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संजय दत्त को स्टेज थ्री फेफड़ों का कैंसर, इलाज के लिए जाएंगे अमेरिका

दो हफ्ते पहले यानी 29 जुलाई को ही 61 साल के हुए फिल्म अभिनेता संजय दत्त को फेफड़ों का कैंसर होने की खबरों ने प्रशंसकों के साथ ही फ़िल्म जगत को सकते में डाल दिया। हर कोई हैरान हो गया और उनकी सेहत की बेहतरी के लिए दुआ जरने लगा। मंगलवार देर रात की इस खबर ने बॉलीवुड को हुला दिया।
‘वास्तव’ अभिनेता की पत्नी मान्यता ने बुधवार को वक्तव्य जारी कर संजू बाबा को लेकर किसी भी तरह की अफवाहें न फैलाने और न ही यकीन करने का आग्रह किया है। उन्होंने प्रशंसकों की दुआओं के लिए शुक्रिया भी किया। उम्मीद जताई पिछले वक़्त काफी दुरूह रहा है, आगे ख़ुदा ने चाहा तो जल्द सेहत याब होकर काम पर लौटेंगे।
संजय दत्त अपना इलाज कराने के लिए जल्द ही अमेरिका रवाना होंगे। दिग्गज अभिनेता 8 अगस्त को मुंबई के लीलावती अस्पताल में सांस में दिक्कत होने पर भर्ती हुए थे। कोविड रिपोर्ट निगेटिव आई थी।मेडिकल ऑब्जर्वेशन के बाद सोमवार को डिस्चार्ज हो गए थे। मंगलवार शाम को संजय दत्त ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने बीमार होने और इलाज के लिए काम से छीटे अवकाश पर जाने की जानकारी दी।
उन्होंने लिखा, मैं कुछ मेडिकल ट्रीटमेंट लेने के लिए काम से छोटा अवकाश ले रहा हूं। मेरा परिवार और दोस्त मेरे साथ हैं और मैं अपने चाहने वालों से दुखी होने या बेकार की अटकलें नहीं लगाने की अपील करता हूं। आपके प्यार और दुआओं से मैं जल्द लौटूंगा। इसके बाद देर रात ये खबर सामने आई कि संजय दत्त को फेफड़ों का कैंसर है, जो तीसरी स्टेज पर पहुंच चुका है।

फेसबुक पोस्ट को लेकर बेंगलुरु में बड़े पैमाने पर हिंसा, तीन लोगों की मौत, 60 पुलिस कर्मी घायल, शहर में धारा 144

कर्नाटक के बेंगलुरु में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है। इसमें तीन लोगों की जान चली गयी है और वहां धारा 144 लागू कर दी गयी है। यह हिंसा एक फेसबुक पोस्ट के बाद कुछ लोगों के हंगामा करने के साथ हुई। वहां 200 से अधिक वाहन जला दिए गए हैं।

जानकारी के मुताबिक मंगलवार देर रात एक फेसबुक पोस्ट के बाद इससे नाराज कुछ लोगों ने हंगामा मचाया। उन्होंने पुलिस स्टेशन और एक विधायक के घर को आग के हवाले कर दिया। बुधवार सुबह बेंगलुरु की सड़कों पर तांडव की भयंकर तस्वीर दिखी। कई वाहनों को जला दिया गया, एटीएम तोड़ा गया और एक विधायक और आसपास के अन्य घरों पर पत्थरों से हमला किया गया। इससे काफी नुकसान हुआ है।

अभी तक की ख़बरों के मुताबिक इस हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई है, जबकि 60 पुलिसवाले भी घायल हुए हैं। पुलिस के मुताबिक करीब 200-250 वाहनों में आग लगाई गई है। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने ट्वीट कर हिंसा की निंदा की है। सीएम ने लिखा कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करने के आदेश दिए गए हैं, साथ ही सरकार भीड़ के खिलाफ सही कार्रवाई कर रही है। येदियुरप्पा ने लिखा कि मीडिया, पुलिस और लोगों पर हमला करना ठीक नहीं है, ये बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लोग शांति बनाकर रखें।

