वह अंग्रेज़ लड़की जिसने भारत के लिए आज़ादी की जंग लड़ी

देश का मौजूदा परिदृश्य पूरी तरह निराशाजनक है। मैं भविष्य में बहुत  आगे देखने की भी चाहवान नहीं हू तो मेरे पास जो बीत गया उसी का विश्लेषण करने केअलावा और कोई चारा भी नहीं है। असल में तो सोच यही रहती है कि जो बीत गया वह बीत गया, पर जब बीते समय में झांकते हैं तो उन विभूतियों से मुलाकात होतीहै जिनका पूरा प्रभाव देश के सामाजिक और राजनैतिक पटल पर नजऱ आता है।

यह लिखने की प्रेरणा मुझे पिछले दिनों किंग्स कॉलेज लंदन में आयोजित किए गए ‘खुशवंत सिंह लिटरेरी फेस्टिवलÓ के दौरान  फ्रेडा बेदी पर हुए सेशन में मिली।यह कमाल का सेशन था। वहां नार्मा लीवाइन और एंड्रयू व्हाइट हैड ने अपने बहुमूल्य विचार रखे। उन्होंने अद्भूत अंग्रेज महिला फ्रेडा के बारे में बताया। ध्यान रहेकि फ्रेडा ने एक भारतीय सिख बीपीएल बेदी के साथ शादी की थी। इसके बाद वह भारत आ गई। यहां वह देश के विभिन्न स्थानों पर रही। उसके बच्चे और पति भीसाथ थे। भारतीय फिल्मों के सितारे कबीर बेदी भी उनके पुत्र हैं। पर कई सालों की शादी के उपरांत उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया और बौद्ध भिक्षु बन गई। उसकेबारे में उपरोक्त दोनों लेखकों ने खूब लिखा। उन्होंने इस बात का खास जि़क्र किया कि जैसे ही 1933 में उसने बीपीएल बेदी से शादी की वैसे ही वे खुद को भारतीयमानने लगी।

इंग्लैंड के एक मध्य वर्गीय परिवार में जन्मी वह भारतीय राष्ट्रवाद की प्रमुख सिपाही बन गई। उन्होंने सत्यग्रही के रूप में  लाहौर में जेल भी काटी। 1940 में जबउनके पति बीपीएल बेदी ने ‘न्यू कश्मीरÓ घोषणापत्र तैयार किया उसी दौरान फ्रेडा ने भूमिगत वामपंथी राष्ट्रवादियों के साथ संपर्क साधा और बाद में पाकिस्तानीकबाइलियों के हमले से कश्मीर को बचाने के लिए नारी सेना का हिस्सा बन गई। 1950 में अपनी बर्मा यात्रा के दौरान वे बौद्धमत से जुड़ी। बर्मा की यात्रा उनकेजीवन में एक बड़ा बदलाव लाई और वह अध्यात्मवाद से जुड़ गई। 1959 में उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू से संपर्क कर तिब्बती शरणर्थियों के लिए काम करनाशुरू किया और उनके लिए स्कूल खोले। शायद फ्रेडा पहली बौद्ध भिक्षु बनी।

 एंड्रयू ने अपनी किताब में फ्रेडा और उनके पति की कश्मीर में निभाई भूमिका को भी उजागर किया। स्थान के अभाव के कारण मैं सब कुछ न लिख सकूं पर उनपत्रों का जि़क्र ज़रूर कर रही हूं जो जवाहरलाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को लिखे थे। ये पत्र उस पुस्तक में हैं। नेहरू ने शेख अब्दुल्ला पर दवाब डाला कि वेकम्युनिस्टों को अपने से दूर रखें। इनमें भी बेदी उनका मुख्य निशाना थी। मई 1949 में नेहरू ने कश्मीर की यात्रा के बाद नेहरू ने लिखा-” शेख साहिब कश्मीर मेंकम्युनिस्टों की घुसपैठ बहुत खतरनाक है। हमारे दूतावासों ने इस पर बहुत चिंता जताई है। उन्होंने बेदी के बारे में बहुत सुना है। मुझे पता है कि बेदी एक अखबारका संपादन कर रहे हैं। जिसके लिए उन्हें अच्छा वेतन और कार की सुविधा मिल रही है। बेदी के खिलाफ मेरी कोई निजी शिकायत नहीं है पर कम्युनिस्टों के साथहमारी जो लड़ाई देश में चल रही है इस कारण बेदी का नाम लगातार सामने आ रहा है।

इसके बाद नेहरू ने इसी ”पैटर्न पर शेख अब्दुल्ला को एक और पत्र लिखा। उन्होंने लिखा,”आपने बेदी परिवार का जि़क्र किया था, मैं उन्हें पसंद करता हूं खासतौरपर फ्रेडा को। मुझे पता है फ्रेडा ने कुछ साल पहले कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ दी है। उसके बाद उन्होंने क्या किया, इसका मुझे कोई इल्म नहीं। पर मुझे इतना पता है किबेदी पार्टी में बने हुए हैं। आज पार्टी उन लोगों को  नहीं रख रही जो उसकी आज की रणनीति में नहंी आते। मैं नहीं चाहता कि आप बेदी परिवार पर कोई बेवजहदबाव बनाएं। पर मैं यह चाहता हूं कि उन्हें कोई महत्वपूर्ण काम न सौपा जाएं और उन्हें पूरी तरह पीछे रखा जाए।कल मैंने एक किताब देखी जो बेदी पति-पत्नी नेतुम पर लिखी है। इसमें एकदम यह प्रभाव पड़ता है कि बेदी दंपति कश्मीर में महत्वूपर्ण भूमिका निभा रहे हैं और तुम्हारे बहुत करीब हैं। इससे तुम्हारी ओर तुम्हारीसरकार के खिलाफ प्रतिक्रिया पैदा हो रही है। ऐसा नहीं है कि  बेदी दंपति को इन घटनाओं का पता नहीं था। इसी किताब से पता चलता है-”बीपीएल बेदी को अपनेप्रति नेहरू की धृणा का पता था और यह भी कि वे उन्हें अलग-थलग करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि -मुझे कश्मीर से निकालने के लिए केंद्र का बड़ा दवाब था, उन्हें डर था कि यदि मैं वहां पर रहा तो वामपंथी नीतियां वहां फैलती रहेंगी।

कुछ इस तरह संकेत भी थे कि बेदी दंपति अपनी लेखनी से शेख अब्दुल्ला के राष्ट्रीय नेता बनाना चाहता था। यह भी सही है कि बेदी दंपति ने अपने जीवन का सबसेअच्छा वक्त कश्मीर में ही काटा। इस किताब  में यह बताया गया है किवे किस-किस से मिले और बातचीत की।

फ्रीडा के जीवन का अंतिम पड़ाव अलग अलग तरह के फैसलों का रहा। बौद्ध बनने के बाद उनके अपने भीतर और परिवार से भी कई प्रतिक्रियाएं निकलीं।   परवह लगी रही कुछ भी अलग करने, देखा जाए तो उनकी मौत भी अलग ही थी।

शायद हम यह सब उस फिल्म में देख सकें जिसके बारे में कहा जाता है कि उनका बेटा कबीर बेदी बना रहा है।