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‘आप’ की लगातार दूसरी बड़ी जीत

इस बार जब दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की तीसरी जीत हुई, तो अपार हर्ष के साथ अपने मुख्यमंत्री के स्वागत में खड़ी जनता पहले से ही बेसब्र खड़ी थी। चुनाव में जब केजरीवाल जनता के बीच आये, तो उन्होंने कहा- ‘दिल्ली वालो गज़ब कर दिया, आई लव यू’। वास्तव में यह गज़ब ही था। क्योंकि इतिहास में सीटों के फीसद के हिसाब से आज तक किसी की इतनी बड़ी जीत नहीं हुई है। वह भी तब, जब एक व्यक्ति के पीछे एक पूरी-की-पूरी सियासी पलटन लगी हुई थी; एक पूरी-की-पूरी लॉबी लगी हुई थी। अकेले केजरीवाल के पीछे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री, 200 सांसद, दर्जनों केंद्रीय मंत्री और कार्यकर्ता, सभी लगे हुए थे। यहाँ तक कि गृह मंत्री ने गली-गली में पर्चे बाँटे। प्रधानमंत्री ने एक प्रचारक की भाषा का इस्तेमाल किया। केंद्रीय मंत्री और एक सांसद ने केजरीवाल को आतंकवादी तक कहा। शाहीन बाग का मुद्दा पूरे चुनाव में सबसे ऊपर रखा। दिल्लीवासियों को मुफ्तखोर कहा। भाजपा सांसद गिरिराज सिंह पर तो पैसे बाँटने का भी आरोप लगा। और यही सब भाजपा के लिए घातक होता गया। हालाँकि चुनाव से पहले ही भाजपा को हार दिख रही थी, क्योंकि दिल्ली में जितने भी सर्वे हुए, सब केजरीवाल की जीत की ओर इशारा कर रहे थे। शायद यही बौखलाहट भाजपा नेताओं को अनर्गल बोलने को मजबूर कर गयी और नतीजा बुरी तरह हार के रूप में सामने आया। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने अपना चुनाव प्रचार केवल और केवल काम पर केंद्रित रखा और किसी भी भाजपा नेता के िखलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। न तो केजरीवाल शाहीन बाग गये और न ही उन्होंने अपने ऊपर उसकी ज़िम्मेदारी ली, जो कि थी भी नहीं। उन्होंने अपनी जीत-हार का सेहरा बड़ी चतुराई से जनता के सिर पर बाँधा। जनता को जनार्दन कहकर साफ कहा कि जनता उन्हें जो भी निर्णय देगी, वे उसे सहर्ष स्वीकार करेंगे। और इसी सादगी के चलते उन्हें तीसरी बार 88.57 फीसदी सीटों के साथ पूर्ण बहुमत से जीत दिलायी। इससे पहले 2015 में 95.21 फीसदी सीटों के साथ केजरीवाल ने जीत हासिल की थी। अगर सीटों की प्रतिशतता के हिसाब से देखें, तो अरविंद केजरीवाल की ये दोनों जीतें पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी, नरेंद्र मोदी और छत्रपों में जाएँ तो लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती तक को नसीब नहीं हुई। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे बड़े राजनेता की तरह ही केजरीवाल भी अपने नाम पर दिल्ली के तीनों चुनाव जीते हैं।

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की इस जीत का मतलब यह है कि जनता विकास चाहती है। जनता ईमानदार राजनेता का चुनाव करना चाहती है। आपको याद होगा कि जब 2014 में लोकसभा चुनाव हुए थे, तो जनता ने नरेंद्र मोदी की ईमानदार छवि को लेकर उन्हें अपना प्रधानमंत्री चुना था। इस बार दिल्ली में भी जनता ने अगर केजरीवाल को मुख्यमंत्री चुना है, तो उनकी ईमानदार छवि और काम की राजनीति के लिए चुना है। जनता ने यह साफ संदेश दे दिया है कि उसे अब मुद्दों का समाधान, देश की तरक्की, काम-धन्धा और विकास चाहिए। वह अनर्गल तरीके की राजनीति अब पसन्द नहीं करेगी। जनता ने यह तय कर दिया कि जो व्यक्ति भारत को तोडऩे की लकीर खड़ा है, उसे पीछे हटना होगा।  हिन्दू-मुस्लिम, हिन्दुस्तान-पाकिस्तान अब और नहीं चलने वाला। वादािखलाफी अब और नहीं चलने वाली। सीएए, एनआरसी के नाम पर दमन की राजनीति अब नहीं चलने वाली। सिर्फ चुनावी घोषणा-पत्र के वादे अब नहीं चलने वाले, काम करके दिखाइए। अब चुनाव के दौरान किसी भी तरह की चाटुकारिता नहीं चलने वाली।

आज जब देश की जनता को केवल सवाल करने पर, सरकार की किसी नीति का विरोध करने पर देशद्रोही करार दिया जाता है। कहीं लोगों को कोई एजेंसी डराती है, कहीं पुलिस डंडे मारती है। कहीं भीड़ हमला कर देती है। ऐसी स्थिति देश में अब और नहीं चाहिए। यही वजह रही कि दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मैदान में उतरी भाजपा को मुँह की खानी पड़ी। यहाँ भाजपा नेताओं को केजरीवाल से सीखने की ज़रूरत है कि जनता स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार और सबका सम्मान चाहती है। भाजपा नेताओं को समझना होगा कि राष्ट्रवाद का ढिंढोरा पीटने भर से देश महान् नहीं होने वाला, इसके लिए ज़मीनी स्तर पर काम करना होगा। जीडीपी दर ठीक करने के लिए नोटों पर लक्ष्मी मैया का फोटो छापने की सलाह से कुछ नहीं होगा, बल्कि उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होते रुपये को मज़बूत करने के लिए लोगों को आॢथक तौर पर मज़बूती देनी होगी।

राजनीति में स्वच्छता की दरकार

देश की राजनीति, खासकर संसदीय राजनीति में शुचिता की एक बड़ी पहल हुई  है। यह पहल और कहीं से नहीं, देश के सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से हुई है। एक याचिका पर जो आदेश सर्वोच्च अदालत ने दिया है, वह देश की संसदीय राजनीति में शुचिता की बड़ी नज़ीर बन सकता है। देश की राजनीति में पैसे और अपराधियों का जैसा बोलबाला है, उस पर अंकुश के लिए इसे एक बड़ी शुरुआत कहा जा सकता है।

क्योंकि सर्वोच्च अदालत का यह आदेश उम्मीदवारों को लेकर है, यह पहल टिकटों से शुरू होकर अंतत: पूरी राजनीति तक भी पहुँचेगी, यह कल्पना की जा सकती है। एक याचिका पर 13 फरवरी में सर्वोच्च अदालत ने न केवल  राजनीति में आपराधिक छवि के लोगों की बढ़ती हिस्सेदारी पर गहन चिन्ता जतायी, बल्कि तमाम राजनीतिक दलों को निर्देश दिया कि वे अपनी वेबसाइट पर सभी उम्मीदवारों की जानकारी साझा करें। इसमें उन्हें यह भी बताना होगा कि किस मजबूरी में उन्होंने साफ-सुथरी छवि की जगह एक अपराधी छवि वाले को उम्मीदवार के रूप में चुना।

इस आदेश में सबसे सकारात्मक और सम्भावना वाला पहलू यह है कि यदि अदालत के आदेश का पालन राजनीतिक दलों ने नहीं किया, तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी। अतीत में राजनीतिक दल इस तरह के आदेशों को हल्के में लेते रहे हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती गयी है। अब शायद ऐसा नहीं हो पाएगा।

अदालत के आदेश के मुताबिक, सभी राजनीतिक दलों को उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी। कोर्ट के यह आदेश याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर आये हैं, जो खुद एक वकील हैं। इस आदेश के मुताबिक, अब प्रत्याशी पर दर्ज सभी आपराधिक मामले, ट्रायल और उम्मीदवार के चयन का कारण भी राजनीतिक दलों को बताना होगा। राजनीतिक दल को ये भी बताना होगा कि आिखर उन्होंने एक अपराधी को क्यों अपना प्रत्याशी बनाया। आदेश के मुताबिक, राजनीतिक दलों को घोषित प्रत्याशी की जानकारी स्थानीय अखबारों में भी छपवानी होगी और उन्हें उम्मीदवार घोषित करने के 72 घंटे के भीतर चुनाव आयोग को इसकी जानकारी देनी होगी।

अतीत में राजनीतिक दल इस तरह के आदेशों को हल्के में लेते रहे हैं, जिससे राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ती गयी है। उपाध्याय के मुताबिक, अगर कोई भी उम्मीदवार या राजनीतिक दल इन निर्देशों का पालन नहीं करेगा, तो उसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। अगर किसी नेता या उम्मीदवार के िखलाफ कोई मामला नहीं है और कोई भी एफआईआर दर्ज नहीं है, तो उसे भी इसकी जानकारी देनी होगी।

राजनीति में पैसे और लाठी के ज़ोर ने लोकतंत्र को धीरे-धीरे कमज़ोर किया है। यदि यह बहुत ज़्यादा चलता, तो निश्चित ही लोकतंत्र की जड़ें पूरी तरह खोखली जो जातीं। सर्वोच्च अदालत ने जो पहल की है, उसके लिए सामजिक संगठनों को भी आगे आकर  अवांछित/आपराधिक तत्त्वों को बाहर करने के लिए राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना होगा।  राजनीति में आपराधिक तत्त्वों या आरोपियों का कितनी दखल डाली जा चुकी है, यह इस तथ्य से समझा जा सकता है कि नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की 2019 लोकसभा के 542 में से 539 सांसदों के शपथपत्रों के विश्लेषण की रिपोर्ट में बताया गया है कि इन 539 में से 233 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि तीन के ऊपर तो बलात्कार से जुड़े मामले हैं।

पैसे का राजनीति, खासकर संसदीय राजनीति में ज़ोर भी इस रिपोर्ट से ज़ाहिर हो जाता है। इसके मुताबिक, इस बार संसद में 475, जो की कुल संख्या का 88 फीसदी है, सांसद करोड़पति हैं, जबकि पिछले चुनाव अर्थात् 2014 में 443 अर्थात् कुल संख्या का 82 फीसदी थे। उपलभ्द न होने के कारण तीन सांसदों के शपथपत्रों का विश्लेषण नहीं किया जा सका, जिनमें दो भाजपा और एक कांग्रेस के थे। रिपोर्ट के मुताबिक, 19 सांसदों पर महिलाओं के िखलाफ अत्याचार से जुड़े मामले दर्ज हैं। इनमें से तीन पर तो दुष्कर्म से जुड़े मामले हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों की बनिस्बत इस बार सबसे ज़्यादा आपराधिक मामलों वाले सांसद चुने गये हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, नकुलनाथ सबसे अमीर सांसद हैं, जो कांग्रेस के टिकट पर छिंदबाड़ा से चुने गए।

शपथ दस्तावेज़ों में उनकी कुल सम्पत्ति 660 करोड़ है। उनके अलावा कांग्रेस के ही कन्याकुमारी से चुने गये एच वसंतकुमार की सम्पत्ति 417 करोड़ है। तीसरे सबसे अमीर भी कांग्रेस के ही डीके सुरेश हैं जो कर्नाटक के बेंगलूरु ग्रामीण इलाके से चुने गए। उनकी सम्पत्ति 338 करोड़ है। जाने माने राजनीतिक विश्लेषक बीडी शर्मा कहते हैं कि जब तक राजनीति में पैसे और अपराध का गठजोड़ नहीं तोड़ा जाता, तक तक राजनीति देश के लिए अभिशाप जैसी ही रहेगी। तहलका से बातचीत में शर्मा ने कहा कि जनता को जल्दी न्याय, विकासयुक्त और भ्रष्टाचारमुक्त सिस्टम वास्तव में तभी सम्भव होगा, जब राजनीति से अपराध और पैसे का बोलबाला खत्म हो जाएगा। हालाँकि वे मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश स्थिति को बदलने में मील का पत्थर साबित हो सकता है। हाल के वर्षों में कई ऐसे उदाहरण सामने आये हैं, जिनमें देखा गया है बलात्कार के आरोपियों तक को राजनीतिक दल पूरी ताकत से बचाने लग जाते हैं। ऐसा लगता है कि उनकी जवाबदेही जनता नहीं अपराधियों के प्रति है। अपराध से जुड़े लोग राजनीति की ताकत से मिलकर मनमर्ज़ी करते हैं। प्रशासन और पुलिस से लेकर न्यायालयों तक को अपनी उँगलियों पर नचाते हैं। समय समय पर कानून से जुड़े लोग स्वीकार करते रहे हैं कि उनके फैसलों में राजनीति से जुड़े लोगों का हस्तक्षेप रहता है।

नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की 2019 लोक सभा के 542 में से 539 सांसदों के शपथपत्रों के विश्लेषण की रिपोर्ट के मुताबिक, इस अध्ययन का वर्गीकरण दो आधार पर किया गया है, जिसमें आपराधिक मामले और गम्भीर अपराध शामिल हैं। इसके मुताबिक, भाजपा के 301 में से 116 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो कुल संख्या का 39 फीसदी बनता है। जबकि भाजपा के 87 सांसदों पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जिनका फीसदी 29 बनता है। कांग्रेस के कुल 51 सांसदों में से 29 पर आपराधिक मामले हैं, जो उनकी संख्या का 57 फीसदी बनता है। जबकि 19 पर गम्भीर िकस्म के मामले दर्ज हैं जो 37 फीसदी है। अन्य प्रमुख दलों में द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के कुल 23 सांसदों में से विश्लेषित 10 सांसदों पर आपराधिक मामले हैं जो 43 फीसदी है, जबकि 6 पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जो 26 फीसदी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कुल 22 सांसदों में से 9 यानी 41 फीसदी पर आपराधिक मामले, जबकि 4 पर गम्भीर मामले दर्ज हैं, जो 18 फीसदी बनता है। बिहार के राजनीतिक दल जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के कुल 16 में से 13 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो 81 फीसदी होता है।

साल-दर-साल के आँकड़े

लोकसभा चुनाव के पिछले तीन साल का रिकार्ड देखा जाए, तो नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2009 में 543 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 162 (30 फीसदी) पर आपराधिक मामले और 76 (14 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले थे। इसी तरह 2014 में 542 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 185 पर (34 फीसदी) पर आपराधिक मामले जबकि 112 (21 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले थे। अब 2019 के लोक सभा चुनाव में 539 सांसदों का विश्लेषण किया गया, जिनमें से 233 (43 फीसदी) पर आपराधिक जबकि 159 (9 फीसदी) पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

अमीर सांसदों की फेहरिस्त 

नेशनल इलेक्शन वॉच और एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2009 में 543 में से 315 (58 फीसदी) करोड़पति थे, जबकि 2014 में यह संख्या बढ़कर 442 (82 फीसदी) हो गयी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 539 विश्लेषित मामलों में से 475 (88 फीसदी) करोड़पति हो गए। इस तरह देखा जाए तो संसद में अमीरों का प्रवेश बढ़ा है। पार्टीवाइज देखना हो, तो भाजपा के 301 में से 265 (88 फीसदी), कांग्रेस के 51 में से 43 (84 फीसदी), डीएमके के 23 में से 22 (96 फीसदी), टीएमसी के 22 में से 20 (91 फीसदी), वाईएसआर कांग्रेस के 22 में से 19 (86 फीसदी), जबकि शिव सेना के 18 में 18 (100 फीसदी) करोड़पति हैं।

राजस्थान को दिल्ली दिखाएगी राह

दिल्ली विधानसभा चुनावों में ‘आप’ पार्टी की जीत को लेकर राजनीतिक विश्लेषक बेशक यह कहते नहीं अघाते कि यह चुनाव देश के भावी चुनावों की नज़ीर बनेंगे। लेकिन इसके साथ ही सांकेतिक भाषा में नसीहत भी चस्पा करते हैं कि लोकतंत्र में सरकार को जनता से डरना चाहिए, जनता को सरकार से नहीं। इसकी वजह साफ है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल की सजगता से उनके दफ्तरी बाबू अपने स्वार्थी और आत्मकेंद्रित खोल में छिपे नहीं रह सके। बहरहाल ‘सेवा की मेवा’ के नाम पर फतह का झंडा बुलंद करने वाली इस जीत ने जनता की उम्मीदों को रौंदने वाले नेताओं को उनकी सरहदों का अहसास करा दिया है कि उन्हें इतिहास से कुछ गुफ्तगू कर लेनी चाहिए कि जनता को उनकी गर्वीली ज़ुबान की ज़रूरत नहीं है। बल्कि नयी सोच विकसित करने की ज़रूरत है कि किसी भी समस्या से तभी निजात पायी जा सकती है, जब समाधान सिर्फ एक बार लागू होने वाली योजना में निहित हो। वरिष्ठ पत्रकार अधिरंजन कोठारी मौज़ूदा संदर्भ में राजस्थान की सरकार के ‘कलह चक्र’ को लक्ष्यित करने से नहीं चूकते कि हर रोज़ कोई-न-कोई घटनाक्रम लोगों के दिलों में कड़वाहट घोल जाता है। फिर यह धुआँ लोगों के बीच से घटाटोप में उमडऩे लगता है। अभिरंजन कहते हैं कि जब असहमतियों के बीच भी सार्थक संवादों की भाषा गढ़ी जा सकती है, तो फिर अप्रिय तथ्यों की नुमाइश क्यों?

मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि सरकार का काम विभागीय भूल भुलैया में न फँसा रहकर सभी की निगहबानी का मरकज़ बना रहे, तो विकास के नये मानक गढ़े जा सकते हैं।’ प्रसंगवश यहाँ एसएमएस अस्पताल के हार्ट ट्रांसप्लांट यूनिट के लोकार्पण की घटना का मुज़ाहिरा करना तर्कसंगत होगा। इस मौके पर नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल ने उँगली वहीं रखी, जहाँ दर्द था। सुझाव देते हुए धारीवाल ने कहा था कि हर विभाग का अलग ब्लॉक होना चाहिए, जहाँ एक छत के नीचे सभी सुविधाएँ मिलें। ज़ाहिर है धारीवाल ने तालियाँ बटोरीं, तो मुख्यमंत्री की तारीफ के हकदार भी बने कि अच्छा मंत्री वही होता है, जो हर विभाग पर नज़र रखे। लेकिन सवाल यह है कि ऐसी दूरंदेशी सरकार के सभी मंत्रियों में क्यों नहीं है? क्यों सत्ता के आवरण के पीछे छिपी गड़बडिय़ों को दुरुस्त करने की बजाय ब्यूरोक्रेसी पर नज़ला उतारा जा रहा है? ब्यूरोक्रेसी को कोसने की कसमसाहट के बीच क्या इस बात पर भरोसा करना आसान होगा कि 52 लाख टन भारी पहाड़ का आधा हिस्सा खनन माफिया चुरा ले गये और मंत्री बेखबर बने रहे। चोरी की यह अजब-गज़ब घटना राजस्थान सचिवालय से महज़ 50 किलोमीटर दूर जोबनेर स्थित आसलपुर की खदानों में हुई। हालाँकि चोरी का तथ्यगत इतिहास उपलब्ध नहीं है। लेकिन यह एक कहना सच है कि वर्ष 2003 में शिखर सरीखा दिखने वाला पहाड़ 2019 में सिर्फ ठूँठ रह गया है । पहाड़ों की चौकीदारी करने वाले खनन महकमे के सामने ही रॉयल्टी की चोरी का खेल निर्विघ्न चलता रहा। लेकिन 200 करोड़ की पैनाल्टी वसूल करना तो दूर महकमा 20 करोड़ की रॉयल्टी भी नहीं ले पाया? जब प्रदेश की भूगर्भ सम्पदा की ताकत छीज रही थी और खनन का वैभव लुप्त हो रहा था, तो महकमे के सीनियर इंजीनियर महेश माथुर पूरी तरह निॢलप्त थे। उनका कहना था कि मेरे पास तो ऐसी कोई शिकायत ही नहीं आयी? उधर चंबल नदी और वन महकमे के तहत आने वाले इलाकों से हर साल करोड़ों का अवैध खनन और कारोबार हो रहा है। क्या इस खेल से महकमे के मंत्री बेखबर रह सकते हैं? भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के एएसपी चंद्रशील ठाकुर कहते हैं कि इतना खुल्लम-खुल्ला सब कुछ चल रहा है; क्या बिना मिलीभगत के सब कुछ सम्भव है? महकमे के अफसर एसएन सारस्वत कितनी मासूमियत से कहते हैं कि मुझे तो कभी कोई शिकायत मिली ही नहीं? खनन की इतनी बड़ी डकैती के बावजूद कैसे भरोसा किया जाए कि खान मंत्री प्रमोद भाया की नज़र से सब कुछ छिपा रहा? क्या इसके लिए भी ब्यूरोक्रेसी ज़िम्मेदार है? फिर भी खनन मंत्री की बेचारगी का ट्वीट गौर फरमाएँ, जो कहते हैं कि मैंने महसूस किया कि राज्य में सरकार बदल जाने के बावजूद ब्यूरोक्रेसी की कार्यशैली में कोई तब्दीली नहीं आयी। विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान में फैसला करने वालों और उससे प्रभावित होने वालों के बीच फासला हद से ज़्यादा बढ़ चुका है। नतीजतन अपनी ज़िम्मेदारी भूलकर ब्यूरोक्रेसी पर दोष मढऩे लगे हैं। इस मुकाम पर रसद महकमे के मंत्री रमेश मीणा की तथाकथित तड़प भी गौरतलब है कि ब्यूरोक्रेट्स कार्यकर्ताओं की नहीं सुन रहे, प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी हावी है। मीणा के तथाकथित दर्द को लेकर मीडिया विश्लेषक कहते हैं कि क्या अब मंत्रियों की हैसियत कैबिनेट में 12वें खिलाड़ी सरीखी रह गयी है? विश्लेषकों का कहना है कि बुराई का ठीकरा ब्यूरोक्रेसी के सिर पर फोडऩे वाले मंत्री मीणा रसद घोटाले से कैसे बेखबर रहे, जिसमें 6.50 करोड़ का गेहँू अफसर हज़म कर गये। इस गेहूँ का उठाव कागज़ों में ही राशन डीलरों तक पहुँचा। लेकिन न तो यह गेहूँ डीलरों को मिला और न ही उपभोक्ताओं को। उधर एक तरफ ब्यूरोक्रेसी को कोसने वाले राजस्थान सरकार के मंत्री हैं, तो दूसरी तरफ दिल्ली सरकार का नया चेहरा है, जो अपने नये कार्यकाल में राशन उपभोक्ताओं की दहलीज़ तक पहुँचाने का बंदोबस्त कर रही है। राजस्थान के सहकारी मंत्री आंजना भी कहते हैं कि अफसर मेरी सुनते ही नहीं? क्या इसीलिए सहकारिता सोसायटियों में 16 हज़ार करोड़ की कालिख उनकी निगाह में नहीं आयी। अभी भी पड़ताल की प्रकिया में दब्बू तो आंजना ही है। दिलचस्प बात है कि ब्यूरोक्रेसी के िखलाफ शिकायती लहज़ा लिये क्रमश: पर्यटन मंत्री, विश्वेन्द्र सिंह, रमेश मीणा, प्रमोद भाया, सहकारिता मंत्री आंजना, राज्य मंत्री भजन लाल और परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास सभी मंत्री सरकार के दूसरे ‘पॉवर सेंटर’ पायलट की छतरी की नीचे खड़े हैं। लिहाज़ा उनकी शिकवा-शिकायत के हकीकत को कैसे कुबूल किया जाए? विश्लेषक कहते हैं कि सियासत के इस मौज़ूदा परिदृश्य में केजरीवाल लोगों की पहली पसन्द बनकर उभरे हैं और उन्होंने भाजपा की पारम्परिक सियासत को बैचेन कर दिया है। क्या केजरीवाल की शासन शैली राजस्थान की कांग्रेस सरकार को गवर्नेंस की नयी लकीर खींचने को प्रेरित नहीं कर सकती? क्या राजस्थान के नायब मुख्यमंत्री पायलट अपने बेचैन मंसूबों से पीछे नहीं हट सकते? आिखर सबक तो उनको ही लेना है।

