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पश्चिमी यूपी में परंपरा तोड़ रिया की घुड़चढ़ी शादी ने रचा इतिहास

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परंपरा को तोड़ते हुए पूर्व फौजी की बेटी रिया ने शादी के बंधन में बंधने के लिए घुड़चढ़ी कर नई सोच की नींव रख दी है। उसने सदियों पुरानी रिवायत को धता बताते हुए शुक्रवार को बुलंदशहर के मनीष के साथ शादी के सात फेरे लिए।

रूढि़वादी समाज का हिस्सा कहे जाने वाले बागपत के बड़ौत की रहने वाली रिया ने इसके साथ ही नया इतिहास बना दिया है। धूमधाम से हुई इस शादी में लोगों ने भी बढ़-चढक़र हिस्सा लिया। बराती और घराती दोनों ने जमकर डांस किया। इतना ही नहीं, स्थानीय लोगों ने रिया सिंधु और उसके परिवार के हौसले की सराहना भी की।

रिया ने सदियों पुरानी परंपरा को तोडक़र घोड़ी बग्घी में सवार होकर मंडप में पहुंची। रिया की घुड़चढ़ी में युवा, बुजुर्ग और महिलाएं भी झूमकर नाचे। इस दौरान पूरे इलाके में जश्न का माहौल रहा। घुड़चढ़ी देखने के लिए लोगों की भीड़ जुटी।  आशीर्वाद देने के लिए सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचे। रिया की मां नीलम बोलीं, बचपन से ही रिया पढ़ाई और खेलकूद में सबसे आगे रही। रिया को हमने कभी लडक़ी की तरह नहीं समझा, हमेशा उसे लडक़े की तरह ही माना।

रिया के पिता नरेंद्र सिंधु पूर्व फौजी हैं और वो भी बेटी को अपना बेटा ही मानते हैं। रिया का भी सपना था कि वह अपनी शादी में घोड़ी पर चढक़र जाएगी। खुशी के इस ऐतिहासिक पल में लोगों के साथ रिया ने भी नृत्य किया। रिया की इस ख्वाहिश का परिजनों ने भी खयाल रखा और उसे हर तरह से सहयोग दिया। इसका साथ ससुराल पक्ष वालों ने भी दिया। लडक़ा सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

घूसखोरी में ‘क्लीनचिट’ और ‘पर्याप्त’ सबूत के बीच फंसे अस्‍थाना

भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई के पूर्व निदेशक अब क्लीनचिट और पर्याप्त सबूतों के बीच में फंसते नजर आ रहे हैं। सीबीआई बनाम सीबीआई का यह हाई प्रोफाइल मामला फिलहाल शांत होता दिख नहीं रहा है। मामला कोर्ट में है।
शुक्रवार को दिल्ली की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान वर्तमान और पूर्व जांच अधिकारियों के बीच तीखी बहस देखने को मिली। चार्जशीट पर विचार करने के दौरान वर्तमान जांच अधिकारी सतीश डागर और पूर्व जांच अधिकारी अजय कुमार बस्सी के बीच अदालत में वाद-विवाद हो गया। डागर ने कहा कि पक्षपातपूर्ण जांच के कारण बस्सी को जांच अधिकारी के पद से हटा दिया गया था।

इस पर पूर्व जांच अधिकारी एके बस्सी ने आरोप लगाया कि वर्तमान जांच अधिकारी सतीश डागर ने सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को क्लीन चिट देने का मन बना लिया था। उन्होंने कहा कि अस्थाना के खिलाफ पर्याप्त सबूत थे, लेकिन डागर ने न तो उनका मोबाइल फोन जब्त किया न  ही अन्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य। इससे ऐसा लगता है कि वह उन्हें बचाना ही चाह रहे हैं।

कोर्ट घूसखोरी के इस मामले में सीबीआई की जांच को लेकर 12 फरवरी को नाखुशी करते हुए पूछा था कि बड़ी भूमिकाओं वाले आरोपी खुलेआम क्यों घूम रहे हैं? जबकि जांच एजेंसी ने अपने ही एक डीएसपी को गिरफ्तार कर लिया। अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार का नाम चार्जशीट के 12वें कॉलम में था, क्योंकि इसमें कहा गया कि उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। डीएसपी देवेंद्र को 2018 में गिरफ्तार किया गया था, जिसे बाद में जमानत मिल गई थी।

सीबीआई ने हैदराबाद के कारोबारी सतीश सना की शिकायत के आधार पर अस्थाना के खिलाफ घूसखोरी का मामला दर्ज किया था। सना 2017 के उस मामले में जांच का सामना कर रहा है जिसमें मीट कारोबारी मोइन कुरैशी का नाम आया था। इससे पहले 19 फरवरी को अदालत ने सीबीआई से पूछा था कि रिश्वतखोरी के मामले में एजेंसी के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना का उसने मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं लाई डिटेक्टर टेस्ट क्यों नहीं करवाया।

अब सौहार्द , भाई -चारा वाली बातेें और विश्वास नहीं रहा

जाफराबाद , मौजपुर, करावल नगर और गोकुलपुरी में हुये दंगों की लपटों की तपिष भले ही कम हो रही है। लपटों को बुझाने वाले और जलाने वालों के बीच, अब दंगाग्रस्त इलाकों  मेे रहने वालों के बीच एक अजीब सा माहौल बनता जा रहा है। आलम ये है कि दो समुदाय के बीच जो भी हिंसा  में मरा और लहुलुहान हुआ है उनके परिजनों से तहलका संवाददाता ने बात की तो उन्होंने बताया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान ये अंदेशा होने लगा था कि चुनाव परिणाम आने के बाद जरूर कुछ अनहोनी होगी। बताते चले है कि दिल्ली में मौजूदा राजनीति पर गौर करें तो राजनीतिक अब विचारिक मतभेदों में ना होकर आपसी और जाति ,पाति धर्म, कर्म की राजनीति में फंसी हुई है। दिल्ली के जानकारों का कहना है कि दिल्ली की 70 विधानसभा वाली सीटों में इस बार 2020 के विधानसभा चुनाव के पूर्व कभी भी जाति ,पाति और धर्म, कर्म की राजनीति नहीं होती थी । दिल्ली वाले यूपी और बिहार में जब भी चुनाव के दौरान हिंसा होती थी तो वहां कि निंदा करते थे पर अब दिल्ली में जो भी हो रहा है वह पूरी तरह से निंदनीय है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान धुव्रीकरण की राजनीति इस कदर हावी थी कि पाकिस्तान और हिन्दुतान की राजनीति करने नेता नहीं चूूके है। जाफराबाद , करावल में दंगा करने वालों ने खुले आम कत्लेआम कर दुकानों में लूटपाट की, स्कूली छात्राओं और महिलाओं के साथ बदसूकी की गई हैं । आज भी जाफराबाद  सहित  दंगाग्रस्त इलाकों में जो माहौल है। उससे अंदाजा इस बात का लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में स्थिति और भयानक होगी। जाफराबाद और ब्रहमपुरी की तंग गलियों की जंग की बातें बताने वालों ने बताया कि दो समुदायों के बीच जो भी हुआ है वो पूरी तरह से सुनियोजित था पर अब भी ये नहीं कहा जा सकता है कि आगे नहीं होगा। सबसे दुखद पहलू अब यहां के निवासियों के लिये ये हो गया है जो दषकों से दो समुदाय के बीच भाई -चारें का माहौल और आपसी सौर्हार्द और विश्वास था अब वो विश्वास शायद ही है कि दोबारा पनप पायें।

दिल्ली हिंसा:शिवसेना के निशाने पर अमित शाह। पूछा कहां थे गृह मंत्री ?

शिवसेना ने आज अपने मुखपत्र सामना के एडिटोरियल में दिल्ली हिंसा के मद्देनजर केंद्र सरकार, विशेष रुप से गृहमंत्री अमित शाह पर निशाना साधा है। एडिटोरियल में पूछा गया है कि गृहमंत्री कहां परहैं ? साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायधीश मुरलीधर के ट्रांसफर को लेकर भी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है ! सामना कहता है कि सरकार ने दंगों के संदर्भ में न्यायालय द्वारा केंद्र व राज्य सरकार को आड़े हाथ लेने वाले न्यायालय के न्यायधीश का तबादला करके सत्य को ही मार डाला है ।

सामना लिखता है, देश की राजधानी में 38 लोग मारे गए उनमें पुलिसकर्मी भी हैं। केंद्र का आधा मंत्रिमंडल उस समय अहमदाबाद में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को को सिर्फ नमस्ते नमस्ते साहब! कहने के लिए गया था। केंद्रीय गृह मंत्री व उनके सहयोगी अहमदाबाद में थे। उसी समय गृह विभाग के एक गुप्तचर अधिकारी अंकित शर्मा की हत्या दंगों में हो गई । लगभग 3 दिनों बाद प्रधानमंत्री ने शांति बनाए रखने का आह्वान किया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल चौथे दिन अपने सहयोगी के साथ दिल्ली की सड़कों पर लोगों से चर्चा करते दिखे इससे क्या होगा ? जो होना था वह नुकसान पहले ही हो चुका है। सवाल यह है कि इस दौर में हमारे गृह मंत्री का दर्शन क्यों नहीं हुआ ? देश को मजबूत गृह मंत्री मिला है लेकिन दिखे नहीं इस पर हैरानी होती है। विधानसभा चुनाव में अमित शाह को वक्त मिला । उन्होने घर-घर जाकर प्रचार पत्रिका बांटे लेकिन जब पूरी दिल्ली हिंसा की आग में जल रही थी तब गृह मंत्री नहीं दिखाई नहीं दिए!

