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शोपियां में ४ और आतंकी ढेर, पिछले २४ घंटे में नौ मारे गए

कश्मीर में सुरक्षा बलों ने बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए शोपियां इलाके में पिछले २४ घंटे में ९ आतंकियों को ढेर कर दिया है। इनमें से ४ आतंकी सोमवार को जबकि बाकी रविवार को ढेर किये गए। मुठभेड़ में कुछ जवान भी घायल हुए हैं।

जानकारी के मुताबिक कश्मीर के शोपियां में आतंकियों के खिलाफ सेना ने रविवार को शुरू किया अपना अभियान सोमवार को भी जारी रखा और जिले में पिछले २४ घंटे में ९ आतंकियों को ढेर कर दिया। सोमवार तड़के  शोपियां के पिंजूरा में मुठभेड़ में सुरक्षा बलों ने ४ आतंकी ढेर किये।

ऑपरेशन में रविवार को शोपियां के रेबेन इलाके में पांच आतंकी मार गिराए गए थे। फिलहाल जिले में प्रशासन ने मोबाइल इंटरनेट सेवा को अस्थायी रूप से बंद कर रखा है ताकि अफवाहीन न फैलें ।

जेके पुलिस को पिंजूरा क्षेत्र में आतंकियों की मौजूदगी की सूचना मिली थी। इसके बाद सेना, सीआरपीएफ और एसओजी की साझी टीम ने तलाशी अभियान शुरू किया था। सुरक्षाबलों की घेराबंदी के बाद सोमवार सुबह आतंकियों ने जंगल की तरफ भागने की कोशिश की लेकिन इस बीच गोलीबारी शुरू हो गयी।

लगातार चली मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने चार और आतंकियों को ढेर कर दिया। जानकारी के मुताबिक मुठभेड़ में कुछ जवान भी घायल हुए हैं। रविवार कोशोपियां के रेबेन इलाके में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में पांच आतंकियों को मार गिराया गया था।

भारत-चीन सीमा विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए सैन्य और राजनयिक वार्ता जारी रखने पर सहमत : भारतीय विदेश मंत्रालय

भारत के विदेश मंत्रालय ने रविवार को कहा कि भारत और चीन द्विपक्षीय समझौतों और दोनों देशों के नेताओं के दिशानिर्देशों के तहत सीमा विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए सैन्य और राजनयिक वार्ता जारी रखने पर सहमत हो गए हैं। हालांकि, इस बीच चीन के अखबार ”ग्लोबल टाइम्स” की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने मध्य चीन के हुबेई प्रांत से चीन और भारत के बीच सीमा पर बख्‍तरबंद गाड़ियों के साथ युद्धाभ्यास किया है।

शनिवार को भारत और  चीन के सैन्य कमांडरों ने शनिवार को उच्च हिमालयी क्षेत्र में महीने भर से चले आ रहे गतिरोध को सुलझाने के प्रयास के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के चीन के हिस्से माल्डो में बातचीत की थी, जिसके बाद आज भारत के विदेश मंत्रालय का ब्यान आया है। इसमें कहा गया है कि बैठक सौहार्दपूर्ण और सकारात्मक माहौल में हुई। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि मुद्दे के जल्द समाधान से दोनों देशों के बीच संबंधों का और अधिक विकास होगा।

विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि ”दोनों पक्ष विभिन्न द्विपक्षीय समझौतों और नेताओं के बीच बनी सहमति को ध्यान में रखते हुए सीमावर्ती क्षेत्रों में हालात को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने पर राजी हो गए हैं। नेताओं के बीच सहमति बनी थी कि भारत-चीन सीमा क्षेत्र में अमन-चैन द्विपक्षीय संबंधों के संपूर्ण विकास के लिए आवश्यक है”। मंत्रालय ने कहा – ”दोनों पक्षों ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि इस साल दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की ७०वीं वर्षगांठ है और वे इस पर राजी हुए कि इस मसले के जल्द समाधान से संबंधों का और विकास होगा।”

हालांकि, दिलचस्प यह भी है कि इस तरह की ”शांतिपूर्ण बातचीत” के बावजूद चीन की सेना ने मध्य चीन के हुबेई प्रांत से चीन और भारत के बीच सीमा पर बख्‍तरबंद गाड़ियों के साथ युद्धाभ्यास किया है। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इस अभ्यास, जिसका वीडियो भी साथ में जारी किया गया है, में दावा किया गया है, ”चीन-भारत सीमा तनाव के बीच कई हजार चीनी सैनिकों को मध्य चीन के हुबेई प्रांत से उत्तर-पश्चिमी, उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में युद्धाभ्यास करने में कुछ ही घंटे लगे”।

Global Times

@globaltimesnews
Several thousand soldiers with a Chinese PLA Air Force airborne brigade took just a few hours to maneuver from Central China’s Hubei Province to northwestern, high-altitude region amid China-India border tensions.

कश्मीर के शोपियां में ४ आतंकी ढेर

जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों ने रविवार को ४ आतंकियों को मार गिराया। आपरेशन काफी लंबा चला और अभी भी आतंकियों की खोज की जा रही है।

जानकारी के मुताबिक कश्मीर के शोपियां जिले में सुरक्षाबलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई जिसमें यह चारों मारे गए। सुरक्षाबलों ने अभी इलाके को घेर रखा है और सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। सुरक्षाबलों को जानकारी मिली थी कि दक्षिण कश्मीर में शोपियां के रेबन इलाके में कुछ आतंकी छिपे हुए हैं। इस आधार पर सुरक्षाबलों ने जेके पुलिस के साथ एक साझी टीम बनाई और इलाके को घेर लिया।

सुरक्षा बलों की ओर से चलाए गए सर्च ऑपरेशन की खबर लगते ही इलाके में छिपे  आतंकियों ने गोलीबारी शुरू कर दी। अभी तक मुठभेड़ में चार आतंकी ढेर हो चुके हैं। फायरिंग रुक गई है लेकिन सुरक्षाबलों ने इलाके को घेर रखा है। आशंका है कि कुछ और आतंकी वहां छिपे हो सकते हैं।

जानकारी के मुताबिक अभी वहां एक से दो आतंकी छिपे हो सकते हैं। सुरक्षा बलों ने उन्हें समर्पण करने को कहा है लेकिन अभी ऐसा नहीं हुआ है। इलाके में अफवाहें न फाइलें इसके लिए सुरक्षाबलों ने वहां इंटरनेट की सेवा को अस्थाई रूप से बंद किया हुआ है।

दिल्ली सरकार के अस्पतालों में अब ‘बाहरियों’ के इलाज पर रोक

कोरोना महामारी ने न सिर्फ लोगों की जिंदगी और जीवनशैली को बदल दिया है, बल्कि राज्य सरकारों को भी हलकान कर दिया है। अब दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने फैसला किया है कि राजधानीवासियों को बाहरी लोगों के दिल्ली में उपचार करवाने के चलते दिक्कतों का सामना करना होता है। ऐसे में अब केंद्र शासित प्रदेश के सरकारी और निजी अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों का ही इलाज होगा। वहीं, केंद्र सरकार के अधीन आने वाले एम्स व सफदरजंग जैसे अस्पताल सभी के लिए खुले रहेंगे।

दिल्ली सरकार ने कैबिनेट बैठक में यह फैसला लिया है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत आनेवाले निजी व सरकारी अस्पतालों में अब सिर्फ दिल्ली के लोगों का ही उपचार होगा। हालांकि, कुछ निजी अस्पताल जो स्पेशल सर्जरी करते हैं जो कहीं और नहीं होती उनको करवाने देशभर से कोई भी दिल्ली आ सकता है, उन पर रोक नहीं रहेगी।

बता दें कि दिल्ली के अस्सपतालों में पश्चिमी यूपी और पूरे एनसीआर इलाके से बहुत से लोग आते हैं। 60 से 70 प्रतिशत बाहर के लोग दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती रहे। लेकिन इस वक्त दिल्ली में समस्या है, कोरोना केस तेजी से बढ़ रहे। ऐसी स्थिति में पूरे देश के लिए हॉस्पिटल खोल दिए तो दिल्ली के लोग कहां जाएंगे। केजरीवाल ने बताया कि इस मामले में पांच डाॅक्टरों की एक समिति बनाई थी, जिन्होंने माना कि फिलहाल बाहर के मरीजों को भर्ती करने से रोकना होगा।

मुख्यमंत्री ने कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि जून के अंत तक दिल्ली को 15 हजार कोविड बेड की जरूरत होगी। फिलहाल दिल्ली के पास 9 हजार बेड हैं और अगर अस्पताल सबके लिए खोल दिए तो ये 9 हजार तीन दिन में भर जाएंगे। केजरीवाल ने कहा कि 7.5 लाख लोगों ने उन्हें सुझाव दिए, जिसमें से 90 फीसदी ने कहा कि फिलहाल कोरोना महामारी के रहने तक दिल्ली के अस्पताल दिल्ली वालों के लिए होने चाहिए।

इससे पहले शनिवार को ही दिल्ली सरकार ने ऐलान किया था कि कोई भी अस्पताल कोविड मरीजों को भर्ती करने से इनकार नहीं कर सकता। साथ ही कुछ निजी अस्पतालों पर बेड को लेकर कालाबाजारी किए जाने की बात कही थी। इसी मामले में एक बड़े निजी अस्पताल सर गंगा राम पर दिल्ली सरकार ने एफआईआर भी दर्ज कराई है। बता दें कि दिल्ली में कोरोना का कहर बढ़ता ही जा रहा है साथ ही केजरीवाल सरकार ने सभी अस्पतालों को 20 फीसदी बेड कोविड मरीजों के लिए आरक्षित करने को कहा है।