कहते हैं कि बदलावों की साख तब बनती है, जब बदलाव करने वाले उस परिवर्तन का हिस्सा बन जाएँ। अरविंद केजरीवाल ने शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए बजट का बड़ा हिस्सा महफूज़ किया। दिल्ली सरकार हर परिवार पर सेहत की नेमत पर हर रोज़ 50 रुपये खर्च कर रही थी। मुफ्त और सस्ती बिजली-पानी उनका ‘मास्टर स्ट्रोक’ था। सबसे बड़ी बात थी कि दिल्ली सरकार मुफ्त सुविधाएँ देने के बावजूद अपना राजस्व बढ़ा रही थी। जबकि दिलचस्प बात है कि दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य और शिक्षा योजनाएँ गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल की फ्लेगशिप योजनाओंं’ से प्रेरित है। गहलोत सरकार ने अपने मौज़ूदा कार्यकाल में न सिर्फ इन योजनाओं को दोहराया है, बल्कि इनमेें एक नयी उम्मीद पैदा की है। नीरोगी राजस्थान के योजना लॉन्च कर चुकी गहलोत सरकार इस बजट सत्र में ‘राइट टू हैल्थ’ बिल लाने जा रही है। बड़ी बात है कि ऐसा विधेयक लाने वाला राजस्थान पहला राज्य होगा जहाँ ‘राइट टू हैल्थ’ को कानूनी तौर पर लागू किया जाएगा। लेकिन राजस्थान में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और उप मुख्यमत्री मनीष सिसोदिया सरीखा तालमेल है कहाँ? नतीजतन राजस्थान में समावेशी सरकार गढऩे की बजाय हर कदम पर ‘रस्साकशी’ का खेल खेला जा रहा है। ऐसे में सुधारों की टाइमिंग नहीं बिगड़ेगी तो क्या होगा? मीडिया विश्लेषक नवीन जोशी कहते हैं कि अजीब नज़ारा है? मुख्यमंत्री गहलोत की उँगलियाँ विकास की नब्ज़ पर दौड़ रही है। उधर उप मुख्यमंत्री पायलट मुरादों और मंज़िलों के बीच कँटीले रिश्ते खोजकर सरकार को बदहवास करने पर तुले हैं। राजनीति के विश्लेषकों का कहना है कि आिखर क्यों योजनाओं के तर्क और नतीजों का ज़िक्र नहीं हो पाता। गहलोत सरकार को विकासवाद की उम्मीदों का वोट मिला था। लेकिन इन कारकों को सियासी संगति और संयोग मुहैया ही नहीं हो सका? नायब मुख्यमंत्री पायलट सरकार की किसी भी योजना से इत्तेफाक नहीं रखते। नतीजतन मंत्रियों और ब्यूरोकेसी के बीच कोई गर्मजोशी ही नहीं है। मंत्रियों का प्रलाप ही नहीं थमता कि अफसर हमारी सुनते ही नहीं? सुधारों के प्रयोग ज़मीन पकड़ सकें? इसके लिए राजनीतिक नियुक्तियाँ मुफीद है। लेकिन पायलट की असहमति हर जगह आड़े आ जाती है। प्रतिपक्ष को बखूबी लतियाने का मौका मिल जाता है कि सरकार दो शक्ति केंद्रों में बँटी हुई है। दिल्ली के चुनावों ने तो जनता को ज़्यादा जिज्ञासु बना दिया है। क्या इस नयी सियासी िफज़ाँ में पायलट अपने मिजाज़ में तब्दीली ला पाएँगे? लेकिन मौज़ूदा दौर में भी पायलट अहंकारी भाषा छोडऩे को तैयार नहीं कि हम सही, बाकी सब गलत! सरकार में शामिल मंत्रियों को वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी के इस सवाल पर आत्ममंथन करना चाहिए कि क्या वे जनता में भरोसा जगा पाये हैं? ‘आप’ की जीत ने एक कद्दावर उक्ति को गलत साबित कर दिया कि सरकारों के समाधान अक्सर समस्याओं को बढ़ा देते हैं। लेकिन प्रश्न है कि क्या कभी राजस्थान की मरुस्थलीय राजनीति में ऐसी दीवानगी देखी जा सकेगी? शायद नहीं! पत्रकार समीर शर्मा कहते हैं कि विधायिका और कार्यपालिका के बीच अंदरूनी खींचतान बनी रहेगी, तो संवाद के मौके कहाँ बचेंगे? सस्ती बिजली अरविंद केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक है। लेकिन गहलोत सरकार ने राजस्थान में 20 लाख बिजली उपभोक्ताओं पर 5 पैसे प्रति यूनिट का अतिरिक्त सरचार्ज डाल दिया? हालाँकि यह पूर्व सरकार की देनदारी है। लेकिन सवाल है कि जनता क्यों भुगते?

विश्लेषकों का कहना है कि दिल्ली के चुनावी नतीजों को लेकर जिस तरह कांग्रेस के महारथियों के असमंजस की गिरह खुलने लगी है राजस्थान समेत सभी कांग्रेस शासित राज्यों के लिए इसमें पारदर्शिता अपनाने का आग्रह भी छिपा है। इस लिहाज़ से कांग्रेस के दिग्गज नेता जयराम रमेश, वीरप्पा मोईली और ज्योतिरादित्य सिंधिया की बेखुदी बेसबब नहीं कि अब विश्लेषण नहीं एक्शन नहीं चाहिए। उन्होंने बड़ी बेबाकी से कह दिया कि पार्टी नेतृत्व को मूल आधार और शैली को बदलना ही होगा। मीडिया विश्लेषक देवेन्द्र गौतम कहते हैं कि अब पायलट भी समय रहते समझ जाएँ, तो बेहतर है।

सामान ढोती हैं यूपी की रोडवेज बसें!

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, कश्मीरी गेेट बस अड्डा और सराय काले खाँ से प्रतिदिन चलने वाली उत्तर प्रदेश परिवहन (रोडवेज) की बसें, जो ग्रेटर नोएडा, नोएडा और परीचौक को जाती हैं; में कारोबारियों का सामान ढोया जाता है। इन बसों में यात्री कम, सामान ज़्यादा होता है। इसके कारण यात्रा करने वालों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। आलम यह है कि बसों को माल ठोने के लिए इस तरीके से बना दिया गया है कि कारोबारियों का कई कुन्तल सामान बसों मेें आ जाता है। सामान रखने के लिए बसों की सीटें तक उखाड़ दी गयी हैं। तहलका संवाददाता ने सात-आठ बसों में जाकर देखा, तो पीछे की चार-चार सीटें गायब मिलीं। बता दें कि रोडवेज बसों में सभी सीटें यात्रियों के बैठने के लिए होती हैं। आलम यह है कि इन रोडवेज की बसों में बोनट से लेकर ड्राइवर के पीछे तक ठूँस-ठूँसकर सामान भरा जाता है, जिससे यात्रियों को आगे बैठने से लेकर चढऩे-उतरने में भी खासी तकलीफ होती है। वहीं पीछे की ओर चार-चार सीटें उखड़ी मिलीं, जहाँ सामान रखा हुआ था और यात्री खड़े हुए थे। इस मामले में तहलका संवाददाता ने जब बसों में बस चालक (ड्राइवर) और संवाहक (कंडक्टर) से बात की। इन लोगों ने बेखौफ होकर बताया कि बसों में सामान तो सालोंसाल से ढोया जा रहा है। संवाहक ने बताया कि सारा सिस्टम ही ऐसा है; क्या करें? दो पैसों के लालच में हम सामान ले जाते हैं। वहीं यात्रियों ने बताया कि बसों में कई बार सामान इस कदर भरा रहता है कि बुजुर्ग और गर्भवती महिलाओं को चढऩे उतरने में दिक्कत होती है। कोई शिकायत करता है, तो जवाब में कंडक्टर का दो-टूक जवाब होता है कि जो करना है, कर लो!

अब बात करते हैं बसों में कारोबारियों का सामान ढोने की; कि सामान कैसे और कहाँ से बसों में भरा जाता है और कहाँ जाता है। सामान ढोने के बदले मिलने वाले पैसे का बंदरबाँट ड्राइवर और कंडक्टर से लेकर परिवहन व्यवस्था में लगे अधिकारियों तक कैसे होता है? पड़ताल में पता चला कि हर रोज़ यात्रियों की गिनती के बहाने बसों में टिकट चैकर आकर देखता है कि आज कितना  सामान है? उसी के अनुपात में कंडक्टर सभी को पैसा वितरित करता है। आपस में चोर-सिपाही का भी खेल होता है। दिखावे के तौर पर बसों की जाँच होती है और सामान ढोकर अवैध कमाई होती है, जिसका बंदरबाँट होता है।

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन (कमला मार्केट) से चलने वाली बसें, जो सुबह 6:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे प्रति दिन चलती हैं। ये बसें तकरीबन एक-एक घंटे के अन्तर से चलती हैं। इनमें सदर बाज़ार से नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परी चौक के व्यापारी सामान ले जाते हैं। बसों में बड़े-बड़े गत्तों, बोरों में सामान भरा होता है। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रोडवेज बसें जब दिल्ली गेट होकर लोकनायक, जीबी पंत अस्पताल के पास वाले रूट से गुज़रती हैं, तो इन अस्पतालों में नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परीचौक तथा आसपास के गाँवों से इलाज कराने आये मरीज़, गर्भवती महिलाएँ और बच्चे वापसी के लिए इन बसों का इंतज़ार करते हैं। मगर इन बसों में बैठने के लिए सीट मिलना तो दूर की बात, कई बार खड़े रहने तक को जगह नहीं मिलती। साथ ही ऐसे लोगों को सामान भरा होने के चलते चढऩे-उतरने में काफी परेशानी होती है। यही हाल कश्मीरी गेट बस अड्डा और सराये काले खाँ से चलने वाली बसों का भी है। इन बसों में गाँधी नगर बाज़ार और लक्ष्मीनगर और लाजपत नगर मार्केट से बेचने के लिए खरीदा गया कारोबारियों सामान भरा जाता है।

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि बस कंडक्टर मोबाइल फोन के ज़रिये कारोबारियों के सपर्क में रहते हैं और तय करते हैं कि कितना सामान है? उसी के हिसाब से पैसा तय कर लेते हैं, जिससे बिना रोकटोक के सामान बसों में चढ़ाया और उतारा जा सके। हैरत की बात यह है कि इस सामान को बस कंडक्टर और ड्राइवर चढ़ाते-उतारते हैं। इसके लिए ये लोग अलग से पैसा लेते हैं। यही नहीं सामान चढ़ाने-उतारने के दौरान यात्रियों को कितनी परेशानी होती है? उनका कितना समय खराब होता है? इससे कंडक्टरों और ड्राइवरों को कुछ लेना-देना नहीं होता है। अगर यात्री कंडक्टर और ड्राइवर से कुछ कहते हैं, तो यात्री को धमकी भरे लहज़े में कहा जाता है कि जल्दी है, तो किसी और वाहन से चले जाओ, ज़्यादा शोर करोगे, तो बस से उतार देंगे।

एक बस कंडक्टर से तहलका संवाददाता ने जब व्यापारी बनकर गाँधी नगर से परी चौक तक सामान ले जाने की बात की, तो उसने कहा कि जितना सामान हो, ले आओ; किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी। संवाददाता ने अंजान बनकर पूछा कि किसी यात्री को कोई परेशानी तो नहीं होगी? तो संवाहक ने कहा कि यह मेरा काम है; सवारी को खड़ा कर देंगे। सारा सिस्टम आने हाथ में है। सामान ढुलाई का रेट पूछने पर उसने कहा कि एक गत्ते के 200 रुपये से लेकर 400 रुपये तक भाड़े के तौर पर लगेंगे। कंडक्टर ने बताया कि जबसे जीएसटी कानून आया है, तबसे सामान को कोई देखता ही नहीं है। त्योहारी सीजनों- होली, दीपावली और रक्षाबन्धन में भाड़ा बढ़ा देते हैं। क्योंकि त्योहारों के दौरानव्यापारी ज़्यादा सामान ले जाते हैं।

संवाददाता ने एक व्यापारी प्रदीप गुप्ता से बातचीत की। प्रदीप ने बताया कि वह प्रत्येक रविवार को गाँधी नगर (दिल्ली) से इन्हीं रोजवेज बसों में सामान ले जाते हैं। बसों में सामान का भाड़ा छोटे-छोटे माल ढुलाई के लिए बने तीन पहिया वाहनों (लोडरों) की अपेक्षा सस्ता पड़ता है, इसलिए नोएडा, गं्रेटर नोएडा और परी चौक के सारे व्यापारी उत्तर प्रदेश परिवहन की बसों मेंं ही सामान ले जाते हैं।

गाँधी नगर मार्केट के बाहर कारोबारियों का सामान ले जाने वाले लोडर चालकों- कुन्ने और बिहारी से बात की, तो उन्होंने बताया कि लोडर नोएडा, ग्रेटर नोएडा और परीचौक के कारोबारियों का सामान जब नम्बर-1 में ले जाते हैं, तो पुलिस तमाम जगह उनको रोककर वाहन के कागज़ात देखते हैं और सामान का बिल भी माँगते हैं। इसके चलते लोडर चालकों को परेशानी होती है। ऐसे में कारोबारी बसों में सामान ले जाते हैं। इन लोडर चालकों ने अपनी पीड़ी व्यक्त करते हुए कहा कि लोडर चालक बेरोज़गारों की तरह खड़े रहते हैं। जो वाहन उन्होंने बैक से कर्ज़ लेकर खरीदे हैं, उनकी िकस्त समय पर नहीं दे पा रहे हैं। शासन-प्रशासन की मिली-भगत से राजस्व को चूना लगाया जा रहा है।