न्यायधीश मुरलीधर के तबादले पर सामना लिखता है , दिल्ली की कानून व्यवस्था स्पष्ट रूप से धराशाई हो गई है ।1984 के दंगों की तरह बैंकर हालत निर्माण ना हो इस तरह की टिप्पणी करने वाले और जनता के मन के आक्रोश को आवाज देने वाले न्यायधीश मुरलीधर का, जो कहते हैं कि सभी आम नागरिकों को सुरक्षा देने का वक्त आ गया है, का अगले 24 घंटों में तबादला हो जाता है। यह केंद्र और राज्य सरकार की न्यायालय में आलोचना करने का परिणाम है ।सरकार ने न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए सत्य को मार दिया।न्यायाधीशों को भी सत्य बोलने की सजा मिलने लगी है ? न्यायमूर्ति मुरलीधर ने गलत क्या कहा उन्होंने सत्य कहा इतना ही है।राष्ट्रवाद का उन्माद और धर्मांधता की मदमस्ती यह दो प्रवृतियां देश को 300 वर्ष पीछे धकेल रहीहैं। भड़काऊ भाषण की राजनीति में निवेश बन गए हैं देश की अर्थव्यवस्था साफ तौर पर धराशाई हो रही है लेकिन भड़काऊ भाषण का निवेश और उसका बाजार जोरों से चल रहा है केंद्र के एक मंत्री अनुराग ठाकुर सांसद प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के खिलाफ मामला दर्ज करने आदेश अब दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया है। जिन्होंने यह आदेश दिया उस न्यायमूर्ति को सरकार ने सजा दे दी।

आज फिर वीर सावरकर का जिक्र करते हुए सामना कहता है, वीर सावरकर के गौरव के लिए जो लोग राजनीतिक नौटंकी कर रहे हैं वे देश के गौरव के बारे में सोचें ।राजधानी की हिंसा का धुआं देश का दम घोट रहा है ।उसमें देश के गृहमंत्री कहीं भी नहीं दिखाई देते यह चिंता करने जैसा मामला है ।

हिमालय पर कचरे का पहाड़

आज से 67 साल पहले 1953 में शेरपा तेनजिंग नॉरगे और सर एडमंड हिलेरी ने पहली बार एवरेस्ट पर कदम रखा था, तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन इस खूबसूरत पर्वत की चर्चा कचरे के कारण होने लगेगी। आज की तारीख में दुनिया के इस सबसे ऊँचे पर्वत पर टनों कचरा जमा है और पर्यावरण के लिहाज़ से इसे एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है। अब जनवरी में ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में यह तथ्य सामने आया है कि तापमान बढऩे से माउंट एवरेस्ट पर घास भी उगने लगी है, जिसने दुनिया भर के पर्यावरण विशेषज्ञों को गहरी चिन्ता में डाल दिया है। चिन्ता का एक बड़ा कारण यह भी है कि हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार इस सदी में दोगुनी हो चुकी है।

दुनिया की गलियाँ और नाले ही नहीं, दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर भी अब कचरे की चपेट में है। एवरेस्ट के जिस हिस्से में तापमान बढ़ा है, वहाँ घास और झाडिय़ाँ उग आई हैं। इसका दुष्परिणाम यह हो सकता है कि बर्फ ज़्यादा पिघलने से बाढ़ की स्थिति बने और पानी की कमी हो जाए। ऐसा दावा ग्लोबल चेंज बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में भी किया गया है। इसके मुताबिक, दुनिया भर में 190 करोड़ लोगों को पहाड़ों से मिलने वाले पानी की कमी से जूझना पड़ सकता है। एवरेस्ट से जुड़े यह खतरे और भी कई कारणों से आये हैं। यह पर्वत रोमांच के लिए वहाँ जाने वालों की बड़ी संख्या के कारण एक तरह से सैर-सपाटे के स्पॉट के रूप में तब्दील होता जा रहा है। इससे कई दिक्कतें पैदा होने लगी हैं।  करीब 8,848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित माउंट एवरेस्ट पर अब तक करीब 8,310 लोग चढ़ चुके हैं। पिछले वर्षों की अपेक्षा इनकी संख्या में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। पिछले साल ही एवरेस्ट के शिखर पर 802 लोग पहुँचे।

इतने लोगों के भीड़ से वहाँ बड़े पैमाने पर कचरा जमा होने लगा है, जो मानवीय मल, खाने के पैकेट, सिलिंडर, शवों आदि के रूप में है। नेपाल सरकार ने पिछले साल दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी के लिए एक सफाई अभियान चलाया था। यह अभियान पिछले साल मध्य अप्रैल में शुरू किया गया, जिसमें चढ़ाई में माहिर 12 शेरपाओं की एक टीम थी। इस टीम में करीब 35 दिन में यह कचरा जमा किया।

अभियान के दौरान 11,000 किलो यानी 11 टन कचरा वहाँ से जमा करके हटाया गया। इस कचरे के अलावा वहाँ चार शव भी मिले। इस अभियान पर करीब 2.30 करोड़ रुपये खर्च हुए। लेकिन यह तो वहाँ जमा कचरे का एक छोटा-सा ही हिस्सा है। एक अनुमान के मुताबिक, आज की तारीख में एवरेस्ट पर करीब दो लाख किलो कूड़ा-कचरा जमा हो चुका है। इंसानों के दखल से एवरेस्ट पर पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँच रहा है। अभी तक के अभियानों में भले काफी कूड़ा हटाया गया है; लेकिन अब भी वहाँ कचरे का पहाड़ जमा है।

सात साल पहले नेपाल ने एक नियम बनाया था कि पर्वत पर चढऩे वाली पर्वतारोहियों की टीम को ढाई लाख रुपये जमा करने होंगे और जो पर्वतारोही अपने साथ कम-से-कम आठ किलो कचरा लाएगा, उसे यह राशि वापस कर दी जाएगी। अच्छी बात यह है कि इसका सकारात्मक नतीजा निकला है। सागरमाथा प्रदूषण नियंत्रण समिति, जो यह काम करती है; के मुताबिक अभी तक बड़ी मात्रा में कचरा और मानवीय अपशिष्ट नीचे लाने में मदद मिली है।

जानकार हैरानी होगी कि दिसंबर, 2019 तक एवरेस्ट की ऊँचाई छूने की कोशिश में 310 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं; जबकि सबसे ऊँची के-2 चोटी पर झंडा गाडऩे वालों की संख्या इससे कुछ कम 307 ही है। माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वालों की संख्या से चिन्तित ब्रिटेन के दिग्गज पर्वतारोही डाउग स्कॉट ने तो नेपाल सरकार से अपील की है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों को इस पर्वत पर चढऩे की अनुमति देनी बन्द कर देनी चाहिए।

एशिया के 45 ऊँचे पर्वतों की चढ़ाई कर चुके स्कॉट ने चेताया है कि हिमालय अब शान्ति और एकांत का स्थान नहीं रह गया और इसके बहुत खतरनाक नतीजे हो सकते हैं। पिछले कुछ महीनों में ही हिमालय पर चढऩे की कोशिश में 12 लोगों की मौत हो चुकी है, जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस संख्या में लोग एवरेस्ट पर चढऩे की कोशिश में हैं।

पिछले साल करीब 850 लोगों ने एवरेस्ट की ऊँचाई का पता लगाने की कोशिश की, जो अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। इस संख्या को लेकर विशेषज्ञ अब खुलकर चिन्ता जताने लगे हैं। हाल में हिमालयन ट्रेवेल मार्ट-2019 के काठमांडू में हुए एक कार्यक्रम में पर्वतों की क्षमता का खयाल रखते हुए एक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसका विषय था- ‘सीमित संख्या में ही पर्वतारोहियों को चढऩे की मंज़ूरी दी जानी चाहिए’ इस आयोजन में दुनिया भर से आए विशेषज्ञों ने हिमालय पर बढ़ते कचरे और इससे बढ़ती तमाम परेशानियों पर चिन्ता जतायी। नेपाल के पर्यटन विभाग के महानिदेशक रहे डांडू राज घिमिरे का हाल में एक बयान आया है, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की तरफ से बड़ी पर्यावरणीय चिन्ताएँ और आलोचनाएँ रही हैं कि नेपाल ने एवरेस्ट की सुंदरता को बनाये रखने के प्रति कोई गम्भीरता नहीं दिखाई है।

पर्वतारोहण से एवरेस्ट पर जाने वाले अमीर पर्वतारोहियों की संख्या बढ़ रही है। हिमालय पर मिलने वाले कचरे से ज़ाहिर होता है कि पर्वतारोही वहाँ पर्यावरण का लिहाज़ नहीं रख रहे हैं। वे बड़ी संख्या में सामान आदि वहाँ छोड़ देते हैं। इनमें खराब हो चुके टेन्ट, बेकार उपकरण, खाली गैस सिलेंडर और मानवीय अपशिष्ट शामिल है। पिछले साल के सफाई अभियान में जो 11 टन कचरा वहाँ से हटाया गया, उसमें से सात टन तो एवरेस्ट आधार शिविर और ऊँचाई वाले शिविरों से ही जुटाया गया। जबकि बाकी कचरा एवरेस्ट का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले लुकला और नामचे बाजार गाँवों से इकट्ठा हुआ। इससे मामले की गम्भीरता को समझा जा सकता है।

हर वसंत में सिर्फ दो महीने के मौसम के दौरान ही माउंट एवरेस्ट खुलता है। इस दौरान कई शौकीन माउंट एवरेस्ट फतह करने की कोशिश करते हैं। हालाँकि, अपनी कोशिश के दौरान ये लोग एवरेस्ट मार्ग में दुनिया भर का कचरा छोड़ आते हैं। अपनी पुस्तक में पर्वतारोही मार्क जेनकिंस ने लिखा था कि दो बड़े मार्ग, पूर्वोत्तर रिज और दक्षिणपूर्व रिज न केवल खतरनाक रूप से भीड़ से भर रहे हैं, बल्कि बुरी तरह प्रदूषित भी हो चुके हैं। नेपाल पर्वतारोहण संघ के अध्यक्ष एंग शेरिंग ने भी कुछ इसी तरह चेताया है कि एवरेस्ट पर प्रदूषण, खासकर मानव मल-मूत्र खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है और यह दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर बीमारी तक फैला सकता है। पर्वतारोही शौचालय के जो ड्रम साथ ले जाते हैं, उन्हें भर जाने के बाद वे वहीं खाली कर देते हैं। पर्वतारोही शौच के लिए बर्फ के बीच एक बड़ा छेद कर देते हैं और शौच से निपटने के बाद उसे खुला ही छोड़ देते हैं।