25 जगह नौकरी करने की आरोपी शिक्षिका अनामिका शुक्ला गिरफ्तार

कभी कहा जाता था जी एमपी गजब है, लेकिन अब ये जुमला यूपी पर फिट बैठता नज़र आ रहा है। उत्तर प्रदेश में 2-3 नहीं , 25 जगह यानी 25 जिलों में फर्जी तरीके से नौकरी करने के मामले में सुर्खियों में आई शिक्षिका अनामिका शुक्ला को शनिवार को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। अनामिका पर 13 महीने में 1 करोड़ से अधिक सैलरी लेने का आरोप है।
अनामिका शुक्ला यहां के कस्तूरबा विद्यालय फरीदपुर में विज्ञान की शिक्षिका के रूप में 1998 से  पूर्णकालिक रूप से सेवाएं कर रही थी। फर्जीवाड़े का पता लगने के बाद अधिकारियों के निर्देशों पर यहां जनपद में अनामिका शुक्ला नाम की शिक्षिका की तलाश की गई तो कस्तूरबा विद्यालय मे यह शिक्षिका पाई गई।
बीएसए ने शिक्षिका के वेतन आहरण पर रोक लगाते हुए व्हाट्सएप पर नोटिस भेजा था। इसके बाद शनिवार को वह अपना इस्तीफा देने बीएसए दफ्तर के बाहर पहुंची।
अपने साथ आए एक युवक के माध्यम से उसने इस्तीफा की प्रति बीएसए को भेजी। जब युवक से शिक्षिका के बारे में पूछताछ की तो उसने बताया कि अनामिका शुक्ला बाहर सड़क किनारे होने की बात कही।  इस पर बीएसए अंजली अग्रवाल ने यूपी की सोरों पुलिस को मामले की जानकारी दी और उसे गिरफ्तार कर लिया। अनामिका शुक्ला के खिलाफ धोखाधड़ी व अन्य कई धाराओं में  केस दर्ज किया गया है।

देश में २४ घंटे में ९८८७ नए मामले, २९४ की मौत

देश में कोविड-१९ के पिछले २४ घंटे में ९८८७ नए मामले आए हैं और २९४ लोगों की जान गयी है। स्वास्थ्य मंत्रालय के शनिवार को जारी किये आंकड़ों के मुताबिक देश में कोरोना पॉजिटिव मामलों की जनवरी से बा तक की कुल संख्या २,३६,६५७ हो गयी है जिनमें से इस समय सक्रिय मामले १,१५,९४२ हैं।

मंत्रालय के मुताबिक देश भर में अभी तक १,१४,०७३ लोग तंदरुस्त हो चुके हैं और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। अभी तक देश भर में कोविड-१९ वायरस से ६,६४२ लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीच दिल्ली में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)  के मुख्यालय लोक नायक भवन में पांच लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इसे कल तक के लिए सील कर दिया गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय के जारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले २४ घंटे में ९,८८७ नए मामले आए हैं और २९४ लोगों की मौत हुई है। इस बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है जिसके मुताबिक धार्मिक स्थलों पर प्रसाद बांटने, पवित्र जल का छिड़काव करने की अनुमति नहीं होगी।

बिना छुए एटीएम से निकलेगा पैसा, बैंक कर रहे तैयारी

कोरोना वायरस के कहर ने ज़िन्दगी जीने और तौर तरीकों में भारी बदलाव लाने को मजबूर कर दिया है। लोगों के व्यवहार से लेकर इनकी आम ज़रूरतों में भी बदलाव आया है। संक्रमण से बचने के लिए लोग एक-दूसरे से हाथ मिलाने और गले मिलने तक से कतरा रहे हैं। ऐसी किसी भी चीज को छूने से बच रहे या डर रहे हैं जिनसे संक्रमण का ज्यादा खतरा हो सकता है। इनमें एटीएम भी एक है जिसका इस्तेमाल आमतौर पर बहुत से लोग करते हैं।
ऐसे ही खतरे और आशंका को दूर करने के लिए बैंक अपने ग्राहकों के लिए ऐसे एटीएम उतारने की तैयारी में हैं, जिनसे बिना छुए ही एटीएम से पैसा निकाल सकें। पेमेंट्स कंपनी एजीएस ट्रांजेक्ट टेक्नोलॉजी ने इसका एक प्रोटोटाइप बनाया है। इसमें स्क्रीन पर क्यूआर कोड स्कैन करने के बात मशीन से इंटरफेस के लिए बैंक के मोबाइल एप का इस्तेमाल किया जाता है।
सामान्य तौर पर एटीएम मशीन खाताधारक की पहचान के लिए मैग्नेटिक स्ट्राइप कार्ड और सत्यापन के लिए पिन का इस्तेमाल करती हैं। लेकिन कॉन्टेक्टलेस एटीएम का इस्तेमाल करने के लिए ग्राहक को स्क्रीन पर क्यूआर कोड को स्कैन करने के लिए बैंक के स्मार्टफोन एप का इस्तेमाल करना होगा। इसके बाद अपने मोबाइल पर ही निकासी राशि और एटीएम पिन डालेगा और मशीन को बिना छूए ही कैश मिल जाएगा।
एजीएस ट्रांजेक्ट देश में बैंकों के लिए 70 हजार एटीएम मैनेज करती है। कंपनी दो बैंकों के लिए कॉन्टेक्टलेस एटीएम सॉल्यूशन पर काम कर रही है। साथ ही उसकी चार अन्य बैंकों से भी बात हो रही है। इसके लिए सॉफ्टवेयर में बदलाव करना होगा, लेकिन इसमें आठ हफ्ते का समय लग सकता है। इसकी वजह यह है कि बैंकों के पास मोबाइल बैंकिंग, एटीएम ऑपरेशन और एटीएम मेनटीनेंस के लिए कई सेवा प्रदाताओं का होना है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और आईसीआईसीआई बैंक ने स्मार्टफोन के इस्तेमाल से पैसों की कार्डलेस निकासी के एप विकसित किए हैं लेकिन ये कोरोना के संक्रमण से पहले के हैं। इनके लिए एटीएम को टच करना पड़ता है। पर अब इसमें भी बदलाव किया जा सकता है।

तमाम बीमारियों की जड वायु प्रदूषण

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज डाक्टरों ने माना है। कि पर्यावरण और जीवन एक दूसरे के पूरक है अगर एक को नजरअंदाज किया, तो दूसरे पर असर पडेगा। कोरोना काल में इस बात की पुष्टि भी हुई है। कि वायु प्रदूषण को अगर काबू किया गया होता तो काफी हद तक कोरोना जैसी महामारी पर काबू पाया जा सकता था। द अलमोनर बायोटेक डायरेक्टर डाँ जसवाल ,के.एस का कहना है कि वायु प्रदूषण देश –दुनिया में किसी महामारी से कम नहीं है। तमाम अध्यन भी इसी बात पर हो रहे है कि अगर समय रहते वायु प्रदूषण को नहीं रोका गया तो ये काफी घातक हो सकते है।डाँ जसवाल का कहना है कि एम16जस के माध्यम से कोरोना जैसी बीमारी के खिलाफ लोगों को जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि एलोपैथ के साथ हमें आर्युवेद चिकित्सा पर बल देना होगा ताकि घर बैठे रोगी आसानी से इलाज कर सकें। उन्होंने बताया कि कैंसर , किडनी, हार्ट , मधुमेह, लीवर जैसी बीमारी से पीडित मरीजों को लिये तमाम शोधों  व  अध्ययन से एम16 जस जैसे प्रोटीन क्षारीय के माध्यम से कोरोना को हराये जाने का प्रयास किया जा रहा है । इस के लिये समय समय पर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। क्योंकि कोरोना एक संक्रमित बीमारी के साथ जानलेवा घातक है। डाँ जसवाल का कहना है कि गांव –गांव में कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक लोगों को स्वस्थ्य किया जा रहा है।इंडियन हार्ट फाउण्डेशन के अध्यक्ष डाँ आर एन कालरा का कहना है कि कोरोना काल हो या आने वाली सर्दियों के दिन हो वायु प्रदूषण से लोगों का बुरा हाल रहा है जिसके कारण लोगों  अस्थमा और हार्ट जैसी बीमारियों के चपेट में आ रहे है। उन्होंने बताया कि सबसे दुखद पहलू तो ये है कि वायु प्रदूषण का कहर लोगों को तमाम बीमारियों की चपेट में ले रहा है। हर साल की भाँति इस साल भी 5 जून को विश्व प्रर्यावरण दिवस पर लोगों को जागऱूक करने के लिये तामाम सेमिनारों का आयोजन किया गया जिसमें तमाम डाक्टरों और प्रर्यावरणविदों ने भाग लिया।

आत्मनिर्भर भारत और ज़मीनी हकीकत

भारत सरकार के वाणिज्य विभाग की रिपोर्ट। सरकार के आँकड़े कहते हैं कि पिछले साल अप्रैल से लेकर इस साल जनवरी तक भारत ने 28.40 लाख करोड़ रुपये का आयात किया। जबकि इसी अवधि में हमारा एक्सपोर्ट इससे कहीं कम महज़ 8.60 लाख करोड़ रुपये रहा। यानी माइनस 9.79 लाख करोड़ रुपये का ट्रेड बैलेंस। अमेरिका को अपना बड़ा व्यापारिक साझेदार बनाने की कोशिशों के बीच ‘मेड इन इंडिया’ के बाद ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा गूँजा है। यह नारा तब गूँजा है, जब सरकार के 20 लाख करोड़ रुपये के आॢथक पैकेज पर ही हज़ारों सवाल उठ खड़े हुए हैं।

आत्मनिर्भर भारत या मेड इन इंडिया का नारा वैसा ही लुभावना लग रहा है जैसा आज से 48 साल पहले इंदिरा गाँधी का गरीबी हटाओ का नारा लुभावना था और लोकप्रिय हुआ था। कुछ कोशिशें उस समय हुई भी थीं। लेकिन गरीबी आज भी उसी पायदान पर है। आज शायद उससे भी खराब स्थिति है। अगर नहीं होती, तो लॉकडाउन में भारत का एक बड़ा वर्ग यूँ भूखा-प्यासा सडक़ों पर नहीं होता। रेलवे ट्रैक, सडक़ों के अनजाने मोड़ों पर और भूख से इस तरह मौतें नहीं हो रही होतीं और न ही कोई पीडि़त होकर मौत को गले लगा रहा होता। लाखों लोगों का रोज़गार नहीं छिना होता। 14 साल की बच्ची 100 किलोमीटर पैदल चलकर और न जाने कितने ही मजबूर बच्चे, बड़े, बीमार और बूढ़े रास्ते में दम तोड़ रहे होते और 14 साल की ज्योति को अपने बुजुर्ग पिता को 1200 किलोमीटर दूर अपने घर तक साइकिल चलाकर न ले जाना पड़ता। कोई महिला प्रसव पीड़ा से सडक़ पर नहीं कराह रही होती। कोई गर्भवती महिला सिर पर बोझ उठाये और गोद में अपने मासूम को लिए सैकड़ों किलोमीटर पैदल नहीं चली होती।

तो क्या आत्मनिर्भर भारत का नारा भी एक राजनीतिक मुहावरा भर ही है? बिना मज़बूत ढाँचे और बिना ज़मीनी तैयारी के चीन से हज़ारों कम्पनियों के निकलकर भारत आ जाने की उम्मीद क्या एक कल्पना से ज़्यादा कुछ नहीं? क्या अमेरिका, इटली, जर्मनी या फ्रांस में रहते हुए किसी महँगे गैजेट पर मेड इन इंडिया लिखा देखने की यह चाह बस एक चाह ही रह जाएगी? ज़मीनी हकीकत तो कुछ यही कहती है।