पूरे बेंगलुरु में धारा 144 लगा दी गई है जबकि हिंसा वाले इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया है, जो आज रात 12 बजे तक रहेगा। बाद में हालात के मद्देनजर अगला फैसला किया जाएगा। मामला बेंगलुरु के हाली पुलिस स्टेशन इलाके में कांग्रेस विधायक के करीबी के एक फेसबुक पोस्ट से भड़का। कुछ लोगों ने इसपर आपत्ति की और शिकायत कराने पुलिस स्टेशन में पहुंचे, हालांकि, पुलिस ने आपसी तरीके से मामला सुलझाने के लिए कहा। इसके बाद हिंसा का तांडव हुआ।

भारतीय मूल की कमला हैरिस अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट बिडेन की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं  

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए भारतीय मूल की कमला हैरिस को डेमोक्रेट्स ने अपना उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया है। राष्ट्रपति पद के पार्टी उम्मीदवार जो बिडेन ने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी है। कमला भारतीय मूल की पहली महिला हैं, जो इतने बड़े पद के लिए उम्मीदवार बनी हैं।

यह चुनाव तीन नवंबर को होने हैं। डेमोक्रेट्स के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बिडेन ने अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में भारतीय मूल की कमला हैरिस के  नाम का ऐलान किया है। भारतीय मूल की कमला हारिस अमेरिकी सीनेटर हैं और  डेमोक्रेट्स की ओर से उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार होंगी।

बिडेन ने ट्विटर पर इसका ऐलान किया है। इसके बाद से लगातार कमला के लिए हर  तरफ से बधाइ संदेश आ रहे हैं। घोषणा करते हुए बिडेन ने ट्विटर पर लिखा, -‘कमला हैरिस को इस जंग में अपना साथी बनाकर वह काफी खुश हैं। उनकी गिनती देश के सबसे अच्छे सीनेटर में होती है। मैंने इनके साथ काफी लंबे वक्त तक काम किया है।  उन्होंने महिलाओं और बच्चों के लिए शानदार काम किया और भविष्य को तैयार किया है।’

इसके बाद कमला हैरिस ने भी ट्वीट किया। इसमें उन्होंने लिखा – ‘पार्टी का शुक्रिया। जो बिडेन लोगों को जोड़ने वाले इंसान हैं और अपने राजनीतिक करियर में उन्होंने यही किया है। मुझे खुशी है कि मैं उनकी उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनी हूं और वो जो भी कहेंगे मैं अपने कमांडर इन चीफ की बात मानूंगी।’

कमला हैरिस 55 साल की हैं और भारतीय मूल की पहली महिला हैं, जो इतने बड़े पद के लिए उम्मीदवार बनी हैं। वो भारतीय मूल की भी पहली महिला थीं जो सीनेटर चुनी गई थीं। याद रहे कमला हैरिस ने शुरु में राष्ट्रपति पद के लिए भी अभियान छेड़ा था। हालांकि, कुछ समय बाद नाम वापस लेते हुए जो बिडेन के समर्थन का ऐलान किया था। अमेरिका में भारतीय मूल के 14.50 लाख से ज्यादा मतदाता हैं, जिनका अब जो बिडेन को लाभ मिल सकता है।

कमला हैरिस को लेकर जो बिडेन का ट्वीट –
Joe Biden
@JoeBiden
Let’s go win this, @KamalaHarris

मस्तिष्क सर्जरी के एक दिन बाद भी पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत नाजुक, सेना अस्पताल ने बताया वेंटिलेटर पर

मस्तिष्क की सर्जरी के एक दिन बाद भी पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत नाजुक बनी हुई है। उन्हें जीवनरक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर) पर रखा गया है। एक दिन पहले ही मुखर्जी ने ट्वीट करके यह भी जानकारी दी थी, इलाज के दौरान वे कोविड-19 में भी पॉजिटिव पाए गए हैं।

