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सच पर खरा उतरा, तहलका का स्टिंग ऑपरेशन, खोजी पत्रकारिता एक बार फिर उच्चतम शिखर पर

संदिध रक्षा सौदे हमेशा ही राजनीतिक तूफान खड़ा करते रहे हैं। हालाँकि यह तहलका का स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड था; जिसने जनवरी, 2001 में घिनौने रक्षा सौदों का पर्दाफाश किया और पूरे देश को हिलाकर रख दिया। तहलका के इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन के करीब 20 साल बाद समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली और दो अन्य अभियुक्तों को सीबीआई की अदालत ने दोषी ठहराया है। यहाँ आपको इस स्टिंग ऑपरेशन के बारे में बताते हैं कि यह मामला था क्या?

इस मामले की शुरुआत रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए 2000-2001 में समाचार वेबसाइट तहलका के स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड से होती है। इस भ्रष्टाचार को स्टिंग के ज़रिये मार्च, 2001 के मध्य में जनता के सामने लाया गया।

अब 21 जुलाई, 2020 को तहलका के इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन से उजागर हुए रक्षा सौदे से जुड़े लगभग 20 साल पुराने भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई की विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली, उनके पूर्व पार्टी सहयोगी गोपाल पचेरवाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस.पी. मुरगई को भ्रष्टाचार और आपराधिक साज़िश का दोषी करार दिया है। इन दोषियों को अब कितनी सज़ा होगी? इस मामले पर अदालत सुनवाई करेगी।

जया जेटली पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री, जॉर्ज फर्नांडीस की करीबी सहयोगी थीं और तहलका के रहस्योद्घाटन के बाद उन्हें समता पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तहलका का ऑपरेशन वेस्ट एंड तब सार्वजनिक चर्चा में आया था, जब इसकी सीडी सार्वजनिक की गयी थी। रक्षा मंत्रालय और रक्षा अधिकारियों के शीर्ष अधिकारियों को लंदन स्थित एक काल्पनिक फर्म ‘वेस्ट एंड इंटरनेशनल’ के प्रतिनिधियों के रूप में पेश किये गये फर्म प्रतिनिधियों (वास्तव में तहलका के पत्रकार) से उपहार और नकदी स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। रक्षा फर्म के प्रतिनिधियों के रूप में इन पत्रकारों ने कुछ उत्पादों के लिए सेना से रक्षा ऑर्डर लेने के लिए यह सब किया था।

सीबीआई के आरोप-पत्र के अनुसार, जया जेटली ने 2000-01 में मुरगई, सुरेखा और पचेरवाल के साथ एक आपराधिक षड्यंत्र रचा। और खुद के या किसी अन्य व्यक्ति के लिए मैथ्यू सैमुअल से दो लाख रुपये प्राप्त किये। सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जुलाई के अपने फैसले में कहा कि जया जेटली ने पत्रकार मैथ्यू सैमुअल से दो लाख रुपये स्वीकार किये, जो काल्पनिक कम्पनी वेस्ट एंड इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में तैनात थे। मुरगई को अपने हिस्से के 20 हज़ार रुपये मिले।

अदालत ने कहा कि उन्होंने (जया जेटली ने) ऐसा अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए रक्षा मंत्रालय से उपकरण की आपूर्ति उपरोक्त फर्म को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया। जेटली, पचेरवाल और मुरगई को भ्रष्टाचार निरोधक (पीसी) अधिनियम की धारा-9 के तहत साज़िश (धारा-120 ‘बी’ आईपीसी) के अपराध (लोक सेवक के साथ व्यक्तिगत प्रभाव के लिए व्यक्तिगत प्रभाव के लिए) का दोषी ठहराया गया। यह आरोप लगाया जाता है कि इस सम्बन्ध में मुरगई को उनकी सेवा के लिए कई भुगतान किये गये थे और मामले में उनकी सहायता के लिए सुरेखा को एक लाख रुपये का भुगतान किया गया था।

सीबीआई की विशेष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के सुबूतों से यह बिना किसी संदेह के साबित होता है कि 25 दिसंबर, 2000 को होटल के कमरे में हुई बैठक में सुरेखा और मुरगई ने सैमुअल को उनके उत्पाद खरीदने को रक्षा मंत्रालय से मूल्यांकन पत्र हासिल करने में उनकी सहायता का आश्वासन दिया था। अदालत ने कहा कि यह साबित होता है कि वे उनके और जया जेटली, जो उन्हें राजनीतिक कवर देंगी; के बीच इस मामले में एक बैठक सुनिश्चित करवाएँगे। सीबीआई की विशेष अदालत के आदेश में आगे कहा गया है कि इस प्रकार उनके बीच अवैध तरीके से यानी सम्बन्धित अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत प्रभाव का सहारा लेकर सम्बन्धित उत्पाद के लिए मूल्यांकन पत्र प्राप्त करने के लिए एक समझौता हुआ था।

इस तरह का समझौता स्पष्ट रूप से साज़िश को साबित करता है।

तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के आधिकारिक आवास में हुई उस बैठक में सैमुअल को एक व्यवसायी के रूप में जेटली से मिलवाया गया था; जिनकी कम्पनी रक्षा खरीद के बाज़ार में प्रवेश करना चाहती है।

न्यायाधीश ने कहा कि सैमुअल ने जेटली को दो लाख रुपये की राशि की पेशकश की, जिसने उन्हें पचेरवाल को पैसे सौंपने का निर्देश दिया और तदनुसार आरोपी पचेरवाल ने यह पैसा लिया; यह जानते हुए भी कि यह रिश्वत का पैसा है। इसके बदले में जया जेटली ने सैमुअल को आश्वासन दिया कि यदि उनकी कम्पनी के उत्पाद पर विचार नहीं किया जाता है, तो वह इस सम्बन्ध में सम्बन्धित अधिकारी को संकेत भेजने के लिए साहिब (सम्भवत: रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस) से अनुरोध करके हस्तक्षेप करेगी।

अदालत ने पाया कि दोनों ही आरोपी- पचेरवाल और जेटली बाद में साज़िश में शामिल हो गये थे। उन्हें उद्देश्य की जानकारी थी और उन्हें सौंपे गये कार्य को पूर्ण करने के लिए वे सहमत हो गये थे। लिहाज़ा वे भी अपराध की साज़िश के दोषी हैं। अदालत ने कहा कि भारतीय सेना में सैमुअल की कम्पनी के उत्पाद को आगे बढ़ाने में सम्बन्धित मंत्रियों / अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव डालने हेतु दिये गये कार्य को पूरा करने पर सहमत होने के लिए सैमुअल से मिली दो लाख रुपये की राशि पचेरवाल के माध्यम से जेटली को मिली। अदालत ने यह भी कहा कि इसी प्रकार मुरगई ने 4 जनवरी, 2000 को सैमुअल से 20 हज़ार रुपये की राशि प्राप्त की, जो सम्बन्धित अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव से कम्पनी के उत्पाद के लिए जेटली के साथ एक बैठक आयोजित करने और कम्पनी के उत्पाद के मूल्यांकन के पत्र को सुरक्षित करने के बदले प्रदान की गयी थी। इसलिए दोनों ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 की धारा-9 के तहत अपराध किया है।

ऑपरेशन वेस्ट एंड

इसे साल 2000 में लॉच किया गया। तहलका ने तब देश भर में सनसनी मचा दी, जब उसने अपने पहले प्रमुख स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड का वीडियो फुटेज जारी किया। वीडियो में कई रक्षा अधिकारियों और राजनेताओं को नकद और उपहार स्वीकार करते और पाँच सितारा होटलों में मनोरंजन करते हुए दिखाया गया। तहलका ने काल्पनिक ब्रिटिश कम्पनी के प्रतिनिधियों के रूप में अपने दो पत्रकारों को फोर्थ जेनरेशन थर्मल हैंड हेल्ड कैमरा और  अन्य उपकरणों की बिक्री के लिए भेजा था। जैसे ही तहलका का अंडरकवर ऑपरेशन सार्वजनिक हुआ, इस घोटाले ने सरकार को तत्काल संकट में डाल दिया।

तहलका ने लंदन स्थित एक काल्पनिक हथियार निर्माता कम्पनी वेस्ट एंड इंटरनेशनल बनायी। तहलका के स्टिंग पत्रकारों ने ऑपरेशन की शुरुआत रक्षा मंत्रालय में वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी पी. साशी मेनन से सम्पर्क के साथ हुई। टीम ने ब्रिगेडियर अनिल सहगल के पास ले जाने के लिए उन्हें रिश्वत दी, जो उस समय आयुध और आपूर्ति महानिदेशालय (डीजीओ) में उप निदेशक थे। बैठक के बाद ब्रिगेडियर सहगल ने कथित रूप से दो लाख रुपये की माँग की, ताकि वह कम्पनी को भारतीय सेना को आपूर्ति करने में रुचि रखने वाले फोर्थ जेनरेशन थर्मल हैंड हेल्ड कैमरा और अन्य उपकरणों की खरीद से सम्बन्धित दस्तावेज़ दे सकें।

ब्रिगेडियर सहगल ने पत्रकारों के पास मौज़ूद जासूसी कैमरे पर कहा कि कम्पनी को तत्कालीन रक्षा मंत्री सहित सभी को भुगतान करना होगा। 23 दिसंबर, 2000 को तहलका टीम ने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के साथ अपनी पहली बैठक की और 13 मार्च, 2001 को तहलका ने स्टिंग ऑपरेशन की सीडी जारी कर दी। इसके जारी होते ही बंगारू लक्ष्मण को इस्तीफा देना पड़ा। यही नहीं, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस और उनकी समता पार्टी की अध्यक्ष जया जेटली ने भी इस्तीफा दे दिया।

उस स्टिंग वीडियो का एक प्रतिलेख यहाँ दे रहे हैं। स्टिंग की शुरुआत रक्षा मंत्रालय के तत्कालीन वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी पी. साशी मेनन के साथ बातचीत से होती है :-

तहलका : अब आपको इसका रास्ता निकालना है। …आज आप मुझे क्या दे रहे हो? क्या आप मुझे अभी कुछ दे रहे हो?

साशी : मैं उस अन्य निर्देशिका को ले सकता हँूं, आप जानते हैं… दूरबीन और विशेषताएँ और कैटलॉग और इसे महत्त्व देना… प्रस्ताव।

तहलका : आप अभी कुछ लेकर नहीं आये हैं?

साशी : वह आदमी वैसा ही कर रहा है… मैंने उससे कहा कि मैं यह वापस कर दूँगा। इसमें उसके नोट्स भी हैं। नोट्स, जो कि डी.जी. जनरल ने लिखा है।

साशी : प्रक्रिया…, और हमारे जनरल ने क्या लिखा है? हमें क्यों प्रक्रिया करनी चाहिए? ऐसा कुछ। यह अभी वहीं रखा है। मैं इसे बदलना चाहता हूँ। मैंने बॉस को बताया, और उन्होंने मुझसे पूछा, अगर वह इसे बदल देंगे; लेकिन क्या वह इसे इतनी जल्दी कर देंगे? ठीक है, जैसा आप चाहें। यदि आप इसे लेना चाहते हैं, तो आप इसे ले लें। अगर इसमें से कुछ हासिल होता है; बेहतर…।

तहलका : अच्छा, कुछ पैमाने भी हैं?

तहलका : वह मात्रा है?

साशी : एक बटालियन – मात्रा 300, हमारे पास 360 बटालियन हैं। एक बटालियन – मात्रा 36 … एक बटालियन के लिए 36 पीस। इसलिए हमारे पास 360 बटालियन हैं। 360 गुणा तीन।

साशी मेनन पैसे स्वीकार करने के बाद तहलका टीम को डीजीओ में उस समय उप निदेशक ब्रिगेडियर अनिल सहगल के पास ले जाते हैं।

भारत में खोजी पत्रकारिता को फिर एक पहचान

मैंने अपने जीवन के चार सबसे असामान्य सप्ताह के दौरान जो सबसे असामान्य खबर सुनी, वह एक भारतीय कैमरामैन से आयी थी; जिन्होंने मार्च 2001 में एक अमेरिकी पत्रकारिता दल के साथ हमारे कार्यालय का दौरा किया और हमारे रक्षा खुलासे ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ के बारे में बात की। आखरी सवाल पूछ लिया गया था और उसका जवाब दे दिया था, और साक्षात्कारकर्ता आराम वाले मूड में गपशप करते हुए अपनी तारें और अन्य सामान समेट रहा था; तब उसने अचानक कहा- ‘यहाँ से जाने से पहले मैं आपको एक खबर बताना चाहता हूँ। इसमें केवल कुछ मिनट लगेंगे।’

कैमरामैन पूर्वी उत्तर प्रदेश के अपने गाँव जौनपुर की मेड़ों से कुछ दिन पहले ही लौटा था। शहरों की तरह वहाँ भी तहलका के खुलासे ने इसे गाँव की चौपाल की चर्चा में वैसे ही ला दिया था, जैसे इसने देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। लेकिन इसमें एक दिलचस्प अन्तर था। ग्रामीणों को खुलासे के ज़रिये के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

