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गैंगस्टर विकास दुबे का साथी अमर मुठभेड़ में ढेर

देश भर को हिलाकर रख देने वाले उत्तर प्रदेश के बिकरू गांव में ८ पुलिस कर्मियों की हत्या के मामले में अब पुलिस तेजी दिखा रही है। देश के लोगों में इस घटना से उपजे गुस्से को देखते हुए पुलिस ने अब इस घटना के मुख्य आरोपी और इनामी अपराधी विकास दुबे को हर हाल में पकड़ने की ठान ली है। बुधवार को उसका रिश्तेदार और दायना हाथ अमर दुबे एक मुठभेड़ में मारा गया। मुठभेड़ में हुई फायरिंग में एक एसआई और एसटीएफ का सिपाही भी घायल हो गए।

विकास के ज्यादातर नजदीकी मारे या पकड़े गए हैं, और संभावना जताई जा रही है कि विकास भी अब जल्दी ही पकड़ा जाएगा या किसी मुठभेड़ में मारा जाएगा। पुलिसवालों की हत्या के छठे दिन पुलिस ने विकास दुबे के करीबी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार दिया। यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने हमीरपुर में अमर को मार गिराया। फायरिंग में एसआई मनोज शुक्ला और एसटीएफ का एक सिपाही घायल हो गया।

अमर बिकरू के शूटआउट में भी शामिल था और विकास का दायना हाथ कहा जाता था। पुलिस ने अमर पर २५ हजार का इनाम रखा था। दूसरी ओर विकास के साले ज्ञानेंद्र प्रकाश को मध्य प्रदेश के शहडोल से हिरासत में लिया गया है।

बताया जा रहा कि मंगलवार को विकास फरीदाबाद के एक होटल में देखा गया था,  लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही फरार हो गया। वह फरीदाबाद के सेक्टर-८७ में कथित तौर पर रिश्तेदार के घर रुका था। उसके साथी अंकुर और प्रभात होटल में रुके हुए थे। उनसे मिलने ही विकास होटल गया था। इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी, लेकिन पुलिस के पहुंचने से पहले ही विकास फरार हो गया।

अब अंकुर और प्रभात को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है जिनके पास से दो पिस्टल मिली हैं। दिलचस्प यह है कि ये यूपी पुलिस की हैं। बिकरू शूटआउट में बदमाशों ने ८ पुलिसवालों की हत्या कर कर उनके हथियार भी लूट लिए थे।

आखिर फिनलैंड की वायुसेना ने प्रतीक चिह्न से क्यों हटाया स्वास्तिक

फिनलैंड की वायुसेना ने स्वास्तिक को अपने प्रतीक चिह्न से हटा दिया है। दो पंखों के साथ स्वास्तिक का निशान वहां की वायुसेना कमांड का प्रतीक था। इसे हिटलर की नाजी सेना और उसकी क्रूरता के साथ जोड़कर देखा जाता था। वायुसेना ने बिना किसी घोषणा के इस चिह्न का इस्तेमाल बंद कर दिया है।
इस बदलाव पर सबसे पहले हेलसिंकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तेइवो तैवैने ने गौर किया। फिनलैंड की आजादी के बाद 1918 में फिनिश वायुसेना का गठन हुआ था, तभी से वो स्वास्तिक का इस्तेमाल कर रहे थे। ये हिटलर की नाजी सेना से बहुत पहले का दौर था। 1945 तक सफेद बैंकग्राउंड पर नीले स्वास्तिक का चिन्ह उनके हवाई जहाजों पर बनाया जाता था।
फिनलैंड ने उस वक्त नाजी जर्मनी का साथ दिया था, लेकिन इस प्रतीक का उद्देश्य नाजी के प्रति समर्थन दिखाना नहीं था।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद स्वास्तिक को हवाई जहाजों से हटा दिया गया लेकिन वायुसेना के कुछ यूनिट ने प्रतीक चिन्हों के तौर पर, झंडों या सजावट के लिए और वर्दियों पर इसका इस्तेमाल जारी रखा था।
जनवरी 2017 से ही वायुसेना कमांड का प्रतीक चिह्न वायुसेना के सर्विस प्रतीक चिह्न से मिलता जुलता है–एक सुनहरे चील के साथ पंखों का एक चक्र।
स्वास्तिक के बारे में जानें
स्वास्तिक शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ भलाई या अच्छा भाग्य होता है। हजारों वर्षों से भारत समेत दुनिया की कई सभ्यताएं स्वास्तिक का इस्तेमाल करती आ रही हैं। 20वीं सदी में स्वास्तिक पश्चिमी फैशन का भी हिस्सा बन गया था। 1920 में अडोल्फ हिटलर ने स्वास्तिक को अपनी नेशनल सोशलिस्ट पार्टी का प्रतीक चिह्न बनाया। हिटकर की क्रूरता और नरसंहार के कारण स्वास्तिक को पश्चिमी देशों में नाजीवाद और यहूदी विरोधी माना जाने लगा।

देश में कोविड-१९ मामले ७ लाख के पार

भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संंख्या सात लाख के पार चली गयी है। पिछले २४ घंटे में देश में २२,२५२ नए मामले सामने आये हैं जबकि ४६७ लोगों की जान चली गयी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में कोविड-१९ के मामले ७,१९,६६५ तक पहुँच गए हैं। इस संक्रमण के कारण अब तक २०,१६० लोगों की मौत हो चुकी है। पिछले २४ घंटे में ४६७ से अधिक लोगों की मौत हुई है, जबकि २२,२५२ से अधिक नए कोरोना केस रिपोर्ट किए गए हैं।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश में मरीजों के ठीक होने की मौजूदा दर ६०.८६ है जिसे काफी अच्छा माना जा सकता है। देश में कोरोना से मृत्यु र २.८२ प्रतिशत है। नए आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित पांच राज्य – महाराष्ट्र, दिल्ली, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तर प्रदेश हैं।
महाराष्ट्र २११९८७ मामलों के साथ सबसे ऊपर है। उसके बाद तमिलनाडु आता है जहाँ ११४९८७ जबकि दिल्ली १००८२३, गुजरात ३६७७२ और उत्तर प्रदेश २८६३६ हैं। हालांकि, बिहार में सबसे काम टेस्टिंग की बात भी सामने आ रहे है जिससे वहां संक्रमित मामलों की सही संख्या ज्यादा हो सकती है।
संक्रमण से सबसे ज्यादा मौतें ९०२६ महाराष्ट्र में हुई हैं जबकि दिल्ली में ३११५  गुजरात १९६०, तमिलनाडु १५७१ और उत्तर प्रदेश ८०९ हैं। दिल्ली में सरकार तेजी से टेस्ट करा रही है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच संभव हो रही है।

चरम पर तनाव

यह साल 2017 की बात है। चीन चाहता था कि भारत उसके ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट का हिस्सा बन जाये। भारत ने इन्कार कर दिया। इसके कुछ ही महीने के भीतर डाकोला के डोकलाम में भूटान रॉयल आर्मी ने चीन के सडक़ निर्माण का विरोध किया और भारत ने सुरक्षा समीकरणों की चिन्ता के मद्देनज़र भूटान का साथ दिया; जिससे पैदा हुआ तनाव 73 दिन तक चला और फिर समझौता हो गया। अब तीन साल बाद शीत मरुस्थल गलवान घाटी की नदी पर सडक़ और पुल निर्माण को लेकर चीन और भारत में खूनी संघर्ष हो गया। इस संघर्ष में भारत के 20 जवान शहीद हो गये। भारत और चीन के बीच ‘मोहब्बत के झूले’ के ऊपर अचानक जंगी जहाज़ों की गूँज सुनायी देने लगी है। दक्षिण एशिया की दो बड़ी ताकतों के बीच 3,488 किलोमीटर की साझा-सीमा के एक हिस्से में बना तनाव अचानक नहीं हुआ है। अप्रैल के मध्य से ही वहाँ चीन की गतिविधियाँ संदेहास्पद दिखने लगी थीं। उत्तरी कमान और सेंट्रल कमान के जीओसी-इन-सी रहे ले. जनरल एचएस पनाग कहते हैं- ‘चीन पहले से अपनी सेना (पीएलए) की नियमित तैनाती कर रहा था। यही नहीं, वह ऊँचे स्थानों पर कब्ज़ा, रिजर्व तैनाती और सैन्य व्यूह रचना भी कर रहा था। हम साफ संकेतों को समझने में विफल रहे।’

इससे कुछ ही समय पहले एक प्रभावशाली अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा कि कोरोना वायरस की महामारी के बीच चीन का तत्काल लक्ष्य दक्षिण एशिया में भारत की चुनौती को सीमित करना है। हडसन इंस्टीट्यूट की ‘कोरोना-काल में अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता का वैश्विक सर्वेक्षण’ शीर्षक की रिपोर्ट में कहा गया कि चीन अमेरिका से भारत के प्रगाढ़ होते रिश्तों से चिन्तित है और अपने प्रभुत्व को चुनौती पैदा होते देख दक्षिण एशिया में भारत के सैन्य और आॢथक विस्तार को रोकना चाहता है।

इस खूनी झड़प के बाद कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों और अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि चीन भारत के इलाके में घुसा है। वह लद्दाख की गलवान घाटी में फिंगर आठ से चार तक आ गया है। हालाँकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून को एक सर्वदलीय बैठक बुलायी और कहा कि न तो भारत की सीमा में कोई घुसा है, न भारत की कोई पोस्ट ही किसी ने अपने कब्ज़े में की है। हालाँकि, हाल ही में सेटेलाइट से भेजी गयी तस्वीरों में गलवान घाटी में चीन के तम्बू और सैनिकों के दिखने का दावा किया गया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि हमारे सैनिक दुश्मन को मारते-मारते मरे। विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी पहले से ही चीन को लेकर सरकार को सचेत करने जैसे बयान दे रहे थे और अब लगातार पूर्व सैन्य अधिकारियों के चीन के भारत की सीमा में घुसने के आरोपों पर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। राहुल ने कहा कि हम शहीद हुए सैनिकों के परिवारों के साथ खड़े हैं। हम संकट की इस घड़ी में सरकार के साथ खड़े हैं; लेकिन उसे देश को सच बताना चाहिए। क्या चीन भारत की सीमा में घुसा और उसने हमारे जवानों की हत्या की?

यह एक गम्भीर सवाल है कि क्या चीन भारत की सीमा में घुसा है? चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगातार गतिविधियाँ कर रहा है और यह कोई रहस्य नहीं रहा है। चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लगातार ऐसी रिपोट्र्स और वीडियो जारी किये हैं, जिसमें चीनी सेना को अभ्यास करते हुए आक्रमक अंदाज़ में दिखाया गया है। हो सकता है कि चीन की यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा हो; लेकिन चीन ऐसा देश है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। ले. जनरल एच.एस. पनाग ऐसे पहले पूर्व सेनाधिकारी थे, जिन्होंने इस तरफ भारत सरकार का ध्यान खींचा कि चीन भारतीय सीमा में घुसा है। पनाग साफ कहते हैं कि अप्रैल के आिखर से ही चीन की पीएलए ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के आसपास कई जगह घुसपैठ शुरू कर दी थी और उसकी टकराव की रणनीति साफ दृष्टिगोचर हो रही थी। चीन भारत पर सीमा-टकराव बढ़ाकर अपनी दादागिरी दिखाना चाहता था। उसका मकसद भारत के बुनियादी ढाँचे में सुधार की योजना को अपनी शर्तों के मुताबिक यथास्थिति बनाये रखने पर है। भारत के इन सुधारों को चीन अक्साई चीन के लिए खतरा मानता है। लेकिन सरकार (भारत सरकार) ने खतरे को नहीं पहचाना। हवा-हवाई कदम उठाये और ध्यान घरेलू राजनीति पर रखा। लद्दाख संकट को फौजी कार्रवाई की तरह नहीं लिया। इस रुख क नतीजा यह हुआ कि हमारे एक सैन्य कमांडिंग अफसर को उनकी फौज के सामने डंडे से पीटकर मार डालने जैसी भयानक घटना हुई। सैनिक तंत्र भी मोदी सरकार को यह सलाह देने में विफल रहा कि भारत को पेशेवर सैन्य प्रत्युत्तर देना चाहिए था।

सीमा पर चीन से इस तनाव के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या चीन के साथ यह टकराव एक सीमित या पूरे युद्ध में बदल सकता है? इसे लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.पी. मालिक कहते हैं कि इसकी सम्भावना नहीं दिखती। उनके मुताबिक, सम्भवत: न तो बड़े युद्ध, न ही सीमा पर किसी बड़े टकराव की सम्भावना मुझे दिखती है। यह स्थानीय स्तर का रहेगा, लेकिन इसके यह मायने नहीं कि हम सैन्य या राजनीतिक स्तर पर आत्मसंतुष्ट होकर बैठ जाएँ।

हालाँकि रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा इस मसले पर कहते हैं कि चीन ने इस बार तमाम प्रोटोकॉल तोड़े हैं। जो हिंसा हुई है, उसे मैं बहुत गम्भीर स्तर का मानता हूँ। यह डोकलाम की तरह स्थानीय घटना नहीं है और इसे सुनियोजित तरीके से किया गया है। डोकलाम का विवाद ट्राई जंक्शन (तिराहा) विवाद था और वहाँ सब चीज़ें सामने थीं। लेकिन इस बार वे (चीनी सैनिक) योजना बनाकर आये। सच कहें तो उन्होंने हमें चौंका दिया। अब दोनों देशों के बीच सैन्य अधिकारियों के स्तर पर बातचीत के कुछ दौर हुए हैं। विदेश मंत्री स्तर पर भी बयान आये हैं। लेकिन कूटनीति के स्तर पर कुछ होता नहीं दिखा है; जो कि आमतौर पर तनाव के बाद होता है। हाँ, दोनों देशों के बीच 24 जून को विदेश सचिव स्तर की एक बैठक ज़रूर हुई। भारत और चीन इसके बाद लगातार संवाद की बात कर रहे हैं। भारत बार-बार कह चुका है कि तनाव टालने के लिए सैन्य अधिकारियों की बातचीत हो रही है। लेकिन इसके विपरीत देखें, तो चीन की भाषा लगातार धमकाने वाली रही है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि आज की तारीख में युद्ध न तो भारत और न ही चीन के लिए कोई समझदारी वाला विकल्प होगा। लेकिन बहुत-से जानकार मानते हैं कि इस टकराव में मनोविज्ञानिक बढ़त बहुत मायने रखती है।