आजकल यह विषय चर्चा में है कि चीन के वुहान से जिस तरह घातक वायरस निकलकर दुनिया को तबाह कर गया, उसी तरह निर्माण कम्पनियाँ वहाँ से निकलकर चीन को तबाह कर देंगी। कोविड-19 के बाद दुनिया के बहुत-से देशों में चीन के प्रति ज़बरदस्त नाराज़गी है, इसमें कोई दो राय नहीं है। चीन से छिटकने वाले इसी बाज़ार को भारत अपने लिए एक उम्मीद के रूप में देख रहा है।

मोदी सरकार के आत्मनिर्भर भारत और मेड इन इंडिया के नारे से कुछ समय पहले ही उनकी ही पार्टी भाजपा और आरएसएस से जुड़े रहे शेषाद्रिचारी ने एक ट्वीट किया था। इस ट्वीट में शेषाद्रिचारी ने लिखा था- ‘चीन से अपना बोरिया-बिस्तर समेट रही 50 कम्पनियों में से सिर्फ तीन ने भारत आने की इच्छा जतायी है। बाकी 47 कम्पनियाँ वियतनाम, फिलीपींस, बांग्लादेश आदि देशों में जाना चाह रही हैं।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत करके बाहर से निवेश की ज़मीन टटोल रहे हैं। लेकिन इस बीच तथ्य यह भी है कि चीन में बिस्तर समेटनी वाली अपनी कम्पनियों को जापान और अमेरिका जैसे देश स्वदेश लौटने को कह रहे हैं। वे उन्हें मूविंग कास्ट देने का ऐलान कर चुके हैं। क्या भारत ऐसा ही ऑफर कम्पनियों को करने की स्थिति में है, अगर वह उन्हें अपनी ज़मीन पर लाना चाहे?

हाल में भाजपा शासित उत्तर प्रदेश से शुरू होकर एक कानूनी प्रस्ताव भी दूसरे राज्यों में पहुँचा है। वैसे तो यह कानून कामगारों की कब्र खोदने जैसा है। लेकिन इसे विदेशी निवेश को आकर्षित करने की दिशा में एक कदम के रूप में देखा जा रहा है। यह है, लेबर लॉ (श्रम कानून) को तीन साल के लिए निलंबित कर देना। अर्थात् विदेशी कम्पनियों को यह जताने की कोशिश की जाने लगी है कि आप बस हमारे देश आ जाओ, मज़दूरों का जैसे मर्ज़ी इस्तेमाल करो। जितनी मर्ज़ी तनख्वाह दो। जब मर्ज़ी हो उन्हें निकालकर बाहर फेंक दो।

लेकिन नागरिकता कानून जैसे प्रावधानों से देश की जो छवि पिछले महीनों में विदेशों में बनी है, वह भी विदेशी निवेश के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा है। मोदी सरकार की छवि देश से बाहर एक कट्टरवादी हिन्दू पार्टी वाली सरकार की बन रही है, जिससे यह सन्देश जा रहा है कि यहाँ दूसरे धर्म के लिए अब वैसा सम्मान नहीं रहा। यह निवेश की दृष्टि से बहुत बड़ा झटका है; जिस पर कोई बात नहीं कर रहा।

बाहर की कम्पनियाँ ऐसे देश में निवेश से हिचकती हैं, जहाँ की सरकार की छवि एक कट्टरवादी सोच वाली सरकार की हो। नहीं भूलना चाहिए कि नागरिकता कानून लाने और जम्मू-कश्मीर में धारा-370 खत्म करने के एक तरफा फैसले के बाद विदेशों में भी भारत के खिलाफ खूब प्रदर्शन हुए थे। आिखर विदेशी कम्पनियों को यहाँ पैसा झोंकना है, तो उन्हें वैसा माहौल और सुविधाएँ भी चाहिए होंगी।

इसके विपरीत इंफ्रास्ट्रक्चर फ्रंट पर खोखली ज़मीन को सींचने के लिए कुछ नहीं हो रहा। देश में नौकरशाही और लालफीताशाही से कारोबार को मुक्त करने की दिशा में कुछ नहीं हो रहा। अपेक्षाकृत प्रगतिशील मंत्री की छवि रखने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी एक महीने से कह रहे हैं कि दुनिया भर के देशों में चीन से नाराज़गी है और चीन छोडक़र जाने के लिए कई कम्पनियाँ तैयार हैं। ऐसे में उनको भारत आने के लिए आकर्षित करना चाहिए। लेकिन कैसे करना चाहिए? इसका रास्ता अभी वह भी नहीं सुझा रहे हैं।

चीन छोडऩे की तैयारी कर रही कम्पनियों के भारत आने के प्रति बहुत रुझान नहीं दिखाने से हमें जिस तरह सचेत होना चाहिए था, वैसा हुआ नहीं है। उलटे इससे मोदी सरकार की आॢथक प्रबन्धन की छवि पर बड़ा सवालिया निशान लगा है। हाल ही में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आॢथक पैकेज को बेहद कामचलाऊ उपाय के रूप में देखा जा रहा है।

सरकार समर्थक आॢथक विशेषज्ञों को छोडक़र देश के और यहाँ तक कि अन्य देशों के भारत के प्रति रुचि रखने वाले आॢथक विशेषज्ञ भी इससे कतई उत्साहित नहीं हैं। वे मान रहे हैं कि यह महज़ एक राजनीतिक घोषणा है, जिसका वर्तमान में भुखमरी झेल रहे लोगों को कोई लाभ नहीं मिलेगा। जिसके प्रति बड़े पैमाने पर लोगों में अविश्वास बन जाये, ऐसे आॢथक इंतज़ाम के चलते कैसे हम बड़े विदेशी निवेश की कल्पना भी कर सकते हैं।

आत्मनिर्भर भारत के मायने हैं, भारतीयों को किसी भी चीज़ के लिए किसी पर निर्भर न रहना पड़े। पाँच ट्रिलियन इकोनॉमी (पाँच करोड़ लाख अर्थ-व्यवस्था) के नारे के बीच यदि हमारे आयात-निर्यात का ट्रेड बैलेंस  (व्यापार-जमा) ही 9.79 लाख करोड़ रुपये के घाटे (अप्रैल, 2019 से जनवरी 2020 के बीच) में गोते लगा रहा हो, तो समझा जा सकता है कि हमें अभी आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य के लिए कितनी मेहनत की दरकार है।

यदि मोदी सरकार के समय की ही बात की जाए, तो वाणिज्य मंत्रालय का डाटा बताता है कि 2014-15 से 2019-20 के अप्रैल से जनवरी के बीच की अवधि के लिहाज़ से भारत ने कुल 115.85 लाख करोड़ रुपये का निर्यात किया, यानी अपना माल बाहर बेचा; जबकि इसके विपरीत विदेशों से जो माल आयात किया (खरीदा), उसकी राशि कहीं ज़्यादा 172.39 लाख करोड़ रुपये है।

इस लिहाज़ से भारत के आयात-निर्यात का यही व्यापारिक घाटा इन छ: वर्षों में भारी-भरकम रकम 56.54 लाख करोड़ रुपये का रहा। यह भी तब है, जब नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री सत्ता सँभालने के कुछ समय बाद ही मेक इन इंडिया लॉन्च किया। ज़ाहिर है या तो इसमें कमी रही है या इसे लेकर जो आँकड़े पेश किये गये, वे महज़ कागजी थे। सबसे बड़ी बात यह कि जिस चीन को हम आॢथक शक्ति के रूप में अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं, अकेले उसी चीन से हमारा यह घाटा करीब 19.75 लाख करोड़ रुपये रहा, जो कि लगभग वर्तमान आॢथक पैकेज के बराबर के है।

हाल के वर्षों में चीन हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी रहा है। चीन से व्यापारिक सहयोग की शुरुआत आॢथक विशेषज्ञ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के रहते ही हो गयी थी, जब हमने यूएई के मुकाबले 2011-12 में चीन को प्रमुखता देनी शुरू की। यह सिलसिला अभी चल रहा है; लेकिन पिछले दो साल से मोदी सरकार का रुख चीन से हटकर अमेरिका की तरफ हो गया है।

इसका एक कारण मोदी का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रति झुकाव भी है। इससे पहले उनका झुकाव बराक ओबामा (जब वह अमेरिका के राष्ट्रपति थे) की तरफ था। एक तरह से अब अमेरिका ने चीन की जगह ले ली है और वह भारत के सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी के रूप में सामने आया है। वैसे यहाँ यह बताना भी दिलचस्प है कि यह लाभकारी रहा है। अमेरिका से व्यापार का मामला भारत के लिए लाभकारी साबित हुआ है और यह इस साल जनवरी तक के आँकड़ों के लिहाज़ से करीब-करीब 90 हज़ार करोड़ प्लस में है। यहाँ खतरे अमेरिका की नीति के ही हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि वह चारा डालकर गर्दन कलम करता है।

यह बहुत दिलचस्प है कि चीन से आज जो कम्पनियाँ बाहर निकल रही हैं, उनमें से काफी कम्पनियाँ वियतनाम की ओर रुख कर रही हैं। वियतनाम चीन की ही तरह एक कम्युनिस्ट देश है और वहाँ का श्रम कानून लगभग चीन की ही तरह है। यहाँ यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि वियतनाम में आॢथक उदारीकरण 1990 के आसपास कमोवेश उसी समय शुरू हुआ, जब भारत में हुआ। चीन में विदेशी कम्पनियों को जिस चीज़ ने सबसे ज़्यादा आकर्षित किया था, वह था- सस्ते श्रमिक और मज़बूत व्यापारिक ढाँचा। वियतनाम काफी कुछ वैसा ही है।