वर्षों से यह गन्दगी वहाँ जमा हो रही है। चिन्ता की बात यह है कि नेपाल सरकार वहाँ पर्वतारोहियों के छोड़े मानव अपशिष्ट को निपटाने के लिए कोई ठोस रणनीति विकसित नहीं कर सकी है। अध्ययन बताते हैं कि सिर्फ एक ही सीजन में एवरेस्ट पर मानव विसर्जन 26,500 पाउंड से भी अधिक होता है। वैसे एवरेस्ट और पर्वतारोहण को नेपाल की अर्थव्यवस्था का एक बहुत बड़ा ज़रिया बन गया है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि पर्वतारोहण से होने वाली आय नेपाल की कुल जीडीपी का करीब पाँच फीसदी है। अब तो अमीर लोग मस्ती करने के लिए भी वहाँ जाने लगे हैं। दरअसल नेपाल का पर्वतारोहण विभाग शौकिया लोगों को एवरेस्ट की चढ़ाई की सुविधा देने के लिए पैसे के बदले गाइड उपलब्ध कराता है। साल 1990 में ही इसकी शुरुआत हो गयी थी; लेकिन शुरू में इतने लोग नहीं जाते थे। इसके लिए प्रति व्यक्ति करीब 24.30 लाख रुपये से 52.10 लाख रुपये तक वसूल किये जाते हैं। गाइड के जिम्मे बहुत से काम होते हैं, जिनमें रस्सी और फोल्डिंग सीढ़ी के ज़रिये बर्फ के बीच मार्ग बनाना भी एक है। इसके अलावा यह गाइड खाना भी बनाते हैं। एक तरह से इन पर्वतारोहियों का 70 फीसदी से ज़्यादा काम तो यही गाइड कर देते हैं।

हालाँकि, पर्यावरण विशेषज्ञ इससे चिन्तित हैं। उनका कहना है कि इसे मनोरंजन की चीज़ बना देने से पर्यावरण का बहुत नुकसान होने लगा है। एवरेस्ट के शिखर तक पहुँचने के 18 चढ़ाई मार्ग हैं। हालाँकि इनमें से दो ऐसे हैं, जहाँ इन शौकिया पर्वतारोहियों की संख्या ज़्यादा रहती है। धनाढ्य शौकीन इन दो मार्गों से जाना पसन्द करते हैं। इससे स्थिति खतरनाक हुई है। साल 2014 और 2015 में तो एवरेस्ट पर चढऩे की कोशिश के दौरान 38 लोगों की जान चली गयी थी। दरअसल 2015 में तो भूकम्प आने के कारण कई पर्वतारोही आधार शिविर में ही काल के ग्रास बन गये।

एवरेस्ट के बारे में दिलचस्प बातें

माउंट एवरेस्ट पर चढऩे और वहाँ की ऊँचाई और तापमान को समझने और उससे तालमेल बैठाने में पर्वतारोहियों को करीब 40 दिन लग जाते हैं। वहाँ हवा की रफ्तार 321 किमी/घंटा तक पहुँच जाती है। वहाँ तापमान शून्य से 80 डिग्री फारेनहाइट नीचे चला जाता है। वैज्ञानिक शोधों से यह माना जाता है कि यह पर्वत हर साल चार मिलीमीटर बढ़ जाता है। यूइचिरो मियूरा दुनिया के चढऩे वाले सबसे ज़्यादा उम्र के व्यक्ति हैं। वे जब एवरेस्ट पर पहुँचे, उनकी उम्र 80 साल थी; जबकि जॉर्डन रोमेरो माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले सबसे छोटी उम्र के व्यक्ति हैं। वे 13 साल की आयु में एवरेस्ट पर चढ़े थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि एवरेस्ट पर भी चोरी होती है। जी हाँ, दुनिया की सबसे ऊँची चोटी पर चढ़ाई करने वाले कई विदेशी पर्वतारोही ऑक्सीजन सिलेंडर की चोरी की शिकायत कर चुके हैं।

क्या हिमालय पर हिममानव है?

हिम मानव यानी येती। जब भी हिमालय की बात होती है, तो येती का ज़िक्र भी होता है। भारतीय सेना ने कुछ महीने पहले कुछ तस्वीरें ट्वीट की थीं, जिनमें बर्फ पर विशालकाय पैरों जैसे निशान दिख रहे थे। आकार में यह निशाँ 32&15 इंच तक के थे। इसके बाद एक बार फिर हिमालय में हिममानव की मौज़ूदगी को लेकर चर्चा शुरू हो गयी। दुनिया में जब भी रहस्यमय प्राणियों की बात होती है, तो येति का ज़िक्र ज़रूर होता है। वैसे येति की कहानी है बड़ी पुरानी। कई बार येति को देखे जाने के दावे किये गये हैं। लद्दाख के बौद्ध मठों ने भी एक दावा किया था कि उन्होंने यह हिममानव देखा है। वैसे शोधकर्ता येति को मानव नहीं मानते। उनके मुताबिक, यह दरअसल ध्रुवीय और भूरे भालू की क्रॉस ब्रीड है। कुछ वैज्ञानिकों के मत के अनुसार, येती एक विशालकाय जीव है, जिसकी सूरत बंदरों जैसी है। लेकिन वह इंसानों की तरह ही दो पैरों से चलता है। आधुनिक समय में सबसे पहले 1921 में हिममानव को देखने का दावा किया गया था। हेनरी न्यूमैन नामक एक पत्रकार से ब्रिटेन के खोजकर्ताओं के एक दल ने इंटरव्यू के दौरान दावा किया था कि उनको पहाड़ पर पैरों के विशालकाय निशान देखे थे। तबसे अब तक येती को लेकर दर्जनों शोध हुए हैं; लेकिन कुछ साफ नहीं हो पाया है।

एवरेस्ट के कचरे से पदार्थ

नेपाल में एक संस्था अब एवरेस्ट के कचरे से बाज़ार में बिकने वाले पदार्थ बनाने लगी है। यह संस्था ब्लू वेस्ट टू वैल्यू नेपाल है। यह पुनर्चक्रमण संगठन एवरेस्ट पर व्यावसायिक पर्वतारोहण से एकत्र होने वाले कचरे, जिसमें खाली केन, एल्युमिनियम, गैस कनस्तर, बोतलें, प्लास्टिक और अन्य सामग्री शामिल है; को रिसाइकल कर गुलदस्ते, लैंप और ग्लास जैसी चीज़ें बना रही है। नेपाल की राजधानी काठमांडू में तो लोग कचरे के रिसाइकल से बनी चीज़ोंं का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं। पर्यावरणविद् भी कचरे के रिसाइकल से बने पदार्थों को पर्यावरण के लिए शुभ संकेत मानते हैं और उनका कहना है कि यह रोज़गार की दृष्टि से भी लाभकारी है।

24 बार एवेरेस्ट फतह

नेपाल के पर्वतारोही कामी रीता शेरपा 24 बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर चुके हैं और यह एक विश्व रिकॉर्ड है। साल 2019 में वे दो बार एवरेस्ट पर चढ़े। वे 25 बार दुनिया की इस सबसे ऊँची चोटी को फतह का विश्व रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। कामी रीता ने साल 1994 में पहली बार एवेरेस्ट की चढ़ाई की थी और उस समय वे 24 साल के ही थे। वह कमोवेश हर साल एवरेस्ट की चढ़ाई करते हैं। साल 2019 में उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके विश्व की सर्वोच्च चोटी पर पहुँचने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा था। नेपाल में सोलुखुंबु ज़िले के थमे गाँव के रहने वाले कामी रीता 2017 में 21वीं बार माउंट एवरेस्ट पर चढऩे वाले तीसरे व्यक्ति बन गये थे। उनसे पहले यह कारनामा अपा शेरपा और फुरबा ताशी शेरपा ने ही किया था।

