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नेपाल में पीएम ओली की कुर्सी पर संकट के बादल, पार्टी प्रमुख प्रचंड ने मांगा इस्तीफा

भारत के साथ लिपुलेख को लेकर सीमा विवाद मोल लेने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कुर्सी खतरे में पड़ गयी है। उनकी कम्यूनिस्ट पार्टी टूटने की कगार पर है क्योंकि उनकी पार्टी के ही वरिष्ठ नेता और पार्टी के कार्यकारी चेयरमैन पुष्प कमल दहल प्रचंड ने ओली की न सिर्फ आलोचना की है बल्कि उनसे इस्तीफे की मांग कर दी है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रचंड ने साफ़ तौर पर ओली को चेतावनी दे दी है कि वे यदि पीएम पद नहीं छोड़ते हैं तो वह पार्टी को दोफाड़ कर देंगे। इसके बाद ओली की कुर्सी खतरे में पड़ गयी है। प्रचंड को पार्टी में काफी ताकतवर नेता माना जाता है।
हालांकि, अभी तक की ख़बरों के मुताबिक ओली ने अपना पद छोड़ने से इंकार कर दिया है। ओली ने सरकार का बचाव किया है और कहा है कि प्रशासन देशहित में काम कर रहा है। उनका आरोप है कि सत्ताधारी पार्टी के नेता ही विपक्ष की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
उधर सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में प्रचंड ने कहा कि सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरने में नाकाम रही है। उन्होंने चेयरपर्सन और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पर अदल-बदलकर पावर शेयरिंग के समझौते का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया।
दहल ने कहा – ”हम पार्टी के एकीकरण के वक्त सरकार को अदल-बदलकर चलाने के लिए सहमत हुए थे लेकिन मैंने खुद अपने कदम पीछे खींच लिए। सरकार का काम देखने के बाद मुझे लग रहा है मैंने ऐसा करके गलती की।”
प्रचंड ने कहा – ”अगर सरकार समाजवाद हासिल करने के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाती है, तो पार्टी को अगले चुनावों में असफलता देखनी पड़ सकती है। सरकार और पार्टी दोनों संकट में हैं।”
वर्तमान घटनाक्रम से लग रहा है कि नेपाल में राजनीतिक संकट पैदा हो सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि ओली के भारत से सीमा विवाद में उलझने से नेपाल की जनता बंटी हुई है और बहुत से लोग यह मान रहे हैं कि भारत जैसे मित्र देश से नेपाल को नाराजगी मोल नहीं लेनी चाहिए।
उधर प्रचंड पार्टी में मजबूत होकर उभरे हैं और उन्हें काफी समर्थन मिल रहा है। पार्टी के दो पूर्व प्रधानमंत्री और कुछ सांसद भी ओली के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। इसके अलावा कोरोना महामारी को लेकर भी ओली जनता के गुस्से का सामना कर रहे हैं। ओली को चीन समर्थक माना जाता है।