उन्होंने इसे टेलीविजन पर देखा था। उन्होंने इसे अखबारों में पढ़ा था। लेकिन उन्हें यह भी पता चल गया था कि एक नयी तरह संस्था (तहलका) है, जो इस खबर को सामने लायी थी। और वे इसके बारे में अनभिज्ञ थे; वे डॉट कॉम और विश्वव्यापी वेब के बारे में जानकारी को लेकर अनभिज्ञ थे। उनके अनुभव या उनकी कल्पना में कुछ भी नहीं था, जो उन्हें किसी वेबसाइट या इंटरनेट की समझ बनाने में मदद कर सके। इसलिए उन्होंने एक अनुमान-सा लगाया था। उनके लिए तहलका एक तरह की एक्स-रे मशीन थी, जो किसी के भी भ्रष्टाचार को उजागर करती थी; जिस क्षण वे (भ्रष्टाचारी) उसके सामने आते थे। जौनपुर के कैमरामैन ने बताया कि वहाँ चर्चा भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली मशीन के खतरे की थी। यही कारण था कि घोटाला सामने आने के बाद पहले कुछ दिन तक प्रधानमंत्री जनता के सामने नहीं आये थे।

ऑपरेशन वेस्ट एंड से पैदा होने वाले धमाके के लिए वास्तव में हम भी तैयार नहीं थे। महीनों से हम यही जानते थे कि हमने सबका ध्यान खींचने और प्रभाव वाली खबर की है। महीनों तक हमारा खौफ लगातार बढ़ता गया; क्योंकि यह तेज़ी से स्पष्ट हो गया कि यह एक खबर मात्र नहीं है, जो किसी दिये गये एक बिन्दु पर रुकेगी और जो विश्लेषण, आलोचना और पुलिस जाँच से जुड़ी है। यह एक कहानी थी, जिसने सीधे शीर्ष स्तर पर ज़बरदस्त प्रतिक्रिया पैदा करनी है और कुछ लोगों को अपने चेहरे बचाने के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।

इस खोजी खबर के जनक अनिरुद्ध बहल से मैंने कहा कि हम भ्रष्टाचार का खुलासा तो कर देंगे; लेकिन इसकी जाँच कौन कराएगा? इसके बाद हमने अपनी आँखें ज़मीन पर होनी वाली घटनाओं पर टिका दीं। शुद्ध रूप से पत्रकारिता के रूप में; बिना इस बात का ज़िक्र किये कि इसके नतीजे क्या होंगे? हम कहानी पर दृढ़ रहेंगे। जैसे यह होती है; हम इसे जारी कर देंगे। इसलिए दो कारण थे, जिससे कि हम नतीजे के पैमाने को लेकर तैयार नहीं थे। एक, हमने जान-बूझकर खुद को इसके बारे में सोचने से रोक रखा था। और दो, जौनपुर के निवासियों की तरह हमारे अनुभव में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो हमें इसका अनुमान लगाने में मदद कर सकता था।

ऑपरेशन वेस्ट एंड एक शान्त और विनम्र तरीके से शुरू हुआ। जब भारतीय पत्रकार हमारे क्रिकेटरों के चमत्कारिक कामों का लेखा-जोखा लिख रहे थे, तब यह अनिरुद्ध बहल ही थे, जिन्होंने पहले मैच फिक्सिंग की सड़ाँध को स्टिंग के ज़रिये खत्म किया था। कारगिल युद्ध के दौरान बहल और मैं, दोनों ‘आउटलुक’ में थे, और पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक के रूप में संघर्ष पर सम्पादकीय नीति में भूमिका हमारे हिस्से भी रहती थी। हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट थी। कारगिल युद्ध के दौरान हमने अपने राष्ट्रवाद को पत्रकारिता के दायरे में रखा। हम उन खबरों और तस्वीरों से बचने के प्रति सावधान थे, जो हमारे सैनिकों को युद्ध मोर्चे पर नुकसान कर सकती थीं। लेकिन जिस क्षण संघर्ष समाप्त हुआ, हमने पत्रकारिता के उच्च सिद्धांतों को स्थापित करते हुए वह सभी असहज सवाल उठाये, जो उस समय सामने आ रहे थे। हमारे सवालों ने बहुत-से लोगों के सामने यह सवाल पैदा किया कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठान के साथ सब ठीक नहीं है।

वेस्ट एंड खबर का विषय देने वाला एक और मज़बूत कारक था। एक 15 साल पुराना रक्षा सौदा- बोफोर्स, जिसने वर्षों तक भारतीय सार्वजनिक जीवन में उथल-पुथल मचाये रखी। इसके बाद ही बाद के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने ऐलान किया था कि भविष्य में रक्षा सौदों में कोई भी विचौलिया नहीं होगा। हमारे वेस्ट एंड ऑपरेशन के मुख्य स्तम्भ थे- मैथ्यू सैमुअल; जो असाधारण धैर्य और संसाधनशीलता वाले खोजी पत्रकार थे। उन्होंने बैकग्राउंड तैयारी के समय एक रक्षा उत्पाद को खोजा, जो खरीद के लिए कतार में था, जिसे हाथ में रखा थर्मल कैमरा कहा जाता था। किसी को भी उत्पाद के बारे में कुछ नहीं पता था। नेट से इस पर जानकारी डाउनलोड की गयी और तहलका के डिजाइन विभाग की मदद से इसके लिए एक विवरणिका बनायी गयी। उन्होंने एक डमी कम्पनी भी बनायी और इसे वेस्ट एंड इंटरनेशनल नाम दिया। बहल और मैथ्यू ने सावधानीपूर्वक देखभाल के साथ प्रत्येक स्टिंग की योजना बनायी और छ: महीने के लिए एक दिन की छुट्टी नहीं ली। बहल ने मैथ्यू को पूरी तरह से जानकारी दी; जिन्होंने अधिकांश स्टिंग किये थे।

आपको केवल यह कल्पना करनी होगी कि रक्षा मंत्री के घर पर मैथ्यू को पकड़ लिया गया होता, तो क्या हुआ होता? लोग मुझसे उन कैमरों के बारे में पूछते रहते हैं, जो तहलका की टीम इस्तेमाल करती थी। ऑपरेशन के महीने गुज़र रहे थे। हर गुज़रते महीने के साथ कहानी के अंतिम परिणाम स्वयं प्रकट होने लगे थे। तब तक बहल और मैथ्यू ने बंगारू लक्ष्मण को बेनकाब कर दिया था। आगे बढऩे के लिए हमें दो चीज़ों की आवश्यकता थी- एक, अधिक पैसा और दूसरा, वास्तविक उत्पाद; अर्थात् थर्मल हैंड कैमरा। पर्दे को जनवरी के मध्य तक फील्ड वर्क (धरातल) पर खींच लिया गया था, और सबूतों को ट्रांसक्रिप्ट, स्क्रिप्टिंग और सम्पादित करने का थकाऊ काम शुरू हुआ।

अंतिम टेप 12 मार्च की दोपहर तक तैयार हो गया था और 13 मार्च की दोपहर को 24 घंटे से भी कम समय में, हमने खबर को ब्रेक कर दिया। इसकी स्क्रीनिंग में करीब 300 लोग थे; जिनमें सेवानिवृत्त जनरल, नौकरशाह, मीडिया के लोग शामिल हैं। और फिर इसके प्रसार के रूप में राजनेताओं को स्क्रीनिंग के लिए दिखाया। यह निश्चित नहीं था कि क्या उम्मीद की जाए? और फिर जैसे-जैसे टेपों का चलन शुरू हुआ, वैसे-वैसे ऑपरेशन वेस्ट एंड की खबर सार्वजनिक क्षेत्र में फैलने लगी। हमारे भीतर बैठा तनाव, बाहर निकलने लगा। बेहतर या बदतर के लिए, एकमात्र हम ज़िम्मेदार थे।

खबर बाहर निकलते ही तूफान पैदा कर चुकी थी। दु:ख की बात है कि यह हमसे उतनी अलग नहीं हुई, जितनी हमने कल्पना की थी। लेकिन हमने पूरी नैतिकता का पालन करते हुए एक खबर तैयार की थी; जो एक अच्छी खबर बन गयी थी। और अब हमने इसे ब्रेक कर दिया था। खबर ने हमें बंगारू लक्ष्मण और जया जेटली के पास पहुँचाया था; जिनका कहानी शुरू होने पर हमें पता नहीं था। हमने यह भी कहा कि हमारे पास भाजपा या समता पार्टी के खिलाफ कुछ भी नहीं था। हमें यकीन था कि यदि यह जाँच किसी अन्य शासन (कांग्रेस या तीसरे मोर्चे की सरकार) में की गयी होती, तब भी इसके परिणाम यही होते। हमने अगले कई हफ्तों में अपने स्वतंत्र रुख को दोहराया। लेकिन किसी ने नहीं सुनी। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इससे किसी भी तरह का लाभ लेने की कोशिश में थे। लेकिन भाजपा की लगभग अनैतिक प्रतिक्रिया थी; जो सबसे निराशाजनक थी।

हमने केवल सार्वजनिक धन और सार्वजनिक कार्यालय के दुरुपयोग को उजागर किया। सडक़ पर रोका जाना, रेस्तरां, हवाई अड्डों पर और अज्ञात लोगों की तरफ से धन्यवाद किया जाना; किसी भी पत्रकार के लिए उस किसी भी अपेक्षा से अधिक है, जो वह करता है। वेस्ट एंड के खुलासे के सबसे बड़े प्रभाव के रूप में जो हुआ, मेरी नज़र वह यह है कि इसने भ्रष्टाचार को एक बार फिर भारत में एक मुद्दा बना दिया। एक दशक पहले, जब वी.पी. सिंह ने बोफोर्स विवाद पर 1989 का चुनाव लड़ा था; तबसे भ्रष्टाचार एक गैर-सा मुद्दा रहा था। अचानक यह मुद्दा निजी और सार्वजनिक भाषणों में हावी हो गया। वेस्ट एंड भारतीय सार्वजनिक संस्थानों से भ्रष्टाचार की सड़ाँध कम करने का एक ईमानदार प्रयास था…।

(यह स्टिंग के बाद प्रकाशित तरुण जे. तेजपाल की खबर का सार है।)

तहलका की खोजी पत्रकारिता

सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जुलाई, 2020 को ‘तहलका’ के ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ से रक्षा सौदों के भ्रष्टाचार मामले में तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। हमारे पास ऐसे संदेशों के आने का सिलसिला थम नहीं रहा, जिनमें कहा जा रहा है कि भारत में खोजी पत्रकारिता ने अपने आप को फिर से साबित किया है। यह स्टोरी एक बार फिर अखबारों, टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुॢखयों में है। तहलका के स्टिंग से निकले सच ने एक बार फिर साहसी पत्रकारिता, जिसके लिए हम हमेशा खड़े रहे हैं; और बहुत लोगों की तरफ से की जाने वाली प्रेस विज्ञप्तियों या जनसम्पर्क वाली पत्रकारिता के बीच के अन्तर को स्पष्ट कर दिया है। वास्तव में यह एक ऐसी खबर थी, जिसके लिए नैतिक साहस के साथ-साथ भयमुक्त और सार्वजनिक हित सोचने वाले दिमाग की आवश्यकता थी। और तहलका के संस्थापक संपादक तरुण जे. तेजपाल के पास यह सब था। मैं शायद तेजपाल को जानने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूँ; क्योंकि हमने एक ही दिन इंडियन एक्सप्रेस के साथ अपनी पत्रकारिता की पारी शुरू की थी।

तहलका ने हमेशा प्रहरी के रूप में काम किया है। तमाम सरकारें रक्षा सौदों को गाय से भी ज़्यादा पवित्र पेश करने की कोशिश करती रही हैं और यह तहलका पर था कि वह झूठ की इस परत को उतार फेंके। यह तहलका स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड था, जिसने 2000-2001 में रक्षा खरीद सौदों में भ्रष्टाचार को उजागर किया और मार्च 2001 के मध्य में इसे सार्वजनिक किया। तब इस खुलासे ने राष्ट्र को झकझोर कर रख दिया था। तहलका के इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन के करीब 20 साल बाद समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली और दो अन्य को सीबीआई अदालत ने दोषी ठहराया है। अब इस मुद्दे में सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आने पर सच्चाई स्पष्ट हो गयी है और देश पत्रकारिता के प्रति आश्वस्त हुआ है। सीबीआई के विशेष न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली, उनके पूर्व पार्टी सहयोगी गोपाल पचेरवाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस.पी. मुरगई को भ्रष्टाचार और आपराधिक साज़िश के लिए दोषी ठहराया है। जया जेटली पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री, जॉर्ज फर्नांडीस की करीबी सहयोगी थीं। तहलका का ऑपरेशन वेस्ट एंड तब दुनिया भर में चर्चा में आया, जब इसकी सीडी सार्वजनिक की गयी। रक्षा मंत्रालय और रक्षा अधिकारियों के शीर्ष अधिकारियों को लंदन स्थित एक काल्पनिक फर्म वेस्ट एंड इंटरनेशनल के प्रतिनिधियों के रूप में पेश किये गये तहलका के पत्रकारों से उपहार और नकदी स्वीकार करते हुए देखा गया।

तहलका स्टिंग यह बात याद दिलाता है कि खोजी पत्रकारिता को अभी लम्बा रास्ता तय करना है। जनता को सच दिखाने वाले पत्रकार तब भी सत्ताधीशों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के निशाने पर थे, और अब भी हैं; लेकिन पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखना परम् आवश्यक तथा इस पेशे का धर्म है। हाल ही में गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी, जो एक स्थानीय हिन्दी अखबार के साथ काम कर रहे थे; को नौ हमलावरों ने खुलेआम तब गोली मार दी, जब वह छोटी उम्र की अपनी दो बेटियों के साथ अपनी बहन के घर से लौट रहे थे। उन्हें गोली मारे जाने से चार दिन पहले ही जोशी ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज करायी थी; लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इस हत्या की स्याही सूखी भी नहीं थी कि एक अन्य पत्रकार को मध्य प्रदेश के निवारी में पहले पीटा गया और फिर वाहन से कुचलकर मार डाला गया। पत्रकार ने कुछ महीने पहले फेसबुक पर एक वीडियो पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के प्रति खतरे की आशंका जतायी थी। सवाल यह है कि अपराध और काले कारनामों के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों की तरह क्या राजनेताओं, पुलिस और प्रशानिक अधिकारियों को कभी अपनी जवाबदेही समझ में आयेगी?