क्या कहती है जीसीबी में छपी स्टडी रिपोर्ट

ग्लोबल चेंज बायोलॉजी (जीसीबी) जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट ब्रिटेन की एक्सटर विश्वविद्यालय के अध्ययन पर आधारित है, जिसमें एवरेस्ट पर घास और झाडिय़ों के तेज़ी से बढऩे की जानकारी सामने आयी है। एवरेस्ट की कुल ऊँचाई को चार हिस्सों में बाँटकर यह अध्ययन किया गया है। इसके मुताबिक सबसे ज़्यादा घास/वनस्पति/झाडिय़ाँ 16 से 18 हज़ार की ऊँचाई वाले हिस्से में बढ़ रही हैं, जबकि तीन अन्य हिस्सों में यह बढ़ती देखी गयी हैं। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की हालत यह है कि पिछले चार दशक में लगभग एक-चौथाई से ज़्यादा बर्फ वहाँ पिघल चुकी है। वहाँ घास बढऩे का सबसे कारण बढ़ते तापमान को माना गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसके व्यापक नुकसान के बारे में अभी बताना मुश्किल है; लेकिन बर्फ और पेड़ों के बीच उगने वाली घास हिन्दू-कुश हिमालय क्षेत्र में बाढ़ के आसार बना सकती है। वैसे ग्लेशियर से होने वाली पानी की पूर्ति उतनी ज़्यादा नहीं है; लेकिन बाढ़ पहले से खराब स्थिति को और भयावह कर सकती है। जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक हिमालय में कुछ इलाके हैं, जहाँ पहले किसी भी प्रकार की वनस्पति नहीं उगती थी और सालभर वहाँ बर्फ रहती थी। लेकिन अध्ययन बताता है कि इन स्थानों पर पानी की ज़्यादा आवक होने लगी है, जिससे वनस्पतियाँ पनपने लगी हैं। शोधकर्ता केरेन एंडरसन के मुताबिक, वहाँ पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। वह कहती हैं कि हिमालय के ग्लेशियर पिघलने की दर 2000 से 2016 के बीच दोगुनी हो चुकी है। वे चिन्ता ज़ाहिर करते हुए कहती हैं कि पर्वतों पर बर्फ को हो रहे नुकसान को समझना और उस पर नज़र रखना बहुत ज़रूरी है। उनके मुताबिक छोटे पौधे जिस गति से हिमालय के बर्फबारी वाले हिस्से को घेर रहे हैं, उसे बुरी खबर के रूप में देखना चाहिए। वह कहती हैं कि पौधों पर जमी बर्फ तेज़ी से पिघलने का सीधा अर्थ है बाढ़ का खतरा बढऩा। एवरेस्ट से एशिया की 10 बड़ी नदियों की उत्पत्ति होती है और करीब डेढ़ अरब लोगों की प्यास बुझाती हैं। नासा के लैंडसेट सैटेलाइट से 1993 से 2018 के बीच ली गयी तस्वीरों की मदद से ब्रिटेन की एक्सेटर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जो रिसर्च की उसके मुताबिक समुद्र के स्तर से 6000 मीटर तक की ऊँचाई पर घास उग रही है। मुख्य पहाड़ों पर बर्फ गायब हो रही है। भले यह बहुत बड़ा इलाका है, फिर भी इस पर नज़र रखी जानी चाहिए। नये पौधों के लिए 20 हज़ार फीट की ऊँचाई पर उगना सम्भव नहीं होता। कारण यह है कि इस ऊँचाई पर बर्फ के कारण पौधे उग नहीं पाते। गर्म होते इलाकों में से यह इलाका दुनिया में सबसे तेज़ी से गर्म हो रहे क्षेत्रों में से एक हैं। सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात ग्लेशियरों का पिघलना है। नासा की तस्वीरों में भी यह दृष्टिगोचर होता है। इन तस्वीरों में नीले रंग से 1993 की स्थिति बतायी गयी है, जबकि 2017 की तस्वीरों में वहाँ लाल रंग यह बताता है कि वहाँ घास कितनी तेज़ी से बढ़ गयी है। वैज्ञानिकों ने बर्फबारी के दौरान वहाँ उगने वाली घास और छोटी झाडिय़ों की तस्वीरें ली हैं।

एवरेस्ट पर वनस्पति बढऩे का क्षेत्र 5000 और 5500 मीटर की ऊँचाई के बीच देखा गया है। अधिक ऊँचाई पर, चपटे क्षेत्रों में विस्तार अधिक था, जबकि निचले स्तरों पर यह ढलान वाले जगहों पर अधिक था। बड़ा सवाल ये है कि इलाके में जल विज्ञान (जल के गुणों) के लिए वनस्पति में इस बदलाव का क्या अर्थ है? क्या इससे ग्लेशियर और बर्फ की चादरों के पिघलने की गति थमेगी या फिर इस प्रक्रिया में तेज़ी आएगी? हिन्दू कुश हिमालयी क्षेत्र पूर्व में म्यांमार से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक आठ देशों में फैला हुआ है। इस क्षेत्र के 140 करोड़ से अधिक लोग पानी के लिए इस पर निर्भर हैं, हल्के परिवर्तन हलके में नहीं लिए जा सकते।

करेन एंडरसन और डोमिनिक फॉसेट शोधकर्ता

पर्वतारोहण रोक देना चाहिए

एवरेस्ट पर बढ़ रहा दबाव बहुत चिन्ता पैदा करने वाला है। वहाँ कचरा तो जमा हो ही रहा है, लोगों की संख्या भी बढ़ रही है, जो अच्छी बात नहीं। वहाँ जमा हो रहे मलबे और इसके नुकसान पर हमने जो अध्ययन किया है, उसके संकेत विकट चिन्ता पैदा करने वाले हैं। एवरेस्ट पर करीब 11 लाख लीटर मानव मूत्र ही जमा हो चुका है। इसके अलावा पॉलिथीन, प्लास्टिक के अन्य अवशेष, खाने के पैकेट और खाली बोतलें और यहाँ तक की शव जिस तरह जमा हो रहे हैं, वे एवरेस्ट के लिए बहुत खतरनाक हैं। हेलीकॉप्टर के कचरे की भी कोई सीमा नहीं। हमारी माँग है कि जब तक एवरेस्ट को कचरा रहित नहीं बना लिया जाता, वहाँ पर्वतारोहण की गतिविधियों को रोक देना चाहिए। विकल्प के तौर पर पर्वतारोहण के लिए नयी चोटियों को तलाश किया जाना चाहिए। एवरेस्ट पर युद्ध स्तर पर सफाई अभियान की ज़रूरत है, अन्यथा इसे खत्म होने से कोई नहीं बचा पाएगा और इसकी सबसे बड़ी कीमत हम इंसानों को ही भुगतनी पड़ेगी।

जुको तापेई, जापान

एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली महिला

नेपाल सरकार की योजना

नेपाल सरकार अब एवरेस्ट और इसकी अन्य चोटियों पर जमा कचरे को बड़े पैमाने पर हटाने की योजना बना रही है। इस योजना में नेपाल सरकार सेना की भी मदद लेगी। पिछले साल जून में भी नेपाल सरकार ने एक अभियान चलाया था; लेकिन उसमें सेना की मदद नहीं ली गयी थी।

नेपाल सरकार ने महत्त्वाकांक्षी सफाई अभियान के लिए जो योजना बनायी है, उसमें करीब 35,000 किलो कचरा साफ करने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे तो दुनिया के इस सबसे ऊँचे पर्वत पर हज़ारों टन कचरा जमा हो चुका है, लेकिन इस अभियान से इसे कम करने में काफी मदद मिलेगी। सरकार की योजना के मुताबिक, इस सारे अभियान पर करीब 860 मिलियन नेपाली रुपये यानी 86 करोड़ नेपाली रुपये और करीब 53.93 करोड़ से कुछ ज़्यादा भारतीय रुपये का खर्च आएगा। नेपाली सेना भी इस अभियान की तैयारी कर रही है। इस बार सफाई का अभियान एवरेस्ट के ऊँचाई वाले क्षेत्र में चलाया जाना है। लिहाज़ा इसे लेकर पर्वतारोही और पर्यावरणविद् दोनों उत्साहित हैं।

पहले यह सफाई अभियान कुछ निचले क्षेत्र में चलाया जाता रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि ऊँचाई वाला क्षेत्र बहुत कठिन है और वहाँ विशेषज्ञ (अभयस्त शेरपा) ही जा सकते हैं। वैसे भी एवरेस्ट का अधिकतर हिस्सा बहुत मुश्किल है और वहाँ चढ़ाई करना तो मुश्किल है ही, सफाई करना और भी मुश्किल है। सम्भावना है कि इस सफाई अभियान में सेना हेलीकॉप्टर की भी मदद ले, हालाँकि बर्फ वाले क्षेत्र में हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल मुश्किल कार्य होता है। सेना के दक्ष लोगों को इस कार्य में शामिल किया गया है।

तहलका संवाददाता की जानकारी के मुताबिक, यह सफाई अभियान अप्रैल के आिखर में शुरू हो जाएगा। इसे अभी तक की योजना के मुताबिक, 5 जून तक चलाये जाने की योजना बनायी गयी है। वैसे पहले भी सेना को ऐसे अभियान में शामिल किया जाता रहा है, लेकिन इस बार इसे बड़े पैमाने पर जोड़ा जा रहा है और सफाई का क्षेत्र भी काफी ऊँचाई वाला होगा। एवरेस्ट की मुख्य छोटी के मार्गों के अलावा इस सफाई अभियान में इस पर्वत की कुछ अन्य चोटियों को भी शामिल किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे किसी हद तक एवरेस्ट पर कचरे को काम करने में मदद मिलेगी।

एवरेस्ट पर रिकॉर्ड 24 बार और पिछले साल कुछ ही समय के अंतराल में दो बार एवरेस्ट छोटी फतह करने वाले नेपाल के कामी रीता शेरपा का मानना है कि सरकार की यह योजना अच्छी तो है; लेकिन इस काम में अनुभवी लोगों को ही लगाया जाना चाहिए। वे हमेशा कहते रहे हैं कि सरकार जिन शेरपाओं को यह ज़िम्मेदारी देती है, उनके पास ऊँचाई पर चढऩे और सफाई का ज़रूरी अनुभव नहीं है।

कामी यह भी कहते रहे हैं कि सरकार को इस काम के लिए अनुभवी शेरपा गाइड और कुली की टीम गठित करनी चाहिए; क्योंकि उनसे बेहतर यह काम और कोई नहीं कर सकता। वे इन लोगों को उचित राशि भी दिये जाने के हक में हैं; क्योंकि उनके मुताबिक यह बहुत मेहनत ही नहीं, जोखिम वाला भी काम है। सरकार एवरेस्ट जाने वाले पर्वतारोहियों पर ऐसे प्लास्टिक, जो एकल इस्तेमाल वाला हो। पर लगे प्रतिबन्ध को और कड़ाई से लागू करने पर भी विचार कर रही है। प्रोत्साहन योजना के अलावा इसे नियमावली में जोडऩे पर भी विचार किया जा रहा है।

