सच पर खरा उतरा, तहलका का स्टिंग ऑपरेशन, खोजी पत्रकारिता एक बार फिर उच्चतम शिखर पर

‘तहलका’ एक बार फिर सच की कसौटी पर खरा उतरा है। तहलका के स्टिंग ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ के आधार पर रक्षा सौदों के तीन अभियुक्तों को सीबीआई की विशेष अदालत में दोषी ठहराये जाने के बाद भारत में खोजी पत्रकारिता ने एक बार फिर अपना विशेष स्थान हासिल किया है। पूरे मामले पर चरणजीत आहुजा की रिपोर्ट :-

संदिध रक्षा सौदे हमेशा ही राजनीतिक तूफान खड़ा करते रहे हैं। हालाँकि यह तहलका का स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड था; जिसने जनवरी, 2001 में घिनौने रक्षा सौदों का पर्दाफाश किया और पूरे देश को हिलाकर रख दिया। तहलका के इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन के करीब 20 साल बाद समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली और दो अन्य अभियुक्तों को सीबीआई की अदालत ने दोषी ठहराया है। यहाँ आपको इस स्टिंग ऑपरेशन के बारे में बताते हैं कि यह मामला था क्या?

इस मामले की शुरुआत रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए 2000-2001 में समाचार वेबसाइट तहलका के स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड से होती है। इस भ्रष्टाचार को स्टिंग के ज़रिये मार्च, 2001 के मध्य में जनता के सामने लाया गया।

अब 21 जुलाई, 2020 को तहलका के इस सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन से उजागर हुए रक्षा सौदे से जुड़े लगभग 20 साल पुराने भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई की विशेष अदालत के विशेष न्यायाधीश वीरेंद्र भट ने समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली, उनके पूर्व पार्टी सहयोगी गोपाल पचेरवाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एस.पी. मुरगई को भ्रष्टाचार और आपराधिक साज़िश का दोषी करार दिया है। इन दोषियों को अब कितनी सज़ा होगी? इस मामले पर अदालत सुनवाई करेगी।

जया जेटली पूर्व केंद्रीय रक्षा मंत्री, जॉर्ज फर्नांडीस की करीबी सहयोगी थीं और तहलका के रहस्योद्घाटन के बाद उन्हें समता पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था। तहलका का ऑपरेशन वेस्ट एंड तब सार्वजनिक चर्चा में आया था, जब इसकी सीडी सार्वजनिक की गयी थी। रक्षा मंत्रालय और रक्षा अधिकारियों के शीर्ष अधिकारियों को लंदन स्थित एक काल्पनिक फर्म ‘वेस्ट एंड इंटरनेशनल’ के प्रतिनिधियों के रूप में पेश किये गये फर्म प्रतिनिधियों (वास्तव में तहलका के पत्रकार) से उपहार और नकदी स्वीकार करते हुए दिखाया गया था। रक्षा फर्म के प्रतिनिधियों के रूप में इन पत्रकारों ने कुछ उत्पादों के लिए सेना से रक्षा ऑर्डर लेने के लिए यह सब किया था।

सीबीआई के आरोप-पत्र के अनुसार, जया जेटली ने 2000-01 में मुरगई, सुरेखा और पचेरवाल के साथ एक आपराधिक षड्यंत्र रचा। और खुद के या किसी अन्य व्यक्ति के लिए मैथ्यू सैमुअल से दो लाख रुपये प्राप्त किये। सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जुलाई के अपने फैसले में कहा कि जया जेटली ने पत्रकार मैथ्यू सैमुअल से दो लाख रुपये स्वीकार किये, जो काल्पनिक कम्पनी वेस्ट एंड इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में तैनात थे। मुरगई को अपने हिस्से के 20 हज़ार रुपये मिले।

अदालत ने कहा कि उन्होंने (जया जेटली ने) ऐसा अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के लिए रक्षा मंत्रालय से उपकरण की आपूर्ति उपरोक्त फर्म को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया। जेटली, पचेरवाल और मुरगई को भ्रष्टाचार निरोधक (पीसी) अधिनियम की धारा-9 के तहत साज़िश (धारा-120 ‘बी’ आईपीसी) के अपराध (लोक सेवक के साथ व्यक्तिगत प्रभाव के लिए व्यक्तिगत प्रभाव के लिए) का दोषी ठहराया गया। यह आरोप लगाया जाता है कि इस सम्बन्ध में मुरगई को उनकी सेवा के लिए कई भुगतान किये गये थे और मामले में उनकी सहायता के लिए सुरेखा को एक लाख रुपये का भुगतान किया गया था।