कश्मीर में सियासत का अँधेरा, अनुच्छेद-370 हटाये जाने के एक साल बाद भी घाटी में राजनीतिक गतिविधियाँ ठप

जम्मू-कश्मीर से 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 के विशेष प्रावधान को केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया। इससे ठीक पहले पिछले वर्ष 21 जुलाई को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष संवैधानिक और कानूनी दर्जे को बरकरार रखने के लिए संकल्प पारित करके इसे बचाने को प्रतिबद्धता दोहरायी थी। डेमोक्रेटिक पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के इतिहास में 5 अगस्त के केंद्र के कदम को सबसे काला अध्याय करार दिया था।

महत्त्वपूर्ण यह है कि उपरोक्त प्रस्ताव जम्मू में पारित किया गया, जो कि हिन्दू बाहुल्य है और यहाँ पर उम्मीद की जा रही थी कि अनुच्छेद-370 के खात्मे को यहाँ से पूरा समर्थन मिलने वाला है। पीडीपी की बैठक की अध्यक्षता करने वाले पूर्व विधायक सुरिंदर चौधरी ने संसद से प्रदेश की स्वायत्तता खत्म किये जाने को एक धब्बा करार दिया। पीडीपी ने आरोप लगाया कि भाजपा जम्मू-कश्मीर के लोगों के कल्याण को सुनिश्चित करने की बजाय राज्य में ज़मीन हड़प रही है। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और पीडीपी के संस्थापक के विजन को पेश किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि शान्ति, सामंजस्य और संवाद के ज़रिये मौज़ूदा अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए केंद्र विशेष दर्ज़ा वापस ले सकता है।

अपनी भविष्य की रणनीति के अनुसार, पीडीपी ने गुप्कर घोषणा के लिए समर्थन व्यक्त किया, जिसमें विभिन्न मुख्यधारा के कश्मीर के सियासी दलों ने सर्वसम्मति से जम्मू और कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और विशेष दर्जे की लड़ाई व रक्षा करने को एकजुट होने का संकल्प लिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला के आवास पर अनुच्छेद-370 खत्म किये जाने की पूर्व संध्या पर गुप्कर घोषणा जारी की गयी थी। हालाँकि अगले ही दिन जब संसद में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अनुच्छेद-370 को हटाये जाने की घोषणा कर रहे थे, तभी कश्मीर की सभी सियासी पार्टियों के नेताओं और जम्मू में कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था। महीनों तक हिरासत में रहने के बाद ही सरकार ने उन्हें एक-एक करके रिहा करना शुरू किया, जिसकी शुरुआत मझोले नेताओं के साथ हुई थी; जिनसे यह लिखवाकर लिया गया कि वे बाहर निकलने के बाद किसी भी प्रदर्शन या सियासी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। इसके बाद शीर्ष जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) नेता फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला, दोनों जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं; को भी रिहा किया गया।

हालाँकि सरकार ने अभी तक पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती को रिहा नहीं किया है, जो अब अपने सरकारी आवास पर नज़रबन्द हैं। इसी तरह सज्जाद गनी लोन, नौकरशाह से सियासत में उतरे शाह फैसल जैसे नेताओं को भी उनके निवासों पर हिरासत में रखा गया है। इतना ही नहीं, पूर्व विधायक इंजीनियर राशिद को दिल्ली की तिहाड़ जेल में स्थानांतरित कर दिया गया है। इससे कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियाँ थम गयी हैं। उमर और फारूक अब्दुल्ला जैसे नेता अपनी रिहाई के बाद एक तरह से मौन हो गये हैं। इससे राजनीतिक शून्यता की भरपाई कारोबारी से सियासत में उतरे अल्ताफ बुखारी के नये सियासी दल अपनी पार्टी से गतिविधियाँ करायी जा रही हैं। हालाँकि स्थापित दलों नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के विपरीत बुखारी की पार्टी काफी हद तक केंद्र की नीतियों के अनुरूप है।

फिलहाल यह देखा जाना बाकी है कि घाटी के राजनीतिक दल अपने सभी नेताओं को रिहा करने और राजनीतिक गतिविधि जारी रखने की अनुमति के बाद किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे। नेकां नेता और सांसद हसनैन मसूदी पहले ही कह चुके हैं कि गुप्कर घोषणा के आधार पर ही उनकी भविष्य की राजनीति होगी। लेकिन जैसा आगे माहौल बनता है, उस हिसाब से जम्मू-कश्मीर प्रशासन शायद ही ऐसी किसी असहमति वाली राजनीतिक विचारधारा को प्रतिपादित करने की सम्भावना मिलने के आसार बेहद कम हैं। महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को हिरासत में लिए जाने के बावजूद उनकी बेटी इल्तिज़ा मुफ्ती अनुच्छेद-370 हटाये जाने के खिलाफ खुलकर मुखर रहीं। इसी तरह पीडीपी के वरिष्ठ नेता और महबूबा के विश्वासपात्र नईम अख्तर को हाल ही में उनके सरकारी आवास से बाहर कर दिया गया।

इससे यह उम्मीद फिलहाल नज़र नहीं आती कि कश्मीर में राजनीतिक गतिविधियाँजल्द सामान्य होने वाली हैं। और ऐसा तब तक असम्भव है, जब तक कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन इस बात से निश्चिंत न हो जाए कि कश्मीर का राग नहीं अलापा जाएगा और न ही कोई इसे चुनौती देगा। नाम न छापने की शर्त पर प्रमुख राजनीतिक पार्टी के एक नेता ने कहा कि सभी नेताओं को रिहा करने के बाद हम एक निर्णय लेंगे। हम अपने भविष्य के कार्यक्रम को पूरा करने पर काम करेंगे। हाँ, गुप्कर घोषणा हमारे सहयोग का आधार रहेगी।

सीमा पर सुरंगों के काम में आयी तेज़ी

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ चीनी घुसपैठ से चिन्तित भारत कश्मीर घाटी और लद्दाख क्षेत्र के बीच साल भर की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने के लिए 6.5 किलोमीटर लम्बी जेड-मोड़ सुरंग के निर्माण में तेज़ी ला रहा है। सभी महत्त्वपूर्ण रणनीतिक परियोजनाओं को पूरा करने की समय सीमा जून, 2021 तक बढ़ा दी गयी है।

सुरंग के कार्यों की स्थिति के बारे में जानकारी जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बीवीआर सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजमार्ग अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) की 22 जुलाई को हुई एक बैठक में साझा की गयी थी। इसके साथ ही करीब 13 किलोमीटर की ज़ोजिला सुरंग को पूरा करने के लिए भी सरकार काम कर रही है।

जेड-मोड़ सुरंग परियोजना में 6.5 किलोमीटर लम्बी सुरंग, 6 किलोमीटर की सम्पर्क सडक़, दो प्रमुख पुल और एक छोटा पुल शामिल हैं। इस परियोजना की लागत 2,379 करोड़ रुपये है। परियोजना में एकीकृत पैकेज के रूप 14.15 किलोमीटर लम्बी सुरंग, जेड-मोड़ और ज़ोजिला सुरंग के बीच में 18 किलोमीटर की सम्पर्क सडक़ के अलावा कैरिज-वे, दो स्नो गैलरीज, चार प्रमुख पुल और 18 हिमस्खलन-सुरक्षा बाँध शामिल हैं। करीब 4,430 करोड़ रुपये की लागत वाली इस पूरी परियोजना के जून, 2026 तक चालू होने की उम्मीद है। वैसे तो जेड-मोड़ सुरंग पर काम कई साल से चल रहा था, लेकिन यह सितंबर, 2018 में गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनी आईएल ऐंड एफएस के टूटने के बाद अचानक बन्द हो गया, जिसने इसे वित्तपोषित किया था। आईएल ऐंड एफएस ने श्रीनगर-सोनमर्ग सुरंग मार्ग के साथ रणनीतिक परियोजना को सबसे कम बोली के माध्यम से जीता था।

हालाँकि जनवरी में एनएचआईडीसीएल ने 2,379 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली जेड-मोड़ सुरंग का काम एपीसीओ अमरनाथजी टनल-वे प्राइवेट लिमिटेड को सौंप दिया गया। एनएचआईडीसीएल और एपीसीओ अमरनाथजी टनल-वे प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौते पर सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी की मौज़ूदगी में हस्ताक्षर किये गये। उस समय इस परियोजना को साढ़े तीन साल में पूरा करने का निर्णय किया गया था। लेकिन अब चीन के साथ एलएसी पर तनाव के बाद परियोजना के पूरा होने की समय सीमा जून, 2021 तय कर दी गयी है।

एलएसी पर वर्तमान गतिविधियों को देखते हुए लद्दाख में भारत की पहुँच के लिए बारह मासी सडक़ बहुत महत्त्वपूर्ण हो गयी है। यह क्षेत्र के बदलते भू-रणनीतिक परिदृश्य में प्रतिक्रिया है और स्थिति आने वाले समय में खराब को सकती है; क्योंकि चीन क्षेत्रीय और वैश्विक मंच पर शक्ति परीक्षण की तैयारी कर रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि जेड-मोड़ सुरंग की आधारशिला कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने 4 अक्टूबर, 2012 को रखी थी। सुरंग के अभाव में लद्दाख की सडक़ सर्दियों में 10 फीट बर्फ के नीचे दब जाती है। बर्फबारी के कारण इस क्षेत्र को छ: महीने तक देश के बाकी हिस्सों से काट दिया जाता है।

सुरंगों का गहरा रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व है। वे अंतत: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों को एक साथ लाएँगी। परियोजनाओं का दो क्षेत्रों के लोगों के लिए भी विशाल आर्थिक प्रभाव होंगे। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह चीन और पाकिस्तान के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण सीमावर्ती क्षेत्र में सैनिक और सुरक्षा तंत्र को तेज़ी से जुटाने में मदद करेगा।

पिछले कुछ वर्षों में लद्दाख समय-समय पर चीनी घुसपैठ से प्रभावित रहा है। इससे बीजिंग के बढ़ते आक्रामक क्षेत्रीय इरादों का संकेत भी मिलता है; क्योंकि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी विवादित सीमा के भारतीय क्षेत्र में पाँच बिन्दुओं पर प्रवेश करती रही है। यह बिन्दु गलवान घाटी, पैंगोग त्सो, हॉट स्प्रिंग्स, डेपसांग और गोगरा हैं। इसके अलावा लद्दाख पहले ही 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक कारगिल पहाडिय़ों पर एक लघु युद्ध का गवाह बन चुका है।

रणनीतिक पर्यवेक्षक एलएसी के साथ चीन की बढ़ती गतिविधियों का श्रेय हाल के वर्षों में उसके वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के किनारे अपने क्षेत्र में खड़े किये गये निर्माण को भी देते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसने चीन को भारत की परिधि और आंतरिक क्षेत्रों में एक रणनीतिक पहुँच प्रदान की है। लेकिन भारत के लिए लद्दाख में अपने सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुँच में कमी एक समस्या रही है। और इन्हीं समस्याओं के हल के लिए एलएसी के साथ और जम्मू-कश्मीर में रणनीतिक बिन्दुओं पर महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की शुरुआत की गयी है।

उत्तर प्रदेश में हाशिये पर कानून व्यवस्था

उत्तर प्रदेश में तेज़ी से बिगड़ती कानून-व्यवस्था की स्थिति के बीच देश की राजधानी दिल्ली के प्रवेश द्वार गाज़ियाबाद में हिंसक अपराध की खतरनाक घटना सामने आयी है, जहाँ बेखौफ अपराधियों ने एक स्थानीय युवा पत्रकार विक्रम जोशी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना ने आम नागरिकों के बीच खौफ पैदा किया है। हत्या की इस घटना ने एक बार फिर महिलाओं और युवतियों की सुरक्षा को लेकर कई सवाल पैदा कर दिये हैं। पहले भी मनचलों के चलते छात्राएँ स्कूल/कॉलेज जाने से और अन्य महिलाएँ घर से निकलने से डरती रही हैं; क्योंकि वे आये दिन छेड़छाड़ आदि का शिकार होती रही हैं। वे लगातार छेड़छाड़, दुष्कर्म, अपहरण, हत्या जैसी भयावह घटनाओं के कारण डर महसूस करती हैं।

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या से एक बार फिर निशाने पर आ गयी है। एक सरकारी ठेकेदार के अपहरण के मामले को सुलझाने में पुलिस अभी तक नाकाम है। अपराधियों के संगठित गिरोह ने लॉकडाउन के दौरान 26 जून की शाम गाज़ियाबाद में उसका तब अपहरण कर लिया, जब वह अपने घर लौट रहा था। उस समय वाहनों की आवाजाही पर सख्त प्रतिबन्ध लगा था, और इसके बावजूद यह घटना हुई। शहर में कानून और व्यवस्था का दिवाला पिटने से गुस्साये मीडिया कर्मियों और आम जनता ने ज़बरदस्त प्रदर्शन किये। यहाँ यह भी गौरतलब है कि वल्र्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (डब्ल्यूपीएफआई) 2020 की सूची में भारत कुल 180 देशों में बहुत खराब 142वें स्थान पर है।

