'मुझे लगा कि टाटा मुझसे बात करेंगे'

आपको भी लगता होगा कि इस संकट का समाधान होना चाहिए.

ये कोई असाध्य समस्या नहीं है. भूमि अधिग्रहण क़ानूनों का दबाव डालकर अनिच्छुक लोगों पर ज़मीन बेचने का दबाव डालना कहीं से भी उचित नहीं हैं. साथ ही पंचायत चुनावों में मिली मात के बाद सत्ताधारी पार्टी को ये अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि असाधारण बल प्रयोग से काम नहीं चलता. ज़मीनों को वापस किया जाना चाहिए.

पर ज्यादातर लोगों ने अपनी ज़मीनें खुद ही दे दीं और मुआवजा भी ले लिया है.

इसका ये मतलब नहीं कि आप गिनती में कम लोगों को दबा दें. ये कई फसल देने वाली ज़मीन है जिसे बचाकर रखना होगा. हम अपने अन्न के कटोरे की जान लेने पर क्यों तुले हुए हैं? खुद राज्य सरकार के मुताबिक उसके पास 44,000 एकड़ ज़मीन ऐसी है जिन पर जूट मिलें थीं. हाल ही में बिरला को 350 एकड़ ज़मीन वापस कर दी गई जिस पर वो रिहाइशी इमारतें बनाने वाले हैं. पहले ये ज़मीन उन्हें कार प्लांट के लिए दी गई थी. आप कितने हास्यास्पद हो सकते हैं?

टाटा का कहना है कि सहायक औद्योगिक इकाइयां भी मुख्य प्लांट के अंदर ही होनी चाहिए.

मैं एक मिनट में इस दावे की हवा निकाल सकती हूं. पूरे देश में कार निर्माता कई विक्रेताओं से सहायक उत्पाद खरीदते हैं. बस मुख्य संयंत्र शत-प्रतिशत आपूर्ति की मांग करता हैं. अगर सहयोगी उत्पाद इकाई किसी संयंत्र के अहाते में ही है तो वो केवल उसके लिए ही काम करेगी. मगर ऐसा हो ही ये ज़रूरी थोड़े ही है.

ये आपकी सबसे बड़ी राजनीतिक वापसी है.

ये याद दिलाने का शुक्रिया कि मेरी पार्टी विलुप्तप्राय थी. तृणमूल कांग्रेस राज्य का एक बेहद मजबूत विपक्ष है. आज अगर चुनाव हो जाएं तो हम बहुत आसानी से पश्चिम बंगाल में 20 लोकसभा सीटें जीत जाएंगे.

पश्चिम बंगाल में निवेश आकर्षित करने के लिए आपके पास क्या योजना है?

हमें ऐसी परियोजनाओं को बनाने की जरूरत है जिसमें उद्योग और कृषि दोनों साथ-साथ फल-फूल सकें. सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु ने राज्य में निवेश के लिए 36 बार विदेश यात्राएं की लेकिन कुछ नहीं हुआ. हमारे यहां 70 लाख से ज्यादा बेरोजगार हैं.

पर क्या आज की दुनिया में बंद और हड़ताल किसी बात का जवाब हैं?

मुझे कोई ऐसा विकल्प बताइए जिसके सहारे गरीब अपनी आवाज़ उठा सके, हम उसपर चलेंगे.

ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है– मुख्यमंत्री की कुर्सी या फिर किसानों का मसीहाहोना?

समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्ता में होने की जरूरत होती है. मेरी पार्टी बार-बार कहती रही है कि हम मानवीय चेहरे वाला विकास चाहते हैं. वर्तमान संकट का ये सबसे बेहतर जवाब है. सिर्फ सिंगूर या नंदीग्राम ही नहीं वाममार्गियों ने राज्य में सभी-कुछ उल्टा-पुल्टा कर दिया है. कोलकाता एयरपोर्ट से हल्दिया बंदरगाह को जोड़ने वाली एक्सप्रेसवे परियोजना ज़मीन विवाद के कारण लटकी हुई है. केमिकल हब को भी नयाचार में स्थानांतरित करने की बातें चल रही हैं. बर्धवान ज़िले के कटवा में प्रस्तावित एक विशाल बिजली परियोजना को ज़मीन अधिग्रहण के विरोध के चलते खत्म कर दिया गया. आप ज़मीन के मालिक की उपेक्षा करके किसी उपक्रम की योजना नहीं बना सकते.

सिंगूर में बहुत से लोग आपका समर्थन कर रहे हैं लेकिन उनके बच्चे सिंगूर फैक्ट्री में काम कर रहे हैं.

इसमें कोई बुराई नहीं है. दो अलग-अलग विचार एक ही छत के नीचे पनप सकते हैं. हो सकता है पिता उन लोगों के बारे में सोच रहे हों जिनकी ज़मीनें छिन गई हैं और बेटा अपने बारे में ही सोच रहा हो.

क्या ये ठीक नहीं होता कि आप सीधे रतन टाटा से बात करतीं?

मुझे लगा था कि वो मुझसे बात करेंगे. मगर मुझे उनसे मिलने ही नहीं दिया गया.

शांतनु गुहा रे