अप्रैल के मध्य तक के आँकड़ों के मुताबिक, चीन से 56 कम्पनियों ने अपना बोरिया-बिस्तर समेटा है। इनमें से 26 कम्पनियाँ वियतनाम में स्थापित हुई हैं। इसके अलावा जिस ताईवान से आजकल चीन की ठनी हुई है, वहाँ 11 कम्पनियाँ पहुँची हैं; जबकि आठ कम्पनियों ने थाईलैंड में डेरा डाला है। भारत में सिर्फ तीन कम्पनियाँ ही आयी हैं। इसे बेहद निराशाजनक कहा जा सकता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि बहुत पहले से एक धर्म निरपेक्ष देश के रूप में भारत की एक विश्वसनीय छवि रही है। लेकिन चीन और वियतनाम के विपरीत भारत का व्यापारिक ढाँचा बेहद कमज़ोर है। लेकिन इसे सुधारा जा सकता है। क्योंकि दुनिया में आज दवाओं के अलावा कृषि, प्रोसेस्ड फूड, गारमेंट, जेम्स और ज्वैलरी, लेदर लेदर प्रोडक्ट, कारपेट और इंजीनियङ्क्षरग प्रोडक्ट जैसी कई वस्तुओं के निर्यात की भारत से बहुत अच्छी सम्भावनाएँ मानी जाती हैं। खासकर, दवाई क्षेत्र (फार्मा उद्योग) भारत के लिए रामबाण साबित हो सकता है। यूएसएफडीए के मानकों के अनुरूप अमेरिका से बाहर सबसे अधिक संख्या में दवा प्लांट भारत के पास हैं। सवाल केवल बेहतर व्यापारिक ढाँचे का ही है।

रेटिंग कम्पनी नोमुरा की हाल की एक रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि चीन में पिछले कुछ समय में मज़दूरी की लागत बड़ी है। वहाँ सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का हस्तक्षेप भी बढ़ा है। इससे भी विदेशी कम्पनियाँ विकल्प देखने को मजबूर हुई हैं। भारत सरकार ने हाल के महीनों में विदेशी निवेश को लेकर कुछ फैसले किये हैं, जिनमें सबसे प्रमुख फैसला ऑटोमैटिक रूट (स्वत: अनुमोदित मार्ग) को लेकर है। भारत ने पड़ोसी देशों से होने वाले निवेश का यह ऑटोमैटिक रूट बन्द कर दिया है। अर्थात् बिना मंज़ूरी निवेश का रास्ता बन्द कर दिया है।

इस फैसले के पीछे चीन को लक्ष्य करना ही माना जाता है। दरअसल पहले भारत में विदेशी निवेश के दो ज़रिये होते थे। कुछ चिह्नित क्षेत्र में निवेश वाली कम्पनियों को एक निश्चित प्रतिशत तक निवेश की सीधी छूट सरकार से है, जिसमें सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं रहती थी। लेकिन बिना अनुमति निवेश को बन्द करते हुए सरकार ने ऑटोमैटिक रूट बन्द कर दिया है। अर्थात् किसी भी पड़ोसी देश को अब निवेश के लिए सरकार से मंज़ूरी लेना अनिवार्य होगा; चाहे वह किसी भी सीमावर्ती देश का (पैसे के मामले में) निवेश हो।

इसके अलावा विदेश की कम्पनियों को भारत लाने के लिए भारत सरकार ने मेक इन इंडिया के तहत कॉरपोरेट टैक्स 35 फीसदी से घटाकर लगभग 25 फीसदी कर दिया है। कुछ मामलों में तो यह 22 फीसदी है, जबकि नयी कम्पनियों को लुभाने के लिए यह 15 फीसदी किया गया है।

इन कुछ उपायों के बावजूद सबसे बड़ा सवाल देश में व्यापारिक ढाँचे का ही है। चीन से करीब 1000 कम्पनियों के पलायन की सम्भावना के बीच भारत में इनके आने की उम्मीद बहुत मज़बूत नहीं दिख रही। सरकार के 20 लाख करोड़ पैकेज में से जो हिस्सा छोटे, लघु और मध्यम उद्योगों को लेकर है, वह इस ढाँचे को कितनी मज़बूती दे पायेगा? यह देखने वाली बात होगी। यदि यह सीमित समय में देश में उद्योगों का एक बेहतर ढाँचा खड़ा नहीं कर पाता है, तो तब तक यह कम्पनियाँ दूसरे देशों में जा चुकी होंगी।

भारत में परियोजनाओं को मंज़ूर करवाना बहुत टेढ़ी खीर है। इसमें बहुत समय लगता है। कम्पनियों को फैक्ट्री लगाने वाली ज़मीन के लिए किसानों के साथ डील करनी पड़ती है। नौकरशाही के प्रावधानों का लम्बा और उबाऊ रास्ता है। स्थानीय माफिया की अलग से समस्या है, जिस पर सरकार का कोई बस नहीं है। इसमें भी एक बड़ा वर्ग राजनीतिक दलों के ताकतवर लोगों जो जुड़ा हुआ है।

ले-देकर सरकार की गाज श्रमिकों पर गिरी है, जिसके तहत श्रम कानून को तीन साल तक निलंबित करने की कोशिश की गयी है। इसे भारत जैसे देश में बहुत सहजता से नहीं लिया जा रहा है और इससे मज़दूरों का शोषण बढ़ेगा; जो सामाजिक ही नहीं, राजनीतिक रूप से भी किसी भी दल पर भारी पड़ सकता है। भारत कोई कम्युनिस्ट देश नहीं है, जहाँ सरकार ज़ोर-ज़बरदस्ती से मज़दूरों के अधिकार दबा ले और उन्हें विदेशी कम्पनियों के आगे चारे की तरह डाल दे। देश में आज भी एनजीओ और ट्रेड यूनियन की तरफ से दायर किये गये श्रम कानून से जुड़े लाखों मामले अदालतों में हैं।

वैसे यदि यूबीएस मार्केट की ताज़ा रिपोर्ट को देखा जाए, तो उसे लगता है कि चीन से व्यापार समेटने वाली कम्पनियों के लिए भारत सर्वाधिक उपयुक्त बाज़ार हो सकता है। यूबीएस की इस रिपोर्ट का यह आकलन चीन में काम कर रही करीब 500 कम्पनियों से बातचीत के आधार पर किये गये सर्वे पर आधारित है। यह रिपोर्ट उत्साह देने वाली हो सकती है; लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। वह यह कि भारत इन तमाम महीनों में कोई ऐसी रिपोर्ट तैयार नहीं कर सका है, जिससे यह पता चल सके कि चीन का वह ढाँचा आिखर है क्या? जिसे भारत में विकसित करने की ज़रूरत है और जो विदेशी कम्पनियों को आकर्षित करता है।

भारत अपने आपमें एक बड़ा बाज़ार है। यह तथ्य विदेशी कम्पनियों को आकर्षित करने का सबसे बड़ा और सकारात्मक पहलू है। लेकिन इसके बावजूद यदि देखें, तो हाल के महीनों में रीको जैसी कम्पनी जुलाई, 2019 में ही अपनी प्रिंटर उत्पादन इकाई को चीन से भारत न लाकर थाईलैंड लेकर चली गयी। नाइकी के उपत्पादों के प्रति भारत में ज़बरदस्त क्रेज रहा है; लेकिन यह कम्पनी भी वियतनाम और थाईलैंड को प्राथमिकता दे रही है। हालाँकि उसने भारत आने के रास्ते बन्द नहीं किये हैं, लेकिन भारत से किसी ठोस प्रयास की जगह कोशिश सिर्फ उनका इंतज़ार करने तक सीमित है।

एक और कम्पनी है- पैनासोनिक। वह भी चीन से बाहर जाने की तैयारी में है। जापान की जानी-मानी वाहन निर्माता कम्पनी माज़दा पहले ही मेक्सिको जा चुकी है। अभी भी बड़ी तादाद में अमेरिकी, जापानी और दक्षिण कोरियाई कम्पनियाँ हैं, जिन्हें चीन से बाहर जाना है और वो बेहतर विकल्प देख रही हैं।

भारत को इसके लिए कुछ अलग तरीके से बेहतर कोशिश करनी होगी, ताकि उन्हें वियतनाम, मलेशिया और सिंगापुर जाने से रोका जा सके। वैसे भी भारत निवेश के लिए रैंकिंग में इन देशों से नीचे गिना जाता है। हाँ, थाईलैंड और फिलीपींस जैसे देशों से ज़रूर भारत प्राथमिकता में कुछ ऊपर है।

भारत के लिए लाभकारी बिन्दु

भारत एक बड़ी आबादी वाला देश है, जहाँ लोगों को दुनिया के बड़े ब्रांड बहुत आकर्षित करते हैं। यह आबादी ही भारत का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट (सकारात्मक केंद्र) है। चीन जैसे देश के उत्पाद के लिए भारत एक बड़ा बाज़ार बन सकता है, तो यहाँ आने पर कम्पनियों के लिए तो यह बाज़ार स्वर्ग जैसा है। यानी भारत ऐसा मैन्यूफैक्चङ्क्षरग हब (उत्पादक केंद्र) हो सकता है, जिसकी खपत क्षमता खुद में ही दुनिया के किसी भी देश से कहीं ज़्यादा है। दुनिया में कहीं इतना बड़ा बाज़ार नहीं। भारत एक ऐसा बाज़ार है, जहाँ चीन में बनी हमारी ही धार्मिक चीज़ें तक बड़े पैमाने पर बिक रही हैं। दीवाली पर लक्ष्मी, गणेश की मूर्तियाँ, लडिय़ाँ, दीये आदि; होली की पिचकारी, रंग-गुलाल आदि और रक्षाबन्धन पर राखी के अलावा खिलोने से लेकर ज़रूरत का हर सामान तक, यानी सब कुछ नहीं सही, तो बहुत कुछ अब चीन से ही आ रहा है। ऐसे में करीब 130 करोड़ की आबादी वाले भारत को अपने ही देश के उत्पादों का बाज़ार बना देने से ही सही मायने में भारत आत्मनिर्भर हो सकता है और इसके लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए मज़बूत ज़मीन तैयार करनी होगी। साथ ही कल्पनाओं की उड़ान से बाहर आकर इस सपने बेचने की शिथिलता को खत्म करके नीतियों और बड़े पैमाने पर व्यापारिक ढाँचे का निर्माण करना होगा।

हम सुनते आये हैं कि 21वीं सदी हिंदुस्‍तान की है। हमें कोरोना के वैश्विक संकट को विस्‍तार से देखने का मौका मिला है। इससे जो स्थितियाँ बन रही हैं, हम इसे भी देख रहे हैं। 21वीं सदी भारत की ही हो, यह सपना ही नहीं हम सभी की ज़िम्‍मेदारी भी है। ऐसा हम आत्मनिर्भर भारत बनाकर ही कर सकते हैं। विश्‍व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है, और वह है- आत्‍मनिर्भर भारत। एक राष्‍ट्र के रूप में हम आज जिस मोड़ पर हैं, जहाँ इतनी बड़ी आपदा भारत के लिए संकल्‍प, संदेश और अवसर लेकर आयी है।