सेना के रिसर्च एंड रेफरल (आरएंडआर) अस्पताल ने मंगलवार को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की हालत नाजुक बताई है। आरएंडआर के मुताबिक उन्हें जीवनरक्षक प्रणाली पर रखा गया है। एक दिन पहले ही खून जमा होने के कारण उनके मस्तिष्क की सर्जरी की गई है। मुखर्जी को सोमवार को ही अस्पताल में भर्ती कराया गया था। सर्जरी से पहले उनमें कोविड-19 की भी पुष्टि हुई थी।

अस्पताल की तरफ से जारी मेडिकल बुलेटिन में जताया गया है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 10 अगस्त को गंभीर हालत में दिल्ली छावनी स्थित सेना के आरएंडआर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में की गई चिकित्सीय जांच में उनके मस्तिष्क में बड़ा थक्का पाया गया था। इसके बाद उनकी आपातकालीन जीवनरक्षक सर्जरी की गई। सर्जरी के बाद भी उनकी हालत नाजुक बनी हुई है और उन्हें जीवनरक्षक प्रणाली पर रखा गया है।

इस बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मुखर्जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना की है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी मुखर्जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की है। इन नेताओं ने मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी से बात की और  उनके पिता की सेहत के बारे में पूछा है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह मुखर्जी का हाल जानने अस्पताल गए थे।

मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन

जाने माने शायर राहत इंदौरी का निधन हो गया है। उन्होंने करीब नौ घंटे पहले खुद ट्वीट करके बताया था कि कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद नहीं अस्पताल में भर्ती किया गया है। उनकी शायरी का अंदाज बहुत अनोखा था और सत्ताओं के ऊपर उनके तंज लाजवाब हैं।

ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि उनके घर बार-बार फोन न करें और जैसे ही वे होंगे, खुद इसकी सूचना देंगें। राहत इंदौरी का जन्म 1950 में हुआ था। इंदौरी का कोरोना वायरस संक्रमण से निधन हुआ है। उनका कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया था। इसके बाद वे इलाज के लिए इंदौर के अरविंदो अस्पताल में भर्ती हुए थे।

कोरोना संक्रमण के बाद वे अस्पताल में सुबह भर्ती हुए थे और इसकी जानकारी उन्होंने खुद अपने फेसबुक अकाउंट पर भी दी थी। शाम को अचानक उन्हें तीन दिल के दौरे आए और उन्होंने अस्पताल में ही अंतिम सांस ली। डाक्टरों के अनुसार दोनों फेफड़ों में कोरोना का संक्रमण, किडनी में सूजन थी और सांस लेने में तकलीफ होने के कारण वे अस्पताल में भर्ती हुए थे।

इंदौरी ने ट्वीट में लिखा था – ”कोविड के शुरुआती लक्षण दिखाई देने पर उनका कोरोना टेस्ट किया गया, जिसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। अरविंदो अस्पताल में एडमिट हूं, दुआ कीजिए जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं। एक और इल्तेजा है, मुझे या घर के लोगों को फोन ना करें, मेरी खैरियत ट्विटर और फेसबुक पर आपको मिलती रहेगी।”

राहत काफी पढ़े-लिखे थे और पीएचडी भी की थी। उनके निधन पर कई जानी मानी हस्तियों ने दुःख जताया है। उनकी शायरी का अंदाज बहुत अनोखा था और सत्ताओं के ऊपर उनके तंज लाजवाब हैं।

पार्टी पद देती है, वापस भी ले सकती है, जनता से सत्ता के किए वादे पूरे करेंगे : सचिन पायलट

आखिर सचिन पायलट ने लंबी चुप्पी तोड़ते हुए सोमवार देर रात पहली बार ब्यान दिया है। इसमें उन्होंने कहा कि पार्टी पद देती है, वह इसे वापस भी ले सकती है। सचिन ने कहा उन्होंने कांग्रेस आलाकमान के सामने अपनी बात रखी है। कुछ मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी था, मुझे पद की कोई लालसा नहीं है।