सीबीआई की विशेष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के सुबूतों से यह बिना किसी संदेह के साबित होता है कि 25 दिसंबर, 2000 को होटल के कमरे में हुई बैठक में सुरेखा और मुरगई ने सैमुअल को उनके उत्पाद खरीदने को रक्षा मंत्रालय से मूल्यांकन पत्र हासिल करने में उनकी सहायता का आश्वासन दिया था। अदालत ने कहा कि यह साबित होता है कि वे उनके और जया जेटली, जो उन्हें राजनीतिक कवर देंगी; के बीच इस मामले में एक बैठक सुनिश्चित करवाएँगे। सीबीआई की विशेष अदालत के आदेश में आगे कहा गया है कि इस प्रकार उनके बीच अवैध तरीके से यानी सम्बन्धित अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार और व्यक्तिगत प्रभाव का सहारा लेकर सम्बन्धित उत्पाद के लिए मूल्यांकन पत्र प्राप्त करने के लिए एक समझौता हुआ था।

इस तरह का समझौता स्पष्ट रूप से साज़िश को साबित करता है।

तत्कालीन केंद्रीय रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के आधिकारिक आवास में हुई उस बैठक में सैमुअल को एक व्यवसायी के रूप में जेटली से मिलवाया गया था; जिनकी कम्पनी रक्षा खरीद के बाज़ार में प्रवेश करना चाहती है।

न्यायाधीश ने कहा कि सैमुअल ने जेटली को दो लाख रुपये की राशि की पेशकश की, जिसने उन्हें पचेरवाल को पैसे सौंपने का निर्देश दिया और तदनुसार आरोपी पचेरवाल ने यह पैसा लिया; यह जानते हुए भी कि यह रिश्वत का पैसा है। इसके बदले में जया जेटली ने सैमुअल को आश्वासन दिया कि यदि उनकी कम्पनी के उत्पाद पर विचार नहीं किया जाता है, तो वह इस सम्बन्ध में सम्बन्धित अधिकारी को संकेत भेजने के लिए साहिब (सम्भवत: रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस) से अनुरोध करके हस्तक्षेप करेगी।

अदालत ने पाया कि दोनों ही आरोपी- पचेरवाल और जेटली बाद में साज़िश में शामिल हो गये थे। उन्हें उद्देश्य की जानकारी थी और उन्हें सौंपे गये कार्य को पूर्ण करने के लिए वे सहमत हो गये थे। लिहाज़ा वे भी अपराध की साज़िश के दोषी हैं। अदालत ने कहा कि भारतीय सेना में सैमुअल की कम्पनी के उत्पाद को आगे बढ़ाने में सम्बन्धित मंत्रियों / अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव डालने हेतु दिये गये कार्य को पूरा करने पर सहमत होने के लिए सैमुअल से मिली दो लाख रुपये की राशि पचेरवाल के माध्यम से जेटली को मिली। अदालत ने यह भी कहा कि इसी प्रकार मुरगई ने 4 जनवरी, 2000 को सैमुअल से 20 हज़ार रुपये की राशि प्राप्त की, जो सम्बन्धित अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव से कम्पनी के उत्पाद के लिए जेटली के साथ एक बैठक आयोजित करने और कम्पनी के उत्पाद के मूल्यांकन के पत्र को सुरक्षित करने के बदले प्रदान की गयी थी। इसलिए दोनों ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 की धारा-9 के तहत अपराध किया है।

ऑपरेशन वेस्ट एंड

इसे साल 2000 में लॉच किया गया। तहलका ने तब देश भर में सनसनी मचा दी, जब उसने अपने पहले प्रमुख स्टिंग ऑपरेशन वेस्ट एंड का वीडियो फुटेज जारी किया। वीडियो में कई रक्षा अधिकारियों और राजनेताओं को नकद और उपहार स्वीकार करते और पाँच सितारा होटलों में मनोरंजन करते हुए दिखाया गया। तहलका ने काल्पनिक ब्रिटिश कम्पनी के प्रतिनिधियों के रूप में अपने दो पत्रकारों को फोर्थ जेनरेशन थर्मल हैंड हेल्ड कैमरा और  अन्य उपकरणों की बिक्री के लिए भेजा था। जैसे ही तहलका का अंडरकवर ऑपरेशन सार्वजनिक हुआ, इस घोटाले ने सरकार को तत्काल संकट में डाल दिया।