हालाँकि यह रिपोर्ट लिखे जाने तक दोनों देशों के बीच संवाद की कोई गम्भीर कोशिश नहीं दिखी है। सैन्य अधिकारियों के बीच ज़रूर बातचीत के कई दौर हुए हैं। चीन से विवाद के मामले में कूटनीतिक स्तर पर भारत ने न तो दूसरे देशों को साथ जोडऩे की कोई कोशिश की है, न ही सीधे चीन और भारत के बीच बातचीत का कोई संकेत अभी तक उभरा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ज़रूर रूस का दौरा किया; जिसके भारत से अच्छे सम्बन्ध हैं। भारत की कोशिश रूस से एस-400 ट्रायम्फ एंटी मिसाइल सिस्टम जल्दी लेने की है।

गलवान की स्थिति और विवाद

गलवान डोकलाम के मुकाबले दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है और विवादित क्षेत्र अक्साई चिन में पड़ता है। जून के मध्य में जब वहाँ भारत और चीनी सेना में खूनी संघर्ष हुआ तब भी वहाँ तापमान शून्य डिग्री से नीचे था। इससे इस इलाके की कठिन स्थिति को समझा जा सकता है। यह घाटी लद्दाख और अक्साई चिन के बीच भारत-चीन सीमा के नज़दीक है और वहाँ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। अक्साई चिन पर भारत और चीन दोनों का दावा है। गलवान दक्षिणी चीन के शिनजियांग और भारत के लद्दाख तक फैली घाटी है; जो भारत के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसका कारण यह है कि यह क्षेत्र पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ लगा हुआ है।

भारत का कहना है कि वह (भारत) गलवान घाटी में अपने इलाके में सडक़ बना रहा है। चीन इसे रोकना चाहता है। जून के संघर्ष के पीछे बड़ा कारण यह सडक़ ही है। दारबुक-श्‍योक-दौलत बेग ओल्‍डी मार्ग सामरिक दृष्टि से भारत को किसी युद्ध की स्थिति में बढ़त की स्थिति में ला देता है। काराकोरम दर्रे के पास जवानों तक रसद पहुँचाने के लिए इसकी बड़ी अहमियत है। एलएसी पर चीनी गतिविधियों ने भारत को चौकन्ना किया है। यह कहा जाता है कि चीन वहाँ पुल, सडक़ें और हवाई पट्टी तक का निर्माण करने में जुटा है।

इसे लेकर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डी.एस. हुड्डा कहते हैं कि उम्मीद करनी चाहिए कि बातचीत से यह तनाव खत्म या कम हो जाए। हालाँकि हुड्डा मानते हैं कि ऐसा होना आसान नहीं दिखता। उनके मुताबिक, चीन ने वहाँ घुसपैठ की कोशिश की है। चीन की पीएलए पूरी तैयारी से वहाँ आयी है। मैं मानता हूँ कि चीन किसी बड़ी लड़ाई में नहीं उलझना चाहता। लेकिन यह सब बातचीत पर निर्भर करेगा। चीन की दो कदम आगे और एक कदम पीछे की रणनीति को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

जब भारत और चीन के बीच खूनी संघर्ष हुआ, तो वहाँ गलवान नदी पर बनाये जा रहे भारत के एक पुल का भी ज़िक्र आया। यह कहा गया है कि संघर्ष के बीच ही भारत ने उस पुल का निर्माण काम पूरा कर लिया। भारत की रणनीतिक दृष्टि से यह पुल काफी अहम है। करीब 60 मीटर लम्बे इस पुल को सेना के इंजीनियर और जवान बना रहे हैं।

इस पुल से सेना के वाहन दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) में स्थित भारत की अंतिम पोस्ट तक सुगमता से पहुँच सकते हैं। ज़ाहिर है कि इससे डीबीओ रोड की सुरक्षा भी मज़बूत होगी। चीन इस पुल के निर्माण को रोकने की तमाम कोशिशें करता रहा है। गलवान नदी पर पुल बनने से भारत को उस पार जाने के लिए गलवान नदी के सूखने का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। वैसे नदी पर पहले से एक फुटओवर ब्रिज ज़रूर था, जो पैदल जाने के लिए था। पुल से वाहनों के जाने का रास्ता खुल गया।

घटनाक्रम

यह 15-16 जून की दरमियानी रात की घटना है, जब गलवान इलाके में भारतीय और चीनी सैनिकों में हिंसक भिड़ंत हुई। इसकी जानकारी देश की आम जनता को कई घंटे के बाद मिली। पहले सरकार ने कहा कि इसमें भारत के एक अफसर सहित तीन जवान शहीद हुए हैं। लेकिन शाम होते-होते यह खबर आयी कि तीन नहीं, बल्कि इस भिड़ंत में 20 भारतीय जाँबाज़ शहीद हुए हैं। सेना की तरफ से बताया गया कि भारत के 17 सैनिक हिंसक झड़प में गम्भीर रूप से घायल भी हो गये थे; जिनकी बाद में मौत हो गयी।

झड़प को लेकर जानकारी सरकार की तरफ से खुलकर सामने नहीं आ रही थी; जिसे लेकर विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी से जानना चाहा कि वास्तव में वहाँ हुआ क्या है? सेना की तरफ से 20 सैनिकों के शहीद होने की खबर आयी। इसके दो दिन बाद मीडिया में यह रिपोर्ट आने से हडक़म्प मच गया कि चीन ने भारत के 10 सैनिकों को अपने कब्ज़े में कर लिया था, जिन्हें तीन दिन की बातचीत के बाद जाकर छोड़ा गया। सरकार ने अपनी तरफ से इस मसले पर एक शब्द भी नहीं कहा।

इस तरह सरकार की तरफ से जानकारी न मिलने से देश में बेवजह का भ्रम भी बना। इस बीच शहीद सैनिकों के पाॢथव शरीर उनके घर आने शुरू हो गये थे, जिससे देश में गम और गुस्से का माहौल बना गया। विपक्ष लगातार मोदी सरकार पर हमला कर रहा था। उसने सीमा पर तनाव वाले माहौल में भी भाजपा की वर्चुअल राजनीतिक बैठकें होने पर भी कड़ा विरोध किया।

पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर अतिक्रमण के मसले पर पहले से दोनों देशों के बीच तनातनी बनी हुई थी। कुछ दिन पहले 5 जून को ही सैनिक आपस में उलझ चुके थे। घटना के बाद देश में काफी सरगर्मी बढ़ गयी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाम को ही सुरक्षा मामलों पर कैबिनेट कमेटी की बैठक बुलाकर हालात का जायज़ा लिया। बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी मौज़ूद रहे।

घटना के मुताबिक, गलवान घाटी में चीन के सैनिकों के सहमति के मुद्दे से पलटने के बाद दोनों देशों की सेनाओं के बीच तीन घंटे तक पत्थरबाज़ी और लाठी-डण्डे से ज़बरदस्त झड़प हुई। तेलंगाना के शहीद कर्नल संतोष बाबू भारतीय टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे; जिन पर चीन के सैनिकों ने पहले हमला किया। इसके बाद यह तनातनी खूनी झड़प में बदल गयी।

चीन के कितने सैनिक इस घटना में हताहत हुए, इसे लेकर आज तक कोई आधिकारिक जानकारी सामने नहीं आयी है। भारत में कुछ रिपोट्र्स में 43 चीनी सैनिकों के मरने की रिपोट्र्स ज़रूर छपी हैं। खुद चीन इस पर चुप्पी साधे हुए है, हालाँकि बीच में उसके एक कमांडर के मरने की भी खबर आयी। इसके बाद कई बार भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों की बैठकें हुई हैं। भारतीय सैनिकों पर एलएसी का अतिक्रमण करने के चीन के आरोपों को खारिज करते हुए भारत ने साफ कर दिया कि तनाव घटाने के लिए वह बातचीत को राज़ी है; लेकिन चीन की ऐसी हरकतों का माकूल जवाब दिया जाएगा।

घटना के बाद जो खबरें सामने आयीं, उनके मुताबिक, 15 जून की रात गलवान घाटी में झड़प की शुरुआत चीनी सैनिकों के रुख बदलने से हुई। मोर्चे पर दोनों सेनाओं के बीच बनी सहमति के अनुरूप चीनी सैनिक गलवान घाटी से निकलने पर राज़ी हो गये। लेकिन कुछ ही देर बाद पलटकर भारतीय सैनिकों पर पत्थरों से हमला करने लगे। चीनी सैनिक संख्या में काफी अधिक थे।

इस घटना के बाद लेह के आसमान में भारतीय वायुसेना के युद्धक विमानों और हेलिकॉप्टरों की उड़ानें अब हो रही हैं। भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयरचीफ मार्शल आर.के.एस. भदौरिया ने लेह और श्रीनगर एयरबेस का दौरा किया। सेनाध्यक्ष नरवणे भी अग्रिम क्षेत्र तक दौरा करके आये और सैनिकों का हौसला बढ़ाया। सेना कह चुकी है कि सरकार ने यदि चीन के खिलाफ किसी प्रकार के सैन्य प्रतिक्रिया का फैसला किया, तो सेना तुरन्त हामी भरने (शत्रु को जवाब देने) की स्थिति में है। भारत ने पहले ही सेना के तीनों अंगों को अलर्ट कर दिया है।

चीन के साथ लगी करीब 3,500 किलोमीटर की सीमा पर भारतीय थल सेना और वायु सेना के अग्रिम मोर्चे पर स्थित ठिकानों को बुधवार को हाई अलर्ट किया जा चुका है। वहीं, भारतीय नौसेना को हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी सतर्कता बढ़ा देने को कहा गया है, जहाँ चीनी नौसेना की नियमित तौर पर गतिविधियाँ होती हैं। इस बीच सीडीएस जनरल बिपिन रावत और सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की कई बैठकें हुई हैं।

अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास अग्रिम मोर्चे पर तैनात सभी ठिकानों और टुकडिय़ों के लिए सेना पहले ही अतिरिक्त जवानों को भेज चुकी है। भारतीय वायु सेना भी अग्रिम मोर्चे वाले अपने सभी ठिकानों अलर्ट बढ़ाते हुए एलएसी पर नज़र रख रही है। वहीं चीन की नौसेना को कड़ा संदेश देने के लिए भारतीय नौसेना हिन्द महासागर क्षेत्र में अपनी तैनाती बढ़ा रही है।

क्या था शान्ति समझौता?

यह बहुत हैरानी की बात है कि चीन-भारत के बीच झड़प को लेकर मीडिया ने दोनों देशों के बीच हथियार इस्तेमाल न करने को लेकर तथ्यों को अधूरे ढंग से पेश किया।

दरअसल भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एएलसी) सीमा पर पैट्रोलिंग को लेकर 29 नवंबर, 1996 को नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय एक शान्ति समझौता हुआ था। इस समझौते को बाद में 11 अप्रैल, 2005 और 23 अक्टूबर, 2013 के समझौतों में यथावत् रखा गया। इस समझौते में कहा गया था कि दोनों के सैनिकों के बीच तनाव कोई गम्भीर रुख न ले-ले, इसलिए पैट्रोलिंग के दौरान दोनों के सैनिक हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

हाल की झड़प के बाद समझौते की इसी पंक्ति को मीडिया और अन्य ने दोहराया है। लेकिन इस समझौते के क्लॉज-6 में कुछ और भी लिखा है, जिसे कोई बता नहीं रहा। इसमें एक जगह यह भी कहा गया है कि सीमा पर यदि किसी तरह की रणनीतिक सैन्य स्थिति बनती है; या जवानों का जीवन खतरे में पड़ता है; या पोस्ट की सुरक्षा को खतरा उत्पन होता है, तो ऐसी स्थिति में दोनों देशों के कमांडर सभी तरह के हथियार इस्तेमाल कर सकते हैं। इस क्लॉज को नज़रअंदाज़ करके सिर्फ एक ही पक्ष के आधार पर समझौते का उदाहरण देना गलत है। यह समझौता था ही जवानों की ज़िन्दगी को खतरे से बचने के लिए। फिर भारत के 20 जवानों की शहादत की स्थिति में समझौते की क्या अहमियत रह जाती है? यह बात तो सामने आयी है कि इस खूनी झड़प में हथियारों का इस्तेमाल नहीं हुआ।

लेकिन ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, जिस क्रूरता से चीन के सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को मारा, वो हैवानियत की तमाम हदें पार करने जैसा है।

लेह में घायल सैनिकों की हालत बताती है कि चीन ने बर्बरता की है। खबर यह मिली है कि कुछ सैनिकों को नदी में डुबोकर उनकी जान ली गयी। अन्य शहीदों के चेहरे और शरीर गहरे ज़ख्मों से भरे पड़े थे; जिससे लगता कि छड़ों में तार लपेटकर उन्हें बेरहमी से पीटा गया। निश्चित ही इससे यह ज़ाहिर होता है कि चीनी सैनिक हमला करने के ही इरादे से पहले से तैयारी करके आये थे।

पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वी.पी. मलिक ने कहा कि यह घटना पुरानी घटनाओं से थोड़ी अलग है। इस बार बड़ी संख्या में चीन के सैनिक एलएसी में भारतीय सीमा में घुसे। एक तरफ बातचीत भी चल रही थी और दूसरी तरफ वे हिंसात्मक रुख अपनाने के मूड में भी थे। यह चीन की पुरानी आदत रही है कि वह कहता कुछ है और करता कुछ है। ऐसे में भारत को ज़्यादा सँभलकर रहने और निगरानी करने की ज़रूरत है।

भारत-चीन के बीच व्यापारिक स्थिति

चीन के साथ खूनी संघर्ष के बाद भारत में गुस्से की लहर है। चीनी उत्पादों की बिक्री के वहिष्कार की माँग हो रही है और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग के पुतले जलाये जा रहे हैं। भारत के रेल मंत्रालय ने एक प्रोजेक्ट से चीन की कम्पनी को यह कहकर हटा दिया है कि उसके काम की रफ्तार बहुत धीमी है। चीनी एप्स हटाने की मुहिम भी ज़ोर पकड़ रही है।

हालाँकि इस खूनी संघर्ष के चन्द दिनों के भीतर ही यह खबर भी आयी कि मोदी सरकार ने अपने दिल्ली-मेरठ सेमी हाई स्पीड रेल कॉरिडोर का ठेका एक चीनी कम्पनी को देने का फैसला किया है। करीब 1100 करोड़ के इस ठेके को लेकर सरकार चुप है; लेकिन यह ज़रूर कहा गया है कि यह बोली समुचित प्रक्रिया के तहत और भारतीय कम्पनियों को बराबर का मौका देते हुए पूरी की गयी। इस पर अंतिम स्थिति को लेकर अभी भी भ्रम है। बहुत-से जानकार यह ज़रूर कहते हैं कि भारत चीन के उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा सकता है। इससे चीनी उत्पादों के आयात पर काफी नियंत्रण लग सकता है। लेकिन अभी इसे लेकर कुछ कहना मुश्किल है।