विक्रम जोशी (35), देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से लगे ज़िला गाज़ियाबाद में एक स्थानीय हिन्दी अखबार में काम करते थे। नौ हमलावरों ने उन्हें घेरकर तब उनके सिर के पीछे गोली मारी, जब वह 5 और 11 साल की अपनी दो छोटी बेटियों के साथ अपनी बहन के घर से लौट रहे थे। यह घटना 20 जुलाई को रात लगभग 10.30 बजे की है। हमले में पत्रकार जोशी गम्भीर रूप से घायल हो गये। उन्हें बेहद गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती किया गया; लेकिन उन्होंने 22 जुलाई को दम तोड़ दिया। हत्या की पूरी वारदात सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गयी। वीडियो फुटेज में बदमाश उन्हें घेरते हुए और उन पर हमला करते हुए दिख रहे हैं; जबकि पास ही उनकी बेटी असहाय रोती हुई दिखायी दे रही है। वह अपने पिता के पास और कभी राहगीरों की ओर दौड़ रही है और चीख-चीखकर लोगों से मदद माँगती हुई दिख रही है।

इस घटना से चार दिन पहले 16 जुलाई को जोशी ने अपनी बहन की बेटी से छेड़छाड़ के खिलाफ रवि और उसके असामाजिक साथियों के रूप में पहचान कर उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की थी। इन लोगों ने उनकी 17 वर्षीय भाँजी  को कथित रूप से डराया और छेड़छाड़ की थी। शिकायत में उल्लेख किया गया है कि रवि सहित चार लोगों ने उनकी भाँजी को उस समय ज़बरदस्ती पकड़ लिया, जब वह अपने छोटे भाई के साथ किराने का सामान खरीद रही थी। जब भाई ने आपत्ति की, तो उन्होंने लडक़े को लाठी से पीट डाला। शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि वे गुण्डे नशे में धुत्त थे। हालाँकि पुलिस ने इसकी जाँच के लिए जोशी की प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज ही नहीं की।

शिकायत से आपराधिक प्रवृत्ति का रवि कथित तौर परेशान हो गया, और उसने जोशी को धमकी देनी शुरू कर दी। रवि कथित तौर पर तब जोशी की बहन के घर के बाहर अपने आपराधिक प्रवृत्ति के दोस्तों के साथ घूमने लगा, जब विक्रम अपनी बेटियों के साथ जानलेवा हमले की रात जन्मदिन समारोह में शामिल होने के लिए बहन के घर गया था। जोशी ने खतरे को देखते हुए क्षेत्र के पुलिस निरीक्षक को इस बारे में बताने के लिए फोन किया। जोशी के परिजनों ने आरोप लगाया है कि निरीक्षक ने वहाँ आने से इन्कार कर दिया।

16 जुलाई को इन बदमाशों ने पत्रकार विक्रम जोशी की भाँजी के साथ छेड़छाड़ भी की। जानकारी मिलने पर विक्रम ने इन युवकों को ललकारा। कुछ अन्य पड़ोसी भी आ गये और बदमाशों को भगा दिया। जाते समय युवकों ने विक्रम जोशी को देख लेने की धमकी दी। विक्रम ने तुरन्त स्थानीय पुलिस चौकी प्रभारी से सम्पर्क किया और जान-माल की सुरक्षा की माँग की। चौकी प्रभारी ने उनकी शिकायत अपने पास रखकर विक्रम को जाने के लिए कहा। विक्रम परेशान था, क्योंकि उसने खुद देखा था कि आरोपी युवकों में से दो पहले से ही सम्बन्धित पुलिस प्रभारी के पास बैठे थे; जिससे कई आशंकाएँ बन रही थीं। कोई नतीजा न निकलने पर विक्रम पुलिस स्टेशन पहुँचा और अपनी बहन की शिकायत एसएचओ विजय नगर पुलिस स्टेशन को सौंप दी और उनसे एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध किया। यहाँ भी जोशी को निराशा हाथ लगी; क्योंकि कोई जाँच नहीं हुई।

बदमाशों का हौसला देखिए कि उन्होंने विक्रम जोशी को बाद में खत्म करने की धमकी दे डाली। अगले दिन अपने अखबार के दो साथियों के साथ वे एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिले और उन्हें अपने जीवन को खतरे से अवगत कराया। बदमाशों ने पुलिस को उनकी शिकायत के बाद भी उन्हें धमकी देना जारी रखा था। लेकिन एसएसपी ने भी जोशी की इस शिकायत को हल्के में लिया और मामले की जाँच के आदेश दिये।

हालाँकि तमाम शिकायतों की परवाह न करते हुए बेखौफ बदमाशों ने जोशी की हत्या कर दी। योगी सरकार ने विक्रम के परिवार को 10 लाख रुपये, उनकी पत्नी को सरकारी नौकरी और बेटियों को मुफ्त शिक्षा देने की घोषणा की है। लेकिन योगी के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई न करने से सभी लोग निराश हुए हैं। यह तमाम पुलिस अफसर जान गँवाने वाले पत्रकार जोशी के तमाम अनुरोधों के बावजूद उन्हें खतरे से बचाने में विफल रहे।

जोशी के परिजनों ने मीडिया को बताया कि एक व्यक्ति, जिसकी पहचान छोटू के रूप में की गयी है; ने गोली मारने से पहले घर के बाहर काँच की बोतल फेंकी और उसे गालियाँ दीं। इस घटना के बाद से लोगों में आक्रोश है। विभिन्न राजनीतिक नेताओं ने राज्य में पुलिस की निष्क्रियता और गुण्डा राज बढऩे की घोर निन्दा की है। पत्रकारों के एक समूह ने 22 जुलाई को अपने सहयोगी की हत्या के खिलाफ यशोदा अस्पताल के बाहर ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शन किया।

पत्रकार की पुलिस को तमाम शिकायतों के बावजूद इस हत्या हुई, जिससे राजनीति में भी काफी उबाल आया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने पत्रकार के शोक संतप्त परिवार से संवेदना व्यक्त करते हुए योगी सरकार पर ज़बरदस्त हमला बोला। गाँधी ने ट्वीट करके कहा कि पत्रकार विक्रम जोशी की बेटियों के सामने उनकी भाँजी से छेड़छाड़ का विरोध करने के चलते गोली मारकर हत्या कर दी गयी। उत्तर प्रदेश में जंगल राज इतना बढ़ गया है कि शिकायत करने के बाद आम आदमी उपद्रवियों से डरता है। भाजपा सरकार पिछली सरकारों की तरह अपराध के मुद्दे पर विफल रही है। प्रियंका ने जोशी के परिजनों से संवेदना भी व्यक्त की।

बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ गम्भीर अपराध की बाढ़ आ गयी है। यह प्रदर्शित करता है कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन ध्वस्त हो गया है और जंगल राज कायम है। अपराध वायरस कोरोना की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है। उन्होंने मारे गये पत्रकार के शोक संतप्त परिवार के सदस्यों के लिए संवेदना व्यक्त की।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा के शासन पर तंज कसते हुए कहा कि गाज़ियाबाद में अपनी बेटी के साथ बाइक पर जा रहे पत्रकार को गोली मारकर उनकी जान लेने की घटना से राज्य के लोग स्तब्ध हैं। भाजपा सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि किसके बल पर ऐसे अपराधी और बदमाश पनप रहे हैं।

विक्रम जोशी के हत्यारों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा देने की माँग करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया कि विक्रम जोशी, जो अपनी भाँजी के साथ छेड़छाड़ के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे; की हत्या ने हमारी कानून व्यवस्था पर बहुत सारे सवाल उठाये हैं।

जोशी की मौत की खबर के तुरन्त बाद मीडिया संगठनों ने सर्वसम्मति से गाज़ियाबाद स्थित पत्रकार विक्रम जोशी पर हमले की निन्दा की, जिन्होंने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था। इन संगठनों ने हत्या की न्यायिक जाँच के अलावा मारपीट की अन्य घटनाओं की जाँच की भी माँग की गयी।

पत्रकारों पर इन हमलों का अवलोकन करते हुए, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में; हाल के दिनों में इस हत्या और पत्रकारों के खिलाफ हाल के दिनों में हुई घटनाओं को लेकर प्रेस एसोसिएशन और भारतीय महिला प्रेस कोर (आईडब्ल्यूपीसी) ने उत्तर प्रदेश सरकार से हमले में शामिल सभी दोषियों को सज़ा देने की ज़ोरदार माँग की।

घटना से पुलिस पर उठे सवालों और चौतरफा निन्दा के बाद गाज़ियाबाद के पुलिस प्रमुख कलानिधि नैथानी जागे और बताया कि पुलिस ने उस इलाके के थाना प्रभारी को लापरवाही के लिए निलंबित कर दिया है; जहाँ पत्रकार विक्रम जोशी को गोली मारकर गम्भीर रूप से घायल कर दिया गया था और बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गयी। पुलिस ने शुरू में जोशी की मौत के तुरन्त बाद पाँच आरोपियों को गिरफ्तार किया और बाद में सभी नौ आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया।

इससे पहले उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में एक अन्य पत्रकार शुभम मणि त्रिपाठी, जो एक हिन्दी अखबार में रिपोर्टर थे; को गोली मार दी गयी थी। उन्होंने रेत माफिया और भूमि पर कब्ज़ा करने वालों के खिलाफ लगातार लिखा था। उन्होंने अपने हालिया फेसबुक पोस्ट में उल्लेख किया था कि उन्हें डर था कि स्थानीय रेत माफिया के अवैध भूमि उत्खनन की उनकी रिपोट्र्स के कारण उनकी हत्या की जा सकती है। नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो (एनसीआरबी) 2018 की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी उत्तर प्रदेश की है। पुलिस हर दो घंटे में एक बलात्कार दर्ज करती है। आँकड़ों में भारत में पीछा करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी प्रकाश डाला गया है और हर 55 मिनट में इसका एक मामला दर्ज होता है, जबकि इस तरह के कई मामले तो दर्ज ही नहीं करवाये जाते।  इसके अतिरिक्त भले ही बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने की दर पूरे भारत में 85.3 फीसदी है, लेकिन सज़ा की दर खतरनाक रूप से महज 27.2 फीसदी ही है।

प्रसिद्ध सरकारी ठेकेदार विक्रम त्यागी के अपहरण के बाद उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ गयी है। ठेकेदार त्यागी गाज़ियाबाद के पटेल नगर के राजनगर एक्सटेंशन में एक इनोवा कार से अपने दफ्तर से अपने आवास के लिए निकले। करीब 7:35 बजे उनके भाई ने उन्हें आखरी बार फोन किया और व्यवसाय को लेकर कुछ बात की, जिसमें उन्होंने जवाब दिया कि वह थोड़ी देर में 5-7 मिनट के भीतर घर पहुँच रहे हैं; तब बात करेंगे। इसके बाद शाम 7:40 बजे उनका मोबाइल फोन बन्द हो गया; जो आज तक बन्द ही है। उनका आज तक कुछ पता नहीं चला है।

22 जुलाई को गाज़ियाबाद के अम्बेडकर पार्क में नवयुग मार्केट में करीब एक हज़ार लोग बढ़ते अपराध और पुलिस के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने और उन्हें नियंत्रित करने में असमर्थ रहने के विरोध में एकत्र हुए। बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और नेशनल एसोसिएशन ऑफ रेलवे कॉन्ट्रैक्टर्स की तरफ से आयोजित इस प्रदर्शन में उद्योग, व्यापार और राजनीतिक संगठनों के नेताओं और स्थानीय पत्रकारों के साथ-साथ सामाजिक संगठनों के लोगों ने भी बड़े पैमाने पर हिस्सा लिया।

हम तबाह हो गये : कविता

पत्रकार विक्रम जोशी की पत्नी कविता ने योगी आदित्यनाथ से तत्काल न्याय की माँग की, जैसा कि पुलिस अधिकारी देवेंद्र मिश्रा और छ: अन्य पुलिसकर्मियों के मामले में हुआ था। आहत कविता ने कहा कि पुलिस मुठभेड़ में इन हत्यारों को भी गोली मार दे। कविता ने कहा कि सोमवार को, हमलावरों ने पत्रकार विक्रम जोशी पर हमला किया। मेरी बड़ी बेटी अपने पिता को न मारने की फरियाद हत्यारों के आगे करती रही। हत्यारों ने बेटी को फटकार कर धमकाया कि अगर तुम नहीं भागोगी तो हम तुम्हें भी मार देंगे। हालाँकि वह अपने पिता को हत्या से बचाने के लिए शोर मचाती रही। हत्या के शिकार पत्रकार की बड़ी बेटी चाहत ने रूह कँपा देने वाली घटना को याद करते हुए मीडिया से कहा कि मैं अपनी छोटी बहन वाणी और पिता विक्रम के साथ अपनी मौसी के घर मौसेरे भाई के जन्मदिन में शामिल होने के लिए गयी थी। जब हम लेट हो रहे थे, मैंने अपने पिता को घर चलने के लिए कहा। घर से कुछ ही दूर जाने पर पहले से घात लगाये बदमाशों ने हमें घेर लिया। कई युवकों ने बाइक को धक्का दिया और बाइक को खींचकर डैडी का गला घोंट दिया। एक युवक ने उनकी गर्दन के पीछे गोली मारी और वे भाग गये. क्योंकि हमारे रिश्तेदार और आसपास के लोग हमारी चीखें सुनकर वहाँ पहुँच गये थे। हालाँकि किसी भी राहगीर ने हमारी मदद करने की कोशिश नहीं की। कविता ने कहा कि हमने इतने बुरे की कभी कल्पना तक नहीं की थी। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारे साथ ऐसी बर्बर घटना भी हो सकती है। उसने आरोपियों को तत्काल गोली मारने की गुहार लगायी, ताकि उनके परिवार को न्याय मिल सके। कविता ने कहा कि अपराधियों के माँ, बहन और जीवनसाथी भी ऐसे ही आघात से गुज़रें, जिससे हम गुज़र रहे हैं। हमारा पूरा जीवन तबाह हो गया है। पत्रकार की शोक संतप्त पत्नी कविता ने सरकार से अपने परिवार और बेटियों की ज़रूरतों को बनाए रखने के लिए आर्थिक मुआवज़े की भी माँग की।