तहलका ने लंदन स्थित एक काल्पनिक हथियार निर्माता कम्पनी वेस्ट एंड इंटरनेशनल बनायी। तहलका के स्टिंग पत्रकारों ने ऑपरेशन की शुरुआत रक्षा मंत्रालय में वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी पी. साशी मेनन से सम्पर्क के साथ हुई। टीम ने ब्रिगेडियर अनिल सहगल के पास ले जाने के लिए उन्हें रिश्वत दी, जो उस समय आयुध और आपूर्ति महानिदेशालय (डीजीओ) में उप निदेशक थे। बैठक के बाद ब्रिगेडियर सहगल ने कथित रूप से दो लाख रुपये की माँग की, ताकि वह कम्पनी को भारतीय सेना को आपूर्ति करने में रुचि रखने वाले फोर्थ जेनरेशन थर्मल हैंड हेल्ड कैमरा और अन्य उपकरणों की खरीद से सम्बन्धित दस्तावेज़ दे सकें।

ब्रिगेडियर सहगल ने पत्रकारों के पास मौज़ूद जासूसी कैमरे पर कहा कि कम्पनी को तत्कालीन रक्षा मंत्री सहित सभी को भुगतान करना होगा। 23 दिसंबर, 2000 को तहलका टीम ने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण के साथ अपनी पहली बैठक की और 13 मार्च, 2001 को तहलका ने स्टिंग ऑपरेशन की सीडी जारी कर दी। इसके जारी होते ही बंगारू लक्ष्मण को इस्तीफा देना पड़ा। यही नहीं, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस और उनकी समता पार्टी की अध्यक्ष जया जेटली ने भी इस्तीफा दे दिया।

उस स्टिंग वीडियो का एक प्रतिलेख यहाँ दे रहे हैं। स्टिंग की शुरुआत रक्षा मंत्रालय के तत्कालीन वरिष्ठ अनुभाग अधिकारी पी. साशी मेनन के साथ बातचीत से होती है :-

तहलका : अब आपको इसका रास्ता निकालना है। …आज आप मुझे क्या दे रहे हो? क्या आप मुझे अभी कुछ दे रहे हो?

साशी : मैं उस अन्य निर्देशिका को ले सकता हँूं, आप जानते हैं… दूरबीन और विशेषताएँ और कैटलॉग और इसे महत्त्व देना… प्रस्ताव।

तहलका : आप अभी कुछ लेकर नहीं आये हैं?

साशी : वह आदमी वैसा ही कर रहा है… मैंने उससे कहा कि मैं यह वापस कर दूँगा। इसमें उसके नोट्स भी हैं। नोट्स, जो कि डी.जी. जनरल ने लिखा है।

साशी : प्रक्रिया…, और हमारे जनरल ने क्या लिखा है? हमें क्यों प्रक्रिया करनी चाहिए? ऐसा कुछ। यह अभी वहीं रखा है। मैं इसे बदलना चाहता हूँ। मैंने बॉस को बताया, और उन्होंने मुझसे पूछा, अगर वह इसे बदल देंगे; लेकिन क्या वह इसे इतनी जल्दी कर देंगे? ठीक है, जैसा आप चाहें। यदि आप इसे लेना चाहते हैं, तो आप इसे ले लें। अगर इसमें से कुछ हासिल होता है; बेहतर…।

तहलका : अच्छा, कुछ पैमाने भी हैं?

तहलका : वह मात्रा है?

साशी : एक बटालियन – मात्रा 300, हमारे पास 360 बटालियन हैं। एक बटालियन – मात्रा 36 … एक बटालियन के लिए 36 पीस। इसलिए हमारे पास 360 बटालियन हैं। 360 गुणा तीन।

साशी मेनन पैसे स्वीकार करने के बाद तहलका टीम को डीजीओ में उस समय उप निदेशक ब्रिगेडियर अनिल सहगल के पास ले जाते हैं।