परी चौक से सटे गाँव ऐचछर निवासी परमानंद ने बताया कि उनके भाई का जीबी पंत अस्पताल में हार्ट का ऑपरेशन 24 जनवरी को हुआ था। अस्पताल से छुट्टी के बाद जब वे रोडवेज बस में अपने भाई को लेकर चढ़े, तो उसमें इस कदर सामान भरा पड़ा था कि नोएडा सेक्टर-16 तक अपने मरीज़ भाई को खड़ा करके लाये। ड्राइवर-संवाहक से उन्होंने लाख विनती की, लेकिन उन्हें बस में जगह न होने का बहाना बनाकर टाल दिया गया, जबकि बस में सामान ठूँसा जाता रहा। परमानंद ने जब कंडक्टर से कहा कि ये बस तो यात्रियों के लिए है, तो उसने कहा कि जाओ, जहाँ शिकायत करना है, कर दो। दु:ख की बात यह है कि परमानंद ने इसकी शिकायत उत्तर प्रदेश में परिवहन आयुक्त से लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। यही वजह है कि रोडवेज बसों के ड्राइवरों-कंडक्टरों के हौसले बुलंद हैं और वे रोडवेज की यात्री बसों को सामान ढोने वाली बसें बनाते जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश परिवहन व्यवस्था से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश की जो बसें नोएडा, ग्रेटर नोएडा, परी चौक, कासना, दादरी, अलीगढ़ और मेरठ तक जाती हैं, उन बसों में कारोबारी दिल्ली से कपड़ा, ऑटो पाट्र्स और अन्य सामान ले जाते हैं। यात्रियों के टिकट चैकर के तौर पर जो अधिकारी तैनात किये गये हैं, उनकी आपसी साँठगाँठ की वजह से बसों में कारोबारियों का सामान  धड़ल्ले से आता-जाता है। सामान के कारण बसों को यात्रियों को बैठने को जगह नहीं मिलती है। कई बार तो बस का कंडक्टर यात्रियों से एक दो बैग अधिक होने पर भी अलग से पैसे वसूलता है, जो कि अवैध है।

मुकेश अंबानी परिवार के खिलाफ जाँच!

आयकर विभाग ने मुकेश अंबानी परिवार के सदस्यों के िखलाफ चल रही जाँच के सिलसिले में कथित तौर पर सात देशों में अपने समकक्षों से विस्तृत जानकारी माँगी है। एक ज़िम्मेदार और निष्पक्ष मीडिया हाउस होने के नाते ‘तहलका’ ने इस पर जानकारी के लिए मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को चार ईमेल भेजीं। जिसका स्वचालित जवाब आया- ‘हमें लिखने के लिए धन्यवाद। आपकी प्रतिक्रिया/सवाल सफलतापूर्वक दर्ज कर लिया गया है। हम जल्द-से-जल्द आपके सवाल का जवाब देने का प्रयास करेंगे। यदि आवश्यकता हुई, तो हमारे अधिकारियों में से कोई भी आपके सम्पर्क में रहेगा।’ हालाँकि, यह रिपोर्ट फाइल करते समय तक रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड से किसी ने भी अनुरोध के अनुसार सवालों के जवाब नहीं दिये।

एक रिपोर्ट के अनुसार, कथित अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति की जाँच काले धन अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत की जा रही है, जैसा कि आईटी विभाग ने आरोप लगाये हैं। जिन सात देशों से जानकारी माँगी गयी है वे अमेरिका, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, सेंट लूसिया, मॉरिटस, लक्समबर्ग और बेल्जियम हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार,आईटी विभाग ने पिछले महीने प्रश्न भेजे थे।

वे मुख्य रूप से कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के बारे में थे, जो कि आईटी विभाग के अनुसार, विदेशी निधियों को वैश्विक डिपॉजिटरी प्राप्तियों (जीडीआर) को स्थानांतरित करने के उद्देश्य से इस्तेमाल किया गया था। इससे पहले, इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि आयकर विभाग की मुम्बई इकाई ने कई देशों में एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर जाँच के बाद मुकेश अंबानी परिवार के सदस्यों को नोटिस दिये हैं।

सरकार के 2011 में एचएसबीसी जिनेवा में अनुमानित 700 भारतीय व्यक्तियों और संस्थाओं के खातों का विवरण प्राप्त होने के बाद आईटी जाँच शुरू हुई। कथित तौर पर मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्यों को उनके कथित अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति के लिए नोटिस दिये गये थे।

आयकर विभाग ने स्पष्ट रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी और उनके परिवार को 2015 के काले धन अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक नोटिस जारी किया है। रिपोर्ट के अनुसार, आईटी विभाग ने अंबानी को जिनेवा में एचएसबीसी बैंक में परिवार की अघोषित सम्पत्ति के बारे में बताने के लिए कहा है। खबरों के मुताबिक, आईटी विभाग ने पहली बार मार्च में परिवार को विदेशों में उनकी अघोषित सम्पत्ति का हवाला देते हुए नोटिस जारी किया था। इसने 12 अप्रैल को परिवार के साथ एक बैठक भी की थी।

आईटी अधिकारियों की जाँच के निष्कर्षों के अनुसार, मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्य एचएसबीसी, जेनेवा में बैंक खाते के लाभार्थी हैं। इन निष्कर्षों के बारे में रिपोर्ट विभिन्न विदेशी एजेंसियों से साल 2015 के ब्लैक मनी एक्ट के आधार पर जुटायी गयी थी।

आयकर विभाग ने कथित तौर पर मुकेश अंबानी परिवार के सदस्यों के बारे में यूक्रेन में कथित अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति की जानकारी के लिए भारत के साथ समझौते से जुड़े सात देशों स्विट्जरलैंड, सेंट लूसिया, मॉरीशस, लक्समबर्ग, अमेरिका, ब्रिटेन और बेल्जियम के साथ सूचना का आदान प्रदान किया था।

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि आईटी विभाग के नोटिस में मुकेश अंबानी के तीन बच्चों के नाम भी शामिल थे। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अम्बानी केमैन द्वीप स्थित इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी लिमिटेड में विवरण और होल्डिंग्स का खुलासा करने में विफल रहे थे, जिसके वे प्रमुख लाभार्थी भी थे। यहाँ यह गौरतलब है कि स्विस लीक्स ने, 2015 में 14 होल्डिंग्स समेत कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट से जुड़े 1,195 भारतीय खातों के नाम उजागर किये थे और इन्हें 628 भारतीयों से जुड़े पाया था, जिनके अंबानी सहित एचएसबीसी प्राइवेट बैंक में खाते थे। साल 2006-07 में इन खातों में सामूहिक राशि 25,000 करोड़ आँकी गयी थी।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2015 के ब्लैक मनी एक्ट के तहत नीता अंबानी और उनके तीन बच्चों को नोटिस दिये गये थे। जाँच में मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह को ऑफशोर संस्थाओं से जोड़ा गया था, जिन्होंने 14 एचएसबीसी जेनेवा बैंक खातों में लगभग 601 मिलियन डॉलर जमा किये थे। मार्च, 2019 के आयकर नोटिस के अनुसार, अंबानी परिवार के सदस्यों को इन 14 संस्थाओं में से एक- कैपिटल इनवेस्टमेंट ट्रस्ट के प्रमुख लाभार्थियों के रूप में नामित किया गया है।

आयकर (आईटी) विभाग ने रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्यों को विदेशी आय के कथित हेरफेर को लेकर जारी कारण बताओ नोटिस के बाद दूसरे देशों से स्पष्टीकरण माँगा है। यह नोटिस ब्लैक मनी (अघोषित विदेशी आय और सम्पत्ति) और कर के प्रभाव या बीएम (यूएफआई एंड ए) और आईटी अधिनियम के प्रावधानों के तहत जारी किये गयेे थे। फॉरेन टैक्स एंड टैक्स रिसर्च इकाई अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, मॉरीशस, आर्मेनिया और लक्जमबर्ग से जानकारी माँग रही है। इसने सेंट लूसिया से भी आपसी कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) के तहत जानकारी माँगी है। आई-टी दस्तावेज़ों के अनुसार, बार्टो होल्डिंग्स कथित रूप से कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (सीआईटी) नामक इकाई का लाभार्थी था। कैपिटल इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (सीआईटी) को केजे द्वीप समूह में एक सीजे दमानी द्वारा शामिल किया गया था। वर्षों से दमानी द्वारा नियंत्रित कई ऑफशोर इकाइयाँ स्थापित की गयीं, जिनकी होल्डिंग कम्पनी नेशनल इंडस्ट्रीज थी।

आईटी विभाग का आरोप है कि अंबानी परिवार के स्वामित्व वाली दो भारतीय संस्थाओं को विदेशी मुद्रा हस्तांतरित करने के लिए सीआईटी का इस्तेमाल 400 मिलियन डॉलर मूल्य की जीडीआर में किया गया था। सीआईटी ने इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी (आईसीएल) के स्वामित्व वाली थेम्स ग्लोबल को खरीदा, जो परिवार-नियंत्रित कम्पनियों में निवेश के लिए जीडीआर का आयोजन करेगी। इसके बाद दमानी के स्वामित्व वाली एक बीवीआई कम्पनी, टोकेन एसेट ट्रेडिंग के माध्यम से कथित तौर पर 400 मिलियन डॉलर आईसीएल में लाये गये।  आईटी विभाग के पास दस्तावेज़ हैं, जो यह ज़ाहिर करते हैं कि आईसीएल ने रिलायंस पोर्ट एंड टर्मिनल (आरपीटीएल) और रिलायंस यूटिलिटी एंड पॉवर (आरयूपीएल) के जीडीआर की खरीद के लिए 400 मिलियन डॉलर का निवेश किया। नोटिस में कथित तौर पर कहा गया है कि बीएम (यूएफआई और ए) और आईटी अधिनियम की धारा-3 के अनुसार, भारत के

बाहर स्थित किसी भी अघोषित सम्पत्ति पर पिछले वर्ष के उसके मूल्य के आधार पर कर लगाया जाएगा, जिसमें ऐसी सम्पत्ति का आकलन अधिकारी के ध्यान में आया है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को भेजे गये संस्करण के ईमेल को यहाँ पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है :-

प्रिय महोदय/महोदया,

तहलका काले धन अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत चल रही जाँच पर एक रिपोर्ट कर रहा है, जिसमें जेनेवा में एचएसबीसी बैंक में अज्ञात विदेशी आय और सम्पत्तियों और उसके बाद आयकर नोटिस जारी करने में श्री मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्यों की संलिप्तता का आरोप लगाया गया है।

एक ज़िम्मेदार मीडिया हाउस के रूप में हम रिपोर्ट में आपके विचार / बयान को शामिल करना चाहेंगे। कृपया अगले तीन दिन के भीतर नीचे दिये गये प्रश्नों पर अपनी टिप्पणी भेजें।

1. क्या आयकर विभाग ने काले धन अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के तहत चल रही जाँच के सम्बन्ध में मुकेश अंबानी और उनके परिवार के सदस्यों को एक नोटिस जारी किया है, जिसके लिए कि आईटी विभाग का अघोषित विदेशी आय और जेनेवा के  एचएसबीसी बैंक में सम्पत्ति होने का आरोप है।

2. क्या यह सच है कि आईटी विभाग ने पत्र तब भेजे, जब निर्धारितियों- नीता अंबानी और उनके तीन बच्चों ईशा, अनंत और आकाश ने आईटी नोटिस का प्रतिकार किया और अवैध बताते हुए उसे बीएम (यूएफआईएंडए) और आईटी का उल्लंघन करने वाला बताया। आईटी विभाग ने 12 अप्रैल को इस मामले की सुनवाई की थी। क्या यह सच है कि 28 को जारी किये गये आईटी विभाग के नोटिस में कहा गया है कि आप ट्रस्ट कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट के विवरण का खुलासा करने में विफल रहे हैं, जिसकी अंतर्निहित कम्पनी केमैन द्वीप स्थित इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी है?