कांग्रेस में ही बने रहने की उनकी संभावना तभी बहुत पुख्ता हो गयी थी, जब वे आज दिन में गांधी परिवार से मिले थे। वह राहुल गांधी और प्रियंका से मिले। यह मुलाकात खासी लंबी चली। इसमें काफी गहन मंत्रणा उनकी कांग्रेस के दोनों प्रमुख नेताओं से हुई। पायलट को दोनों के नजदीक माना जाता रहा है।

देर शाम सचिन ने कहा वह पार्टी आलाकमान से मिले हैं।  उन्होंने कहा – ”मुझे बहुत कुछ सुनने को मिला। मैंने अपनी सारी बातें आलाकमान के सामने रखी हैं। पार्टी पद देती है, ले भी सकती है। मुझे पद की कभी लालसा नहीं रही।” काफी दिन से नाराज चल रहे नेता ने कहा कि जो वादा करके हम सत्ता में आये थे, उन्हें पूरा करेंगे।

सचिन पायलट ने कहा कि उन्होंने अपनी बात पार्टी आलाकमान के सामने रखी है। आलाकमान ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है। मैं पार्टी प्रमुख का इसके लिए शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। मुद्दों को उठाना बहुत जरूरी था। हमें कई बिंदुओं पर आपत्तियां थीं। मैंने सब आलाकमान के सामने रखीं।’

पता चला है कि पायलट ने नाराज विधायकों की मुलाकात राहुल गांधी से भी करवाई है। इस बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल और अहमद पटेल भी उपस्थित थे।

राजस्थान कांग्रेस का संकट टला, सोनिया ने कमेटी बनाई

कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सचिन पायलट और उनके साथी विधायकों का मसला हल करने के लिए एक तीन सदस्यी समिति का गठन किया है। यह समिति इन लोगों से बातचीत करके उनकी ‘वापसी’ और अन्य मुद्दों पर बात करेगी। उधर पायलट गुट के विधायक भंवर लाल शर्मा सोमवार शाम एक महीने के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले। सचिन पायलट और अन्य ‘बागी’ विधायकों के भी आज रात या कल जयपुर लौटने की संभावना है।

जानकारी के मुताबिक कांग्रेस ने एक तरह से इन विधायकों की पार्टी में ‘वापसी’ को हरी झंडी दिखा दी है। आज सचिन पायलट की राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद सोनिया गांधी से भी मुलाकात की चर्चा है। पायलट खेमे ने कहा है कि उन्हें उनकी शिकायतें दूर करने का भरोसा दिलाया गया है, जिसके बाद वे अपनी नाराजगी दूर करने को तैयार हुए हैं।

पायलट, जिनके साथ अपेक्षाकृत कम विधायक हैं, भाजपा में जाने की अनेक चर्चाओं के बावजूद कांग्रेस में ही रहे, जिससे कांग्रेस आलाकमान उनके प्रति नरम हुई है। पायलट गुट के विधायकों की सरकार में भागीदारी का फैसला सोनिया गांधी की बनाई तीन सदस्यी समिति उनसे बातचीत के बाद करेगी।

इस तरह अब पक्की संभावना बन रही है कि राजस्थान में कांग्रेस और सरकारका संकट टल गया है। भंवर लाल शर्मा ने गहलोत से मुलाकात के बाद पत्रकारों से कहा कि ‘नाराजगी अब दूर हो गयी है’। अभी यह साफ़ नहीं है कि सचिन पायलट को पार्टी अब क्या रोल देगी। उनके राजस्थान में रहने की संभावना कम ही है, और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई जिम्मा दिया जा सकता है।

पायलट ने न तो कोई अलग पार्टी बनाई न भाजपा में उनके जाने की कोई पुख्ता जानकारी कभी आई। यह भी हो सकता है भाजपा ने इतने कम विधायकों के समर्थन के कारण ‘अपने काम का’ नहीं समझा हो। या यह भी हो सकता है भाजपा अभी कुछ इन्तजार करना चाहती हो। राजस्थान में सरकार गिराने की कोशिश के पीछे उसके होने के आरोपों से निश्चित ही भाजपा की छवि को बट्टा लगा है, भले उसने इससे साफ़ इंकार किया हो।