एवरेस्ट के रास्ते में उन पर्वतारोहियों के शव भी इकट्ठे होते रहे हैं, जिनकी अभियानों के दौरान मौत हो जाती है। यहाँ यह बताना भी दिलचस्प है कि एवरेस्ट का जैसा तापमान है, वहाँ 98 साल तक शव नहीं सड़ता। एवरेस्ट के मार्ग में बाकायदा एक डेथ जोन चिह्नित किया गया है, जो 8000 मीटर ऊँचाई तक का है। यह भी तथ्य है कि चोटी पर जाने वाले प्रत्येक 10 पर्वतारोहियों में से एक मुख्य आधार शिविर पर नहीं लौट पाता, जिससे इस पर्वत पर पर्वतारोहण के खतरे को समझा जा सकता है।

एवरेस्ट पर चढऩे के एक से ज़्यादा रूट हैं। चढ़ाई के मुख्य रास्ते पर स्थित एक ऊँची खड़ी चट्टान 2015 में नेपाल क्षेत्र में आये भूकम्प के दौरान ढह गयी थी। इससे यह रास्ता ज़्यादा खतरनाक हो गया है। साल 1953 में जब सबसे पहले सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने एवरेस्ट पर कदम रखा था; लिहाज़ा उसके बाद इस चट्टान को हिलेरी स्टेप नाम से जाना जाना गया है। यह चट्टान दक्षिणपूर्वी चोटी के पास स्थित थी और इसकी ऊँचाई करीब 12 मीटर थी। इसे पर्वतारोहियों के लिए एक बहुत मुश्किल पड़ाव माना जाता है। कहते हैं इस चट्टान के ढहने के बाद इस रूट में कुछ परिवर्तन देखा गया है, जिससे वे पहले जा चुके पर्वतारोहियों के लिए भी नया अनुभव है। इसके ढहने से खड़ी चढ़ाई को खत्म हो गयी; लेकिन उतरने के लिए सीधी ढलान बन गयी है, जिससे यह जोखिम वाली हो गयी है।

एवरेस्ट पर जाने के जितने भी रास्ते हैं, उन सभी पर कचरा है। बहुत लोग के-2 पर नहीं जाते और कम ऊँचाई वाली चोटियों पर ही जाते हैं। लिहाज़ा इन चोटियों के कमोवेश प्रत्येक हिस्से में कचरा जमा हुआ है।  एवरेस्ट की बुरी हालत के लिए लोगों का लालच भी ज़िम्मेदार है। साल 2007 में चीन ने ओलंपिक आयोजन को भव्य बनाने की अपनी ज़िद के चलते एवरेस्ट के आधार शिविर तक 17,060 फीट की ऊँचाई पर बाकायदा एक पक्की सड़क का निर्माण कर दिया था। वैसे वहाँ पहले कच्ची पगडंडीनुमा सड़क थी, जिस पर ट्रैकिंग कर पर्वतारोही आधार शिविर तक पहुँचते थे। यही नहीं, कहा जाता है कि चीन की नेपाल को सड़क और रेल से जोडऩे के लिए एवरेस्ट के भीतर से एक ट्रैक बनाने की योजना है। वह पहले ही ल्हासा (तिब्बत) तक दुनिया का सबसे ऊँचा रेल मार्ग बना चुका है। इस तरह चीन की यह महत्त्वाकांक्षा बहुत से लोगों को खटक रही है; क्योंकि वे मानते हैं कि एवरेस्ट किसी एक देश की बपौती नहीं है और यह दुनिया को प्रकृति की देन है।

हिमालय को कचरे के बोझ के अलावा चीन आदि की इस महत्त्कांक्षा का भी बड़ा खतरा है। एवरेस्ट को कच्ची पर्वत शृंखला और उसकी पारिस्थितिकी को बहुत नाज़ुक माना जाता है। ऐसे में दुनिया की सबसे ऊँची चोटी की तलहटी में इस तरह का निर्माण हिमालय के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। इंसानी लालच के चलते पहले से ही हिमालय के ग्लेशियर सिमट रहे हैं और पहाड़ दरक रहे हैं। लिहाज़ा चीन की यह कोशिश बहुत खतरनाक ही कही जाएगी। इस खतरे को तभी टाला जा सकता है, यदि सरकारें और पर्यावरणविद्, संगठन एकजुट होते हैं।

शुचिता और राजनीति

दागी राजनेताओं के खिलाफ जनमत बनाने में ‘तहलका’ ने हमेशा अग्रणी भूमिका निभायी है। हमने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उन उम्मीदवारों की सच्चाई को हमेशा उजागर किया है, जिन्हें हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में, या 2019 के लोकसभा चुनाव में या 2009 और 2014 के लोक सभा चुनावों में रेप, हत्या, हत्या के प्रयास और अपहरण जैसे गम्भीर आपराधिक मामलों में आरोपी बनाया गया है। इसे लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स और नेशनल इलेक्शन वॉच की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 के लोकसभा चुनाव लडऩे वाले 7,928 उम्मीदवारों में से 1500 (19 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। चिन्ता की बात यह है कि यह चीज़ें चुनाव-दर-चुनाव जारी हैं।

साल 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान विश्लेषण वाले 8,205 उम्मीदवारों में से 1404 (17 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। इसी तरह, 2009 में लोकसभा चुनाव के दौरान विश्लेषण वाले 7810 उम्मीदवारों में से 1158 (15 फीसदी) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किये थे। ध्यान रहे कि ये आपराधिक मामले बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध आदि से सम्बन्धित मामलों सहित बहुत गम्भीर मामले हैं। यह खतरनाक रुझान है। इतना ही नहीं, बढ़ती धन शक्ति का इस्तेमाल एक और खतरनाक तथ्य है, जो चुनावों के दौरान देखा जा सकता है। लोकसभा चुनाव 2019 में हरेक उम्मीदवार के पास औसत सम्पत्ति 4.14 करोड़ रुपये थी।

गौरतलब है कि सितंबर, 2018 में पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि चुनाव लडऩे से पहले सभी उम्मीदवारों को चुनाव आयोग के सामने अपना आपराधिक रिकॉर्ड घोषित करना होगा। इसके बाद 10 अक्टूबर, 2018 को चुनाव आयोग ने संशोधित फॉर्म -26 के बारे में अधिसूचना जारी की और सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को अपनी आपराधिक पृष्ठभूमि प्रकाशित करने का निर्देश दिया। हालाँकि, इसने राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में ज़्यादा मदद नहीं की है। अब जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट की पीठ ने चुनाव आयोग को एक हफ्ते के भीतर एक ऐसी रूपरेखा तैयार करने को कहा है, जो राजनीतिक अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में मदद कर सकती हो। कोर्ट ने अधिवक्ता-याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय और चुनाव आयोग को एक साथ बैठने और उन सुझावों पर मंथन करने को कहा है, जो राजनीति में अपराधीकरण पर अंकुश लगाने में मदद कर सकते हों। चुनावी प्रणाली को स्वच्छ करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के िखलाफ लम्बित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी-अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अखबारों में अपलोड करने और साथ ही साफ-सुथरे लोगों की जगह दागी लोगों को उम्मीदवार बनाने के पीछे कारणों का उल्लेख करने का निर्देश दिया है। अब वक्त आ गया है कि राजनीतिक दलों को अहसास हो कि जीतना नैतिकता का विकल्प नहीं हो सकता है। राजनेताओं के िखलाफ मामलों का तेज़ी से निपटारा भी अपराधियों को राजनीति में आने से रोक सकता है। यह चुनाव आयोग का ज़िम्मा है कि वह सर्वोच्च अदालत का आदेश लागू करने में विफल पार्टियों और उम्मीदवारों पर कड़ी नज़र रखे और उन्हें कोर्ट की अवमानना का ज़िम्मेदार माने।

भाजपा को मिला सबसे ज़्यादा चुनावी चंदा

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के 5 और 6 फरवरी को जारी किये गये विश्लेषण के अनुसार, चुनावी चंदा हासिल करने के मामले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस दूसरे नम्बर पर रही। उसे इस पिछले वित्त वर्ष के दौरान 43 करोड़ रुपये या सभी राजनीतिक दलों को मिले चंदे का 17.09 फीसदी था।

दोनों प्रमुख पार्टियों के अलावा अन्य 12 दलों को कुल मिलाकर 108.30 करोड़ रुपये चंदे के तौर पर मिले। प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने वित्तीय वर्ष 2017-18 में 154.30 करोड़ रुपये, 2018-19 के दौरान भाजपा को 67.25 करोड़ रुपये का चंदा दिया। एबी जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट ने अपनी कुल आय में से 28 करोड़ रुपये भाजपा को दान किया। जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट ने भाजपा को 2.5 करोड़ रुपये का राजनीतिक चंदा दिया।

प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 11 राजनीतिक दलों (जिनमें भाजपा, कांग्रेस, राकांपा, आप, बीजद और वाईएसआर-सी जैसे प्रमुख दल शामिल हैं) को चंदा दिया, जबकि इससे पहले 2017-18 के दौरान सिर्फ तीन राजनीतिक दलों को ही पैसे दिये थे। एबी जनरल, समाज और प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट से सभी दलों को प्राप्त कुल दान में से कांग्रेस पार्टी को 43 करोड़ रुपये या 17.09 फीसदी हिस्सा मिला।