नरेंद्र मोदी

प्रधानमंत्री

कोरोना वायरस की महामारी के कारण अगर कम्पनियाँ चीन से बाहर निकलती हैं, तो ज़रूरी नहीं कि इसका फायदा भारत को होगा। हकीकत में कितना ऐसा होने वाला है? यह कहना मुश्किल है। क्या होगा अगर चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन (मूल्य में कमी) करता है। उस दशा में चीनी उत्पाद सस्ते हो जाएँगे और लोग आगे भी उनके उत्पादों को खरीदना जारी रखेंगे। लॉकडाउन से उपजे संकट में हर भारतीय के खाते में कम-से-कम 1000 रुपये तुरन्त ट्रांसफर करने चाहिए और यह पैसे अगले कुछ महीनों तक लगातार ट्रांसफर करने की ज़रूरत है।

अभिजीत बनर्जी

अर्थशास्त्री व नोबेल पुरस्कार विजेता

लोग राहत की उम्‍मीद लगा रहे थे; लेकिन उन्‍हें बड़ा ज़ीरो मिला है। इस 20 लाख करोड़ के पैकेज में राज्‍यों के लिए कुछ भी नहीं है।

ममता बनर्जी

मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल

लोगों को पैसे की ज़रूरत, साहूकार न बने सरकार

जब तक हम गरीब, मज़दूर, किसान को आत्मनिर्भर नहीं करते, तब तक देश आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। सरकार मज़दूरों को पैकेज नहीं, उनके खाते में सीधा पैसा ट्रांसफर करे। अगर माँग उत्पन्न नहीं हुई, तो देश को आॢथक रूप से कोरोना वायरस से बड़ा नुकसान होगा। पूरा देश इस समय एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। लोगों को आज पैसे की ज़रूरत है। ऐसे में सरकार को साहूकार के जैसे काम नहीं करना चाहिए। सरकार को लगता है कि अगर हमारा राजकोषीय घाटा बढ़ जाएगा, तो विदेश की एजेंसियाँ हमारी रेटिंग कम कर देंगी। लेकिन मैं कहना चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान की जो रेटिंग है, वो हिन्दुस्तान के लोगों से है। इसलिए सरकार को विदेश के बारे में सोचकर काम नहीं करना चाहिए। आज हमारे गरीब लोगों को पैसे की ज़रूरत है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करता हूँ कि वह इस पैकेज पर पुनर्विचार करें। वह मज़दूरों के खाते में सीधे पैसा ट्रांसफर करने पर विचार करें। क्योंकि ये लोग हमारा भविष्य हैं।

सरकार प्रवासी मज़दूरों को जल्द-से-जल्द अपने घरों तक पहुँचाये। सरकार को धीरे-धीरे सावधानी और समझदारी के साथ लॉकडाउन को हटाना पड़ेगा। सरकार को यह देखना होगा कि कोरोना वायरस की वजह से लोगों की जान न जाए। आप यह मत सोचिए की तूफान आ गया है। वह आ रहा है और बड़े आॢथक नुकसान का कारण बनेगा और इससे कई लोगों को नकसान झेलना पड़ेगा। ये समय किसी को गलत बताने का नहीं है, बल्कि इस बहुत बड़ी समस्या के समाधान का समय है। प्रवासी मज़दूरों की समस्या बहुत बड़ी है। हम सबको इनकी मदद करनी है। विपक्ष का भी काम है कि वह मिलकर काम करे। राज्यों के बीच सामंजस्य में कमी रह सकती है, उसका समाधान करना होगा। कुल मिलाकर हमें आगे बढक़र जो समस्या आने वाली है, उसका समाधान करना चाहिए।

राहुल गाँधी

कांग्रेस नेता

लोगों और कम्पनियों को देनी होगी राहत

केंद्र सरकार का करीब 20 लाख करोड़ रुपये का आॢथक पैकेज अपर्याप्त है। कोविड-19 के कारण अर्थ-व्यवस्था को होने वाले नुकसान में इससे मदद नहीं मिलेगी। ऐसे संकट की स्थिति में प्रवासी मज़दूरों को मुफ्त में अनाज मिलना चाहिए और लॉकडाउन की वजह से रोज़गार को हुए नुकसान की भरपाई करनी होगी। लोगों को सब्ज़ी, दूध, तेल और किराये जैसी ज़रूरतों के लिए खर्च चाहिए। पूरी दुनिया के सामने अर्थ-व्यवस्था के मोर्चे पर आपातकाल की स्थिति है। ऐसे में कोई भी ज़रिया पर्याप्त नहीं होगा। मेरा मानना है कि भारत के नज़रिये से यह स्थिति विशेष है। क्योंकि कई साल से हमारी अर्थ-व्यवस्था में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। ग्रोथ (वृद्धि) धीमी हो गयी है। वित्तीय घाटा बढ़ गया है। अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हमें और भी बहुत कुछ करना होगा। लोगों और कम्पनियों को राहत देने के लिए रास्ते तलाशने होंगे। उन पर कोरोना वायरस की सबसे ज़्यादा मार पड़ी है। हमें अर्थ-व्यवस्था में उन जगहों पर विशेष ध्यान देना होगा, जहाँ ध्यान देने की ज़रूरत है। इसमें बड़ी कम्पनियाँ, बैंक और एमएसएमई शामिल हैं। हमें रिकवर के लिए प्रोत्साहन के साथ रिफॉम्र्स की भी ज़रूरत है। आॢथक पैकेज में रिकवरी के लिए पर्याप्त रिसोर्सेज का आवंटन नहीं हुआ है। प्रवासी मज़दूरों को केवल अनाज, सब्ज़ी और अन्य खाद्य पदार्थों की ही नहीं, बल्कि पैसों की भी ज़रूरत है। अर्थ-व्यवस्था बचाने के लिए पहले लोगों को बचाना होगा। मज़दूरों को और ज़्यादा अनाज के साथ-साथ पैसे भी भेजने की ज़रूरत है। सरकार को विपक्षी पाॢटयों में कुछ बेहतर लोगों से भी सुझाव लेने चाहिए। क्योंकि इस तबाही से प्रधानमंत्री कार्यालय केवल अकेले नहीं लड़ सकता है। सरकार को राजनीतिक नज़रिये से आगे बढक़र इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए। क्योंकि स्थिति बेहद चिन्ताजनक है।

रघुराम राजन

पूर्व आरबीआई गवर्नर

विदेशी बनाम स्वदेशी

हमारे देश में स्वदेशी का नारा अच्छा होते हुए भी कितना खोखला है? आइए इस पर एक नज़र दौड़ाते हैं। चीन और भारत के बीच मार्च, 2019 तक करीब 90 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। इसमें चीन से आयात हुए सामान का हिस्सा 76 बिलियन (7,600 करोड़) डॉलर था। इसके अलावा और भी दिलचस्प, लेकिन देश के आॢथक घाटे के नज़रिये से निराशाजनक तथ्य भी जानिए- पिछले दो दशक के दौरान भारत में बड़े पैमाने पर उद्योग बन्द हुए हैं। भारत के यह व्यापारी अब स्वदेशी की जगह चीन की वस्तुएँ बेच रहे हैं। क्योंकि सस्ता होने के कारण चीन की वस्तुओं में उन्हें ज़्यादा मुनाफा मिलता है। आप आज की तारीख में अपने घर में इस्तेमाल होने वाले सामान को देख लीजिए, उसमें से अधिकतर पर आपको मेड इन चाइना (पीआरसी) लिखा मिलेगा। चीन से इलेक्ट्रॉनिक सामान बड़े पैमाने पर भारत के बाज़ार में पहुँचता है। इनमें स्मार्ट फोन, टीवी, डिस्प्ले बोर्ड, एसडी कार्ड, मेमोरी कार्ड, लैपटॉप, पेन ड्राइव, साउंड रिकॉर्डर्स, एलईडी बोर्ड, वायरलेस और कम्युनिकेशन उपकरण शामिल हैं। भारत के वाणिज्य मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक, साल 2017-18 के दौरान भारत ने 1.84 लाख करोड़ रुपये के इलेक्ट्रिक मशीनरी और इक्विपमेंट चीन से खरीदे। किसी समय जो मशीनरी जर्मनी, फ्रांस और यूरोपीय देशों से आती थी, वह अब चीन से आती है। इनमें न्यूक्लियर रिएक्टर्स, रेल का सामान, बॉयलर, पॉवर जेनरेशन उपकरण, मशीनरी पार्ट, वाहन और कार एसेसरीज शामिल हैं। चीन से भारत ने 2018-19 में 1.44 लाख करोड़ रुपये के करीब की इलेक्ट्रिक मशीनरी और उपकरण खरीदे। वैसे अमेरिका के व्यापार सहभागी बनने के बाद पिछले दो वर्षों से इसमें अब कमी आने लगी है। भारतीय घरों और दफ्तरों (सरकारी भी शामिल) में प्लास्टिक की बाल्टियाँ, मग, कप आदि ही चीन से नहीं आते। आपको जानकार हैरानी होगी कि भारत ने 2018-19 के दौरान चीन से 3,162 करोड़ रुपये से ज़्यादा के खिलौने खरीदे। कभी भारत की गली-गली में बनने वाला देशी साबुन या वॉशिंग पाउडर खरीदने पर ही चीन को 784 करोड़ रुपये दिये। कहने को भारत में अमेरिका से बहार सबसे ज़्यादा मेडिकल (दवा) प्लांट हैं; लेकिन दवाइयों के लिए इस्तेमाल होने वाला मटीरियल या सॢजकल उपकरण बड़ी मात्रा में चीन से आते हैं। हाल में जब अमेरिका ने भारत पर जिस हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन दवा को देने के दबाव बनाया था, उसका कच्चा सामान तक चीन से ही आता है।

कोविड-19 संकट के बीच पीपीई किट और टेस्टिंग किट तक चीन से बहुत महँगे दामों पर खरीदने पड़े, जिनमें से बड़ी संख्या में खराब निकले। इसके अलावा आर्गेनिक केमिकल्स, उनके एलिमेंट्स, खाद, खाद से जुड़े तत्त्व, फर्नीचर, खेल का सामान और उपकरण, स्टील और लोहे से बना सामान और मशीनें तक चीन से आती हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि स्वदेशी या मेड इन इंडिया के सामने कितनी बड़ी चुनौती है? हम भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात तो करते हैं, लेकिन एक उदहारण से ज़ाहिर होता है कि हम कैसे खुद स्वदेशी सामान को तबाह करते हैं। यूपी का मेरठ, पंजाब का जालंधर और जम्मू-श्रीनगर खेल सामानों के निर्माण की बड़ी सम्भावना रखते हैं। लेकिन पिछले समय में हमने इन्हें लगभग नज़रअंदाज़ करके चीन पर अपनी निर्भरता बढ़ा दी है। कश्मीर में क्रिकेट के महँगे बल्ले बनाने में इस्तेमाल होने वाली विलो लकड़ी उपलब्ध है। वहाँ और जम्मू में बैट बनते भी हैं; लेकिन इस इंडस्ट्री को कभी अच्छी तरह प्रोत्साहित नहीं किया गया। एक जानकारी के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति में भी विलो लकड़ी है। लेकिन कभी भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया।

20 लाख करोड़ से खुलेगा आत्मनिर्भरता का रास्ता?