भाजपा में भी जबरदस्त सुगबुगाहट इस सारे घटनाक्रम को लेकर रही है। इस सारे एक महीने में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया खामोश रहीं। पिछले दिनों वे अचानक सक्रिय हुईं और दिल्ली जाकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा राजनाथ सिंह और अन्य नेताओं से मिलीं। वे पीएम मोदी से भी मिलीं। अपुष्ट जानकारी के मुताबिक उन्हें राज्यपाल बनाने की ‘ऑफर’ की गयी थे, लेकिन उन्होंने इससे साफ़ मना कर दिया।

अब अगले दो-तीन दिन में कांग्रेस की स्थिति साफ हो जाएगी। यह तय है कि सचिन पायलट और उनके सभी समर्थक विधायक कांग्रेस में ही रह रहे हैं। उन्हें पद वापस मिलेंगे या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा।

पॉयलट रहेंगे कांग्रेस में ही, बदलेगा रोल !

राजस्थान में कांग्रेस के संकट का 14 अगस्त के विधानसभा सत्र से पहले ही पटाक्षेप होने को है। नाराज सचिन पायलट एक महीने के ‘अज्ञातवास’ से ‘ऊब’ गए हैं। वे कांग्रेस में ‘सम्मानजनक वापसी” के साथ अपनी पार्टी में बने रहने की तैयारी में हैं। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक आज उनकी दिल्ली में ‘गांधी परिवार’ से अपने कांग्रेस में बने रहने और पार्टी में रोल को लेकर गहन मंत्रणा हुई है। सचिन को कांग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव या उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। राहुल गांधी ने उन्हें ‘भविष्य के भरोसे’ भी दिलाये हैं।

राजस्थान सरकार को जब से संकट हुआ, सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ अज्ञातवास पर थे। कभी हरियाणा तो कभी कहीं और उनके होने की ख़बरें मीडिया में आती रहीं। सचिन पायलट ने बार-बार यह कहा था कि वे कांग्रेस से बाहर  नहीं जायेंगे और उनकी लड़ाई मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से ही है, पार्टी से नहीं।

‘तहलका’ ने संकट के समय भी यही लिखा था की सचिन कांग्रेस से बाहर नहीं जायेंगे। जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जिन्हें लेकर पिछले दिनों में मीडिया के एक वर्ग ने उनकी रिहाई से जोड़कर कुछ अलग तरह की ख़बरें दी थी, उन्हें लेकर सही खबर यही है कि वे सचिन के कांग्रेस में रहने के पक्ष में थे। सचिन अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में ही रहना चाहते हैं। चाहे महासचिव या उपाध्यक्ष बनाये जाए, या  सचिन को दोबारा राजस्थान भेजकर उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाये, इसपर चर्चा के लिए कांग्रेस एक कमेटी बना सकती है। उसके बाद ही कोई फैसला होगा।

जानकारी के मुताबिक सचिन पायलट को लेकर राहुल गांधी काफी संवेदनशील थे। उनका पार्टी में कहना था कि सचिन को उन्होंने भरोसा दिया था, जिसे पूरा नहीं किया गया। ऐसे में उन्हें राजस्थान में सम्मानजनक तरीके से रखा जाना चाहिए। हालांकि, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनकी खटपट चलती रही। आज ही गहलोत के समर्थकों ने यह भी कहा कि सचिन और उनके लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाये।

अब ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक सचिन पायलट की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से पहले दौर की मुलाकात हुई। वे आज ही दोबारा राहुल गांधी से मिल सकते हैं। यह माना जा रहा है कि 11 अगस्त को सोनिया गांधी के कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में एक साल पूरा होने के बाद राहुल गांधी को अध्यक्ष का जिम्मा देने की कांग्रेस ने तैयारी कर ली है। ऐसे में उनकी बात को गंभीरता से सुना जाने लगा है। सचिन के मामले में राहुल गांधी ने ही जोर दिया है कि उन्हें पार्टी में बनाये रखा जाना चाहिए।