महामारी के बीच पत्रकारों की हत्याएँ चिन्ताजनक

भारत में पत्रकार असहाय से होते जा रहे हैं, क्योंकि अच्छे पत्रकारों की अपराधियों द्वारा हत्या करना और उनके लिए ज़रूरी मेडिकल इमरजेंसी की व्यवस्था जैसे अहम मसले मुद्दा नहीं बनते हैं। पत्रकार बिरादरी के बीच यह कैसे सम्भव है, जिसे पत्रकारिता के अपने फर्ज़ निभाने वाले काम के लिए निशाना बनाकर मार दिया जाए। वह भी ऐसे दौर में जब इस साल के करीब 200 दिनों में देश कोविड-19 जैसी महामारी से जूझ रहा है और बड़ी आबादी इससे प्रभावित है। साथ ही संक्रमितों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। महामारी के बीच पत्रकारों को निशाना बनाकर हत्या किया जाना बेहद चिन्ताजनक है।

गाज़ियाबाद के विजय नगर इलाके में 22 जुलाई की हत्या की घटना पत्रकारों के हालात को बयाँ करने के लिए काफी है, जिसने अपराधियों के खिलाफ उनके कृत्य का विरोध करने का साहस किया। गाज़ियाबाद के स्थानीय पत्रकार विक्रम जोशी को अपराधियों ने न केवल बुरी तरह से मारा-पीटा, बल्कि घटनास्थल से भागने से पहले उन्हें गोली मार दी। स्थानीय लोगों ने गम्भीर रूप से घायल जोशी को पास के अस्पताल ले गये, जहाँ दो दिन बाद उन्होंने दम तोड़ दिया।

विक्रम जोशी एक स्थानीय समाचार पत्र के लिए काम करते थे। उन्होंने 16 जुलाई को गाज़ियाबाद के विजय नगर पुलिस चौकी में अपनी भाँजी को परेशान करने वाले कुछ बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई की माँग की थी; लेकिन पुलिस की लापरवाही इस कदर रही कि बदमाशों ने जोशी को उनकी दो बेटियों के सामने ही मौत के घाट उतार दिया। मौत के बाद जब मामले ने तूल पकड़ा, तब उत्तर प्रदेश पुलिस सक्रिय हुई और हत्या में उनकी भूमिका पर संदेह करने वाले नौ लोगों को गिरफ्तार किया।

इस वारदात के हफ्ते भर पहले उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 25 वर्षीय युवा पत्रकार शुभममणि त्रिपाठी की हत्या कर दी गयी थी। कानपुर स्थित एक हिन्दी दैनिक के लिए काम करते थे। उन्नाव ज़िले के ब्रह्मनगर के निवासी त्रिपाठी एक ईमानदार पत्रकार थे और अपने इलाके में अवैध रेत खनन की लगातार रिपोर्ट कर रहे थे। हाल ही में शुभममणि की शादी राशि दीक्षित से हुई थी। त्रिपाठी को भी अज्ञात व्यक्तियों से धमकी मिल चुकी थी। अवैध खनन की रिपोर्टिंग करने पर इससे जुड़े बदमाशों ने उनको पहले से ही हमले की धमकी दी थी। लेकिन साहसी पत्रकार अपने काम से पीछे नहीं हटे और लगातार मामले की रिपोर्टिंग करते रहे। यूपी पुलिस ने पत्रकार की जान जाने के बाद हत्या में शामिल होने के संदेह में तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था।

आंध्र प्रदेश के नंदीगाम इलाके में 29 जून को गंटा नवीन (27) नाम के एक डिजिटल चैनल के संवाददाता की हत्या कर दी गयी थी। संवाददाता ने अपने इलाके के कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ दुश्मनी मोल ले ली थी और उन्होंने नवीन की हत्या के लिए अपराधियों का सहारा लिया। पुलिस ने उसकी हत्या के मामले में आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया। ओडिशा के पत्रकार आदित्य कुमार रणसिंह (40) व कांग्रेस नेता की हत्या  16 फरवरी को कटक ज़िले में बाँकी इलाके में कर दी गयी थी। एक न्यूज पोर्टल से जुड़े रणसिंह को दो अपराधियों ने काट डाला था, जिन्हें बाद में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। मामले में पाया गया कि पत्रकार से दोनों आरोपियों के बीच लम्बे समय से खुन्नस चल रही थी।

2019 में देश में पत्रकारों की हत्या की नौ घटनाएँ दर्ज की गयी थीं। लेकिन इनमें से महज़ एक वारदात ऐसी थी, जिसमें पत्रकार को निशाना बनाकर मारा गया था। आंध्र के एक तेलुगु दैनिक अखबार के पत्रकार के सत्यनारायण (45) को पेशागत गतिविधियों के कारण मौत के घाट उतार दिया गया। 15 अक्टूबर को उनकी हत्या कर दी गई थी। स्थानीय लेखकों ने बताया कि सत्यनारायण पर उससे पहले भी हमला हो चुका था। पिछले साल भारत में मारे गये लोगों में जोबनप्रीत सिंह (पंजाब का ऑनलाइन पत्रकार पुलिस की गोलीबारी में मारे गये), विजय गुप्ता (कानपुर में पत्रकार की करीबी रिश्तेदारों गोली मारकर हत्या कर दी थी), राधेश्याम शर्मा (कुशीनगर आधारित पत्रकार की उनके पड़ोसियों द्वारा हत्या), आशीष धीमान (सहारनपुर में फोटो पत्रकार की पड़ोसियों ने गोलीमारकर हत्या कर दी थी), चक्रेश जैन (शाहगढ़ में स्वतंत्र पत्रकार की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी थी), आनंद नारायण (मुम्बई के एक न्यूज चैनल से जुड़े पत्रकार की बदमाशों ने हत्या कर दी थी) और नित्यानंद पांडे (ठाणे में एक पत्रिका के सम्पादक को एक कर्मचारी मार दिया) शामिल थे।

केरल के पत्रकार के मोहम्मद बशीर पर सरकारी अधिकारी ने अपने वाहन से कुचलकर मार दिया था। गुवाहाटी शहर में संदिग्ध हालात में हुई दुर्घटना में पत्रकार नरेश मित्रा के सिर में चोट लगने के बाद मौत हो गयी। बिहार में बदमाशों ने पत्रकार प्रदीप मंडल को निशाना बनाया; लेकिन वह सौभाग्य से बच गये। एक प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र के मंडल ने स्थानीय शराब माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग की थी, जिससे माफिया उनसे शत्रुता मानने लगे थे।

भारत में पत्रकारों के लिए कोरोना वायरस से ज़्यादा खतरनाक उन पर जानलेवा हमले हो गये हैं, जिससे उनकी संक्रमण से कहीं ज़्यादा मौत हुई है। पिछले चार महीनों के अन्दर 10 मीडियाकर्मियों की हत्या हो चुकी है। देश के अलग-अलग राज्यों में सैकड़ों पत्रकार कोरोना वायरस संक्रमण के शिकार हुए हैं; क्योंकि वे भी बाहर निकलकर काम करते हैं और समाज को आईना दिखाने की कोशिश करते हैं। पत्रकार भी डॉक्टरों, नर्सों, स्वच्छता कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों की तरह ही कोरोना योद्धा की भूमिका अदा कर रहे हैं।

आंध्र प्रदेश के तिरुपति के एक वरिष्ठ टेलीविजन रिपोर्टर (मधुसूदन रेड्डी) ने 17 जुलाई को कोरोना संक्रमित हो गये, जिनको तेज़ बुखार के साथ साँस लेने में तकलीफ के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मधुसूदन आंध्र में दूसरे ऐसे पत्रकार थे, जो कोविड-19 की वजह से मौत के शिकार हुए। इससे पहले 12 जुलाई को वीडियो पत्रकार एम. पार्थ सारथी की इलाज के दौरान मौत हो गयी थी।

इससे पूर्व तमिलनाडु के टेलीविजन रिपोर्टर रामनाथन, ओडिशा के पत्रकारों सीमांचल पांडा, के.सी. रत्नम और प्रियदर्शी पटनायक भी वायरस संक्रमण के कारण दम तोड़ चुके थे। नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक प्रतिष्ठित अखबार के रिपोर्टर तरुण सिसोदिया की कोरोना का इलाज कराने के दौरान संदिग्ध हालात में ट्रॉमा सेंटर की चौथी मंज़िल से गिरकर मौत हो गयी थी। चेन्नई में करने वाले वीडियोग्राफर ई. वेलमुरुगन, चंडीगढ़ में न्यूज एंकर दविंदर पाल सिंह, हैदराबाद में टी.वी. पत्रकार मनोज कुमार और आगरा में अखबार के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ कोरोना संक्रमण से अपनी जान गँवा चुके हैं। इनके अलावा कोलकाता के फोटो पत्रकार रॉनी रॉय भी वायरस की चपेट में आयीं और नहीं बच सकीं।

गुवाहाटी के असोमिया खबर के प्रिंटर और पब्लिशर रंटू दास का दिल का दौरान पडऩे से निधन हो गया; जिनकी बाद में कोरोना जाँच करायी, तो वह संक्रमित पाये गये।  अखबार, न्यूज चैनल और न्यूज पोर्टल के लिए काम करने वाले सौ से अधिक गुवाहाटी के ही मीडिया कर्मचारी वायरस के संक्रमण की गिरफ्त में आ चुके हैं। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि ज़्यादातर स्थानीय मीडिया आउटलेट्स ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया है और न ही इसके लिए ज़रूरी कदम उठाये हैं; जो चिन्ता का सबब है। भले ही उनके कर्मचारी संक्रमित हो गये हों। महामारी के चपेट में आकर देश भर के सैकड़ों मुख्यधारा के मीडिया संस्थान भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं; क्योंकि इस दौरान कई अखबार या संस्करण बन्द कर दिये गये हैं। कई मुख्य अखबारों ने अपने संस्करण घटा दिये, ज़्यादातर ने पेज कम कर दिये हैं; साथ ही कर्मचारियों व पत्रकारों के वेतन में कटौती कर दी है। इसके पीछे तर्क दिया गया है कि विज्ञापन से आने वाले राजस्व में बेहद कमी आयी है। हमेशा की तरह किसी भी मीडिया संस्थान के पत्रकारों ने प्रबन्धन के ऐसे फैसलों के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं की; भले ही वे खुद में कुंठित हों।

क्या बाज़ार में बिक रहा नकली सैनिटाइजर?