कुछ जानकार यह भी कहना है कि व्यापारिक शिखर पर चीन के साथ भारत सब कुछ एकदम खत्म कर दे; यह सम्भव नहीं है। चीन भारत के सबसे बड़े कारोबारी साझेदार  में से एक है। कई क्षेत्रों में चीन की भारत में गहरी घुसपैठ है। स्मार्टफोन के 65 फीसदी बाज़ार पर चीनी कम्पनियों का कब्ज़ा है; जबकि भारत के स्टार्टअप में चीन की कम्पनियों का खरबों डॉलर का निवेश है। भारत के कुल विदेशी व्यापार में चीन की हिस्सेदारी 10.1 फीसदी है। भारत के कुल निर्यात में चीन का हिस्सा महज़ 5.3 फीसदी है, जबकि कुल आयात में चीन का हिस्सा 14 फीसदी है।

चीन और हॉन्गकॉन्ग को जोड़ लें, तो यह भारत के अमेरिका से भी बड़े व्यापारिक साझेदार बन जाते हैं।

रिकॉर्ड के मुताबिक, 2019-20 में चीन-हॉन्गकॉन्ग से भारत का कुल व्यापार 103.53 अरब डॉलर (करीब 7,88,759 करोड़ रुपये) का हुआ, जबकि इसी दौरान अमेरिका के साथ यह इससे कम 82.97 अरब डॉलर (करीब 6,32,120 करोड़ रुपये) था। यदि खरीद क्षमता (परचेजिंग पॉवर) के हिसाब से देखें, तो भी चीन सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था है। वह दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। विदेशी निवेश में उसकी सरप्‍लस सेविंग्‍स (अधिशेष बचत) सबसे ज़्यादा हैं। टेलिकॉम, सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक रिक्‍शा और स्‍टोरेज बैट्रीज में वह वल्र्ड लीडर (विश्व नेता) है।

भारत राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र में आयात और एफडीआई पर लिमिट (सीमा) तय कर सकता है। क्योंकि साउथ चाइना-सी को लेकर आसियान देशों ने चीन के बायकॉट की नहीं, मज़बूत सहयोगी बनाने की रणनीति अपनायी है। लेकिन देश में इसके विपरीत चीन के खिलाफ आम जनता में गुस्सा है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन चीन की चीज़ों के वहिष्कार को लेकर सडक़ों पर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से चीन के उत्पादों पर सख्त प्रतिबन्ध की माँग उठायी है। मंच इसी 12 जून को हुई बिडिंग में चीन की शंघाई टनल इंजीनियरिंग कम्पनी लि. को दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर में न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद के बीच 5.6 किमी तक अंडरग्राउंड सेक्शन के निर्माण के ठेके का कड़ा विरोध कर चुका है।

आपको जानकार हैरानी होगी कि कुछ समय पहले बांग्लादेश के विदेश मंत्री ए.के. अब्दुल मोमिन ने चीन के साथ भारत के उत्पाद शुल्क को लेकर सन्धि पर विरोध के स्वर उठाये हैं। यह पहली बार है, जब ऐसा हुआ है। 01 जुलाई से लागू होने वाले इस समझौते के तहत चीन 97 फीसदी बांग्लादेशी उत्पादों पर शुल्क नहीं लगायेगा। लेकिन बांग्लादेश के विदेश मंत्री चीन की इस घोषणा पर भारत के रुख से सख्त नाराज़ हैं।

राजनीतिक तू-तू, मैं-मैं बढ़ी

चीन और भारत में झड़प के बाद देश में राजनीति भी तेज़ हो गयी है। विपक्ष इस बात से बहुत नाराज़ रहा कि सीमा पर चीन से खूनी झड़प में भारत के 20 बहादुर जवान शहीद हो गये और सरकार के कुछ लोग इसमें बिहार रेजिमेंट को सामने रखकर बिहार चुनाव की रोटियाँ सेंकने में जुट गये हैं। भाजपा ने इसका खण्डन किया और कहा कि राजनीति तो कांग्रेस और दूसरे विपक्षी कर रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने लद्दाख में गतिरोध को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि भारत अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए बातचीत कर रहा है; जबकि प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से चीन के दावे समर्थन कर रहे हैं।

राहुल गाँधी ने 24 जून को ट्वीट किया- ‘चीन ने हमारी ज़मीन ले ली। भारत उसे वापस लेने के लिए बातचीत कर रहा है। चीन कहता है कि यह भारत की ज़मीन नहीं है। प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से चीन के दावे का समर्थन कर दिया है। प्रधानमंत्री चीन का समर्थन क्यों कर रहे हैं और भारत और हमारी सेना का क्यों नहीं? चीन को हमारी ज़मीन पर अस्वीकार्य कब्ज़ा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’

इसके जवाब में भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा- ‘सत्ता से बेदखल कर दिया गया राजवंश पूरे विपक्ष के बराबर नहीं हो सकता है। एक राजवंश और उसके वफादार दरबारियों को पूरे विपक्ष के एक होने का भ्रम है। एक राजवंश ने कुछ सवाल उठाये और उसके वफादार दरबारियों ने झूठ फैलाया।’

दरअसल भाजपा को कोरोना, लॉकडाउन से उपजी परिस्थितियों में अपने ग्राफ के गिरने का भय है। इस बीच चीन से झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने और जिस तरह इस झड़प की खबरों को टुकड़ों-टुकड़ों में सरकार सामने लायी, उससे उस पर लोगों के भरोसे को चोट पहुँची है। अब भाजपा पूरी तरह कांग्रेस, खासकर राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी पर हमलावर हो रही है। वह राहुल और कांग्रेस के हर बयान को देश के सैनिकों का अपमान बता रही है। इन आरोपों का कारण निश्चित ही राजनीतिक है। सरकार को लेकर जनता के मन में बहुत-से सवाल पैदा हुए हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एक-दो कार्यक्रमों में बिहार-रेजीमेन्ट शब्द का ज़िक्र कर चुके हैं।  चुनाव और चीन में बिहार रेजिमेंट के इस घटना से जुड़े होने को लेकर भी बहुत सवाल उठाये जा रहे हैं। निश्चित ही इन्हें दुर्भाग्य पूर्ण कहा जाएगा; क्योंकि सेना देश की होती है और किसी को भी इसे बिहार रेजिमेंट या किसी और राज्य के रेजिमेंट के रूप में परिभाषित नहीं करना चाहिए।

यह काफी मुश्किल हालात हैं। हम भारत और चीन से बात कर रहे हैं। वहाँ काफी समस्या है। भारत चीन के बीच स्थिति विस्फोटक है और हम उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि दोनों की मदद करें और बात से मामला सुलझ जाए। दोनों ही देशों की स्थितियाँ इस समय खराब है। लेकिन हम इस पर नज़र बनाये हुए हैं और उत्पन्न हुए इस तनाव को सुलझाने का प्रयास भी करेंगे। हमने यह भी कहा है कि भारत और चीन के सीमा-विवाद पर अमेरिका मध्यस्थता करने को इच्छुक और समर्थ है।

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हम किसी को कभी उकसाते नहीं हैं; लेकिन अपनी संप्रभुता और अखण्डता से भी कोई समझौता नहीं करते हैं। जब भी समय आया है, हमने देश की अखण्डता और संप्रभुता की रक्षा करने में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है; अपनी क्षमताओं को साबित किया है। मैं देश को भरोसा दिलाना चाहता हूँ कि हमारे जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हमारे लिए भारत की अखण्डता और संप्रभुता सर्वोच्च है और इसकी रक्षा करने से हमें कोई रोक नहीं सकता। इस बारे में किसी भी ज़रा भी संदेह नहीं होना चाहिए। भारत शान्ति चाहता है। लेकिन उकसाने पर यथोचित जवाब देने में सक्षम है। देश को इस बात का गर्व होना चाहिए कि हमारे जवान मारते-मारते मरे हैं।

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अब हमारे सामने बड़े संकट की स्थिति है। इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि अप्रैल-मई, 2020 से लेकर अब तक चीन की सेना ने पैंगोंग त्सो झील क्षेत्र और गलवान घाटी, लद्दाख में हमारी सीमा में घुसपैठ की है। अपने चरित्र के अनुरूप, सरकार सच्चाई से मुँह मोड़ रही है। घुसपैठ की खबरें और जानकारी 5 मई, 2020 को आयी। समाधान के बजाय, स्थिति तेज़ी से बिगड़ती गयी और 15-16 जून को हिंसक झड़पें हुईं। 20  भारतीय सैनिक शहीद हुए, 85 घायल हुए और 10 लापता हो गये; जब तक कि उन्हें वापस नहीं किया गया। प्रधानमंत्री के बयान ने पूरे देश को झकझोर दिया; जब उन्होंने कहा कि किसी ने भी भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ नहीं की। राष्ट्रीय सुरक्षा और भूभागीय अखण्डता के मामलों पर पूरा राष्ट्र हमेशा एक साथ खड़ा है और इस बार भी किसी दूसरी राय का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। कांग्रेस ने सबसे पहले आगे बढक़र हमारी सेनाओं और सरकार को अपना पूरा समर्थन देने के घोषणा की। हालाँकि लोगों में यह भावना है कि सरकार स्थिति को सँभालने में गम्भीर रूप से असफल हुई है। भविष्य का निर्णय आगे आने वाला समय करेगा; लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि हमारी क्षेत्रीय अखण्डता की रक्षा के लिए सरकार के उठाये जाने वाला हर कदम परिपक्व कूटनीति और मज़बूत नेतृत्व की भावना से निर्देशित होंगे। हम सरकार से आग्रह करते हैं कि अमन, शान्ति और वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहले जैसी यथास्थिति की बहाली हमारे राष्ट्रीय हित में एकमात्र मार्गदर्शक सिद्धांत होना चाहिए। हम स्थिति पर लगातार नज़र बनाये रखेंगे।

सोनिया गाँधी, कांग्रेस अध्यक्ष (सीडब्ल्यूसी बैठक, 23 जून, 2020)

हमें नहीं लगता कि भारत और चीन को सीमा विवाद सुलझाने के लिए किसी तीसरे देश की मदद की ज़रूरत है। मुझे नहीं लगता कि भारत और चीन को बाहर से कोई मदद चाहिए। मुझे नहीं लगता कि उन्हें मदद करने की आवश्यकता है; खासकर जब यह देश का मुद्दा हो। वो उन्हें अपने दम पर हल कर सकते हैं। इसका मतलब है कि हाल की घटनाओं को वो खुद हल कर सकते हैं। हम आशा करते हैं कि दोनों देशों में स्थिति शान्तिपूर्ण बनी रहेगी और वो विवादों के शान्तिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे।

सर्गेई लावरोव

रूस के विदेश मंत्री

चीन से दो-दो हाथ

गलवान घाटी में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर असल में क्या हुआ, जिसमें हमारे 20 जवान शहीद हो गये? यह अब भी एक रहस्य बना हुआ है। इसे लेकर भी परस्पर विरोधी खबरें हैं कि क्या भारतीय क्षेत्र में कोई घुसपैठिया मौज़ूद नहीं था? क्या घातक मुठभेड़ के समय भारतीय सैनिक सशस्त्र या निहत्थे थे? भ्रम तब और बढ़ गया, जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की ओर से भारत के अफसरों सहित 10 जवानों की रिहाई को लेकर खबर आयी। यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि ये बहादुर जवान 15 जून की घटना के बाद से लापता थे। इसके अलावा यह भी नहीं बताया गया था कि तीन दिन से उनकी सुरक्षित वापसी के लिए बातचीत चल रही थी। यह उन घटनाओं की कड़ी में पारदॢशता की कमी की ओर इशारा करता है, जिनसे केवल अटकलों और गलत सूचनाओं को हवा मिली। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मीडिया या जनता के साथ हर घटनाक्रम को साझा करना सम्भव नहीं है; खासकर जब बात राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी हो। लेकिन पूर्ण गोपनीयता भी किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती।

राष्ट्र को एक आक्रामक चीन की नीयत और महत्त्वाकांक्षाओं का एहसास करना चाहिए। खासकर ऐसे समय में, जब कोविड-19 तेज़ी से फैल रहा है और अर्थ-व्यवस्था पर ग्रहण लग चुका है। चीन लम्बे समय से भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दबदबा बनाने से रोक रहा है और भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। चीन को न सिर्फ विश्वास, बल्कि दम्भ है कि वह अकेले या एक साथ किसी भी बड़ी शक्ति के साथ टकराव का सामना कर सकता है। ऐसे में भारत के लिए सामरिक, सैन्य और कूटनीतिक तरीकों का उपयोग करना आवश्यक है। साथ ही भारत को पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल के साथ लम्बित मुद्दों को सुलझाने की भी ज़रूरत है। यह समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वदलीय बैठक के बाद एक-दूसरे पर प्रभुता दिखाने या राजनीतिक तूफान खड़ा करने का नहीं है; जिसे पीएमओ ने भ्रामक व्याख्या के रूप में वॢणत किया है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि गलत सूचना कूटनीति का विकल्प नहीं है और यह भी उल्लेखित किया कि चीन बेशर्मी और अवैध रूप से भारतीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों, जैसे- गलवान घाटी और पैंगोंग त्सो झील पर अपना दावा जताने के लिए अप्रैल से लेकर आज तक कई बार घुसपैठ कर चुका है। उनके इस बयान के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने सैकड़ों वर्ग किलोमीटर भूमि चीन के आगे समर्पित कर दी थी और 2010 से 2013 के बीच 600 से अधिक घुसपैठ उनके समय में हुईं; जबकि उनकी पार्टी ने असहाय रूप से 43,000 किलोमीटर भारतीय क्षेत्र चीन के लिए समर्पित कर दिया था।

उन्होंने कहा कि इसका स्वागत किया जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने 20 प्रमुख राजनीतिक दलों की बैठक में आश्वासन दिया कि चीन ने किसी भी भारतीय क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं किया है। भारतीय सैनिक एलएसी पर गश्त कर रहे हैं; जो चीन को भारत से अलग करती है और सीमा पर भारतीय क्षेत्र में बेहतर बुनियादी ढाँचा है। सर्वदलीय बैठक सही दिशा में एक कदम था; लेकिन भ्रमित करने वाले बयानों ने केवल गम्भीर मुद्दे की भयावहता को व्यक्त किया और सरकार की दुविधा को सार्वजनिक किया।

जैसे, शेक्सपियर ने कहा है- ‘हो सकता है, अथवा नहीं हो सकता है!’