सीबीएसई बोर्ड की 10वीं-12वीं बोर्ड की परीक्षाएं सुप्रीम कोर्ट ने कीं रद्द

देश की सर्वोच्च अदालत ने सीबीएससी 10वीं और 12वीं की 1 से 15 जुलाई तक होने वाली परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। मामले में तीन राज्यों ने कहा था कि प्रदेश में लगातार कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं जिसके चलते परीक्षाएं अभी नहीं कराई जा सकती हैं। इसी को लकेर सुप्रीम कोर्ट में वीरवार को सुनवाई हुई।
सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हालात सामान्य होने पर 12वीं के छात्रों को दोबारा परीक्षा देने का विकल्प मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा कि 12वीं के छात्रों का पिछली तीन परीक्षाओं के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा।
बता दें कि अभी कई स्कूलों में आइसोलेशन सेंटर चलाए जा रहे हैं जिसके चलते परीक्षाएं नहीं कराई जा सकती हैं। इसके अलावा छात्रों को कुछ महीने बाद होने वाली इंप्रूवमेंट परीक्षा में भी शामिल होने का विकल्प दिया जाएगा। स्टूडेंट्स चाहें तो इंप्रूवमेंट एग्जाम देकर अपने नंबर बेहतर कर सकते हैं।
इससे पहले केंद्र और  सीबीएसई ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि बाहरवीं कक्षा की बची हुई परीक्षा को रद्द करने का फैसला बृहस्पतिवार को लिया जाएगा।
एक से 15 जुलाई के बीच होने वाली इन परीक्षाओं को कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से टाला गया है। इससे पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ को सूचित करते हुए कहा था कि सरकार और बोर्ड छात्रों की परेशानी से अवगत हैं और अधिकारी इस मुद्दे पर जल्द ही निर्णय लेंगे। मेहता ने पीठ से इस मुद्दे को एक दिन के लिए स्थगित करने का अनुरोध किया और कहा कि वे अधिकारियों द्वारा लिए गए निर्णय के बारे में शीर्ष अदालत को अवगत कराएंगे।

भारतीय आईटी प्रोफेशनल को बड़ा झटका, अमेरिका ने सस्पेंड किया एच1-बी वीजा

कोरोना महामारी से बुरी तरह जूझ रहा अमेरिका अब अपने यहां बढ़ती बेरोजगारी से परेशान है। इसी साल चुनाव भी होने हैं, ऐसे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हर वो कार्ड खेलना चाह रहे हैं, जिससे अमेरिकियों का खुद को मसीह साबित किया ज सके। अब इसी कड़ी में ट्रंप ने एच1-बी वीजा निलंबित करने की घोषणा की है।
इस फैसले से भारत समेत दुनिया के आईटी प्रोफेशनल को बड़ा झटका लगा है। ये निलंबन साल के आखिर तक वैध रहेगा। ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के मुताबिक, ये फैसला अमेरिकी श्रमिकों के हित के लिए लिया गया है। बता दें कि अमेरिका में बेरोजगारी ऐतिहासिक लेवल पर पहुंच चुकी है और क़रीब 4 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह कदम उन अमेरिकियों की मदद करने के लिए आवश्यक था, जिन्होंने मौजूदा आर्थिक संकट के कारण अपनी नौकरी खो दी है। इसी साल नवंबर में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनावों से पहले ये ऐलान करते हुए ट्रंप ने विभिन्न व्यापारिक संगठनों, कानूनविदों और मानवाधिकार निकायों द्वारा आदेश के बढ़ते विरोध की अनदेखी की है।
ट्रम्प प्रशासन का यह निलंबन 24 जून से लागू होगा।  इससे बड़ी संख्या में भारतीय आईटी पेशेवर प्रभावित होंगे। यह उन आईटी पेशेवरों को भी प्रभावित करेगा जो अपने एच -1 बी वीजा को रिन्यू कराना चाहते थे।
ट्रंप के इस फैसले से दुनियाभर से अमेरिका में नौकरी करने का सपना देखने वाले 2.4 लाख लोगों को झटका लग सकता है। बता दें कि अमेरिका में काम करने वाली कंपनियों को विदेशी कामगारों को मिलने वाले वीजा को एच-1 बी वीजा कहते हैं। इस वीजा को कुशल कामगारों के लिए एक तय अवधि के लिए जारी किया जाता है। इसकी अवधि 6 साल तक कि होती है।

रघुवंश प्रसाद सिंह का राजद महासचिव पद से इस्तीफा

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में टूटफूट से उसे झटका लगा है। पहले पार्टी के ५ विधान पार्षद (एमएलसी) ने पाला बदल लिया और अब पार्टी के दिग्गज नेता और अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया है। रघुवंश फिलहाल कोरोना से पीड़ित हैं और ”एम्स” पटना में भर्ती हैं।

फिलहाल आरजेडी ने अपने इस वरिष्ठ नेता का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है। लेकिन यदि वे अपने इस्तीफे पर अड़े रहते हैं तो पार्टी के लिए समस्या बन सकते हैं।