जानकारी के मुताबिक सचिन को कांग्रेस में ही रखने पर उन्हें खाली नहीं रखा जाएगा। आने वाले समय में, या उनके कांग्रेस में ही रहने की आधिकारिक घोषणा के बाद ही, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कोई भूमिका दी सकती है। अभी तक की जानकारी के मुताबिक यह जिम्मा महासचिव या उपाध्यक्ष का हो सकता है।

फिलहाल की स्थिति यह है कि 14 अगस्त को राजतक्षण विधानसभा का सत्र होना है। बसपा के 6 विधायकों की याचिका सुप्रीम कोर्ट में है, जिसमें उन्होंने उनके कांग्रेस में विलय को चुनौती देने वाली बसपा और भाजपा की याचिकाओं के मामले  को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करनी की गुहार लगाई है। भाजपा अपने विधायकों में ‘टूट’ के डर से उन्हें संभालने में जुटी है और कांग्रेस के विधायक भी राज्य के दूसरे हिस्से में ‘यात्रा’ पर निकले हुए हैं।

वैसे तो पायलट के राजस्थान की राजनीति में फिलहाल काम ही रहने की संभावना है, पार्टी के बीच यह भी चर्चा रही कि गहलोत को कांग्रेस का कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया जा सकता है। ऐसे में सचिन की राजस्थान में वापसी हो सकती है। एक यह भी दावा है कि सचिन को दोबारा राजस्थान भेजकर उपमुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाये। वैसे सचिन ने जिस तरह ट्वीटर पर पिछले दिनों कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘हाथ’ वापस लगा दिया था।

यदि सचिन कांग्रेस में ही रहते हैं और उन्हें राज्य से निकालकर केंद्र की राजनीति में कोइ रोल दे दिया जाता है तो अशोक गहलोत को भी इससे कोई दिक्कत नहीं होगी। राहुल पहले से सचिन को मुख्यमंत्री बनाने के हक़ में रहे हैं, लिहाजा यह तय है कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने, सचिन कांग्रेस में ही रहे तो भविष्य में सचिन ही मुख्यमंत्री बनेंगे। गहलोत खेमा उन्हें लेकर दबाव जरूर बना रहा, लेकिन राहुल के कमांड में आने की स्थिति में इस बार शायद बुजुर्ग नेताओं के लिए चीजें उतनी आसान नहीं रहेंगी !

शाह फैसल ने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ा, प्रशासनिक सेवा में वापसी संभव

यूपीएससी के टॉपर रहे और आईएएस की नौकरी छोड़कर जम्मू-कश्मीर में पीपुल्स मूवमेंट पार्टी के जरिये सियासत की शुरुआत करने वाले वाले शाह फैसल ने फिलवक्त राजनीति से तौबा कर ली है। उनको पार्टी प्रमुख पद से हटाकर उप प्रमुख फिरोज पीरजादा को नई जिम्मेदारी दी गई है। पार्टी के नेता जावेद मुस्तफा मीर का इस्तीफा भी मंजूर कर लिया गया है। चर्चा है कि फैसल फिर से प्रशासनिक सेवा में वापसी कर सकते हैं।
दरअसल, अधिकारियों ने शाह को अवगत कराया है कि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है। यह जानकारी शीर्ष अधिकारियों ने दी है। फैसल द्वारा इस्तीफा देने और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) नामक एक राजनीतिक पार्टी बनाने के बावजूद उनका नाम सरकार के आधिकारिक वेबसाइट पर जम्मू-कश्मीर के कैडर आईएएस की सूची में अब भी है।
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर से पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा 5 अगस्त को अनुच्छेद-370 हटाये जाने के बाद सभी प्रमुख दलों समेत नई पार्टी के सभी नेताओं को भी हिरासत में ले लिया था। पिछले कुछ महीनों से नेताओं को रिहा किया जाना शुरू किया गया है। पूर्व सीएम व पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती अब भी हिरासत में हैं। पर राजनिकटिक गतिविधियां कश्मीर घाटी में बिल्कुल ठप हैं।
शाह फैसल को भी पिछले 3 जून को पीएसए हटाया गया। और उनकी रिहाई हुई। इसके अलावा कई अलगावववादी व अन्य नेताओं से बांड भरवाकर छोड़ा गया है, कि वे सियासी गतिविधियों या प्रदर्शनों में शामिल नहीं होंगे। प्रदेश से बाहर की जेलों में भेजे गए नेताओं व युवाओं को भी छोड़ा गया है।

