
ज्यादा नहीं, बस बरस भर से थोड़ा ही ज्यादा हुआ होगा, भाजपा से जदयू की कुट्टी होने का समय. बिहार भाजपा के कई मंझले और निचले दर्जे के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया था कि सुशील मोदी भाजपा के नेता हैं कि जदयू के, यह स्पष्ट करें. ये नेता यूं ही इस तरह की बातें नहीं कर रहे थे. इसके ठोस कारण भी थे. सुशील मोदी सबसे मजबूत ढाल की तरह नीतीश कुमार के साथ रहते थे. जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने का कानाफूसी वाला बयान देना शुरू किया तब जूनियर मोदी यानि सुशील मोदी ही वे नेता थे, जिन्होंने खुलेआम कहा कि नीतीश कुमार भी नरेंद्र मोदी से कोई कम योग्य नेता नहीं हैं. तब यह माना गया कि सुशील मोदी ऐसा इसलिए कह गये, क्योंकि वे आडवाणी के खेमे के आदमी हैं और आडवाणी नीतीश को पसंद करते हैं. लेकिन यह कोई पहला मौका नहीं था. पिछले 17 सालों से भाजपा-जदयू की दोस्ती में पार्टी स्तर पर कार्यकर्ताओं व दूसरे नेताओं का एक-दूसरे से कितना मेल-मिलाप बढ़ा, यह तो साफ-साफ कोई नहीं कह सकता लेकिन यह हर कोई मानता और जानता है कि नीतीश कुमार, सुशील मोदी की जोड़ी फेविकोल के जोड़ जैसी हो चली थी. लालू प्रसाद हमेशा कहा भी करते थे कि सुशील मोदी, नीतीश के अटैची है और कभी-कभी पोसुआ सुग्गा (पालतू तोता) भी कहते थे.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सुशील मोदी ही नीतीश कुमार का गुणगान करते रहे बल्कि कुछ मौके ऐसे भी आये, जब नीतीश कुमार ने अपनी साख और अपने वोट बैंक तक की परवाह किये बिना मोदी की राह की रुकावटों को डंके की चोट पर और सार्वजनिक तौर पर दूर करने की कोशिश की. इसका एक बड़ा नमूना तीन-चार साल पहले बिहार के फारबिसगंज के भजनपुरा में पुलिस फायरिंग में मारे गये छह अल्पंख्यकों वाले प्रकरण में देखा गया था. कहा जाता है कि भजनपुरा गोलीकांड के बाद नीतीश कुमार ने बिना कोई ठोस कार्रवाई किए गहरी चुप्पी साध ली थी, इसकी एक वजह यह थी कि वह सुशील मोदी के करीबी की फैक्ट्री से जु़ड़ा मामला था.