3. आरोप हैं कि कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट का इस्तेमाल ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसीट्स (जीडीआर) सहित विदेशी फंड्स को ट्रांसफर करने के उद्देश्य से किया गया था। और 28 मार्च, 2019 को मुकेश अंबानी के परिवार के सदस्यों के नाम पर उनकी कथित अज्ञात विदेशी आय और सम्पत्ति के लिए नोटिस दिये गये थे।

4. क्या आप जानते हैं कि आईटी विभाग ने मुकेश अंबानी परिवार के सदस्यों की  यूक्रेन में सात देशों स्विट्जरलैंड, सेंट लूसिया, मॉरीशस, लक्समबर्ग, अमेरिका, ब्रिटेन और बेल्जियम के साथ भारत की एक त्रैमासिक बैठक में हुए समझौते को लेकर सूचना साझा की थी।

5. क्या आप जानते हैं कि स्विस लीक्स ने 2015 में 14 होल्डिंग्स समेत कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट से जुड़े 1,195 भारतीय खातों के नाम उजागर किये थे और इन्हें 628 भारतीयों से जुड़े पाया था, जिनके अंबानी सहित एचएसबीसी प्राइवेट बैंक में खाते थे। साल 2006-07 में इन खातों में सामूहिक राशि 25,000 करोड़ रुपये थी।

6. आरोप है कि आईटी विभाग के नोटिस में आरोप लगाया गया है कि अम्बानी कैपिटल इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट और केमैन आइलैंड्स स्थित इसकी अंतर्निहित कम्पनी इन्फ्रास्ट्रक्चर कम्पनी लिमिटेड के विवरण और होल्डिंग्स का खुलासा करने में विफल रहे, जिसके वे मुख्य लाभार्थी भी थे।

बजटीय प्रावधानों से बैंक होंगे मज़बूत

बैंकों को अर्थ-व्यवस्था का मूल आधार माना जा सकता है। इन्हें मज़बूत किये बिना हम अर्थ-व्यवस्था को बेहतर बनाने की परिकृपना नहीं कर सकते हैं। इसलिए अर्थ-व्यवस्था में छायी सुस्ती को दूर करने के लिए बैंकों के कारोबार को बढ़ाना ज़रूरी है। वर्ष 2019 के दौरान बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में 7.9 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है, जबकि वर्ष 2018 के दौरान इसमें 15.1 फीसदी के दर से वृद्धि हुई थी। भारत को 2024 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाने के लिए बैंकिंग क्रेडिट को मौज़ूदा स्तर से दोगुना करना ज़रूरी है।

जमा बीमा गारंटी सीमा में बढ़ोतरी

सरकार ने बजट 2020-21 में प्रति जमाकर्ता जमा बीमा कवरेज़ को एक लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव किया है। इससे जमाकर्ताओं का बैंकों पर भरोसा बढ़ेगा और बैंकों में पूँजी की समस्या कम होगी। जमा बीमा गारंटी सीमा में बढ़ोतरी से भारत में यह प्रति व्यक्ति आय का करीब 3.7 गुना हो गया है, जबकि ब्राजील में यह प्रति व्यक्ति आय का लगभग 7.1 गुना और अमेरिका में यह प्रति व्यक्ति आय का लगभग 4.2 गुना है। इसे नीचे दी गयी तालिका से समझा जा सकता है :-

विभिन्न देशों में जमा बीमा कवरेज़ और प्रति व्यक्ति आय; यूएसडी डॉलर में

देश       प्रति व्यक्ति जमा बीमा कवरेज़       आय प्रति व्यक्ति  जमा बीमा कवरेज़ (आय के गुणक में)

आस्ट्रेलिया         182650            57821  3.2

ब्राजील  64025  8959    7.1

कनाडा  72254  45288  1.6

फ्रांस     108870            41287  2.6

जर्मनी    108870            47615  2.3

भारत    7540    2041    3.7

इटली    108870            34488  3.2

जापान   88746  39313  2.3

रूस      19210  11288  1.7

यूनाइटेड किंगडम           111143            42978  2.6

अमेरिका            250000            59484  4.2

स्रोत : विश्व बैंक, सीईआईसी

आईडीबीआई बैंक में विनिवेश

इस बजट में सरकार ने स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से आईडीबीआई बैंक लिमिटेड में विनिवेश का प्रस्ताव किया है। इससे विनिवेश की राशि सीधे सरकार को मिलेगी। खुदरा निवेशक भी आईडीबीआई के शेयर खरीद सकेंगे। इससे इस बैंक को निर्णय लेने में आसानी होगी।

बैंकों को पूँजीगत एवं अन्य सहायता

बैंकिंग कारोबार व कामकाज में सुधार लाने के लिए बीते महीनों में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 3.5 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था, ताकि भारतीय बैंक प्रतिस्पर्धी, पारदर्शी और पेशेवर बनें। सरकार बैंकों को बाज़ार से पूँजी उगाहने को भी प्रोत्साहित कर रही है, ताकि उनकी पूँजी की अतिरिक्त ज़रूरतें पूरी हो सकें। बैंकों में व्यावसायिकता और पेशेवरता बढ़ाने के लिए बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन होगा। सरकार सहकारी बैंकों को भी मज़बूत बनाने के पक्ष में है, जिसके तहत आरबीआई सीधे तौर पर सहकारी बैंकों पर निगरानी रखेगा।

एनबीएफसी में सुधार

एनबीएफसी की मज़बूती के लिए सरकार ने फँसे कर्ज़ की वसूली के लिए सरफेसी (एसएआर एफएईएसआई) अधिनियम-2002 के तहत एनबीएफसी की पात्रता सीमा कम की है। इसके तहत 500 करोड़ रुपये की मौज़ूदा परिसम्पत्ति सीमा को कम करके 100 करोड़ रुपये किया गया है। वहीं कर्ज़ एक करोड़ रुपये से घटाकर 50 लाख रुपये किया गया है। माना जा रहा है कि इन बदलावों से एनबीएफसी के फँसे कर्ज़ (एनपीए) की वसूली में तेज़ी आएगी। इसके अलावा बजट 2020-21 में बैंकों के कारोबार को बढ़ाने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अनेक उपाय किये गये हैं।

आवास

बजट में आवास-विकास (अफोर्डेबल आवास निर्माण) को मार्च, 2021 तक टैक्स होली-डे की सुविधा दी गयी है। अफोर्डेबल आवास खरीदने वालों को बैंक कर्ज़ पर ब्याज भुगतान में मार्च, 2021 तक 1.5 लाख रुपये तक की छूट दी जाएगी। माना जा रहा है कि इन प्रावधानों से लोग होम लोन के लिए प्रेरित होंगे।

असेम्बल इन इंडिया

बजट में मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सेमीकंडक्टर के निर्माण के मामले में मेक इन इंडिया की जगह असेम्बल इन इंडिया की संकल्पना को अमलीजामा पहनाने की बात कही गयी है। चीन को इस नीति से काफी लाभ हुआ है। भारत में भी इस संकल्पना को अपनाने से आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी के साथ काफी लोगों को रोज़गार मिलने की सम्भावना है।

आधारभूत संरचना का विकास

बजट में एयरपोर्ट, सड़क, सीमेंट, स्टील आदि के विकास पर विशेष ज़ोर दिया गया है। वर्ष 2024 तक 100 नये एयरपोर्ट, दिल्ली-मुम्बई एक्सप्रेसवे, चेन्नई-बेंगलूरु हाईवे बनाये जाएँगे। आधारभूत संरचना की मज़बूत के लिए अगले पाँच वर्षों में 100 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जाएँगे। परिवहन संरचना को मज़बूत बनाने के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये का बजट है। मेट्रो मॉडल की तरह 18,600 करोड़ की लागत से 148 किलोमीटर बेंगलूरु सबअर्बन परियोजना विकसित की जाएगी। रेलवे के चार स्टेशनों का पुनर्विकास होगा। 150 पेसेंजर ट्रेनें पीपीपी मॉडल की तर्ज पर चलायी जााएगी। राष्ट्रीय गैस ग्रिड को 16,200 कि.मी. से बढ़ाकर 27,000 कि.मी. किया जाएगा। बजट में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना-ढ्ढढ्ढढ्ढ के तहत 1,25,000 कि.मी. सड़कों की मरम्मत की जाएगी है। बजट में नेशनल हाईवे और स्टेट हाईवे और बेहतर बनाये जाएँगे। विदित हो कि एक क्षेत्र के विकास से दूसरे क्षेत्र में माँग सृजित होती है, जिससे आर्थिक वृद्धि दर में तेज़ी आती है।

एफएमसीजी

फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एमएमसीजी) को बढ़ावा देने के लिए बजट में सीधे तौर पर तो कोई प्रावधान नहीं किये गये हैं। लेकिन कृषि क्षेत्र, ग्रामीण विकास को सुनिश्चित करने, कृषि ऋण की व्यवस्था करने, भंडारण प्रणाली को पुख्ता करने आदि उपायों से एफएमसीजी क्षेत्र में बेहतरी आने की सम्भावना है। जब उत्पादों की माँग बढ़ेगी, तो उसका उत्पादन भी किया जाएगा, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आएगी साथ-ही-साथ लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।

ऑटोमोबाइल

ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए इस बजट में कोई खास प्रत्यक्ष घोषणा नहीं की गयी है। लेकिन पूर्व की घोषणाओं से इस क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी। जैसे इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर आयकर में 1.5 लाख रुपये तक की छूट देने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा भी इलेक्ट्रिक वाहन की बैटरियों को चार्ज करने के लिए स्थापित किये जाने वाले चाॄजग स्टेशनों से जुड़े उपकरणों एवं ज़रूरी सामानों पर छूट देने की घोषणा की गयी है।

छोटे कारोबारियों को बढ़ावा

युवाओं में उद्यमशीलता बढ़ाने के लिए बजट में कई योजनाएँ लाने की बात की है। जीडीपी वृद्धि दर में तेज़ी लाने और रोज़गार बढ़ाने के लिए छोटे कारोबारियों के फायदे के लिए बजट में कई घोषणाएँ की गयी हैं। बजट में कहा गया कि सिंगल विंडो वाले ई-लॉजिस्टिक्स बाज़ार का गठन करने, रोज़गार सृजन बढ़ाने और छोटे कारोबारियों को प्रतिस्पर्धी बनाने हेतु एक राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति लायी जाएगी। बता दें कि नये स्टार्टअप को शुरू करने के लिए वित्तीय सहायता की दरकार होती है। सरकार ने इन्हें मदद मुहैया कराने के लिए बैंकों को दिशा-निर्देश दिये हैं।

एमएसएमई की जाएगी मज़बूत

बजट में सरकार ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र को मज़बूत बनाने की कोशिश जारी रखी है। गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान द्वारा फैक्टर रेगुलेशन एक्ट-2011 में सुधार करके छोटे कारोबारियों को ट्रेड्स के ज़रिये चालान के आधार पर कर्ज़ देने के लिए सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट के ज़रिये गारंटी दी जाएगी। इसकी स्थापना लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के सहयोग से मध्यम, लघु और सूक्ष्म उद्यम मंत्रालय ने की है। डेट री-स्ट्रक्चरिंग विंडो की अवधि बढ़ाकर 31 मार्च, 2021 की गयी है; जिससे 5 लाख एमएसएमई लाभान्वित हो सकते हैं। वहीं नयी मैन्यूफैक्चरिंग कम्पनियों पर सिर्फ 15 फीसदी कर लगाया जाएगा। बजट में घोषणा की गयी है कि 25 करोड़ रुपये तक कारोबार करने वाले कारोबारियों को तीन साल तक कोई कर (टैक्स) नहीं देना पड़ेगा।

कृषि और कर्ज़ के लिए प्रावधान

वर्ष 2020-21 के बजट में कृषि और ग्रामीण विकास के लिए पिछले साल के मुकाबले 1.52 लाख करोड़ रुपये ज़्यादा यानी 2.83 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। पिछले साल के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए 130458 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। यह लगातार तीसरा साल है, जब कृषि क्षेत्र के बजट आवंटन राशि में भारी-भरकम बढ़ोतरी की गयी है। गौरतलब है कि बजट 2017-18 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए सिर्फ 51576 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इस साल के बजट में ग्रामीण विकास और पंचायतीराज के लिए 1.23 लाख करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। बजट 2020-21 में कृषि ऋण के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है; जबकि वर्ष 2019-20 में इस मद में 1.2 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। अल्पावधि कृषि ऋण के लिए बजट 2020-21 में 21,175 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है; जो 2019-20 के संशोधित अनुमान की तुलना में 18.54 फीसदी अधिक है। बजट 2020-21 में वेयर हाउस में अनाज रखने की रसीद पर कर्ज़ देने पर भी ज़ोर दिया गया है।

निष्कर्ष

बैंकिंग क्षेत्र के लिए बजट में सबसे महत्त्वपूर्ण घोषणा जमा गारंटी सीमा को एक लाख से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये करना है। सरकार के इस कदम से जमाकर्ताओं का बैंक पर भरोसा बढ़ेगा, जिससे बैंक के जमा आधार में बढ़ोतरी होगी। उम्मीद है कि आईडीबीआई बैंक लि. में हिस्सेदारी बेचने से बैंक के प्रदर्शन में बेहतरी आएगी। एनबीएफसी में सुधार से बैंकिंग का ग्रामीण इलाकों में आधार बढ़ेगा साथ-साथ एनपीए की वसूली में भी तेज़ी आएगी। एमएसएमई को मज़बूत करने से स्वाभाविक रूप से बैंकों के कारोबार में बढ़ोतरी होगी। हाल में बैंकों में किये गये 3,50,000 करोड़ रुपये के निवेश से बैंकिंग प्रणाली में सुधार और उनके कामकाज में पारदर्शिता आने की सम्भावना है। बजट में अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे कई प्रस्ताव किये गये हैं, जिनसे बैंकों के कारोबार में इज़ाफा होगा। आर्थिक गतिविधियों एवं रोज़गार सृजन में तेज़ी आएगी और अर्थ-व्यवस्था में छायी सुस्ती को भी दूर करने में मदद मिलेगी।