यह माना जा रहा है कि वह एक ज़माने में लालू प्रसाद यादव के विरोधी रामा सिंह की राजद नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात और उनके राजद में शामिल होने की अटकलों के बीच रघुवंश प्रसाद ने यह कदम उठाया है।

राजद के लिए रघुवंश की नाराजगी इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि मंगलवार सुबह पार्टी के पांच विधान परिषद् सदस्य दिलीप राय, राधा चरण सेठ, संजय प्रसाद ,कमरे आलम और रणविजय सिंह नीतीश कुमार की जदयू में शामिल हो गए। विधान परिषद  अध्यक्ष ने राजद से आए जदयू के सभी सदस्यों को मान्यता देने में देरी नहीं की।

जिन रामा सिंह के राजद में आने की चर्चा से रघुवंश खफा हैं, उनकी पार्टी नेता ने तेजस्वी यादव से मुलाकात हुई थी। रामा सिंह के साथ सवर्ण समाज के कुछ और नेताओं के पार्टी में आने की चर्चा है। एक जमाना था जब रामा सिंह लालू यादव ही  नहीं, रघुवंश प्रसाद सिंह के भी कट्टर विरोधी थे और लगता है तल्खियां अभी ज़िंदा हैं। यह सारा घटनाक्रम तब हुआ है जब बिहार विधान परिषद की नौ सीटों के लिए जदयू, भाजपा, राजद और कांग्रेस में उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया चल रही है।

पतंजलि का कोविड-१९ की दवा ईजाद करने का दावा, नाम रखा ‘कोरोनिल’

देश में कोविड-१९ के मामले बढ़कर ४,४०,२१५ होने के बीच पतंजलि के योग गुरु बाबा रामदेव ने मंगलवार को दावा किया है कि वायरस की दवा खोज ली गयी है। उन्होंने पतंजलि में तैयार वायरस की आयुर्वेदिक दवा ”कोरोनिल” की घोषणा की और इसका पूरा वैज्ञानिक विवरण भी बताया।

हरिद्वार में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में रामदेव ने ”कोरोनिल” लांच करते हुए दावा किया है कि यह कोरोना के इलाज में मुफीद दवा है। रामदेव ने कहा – ”इस दवाई को बनाने में सिर्फ देसी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल हुआ है, जिसमें मुलैठी-काढ़ा और अन्य शामिल हैं”।

रामदेव ने इस मौके पर दावा किया कि उनकी तैयार की दवा का सौ फीसदी रिकवरी रेट है और डेथ रेट जीरो है। उन्होंने कहा – ”भले ही लोग अभी हमसे इस दावे पर सवाल करें, हमारे पास हर सवाल का जवाब है। हमने सभी वैज्ञानिक नियमों का पालन किया है”। रामदेव ने कहा कि कोरोनिल का २८० कोरोना रोगियों पर सफल परीक्षण किया गया है। दवा को पूरे रिसर्च के साथ तैयार किया गया है औऱ इसके अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं।

प्रेस कांफ्रेंस में पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण ने कहा – ”पतंजलि के सभी वैज्ञानिकों, एनआईएमएस यूनिवर्सिटी के डॉक्टर और सभी डॉक्टरों को बधाई।  आपका प्रयास आज साकार हो रहा है। आयुर्वेद अब अपने अतीत के वैभव को प्राप्त कर शक्ति संपन्न बनेगा। मानवता की सेवा में विनम्र प्रयास पूरा होने की खुशी आप सब से साझा करते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है।”

रामदेव ने दावा किया कि ”उनकी दवा से तीन दिन के अंदर ६९ फीसदी मरीज रिकवर  (नेगेटिव) हो गए हैं। दवा के जरिए सात दिन में १०० फीसदी मरीज ठीक हुए हैं”। उन्होंने कहा कि देश और दुनिया जिस क्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे, आज वो समय आ गया है। कोरोना की पहली आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल तैयार हो गई है। इस दवा से हम कोरोना की हर तरह की जटिलता को नियंत्रित कर पाए हैं”।