अर्थ-व्यवस्था को खोलने के लिए ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ या ‘आत्मनिर्भर भारत’ की सोच सामयिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सकल घरेलू उत्पाद के 10 फीसदी के बराबर 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है।

लेकिन चुनौती अर्थ-व्यवस्था को दो तरफा पुनर्जीवित करने और कमज़ोर वर्गों को सहारा देने की है। साथ ही जीवन और आजीविका के बीच किसी एक को चुनने की भी बड़ी चुनौती है। प्रधानमंत्री ने एक नया नारा जोड़ा है, स्थानीय (स्वदेशी) को चुनो। यह प्रेरणादायक और उम्मीदों से भरा है।

हालाँकि बड़ा सवाल बना हुआ है। क्या यह मेगा पैकेज व्यापार और उद्योग में नयी जान फूँक सकेगा? क्या पैकेज पटरी से उतर चुकी अर्थ-व्यवस्था को सँभाल लेगा? हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं कि स्थानीय उत्पादों या आत्मनिर्भरता के लिए यह सही वक्त पर लिया गया कदम है, क्योंकि महामारी ने अर्थ-व्यवस्था के लिए समस्याओं का अंबार खड़ा कर दिया है। लेकिन यह भी एक कठोर वास्तविकता है कि ‘मेक इन इंडिया’ का नारा ज्यादा सफल होता नहीं दिखा है। इस रिपोर्ट में ‘तहलका’ यह विश्लेषण कर रहा है कि क्या यह पैकेज व्यवसायों और उद्योग के लिए पुनर्जीवन साबित होगा और अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाते हुए प्रवासी श्रमिकों और अन्य बेरोज़गारों की नौकरियों को वापस लायेगा?

रिवाइवल पैकेज

पहले रिवाइवल (बचाव) पैकेज की बात करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के विशेष आॢथक और व्यापक पैकेज की घोषणा करके एक उम्मीद जगायी। उन्होंने आत्मानिर्भर भारत अभियान या आत्मनिर्भर भारत आन्दोलन के लिए अपने पाँच स्तम्भों- ‘अर्थ-व्यवस्था’, ‘बुनियादी ढाँचे’, ‘प्रणाली’, ‘जीवंत’, ‘जनसांख्यिकी’ और ‘माँग’ को रेखांकित किया।

यह केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री निर्मला सीतारमण पर छोड़ दिया गया कि इस पैकेज से वह होने वाले संरचनात्मक सुधारों के बारे में लोगों को बताएँ। मीडिया के साथ अपनी पहली बातचीत में उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि कई क्षेत्रों को नीति सरलीकरण की ज़रूरत है, ताकि लोगों को यह समझना आसान हो सके कि कौन-सा क्षेत्र क्या दे सकता है? या कैसे भाग ले सकता है और गतिविधियों में और पारदर्शिता कैसे लायी जा सकती है? उन्होंने कहा कि एक बार जब हम सेक्टरों में कमी कर देते हैं, तो हम विकास के लिए सेक्टर को बढ़ावा दे सकते हैं।

वित्त मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री का सुधार के लिए उपाय करने का मज़बूत रिकॉर्ड है। इसके लिए उन्होंने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का हवाला दिया और कहा कि इससे लोगों को सीधे पैसा मिला। साथ ही एक देश में एक जीएसटी, एक बाज़ार, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के अलावा व्यापार करने में आसानी अन्य उदहारण हैं। उन्होंने तेज़ी से निवेश के लिए नीतिगत सुधारों और सरकार के इस सम्बन्ध में उठाये गये कदमों की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि फास्ट ट्रैक क्लीयरेंस एम्पॉवर्ड ग्रुप ऑफ सेक्रेटरीज के माध्यम से किया जाएगा। निवेश परियोजनाओं को तैयार करने और निवेशकों और केंद्र और राज्य सरकारों के साथ समन्वय करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय में एक परियोजना विकास सेल की स्थापना की जाएगी।

नीतिगत सुधार

वित्त मंत्री ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में तेज़ी से निवेश करने के लिए नीतिगत सुधारों की शृंखला की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह के माध्यम से निवेश मंज़ूरी की तेज़ी से ट्रैकिंग होगी। निवेश मंत्रालय को निवेशकों और केंद्र और राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित करने के लिए प्रत्येक मंत्रालय में प्रोजेक्ट डेवलपमेंट सेल का गठन किया जाएगा। नये निवेश की प्रतिस्पर्धा के लिए निवेश आकर्षण पर राज्यों की रैंकिंग होगी। सौर पीवी विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में नये बेहतर क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की जाएँगी।

सीतारमण ने कहा कि राज्यों में आम बुनियादी सुविधाओं और कनेक्टिविटी के औद्योगिक क्लस्टर उन्नयन के लिए चुनौती मोड के माध्यम से एक योजना लागू की जाएगी। नये निवेश को बढ़ावा देने और औद्योगिक सूचना प्रणाली (आईआईएस) पर जीआईएस मैपिंग के साथ उपलब्ध कराने के लिए औद्योगिक भूमि और भूमि बैंकों की उपलब्धता होगी। लगभग 3376 औद्योगिक पार्क, सम्पदा और सेज पाँच लाख हेक्टेयर में आईआईएस पर नक्शा में डाले गये हैं। सभी औद्योगिक पार्कों को 2020-21 के दौरान स्थान दिया जाएगा।

प्रमुख कृषि सुधार

हालाँकि, जो सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार है, वह शायद भारतीय कृषि के लिए एक प्रमुख सुधार के रूप में आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करने का केंद्र का निर्णय है। प्रोत्साहन पैकेज के तीसरे अंश के रूप में वित्त मंत्री के घोषित विपणन सुधार का उद्देश्य अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू को डी-रेगुलेट करना है। यह प्रोसेसर, मिलर्स, निर्यातकों और व्यापारियों को इन जिंसों का उतना स्टॉक रखने की अनुमति देगा, जितना वे चाहते हैं। अंतर्राज्यीय व्यापार के लिए बाधाओं को दूर करने के लिए एक नया विधेयक का प्रस्ताव है, जिसमें किसानों को अपने ज़िले में केवल लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों को अपनी फसल बेचने के लिए बाध्य नहीं करने का अधिकार होगा। किसान किसी को भी और कहीं भी उत्पाद बेच सकते हैं और व्यापारी स्वतंत्र रूप से देश के भीतर कृषि-उपज की किसी भी मात्रा में खरीद, स्टॉक और स्थानांतरित कर सकते हैं।

आठ प्रमुख क्षेत्र

संरचनात्मक सुधारों के लिए चुने गये आठ प्रमुख क्षेत्र कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, नागरिक उड्डयन, बिजली क्षेत्र, सामाजिक अवसंरचना, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा हैं। कोयला क्षेत्र वाणिज्यिक खनन का रास्ता खोलेगा। सरकार कोल सेक्टर में प्रतिस्पर्धा, पारदर्शिता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को निर्धारित रुपया / टन के शासन के बजाय राजस्व साझाकरण तंत्र के माध्यम से पेश करेगी। कोई भी पार्टी कोयला ब्लॉक के लिए बोली लगा सकती है और खुले बाज़ार में बेच सकती है। प्रवेश मानदण्डों को उदार बनाया जाएगा। लगभग 50 ब्लॉकों को तुरन्त पेश किया जाएगा। कोई पात्रता शर्तें नहीं होंगी और केवल एक छत के साथ अग्रिम भुगतान प्रदान किया जाएगा।

कोयला क्षेत्र में पूर्ण रूप से खोजे गये कोयला ब्लॉकों की नीलामी के पहले प्रावधान के खिलाफ आंशिक रूप से खोजे गये ब्लॉकों के लिए अन्वेषण-सह-उत्पादन वाली व्यवस्था होगी। यह अन्वेषण में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति देगा। पहले से निर्धारित उत्पादन को राजस्व-हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से प्रोत्साहित किया जाएगा।

कोयला क्षेत्र में विविध अवसर होंगे। राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम से कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण को प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे पर्यावरणीय प्रभाव काफी कम हो जाएगा और यह गैस आधारित अर्थ-व्यवस्था को बदलने में भारत की सहायता करेगा। करीब 50 हज़ार करोड़ का बुनियादी ढाँचा विकास कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के 2023-24 तक एक बिलियन टन (100 करोड़ टन) कोयला उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें खदानों से रेलवे के किनारों तक कोयले (कन्वेयर बेल्ट) के मशीनीकृत हस्तांतरण में 18,000 करोड़ रुपये का निवेश शामिल होगा। यह उपाय पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में भी मदद करेगा।

कोयला क्षेत्र में उदारीकृत शासन के लिए कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की कोयला खदानों से कोल बेड मीथेन (सीबीएम) निष्कर्षण अधिकारों की नीलामी की जाएगी। खनन योजना सरलीकरण जैसे व्यवसाय करने में आसानी, उपाय किये जाएँगे। यह वार्षिक उत्पादन में स्वत: 40 फीसदी वृद्धि की अनुमति देगा। सीआईएल के उपभोक्ताओं को वाणिज्यिक शर्तों में रियायतें (5,000 करोड़ रुपये की राहत), गैर-बिजली उपभोक्ताओं के लिए नीलामी में आरक्षित मूल्य में कमी, ऋण की शर्तों में ढील दी गयी है।

इसमें खनिज क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने पर ज़ोर होगा। विकास को बढ़ावा देने, रोज़गार देने और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी लाने के लिए विशेष रूप से एक सहज समग्र अन्वेषण-सह-खनन-सह-उत्पादन शासन की शुरुआत के माध्यम से संरचनात्मक सुधार होंगे। लगभग 500 खनन ब्लॉकों को एक खुली और पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से पेश किया जाएगा। एल्युमीनियम उद्योग की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए बॉक्साइट और कोयला खनिज ब्लॉकों की संयुक्त नीलामी से एल्युमीनियम उद्योग को बिजली की लागत कम करने में मदद मिलेगी।