आजकल परचून की दुकानों, यहाँ तक कि फुटपाथ पर भी मास्क और सैनिटाइजर की बिक्री हो रही है। क्या यह नकली सैनिटाइजर है? एक हौवा लोगों के दिमाग में कोरोना वायरस है बैठ चुका है, जो उन्हें सैनिटाइजर खरीदकर रखने और दिन में कई बार हाथों और इस्तेमाल की चीज़ों, जैसे मोबाइल, कुर्सी-मेज, यहाँ तक कि रूम आदि तक को सैनिटाइज करने को मजबूर कर रहा है। हाथों को धोने की िकल्लत से बचने का यह एक अच्छा तरीका है, जिसका प्रचार कोरोना वायरस के संक्रमण काल में सरकारों द्वारा भी खूब किया गया है। बाज़ारवाद का नियम है कि जब किसी चीज़ की माँग ज़्यादा होती है, तो वह महँगी हो जाती है। मुनाफाखोर इसमें सप्लाई कम करके मुनाफा कमाने की जुगत भिड़ाते हैं; लेकिन माल की आपूर्ति करने के लिए नक्काद सक्रिय हो जाते हैं और नकली माल बाज़ार में धड़ल्ले से उतरने लगता है। इस तरह जनता दो तरीके से ठगी जाती है, एक तो महँगी चीज़ें उसे खरीदनी पड़ती हैं और दूसरी तरफ जानकारी के अभाव में अधिकतर लोगों के हाथ नकली माल लगता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में पूरी दुनिया में सैनिटाइजर का बाज़ार तकरीबन एक अरब डॉलर था, जो 2020 में बढक़र लगभग छ: अरब डॉलर तक पहुँच गया है।

जून के अंतिम सप्ताह में गुरुग्राम के सेक्टर-49 में ज़िला औषधि नियंत्रक विभाग की टीम और पुलिस टीम ने छापा मारकर एक मेडिकल स्टोर से अमेरिकी कम्पनी का नकली सैनिटाइजर बरामद किया था, जो कि महँगे दामों पर बेचा जा रहा था। पुलिस और औषधि नियंत्रक विभाग ने दो लोगों को गिरफ्तार भी किया था। सूत्रों के मुताबिक, नकली सैनिटाइजर का खेल गुरुग्राम में खूब चल रहा है। पूछताछ के बाद आरोपियों की निशानदेही पर छापेमारी कर रही टीमों ने लक्ष्मण विहार में बने ठिकाने पर छापा मारकर भारी मात्रा में नकली सैनिटाइजर बरामद किया था।

क्या कहते हैं डॉक्टर

इस मामले में लोकनायक हॉस्पिटल में फोन करने पर नाम न बताने की शर्त पर एक डॉक्टर ने बमुश्किल बताया कि बाज़ार में नकली सैनिटाइजर की उन्हें जानकारी नहीं है; लेकिन अगर नकली सैनिटाइजर है, तो वह नुकसान ही करेगा; क्योंकि उसमें मेडिकल फार्मूले से अधिक कैमिकल हो सकता है।

वैंक्टेश्वर हॉस्पिटल के डॉक्टर तरुण भटनागर ने बताया कि नकली सैनिटाइजर ही क्या बहुत-सी नकली चीज़ें बाज़ार में हैं। इस पर सरकार या सम्बन्धित विभाग ही रोक लगा सकते हैं। हमारे पास जो भी मरीज़ आते हैं, उन्हें हम कम्पनी का सैनिटाइजर खरीदने का सुझाव ही देते हैं। वैसे भी कोई भी व्यक्ति जब भी सैनिटाइजर खरीदे, तो मेडिकल स्टोर पर ही जाए और लिए गये पैकेड को अच्छी तरह जाँच ले कि वह किस कम्पनी का है?

डॉक्टर मनीष कुमार का कहना है कि मास्क तो एक बार को कोई बेच भी सकता है; लेकिन सैनिटाइजर केवल वैध लाइसेंस प्राप्त मेडिकल स्टोर वालों को ही बेचने का अधिकार है। मगर इस संक्रमण-काल का फायदा उठाकर जगह-जगह सैनिटाइजर और मास्क बेचे जा रहे हैं। यहाँ तक कि नकली सैनिटाइजर पर ब्रांडेड कम्पनियों के नकली लेबल लगाकर भी सैनिटाइजर बेचा जा रहा है। इस मामले में ड्रग कंट्रोल विभाग हमेशा बेहतर काम करता है। मुझे लगता है कि नकली सैनिटाइजर की जानकारी ड्रग्स विभाग को अभी शायद नहीं होगी, अन्यथा अब तक छापेमारी शुरू हो गयी होती।

कोरोना-काल में बढ़ी विकट माँग

कोरोना वायरस फैलने के साथ-साथ जैसे-जैसे इसके घातक परिणामों के बारे में लोगों को पता चलता गया, सैनिटाइजर और मास्क की माँग बढ़ती गयी। आज अधिकतर लोग सैनिटाइजर इस्तेमाल करते दिखते हैं। जबकि पहले अस्पतालों में डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी सैनिटाइजर का इस्तेमाल करते थे या बहुत हुआ तो कुछ खास जगहों पर इसका इस्तेमाल किया जाता था। लेकिन जबसे इसके उपयोग पर ज़ोर दिया गया है, इसकी माँग तेज़ी से बढ़ गयी है। शुरू में सोशल मीडिया पर कई जगह सैनिटाइजर के अनाप-शनाप दाम वसूलने और कम्पनी का लेबल लगाकर नकली सैनिटाइजर बेचने की खबरें आयीं। इनमें कुछ वीडियो तो मेडिकल स्टोर्स की ही थीं। सवाल यह उठता है कि जब मेडिकल स्टोरों पर नकली दवाओं का धन्धा ज़ोरों से चलता है, तो सैनिटाइजर भी नकली बेचे जाने की बात से कौन इन्कार कर सकता है?

त्वचा के लिए नुकसानदायक

डॉ. मनीष कुमार ने बताया कि उनके पास सभी रोगों से पीडि़त मरीज़ आते हैं। पिछले महीने एक बुजुर्ग महिला उनके पास इलाज के लिए आयी, उसके हाथ जख्मी थे। पूछने महिला ने बताया कि उसके हाथ अपने आप जख्मी होने शुरू हो गये। जब यह पूछा गया कि आप हाथ किस चीज़ से धोती हैं, तो बुज़ुर्ग महिला ने बताया कि हाथ तो वह नहाने वाले साबुन से ही धोती है। उससे पूछा गया कि और किस चीज़ का इस्तेमाल करती हैं, हाथों का साफ रखने के लिए? तब उसने बताया कि बाज़ार से सैनिटाइजर खरीदकर लायी थी और उसी को दो-तीन बार बाहर आने-जाने के दौरान हाथों पर लगाती है। ऐसे में यह बात सामने आती है कि अधिक कैमिकल वाला सैनिटाइजर उन्हें नुकसान कर गया, जो कि नकली हो सकता है। क्योंकि हर किसी की त्वचा हर कैमिकल को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रखती। इसलिए किसी को भी किसी अच्छी कम्पनी का सैनिटाइजर ही इस्तेमाल करना चाहिए। चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर वी. कुमार कहते हैं कि हर प्रकार का कैमिकल सेहत के लिए नुकसानदायक ही होता है। त्वचा पर कोई भी कैमिकल अधिक समय के लिए रहेगा, तो वह नुकसान करेगा। इसलिए सैनिटाइजर को अल्कोहल की अधिक मात्रा के सहारे बनाया जाता है। घटिया क्वालिटी का सैनिटाइजर त्वचा के लिए ज़्यादा घातक हो सकता है। ऐसे लोगों को सैनिटाइजर और भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, जिन्हें चर्म रोग हो या जिनको सैनिटाइजर लगाने या कैमिकल का इस्तेमाल करने से खुजली या अन्य कोई समस्या होती है। ऐसे लोगों को डॉक्टर की सलाह से ही सैनिटाइजर खरीदना चाहिए।

मनमाने दाम और दामों में अन्तर

सबसे बड़ी बात यह है कि सैनिटाइजर के दाम पर कोई नियंत्रण नहीं है। जबकि सरकार द्वारा यह चेतावनी जारी की जा चुकी है कि मास्क और सैनिटाइजर के अनाप-शनाप दाम नहीं वसूले जाने चाहिए। इसके बावजूद मास्क और सैनिटाइजर की कालाबाज़ारी जमकर हो रही है और इन दोनों चीज़ों के मनमाने दाम वसूले जा रहे हैं। वहीं एक ही कम्पनी के नाम पर बिक रहे सैनिटाइजर के दामों में अन्तर देखने को भी बाज़ार में मिल रहा है। अहमदाबाद के विक्रम मेडिकल स्टोर चलाने वाले विक्रम भाई ने बताया कि बाज़ार में नकली सैनिटाइजर की उड़ती-उड़ती खबरें वह भी सुनते रहते हैं। यही वजह है कि वह अच्छी कम्पनियों का ही सैनिटाइजर बेचते हैं। क्योंकि वह किसी की सेहत से खिलवाड़ नहीं कर सकते। उनका कहना है कि ज़्यादा पैसा वसूलना और किसी की सेहत से खिलवाड़ करना उनके उसूलों के खिलाफ है। उनका कहना है कि पता नहीं आदमी कितनी मुश्किल से पैसा कमाकर दवा खरीदता है? हम उसे ठीक होने में मदद करने की जगह और बीमार कर दें, तो यह तो हम पर पाप ही होगा न! वैसे भी गलत तरीके से ज़्यादा पैसा कमाकर कहाँ ले जाएँगे, सब यहीं तो रह जाना है। दिल्ली स्थित शर्मा मेडिकल स्टोर के मालिक ने कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं जानते। वह सिर्फ कम्पनी की दवाइयाँ और अन्य चिकित्सीय चीज़ें बेचते हैं।

अप्रूव्ड होना चाहिए सैनिटाइजर

डॉक्टरों की मानें और असली दवाओं के मानक देखें, तो उनका सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोलर ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) अप्रूव्ड (स्वीकृत) होना ज़रूरी है। लोगों को सैनिटाइजर खरीदते समय भी एफडीए की स्वीकृति को देख लेना चाहिए। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि सैनिटाइजर में कम-से-कम 60 फीसदी अल्कोहल की मात्रा होनी चाहिए। इसके अलावा सैनिटाइजर लेते समय उसे बनाने के फार्मूले (सूत्र / नुस्खा) को ध्यान से पढ़ लेना चाहिए। यह भी देख लेना चाहिए कि सरकार द्वारा जारी सभी नियमों का पालन सैनिटाइजर बनाने वाली कम्पनी ने किया है या नहीं?

परेशानी होने पर जाएँ डॉक्टर के पास

चर्म रोग विशेषज्ञ डॉक्टर वी. कुमार कहते हैं कि यह समय ऐसा है कि अधिकतर लोग या तो सैनिटाइजर का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर हाथ धोने में बार-बार साबुन का। इसलिए बहुत-से लोगों को त्वचा के रोग, जैसे खुजली, जलन, त्वचा का गिरना, जख्म आदि की समस्या हो सकती है। अगर किसी को ऐसी कोई परेशानी हो, तो उसे तुरन्त डॉक्टर के पास जाना चाहिए। क्योंकि त्वचा के रोगों में ज़रा-सी लापरवाही बड़ी बीमारी का कारण बन सकती है।

ताबूत की आखरी कील बठिंडा थर्मल प्लांट बन्द

हर गाँव, कस्बे या शहर की कोई-न-कोई पहचान होती है। कहीं-कहीं उन्हें इनका पर्याय भी माना जाता है। ऐसा ही पर्याय विगत चार दशक से पंजाब के बठिंडा शहर के लिए जहाँ स्थित गुरु नानक देव थर्मल पॉवर प्लांट बन चुका है। अपनी समय अवधि पूरी होने, ज़्यादा लागत और अन्य कई अहम कारणों के चलते जहाँ उत्पादन बन्द हो चुका है। सितंबर 2017 में इसे बन्द करने की शुरुआत हो गयी और कुछ माह बाद जहाँ उत्पादन रुक गया था। इसे बन्द करने की नौबत क्यों आयी इसके पीछे उक्त कारणों के अलावा कुछ राजनीतिक भी है; लेकिन सरकारें कभी उनको ज़्यादा महत्त्व नहीं देतीं। निजीकरण की प्रक्रिया सरकारी क्षेत्र के उपक्रम बन्द होने की प्रक्रिया चलती रहती है और इनका पुरज़ोर विरोध भी होता रहा है।

बहरहाल बात देश के प्रवेश द्वार माने-जाने वाले बठिंडा में बड़ी इकाइयों के तौर पर नेशनल फॢटलाइजर और रिफाइनरी भी हैं; लेकिन पहचान कोयले से चलने वाले थर्मल प्लांट ने दिलायी। जहाँ स्थित चार चिमनियाँ लोगों के लिए चार मीनार जैसी ही हैं। प्लांट बन्द होने के बाद सैकड़ों एकड़ भूमि का क्या इस्तेमाल किया जाएगा। रोज़गारपरक कोई बड़ा उद्योग जहाँ स्थापित होता है, तो बात अलग; लेकिन कारोबारी नज़रिये से भूमि का इस्तेमाल होगा, तो यह लोगों की भावनाएँ आहत करने वाला होगा।

करीब चार दशक से इस शहर की पहचान बन चुके गुरु नानक देव थर्मल प्लांट के बन्द होने के बाद इसके वज़ूद को ही खतरा है। इस दौरान थर्मल प्लांट की धुआँ उगलने वाली चार चिमनियाँ शहर की पहचान बन चुकी थीं। सडक़ या रेल मार्ग से इन चिमनियों को देखकर कई किलोमीटर पहले ही पता चल जाता था कि बठिंडा आने वाला है। लगभग 122 मीटर ऊँची चार चिमनियाँ दूर से ही किसी कौतूहल जैसी लगती थी। रात के समय भी इनका पता चलता था। थर्मल प्लांट ने पंजाब के मालवा इलाके को बहुत कुछ दिया; इतना कि यह जहाँ के लोगों की ज़िन्दगी का एक हिस्सा हो गया था। इसके शुरू होने के बाद मालवा इलाके में बिजली की िकल्लत दूर हुई। भरपूर बिजली आपूर्ति हुई, तो नलकूप लगने लगे। पानी आया, तो खेती को जैसे नयी जान मिल गयी। चावल की खेती पहले से ज़्यादा होनी सम्भव हो गयी।

थर्मल प्लांट ने शहर को जहाँ पहचान दी, वहीं मालवा इलाके को सम्पन्नता दी। वैसे शहर की पहचान िकला मुबारक है। लेकिन ऊँची बिल्डिंगों के चलते यह बहुत दूर से नज़र नहीं आता। नयी पीढ़ी के लोग थर्मल प्लांट को शहर की आन, बान और शान समझते हैं। बन्द होने के बाद करीब 1800 एकड़ में पसरे इस थर्मल प्लांट का भविष्य क्या होगा। इस ज़मीन का क्या उपयोग किया जाएगा। लोगों के मन में सवाल घुमड़ रहे हैं कि क्या ऊँची अट्टालिकाओं जैसी चिमनियाँ गिरा दी जाएँगी? जो अक्सर देखने के बाद आँखों को सुकून देती हैं।