कठघरे में डीएवीपी अधिकारी

केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) के अज्ञात अधिकारियों और दो निजी व्यक्तियों के खिलाफ गैर-अस्तित्व वाले अखबारों में विज्ञापन जारी करने के मामले में प्रारम्भिक जाँच शुरू की है।

सीबीआई जाँच हमारे प्रतिद्वंद्वियों के लिए एक गम्भीर संकेत है कि इन वर्षों में वे क्या कर रहे थे? जबकि हमारे प्रकाशनों ने पूर्ण रूप से अपनी साख व पहुँच मज़बूत रखते हुए अपने मूल्यवान और आम पाठकों के सामने ईमानदारी के बूते साहस, उम्मीद और जनहित की पत्रकारिता को आगे बढ़ाने पर भरोसा किया है। अधिकारियों ने कहा कि प्रारम्भिक जाँच आरोपों का आकलन करने के लिए की जाती है, और अगर प्रथम दृष्टया अपराध स्थापित होता है, तो प्राथमिकी दर्ज की जाती है। सीबीआई के प्रवक्ता आर.के. गौड़ ने जाँच के बाद कहा- ‘यह कार्रवाई सीबीआई को भ्रष्टाचार निरोधी कार्य के खिलाफ मिले अधिकार के अनुरूप की गयी है।’

31 मार्च, 2018 को भारत में पंजीकृत प्रकाशनों की कुल संख्या, पंजीयक भारतीय समाचार पत्र के कार्यालय के अनुसार, 1,18,239 थी और सीबीआई की प्रारम्भिक जाँच एक बड़े घोटाले की ओर इशारा करती है। सीबीआई के सूत्रों के अनुसार, यह आरोप लगाया गया है कि डीएवीपी में कुछ अधिकारियों ने कुछ-कुछ अखबार मालिकों के साथ मिलकर ऐसे अखबारों को विज्ञापन जारी किये, जो अब केवल सरकारी रिकॉर्ड में मौज़ूद हैं। क्योंकि उन्होंने या तो बहुत पहले ही प्रकाशन बन्द कर दिया है या अपना अस्तित्व ज़ाहिर करने के लिए नाममात्र को न्यूनतम प्रतियाँ छापीं। इसके बाद इन विज्ञापनों के प्रकाशन के नाम पर भुगतान किया गया, जिससे सरकारी खज़ाने को चूना लगा।

सरकारी खज़ाने को नुकसान

सीबीआई सूत्रों के अनुसार, 2016 और 2019 की अवधि के बीच इन अखबारों में विज्ञापन लगाने को लेकर अनियमितताएँ पायी गयी हैं। ये ऐसे समाचार पत्र हैं, जिन्होंने यह बताने के लिए गलत तरीके अपनाये कि वह सरकारी विज्ञापनों के पात्र हैं। वे (अखबार मालिक) या तो अखबार का प्रकाशन ही नहीं कर रहे थे, या नाम भर के लिए 100 प्रतियाँ ही मुद्रित कर रहे थे। इन प्रतियों को वे सरकारी कार्यालयों को भेजते थे, ताकि यह प्रमाणित कर सकें कि वे लगातर अखबार निकाल रहे हैं। इस मामले में प्रारम्भिक जाँच शुरू कर दी गयी है। यदि और सबूत मिलते हैं, तो एफआईआर दर्ज कर नियमित मामला दर्ज किया जाएगा। प्रारम्भिक पूछताछ से ज़ाहिर होता है कि यह धोखाधड़ी करीब 65 लाख रुपये के आसपास है। चूँकि प्रकाशनों की संख्या ज़्यादा है, इसलिए धोखाधड़ी को पूर्ण रूप से बाहर लाने के लिए अभी काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। सूत्रों ने कहा कि कई अखबारों ने जिस तरह प्रसार (सर्कुलेशन) के फर्ज़ी आँकड़े दिखाये, उससे लगता है कि घोटाले और सरकारी खज़ाने को लगे चूने से जुड़ी रकम कहीं ज़्यादा हो सकती है।

41 शहर, 27 कार्यालय, 150 छापे

यह खुलासा सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए पिछले साल अगस्त में की गयी राष्ट्रव्यापी छापेमारी का नतीजा है। पिछले साल 30 अगस्त को सीबीआई ने देश के 41 शहरों और कस्बों में औचक निरीक्षण किये थे, जिसमें 27 विभिन्न सरकारी विभागों के कार्यालयों में 150 से अधिक छापे मारे थे। ये छापे सम्बन्धित सरकारी विभागों के सतर्कता अधिकारियों के साथ एक साझे अभियान में मारे गये थे। उस समय जिन महकमों में छापे मारे गये थे, उनमें डीएवीपी भी था।

एजेंसी ने तब दावा किया था कि जाँच ऐसे बिन्दुओं और स्थानों पर की गयी थी, जहाँ आम नागरिक या छोटे व्यवसायी सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार की सबसे ज़्यादा समस्या महसूस करते हैं। उसने कहा था कि छापेमारी ऐसे बिन्दुओं और स्थानों की पहचान उजागर करने की कोशिश के लिए थी, जो भ्रष्टाचार के मामले में सबसे ज़्यादा संवेदनशील थे।

सीबीआई के अनुसार, जिन विभागों पर यह साझा छापेमारी की गयी थी, उनमें रेलवे, कोयला खदान तथा कोयला क्षेत्र, चिकित्सा तथा स्वास्थ्य संगठन, सीमा शुल्क और भारतीय खाद्य निगम शामिल हैं। अन्य विभागों में बिजली, नगर निगम, ईएसआईसी, परिवहन, सीपीडब्ल्यूडी, सम्पदा निदेशालय, अग्निशमन सेवाएँ, उप-पंजीयक कार्यालय, जीएसटी विभाग, पोर्ट ट्रस्ट, राष्ट्रीय राजमार्ग, डीएवीपी, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कम्पनियाँ, विदेश व्यापार महानिदेशालय, पीएसयू बैंक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, शिपिंग कॉर्पोरेशन, बीएसएनएल, स्टील सार्वजानिक उपक्रम (पीएसयू), खदान और खनिज शामिल हैं।

जिन शहरों और कस्बों में छापे मारे गये उनमें दिल्ली, जयपुर, जोधपुर, गुवाहाटी, शिलांग, चंडीगढ़, श्रीनगर, चेन्नई, मदुरै, कोलकाता, भुवनेश्वर, हैदराबाद, बेंगलूरु, मुम्बई, गाँधीनगर, भोपाल, रायपुर, नागपुर, जबलपुर, पटना, लखनऊ, गाज़ियाबाद, देहरादून, राँची, विशाखापट्टनम, गुंटूर, विजयवाड़ा, कोच्चि, कोल्लम, हनमाकोंडा, करीमनगर, चिरमिरी, सिकंदराबाद, कटनी-बीना, वडोदरा, हिम्मत नगर, धनबाद, कसौली, समस्तीपुर, दानापुर और मोकामा शामिल हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक पहुँची इंसाफ की गुहार

जम्मू के रामनगर और आसपास के इलाकों के करीब छ: माह पहले एक के बाद एक 11 बच्चों की मौत का मामला अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, दिल्ली के पास पहुँच गया है। आयोग ने जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को नोटिस जारी कर दिया है। आयोग ने दोनों अधिकारियों को चार सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया है। यह अवधि जुलाई के पहले सप्ताह तक है। नोटिस में उल्लेख है कि तय अवधि में जवाब न आने पर आयोग के पास समुचित कार्रवाई करने का अधिकार है। मामले की गम्भीरता को देखते हुए आयोग कार्रवाई करेगा, इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए।

इस मामले को इस मुकाम तक पहुँचाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुकेश खजूरिया कहते हैं कि आयोग के पास व्यापक अधिकार हैं,  उसे मामले में कार्रवाई करनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है, तो उनके पास कई विकल्प है। उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका के अलावा अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के पास जाएँगे। उनका मकसद बच्चों के परिजनों को इंसाफ दिलाना है। ‘मौत का सीरप’ बनाने वाली कम्पनी के मालिकों के अलावा इसकी मार्केटिंग करने वालों को सलाखों के पीछे पहुँचाना है। जो परिजन 02 जून की रोटी दिहाड़ी करके जुटा रहे हैं, उन्हें इंसाफ तो दिलाना ही होगा। गलत दवा के प्रयोग से उनके बच्चों की असमय मौत हो गयी, वहीं उपचार में हज़ारों रुपये खर्च हो गये, जिसके लिए वे कर्ज़दार हो गये। आॢथक रूप से बेहद कमज़ोर इन परिजनों को मुआवज़ा मिलना चाहिए। प्रभावित परिवारों में कुछ तो गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं।

दिहाड़ीदार श्रमिक गोङ्क्षवद राम की तीन साल की बच्ची सुरभि की जान भी इसी दवा ने ली थी। कहते हैं कि खाँसी-ज़ुकाम होने पर मेडिकल वाले ने अच्छी दवा के नाम यह शीशी दी थी। सोचा दो-तीन दिन में ठीक हो जाएगी। लेकिन दो दिन बाद उसका मूत्र रुक गया। बच्ची बेहद तकलीफ में थी। उसे करीब के रामनगर अस्पताल ले गये। वहाँ डॉक्टरों ने ऊधमपुर ले जाने को कहा। पैसा नहीं था, किसी से 20 हज़ार रुपये उधार लिए और गाड़ी करके बच्ची को पहले ऊधमपुर और वहाँ से जम्मू ले जाना पड़ा। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया और बच्ची चल बसी। 60 हज़ार रुपये उसके इलाज में खर्च हो गये। वह कर्ज़दार हो गये, बच्ची को खो बैठे वह अलग। पत्नी नीमो देवी कहती हैं, उनकी बच्ची ठीक थी। अगर वह दवा न देते तो वह आज ज़िन्दा होती। उनके तीन बेटियाँ हैं, जिनमें सुरभि अब इस दुनिया में नहीं है। जिस तरह से उसकी मौत हुई है, मंज़र सामने आ जाता है। कहाँ-कहाँ लेकर भटके, फिर भी बचा नहीं सके। हम लोग बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर पाते हैं। इलाज में हज़ारों खर्च हो गये, उसे कैसे उतारेंगे? यह सवाल मौत के करीब पाँच माह अब भी मुँह बाँए खड़ा है। किसी ने एक पैसे की मदद नहीं की। कोई नेता या सरकारी अधिकारी हमारे घर नहीं आया। उन्हें सुरभि की मौत का इंसाफ भी चाहिए। मौत की दवा बनाने वाली कम्पनी के मालिकों को सख्त सज़ा मिलनी चाहिए। उस बच्ची का क्या कुसूर था, उसे दुनिया देखनी थी, लेकिन ज़हरनुमा दवा ने उसकी ज़िन्दगी छीन ली।

रामनगर के वार्ड-11 की भोली देवी की बच्ची जाह्नवी की मौत भी बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप पीने के बाद हुई। बहुत उपचार कराया और काफी पैसे भी खर्च हुए, लेकिन उसे डॉक्टर बचा नहीं सके। 11 माह की बच्ची ने उनके सामने दम तोड़ दिया, तो रोने के अलावा और कोई चारा नहीं था। भगवान से बचाने की गुहार भी काम नहीं आयी। बच्ची की मौत के ज़िम्मेदार लोगों को जेल में डाला जाए।

जाह्नवी के पिता अनिल कुमार दिहाड़ी श्रमिक हैं। रोज़ काम नहीं मिलता, महीने में 15 दिन काम मिल जाए वही बहुत है। इस परिवार की आॢथक हालत बहुत खराब है। पूरा परिवार बच्ची की मौत से व्यथित है। जाह्नवी के पिता कहते हैं कि बोलने के लिए अब कुछ नहीं रहा। हमारा सिस्टम ही खराब है। दवाई तो बीमार को ठीक करने के लिए होती है। लेकिन यह कैसी दवा थी, जिसने ज़िन्दगी के बदले मौत दे दी। आज लगभग छ: महीने हो गये, जाह्नवी का चेहरा अब भी आँखों में घूमता है। हम कुछ नहीं कर सके और कोई हमारे लिए अब तक कुछ नहीं कर सका है। ऋषि कुमार ने बताया भतीजी जाह्नवी के उपचार पर 50 हज़ार से ज़्यादा रुपये खर्च हो गये। पैसे का इंतज़ाम करना कौन-सा आसान काम था। इलाज के नाम पर पैसे तो मिल गये, लेकिन उन्हें चुकाना अब उतना ही मुश्किल है। काम पहले से ही नहीं है। ऐसे में और भी दिक्कत हो गयी है।

डेढ़ साल की लक्ष्मी ने भी दवा के सेवन के बाद दम तोड़ा। उसके पिता राजकुमार कहते हैं कि रामनगर इलाके में स्वास्थ्य सुविधाएँ बहुत कम हैं। ज़्यादातर लोग छोटी-मोटी तकलीफ के लिए मेडिकल पर से ही दवा ले लेते हैं। बच्ची को खाँसी-ज़ुकाम की तकलीफ हुई, तो पर्ची पर दवा लिखकर दे दी गयी। हम ले आये, सोचा कि बच्ची जल्द ही ठीक हो जाएगी। पर वह कभी ठीक नहीं हो सकी। उसकी मौत स्वाभाविक नहीं थी। दवा के सेवन के बाद वह बहुत ज़्यादा तकलीफ में आ गयी। इतनी छोटी बच्ची बता तो कुछ नहीं सकती थी, बस उसके दर्द को हम लोग कुछ-कुछ समझ सक रहे थे। डॉक्टर समझते होंगे। लेकिन वे भी कारण बता नहीं सके। उन्होंने उसे ठीक करने की कोशिश भी की। लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका। जब लक्ष्मी की तरह इलाके में अन्य बच्चों की मौतें हुईं और कारण का पता लगा ,तो हम सन्न रह गये। हमारी बच्ची तरह अन्य परिवारों के बच्चे बच्चियों की मौत हुई है।

विदित हो दिसंबर, 2019 और जनवरी, 2020 के बाद एक के बाद एक 11 बच्चे-बच्चियाँ असमय मौत की नींद सो गये थे। बच्चों की मौत की वजह हिमाचल प्रदेश के ज़िला सिरमौर के कालाअंब स्थिति फार्मास्यूटिकल कम्पनी डिजिटल विजन की बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप का सेवन रहा है। दवा चंडीगढ़ की रीज़नल टेस्टिंग लैब (आरडीटीएल) के मानकों पर खरी नहीं उतरी है। इसमें डाइथिलीन ग्लाइकोल की मात्रा मानक से ज़्यादा पायी गयी। विशेषज्ञों की राय में सभी बच्चे-बच्चियों की मौत की वजह कमोबेश एक जैसी दवा का सेवन रहा है। दवा सेवन के बाद पहले बच्चों का मूत्र बन्द होने और फिर उनकी किडनी का फेल होना बताया गया है। दवा के प्रयोग से पहले इन बच्चे-बच्चियाँ खाँसी या ज़ुकाम के अलावा बिल्कुल ठीक थे, इन्हें किसी तरह की कोई गम्भीर शिकायत नहीं थी।