सांसद प्रज्ञा सिंह कार्यक्रम में बेहोश होकर गिर पड़ीं

मध्य प्रदेश के भोपाल में एक प्रदर्शनी के दौरान भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह बेहोश होकर गिर पड़ीं। मंगलवार सुबह खड़े होने के बाद उन्हें बेहोशी हुई जिसके बाद उन्हें तत्काल कुर्सी पर बैठाया आया। फिलहाल वे कार्यक्रम स्थल से रवाना हो गयी हैं।

दरअसल भोपाल में भाजपा कार्यालय में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन था। सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर इसी सिलसिले में वहां उपस्थित थीं। जब से एक प्रदर्शनी  तो अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई और कार्यक्रम स्थल पर बेहोश होकर गिर गईं।

ठाकुर जब बेहोश हुईं उस समय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। बताया गया है कि काफी देर खड़े रहने की बजह से उन्हें चक्कर आया। फिलहाल कार्यक्रम स्थल से वे रवाना हो गईं हैं।

बेहोश होने के बाद नीचे गिर जाने से घबराए लोगों ने उन्‍हें उठाकर कुर्सी पर बैठाया।

गौरतलब है कि ३० मई को भोपाल में प्रज्ञा सिंह ठाकुर के ”लापता” होने के पोस्टर लगे मिले थे। हालांकि, प्रज्ञा सिंह स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण पिछले काफी समय से दिल्ली में भर्ती थीं। उन्होंने वीडियो संदेश के जरिए कहा था कि उनकी हालत ठीक नहीं है।

आज के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जम्मू कश्मीर में धारा ३७०  खत्म करने का श्यामा प्रसाद मुखर्जी का सपना पूरा हो गया है। अब मुखर्जी के सपनों का भारत बनेगा। उन्होंने कहा – ”प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत आत्मनिर्भर बनेगा”।

सुप्रीम कोर्ट ने पुरी रथ यात्रा पर अपना फैसला पलटा, दी सशर्त इजाजत

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालने की अब अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य मुद्दों के साथ बिना समझौता किए और मंदिर समिति, राज्य और केंद्र सरकार के समन्वय के साथ रथ यात्रा आयोजित की जाएगी। बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 18 जून को हुई सुनवाई में पुरी में 23 जून को होने वाली रथयात्रा को कोरोना महामारी के कारण रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि अगर यात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ भी हमें माफ नहीं करेंगे।
इसके बाद शीर्ष कोर्ट के फैसले को लेकर करीब 10 पुनर्विचार याचिकाएं लगाई गई थीं। जिस पर सुनवाई करते हुए सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले को पलटते हुए जगन्नाथ रथ यात्रा को कड़ी शर्तों के साथ निकालने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने नए आदेश में कहा कि अगर ओडिशा सरकार को लगता है कि कुछ चीजें हाथ से निकल रही हैं तो वो यात्रा पर रोक लगा सकती है।
इससे पहले 18 जून को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने कहा था, ‘यदि इस साल हमने रथ यात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। महामारी के दौरान इतना बड़ा समागम नहीं हो सकता है।’ पीठ ने ओडिशा सरकार से यह भी कहा कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए राज्य में कहीं भी यात्रा, तीर्थ या इससे जुड़े गतिविधियों की इजाजत न दे।

