फँसे कर्ज़ से निपटने की चुनौती

बीते कुछ वर्षों से अर्थ-व्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही है; खासकर सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) की हालत ठीक नहीं है। अधिकांश कम्पनियाँ तथा लोग ऋण के िकस्तों एवं ब्याज का भुगतान महीने के आखरी सप्ताह या महीने के आखरी दिन में कर रहे हैं। अर्थात् ऐसी कम्पनियों के ऋण खाते इसलिए गैर-निष्पादित परिसम्पत्ति (एनपीए) में तब्दील नहीं हो रहे हैं, क्योंकि वे अंतिम समय में िकस्त चुका दे रहे हैं।

उनकी वित्तीय स्थिति खस्ता हालत में है। ऐसी कम्पनियों की वित्तीय स्थिति को कोरोना वायरस ने बुरी तरह से तहस-नहस कर दिया है। इसलिए ऐसे उद्योगों एवं अन्य ग्राहकों को वित्तीय संकट से उबारने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने बड़ी कम्पनियाँ, एमएसएमई क्षेत्र की सूक्ष्म, लघु एवं मझौले कम्पनियाँ और खुदरा व व्यक्तिगत ऋण खातों के पुनर्गठन की अनुमति दी है। ऋण पुनर्गठन की सुविधा उन्हीं कर्ज़दारों को मिलेगी, जिन्होंने 1 मार्च 2020 तक कर्ज़ भुगतान में 30 दिनों से अधिक देरी नहीं की थी। ऐसे ऋण खातों का पुनर्गठन 31 दिसंबर तक किया जा सकता है।

दबावग्रस्त खातों की श्रेणियाँ

तकनीकी तौर पर एनपीए में तब्दील होने से पहले किसी खाते को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है। ऐसे खाते स्पेशल मेंशन अकाउंट्स (एसएमए) के नाम से जाने जाते हैं। एसएमए-0 ऐसे खाते होते हैं, जिनमें भुगतान में 30 दिनों तक देरी हुई है। एसएमए-1, ऐसे ऋण खाते होते हैं, जिनमें 31 से 60 दिनों तक भुगतान बकाया रहता है। एसएमए-2 में ऐसे खाते, जिनका 61 से 90 दिनों तक भुगतान बकाया रहता है। भुगतान 90 दिनों से अधिक बकाया रहने पर खाते एनपीए में तब्दील हो जाते हैं।

ऋण खातों के पुनर्गठन के नियम 

भारतीय रिजर्व बैंक ने एमएसएमई क्षेत्र के ऋण खातों के एसएमए के किसी भी श्रेणी में रहने पर  पुनर्गठन की अनुमति दे दी है; लेकिन मामले में शर्त यह है कि ऋणी को कुल 25 करोड़ रुपये से ज़्यादा का ऋण नहीं दिया गया हो। 25 करोड़ रुपये से अधिक ऋण लेने वाले उद्योग जो एसएमए-1 और एसएमए-2 श्रेणियों में आते हैं, के ऋण का पुनर्गठन नहीं किया जाएगा। अर्थात् एमएसएमई सहित 25 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण लेकर उसे चुकाने में 30 दिनों से ज़्यादा की चूक करने वाले उद्योगों को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।

ऋण अदायगी स्थगन का समाधान

कुछ बैंकों को छोड़कर अधिकांश बैंकों का एनपीए जून तिमाही में कम हुआ है; लेकिन सितंबर और दिसंबर तिमाही में एनपीए में बढ़ोतरी की आशंका है। हालाँकि जून तिमाही में भी कुछ बैंकों ने परिसम्पत्ति गुणवत्ता में गिरावट आने का अनुमान लगाकर एनपीए के लिए प्रावधान किये हैं। बैंकों का मानना है कि आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी आने में अभी भी कुछ समय लगेगा, जिससे ऋण अदायगी स्थगन का लाभ लेने वाले कर्ज़दारों को ऋण की िकस्त एवं ब्याज चुकाने में और भी समय लग सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने ऋण पर पहले मार्च से जून और फिर अगस्त तक 6 महीनों के स्थगन की घोषणा की है। बैंकों के अनुसार, ऋण के िकस्त एवं ब्याज का स्थगन समस्या का समाधान नहीं है; क्योंकि विमानन, पर्यटन, यात्रा तथा निर्माण जैसे प्रभावित उद्योगों को ऋण स्थगन सुविधा का लाभ देने के बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति में जल्दी सुधार आयेगा, यह कहना मुश्किल है।