शिकायत के बाद कम्पनी का लाइसेंस निरस्त कर दिया गया है। रामनगर में इस बाबत प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। गिरफ्तारी के डर से कम्पनी मालिक पुरुषोत्तम गोयल और कोनिक गोयल ने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत ले ली है। रामनगर थाने में दर्ज प्राथमिकी के आधार पर पुलिस ने जमवाल मेडिकल के मोहिंदर सिंह को गिरफ्तार कर लिया था। इसी दुकान से कई लोगों ने यह दवा खरीदी थी; लिहाज़ा पुलिस ने स्टॉकिस्ट को भी गिरफ्तार कर लिया था। हैरानी की बात यह है कि निर्माता कम्पनी के प्रबन्धक या मालिक अभी गिरफ्तारी से बचे हुए हैं। कम्पनी का लाइसेंस निरस्त किया हुआ है, इसलिए यह दवा अब नहीं बन रही होगी। इसकी व्यवस्था का ज़िम्मा हिमाचल प्रदेश सरकार का है। वैसे भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भरोसा दिला चुके हैं कि सरकार इस मामले में कोई नरमी नहीं रखेगी। बच्चों की मौत का मामला बेहद गम्भीर है। ऐसे मामलों से राज्य की छवि भी खराब होती है, लिहाज़ा कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

सरकार का बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ मिशन रामनगर की घटना में पूरा होता नहीं दिख रहा। मरने वालों में कई बच्चियाँ भी हैं। उन्हें बचाया ही नहीं जा सका, तो फिर पढ़ाने की बात तो दीगर हो जाती है। ऊधमपुर क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएँ भी नाकाफी हैं। रामनगर इलाके में तो स्वास्थ्य सुविधाएँ काफी खस्ता हालत में हैं। विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। दूरदराज़ के इलाकों से लोगों की अस्पतालों तक पहुँच आसान नहीं है।

उपेक्षा के मायने

जम्मू का रामनगर क्षेत्र ऊधमपुर लोकसभा क्षेत्र में आता है। यहाँ के सांसद डॉ. जितेंद्र सिंह हैं, जो केंद्र में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। वह भाजपा नेता भी हैं। इनके पास डवलपमेंट नार्थ ईस्टर्न रीजन के अलावा एटोमिक एनर्जी स्पेस जैसे अहम विभाग हैं। इसके साथ ही वे प्रधानमंत्री कार्यालय से भी सम्बद्ध है। बावजूद इसके उन्होंने इस मुद्दे पर प्रभावित लोगों को कोई संदेश नहीं दिया है। प्रभावित लोगों को उनसे काफी उम्मीदें थी, लेकिन उन्होंने अब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा नहीं कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं रही होगी। जो मामला उच्च न्यायालय और राष्ट्रीय मानवाधिकार तक पहुँच गया है, उसकी जानकारी क्षेत्र के सांसद (केंद्रीय मंत्री) को न हो ऐसा हो नहीं सकता। वोट के लिए दूर-दराज़ के इलाकों में खाक छानने वाले जनप्रतिनिधि के ऐसे रुख से प्रभावितों में निराशा है।

उत्तराखंड में रोक

उत्तराखण्ड सरकार ने खतरनाक साबित हो चुकी बेस्ट कोल्ड पीसी सीरप पर रोक लगा दी है। सरकार के आदेश के मुताबिक, दवा के बैच नं.-डीएल 50, मैन्युफैक्चङ्क्षरग सितंबर 2019 और एक्सपाइरी अगस्त 2021 पर तुरन्त प्रभाव से रोक लगा दी गयी है। ड्रग कंट्रोलर के आदेश में कालाअंब ज़िला सिरमौर हिमाचल की डिजिटल विजन नामक कम्पनी की इस दवा की बिक्री पर पूरी तरह से रोक रहेगी। कम्पनी का सालाना टर्न ओवर 45 करोड़ से ज़्यादा का है। यहाँ 160 से ज़्यादा प्रोडक्ट तैयार होते हैं। इनमें इंजेक्शन, प्रोटीन पाउडर, कैप्सूल और सीरप आदि हैं। एक दर्जन से ज़्यादा देशों में भी कारोबार है।

हरियाणा में कार्रवाई

हरियाणा के ड्रग कंट्रोलर नरेंद्र आहूजा ने बताया कि मामला संज्ञान में आने के बाद इस दवा को ज़ब्त करने को लेकर तुरन्त कार्रवाई की गयी। स्टाकिस्टों के यहाँ छापे मारे गये। पूरा स्टॉक ज़ब्त किया गया। कम्प्यूटर से सेल डाटा निकलवाया गया। जिन लोगों को यह दवा बेची गयी थी, वहाँ से भी वापस लेने का काम किया गया। हरियाणा में इस दवा के सेवन से कोई अप्रिय घटना हुई है, उनकी जानकारी में नहीं आया है। दवा के स्टॉकिस्टों पर कार्रवाई के बाद प्राथमिकी दर्ज करायी गयी।

प्रभावितों का दर्द

हम लोगों ने अपने नौनिहालों को खोया है। यह सिस्टम की नाकामी है। इसे दुरुस्त करना होगा। नहीं किया जाता, तो रामनगर जैसी घटनाएँ फिर होती रहेंगी। आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। चूँकि मौतें प्राकृतिक नहीं है, इसलिए पीडि़त परिवारों को उचित मुआवज़ा मिलना चाहिए। काफी लोग अनुसूचित जाति के हैं। ज़्यादातर प्रभावितों की आॢथक हालत बहुत ठीक नहीं है। कई गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। इनकी राय में गरीब की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। सरकार का कोई नुमाइंदा उनके पास नहीं पहुँचा। किसी जनप्रतिनिधि ने उनकी खबर नहीं ली। हम लोग इंसाफ चाहते हैं, यह कैसे मिलेगा इसे नहीं जानते। धरना-प्रदर्शन करने की हालत में नहीं है। सरकार को चाहिए कि वह हमारी सुध ले।

गलवान घाटी के वीर सपूत

मरना तो सभी को है। लेकिन कोई देश के लिए कुर्बान हो यह बड़ी और गर्व की बात है। सेवानिवृत्त बैंकर बी. उपेंद्र कुमार (62) तिरंगे में लिपटे बेटे कर्नल बी. संतोष बाबू के पाॢथव शरीर के सामने यह कब कहें, तो इसे हिम्मत और धैर्य की मिसाल कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि एक-न-एक दिन ऐसी खबर का अंदेशा बना रहता था। उनका वीर बेटा कुपवाड़ा (कश्मीर) में लम्बे समय तक तैनात रहा; अब लद्दाख में था। वर्दी पहन ली, तो वह देश का सपूत हो गया; हमारा बाद में। उसके न रहने का गम है; लेकिन उसने देश रक्षा के लिए कुर्बानी दी है। पूरा देश हमारे साथ खड़़ा है, पर वह नहीं। वह हमेशा यादों में बसा रहेगा।

15 जून देर रात को गलवान घाटी में चीनी सेना के साथ खूनी संघर्ष में देश के 20 वीर सपूत शहीद हो गये। सीमा विवाद को लेकर कुछ दिनों से तनाव की स्थिति ज़रूर थी, लेकिन इसे पहले की तरह बातचीत और अन्य माध्यम से सुलझ जाने की उम्मीद थी। 15 जून की शाम के बाद दोनों पक्षों में तनातनी के बाद देर रात जो हुआ, वह अप्रत्याशित था। घटना के बाद से चीन के प्रति देश भर में आक्रोश है, वहीं शहीद परिवारों में मातम का माहौल है।

तेलंगाना के गाँव केसराम सूर्यपेट में बिहार रेजीमेंट के कमांडिंग अफसर बी.संतोष बाबू को अंतिम विदाई दी गयी। परिवार में पिता बी. उपेंद्र कुमार और मंजुला हैं। पत्नी संतोषी के अलावा चार साल का एक बेटा अनिरुद्ध और नौ साल की बेटी अभिग्ना है। पति की शहादत पर पत्नी संतोषी धैर्य और हिम्मत से काम लिया, जो काफी मुश्किल काम था। बैंक में मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त पिता याद करते हैं कि वह खुद भी सेना में जाना चाहते थे; लेकिन ऐसा नहीं हो सका। उनकी यह हसरत बेटे ने पूरी कर दी। वह बचपन से ही बहादुर था। इसे देखते हुए उसे सैनिक स्कूल में भर्ती कराया। जिस सेना की वर्दी को वह पहनकर देश सेवा करना चाहते थे, वह बेटे ने पूरी कर दी। वह उनका इकलौता बेटा था। उसकी शहादत से उनके परिवार पर दु:खों का पहाड़ टूट गया है। उसकी तैनाती काफी समय तक जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में रही। वह खतरनाक स्थिति के लिए हमेशा तैयार रहता था। फरवरी में बेटा लेफ्टिनेंट कर्नल से कर्नल बना था। वह हैदराबाद तैनाती का इच्छुक था और इसके लिए प्रक्रिया चल रही थी। लॉकडाउन की वजह से उन्हें अगले आदेशों तक लद्दाख में ही तैनात रहने को कहा गया था। क्या पता था कि तैनाती की जगह तिरंगे में उसका पाॢथव शरीर हमारे सामने होगा।

हिमाचल के भोरंज क्षेत्र (ज़िला हमीरपुर) के अंकुश ठाकुर तो अभी 21 के ही हुए थे। उनकी तो ठीक से मूँछे भी नहीं आयी थीं कि देश के लिए आहुति दे दी। वह परिवार में तीसरी पीढ़ी के सपूत थे। पिता और दादा भी फौजी रहे हैं। पिता अनिल कुमार हवलदार से सेवानिवृत्त हुए हैं; वहीं दादा सीताराम आर्नेरी कैप्टन रह चुके हैं। दिसंबर, 2018 में सेना में शामिल हुए अंकुश पहले सियाचिन भी रहे। कुछ समय से उनकी तैनाती लद्दाख में थी। करोहटा गाँव के अंकुश कोई सात माह पहले गाँव आये थे। परिवार के लोग छुट्टी पर आने का इंतज़ार कर रहे थे; लेकिन चीन के साथ सीमा विवाद बढ़ गया। तैनाती लद्दाख क्षेत्र में ही थी; लिहाज़ा वे स्थिति के सामान्य होने का ही इंतज़ार कर रहे थे। बदले घटनाचक्र और अंकुश के शहीद होने की खबर से परिजनों पर गमों का जैसे पहाड़ टूट पड़ा।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने परिजनों के साथ संदेवना जताते हुए कहा है कि सरकार उनके परिवार के हर दु:ख-दर्द में खड़ी रहेगी। उन्होंने सरकार की ओर से 20 लाख रुपये की आॢथक मदद देने की घोषणा की। शहीद अंकुश का अंतिम संस्कार पूरे सैनिक सम्मान के साथ हुआ।

वैशाली (बिहार) के आर.के. सिंह अपने पुत्र जयकिशोर सिंह के शहीद होने की खबर के बाद अपने को सँभाल लेते हैं। प्रतिक्रिया में कहते हैं कि उनका एक और बेटा नंदकिशोर भी सेना में है। अन्य दो बच्चे भी सेना में जाने को तैयार हैं। उनमें भी देश की सेवा करने का वही ज•बा है। हमारा परिवार सेना के प्रति समर्पित है। इससे बड़ी देश सेवा और कोई नहीं हो सकती। सेना में भर्ती होना गर्व की और देश की रक्षा करते हुए कुर्बानी देना बड़े फख्र की बात है। दु:ख और संताप हर परिवार की तरह हमें भी हैं; लेकिन इसे उस तौर पर प्रकट नहीं किया जा सकता। शहीदों के परिजन अगर जाने वाले के गम में विलाप करते नज़र आएँगे, तो इससे गलत संदेश जाएगा। इससे शहीद की वीरता कम होगी, जिसे सहन नहीं किया जा सकता। सेना में जाने का मतलब ही देश के लिए समर्पित हो जाना है। सेना में रहते बहादुरी के लिए सम्मान मिलना, तो पूरे परिवार के लिए गर्व की बात होती है; लेकिन रक्षा के लिए कुर्बानी तो किसी-न-किसी को देनी ही पड़ती है। जयकिशोर की तरह अन्य परिवारों को भी दु:ख की घड़ी देखनी पड़ी है। गलवान घाटी के शहीदों में चार सपूत पंजाब के भी हैं। इनमें नायब सूबेदार मनदीप सिंह (39) पटियाला ज़िले के सील गाँव के और नायब सूबेदार सतनाम सिंह (41) गुरदासपुर ज़िले के भोजराज गाँव के हैं। इसके अलावा सिपाही गुरतेज सिंह (22) गाँव बीरवाला डोगरा (मानसा) और सिपाही गुरविंदर सिंह (22) संगरूर ज़िले की सुनाम तहसील के गाँव तोलावाल के हैं। दोनों अविवाहित हैं और शादी के लिए कमोबेश बातचीत चल रही थी। नायब सूबेदार मनदीप सिंह के परिवार में माँ शकुंतला, तीन बहनें, पत्नी गुरदीप कौर, बेटी महकप्रीत कौर और 10 साल का बेटा जोबनप्रीत सिंह है। उनका पूरे सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। बेटे जोबनप्रीत ने मुखाग्नि दी, तो वहाँ मौज़ूद लोगों की आँखें नम हो गयीं।

परिजन बताते हैं कि घटना के 10 दिन पहले फोन पर बात हुई थी। छोटी-सी बातचीत में बताया कि जिस जगह वह तैनात हैं, वहाँ स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। उसके बाद परिजनों का कोई सम्पर्क नहीं हो सका। बाद में सेना की ओर से उनके शहीद होने की ही खबर आयी।

