अब सेहत पर नज़र

15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी से जूझ रहे देश के लोगों को राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) तोहफा दिया है। इस तकनीक सहारे देश के हर नागरिक की सेहत का लेखा-जोखा डिजिटल हेल्थ आईडी के तहत ऑनलाइन दर्ज होगा। तहलका संवाददाता ने हेल्थ से जुड़े जानकारों और डॉक्टरों से बात की, तो उन्होंने बताया कि एनडीएचएम योजना तो 2018 में नीति आयोग के प्रस्ताव पर स्वास्थ्य मंत्रालय के पैनल ने तैयार की थी; जिसकी घोषणा अब प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त को की है। जबकि सरकार का कहना है कि य स्वास्थ्य क्रान्ति है। लेकिन जानकारों का कहना है कि यह सारा मामला देश के आम लोगों का मेडिकल डाटा एक जगह एकत्रित करने की पुष्टि करता है। जो देश की सियासत के गुणा-भाग में उलझा हुआ है। क्योंकि देश के लोग बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिकल के अभाव में जूझ रहे हैं। इस ओर सुधार पर प्रधानमंत्री ने कुछ भी नहीं बोला है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व संयुक्त सचिव डॉक्टर अनिल बंसल का कहना है कि देश की आबादी 135 करोड़ के करीब है, जिनमें कुल 42-43 करोड़ लोग ही मोबाइल इंटरनेट यूजर हैं। यानी 30 फीसदी लोग ही इंटरनेट सेवा से जुड़े हैं और अभी 70 फीसदी लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन का अभाव है। ऐसे में डिजिटल हेल्थ के नाम पर स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के नाम पर कुछ और ही विस्तार किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में एनडीएचएम का लाभ मिलना मुश्किल है। कहीं यह आरोग्य सेतु एप की तरह फ्लॉप न पड़ जाए। क्योंकि सरकार को भली-भाँति मालूम है कि देश की सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल इस कोरोना वायरस की महामारी ने खोलकर रख दी है। निजी अस्पताल वाले अपनी मनमर्ज़ी से महँगा इलाज कर रहे हैं। डॉक्टर बंसल का कहना है कि जब तक देश में सरकारी और निजी स्वास्थ्य सेवाओं के डेटा का खाका पूरी पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक नहीं होगा, तब तक डिजिटल एनडीएचएम का लाभ लोगों को मुश्किल से मिलेगा। क्या डिजिटल कार्ड मिलने से स्वास्थ्य सेवाएँ मिलने लगेंगी? क्योंकि जिस तरीके से सरकार इस बात का शोर कर रही है कि देश के सारे डॉक्टरों की अब डिजिटल जानकारी उपलब्ध होगी; उसका देश के नागरिकों को कोई लाभ होने वाला नहीं है।

इस पहल के अंतर्गत हेल्थ आईडी को आधार कार्ड से लिंक करना होगा, जिसके आधार पर रोगी अपनी बीमारी के साथ अपनी जानकारी डॉक्टर के साथ साझा कर सकता है। रोगी अगर सरकारी योजनाओं का लाभ लेना चाहे, तो उसे अपनी हेल्थ आईडी को आधार कार्ड से जोडऩा  होगा। हेल्थ आईडी का संचालन सरकार द्वारा ही होगा। पूरे सिस्टम पर सरकार की निगरानी होगी।

एक छत के नीचे मिलेंगी सभी स्वास्थ्य सुविधाएँ

एनडीएचएम योजना के तहत अस्पताल, डॉक्टर, स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराने वाले संस्थान, जैसे- बीमा कम्पनियाँ, रक्त की जाँच लैब वाले और दवा की दुकानें, सभी एक छत के नीचे उपलब्ध होंगी। इसमें विशेष रूप से हेल्थ आईडी, डिजिटल डॉक्टर, ई-फार्मेसी, स्वास्थ्य सम्बन्धी व्यक्तिगत जानकारी और टेलिमेडिसिन आदि शामिल हैं।

हेल्थ आईडी से मेडिकल हिस्ट्री तक

इसमें मरीज़ का नाम, पता, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियाँ, जाँच रिपोर्ट, दवा, अस्पताल में भर्ती से लेकर डिस्चार्ज होने तक की जानकारी के साथ-साथ डॉक्टर से जुड़ी सभी जानकारियाँ आसानी से मिल सकेंगी। हेल्थ आईडी के माध्यम से मरीज़ की पूरी मेडिकल हिस्ट्री का पता लगाना आसान होगा। डॉक्टर कम्प्यूटर में लॉगइन कर रोगी की मेडिकल हिस्ट्री को देख सकते हैं। मैक्स अस्पताल के कैथ लैब के डायरेक्टर डॉक्टर विवेका कुमार का कहना है कि एनडीएचएम योजना रोगी और डॉक्टरों के बीच इलाज के दौरान एक आसानी भरा कदम है। चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही उपलब्धियों का सीधा लाभ अब मरीज़ों को और आसानी से मिल सकेगा। इंडियन हार्ट फाउण्डेशन के डायरेक्टर डॉक्टर आर.एन. कालरा का कहना है कि सरकार की इस पहल से मरीज़ों और डॉक्टरों के बीच पारदर्शिता बढ़ेगी और सारी मेडिकल हिस्ट्री जो रोगी आसानी से नहीं बता सकता, वह डॉक्टर को सहूलियत के साथ उपलब्ध होगी। कोरोना महामारी जिस प्रकार लोगों को इलाज में दिक्कत हुई है, हेल्थ आईडी के होने से उस तरह दिक्कत नहीं होगी।