गुरु नानक देव थर्मल प्लांट की चिमनियों से उठने वाले धुएँ की वजह से यह लोगों की आँखों की किरकिरी भी बना। शहर और आसपास के इलाकों में वायू प्रदूषण भी बहुत होता था। इसकी ज़द में आने वाले इलाकों में साँस और अन्य कई तरह की बीमारियाँ होने की वजह भी इसका धुआँ और उससे निकलने वाली राख को माना गया। तब बड़ा आन्दोलन भी चला। बाकायदा तौर पर थर्मल हटाओ-बठिंडा बचाओ जैसा आन्दोलन चला। लोग प्लांट को बन्द करने के पक्ष में नहीं थे; लेकिन वे चाहते थे कि ज़हरीले धुएँ और निकलने वाली राख को वैज्ञानिक तरीके से रोका जाए। समय रहते इस पर काबू नहीं पाया जा सका, तो यह शहर के लोगों के बहुत खतरनाक साबित होगा। हज़ारों लोगों ने इस अभियान में हिस्सा लिया। नतीजा यह रहा कि समस्या का काफी हद तक समाधान हो गया।

अभियान से जुड़े रहे एमएम बहल के मुताबिक, नब्बे फीसदी समस्या का समाधान हो गया। उसके बाद बाकायदा तौर पर प्लांट को लेकर किसी तरह का कोई विरोध नहीं हुआ। अब तो यह हमारे शहर की पहचान है, इसके वज़ूद को बनाये रखा जाना चाहिए। चिमनियों के अलावा जहाँ की झीलें और अन्य खूबसूरत स्थलों को दर्शनीय स्थल के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए। सरकार इतने बड़े भू-भाग का क्या करेगी? अभी किसी को नहीं पता। वित्तमंत्री की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति ने इसके पूरी तरह से बन्द होने की सिफारिश के बाद इसके किसी भी तरह से शुरू होने की अटकलों पर अब विराम लग गया है।

 पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन और गुरु नानक थर्मल प्लांट एंप्लाइज एसोसिएशन ने अपने तौर पर इसके बदस्तूर जारी रखने के लिए हरसम्भव प्रयास किये। धरने और प्रदर्शन तक किये। सरकार के लिए यह प्लांट अब घाटे का सौदा साबित हो रहा था। सरकार का पक्ष रहा कि प्लांट से हर वर्ष 1300 करोड़ का घाटा हो रहा है। आिखर कब तक घाटे में प्लांट को चलाया जा सकता है।

दोनों एसोसिएशनों ने सुझाव दिया कि इसकी दो यूनिटें चलायी जा सकती है। इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया गया। विकल्प बायोमास और सोलर का दिया गया; लेकिन इसे मंज़ूरी नहीं मिल सकी। इंजीनियर्स एसोसिएशन के सचिव अजयपाल सिंह अटवाल की राय में इसे मंज़ूरी मिल जाती, तो यह चलता रहता। इससे चावल की फसल कटने के बाद बची पराली (भूसा) को जलाने की समस्या खत्म हो जाती, वहीं किसानों को अतिरिक्त आमदनी होती।

एंप्लाइज एसोसिएशन के प्रधान गुरसेवक सिंह संधू कहते हैं कि प्लांट तो काफी पहले बन्द हो चुका था; लेकिन दो यूनिटें शुरू करने के प्रस्ताव पर विचार चल रहा था। उम्मीद थी कि प्लांट फिर से शुरू हो जाएगा; लेकिन सरकार की मंशा इसे चलाने की नहीं थी और हम इस बात पर अडिग थे कि किसी-न-किसी सूरत में इसे शुरू कराया जाए। अब तो इसे बन्द करने का अंतिम फैसला हो गया है, जो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और हमारे लिए यह किसी काले दिन जैसा ही है। हज़ारों लोगों को अपरोक्ष तौर पर रोज़गार मिला हुआ था। धीरे-धीरे यूनिटों के बन्द होने से वे लोग बेरोज़गार हो गये। अब ऐसे लोग दिहाड़ी या छोटा-मोटा काम करने को मजबूर हैं। प्लांट लगने के बाद मालवा इलाके की खूब तरक्की हुई। इसकी बदौलत नेशनल फॢटलाइजर जैसा बड़ा उद्योग यहाँ आया। हज़ारों लोगों को परोक्ष और अपरोक्ष तौर पर काम मिला। इसके बन्द होने के नतीजे सामने आने लगे हैं। कितने ही लोग प्लांट की वजह से अपनी आजीविका चला रहे थे। हमारी भावनाएँ इस प्लांट से जुड़ी हुई हैं। क्योंकि हम कर्मचारी हैं; लेकिन जो नहीं हैं, वे शहरवासी भी इसके बन्द होने से निराश हुए हैं। अब प्लांट का भविष्य क्या होगा? सरकार के अलावा कोई नहीं जानता। कभी सुनने में आता है कि सरकार इसे इंडस्ट्रियल पार्क या बड़े शांपिग कांप्लेक्स के तौर पर विकसित करेगी। होगा क्या? अभी कुछ ठोस रूप से नहीं कहा जा सकता है।

फिलहाल इसे पंजाब अर्बन डवलपमेंट अथॉरिटी (पूडा) को सौंपा गया है। प्लांट की ज़मीन को सरकार कारोबारी लिहाज़ से विकसित करती है, तो इसका विरोध होना स्वाभाविक है। गाँव कोठे कामे के जसकरण सिंह कहते हैं कि हमारे पुरखों ने प्लांट के लिए ज़मीन दी थी; लेकिन अब सरकार उस ज़मीन का क्या करेगी? अगर उसे बेचने का प्रयास किया गया, तो सभी लोग इसका विरोध करेंगे। इसमें ज़मीन वापस करने की माँग की जाएगी। बहुत-से छोटे किसान ज़मीन अधिग्रहण के बाद बेकार हो गये। सरकार ने प्लांट के लिए उनकी ज़मीन का अधिग्रहण तो कर लिया; लेकिन उनके भविष्य का पूरा बन्दोबस्त नहीं किया।

इसी गाँव के मंदर सिंह, तलविंदर सिंह और धर्मसिंह के पुरखों की ज़मीन सरकार ने प्लांट के लिए ली थी। बलदेव सिंह और जगदेव सिंह भी ऐसे ही लोगों में शामिल है। जसकरण याद करके बताते हैं कि उनकी नौ किल्ले (नौ एकड़) ज़मीन सरकार ने ली थी। ज़मीन का भाव छ: से सात हज़ार रुपये के करीब था। जहाँ ज़मीन कुछ अच्छी थी वहाँ भाव 10 हज़ार रुपये तक भी था। आज ज़मीन के भाव आसमान छू रहे हैं।

सरकार को हमारे बारे में भी कुछ सोचना होगा। हमारे बाप दादाओं ने ज़मीन क्या सरकार को ज़मीन कभी ऊँचे दामों पर बेचने के लिए दी थी। उन्होंने तो पंजाब के भले के लिए यह सब किया था। सरकार चाहती तो प्लांट को शुरू रख सकती थी, हमें कोई एतराज़ नहीं था; लेकिन हम ज़मीन को बिकते हुए नहीं देख सकते।

थर्मल प्लांट के लिए देसराज और किशन चंद की ज़मीन भी सरकार ने ली थी। उनके पास ज़्यादा ज़मीन नहीं थी; लेकिन देने के अलावा कोई चारा नहीं था। प्लांट शुरू हो गया; लेकिन दोनों के परिवारों के अच्छे दिन लद गये। अब उनकी तीसरी पीढ़ी के अशोक कुमार, करण सिंह, राजेंद्र सिंह और राम सिंह दूसरे काम कर रहे हैं। खेती तो ज़मीन देने के बाद ही धीरे-धीरे खत्म हो गयी थी। अब आजीविका के लिए कुछ तो करना ही था। कुछ तो रोज़ी-रोटी के लिए दिहाड़ी करने को मजबूर हैं। प्लांट के बन्द होने और ज़मीन के कारोबारी उपयोग में लाये जाने की खबरों के बाद वे भी सक्रिय होने का प्रयास करेंगे।

कुछ आर्थिक राहत या मुआवज़े का उन्हें भी इंतज़ार रहेगा। इसके लिए ऐसे लोग एकजुट होने लगे हैं। यह एक लम्बी प्रक्रिया होगी, जिसमें पैसा और समय दोनों खर्च होंगे; लेकिन बावज़ूद इसके उनकी तैयारी चलने लगी है।

गुरु नामक देव थर्मल प्लांट एंप्लाइज एसोसिएशन के प्रधान गुरसेवक सिंह की राय में अगर वित्तमंत्री मनप्रीत सिंह बादल चाहते तो प्लांट की दो यूनिटें चल सकती थीं। प्रस्ताव अच्छा और सभी के हित में था; लेकिन वह नहीं चाहते थे कि प्लांट किसी भी तरह से शुरू हो। वह बताते हैं कि जब राज्य में कांग्रेस सत्ता में नहीं थी, तो इन्हीं मनप्रीत बादल ने भरोसा दिया था कि पार्टी की सरकार बनने पर प्लांट को शुरू किया जाएगा।

सैकड़ों लोगों के सामने उन्होंने कहा कि जब वह बठिंडा से गुज़रते हैं, तो थर्मल प्लांट को बन्द देखकर उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। इसे शुरू कराने की उनकी प्राथमिकता रहेगी। कांग्रेस सत्ता में आ गयी, मनप्रीत बादल वित्तमंत्री बन गये, अब तो बहुत आसान था। लेकिन उलटा हो गया; अब वे इस बात पर अडिग हो गये कि प्लांट को किसी भी हालत में शुरू नहीं होने देना है।

कर्मचारी बताते हैं कि प्लांट बन्द करने के फैसले पर हम लोग व्यापक स्तर पर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। कांग्रेस तब विपक्ष में थी और सत्ता में आने की कोशिश कर रही थी।

इस दौरान मनप्रीत बादल धरना स्थल पर पहुँचे और बड़े भावुक अंदाज़ में हम लोगों का दिल जीत लिया। मनप्रीत ने सैकड़ों लोगों की मौज़ूदगी में कहा कि वह जब भी अपने पैृतक गाँव आते-जाते बठिंडा से गुज़रते हैं, तो प्लांट की बन्द चिमनियों को देखकर उनकी आँखें नम हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सत्ता में आयी, तो प्लांट हर हालत में शुरू होगा और चिमनियाँ फिर से धुआँ उगलने लगेंगी। विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने इसे पार्टी घोषणा-पत्र में भी शामिल किया। लेकिन सत्ता मिलने के बाद इसे शुरू करने के बन्द कर दिया गया। कर्मचारी इसे पंजाब के साथ धोखा बता रहे हैं।

प्लांट बन्द होने के ढाई साल के दौरान कर्मचारियों का धरना-प्रदर्शन रह रहकर जारी रहा, ताकि किसी तरह प्लांट शुरू हो सके। आिखरकार तीन सदस्यीय उप समिति की बन्द करने की सिफारिश प्लांट के कफन की आखरी कील साबित हुई। इसके बाद मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने दो टूक कह दिया कि सरकार बठिंडा थर्मल पॉवर प्लांट को किसी भी हालत में शुरू नहीं कर सकती। जुलाई के पहले सप्ताह में जहाँ भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन) के नेतृत्व में प्लांट गेट के बाहर धरना चल रहा था। जहाँ जोगिंदर सिंह (55) नामक किसान ने दम तोड़ दिया। कांग्रेस को छोडक़र अन्य विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले को राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। वह इसे सरकार के निजीकरण की और बढ़ते कदम बता रहे हैं।

प्लांट का इतिहास

थर्मल प्लांट की नींव पत्थर नवंबर 1969 में रखा गया। इसे गुरुनानक देव थर्मल प्लांट का नाम दिया गया। सितंबर 1974 में 110 मेगावाट की इसकी पहली इकाई तैयार हुई। अगले साल सितंबर में 110 मेगावाट की दूसरी इकाई का काम भी पूरा कर लिया गया। 120 मेगावाट क्षमता की तीसरी इकाई मार्च 1978 में तैयार हुई, जबकि चौथी 120 मेगावाट की इकाई मार्च 1979 में पूरी हो गयी। उस दौरान इसकी लागत 115 करोड़ रुपये आयी। धुएँ के लिए 120 मीटर की दो और 122 मीटर की दो यानी कुल चार चिमनियाँ वज़ूद में आयीं; जो बाद में शहर की पहचान के तौर पर सामने आयीं। प्लांट को लगाते समय इसके अगले 40 साल तक चलाया जाना था; लेकिन अवधि पूरी होने से पहले इसे बन्द करने की नौबत आ गयी। वर्ष 2012 से 2014 के दौरान प्लांट के आधुनिकीकरण पर 716 करोड़ रुपये खर्च किये गये, ताकि इसकी उत्पादन क्षमता प्रभावित न हो सके। इतनी बड़ी राशि खर्च करने तीन साल बाद ही प्लांट को बन्द करने के प्रयास शुरू हो गये। बिजली उत्पादन में ज़्यादा लागत की वजह से इसे सफेद हाथी के तौर पर प्रचारित किया जाने लगा। अंतत: प्लांट को बन्द करना ही पड़ा। कोयला आधारित सरकारी बिजली संयंत्रों में लहरा मुहब्बता में गुरु हरगोबिन्द सिंह थर्मल प्लांट और रोपड़ में गुरु गोबिन्द सिंह सुपर पॉवर थर्मल प्लांट काम कर रहे हैं। जिस तरह से निजी बिजली उत्पादन कम्पनियों को बढ़ावा मिल रहा है, उससे भविष्य में इनके बन्द होने के खतरे से इन्कार नहीं किया जा सकता।