शहीद नायब सूबेदार सतनाम सिंह के भाई सूबेदार सुखचैन सिंह हैदराबाद में तैनात हैं। बताते हैं कि तीन दिन पहले उनकी भाई से बातचीत हुई थी। उन्होंने देश रक्षा क लिए अपना बलिदान दिया है और पूरे परिवार को उनकी शहादत पर गर्व है। परिवार में पिता जगीर सिंह और माँ जसबीर कौर के अलाव पत्नी जसविंदर कौर, बेटा प्रभजोत सिंह और बेटी संदीप कौर है। सिपाही गुरतेज सिंह करीब डेढ़ साल पहले दिसंबर, 2018 के दौरान सेना में भर्ती हुए थे। पिता विरसा सिंह और माँ प्रकाश कौर के अलावा दो भाई हैं। पिता कहते हैं कि गुरतेज का सपना सेना में शामिल होने का रहा था। वह बहादुर था और उसने इसकी मिसाल कायम करके दिखा दी। परिवार से बेटे के जाने का दर्द हम सभी को है; लेकिन देश की रक्षा के लिए उसकी कुर्बानी को पूरा देश याद रखेगा। सिपाही गुरविंदर सिंह का 02 जून को जन्मदिन था। मार्च, 2018 में भर्ती हुए थे। उनकी शादी की बात पक्की हो चुकी थी। परिजन जल्द-से-जल्द उनकी शादी करना चाहते थे। इसके लिए उसके छुट्टी पर आने का इंतज़ार हो रहा था। परिवार में माँ चरणजीत कौर (60) और पिता लाभ सिंह (65) के अलावा भाई गुरप्रीत सिंह और बहन सुखजीत कौर हैं। माता-पिता की तबीयत ज़्यादा अच्छी नहीं रहती है; इसलिए गुरविंदर को इनकी भी चिन्ता लगी रहती थी। परिवार के लोग बताते हैं कि नेटवर्क की समस्या की वजह से उनसे सम्पर्क नहीं हो पाता था।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने चारों शहीदों के परिजनों से संवेदना जताते हुए सम्बद्धित ज़िला प्रशासन को पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के प्रबन्ध पुख्ता करने के विशेष निर्देश दिये। उन्होंने सरकार की ओर से विवाहित शहीदों को 12-12 लाख और अविवाहित शहीदों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये की आॢथक मदद की घोषणा की है। इसके अलावा चारों परिवारों के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी का भी ऐलान किया है।

गलवान घाटी के शहीदों में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शहीद होने वालों में बिहार के भी सपूत रहे। इनमें पटना के हवलदार सुनील कुमार, भोजपुर के सिपाही चंदन कुमार, सहरसा के कुंदन कुमार, समस्तीपुर के अमन कुमार और वैशाली के जयकिशोर सिंह हैं। ओडिशा के शहीद होने वालों में मयूरभंज के नायब सूबेदार नुदू राम सोरेन और कंधनमाल के सिपाही चंद्रकांत प्रधान हैं। झारखंड के शहीदों में पूर्व सिंहभूम के सिपाही गणेश हांदस और साहिबगंज के सिपाही कुंदन कुमार ओझा हैं। छत्तीसगढ़ के गणेश राम कांकेर, उत्तर प्रदेश की मेरठ सिटी के हवलदार विपुल राय, रीवा (मध्य प्रदेश) के नायक दीपक कुमार और बीरभूम पश्चिम बंगाल के सिपाही राजेश ओरंग हैं। सेना की जानकारी के मुताबिक, कमांङ्क्षडग अफसर कर्नल बी. संतोष बाबू के साथ मदुरई (तमिलनाडु) के हवलदार गनर पलानी और सिपाही कुंदन कुमार मौके पर ही शहीद हो गये थे; जबकि बाकी 17 ने बाद में दम तोड़ा था।

कुल मिलाकर हमारे 20 सैनिकों का शहीद होना दु:खद है। तहलका परिवार सभी वीर सपूतों को भावभीनी श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता है।

  1. कर्नल बी. संतोष बाबू
  2. नायब सूबेदार सतनाम सिंह
  3. नायब सूबेदार मनदीप सिंह
  4. नायब सूबेदार नन्दूराम सोरेन
  5. नायक दीपक कुमार
  6. हवलदार सुनील कुमार
  7. हवलदार विपुल रॉय
  8. हवलदार के. पालानी
  9. सिपाही कुन्दन कुमार
  10. सिपाही अमन कुमार
  11. सिपाही चन्दन कुमार
  12. सिपाही गणेश हास्दा
  13. सिपाही गणेश राम
  14. सिपाही के.के. ओझा
  15. सिपाही राजेश उरांव
  16. सिपाही सी.के. प्रधान
  17. सिपाही जयकिशोर सिंह
  18. सिपाही गुरतेज सिंह
  19. सिपाही अंकुश
  20. सिपाही गुरङ्क्षवदर सिंह

तेलंगाना सरकार ने शहीदों का किया बड़ा सम्मान

तेलंगाना सरकार ने सबसे बढक़र शहीदों का सम्मान किया है। मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव शहीद बी. संतोष बाबू के घर पहुँचे और परिजनों से संवेदना जतायी। उन्होंने शहीद के परिजनों को पाँच करोड़ रुपये की मदद के अलावा शहीद की पत्नी को एसडीएम पद पर नियुक्त किया है। साथ ही आवासीय प्लॉट देने की घोषणा की है। इनके अलावा अन्य राज्यों के 19 शहीदों के परिजनों के लिए 10-10 लाख रुपये की मदद का ऐलान किया। शहीदों का सम्मान हर राज्य सरकार ने अपने तौर पर किया है; लेकिन गैर राज्य के शहीदों के लिए आॢथकमदद की घोषणा तेलंगाना सरकार की इस मुद्दे पर संवेदनशीलता को दर्शाता है।

हीरो हैं मेरे पापा

शहीद कर्नल बी. संतोष बाबू की बेटी अभिग्ना अपने पिता को असली हीरो मानती है। शहादत की खबर के बाद उन्होंने प्रतिक्रिया में जिस हिम्मत का परिचय दिया, वह अपने आप में मिसाल ही है। अभिग्ना ने बताया कि एक-दो दिन के अंतराल में उसकी पिता से फोन पर बातचीत हो जाती थी। मेरे असली हीरो, मेरे पिता ही हैं। वह बहुत बहादुर थे और अक्सर बातचीत में यही संदेश दिया करते थे। पिता के बिना सब कुछ सूना-सूना लगता है। उनकी कमी पूरी नहीं की जा सकती। अभिग्ना कहती हैं कि साइंटिस्ट बनना चाहती हैं और उन्हें उम्मीद है उनका यह सपना ज़रूर पूरा होगा। भाई अनिरुद्ध तो चार साल का है। वह मासूम है। माँ की गोद से उसने पिता को सेल्यूट किया, तो वह अपने आँसू नहीं रोक सकीं। अभिग्ना कहती हैं कि मेरे पिता देश रक्षा के लिए शहीद हुए हैं। उनकी शहादत पर पूरे देश को गर्व है और मुझे भी; क्योंकि मेरे पिता असली हीरो हैं।

क्या भारत के खिलाफ एकजुट हो रहे मुस्लिम देश?

अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी के बाद बँटवारे का दंश झेलते हुए छोटे-छोटे राज्यों, रियासतों को जोडक़र बनाया गया अखण्ड भारत आज पड़ोसी देशों के षड्यंत्रों और छिटपुट हमलों की ज़द में है। भारत इससे पहले भी अखण्ड ही था; जिसे चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे महान् शासकों ने खड़ा किया था। क्योंकि वह अनेक आक्रमणों और अंत:कलहों के चलते बार-बार टूटा भी। भारत के बारे में अक्सर कहा जाता रहा है कि भारत में वह सामथ्र्य है कि यह विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभर सकता है, बशर्ते यहाँ की राजनीति ईमानदार हो जाए और लोगों में एकता की भावना स्थापित हो जाए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि ये दोनों ही वस्तुस्थियाँ भारत के आंतरिक माहौल को बिगाड़े हुए हैं और यह देश आज भी विकासशील देशों में ही गिना जाता है।

पिछले छ:-सात साल में भारत में राजनीति पर धर्मवाद और सत्तावाद जिस तरह से हावी हुआ है, वह देश को और भी खोखला कर रहा है। बुद्धिजीवी और विपक्षी कई बार कह चुके हैं कि देश गृह युद्ध की तरफ बढ़ रहा है। हर आदमी सामने वाले को पहले धर्म और फिर जाति की नज़र से देखकर उसके बारे में सोचने-समझने और फैसला करने की कोशिश में लगा है। सोशल मीडिया ने इसे और बढ़ावा दिया है। आज स्थिति यह है कि ज़रा-सी सियासी हूल कहीं भी दंगे कराने में समर्थ है। यही विघटन भारत के मज़बूत होने में बड़ी बाधा है और इसका फायदा कुछ विदेशी ताकतें उठा रही हैं। आज के इस दौर में, जब भारत खुद महामारी के दौर से गुज़र रहा है; नेपाल का बार-बार भारत के क्षेत्रों को काटकर अपने नक्शे में दिखाना, चीन द्वारा भारत की गालवान घाटी पर कब्ज़ा करने की खबरें आना और 20 भारतीय सैनिकों का शहीद हो जाना कोई छोटी बात नहीं है। सरकार को ऐसे मामलों को गम्भीरता से लेना चाहिए। भारत की सीमा पर घुसपैठ की कोशिश करने वाला पाकिस्तान पहले से ही आये दिन जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ चलाकर परेशानी का सबब बना हुआ है। चिन्ता की बात यह है कि भारत का अभिन्न अंग रहे जम्मू-कश्मीर पर अपना अधिकार जताने वाले पाकिस्तान के पक्ष में भी कई देश अब आने लगे हैं।

जम्मू-कश्मीर को लेकर ओआईसी की बैठक चिन्तनीय

हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) ने जम्मू-कश्मीर को लेकर एक आपातकालीन बैठक आयोजित की। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर कॉन्टैक्ट ग्रुप के सदस्य देश अजरबैजान, नाइजर, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की शामिल हुए। यह बैठक वीडियो कॉन्फेंसिंग के ज़रिये की गयी; जिसमें जम्मू-कश्मीर को लेकर भारत के खिलाफ बयान जारी किया गया। भारत सरकार को इस बयान पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। क्योंकि इसमें चेतावनी झलकती है। ओआईसी के सेक्रेटरी जनरल यूसुफ अल ओथाईमीन ने बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि भारत द्वारा दशकों से कश्मीरियों को वैध अधिकारों से वंचित रखा गया है। मेरी अपील है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कश्मीरियों को उनके अधिकार दिलाने में तेज़ी लाए। इस्लामिक समिट की खास प्रतिबद्धताओं, विदेश मंत्रियों की परिषद् और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के शान्तिपूर्वक समाधान के लिए ओआईसी प्रतिबद्ध है। ओआईसी ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से भी अपील की कि संयुक्त राष्ट्र अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके भारत से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएनएससी) के प्रस्तावों का पालन करवाये। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र जम्मू-कश्मीर में शान्ति बनाये रखने के लिए भारत पर बातचीत में शामिल होने के लिए दबाव डाले।

बैठक के बाद ओआईसी ने एक ट्वीट भी किया, जिसमें लिखा है कि कॉन्टैक्ट ग्रुप ने जम्मू-कश्मीर के हाल के घटनाक्रमों को लेकर इस मामले में बयान जारी किया है। इसमें पाकिस्तान और भारत के बीच तनावपूर्ण हालातों को सामान्य करने को लेकर सदस्य देशों की कोशिशें रही हैं, जो कि सराहनीय हैं। दरअसल यह बैठक कॉन्टैक्ट ग्रुप की थी। बता दें कि स्पेशली जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को लेकर सन् 1994 में ओआईसी ने कॉन्टैक्ट ग्रुप स्थापित किया था। यह संगठन मुस्लिम देशों से सम्बन्धित मुद्दों में विशेष दिलचस्पी लेता है।

आज जब भारत नेपाल, चीन और पाकिस्तान के कई प्रकार के दबावों, उनकी बर्बरताओं का सामना कर रहा है; तब ऐसे में ओआईसी द्वारा कॉन्टैक्ट ग्रुप की बैठक बुलाकर इस तरह का बयान जारी करना एक गम्भीर मुद्दा है। वैसे अगर देखा जाए, तो पाकिस्तान की असली बौखलाहट की वजह मोदी सरकार द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करना है। क्योंकि इसके बाद पाकिस्तान की विशेष अपील पर कॉन्टैक्ट ग्रुप जम्मू-कश्मीर के मसले पर दो बार बैठक कर चुका है। दोनों ही बैठकों में कोशिश की गयी है कि जम्मू-कश्मीर को लोगों तक यह संदेश जाए कि ओआईसी को उनकी विशेष चिन्ता है।

पाकिस्तान का झूठ और नापाक कोशिश

बता दें कि जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान ओआईसी से लगातार माँग करता रहा है कि वह भारत के खिलाफ ठोस कदम उठाये। यह इसलिए भी, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, बाल्टिस्तान और गिलगित को लेकर अपना दावा जताना शुरू कर दिया है। इसका कारण यह है कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने इसे सुरक्षा के लिहाज़ से तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से समझौता करके भारत को सौंपा था, जिस पर पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर लिया था। हालाँकि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के प्रभुत्व वाले ओआईसी ने जम्मू-कश्मीर के मसले पर अभी तक बहुत दिलचस्पी नहीं ली थी; लेकिन अचानक उसकी इस मामले में बढ़ी सक्रियता और आपातकालीन बैठक को पाकिस्तान की वैश्विक मंचों से जम्मू-कश्मीर मुद्दे को उठाने की कोशिश के तौर पर देखा जा सकता है। बता दें कि इससे पहले सऊदी अरब और यूएई इस्लामिक देशों में जम्मू-कश्मीर मामले में भारत के लिए रक्षा कवच की तरह काम करते रहे हैं।

अगर पाकिस्तान की बात करें, तो न तो जम्मू-कश्मीर को लेकर उसकी नीयत साफ है और न ही वह इस क्षेत्र को कभी शान्त रहने देना चाहता है। यही कारण है कि वर्षों से यहाँ आतंकी गतिविधियाँ कायम हैं और आये दिन आतंकी आम लोगों की हत्या करते रहते हैं। इन्हीं आतंकियों से मुठभेड़ में हमारे अनेक भारतीय सैनिक अब तक शहीद हो चुके हैं। इन आतंकवादियों को पाकिस्तानी सेना का भरपूर सहयोग मिलता रहा है। सीमा पर आतंक मचाने का दुस्साहस केवल आतंकवादी ही नहीं करते, बल्कि पाकिस्तानी सेना भी सीज़फायर का उल्लंघन करती रही है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान भारत के हिस्से वाले जम्मू-कश्मीर में ही आतंकी गतिविधियों को अंजाम देता आ रहा है, बल्कि उसकी यह हरकत उसके कब्ज़े वाले कश्मीर में भी जारी है; जहाँ पर आतंकी गतिविधियाँ तेज़ी से जारी रहती हैं और आतंकियों को ट्रेनिंग भी दी जाती है। भारत इसी का हमेशा विरोध करता रहा है और सीमा पर शान्ति चाहता है। हैरत की बात यह है कि पाकिस्तान भारत में ही घुसपैठ करके और सीमा पर गोलीबारी करके संयुक्त राष्ट्र में भारत के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराता रहा है। उसने संयुक्त राष्ट्र में यहाँ तक कहा है कि भारत उसकी सीमा में घुसकर आतंकी गतिविधियाँ चलाता है और आये दिन सीमा पर गोलीबारी करता रहता है। जब यह बात सभी देश अच्छी तरह से जानते हैं कि पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों के लिए विश्व भर में जाना जाने लगा है। कितनी हैरत की बात है कि इतने पर भी कई देश पाकिस्तान के पक्ष में एकजुट होने लगे हैं; जिनमें अधिकतर इस्लामिक देश हैं। दरअसल पाकिस्तान काफी समय से जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर इस्लामिक देशों का समर्थन जुटाने की कोशिश करता रहा है, जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहा है।