एक दवा कम्पनी से जुड़े धीरज बजाज का कहना है कि एनडीएचएम के माध्यम से कॉरपोरेट को लाभ पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि देश के शहरी हेल्थ सेक्टर में गत एक दशक से निजी स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ है और निजी स्वास्थ्य केंद्र मज़बूती के साथ उभरे हैं। जिस पर सरकार के साथ दवा कम्पनियों की भी नज़र है। क्योंकि सरकारी स्वास्थ्य सेवाएँ कमज़ोर पड़ रही हैं और मरीज़ों को आसानी से इलाज न मिलने पर सरकारी अस्पताल की अपेक्षा वे निजी अस्पतालों में इलाज कराने का जाते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आयी है कि देश में नामी-गिरामी पैथलैब वालों का जाल छोटे और बड़े शहरों में तेज़ी से फैला है और कई दवा कम्पनी वाले भी अस्पतालों को शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी खोलने में लगे हैं। कोरोना-काल में जिस प्रकार हेल्थ सेक्टर की कमी देखी गयी है, कहीं उसकी भरपाई के साथ कॉरपोरेट घराने को लाभ देने का प्रयास तो नहीं है। क्योंकि डिजिटल हेल्थ योजना में रोगियों को सस्ता इलाज के नाम पर कहीं ज़िक्र तक नहीं किया गया है। वैसे कोरोना-काल के पहले भी भारत पर देशी और विदेशी कम्पनियों की नज़र रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कोरोना वायरस से आयी विपदा को देश के सियासतदान मुनाफे के लिए हेल्थ सेक्टर में विस्तार करने की जुगत में हों। क्योंकि कोरोना-काल में अगर कोई कारोबार चमका है, तो वह हेल्थ सेक्टर है; जिसमें दवा विक्रेताओं ने जमकर चाँदी काटी है। हेल्थ मिशन से जुड़े रमन सिंह का कहना है कि मौज़ूदा समय की बात की जाए, तो हेल्थ डिजिटल की अपेक्षा सरकार को इस कोरोना महामारी के संकट से उभरने के लिए कड़े कदम उठाने के साथ-साथ मौज़ूदा हेल्थ सेवाओं को सुधारने की ज़रूरत है। लेकिन सरकार हेल्थ आईडी बनाने पर ज़ोर दे रही है; जबकि आज के डिजिटल युग में हर किसी डॉक्टर का नाम अब ऑनलाइन उपलब्ध है। उनसे ऑनलाइन अप्वाइंटमेन्ट (मिलने के समय) के साथ-साथ ऑनलाइन डॉक्टरों की फीस भरने की जानकारी भी उपलब्ध है। लोगों तकनीकी युग में बड़ी आसानी डॉक्टरों से जुड़ भी रहे हैं और इलाज भी करा रहे हैं। फिर ऐसे में सरकार हेल्थ आईडी के नाम पर डाटा हासिल करके क्या लाभ प्राप्त करना चाहती है? क्या वह अन्य समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है? वैसे एम्स सहित सरकारी और नामी-गिरामी निजी अस्पतालों में ऑनलाइन प्रक्रिया का वर्षों से चलन है, जिसके ज़रिये गाँव तक के लोग जुड़ रहे हैं।

आयुर्वेद और होम्योपैथ के डॉक्टरों का कहना है कि एनडीएचएम योजना में उनका का क्या स्थान है? या है कि नहीं? नहीं पता। लेकिनअगर इस योजना में उन्हें शामिल नहीं किया गया, तो उनकी उपेक्षा होगी और लोगों का आयुर्वेद व होम्योपैथ पर से विश्वास कम होने लगेगा। वैसे कोरोना महामारी में आयुर्वेद और होम्योपैथ चिकित्सों ने अहम योगदान दिया है, जिससे काफी रोगियों को लाभ भी हुआ है। आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉक्टर कन्हैया लाल का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी सियासी तालमेल के अभाव में अभी तक आयुर्वेद डॉक्टरों को तमाम सुविधाओं से वंचित रखा गया है। होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर आर.के. बनर्जी का कहना है कि सरकार को अन्य पैथियों की तरह होम्योपैथी को भी बढ़ावा देते हुए इसे डिजिटल हेल्थ योजना में शामिल करना चाहिए।