गुरूजी की वापसी

चौबीस अगस्त की दोपहर, अपने घर के अहाते में लगे आम के पेड़ की छांव में बैठे झारखंड के सबसे चर्चित मगर उतने ही विवादित नेता शिबू सोरेन कहते हैं, अगर मैं मुख्यमंत्री नहीं बना तो किसान बन जाऊंगा क्योंकि वैसे तो कोई मुझे सफाई का काम भी नहीं देने वाला. अगले दिन 42 विधायकों की सूची के साथ उन्होंने नई सरकार के गठन का अपना दावा राज्यपाल सिब्ते रज़ी के सामने पेश कर दिया.

64 वर्षीय शिबू सोरेन ने करीब एक सप्ताह तक चलने वाले एक तरह के रक्तहीन तख्तापलट में मधु कोड़ा से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन कर वर्तमान विधानसभा की चौथी सरकार का गठन किया और 29 अगस्त को आठ विधायकों से अपना बहुमत भी सिद्ध कर दिया.

कोड़ा आंकड़ों के वैसे ही खेल में मात खा गए जिस तरह के खेल में उन्होंने सितंबर 2006 में अर्जुन मुंडा की कुर्सी छीनी थी. झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में 33 राजग(भाजपा 29, जद-एकी 4), 42 संप्रग(झामुमो 17, कांग्रस 9 राजद7 और निर्दलीय 9), तीन वाम दलों और दो अन्य छोटे दलों के हैं.

ये निराशा तब और भी गहरी हो गई जब 22 जुलाई के विश्वासमत के दौरान केंद्र की संप्रग सरकार के समर्थन के बाद भी उन्हें मंत्रिपद मिलता नहीं दिख रहा था. ऐसे में उनकी बिहार का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा एक बार फिर से बलवती हो गई.

25 अगस्त 2007 को सोरेन जब अपने एक पूर्व सहायक शशिनाथ झा की हत्या के आरोप से बरी होकर दुमका जेल से बाहर आये थे तो कोड़ा ने उनके वास्ते मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली करने का प्रस्ताव रखा था. एक साल बाद गुरूजी(शिबू सोरेन) एक दूसरे ही कोड़ा से रूबरू थे जो उनके रास्ते में तरह-तरह की रुकावटें खड़ी कर रहे थे. नाम भर के बहुमत से सरकार चला रहे कोड़ा ने झामुमो द्वारा 17 अगस्त को समर्थन वापस लिए जाने के छह दिन बाद कहीं जाकर अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंपा. आखिरी क्षण तक कोड़ा और उनके दूसरे निर्दलीय मंत्री सोरेन को समर्थन देने से इनकार करते रहे जिससे क्षुब्ध और निराश होकर सोरेन ने किसान बनने की बात कही थी.

सोरेन को दो बार केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था – पहले जुलाई 2004 में चिरडीह हत्याकांड में गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने पर और फिर नवंबर 2006 में महतो के कत्ल का दोषी ठहराए जाने पर. उसके बाद से ही वे मंत्रिपद के लिए जुगत भिड़ा रहे थे मगर कुछ कर नहीं पा रहे थे.

ये निराशा तब और भी गहरी हो गई जब 22 जुलाई के विश्वासमत के दौरान केंद्र की संप्रग सरकार के समर्थन के बाद भी उन्हें मंत्रिपद मिलता नहीं दिख रहा था. ऐसे में उनकी बिहार का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा एक बार फिर से बलवती हो गई.

पिछली बार से उलट परिस्थितियां इस बार उनके साथ थीं क्योंकि वाम दलों द्वारा किनारा कर लिए जाने के बाद वे केंद्र सरकार के लिए एक तरह से अपरिहार्य बन चुके थे और इसीलिए कभी सोरेन के मुखर विरोधी रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के तरह-तरह के हथकंडों के बाद भी कोई उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने से नहीं रोक सका.

हालांकि नरसिंहाराव सरकार के दौरान हुए झामुमो रिश्वत कांड के बाद से ही सोरेन की छवि पर तरह-तरह के दाग लगते रहे हैं मगर ये भी सच है कि वे झारखंड की जनता में कोड़ा से ज्यादा विश्वास का संचार करते हैं जिनपर उनके पिछले 23 महीनों के कार्यकाल में भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोप लगते रहे हैं.

झारखंड के लिए गुरूजी का योगदान और ज़मींदारों और आदिवासियों का शोषण करने वालों के खिलाफ उनके संघर्ष, किंवंदती बन चुके हैं. वो झारखंड के लिए काफी कुछ कर सकते हैं लेकिन वो एक बेहद अनिश्चित गठबंधंन सरकार चला रहे हैं.रांची विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्री रमेश सरन कहते हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक बड़ा सवाल ये है कि साल 2005 में नौ दिनों की सरकार के मुखिया रहने के बाद नौ दिनों का अजूबा कहाने वाले सोरेन क्या वर्तमान विधायिका के बचे हुए 18 महीनों तक मुख्यमंत्री बने रह सकते हैं? अस्थिरता हर और पसरी हुई है. चाहे दावा पेश करने से पहले बुलाई गई संप्रग की बैठक हो या फिर राज्यपाल को समर्थन के पत्र सौंपने का समय या फिर शपथ ग्रहण समारोह, किसी में भी कांग्रेस का एक भी विधायक शामिल नहीं था. और फिर कोड़ा ने भी तो सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

आनंद एसटी दास