देश में कोरोना से मरने वालों की संख्या १३,६११ हुई

देश में सोमवार सुबह तक कोरोना मरीजों की अब तक की कुल संख्या बढ़कर ४,१६,५६० हो गयी है। इनमें से २,३४,८७५ लोग स्वस्थ हो चुके हैं। वायरस से मरने वालों की कुल संख्या अब १३,६११ हो गयी है। उधर कोविड-१९ से जूझ रहे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की तबीयत में प्लाजमा थेरेपी के बाद सुधार की खबर है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक रविवार को १४ हजार से ज्यादा नए मरीज सामने आये हैं जबकि इन २४ घंटों में १६,४६१ लोग ठीक हो गए हैं। देश में कोरोना से स्वस्थ होये लोगों का प्रतिशत ५६ फीसदी से ज्यादा है। पिछले २४ घंटों में २७८ लोगों की जान गयी है जिससे कुल मौतों की संख्या अब तक १३,६११ हो गयी है।

फिलहाल सबसे ज्यादा मरीज अभी भी महाराष्ट्र से ही आ रहे हैं जबकि वहां अब तक ६१७० लोगों की जान गयी। राजधानी दूसरे नंबर पर है जहां २१७५ मौतें हुई हैं जबकि गुजरात तीसरे नंबर है जहां १६६४ लोगों की जान जा चुकी है। दिल्ली में संक्रमित लोगों की संख्या ६० हजार के करीब पहुंच गयी है।

इस बीच कोरोना से जूझ रहे दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन की तबीयत में प्लाजमा थेरेपी के बाद सुधार की खबर है। उनका बुखार काम हुआ है और सुधार जारी रहने पर उन्हें जल्दी ही आईसीयू से वार्ड में शिफ्ट किया जा सकता है। जैन के बेहतर इलाज के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों की टीम स्टैंड बाय पर है। दिल्ली में कोरोना को लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को भी एक उच्च स्तरीय बैठक की जिसमें तय किया गया कि संक्रमण की पुष्टि होने पर सभी को पहले कोरोना सेंटर जाना होगा। जिनके घरों में आइसोलेशन की व्‍यवस्‍था है और जटिल बीमारी नहीं है, उन्‍हें होम आइसोलेशन में रखा जा सकता है।

सेना या सड़क- भारत की उलझी प्राथमिकताएं, अधूरी तैय्यारी

आज भारत अपनी सरजमीं पर कोरोना से और अपनी उत्तरी सरहदों पर कोरोना के पितामह चीन से जूझ रहा है। कोरोना की उलझती, बिखरती जंग की तरह चीन के साथ इस सैन्य लड़ाई में भी भारत की आधी-अधूरी, बिखरी तैय्यारी की हालत जाहिर हो रही है।

उत्तर में चीन के बुलंद, बेसब्र हौसलों व मंसूबों के पीछे उनका सशक्त सैन्य बल और साथ ही में तिब्बत के सेक्टर में उनका संचार प्रणाली (कम्युनिकेशन सिस्टम) व सड़कों व हवाई आधारिक संरचना (इन्फ़्रस्ट्रक्चर) है। भारत- चीन की लगभग 4000 किमी लंबी पहाड़ी सीमा पर अपना बल बनाए रखने के लिए चीन ने सालों में खास तैय्यारी करी ली है। आज उनके पास इन दुर्गम पहाड़ी इलाकों में सड़कें, 5 हवाई अड्डे और लगभग 3.5 लाख का सैन्य बल है जिसे वे 48 घंटे के अंदर-अंदर किसी भी इलाके में सक्रिय कर सकते हैं।

यह एक सत्य है कि भारत सेना और सड़क, दोनों मामलों, में चीन से पीछे है। हमारी सेना लगभग एक कतार में पूरी सीमा पर खींची हुई है और औसतन 3:1 के आँकड़े से चीन के सिपाहियों की तादाद हमें पिछाड़ती है।

सड़कें कमी अगर हमें खलती थी तो ये बात चीन के लिए भी एक रोधक का काम करती थी- दुश्मन की फौज के पास भी कोई क़ीमती लक्ष्य नहीं था ना हीं कोई जरिया जिस से वो घुसपैठ कर आसानी से भारत की आबादी वाली इलाकों तक पहुंच सके।

