भले ही उत्तर प्रदेश विधानसभा 2022 के चुनाव में एक साल के करीब का समय बचा हो, लेकिन सियासी गुणा-भाग के साथ-साथ सभी पार्टियों की चुनावी सरगर्मी भी दिन-ब-दिन बढ़ती गर्मी की तरह बढ़ती जा रही है। लेकिन इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर नित नये समीकरण उभरते जा रहे हैं। वजह साफ है कि इस बार आम आदमी पार्टी (आप) प्रदेश की सभी 403 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवील ने कुछ समय पहले जैसे ही यह ऐलान किया कि आगामी विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर उत्तर प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, वैसे ही उत्तर प्रदेश में राजनीतिक ताना-बाना बुनना शुरू हो गया। आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना कि जिस प्रकार दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक, बसों में महिलाओं को मुफ्त की यात्रा, पानी मुफ्त और 200 यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही है, उसी तरह पार्टी सरकार बनने पर उत्तर प्रदेश के लोगों को ये सारी सुविधाएँ मुहैया कराएगी। उत्तर प्रदेश की सियायत पर आम आदमी पार्टी पर तहलका ने अपनी पड़ताल में पाया कि आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायत चुनावों के रास्ते विधानसभा का रास्ता तय करने की जुगत में है।
मौजूदा दौर में देश की सियासत में एक अजीब-सा वातावरण करवटें ले रहा है। लोगों के सियासत को लेकर तमाम सवाल हैं कि किस राजनीतिक दल पर विश्वास करें? कौन-सी पार्टी है, जो विकास के साथ-साथ लोगों को बेहतर सुविधाएँ दे सके।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के पहले अप्रैल-मई, 2021 में ग्राम पंचायत के चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी ग्राम पंचायत चुनावों के रास्ते ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और संगठन को मज़बूत कर प्रदेश में अपनी जड़े जमाएगी। आम आदमी पार्टी के नेता दिनेश सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश की जनता प्रदेश में बदलाव चाहती है। क्योंकि अभी तक भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा की सरकारों को यहाँ की जनता देख चुकी है। लोगों में इन पार्टियों ने सत्ता पाने के बाद निराश ही किया है। लेकिन अब उत्तर प्रदेश की जनता एक उम्मीद और भरोसे के साथ आम आदमी पार्टी को मौका देना चाहती है, ताकि प्रदेश में विकास के साथ-साथ एक ईमानदार राजनीतिक दल की सरकार बने।
आम आदमी पार्टी, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सभाजीत सिंह ने तहलका को बताया कि यहाँ के लोगों में एक उत्साह है कि आम आदमी पार्टी ग्राम पंचायत से लेकर विधानसभा चुनावों में अपने प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारेगी। उनका कहना है कि दिल्ली में 8-9 साल की आम आदमी पार्टी ने तीन बार दिल्ली का मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को बनाकर यह बता दिया है कि अरविन्द केजरीवाल की कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं है। उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी संख्या में दिल्ली में रहते हैं और दिल्ली में हो रहे विकास कार्यों के प्रत्यक्षदर्शी हैं। इसलिए प्रदेशवासी चाहते हैं कि जो सुविधाएँ दिल्ली वालों को मिल रही हैं, वो सुविधाएँ उन्हें भी मिलें। प्रदेश की जनता चाहती है कि राज्य बड़ा है तो, यहाँ विकास भी अधिक होना चाहिए, क्योंकि सरकारी खाते में राजस्व अधिक जमा होता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के लोग यह बात समझ और मान रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के मार्फत ही विकास सम्भव है। सभाजीत ने बताया कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता प्रदेश के गाँव-गाँव में जाकर लोगों के बीच आम आदमी पार्टी के बारे बता रहे हैं और प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में सदस्य बना रहे हैं। ज़िला इकाई के माध्यम से लोगों को ज़िम्मेदारी भी दी जा रही है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी ग्राम प्रधान से लेकर ज़िला परिषद और विधानसभा तक के चुनाव लड़ेगी।
राजनीति विश्लेषक सचिन सिंह गौर का कहना है कि यह बात तो साफ देखी जा रही है कि लोग बदलाव के मूड में हैं; लेकिन मतदाता कितना बदलाव लाते हैं? ये तो तभी पता चलेगा, जब चुनाव हो जाएँगे और मतों की गिनती पूरी होगी। क्योंकि उत्तर प्रदेश की सियासत पूरी तरह से जातीय समीकरण पर टिकी हुई है। सवाल यह है कि क्या आम आदमी पार्टी भी जातीय जोड़-तोड़ पर सियासत करेगी? अगर वह ऐसा करती है, तो अन्य राजनीतिक दलों से कैसे अपने को हटकर बता पाएगी कि उसकी सियासत अलग है। सचिन कहते हैं कि यह बात तो है कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष काम किया है, जिसको लोग मानते भी हैं। लेकिन लोगों का यह भी मामना है कि दिल्ली की सत्ता 70 विधानसभा