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चुनावी ट्रस्टों के दान किये जाने वाले चंदे को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये थे। इसमें किसी भी पार्टी को दिये जाने वाले चंदे के बारे में पूरी जानकारी देने के साथ ही पूरी पारदर्शिता बरते जाने के निर्देश थे। सबसे पहले ये दिशा-निर्देश 7 इलेक्टोरल ट्रस्टों को जारी किये गये थे, जिनमें सत्य-इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रतिनिधि इलेक्टोरल ट्रस्ट, पीपुल्स इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट, जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट, बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट और जनजागृति इलेक्टोरल ट्रस्ट शामिल थे। इसके बाद, इन दिशा-निर्देशों को ईसीआई ने सभी चुनावी ट्रस्टों पर लागू किया। सीबीडीटी में पंजीकृत 21 इलेक्टोरल ट्रस्टों में से 15 ने 2018-19 के दौरान राजनीतिक पार्टियों को दिए चंदे का विवरण ईसीआई को दिया है, इनमें से सिर्फ 5 ने यह घोषणा की है कि इस दौरान उन्होंने चंदा हासिल किया है। इलेक्टोरल ट्रस्ट्स स्कीम, 2013 के क्लॉज 5 (ओ) के अनुसार, एक पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्ट को दी गयी मंज़ूरी उस वित्तीय वर्ष के लिए वैध है, जो आकलन वर्ष के लिए मान्य होगी। इसमें एक और वर्ष की अवधि, जो कि लगातार तीन वर्षों से अधिक न हो; के लिए मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होती है। 11 इलेक्टोरल ट्रस्ट्स ने ट्रस्टों के नवीनीकरण के लिए सीबीडीटी में आवेदन किया।

रिपोर्ट के आधार पर पता चलता है कि 21 पंजीकृत चुनावी ट्रस्टों में से 15 ट्रस्ट अपने पंजीकरण के बाद से लगातार चुनाव आयोग को चंदा देने वाली रिपोर्ट की प्रतियाँ प्रदान कर रहे हैं। सत्या / प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट ही दो ऐसे ट्रस्ट हैं, जिन्होंने वित्तीय वर्ष 2013-14 से 2018-19 तक हर साल अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की है। 8 ऐसे पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्ट ऐसे हैं, जिन्होंने किसी भी तरह के चंदा देने या लेने के बारे में खुलासा नहीं किया है।

डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के एसोसिएशन ने ईसीआई से आरटीआई के ज़रिये यह जानना चाहा था कि इलेक्टोरल ट्रस्टों द्वारा मिलने वाले चंदे का हिसाब-किताब प्रदान किया जाए। इस पर ईसीआई ने 2 दिसंबर, 2019 को जवाब दिया कि सीबीडीटी के साथ कुल 21 इलेक्टोरल ट्रस्ट पंजीकृत हैं। 4 इलेक्टोरल ट्रस्ट्स-बजाज इलेक्टोरल ट्रस्ट, गौरी वेलफेयर एसोसिएशन इलेक्टोरल ट्रस्ट, प्रतिनिधि इलेक्टोरल ट्रस्ट और भारतीय समाजवादी रिपब्लिकन इलेक्टोरल ट्रस्ट एसोसिएशन के पंजीकरण का नवीनीकरण नहीं किया गया था, जिनमें से 15 ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इनमें से केवल 5 ट्रस्टों ने ही विभिन्न कॉर्पोरेट घरानों और लोगों से मिली रकम के बारे में जानकारी दी थी।

केंद्र सरकार के तय नियमों के अनुसार, इलेक्टोरल ट्रस्ट को वित्तीय वर्ष के दौरान प्राप्त कुल अंशदान का कम-से-कम 95 फीसदी वितरित किया जाना ज़रूरी है, जबकि अधिशेष वित्तीय वर्ष से 31 मार्च से पहले योग्य राजनीतिक दलों को देना होता है। वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान जिन 5 चुनावी ट्रस्टों ने, जिन्होंने चंदा पाने के बारे में जानकारी दी है; इसमें बताया गया कि किन-किन कॉर्पोरेट्स और व्यक्तियों से कुल 252.0065 करोड़ रुपये मिले और किन-किन राजनीतिक दलों को 251.554 करोड़ रुपये (99.82 फीसदी) वितरित किये हैं।

जीएमआर हैदराबाद इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड ने चुनावी ट्रस्टों को दान देने वालों में सबसे ज़्यादा 25 करोड़ रुपये दिये। इसके बाद अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड ने 23 करोड़ रुपये और भारती एयरटेल लिमिटेड ने विभिन्न ट्रस्टों को 21.17 करोड़ रुपये दिये। केवल दो व्यक्तियों सुष्मिता कचोलिया (प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 50 लाख रुपये) और आशीष कचोलिया (प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट को 11 लाख रुपये) ने 2018-19 में चुनावी ट्रस्टों में योगदान दिया है। शीर्ष 10 दानदाताओं ने चुनावी ट्रस्टों को 161.42 करोड़ रुपये दिये जो 2018-19 के दौरान ट्रस्टों को मिले कुल चंदे का 64 फीसदी है।

एडीआर के विश्लेषण के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा चुनावी ट्रस्टों में दान देने वालों को लेकर पारदर्शिता लाने को नियम लागू किये। 6 इलेक्टोरल ट्रस्ट ने राष्ट्रीय दलों को 2004-05 से लेकर 2011-12 तक 105 करोड़ रुपये का चंदा दिया था। इलेक्टोरल ट्रस्ट ने 2014-15 के दौरान 7 राजनीतिक दलों को 131.65 करोड़ रुपये दिये। बता दें कि इससे पहले ऐसा नियम नहीं था, जिससे इन्हें चंदा देने वालों का खुलासा किया जाए। ये 6 इलेक्टोरल ट्रस्ट- जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, इलेक्टोरल ट्रस्ट, हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट, कॉर्पोरेट इलेक्टोरल ट्रस्ट, भारती इलेक्टोरल ट्रस्ट और सत्य-इलेक्टोरल ट्रस्ट ने पारदर्शिता नियमों का पालन करना ज़रूरी नहीं है; साथ ही चंदा देने वालों के नामों की घोषणा भी अनिवार्य नहीं है, यानी इनको एक तरह से छूट मिली हुई है।

2018-19 के लिए अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले 15 चुनावी ट्रस्टों में से केवल 10 यानी 66.67 फीसदी ने घोषणा की कि उन्हें इस दौरान उन्होंने एक भी पैसा हासिल नहीं किया। 2013-14 और 2018-19 के बीच 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों ने घोषणा की है कि उन्हें अपने पंजीकरण के वर्ष के बाद से कोई दान नहीं मिला है; जबकि 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों ने पंजीकृत होने के बाद से केवल एक बार योगदान प्राप्त करने का ऐलान किया है। ऐसे में यह सवाल उठाता है कि चुनावी ट्रस्टों के पंजीकरण के बाद भी उनको मिलने वाला पैसा और योगदान न होने के बाद भी कैसे इन इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट का पंजीकरण आगे जारी रहता है।

21 पंजीकृत इलेक्टोरल ट्रस्टों में से 6 ने 2018-19 के दौरान की अपनी सालाना रिपोर्ट ईसीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं करायी है। इन ट्रस्टों में ट्रायम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट, हार्मनी इलेक्टोरल ट्रस्ट, कल्याण ई.टी., जनशक्ति ई.टी., प्रोग्रेसिव ई.टी. और छोटे दान ई.टी शामिल हैं। कल्याण इलेक्टोरल ट्रस्ट के सितंबर, 2016 में पंजीकरण के बाद से किसी भी तरह के चंदा लेने या देने की कोई जानकारी ईसीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं करायी। 6 इलेक्टोरल ट्रस्टों को दानदाताओं का विवरण अज्ञात रहता है, जिनके बारे में यह भी कहा जाता है कि ये ट्रस्ट सिर्फ दान छूट हासिल करने के लिए साधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा देश में टैक्स से बचने के लिए काले धन को सफेद करने का यह एक तरीका भी हो सकता है।

एडीआर ने माँग की है कि सीबीडीटी नियमों के अस्तित्व में आने से पहले जो चुनावी ट्रस्ट बने हैं, उनके दानदाताओं के विवरण का भी खुलासा किया जाना चाहिए। साथ ही, उन पर भी वही नियम लगाये जाने चाहिए, जो 31 जनवरी, 2013 के बाद गठित ट्रस्टों पर लागू होते हैं। इससे सभी ट्रस्टों पर भी लागू करने से बेहतर पारदर्शिता होगी।

इलेक्टोरल ट्रस्ट स्कीम के क्लॉज 8 (1) में अनुमोदन को वापस लेने की प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि सीबीडीटी इस योजना के तहत दी गयी छूट वापस ले सकता है- अगर इससे संतुष्ट हो कि चुनावी ट्रस्ट अपनी गतिविधियों को बन्द कर चुका है या उसकी गतिविधियाँ जारी नहीं या योजना के तहत रखी गयी सभी शर्तों का पालन नहीं किया जा रहा।

इस प्रकार 3 इलेक्टोरल ट्रस्ट (स्वदेशी, जय हिन्द और पीपुल्स इलेक्टोरल ट्रस्ट) की मंज़ूरी, जिनके पंजीकरण के बाद कभी कोई चंदा नहीं मिला, उन्हें समाप्त कर दिया जाना चाहिए। वर्तमान में इलेक्टोरल ट्रस्ट्स कम्पनी / कम्पनी के समूह के नाम नहीं बताते हैं, जो ट्रस्ट की स्थापना करते हैं। राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले कॉरपोरेट्स के विवरण के बारे में अधिक पारदर्शिता रखने के लिए, चुनावी ट्रस्ट के नाम पर मूल कम्पनी का नाम शामिल किया जाना चाहिए। एडीआर का सुझाव है कि उन इलेक्टोरल ट्रस्टों, जिन्होंने ईसीआई द्वारा प्रसारित दिशा-निर्देशों का जवाब नहीं दिया है साथ ही उनका पालन न कर रहे हों, तो उन्हें ईसीआई द्वारा ट्रस्टों को जारी अधिसूचना में दर्शाया जाना चाहिए।

इसी तरह, सभी कॉरपोरेट्स को राजनीति में पारदर्शिता के लिए अपनी वेबसाइटों के माध्यम से और अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अपने पार्टियों के दिये गये चंदे का विवरण सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध कराना चाहिए।

हार्ट पेसमेकर लगते ही लौटी ‘खुशी’

