैं। इसके अलावा जलवायु परिर्वतन के कारण कभी ज़्यादा वर्षा, तो कभी ज़्यादा गर्मी और सूखा पड़ता है, जिसका सीधा असर कृषि पर पड़ता है। एक दौर में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों की फ़सलों की अपनी अलग पहचान होती थी। पंजाब में मक्का, गेहूँ, चावल और सब्ज़ियों में पत्ता गोभी, टमाटर, आलू और हरी मिर्च आदि अधिक होती हैं। वहीं मध्य प्रदेश में गेहूँ,  चना और धान अधिक होते हैं। जलवायु परिवर्तन से यह पहचान धूमिल हुई है। क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं फ़सल ज़्यादा हो रही, तो कहीं कम हो रही है। यह जलवायु परिवर्तन का ही तो असर है, जो मार्च के महीने में मई जैसी गर्मी पड़ रही है। इसका असर कृषि पर पड़ रहा है। यह फ़सल पकने का समय है, इस समय खेतों में नमी की ज़रूरत है। इस गर्मी से गेहूँ की हज़ारों कुन्तल पैदावार कम होगी।

कृषि मामलों के जानकार किशन पाल का कहना है कि भारत में अधिकतर किसान मौसम के सहारे खेती करते हैं। लेकिन अब कई अमानवीय कृत्यों के कारण पिछले कुछ वर्षों से खेती पर विपरीत असर पड़ रहा है, जिसका ख़ामियाज़ा पूरी मानव जाति को भुगतना पड़ रहा है। भारत में लगभग 70 $फीसदी आबादी ग्रामीण इलाक़ों में रहती है, जो कई समस्याओं से जूझ रही है। एक दौर में पंजाब को लेकर देश के बाक़ी राज्यों के किसानों में एक उत्साह रहता था कि वे भी पंजाब की तर्ज पर खेती करके उत्पादन क्षमता बढ़ाएँगे। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पंजाब में भी काफ़ी अन्तर देखा जा रहा है।

किसान भूपेन्द्र सिंह का कहना है कि एक तरफ़ किसानों को महँगाई मार रही है, दूसरी तरफ़ प्राकृतिक आपदाएँ। फ़सलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए उसके पास संसाधन नहीं हैं। हाल यह है कि किसानों का पूरा परिवार खेती के अलावा कोई दूसरा काम तक नहीं कर पाता। अब डीजल, बीज, खाद, बिजली-पानी सब महँगे होते जा रहे हैं। उस पर हर मौसम में मौसम की मार अलग। ऐसे हालात में पैदावार को बढ़ाना मुश्किल हो रहा है। कृषि वैज्ञानिक खेतों में आकर कृषि उत्पादन बढ़ाने के नये-नये फार्मूले तो बताते हैं; लेकिन संसाधनों के अभाव में उनका लाभ किसानों को नहीं मिल पाता। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टमाटर, हरी मिर्ची और अन्य हरी सब्ज़ियों की पैदावार ज़्यादा होती है, जिसकी सप्लाई दिल्ली सहित अन्य राज्यों में होती है। लेकिन इसी मार्च में अचानक पड़ी गर्मी से सभी सब्ज़ियों की पैदावार पर असर पड़ रहा है।

पूसा कृषि अनुसंधान से जुड़े एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते संकट और उससे निपटने के लिए तमाम शोध हो रहे हैं। बड़े-बड़े सेमिनार हो रहे हैं। लेकिन उसका सीधा लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है, न ही उन्हें सही जानकारी दी जा रही है। इसकी वजह यह है कि जिन कृषि वैज्ञानिकों की तैनाती ज़िला और तहसील स्तर पर की गयी है, उनका किसानों से और फ़सल से कोई लेना-देना नहीं है।

आज़ादपुर मंडी के व्यापारी प्रमोद कुमार का कहना है कि सरकार सहित तमाम अर्थशास्त्री खेती को लेकर तर्क तो देते हैं; समय-समय पर आँकड़े भी पेश करते हैं; लेकिन किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। बड़े किसानों तो बेहतर उत्पादन ले लेते हैं; लेकिन छोटे किसानों को हमेशा घाटा होता है। पिछले दो-तीन साल से छोटे और मझौले किसानों की फ़सल मंडी में कम बिकने को आ रही है। खेती के लिए समय पर पानी की ज़रूरत होती है। लेकिन जल स्तर के लगातार गिरने से वे फ़सलों की पर्याप्त सिंचाई नहीं कर पाते। मौसम के इंतज़ार में समय पर बुबाई नहीं कर पाते। कई बार तो समय पर बीज और खाद भी नहीं मिलते। अभी दो साल से खाद की क़िल्लत से किसान परेशान रहे हैं। ऊपर से महँगाई। बड़े किसानों की वजह से कोरोना महामारी के दौर में मक्का निर्यात बढ़ा है। लेकिन छोटे और मझौले किसानों का मक्का उत्पादन न के बराबर रहा है। मक्का भारत में गेहूँ और चावल के बाद तीसरी फ़सल है।

कृषि वैज्ञानिक ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि जलवायु संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। इससे निपटने के लिए सरकार को ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है; ताकि किसानों को सीधा लाभ मिल सके। इसके लिए किसानों के लिए अलग से आयोग का गठन होना चाहिए, जहाँ किसानों की समस्याओं का निराकरण हो। उन्हें डीजल, बीज, खाद और बिजली सस्ते मूल्य पर मिलें। सब्सिडी मिले। अगर हम जलवायु परिवर्तन का रोना रोते रहे, तो कृषि पर गहरा संकट आ सकता है। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी फ़सलों की अच्छी पैदावार के लिए समाधान खोजना होगा, अन्यथा छोटे-मझोले किसानों की दशा और ख़राब होगी। इससे किसानों का खेती से और भी मोहभंग होगा और पलायन बढ़ेगा।

विपणन सत्र 2021-22 के बाद पिछले साल देश में सरकार द्वारा $करीब 433.32 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की ख़रीद की गयी थी, जो एक बेहतरीन रिकॉर्ड है। क्योंकि उससे पिछले साल यानी विपणन सत्र 2020-21 के बाद 389.92 लाख मीट्रिक टन गेहूँ सरकार द्वारा ख़रीदा गया था। लेकिन इस साल पैदावार कम होने पर फिर से सरकारी ख़रीद घट सकती है। इस पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी न मिलने का भी असर पड़ सकता है। हालाँकि वित्त वर्ष 2022-23 के लिए आम बजट पेश करते समय केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण ने ख़रीद लक्ष्य को बढ़ाने की बात कही थी। लेकिन फ़सल उत्पादन ही कम होगा, तो ख़रीद कहाँ से होगी?