खनन पट्टों के हस्तांतरण और अधिशेष अप्रयुक्त खनिजों की बिक्री की अनुमति देने के लिए बंदी और गैर-बंदी खानों के बीच का अन्तर, जिससे खनन और उत्पादन में बेहतर दक्षता हो सके; के लिए खान मंत्रालय विभिन्न खनिजों के लिए एक खनिज सूचकांक विकसित करने की प्रक्रिया में है। खनन पट्टों देते समय देय स्टाम्प ड्यूटी का युक्तिकरण होगा।

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसमें साल की समय-सीमा के साथ आयात पर प्रतिबन्ध लगाने, आयातित पुर्जों के स्वदेशीकरण और घरेलू पूँजी खरीद के लिए अलग से बजट प्रावधान के लिए हथियारों और प्लेटफार्मों की एक सूची को अधिसूचित किया जाएगा। इससे विशाल रक्षा आयात बिल को कम करने में मदद मिलेगी। आयुध निर्माणी बोर्ड के कॉरपोरेटीकरण द्वारा आयुध आपूर्ति में स्वायत्तता, जवाबदेही और दक्षता में सुधार के लिए कदम उठाये जाएँगे।

रक्षा उत्पादन में नीतिगत सुधार 49 फीसदी से 74 फीसदी तक के स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई सीमा को बढ़ाने के लिए होगा। समय-समय पर रक्षा खरीद प्रक्रिया होगी और अनुबन्ध प्रबन्धन का समर्थन करने के लिए एक परियोजना प्रबन्धन इकाई (पीएमयू) की स्थापना करके तेज़ी से निर्णय लेने की शुरुआत की जाएगी। हथियारों और प्लेटफार्मों के जनरल स्टाफ गुणात्मक आवश्यकताओं (जीएसक्यूआर) की यथार्थवादी सेटिंग और परीक्षण और परीक्षण प्रक्रियाओं की ओवरहॉलिंग होगी।

नागरिक उड्डयन के लिए कुशल हवाई क्षेत्र प्रबन्धन लाने के लिए नागरिक उड्डयन क्षेत्र में भारतीय वायु अंतरिक्ष के उपयोग पर प्रतिबन्धों को आसान बनाया जाएगा, ताकि नागरिक उड़ान अधिक कुशल हो जाए। इससे विमानन क्षेत्र के लिए प्रति वर्ष कुल 1,000 करोड़ रुपये का लाभ होगा। इससे हवाई क्षेत्र का इष्टतम (सही) उपयोग होगा और ईंधन के उपयोग, समय में कमी और सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव होगा।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से अधिक विश्व स्तरीय हवाई अड्डे तैयार होंगे। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) आधार पर ऑपरेशन और रखरखाव के लिए दूसरे दौर की बोली के लिए छ: और हवाई अड्डों की पहचान की गयी है। पहले और दूसरे चरण में 12 हवाई अड्डों में निजी कम्पनियों से 13 हज़ार करड़ रुपये अतिरिक्त निवेश की उम्मीद है। तीसरे दौर की बोली के लिए छ: हवाई अड्डों को रखा जाएगा। भारत विमान रखरखाव, मरम्मत और ओवरहॉल (एमआरओ) के लिए एक वैश्विक केंद्र बनने का प्रयास करेगा। एमआरओ पारिस्थितिकी तंत्र के लिए कर व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाया गया है। विमान घटक की मरम्मत और एयरफ्रेम रखरखाव तीन वर्षों में 800 करोड़ रुपये से बढक़र 2,000 करोड़ रुपये हो जाएगा। उम्मीद है कि आने वाले वर्ष में दुनिया के प्रमुख इंजन निर्माता भारत में इंजन मरम्मत की सुविधा स्थापित करेंगे। बड़ी तादाद में अर्थ-व्यवस्थाओं को बनाने के लिए रक्षा क्षेत्र और सिविल एमआरओ के बीच रूपांतरण स्थापित किया जाएगा। इससे एयरलाइंस की रखरखाव लागत में कमी आयेगी।

बिजली क्षेत्र में शुल्क नीति सुधार की राह पर है। इनमें उपभोक्ता अधिकार शामिल हैं। डिस्कॉम की अक्षमताओं को उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं बनने दिया जाएगा और डिस्कॉम के लिए भी सेवा और सम्बद्ध दण्ड के मानक होंगे। साथ ही डिस्कॉम पर्याप्त बिजली सुनिश्चित करेगा और बिजली कटौती पर दण्डित करने का प्रावधान होगा। क्रॉस सब्सिडी और ओपन एक्सेस के समयबद्ध अनुदान में तेज़ी से कमी आएगी। पीढ़ी और पारेषण परियोजना डेवलपर्स को भविष्य में प्रतिस्पर्धात्मक रूप से चुना जाना है। बिजली क्षेत्र में स्थिरता हासिल करने के लिए कोई नियामक सम्पत्ति नहीं होगी, सब्सिडी के लिए गेनकॉस और डीबीटी का समय पर भुगतान होगा।

केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली विभागों और उपयोगिताओं का निजीकरण किया जाएगा। इससे उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिलेगी और वितरण में परिचालन और वित्तीय दक्षता में सुधार होगा। यह देश भर में अन्य उपयोगिताओं द्वारा अनुकरण के लिए एक मॉडल भी प्रदान करेगा।

सामाजिक बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिए, सरकार केंद्र और राज्य और सांविधिक निकायों द्वारा वीजीएफ के रूप में कुल परियोजना लागत के 30 फीसदी तक की व्यवहार्यता गैप फंडिंग (वीजीएफ) की मात्रा में वृद्धि करेगी। अन्य क्षेत्रों के लिए भारत और राज्यों और वैधानिक निकायों से वीजीएफ को 20 फीसदी का मौज़ूदा समर्थन जारी रहेगा। कुल परिव्यय 8,100 करोड़ रुपये होगा।

परियोजनाओं को केंद्रीय मंत्रालयों/ राज्य सरकार/सांविधिक संस्थाओं द्वारा प्रस्तावित किया जाएगा। अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए उपग्रहों, प्रक्षेपणों और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में निजी कम्पनियों को प्रदान किया जाने वाला स्तरीय प्लेटफॉर्म होगा। निजी पार्टियों को भविष्यनिष्ठ नीति और नियामक वातावरण प्रदान किया जाएगा। निजी क्षेत्र को अपनी क्षमता में सुधार करने के लिए इसरो की सुविधाओं और अन्य प्रासंगिक सम्पत्तियों का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। ग्रहों की खोज, बाहरी अंतरिक्ष यात्रा आदि के लिए भविष्य की परियोजनाएँ भी निजी क्षेत्र के लिए खुली रहेंगी। तकनीक-उद्यमियों को दूरस्थ-संवेदी डाटा प्रदान करने के लिए उदार भू-स्थानिक डाटा नीति होगी।

परमाणु ऊर्जा सम्बन्धित सुधारों के तहत कैंसर और अन्य बीमारियों के लिए किफायती उपचार के माध्यम से मानवता के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए मेडिकल आइसोटोप के उत्पादन के लिए पीपीपी मोड में अनुसंधान रिएक्टर की स्थापना की जाएगी। खाद्य संरक्षण के लिए विकिरण प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिए पीपीपी मोड में सुविधाएँ, जैसे- कृषि सुधारों की सहायता के लिए और किसानों की सहायता के लिए भी स्थापित किया जाएगा। भारत के मज़बूत स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को परमाणु क्षेत्र से जोड़ा जाएगा और इसके लिए अनुसंधान सुविधाओं और तकनीक-उद्यमियों के बीच तालमेल को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी विकास-सह-ऊष्मायन केंद्र स्थापित किये जाएँगे।

20 लाख करोड़ रुपये नहीं, 20.97 लाख करोड़ रुपये का पैकेज

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषित प्रोत्साहन पैकेज के बाद किश्तों में 20,97,053 करोड़ रुपये शामिल हैं, जिसमें हाल ही में प्रधानमंत्री के घोषित उपायों से 1.92 लाख करोड़ रुपये की प्रोत्साहन राशि भी शामिल है। जैसे कि 1.7 लाख करोड़ रुपये की प्रधान मातृ गरीब कल्याण योजना। एक बड़ा हिस्सा, वास्तव में आॢथक पैकेज का सबसे बड़ा 8.01 लाख करोड़ रुपये इस साल फरवरी, मार्च और अप्रैल में भारतीय रिज़र्व बैंक की तरफ से लिक्विडिटी को प्रोत्साहन के विभिन्न उपायों से सम्बन्धित था।

पहली किश्त- 5,94,550 करोड़ रू.

वित्त मंत्री के घोषित राहत उपायों का पहला सेट भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ को मज़बूत करने पर केंद्रित है, जो एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है और जीडीपी का लगभग 29 फीसदी है। नकदी को बढ़ावा देने के लिए निधि के माध्यम से एमएसएमई के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के जमानत-मुक्त ऋण और 50,000 करोड़ रुपये के इक्विटी जलसेक की घोषणा की गयी है। एनबीएफसी, एचएफसी आदि के लिए 30 हज़ार करोड़ रुपये की लिक्विडिटी राहत उपायों की घोषणा की गयी और बिजली वितरण कम्पनियों के लिए 90 हज़ार करोड़ रुपये की घोषणा की गयी।

दूसरी किश्त- 3,10,000 करोड़ रू.

यह किश्त समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग, प्रवासी श्रमिकों से सम्बन्धित उपायों को लेकर है। प्रवासी श्रमिकों को देश के किसी भी डिपो से राशन खरीदने की अनुमति देने के लिए एक ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ की योजना बनायी गयी है। जबकि लगभग 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को मदद देने के लिए 5,000 करोड़ रुपये की क्रेडिट सुविधा की घोषणा की गयी है; जिनकी शुरुआती कार्यशील पूँजी 10,000 रुपये तक होगी।

किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से किसानों को लगभग दो लाख करोड़ रुपये दिये जाएँगे, जबकि मछुआरों और पशुपालन किसानों सहित 2.5 करोड़ किसान रियायती दर पर संस्थागत ऋण प्राप्त कर सकेंगे। सरकार ने राज्यों को आपदा प्रतिक्रिया कोष से प्रवासी श्रमिकों को भोजन और आश्रय की सुविधा देने की अनुमति दी गयी है, जिसके तहत केंद्र को 11,000 करोड़ रुपये की लागत आयेगी।

तीसरी किश्त- 1,50,000 करोड़ रु.