कर्ज़दारों के बीच लोकप्रिय नहीं स्थगन की सुविधा

ऋण के िकस्तों एवं ब्याज स्थगन की योजना कर्ज़दारों के बीच लोकप्रिय नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, केवल 15 फीसदी बड़े कॉर्पोरेट्स ने ही इस विकल्प को चुना है, जबकि खुदरा क्षेत्र में सिर्फ 20 से 30 फीसदी लोगों ने इस विकल्प को चुना है। अगर सभी क्षेत्रों को मिला दिया जाए, तो कुल 30 फीसदी कर्ज़दारों ने इस विकल्प को चुना है, जबकि यह विकल्प सभी के लिए उपलब्ध था।

िकस्त एवं ब्याज को टालना अस्थायी प्रक्रिया है। इसकी एक सीमा है। लम्बे समय तक इस प्रक्रिया को जारी नहीं रखा जा सकता है। ऐसा करने से ऋण की राशि, टाली गयी राशि को मिलाकर इतनी बड़ी हो जाएगी कि उसकी वसूली बैंकों के लिए असम्भव हो जाएगी।

केवल ज़रूरतमंदों को मिले सुविधा

ऋण अदायगी स्थगन की सुविधा सभी के लिए नहीं होनी चाहिए। क्योंकि कोरोना-काल में बहुत सारे उद्योग और व्यक्ति ऋण की िकस्तों एवं ब्याज को चुकाने में समर्थ हैं। फिर भी ऐसे लोग इस सुविधा का फायदा उठा रहे हैं, जिसकी वजह से बैंकों को पूँजी की कमी का सामना करना पड़ रहा है।

ऋण खातों का पुनर्गठन ज़्यादा व्यावहारिक

ऋण अदायगी स्थगन की सुविधा की जगह ऋण खातों का पुनर्गठन ज़्यादा व्यवहारिक है। लेकिन यह भी सभी के लिए नहीं होनी चाहिए। यह सुविधा सिर्फ प्रभावित उद्योगों एवं व्यक्तियों को ही दी जानी चाहिए। मामले में बैंकों को तनावग्रस्त ऋण खातों को चिह्नित करने एवं उनके पुनर्गठन की छूट दी जानी चाहिए। हालाँकि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना महामारी बैंकों पर कितना असर डालेगी। यदि अगस्त महीने में ऋण अदायगी का स्थगन समाप्त हुआ, तो एनपीए की वास्तविक तस्वीर चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में दिख सकती है।

कोरोना से बढ़ेगा एनपीए स्तर

जून, 2020 की तिमाही में ऋणों के भुगतान पर रोक से परिसम्पत्ति गुणवत्ता पर दबाव बना रहा। इस तिमाही में बैंकों को एनपीए के मद में बड़ी राशि का प्रावधान करना पड़ा। प्रमुख निजी बैंकों की पहली तिमाही के आय विश्लेषणों से पता चलता है कि समग्र आधार पर, आकस्मिक प्रावधान, परिसम्पत्ति गुणवत्ता में कमी की वजह से किये गये। कोरोना महामारी से बैंकों के परिचालन लाभ का लगभग 27 फीसदी हिस्सा प्रभावित हुआ। हालाँकि यह प्रभाव सभी बैंकों के लिए उनके सेगमेंट, ग्राहक आधार और आंतरिक जोखिम आकलन के अलावा मार्च, 2020 तिमाही में किये गये कोरोना महामारी से सम्बन्धित प्रावधान की मात्रा आदि के आधार पर अलग-अलग है।

सकल एनपीए, जो मार्च, 2018 में 12.5 फीसदी था; वह मार्च, 2019 में कम होकर 9.7 फीसदी हो गया और सितंबर, 2019 में 9.3 फीसदी तथा मार्च, 2020 में महज 8.5 फीसदी रह गया। लेकिन कोरोना वायरस से आगामी महीनों में एनपीए की स्थिति बिगड़ जाएगी की प्रबल सम्भावना है। रिजर्व बैंक की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट 2020 के मुताबिक मार्च, 2021 तक सकल एनपीए का स्तर बढ़कर 14.7 फीसदी हो सकता है। यदि मार्च, 2021 तक सकल एनपीए 14.7 फीसदी हुआ, तो यह 22 वर्षों का उच्चतम स्तर होगा। इससे पहले वर्ष 1999 में सकल एनपीए 15.9 फीसदी के स्तर पर पहुँचा था, जो वर्ष 2000 में घटकर 14 फीसदी और वर्ष 2003 में 9.3 फीसदी रह गया था।

वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी बैंकों की स्थिति निजी बैंकों से ज़्यादा खराब हो सकती है। भारी-भरकम एनपीए का असर बैंकों की पूँजी और ऋण देने की क्षमता पर भी पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार, दबावग्रस्त परिसम्पत्तियों की वजह से कम-से-कम 5 बैंक मार्च, 2021 तक न्यूनतम पूँजी स्तर का पालन करने में चूक कर सकते हैं।

सितंबर, 2020 में 53 देशी-विदेशी बैंकों की पूँजी पर्याप्तता अनुपात कम होकर 14.1 फीसदी होने का अनुमान है; जो सितंबर, 2019 में 14.9 फीसदी थी। निजी बैंक पूँजी बढ़ा चुके हैं या इस प्रक्रिया में हैं; लेकिन सरकार को अभी भी सरकारी बैंकों में पूँजी डालने की योजना की घोषणा करनी है। बजट में इस बारे में कोई प्रावधान नहीं किया गया था। जिन बैंकों को पूँजी नहीं मिलेगी, उनकी वित्तीय स्थिति का खराब होना लगभग तय है। इस रिपोर्ट में निजी बैंकों का एनपीए अनुपात 3.1 फीसदी से 4.5 फीसदी के बीच बढऩेे का अनुमान जताया गया है।

संकट से उबरने में समर्थ हैं बैंक 

कोरोना महामारी के पहले एनपीए का स्तर घट रहा था। पूँजी पर्याप्तता अनुपात भी मज़बूत था।  इसलिए माना जा रहा है कि कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट से निपटने में भी भारतीय बैंक कामयाब रहेंगे। ज़्यादातर बैंक संकट से निकलने की कला जानते हैं। वित्त वर्ष 2012-13 में बैंकों ने बड़े पैमाने पर ऋण खातों का पुनर्गठन किया था। फिर भी वे संकट से उबर गये। हालाँकि बैंकों की बैलेंस शीट प्रभावित हुई थी; लेकिन पुनर्पूंजीकरण, आईबीसी और कुशल प्रबन्धन के ज़रिये बैंकों ने प्रतिकूल स्थिति पर काबू पा लिया।

निष्कर्ष

फिलहाल कोरोना महामारी के कारण ऋण की लागत बढ़ गयी है। साथ में आगामी महीनों में एनपीए बढऩे की सम्भावना भी प्रबल है। अगर ऋण ईमआई स्थगन यानी मोरेटोरियम अगस्त महीने में समाप्त होती है, तो परिसम्पत्ति गुणवत्ता के बारे में स्पष्टता सितंबर तिमाही में सामने आ जाएगी। सरकारी बैंक कोरोना महामारी से निपट सकें इसके लिए सरकार, सरकारी बैंकों को स्वतंत्र निदेशक खुद चुनने अधिकार दे सकती है। इस सम्बन्ध में 5 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी बैंकों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ बात की है। सरकार मामले में पीजे नायक समिति की सिफारिशों को लागू करने वाली है।

माना जा रहा है कि सरकारी बैंकों को यह अधिकार मिलने से वे किन ऋण खातों का पुनर्गठन करना है? इसके सम्बन्ध में बिना किसी दबाव के निर्णय ले सकेंगे, जिससे ज़रूरतमंदों और बैंकों को लाभ होगा। एक अनुमान के मुताबिक, कोरोना वायरस की वैक्सीन दिसंबर महीने तक बाज़ार में आ सकती है। अगर ऐसा होता है, तो आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने में ज़्यादा समय नहीं लगेगा।

(सतीश सिंह वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक के कॉरपोरेट केंद्र, मुम्बई के आर्थिक अनुसंधान विभाग में मुख्य प्रबंधक हैं और यह उनके निजी विचार हैं।)