विश्लेषण के स्रोत : बजट दस्तावेज़, भारतीय रिजर्व बैंक की बेवसाइट, विभिन्न बैंकों की बेबसाइट्स

(लेखक बैंकर और कवि हैं।)

बागवानी से हिमाचल की अर्थ-व्यवस्था बाग-बाग

हिमाचल का नाम सुनते ही दिल खुश हो जाता हैं, नज़रों में सुन्दर दृश्य घूमने लगते हैं, सुन्दर वादियों की मनमोहक छटा याद आने लगती है।लेकिन सुंदर वादियों के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश अपने बहुमूल्य जड़ी-बूटियों, मसालों, मेवों और स्वादिष्ट फलों के लिए भी जाना-जाता है। यही फल, मेवे, मसाले और जड़ी-बूटियाँ हिमाचल में रहने वाले लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत भी हैं। राज्य में रहने वाले लोग यहाँ कई प्रकार के फलों व सब्ज़ियों की खेती करते हैं। इनमें हिमाचल का सेब बहुत मशहूर है।

यहाँ के 2.30 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बागवानी होती है। 2019 में फलों का उत्पादन बढ़कर 10.38 लाख टन हो गया है। राज्य में करीब 9 लाख लोग बागवानी करते हैं, जिससे राज्य की आय में 3000 से 5000 करोड़ रुपये तक का योगदान होता है। हिमाचल में पिछले दिनों 30.37 लाख से अधिक फलों के पौधे किसानों को बाँटे गये। वर्तमान राज्य सरकार के सूत्रों के अनुसार, बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 8446.93 हेक्टेयर भूमि पर फलों की खेती बढ़ायी जाएगी। बता दें हिमाचल अलग-अलग जलवायु और भौगोलिक स्थिति वाला राज्य है, जिसके चलते यहाँ अनेक प्रकार के फलों व सब्ज़ियों की खेती होती है।  बागवानी यहाँ की अर्थ-व्यवस्था का मुख्य स्रोत है और इससे राज्य समृद्ध हुआ है। राज्य में 35 से भी ज़्यादा प्रकार की सब्ज़ियाँ व फल उगाये जाते हैं।

यहाँ 83,677 वर्ग मीटर जगह ग्रीन-हाउस के लिए घेरी गयी है, जबकि मीशन फॉर इंटीग्रेटिड डेवलपमेंट ऑफ हाॢटकल्चर (एमआईडीएच) के तहत 9,44,215 वर्ग मीटर भूमि एंटी-हेल नेट्स के लिए घेरी गयी है। सरकार अच्छी बागवानी के लिए किसानों को 3,049 आधुनिक यंत्र प्रदान करेगी। नेपसैक स्प्रेयर के साथ-साथ 196 मशीनों के अलावा 1500 हस्त संचालित उद्यान कृषि यंत्र भी प्रदान किये जा रहे हैं।

सिंचाई के लिए 198 जल-संग्रह टैंकों का निर्माण करेगी। फसल को कीटों से बचाने के लिए 5.21 करोड़ रुपये की 349.90 टन कीटनाशक पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी। उत्पादन की पारिश्रमिक कीमतों को सुनिश्चित करने के लिए 27,348.91 टन सेब, आम और खट्टे फल मार्केट इंटरवेंशन स्कीम के तहत किसानों से खरीदे गये, जिनकी कीमत 2064.74 लाख रुपये थी। इसके अलावा अलग-अलग फलों के लिए 1,33,333 प्लास्टिक के बक्से खरीदकर किसानों में वितरित किये गये।

सूत्रों की मानें तो राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत बागवानी को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने 3.50 करोड़ रुपये का बजट मंज़ूर किया है। 2017-2018 के दौरान लागू की गयी पुनॢनॢमत-मौसम आधारित फसल बीमा (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) योजना के तहत 1,61,524 किसानों की सेब, आम, खट्टे फलों, बेर और आड़ू की फसलों के 110 ब्लॉकों का बीमा किया जाएगा।

करीब 70,104 बागवानी से प्रभावित क्षेत्रों को 49.94 करोड़ के इशोरेंस की मदद भी दी गयी है। राज्य सरकार ने राज्य आपदा राहत कोष, आपदा राहत कोष में 2.7 करोड़ का निवेश किया हैं, जिससे प्रत्येक वर्ष आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से बागवानी को भारी नुकसान से बचाया जा सकें।

राज्य सरकार फल उत्पादकों को सूचना देने के लिए नि:शुल्क सलाह प्रदान कर रही है, ताकि वे अपने बागों की पोषण स्थिति पता कर सकें। हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक वर्ष 20,000 पत्तियों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे उत्पादकता, और लाभ बढ़े तथा अच्छी फसल की बाज़ार तक पहुँच बढ़ाई जा सके। वर्ष 2016-17 में विश्व बैंक ने राज्य को बागवानी को बढ़ावा देने के लिए 1134 करोड़ की सहायता भी प्रदान की थी। वर्ष 2018-19 के अंतर्गत सेब, नाशपाती और अखरोट के 3,76,500 लाख पेड़ों को आयातित किया गया, जिनकी कीमत 25 लाख रुपये थी। जबकि 9 लाख रुपये की लागत वाले आम, लीची, अमरूद और खट्टे फलों के 16,312 पौधे किसानों के बीच वितरित करने के लिए दूसरे राज्य से भी मँगवाये गये थे।

इस योजना के तहत 58 प्रशिक्षित अधिकारी राज्य और राज्य के बाहर अच्छी बागवानी के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करेंगे। इसके लिए न्यूज़ीलैंड के विशेषज्ञ द्वारा 320 कृषि अधिकारियों व 501 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। बागवानी करने वाले 90,734 किसानों को व्यक्तिगत सम्पर्क, सेमिनार, प्रशिक्षण पर्यटन दवारा प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। सरकार द्वारा राज्य के किसानों को लाभ पहुँचाने के लिए राज्य सरकार ने एम-किसान कार्यक्रम को आरम्भ किया, इसके अंतर्गत 7,68,774 किसानों को पंजीकृत किया गया, जिससे उनकी खेती से सम्बन्धित सभी समस्याओं को दूर किया जाएगा, ताकि वे स्वस्थ फलों का उत्पादन कर सकें। एशियाई विकास बैंक द्वारा 1,688 करोड़ की योजना राज्य में सबट्रॉपिकल फल विकास कार्यान्वयन के लिए प्रस्तावित करेगा, जिससे बागवानी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी।

कृषि उद्योग मंत्री महेंदर सिंह ठाकुर ने बताया राज्य सरकार एक योजना बना रही हैं, जिसके अंतर्गत अलग-अलग राज्यों में बागवानी में हो रहे विकास को सुनिश्चित किया जा सकेगा। जिसमें विशेषज्ञों की टीम अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर क्षेत्र की जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट योजना तैयार करेगी, ताकि पौधों का महत्त्व और अस्तित्व सुनिश्चित किया जा सकेगा और किसानों की माँग के अनुसार नर्सरी भी विकसित की जाएगी।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में बागवान विकास परियोजना के लिए विश्व बैंक ने प्रदेश को 1134 करोड़ों का फंड दिया है। इस धन से सेब, नाशपाती, लीची, अमरूद, अखरोट और खट्टे फलों के पौधों को किसानों के बीच वितरित किया गया। इस परियोजना के तहत राज्य के 28 बीच सबट्रॉपिकल समूहों में आम, लीची, अमरूद, व खट्टे फलों के 14,406 पौधे प्रदान किये जाएँगे।

राज्य सरकार ने बागवानी के एकीकृत विकास के लिए राज्य में एकीकृत विकास मिशन को बढ़ावा दिया है। परियोजना के तहत विभिन्न गतिविधियाँ जैसे- पौधों की नर्सरी, पानी के संग्रह टैंक, बागवानी क्षेत्र में वृद्धि, ग्रीन हाउस के तहत खेतों की सुरक्षा, जैविक खेती, फसल प्रबन्धन और खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियाँ प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाएगा। राज्य सरकार ने बाग़वानी मे विकास को सही ढंग से लागू किया है। राज्य के एमआईएस के तहत सेब, आम और खट्टे फलों का ब्यौरा रखा जाता था। साथ ही साथ फल आधार प्रसंस्करण इकाई जैसे- शराब और साइडर लगाये जाने का भी दबाव था। किसानों को पारिश्रमिक मूल्य सुनिश्चित करना। राज्य सरकार भंड़ारण और पैकिंग के उन्नयन को स्थापित करने पर भी काम कर रही है। राज्य सरकार ने मार्केट इंटरवेशन स्कीम के तहत खट्टे फलों की खरीद कीमतों मे वृद्धि भी तय की हैं। खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को राज्य में बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि बागवानी का अधिकतम प्रयोग किया जा सके। 21 नवंबर, 2019 से 15 फरवरी, 2020 तक राज्य के विभिन्न हिस्सों मे 54 खरीद केंद्र खोले जाएँगे।

राज्य में फ्लोरीक्लचर के व्यापक दायरे को ध्यान में रखते हुए सरकार ने क्रान्ति योजना, मुख्य मंत्री हरित क्रान्ति नवीकरण योजना और एंटी हेल नेट की स्थापना की। इससे बागवानी को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ-साथ एशियाई विकास बैंक ने राज्य को 1,688 करोड़ और सबट्रॉपिकल फलों के विकास के लिए 423 करोड़ रुपये सुनिश्चित किये हैं, जिसमें मुख्यत: मशरूम को शामिल किया गया है। सरकार ने एम-किसान योजना का भी आरम्भ किया है। इस योजना के तहत कृषक समुदायों और किसानों को पंजीकृत कर उनकी समस्याओं को दूर किया जाएगा।