आपने अभी तक इंसानों में बीमारियों को लेकर अलग-अलग तरह की सर्जरी की बातें तो सुनी होंगी और कई कामयाब और सफलता की कहानियाँ भी पढ़ी होंगी। हो सकता है सर्जरी को लेकर बहुत से लोगों ने डर का भी अनुभव किया हो। लेकिन क्या कभी सोचा है कि जिस तरह से इंसानों के दिल की सर्जरी की जाती है, वैसे ही बेज़ुबान जानवरों की भी सम्भव है। अगर ऐसा होता भी है, तो उन पर क्या गुज़र रही होगी या वे कैसा अनुभव करते होंगे, इस बारे में सोचा है? यह बात आपको सोचने को मजबूर कर सकती है। पिछले दिनों जब एक डॉग पर पशु-हृदय रोग विशेषज्ञों ने पेसमेकर लगाया। भारतीय इतिहास में चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी का यह एक नया इतिहास बना है, क्योंकि देश में पहली बार किसी बेज़ुबान के हृदय की पेसमेकर प्रत्यारोपण की सफल सर्जरी हुई है। इससे पहले देश में किसी कुत्ते पर ऐसी सर्जरी नहीं की गई थी। इसे पशु चिकित्सा के क्षेत्र में एक अहम कदम माना जा रहा है। नई दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित मैक्स वेट्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में गत 15 दिसंबर को यह सफल सर्जरी की गयी।

सर्जरी से पहले डॉक्टर भानु देव शर्मा और डॉक्टर कुणाल देव शर्मा ने अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ इस पर विमर्श किया था। इसके बाद पेसमेकर सर्जरी की योजना बनायी गयी। साढ़े सात साल की खुशी (फीमेल डॉग) का ऑपरेशन 15 दिसंबर को किया गया था। कॉकर स्पैनियल की सफल पेसमेकर सर्जरी में करीब डेढ़ घंटे का समय लगा था। खुशी के मालिक और पशु प्रेमी गुरुग्राम के मनु इस सर्जरी से खासे प्रभावित हैं।

खुशी की तबीयत खराब होने के बाद उसे अस्पताल लाया गया था तो इलाज के दौरान पता चला कि उसका दिल 20 बीट्स प्रति सेकंड की दर से धड़क रहा है। सामान्य तौर पर यह गति 60-120 बीट्स प्रति सेकंड होनी चाहिए। पशुओं के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. भानु देव शर्मा के मुताबिक, खुशी एकदम सुस्त थी। दिल की धड़कनें कम होने से उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। करीब 10 महीने पहले उसके एक कान का ऑपरेशन हुआ था, जिससे वह डॉक्टरों से डरी हुई थी। उसके दिल में ब्लॉक हो गए थे। इससे दिल में खून की आपूर्ति प्रभावित हो रही थी। इससे वह बेहोश हो जा रही थी। ईसीजी से उसके हार्ट के पूरी तरह से ब्लॉक होने का पता चला। अब सर्जरी के बाद उसे नई जिंदगी मिल गई है। बकौल मनु, अब ऐसा लगता है कि जैसे वह अपने बचपन में फिर से वापस आ गई है।

क्या होती है पेसमेकर सर्जरी?

दिल की धड़कन को नियंत्रित रखने के लिए के लिए पेसमेकर (कृत्रिम पेसमेकर) एक चिकित्सा उपकरण है, जो दिल की मांसपेशियों से सम्पर्क करने के लिए इलेक्ट्रोड द्वारा प्रदत्त विद्युत आवेगों का उपयोग करता है। आधुनिक पेसमेकर बाहरी रूप से प्रोग्राम योग्य होते हैं और अलग-अलग मरीज़ों के हिसा बसे पेसिंग मोड का चयन हृदय रोग विशेषज्ञ तमाम जाँच पड़ताल के हिसाब से तय करते हैं।

1967 में हुआ था पहला

हृदय प्रत्यारोपण

दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन के अस्पताल में 3 दिसंबर 1967 को ग्रूट अस्पताल में इंसान में सर्जरी के ज़रिये हृदय प्रत्यारोपण करके इतिहास रचा गया था। प्रोफेसर क्रिस्टियन नीथलिंग बर्नार्ड की नज़रें ऑपरेशन थियेटर में डेनिस डारवैल के दिल की धड़कनों पर टिकी थीं। देखते-ही-देखते डारवैल के दिल की धड़कन सामान्य हो गयी और इस तरह दुनिया का पहला हार्ट ट्रांसप्लांट कामयाब रहा था। इस तरह बर्नाड रातोंरात मशहूर हो गये। जिस अस्पताल में पहला हृदय प्रत्यारोपण किया गया था, वहाँ अब संग्रहालय बना दिया गया है।

दिल्ली की राजनीति में दागी भी

आम आदमी पार्टी राजनीति में अपराध और भ्रष्टाचार को खत्म करने के वादे के साथ मैदान में उतरी थी। लेकिन दिल्ली में 2015 के चुनाव में जो विधायक चुनकर आये, उनमें से आधे से अधिक के िखलाफ आपराधिक मामले दर्ज थे। अब 2020 में एक बार फिर आप के क्लीन स्वीप किये जाने के बाद दिल्ली इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स (एडीआर) ने सभी निर्वाचित 70 विधायकों के निर्वाचन आयोग को दिये शपथ-पत्र का विश्लेषण किया है। इसमें चुने गये 43 विधायकों के िखलाफ आपराधिक मामले लम्बित हैं।

61 फीसदी विधायकों के खिलाफ केस

इस बार चुने गये 70 विधायकों में 43 (61 फीसदी) के िखलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में 24 विधायकों के िखलाफ ही ऐसे केस लम्बित थे। इन विधायकों में 37(53 फीसदी) विधायक ऐसे हैं, जिन पर दुष्कर्म, हत्या की कोशिश जैसे गम्भीर मामले दर्ज हैं। जबकि नौ विधायकों खुद को सजायाफ्ता होने का ऐलान किया है, इनमें से एक के िखलाफ हत्या के प्रयास (धारा-307) का मामला शामिल है।

13 ऐसे और विधायक है, जिन्होंने महिलाओं के िखलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की बात कही है, इनमें से एक के िखलाफ दुष्कर्म की धारा के तहत मामला चल रहा है। अलग राजनीतिक दल के हिसाब से ऐसे आपराधिक मामलों को देखें, तो आप के चुने गये 62 विधायकों में 38 (61 फीसदी) के िखलाफ केस दर्ज हैं और भाजपा के 8 विधायकों में से पाँच यानी 63 फीसदी के िखलाफ आपराधिक मामले दर्ज होने की बात उन्होंने स्वयं ही शपथ पत्र में दी है।

आप के 33 विधायकों के खिलाफ गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि भाजपा के 8 में से 4 के खिलाफ ऐसे गम्भीर आरोप लगे हैं। आप यह कहकर राजनीति में उतरी थी कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक क्रान्ति लेकर आएगी। वह कहने को तो मैदान में साफ-सुथरी छवि के साथ उतरने की बात कहकर आयी थी। इस बार मुख्यमंत्री केजरीवाल की इस तरह की हवा भी बनायी गयी कि वह भ्रष्टाचार के िखलाफ लड़ रहे हैं। साथ ही शिक्षा और जन सुविधाओं के मामले में दिल्ली को बदल कर रख दिया है।

52 फीसदी विधायक करोड़पति

दिल्ली के 70 विधायकों में 52 (74 फीसदी) करोड़पति हैं। 2015 में ऐसे विधायकों की संख्या 44 थी। अगर पार्टी के हिसाब से करोड़पति विधायकों की बात करें, तो आप के 62 में से 45 (63 फीसदी) करोड़पति हैं, जबकि भाजपा के 8 में से 7 (88 फीसदी) विधायक करोड़पति हैं।

दिल्ली विधानसभा 2020 में एक विधायक के पास औसत सम्पत्ति 14.29 करोड़ रुपये है, जबकि दिल्ली विधानसभा 2015 में एक विधायक की औसत सम्पत्ति 6.29 करोड़ रुपये थी। भाजपा के 8 विधायकों की औसत सम्पत्ति 9.10 करोड़ रुपये है।

292 करोड़ी सबसे अमीर विधायक

2020 विधानसभा में सबसे अमीर विधायक आम आदमी पार्टी से हैं। आप के सबसे अमीर तीन विधायकों के पास कुल 450 करोड़ की सम्पत्ति है। आप के धर्मपाल लाकड़ा के पास सबसे ज़्यादा 292 करोड़ की सम्पत्ति है। इनके बाद परमिला टोकस के पास 80 करोड़ और राज कुमार आनंद 78 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। सबसे कम सम्पत्ति वाले विधायक की बात करें, तो वह भी आम आदमी पार्टी से हैं। राखी बिड़लान के पास कुल सम्पत्ति महज़ 76 हज़ार रुपये है।

सबसे ज़्यादा कर्ज़ किस पर?

70 में से 19 विधायकों पर 50 लाख से ज़्यादा कर्ज़ है। सबसे ज़्यादा कर्ज़ रखने वाले विधायक भी आम आदमी पार्टी से हैं। आप के राज कुमार आनंद पर सबसे ज़्यादा 32 करोड़ रुपये का कर्ज़ है। इसके बाद बाद राज कुमारी ढिल्लों पर 19 करोड़ और करतार सिंह तँवर पर 12 करोड़ का  कर्ज़ है।

केजरीवाल में है दम…!

दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिली ऐतिहासिक जीत से भले ही पार्टी के नेता व कार्यकर्ता गद्गद् हों, पर पार्टी के अदर कहीं खुशी और कहीं गम वाला माहौल है। वजह साफ है कि पुराने मंत्रियों को फिर से उन्हीं मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी है, जो उनके पास थे। दरअसल पहली बार और कुछ दूसरी बार निर्वाचित होकर आये विधायकों को काफी उम्मीद थी कि उनको इस बार दिल्ली सरकार में मंत्री ज़रूर बनाया जाएगा। पर ऐसा नहीं हो सका। पार्टी सूत्रों का कहना है कि लॉबिंग से बचने और विरोधियों को मौका न देने के लिए पार्टी आलाकमान ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत ऐसा किया है। पार्टी के संघर्ष के दिनों के साथी और पार्टी की बात बेवाकी से रखने वाले दिलीप पांडे को मंत्री न बनाये जाने पर उनके शुभचिंतक और समर्थक नाराज़ हैं। बता दें पांडे 2019 में लोकसभा चुनाव भी लड़े थे और हार गये; पार्टी में बड़ा कद है और इस बार पहली बार विधायक बने हैं। इसी तरह आतिशी और राघव चड्ढा भी पार्टी में अग्रणी िकरदारों में शामिल हैं, ये भी 2019 में लोकसभा चुनाव लड़े थे और हार गये। दोनों केजरीवाल के करीबी भी हैं। लेकिन दोनों को ही िफलहाल कोई मंत्रालय में जगह नहीं मिली है। पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं का कहना है कि नये युवा विधायकों को मौका न देने का मतलब पार्टी को पुराने ढर्रे पर चलाना है। पार्टी के कई सक्रिय कार्यकर्ताओं ने कहा कि शपथ ग्रहण में उन्हें मायूसी होना पड़ा। उन्हें उम्मीद थी कि नये चेहरों को मंत्रालय मिलेंगे। इसी प्रकार दूसरी बार निर्वाचित होकर आये विधायकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि केजरीवाल को नये चेहरों को मंत्री बनाना चाहिए था। पुराने लोगों ने कहा कि जनता के बीच अन्य पाॢटयों की तरह मैसेज जाएगा कि जो मुखिया के करीब हैं, वे ही मंत्री बनने का हकदार हैं। पार्टी के एक सीनियर विधायक ने कहा कि पार्टी को फिर से शीघ्र ही फेरबदल करना चाहिए, ताकि नये चेहरों को अवसर मिल सके।

विदित हो कि अरविन्द केजरीवाल ने तीसरी बार रामलीला मैदान से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ ग्रहण समारोह में अपने 20 मिनट के सम्बोधन में उन्होंने एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह एक साथ कई बातों का ज़िक्र किया। उन्होंने विरोधी दलों का नाम लिए बिना साफ संदेश दिया कि अब काम की राजनीति को पसंद किया जाएगा। जोड़-तोड़ और धर्म-जाति की राजनीति को कोई महत्त्व नहीं मिलने वाला। केजरीवाल ने ‘हम होंगे कामयाब एक दिन’ गाना गाया, जिसके सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस गाने का यह मतलब भी है कि वे एक दिन देश की राजनीति में ज़रूर सफल होंगे। वहीं, उन्होंने कहा कि दिल्ली वाले अपने घर गाँव में माँ- बाप से कहें कि उनका बेटा तीसरी बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बन गया है। इसका भी साफ मतलब यह है कि जो लोग देश भर के कई प्रान्तों से आकर दिल्ली में रहते हैं, वे अपने गाँवों घरों और परिवारों में बताएँं कि दिल्ली में बुनियादी सुविधाएँ नागरिकों को फ्री की दी जा रही हैं। बिजली-पानी के साथ महिलाओं के लिए बसों में यात्रा फ्री है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा फ्री है और काफी सुधार किये गये हैं। सरकारी अस्पतालों के साथ निजी अस्पतालों में दुर्घटना में घायल हुए लोगों का इलाज फ्री किया जा रहा है। ऐसे में अब वह दिन दूर नहीं जब देश के कई प्रान्तों में भी ऐसी सुविधाएँ दी जा सकती हैं। रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल के साथ-साथ छ: कैबिनेट मंत्रियों- मनीष सिसोदिया, सत्येन्द्र जैन, इमरान हुसैन, राजेन्द्र पाल गौतम, कैलाश गहलोत, गोपाल राय को भी दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने शपथ दिलायी।

मुख्यमंत्री केजरीवाल रामलीला मैदान में उमड़े जनसैलाब को देखकर गद्गद् दिखे। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली को विश्वस्तरीय शहर बनाने के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से आशीर्वाद माँगा है। बता दें कि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण समारोह के लिए आंमत्रित किया था; मगर प्रधानमंत्री किसी कार्यक्रम में व्यस्त होने के कारण नहीं आ सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि वे केंद्र सरकार के साथ मिलकर दिल्ली का विकास करेंगे, ताकि लोगों को ज़्यादा-से-ज़्यादा सुविधाएँ दी जा सकें। केजरीवाल ने साफ कहा कि वे किसी प्रकार का टकराव राजनीतिक दलों से नहीं चाहते हैं। चुनाव के दौरान हर प्रकार की आरोपबाज़ी विरोधी दलों द्वारा की गयी, पर वे सभी को माफ करते हैं।

बता दें कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उस तबके को भी साधा है, जिसकी वजह से वे तीसरी बार दिल्ली की सत्ता में आये हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली को नेता नहीं चलाते, बल्कि टीचर्स, डॉक्टर्स, रेहड़ी वाले, बस कंडक्टर, डाइवर और छात्र सब मिलकर चलाते हैं।

बताते चलें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर 2013 में जब अरविन्द केजरीवाल ने शपथ ली थी, तबके और अब 2020 के मुख्यमंत्री में काफी अन्तर देखने को मिला। पहले केजरीवाल काफी उग्र और तेज़तर्रार छवि वाले, आम आदमी पार्टी के चुनाव चिह्न झाड़ू और मैं आम आदमी हूँ वाली टोपी पहने रहते थे। उन दिनों वे राजनीति को भ्रष्टाचार से मुक्त करने वाली जोशीली आन्दोलनकारी बातें करते थे, जिसमें विपक्षियों पर हमला भी करते थे। अब वे काम की बात करते हैं। इस बार उन्होंने टोपी भी नहीं पहनी। एक मँझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह भाषण दिया। तिलक लगाकर तिलकधारियों को इशारों-इशारों में यह भी बता दिया कि वे भी हिन्दू नेता हैं और अपने धर्म में पूरी आस्था रखते हैं। विदित हो कि 2013 में केजरीवाल लोगों से कहा करते थे कि कोई भी पुुलिस वाला या अधिकारी अगर काम करने के एवज़ में पैसा माँगे, तो उसका वीडियो बना लो, हम तुरन्त कार्रवाई करेंगे। उस समय 49 दिन के कार्यकाल में उन्होंने एक िफल्मी नायक की तरह काम करके लोगों को साफ संदेश दिया था कि केजरीवाल ही देश की साफ-सुथरी राजनीति का एक विकल्प बनेंगे। हालाँकि उसके बाद उनका केंद्र से काफी तनाव बढ़ गया था, जिसे पिछली बार से सामान्य करने की उन्होंने कोशिश की है।

तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने राजनीतिज्ञों को संदेश दिया है कि अब दिल्ली दूर नहीं। इसके लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने केजरीवाल को देश के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर सोशल मीडिया में पेश करना शुरू कर दिया। हालाँकि दिल्ली अभी बहुत दूर है। लेकिन यह भी सच है कि आम आदमी पार्टी अब दूसरे राज्यों, खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के गाँवों में जाकर देश की राजनीति में पकड़ बनाने के लिए काम करेंगे। हो सकता है कि इसके लिए केजरीवाल निकाय चुनावों में पार्टी के प्रत्याशियों को मैदान में उतारें। इसके लिए पार्टी ज़िला स्तर पर टीमें बनाएगी। क्योंकि केजरीवाल जानते हैं कि मौज़ूदा दौर में जिस प्रकार की सियासत देश में हो रही है, उसमें धुव्रीकरण की राजनीति को हवा दी जा रही है। ऐसे में धुव्रीकरण से बचते हुए धुव्रीकरण का दाँव कैसे चला जाए, उसको केजरीवाल बखूबी जानते हैं। केजरीवाल के धुव्रीकरण के दाँव से दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस पूरी तरह से पराजित हुई हैं और दोनों दलों ने माना है कि केजरीवाल एक आन्दोलनकारी के साथ-साथ मँझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी है।

शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल ने उन लोगों को विशेष तौर आमंत्रित किया था, जिन्होंने समाज और शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान देकर बदलाव किया है। जैसे, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में मनु गोलाटी, किसान दलबीर सिंह, आईआईटी के छात्र विजय कुमार, आर.के. पुरम के टीचर मुरारी झा, अपनी सूझबूझ से छ: साल के बच्चे को अगवा होने से बचाने वाले बस मार्शल अरुण कुमार, मेट्रो पायलट निधि गुप्ता, अपनी पुरानी स्टाइल में पब्लिसिटी बटोर रहे नन्हें केजरीवाल और अन्य कई हस्तियों को शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया। इधर, भाजपा और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में इस चुनाव में हार का मलाल साफ देखने को मिला; क्योंकि केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के साथ-साथ दिल्ली के सातों भाजपा सांसदों और आठों विधायकों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह में औपचारिकता निभाने के लिए भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता के अलावा कोई नहीं आया। पर गुप्ता समारोह को भी आम आदमी पार्टी की राजनीतिक रैली बताने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि न तो उनके बैठने के लिए कोई कुर्सी थी और न कार पार्किंग के लिए ‘पास’ था। यही हाल कांग्रेस पार्टी का था। कांग्रेस पार्टी की तरफ से न तो कोई राज्य स्तरीय और न ही राष्ट्र स्तरीय नेता था। इस बात पर आप नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि चुनाव में जीत-हार का मतलब यह नहीं, कि कोई बुलाने में पर न आये। उन्होंने कहा कि जो आये उनका स्वागत, जो नहीं आये उनका भी स्वागत।