सैन्य रणनीति में कौन सी चीज़ पहले होनी चाहिए और कौन सी उसके बाद, यह भी उतना ही महत्व रखती है जितना की सैन्य ताकत , बात है सही प्राथमिकताओं की। आज एक तरफ़ सरकार सियाचिन के पास  डबरूक- शयोक- दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) सड़क बनने पर अपनी पीठ थपथपा रही रही और दूसरी तरफ़ चीन के अतिक्रमण पर एक सुसज्जित, अनुकूल सैन्य बल की साफ़ नज़र आती कमी को छुपा रही है। कहीं उत्तरी इलाकों में क्या भारतीय सरकार ने सेना से पहले सड़क तैयार कर कहीं बैल के आगे गाड़ी बांधने का काम तो नहीं किया? ये समझने के लिए कुछ अतीत के फ़ैसलों की शृंखला पर नज़र डालनी पड़ेगी।

भारत का ब्रहमास्त्र:

भारत अपनी सीमा मुख्यतौर पर पाकिस्तान और चीन के साथ सांझा करता है। भारत के तीन स्ट्राइक कोर हैं जो पाकिस्तान के साथ हमारी 3323 km लंबी सीमा रेखा पर केंद्रित हैं पर आश्चर्यजनक बात ये है कि भारत की कोई भी स्ट्राइक कोर चीन के खिलाफ, पहाड़ी इलाकों में प्रहार या रक्षा के लिए ख़ास तौर पर निर्धारित या तैय्यार नहीं है!

2013 में यू.पी.ए  सरकार ने एक माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन शुरू किया था जो 2017 तक तैय्यार होनी थी और जरूरत पड़े तो 2017-22 के पांच साल में बचा हुआ गठन जा सकता था। ब्रह्मास्त्र के नाम से जाने जानी वाली इस 90 हज़ार सैनिकों कोर का मुख्य उदेश्य होना था उत्तरी इलाकों में (मुख्यतौर पर चीन) में घातक प्रहार की क्षमता रखना। स्ट्राइक कोर कभी भी स्वदेशी सरजमीं पर अपना जौहर नहीं दिखाती। सोच साफ थी उत्तर के पहाड़ी इलाकों में कोई भी अपने मंसूबे बढ़ाए तो उसके जवाब में 90 हज़ार सैनिकों कि एक सुसज्जित भारतीय  माउंटेन स्ट्राइक कोर जो समय और जरूरत होने पर रौंदते हुये आगे बढ़ा सके।

2019 में जहां एक तरफ इस एम.एस.सी ने ‘हिम-विजय’ जैसी सैन्य अभियस कर चाइना के कान खड़े कर दिये, वहीँ बात चल पड़ी इस स्ट्राइक कोर की रूप रेखा बदलने की या फिर कहिए ठंडे बस्ते में डालने। कारण बताए गए की इसके रखरखाव पर बहुत खर्च होगा, सेना नए सैलानी भर्ती नहीं कर सकती, इस नयी कोर को असले से लैस करने के लिए सेना के असले के कोश खत्म हो रहे हैं। ये भी कहा गया कि भारतीय सेना में आधे से ज्यादा पैसा वेतन और रख रखाव पर खर्च होता है। इन्हीं बातों के चलते ब्रहमास्त्र ठंडे बस्ते में चला गया।

देखने और सोचने की बात है कि 2019 में भारत ने अपनी सेना पर जी.डी.पी का 2.4% खर्च किया था जबकि पाकिस्तान ने अपने जी.डी.पी का 4% खर्च किया था। उसी साल चीन का सैलानी बजट भारत से तीन गुना ज़्यादा था। रखरखाव की बात भी करें तो ऐसा कौनसा सरकारी महकमा है- रेल से लेकर एयर इंडिया तक, जहां वेतन और रख रखाव पर आधे से ज्यादा खर्च नहीं होता है ? इन आँकड़ों और बातों की आड़ में देश की सुरक्षा की नज़रंदाज़ी किसी भी तरह की दूरदृष्टि का प्रमाण नहीं है।

सड़क:

दूसरी तरफ भारत ने पिछले 20 सालों से चल रहे सड़क निर्माण को बहुत ज़ोर शोर से बढ़ा लिया है। 255km लंबी डबरूक- शयोक- दौलत बेग ओल्डी मार्ग के निर्माण को जहां भारत की एक कामयाबी माना जा रहा है, वहीँ सवाल खडे होते हैं कि बिना किसी खास स्ट्राइक कोर के, ये सड़क हमारी ताकत बढ़ाती है या दुश्मन की? हमारे पास माउंटेन स्ट्राइक कोर न होने के कारण चीन के अंदर तक कब्जा करने कि शक्ति नहीं है और अगर चीन की सेना बार्डर के इस पार तक पहुँच गया तो हमारी बनाई सड़क ही हमारे लिए खतरा साबित होगी और 10-12 घंटे में चीन हमारे शहरों में आ खड़ा होगा !

देश की सुरक्षा जैसे मामले में छींटाकशी ठीक नहीं लेकिन सत्ता के गलियारों से यह बातें चलीं है कि माउंटेन स्ट्राइक कोर से किसी भी कॉर्पोरेट घराने का कोई भला नहीं होने वाला लेकिन सड़क बनाने के यंत्र और तंत्र में बहुत सी निजी कंपनियों की हिस्सेदारी और रुझान चलता है। क्या इसी कारण एन.डी.ए सरकार ने माउंटेन स्ट्राइक कोर को आधे रास्ते में ही ठंडे बस्ते में डाल दिया? हमारी सरकार क्यूँ सैनिकों के एक छोटी संख्या के पीछे देश कि सुरक्षा से समझौता कर रही है? सेना के बारे में रख रखाव के तथ्य रख स्ट्राइक कोर ठंडे बस्ते में डालने वाले देश कि बाहरी ताकतों से प्रेरित हैं। खर्च के बहाने अपनी क्षमता को कम कर लेना शायद बुद्धिमानी नहीं और माउंटेन स्ट्राइक कोर को नकार कर सड़क शायद चीन के लिए बिछाने का काम भी कोई तीक्षण बुद्धि का काम नहीं है !

दिशा:

मोदी सरकार ने हर क्षेत्र में श्रमशक्ति (मैनपावर) से ज्यादा टेक्नोलॉजी पर ज़ोर दिया है और यही सोच सैन्य बल से जुड़े फैसलों पर भी लागू हो रही है। जब बात आमने सामने की लड़ाई हो तो सैन्य बल, इंसानी ताक़त और संख्या ही काम आते हैं। टेक्नोलॉजी हमारे सैन्य बल हो हटाए क्यों? क्या वो उसके साथ, उसे सशक्त नहीं कर सकती? ड्रोन की मदद से इलाकों पर नज़र रखी जा सकती है पर जब आमना-सामना करना हो तो सैनिक को मैदान में उतारना ही पड़ेगा और इस सच्चाई से हम अपनी आंखें मूँद नहीं सकते।

आज वो 90 हजार की एम.एस.सी तैयार होती तो भारत के सभी जवाब, सीमा पर फ़ौज के और टेबल पर राजनयिक, सभी अलग होते। आज 90 हजार भी नहीं, अगर मात्र  30 हजार ही तैयार होते तो भी गलवान वादी में चीन ने जो हिमाक़त करी है, वो ना करता। आज हमारे सैनिक सीमा पर दुश्मन से और देश में अदूरदर्शि नियत और नीति से लड़ रहे हैं। आज हालात ये हैं कि ना केवल चीन, पर नेपाल भी भारत के सामने छाती चौड़ी करे खड़ा है। चीन के उकसाने पर आज नेपाल अपनी संसद में आने वाले भारतीय इलाकों को अपने नक्शे में दिखा रहा है और भारत अपने राजनयिक दांत पीस रहा है।

