आभासी दुनिया में ध्यान, स्वयं के लिए चिकित्सा विधान

जवानी में सब कुछ खुशहाल व नाचता हुआ प्रतीत होता है और उसकी प्रेम लीला चरम पर होती है

हमेशा कि तरह ही ऑफिस में पूरा दिन काम करने के बाद हिमा घर लौट रही थी। उसने बस में अन्दर कदम रखा और जल्द ही एक आरामदायक सीट उसे मिल गयी। वह उस सीट पर चुपचाप बैठी बस के सभी लोगों को देख रही थी। इन घंटों के दौरान उसने मुश्किल से ही किसी के चेहरे पर मुस्कान देखी। बस में सवार सभी लोगों के चेहरे मुरझाये हुए से थे। किसी के चेहरे पर थकान और चिन्ता, तो किसी के चेहरे पर त्याग कर देने वाली छवि थी।

हिमा बहुत ही बातूनी है, परन्तु इस पूरी यात्रा के दौरान वह बिल्कुल चुपचाप बैठी रही और उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे वह गुप्त रूप से खुद को किसी ऐसे मिशन के लिए तैयार कर रही है, जो कि नामुमकिन है। यात्रा शुरू हुई। हिमा ने अपनी आँखें बन्द कीं और कुछ ही सेकेण्ड में वह अपने गंतव्य पर पहुँच गयी। प्रकृति ने उस पर उदारतापूर्वक अपने सभी इनामों की बौछार कर दी। यहाँ सब कुछ युवा और खुशी से नाचता हुआ प्रतीत होता है और उसका रोमांस अपने चरम पर होता है। कोमल घास उसे नरम ब्लेड पर शारीरिक ग्लानिमय पहना हुआ पहनावा फेंकने को कहती है और वह कायाकल्प शुरू कर देती है।

एक बड़ा गूदेदार फल उसका ध्यान खींचता है। फल का मीठा-पोषक गूदा उसके मन-मस्तिष्क के अन्दर विचारों के प्रत्येक भँवर को शान्त करता है। विदेशी पत्तेदार हाथ उसके गाल सहलाते हैं और वह उन सावधान हाथों में अपना चेहरा डूबो देती है। इस बीच सुखदायक हवा उसकी आँखों और पलकों पर तितलियों की तरह चुम्बन-सा देती है। नरम फूल की कलियाँ धीरे से उसके होठों को छूती हैं और कुछ क्षणों के बाद उसे चक्कर व नशे में छोड़ देती है।

एक सुन्दर लता की सुगन्ध उसके शरीर को लपेटती है और वह अपनी पीठ पर प्यारी-सी गुदगुदी के साथ इलाज के लिए उनके सामने आत्मसमर्पण कर देती है। बाद में जब झरना अपनी धीमी गति से उसके पैरों को धोता है, तब वह स्वर्ग का परम् आनन्द प्राप्त करती है। फिर वह शान्त रोमांस को गले लगाती है, गुदगुदाती है और गहरी नींद में खो जाती है।

फिर समय हस्तक्षेप करता है। बस के पहिये अपनी गति को कम करते हैं और पड़ाव के लिए तैयार हो जाते हैं। फिर वह परिस्थिति को समझती है, धीरे से आँखें खोलती है। खड़ी होती है। अपने दुपट्टे को समायोजित करती है और बस से उतरकर अपने घर की ओर बढ़ती है। यह उसका नियमित अभ्यास है। वह स्वर्गीय निकायों, पहाड़ की चोटियों, आसमान, समुद्र, बेड और क्या कुछ नहीं पाती है, अपने इस आभासी दौरे में। वहाँ कोई लॉजिक या नियम नहीं है। वह ऑक्सीजन की पूॢत करने वाले मास्क के बिना चाँद पर टहल सकती है; धूम्रकेतुओं को पकड़ सकती है; उनसे बात कर सकती है; यहाँ तक कि उन्हें किसी और दिशा में ले जा सकती है। वह समुद्र के साफ-सुथरे क्रिस्टल जैसे पानी की गहराइयों मे रंग-बिरंगी मछलियों के साथ नाच सकती है। उसकी स्कर्ट शरारती हवा से बह रही है; आसमान में बिना पंखों के उड़ भी सकती है। कोई नियम नहीं! कोई तर्क नहीं!! वाह!

हालाँकि आभासी दुनिया में कुछ भी लागू नहीं होता है और समय उसी तरह से अपनी भूमिका निभाता है। अब उसका समय असली दुनिया यानी अपने घर की ओर यात्रा शुरू करने का है। उसका मस्तिष्क उसे घर के पास आने के तर्क के साथ ज़मीनी यात्रा शुरू कर देता है।

जिस समय वह वाहन से नीचे उतर रही होती है, अपने आपको आभासी दुनिया से जुड़े सारे तारों से खुद को दूर कर लेती है और अपनी पहचान में पूरी तरह से वापस आ जाती है। उस जीवन का सामना करने के लिए, जो कि इतना प्यारा तो नहीं है, लेकिन ताॢकक है। लेकिन वह उस खूबसूरत आभासी दुनिया में प्रवेश क्यों करती है? इससे वह क्या हासिल कर रही है? आभासी दुनिया की प्यारी मिठास और कोमलता उसके विचार बिन्दु पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। वह वहाँ फँस सकती है। वह वापस आने से मना कर सकती है। वह ताॢकक और अताॢकक दुनिया के बीच उलझ भी सकती है। लेकिन शुक्र है कि ऐसा कभी नहीं हुआ; जबकि अल्पकालिक आभासी दुनिया का प्रभाव कल्पना से परे था। आप इस पूरी प्रक्रिया को ‘मी-टाइम थैरेपी’ कह सकते हैं। जो कि ध्यान का एक अजीब तरीका तो है, लेकिन मन को शान्ति और उसके चेहरे पर संतोष पहुँचाने में आश्चर्यजनक रूप से परिणाम देता है।

उस रोज़ के सफर का वक्त उसके खुद के लिए एकमात्र मी-टाइम होता है और वह इस वक्त को कभी भी, किसी के भी साथ, बल्कि अपने विचारों में भी; साझा नहीं करती। इस मी-टाइम थैरेपी के समय उसके सामाजिक व पारिवारिक सम्बन्धों में से भी कोई उसके विचार में नहीं आता। यह मैडिटेशन थैरेपी उसकी सारी कौन? कब? कहाँ? कैसे? और क्यों? जैसी चिन्ताओं को क्षीण कर देती है। जो कि उसकी भावनाओं की भयंकर लहरों को साफ-गहरी, लेकिन खामोश झील में परिवर्तित कर देती है। यह एक प्रकृतिकृत चीज़ है, जो उसे उसके घर के और दफ्तर के कर्तव्यों को पूरा करने में मदद करती है। इस आभासी दुनिया का केवल एक घंटा उसे उसके दिन के 23 घंटों को आराम से बिताने के लिए तैयार कर देता है।

एक विचार करके देखें… आप ऐसे स्थान पर जाएँ, जहाँ आप अपनी मर्ज़ी से कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। अपनी मर्ज़ी के अनुसार ब्रह्मांड का मार्ग-दर्शन करने वाले एकमात्र व्यक्ति हैं। जहाँ आप बड़ी लापरवाही से झूठ बोलते हुए पकड़े जाने से डरते नहीं हैं। जहाँ आप अपने कपड़े खराब कर सकते हैं; बदल सकते हैं और पुन: आरम्भ कर सकते हैं। यह कोई बुरा सौदा नहीं है। गुड लक!