चीन द्वारा भारतीय भूमि में घुसपैठ की खबरों और नेपाल द्वारा भारत की ज़मीन को अपना बताने के बाद पाकिस्तान का मनोबल और बढ़ा है।

भारत से डरते भी हैं चीन और पाकिस्तान

भारत की सैन्य शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय पहुँच के बारे में सभी पड़ोसी देश अच्छी तरह जानते हैं। नेपाल जैसे छोटे देश की आज अगर हिम्मत इतनी बढ़ी हुई है, तो इसके पीछे की बहुत-सी वजहें हैं। लेकिन अगर चीन और पाकिस्तान की बात करें, तो दोनों को ही भारत की सामरिक ताकत का अंदाज़ा है और दोनों ही देश भारत पर हमला करने की नहीं सोच सकते। क्योंकि अगर वो ऐसा करते हैं, तो विश्व युद्ध होने की प्रबल सम्भावनाएँ पैदा हो जाएँगी। वैसे इस समय भारत जिस संयम से काम ले रहा है, वह ज़रूरी है। क्योंकि अगर भारत चीन या पाकिस्तान पर हमला करता है, तो भी विश्वयुद्ध की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। हालाँकि चीन भी भारत पर जल्दी हमला नहीं करेगा; क्योंकि वह यह भी जानता है कि कोरोना वायरस फैलने के बाद से अनेक देश उसके खिलाफ हुए हैं और अगर वह भारत पर हमला करता है, तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

डीज़ल पहली बार पेट्रोल के पार

हाल ही में एक ओर जहाँ कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में सबसे निचले स्तर पर रहे हैं, वहीं अपने देश में डीजल-पेट्रोल की कीमतें नयी ऊँचाइयाँ छू रही हैं। डीजल के दाम तो अब तक के सबसे शिखर पर पहुँच चुके हैं। इतना ही नहीं 24 जून को दिल्ली में पहली बार डीजल के दाम पेट्रोल से ज़्यादा हो गये।

दिल्ली में 23 जून को पेट्रोल के दाम 79.76 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम 79.40 रुपये प्रति लीटर हो गये। मुम्बई में पेट्रोल जहाँ 86.54 रुपये प्रति लीटर तो डीजल 77.76 रुपये प्रति लीटर बिका। इससे पहले अक्टूबर 2018 में पेट्रोल-डीजल के दाम शिखर पर पहुँचे थे, उस समय कच्चे तेल की कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास थी; लेकिन वर्तमान में यह 35-40 डॉलर के आसपास ही है।

तेल विपणन कम्पनियों ने लॉकडाउन के 82 दिनों के दौरान तेल की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं किया। इस दौरान हुए नुकसान की भरपाई के लिए 7 जून से दैनिक ईंधन की कीमतों में वृद्धि जारी की, जो लम्बे समय से थमने का नाम नहीं ले रही है। हालाँकि इसके पीछे केंद्र सरकार द्वारा बढ़ाया गया उत्पाद शुल्क भी एक मुख्य कारण है। लॉकडाउन के दौरान ही पिछले महीने मोदी सरकार ने प्रति लीटर पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क में क्रमश: 10 रुपये और 13 रुपये की एक साथ बड़ी वृद्धि कर दी थी। थोड़ा संदेह है कि इससे खुदरा में पेट्रोल और डीजल की दरों में बढ़ोतरी हुई। बढ़ी हुई एक्साइज ड्यूटी में से 8 रुपये सडक़ और इंफ्रास्ट्रक्चर सेस के रूप में लिए जाने का तर्क रखा गया है, बाकी विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क के लिए कहा गया है।

पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी से उत्साहित विपक्षी कांग्रेस ने माँग की है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को जीएसटी के तहत लाया जाना चाहिए। इसमें कहा गया और रसोई गैस की कीमतों में अगस्त, 2004 के स्तर तक कम किये जाने चाहिए। कांग्रेस की ओर से कहा गया कि यह याद दिलाना महत्त्वपूर्ण है कि जब 2004 में कच्चे तेल की कीमतें करीब 40 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी और आज के हिसाब से तेल की कीमतों में इतना बड़ा अन्तर आम उपभोक्ता क्यों झेलें?

अगस्त, 2004 में पेट्रोल 36.81 रुपये प्रति लीटर, डीजल 24.16 और एलपीजी दिल्ली में 261.60 रुपये प्रति सिलेंडर था। लेकिन वर्तमान में पेट्रोल 79.76 रुपये प्रति लीटर, डीजल 79.46 रुपये प्रति लीटर और एलपीजी 593 रुपये प्रति सिलेंडर बेचा जा रहा है। विपक्ष की ओर से यह भी माँग की गयी है कि सरकार को तुरन्त पेट्रोल पर 23.78 रुपये और डीजल पर 28.37 रुपये की उत्पाद शुल्क वृद्धि को रोलबैक किया जाना चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने एक बयान में कहा कि मई, 2014 में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 9.20 रुपये प्रति लीटर था और डीजल पर यह 3.46 रुपये प्रति लीटर था। लेकिन जबसे वर्तमान सरकार ने सत्ता सँभाली है, यानी पिछले छ: वर्षों में पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क लगातार बढ़ा है। इस समय पेट्रोल पर 23.78 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 28.37 रुपये उत्पाद शुल्क बढ़ाया गया है। यानी पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 258 फीसदी और डीजल पर उत्पाद शुल्क में 820 फीसदी बढ़ोतरी की जा चुकी है।

वित्तीय वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2019-20 के बीच, सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 12 बार टैक्स लगाया है और इस तरह से उसने पिछले छ: साल में 17,80,056 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमायी की है। एक ओर जहाँ लोग तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संवेदनहीन सरकार लगातार कर (टैक्स) बढ़ाती जाती है और उपभोक्ताओं पर बोझ डालती जा रही है; जिसका उसे अधिकार नहीं है। यदि सरकार अपने कार्यकाल के दौरान बढ़े हुए उत्पाद शुल्क को वापस लेती है, तो पेट्रोल और डीजल दोनों की कीमतें तत्काल प्रभाव से 50 रुपये प्रति लीटर तक नीचे आ सकती हैं।

यह उल्लेखनीय है कि 26 मई, 2014 को वर्तमान सरकार ने सत्ता सँभाली, तब भारतीय तेल विपणन कम्पनियों को कच्चे तेल की कीमतों के 108 डॉलर यानी 6330 रुपये प्रति बैरल चुकाने पड़ रहे थे। यानी उस समय प्रति लीटर लागत करीब 39.81 रुपये पड़ रही थी। लेकिन वर्तमान में 12 जून, 2020 को भारतीय तेल विपणन कम्पनियाँ कच्चे तेल की कीमतें 40 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल यानी 3038.64 रुपये प्रति बैरल में ले रही हैं (एक बैरल में 159 लीटर होता है), जिसकी आज के हिसाब से लागत देखें तो यह प्रति लीटर 19.11 रुपये पड़ता है। यानी खरीद के मूल्य के हिसाब से देखें तो पेट्रोल, डीजल और एलपीजी के दामों में काफी कमी की जा सकती है।

कांग्रेस पार्टी ने माँग की है कि घटे हुए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमतों का लाभ उपभोक्ताओं को दिया जाना चाहिए और पेट्रोल-डीजल-एलपीजी गैस की दरों को अगस्त, 2004 के स्तर तक कम किया जाना चाहिए। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि कम्पनियों ने लॉकडाउन के दौरान ईंधन की कीमतों में वृद्धि नहीं की; लेकिन जैसे ही लॉकडाउन में रियायत मिली तो तेल की माँग में वृद्धि हुई। इसके बाद तेल विपणन कम्पनियों ने उपभोक्ताओं पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि की वसूली का जो फॉर्मूला निकाला, तो वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि ईंधन की कीमतें बढऩे से मुद्रास्फीति में वृद्धि होती है; क्योंकि परिवहन लागत बढ़ती है। इसका मतलब यह होगा कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतें इसी तरह बढ़ेंगी, जिससे महँगाई बढ़ेगी। जैसा कि यह ऐसे समय में हो रहा है, जब तरलता की कमी है और लोग अपने आय के साधन खो रहे हैं। इससे लोगों को आने वाले समय में कहीं ज़्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। नौकरियों का छूट जाना, वेतन में कटौती ने पहले से ही कामगारों की कमर तोड़ दी है; जबकि व्यवसायों को अभी तक फिर से ट्रैक पर लाया जाना बाकी है। ईंधन की कीमतें बढऩे से लोगों की जेबें खाली करने से अर्थ-व्यवस्था का गणित गड़बड़ा सकता है।

ईंधन के खुदरा मूल्य का लगभग 70 फीसदी करों में शामिल है। इसे इस तरह समझ सकते हैं, चार्ट देखें :-

प्रति लीटर पेट्रोल

आधार मूल्य       17.96 रुपये

माल ढुलाई         0.32 रुपये

उत्पाद शुल्क      32.98 रुपये

डीलर कमीशन   3.56 रुपये

वैट        16.44 रुपये

कर व अन्य शुल्क            70 फीसदी

डीजल प्रति लीटर

आधार मूल्य       18.49 रुपये

माल ढुलाई         0.29 रुपये

उत्पाद शुल्क      31.83 रुपये

डीलर कमीशन   2.52 रुपये

वैट        16.22 रुपये

कर व अन्य शुल्क            70 फीसदी

विडम्बना यह है कि जब कच्चे तेल की कीमतें वैश्विक स्तर पर बढ़ती हैं, तो जो भार पड़ता है वह उपभोक्ताओं पर डाल दिया जाता है। लेकिन जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीमतें कम होती हैं, तो कर और अन्य शुल्क लगाकर वसूली की जाती है। ऐसा लगता है सरकार या तेल विपणन कम्पनियों का एकमात्र काम मुनाफा कमाना हो गया है।

आयात पर निर्भरता

भारत में ईंधन की उच्च कीमतों का एक और प्रमुख कारण आयात पर निर्भरता भी है। सरकार 2022 तक तेल आयात निर्भरता में 67 फीसदी की कटौती करने का लक्ष्य बना रही है; लेकिन समय बीतने के साथ इसके मुख्य क्षेत्रों और प्रमुख खोज की कमी के कारण स्थानीय उत्पादन साल-दर-साल गिर रहा है।

कम घरेलू उत्पादन

पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय के अनुसार, मार्च, 2020 के दौरान कच्चे तेल का उत्पादन मार्च, 2019 के मुकाबले तुलना में घटकर 13.97 फीसदी रहा, जो लक्ष्य से 5.50 फीसदी कम है। अप्रैल-मार्च 2019-20 के दौरान कच्चे तेल का उत्पादन 32169.27 टीएमटी था; जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान उत्पादन से 8.20 फीसदी कम रहा और लक्ष्य से और 5.95

कच्चे तेल का उत्पादन (टीएमटी में)

तेल कम्पनी        लक्ष्य     मार्च (महीना)      अप्रैल-मार्च (संचित)

            २०१९-२० (अप्रैल-मार्च)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)

                        लक्ष्य     उत्पादन*           उत्पादन             लक्ष्य     उत्पादन*            उत्पादन

ओएनजीसी        २२१५३.९०          २०८१.४५           १७७८.११           १७६८.१७            १००.५६ २२१५३.९०          २०६२६.९५         २१०४२.११          ९८.०३

तेल       ३४२४.९०           २९४.२३ २५४.०७ २७८.१० ९१.३६   ३४२४.९०           ३१०६.६१            ३२९३.१३            ९४.३४

पीएससी फ्यूल्ड   ९४६३.३४           ७५९.८५ ६६५.२५            ८०८.०४ ८२.३३   ९४६३.३४            ८४३५.७१           ९८६८.०२           ८५.४९

कुल      ३५०४२.१५         ३१३५.५३           २६९७.४२          २८५४.३२           ९४.५०            ३५०४२.१५         ३२१६९.२७         ३४२०३.२७         ९४.०५

ध्यानार्थ :- उपरोक्त आँकड़ों में मामूली अन्तर सम्भव है; यह अनुमानित हैं।

फीसदी कम।

मार्च, 2020 के दौरान ओएनजीसी ने 1778.11 टीएमटी कच्चे तेल के उत्पादन किया जो मार्च, 2019 की तुलना में 0.56 फीसदी अधिक था, लेकिन यह अपने तय लक्ष्य से 14.57 फीसदी कम था।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान ओएनजीसी द्वारा संचयी कच्चे तेल का उत्पादन 20626.95 टीएमटी था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पाद के लिए लक्ष्य की तुलना में 6.89 फीसदी अधिक था; साथ ही लक्ष्य से 1.97 फीसदी कम रहा है।

उत्पादन में कमी के कारण

एमओपीयू की अनुपलब्धता के कारण डब्ल्यूओ-16 क्लस्टर से उत्पादन की गैर वसूली।

पानी की कटौती बढऩे के कारण बी-127 क्लस्टर से कम उत्पादन।

ईएसपी एनबीपी और रत्ना क्षेत्रों के कुओं को जारी किया जाना।

मुम्बई उच्च, हीरा, नीलम और बी173 (ए) क्षेत्रों के कुछ कुओं में पानी की कटौती में वृद्धि।

कोविड-19 लॉकडाउन के कारण तटवर्ती क्षेत्रों में क्षेत्र के संचालन के लिए आन्दोलनों के प्रतिबन्ध के कारण कम तेल उत्पादन। मार्च, 2020 के दौरान कच्चे तेल का उत्पादन मासिक लक्ष्य से 13.65 फीसदी कम और मार्च, 2019 की तुलना में 8.64 फीसदी कम रहा।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान संचयी कच्चे तेल का उत्पादन 3106.61 टीएमटी रहा, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन 9.29 फीसदी रहा; पर लक्ष्य 5.66 फीसदी कम रहा।

उत्पादन में कमी के कारण

कुओं में पानी की कटौती और तालाबन्दी के दौरान कुओं के बन्द होने के परिणामस्वरूप कुओं के कुल तरल उत्पादन में गिरावट।