सीटों वाली है, जबकि उत्तर प्रदेश की सत्ता 403 विधानसभा वाली। ऐसे में दोनों की तुलना कैसे की जा सकती है? दिल्ली के भौगौलिक ढाँचे और उत्तर प्रदेश के भौगोलिक ढाँचे में ज़मीन-आसमान का अन्तर है। उत्तर प्रदेश की सियासत पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हरिश्चन्द्र पाठक का कहना है कि जन आन्दोलन से निकली आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सियासत में दूसरी बार सारे समीकरणों को धत्ता बताकर यह साबित कर दिया है कि लोगों के बीच आम आदमी पार्टी की पकड़ ही मज़बूत नहीं है, बल्कि उसका काम भी बोलता है। अगर उत्तर प्रदेश की जनता के बीच भी आम आदमी पार्टी दिल्ली के लोगों में अपनी पकड़ बनाने में सफल होती है, तो उत्तर प्रदेश में बहुत बड़ा सियासी उलटफेर सम्भव है।
आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि उनके पास उत्तर प्रदेश से तमाम नेता और राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोग आ रहे हैं और कह रहे हैं कि आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़े। वहाँ की जनता को यह विश्वास भी है कि आम आदमी पार्टी बड़ा बदलाव कर सकती है। केजरीवाल का कहना है कि जो राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश को अपनी जागीर समझते हैं; उनसे वहाँ की जनता त्रस्त है। आम आदमी पार्टी से जुड़कर लोग उसे मज़बूत बना रहे हैं।
वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक दिलीप पांडे का कहना है कि उत्तर प्रदेश में भले ही अभी आम आदमी पार्टी का कोई विधायक नहीं है, लेकिन यहाँ आम आदमी पार्टी प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर अपनी भूमिका निभा रही है और समय-समय पर उत्तर प्रदेश सरकार की जनविरोधी नीतियों के विरोध में आवाज़ उठाकर लोगों को जागरूक कर रही है। उनका कहना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में कोरोना-काल में हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ और किसानों के समर्थन में संसद से लेकर सड़कों तक न्यायसंगत बात रख रहे हैं। दिलीप पांडे का कहना है कि उत्तर प्रदेश में एक विशेष जाति के छ: फीसदी लोग अपनी सरकार समझकर 94 फीसदी लोगों की उपेक्षा कर रहे हैं, जिसको आम आदमी पार्टी बर्दाश्त नहीं करेगी। उनका कहना है कि प्रदेश में 30 से ज़्यादा ज़िलों में आम आदमी पार्टी के सक्रिय ज़िला कार्यालय खुल गये हैं, बाकी अन्य ज़िलों में भी कार्यालय जल्द ही खुलेंगे।
बताते चलें कि ग्राम पंचायत चुनावों के इने-गिने दिन ही बचे हैं। किसान आन्दोलन पूरे प्रदेश में धीरे-धीरे लोगों के आक्रोश फैलता जा रहा है, जिसमें भाजपा छोड़ सभी राजनीतिक दल किसानों के समर्थन में रात-दिन एक किये हुए हंै। आम आदमी पार्टी से जुड़े किसान नेता अमर सिंह का कहना है कि आम आदमी पार्टी ने जिस प्रकार बिना सियासी लाभ-हानि के किसान हित में संसद से लेकर सड़कों तक आवाज़ बुलन्द की है, उसको देखते हुए किसानों ने आम आदमी पार्टी पर विश्वास जताया है। आज अन्य राजनीतिक दलों के नेता किसान आन्दोलन में जाने से हिचकते रहे हंै, जबकि आम आदमी पार्टी के नेता लगातार किसानों के साथ हंै, उनकी हर सम्भव मदद कर रहे हंै।
बनारस और कानपुर से आम आदमी पार्टी के नेता सुरेंद्र सिंह और संजीव सिंह ने बताया कि बनारस से अरविन्द केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था, तभी यह साबित हो गया था कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी की सियासत का केंद्र उत्तर प्रदेश होगा। अब यह साफ दिखने लगा है। आम आदमी पार्टी ने कोरोना-काल में लोगों के बीच जाकर अपनी पकड़ मज़बूत बनायी है। आम आदमी पार्टी में इस बात पर ज़ोर दिया जा रहा है कि आने वाले चुनावों में सामाजिक कार्यकर्ताओं, पढ़े-लिखे युवाओं और बेदाग छवि वाले लोगों को ही मैदान में उतारा जाए। इसके लिए दावेदार प्रत्याशियों की लोकप्रियता और उनके व्यक्तित्व की कई स्तर पर पड़ताल भी की जा रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि उत्तर प्रदेश में ज़्यादातर दबंग छवि वाले और पैसे वाले लोग ही चुनाव लड़ पाते हैं। दबंगों के सामने ईमानदार और पढ़े-लिखे युवा चुनाव नहीं लड़ पाते हैं। इसलिए आम आदमी पार्टी का इस बात पर विशेष ज़ोर है कि राजनीति में ईमानदार और निर्भीक लोग ही आएँ। नोएडा के आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता राजकुमार वैश्य का कहना है कि दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के ज़िला नोएडा और गाज़ियाबाद में आम आदमी पार्टी का प्रभाव इस बात पर है कि दिल्ली और नोएडा में आने-जाने वाली महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा का लाभ मिल रहा है, जो उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभा सकता है। बताते तो यह भी हैं कि दिल्ली में सरकारी और निजी कम्पनियों में सरकार की ओर से उत्तर प्रदेश के लोगों को मौका दिया जा रहा है, जो सियासी समीकरण का भी हिस्सा है।