दो आक्रामक पड़ोसी पर भारत का दोहरा नज़रिया- एक तरफ़ आँख खोल रखी है और दूसरे की तरफ़ आँख बंद कर रखी है। पाकिस्तान, जिसके मुक़ाबले में हम अपने आप को उच्चस्तरीय मानते हैं, जिसके दुश्मनी-वजूद से हमारी राजनीति और क्रिकेट चलता है, उसी पर ही हमारा मीडिया, राजनीतिक और सैन्य संवाद केंद्रित रहता है। चीन, जो दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य ताक़तों में से एक है, जो हमारी सरज़मीं पर आर्थिक और सैन्य घुसपैठ खुले आम कर रहा है , उस पर हमारा हर संवाद और कदम भ्रम में धूमिल हैं। पाकिस्तान को हम घर में घुस कर मारेंगे पर चीन को अपने घर में घुसने से रोकने की तैय्यारी तक में हम अपने आँखें और जेबें बंद कर रहे हैं?

समय है दोनो आँखें खोलने का और राष्ट्र सुरक्षा व राष्ट्रहित सुनिश्चहित करने का।

नरेंद्र मोदी इज एक्चुअली सरेंडर मोदी : राहुल गांधी

चीन से हाल की सैन्य झड़प, जिसमें देश ने अपने २० जांबाज खो दिए, के बाद देश भर में जहां गुस्से की ज्वाला धधक रही है, वहीं बहुत सी अस्पष्ट स्थितियों को लेकर उठ रहे सवालों के बीच विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, लगातार सरकार और पीएम मोदी से सवाल पूछ रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अब एक ट्वीट करके पीएम नरेंद्र मोदी को ”सरेंडर मोदी” (आत्मसमर्पण करने वाले मोदी) कहा है।

सरकार ने पिछले दो दिन में अपनी तरफ से चीन से रिश्तों और सैन्य गतिरोध के अलावा हाल के घटनाक्रम को लेकर अपनी तरफ से सफाई दी है और पीएम मोदी ने भी कहा है कि न तो किसी ने हमारी किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किया है, न कोई हमारी सीमा घुसा है, लेकिन वस्तुस्थिति को लेकर कुछ पूर्व सेना अफसरों और जानकारों के विरोधाभासी बयानों से स्थिति उलझी हुई है।

राहुल पीएम मोदी पर चीन के आगे ”समर्पण” कर उसे भारतीय क्षेत्र देने का आरोप लगा चुके हैं। उनका आज का ट्वीट उनकी ट्वीटर टीम के सरेंडर मोदी (Surender Modi) लिखना नरेंद्र मोदी से जानबूझकर जोड़ने की कोशिश लगती है, या टाइपो हुआ है, यह तो पता नहीं, लेकिन इस तरह उन्होंने पीएम पर चीन के मामले में कटाक्ष करने की कोशिश की है। दरअसल अंगरेजी शब्द सरेंडर की स्पेलिंग में दो आर आते हैं, इसलिए यह सवाल उठा है।

शनिवार के कांग्रेस ने बेहद हमलावर रुख अपनाते हुए कहा था कि ”मोदी ने भारतीय क्षेत्र में चीनी अतिक्रमण के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है”। कांग्रेस का यह ब्यान पीएम मोदी के सर्वदलीय बैठक के बाद इस ब्यान के बाद आया था जिसमें मोदी ने कहा था कि ”चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की है, न किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किया है”। राहुल ने इसके बाद उनसे पूछा था कि ”अगर वह जमीन चीन की थी, जहां भारतीय जवान शहीद हुए तो हमारे सैनिकों को क्यों मारा गया? उन्हें कहां मारा गया”?

अब रविवार को राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा है – ”नरेंद्र मोदी असल में सरेंडर मोदी हैं”। गांधी ने जापान टाइम्स के एक लेख को भी साझा किया है, जिसमें अखबार ने अपने एक लेख में भारत की मौजूदा नीति को ”चीन की तुष्टीकरण वाला” बताया गया है।

राहुल गांधी का ट्वीट –

@RahulGandhi
Narendra Modi
Is actually
Surender Modi