असरदार जोड़ीदार

नरेंद्र मोदी और अमित शाह

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नरेंद्र मोदी-अमित शाह. ये दोनों आज भारतीय राजनीति के सबसे सफल चेहरे हैं. लोकसभा चुनाव में इस जोड़ी के अभूतपूर्व प्रदर्शन को देखकर इनके आलोचकों के साथ ही प्रशंसकों की आंखें भी चौंधिया गईं थी. इनकी आसमानी राजनीतिक सफलता का सिलसिला अभी भी जारी है. हाल ही में इन दोनों की जुगलबंदी से हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने वह सफलता अर्जित की जिसकी कल्पना लोग मजाक में भी नहीं करते थे. स्थिति यह हुई कि जिस हरियाणा में दशकों तक सक्रिय रहने के बाद भी अपने दम पर सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं पहुंच सकी थी उस हरियाणा में पार्टी बिना संगठन और बिना किसी बड़े स्थानीय चेहरे के उतरी और गठबंधन की बैसाखी फेंककर दौड़ते हुए बहुमत रेखा के पार निकल गई. महाराष्ट्र में भी पार्टी शिवसेना से अपना पुराना याराना तोड़ते हुए बिना किसी मजबूत संगठन के चुनावी समर में उतरी थी. यहां से भी नतीजा उसे सातवें आसमान पर भेजने वाला ही मिला. पार्टी प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी. उसका आंकड़ा सौ सीटों को पार कर गया. महाराष्ट्र में भी पार्टी अपनी सरकार (अल्पमत) बना चुकी है.

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अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी

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भारतीय जनता पार्टी इन दिनों अपने सुनहरे दौर से गुजर रही है. एक ऐसा दौर जो किसी भी राजनीतिक दल का ख्वाब होता है. पहले उसने लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया और फिर दो राज्यों में भी विरोधियों को करारी शिकस्त देकर सरकार बना ली. इस शानदार प्रदर्शन के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की जुगलबंदी को सबसे बड़ा फैक्टर बताया जा रहा है. मौजूदा हालात पर नजर रखने वाले किसी व्यक्ति को शायद ही इससे गुरेज होगा. लेकिन वर्तमान का अध्ययन अगर अतीत को ध्यान में रखकर किया जाए तो उसे समझना बहुत आसान हो जाता है. तीन दशक पुरानी पार्टी की इस बेहद सफल यात्रा को रिवर्स गियर लगाकर देखा जाए तो दूसरे छोर पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के रूप में एक ऐसी जोड़ी नजर आती है, जिसने बुलंदियों पर सवार भाजपा की बुनियाद ऐसे वक्त में खड़ी की, जब देश भर में कांग्रेस का एकछत्र राज था. अंग्रेजों के देश छोड़ने के बाद कांग्रेस ही देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी.

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सोनिया गांधी और अहमद पटेल

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लोकसभा चुनावों के समय पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर : द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ सामने आई. अपनी किताब में बारू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के 64 वर्षीय राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की राजनीतिक शख्सियत और कांग्रेस तथा मनमोहन सिंह सरकार में उनकी भूमिका को लेकर कई खुलासे किए. बारू ने अपनी किताब में बताया कि कैसे यूपीए सरकार के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सभी संदेश प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक पहुंचाने का काम नियमित तौर पर अहमद पटेल किया करते थे.  वे सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के बीच की राजनीतिक कड़ी थे. बारू के मुताबिक प्रधानमंत्री निवास में जब अचानक पटेल की आवाजाही बढ़ जाती तो यह इस बात का संकेत होता कि कैबिनेट में फेरबदल होने वाला है. पटेल ही उन लोगों की सूची प्रधानमंत्री के पास लाया करते थे जिन्हें मंत्री बनाया जाना होता था या जिनका नाम हटाना होता था. बारू यह भी बताते हैं कि कैसे पटेल के पास किसी भी निर्णय को बदलवाने की ताकत थी. वे एक उदाहरण भी देते हैं, ‘एक बार ऐसा हुआ कि ऐन मौके पर जब मंत्री बनाए जाने वाले लोगों की सूची राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के लिए प्रधानमंत्री निवास से जाने ही वाली थी कि पटेल प्रधानमंत्री निवास पहुंच गए. उन्होंने लिस्ट रुकवाकर उसमें परिवर्तन करने को कहा. उनके कहने पर तैयार हो चुकी सूची में एक नाम पर वाइट्नर लगाकर पटेल द्वारा बताए गए नाम को वहां लिखा गया.’

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मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह

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राजनीति की दुनिया में अगर कोई एक लाइन सबसे ज्यादा बार दुहराई गई है तो वह है, यहां कोई किसी का न तो स्थायी दोस्त होता और न ही दुश्मन होता है. इस पंक्ति को राजनेता, पत्रकार और विश्लेषक सब बार-बार दोहराते हैं. फिर भी यहां समय-समय पर जोड़ियां बनती-बिगड़ती रहती हैं. दोस्त बनते हैं, साथ-साथ जीने-मरने की कसमें खाई जातीं हैं.

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