पीएसईबी के प्रयास

पीएसईबी इंजीनियर्स एसोसिएशन के सचिव अजयपाल सिंह अटवाल के मुताबिक, एसोसिएशन ने प्लांट को चालू रखने के हर सम्भव प्रयास किये। बन्द होने के फैसले के बाद दो इकाइयों को चलाने का प्रस्ताव तैयार किया। पंजाब के पास बिजली की कमी है। सरकारी उपक्रमों से यह कमी दूर होगी निजी क्षेत्रों पर निर्भरता ठीक नहीं है। राज्य में आधी से ज़्यादा बिजली निजी क्षेत्रों से खरीदनी पड़ रही है। इस पर भारी भरकम राशि खर्च होती है। बठिंडा थर्मल पॉवर प्लांट की दो इकाइयों को बायोमास या सोलर ऊर्जा के तौर पर चलायी जा सकती थी। प्लांट के पास पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर है; इनके लिए ज़्यादा पैसा खर्च भी नहीं होना था। इससे खेत में पराली (भूसा) जलाने से आसपास के क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण की समस्या खत्म होती, वहीं किसानों को इससे आय होती। एसोसिएशन ने पूरा ब्यौरा सरकार के पास भेजा; लेकिन उसे मंज़ूर नहीं किया गया।

केवल आश्वासन मिले

गुरु नानकदेव थर्मल पॉवर प्लांट एंप्लाइज एसोसिएशन के प्रधान गुरसेवक सिंह संधू के मुताबिक, एसोसिएशन फैसले से बेहद नाराज़ है। सदस्यों में सरकार के प्रति खासी नाराज़गी है। उत्पादन बन्द होने के बाद से जुलाई के पहले सप्ताह तक कर्मचारी आन्दोलनरत ही रहे। धरना-प्रदर्शन करते रहे। लेकिन सरकार की मंशा इसे चलाने की नहीं थी। इसलिए उन्हें सफलता कहाँ से मिलती? प्लांट बन्द करने का फैसला ठीक नहीं इस पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है। पक्के कर्मचारियों की नौकरी को सीधे तौर पर खतरा न होने की बात सरकार कहती है; लेकिन ठेके वाले लोग सडक़ पर आ जाएँगे। घाटे में होने की बात कह सरकारी उपक्रमों को बन्द करने से पंजाब में सरप्लस बिजली होने का दावा कागज़ों में ही रहेगा। निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना उचित कदम नहीं है। सरकार की मंशा होती, तो दो इकाइयाँ बहुत कम खर्च में चल सकती थीं। राजनीतिक दलों ने प्लांट शुरू करने के आश्वासन ही दिये; किसी ने इसके लिए गम्भीर प्रयास नहीं किये।

वायु प्रदूषण को कम करना बड़ी चुनौती

वायु प्रदूषण को लेकर आज पूरी दुनिया परेशान है। भारत में इसे लेकर राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)  काफी सजग रहा है और समय-समय पर प्रकृति को हरा-भरा रखने तथा वायु प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करता रहा है। अब भारत सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाने की तैयारी में है। हाल ही में इसके लिए सरकार ने देश भर में ग्रीन हाइड्रोजन कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (एचसीएनजी) के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का फैसला किया है। सम्भव है कि भारत में वायु प्रदूषण तेज़ी से घटे; क्योंकि सरकार ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए एचसीएनजी को पूरे देश में लागू करने का फैसला कर चुकी है। माना जा रहा है कि एचसीएनजी के उपयोग से 70 फीसदी वायु प्रदूषण कम होगा। इतना ही नहीं, इससे वाहनों के इंजनों की क्षमता भी बढ़ेगी और लोगों को अधिक माइलेज (कम लागत में अधिक सफर का फायदा) मिलेगा। बताया जा रहा है कि एचसीएनजी को सरकार भविष्य के हरित ईंधन के रूप में देख रही है।

इस बारे में 20 जुलाई को सडक़ परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने सुझावों और आपत्तियों के लिए अधिसूचना के तौर पर मसौदा जारी कर दिया है। इस मसौदे में कहा गया है कि ग्रीन एनर्जी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (एआर्ईएस) के नियमों- 24 व 28 के तहत सभी मानकों का पालन लोगों को करना होगा। सडक़ परिवहन मंत्रालय इस बारे में ग्रीन एनर्जी सीएनजी, एचसीएनजी और बॉयो-सीएनजी को लेकर पहले ही गाइडलाइन तैयार कर चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली, कानपुर, मुम्बई और अन्य कई अधिक वायु प्रदूषण वाले शहरों में बढ़ते प्रदूषण को लेकर माननीय उच्च अदालत के आदेश पर केंद्र सरकार देश भर में एचसीएनजी लागू करने की तैयारी कर रही है। बता दें कि देश की राजधानी दिल्ली में एचसीएनजी बसें चलाने का ट्रॉयल सफल हो चुका है, जिसे देखते हुए अब इसे पूरे देश में लागू करने की योजना तैयार की जाएगी।

इंजनों की बढ़ेगी क्षमता

विशेषज्ञों का कहना है कि एचसीएनजी से न केवल 70 फीसदी प्रदूषण कम होगा, बल्कि इंजन की क्षमता बढ़ेगी। एचसीएनजी सीएनजी से केवल दो-तीन रुपये महँगी हो सकती है। लेकिन इसके लिए कारों के इंजनों में कोई विशेष बदलाव करने की ज़रूरत नहीं होगी। ट्रायल रिपोर्ट कहती है कि एक बार की फुल टैंक एचसीएनजी से कोई कार 600 से 800 किलोमीटर चलेगी। पिछले साल विशेषज्ञों की एक समिति ने वायु प्रदूषण घटाने के लिए सीएनजी में 18 फीसदी हाइड्रोजन मिलाने का सुझाव दिया था। इस सुझाव के पीछे ईंधन की लागत को घटाना था; क्योंकि केवल हाइड्रोजन का इस्तेमाल करने से वाहन चलाने का खर्चा अधिक आता है। इतना ही नहीं, हाइड्रोजन से चलने वाला कार का इंजन भी काफी महँगा पड़ता है; क्योंकि उच्चस्तरीय इंजन बनाने में निर्माता कम्पनियों को अधिक लागत लगानी पड़ती है।

घटेगी पेट्रोलियम पदार्थों की खपत

भारत में अधिकतर वाहन पेट्रोल-डीजल से चलते हैं। ऐसे में एचसीएनजी का उपयोग शुरू होगा, तो पेट्रोलियम पदार्थों की खपत बहुत घट जाएगी, जिससे भारत का पेट्रोलियम कारोबार काफी कम हो जाएगा। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका, रूस, चीन, जापान, दुबई, कनाडा, ब्राजील, इजराइल, दक्षिण कोरिया जैसे देश ग्रीन एनर्जी की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए काफी उत्साहित हैं। विकसित देशों में बतौर वाहन ईंधन के रूप में हाइड्रोजन के इस्तेमाल को लेकर लगातार ट्रॉयल हो रहे हैं। भारत भी पेट्रोलियम पदार्थों पर निर्भरता को कम करने के लिए सीएनजी, एचसीएनजी, एलपीजी, बॉयो फ्यूल आदि को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के विकल्प को चुनना अच्छा साबित हो सकता है।

आसान नहीं प्रदूषण घटाना

भारत में प्रदूषण कम करना उतना आसान नहीं है। हर साल जहाँ पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसान पराली जलाते हैं, वहीं गाँवों, कस्बों यहाँतक कि शहरों में भी लोग सर्दियों में जमकर आग जलाते हैं। गाँवों में तो अधिकतर घरों में आज भी लकड़ी-गोबर के कंडों आदि से खाना बनाया जाता है। इसके अलावा भारत में उद्योगों और फैक्ट्रियों से उठने वाले धुएँ से भी विकट वायु प्रदूषण फैलता है। चिकित्सा विशेषज्ञों और वायु प्रदूषण पर जारी रिपोर्टों की मानें तो वायु प्रदूषण इंसानों के स्वास्थ्य के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बन चुका है। अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशंस (आईएचएमई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित हवा से जितनी मौतें हो रही हैं, उतनी तो धूम्रपान से भी नहीं हो रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में सन् 2017 में तकरीबन 49 लाख लोगों की मौत हुई थी। दुनिया भर में कुल मौतों में 8.7 फीसदी मौतें केवल वायु प्रदूषण से हो रही हैं।

भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें

अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवेल्यूएशंस (आईएचएमई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में लोग समय से पहले ही मौत के मुँह में समा रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों की आयु औसतन 2.6 साल कम हुई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बाहरी वायु प्रदूषण के चलते लोगों की औसत आयु 18 महीने और घरेलू प्रदूषण के कारण औसत आयु 14 महीने कम हुई है। यह कम हो रही वैश्विक औसत आयु के औसत 20 महीने से  काफी ज़्यादा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, सन् 2017 में भारत में वायु प्रदूषण से करीब 12 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद के आँकड़े हमें प्राप्त नहीं हुए हैं। क्योंकि यह 2019 के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट के हैं। यह मौतें बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के अलावा ओजोन प्रदूषण के मिले-जुले कारणों से हुई थीं। रिपोर्ट में कहा गया कि 12 लाख मौतों में से 6 लाख 73 हज़ार 100 मौतें बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से और 4 लाख 81 हज़ार 7 सौ मौतें घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से हुई थीं। इसी तरह चीन में भी 2017 में 12 लाख, पाकिस्तान में एक लाख 28 हज़ार, इंडोनेशिया में एक लाख 24 हज़ार, बांग्लादेश में एक लाख 23 हज़ार, नाइजीरिया में एक लाख 14 हज़ार, अमेरिका में एक लाख 8 हज़ार, रूस में 99 हज़ार, ब्राजील में 66 हज़ार और फिलीपींस में 64 हज़ार मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन प्रदूषण पिछले एक दशक में बहुत बड़ा खतरा बनकर उभरा है। सन् 2017 में दुनिया भर में ओजोन प्रदूषण के कारण तकरीबन पाँच लाख लोग असमय मृत्यु को प्राप्त हुए। 1990 से 2017 तक इसमें 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

रिपोर्ट में किये गये विश्लेषण से पता चलता है कि दुनिया की अधिकतर आबादी अस्वस्थ है और प्रदूषण में जी रही है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित हवा के मानकों के अनुसार, 90 फीसदी से अधिक आबादी शुद्ध हवा में साँस नहीं ले रही है।

वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ

वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ भारत में तेज़ी से पाँव पसार रही हैं। आज हर आदमी थोड़ा-बहुत बीमार है, जिसका एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण है। वायु प्रदूषण से हृदयाघात, फेफड़ों की बीमारियाँ, कैंसर, मधुमेह, श्वसन सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं। स्वास्थय रिपोर्टों की मानें तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 49 फीसदी मौतें फेफड़ों और 33 फीसदी मौतें फेफड़ों के कैंसर, 22 फीसदी मौतें मधुमेह, 15 फीसदी मौतें हृदयाघात और 22 फीसदी मौतें हृदय की अन्य बीमारियों के चलते हुई हैं। अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण को टाइप-2 मधुमेह से जोड़ा गया है। भारत में यह महामारी का रूप ले चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015 में मधुमेह पर वैश्विक अर्थ-व्यवस्था का 1.8 फीसदी खर्च हुआ, जो कि सभी देशों के स्वास्थ्य तंत्र के लिए तेज़ी से बढ़ती चुनौती है। रिपोर्ट के नतीजों में कहा गया है कि पीएम-2.5 मधुमेह (टाइप-2) के मामलों के साथ-साथ मृत्यु दर को बढ़ाता है। ग्लोबल बर्डन डिसीज-2017 के एक विश्लेषण में उच्च रक्तचाप और मोटापे के बाद मधुमेह (टाइप-2) से होने वाली मौतों के लिए वायु प्रदूषण (पीएम-2.5) को तीसरा सबसे बड़ा खतरा बताया गया था। वर्ष 2017 में दुनिया भर में पीएम-2.5 से होने वाले मधुमेह (टाइप-2) से दो लाख 76 हज़ार मौतें हुईं। भारत में यह खतरा बहुत तेज़ी से बड़ा है और इस साल पीएम-2.5 के कारण 55,000 मौतें हुईं।

बचाव के रास्ते

आज वायु प्रदूषण सरकार के लिए चुनौती बन गया है। इसलिए भारत सरकार को वायु प्रदूषण से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे; ताकि इससे फैलने वाली बीमारियों के संक्रमण को रोका जा सके। वैसे केंद्र सरकार के एचसीएनजी लागू करने के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। क्योंकि वायु प्रदूषण के स्तर को कम करना बहुत ज़रूरी हो गया है। इसके अलावा राज्य सरकारों, नेताओं, अभिनेताओं, अधिकारियों और लोगों को भी वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आगे आना होगा। इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत अधिक-से-अधिक पेड़ लगाने की है; ताकि भविष्य को सुरक्षित किया जा सके। साथ ही वनों और निर्माण के लिए जगह-जगह पेड़ों के कटान को एकदम रोकना होगा।