ब्राहमणों को रिझानें में लगे राजनीतिक दल

एक दौर था जब उत्तर –प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों और क्षत्रियों का बोलबाला रहा है। इन दोनों जातियों के नेताओं की कांग्रेस में अच्छी पकड भी रही है । कांग्रेस में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में ब्राह्मणों और क्षत्रियों का वोट एक मुश्त कांग्रेस में जाता रहा है। फिर समय ने ऐसी करवट ली कि 1990 में भाजपा के उदय होने से और 1992 में राममंदिर आंदोलन के दौरान ब्राह्मणों और क्षत्रियों का सीधा झुकाव भाजपा की ओर आ गया ।बताते चले उत्तर –प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के आने के बाद ब्राह्मणों के वोटों का बंटबारा इस कदर हो गया कि ब्राह्मण मतदाता उपेक्षित माना जाना लगा। मुलायम सिंह यादव जरूर समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को मानते रहे है। उनके साथी रहे जो छोटे लोहिया के नाम से जाने जाते रहे जनेश्वर मिश्रा को मानते रहे और उनके नाम पर ही ब्राह्मणों को मान –सम्मान देते रहे है। लेकिन समाजवादी पार्टी में ब्राह्मणों का कोई खास वर्चस्व नहीं रहा है। लेकिन आज की राजनीति में हिदुत्व की राजनीति का जो खेल -खेला जा रहा है । उसमें कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं रहना चाहता है। जानकारों का कहना है उत्तर – प्रदेश में ब्राह्मण  17 से 18 प्रतिशत है । जो किसी भी राजनीतिक दल के निर्णोयक हो सकते है। ऐसे में अब समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लुभाने के लिये ब्राह्मणों को साधने का दांव चला है। इसी क्रम में अखिलेश यादव ने भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची प्रतिमा लगवाने की घोषणा की है।ऐसा नहीं है कि बहुजन समाज पार्टी ने ब्राह्मणों को साथ लेकर राजनीति ना की हो ,बसपा प्रमुख मायावती ने 2007 के उत्तर – प्रदेश के विधान सभा चुनाव में बसपा में मायावती के बाद अगर कोई हैसियत रखता है तो सतीश मिश्रा के साथ मिलकर ब्राह्मण और दलित गठजोड कर पूर्ण बहुमत के साथ 2007 में मायावती उत्तर – प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थी। लेकिन 2012 आते ही उत्तर – प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाता बसपा से खिसक गया था। 2012 में सपा की सरकार बनी और प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बन गये थे।फिर देश की राजनीति एक नया बदलाब 2014 के लोकसभा के चुनाव में देखने को मिला।भाजपा ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई  और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने ।भाजपा ने ये मैसेज दिया कि भाजपा को अन्य जातियों के साथ – साथ ब्राह्मणों का शत-प्रतिशत वोट मिला। फिर 2017 के उत्तर –प्रदेश के चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज कर योगी आदित्य नाथ की सरकार बना कर ये मैसेज दिया है कि भाजपा के साथ ब्राह्मण मतदाता आज भी गर्व के साथ जुडा है और जुडा रहेगा।

उत्तर –प्रदेश की राजनीति के जानकार विनोद शुक्ला का कहना है कि उत्तर –प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहां पर किसी भी पार्टी की सरकार रही हो पर अगले चुनाव तक यहां का मतदाता किसी भी पार्टी या जाति का हो पर वो परिवर्तन के नाम पर खिसक जाता है। अब रहा सवाल ब्राह्मणों के वोट बैंक में सेंध लगाने का तो ये तो आने वाला ही समय बताएगा कि ब्राह्मण मतदाता एक मुश्त किस पार्टी के साथ जाता ये बंटता है फिलहाल उत्तर –प्रदेश के विधानसभा चुनाव में  2022 में है।