कुत्सित मानसिकता वालों के आसान शिकार हैं बच्चे

18 फरवरी को देश के एतिहासिक-सांस्कृतिक शहर भोपाल की एक बस्ती में बीई (बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग) अंतिम वर्ष के 24 साल के छात्र ने पांच साल की मासूम बच्ची से अश्लील हरकत की और उसने पुलिस के सामने कबूला कि यह सब करने से पहले उसने पोर्न मूबी देखी थी। पूछताछ में उसने यह भी बताया कि वह पोर्न मूबी देखने का आदी है। थोड़ा सा ही पीछे लौटे तो हैदराबाद की घटना का जिक्र करने पर यह नहीं भूलना चाहिए कि महिला पशु चिकित्सक के साथ दरिंदगी करने वालों ने भी ऐसा करने से पहले पोर्न वीडियो देखे थे। इसी कड़ी में निर्भया का मामला भी अति महत्वपूर्ण है क्योंकि अपराधियों ने भी पोर्न सामग्री देखने के बाद ही उसे अपनी घिनौनी कामुकता का निशाना बनाया था। यहां ऐसे मामलों के जिक्र के संदर्भ को समझना जरूरी है। भारत में हर 15वें मिनट में एक बलात्कार होता है और हर 10 मिनट में एक बाल यौन शोषण का पॉर्न विडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है। अगस्त 2019 से लेकर 23 जनवरी 2020 तक ऐसे मामलों की संख्या 25,000 है। विश्वभर की 164 टेक कंपनियों द्वारा अमेरिका की एक एजेंसी को सौंपी गई एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में फेसबुक, गूगल जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वर्ष 2019 में बाल यौन उत्पीड़न संबंधी 7 करोड़ फोटो-विडियो अपलोड या शेयर किए गए। इनमें से 6 करोड़ फेसबुक पर शेयर किए गए। पॉर्न सामग्री देखने में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है। यह भारतीय समाज के लिए तो खतरनाक है ही और साथ ही साथ ऐसे मुल्क के लिए भी जो अपनी युवा शक्ति को स्किल्ड इंडिया में रूंपांितरत करने के लिए कोशिशें करने का दावा करता है। गौरतलब है कि राज्यसभा में गत वर्ष 250वें सत्र के दौरान उच्च सदन में अन्नाद्रमुक की सदस्य एस विजिला सत्यनाथन ने इंटरनेट खासकर सोशल मीडिया पर अश्लील सामग्री की बच्चों तक आसान पहुंच का मुददा उठाया था। इस पर समूचे सदन ने एक स्वर में गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सदन के सभापति एम वेंकैया नायडू के माध्यम से सरकार से कारगर कदम उठाने की मांग की थी। सभापति ने कांग्रेस के सांसद जयराम रमेश के नेतृत्व में एक 14 सदस्यीय तदर्थ समिति का गठन कर एक महीने में रिपोर्ट देने को कहा था। इस समिति ने 25 जनवरी को  उप राष्ट्रपति व सभापति एम वेंकैया नायडू को रिपोर्ट सौंप दी। इस समिति ने विस्तार से इस मुददे पर चर्चा के बाद रिपोर्ट में सिफारिश की है कि सरकार को यौन अपराधों से बच्चों को बचाने वाले पॉक्सो कानून, सूचना प्रौद्योगिकी कानून और भारतीय दंड संहिता में मकूल बदलाव करने की तत्काल पहल करनी चाहिए। साथ ही राज्य सरकारों से भी सिफारिश की है कि वे राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस समस्या से निपटने के लिए सजगता से कार्रवाई करने में सक्षम बनाएं। समिति ने टिवटर और फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तथा संबंद्व पक्षकारों से विचार-विमर्श के बाद पॉक्सो कानून में बाल पॉर्नोग्रॉफी की परिभाषा को व्यापक बनाने और इसकी ऑनलाइन निगरानी के तंत्र को मजबूत बनाने के तकनीकी सुझव भी दिए हैं। इनमें भारत में उपलब्ध सभी संचार उपकरणों में ऐसी एप्लिकेशन को अनिवार्य बनाने को कहा है, जिसकी मदद से बच्चों तक अश्लील सामग्री की पहुंच पर अभिभावक समग्र निगरानी रख सकें। समिति ने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री को बाल पॉर्नोग्राफी की समस्या पर संज्ञान लेते हुए अपने ‘ मन की बात ’ कार्यक्रम में भी इस विषय को शमिल कर यह बताना चाहिए कि इससे निपटने के लिए क्या-क्या उपाय किए जा सकते हैं। गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति द्वारा तदर्थ समिति के गठन से कुछ दिन पहले ही यानी 16 दिसंबर 2019 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इंटरनेट पर उपलब्ध पॉर्न साइट्स और इंटरनेट पर मौजूद अनुचित प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा कि पिछले कुछ समय से देश के विभिन्न राज्यों में महिलाओं के साथ घटित सामूहिक दुष्कर्म और जघन्य तरीके से हत्या की घटनाओं ने पूरे देश के जनमानस को उद्वेलित किया है। इंटरनेट पर लोगों की असीमित पहुंच के कारण बड़ी संख्या में बच्चे और युवा अश्लील,हिंसक और अनुचित सामग्री देख रहे हैं। इसके प्रभाव के कारण भी कुछ मामलों में ऐसी घटनाएं घटित होती हैं। ऐसी सामग्री के दीर्घकालीन उपयोग से कुछ लोगों की मानसिकता नकरात्मक रूप से प्रभावित हो रही है जिससे अनेक सामाजिक समस्याएं पैदा हो रही हैं।महिलाओं के प्रति अपराधों में वृद्धि हो रही है।

दरअसल अपने मुल्क में बाल पॉर्नाेग्राफी की समस्या कितनी विकराल है,इस बावत हाल ही में जारी एक रिपोर्ट भी खुलासा करती है। अमेरिका ने भारत के साथ एक रिपोर्ट साझा की है जिसके अनुसार भारत में अगस्त 2019 से 23 जनवरी 2020 तक यानी पांच महीनों में 25 हजार से अधिक बाल पॉर्नाेग्राफी वाली सामग्री अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड की गई। यह आंकड़ा अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लाइटेड चिल्ड्रन ने भारत के नेशनल क्राइम रेकॅाड्स ब्यूरो के साथ साझा की है। भारत और अमेरिका ने यह डेटा साझा करने के लिए बीते साल समझौता किया था। दुनियाभर की 164 टेक कंपनियों द्वारा अमेरिका की इस संस्था को सौंपी रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक व इससे जुड़े प्लेटफॉर्म पर सबसे अधिक फोटो-विडियो रिपोर्ट हुए। यह कुल फोटो-विडियो का 85 प्रतिशत है। यानी बाल यौन उत्पीड़न संबंधी 6 करोड़ फोटो-विडियो फेसबुक पर शेयर किए गए। फिक्रमंद वाली बात यह है कि ऑनलाइन शेयर-अपलोड किए जाने वाले फोटो-विडियो में पिछले साल 50 प्रतिशत की वृद्वि दर्ज की गई। एक बात यह भी गौरतलब है कि सभी कंपनियों में ऐसी सामग्री की पहचान का तरीका एक जैसा नहीं है। जैस अमेजन व माइक्रोसॉफ्ट अवैध कंटंेट की कोई पहचान नहीं करती हैं। वहां स्नैप केवल फोटो स्कैन करती है,विडियो नहीं करती है। भारत की बात करें तो 89 प्रतिशत मोबाइल पर और 9 प्रतिशत लोग डेस्कटॉप पर पॉर्न सर्च करते हैं। अन्य मुल्कों से 12प्रतिशत अधिक। पॉर्न देखने वालों की औसत आयु 30साल है। इनमें से 18 से 24 साल के 35 प्रतिशत युवा शमिल है। पॉर्न सामग्री देखने में भारतीय दुनिया में तीसरे नंबर पर है। इसकी एक वजह देश में बीते 4 साल में डेटा की दरों का सस्ता होना भी है। दुनिया में सबसे अधिक देखे जाने वाली एक पॉर्न वेबसाइट ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 2018 में औसतन8.23 मिनट पॉर्न विडियो देखा गया जबकि 2019 में यह अवधि बढ़कर 9.51मिनट हो गई। एक खतरा यह भी नजर आ रहा है कि 5 जी नेटवर्क कवरेज आने के बाद क्या होगा। नेटवर्क और अधिक फास्ट होगा और उतनी ही तेज गति से डेटा अपलोड,डाउनलोड होगा। पॉर्न सामग्री सर्च करने वाले कम समय में ऐसी सामग्री अधिक सर्च कर सकते हैं। रिसर्च व एडवाइजरी कंपनी गार्टनर का अनुमान है कि चालू वर्ष 2020 में 5 जी मोबाइल फोन की सेल 22.1 करोड़ होगी। और 2021 में यह बिक्री दोगुने से भी ज्यादा होकर 48.9 करोड़ यूनिट होगी। तकनीक के विकास के साथ-साथ उसके खतरे भी सामने आते हैं। इससे निपटना राज्य के सामने हमेशा से एक चुनौती होती है। बहरहाल इस पर भी गौर करना चाहिए कि राज्यसभा की तदर्थ समिति जब बाल पॉर्नाेग्राफी से निपटने के मुददे पर विस्तार से चर्चा करने में व्यस्त थी तभी इलेक्ट्रॅानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों ने इसी समिति के सामने लाचारी जताते हुए बताया था कि वाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म एंड टु एंड एन्क्रिप्सन का हवाला देते हुए कानून लागू करने वाली एजंसियों के साथ सहयोग नहीं करते है। यहां तक किवह कानून के जरिए किए गए अनुरोध का सम्मान तक नहीं करते हैं। वे दावा करते हैं कि वे अंतरराष्ट्रीय कानून से बंधे हुए हैं। संसद के चालू बजट सत्र में लोकसभा में फेक न्यूज और पॉनोग्राफी से जुड़ी वेबसाइटस ब्लॉक करने से जुड़े एक पूरक प्रश्न के जवाब में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि चीन या मिडिल ईस्ट के साथ भारतकी तुलना नहीं की जा सकती है। हम लोकतंत्र हैं।उधर राज्यसभा में उप राष्ट्रपति व सभापति एम वेंकैया नायडू ने 5 फरवरी को राज्यसभा में कहा, ‘ मैं चाहता हूं कि संसद पॉर्नोग्राफी से संबधित रिपोर्ट पर जल्द से जल्द चर्चा करे।’ इस मुददे पर अब चिंता से आगे जाकर ठोस कार्रवाई का वक्त है।

14 सदस्यीय समिति द्वारा अनुशंसित कुछ प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं :-

प्रौद्योगिकी के उपाय

1. भारत में अश्लील सामग्री के लिए बेचे जाने वाले सभी उपकरणों पर निगरानी करने वाले एप अनिवार्य किये जाएँगे, ताकि ऐसी सामग्री बच्चों तक न पहुँच सके। ऐसे एप या इसी तरह के समाधान विकसित किये जा सकते हैं, जो आईएसपी, कम्पनियों, स्कूलों और माता-पिता के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराये जाएँ।
2. ऑनलाइन भुगतान पोर्टल्स और क्रेडिट कार्ड किसी भी अश्लील वेबसाइट के लिए प्रसंस्करण भुगतान से निषिद्ध हैं।
3. सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को देश में कानून प्रवर्तन एजेंसियों को नियमित रिपोॄटग के अलावा बाल यौन उत्पीडऩ सामग्री का पता लगाने के लिए न्यूनतम आवश्यक प्रौद्योगिकियों के साथ अनिवार्य किया जाना चाहिए।
4. ऑन-स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे ट्विटर, फेसबुक आदि में अलग-अलग वयस्क खंड होने चाहिए, जहाँ कम उम्र के बच्चों को छुट्टी दी जा सके।
5. सोशल मीडिया में आयु सत्यापन और आपत्तिजनक / अश्लील सामग्री तक पहुँच को प्रतिबन्धित करने के लिए तंत्र होगा।

सामाजिक और शैक्षिक उपाय
1. महिला और बाल विकास और सूचना और प्रसारण मंत्रालय मंत्रालयों में बच्चों के दुरुपयोग, ऑनलाइन जोखिम और उनके बच्चे के लिए ऑनलाइन सुरक्षा में सुधार के शुरुआती संकेतों को पहचानने के लिए माता-पिता के बीच अधिक जागरूकता के लिए अभियान शुरू करेंगे।
2. स्कूल वर्ष में कम-से-कम दो बार माता-पिता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करेंगे, जिससे उन्हें कम उम्र में स्मार्ट फोन, इंटरनेट के फ्री उपयोग के खतरों से अवगत कराया जा सके। अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर बच्चों के स्मार्ट फोन के उपयोग को प्रतिबन्धित करने के लिए एक उचित व्यावहारिक नीति पर विचार करने की आवश्यकता है।

परेशान रहते हैं आम इंसान पनप रहे कल्कि जैसे भगवान

एक तरफ मुम्बई की पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक के द्वारा लोगों के अरबों रुपये मार लेने से सभी खाताधारक परेशान हैं। धरने पर बैठे हैं, आन्दोलन कर रहे हैं, सरकार और आरबीआई से गुहार लगा रहे हैं, लेकिन कोई सुनने को राज़ी नहीं है। इनमें कई लोग ऐसे हैं, जिनकी स्थिति बहुत दयनीय है। अब तक छ: लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं दूसरी ओर स्वयंभू कल्कि भगवान उर्फ कल्कि महाराज उर्फ विजय कुमार के पास आयकर विभाग के छापे में 44 करोड़ रुपये के भारतीय नोट, 25 लाख अमेरिकी डॉलर, 90 किलो सोना और करोड़ों के हीरे-जवाहरात बरामद हुए हैं। सूत्रों की मानें, तो कल्कि महाराज के 40 ठिकानों और आश्रम पर 300 अधिकारी छापेमारी कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कल्कि महाराज के पास 500 करोड़ रुपये की अकूत सम्पत्ति मिली है। कभी एलआईसी में क्लर्क रहे कल्कि महाराज का साम्राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु से लेकर विदेशों तक फैला हुआ है। खुद को भगवान विष्णु का 10वाँ अवतार बताने वाले 70 वर्षीय कल्कि महाराज ने 1980 में वैकल्पिक शिक्षा देने के नाम पर जीवाश्रम नाम की संस्था बनायी थी और देखते-देखते यह इंसान कुबेर की तरह अमीर हो गया। आयकर विभाग की मानें तो बाबा का पैसा कई बड़ी फर्मों में लगा है। और टैक्स देने में हेराफेरी की जाती थी। कल्कि महाराज ने तमाम जगह ज़मीनें खरीदी हुई हैं।

सोचने की बात यह है कि एक तरफ देश में भुखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी और किसानों की दर्जनों समस्याएँ हैं, वहीं कल्कि महाराज, दाती महाराज, आशाराम, रामपाल और रामरहीम जैसे लोग धर्म के नाम पर लोगों को भावनात्मक रूप से रिझाकर करोड़ों की ठगी कर लेते हैं। दूसरी ओर वे लोग हैं, जिनका पैसा अचानक ठग लिया जाता है। घोटालों में डूब जाता है। पीएमसी बैंक की बात करें, तो इस बैंक में हुए घोटाले के बाद अब तक छ: लोगों की मौत हो चुकी है। पीडि़तों का कहना है कि सभी लोगों की मौत सदमे से हुई है। बता दें कि पीएमसी बैंक घोटाले का खुलासा सितंबर, 2019 में हुआ था। तब वहाँ भाजपा और शिवसेना की संयुक्त सरकार थी। इस घोटाले की जाँच जब आरबीआई ने की, तो पता चला की पीएमसी बैंक ने एचडीआईएल के 6,700 करोड़ रुपये के 44 कर्ज़ खातों की जानकारी छिपाने के लिए फर्ज़ी खाते खोले थे।