इसमें सरकार ने समग्र कृषि क्षेत्र को मज़बूत करने के लिए कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों डेयरी, पशुपालन और मत्स्य पालन के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये के उपायों की घोषणा की। वित्त मंत्री ने कोल्ड चेन और फसल बाद प्रबन्धन के बुनियादी ढाँचे की स्थापना के लिए इसका उपयोग करने सहित फार्म-गेट बुनियादी ढाँचे के लिए एक लाख करोड़ रुपये के कृषि अवसंरचना कोष की घोषणा की। वित्त मंत्री की अन्य प्रमुख घोषणाओं में 20,000 रुपये प्रधानमंत्री आवास योजना के माध्यम से मछुआरों को प्रदान किये जाने और सूक्ष्म खाद्य उद्यमों को औपचारिक रूप देने के लिए 10,000 करोड़ रुपये शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यह एक क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण होगा, जिसके साथ स्थानीय मूल्य वर्धित उत्पाद वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच सकते हैं। हर्बल खेती के लिए 4,000 करोड़ रुपये, पशुपालन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के लिए 15,000 करोड़ रुपये, मधुमक्खी पालन से सम्बन्धित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए 500 करोड़ रुपये मंत्री के घोषित अन्य उपाय थे।

चौथी/पाँचवीं किश्त- 48,100 करोड़ रू.

20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की चौथी िकस्त में कोयला, खनिज, रक्षा उत्पादन, वायु अंतरिक्ष प्रबन्धन, हवाई अड्डे, एमआरओ, संघ राज्य क्षेत्र की वितरण कम्पनियों, अंतरिक्ष क्षेत्र और परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों आदि के सुधार शामिल हैं। भारत के भीतरी इलाकों में रोज़गार सृजन के लिए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के लिए अतिरिक्त 40,000 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। सरकार ने पहले इस वित्तीय वर्ष के लिए बजट में 61,000 करोड़ रुपये आवंटित किये थे।

आॢथक पैकेज पर सवाल

पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने पाँच चरणों में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक के मेगा पैकेज पर सवाल उठाया है। चिदंबरम ने कहा कि हम इस बात पर गहरा खेद व्यक्त करते हैं कि राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज में कई वर्गों को बेसहारा छोड़ दिया गया है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि हम इस पैकेज पर निराशा व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार से प्रोत्साहन पैकेज पर पुनर्विचार का अनुरोध करते हैं। आॢथक संकट की गम्भीरता को देखते हुए यह पूरी तरह से अपर्याप्त है। सरकार जीडीपी के 10 फीसदी के बराबर वास्तविक अतिरिक्त व्यय के 10 लाख रुपये से कम नहीं के व्यापक राजकोषीय प्रोत्साहन की घोषणा करे। सुधारों को आगे बढ़ाते हुए सरकार अवसरवादी हो रही है, वह संसद में चर्चा को दरकिनार कर रही है और इसका विरोध किया जाएगा। वहीं सरकार को सुझाव देते हुए चिदंबरम ने कहा कि केंद्र सरकार अधिक उधार ले और अर्थ-व्यवस्था को एक प्रोत्साहन देने के लिए और अधिक खर्च करे।

उन्होंने कहा कि हमने वित्त मंत्री की ओर से घोषित पैकेज का पूरे ध्यान से विश्लेषण किया। हमने अर्थशास्त्रियों से बात की। हमारा यह मानना है कि इसमें सिर्फ 1,86,650 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज है। चिदंबरम के मुताबिक, आॢथक पैकेज की कई घोषणाएँ बजट का हिस्सा हैं और कई घोषणाएँ कर्ज़ देने की व्यवस्था का हिस्सा हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार के आॢथक पैकेज से 13 करोड़ कमज़ोर परिवार, किसान, मज़दूर और बेरोज़गार हो चुके लोग असहाय छूट गये हैं। पूर्व वित्त मंत्री ने सरकार से आग्रह किया कि वह आॢथक पैकेज पर पुनर्विचार करें और समग्र वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा करें, जो जीडीपी का 10 फीसदी हो। यह 10 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज होना चाहिए। कांग्रेस नेता ने कि यह जुमला पैकेज है। इस सरकार को गरीबों की कोई चिन्ता नहीं है। लोगों की दर्द की अनदेखी की गयी है। कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार की तरफ से घोषित पैकेज सिर्फ 3.22 लाख करोड़ रुपये का है। यह जीडीपी का महज़ 1.6 फीसदी है; जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि सच्चाई लम्बे समय तक छिपी नहीं रह सकती है और 1,86,650 करोड़ रुपये की राजकोषीय प्रोत्साहन जीडीपी का मुश्किल से 0.91 फीसदी पूरी तरह से अपर्याप्त होगा। यह आॢथक संकट और गम्भीर स्थिति को देखते हुए पूरी तरह से अपर्याप्त है। अधिकांश विश्लेषकों, रेटिंग एजेंसियों और बैंकों ने राजकोषीय प्रोत्साहन का आकार 0.8 से 1.5 फीसदी के बीच ही रखा है।

स्कॉटलैंड सरकार ने अखबारों को दिया पैकेज

क्या भारत ऐसा करेगा?

स्कॉटलैंड सरकार ने पूरे स्कॉटलैंड के अखबारों को 30 लाख पाउंड के विज्ञापन के रूप में प्रोत्साहन पैकेज दिया है। यह विज्ञापन वेस्टमिंस्टर सरकार के पूरे इंग्लैंड के अखबारों में चलाये जा रहे ऑल इन, ऑल टुगैदर विज्ञापन अभियान के अलावा होंगे।

स्कॉटलैंड सरकार ने ट्विटर पर इस कदम की घोषणा करते हुए कहा कि स्कॉटलैंड में समाचार पत्र उद्योग के लिए निवेश एक मूल्यवान आॢथक प्रोत्साहन प्रदान करेगा। ब्रिटेन सरकार ने कहा कि वह स्कॉटलैंड, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड में विज्ञापन योजना को जारी रखेगी। होलीरूड की मंत्रिमंडलीय वित्त सचिव केट एलिजाबेथ फोब्र्स ने कहा कि स्कॉटलैंड का समाचार पत्र उद्योग कोविड-19 के फैलने और इसके प्रभाव पर जनता को सूचित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

स्कॉटिश समाचार पत्र सोसायटी के निदेशक जॉन मैकलीनन ने इस घोषणा का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अखबार कोविड-19 संकट के पूर्ण प्रभावों को महसूस करने में किसी भी अन्य व्यवसाय से अलग नहीं हैं। लेकिन यह निवेश यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि हमारे प्रकाशन बहुत बेहतर हैं और संकट से बचने के लिए बेहतर उपाए के रूप में हैं।

भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में राष्ट्र को अपने सम्बोधन में उल्लेख किया था कि मीडिया की गतिविधि आवश्यक है। इस महामारी में अखबारों से जुड़े लोग तमाम खतरे और नुकसान झेलते हुए अपना काम कर रहे हैं। इसमें समाचार पत्र के सम्पादकीय और अन्य विभागों के कर्मचारी, जिनमें उत्पादन, प्रिंटिंग प्रेस और वितरण विक्रेता खुद को बड़े व्यक्तिगत जोखिम में डालते हुए अग्रिम पंक्ति में डटे हैं, ताकि पाठकों को जीवन-रक्षण और अपने घरों में सुरक्षा से जुड़ी दिन-प्रतिदिन की  आवश्यक जानकारी मिल सके। इसने अखबार उद्योग के लिए प्रोत्साहन पैकेज की  उम्मीद जगायी है।  इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी (आईएनएस) ने सरकार से एक मज़बूत प्रोत्साहन पैकेज जारी करने के साथ-साथ अन्य राहत उपायों के साथ घाटे में चल रहे अखबार उद्योग की मदद करने का आग्रह किया है।

समाचार पत्र उद्योग को पहले ही 4,000 करोड़ रुपये का नुकसान झेल चुका है। आईएनएस ने सरकार को सौंपे एक माँग-पत्र में कहा है कि पिछले दो महीनों में 4,500 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। निजी क्षेत्र से कोई भी विज्ञापन न मिलने और अन्य आॢथक गतिविधि के अभाव में मीडिया इंडस्ट्री को अगले छ:-सात महीनों में 12,000 से 15,000 करोड़ रुपये के सम्भावित भारी-भरकम नुकसान की आशंका है। इस तरह के ज़बरदस्त नुकसान के बीच उद्योग वेतन देने और अपने विक्रेताओं को पैसा देने के लिए संघर्ष कर रहा है। करीब 30 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अखबार उद्योग पर निर्भर हैं।

मीडिया उद्योग के पतन को रोकने के लिए, आईएनएस ने सरकार के सामने कुछ सिफारिशें रखी हैं-

सरकार को लिखे एक पत्र में आईएनएस ने कहा कि हमने अपने विभिन्न संवादों में अखबारी कागज़ (न्यूज प्रिंट) पर पाँच फीसदी सीमा शुल्क वापस लेने का अनुरोध किया है। प्रकाशक के लिए न्यूज प्रिंट की लागत का कुल खर्चा 40 से 60 फीसदी है। अखबारी कागज़ पर पाँच फीसदी सीमा शुल्क हटाने का घरेलू निर्माताओं या किसी मेक इन इंडिया के प्रयासों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

समाचार पत्र फर्मों के लिए दो साल की कर छुट्टी, विज्ञापन दर में ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी) की तरफ से 50 फीसदी की बढ़ोतरी और प्रिंट मीडिया के लिए बजट खर्च में 100 फीसदी की वृद्धि आईएनएस की अन्य माँगें हैं।

करीब 800 से अधिक अखबारों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले आईएनएस के अध्यक्ष शैलेश गुप्ता ने कहा कि इन गम्भीर नुकसानों और नकदी प्रवाह के रुक जाने के कारण अखबार के प्रतिष्ठानों को कर्मचारियों के वेतन और पत्र विक्रेता के भुगतान में बहुत मुश्किल झेलनी पड़ रही है। आईएनएस के अनुमान के अनुसार, 9-10 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष रूप से इस इंडस्ट्री में कार्यरत हैं; जबकि अन्य 18-20 लाख लोग अप्रत्यक्ष रूप से पूरे भारत में समाचार पत्र उद्योग में कार्यरत हैं।

सरकार से अन्य उद्योगों को दी जा रही राहत का विस्तार समाचार पत्रों तक करने का आग्रह करते हुए आईएनएस ने सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी, पहले डीएवीपी) की विज्ञापन दरों में 50 फीसदी की वृद्धि की माँग की है। साथ ही प्रिंट मीडिया के लिए बजट खर्च में 200 फीसदी वृद्धि की माँग की है। मुश्किल यह है कि लोकतंत्र के इस चौथे  स्तम्भ पर संकट के बादल छाये हुए हैं और सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखबारों के अस्तित्व के दाँव पर लग जाने से पहले प्रोत्साहन की घोषणा करेंगे?