कोविड-19 के कारण वर्कओवर और ड्रिलिंग के संचालन की प्रगति पर प्रभाव पड़ा है, इससे वर्कओवर और ड्रिलिंग कुओं से नियोजित योगदान की तुलना में पुराने कुओं पर निर्भरता बढ़ी है।

मार्च, 2020 तक कच्चे तेल का उत्पादन 665.25 टीएमटी था, जो मासिक लक्ष्य से 12.45 फीसदी कम है और इसके मासिक लक्ष्य के हिसाब से देखें, तो 2019 में 17.67 फीसदी कम रहा। अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान प्राइवेट व ज्वाइंट वेंचर्स के ज़रिये कच्चे तेल का उत्पादन 8435.71 टीएमटी था, जो 10.86 फीसदी ज़्यादा था, मगर लक्ष्य से 14.51 फीसदी कम रहा।

उत्पादन में कमी के कारण

वर्कओवर और ड्रिलिंग कुओं से नियोजित योगदान से कम। ईएसपी और संचालन के मुद्दे आदि मंगला, भाग्यम ऐश्वर्य, एबीएच और सैटेलाइट क्षेत्रों में।

पानी भर जाने और रेत के कारण 5 तेल कुओं में उत्पादन कम हो गया। (सीईआईएल)

कुओं (ओएनजीसी) की अंडरपरफॉर्मेंस

प्राकृतिक गैस

मार्च, 2020 के दौरान प्राकृतिक गैस का उत्पादन 2411.16 एमएमएससीएम था, जो मासिक लक्ष्य से 21.89 फीसदी कम और मार्च, 2019 की तुलना में 14.38 फीसदी कम है।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान संचयी प्राकृतिक गैस उत्पादन पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान उत्पादन के लिए लक्ष्य की तुलना में 31179.96 एमएमएससीएम है, जो 9.76 अधिक थी; साथ ही लक्ष्य का 5.15 फीसदी कम रही।

प्राकृतिक गैस उत्पादन (एमएमएससीएम)

तेल कम्पनी        लक्ष्य     मार्च (महीना)      अप्रैल-मार्च (संचित)

            २०१९-२० (अप्रैल-मार्च)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)

                        लक्ष्य     उत्पादन*           उत्पादन             लक्ष्य     उत्पादन*            उत्पादन

ओएनजीसी        २५८४८.००         २३५९.२०           १९०५.५२           २१३४.८९            ८९.२६   २५८४८.००         २३७४६.१९         २४६७४.६५        ९६.२४

तेल       ३३०९.५९           २७१.६४ २११.६२  २३५.१२ ९०.००    ३३०९.५९           २६६८.२५            २७२१.९१            ९८.०३

पीएससी फ्यूल्ड   ५३९५.२०           ४५६.०८ २९४.०३ ४४५.९५ ६५.९३   ५३९५.२०            ४७६५.५१          ५४७६.८२          ८७.०१

कुल      ३४५५२.७९        ३०८६.९३           २४११.१६            २८१५.९६           ८५.६२            ३४५५२.७९        ३११७९.९६         ३२८७३.३७        ९४.८५

ध्यानार्थ :- उपरोक्त आँकड़ों में मामूली अन्तर सम्भव है; यह अनुमानित हैं।

 मार्च, 2020 के दौरान ओएनजीसी द्वारा प्राकृतिक गैस का उत्पादन 1905.52 एमएमएससीएम था, जो कि लक्ष्य से 19.23 फीसदी कम है और मार्च 2019 की तुलना में 10.74 फीसदी कम दर्ज किया गया।

ओएनजीसी द्वारा मार्च, 2019-20 के दौरान संचयी प्राकृतिक गैस का उत्पादन 23746.19 एमएमएससीएम रहा, जो 8.13 फीसदी ज़्यादा रहा; जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए लक्ष्य से 3.76 फीसदी कम रहा।

उत्पादन में कमी के कारण

मार्च -20 में गेल और जीएसपीसी द्वारा कम उठाव वजह रही, जो कि कोविड-19 लॉकडाउन स्थितियों के कारण गैस कुएँ बन्द रहे।

रेत व पानी के स्तर में वृद्धि के कारण ईओएस के कुओं में वशिष्ठ/एस1 के चलते कम गैस का उत्पादन हुआ।

डब्ल्यूओ 16 क्लस्टर से नियोजित गैस उत्पादन न हो पाना।

बेसिन क्षेत्र, दमन ताप्ती ब्लॉक और सीमांत क्षेत्रों से नियोजित गैस उत्पादन में कमी।

ओटीपीसी, त्रिपुरा द्वारा गैस की उठायी कम हुई, इसलिए उत्पादन कम किया गया

कावेरी और राजमुंदरी सम्पत्तियों में गैस उपभोक्ताओं ने इसका कम उपभोग किया, जिसके चलते उत्पादन प्रभावित हुआ साथ ही जोधपुर एसेट में भी गैस नहीं ले जायी गयी।

मार्च, 2020 के दौरान ऑयल द्वारा प्राकृतिक गैस का उत्पादन 211.62 एमएमएससीएम था, जो मासिक लक्ष्य से 22.10 फीसदी कम और मार्च, 2019 से 10 फीसदी कम है।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान ऑयल द्वारा संचयी प्राकृतिक गैस उत्पादन 2668.25 एमएमएससीएम है; जो 19.38 फीसदी अधिक है और पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए लक्ष्य की तुलना में यह 1.97 फीसदी कम है।

उत्पादन में कमी के कारण

विरोध और बन्द के दौरान गैस कुओं के उत्पादन क्षमता में गिरावट।

कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के दौरान कम बाज़ार की माँग (टी सेक्टर) के कारण नियंत्रित उत्पादन।

ब्रह्मपुत्र घाटी उर्वरक निगम लिमिटेड, बीवीएफसीएल के नामरूप-द्वितीय के पौधों को यूरिया रिएक्टर ट्यूब रिसाव के कारण सिंथेसिस गैस सेक्शन और नामरूप-द्वितीय संयंत्रों में समस्या के कारण बन्द हो गया।

बिजली उत्पादन इकाई की खराबी के कारण एनआरएल द्वारा कम उत्पादन।

एनटीपीएस : उनके मौज़ूदा गैस टर्बाइन के विभिन्न रखरखाव मुद्दों के कारण। इनके अलावा कंप्रेसर वाल्व की समस्या के कारण नामरूप रिप्लेसमेंट पॉवर प्रोजेक्ट (एनआरपीपी) बन्द है।

निजी क्षेत्र द्वारा प्राकृतिक गैस का उत्पादन और मार्च, 2020 तक जुडऩे वाला उपक्रम 294.03 एमएमएससीएम था; जो मार्च, 2019 से 35.53 फीसदी लोथर्न मासिक लक्ष्य और 34.07 फीसदी कम है। अप्रैल-मार्च, 2019 तक प्राइवेट व संयुक्त उपक्रम द्वारा संचयी प्राकृतिक गैस उत्पादन 4765.51 एमएमएससीएम था। पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए लक्ष्य की तुलना में 11.67 फीसदी और 12.99 फीसदी कम रहा।

उत्पादन में कमी के कारण

उपभोक्ताओं द्वारा कम लाभ और कुछ कुओं में ही कामकाज। (एफईएल)

ओसारे के कुओं में गैस ब्रेकआउट की प्रतीक्षा की जा रही है।

रानीगंज पूर्व : उपभोक्ताओं से मिलने वाले मुनाफे में कमी (एस्सार)

उपभोक्ताओं द्वारा कम लाभ। (एचओईसी)

रिफाइनरी उत्पादन

तेल कम्पनी        लक्ष्य     मार्च (महीना)      अप्रैल-मार्च (संचित)

            २०१९-२० (अप्रैल-मार्च)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)     २०१९-२०           २०१८-१९           पिछले साल से तुलना (त्नमें)

                        लक्ष्य     उत्पादन*           उत्पादन             लक्ष्य     उत्पादन*            उत्पादन

सीपीएसई          १४७९४४.८१       १३६६४.९३         १२२६१.५७         १२७५३.९५            ९६.१४   १४७९४४.६९      १४४७१५.८०       १५०९७५.६६      ९५.८५

आईओसीएल     ७१९००.२५         ६७०३.६७          ५७३६.१३           ५६५९.६९            १०१.३५  ७१९००.२५         ६९४१९.३६         ७१८१५.८६         ९६.६६

बीपीसीएल         ३०९००.००          २६९५.००           २७०६.५२           २७९३.०५            ९६.९०   ३०८९९.९९         ३१५३२.११          ३०८२३.४४         १०२.३०

एचपीसीएल        १६४९९.००         १५९८.००            १५१४.७७           १६२७.३०            ९३.०९   १६४९९.००         १७१८०.२१          १८४४४.०७         ९३.१५

सीपीसीएल         १०४००.००          ९३०.००  ८५३.१९ १००३.८८            ८४.९९   १०४००.००            १०१६०.६४         १०६९४.७०         ९५.०१

एनआरएल         २७९९.८०           २५९.१०  २४७.६५            २४६.१० १००.६३  २७९९.८०            २३८३.३४           २९००.३९            ८२.१७

एमआरपीएल      १५४००.००          १४७५.००           ११९६.६८           १४१६.०१            ८४.५१   १५४००.००          १३९५३.११          १६२३१.०५          ८५.९७

ओएनजीसी        ४५.७६  ४.१६     ६.६३     ७.९३     ८३.६६  ४५.७६  ८६.९३   ६६.१६            १३१.४०

जेवीएस १८७५५.००         १५८८.००           १६९८.०७           १७९७.५६          ९४.४७            १८७५५.००         २०१५४.९७         १८१८८.६९         ११०.८१

बीओआरएल      ७८००.००           ६६०.०० ७३३.२१ ७०२.७८ १०४.३३  ७८००.००            ७९१२.९१            ५७१५.८८           १३८.४४

एचएमईएल        १०९५५.००          ९२८.०० ९६४.८६            १०९४.७८           ८८.१३            १०९५५.००          १२२४२.०६         १२४७२.८०         ९८.१५

निजी     ८८०४०.५२         ७९४३.९३           ७२४३.९५           ७९४३.९३           ९१.१९            ८८०४०.५२         ८९५१५.१६         ८८०४०.५२         १०१.६७

आरआईएल       ६९१४५.००         ६१५३.९१           ५५२४.९४           ६१५३.९१            ८९.७८   ६९१४५.००         ६८८९४.९९        ६९१४५.००         ९९.६४

ईओएल १८८९५.५२         १७९०.०१            १७१९.०१            १७९०.०१            ९६.०३            १८८९५.५२         २०६२०.१८         १८८९५.५२         १०९.१३

कुल      २५४७४०.३२       २३१९६.८५         २१२०३.५८         २२४९५.४३         ९४.२६            २५४७४०.३२       २५४३८५.८२      २५७२०४.८६      ९८.९०

ध्यानार्थ :- उपरोक्त आँकड़ों में मामूली अन्तर सम्भव है; यह अनुमानित हैं।

मार्च, 2020 के दौरान रिफाइनरी का उत्पादन 21203.58 टीएमटी था, जो मार्च, 2019 की तुलना में महीने के लिए लक्ष्य की तुलना में 8.59 फीसदी कम है और मार्च, 2019 की तुलना में 5.74 फीसदी कम। अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान संचयी उत्पादन, 254385.82 टीएमटी है; जो कि 0.14 फीसदी है। पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए लक्ष्य की तुलना में यह 1.1 फीसदी कम है।

मार्च, 2020 के दौरान सीपीएसई रिफाइनरियों का उत्पादन 12261.57 टीएमटी था, जो मार्च, 2019 की तुलना में महीने के लिए लक्ष्य से 3.26 फीसदी कम और 3.86 फीसदी कम है।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान सीपीएसई रिफाइनरियों द्वारा संचयी उत्पादन 144715.69 टीएमटी था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए लक्ष्य से क्रमश: 2.18 फीसदी और 4.15 फीसदी कम है।

रिफाइनरी उत्पादन की कमी के कारण

आईओसीएल, गुवाहाटी और बोंगईगांव : नियोजित बन्द के कारण कमी।

आईओसीएल, बरौनी, हल्दिया, मथुरा, पानीपत, पारादीप और झरिया माँग के अनुरूप कमी रही।

सीपीसीएल, मनाली : कोविड-19 लॉकडाउन के कारण उत्पाद नियंत्रण मुद्दों के कारण क्रूड लक्ष्य से कम रहा।

एनआरएल, नुमालीगढ़ : प्रोसेसिंग क्रूड की उपलब्धता के अनुसार है।

मार्च, 2020 के दौरान जेवी रिफाइनरियों में उत्पादन 1698.07 टीएमटी था, जो महीने के लक्ष्य से 6.93 फीसदी अधिक है। लेकिन मार्च, 2019 की तुलना में 5.53 फीसदी कम है।

अप्रैल-मार्च, 2019-20 के दौरान सीपीएसई रिफाइनरियों द्वारा संचयी उत्पादन 20154.97 टीएमटी था, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान अवधि और उत्पादन के लिए क्रमश: लक्ष्य से 7.46 फीसदी और 10.81 फीसदी अधिक है। मार्च, 2020 के दौरान निजी रिफाइनरियों में उत्पादन 7243.95 टीएमटी था, जो कि लक्ष्य की तुलना में पिछले वर्ष इसी अवधिके दौरान के हिसाब से 8.81 फीसदी कम है।

बढ़ गयी तेल आयात निर्भरता

घरेलू उत्पादन शेष रहने से भारत की तेल आयात निर्भरता 2017-18 में 82.9 फीसदी से बढक़र 2019-20 में 83.7 फीसदी हो गयी है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा प्रकाशित वल्र्ड एनर्जी आउटलुक 2019 से यह कहीं ज़्यादा चेताने वाला लगता है, जिससे पता चलता है कि कुल प्राथमिक ऊर्जा में भारत की तेल माँग 2018 में 233 मीट्रिक टन से बढक़र 2025 में 305 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।

वैश्विक बाज़ार में अभूतपूर्व माँग संकट के कारण कच्चे तेल की कम कीमतों का लाभ उठाने के लिए भारत अब भविष्य के लिए कच्चे तेल का भण्डार कर रहा है और अपनी पूरी क्षमता व पहली खेप में रणनीतिक पेट्रोलियम भण्डार (एसपीआर) भरने का फैसला किया है। इंडियन ऑयल के माध्यम से एक मिलियन बैरल कच्चे तेल की खरीद की गयी है।  यह सुझाव दिया जाता है कि आयात में कमी की रणनीति में तेल और गैस का घरेलू उत्पादन बढ़ाना, ऊर्जा दक्षता और उत्पादकता में सुधार करना, माँग प्रतिस्थापन पर ज़ोर देना; जैव ईंधन और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना शामिल है।