यह अगल बात है कि इस बैंक पर 23 सितंबर, 2019 को ही आरबीआई ने प्रतिबंध लगा दिये थे, लेकिन सवाल यह उठता है कि खाताधारकों को क्या इससे न्याय मिल सका। क्या हालत है हमारे देश की? कभी लोगों के पैसे निवेश में डूबते हैं, तो कभी बैंकों में। तो दूसरी तरफ कल्कि महाराज जैसे बाबा उग आते हैं, जो बिना कोई मेहनत का काम किये ही करोड़ों के बारे-न्यारे कर लेते हैं। मज़े की बात है कि ऐसे स्यवंभू बाबा अपने आपको भगवान तक कह देते हैं और उन पर धर्मांधता के चलते कार्रवाई भी नहीं की जाती। ऐसे लोग बिना किसी डर के निरंकुश होकर अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं और शासन-प्रशासन देखता रह जाता है। क्या आप जानते हैं कि ऐसे कितने ही स्वयंभू बाबा अभी भारत में बहुत हैं। इन बाबाओं का इतिहास खंगाला जाए, तो कई का तो आपराधिक चिट्ठा निकल आएगा। कोई बलात्कार का आरोपी निकलता है, तो कोई हत्याओं में लिप्त मिलता है। आखिर कैसे संत हैं ये? यह आज भारतीय लोगों को समझने की ज़रूरत है। लोगों को सोचना चाहिए कि जिन स्वयंभू संतों-बाबाओं के पैरों में वे नाक रगड़-रगड़कर लाखों का चढ़ावा चढ़ा देते हैं, वे बाबा जीवन भर उस सम्पत्ति पर जीवन भर ऐश-ओ-आराम करते हैं। वहीं दूसरी ओर पीएमसी में अपने खून-पसीने की कमाई का एक-एक पैसा पेट काट-काटकर जोडऩे वाले वे लोग हैं, जो अचानक ही अपनी ही कमाई ऐसे गँवा देते हैं, जैसे उस पर उनका मौलिक अधिकार ही न हो। क्या अजीब विडम्बना है कि एक तरफ दूसरे के पैसों पर ऐश करने वाले लोग हैं और एक तरफ दिनरात मेहनत करके भी परेशान रहने वाले लोग।

जिन लोगों को सिर्फ राष्ट्रवाद के नाम पर शोर-शराबा करना आता है, क्या वे पीएमसी बैंक के पीडि़त ग्राहकों को समर्थन देने के लिए आगे आये? नहीं। इस बैंक के घोटाले की सज़ा पाने वाले ईमानदार लोग हैं, जो जीवन भर अपनी छोटी-सी कमाई में से पेट काट-काटकर एक-एक पैसा जोड़ते रहे। आज भी ये लोग आन्दोलनरत हैं, लेकिन कोई भी उनकी पीड़ा को देखना नहीं चाहता। सरकारों को इन पीडि़तों की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही। कई लोग आत्महत्या करने की बात कर रहे हैं, फिर भी सरकार को किसी से कोई सरोकार नहीं। ऐसी स्थिति में क्या सरकार को इन लोगों के हक के पैसे को नहीं लौटा देना चाहिए? क्या सरकार को पीएमसी के पीएमसी बैंक के शेयर होल्डर्स को स्थापक संस्थापकों को और अधिकारियों की सम्पत्तियाँ नीलाम करके पीडि़तों के साथ न्याय नहीं करना चाहिए? क्या आरबीआई का कोई ऐसा नियम नहीं है, जिसके हिसाब से बैंक की सारी सम्पत्ति बेचकर बैंक के ग्राहकों का पैसा दिलाया जा सके? अगर सरकार चाहे तो सब कुछ सम्भव है। सरकार चाहे तो बैंक के करप्ट होने पर उसके ग्राहकों के पैसे बैंक की सम्पत्ति नीलाम करके लौटाये।

कांग्रेस की मुम्बई इकाई ने वित्तीय संकट में फँसी पीएमसी बैंक के ग्राहकों को न्याय दिलाने के लिए भीख माँगों आन्दोलन किया। जितने भी पीडि़त हैं, वो भी आन्दोलनरत हैं, पर कोई सुनवाई नहीं। दूसरी तरफ विदेशों से कालाधन नहीं आया, कोई भी कालेधन वाला नहीं रोया, नोटबंदी से आम लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ, इंडस्ट्री स्थापित नहीं हुईं। बाबाओं के पास अकूत सम्पत्ति, नेताओं के पास अकूत सम्पत्ति, उद्योगपत्तियों के पास अकूत सम्पत्ति, मर कौन रहा है? हर वह आदमी, जो दिनरात मेहनत करके एक-एक पैसा इकट्ठा करता है। समझने की बात है कि बाबाओं के पास से बरामद अकूत सम्पत्ति को पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं किया गया, क्यों? कल्कि महाराज को छोड़ दें, तो बाकी जितने भी कथित संत पकड़े गये, उनकी सम्पत्ति का पता ही नहीं चला कि वह सही मायनो में कितनी थी?

हैरत की बात है यह है कि सभी कथित संतों के लाखों भक्त निकले। कल्कि महाराज को तो उनके कई भक्त भगवान ही मानते हैं। आश्चर्य वाली बात यह है कि कल्कि महाराज के अनेक भक्त सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं कि कल्कि महाराज उनके भगवान हैं। ये भक्त आजकल कल्कि महाराज के बचाव में न केवल कैम्पेन कर रहे हैं, बल्कि उनके चमत्कार भी बता रहे हैं। जैसे- कोई कह रहा है कि उसे कल्कि भगवान के प्रताप से धन की प्राप्ति हुई, कोई कह रहा है कि उसे कल्कि भगवान की कृपा से नौकरी मिल गयी, कोई कह रहा है कि उसका डूबा हुआ पैसा मिल गया। और कोई तो यहाँ तक दावा कर रहा है कि उसके रात को रखे जूठे बरतन सुबह साफ मिले। हैरत होती है, ऐसी बातों पर; आज जब हम आधुनिकता के चरम पर पहुँचने की बात करते हैं, तब ऐसी भ्रम फैलाने वाली मानसिकता के लोग भी दिखाई दे जाते हैं, जो बिना सत्य और तथ्य समझे आँखें मूँदकर बाबाओं पर भरोसा करते हैं। हम यह नहीं कह रहे कि ईश्वर नहीं है, ईश्वर को नहीं मानना चाहिए; पर बाबाओं को बिना परखे हम भगवान तक मान लें, यह बात गले नहीं उतरती।

आिखर लोग उन बाबाओं पर अन्धविश्वास कैसे कर लेते हैं, जो अकूत सम्पत्ति के कुबेर बनकर ठाठ से जीवन बिताते हैं। क्या ऐसे लोग संत हो सकते हैं, जो सम्पत्ति जोड़-जोड़कर देश को खोखला करने की कोशिशों में लगे हैं। जिस तरह से कल्कि महाराज के पास अकूत सम्पत्ति मिली है, उस तरह तो केवल 10-15 बाबाओं को पकड़ लिया जाए, तो देश की आॢथक दशा में बड़ा सुधार हो सकता है।

पाखंड की हद तो यह है कि कल्कि महाराज आज भी कहने से नहीं चूक रहे कि वह स्वयं भगवान हैं। सवाल यह है कि अगर कल्कि महाराज भगवान विष्णु का अवतार हैं, तो देश की गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी और किसानों की तमाम समस्याओं को पलक झपकते ही ठीक कर सकते हैं। क्या एक ऐसे देश में ये समस्याएँ हो सकती हैं, जिसमें साक्षात् भगवान हो? कहा जाता है कि भगवान राम और भगवान कृष्ण के राज्य में कोई दु:खी नहीं था, कोई भूखा नहीं मर रहा था, कोई भी रोगी नहीं था, सभी प्रसन्न थे। क्या आज ऐसा है? वह भी तब जब स्वयंभू कल्कि भगवान हमारे सामने है। खुद को राधे माँ कहने वाली कथित साध्वी हमारे देश में है। हम कितने भ्रम में जी रहे हैं? हम कितने तर्कहीन हैं कि इन कथित भगवानों को बिना किसी सवाल और बिना अपनी सोच के घोड़े दौड़ाये उनके कदमों में गिर जाते हैं। क्या इससे हमारे अन्दर का भगवान अपमानित नहीं होता?

प्रेम और प्रेम विवाह से तौबा

14 फरवरी यानी अंग्रेजों के वैलेंटाइन-डे के दिन को आजकल दुनिया के अधिकतर देशों के लोग प्यार के दिन के रूप में मनाने लगे हैं। भारत में प्रेम करने का यह चलन कोई 10-12 साल में तेज़ी से बढ़ा है। इससे हमारी संस्कृति और परम्पराओं को ठेस पहुँच रही है। रिश्तों का महत्त्व घट रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र के अमरावती जिले के चांदूर रेलवे स्थित एक महिला कॉलेज में कॉलेज की लड़कियों को शपथ दिलायी गयी कि वे न तो प्रेम करेंगी और न प्रेम विवाह! शपथ का दूसरा पहलू यह भी है कि इन छात्राओं ने दहेज देकर विवाह न करने की भी शपथ ली।

अमरावती के विदर्भ यूथ वेलफेयर सोसायटी द्वारा महिला व कला महाविद्यालय में यह शपथ ली गयी है। कॉलेज के एक प्रोफेसर प्रदीप दंदे के अनुसार, समाज में बढ़ रहे प्रेम प्रकरण के चलते लड़कियों पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कहीं न कहीं ऐसे प्रण करने ज़रूरी हैं। इसलिए कॉलेज की छात्राओं से इस तरह की शपथ दिलायी गयी है।

क्या है शपथ?

‘मैं शपथ लेती हूँ कि मुझे अपने माता-पिता पर पूर्ण विश्वास है; इसलिए आसपास में और ही घटनाओं को देखते हुए मैं प्रेम व प्रेम विवाह नहीं करूँगी। साथ ही मैं ऐसे लड़के से भी विवाह नहीं करूँगी जो दहेज लेगा। सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए यदि आज मेरे परिवार ने दहेज देकर मेरा विवाह कर भी दिया, फिर भी मैं अपनी भावी पीढ़ी की एक माता के तौर पर अपने बहु से दहेज नहीं लूँगी और अपनी लड़कियों को दहेज नहीं दूँगी। समर्थ भारत के लिए, स्वस्थ समाज के लिए एक सामाजिक कर्तव्य के तौर पर मैं यह शपथ ले रही हूँ।’

प्रेम की पावनता को मलिन करते अंग्रेजी के ‘डे’

प्रेम की पराकाष्ठा और पवित्रता को हमारे ऋषियों-मुनियों, कवियों और विद्वानों ने आत्मा की पवित्रता और ईश्वर के पावन चिन्तन की तरह माना है। लेकिन भारत-भूमि पर जबसे विदेशी त्योहारों का चलन बढ़ा है, तबसे प्रेम की पावनता मलिन होती जा रही है।

आज ताज्जुब होता है कि जिस प्रेम का इज़हार करने के लिए प्रेमी-प्रेमिका झिझकते थे, डरते थे, संकोच करते थे। महीनों खत लिखने की कोशिशें करते थे और जब खत लिख जाता था, तो देने से डरते थे या किसी और के ज़रिये अपना खत या संदेश पहुँचाते थे। पहले इन ढाई अक्षरों के इज़हार में प्रेमी-प्रेमिका के पसीनें छूट जाते थे; लेकिन आज का प्रेम केवल सात दिन के अन्दर पनपकर ऐसे निपट जाता है, जैसे ज़िन्दगी पूरी हो गयी हो। यहाँ तक कपड़ों की तरह प्रेम के रिश्ते बदलने के बाद आज की पीढ़ी के बच्चे ज़रा भी अफसोस तक नहीं करते। सब कुछ नये िफल्मी गानों की तरह एक साथ सिर पर जुनून के जैसा सवार होता है और फिर चन्द दिनों में उतर जाता है। न बिछडऩे के बाद तन्हाई की घुटन, न कोई अफसोस। क्या यह क्षणभंगुुर प्रेम आज की पीढ़ी को दिली रिश्तों के ज़िद्दत वाले अहसास से दूर नहीं कर रहा?

हमारी पीढ़ी आज जिस तरह से करीबी रिश्तों से कटती जा रही है, वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि इससे न केवल मानवी रिश्ते, बल्कि पारिवारिक रिश्ते भी कमज़ोर हो रहे हैं।